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________________ तुज प्राण दीया ने एदने, तुं प्राण अधिक मुज रे॥ वि० ॥ एहने तुं देवी मुज घटे, ए जाणे हृदयनुं गुफ रे ॥ वि०॥ ली ॥१७॥ स्निग्ध मुग्ध हग देखतां, इम कदेतां ते श्रीपाल रे ॥ वि० ॥ मन चिंते महारा प्रेमनी, गति एदशं ने असराल रे॥ वि० ॥ ली। ॥१७॥ अर्थ-माटे हे पुत्री ! हमणां तारा प्राण जता हता ते ए श्रीपाल राजाए पाग दीधाडे, श्रने तो तुं मारा प्राणथी पण अधिक वहाली बो, अने ए श्रीपाले तुजने मरणना नयथी बचावी राखी, माटे जयात्रायते इति जर्ता, माटे मारे तुं ए श्रीपाल राजाने देवी घटे , ए मारा हृद-18 है यर्नु (गुऊ के० ) विचार चिंतवन ३ ते तुं जाणजे, तेथी तारे पण एनेज वरवो ॥ १७ ॥ मह सेन राजाए पोतानी पुत्रीने एवी रीते कहेतां थका ( ते के० ) ते कुंवरी ( स्निग्ध के० ) स्नेहाली सरस, रागवंत अने ( मुग्ध के) नाक जोली एवी (हग के ) दृष्टिए करी (श्रीपाल के०) श्रीपाल प्रत्ये ( देखतां के० ) देखती थकी मनमां चिंतववा लागी के मारा प्रेमनी गति ( एहशुं के०)ए श्रीपालनी साथे ( असराल के ) अकल , अनिनव ने, अवाच्य एटले मुखथी कही जाय नहीं एवी ने, इहां मुग्ध पदे करी वक्र कटाक्षादि क्रियावैदग्ध्यसहितपणानो अनुदय सूचव्यो, एटले कामक्रीमा प्रमुख विषयरसमां आसक्त हजी थक्ष नथी. हमणां नवयौवननो उजम ने, अने पावस्था विरमी यौवनावस्थानी प्राप्तिनो अवसर जे, एने वयःसंधि कहीए, माटे अविलसित-15 यौवना . जो संपूर्ण विलसितयौवना होय तो ते वक्र कटादादिक क्रियामां विदग्ध होय,६ है तेथी तेना नेत्रविलसितनुं ज्ञान प्रगट न थाय, अने आ तो हजी मुग्धा दे, तेथी एना नेत्रविलासना ज्ञाननो उदय राजाने थयो बे. एवी ते कुंवरीए मुग्ध नमक दृष्टिए एटले रागजरे । अनिमेष लोचने श्रीपालने जोयो, ते जोतांज पूर्वजव राग संबंधथी को वचने कह्यामां न आवे ROCROCALCCCCRAICROCRACANCERSONAGARICAN in S antana For Personal and Private Use Only www.n aryong
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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