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॥१६॥
श्रीराम विवेक सहित करो. धन पाम्या बो तेनो लाहो ख्यो. मनने विषे मोटी टेक राखीने पूजा करो॥
खंग.४ मयणा वयणां मन धरी, गुरुनक्ति शक्ति अनुसार ॥ मेरे ॥ अरिदंतादिक नव पद नलां, आराधे ते सार ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ५॥ नव जिनघर नव पडिमा नली, नव जीर्णोद्धार कराव ॥ मेरे ॥ नानाविध पूजा करी, जिन आराधन शुन्न नाव॥ मेरे ॥ मननो ॥६॥ एम सिह तणी प्रतिमा तj, पूजन त्रिडं काल प्रणाम ॥ मेरे ॥ तन्मय ध्याने सिनु, करे आराधन अनिराम ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ७॥ आदर नगति ने वंदना, वेयावच्चादिक लग्ग ॥ मेरे ॥ शुश्रूषा विधि साचवी,
आराधे सूरि समग्ग ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ७॥ अर्थ-ए प्रकारे मयणानां वचन मनमां धरीने (गुरु के ) मोटी बेनक्ति जेनी एवो जे श्रीपाल राजा, ते पोतानी शक्तिने अनुसारे सारनूत जे अरिहंतादिक नलां नव पद डे तेने आराधे | ॥ ५॥ हवे श्रीपाल राजा नव पदनुं आराधन विस्तारपूर्वक करे . तेमां प्रथम अरिहंतपदनी नक्ति करे . तिहां नवनी संख्याए प्रासाद, बावन जिनालय नवां कराव्या. तेमां नव अरिहंतनां बिंब नवां नरावीने स्थाप्यां. वली नव जीर्ण प्रासादना उद्धार कराव्या. तेनी त्रण दे, पांच नेदे, श्राप दे, सत्तर नेदे, एकवीश नेदे, एकसो श्राउ नेदे, एम विविध प्रकारनी पूजा 31 करी. ए रीते शुज नावे करी जिनपद थाराधे ॥ ६॥ हवे बीजा सिझपदनुं श्राराधन करे |
ते कहे . ( एम के०) पूर्वे कहेला प्रकारे सिझनी प्रतिमाने पण त्रण काल पूजा प्रणाम करे ॥१७॥ M. चेतनने निबिम श्रानंदना उद्यमे निरावरण कर्माजनरहित एवा सिझने (तन्मय ध्याने ?
के) मन, वचन, कायानी एकाग्रताए करी मनोहर थाराधन करे ने ॥ ७॥ हवे त्रीजा आचार्य-||
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