SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 248
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ॥१२॥ श्री रानेटणां खेतो थको एवो जे श्रीपाल तेनुं चक्रवर्ती राजानी समान (सूत्र के० ) प्रवर्त्तन थथुखम. ३ अथवा चक्रवर्ती समान सूल एटले पराक्रम थयुं ॥ २४॥ तस सैन्यनरे नारित मही, अहिपतिफणमणिगणप्रोत रे ॥ वि०॥ तेणे गिरि पण जाणुं नवि गिरिया, शशी सूर नयण विधि जोत रे ॥वि० ॥ ली० ॥ २५॥ । अर्थ-हवे कवि उत्प्रेदा करे ने के जेम अणीयाली वस्तुना उपर नार श्राववाथी तेनी उपर रहेली वस्तु परोवाइ जाय , यथा "कंटकेन पादः" जेम कांटो हलवो बे, अने पग नारे बे, तोपण कांटानी तीक्ष्णताए करी ते पग कांटा मांहे परोवार जाय , तेम ( तस के० ) ते श्रीपालना (सैन्यजरे के) सैन्यना नारे करी नारित थर थकी दवाणी एवी जे ( मही के०) पृथ्वी ते अहिपति जे शेषनाग, तेनी फण उपरनां जे मणिना (गण के०) समूह, समुदाय तेणे करी (प्रोत के०) परोवाणी, एटले परोवाइ गइ, ( तेणे 21 के) तेथी जाणीए जे ( गिरि के० ) पर्वत ते नवि गिरिया एटले पड्या नहीं! परंतु जो| पाए पृथ्वी शेषनागनी फणनां मणिमां परोवाणी न होत तो सैन्यना नारे करी एक दिशाए पृथ्वी नमी जात, ते वारे सम नमिए रहेला पर्वतादिक पण ढली पमत, माटे ए कविए उत्प्रेदा कीधी के सैन्यने नारे पृथ्वी एक दिशाए नमी नहीं, तेथी शेषनागनी फणनां मणिनए । परोवाणी देखाय . ए मोटें आश्चर्य सांजलीने ते समये सूर्य अने चं जे रात्रि दिवस श्रीपालना सैन्यने जुवे , ते जाणीए सूर्य चंड नथी ! परंतु विधि जे ब्रह्मा तेज शशी सूर एटले चंब सूर्य ॥१२॥ तप नयण जे नेत्र तेने विकासीने (जोत के०) जुवे बे, अने मनमां चिंतवे बे के नखं थयु जे पृथ्वी शेषनागनी फणनां मणिनए परोवाइ गर, नहीं तो आ श्रीपालना मोटा सैन्यना जारे Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy