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________________ खंग.४ कर श्रीराम अढार सहस शीलांगना धोरी, अचल आचार चरित्र ॥ मुनि महंत ॥रए॥ जयणा युत वांदी, कीजे जन्म पवित्र रे ॥ नविका ॥ सिचक्र ॥२३॥ नवविध ब्रह्म गुपति जे पाले, बारसविद तप शूरा ॥ एहवा मुनि नमीए जो प्रगटे, पूरव पुण्य अंकुरा रे॥नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥२४॥ अर्थ-वली अढार हजार शीलांग रथना धोरी एटले ते रथने चलाववाने माटे वृषन समान 8 4. एनो विस्तार पूर्वे देशनानी ढालमां कह्यो तिहाथी जाणवो. वली कोनुं चलाव्युं चाले नहीं| एवं अचल ने श्राचाररूप चरित्र जेमनुं एवा महंत एटले मोटा मुनि ते जयणा युक्त ने, केमके है मुनिराज जे जे ते क्रिया कलापमा सुतां, बेसतां, उठतां, आहार लेतां, श्रावतां, जातां, मल मूत्र पररवतां सदा जयणा सहित विचरे बे, तेमने वांदीने पोतानो जन्मारो पवित्र करीए अथवा मुनिने जयणा युक्त वांदीने जन्म पवित्र करीए ॥२३॥ वली जे नव प्रकारे नव वामरूप ब्रह्मचर्यनी गुप्ति पाले . ते गुप्तिनां नाम कहे . प्रथम जे वस्तिमां स्त्री, पशु, पंग ते नपुंसक होय एवी वस्तिमा रहे नहीं, वीजी स्त्रीनी कथा वार्त्ताने सरागपणे सांजले नहीं, स्त्रीनी साथे एकांते ! एकलो वात न करे. त्रीजी जे नूमिकाने विषे श्रथवा मांची, पाट, पाटलो, ढोलीयो इत्यादिक जे आसन उपर स्त्री बेठेली होय ते श्रासन उपर बे घडी सुधी बेसे नहीं, तेमज जे श्रावक ब्रह्मचारी होय ते पण तिहां बे घडी लगण वेसे नहीं. चोथी स्त्रीनां अंगोपांग तथा इंजियोने सरागपणे जुवे नहीं. पांचमी नींत परिश्रच त्राटी प्रमुखने अांतरे जिहां स्त्री तथा पुरुष शयन करतां होय, हास्य विनोद करतां होय, कामनोगनी क्रीमा करतां होय तिहां रहे नहीं. उही पूर्वे संसारी अवस्थामां जे कांश स्त्रीनी साथे कामनोग विलासादिक सेव्या होय ते संजारे नहीं. ए॥ Sain Educatio n al For Personal and Private Use Only Janelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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