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________________ ॥ ढाल त्रीजी ॥ राग केदारो ॥ कपूर होवे अति उजलो रे ॥ए देशी॥ मन मंदिर दीपक जिस्यो रे, दीपे जास विवेक ॥ तास न कहिए परानवे रे, अंग अज्ञान अनेक ॥ पिताजी ॥ म करो जूठ गुमान ॥ ए शदि अथिर निदान ॥ पिताजी॥ जेदवो जलधि जधान ॥ पिताजी ॥ म करो० ॥१॥सुख दुःख सहुए अनुन्नवे रे, केवल कर्म पसाय ॥अधिक न उबुं तेदमां रे, कीथं कोणे न जाय ॥ पिताजी॥म करो ॥२॥राजा कोपे कलकल्यो रे,सांनलतां ते वात ॥वहालीपण वेरण थश्रे,कीधो वचनविघात रे॥बेटी॥नली रे नणी तुं आज॥ तें लोपी मुझ लाज रे॥4॥ विणसाड्यु निज काज रे॥ बे॥ तुं मूरख शिरताज रे॥बे॥०॥३॥ अर्थ-मनरूप मंदिरने विषे दीपक जेवो जेने विवेक दीपे , तेना अंगमां अनेक जातिनुं जे अज्ञान दे ते केवारे पण परानव करी शके नहीं, माटे हे पिताजी ! तमे जूटुं अनिमान म करो. ए सर्व डि जे , ते ( निदान के०) निश्चे जेवो (जलधि के०) समुप तेनो ( उधान है |के० ) जरती छंट बे, एटले समुपमा पाणी चढे ले अने जेम आवीने पातुं वली जाय , तेनी पेरे अथिर ॥ धन जोबनका म करो गुमाना, जानो तरुवर पाकां पानां ॥ लगत वायु अंते जमा पमनां, तो ते पर एता क्या करनां ? ॥१॥ संसारने विषे सहु को सुख तथा पुःखने अनुजवे 3 एटले जोगवे , ते केवल एकलां पोतानां कर्मना पसायथीज लोगवे , तेमां अधिकुं तथा उद्धं एटले न्यूनाधिक कोश्थी की, जाय नहीं ॥२॥ एवी मयणासुंदरीनी वातने सांजलतांज राजा, क्रोधे करी कलकल्यो थको कहेवा लाग्यो के तुं मने घणी वहाली हती, पण वेरण थ. जे का-15 रणे तें मारा वचननो विघात कस्यो, माटे हे बेटी ! तुं तो आज जली (जणी के०) बोली in S antana For Personal and Private Use Only wwwtainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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