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________________ रामर ते पण एवीज पुःखदायी होय ॥ श्ए ॥एम निर्धारी सासु श्रने ससरो बेहु जण वे हाथ जोमी घणा आदरे करी आंखमांथी आंसुनी धारा पमते थके कुंवर प्रत्ये एवी रीते (जणे के०) कहेतां हवां ॥३०॥ मदनमंजूषा एद, अम नत्संगे जबरी जी॥जन्मथकी सुख मांदि, आज लगे लीला करी जी ॥३२॥ वादाली जीवितप्राय, तुम दाथे थापण ठवी जी॥ एदने म देशो बेद, जो पण परणो नवनवी जी॥ ३२॥पुत्रीने कदे वत्स, दमा घणी मन आणजो जी॥सदा लगे भरतार, देव करीने जाणजो जी॥३३॥ सासु सुसरा जेठ, लजा विनय म चूकजो जी॥परिदरजो परमाद, कुलमरजादा म मूकजो जी॥ ३४॥ कंत पदेवी जाग, जागंतां नविजंघीए जी॥शोक्य बहेन करी जाण,वचन न तास उलंघीए जी॥३५॥ अर्थ-के हे राजन् ! ए मदनमंजूषा नामे पुत्री, ते अमारा खोलामा उठरी, एणे जन्म-15 थकी मांडीने आज दिवस सुधी सदाय सुख मांहेज लीला करी ॥३१॥ ए पुत्री प्रायः अमारा पाजीवथकी पण अमने घणीज वहाली. ते आज तमारे हाथे जेम थापण (वी के०)स्था होय तेम थापी , माटे जो पण तमे नवनवी स्त्री परणो, तोपण एने छेद देशो नहीं है। ॥ ३५ ॥ हवे पोतानी पुत्रीने शिखामण श्रापवा माटे राजा राणी कहे के हे वत्से ! तमे तमारा मनमा घणी दमा आणजो, क्रोध करशो नहीं, अने सदा लगण जरिने तो देव करीनेज जाणजो ॥ ३३ ॥ वली सासु, ससरो श्रने जेठ, तेमनी लजा विनय करवानुं के वारे पण चूकशो नहीं. तथा प्रमादने परहरजो, त्याग करजो अने कुलनी मर्यादा मूकशो नहीं ॥३४॥ वली नत्र है जाग्याश्री पहेली जागजे, तथा जरि जागतो होय तिहां सुधी जंघीश नहीं, शोक्य होय तेने बहेन जेवी जाणजे, शोक्यनुं वचन उलंघन करीश नहीं ॥ ३५ ॥ के०) स्थापी Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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