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________________ श्रीरा खंग. ॥ ६ ॥ षनदेव प्रासाद, उबव पूजा नित करे जी॥ गीत गान बहु दान, वित्त घणुं तिहां वावरे जी ॥१४॥ चैत्र मासे सुखवास, आंबिल जैली आदरे जी॥ सिक्ष्चक्रनी सार, लाखीणी पूजा करे जी ॥१५॥ वरतावी अमार, अहा महोत्सव घणो जी॥सफल करे अवतार, लाहो लीए लखमी तणो जी ॥ १६ ॥श्क दिन जिनहर मांदि, कुंअर राय बेग मली जी ॥ नृत्य करावे सार, जिनवर पागल मन रती जी ॥१७॥णे अवसर कोटवाल, आवी अरज करे इसी जी ॥ दाणचोरीए चोर, पकड्यो तस आशा कीसी जी ॥१७॥ अर्थ-इहां कुंवर श्रीषनदेवजीना प्रासादने विषे मोटा आनंदे करी नित्य प्रत्ये उत्सव त पूजा करे बे, तथा घणां गीत गान करे बे, बहु दान आपतो थको तिहां घj (वित्त। के०) व्य वावरे ने ॥ १४ ॥ फरी चैत्र महीनो आव्यो ते वारे सुखना आवासरूप आयंबिलनी उली दरीने श्रीसिद्धचक्रजीनी प्रधान लाखीणी पूजा करे ठे ॥१५॥ आठ दिवस पर्यंत अमारीनो || पमह वर्तावीने एटले वगडावीने घणो मोटो अहा महोत्सव कस्यो. एवी रीते कुंवर पोतानो मनुष्य-14 अवतार सफल करे बे, अने लक्ष्मी पाम्यानो लाहो लीए ने ॥ १६॥ एक दिवसे जिनेश्वरना देरा माहे कुंवर अने राजा ए बेहु जण साथे मली बेगा , अने (मन रली के०) मननी मग्नताए श्रीजिनेश्वरनी श्रागल उत्तम नृत्य करावे ॥ १७॥ ए अवसरे कोटवाल श्रावीने राजाने 31 एवा प्रकारनी अरज करवा लाग्यो के हे महाराज ! दाणचोरीए चोर थयेलो एटले दाणचोरीनो करनार चोर श्रमे पकड्यो बे, तेने आप केवा प्रकारनी शिदा करवा ढकम करो बो ? ते कहो ॥ १७ ॥ ॥६ ॥ - Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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