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खम.३ ।
॥७३॥
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श्री राणपण जीवता रहेत नहीं. वली तमारां वहाण थंनाणां हतां ते पण एणे श्रागल रहीने तास्यां, ते
सर्व उपकार तमे नूली गया के शुं ? माटे एवो रत्न सरखो पुरुष जगतमां बीजो कोश् नथी॥६॥ तेथी अमे तमने कहीए बीए के जो तमे एनी साथे जोह करीने ( विरु के० ) मा (ताकशो के) श्वशो, विचारशो, तो अंते तमे पोतेज क्यांश्क वगर खूटे (थाकशो के०) मरण पामशो एटले थायुर्दा खुट्या विना मरण पामशो. अरे !जो एने नाग्ये एणे एटली शक्छि (लाधी के) पामी तो तमारा गलाने विषे ( जेवडी के०) एटली उर्बुद्धि केम आवीने पमी ? अथवा एटली उर्बुधि आवीने तमोने केम गले पमी ? माटे अमे तो कहीए बीए के तारुं धवल नाम ले ते खोटुं बे, पण तुं मलिन कगेर खनाववालो ने, माटे कृष्ण लेश्याना योगे करी तारुं कालो एवं नाम: जोश्ए. तुजने देखवाथी अमारो आत्मा पण मलिनपणाने पामे ॥७॥
त्रण मित्र हितशीख, ते एम देगया रे॥ ते एम ॥चोथो कदे सुण शेठ, के ए वैरी थया रे॥के ए वैरी॥गणीए पाप न पुण्य, के लखमी जोडीए रे
॥के लखमी० ॥ लखमी होये जो गांठ,तो पाप विगेडीए रे॥तो पापण॥॥ अर्थ-एवी रीते त्रण मित्र हितनी शिखामण थापीने पोतपोताने स्थानके गया, ( तव है के)ते वारे चोथो कपटखजावी मित्र हतो ते फरी पण ते शेग्नी पासे बेगे अने कहेवा
लाग्यो के हे शेठ ! तमे सांजलो, के ए त्रण मित्र तो उलटा तमारा वैरी थया, कारण के जेणे तकरी तमारी मोटार थाय तेवु ए चिंतवता नथी, माटे गया तो जवा द्यो. हुं एकलोज तमारां मनो-12
वांबित पूर्ण करीश, तमे कोइ वाते चिंता करशो नहीं. मारो मत तो एवो डे के पाप अने पुण्य कांश पण गणीए (न के०) नहीं, परंतु लक्ष्मी जोमीए एटले एकठी करीए, कारण के जो लक्ष्मी गांउमां होय तो पुण्य करीने पापने विडोमी नाखीए ॥७॥
॥३॥
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