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रोग, पागनुं दरद अने पेटनी पीमा तथा दांतनां सूर ए सर्व रोग टली जाय ॥३०॥
निर्धनियां धन संपजे, अपुत्र पुत्रीया दोय रे॥ विण केवली सिध्यंत्रना, गुण न शके कही कोय रे ॥ चेतन ॥ ३१ ॥ रास रच्यो श्रीपालनो, तिहां ए सातमी ढाल रे ॥ विनय कदे श्रोताघरे, होजो मंगलमाल
रे ॥चेतन ॥३३॥ अर्थ-वली जे निर्धन पुरुषो होय ते धनवंत थाय तथा अपुत्रीया होय तेमने पुत्र थाय, घणुं| शुं कहीए ? ए श्रीसिकचक्रजीना गुणोने केवली नगवान् विना बीजो को कही शके नहीं ॥३॥ श्री श्रीपाल राजानो रास रच्यो तेनी ए सातमी ढाल संपूर्ण थक्ष. रासना कर्ता श्रीविनयविजयजी। उपाध्याय कहे डे के श्रोताउने घेर मांगलिकनी माला होजो ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ श्री मुनिचंद मुनीश्वरे, सिध्यंत्र करी दीध ॥ श्द नव परनव एदथी, फलशे वांवित सि६॥॥श्री गुरु श्रावकने कदे, एबेहु सुर्गुणनिधान ॥
कोश्क अवसर पामीए, सेवो थइ सावधान ॥२॥ अर्थ-एम श्रीमुनिचं नामे मुनीश्वरे ए श्रीसिद्धचक्रनो यंत्र करी दीधो, एना माहात्म्यथी। श्रा नवे अने परजवे मनोवांवित सिकि फलशे ॥१॥ पड़ी पासे बेठेला श्रावकसमुदायने श्री गुरु कहे जे के या बेहु स्वामीना, ते रुमा गुणोना (निधान के०) खजानारूप में, एनां । उत्तम लक्षणे करी जाणीए बीए जे ए मनुष्य निश्चे थोमा दिवसोमां श्रीजिनधर्मना प्रनावक है थशे. एवा साधर्मीनी वात्सत्यता जक्ति करवी ए योगवा कोश्क अवसरे पामीए बीए, माटे सावधान थश्ने एमने सेवो ॥ यतः॥ एएहिं उत्तमेहिं, लकिङ खस्कणेहिं एस नरो ॥ जिण-18
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