SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वली नांगी तुम आण, बल बहुऱ्या इणे आदमु जी ॥ अमे देखाड्या हाथ, तव महोढुं छांखुं कयुं जी ॥१॥ राजा बोले ताम, दंड चोरनो दीजीए जी ॥ जिणहरमा ए वात, कहे कुंअर किम कीजीए जी॥२०॥ नजरे करी हजुर, पहेलां कीजे पारखं जी॥ पत्रे देश्जे दंड, सहुए न होये सारिखं जी ॥१॥ आएयो जिसे हजुर, धवल शेठ तव जाणीयो जी॥ कदे कुंअर महाराज, चोर नलो तुमे आणीयो जी ॥२॥ ए मुज पिता समान, हुँ ए साथे आवीयो जी। कोटिध्वज सिरदार, वाहण इहां घणां लावीयो जी॥ २३ ॥ गेडावी तस बंध, तेडी पासे बेसाडीयो जी॥गुनद करावी माफ, रायने पाय लगाडीयो जी ॥२४॥ अर्थ-वली तमारी आणा दीधी ते पण एणे नांगी नाखी, तथा अमारी सामु घणुं बल || श्रादगुं, परंतु अमे जे वारे खरेखरा हाथ देखाड्या, ते वारे तेणे पोतार्नु मुख कांखुं कलुं ॥१॥31 ते सांजली राजा बोल्यो के एने चोरनो दंम आपो, ते वारे कुंवर कहेवा लाग्यो के हे स्वामिन् ! 81 है जिनघरमा ए वात केम करीए ? ॥ २० ॥ वली जे चोर होय तेने प्रथम तो पोतानी नजर श्रा गल हजुर करीने तेनी परीक्षा करीए, अने पढ़ी जे कां तेने दंम देवो घटे ते श्रापीए, शा माटे ? जे सर्व माणस कांश सरखां न होय "सहुने होये सारिखं जी" एवो पागंतर पण ने &॥ २१॥ पठी जे वारे राजानी हजुरमा तेने लश् श्राव्या, ते वारे ए धवल शेठ वे एवं जाणीने 81 कुंवर राजाने कहेतो हवो के महाराज ! आ चोर तो तमे घणो जलो आण्यो ॥ ॥ ए तो है मारा पिता समान , हुं एनी साथेज इहां श्राव्यो बुं, वली ए तो कांश सामान्य माणस नथी, परंतु कोटिध्वजो जे जे तेनो पण ए सिरदार , अने श्हां तमारा बंदर मांदे घणां वहाण Sain Education international For Personal and Private Use Only nebog
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy