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________________ खम.? ॥ १॥ काल श्रीजिनेश्वरने पूजो. तिहां उजमाल थश्ने अष्ट प्रकारी पूजा करीए अथवा विधिपूर्वक शब्द ए पदनी साथे जोमी अर्थ करीए तो विधिपूर्वक श्रष्ट प्रकारी पूजा उजमाल थश्ने करीए॥१॥ निर्मल नूमि संथारीए, धरीए शील जगीश रे ॥ जपीए पद एकेकनी, नोकरवाली वीश रे॥चेतन॥१॥आठे थोइए वांदीए, देव सदा त्रण वार रे॥पमिकमणां दोय कीजीए, गुरु वेयावच्च सार रे॥चेतन ॥२०॥ काया वश करी राखीए, वचन विचारी बोल रे ॥ ध्यान धर्मनुं धारीए, मनसा कीजे अडोल रे॥ चेतन॥२॥पंचामृत करी एकगं,परिगल कीजे पखाल रे॥नवमे दिन सिक्ष्चकनी,कीजे नक्ति विशाल रे॥चेतन॥॥ अर्थ-नव दिवस पर्यंत ( निर्मल के० ) चोखी जीवाकुलरहित जूमिने विष संथारो करीए, एटले निःकेवल नूमि उपर सुश्ए, तथा (जगीश के०)जगतमां मोटाश्ने धारण करना अथवा 8 जगतमां यश अने शोजाकारक एवं शीयलवत धारण करीए, अथवा ( जगीश के) मननी होंशे* करी शीयलव्रत धारण करीए, अने ए नव पद मांदेला अनुक्रमे एकेका पदनी वीश वीश नोकरवाली प्रतिदिवस जपीए एटले जाप करीए ॥ १५ ॥ वली (सदा के० ) सर्वदा एटले नवे दिवस पर्यंत आठे थुश्ए करीने प्रजात, मध्याह्न अने सांज, ए त्रण वार देव वांदीए एटले देववंदन 8 करीए, तथा सवारना अने सांजना ए बे वखतनां बेहु पमिकमणां करीए, श्रने (सार के) श्रेष्ठपणे श्रीगुरुनु वेयावच्च करीए ॥ २०॥ वली पोतानी कायाने वश करी राखवी, श्रने मुखमाथी जे वचन बोलवू पडे ते विचारीने योग्य बोलवू, पण यहा तछा न बोलवू, तथा ध्यान मात्र एक धर्मनुज धरवू, अने मनने अमोल करवं, परंतु मामामोल न करवू ॥ २१॥ उध, दही, साकर, घृत अने जल, ए पंचामृत एकगं करीने (परिगल के) बहु विधिए करी अथवा घणी मोटी ॥२१॥ Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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