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खंम..
श्री रा०पेसी गया, कोइएक पोलमां पेग, केटलाएक दांते ( तरणां के० ) तृण प्रमुख देइने बूट्या,
केटलाएक गलिया बलदनी पेरे थश्ने बेसी रह्या ॥ १५ ॥ ॥४७॥
के कहे कायर अमे, केइ कहे अमे रांक रे ॥ के कदे मारो रखे, नथी अमारो वांक रे॥ धवल ॥१६॥के कदे पेटारथी, अशरण अमे अनाथ रे॥ मुखे दीये दश अंगुली, दे वली आडा हाथ रे॥ धवल ॥१७॥ धवल शेठ ते देखतां, आवी लाग्यो पाय रे॥ देवसरूपी दीसो तुमे, करो अमने सुपसाय रे॥धवल ॥ १७ ॥मदिमानिधि महोटा तुमे, तुम बल शक्ति अगाध रे ॥ अविनय कीध अजाणते, ते खमजो अपराध रे ॥ धवल ॥१०॥ अवधारो अम विनति, करो एक नपगार रे ॥ थंच्यां
प्रवहण तारवो, उतारो फुःख पार रे ॥ धवल ॥२०॥ | अर्थ-केश्क सुनट कहेवा लाग्या के हे स्वामिन् ! अमे कायर बीए, केश्क कहे जे के श्रमे 8 रांक बीए, केश्क कहे डे के रखे अमने मारता, अमारो कां वांक नथी ॥ १६ ॥ केश्क कहे जे के अमे पेटार्थी बीए, अमने कोनुं शरण नथी, अमे अनाथ बीए. केश्के तो मुखे दश आंग-2 ली दीधी, वली केश्के श्रामा हाथ दीधा ॥ १७॥ धवल शेठ ते कृत्य देखतो थको श्रावीने कुमरने पगे लाग्यो, अने कहेवा लाग्यो के हे स्वामिन् ! तमे तो कोई देवस्वरूपी देखाव डो, माटे 8 अमने रुमो पसाय करो ॥ १७ ॥ हे महाराज ! तमे तो मोटा महिमाना ( निधि के०) नंमार गे, तमाळं बल अने शक्ति तेनो पार आवे नहीं एवी अगाध , माटे हे स्वामिन् ! में जे अजापतां थका तमारो अविनय कीधो ते मारो अपराध तमे खमजो ॥१५॥ अमारी विनंति
॥४॥
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