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________________ श्रीराम कोइए कंदर्पने जीत्यो नथी, अर्थात् सर्व खानुकूल चेष्टावंत कीधा एवो सर्वोत्तम बलिष्ठ जे कंदर्प खम. तेने तमे तमारा ( विक्रम पके के०) पंमितवीर्योवासरूप परिपक्क बल पराक्रम स्वरूपाजिरमणरूप ॥१४॥ ध्यानना एक धक्काए मरमी नाख्यो, हेलामां मोमी नाख्यो, अर्थात् अध्यात्ममार्गीने काम जीतवो उर्लन नथी . अथवा तमारा पराक्रमने परिपाकपणे एटले चोथा व्रतना नवकोटि पञ्चरकाणने 31 करवे करीने (तें इक धक्के के० ) तमे एक धक्कामांज एटले घणा काल अभ्यास करवो न पड्यो, मात्र एक धक्कामांज ते कंदर्पने मोडी नाख्यो, दूर करी नाख्यो. हवे ए उक्त अर्थ दृष्टांते करीने । दृढ करे . सर्व तिर्यंचो मांहे सिंह बलिष्ठ , केमके जो पण मद सहित गर्जारव करता एवा सहस्रगमे हाथीनी घटा मलेली होय, तोपण एक (हरिनादे के ) सिंहने नादे एटले शब्द ४ करवे करीने ते गजनी श्रेणी गाजे नहीं एटले गर्जारव करी शके नहीं. सिंहनो शब्द सांजली सर्वे गजो दश दिशाने विषे लागी जाय, पण को उन्नो रहे नहीं. एवो बलिष्ठ सिंह ने ते पण श्रष्टापद नामे जनावरनी श्रागल (बागल के० ) बोकमा जेवो थर जाय. अर्थात् सर्व जनावरोमां गग निर्बल कहेवाय ने तेनी सरखो थर जाय, तेम हे मुनीश्वर ! ते कंद सर्वने जीत्या, पण कंदर्पने जीतनार ते तमेज एकला थया, माटे तमे निर्विषयी थया बो ॥४॥ रति अरति निवारी नय पण नारी ॥ वि०॥ तें मन नवि धरीया तेहज डरीया तुजथी॥वा० ॥ तें तजीय गंग शी तुज वंग ॥ वि० ॥ तें पुग्गल अप्पा बिहुँ परके थप्पा लदाणे ॥वा० ॥५॥ ॥१४॥ अर्थ-हवे रति श्रादिक नोकषाय जे जे ए पण कषायनाज वधारनारा दे, ते माटे हे स्वामिन् ! | रति जे को मान पूजादि सत्कार करे ते वारे शाता वेदवी पडे ते रति, अने अरति ते अपमान, तिरस्कार, उपसर्गादिक उपजे ते वारे अशाता वेदवी पडे, ए वे शाता अशातारूप जे * ACCAKCARKACACANCCIAL in Education n ational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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