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________________ बालक सरखो कालो शत्रुनो अपयश ३ एम अन्योऽन्य संयोगे ( नीहाल के० ) जोवू. श्रीपालनो || यश अने शत्रनो अपयश, ए बेनी कवीश्वर सहगामी उपमा श्रापे ॥१३॥ सुरतरु स्वर्गथी जतरी रे लाल, गयां अगम अगोचर गम रे॥ सो० ॥ जिहां को न जाणे नाम रे ॥ सो॥ तिहां तपस्या करे अन्निराम रे ॥ सो० ॥ जब पाम्युं अद्भुत गम रे ॥सो० ॥ तश करअंगुलि हुआं ताम रे ॥ सो० ॥ जय० ॥१४॥जश प्रताप गुण आगलो रे लाल, गिरज ने गुणवंत रे ॥ सो ॥ पाले राज महंत रे ॥ सो० ॥ वयरीनो करे अंत रे ॥ सो०॥ मुखपद्म सदा विकसंत रे ॥ सो० ॥ लीला लहेर धरंत रे॥ सो० ॥ जय० ॥१५॥ 7 अर्थ-हवे ( सुरतरु के०) कल्पवृदो तेनो स्वर्गमां निवास बे, परंतु तेमणे विचाखु जे अमारो अर्थी इहां कोई नथी, एम विचारीने स्वर्गथी उतस्यां, ते (अगम के०) कोश्ने गम न पडे,18 (अगोचर के०) कोश देखे नहीं, तथा को जेलखे नहीं, जिहां एनुं को नाम पण न जाणे । एवे स्थानके गयां. तिहां जश्ने अजिराम एटले मनोहर तपस्या करता हवा. ते तपस्या करतां करतां तेमणे तपस्यानु फलरूप एवं कोश् स्थानक पोताने रहेवानुं जगतमां दी नहीं के जे तेनी पासे जश्ने रहे, एवं कोर ठेकाणुं पामता न हता. एम जोतां जोतां (जब के०) जे वारे तेमणे 31 अत्यंत अद्भुत स्थानक पाम्युं ते वारे ( तस के० ) ते श्रीपाल राजाना ( कर के० ) हाथनी अंगुलिरूप थयां, एटले कल्पवृदो पोतानी तपस्याना माहात्म्यथी श्रीपाल राजानी अंगुलिरूप थयां. ते दान दीए , माटे श्रीपाल राजा कल्पवृक्ष समान दानेश्वरी ने, तेथी कविए ए उपमा दीधी ४ ॥ १४ ॥ वली जे (जश के० ) यश कीर्ति, (प्रताप के०) तेज अने गुण, तेणे करी श्रीपाल ACCOCCAUCLICROCK Jain Education Interational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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