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________________ जन थाय ने ॥ १२ ॥ वली जे उक्ति के जुक्ति एटले कोइ पण वातनो न्याय करवो, चतुराइ देखाकामवी, ते कांश समजे नहीं, जेने कोइ पण कामकाज करवानी चतुराश्थी सोज एटले शोध करवी की तेनी सूज पडे नहीं, (इत उत के ) श्हां तिहां अरहुं परहुं ज्यां त्यां जंगलीनी पेठे जोया करे, जाणे कोई वगडानुं रोऊ आव्युं होय नहीं ? ॥ १३ ॥ रोक तणुं मन रीझवी, न शके कोइ सुजाण ॥ नदी मांदि निशिदिन वसे, पलले नहीं पाषाण ॥ १४ ॥ मरम न जाणे मांदिलो, चित्त नहीं इक गेर ॥ जिहां तिहां माथु घालतो, फरे दरायुं ढोर ॥ १५॥ वली चतुरशुं बोलतां, बोली इक दो वार ॥ ते सदेवी संसारमां, अवर अकज अवतार ॥१६॥ रसियाने रसिया मले, केलवतां गुण गोठ॥ दिये न माये रीक रस, कदेणी नावे दो ॥ १७ ॥ अर्थ-माटे एवा रोऊ जेवा मूर्खनुं मन तो कोइ ( सुजाण के० ) रुडो जाण पुरुष होय ते पण परीऊवी शके नहीं, केनी पेठे ? के जेम मगसेलीयो पथरो जे , ते रात्रि दिवस नदी मांहेज है वसे बे, तथापि ते बिलकुल पलले नहीं तेम ते मूर्ख पण जो सुजननी पासे रात्रि दिवस रहे। तोपण को रीते रीफ पामे नहीं ॥ १४ ॥वली मूर्ख जन जे ते हरेक कामनी अंदरनो मर्म जे , रहस्य तेने जाणे नहीं, वली तेनुं चित्त पण (श्क गेर के० ) एक ठेकाणे न होय. जेम हरायु ६ एटले रखडतुं तोफानी ढोर होय ते ज्यां त्यां माथु घालतुं थकुं फरतुं फरे तेनी पेरे ते पण फरतो 3 फरे ॥ १५ ॥ वली चतुरनी साथे कदाचित् वचन बोलतां एक बे वार बोलीए ते संसारमा सहेली एटले अवतारनो लाहो लीधो जाणवो, श्रने (श्रवर के) बीजो अवतार ते (अकज के ) निष्कारण निष्फल जाणवो ॥ १६ ॥ अथवा वली जे रसिया जन होय तेने जो रसिया मले JainEducationainternational For Personal and Private Use Only www brary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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