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________________ श्री राम शांत थाय. जेम (घन के० ) मेघ ते (प्रचंग के० ) घणो आकरो पवन लागवाथी नाश पामे , खम. १ तेनी पेरे कुःख दौर्जाग्य पण नाश पामे ॥ २६ ॥ ॥२२॥ नमणजले सिचक्रने, कुष्ठ अढारे जाय रे ॥ वाय चोराशी उपशमे, रूके गुंबड घाय रे॥चेतन ॥२॥ नीम जगंदर जय टले, जाय जलोदर दूर रे॥ व्याधि विविध विषवेदना, ज्वर थाये चकचूर रे ॥ चेतना ॥ ॥ खास खयन खस चक्षुना, रोग मिटे सन्निपात रे ॥ चोर चरड डर डाकिणी, कोइ न करे नपघात रे ॥ चेतन ॥ ए॥ दीक दरस ने देडकी, नारां ने नासूर रे ॥पाठां पीडा पेटनी, टले मुःख दंतनां सूर रे ॥ चेतन० ॥ ३० ॥ . अर्थ-ए श्रीसिचक्रजीनु न्हवणजल गंटवे करी अढार जातना कोढ रोग जता रहे, तथा चोराशी जातिना वायु संबंधी रोग थाय ने ते सर्व उपशम पामी जाय, तेमज शरीरमां गुबमां । थयां होय, (घाय के० ) काटका लाग्या होय, ते सर्व रूजे एटले रूजा जाय ॥ २७॥ वली (नीम के०) बीहामणा एवा जे नगंदर रोग संबंधी जय, ते टली जाय, तथा जलोदर रोग दूर जतो | रहे, वली व्याधि जे बाह्य शरीरनी पीमा तथा अंतरनी मन संबंधी पीमा अने विविध प्रकारनां ! (विष के०) फेर तेनी वेदना, तेमज सात प्रकारना (ज्वर के० ) ताप ते सर्व चकचूर था। जाय ॥ २७ ॥ तथा खांसीनो रोग, खेननो रोग अने खसनो रोग, वली (चकुना के०) नेत्रोना है रोग तेमज सन्निपात रोग, ए सर्व रोगो मटी जाय. श्रीसिद्धचक्रना प्रत्नाव थकी चोर अने ॥२२॥ (चरम के०) नूत तथा मर माकिणी ए मांहेलो को पण उपघात करी शके नहीं ॥श्ए॥ तथा हीकनो रोग, हरसनो रोग, हेमकीनो रोग, नारां पड्यां होय ते रोग अने नासूरनो CROCODACOCOCOCONCRACCORRCANCERS RIL Jain Education T For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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