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बीजं पयपंकज तस नूप, सेवे बहु नत्ति अनुरूप ॥ साहिब० ॥ तुमे नवि आव्या उपायो विरोध, नवि असमर्थ ने तेद शुंशोध ॥सादिव॥४॥ किदां सरशव किहां मेरु गिरीद, किहां तारा कहां शारद चंद ॥सादिव०॥ किहां खद्योत किहां दिननाथ, किहां सायर किदां बिल्लर पाथ ॥ साहिब० ॥ ५॥ किहां पंचायण किदां मृगबाल, किदां ठीकर किहां सोवनथाल ॥ साहिब० ॥ किहां कोज्व किदां कूर कपूर, किहां कुकश ने किहां घृतपूर ॥ साहिब० ॥६॥ किदां शून्य वेडी किदां आराम, किदां अन्यायी किहां नृप राम ॥ सादिव०॥ किदां वाघ ने किदां वली
गग, किदां दयाधरम किहां वली याग॥ साहिब० ॥७॥ | अर्थ-हवे आम्ल एटले खाटां धीगं वचन कहे . बीजु वली (बहु के० ) घणा (नूप के०)। राजा ते श्रीपालना पदपंकजने नत्ति अनुरूप एटले अनुकूल नक्तिए करीने सेवे , पण तमे
पोताना थका तेनी सेवा करवा श्राव्या नहीं, तेथी विरोध उपजाव्यो, तोते विरोधनो शोध कर-8 हैवाने ते श्रीपाल शुं असमर्थ डे ? (नवि के०) ना, असमर्थ नथी ॥४॥तेनामां अने तमारामांडू है तो घणोज अंतर , ते ढुं कहुं बुं, सांजलो. क्यां तो सरशवनो एक दाणो अने क्या मेरु पर्वत !
वली क्यां तारानुं तेज अने क्यां शरद पूनमना चंडमानुं तेज ! क्या खद्योत एटले आगीयो जी-2 वमो उडे ने तेनुं तेज अने क्या दिननाथ जे सूर्य उगे ने तेनुं तेज ! वली क्यां सायर एटले. समुनी लहेर अने क्या बिब्बर पाथ एटले एक खाबोचीयानी लहेर ! ॥५॥ वली क्यां पंचा-6 नन जे सिंह तेनुं बल अने क्यां मृगलाना बालकनुं बल ! तथा क्या एक ठीकरानी शोजा अने
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