SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुंदरी वरशे तेनां तो सर्व कार्य सख्यां, अने तेना शरीरनो वान पण वढ्यो, एम जाणवू ॥१३॥ श्ण अवसरे नरपति कुंअरी, वर अंबर शिबिकारूढ रे॥ जाणीए चमकती वीजली, गिरि उपर जलधरगूढ रे ॥ जुर्ज ॥ १४॥ मुत्तादलदारे सोदती, वरमाला कर मांदे ले रे ॥ मूल मंडप आवी कुंअरने, सहसा शुचि रूप पलो रे ॥ जु० ॥ १५॥ जे सहज स्वरूप विनावमां, देखे ते अनुनवयोग रे ॥ इण व्यतिकरे ते दरषित हुश्, कदे हुई मुज इष्ट संयोग रे॥ जु० ॥१६॥ अर्थ-एवा अवसरे राजानी कुंवरी पण ( वर के० ) प्रधान एवां अंबर एटले वस्त्रोए करी थाछादित करेली एवी शिविका एटले पालखी तेमां श्रारूढ थश्ने स्वयंवरमंम्पमां आवे , इतिहां कवीश्वर उपमा आपे डे के जेम (जलधरगूढ के० ) मेघनी घटाए ढांकेलो एवो जे पर्वत तेनी उपर चमकार करती वीजली शोने, तेम शहां पर्वत समान ते पालखी जाणवी, श्रने ते 8 पालखी उपर जे नीला वस्त्रनुं मेघाडंबरमत्र धतूं मे ते जाणीए जंडो गुप्त वरसाद चढी श्राव्यो । बे, अने तेमां ऊबकारा करती वीजलीनी परे ते कन्या बेठी थकी शोने ॥१४॥ ते कुंवरीएर मुत्ताहल एटले मुक्ताफल जे मोती तेना हार कंठमां पदेख्या , तेणे करी शोजती थकी हाथमा * वरमाला लश्ने जेवी मूल मंगपस्तंजने विषे आवी, तेवीज तेनी आगल उन्नेला श्रीपाल कुंवरनुं सहसा एटले शीघ्रपणे अकस्मात् शुचि एटले पवित्र एवं रूप तेने (पलोश के) देखीने मग्न Aथ ॥ १५ ॥ तेनी उपर दृष्टांत कदे के जेम सहज स्वरूप एटले कर्मादि मल रहित, स्फटिक रत्ननी परे निर्मल, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योगथी रहित तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय एवं जे आत्मानुं सहज खरूप ने तेने विनावमा एटले नवनिध परिग्रहादिक जे घर, माख मिल्कत, Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy