Book Title: Aagam 40 Aavashyak Choorni 01
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४०] श्री आवश्यक सूत्रम् (पूर्वभागः) नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य श्रीमानंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरूभ्यो नमः “आवश्यक” निर्युक्ति एवं चूर्णि: [ भाग:-१] [मूलं + भद्रबाहुस्वामी कृत् निर्युक्ति; + भाष्यं + जिनदासगणि रचिता चूर्णिः] [आद्य संपादक: - पूज्य आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागर सूरीश्वरजी म. सा. ] (किञ्चित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह ) पुनः संकलनकर्ता→ मुनि दीपरत्नसागर (M.Com., M.Ed., Ph.D., श्रुतमहर्षि) 01/02/2017, बुधवार, २०७३ महा शुक्ल ५ jain_e_library's Net Publications मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता: आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 (1) Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: -], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक - MOOOOOOOOOOOOwoomawwwmomooooooooooom श्रीमद्गणधरगौतमस्वामिसंहब्ध-श्रुतकेवलिश्रीमदुभद्रबाहुस्वामिसूत्रितनियुक्तिचूर्णियुतं श्रीमजिनदासगणिमहत्तरकृतयासूत्रा समेतं श्रीमदावश्यकसूत्रं (पूर्वभागः) प्रकाशिका-जामनगरवास्तव्य श्रेष्ठिधारशीभाइदेवराजस्य । सद्गतसुपुघलक्ष्मीचन्द्रस्यस्मरणार्थ तत्सुपुत्र चुन्नीलालेत्यनेन कृतेनार्थसाहाय्येन श्रीऋषभदेवजी केशरीमलजी श्वेतांयरसंस्था रतलाम. मुद्रयिता-इन्दौर नगरे श्री जैनबन्धुमुद्रणालयाधिपः श्रेष्ठी जुहारमल मिश्रीलाल पालरेचा. प्रतयः २५० वीरसंवत् २४५४ विक्रमसंवत् १९८४ क्राइस्टसन् १९२८ ग्राहकाणां पण्यं ४-०-० ooooooooooooooooooocwOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOoooooo Roooooooodleooo DoooooooooooooOORAR दीप अनुक्रम Z ...आवश्यक-चूर्णे: मूल "टाइटल पेज" (2) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवश्यक चूर्णे: मूल संपादने लिखित: विषयानुक्रमः मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 विषयः मतिज्ञानं श्रुतज्ञानं अवधिज्ञानं मनः पर्यायः केवलज्ञानं आवश्यकनिक्षेपाः उपक्रमादयः नियुक्ती मंगल मृगावतीकथा ज्ञानचरणसिद्धिः सम्यक्त्वलाभः चारित्रभेदाः उपशम श्रेणिः क्षपकश्रेणिः पृष्ठ १४ ३१ ४२ ७५ ७८ ८४ ८६ ८९ ९४ १०० १०४ १०७ ११० पृष्ठ १९४ विषय. अनुयोगनिक्षेपाः उपोद्घाते-उद्देशानं १३१ निर्गमे श्रीवीरचरित्रं १३४ कराः ऋषभजन्मोत्सव १४२ श्रेयांसः भरतः मरीचि चक्रीवासुदेवादयः ऋष निर्वाण भवाः दीक्षामह उपसर्गाः समवसरणं १७० २२७ २७४ ३३१ 334 ३४१ गणधराः क्षेत्रकालौ सामाचार्यः आयुर्वेदादि कारणादयः ३५७ ३७२ ३७९ विषय. वज्रस्वाम्यार्यरक्षितौ गोष्टामाहिल निडवाः नयतः सामायिकं (3) नयाः पृष्ठ विषय. पृष्ठ ३८४ रागद्वेषकषायपरिषहोप ५१९ ३८७ गोः सदृष्टान्ताः ४१७ सिद्धभेदाः बुद्धिभेदाः ५४५ ५७६ ४२२ समुच्यतादि आचार्यादयः ५९१ ४३६ फले दृष्टान्ताः सूत्रानुगमः ५९५ ५९८ ६०१ सामायिकस्य भेदाः स्वामिक्षेत्रादयः ४४२ चोल्लकादयः आलस्यादर ४५२ सामायिकस्य हेतवः ४५९ तद्दृष्टान्ताश्च स्थित्यादय ४६० पर्यायेषु दृष्टान्ताच नमस्कारे उत्पन्यादयः |सार्थवाहनियमकमहाग करणपदं कृताकृतादयः भयं सामायिकं सर्वमव ६०५ प्रत्याख्यानं योगाः (१४६०६ भेदाः) चालनाप्रसिद्धी निन्दा ६२० इत्यावश्यकचूर्णि पूर्वार्ध ६१६ पत्वं ५१६ •••चूर्णि के मूल संपादकने ये अनुक्रम बनाया था परंतु यहां दिये गये पृष्ठांको के मुद्रण या प्रूफ रीडिंगमे विसंवादिता दिखाई दी | इसीलिए हमने यहाँ शुद्धिकरण कर के नया बॉक्स बनाकर उसमे सही पृष्ठांक दे दिये है। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मलाङका: ५०+२१ आवश्यक मल-सत्रस्य विषयानक्रम (भाग-१) दीप-अनक्रमा: ९२ मलांक: अध्ययनं | मुलांक: | अध्ययन पृष्ठांक: पीठिका " नियुक्ति । भाष्य __ - -मंगलं | पृष्ठांक मलांक: अध्ययनं ०१-०२ १-सामायिक ५९७ आवश्यक सटीकं (संक्षिप्त) विषयानुक्रम नि./भा. --उपोदघात-निर्यक्ति: पृष्ठांक म ०८१ --वीरआदिजिनवक्तव्यता । १३४ ००९ 4 ३४३ --भरतचक्री-कथानक १८८ न भा.०३९ --बलदेव-वासुदेव कथानक २२२ ०१२ । ५४३ --समवसरण वक्तव्यता ३३१ ५८८ --गणधर वक्तव्यता ३३५ ०८१ ६६६ --दशधा सामाचारी ३४७ | ७५४ --निक्षेप, नय, प्रमाणादि । ३८३ --निहह्नव वक्तव्यता ४१७ ७८९ --सामायिकस्वरुपम् ४३६ ८१२ -गति आदि दवाराणि । ४४६ नि./भा. | अध्ययनं-१- सामायिक | पृष्ठांक: ८९० नमस्कार-व्याख्या ५०९ ९१९ अर्हत, सिद्धादे: नियुक्ति: । ५४३ ९६० सिद्धशिला वर्णन ५८९ | आचार्य-आदीनाम निक्षेपा: ००१ -ज्ञानस्य पञ्चप्रकारा: ०१३ -उपक्रम-आदिः ५९८ १०१३ | सामायिक- व्याख्या, | उद्देश-वाचना-अनुज्ञा आदि: ---- सूत्र स्पर्श भगा: | सामायिक-उपसंहारः ७७८ मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मूलाङ्का: ५०+२१ मलांक: ११-३६ निर्युक्ति / भाष्य अध्ययन ४- प्रतिक्रमणं अध्ययन अध्ययनं -२ सूत्रपाठः, कीर्तनं, प्रतिज्ञा. -- अर्हतः विशेषणं, -- ऋषभादि नामानि, अध्ययनं ३- वन्दनं - गुरुवन्दन सूत्रपाठः -मितावग्रह प्रवेशयाचना --क्षमापना प्रतिक्रमण पष्ठांक ' पृष्ठांक: ***आवश्यक मूल-सूत्रस्य विषयानुक्रम (भाग-२) मुलांक: ०३-०९ ३७-६२ अध्ययनं २- चतुर्विंशतिस्तवः ५- कायोत्सर्ग आवश्यक सटीकं (संक्षिप्त) विषयानुक्रम नि./भा. अध्ययनं पष्ठांक: अध्ययनं ४- प्रतिक्रमणं नमस्कार व सामायिक-सूत्रं चत्वारः लोकोतम-मङ्गल एवं ------ --शरणभूत संक्षिप्त व ईर्यापथ | शयन संबंधी प्रतिक्रमणं भिक्षाचर्यायाः प्रतिक्रमणं स्वाध्याय, असंयम आदि ३३ - सूत्रोच्चारणे मिथ्यादुष्कृतम् प्रवचनस्तुति, वंदना, पृष्ठांक ०९८४ १५२९ मूलांक: १०- -- ६३-९२ नि./भा. दीप- अनुक्रमाः ९२ अध्ययन ३- वंदनकं ६- प्रत्याख्यानं अध्ययन अध्ययनं ५ कायोत्सर्गः सूत्रपाठः, कायोत्सर्गस्थापना श्रुतस्तव, सिद्धस्तवादि अध्ययनं -६- प्रत्याख्यानं सम्यक्त्व एवं श्रावकव्रतप्रतिज्ञा विविध प्रत्याख्यानादिः *** आवश्यक - चूर्णि के इस विषयानुक्रम के पृष्ठांक हमने दुसरे भाग मे दिये है मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता .........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] " आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:-1 (5) पृष्ठांक: पष्ठांक: Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [आवश्यक-चूर्णि] इस प्रकाशन की विकास-गाथा यह प्रत सबसे पहले “आवश्यकसूत्र (पूर्वभाग)" के नामसे सन १९ २८ (विक्रम संवत १९ ८४) में रुषभदेवजी केशरमलजी श्वेताम्बर संस्था द्वारा प्रकाशित हुई, इस के संपादक-महोदय थे पूज्यपाद आगमोद्धारक आचार्यदेव श्री आनंदसागरसूरीश्वरजी (सागरानंदसूरिजी) महाराज साहेब | वृत्ति की तरह चूर्णी के भी दुसरे प्रकाशनों की बात सुनी है, जिसमे ऑफसेट-प्रिंट और स्वतंत्र प्रकाशन दोनों की बात सामने आयी है, मगर मैंने अभी तक कोई प्रत देखी नहीं है। *- हमारा ये प्रयास क्यों? -* आगम की सेवा करने के हमें तो बहोत अवसर मिले, ४५-आगम सटीक भी हमने ३० भागोमे १२५०० से ज्यादा पृष्ठोमें प्रकाशित करवाए है, किन्तु लोगो की पूज्य श्री सागरानंदसूरीश्वरजी के प्रति श्रद्धा तथा प्रत स्वरुप प्राचीन प्रथा का आदर देखकर हमने उन सभी प्रतो को स्केन करवाई, उसके बाद एक स्पेशियल फोरमेट बनवाया, जिसके बीचमे पूज्यश्री संपादित प्रत ज्यों की त्यों रख दी, ऊपर शीर्षस्थानमे आगम का नाम, फिर श्रुतस्कंध-अध्ययन-उद्देशक-मूलसूत्र-नियुक्ति आदि के नंबर लिख दिए, ताकि पढ़नेवाले को प्रत्येक पेज पर कौनसा अध्ययन, उद्देशक आदि चल रहे है उसका सरलतासे ज्ञान हो शके, बायीं तरफ आगम का क्रम और इसी प्रत का सूत्रक्रम दिया है, उसके साथ वहाँ 'दीप अनुक्रम' भी दिया है, जिससे हमारे प्राकृत, संस्कृत, हिंदी गुजराती, इंग्लिश आदि सभी आगम प्रकाशनोमें प्रवेश कर शके| हमारे अनुक्रम तो प्रत्येक प्रकाशनोमें एक सामान और क्रमशः आगे बढ़ते हुए ही है, इसीलिए सिर्फ क्रम नंबर दिए है, मगर प्रत में गाथा और सूत्रों के नंबर अलग-अलग होने से हमने जहां सूत्र है वहाँ कौंस -1 दिए है और जहां गाथा है वहाँ ||-|| ऐसी दो लाइन खींची है। इस आगम चूर्णि के प्रकाशनो में भी हमने उपरोक्त प्रकाशनवाली पद्धत्ति ही स्वीकार करने का विचार किया था , परंतु चूर्णि और वृत्ति की संकलन पद्धत्ति एक-समान नही है, चूर्णिमे मुख्यतया सूत्रों या गाथाओ के अपूर्ण अंश दे कर ही सूत्रो या गाथाओ को सूचित कर के पूरी चूर्णि तैयार हुई है, कई नियुक्तियां और भाष्य दिखाई नही देते, कोइ-कोइ नियुक्ति या भाष्य के शब्दो के उल्लेख है, उनकी चूर्णि भी है पर उस नियुक्ति या भाष्य स्पष्टरूप से अलग दिखाई नहि देते | इसीलिए हमें यहाँ सम्पादन पद्धत्ति बदलनी पड़ी है | हमने यहाँ उद्देशक आदि के सूत्रो या गाथाओ का क्रम, [१-१४, १५-२४] इस तरह साथमे दिया है, नियुक्ति तथा भाष्यो के क्रम भी इसी तरह साथमे दिये है और बायीं तरफ़ उपर आगम-क्रम और नीचे इस चूर्णि के सूत्रक्रम और दीप-अनुक्रम दिए है, जिससे आप हमारे आगम प्रकाशनोंमे प्रवेश कर शकते है। अभी तो ये jain_e_library.org का 'इंटरनेट पब्लिकेशन' है, क्योंकि विश्वभरमें अनेक लोगो तक पहुँचने का यहीं सरल, सस्ता और आधुनिक रास्ता है, आगे जाकर ईसिको मुद्रण करवाने की हमारी मनीषा है। __......मुनि दीपरत्नसागर. (6) Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां ॥ १ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -], निर्युक्ति: [-], भाष्यं [-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ॥ श्रीजिनदास गणिमहत्त रकृता श्री आवश्यकचूर्णिः ॥ नमो अरहंताणं । नमो सिद्धाणं । नमो आयरिआणं । नमो उवज्झायाणं । नमो लोए सव्वसाहूणं । काउण णमोकारं तित्थकराणं तिलोकमहिताणं । आयरिउज्झायाणं णमिऊणं सव्वसाहूणं ॥ १ ॥ कति सुसीसो आयरियकुलवासी जातिकुलरूव सुयायारसत्तविणयसंपण्णो ण दुर्गुडिओ अभीरू सत्तिजुओ विणीतो गंभीरो अदीणो ण रूसणो ण कुसीलो ण चवलो ण बहुभासी ण गारचिओ ण तुरिओ असंपसारो ण पिसुणो ण परोपतापी ण अतद्गुरुओ ण मच्छरी ण अकयण्णू ण अहच्छंदो ण मंदो ण संदिद्धवादी ण सढो ण दिष्णकयपसंसी ण दिष्णकयपच्छाणुतावी णातिषिहोण पडिकूलो पालसो ण तव्हालू ण छुहालू ण असंतुडो नादेसकालष्णू ण थद्धो ण बुद्धो णाकालचारीण मूढो ण णिलज्जा ण नाण|स्स कारण विप्पसवति एकाकी ण कंदपितो ण कोऊहतो ण मोहरितो ण आयारभावसुतवतेणो उज्जुभावो विसुद्ध समचो द्रढचरितो दढाभिग्गहो सुगुतो समिओ समतण्णू दढोग्गहो दढीहो दढावाओ दढघारणो वायरियपरिभासी भत्तिजुत्तो अपुरतो अपडिवो हिसओ अणुलोंमो गणसोमी संघसोभी छंदण्यू अवायष्णू सुहदुक्खण्णू अनुई अघुयत्ततो विसेसष्णू उज्जुतो अप्ररितंतो बहुसुतो ण अंतरकहापुच्छी ण समहच्छियपुच्छी व उड्डियपुच्छी सुहासविषयपृच्छी मेधात्री मनि विमुद्धबको पिपभ्रम्मो द्रढ पंच नमस्कार, चूर्णिकारेण कृतं आद्य मंगलं (7) प्रस्तावना ॥ १ ॥ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां ॥ २ ॥ भाष्यं [-] “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -], निर्युक्ति: [-], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 धम्मो संविग्गो मद्दवितो अमाई चिरपव्यइतो सुपडिचोइओ अविसाई अपरिस्सावी पच्चतभूतो अणुण्णयमाणो सुचत्थभावपरिणामतो एवमाइएहिं गुणेहिं उबवेओ बहुपुरिसपरंपरागयं चिरपरूढं जिनिंदवरसासणं काले आवस्सगं सोडकामो कंचि आयरियं आयारकुसलं एवं संजमपवयणसंगहउवग्गहऽणुग्गहकप्पववहारपण्णत्सिदिडिवायससमय परसमयकुसलं ओयंसि तेयंसि बच्चसिं जसंसिं दुद्धरिसं अलहुगवित्ति जितकोहपयारं ४ जिनिंदियं जीवियासंसमरणभयविप्पक्कं जितपरिसहं पुष्वरयपुव्वकीलियपूव्वसंथवविरहितं णिम्ममं णिरहंकारं अणाणुतावि सकारासकारलाभालाभसुहदुक्खमाणाव्माणसहं अचबलं असबलं असंकिसुतरस्परसाई पाच्च भग्गामग्गविणायर्ग उग्गहईद्वा अपायधारणापवर बुद्धिकुसलं अणुओगजाणं णयण्णू आहरणहेउकारण णिदरिसवमाणनिरुत्तलद्ध अद्भुदरिसिं बहुविहओपायायारोवएसगं इंगियायारणेगमभिलसितमूगत्तमजुवइट्ठावाहूयसच्छेदविकप्पविह्निविहिन्दू लिविगणियसद्दत्थणिमितुष्यायपोराणपंडिच्चूसहावजाणगं सीत रममाण पुक्खरपतमिव निरुपलेवं वायुमिव अपडिबद्धं पव्वयमित्र निष्पकं सागरभित्र अक्खोमं कुम्मो इव गुतिन्दियं जच्चकणगमित्र जाततेयं चंदमिव सोम्मं सूरमिव दिसतेयं सलिलमिव सब्वजगनिव्वुकरं गयणमिव अपरिमितणाणं मतिकेतुं सुतकेतुं सुदिहृत्थं सुपरिणितिथं एगआयतसुहगवेसगं दुद्दोसजढं तिदंडविरतं तिगारवरहितं तिसइनिस तिगुत्तिगुत्तं तिकरणविसुद्धं चउब्बिहविकथाविवज्जितमति चउकसायविजढं चउविधविशुद्धबुद्धि चतुव्विधाधारनिरालंबमति पंचसमियं पंचमहन्वयधारगं पंचणियंठणिदाणजाणगं पंचविहचरिचजाणगं पंचलक्खणसंपण्ण छब्बिहविकहविवज्जियं छव्विहदव्यविधि वित्थर (8) प्रस्तावना ६ ॥ २ ॥ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], .... THANण-चिता नियुक्ति: [-], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत आवश्यक मा चूणों सत्राक ॥ ३ ॥ जाणगं छट्ठाणविसुद्धपच्चक्खाणदेसगं छज्जीवकायदयापरं सत्तभयविप्पमुकं सत्तविहसंसारजाणमं सत्तविहगोत्तोपदेसगं अट्ठ-18 आदि मध्यान्त विहमाणमहणं अडविवाहिरज्माणजोगरहितं अहविधभंतरज्झाणजुनं अड्डविहकम्मगंठिभेदगं णवयंभचेरवावचिघातगं दसविह मंगलानि समणधम्मजाणगं एकारसमातियक्खरविहिवियाणगं एकारसउवासगपडिमोबएसगं बारसभिक्खुपडिमाफासगं बारसंगतवभावणा-14 भावियमतिं बारसंगसुत्तत्थधारगं एवमादिगुणोवबेयस्स णिग्गंथमहरिसिस्स सगलसकर्म किइकम्म काऊणं भणति-भगवं ! बहुपुरिसपरंपरागतं संसारणित्थरणोपायं आवस्सयाणुओर्ग सोतुमिच्छामि, तस्सायरिओ गुणमाहप्पं गच्चा आवस्सयाणुओगं परिकदेति । तत्थ आवस्सग छम्यिह, तंजहा-सामाइयं चउवीसत्थओ बंदणं पडिकमणं काउस्सग्गो पच्चक्खाणमिति । एसा पुच्चायरि-1 एहि रइया पुव्वाणुवूवी इति । __ तस्स य पुब्बामेव मंगलमिच्छावेति, जम्हा 'मंगलाईणि सत्थाणि मंगलमज्झाणि मंगलाबसाणाणि, मंगलपरिग्गहिया सिस्सा उग्गहेहाचायधारणासमत्था य अबिग्घेणं सत्थस्स पारगा भवंति, ताणि य सत्याणि लोए विरायंति, वित्थारं च गच्छन्ति,' एतेण कारणेणं आदिमि मज्झमि अवसाणे य मंगलं कीरइत्ति । तत्थ आइमंगलेण सीसा अविग्घेण तस्स सत्थस्स पारगा भर्वति, मज्झमंगलेण पउत्तेण तं सरथं थिरपरिचितं भवति, अवसाणमंगलेण तं सत्यं सिस्सपसिस्साणं अब्बोच्छित्तिकरं भवति, 1|| अतो मंगलतियमिच्छिज्जति, तत्थ आदिमंगलं सामाइयज्झयणं, कम्हा , जम्हा तंसि सामाइयज्झयणे तित्थकरगणहरउप्पचिमाइणो ॥ ३ ॥ बहवे अत्था परूबिया, ते य जो सद्दहति, सद्दहित्ता य जो करणिज्जे करेति अकराणज्जे य परिहरति सो त सब्चर्मगलानहाण | निव्वाण पाविहितितिकाऊण सामाइयज्झयण मंगलं भवति । सुत्ततोऽवि मंगलं 'करेमि भंते ! सामाझ्य'न्ति, कह ?, जम्हा दीप अनुक्रम RER ...आदि-मध्य-अंत्य मंगलानां स्पष्टिकरणं (9) Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी ॥ ४ ॥ ४ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -], निर्युक्ति: [-], भाष्यं [-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 तत्थ सव्वसत्तेसु समता कायव्यत्ति एवं पहण्णमारूहति साधू, अतो तमचि सामाइयसुतं व मंगलं चेच, जो य समभावो सो कहं सव्वमंगलनिधाणं ण भविस्सति ?, तम्हा करेमि भंते ! सामाइयंति एयमादिसुत्तं मंगलं चैव । मज्झेऽवि मंगलं बंदणज्झयणं, कहें ?, जम्हा बंदमाणस्स णीयागोयकम्मक्खओ भवति, विनयमूलो जिणसासणे धम्मो परुविओ, अओ बंदणझणं मझे मंगलं भवति, सुचतीवि 'इच्छामि खमासमणो ! बंदिउँ' ति एसो सद्दो मंगलिओ दट्ठब्बो, अहवा मज्झे मंगलं चउवीसत्थयादि, कई ?, जम्हा तित्थगरत्थयादि परुविज्जति, तेण य सम्मइचाइसुद्धी जायतिति, दरिसणादिविसुद्धा य जीवो सव्यप्पवरमंगलणिधाणो भवइ । अवसाणेऽवि पच्चक्खाणायणं मंगलं, कम्हा ?, जम्हा संवरियासवदुवारस्स णवस्स पावस्स आगमो ण भवति, ततो पुव्वसंचितं लहुं चैव बारसविधेण तवसा झोसिज्जति, अतो पच्चक्खाणज्झयणं मंगलं, सुत्ततोऽवि 'नमोकारसहियं पच्चक्खामि'त्ति, एवमाई अवसाणियं मंगलं भवति । आह-जति आदी मज्झं अवसार्ण च इमस्स सत्यस्स मंगलं तो जाणि पुण इमस्स अंतरालाणि ताणि किं अमंगलियाणि भवंतु ?, आयरितो आह-ताणिवि मंगालियाणि, कहं १, जम्हा ताणिवि परूवणालक्खणाणि सव्वण्णुभासियाणि य, अतो ताणिवि मंगलियाणि भवंति एत्थ दितो मोयगो- जहा अविरोधिदव्वाणं समवाएण मादगो णिष्कण्णो सव्वो चैव मधुरो भवति, एवं ताणिवि अंतरालाणि सुवणाणाइसामत्थजुत्ताणि चैव काऊणं मंगलियाणि दट्ठव्वाणि । तं च मंगलं ४, तंजहा णाममंगलं ठेवणामंगलं दव्वमंगलं भावमंगलमिति, तत्थ णाममंगलं जस्स णं जीवस्स वा अजीवस्स वा जीवाण वा अजीवाण वा तदुभयस्स वा तदुभयाण वा मंगलंति णामं कीरह से तं णाममंगलं, तत्थ जीवस्स जधा कस्सति मणूसस्स मंग मंगलस्य नाम आदि निक्षेपाः (10) 6 आदि मध्यान्त मंगलानि ॥ ४ ॥ Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [-], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यकता सत्राक दीप श्रीटालोचि णाम कीरइ, अथवा अग्गिस्स मंगलोत्ति णाम केसुवि देसेसु भवति, अजीवस्स जहा-वेणुपब्वमज्झस्स देसाविक्खाए, तदुभ- नामादि यस्स जहा तस्सेव मणूसस्स मुंजसीयदलमासाहयस्स, अहवा तस्स अग्गिणो वेणुपव्वमज्झसहियस्स, एवं पुहुत्तेऽवि विभासा 11 मंगलानि चूर्णी ATTA इयाणिं ठवणामंगलं, तं च दुविहं, तं-सब्भावतो असम्भावतो य, तत्थ सम्भावओ जथा-चित्तकम्मादिसु अरहंतसाधुणाणमा-1 दिणो ठाविता ते ठवणामंगलं भवंति, असम्भावओ. जथा-अक्खमादि णिवेसिज्जति, इंदलट्ठीषि इंदमि णिवेसिज्जइ, एवमादि ।। आह-णामठवणाणं को पइविसेसो', उच्यते, णामं पायसो आवकथितं, ठवणा इत्तिरिया वा होज्जा आवकहिया वा, तत्थ इतिलरिया जथा-अक्खो इंदो वा सरतकालभूसितो, एवमादि, आवकहिता जथा जे देवलोकादिसु पडसुत्थियादिणो चित्तकम्मलिहिया, अहवा इमो विसेसो-जहा ठवणाईदो अणुग्गहत्थीहिं अभिथुब्यति ण एवं णामिदोत्ति २। दव्वमंगलं दुविहं-आगमतो जोगमतो य, तत्थ आगमतो जाणए अणुवंउत्ते, णोआगमतो पुग तिविहं, तंजहा-जाणग-सि सरीरदब्वमंगलं भवियसरीर० तव्वतिरत्त०, तत्थ जाणगसरीरं जो जीवो मंगलपदत्याधिकारजाणओ तस्स जं सरीरं ववगयजीवं, पुष्वभावपण्णवणं पहुच्च, जहा-अयं घयकुंभे आसी, अयं महुकुंभे भविस्सति, एवं भवियसरीरविभासा कायव्वा, तव्वतिरित्तं जहासोधियसिविच्छादिणो अट्ठमंगलया सुवण्णदधिअक्खयमादीणि य भावमंगलनिमित्ताणित्ति दब्बमंगलं ३। भावमंगलंपि दुविहं, तं०-आगमतो णोआगमतो य, तत्व आगमतो जहा जाणए उवउत्ते, पोआगमतो पसत्थो आयपरिदणामो जह णाणादि, अहवा 'वंदे उसमें अजितं संभव' एवमादिजे यावण्णे भगवंते, अहवा 'जयइ जगजीवजाणीवियाणयो' दाइत्यादि, अहवा 'सुधम्म अग्गिवेसाणे' एवमादि जाव अप्पणो आयरियत्ति, अहवा पंचनमुकारो, अहवा जावतिया थया धुतीतोला अनुक्रम ॥५ ॥ (11) Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भग पत सत्राक 31य, अहवा भावनंदी, सव्वं तं नोआगमतो भावमंगलंति ॥ एत्य चोअओ चोअयइ, जहा-अहो भगवं! तुम्भेहिं अतिसुद्धं भासिदति , कई णाम जो जस्स उवओगो सो सो चेव भविस्सह, णो य खल्लु अग्गिंमि उवउत्तो देवदत्तो अग्गी चेव भवति, आय | रिओ भणति-अहो यच्छ! तुम व अतिसुद्धाणि वयणाणि उल्लावयसि, णणु णाणंति वा संवेदणंति वा अहिगमात्ति वा वेयणिति |चा भावोचि वा एगट्ठा, जीवलक्खणं च णाण, ण उणाणाओ बतिरित्तो आया, जदि य चेयणातो जीचो अण्णो भवेज्ज ततो जीवदव्वं अलक्खणं चेव भविज्ज, ण वा बंधो मोक्खो वा अचेयणस्स जुत्तो, तेण जो सो णाता सो जंतं अग्गिस्स सामत्थं दहणपयणपगासणादितं जाणति, तओ अग्गिणाणाओ सो जाता अवतिरितो, तेण सो अग्गिसामत्थजाणओ भावग्गी चेव लग्भति, जम्हा य उप्पायद्वितिभंगजुत्ती आता अओ जम्मि उबउत्तो सो सो चेव भण्णा ॥ आह-दव्यभावमंगलाणं को पइविसेसो', भण्णइ, दब्बमंगलं अणेगतियं अणच्चतियं च भवति, तत्थ अगतियं णाम जं किं (केसि)चि तारिस मंगलं भवति तं चैव अण्णेसि न भवइ, अमंगलं वा भवइ, अणच्चंतियं णाम जं पडिहणिज्जति, भाषमंगलं पुण एगतियं अच्चंतियं च भवलि, इमं पुण सत्थजायं। भावमंगल समोयरह-जओ भावणंदीए अंतग्गतं, कहं एवं', गंदी चतुबिधा, तं०-णामनंदी ठेवणानंदी दव्यनंदा भावनदा, CM PAणामठवणाओ परूवियन्वाओ, दव्वर्णदी दुविहा तिचिहा य, केवलं तव्यइरित्ता संखवारसंगाणि तूराणि, भावणंदी दुपिहा-आगमओ जाणए उवउत्ते, णोआगमओ पुण पंचविध णाण, तंजहा आभिणियोहियनाणं०॥ १।। एतं पंचविधमविणार्ण समासओ विहंपच्चवखं च परोक्ख ब. पच्चक्वंटा ताव अच्छतु, परोक्खं पुण अप्पतरगतिकाऊण पुव्वं वणिज्मइ ।। आइ-क: अनयोर्विशेषः, उच्यते, अक्खो-जीवो तस्स जं|| दीप अनुक्रम 'नन्दी' चतुर्विध-भेदे, ज्ञानस्य द्वि-भेदा: (प्रत्यक्ष-परोक्षं च) (12) Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री FREER चूणी HEISE जानानि परतो तं परोक्खं, जंणो विणा इंदिरहि जाणतित्ति वृत्तं भवति, जं सयं चेव जीवो इंदिएण विणा जाणति तं पच्चक्वं मण्णति, प्रत्यक्ष पराक्ष लोइआणं पुण अक्खाणि इंदियाणि भण्णति, तसिं परतो परोक्खं, जं पुण तेहिं उपलब्भति तं पच्चक्खं, तं च ण युज्जते, जेण इंदियाणि रूवाईणं विसयाण अगागाणि, जीवी चव चक्खुमादिएहिं रूवाईणं विसयसस्थाणं माहतो, कही, जम्हा जीवावओग| विरडियाणि इंदियाणि णो उवलमंति, अओ जं इंदिएहि उबलन्भति तं गाणं लियितं,लिंगिवंति वा चिणिफणंति वा करणनि४. प्फणंति या परनिमित्तणिफणति वा एगहुँ, एस विसेसो। तं च परोक्खं दुबिह-तं०-आभिणियोहियणाणं सुयणाणं च, जत्थ आभिणियोहितं तत्थ सुयणाण, जत्थ सुतं तस्थ आभिाणबोहिय, कहं , जैमि चेव पुरिसे आभिणियोहियं तंमि चेच पुरिसे सुतमपि अस्थि, जीम सुतं तमि आभिणियोहियतं अस्थि चेव, एवं एयाई दोषि अण्णमण्णमणुगयाई तहाऽवस्थ आयरिया एतेण कारणेण तेसिं णाण पण्णवयंति, २०-अभिणिबुझतीति आभिणिकोहिअं, मुणेतीति सुतं, अयिसेसिया मती, विसेसिया सम्मदिहिस्स मती आभिणियोहियणाणं, मिच्छदिहिस्स मती मतिअण्णासं, अविसेसितं सुतं, निससितं सम्मदिद्विस्स सुर्य सुचनाणं, मिच्छदिहिस्स सुतं सुयअण्णाणं । एत्थ सीसो आइ- भगवं!10 कि मणितं होति अभिणिबुज्झतीति आभिणियोहियं सुणेतीति सुतं , आयरिओ आह-जमत्थं ऊहिऊण पो निद्दिसति तं आभिाण बोहिया भणति, एत्थ निदरिसणं, जहा- कस्सइ मंदपगासाए रवणीए पुरिसप्पमाणमेनं खाणुं दट्टण चिंता समुप्पज्जति-1 ॥७॥ काकिं पुष मस पुरिसो भविज्ज उदाहु खाणुत्ति ?, ततो तं खाणु बल्लीविण दट्टण पक्खिं वा तहिणिलीणं पासिऊणे आभिणि-11 चोखो भवति जहा एतं खाशाति, ते च जइ अभिमुहमत्थं जाणति णो विवरीयं ततो आभिणियोहियं भवति । अभिमुहम-15 10-1 दीप अनुक्रम (13) Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत HEIG दीप थं गाम जो खाणं खाणुं चैव अभिणियुज्मति, ण पुण खाणुं पुरिस मण्णति, एयं अभिमुहमत्थं भण्णाति, जं च अभिमुहमत्थं तामतिश्रुत बावश्यक आभिणिबोहियं, णो विवरीयंति । जो पुण अत्थं ऊहिऊण निधिसइ तं सुयणाणं भण्णइ, जम्हा सुयणापोऽबि ऊहा अस्थि ततो सुतणाणं आभिणिबोहितणाणसहितं चेव दद्वध्वन्ति १॥ अहवा आभिणिबोहियणाणसुतणाणाणं इमो विसेसो, तं०-आभिणिशानानि दि बोहियणाणं ताव मतिविसयं परिणायव्यति, सुयमाणं पुण मइपुच्चगं चेव दुमेयं ददृब्वंति, तं०-अंगपविट्ठ अंगवाहिरं च, तत्थ जं13 ॥ ८ ॥ & अंगबाहिरं तं अणेगमेयं, आवस्सयं दसवेयालियं उत्तरज्झयणाई दसाओ कप्पो एवमादि, तत्थ तं अंगपबिट्ट तं दुवालसविहं, तंजहा- आयारो जाव दिविवादो । आह-भगवं ! तुल्ले चेव सवण्णुमते को बिसेसो जहा इमं अंगपबिटुं इमं अंगवाहिरन्ति, आयरिओ आह-जे अरहंतेहिं भगवंतेहिं अईयाणागयबद्यमाणदब्वखत्तकालभावजथावस्थितदंसीहि अत्था परूविया ते गणहरेहि परमबुद्धिसभिवायगुणसंपण्णेहिं सयं चेत्र तित्वगरसगासाओ उबलभिऊणं सबसत्ताणं हितगुयाय सुतत्तण उवणिबद्धा ते अंगपवि₹ , आयाराइ दुवालसविहं । जे पुण अण्णेहिं विसुद्धागमबुद्धिजुत्तेहि थेरेहि अप्पाउयाणं मणुयाणं अप्पबुद्धिसत्तीणं च दुग्गाह४ कतिणाऊण तं चैव आयाराइ सुयणाणं परंपरागत अत्थतो गंधतो य अतिबटुंतिकाऊण अणुकंपाणिमित्तं दसवेतालियमादि परूवियर |तं अणेगभेदं अणंगपविटुं, जम्हा य सुयणाणस्सवि अत्थो अणूहितो णो गज्जइ अओ मातपुब्वगं सुयणाणं भण्णातित्ति २।। | अहवा आभिणियोहियसुतणाणाणं इमो विसेसो तंजहा-'सोइंदिओवलद्धी भवति सुतं, सेसयं तु मतिणाणं । मोनूर्ण दव्बतं ॥८॥ अक्खरलंभो य सेसेसु ॥ १॥ जे सोइदिएवि अत्था उपलब्भति तं सुतं, सेसेसु पुण चक्खुमादीहिं जे अत्था उबलभंति तं मतिगाणं भण्णति, जा य सा सोइंदिओवलद्धी तत्थ दव्वसुतं मोत्तूण मतिसहित सुयणाणं भण्णति, दब्बसुयं णाम जं भावनुय MERESECORAKASE अनुक्रम | 'आभिणिबोहिय(मति)'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (14) Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 IPI शपः दीप निबंधणभूतं तं दव्वसुर्य भण्णति, जेविय सेसेहिं चक्खुमाईहिं इंदिएहि अत्था उवलम्मति तस्थवि भयणाए मतिणाणं भवति, आभान बोधिकआवश्यक|कई ,जे चक्खुमाईहि अत्थे उवलहिऊण अक्खरलीए भासति तं सुतं मतिसहित भण्णति, जावण भासह ताव मइणाण चेव मण्णइ ३DI चूर्णी | अहवा 'बुद्धीदिवे अत्थे जे भासति तं सुतं मतीसहियं । इयरत्यवि होज्ज सुतं उपलद्धिसमं जदि भणिज्जा ॥२॥ जे ज्ञानानि बुद्धीए दिढे अत्थे भासति तं सुतं मतिसहित भण्णति, मतिसहितं नाम मतिसहितंतिवा मतिअणुगयंति वा एगट्ठा, 'इयरस्थाषि आहिणिबोहियणाणे सुतं हविज्जा जदि उबलाद्धिमत्तमेव अत्थं भासेज्जा, अहवा उपलद्धिसमं णाम जे उपलद्धा अस्था ते जति दिसक्केज्जा भासेउं ते सुतं भवति । आह- उबलद्धावि अत्था किंन सक्कति भासितुंति', उच्यते, आम, 'पष्णवणिज्जा भावा अणन्तभागो उ अणभिलप्पाण । पण्णवणिज्जाणं पुण, अणंतभागो सुयणिबद्धो ॥ ३ ॥ जे पण्णवणिज्जा भावा ते अणभिलप्पाणं । 8| भावाणं अणंतभागो, तसिं पुण पण्णवणिज्जाणं भावाणं अणंतइमो भागो सुपनिषद्धो, कह-जं चोहसपुव्वधरा ठट्ठाणगया। MI परोप्परं होति । तेण उ अणतभागो पण्णावणिज्जाण जे सुतं ॥१॥ अक्खरल भेण समा ऊणहिता होति मइविसेसेणं । तेवि काय हुमतिबिसेसे, सुअणाणभतरे जाण ॥ ५॥ दोवि एयाओ गाथाओ कंठाओ ४। ॥ अहया इमो विसेसो फुडो चेक-जे अभिनियुद्धे अत्थे ण ताव भासति तं आभिणियोहियनाणं भण्णति, तं चेव भासित पवतो MI ततो सुयणाणं भवति, एत्थ मुंबवलगदिद्वतो, जासिगा बलगा तारिसं आभिणियोहित, जारिसय सुंब तारिस सुर्त, एवं जाव परि- ९ कापणाता अत्था ण भासति ताच आभिणिकोहियं भण्णति, जाहे भासिंउ पबत्तो ताहे सुतं मण्णति ५ । अहवा अणक्खरं आभिणियोहित, सुयं अक्खरं वा होज्ज अणक्खरं वा, एस बिसेसो ६ । अनुक्रम (15) Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२,३], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्रुतनिधित सत्राका अथवा आभिणिवाहियं अत्ताणं व एक्कं पगासेति, सुतणाणं पुण असाणं परं च दोवि पगासेति, पगासेतित्ति वा पुज्झा- मतिभुतआवश्यक है वेति वा पच्चाणेतित्ति वा एगत्था, एत्थ दिवतो- मूका अमूका, जहा मूको अत्ताणं चेव एग पगासेति, अमूको पुण अत्ताणं पर IN विशेषः चूणों च दोऽवि पगासेति, एवं आमिणिबोहियणाण सकसरिसं दवं, सुपणाणं पुण अमृकसरिसति । ज्ञानानि दि भणितो आभिणियोहियणाणतणाणविससो, दयाणि एतेसिं चेव दोण्हवि परूषणा भाणियन्या । तत्थ पढम ताव आमिणि-१५ मतिम ॥१०॥ | रोहियणाणस्स परूवणं काहामि, जम्हा मुत्ते एतस्स चेच पढमसच्चारण कतं, तं च दुविध- मुयणिस्सितं असुतनिस्सितंच, तत्व । जे तं अमुतनिस्सियं तं चउब्बिह-जहा-उप्पत्तिया १ वेणझ्या २ कम्मया ३ पारिणामिया ४, एसा चउबिहा बुद्धी उपरि12 णमोकारनिमुत्तीए भणिहिति, इह गथलाघवत्थं ण भण्णति । तत्थ जे तं मुयणिस्सितं तस्सिमा परूवणगाथा उग्गह इहावाओ य० ॥२॥सुतनिस्सितं आभिणियोहियणाणं चउन्विहं भवति, तंजहा- उग्गहो ईहा अवाओ धारणा, एयाणि उग्गहाईणि चत्तारि आभिाणबोहियणाणस्स भेदवत्धणि समासेण ददृब्बाणीति । तत्थ मेदो णाम भेउत्ति वा विकप्योति वा पगारात्ति वा एगट्ठा, वत्धुणाम मुलदारभेदोति वृत्तं भवति, समासो णाम संखेवो ।। २ ॥ इदााणं एसेसिं चेव उग्गहाईण, चउण्हं दाराणं विभाग भणामि-- अस्थाणं उग्गहमी० ॥३॥ तत्थ अत्था मुत्ता अमुत्ता पयत्था भण्णंति, एतेसिं जं ओगिण्हणं तमि उम्गहो, वियालणा पुण देहा, तत्थ वियालणंदि वा मग्गणंति वा ईहणति वा एगहुँ, अबादो ववसाओ भण्णति, तत्थ ववसाता णाम बरसाउत्ति वा* | णिच्छयत्थपडिवत्तित्ति वा अवरोहोत्ति पा एगड्डा, धारणा णाम धरणति बुच भवति, धारण णाम जो उग्गहादीहिं जाणितो। kkkkkkkk - दीप ॐॐॐॐॐॐ*** अनुक्रम 55 (16) Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIC अत्थो तं चेव अण्णमि काले पुणोऽनि संभरति, तत्थ जो सो उग्गहो तं अस्थालोयणं भण्णति, अत्थालोयणं णाम जे अत्थस्स अवग्रहाचा आवश्यक सामण्णण गहणं, सो य उग्गहो दुविहो-अत्थोग्गहो बंजणोग्गहो य, तत्थ अत्थोग्गहो छब्बिहो, तंजहा-सोइंदियअयोग्गहो । ५ मतिभेदाः चूर्णी चक्खुईदियअत्थोग्गहो पाणिदियअत्थो जिभिदियअत्थो० फासेंदियअत्यो जोइदियअत्थो०, बंजणोग्गहो पुण चउबिहो, तंजहाज्ञानानि सोइंदिपर्वजणोग्गही पाणिदिय जिम्भिदिय० फासिदिय । ईहाअवायधारणाओवि एवं चेव छव्विहाओ, चउबिहाओ ण भाणिय ब्बाओ ॥३॥ इयाणि एतेसिं उग्गहाईण चउण्हं दाराणं वित्थरतरएण कालस्स परूषणत्थं इमं गाहामुत्तं भण्णइ, तंजडा-... ॥११॥ उग्गह एक्कं समयं०॥४॥ एत्थ पुष्वं ता उग्गहस्स परूवणं करिस्सामि दोहिं दिट्ठतेहि, तंजहा-पडियोहगदिहृतण मल्लगदिढतेण य । से किं तं पडियोहगदितण?, २ से जहा नामए के पुरिसे सु पुरिस पडियोहिज्जा 'अम्मुया अनुय'ति, तत्थर चोदए पण्णवर्य एवं क्यासी-कि एगसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति दुसमय तिसमय जाच दससमय संखेम्जसमय. असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति?, एवं वदंतं चोदयं पण्णवए एवं बयासी णो एगसमयपविठ्ठा पोग्गला गहणमागच्छति जाव णो संखेज्जसमयपयिट्ठा०, असंखेज्जसमयपविट्ठा पोग्गला गहणमागच्छति, जहा को दिटुंतो?, से जहा णाम एकेड द्र पुरिसे आवागसीसाओ मल्लग गहाय तत्थ एग उदयबिंदु पक्खिचिज्जा, से गढ, णहित्ति वा विगएत्ति वा अतथाभूपत्ति या एगट्ठा, अण्णं पक्षिवेज्जा, सेचि णद्वे, अण्णपि, सेवि गढे, एवं पक्खिप्पमाणेहिं २ होहिति से उदगार्षिदू जेणं तं मल्लगं रावहिति, होहिति से उदगचिंदू जे मल्लग पवाहेहित्ति, एवामेव कलंचुयापुष्फसंठियं सोईदियं तं जाहे अणंतेहि पोग्गलेहिं परितं भवति ताहे | दति करेइ, ण पुण जाणति केवि एस सहाति, एस एगसमहओ सोइंदियओग्गहो भण्णइ, ततो अंतोमुहुत्तियं ईहे पविसइ, जहा दीप अनुक्रम (17) Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक दीप 18) केस णं पुण एस सद्दे भवेज्जत्ति?, ततो अतोमुहुत्तिय अवार्य गच्छइ, ततो से उवगयं भवइ, ततो धारणं पडइ, ततो धारेति संखेज प्रतिबोधकआवश्यक दवा असंखेज वा कालं, संखेज्जवासाउए संखेज्जं कालं असंखेज्जवासाउए असंखेनं कालं घरेइ, एसो सोइंदियबुग्गहो । एत्थ दृष्टान्ती सीसो चोदेति, जहा-हेट्ठा सोइंदियउम्गहो दुविहो भणितो, तंजहा- अत्थोवम्गहो बंजणवग्गहो य, ण पुण एएसिं विससो भणि-1 ज्ञानानि तोत्ति, आयरिओ आह- जो कलंबुयापुप्फसाठयस्स सोईदियस्स सइपोग्गलेहि सह संजोगो एस सोइंदियवंजणाग्गहो, अत्थोग्गहो|3|| ॥१२॥ पुण जो सो सदो तेण कलंबुयापुष्फागितिणा इंदियएणं जीवस्स उवणीओ, तस्स अत्थस्स जं सामण्णगहणं एस सोइंदियअत्याग्गहो भण्णह, भत्थोग्गहस्स देहाअवायधारणातो अस्थि, वंजणोग्गहस्स पुण अवग्गहणमेचमेष, ण तु ईहाअवायधारणाओ तमि अस्थिति। इदाणि चम्खिदियस्स उग्गहादीणं परूवणा भष्यति, से जहा णामए केह पुरिसे चक्खिदिएण मसूरगचंदमसंठाणसंठिएणं || अव्यक्त रूवं पासिज्जा, णो चेव णं जाणति-किं खाणुं पुरिसोत्ति, एस एकसमतितो चक्खिदियउग्गहो, ततो अंतोमुहुत्तियं हं। पविसति, जहा-'किं पुण एतं खाणं होज्ज! उदाहु पुरिसोसि', ततो सो अंतोमुद्दत्तिय अवार्य गच्छति, ततो से अवगयं भवति जहाखाणुमेयं, जो पुरिसोति', ततो धारणं पडति, ततो धरेति संखेज्ज असंखजवा कालं, संखेज्जवासाउए संखिज्जं कालं, असंखज्ज-14 | वासाउए असंखेज्ज कालं, एस चक्खिदियअत्थोग्गहो, एयस्स पुण चक्खिदियस्स बंजणोम्गहो पत्थिति। इदाणि पाणिदियस्स उग्गहादीणि परवेयवाणि, से जहा णामए कोइ पुरिसे पाणिदिएणं अतिमुत्तगपुष्पचंदगसंठाणसंठिएणं | अब गंध आधाएज्ज, ण पुण जाणइ कस्सेस गंधोत्ति, 'किं उप्पलस्सी उदाहु अन्नस्स कस्सइ दब्बस्स!' स इकसमइतो पाणि-15 दियउग्गहो, एवं तेणेव कमेण जहा सोइंदियस्स, णवर घाणाभिलावो भाणियन्वो, अत्याग्महवंजणोग्गहविसेसोऽवि तहेव । अनुक्रम SAKSI452 (18) Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [४], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों HEIGE - इयाणि जिम्भिदियस्स उग्गहेहादीण परूवणा, से जहा णामए केइ पुरिसे खुरुप्पसंठागसंठिएणं जिभिदिएणं अव्वत्तं रसमासा- अपग्रहादाआवश्यक का एज्जा, ण पुण जाणइ-किमेस खीररसो' उदाहु अबस्स कस्सति दब्बस्सत्ति, सेस जहा सोइंदिपस्स तहेव अहीणमहरितं माणियच्वं ।।। नां क्रमः ट्रा प्राप्ताप्राप्तइदाणिं फासिदियस्स, से जहा णामए कई पुरिसे अणित्थत्थसंठापसंठिएणं फासिदिएण अन्यत्तं फास वेदिज्जा, ण पुग५ ज्ञानानि विषयता जाणइ-किमेस सप्पस्स फरिसो? उदाहु उप्पलणालस्सत्ति, सेसं जहा सोईदियस्स I . ॥१३॥ .. इयाणि पोइंदियस्स, से जहाणामए केइ पुरिसे अव्व सुमिणं पासेज्जा, ण पुण जाणति-किंपि मए दिट्ठति, ततो अंतोमुहुत्तियं इह पविसति, ततो जाणति अंतोमुहुत्तेण जहा देवे मए दिवोच, ततो अवातो, ततो धारणं पडइ, ततो धरेति मंखिज्ज असंखज्ज शवा काल, संखेज्जवासाउए संखेज कालं, असंखे० असंखे०, एस णोइंदियस्स अत्थोग्गहो । एयस्सवि वंजणोग्गहो णस्थित्ति । एत्थ सीसो आह-णो एस सम्वत्थ तरतमजोगो विज्जए, जहा पुब्बि उग्गहो ततो ईहा ततो अवाओ ततो धारण, आयरिओ &ाआह-कह, सीसो आइ-जहा कोइ कंचि पुरिसं सहसत्ति पासिज्जा, तंमि उग्गहादयो जुगवमुप्पज्जंति, आयरिओ आह-तंमिवि अस्थि चव, कहं , जहा उप्पलपत्तसतवेहे कालणाणतं अस्थि, अहवा सुहुमत्तणेण णज्जए जहा एककालमेव विद्धति, ण उब| रिछे पचे अविद्धे हेडिल्लस्स वेधो जुज्जए, एवं सहसति दिटे पुरिसे उग्गहादीण तरतमजोगो अस्थि चेव, ण पुण कालस्स सुहुम-18 चणेण जाणितुं सकिज्जतित्ति ।। ताण य इंदियाणि काणिइ पचविसयाणि काणिवि अपचविसयाणि, कई :हा पुढे सुणेइ सई० ॥१।। पुढे णाम फरिसितं, जाहे तं सोइंदियं अणंतेहिं सद्दपोग्गलेहि पूरियं भवति तदा सुणेइ, जं पुण पासति तं अपुढे, कहं , जइ पुढे पासिज्जा तो अग्गि दरट्टण णयणाणं दाहो भवेज्जा, मूलं वा दट्टण णयणाणं वेहो भवेज्जा । BREAKASHRSCRIHARAPRA दीप अनुक्रम CCC (19) Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [५], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 C प्रत HEIG 18 पत्थ सीसो आइ-जति अपुढे पासह तो कई देवलोयं ण पासति', आयरियो आह-पिसए इंदियाणं गाणं दसणं वा भवति । भाषायाः आवश्यक दासीसो आह-भगवं! को पुण एतेसि विसउतिी, आयरिओ आह-सोइंदियस्स जहण्णेण अंगुलस्स असखेज्जतिभागो, उक्कोसेण समविषमचूर्णी | वारस जोयणाई, चक्खिर्दियस्स जहण्णणं अंगुलस्स संखेज्जतिभार्ग उकोसणं जोयणसयसहस्सं साइरेग, मंधरसफासाणं जह-II ज्ञानानि श्रेणयः प्यो अंगुलस्स असंखेज्जतिभामो, उकोसणं नव जोयणाईति । गंधरसफासिंदिया बद्धपुढे वियाकरेज्जा, कही, जाहे पाणपोग्गला18 ॥१४॥ पाणिदियं पविट्ठा भवंति ताहे पुट्ठा, जाहे पुण पाणिदिएण सह गाद संजुत्ता भवति ताहे बद्धा भणति, एवं पुटुं बद्धं च गंधम ग्घायइत्ति, तहा जिभिदिएवि, मुखे जया पक्खिचो आहारो भवति तदा पुट्ठो, जया लालाए सद्धिं एकीभूओ भात जिम्भिदिय-15 त्ताए य परिणामिओ तदा बद्धो, एवं पुढे पद्धं च रसं आसादयतिति । जाहे फासपोग्गला ईसिं फासिदिएण सह समागया भवंति तदा पुट्ठा भवति, जदा पुण माई फासिदिएण सह परिणामिया भवति तदा श्रद्धा भण्णंति, एवं पुट्ट च फरिसं चेदेतिात्ति ॥५॥ एत्थ सीसो आइ-भगवं!जे पुण निसिरिया भासापोग्गला ते किं ते चेव सुणेति उआहु अष्योति?, आयरिओ आह भासासमसेढीयं ॥६॥ जाओ एयाओ लोगागासपएसाणं सेढीओ पाईणपडिणायताओं उत्तरदक्खिणउद्धमधायताओ याद वासि सेढीषं जो सोईदियस्स समसेढीए ठितो भासति ते पोग्गला अण्णेहि सद्दपोग्गलपाओग्गेहि सह मीसगा सुब्बइ,7 जो पुष्प विसेढी भासइ ते पोग्गला पो सोइंदियं पविसति णियमा अण्णे सइपोग्गलपाउग्गपोग्गला तेहिं पोग्गलेहि परंपराघाएण ॥१४॥ पोल्लिजमाणा २ सोइंदियं पविसंति, जे य ते पोग्गला णिसट्टा भासतेण तेहिंतो बहुतरगा जे सोइंदियं पविसंति | आह-एक- ओमुहेऽपि ते कद विसढी सुति, उच्यते, ते पुण णियमा छदिसि पविसंति ॥६॥ सीसो आह-भगवं! मणितं तुम्भेहि जहा 'जं सदं दीप अनुक्रम AREREST (20) Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६,७], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री आवश्यक "चूर्णी CHECIRC सत्राका ज्ञानानि ॥१५॥ समसेबीए सुोड तं मीसग सुणोतिति' बत्य पुण ताणि भासादस्वाणि कवरेण जोगेण मेहति । कतरेण वा णिसरतित्ति, भाषादव्यआयरिओ शाह ग्रहणादि गेण्हइ य काइएण॥७॥ मासालद्धीओ जीवो भासागहणपाउग्माणि दवाणि कायजोगेण घेत्तूण भासकाए परिणामउं वयजोगेण पिसिरति, णिसिरह णाम भासइचि बुत्तं भवति, सो पुण ताणि दुव्याणि एगंतरेण गेहति एक्कन्तरं च मिस्सिरचिति, ४ कई?, एमसमएण जया मासापोग्गलागहिया भवति तदा एगेण चव समएण णिसिरति, एवं गहणमिस्सिरण काउं कोइ तमि चेवद्वितो, | भवति, ठितिक्खयं वा करेज्जा, एवं गहणनिसिरणाणं कालो जहण्णेण दुसमइओ उक्कासेणं अंतोमुहुचितो, वे पुण अंतोमहत्तस्स समयादि असखेज्जा णायच्या, तेसु एक्कतरं गेण्हति णिसिरति य, कहं , जो भासंतो-जो उवरमति सो जीम समए णिस्सरति तमि व | समए भास भासतो अण्णाणि भासादवाणि पुणो गेण्हति, घेत्तूण य तइए समए णिसिरति, वाणिय वितियसमयमाहिताणि तइए समए णिसिरमाणो अण्णाणि भासादब्बाणि पुणो गण्डति, ताणि चउत्थे णिसरति, ताणि य तइयसमयगहियकाणि चउत्थे। समए णिसिरमाणो अण्णाण भासादब्याणि पुणो मेहति, वाणि पंचमे समए णिसरति, एवं सांतरं सवंत्तस्स परतरं मिस्सिर-19 तस्स य अभंतरेसु महुचस्व असंखेज्जा समया भवंति ॥७॥ जाणि पुण ताणि मासादब्वाणि गेण्डा काइएण जोगेण ताण पंचाई सरीराणं कतरेणं महविचिा, एत्थ भण्णातिपति_तिविमि सरीरमि०टातिविहसरीरमहणेण ओरालियवेउब्बियआहारगाणं गहणं कर्य, इयसाणि पुण तेयाकम्माणि वदंबग्म-51 याणि चेन काऊण ण भणियाणि, जस्स ओरालियसरीरं मो जीवपएसेहिं गेहिऊण ओरालियसरीरेण णिसिरति, जस्स वेठक्क्यिसरीरं दीप अनुक्रम RECENESS (21) Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं म, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [८-११], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राक UAR सो जीवपएसेहि गहिऊण वेउब्वियसरीरेण णिसिरति, एवं आहारगेणावि, 'तो भासति भासतो भासति भासं ति णाम जति भासतो भाषायाः चूर्णी | भवति तो भासति, किं कारणी, अण्णोसि ओरालियबेउच्चियआहारगा अत्थि,ण पुण भासंति। कम्हा, पज्जचिअभावा, कारणं वा प्रकाराल II किंचि पहुच्च ण भासंतित्ति ॥ ८॥ तं पुण भासं कतिप्पगारं गेण्हतिः, एत्थ भण्णति व्याप्तिश्च सानानि त ओरालियवेडाब्वय० ॥९॥ ओरालियवेउब्बियआहारगसर्रारी चाउम्बिहं भासं गेण्हति य मुंचद य, संजहा- सच्च असच्च ॥१६॥ सच्चामोसं असच्चामोस च, जाए भासाए गेण्हति ताए चेव णिसिरति, णो अण्णाए घेत्तूण अण्णाए णिसिरइत्ति ॥९॥ एत्थ सीसो | आह-कतिहिं समएहिं लोगो० ॥१०॥ माहा कंठा । आयरिओ आह । चउहिं समरहिं० ॥११॥ जीवो जाई दबाई भासत्ताए गहियाई णिसरति ताणि भिण्णाणि वा णिसिरति अभिप्राणि वा, | Kजाई भिन्नाई णिसिरति ताई अणंतगुणपरिवुड्डीए परिवमाणाई २ चउहि समतेहिं समंतओ लोगंतं फुसंति, फुसंति णाम पाव | तित्ति वुत्तं भवति, जाई अभिण्णाई णिसिरति ताई असंखेज्जाओ उग्गाहणवग्गणाओ गंता भेदमावज्जंति, संखेज्जाई जोयणाई लागंता विद्धसमागच्छति, विद्धसमागच्छति णामाभासीभवतित्ति घुत्तं भवति । एवमेव जाई भिण्णाई णिसिरति ताई महंतलेलुकसमाई || चउहिं समएहिं लोगत पावंति, जाणि पुण अभिण्णाणि णिसिरति ताणि खुद्दलगलेलृगसमाणाई अंतरा चेव विद्धंसमागच्छंति, तेहि य भिण्णेहि भासादब्बेहिं चउहि समएहि लोगो निरंतर सब्बो चेव फुडीकओ, जो य लोगस्स चरिमो अन्तो सो चेव भासा-18 लिएवि चरिमो अंतोत्ति । कहं , जेण अलोए जीवाजीबदव्वाणं धम्मत्थिकायदव्वस्स अभाव गती चेव पत्थि, अतो लोगस्सा चरिमंते भासाएऽवि चरिमंतो भण्णतित्ति ।।११।। इयाणि एयस्स आभिाणबोहियस्स एमट्ठिया भणति, तंजहा- . दीप अनुक्रम (22) Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण ज्ञानानि ॥ १७ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र निर्युक्तिः [१२-१५], भाष्यं [-] [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 हापोह बमंसा० ॥ १२ ॥ ईषत्ति वा अपोहोच वा विमंसत्ति वा मग्गणात्त वा गवेसणत्ति वा सम्पत्ति वा सहत्ति वा महत्ति वा पण्णत्ति वा सम्यमेतं आभिणिवोहियं एतेहिं एगडिएहिं भणिति ॥ तं पुण इमेहि अणुओगदारेहिं अणुगन्तव्यं, तंजहासंतपय परूवणया दव्वषमाणं च वित्तफुसणा य। कालो अंतर भागो भावो अप्पाबहुकंति ॥ १३ ॥ तत्थ संतपयपरूवणया पढमदारन्तिकाऊण पुवि भण्णति, तत्थ संतं णाम संतति वा अत्थित्ति वा विज्जमाणंति वा एगड्डा, संतं च तं पयं च संतपदं तस्स परूवणा संतपयपरूवणा, परूवणात्ते वा कहति वा चक्खाणमग्गोत्ति वा एगड्डा, सा य इमे पगारेण भवति, जहा कोइ सीसो कंचि आयरियं पुच्छेज्जा, जहा आमिणिवोहियस्स किं संतस्स परूवणं असंतस्स वा १, आयरिओ आह- वत्थ ! कतो ते संदेहो?, सीसो आह- संताणं असंताणं च परूवणा दिट्ठा, घडादिणं असंभवे (सिं) गादीणं च अतो मम संसओ, आयरिओ आह-संतस्स कहं?, जम्हा ओहिणाणादीहिं पञ्चखेहि जे दिट्ठा अत्था सुत्तनिबद्धा असुतनिबद्धा वा ते आभिणिवोहियमाणसामत्थजुत्तो जीवो सतं गिन्हइ परं च गाहेति, अतो शियमा अत्थि आभिणिबोहियणाणंति, सीसो आह- ज‍ अत्थि तो कहि मग्गितव्वं १, आयरिओ आह इमेहिं ठाणेहिं मग्गियव्वं, तंजहा गइ इंदिए य काए जोगे वेए कसाय लेसा य । संमत्त णाण दंसण संजय उवओग आहारे ॥ १४ ॥ 1 भासग परित पज्जत सुहुम सण्णी य हुंति भवचरिमे । एतेहिं तु पदेहिं संतपदे होंति वक्खाणं ।। १५ ।। तत्थ पढमं गतिति दारं सा गिरयगतिआदी चउब्विदा, तत्थ पडिवज्जमाणयं पडुच्च चउसुचि गतिओ (सु) आभिणिहियणाणं भवेज्जा, पुव्वषीडवण्णमपि पडुच्च चउसुपि भवेज्जा, तत्थ पडिवज्जमाणओ णाम जो तप्यष्ठमता चैव आभिणि (23) मतेरेकार्थ कानि सदादीनि द्वाराणि ॥ १७॥ Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) निर्युक्ति: [१२-१५], भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-], अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णी ज्ञानानि ॥ १८ ॥ बोहियणाणं पडिवज्जह, सो य एगसमयइओ लम्मति, सेसेसु समएस पुष्वपडिवण्णओ लम्भीत, गइचिदारं गयं १ ॥ ..इदा इंदिति दारं, तत्थ पुढवीकाइयाइणो वणतिकायावाणा पंच काया एमिंदिया, तेसु दोवि णत्थि वितिचउरिदिएसु णत्थि पडिवज्जमाणओ, पुब्वपडिवण्णओ पुण मवेज्जा, कहं १, जो कोई अविरयसम्मद्दिट्टी विगलिदिएस उबवज्जति सो जाब अपज्जचतो ताव घंटालालादिट्ठतेण पुच्चपडिवण्णओ लब्भति, पंचिदिएसु पुच्चपडिवण्णतो पडिवज्जमाणोऽवि आभिणिबोहियणाणी हविज्जा, इंदिएसि गयं २ ॥ कापति, पुढविकाए जाव वणप्यप्फतिकार ण पुव्वपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमानओ, तसकाए उभयं होज्जा ३ ॥ जोगेति जोगो तिविहो, तंजदा-मणवइकायजोगित्ति, एतेसु तिसुनि पुब्जपडिवन्नो पडिवज्जमागतो वा होज्जा४ ॥ वेदेत्ति, सो तिविहो तंजहा- इत्थी, पुरिसो णपुंसगत्ति, एतेसु तिस्रुवि दुवोऽवि होज्जा ५ ।। कसाएसि, ते य कोहादिणो चउरो, तेसु दुविहोऽवि होज्जा ६ ॥ 'तत्थ उवरिल्लासु तिसुविसुलेसासु पुण्वपडिवनतो पडिबज्जमाणओ वा होज्जा, हेट्ठिल्लामु अविमुद्धलेसासु पुब्वपडिवण्णओ होज्जा, पडिवज्जमाणओ णत्थि ७ ॥ सम्मत्तेत्ति, तं आभिणिचहियणाणं किं सम्महिडी परिवज्जति मिच्छदिट्ठी सम्ममिच्छहिट्टी १, एत्थ दो णया समोतरंति, तंजा- णिच्छतिए य वावहारिए य, तत्थ णिच्छदयनयस्स सम्मदिट्ठी परिवज्जर, पुव्वपडिवन्न ओऽवि सम्मद्दिड्डी चैव, बावहारियस्स मिच्छादिडी पडिवज्जति, पुण्वपडिवण्णओ से णत्थि, सम्ममिच्छदिट्ठी ण वा पुव्यपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमाणओ ८ ॥ (24) सत्पदे गत्यादीनि ॥ १८ ॥ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [१२-१५], भाष्यं - अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक चूर्णां ज्ञानानि ॥ १९ ॥ णाति तं आभिणिवोहियणाणं किं णाणी पडिवज्जति उदाहु अण्णाणी १, एत्थ दो णया, तंजहा- णिच्छतिए य बावडारिए य, मिच्छतियस्स णाणी पडिवज्जति, पुष्वपडिवण्णओऽवि णाणी चैव हवेज्जा, जति णाणी पडिवज्जति किं आभिणिबोहिय पाणी सुरणाणी ओहिणाणी मणपज्जवणाणी केवलणाणी पडिवज्जति ?, तत्थ आभिणिवोहियणाणी आभिणिबोहियणाणउप्पत्तिसमकालमेव पडिवज्जमाणतो भवति, ततो कालतो पच्छा णत्थि पडिवज्जमाणतो, पुव्वपडिवण्णओ पुण भवेज्ज, सुतणाणी णत्थि पुव्यपडिवण्णओ, पडिवज्जमाणस्स पुण आभिणिबोद्दियसुयणाणां जुगवं चैव समुप्पत्ती भवति, ओहिणाणी पुण्यपडिवण्णओ भवेज्जा पडिवज्जमाणओऽवि, कहं ?, जम्हा जुगवं चैव आभिणिवोद्दियसुतओहिणाणाणं समुप्पत्ती भवति, अओ पडिवज्जमाणतो इवेज्जा, मणवज्जवणाणे पुथ्वपडिवण्णओ हवेज्जा, पडियज्जमाणओ गत्थि, केवलणाणे दोऽचि णत्थि, बावहारियस्स विभासा ९ । दंसणेत्ति दारं, किं चक्खुणी पडिवज्जति अचक्खदंसणी० ओहिदंसणी० केवलदंसणी पडिवज्जइ ?, तत्थ चक्वु० अचक्ख० ओहिदंसणी व पुण्यपडिवण्णओ वा होज्जा परिवज्जमाणओ वा, केवलदंसणे दोsवि णत्थि १० ॥ संजमेति-आभिणिबोहियं किं संजओ पडिवज्जति?, असंजओ० संजयासजओ०१, संजओ पुव्यपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, पडिवज्जमाणओ जो सम्मतं चरितं जुगवं पडिवज्जति तस्सेत गहणं कर्तति, भणितं च णत्थि चरितं सम्मत्तविहूणं दंसणं तु भयणिज्जं । सम्मत्तचरित्ताई जुगवं पुब्वि व सम्मतं ॥ १ होज्जा, संजता संजतोऽवि एवं चैव ११ ॥ | असंजतोऽवि पुय्वपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा उनओगिति, आभिणिबोहियं किं सागारोवउत्ते पडिवज्जति उआडु अणागारोवउत्ते पडिवज्जति ?, सागारोवउसे पडिव - (25) सत्पदे गत्यादीनि ॥ १९ ॥ Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक वर्णों ज्ञानानि ॥ २० ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्तिः [१२-२०], मूलं [- /गाथा - ], भाष्यं [-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ज्जति, णो अणागारोवडतो, जम्मि समय पडिवण्णो आभिणिवोहियणाणं तंमि समए सो जीवो सागारोवउतो लम्भात, पुण्यपडिवण्णओवि सागारोवडतो हुज्जा, अणागारोवउतो पुव्वपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवज्जमाणतो १२ ॥ आहारेति, आभिणि० कि आहारतो पडिवज्जति अणाहारतो वा ?, आहारतो पडिवज्जति, णो अणाहारतो, जति आहारतो तो किं पुव्वपडिवण्णओ पडिवज्जमाणो वा होज्जा १, दोऽवि होज्जा, अणाहारओ पुण पुव्वपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवज्जमाणओ १३ ।। भासत्ति, किं भासतो पडिवज्जति अभासतो या ?, जस्स भासालद्वी अस्थि सो भासतोऽवि अभासतोऽवि पडिवज्जति, जस्स णत्थि सो ण चेव पडिवज्जति १४ ॥ परिचत्ति, किं परितो पडिवज्जति अपरितो वा १, परितो पुव्वपडिवण्णतो वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, अपरितो दुविहो-कायापरितो संसारापरितो य, एस दुविहोऽवि ण वा पुचपडिवष्णओ ण वा परिवज्जमाणतो १५ ।। पज्जतति, किं पज्जततो परिधज्जति अपज्जन्ततो वा?, पज्जचतो, पुष्वपीडवण्णओ पडिवज्ञमाणओ वा होज्जा, अपज्जततो पुख्वपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवन्जमाणतो १६ ।। सुमेति, किं सुमो परिवज्जति बायरो वा?, बायरो पडिवज्जति, णो सुडुमो, सो य बायरो पुब्वपडिवण्णओ पडिवज्जमा[णओ वा होज्जा १७ ॥ (26) 6 सत्पदे उपयोगा दीनिद्वाराणि ॥ २० ॥ Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 *STERS सक्ष्मादीनि सत्रों सण्णित्ति, किं सण्णी पडिवज्जति असण्णी वा', सप्णी पडिवज्जति, णो असण्णी, सो य सण्णी पडिबज्जमाणओ वा पुष्वप-8 सत्पदे आवश्यक डिवण्णो वा होज्जा, असण्णी पुण पुब्बपडिवण्णओ होज्जा, णो पडिवज्जमाणओ १८॥ चूर्णों भवसिद्धिएनि, किं भवसिद्धिओ पडिवज्जति अभवसिद्धिओ वा पडिवज्जति !, भवसिद्धिओ, गो अभवसिद्धिओ, सो भवसि- द्वाराणि ज्ञानानिदिओ दुविहोवि होज्जा १९॥ ॥२१॥ । चरिमेत्ति, किं चरिमे पडिवज्जति अचरिम वा', चरिमे पडिवज्जति, णो अचरिमे, से य चरिमे पडिक्ज्जमाणए वा होज्जा, प्रमाण पुष्वपडिवण्णए वा होज्जा २० ॥१॥ गतं संतपदपरूवणचिदारं, इयाणि दबपमाणति दारं, तंजहा-आभिणियोहियणाणपडिवण्णगा जीवा दन्वपमाणेण केव-IN माइआ', पडिवज्जमाणए पहुच्च सिय अस्थि सिय नत्थि, जति अस्थि जहण्णेण एको वा दो वा तिणि वा, उकोसणं पलिओ-18 | बमस्स असंखज्जतिभागे जावतिया बालग्गा, पुव्वपडिवण्णए पडच्च जहण्णपदे असंखज्जा उक्कोसपदेवि असंखज्जा, जहण्णष| यातो उकोसपदे विससाहिया २॥ ___ खेत्तचि दारं, आभिणियोहियपडिवण्णया जीवा लोगस्स कतिभागे होज्जा, किं संखेज्जतिभागे असंखेज्जतिभागे संखेज्जेसु भागेसु असंखिज्जेसु भागेसु सम्बकाए वा होज्जा', असंखज्जइमागे वा होज्जा, सेसपडिसहो, धृगणणाए विसयं पडुच्च | लोगस्स चोहसखंडीकतस्स सत्तसु चोदसभागेसु होज्जा, विसओणाम विसओत्ति वा संभवोत्ति वा उववत्तित्ति वा एगट्ठा, पहुच्ची नाम पडुच्चति वा पप्पत्ति वा अहिकिच्चचि वा एगट्ठा ३॥ दीप अनुक्रम SSSSS ॥२१॥ (27) Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यक वृणी ज्ञानानि HEIGE ॥२२॥ फुतणति दारं, आभिणियोहियणाणपंडिवण्णगा जीवा लोगस्स किं संखेज्जतिभार्ग फुसति ? तहेव उच्चारणा, एकं जीयं ६ मतिज्ञाने पच संखेज्जतिभाग वा फुसंति असंखेज्जतिभाग वा संखेन्जे वा भागे, जो असंखज्जे भागे फुसति, णो सबलोग फुसति, बादान एमेव पुत्तेचि जीवा माणियव्वा ४॥ द्वारााण कालति दार, आमिणिकोहियणाणी जीवा लईि पडुच्च केवातियं कालं होज्जा', एर्ग जीवं पहच्च जहणेण अंतोमुहूर्त उकोसेण छाबढि सागरोवपाई सातिरेगाई, कई , जो आमिणियोहितं लणं तक्खणा चेव ततो परिपडति केव(का)लं वा करेज्जा तस्स आभिणियोहियलदी अंतोमुहु संभवति, जो पुण अणुत्तरविमाणेसु दो वारा उववज्जति उकोसठितितो तस्स छापहि सागरो|वमा सातिरेगा, सातिरेग तु जं मणुस्सभवे आउयं देसूणा वा पुव्यकोडी अप्पयर वा काले, णाणाजीचे पडुच्च सम्बदा । उपओगं पड़च्च एकजीवस्स जहणणावि उकासणवि अतामस, णाणाजीचे पहुच जहण्णेणवि उकासेणधि अंतोमर ५॥ त्ति दारं-आभिणिोहियणाणस्सणं मंते। केवइयं कालं अंतर होति. अंतरं णाम जो आभिणियोडियणाणी भवित्ता पुणोवि कालंतरण आभिणियोहियणाणी चेव भवति, एत्थ एग जीवं पडुच्च जहण्णेणं अंतीमहुस, उकोसेणं अवद पोग्गलपरियट्ट देसूर्ण, णाणाजीवे पडच्च गत्थि अतरं ६॥ भागनि दारं, आभिणिबोशियणाणी भेते ! जीवा सेसजीवाणं कतिमागे होज्जा १, गोयमा ! अणन्तमागे ७॥ R ॥२२॥ भावेति, आमिणिबोहियणाणी में भंते ! जीवे ओदइयओबसमियादीणं पंचण्हं भावाणं कतरंमि भावे होज्जा, खोबसमिए होज्जा ८॥ 6 - दीप १0 अनुक्रम * R-549-6 (28) Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री IAL पत HEIC अप्पबहुति दारं, एवेसि जे मैत ! जीवाण आभिणियोहियणाणीणं णोआमिणिबेहियणाणीणं कयरे कयरेहितो अप्पा वा मागादीनि आवश्यक बहुया वा ?, सबस्थोवा आमिणिबोहियणाणी, णोआभिणियोहियणाणी अणंतगुणा । अप्पाबहुयत्ति दारं गतं ९॥ सत्पदादी चूर्णी दा अण्णे एवं भणंति-किं सम्मड्डिी पडिवज्जति मिच्छादिडी० सम्मामिच्छादिही?, एत्य दो गया-णिच्छाए य वावहारिए य, तस्थ अन्यमत शानानि वावहारियस्स मिच्छदिड्डी पडिवज्जति, गच्छतियस्स सम्मदिही पडिवज्जति, सम्मामिच्छो ण एकवि, किं गाणी पतिवज्जइ 181 उआडु अण्णाणी, एत्थवि एमेव । किं चक्खुदंसणी पडिव०१, केवलदसणवज्जे पुचपडिवणंणो वा पडिवज्जमाणओ वा। ॥२३॥ ताकि संजओ प० असंजओ वा प.संजयासजतो वा', 'णत्थि चरित०' गाहा। किं सागरोवउचे प०अणागारोवउत्ते परिवज्जाइट सागारोवउने पडि०, णो अणागारीवउच्चे, जमि पडिवण्णो सो सागारोवउत्तो, सेसेसु सागारोवओगेसु य अणागारोबओगेसु ४ाय धुव्वपडिवष्णो । किं आहारओं प० अणाहारओ प०, आहारओ प०, नो अणा०प०, दोऽवि पुण पुव्वपडिवण्णमा होज्जा। है कि भासतो ५० अमासतो प०, जस्स भासालद्धी अस्थि सो भासतोऽवि अभासतोऽवि, जस्स पत्थि सोण पडिवः । किं परिचो प० अपरिची ५०, दुविधोऽवि परित्तो प०, अपरित्तो ण पडि०, पुवपडि० । नोपरित्तोनोअपरिचो गए प०, ण पुर्वपडि । पज्जचओ परिवज्जइत्ति २, अपज्जे पुचप० होज्जा । बायरो प०,२। सुहमोग प०, ग पुच्व० । सण्णी पडि० २, असण्णी पुब्वप० । मवसिदिओ पडि०२, मो अभवसिद्धिजी। चरिमो पडिवज्जति अचरिमो प०, पुष्यपडिवष्णगं ॥२३॥ च पडिवज्जमाणगं च पहुवचरिमो, अचरिमो ण । से संतपदपरूवणा १।। दवपमाणं आभिणियोहिंषणाणपडिवणमा जीवा दवपमाणेण केवइया होज्जा, परिक्जमाणए सिख अस्थि सिय दीप अनुक्रम (29) Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणों HEIGE दीप श्री त्थि, जति अस्थि एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेण पलिओवमस्स असंखेज्जतिभागो, पुष्वपडिवण्णए पडुच्च जहण्णपएमतिरेण आवश्यक श्यकता असंखेज्जा उक्कोसपएवि असंखेज्जा, जहण्णपयाओ उक्कोसे विससाधिका २। खेत्तंति, लोयस्स किं संखेज्जइभागे होज्जा जाव | सत्पदा दीनि सबलोए, णो संखेज्जतिभागे होज्जा, नो संखेज्जेसु णो असंखेज्जेसु णो सबलोए ३। फुसणावि एमेव ४। कालतो एगजीवं पडुच्ची ज्ञानानि लद्धी जहणणं अंतोमुदुत्वं, उक्कोसेण छावद्विसागरोवपाई पुब्बकोडिपुहुत्तहियाणि, णाणाजीचे पडुच्च सम्बद्धं ५। सेस तहेव । ॥२४॥ तंच आभिणियोहियणाणं समासओ चउविहं पण्ण, तंजहा-दन्वओ खेतओ कालओ भावओ, दव्यतो गं आभिणियोहियणाणी आदेसोणं सव्वदव्बाई जाणति, ण पासति, खेत्ततो ण आदेसेणं सब्बखत्तं जाणति, ण पासति, कालतो णं आएसेणं सव्वकालं | जाणति, ण पासति, भावओ आएसेणं सव्वभावे जाणति, न पासति । इयाणिं एतस्स आभिणिबोहियणाणस्स पगाडिभेदपयM रिसणत्थं इमं गाहापुञ्बद्धं भण्णति, जहा आभिणियोहिय नाणे, अट्ठावीसं भवंति पगडीओ ॥ १६ अ॥ ता य इमा, तं०- छविहो अत्थोग्गहो सोई| दियाई, तमि छब्बिहा चेव सोईदियाई ईहा पक्खिचा, तासि मज्झे सोइंदियाई छब्बिहो अवाओ पक्वित्तो, तासु छन्विहा धारणा | तहेव पक्खित्ता, तासु सोइंदियघाणिदियजिभिदियफासिदियवंजणोग्गहो चउब्विहो पक्खित्तो, जाया पगडी अट्ठावीसति ।। एवमेते आभिणियोहियणाणं अट्ठावीसति, पगतिभेदं गयं ॥ इयाणि सुतणाणस्स पगडिमेयपदरिसणत्थं इमं गाहापच्छदं भण्णतिiti सुतणाणे पगडीओ वित्धरओ यावि वोच्छामि ॥१६ व ॥ जातो सुयणाणे पगडीओ भवंति तातो वित्थरओ ॥२४॥ शिवणेहामि, अविसद्दो संभावणे, कि संभावयति?, दुविधो यक्खाणधम्मो, तंजहा-संखेबओ वित्थरतो य, तत्थ संखेवओ भणिहामि, अनुक्रम (30) Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णौ श्रुतज्ञाने ।। २५ ।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -], निर्यु निर्युक्ति: [१२-२०], भाष्यं [-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वित्थरओ पुण तासि पगडीण भेदा चैव दरिसावेउं अहं समत्थो, ण पुण पत्तेयं पत्तेयं जो तासि अत्थो तं समत्थो दंसिउति संभावयति । ते य तासिं भेदा बित्थरओ इमे पत्यमक्राई० ।। १७ ।। जावइयाई पचेयं पत्तेयं असंजुताणि अक्खराई लोए जावइया य तेर्सि अक्खराणं परोप्परतो संजोगा एवइयाओ सुयणाणे पगडीओ भवंति णायव्वाओत्ति ।। एयाओ पगडीओ बित्थरेण अहं ण सक्कमि परूवेउं गाउं वा, जतो परिमियमाऊ णाणसंपत्ती य इतिकाऊण इमं गाहासुतं भणामि - • कत्तो मे० ॥ १८ ॥ अण्णे पुण भणति एयाओ पगडीओ वित्थरेण चोहसपुव्वधरा जाणंति परूवेंति य, अभिण्णदसषुव्विणो वा, अहं पुण असमत्थोत्तिकाउं इमं गाहासुतं भणामि 'कत्तो मे वण्णउं' गाहा, पुच्वद्धं गयं, संखेवेण पुण अहं जहा आभिणिबोहियणाणं अट्ठावीसपगडिभेदं परूवितं तहा सुयणाणे यावि चोदसविहं णिक्खेवं वण्णेहामित्ति । तंजहा अक्खर०१९|| अक्खरसुतं सण्णिसुतं सम्मसुतं सादिसुर्य सपज्जवासयं गमितं अंगपवि, एते सत्त भेदा सह पडिवक्खेहिं मेलिया चोदस भवति, तत्थ पढमं दारं अक्खरसुतंति, एत्थ क्खरसदो संचलणे वगर, अकारो पडिसेहे, जम्हा णो क्खरति अओ अक्खरं, क्खरति णाम सव्वविसुद्धणेगमणयादेसेण ण कयाइचि जीवेण सह विजुज्जइत्ति वृत्तं भवति, ये पुण अत्था अक्खरेहिं अहिलप्पति तेक्खरा अक्खरा य भणति, तत्थ अमुत्तदव्वाणि धम्मत्थिकायादीणि अक्खराणि, सासयाणित्ति वृत्तं भवति, तेसिपि परिपच्चइतो असासयभावो भवति चैव, जहा आगासस्स पडागाससंजुत्तस्स पडागासतेण विगमो घडाका सत्तेण उप्पाओ, आगासत्तेणाबद्विती चैव, जीवयोग्गलावि दव्बट्टयाए अक्खरा, पज्जबडयाए पुण क्खरा, कहं १, जहा जीवस्स मणुस्सत्तादिणा उप्पाओ 'श्रुत'ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (31) अक्षरश्रुतेक्षरस्वरूपं ॥ २५ ॥ Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत वृणों सुत्राक श्रुतज्ञाने देवतादिणा विगमो, जीवचेण अवविती चेब, तहा अजीबदबस्सवि दुपदेसितादित्तेण उप्पाओ परमाणुमादित्तेण विगमो पोग्गल-13 संज्ञाक्षर आवश्यकालाण अवद्विती चव । जो अविणासीभायो तस्स निच्छयतो अक्खरंति सन्ना। व्यंजनावरं तं पुण अक्खरं तिविहं, तंजहा- सन्नक्सर बंजनक्खरं लद्धिअक्खर च, से किं तं सनक्खरं ?, जा अक्वरस्स संठाणागिती, 18|जहा वट्टो ठकारो बज्जागिती बकारो, एवमादि सण्णक्खरं भण्णति ।। ॥२६॥दी वंजणक्खरं णाम जो अक्खरस्स अहिलाबो, जेण य अत्था णिव्बंजीयंति, णिव्यंजीयति णाम विभाबिज्जति फुडीकज्ज तीत्यर्थः, जहा अंधकारे वट्टमाणो घडो पदीवेण णिव्बंजिज्जति, एवं जम्हा अभिहाणेण उच्चारिएण अत्था णिग्बंजीयंति अतोKजणक्खर भण्णाति, ते य एवं णिवंजीयंति जहा गोणिचि भणिए तीए चेव ककुहणंगुलाबसाणाइगुणजुत्ताए संपच्चओ भवति, Nण पुण आसहास्थमाईसुचि । तं च बंजणक्खरं दुविहं- जहत्थणिययं अजहत्थणिययं च, तत्थ जहत्थणियतं जहा दहतीति दहणो तवतीति तवणो एवमाइ, अजहणियतं णाम जहा अमाइबाहगो माइयाहगो, णो पलं असईति पलासो एषमादी १श तहा दावंजणक्खरं अणेणावि पगारण दुवि भवति, तंजहा- एगपरिरयं च अणेगपरिरयं च, एगपडिरयंति वा एगपज्जायति वा एगणाम-C भेदति वा एगट्ठा, तंजहा-कस्सइ दबस्स एग चेव नाम भवति, णो वितिय, अणेगपरिरयंति वा अणेगपज्जायंति वा अणेगणाम-12 दाभेदंति वा एगट्ठा, तं च जहा कस्सइ दव्वस्स अणेगाई णामाई भवंति, जहा.घडस्स 'घडकुडकुंमा हत्थिणो 'हस्थिदंतिकुंजरा' टीएबमादी २। अहवा तं वंजणक्खरं दुविहं- एगक्खरं अणेगक्खरं, एगक्खरं जहा श्रीः ही धीःखी एवमादि, अणेगक्खरं जहा xि॥२६॥ सहस्सक्खो ईसाणोत्ति'एवमादि ३ । अहवा तं वंजणक्खरं दुबिह-सक्कयं पागयं च, सक्कयं जहा- आत्मा पुगलः एवमादि, दीप अनुक्रम (32) Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सूत्राक श्री आवश्यक चूों भुतज्ञाने ॥२७॥ दीप पागयं जहा- आया पोग्गला एवमादि ४॥ तं च बंजणक्खरं देसिओ अणेगविहं भवति, जहा-जं खीरं लाडाणं तं चेव कुडुक्काणं है लम्ध्यवरापीलु भण्णति, तं च अभिषयातो भित्र अभिन्नं च, कहं ?, जम्हा मोदउत्ति भणिए णो वयणस्स पूरणं भवति, अतो गज्जति जहाधिकारः 5 मिनया, जम्हा पुण मोदउत्ति भणित तंमि चेव संपच्चता भवति, णो तव्यतिरित्तेसु घडादिसु, अतो अभिनया, से तं वंजणक्खरं। से कि तं लद्धिअक्खरं?, लद्धिअक्खरं पंचविध पण्णच, तंजहा- सोइंदियलादक्खरं जाव फासिंदियलद्धिक्खरं, से किं तं सोइंदिय-12 लद्धिअक्सरं १, २ जहा केणइ संखसद्दो सुतो, तओ तस्स तप्पच्चहया दोण्हं अक्खराण लद्धो भवति, ताणि य अक्खराणि इमाणि, तनहा-संखोत्ति, से तं साइदियलद्धिअक्खरं १ । से किं तं चक्खिदियलद्धि०१, चक्खिदिपलाद्धि० जहा केणइ उकुंड-पदा लायतबट्टगीवो घडो दिट्ठो, ततो तस्स तप्पच्चइया दोण्ई अक्खराणं लद्धी भवति, ताणि य इमाणि, तं० घडोत्ति, एवं गंधरस-II फासाणवि भाणियत्वं । किं च-एयस्स इंदियपच्चक्खस्स सोईदियमादिणो लाद्धिअक्खरप्पमाणस्स व अणेगतिकी अक्खरलद्धी | भवति, कहं , जम्हा पुबमदिदुमसुतं किंचि अत्थं दट्ठण णो अक्खरलामो भवति, जहा पणसफलं पारसिगा दट्ठणवि पणसम-16 तति एताणि अक्खराणि णो उवलभंति, तहा पुवं सुतं दिटुं च किंचि अत्थं दट्टण णो अक्खरलंभो भवति, कहं, जम्हा मंदप्पगास खाणु दट्टण किं पुण एस पुरिसो उदाहु खाणुनि संसतो समुप्पज्जति जाव णो विभावयति पक्खिणिलयादीहिं कारराणेहिं ताव खाणुत्ति एतेसिं दोहं अक्खराणं णो लामो भवति, तहा कस्सइ पुरिसस्स कोई पुरिसो णामं असरमाणो जाच इहे II का पविट्ठा अच्छति प ताव संभरति जहा अमुगणामधज्जोत्ति ताव तर्सि णामक्खराणं णो उवलद्धी भवति । तहा कस्सति पुण परोक्खेचि अत्थे सारिक्खं दट्टण तविपक्वं वा दट्टणं अक्खरलंभो भवति, तत्थ सारिक्खओ जहा कोइ पुरिसो अण्णस्सा अनुक्रम TATTITUTI FAR 60-64 (33) Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत पयायाः दीप 12ी कस्सई पुरिसस्स अणुसरिसो भवति, ततो तं दद्रूण अक्खरलंभो भवति, जहा- अहो इमो अमुगणामधेज्जस्स सरिसोत्तिः, तहा 181 आवश्यक विपक्खतो, जहा अहिं दहण तविपक्खस्स णउलस्स णामक्खरोवलंभो भवति, कह', जह पुण इदाणि एस्थ गउलो भवेज्जादा चूर्णी श्रुतज्ञाने ततो एवं अहिं खंडाखंडिं करेज्जा, अहिस्स वा णउलो पडिसत्तुतिकाऊण कस्सति दयाजुसस्स अहिदरिसणाणुसमयमेव णउल18| खरोवलमो भवति, जहा- अहो एतेसि अहिणउलाणं अणवराहेऽवि भवपच्चतितो वेराणुभवो बंधोति । एवं इंदिओवलद्धिं पडुच्ची ॥ २८॥ अक्खरलंभो जहा भवति जहा वाण भवति तहा परूवितंति । एतेण य सोईदियादिणा पंचविहेण लद्धिअक्खरगहणेण इंदियपच्च क्खप्पमाण गहियं भवति । एगग्गहणे तज्जातियाण गहणं भवतित्तिकार्ड अणुमाणउवम्मआगमावि गहिता चेव भवति, तत्थ अणुमाणमवि पडच्च इमेण पगारेण अक्खरोवलभो भवति, जहा कोई अत्यो पुष्योवलद्धो, तम्मि अ काले अदिस्समाणो अणुमा-18 राण बेप्पति, एत्थ दिळतो, जहा- धूमं दट्टण अपच्चक्खस्स अग्गिस्स अक्खरोवलंभो भवति, जहा- एत्थ एस धूमो एत्थ&I अग्गिणा भवितव्यं, तहा रतं णिद्धं च सेझं दळूण परिसिउकामो अंतरिक्खोत्ति एतेसि अक्षराणं उबलद्धी भवति, एवमादी। ला अणुमाणिओ अक्खरोवलंभो भवतित्ति । तहा उवम्ममवि पहुरुच अक्खरोवलंभो भवतित्ति, कहं , जहा-जारिसो गीः तारिसोला गवतोति । तहा आगममवि पडच्च अक्खरोवलंभो भवति, तत्थ आगमो णाम अत्तवयण, तमि भव्याभग्वदेवकुरुत्तरकुरादीण भावाणं ४ अक्सरोवलंभो भवति । एवमादि जो य एसो अक्खरोक्लंभो इदाणिं चिंतितो एस पायेण सप्णीण जीवाण भवति, णो ॥२८॥ असण्णीणति, कथं ?, असण्णिणो पंचेंदिया पासंतावि अत्थे घडषडादिणो णोऽभिजाणंति-किमवि एयंति, तम्हा पायसो एसो । लद्धिअक्खरलंभो सण्णीणं भवति, णो असणीणति । सेत्तं लद्धिअक्खरं, तस्स पुण एगमंगस्स अक्खरस्स दुविहा पज्जाया भवति, अनुक्रम (34) Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ २९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्तिः [१९-२०], भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 तंजहा सपज्जाया असपज्जाया य, तत्थ सपज्जायत्ति वा अस्थिभावोति वा विज्जमाणभावोति वा एगड्डा, असपज्जायत्ति वा गत्थिभावोति वा अविज्जमाणभावोति वा एगट्ठा, तत्थ जे ते सपज्जाया ते दुबिहा, संजहा- संबद्धा असंबद्धा य, जेऽवि ते असपज्जाया तेऽवि दुविहा, तं० संबद्धा असंबद्धा य, एत्थ णियरिसणं अकारो, अकारस्स जे सपज्जाया ते अत्थित्त्रेण संबद्धा, णत्थित्ते असंबद्धा, ते चैव अकारपज्जाया अण्णसिं अत्थित्तेण असंबद्धा णत्थित्तेणं संबद्धा, तहा जे असपज्जाया अकारस्स ते गरिथत्तेण संबद्धा, अत्थितेण असंबध्धा ते चैव अकारस्स असपज्जाया अनसिं अत्थित्तेण संबद्धा, गत्थि० असं० एवं एतेण पगारेण सव्वत्थ सपज्जाया असपज्जाया संबद्धा असंबद्धा य चारेयव्या । अक्खरग्महणण णाणस्स गहणं कर्त, णाणं च णेयाओ अव्यतिरिक्तं, कहं?, जाव जाणियव्वा भावा ताव णाणं, अतो एतेसिं णाणणेयाणं परिमाणं इमं भण्णति, तेजहा-सव्वागासपदेसग्गं अनंतगुणितं पज्जवग्गं अक्खरं लब्भति, तत्थ सव्वसहो णिरवसेसिए अत्थे वट्टद्द, आगासं पसिद्धं चैव, तस्स जं पएसग्गं, अग्गति वा परिमाणंति वा पमाणंति वा एमड्डा, तेण चैव सव्वागासपदेसग्गेण अनंतगुणितं पज्जवग्गं अक्खरं लब्भति, पज्जायाणं च एगमेगस्स आगासपदेसस्स जावइया अगुरुलहुपज्जाया तेसिं संपिडियाणं जं अग्गं एतं परिमाणं अक्खरस्सत्ति, णाणपमाणंति वृत्तं भवति । इयाणिं एतेसिं अगुरुलहृदव्वाणं परूवणा भण्णति, गुरुलहुदव्वाणि य पच्च अगुरुलहू भवंति अतोपुव्वि तेर्सि परूवणं काहामो, पच्छा अगुरुलहुदव्वाणंति, णिच्छयणयस्स णत्थि सव्वगुरुं दव्वं, णावि सव्वलहुं, वबहारणयादेसेण पुण वायरसंधेसु सब्बे दोऽवि अत्थि, जहा सब्बगुरू कोडियसिला, सव्वलहु मूलगपतं तूलं वा, आह-केसु खधेसु बादरसन्ना लम्भतित्ति?, उच्यते, परमाणुतो आढचं नाव अणतपदेसितो संधो एते सुहमा खधा भण्णंति, अगुरुलहुपज्जाया य णिच्छयतो एतेसिं भवंति, जे गो गुरू गो (35) गुरुलघ्वादिपर्यायाः ॥ २९ ॥ Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९-२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री उद्या प्रत श्रुतज्ञाने HEIG ॥३०॥ 18 लहुगा ते अगुरुलहुपज्जाया भण्यंति, जे पुण मुहुमातो अणंतपदेसितातो आरम्भ अणंताणतपदेसिया खपा तेसिं जे पज्जाया आवश्यक ते गुरुया लहुया य णिच्छयती मातब्बत्ति, जे य गुरुदब्याण गुरुलहुयपज्जाया जे य अगुरुलह ते युद्धीए पिंडेतं तेण चेव चूणा | रासिणा जाहे अणते वारे गुणिया भवंति वाहे एगस्स अमुत्तदब्बस्स अगुरुलहुपज्जवेहि समा न भति, एत्य सीसो चोदेति एवं सिटितोऽनन्त भागः केवइएहि मुत्तदल्याण पिंडियपन्जाएहिंदो अमुचदवाण अगुरुलहुयपज्जाया अणंतगुणा भवति, आयरिशो आह-बहुयावि तसंज्ञिश्रुतं अणतएण गुणेज्जमाणे पत्थि परिमाणति, सम्हा एतेण कारणेण अमृतबस्स अगुरुलहुपज्जाया अर्णवा भवंति, जावइया य अमुचदम्बस्स अगुरुलापज्जाया एवइयं पमाणे अक्खरस्साच ।। एयस्स य अक्खरस्स सव्यजीचाण अर्णतभागोवि णिकयुम्पाडिय तो, कह', अणुचरोक्वाइयागं देवाण सविसुद्ध सुतणाणं, तयणतरं असंखज्जगुणपरिहीणं उबरियगेवेज्जगाणं, एवं च जाव MI पुढविकाइयाण ताव असंखेज्जगुणपरिहीणा सेढी, जइ य तेसि तपि थोवर्ग आवरिय होतं ततो तेसि अजीवभावतो होतो, वंच लातेसि ते थोवर्ग णाचरितं से अर्णततमो भागा अक्खरस्स णातब्बोति । एत्व दिहता रविपहा, जहा-मुवि मेहच्छणं गई बहावि रविणो पमा अस्थि चेव, एवं णाणावरणिज्जस्स कम्मरस अर्णतेहि अविभागपलिच्छेददि जतिवि एसकेक्को जीवपदेसो आवेदितो परिवेदितो भवति तहावि पाणभावो अस्थि व पुढविकाइयादीणति । अक्खरसुतं गतं, इयाणि अणक्खरसुत भण्णति, तंजहा 181 ससितं० ॥२०॥ उस्ससियादीणि सिंधितावसाणाणि कंठाणि, अणुस्सारं णाम पम्हढे अत्थे सतं वा संभरिते अण्णेण वा MIसंभारिते जे अक्खरविरहितं सहकरण तमणुस्सारं भष्णइ, छोलतं णाम सिटी, आदिग्गहण य पुफसिकिडिकारजट्टिमट्टिप्पहारसदादिणोऽपि भेदा गहिता भवंति, से तं अणखरमुयं २। इयाणि सण्णिसुयं भण्णति, सण्णि शाम जो संजापति, ईहापोहादि INH॥३०॥ दीप MASCUSSISAMASTICE अनुक्रम (36) Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री संश्यसजि भुतं सत्राक चूर्णी शुतज्ञाने ॥३१॥ दीप ARESARKA5% गुणजुत्तोचि वृत्तं भवति, तस्स जे सुतं तं सण्णिसुर्य भण्णति, ते च तिविह, संजहा-कालिओवरसेण हेतुवाओवदेसेष दिविवा- ओवएसेणंति, तत्थ कालिओवदेसो णाम जो सन्मावो कालणियमेण पढिन्जति सो कालिओ भष्मति, तस्स उबएसो कालिओव-1 एसो, तेण जस्स अत्थि ईहा चूहा मग्गणा य गवेसणा सो कालिओवदेसेण सण्णी भण्णाति, सो पुण सण्णी सई सोऊण तस्स अत्यं | इंहितुकामो अणंतपदेसिए संघ मणपाउम्गे अणंते कायजोगेण घेत्तुं मगयति, वजो तस्स सण्णिायो जहा चक्खुसामत्यजुत्तस्स पुरिसस्स पगाससंजुत्ते रूवे उपलद्धी भवति एवं तस्सपि सोइंदियादीहिं पंचहि मणेण य जुत्चस्स सई सोऊण अत्यावलद्धी भवति, से ते कालिओवदेसणं सण्णिसुतं भण्णति शइयाणि हेउगोबएसेणं भण्णति-वत्थ हेउगोवएसोति वा कारणोवएसोचि चा पगरणोपएसोचि वा एगहा, सो य हेउगोवएसो गोविंदणिज्जुत्तिमादितो, तंमि भणितं जस्स अहिसंधारणपुश्विगा करणसत्ती अस्थि सो सभी लम्भति, अभिसंधारणपुखिया णाम मणसा पुष्वापरं संचिंतिऊण जा पवित्ती निवत्ती वा सा अभिसंधारणपुञ्चिगा करणसत्ती भण्णाति, साय जेसिं अस्थि ते जीवा ज सई सोऊण बुज्झति तं हेउगोवएसेण सण्विसुयं मण्णति २ इयाणि दिहिवाइगोवदेसणं सणिसुयं भण्णइ-तत्य दिठिवाओ चोइस पुन्वाणि तस्स उवदेसो २ तेण जेहिं कम्मेहिं सण्णिमावो आवरितो तेसि केसिंचि खएण केसिंचि उपसमेणं सण्णिभावो लब्भति, सो य सण्णी जं सदं सुणेति सुणिचा य पुवावरं खुज्झति ते दिहि& वाइओवदेसण सण्णिसुयं भण्णति, से सत्रिसुतं ३।। इयाणि कालियहेतुदिडिवाइओवदेसेण चेव असष्णिसुर्य भण्णइ, तत्थ कालिओवएसेणं जम्हा जस्स पत्थि इहीं वहा मग्गणा गवेसणा सो असभी भवति, तस्स य सई सोऊण अव्वत्ता अत्थोषलद्दी भवति, कह , जहा पिचमुच्छिकतस्स मज्जाईहिं वा अनुक्रम (37) Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत ध्या श्रुतज्ञाने दीप श्री दव्वेहिं मत्तस्य ईसि वा सइयस्स सई सोऊण अव्वत्ता अस्थोवलद्धी भवति, जहा य से सद्दे विसओवलद्धी अव्वत्ता तहा रूवर्ग-13 सस्यसशिआवश्यक धरसफासाणवि जा अत्थोवलद्धी सावि अब्बत्ता चेव भवति, सेच कालिओवएसेण असन्निसुयं । इयाणि हेउगोव० जस्स णंट्र चूणों अभिसंधारणपुब्बिया करणसत्ती णत्थि से असन्नी भवति, सो य तीए तहाविहाए सत्तीए अभावेण जे सदादिअत्थं उपलभति तं अव्वत्तं उयलमति, सेत्तं हेउगोवएसेणं असन्निसुयं । इयाणि दिडिवाइतोवएसेण असन्त्रीसुर्य भण्णति, तंजहा-अस्थि ते असण्णिणो ॥३२॥ बेइंदियाई जाँस असष्णिसुतावरणकम्मोदएण सोयम्बलदी चेव पत्थि, केसिंचि पुण असणिणं पंचेंदियाणं सोइंदियावरणस्स। कम्मस्स खओवसमेण असण्णिसुयलद्धी भवति, तेसिपि जा सद्दादिमु अत्थेसु उवलभियब्बएसु लदी सावि अब्बचा चेव, सेतं | दिडिवाइगोवदेसेणं असण्णिसुयं भण्णति । एवं च असण्णिसुतं असणिपंचिदियं पडुच्च एव भणियं, एगिदियवेईदियतइंदियचउरिदियाण य मइसुयाणि अण्णोऽण्णाणुगयाणित्तिकाउं तेसिपि तिविहणवि कालिगहेउगदिद्विवादिओवदेसण असण्णिसुयं अस्थि चेव, एत्थ सीसो आह- एतेसि पुण सण्णिसुयअसण्णिसुयाणं तुल्लेवि जीवभावत्ते को पतिविसेसो ?, आयरिओ आह- जहा तुल्ले लोहभावे जा तिण्हया चक्करयणस्स, तओ बहुगुणपरिहीणा पिंडलोहसत्थस्स, तओ परिहाणतरा अपिंडलोहसत्थस्स, एवं जा सणीण इंदिओवलद्धी सा बहुगुणपरिहीणा असन्निपंचिंदियाणं, ततो बहुगुणपरिहीणा जहाणुक्कमेण चतुरिंदियतेइंदियबेइंदियजाएगेंदियाणंति । सेतं असण्णिसुतं । ____ अण्णे पुण सामण्णेण जस्स णं ईहापोहमग्गणगवेसणा अस्थि से सण्णी लब्भइ, जस्स णस्थि से असण्णी, से तं कालिओवI एसेणं, जस्स ण अभिसंधारणपुविका करणसत्ती से सण्णी लब्भइ, जस्स पत्थि सो असण्णी, से तं हेतु०, सण्णिसुयस्स खओवसमेण | अनुक्रम (38) Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ॥ ३३ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्तिः [२०], भाष्यं [-] मूलं [- /गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सण्णी, असष्णिसुयस्स खओवसमेण असण्णी, सेतं दिडिबाईओवदेसेणं, सेतं सष्णिसुतं, सेतं असणिसुतं ४ | दार्णि सम्मसुतं, जं इमं अरहंतेहिं भगवंतेहिं आगाराह दुबालसंगं गणिपिडगं परूवितं एतं सम्मदिद्विपरिग्गहितं सम्मसुतं, मिच्छदिट्ठिपरिग्गहियं पुण मिच्छसुयं भवह, सेतं सम्मसुतं ५ से किं तं मिच्छसुर्ती, मिच्छसुर्य जं इमं अन्नाणिएहिं मिच्छदिट्ठीहिं सच्छन्दपरिकप्पियं, तंजहा भारहं रामायणं एवमादि मिच्छदिट्ठी परिग्गहियं मिच्छसुयं भण्णति, एवं चैव सम्मदिट्ठीपरिग्गहियं सम्मसुतं भण्णति, सेतं मिच्छसुर्य ६ । इयाणि सादियं अणादीयं सपज्जवसियं अपज्जवसिय च एते चत्तारिवि दारा समगं चैव भण्णन्ति, तंजहा इच्चेयं दुवालसँगं गणिपिडगं वोच्छित्तिणयट्टयाए सादीयं सपज्जवसितं, अवोच्छित्तिणय याए अणाईयं अपज्जवसियं, अभवसि द्वियस्स सुतं अणादीयं अपज्जवसिय भवसिद्धियस्स सुयं अणाइयं सपज्जवंसियति । अण्णे तं समासओ चउच्विहं, तंजहा- दय्वओ खेचओ कालओ भावतो, दव्वतो एगं पुरिसं पडुच्च साईयं सपज्जवसितं, कह?, जम्हा पंचहिं ठाणेहिं सुतं सिक्खिज्जा ० ( जहा नंदीए, एगं) पुरिसं पटुच्च सुयणाणं सादीयं सपज्जवासयं भवति, आह-तुम्मेहिं भणियं जहा देवलोगं गयस्स सुयणाणं परिवड, तो कई इमो आलायगो एवं पढिज्जति', जहा 'इहभविए भंते! णाणे पारभविए नाणे तदुभयभविए नाणे, गोयमा इहभविवि नाणे परभविऽचि णाणे तदुभयभविएऽवि णाणित्ति, उच्यते, एगणयादेसेण एस आलावगो एवं पढिज्जति, कहं परभवियं तदुभयभवियं (वा) माणं णियमा भवति, ण पुण जो णाणमहिज्जते तस्स सव्यस्त चैव एवं भवति, कम्हा?, जम्हा चोदसपुच्ची देवलोगं गओ नियमा तं सव्वं सुरणाणं णिरवसेसं ण संभरति, जो पुण एगंगवी जाव भिष्णदसपुब्बी सो सव्वं णिरवसेसं संभरेज्ज वा ण वा, तम्हा सिद्धं इहभविए णाणे परभविए णाणे तदुभयभावए णाणेति । बहवे पुण पुरिसे पटुच्च अणादीयं अपज्जवलियं, संताणधम्मेण (39) साधनादिसपयेव सितापर्यंवसितानि ॥ ३३ ॥ Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ३४ ॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्मुक्तिः [२०] भाष्यं [-] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 भवतिति, खेत्तओ पंच मरहाई पंच एवयाई पटुच्च साईयं सपज्जवलियं, पंच विदेहाई पड़च्च अणादीयं अपज्जबसितं, कालेत्ति छब्बिहूं उस्सप्पिणिं छव्विदं ओसप्पिणि पटुच्च सादयं सपञ्जवसितं गोउस्सप्पिणिअवसप्पिणि पच्च अणादीयं अपज्जवसितं, भावओ पण्णवगं पडच्च पण्णवणिज्जा य भाषा पहुंच्च सादीयं सपज्जवसितं कहूं ?, जओ उवउतो पण्णवेति अणुवउत्तो पण्णवेति, तहा उदत्तेण संरेण पष्णवेतुं अणुदत्तेण पण्णवेति, तहा आथरेण पष्णवेतुं अणादरेण पष्णवति, तहा निय्चलो पण्णवेडं आउंटणपसारणादणि कुब्बंतो पण्णवेति, एवमादिसु कारणेसु पण्णवर्ग पच्च भावओ सादीयं सपज्जवसिय॑ सुप॒णाणं भवति । इयाणि पण्णवणिज्जा भावा पच्च जहा तहा भग्गति-गतिपरिणयं दव्वं पण्णवितुं ठाणपरिणयं पण्णत्रेति, अतो सादीतं सपज्जवासितं भवति, तथा दुपए सितं खंघभेदं पण्णवेऊण तिषएसियं पण्णवेति एवमादिभेदं पशुच्च सादीयं सपज्जवसिय, तहा दो परमाणू संहता दुपदेसितो गंधपरि० वण्ण० खंधो भवति, एवं पण्णवेतुं तिपदेसितं एवमादि संघायं पच्च सादीसपज्जबसिय, सहा दव्वाणं वण्णपरिणाम पण्णवेऊण० एवमादी पण्णवणिज्जा भावा पडुच्च सादिसपज्जवसिय । जम्हा खओवसमिते भावे णिच्च बढ्इ सुयणाणं, बद्धा य अत्था जम्हा दष्यट्टयाए णिच्चा अतो सुयमाणं भावतो अणादीयं अपज्जवसियं च भवति । गताणि चचारिवि दाराणि७-८-९-१० इयाणिं गमिय अगमियं च दोऽवि द्वारा समं भव्णंति, तत्थ गर्मियं णान जं भंगजुतं गणितगामियं वा, जं वा कारणवसेण सरिसगमं भवति, तत्थ भंगगमियं एगदुगतिगचउमंगमादी, गणियुगमितं गाम जहा एक्कजीवाधणुपकरणेण अण्णाणिवि जीवाधणुपाणि गणिज्जंति, सरिसगमं णाम जहा- कोहस्स उदयनिरोहो कायन्वो उदयपत्तस्स विफलीकरणं कापव्वंति तहा माणमायालोमाणवि एवमादि ११ अगमितं विवरीय १२ । |गमिक- अगमिक श्रुतस्य स्वरुपम् (40) साद्यादीनि ममिकागमिकांगानंगानि ॥ ३४ ॥ Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक इयाणि अंगपविद् वाहिरं च दोणिऽवि भणति, अंगपबिट्ट आयारो जाव दिट्ठिवाश्री, अर्णगपविट्ठ आवस्सगं तच्चतिरिट भूतवादेआवश्यकच आवस्सगं सामादियमादी पचक्खाणपज्जवसाणं, वतिरित्तं कालियं उक्कालियं च, तत्थ उक्कालियं अणेगविह, संजहा- दस-1 योग्याः चूर्णी 8 वेयालियं काप्पियाकप्पियं एवमादि, कालियपि अगविहं, तंजहा-उत्तरायणाणि एवमादि१३-१४ ॥ एत्थ सीसो आह जहा दिडिवाए श्रुतस्य श्रुतज्ञाने सम्ब चेव वयोगतमत्थि तओ तस्स व एगस्स परूवणं जुज्जति, आयरिओ आह- जतिवि एवं तहावि दुम्मेहअप्पाउयइत्थिया- विषयः 18 दाणि य कारणाणि पप्प सेसस्स परूवणा कीरतित्ति, तत्थ बहने दुम्मेधा असत्ता दिहिवायं अहिज्जिङ अप्पाउयाण य आउयं ण ॥३५॥ दिपप्पति, इत्थियाओ पुण पाएण तुच्छाओ गारवबहुलाओ चलिंदियाओ दुम्बलधिईओ, अतो एयासि जे अतिसेसज्मयणादा | अरुणोक्वायणिसाहमाइणो दिहिवातो य ते ण दिज्जंति, तत्थ तुच्छा नाम पुच्चावरओ बक्खाणे असमत्था, गारखबहुला णाम गब्वमन्तीउत्ति, चलिंदियाओ णाम इंदियविसयणिग्गहे भूयावादं पप्प असमत्थाओ, दुम्बलधितीओ णाम चलचित्ताओ इति मातं | सुवणाणलदी उपजीविस्संति, अतो तेर्सि अतिसेसज्झयणाणि वारिज्जतित्ति । गतं अंगवाहिर, सम्मत्तं च चोइस विधणिक्खवं सुयणाणं॥ एतंपि संतपदपवणाईहि दारेहिं अविसेसमणाणत्तं जहा आभिणियोहियणाणं भणितं तहा माणियध्वं । तं च समासओ |FI चउब्बिह, तंजहा- दब्बो खेतओ कालओ भावओ। दबओ णं सुयणाणी उचउत्तो सम्बदवाई जाणइ पासइ, एवं खेतो सबखेनं जाणति पासति, एवं कालभायावि भाणियब्वा । केति पुण पढ़ति-दवओ खेतओ कालओ भावओ, दयओ ण सुयणाणी जाणति न पासति, एत्थ सीसो आह-सुट्ठ जे एवं पढति, आयरिओ आह-कह?, सीसो आह-जै पच्चक्खग्गहण ण एति सुयणा-18 संसिया अथा । तम्हा सणसद्दोण होति सकलेजवि सुयणाणे ॥१॥आयरिओ आह-जे जाणति पासतित्ति एवं पढंति ते इम दीप अनुक्रम 13५ अंगप्रविष्ट एवं अंगबाह्य श्रुत (41) Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२१-२२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGE दीप कारणं पडुच्च, जम्हा सुवणाणी दीवसमुद्दाणं देवकुरुत्तरकुराणिं च भावाणं संठाणादीणि जाणतो पासतो इव आलिहि- बुद्धिगुणाः आवश्यक दिऊणं दरिसेति अतो जापति पासतित्ति एस आलावगो न विरुज्झइ ।। इयाणि इमस्स सुतणाणस्स इमो गहणोवाओ भण्णति चूणों आगमसस्थग्रहणं०॥ २१ ॥ आह- आगमग्गहणेण चेव सत्थग्गहणं गतं, किं पिहुग्गहण , उच्यते, गज्जति अत्था जेण श्रुतज्ञानेसो आगमो, ते य पंचविहेणवि पति, अतो सुयणाणवज्जाणं चउण्हं निवारणत्थं सत्थग्गहणं कीरति, अहवा सुयणाणस्स चेब लापज्जायभेदपदरिसणत्थं सत्थम्गहणं, तस्स आगमसत्थस्स जं गहणं भवति तं अट्टहिं बुद्धिगुणेहिं जुत्तस्स सीसस्स भवति. ण पुण| एतद्विरहियस्स, एवं तित्थयरेहिं दिट्ठति ।। आह- कस्सेसो आदेसो जहा एतं एवं', आयरिओ आह- ते पुचविसारया धीरा. भिराइगुणजुत्ता आयरिया एतेण पगारेण सुतणाणस्स लंभ तित्ति । ते अट्ठ बुद्धिगुणा इमे-- सुस्सूसति पाढिपुच्छति ॥२२॥ सुस्सूसति णाम सोतुमिच्छति, आयरियस्स विणयं पउंजति, विणओववेयस्त आयरिओ सबिसेस सुर्य उवदिसति, अतो सुस्मसा सुपणाणग्गणस्स उवग्गहे वट्टद, तहा पडिपुच्छाइणोऽवि सुयणाणस्स उवग्गहे चेव चट्टति । पडिपुच्छाणाम संकियस्स वीसरियस्स वा जा पुणो पुणो पुच्छणा, सुणेति णाम णिसामेति, गेण्हति अवधारयति, ईहति- मग्गति, सुत्तच्चपदं गसतित्ति बुत्तं, अपोहए णाम एवमेतं ग अनहा इति निच्छितं करोति, धारति परियडणुप्पेहाहिं, 1 ण णासति, करेति सुचारदेसे सम्ममायरतित्ति । ठी एवमेतं, मुयणाणं सम्मत, सम्मत्तं च दुविहमवि परोक्खं । इयाणि तिप्पगार पच्चक्खं मण्णइ, तस्थ पढम ताव ओहिणाणली भणति, तस्स य पयडिभेयपयरिसपत्थं इम गाहासु अनुक्रम | 'ओहि ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (42) Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [H] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ३७ ॥ भाष्यं [-] “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [२३-२८], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ['एकः शाक् वृचौ 'मू' तिमाथा 'सुत्तच्थो' गाथा च वर्चेते] संवाइयातो खलु० ।। २५ ।। तत्थ संखा गणणा तं संखं अतीयाओ २, (ओहारणे) खलुसद्दो, जहा निरुवियत्थो ओहिसदो मज्जायाए वट्टति, जओ मज्जायत्ति वा ओहित्ति वा मेरत्ति वा एगट्ठा, सा व मज्जाया इमा- जाणि रूविदव्वाणि तेसु जम्हा ओहिणाणस्स विसओ, ण पुण अमुत्तदव्वेसु धम्मत्थिकायादिसु माणसद्दो परिषट्टो, ओहिए गाणं २, सब्वसहो निरवसेसिए अत्थे वट्टति, पगडीओत्ति वा पज्जायत्ति वा भेदात्त वा एगट्ठा, एयाओ ये काई भवपच्चइयाओ काओ य खाओवसमियाओ, तत्थ भवपच्चइयाओ देवाणं णेरइयाण य, कहं ?, जहा पक्खीणं विज्जादिसयादिकारणविरहियाणवि भवपच्चरण चैव आगासगमणलद्धी भवति, एवं देवणेरइयाणं भवपच्चइया ओहिणाणलद्धी भवति, मणुस्सपंचेंदियतिरिक्ख जोणियाणं पुण खओवसमिया ।। एयाओ असमत्थो वित्थरतो वष्णेति काउं इमं गाहासुतं भण्णइ कत्तो मे वण्णेउं० || २६ | गाहापुब्बद्धं गतं । किं पुण १, संखेवेण जहां चोद्दसविहं सुयणाणं परुवियं तहा ओहिणाणमवि चौदसविहनिक्खेवं चैव भणिहामि, तप्पसंगेण य इड्डीपत्ते य भणिहामिचि, ते य ओहिस्स चोदसऽवि भेदा इड्डीपत्ताणुओगो य इमाहिं दोहिं गाहाहिं संगहिता, तेजहा- ओही खेत्त परिमाणे ० ||२७|| गाहा । णाण दंसणविभंगे ० ||२८|| गाहा, तत्थ ओहित्ति पढमा पडिवत्ती, बीया खेत्तपरिमाणं, तझ्या संठाणे, चउत्थी आणुगामिए, पंचमी अवट्ठिए, छडी चले, सत्तमा तिन्त्रमंदे, अट्ठमा पडिया ओप्पाया, णवमा णाणे, दसमा दंसणे, एक्कारसमा विभंगे, बारसमा देसे, तेरसमा खेत्ते चोदसमा गतीपत्ति । हड्डिपत्ताणुओगे य तप्पसंगेण पण्णरसमा पडिवत्ती भवति, पडिवती णाम भेदो पगारोत्ति वृत्तं । तत्थ पढमाए पडिवत्तीए परूवणत्थं इमं गादासुतं - (43) चतुर्दशविधोऽवधिः ॥ ३७ ॥ Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२९-३०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्रों णाम ठवणा०॥२९॥ गाहा, सत्तविहो ओहिस्स निक्खेवो भवति, तंजहा-णामोधी ठवणोही दब्बोहि खेतोधी कालोधी भवोधी अवधिक्षेत्रआवश्यकभावोदिति। तत्थ णामठवणाओ जहा मंगलं, दवोही दविहो, आगमतोणोआगमतोय, आगमओजाणए अणुवउत्ते,णो आगमओला चूर्णी जाणगसरीराई तहेव, केवलं बतिरिचो इमो जे दग्धे ओहिणा जाणति जेवा ओहिदिड्डे परूवेति जेसु वा दब्बेसु ठियस्स ओही उप्पज्जइ श्रुतज्ञाने ४ जेसु वा ठियल्लओ ओहिं परूवेति से तं दब्बोधी, खेसोधी णाम जीम खेत्तंमि ओगाढाण दव्वाणि जाणति जाणित्ता वा परूवेति: ॥३८॥ जमि वा काले ओही उप्पज्जइति जैमि वा परुबेति, भवोही णाम जेसु णरयादिसु मवेस ओही उप्पज्जति, उप्पनेण वा जावइयाणि भवाणि अप्पणो वा परस्स चा तीताणागताणि जाणति पासति परवेति वा जम्मि वा भवे ठियो ओहिं परूवेति, भावोधी णाम २, आगमतो गोआगमतो, आगमतो तहेव, गोआगमतो ओहिणाणस्स उदइयादिणो भावे जाणमाणस्स परूवेमाणस्स य भवति । M) अहबा ओहिणाणं चेव सामिण असंबद्धं भावोधी भण्णति, ओहित्ति दारं गतं । इदाणि खेचपरिमाण, तत्थ ओहिस्स रूबिदब्बेसु विसओ, ताणि य रूविदवाणि खेचावघाणित्तिकाऊण खेत्तस्स परिमाणं ट्रमण्णति, तं चेह खेतपरिमाणं तिविह- जहाअयं उक्कोसयं मज्झिमंति, जेसि च जीवाणं गुणपश्चाततो ओधी ते पडुच्च एस जहVणओ उपोसओ य ओही इयाणि भण्णति, तत्व पुचि ताव जहण्णखेत्तस्स परूवणा इमा, तंजहा जावतिया तिसमयाहारगस्स० ॥३०॥ गाहा, अस्थि इहं तिरियलोए सर्यभरमणो नाम सथ्ववहिरओ समुदो, तमि जो मच्छो लाजायणसाहस्सिओ सो मरिऊण णियए चव सरीरकबाले सुहुमपणगत्तेण उववज्जिउकामो पढमसमए पुग्वावरायत दीहं सेढि साह-C ३८॥ रिति, वितिए समए वित्थारं साहरति, वइए समए हेतृच्चत्तं साइरति, सा० चउत्थे समए अंगुलस्स असंखेज्जभागमेचीए ओगा-1 दीप अनुक्रम (44) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ३९ ॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [३१]. भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-1, [४०], मूलसूत्र - [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 . आगमसूत्र हपाए अप्पणी देहकवले सुहुमपणगजीवताए उनवओो, तस्स णं पढमवितियततियसमये आधारयस्स जावइए खेते सा सरीरोगाइणा एवइए से रूचिदन्याणि ओगाढाणि जहणेण भोहीनाणी जाणति पासति । जहण्णयं खेत्तपरिमाणयं गये । इदाणिं उक्कोसं भणति सब्बबहुअगणिजीवा० ॥ ३१ ॥ जया पंचसु भरहेसु पंचसु एवमयसु उत्तमक पत्ता मणुगा भवंति तदा सव्वबहुअगणिजीवा णायच्या, जेण तत्थ लोग बाहुल्याए पयणादीणिवि चैव बहूणि भवति, आह- कया पुण अतीव उत्तमकट्टपत्ता मनुया आसि ?, उच्यते, जया अजियसामी आसि तदा मिहुणधम्मभेदगुणेण चिरजीवियत्तणेण य बहुपुत्तणका मणूया जाया, अतो अजियसामिकाले उत्तमकट्टपत्ता मणुया आसित्ति, एत्थ सीसो आह ते सब्बे अग्गिजीवा बुद्धीए रासि काऊण एकेके आगासपदेसे एकेर्क अगणिजीवं ठेवेऊण रुपमसंठियं खितं कीरह, एवं ठविज्जंते सव्वदिसागं रुपगं पूरिता अलोए असंखेज्जाणि जोयणाणि सो रुयतो पविडो, एवतियं खेतं उकोसे आहिणाणस्स विसओ भवतित्ति ?, आयरिओ आह- अतिथोवं एयं, अवि यअवसिद्धतदोसो य एत्थ कहं १, जेण एकंनि आगासपदेस ण चैव जीवस्स अवगाहणा भवति, थियमा असंखेज्जेसु आगासपदेसेसु जीधो ओगाहतित्ति । एत्थ पुणोऽवि सीसो आह— जति एवं ततो ते अगणिजीवा समाए असंखेज्जपदेसिआए ओगाहणाए रुपओ कीरउ सो पुणेोऽवि य लोग पूरिता असंखेज्जाणि जोयणाणि अलोए पविठ्ठो एवइयं खेतं परमोही जाणइ पासह १, आयरिओ आह- जतिवि एत्थ अवसिद्धन्तो णत्थि तहावि अतत्थोवएसो भवति चैव तओ पुणोऽवि सीसो आह- तो खाई एगपदेसितं पतरं रइज्जति उडुअहदिसिवज्जं तं जहा पतरं लोग पूरिया असंखेज्जाणि जोयणाणि अलोए पविडं, एवतियं खेतं परमोही जाणइ पासह ?, आयरिओ भणइ एवमवि अतिथोनं, अवसिद्धतो य पुव्वप्यगारेणेव सीसो पुणो आह- तो ते अगणिजीवा सगाए २ (45) अवधेरुत्कृष्टं · क्षेत्र ॥ ३९ ॥ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३१], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वः प्रत सत्राक BREAKIST श्री असंखेज्जपदेसियाए ओगाहणाए पतरं कीरउ, तं च पतरं लोग पूरित्ता जाब पबिढ एवातियं जाव पासति ?, आयरिओ भणति-18 मध्यमाआवश्यकता एवं आतिथोवं, पुणो सीसो आह- तो खाइ एगादसि एगपदेसियाए सेढीए ते सव्वे अगणिजीवा एगमेगे आगासपदेसे एकेका चूर्णी अगणिजीव ठावतेहि बई कीरउ जाव सब्वे णिट्ठिया, सा य सई लोग बालेचा असंखेज्जाई अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खंडाई | क्षेत्रादयः श्रुतज्ञान पविट्ठा, ततो बुद्धीए उडअहतिरियासु सव्वासु दिसासु भमाडिया, एवतियं जाच पासति !, भण्णति-तहावि अतिथोवं एयं, अव॥४०॥ सिद्धंतो य तहेव, पुणोऽवि आह-तो ते सव्वेऽवि अगणिजीवा सगाए असंखेज्जपएसिवाए ओगाहणाए एगदिसि मई कीरउ जाव सत्वेवि ते अगणिजीवा णिहिता, सा य सूई लोग बोलेचा असंखेज्जाई अलोए लोयप्पमाणमेचाई खंडाई पबिट्ठा, ततो उङ्कअहतिरियासु सन्चासु दिसासु भमाडिया, एवतितं खेत्तं परमोही जाणति पासति ?, आयरिओ आह- आम, एवतियं खेत्तं जाणति | पासइ । सो य परमोही अंतोमुहुत्तं भवति, ततो परं केवलनाणं समुप्पज्जति, उक्कोसं ओहिखेत्त परिमाणं गतं । एतेसि जहण्णुकोसाणं जं मझ तं मझिम भणित । तहाचि सीसहियट्ठाए विभाग दारसेति____ अंगुलमावलियाणः ||३२|| जो ओहिनाणी अंगुलस्स असंखेज्जभागमेत्तं रूविदव्याबई खेत्तस्स वित्थारं जाणति पासति दव्यतो जे तत्थ रूविदब्बा ते जाणति पासति, खेचं पुण अरूवि ण जाणति ण पासति, सो कालओ आवलिआए असंखेज्जइभागे जावइया समया एवइयं कालं तीयं च अणागयं च जाणति पासति, भावतो जे तेसिं अंगुलस्स असंखेज्जइभागाबाट्ठियाणं दवाणं | कालगणीलगाइणो पज्जाया ते जाणति पासति १। जो अंगुलस्स संखेज्जभागमे रूविदव्वावबर्द्ध खेत्तस्स वित्थारं जाणइ पासइ सो दव्यओ अंगुलस्स संखेज्जतिभागमेत्ते जावतिया रूविदव्या ते जाणइ पासइ, कालओ आपलियाएवि संखेज्जइभागे जावातिया ४ ॥४०॥ ॐॐॐ दीप अनुक्रम YON NEPAL (46) Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ४१ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र निर्युक्ति: [३२-३५], भाष्यं [-] [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 समया एवतियं कालं तीयं च अणागयं च जाणइ पास, भावतो तेर्सि अंगुलस्स संखेज्जतिभागावडियाणं दव्वाणं कालगणीलगाइणो पज्जाते जाणति पासति २ । एवं जो अंगुलं पासति वित्वरतो सो आवलियस्संतो आणइ पासति, ३। जो अंगुलपुडुतं सो आवालयं पुण्णं जाणति पासति दव्वाणि, भावतो य तहेव । तत्थ पुडुत्तसदो दोसु आरद्धो जाव णव लग्मतित्ति ४। मज्झिमओहिखेत्तपरिमाणे चैव वट्टमाणे इमोवि मज्झिमओ चेव ओही दट्टब्वो-तंजहा हम मुद्दत्तंतो० ॥ ३३ ॥ जो हत्थवित्थरं खेतं पासति सो कालतो तो मुहुत्तं तहेव जाणति पासति, दव्यभावावि सम्वत्थ तहेव भाणियव्वा५ जो पुण गाउयं सो दिवस अंतरं ६ । जो जोयणं जा०पा० सो दिवसपुहुतं ७, जो पणवीसं जोयणाणि सो पक्खतो ८। किं च एयंमि चैव अहिगारे इमं गाहासुतं तेजहा- भरहंमि अद्धमासो० ॥ ३४ ॥ जो भरहप्पमाणमेतं रूविदव्वाववद्धं खेत्तस्स वित्थारं जाणति पासति तस्सवि दव्वभावा जहा हत्यस्स, कालपरिमाणं पुण से संपुष्णं अद्धमासं तीतं च अणागयं च कालं जाणति पासति ९ । एवं जंबुद्दीवे साहितो मासो१०, माणुसखेचे वरिसं११, जो इतो जाव रुयगवरो दीवो एयप्पमाणमित्तं जाच पासति कालपरिमाणं से वासपुहुत्तं जाव पासह, १२ अणे वाससहस्सं भण्णंति । एवं एतेण पगारेण खेत्तदव्यकालभावाणं बुट्टीए भष्णमाणीए गंथवामुल्लया भवतिचिकाऊ इमं गाहासुसमागतं - संखेज्जमि उ काले० ॥ ३५ ॥ एत्थ सीसो आह- भगवं ! जो ताक असंखेज्जं कालं तीयं च अणामयं च जाणति पासति सो असंखेज्जे दीवसमुद्दे पासछ, जे पुण संखेज्जा दीवसमुद्दा ते तस्स असंखेन्नकालदसियों ण जुजंति, आयरियो आह-जो (47) मध्यमाबधेः क्षेत्रादयः ॥ ४१ ॥ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ॥ ४२ ॥ ** 25% %% "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [ ३२-३५), - भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-1, आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - असंखेज्जकालदंसी संखेज्जजोयणवित्थडे दविसमुद्दे जाणति पासति सो कोई णियमा असंखेज्जे दीवसमुद्दे जाणति पासति, जो पुण असंखेज्जकालदंसी असंखेज्जजोयणावत्थडे दविसमुद्दे जाणति पासति सो कोती संखेज्जे दीवसमुद्दे जाणइ पासइ, कई ?, जहा| सयंवरमणे ठियस्त कस्सड़ तिरियस्स असंखेज्जकालदिसइओ ओही उप्पण्णो, ततो सो सर्वश्रमणाइणो संखेज्जे दीवसमुद्दे जागति पासति, तम्हा एतेण कारणेण काले असंखेज्जे दीवसमुद्दा संखेज्जा असंखेज्जा वा मतियव्यति । इयाणिं गुणपच्चइयस्स ओहि णाणस्स उप्पण्णस्स सुभपरिणामोदएण दव्वखेत्तकालभावाणं जहा हड्डी भवति तहा भण्णति तजहा काले चउण्ड बुड्डी० ।। ३६ ।। काले वद्रुमाणे दव्यखेत्तकालभावा चउरोवि णियमा वति, खेते पुण वद्रुमाणे दन्यभावा नियमा बति, कालो बति वाण या वढति, बुडाए य. दव्यपज्जवाणं खप्तकाला बतित्ति, एत्थ पुण केई एवं चोएऊण एवं परिहरतिजहा किल कोइ सीसो आह-भगवं ! कहं खिचडीए कालो बहुति वा न वा वढति ?, दव्वभावाणं च बुद्धीए कई खेतकाला वङ्कंति वाण वा व ंतित्ति ?, आयरिओ आह-जया कालो दव्वाववद्धातो सेताओ अण्णो चैव संभाविज्जह तदा तंमि खेत्ते वद्रुमाणे कालो ण यद्भुति, जया पुण तस्स चैव दव्वाववद्धस्स खेतस्स परिणामो कालो संभाविजह तथा खेत्ते बढमाणे कालो णियमा बढति, णिच्छयनयस्स पुण ण चैव दव्याचबद्धातो खेत्तातो कालो अण्णो भवति, जच्चेव सा तस्स दव्वाववद्धस्स खेत्तस्स परिणती सो कालो भण्णति, एत्थ दितो रवी, जहा तस्स रविणो गहपरिणयस्स जं पुण्वदिसादरिसणं सो पुव्यण्डकालो भण्णति, तस्सेव गतिपरिण यस्स जं गहमज्ये दरिसणं सो मज्झण्हकालो भण्णति, तस्सेव गतिपरिणयस्स जं पच्चत्थिमेण गमणं सो अवरण्डकालो भन्न, अतो निच्छयनयस्स दव्धपरिणामो चैव कालो भन्नति, दव्यपज्जवाणं च बुड्ढीए खेतमवि दव्यावद्धं वित्थारं पच बद्धति चेब, (48) कालादिवृध्यवृद्धी ॥ ४२ ॥ Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ४३ ॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [३६] भाष्यं [-] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - जमि खेत्ते अवगाढा दव्वपज्जाया तं अरूवित्तणेण आगांसं न बहुति, कालोऽवि जया दवपज्जवाणं अण्णो चैव संभाविज्जति तया तेसु दब्वपज्जवसु बर्द्धतेसु सो कालो ण बढइ, जया पुण दव्यपज्जवाणं चैव परिणामो कालो संभाविज्जति तदा तेसिं बुडीए कालोऽवि वति चेव, अतो दब्वपज्जवाणं बुट्टीए खेतकाला दोऽवि महयत्ति । एत्थ सीसो आह-भगवं ! तेसिं पुण दव्वखेचकालभावाणं किं सव्यमुहुमति ?, आयरिओ आह-सट्टा पहुच्च दव्वतो सव्वद्व्वाणं परमाणुपोग्गलो सुमो, खेचतो सड्डाणं पड़च्च एगो आगासपदेसो सुडुमो, कालतो सट्टाणं पडुच्च समओ सुमो, भावतो सट्टा पडुच्च एगगुणकालतो सुमो, परद्वाणं पडुच्च दब्बातो भावो सुहुमतरागो, कई ?, जेण परमाणुपोग्गलो अतगुणकालओse अस्थि, अतो दब्वेहिन्तो भावा सुदुमयरागो, मुत्तदन्वभावेहिंतो अमुत्तभावत्तणेण कालखेत्ता सुदुमा, कालतो य खेत्तं सुहूमयरागंति, कहं १, सुमो य होति कालो० ॥ ३७ ॥ कालो ताव अतीव सुमो दडब्बों, कहं १, से जहा जागए तुष्णागदारए तरुणे बलवं उणसिप्पोवगयादिगुणजुते पडसाडियं वा पसादियं वा गहाय सयराई हत्थमेतं ओसारेज्जा, एत्थ सीसो आह-भगवं ! जेण कालेन तेणं तुष्णागदारएण तीसे पडसाडियाए वा पट्टसाडियाए वा हत्थमेचे उस्तारिस्ट से समए भवति १, आयरिओ आहण भवति, कहूं ?, जम्हा संखेज्जाणं तंतूर्ण समागमेण से पत्थे णिष्फण्णे, उवरिलेय तंतुंमि अच्छिष्णे हिडिले तंतू ण छिज्जति, अभि काले उबरिले तंतू छिज्जति, अण्णमि हेडिले, अतो से समए ण भवति, एत्थ पुणोऽवि सीसो आह-भगव । जेणं कालेर्ण तेण तुष्णाकदारएणं तत्थ वत्थस्स उपारछे तंतू छिष्णे से समए १, आयरिओ आहण भवति, कई ?, जम्हा संखेज्जाणं (49) द्रव्यादिषु सूक्ष्मताक्रमः , | ॥ ४३ ॥ Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३७], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका श्री 18 पम्हाणं समागमेण स तंतू णिप्फज्जति, उपरिल्ले य पम्हामि अच्छिण्णमि हेडिल्ले पम्हे ण छिज्जति, अण्णमि काले उवरिल्ले पम्हे 81 वगेणाआवश्यकता छिज्जति, अण्णमि काले होहल्ले पम्हे छिज्जति, अतो सेवि समए न भवति, एतेणं सुहुमतराए समए पण्णते समणाउसो', एवंदा चूणौँ ताब कालो सुहुमो भवति, एयाओ य कालाओ खत्तं सुहुमतरागं भवति, कह , जेण अंगुलप्पमाणमेते आगासे जाबतिया आगास-12 श्रुतशान पदेसा ते बुद्धीए समए समए एगमेगं आगासपदेस गहाय अबहीरमाणा अबहीरमाणा असंखज्जाहिं उस्सप्पिणीहिं अबहिया ॥४४॥ भवंति, अतो कालतो खेत्तं मुहुमतरार्ग भवति । इवाणिं मज्झिमखेत्ताहिगारे चेव बट्टमाणे उप्पज्जमाणओ ओही जाणि दग्वाणि ते पढम पासति जेसु वा दल्वेमु परिवडति ताणि भण्णति, तंजहा तेयाभासादब्वाणमंतरा॥३८॥ एसा गाथा महत्था दूरहिगमा य अतो आयरितो सीसहियट्टयाए (ओरालविउव्व०॥३९॥ चउविधाओ वग्गणाओ दरिसेति, ताहि य पदरिसियाहिं एतस्स गाहासुत्स्स अत्यो सुहे घेपिहिति, कहं , तत्थ दिट्टता कुइयण्णो, जहा कुइयण्णगाहावइस्स अणेगा गोउलाण वग्गा, तेसिं पुण वग्गाण एकेको बग्गो पिहप्पिर रक्खगाण दिण्णो, ततो तेसि एगभूमीए चरंताण अण्णवग्गमिलणेणं अतिबहुलत्तणेण य गोणीणं ते गोबाला असंजाणता मम एसा ण एसा तुम्भंति परोप्परओ भंडणं कुर्वति, तेसिं च मंडणपमाएण ताओ गोणीओ सीहवग्याईहिं खजति, दुग्गविसमेसु य पडियाओ भज्जति मरंति य, ततो तेण कुइयण्णेण एतं दोस णाऊण तेसिं गोवालाणं असंमोहणिमित्तं एमो कालियाणं वग्गो कओ, एगो नीलियाणं, है। एगो लोहियाण, एगो मुकिलियाणं, एगो सबलाणं वग्गो कतो, एवं सिंगाकिइबिसेसेवि काउं पिहप्पिहं समप्पिया, पच्छा ते गोवा कण समुच्छ(झ)ति ण वा कलहिंति, विसरिसाओ य पए पागडा जहा हंसमझे काओ, एवं आवरिओ सिस्साणुग्गहानीमस इमाओ दीप अनुक्रम (50) Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत 454 दीप IM चउब्विहाओ वग्गणाओ देसेति, तंजहा- दबतो खेतओ कालतो भावतो, तत्थ दब्बती इमातो वग्गणातो भवति, तंजहा-13 पर्गणाआवश्यकएमा परमाणुपोग्गलाण दब्बवग्गणा, एगा दुपदेसियाण, एवं जाव दसपएसियाणं, एगा संखेज्जपएसआणं खंधाणं वग्गणा, एगा प्ररूपणा चूणों असंखेज्जपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एगा अणंतपएसियाणं खंधाणं वग्गणा, एयाओ दव्यवग्गणाओ । इयाणि खत्तवग्गणाओ, श्रुतज्ञाने तंजहा- एगा एगपएसोगाढाणं पोग्गलाण वग्गणा, एवं जाव एगा दसपएसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एगा संखेज्जपएसो गाढाणं वग्गणा, एगा असंखेज्जपदेसोगाढाणं, एयाओ खेत्तवग्गणाओ । इयाणि कालवग्गणाओ, तंजहा-एगा एगसमयाट्ठि॥४५॥ तीयाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाय एगा असंखेज्जसमयठितीताणं पोग्गलाणं वग्गणा, एयाओ कालवग्गणाओ। इयाणि बावीसभर दातो भाववग्गणातो भण्णंति, तंजहा-एगा एगगुणकालाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं जाव एगा अणंतगुणकालाणं पोग्गलाणं वग्गणा, एवं नीललोहियहालिद्दसोक्किलावि वण्णा भाणियब्वा, एवं दो गंधा पंच रसा अट्ट फासा य भाणियब्वा, जाव एगा अणंतगुणलुक्खाणं पोग्गलाण वग्गणा, एगागस्यलहुयाणे पोग्गलाण वग्गणा, एगा अगुरुलहुयाणं, एवमेयाओ वग्गणाओ, गंधरसफासगरुयलहुयअगरुयलहुयसहियाओ बावीस वग्गणाओ भवंतित्ति । एयाओ कालभावाणं वग्गणाओ पसंगेण भणियाओ। एत्थ पुण दयवग्गणासु खेत्तवग्गणासु य पाहणेण अधिगारो। तासु य दव्ववग्गणासु खेत्तवग्गणासु य पंचण्हं सरीराणं भासाए आणपाणुस्स मणस्स य जाओ अग्गहणपाउग्गाओ वग्गणाओ जाओ य गहणपाओग्गाओ ताओ भण्णंति, तंजहा-एगा परमाणुपोग्गलाणं वग्गणा जाप अर्णतपदसियाणं खंधाणं &॥४५॥ | वग्गणा, तत्थ जहिं पढमो अणतसद्दो णिफण्णो तमणंतरं एकुत्तरियाए परिवुड्डीए जाहे अर्णते बारे गुणियं भवति ताहे एगा ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाओग्गा दव्यबग्गणा भवति, कह ?, जो ओरालियसरीरं एत्तोऽवि थूलतरणहितो खंहितो निष्फण्यां, अनुक्रम -१% १ (51) Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ४६ ॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [ ३८-३९], - भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-1, आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - ते य अनंताणंतपदेसिया खंधा तं ओरालियसरीरं पच्च थोवतरएहिं परमाणूहिं णिष्फण्णति, अतो ते अनंताणंतपदेसिया खंधा ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाउरगा दव्ववग्गणा भवति, जाहे य ते अनंताणंतपदेसिया खंधा एक्कुतरियाए परिबुड्डीए अणते वारे गुणिया ताहे ओरालियसरीरस्स एगा ग्रहणपाउग्गा दव्ववम्गणा भवति, किं कारणं १, जेण तावरूविमेत्तर्हि संहि ओरा लियसरीरं णिष्फज्जति, तेहितोवि ओरालियसरीरस्स गणपाउग्गेहिंतो संघेहिंतो एक्कुचरियाए बड्डीए अणताओ दव्ववरगजाओ बोलेउं ताहे एगा ओरालिय सरीरस्स अग्गहणपाउग्गा दव्बवग्गणा भवति, किं कारणं, जम्हा ओरालियसरीरगहणपाउरोहिं खंहिंतो बहुतरएहिं परमाणू गिप्फण्णा, अओ ओरालियसरीरस्स एगा अग्गहणपाउरगा दव्बवग्गणा भवति । ततोऽवि एक्कुचरियातो अनंता ओरालियसरीरस्स अग्गहणपाउरगातो दव्ववग्गणातो गंता ताहे एगा वेउध्वियसरीरस्स अतिसुडुमत्तणेण संघाणं एगा अग्गहणपाउरगा दव्ववरगणा भवति, ताओ बैउब्वियसरीरस्स अग्गहणपाउरगाओ दव्ववग्गणाओ एक्कुत्तरियाओ अनंताओ गंता ताहे वेउब्बिगसरीरस्स एगा ग्रहणपाओग्गा दव्यवग्गणा भवति, ततोऽवि वेउन्वियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा एक्कुचरियाओ अनंताओ गंता ताहे वेउब्वियसरीरस्स अतिधूरतणेण खंधाणं एमा अग्गहणपाउग्गा दव्ववग्गणा भवति, उच्चयसरीरं च ओरालियसरीरातो जतिवि सुदुमयरागं दीसति तहाचि तं बहुतरएहिं परमाणुसंघायनिप्फण्णेहिं खंधहिं निष्फज्जति, घणणिचियत्तणेण य ताओ ओरालियरीराओ सिढिलखंधनिष्फष्णातो, तं चिय वेडब्बियसरीरं सुहुमयरागं भवति । एत्थ दितो बहरं, जहा वह सकातो पमाणातो अण्णण त दुगुणपभाणमेत्तेण सिद्धिलखंधणिप्फण्णेण फुट्टपत्थरादिणा दव्येण सह तोलिज्जनाणं घणणिचियत्तणेण संघाणं उदरपि दीसमाणं बहुतरायं तुलति, एवं वेउच्चियसरीरं मुहुमतरागंपि दीसमाणं ओरालिय (52) वर्गणाप्ररूपणा ।। ४६ ।। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत HEIGA RECECACACK दीप औ सरीरपाउग्गखंधेहितो बहुतरएहिं परमाणुसंघायनिष्फण्योहिं खधेहिं निफज्जातित्ति । ताओ य उब्वियसरीरस्स अग्गहणपाउग्गाओ द्रव्यक्षेत्रआवश्यक एकुत्तरियाओ अणंताओ दव्ववग्गणाओ गंता ताहे एगा आहारकसरीरस्स अतिसुहुमत्तणेणं खंधाणं अग्गहणपाउग्गा दव्यवग्गणा भवति, कालमावचूर्णी नाओऽवि आहारगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गाउ एकुत्तरियाओ अणंताओ दव्यवग्गणाओ गंता ताहे एगा आहारगसरीरस्स गहण पणाः श्रुतशाने पाउग्गा दववग्गणा भवति, ततोऽपि आहारगसरीरस्स गहणपाउग्गातो एकुत्तरियाओ अणंताओ दरवग्गणातो गंता ताहे अति धूरत्तर्णणं संधाणं एगा आहारगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा दबवग्गणा भवति, एवं एतेण कमेण आहारगाओ अणंतरं तेयकस्स | ॥४७॥ अग्गहणं गहणं पुणो य अग्गहणं भाणियब्वं, तेयकाणंतरं एतेण चेव कर्मण भासाएघि तिष्णि पगारा भाणियच्या, आणपाणुस्सवि तिणि पगारा भाणियब्वा, मणस्साधि तिणि पगारा भाणियब्धा, कम्मरसाद तिष्णि पगारा माणअम्बा, जाव कम्मकस्स उपरिल्ला अग्गहणपाउग्मा दब्यवग्गणा । ताओ एकुत्तरियातो अयंतातो दय्ववग्गणाओ गंता ताहे अर्णताओ धुववग्गणाओ भवंति, ताओवि एकुत्तरियाओ अणंताओ धुवाओ गंता ताहे अर्णताओ अदुववग्गणाओ भवंति, ताओऽवि एगुत्तरियाओ अणंताओ गंता वाहे अणंताओ सुनंतरवग्गणाओ मवंति, तातोपि एकुत्तरियातो अणंताओं गंवा ताहे अणतातो असुण्णतरवग्गणाता भपात, चचार धुवर्णतराई पत्तारि सरीरवग्गणातो गंता एत्थ मोसयखधो भवतित्ति, पच्छा आचित्तमहाखंधो भवति, एवमेयाओ दबवग्गणाओ भणियातो। इयाणि खेत्तं पट्टच्च तेसिं चेव दबाणं ओगाहणवग्गणाओ भणीत, तंजहा-एगा एगपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा, 15ा एवं जाव एगा दसपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणा संखेज्जाओ संखेज्जपदसोगाढाण पोग्गलाणं वग्गणाआ असखज्जाआTI ॥४७॥ हि असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं वग्गणाओ, तत्थ असंखेज्जपदेसोगाढाणं पोग्गलाणं एकुलरियाए ओगाहणपरिवड्डीए अतिसु अनुक्रम (53) Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [३८-३९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEISS a ॥४८॥ ४॥ श्री हुमत्तणेण खंधाणं अग्गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, ताओवि एक्कुत्तरियाओ कम्मगसररिस्स असंखेज्जा ओगाहणवग्गणाओ गंता द्रव्यक्षेत्रआवश्यक एगा कम्मगसरीरस्स गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, गहणपाउग्गावि एकुत्तरियाए असंखेज्जाओगाहणवग्गणाओ गंता अति कालभावचूर्णी यगणाः थूरतणेण खंधाणं एगा कम्मगसरीरस्स अग्गहणपाउग्गा ओगाहणवग्गणा, एवं एतेण कमेण मणस्सधि अग्गहणं गहणं पृणोवि श्रुतज्ञाने द्रा 18| अग्गहणमुहेण तिण्णि पगारा भाणियव्वा, एवं आणापाणुस्सवि तिण्णि पगारा भाणियब्बा, भासायवि तिनि पगारा भाणियब्वा, लातेयगस्सवि तिन्नि पगारा भाणियब्वा, आहारगस्सवि तिण्णिा पगारा भाणियच्या, वेउब्वियस्सवि विणि पगारा भाणियव्वा, ओरालियस्सवि तिण्णि पगारा भाणियब्वा, एवमेयातो खेत्तवग्गणाओ भाणियब्वाओ। कालवग्गणा एगसमयावतिकादी सब्बा गहणं एंति, भावेऽपि सम्बा वग्गणाओ गहणं ऐति, गुरुकलाहुका अगुरुकलहुका य, एयाओ कस्सपि एंति कस्सइ णिति ।। | इयाणिं तीए गाहाए अत्थो समोतारिज्जति, तंजहा जाणि तेयकसरीरस्स अतिधरतणेण अग्गहणपाउग्गानि दब्वाणि भासाए य जाणि अतिमुहुमत्तणणं अग्गहणपाउग्गाणि दब्याणि एत्थ अंतराल भवति, पढवतो लहति णाम ओहिण्णाणं पडिबज्जइत्ति बुत्तं भवति, पट्ठवतो पाम तप्पढमयाए एतानि दव्याणि पासित्तुमारभतित्ति वुत्तं भवति, गुरुलहुअगुरुलहुर्य णाम जो तेयकसरीरस्स भासाए य अंतरदब्बा तेसि केइ गुरुलहुया । केइ अगुरुलहुया, ते गुरुलहुगा अगुरुलहुगा य ओहिनाणी पढमं पासिऊण जति पसत्थेहिं अज्झवसाणेहि चट्टात ततो विमुद्धपरिणामगो ओहिणा परिवड्डमाणेण उवार जाव अचित्तमहाखंधो ताव पासति, हेट्ठावि जाल परमाणू पोग्गला ताव पासति, RE॥४८॥ अप्पसत्थेहिं पुण अज्झवसाणेहिं वद्यमाणो आविमुद्धपरिणामको ओहिणा हायमाणेणं एवं चेव उवरि हिट्ठाओ, तं ओहिणाणं तेसुश दीप अनुक्रम (54) Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता ......... आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ॥ ४९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्ति: [३९], भाष्यं [-] [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 2-x-x86-xx चैव दवेसु गिट्ठाइ, गिट्ठाइ णाम ताणि चैव दव्वाणि पासिण परिवडतिसिवृत्तं भवति । इदाणिं जमेतं गाहासुतं सहस्थं हेडा वणितं एगस्स दम्बवग्गणाणं खेत्तवग्गणाण य. दोन्हवि जाओ ग्रहणपाओग्गाओ अग्गहणपाओगाओ याओ तासिं कमपरिवार्डि मणिहामि, तत्थ दम्बवग्गणाणं अणुक्कमपरिवाडी इमेण गाहापुव्वद्वेगं गहिता, तंज(ओलविब्वाहारतेअभासाणपाणमणकम्मे । अह दव्ववग्गजाणं, कमो विवज्जासओ स्वित्ते ॥ ३९ ॥ कम्मोवरिं धुवेरसुण्णेयरवग्गणा अणताओ । चउधुवणंतरतणुवग्गणा य मीसो तहाऽचित्तो ॥ ४० ॥ ओरालियचेडव्वियआहारगतेअ गुरुलह दव्वा । कम्मगमणभासाई, एआह अगुरुयलहुआई ॥ ४१ ॥ (इतिवृत्तौ) आहारतेय भासामणकम्मकदव्बवग्गणासु कमो ॥ ४० ॥ पूर्वाधं ॥ तत्थ आहारकरगहणेण एगग्राहणे गहणं तज्जाइयाणं सव्वेसि भवतिचिकाऊण वेडब्बियओरालियावि गहिया चैव, तेणं पुल्वं तिविहाओ ओरालियस्स सरीरस्स वग्गणाओ भणिआओ, तंजहा- अग्गहणवरगया ग्रहणवम्गणा पुणोऽचि अग्गहणवग्गणा चैव, एवं वेउब्वियस्सवि तिष्णि चैव पगारा भाणियव्वा, आहारकस्सवि तिष्णि चैव पगारा भणिता, तेयकस्स भासाए य दोण्हवि तिष्णि पगारा भणिया, युग महणेण महणं तज्जायाणं सव्येसिं भवतिचिकाऊण भासाम्हणेण आणापाणुस्सवि ग्रहणं कर्त चैव भवति, तस्सवि आणापाणुस तिष्णि पगारा भणिता, मणकम्मकाणवि दोहरि तिष्णि चैव पगारा भणिता । दब्ववग्गणासु कमो भणितो ।। इयाणि खेचणासु कमो इमेण ग्राहायच्छद्वेण भण्ण, तंजहा (55) अवधिअस्थापननिष्ठास्थाने ॥ ४९ ॥ Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४०-४२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक द्रव्याणि श्री कम्मकमणभासाए य तेय आहारए खेत्ते ॥ ४०॥ पश्चाध ॥ खेत पहुच्च पुवं कम्पकसरीरस्स विविधा दिल्यादिआवश्यकता २१+ वग्गणा भणिता, तंजहा- अग्गहणवग्गणा गहणवग्गणा पुणो य अग्गहणवग्गणत्ति, एवं मणस्सवि तिणिचि पगारा भाणिया, चूणों एक्कग्गहणेण तज्जातीताणं गहणंतिकाऊण आणपाणुस्सवि मासाएवि तिण्णि चेव पगारा भणिता, तेयस्सवि तिणि पगारा गुरुलध्वश्रुतज्ञाने भणिता, आहारकस्सवि तिणि पगारा, एगग्गहणे तज्जातीयाणं गहणंतिकाऊण ओरालियवेउबियाणवि तिष्णि चेव पगारा द भणितत्ति ।। इयाणि एतसिं चेव पयाणं जत्थ गरुयलहुयाणि दब्वाणि भवंति जत्थ वा अगुरुयलहुयदब्वाणि भवति ताणि इमाए | गाहाए भणंति, जहा5 तेआहारगविकुव्वणोराल०॥४१॥ तेयकसरीरं तेयगसरीरस्स अग्गहणपाओग्गाओ दववग्गणाओ आहारकसरीरं आहारकसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दव्यवग्गणाओ बेउब्वियसरीरं घेउब्वियसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दबवग्गणाओ ओरालियसरीर ओरालियसरीरस्स य अग्गहणपाओग्गाओ दबवग्गणाओ, एताणि गरुयलहुएसु दब्वेसु निष्फजति, भासा भासाए य अग्गबणपाउग्गाणि दव्वाणि आणपाणू आणपाणुस्स य अग्ग० मणो मणस्स य अग्गहणपाउग्गाणि दख्वाणि कम्मर्ग कम्मकस्स य अग्गहणपाउम्गाणि दव्याणि, एताणि अगुरुयलहुएसु निष्फज्जति । जाणि पुण ताणि तेयकसरीरस्स अतिथूरतणेण 2 हा अग्गहणपाउग्गाणि दब्बाणि भासाए व अतिसुहुमत्तणेण अग्गहणपाउम्गाणि व्याणि ताणि अंतराले वढमाणाणि दव्वाणि 8 गुरुलहुयाण अगुरुलहुयाणि य भण्णातिचि ।। मज्झिमओहिखेत्रपरिमाणाहिकारे चेव बढ्नमाणे इम गाहामुत्तमागतं, तंजहा- ॥५०॥ संखेज्ज मणोदब्वे ॥ ४२ ॥ तत्थ मणदब्वाणि य भवंति मणो य भवति, मणदग्वाणि पाम जाणि मणपाउग्गाणि दीप अनुक्रम KAKAR (56) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णों श्रुतज्ञाने ॥ ५१ ॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [VR-VV), भाष्यं [-] ..... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 - - दव्वाणि गहियाणि न ताव मणेति ताणि मणदव्वाणिं मण्णंति, जाहे य मनिताणि भवंति ताहे मणो भष्णति, जो ओहिणाणी मणदव्वाणि पासति सो खेतओ लोगस्स रूवावचद्धं संखेज्जतिभागं पासति, कालतो पुण पलिओयमस्स संखेज्जे भागे तीतं च अणागयं च जाणति पासति, जो कम्मगदव्याणि पासइ सो खित्तओ लोगस्स रूवावबद्धे संखेज्जभागे जाणति पासति, कालओ पुण 'पलिओ मस्स संखेज्जतिभागे तीयं स अणामयं च कालं जाणति पासति, मावओ जे तेसिं दव्वाणं कालगणीलगादिणो भावा ते जाणइ पासइ, जो पुण ओहिणाणी खेचतो रूवावबद्धं लोग ता जाणति पासति सो कालतो तत्तो थोवृष्णयं पलिओदमं तीत अणागयं च कालं आणति पासति ।। किंच-मज्झिमओहिक्खेत्तपरिमाणे चेव वट्टमाणे जोऽवि इयाणि ओही भणिहि सोवि मज्झिमओ चैव दब्बो | तंजहा तेयाकम्मसरीरे० || ४३ ।। जो ओहिनाणी तेयगसरीरं कम्मगसरीरं तेयग (कम्मग) सरीरगहणपाउग्गाणि दव्वाणि भासं भासा गणपाउमाणि य दव्वाणि दव्वतो जाणति पासति सो खेचतो रूवाववद्धे असंखेज्जे दांवसमुद्दे ओहिणा जाणति पासति, कालतो पुण असंखेज्जं कालं तीतं च अणामयं च ओहिणा जाणति पासति, भावतो णं जे तेसिं दव्वाणं कालगणीलगातिणो भावा जाणति पासतिति । इयाणि जं तं उक्कोसयं खेरापरिमाणं हे वणितं तं पब्च तेयगसरीरं च इमं गाहासुत्तमागतं - एगपदे सोगा || ४४ ॥ जो परमोहिणाणजुत्तो जीवो भवति सो एगपदेसोगाढं कम्मकसरीरं लभति, लभति णाम जाणातिति वृत्तं भवति, ण केवलं परमोही एकपदेसोगाढं कम्मकसरीरं चैव जाणति, किं तु परमाणु वा परमाणुवतिरितं वा सं जाणेज्जा, जाणि य अगुरुलहुयदन्याणि ताणिवि सो परमोदी एगपदेसोगाढाणि जाणिज्जा, अण्णे मणंति- 'युगपदेसी' गाहा, जो (57) मनक्सकार्मणानामवधिः ॥ ५१ ॥ Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४४-४६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 परमावधेः द्रव्यादयः प्रत सत्राका श्री 8 पुण परमोही भवति सो एगषदेसोगाट दवं पासति, तं पुण परमाणु वा वतिरित्त वा, कम्मगसरीरं च अगुरुयलहुयं च दव्वं आवश्यकद्रापासइ, जो य ओहिणाणी तेयकसरीरं जाणति पासति सो अप्पणो वा परस्स वा तीताणागताणं भावाणं पुहुतं जाणति, पुडुत्तसद्दो चूणा पुन्वभणितो चेव दगुब्बोधि ॥ इदाणि दव्यखेतकालभावा पडुच्च जो परमोहिस्स विसओ सो भण्णतिश्रुतक्षाना परमोहि असंखेज्जा०॥४५॥ जो परमोही भवति सो लोग जाणति चेव, अलोगेऽवि से असंखज्जेसु लोगप्पमाणमेचेसु ॥५॥ीखंडेसु विसओ भवति, कालतो पुण असंखज्जाओ उस्सप्पिणिओसप्पिणीओ तीयं च अणागयं च जाणति पासति, दव्यओ सन्य विदब्वाई जाणइ पासइ, भावओऽवि तेसिं दवाणं कालगणीलगाइणो भावा जाणति पासति । एत्थ सीसो आह-भगवं! जाणि ४ वाणि खेत्तओ अलोए लोयप्पमाणमेत्ताई खंडाइं जाणइ पासइ ताणि कतराए उवमाए अम्हेहिं गेण्डियब्वाइंति , आयरिओ ₹ आह-सेत्तस्स उवमा अगणिजीवा भवंति, सा य तेहिं अगणिजीचेहिं जहा भवति तहा हेतु पण्णितत्ति ।। इदाणिं तिरियाण सरीरगाई। का पडुच्च जस्स वा जावतिओ ओहिविसओ सो इमेण माहापबद्धेण भण्णति, तंजहा आहारतेयलंभो उक्कोसेणं तिरिक्वजोणीसु ॥ ४६॥ पूर्वाध ॥ तिरिक्खजोणिया जहण्णेण ओहिणा ओरालियं सरीरं जाणिज्जा, उकोसेण ओरालियवेउम्क्यिआहारमतेयगसरीरणि जाणदि पासंति य, कम्ममसरीरं पुण ण चेव जाणति ण वा पासंविचि ॥ एस तिरिक्खए मणुए य पहच्च गुणपच्चइओ एवंविहो ओही बण्णिओ । इदाणि परइयाण देवाण य भवपच्चलीइओ ओही भणिहामि, तत्थ पुचि नेरइयाण ओहेण जहण्णर्य उक्कोसयं च इमेण गाहापच्छद्धेण भणीहामि, तंजहा गाउय जहण्ण ओही णिरएमु य जोयणुकोसो ॥४६॥ पश्चाध ॥ परइया जहण्योण ओहिणा गाउयं पासंति, उकोसेणं दीप अनुक्रम ॥५२ (58) Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण श्रुतज्ञाने ॥ ५३ ॥ 1996 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) भाष्यं [-] मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [४७], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 जोयणं पासंतिति । एस ओहेण णिरओही वणितो । इयाणिं पत्तेयं पत्तेयं सत्तसुवि पुढवीसु जहष्णुकोसयं ओहिं वण्णे हामि, तंजहा चत्तारि गाउपाई, अट्ठाई तिगाउयं चैव । अड्डाइज्जा दोणिय दिवमेगं च णरपसु || ४७|| जस्स रयणप्पभापुढविणेरइयस्स दसवाससहस्साई जहण्णिया ठिती सो अट्ठाई गाउयाई ओहिणा जाणति पासति जस्स पुण रयणप्पभापुढवि रइयस्स सागरोपमं ठिती सो चत्तारि गाउयाई ओहिणा जाणइ पासति, एवं जाव अहे सत्तमाय जहण्णठितीओ अद्धगाउयं उकोसद्वितीओ गाउयं ओहिणा जाणति पासति । एस ताव णेरइयाणं आहेण पत्तेगेण य जहण्णुकोसओ ओही बण्णिओ । इदाणि देवाणं आहेणं पत्तेगेण य जहण्णयं उकोसयं च ओहिं भणिहामि, तत्थ ओहेण देवा जहणेणं अंगुलस्स असंखज्जतिभाग ओहिणा जाणंति पाति, उक्कोसेणं संभिण्ण लोगनालि ओहिणा जागति पासंति, एस ओहेण देवाणं ओही भणिओ. इदाणि पत्तेयं पत्तेयं देवाणं जहण्णुक्कोसयं ओहि भणिहामि तत्थ भवणवासिणो दसप्पमारा असुरकुमारादी थणियकुमारपज्जवसाणा, एतेसिं दण्डंपि जहण्णओ ओही पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसओ ओही असुरकुमारवज्जाणं संखेज्जाई जोयण्णाई, असुरकुमारा णं पुण उकासेणं असंखिज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणति पासंति, वाणमंतराणं पुण जर्हनउकोसओ ओही जहा असुरकुमारवज्जार्ग ओही भवणवासीणं तथा भाणियन्बो, जोइसिया जहण्णवि संखिज्जदीवसमुद्दे उकोसेणवि संखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जागति पासंति । वैमाणिया सोहम्मातो आरम्भ जाव सव्वहसिद्धगा देवा ताव जहोणं अंगुलस्स असंखज्जतिभागं ओहिणा जाणंति पासंति, अहे पुण जो एतेसिं सोहम्मगातीणं वैमाणियाणं अणुत्तरोववाइयपज्जवसाणाण देवाण ओहिणाणविसओ सो इमाहि तिहिं माहाहिं भण्णति, तंजहा (59) वैमानिकानामवधिः ॥ ५३ ॥ Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४८-५२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 अवधेरा सत्राका श्री IPL सक्कांसाणा पहमं०॥४८॥ आणयपाणय०॥ ४९० ॥ छटुं हिटिममज्झिगेवेज्जा०॥५०॥ एवाओ गाहाओउत्कृष्टजयन पकाहा तिण्णिवि कंठाओ, णवर पुण इमो चिससो-जो जे पुढविं देवो ओहिणा जाणति पासति सो तीए पुढवीए सकातो सरीराओ यावा चूणों आरम्भ जाव हिद्विल्लो चरिमंतो ताव पिरंतरं संभिषण पध्ययकडादीहिं णिरावरणं ओहिणा जाणति पासति । जे य एते श्रुतज्ञाने कार: ISI सकीसाणादयो अणुसरोववाइयपज्जवसाणा एवं विविहमणेगप्पगारं हेडा ओहिणा जाणंति पासंति य, जो तेसि तिरिय उई च ॥५४॥ ओहिण्णाणविसओ सो इमाए गाहाए भण्णतिI एतेसिमसंखज्जो० ॥५१॥ एतेसि णाम साहम्मादीति बुत्तं भवति, असंखेज्जा णाम गणणमतिपंतत्ति वा असंखे. ज्जत्ति वा एगट्ठा, ते य असंखेज्जा तिरिय पडलच दीवा सागरा य सकीसाणादीण देवाण ओहिणाणस्स विसओ गायब्बो,। ४ सतिवि असंखज्जगत्ते तहावि जहा जहा उचरिमा देवा तहा तहा तेसिं हेडिल्लहितो देवेहितो बहुतरका दीवसमुदा उपरिमगाणं देवाणं ओहिष्णाणविसओ भवति । उड्जाव सकाणं विमाणाणं उपरिल्ले चरिमंतत्ति ।। किंच___संखेज्ज जोयणा खलु ॥५।। जेसिंदेवाणं अद्धसागरोवर्म ऊणयं ठिती ते जहण्ोण पणुवीसं जोयणाई ओहिणा जाणति पासंति, उक्कोसेण संखेज्जाइ जोयणाई ओहिणा जाणंति पासंति य, तेण परं णाम ततो ऊणगाओ अद्धसागरोवमाओ परेण ॥५४॥ हा संपुष्णसागरोवमाइसु जद्दण्णेण पणवीसं० उकोसेण असंखेज्जे दीवसमुद्दे ओहिणा जाणंति पासति ।। याणि जेसि सयुकोसो सव्व जहष्णो य ओही भवति जावतियपमाणमेत्तो वा सो ओही परिवडति से भण्णति, तंजहा दीप CAS अनुक्रम (60) Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्राक ॥५५॥ दीप उकोस मास्सेसु०॥ १३ ॥ तत्थ उकस्सगहणेणं परमोहिस्स गहणं कतं, जहण्णगहणणं तिसमयाहारगपणगजीवप्पमाण-RI अवधेराआवश्यकमेचस्स ओहिस्स गर्ष कत, सो य परमो मणुएमु चेव एगेसु भवति, जहण्णोधी पूण मणुएसु वा तिरिएम या भवेज्जा, कार: चूर्णी जहण्णुकोसवज्जो मज्झिमओधी भण्णति, सो य चउमुवि गतीसु मवति, उफोसेण य ओही जाव लोगप्पमाणमेतो ताप पार-1 श्रुतज्ञाने बडेज्जा, तत्तो परं पत्थि पडिवातोति । खेत्तपरिमाणंति दारं गतं । इदाणि तइयं संठाणोनि दारमागतं, तस्थ संठाणं णाम संठाणति बा आगितित्ति एगढ़ा, तं च जो सो हेढे वण्णितो जहण्ण उक्कोस मज्झिमो यतिविही ओही तस्स इमं संठाणं- सत्थ थियुगागारु जहण्णो० ॥ ५४ ॥ जो सचजहण्णो आही सो थियुगागारसंठितो भवति, तत्थ थिचुगाभारसंठितो णाम | पाणियपिंदुसंठाणोत्ति वुत्तं भवति, जो पुण सच्चुकोसओ ओही सो बट्टो भवति, जो व सो तस्स उकोसगस्स ओधिस्स बट्टभावो सो पुण लोग पहुच किंचिआयतो भवति, जो पुण सा मज्झिमओहो सो खेतं पडुच्च अणेगविहसंठाणो भवति, तंजहा-तप्पागारसंठाणं सठियं खेत पहुच्च तप्पागारसंठितो भवति, पल्लगसंठाणसठियं खच पहुच्च पल्लगसंठितो भवति, तहा हयसठाणसठियं खत्त पडच्च हयसंठिओ भवति, गयसठाणसंठियं खत्तं पड़च्च गयसंठितो भवति, एवमाइ, पव्ययसंठाणसंठियं खेनं पडुरूच पव्ययसंठिओ भवति, एवमादि, तत्थ जो सो मझिमओ ओही अणेगसंठाणो भणितो तस्स तप्पगारादीणि संठागाणि भवंति, जेसिं था। हयादीणि संठाणाणि भवंति ते इमाए गाहाए भण्णाति, तंजहा तप्पागारे पल्लग० ॥ ५५ ॥ तत्थ तप्पागारसंठितो ओही नेरइयाण भवति, तत्थ तप्पयग्गहषेण जे णदिसंतरणणिमित्तं लोएणं तप्पया पज्झति तेसिमेयं गहणं कयति, तस्स य नष्पयस्स आगारो तप्पागारो, आगारो णाम आगारोनि वा आगितित्ति अनुक्रम (61) Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGE श्रुतज्ञानेला श्री वा सँठाणंति वा एगट्ठा, मवणवासीणं देवाणं पल्लगसंठितो ओधी भवति, वाणमंतराणं पुण पडहगसंठिओ ओही भवति, जोइसियाणं आनुगामिआवश्यकता देवाणं झल्लरिसीठतो ओही भवति, सोहम्मातो आरम्भ जाव अच्चुतो कप्पो एतेसि कप्पोबगाणं देवाणं अद्धमुइंगागारसंठिओ ओहीदकाध्यायः चूणा भवति, गेवेज्जगदेवाणं पुष्फचगेरीसंठितो भवति, अणुत्तरोववाइयाणं देवाण जवणालीसंठितो भवति, तत्थ जवणाली णाम जीए 1181 णालीए जवा वाविज्जति सा जवणाली भण्णइत्ति । मेरइयदेवाणं ओहिस्स संठाणं भणितं । इयाणिं तिरियमणुयाणं जारिस ओहिस्स संठाणं तं भण्णति, सो यतिरियमणुओही हयगयादीसठाणसंठितो पुचि चेव भणितोत्ति। संठाणित्ति दारं गतं । इयाणि आणुगामियत्तिदार आगत, तत्थ आणुगामियं णाम जं तमोहिण्णाणिणं गच्छंतमणुगच्छति तं आणुगाभियं भण्णइ, तं च दुविहं भवति, तंजहा--अंतगयं च मझगयं च, तत्थ जं तं अंतगतं तं तिविहं भवति, तंजहा-पुरओ । अंतगतं मग्गतो अंतगये पासतो अंतगतंति, तत्थ पुरंतो अंतगयं णाम तमोहिण्णाणिं पडुच्च चक्खिदियमिव अग्गता दरिसणसामका स्थजुत्तंति वुत्तं भवति, जत्थ जत्थ ओहिणाणी गच्छइ तत्थ तत्थ पुरतो अवडिया रूवावबद्धा अत्था जाणेति पासति य, से त दापुरतो अंतगर्य । तत्थ मग्गतो अंतगतं णाम मग्गतोत्ति वा पिट्ठउत्ति वा एगट्ठा, जत्थर सो ओहिण्णाणी गच्छति तत्थर संफरिसि या फासिीदयमिव पिट्ठतो अवद्धिता रुवावबद्धा अत्था ओहिणा जाणति पासति, सेते मग्गतो अंतगयं । पासतो अंतगयं णाम || वामतो दाहिणतो वत्ति वुत्तं भवति, जत्थ जत्थ सो ओहिणाणी गच्छति तत्थ तत्थ सोइदिएणमिव पासतो अवत्थिता स्वावबद्धा अत्था ओहिणा जाणति पासति य, तं पासतो अंतगतं, सेत अंतगतं ।। तत्थ मज्झगतं णाम जे समततो अत्थग्गाहि तं मझगये भणति, एत्थं दिटुंतो फरिसिदियं चेव, जहा फरिसिदिएणं समंतओ फरिसिए जीवो अत्थे उबलभति, एवं सोवि ओहिणाणी दीप अनुक्रम SERIES (62) Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५३-५५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक श्री जत्थ जत्थ गच्छति तत्थ तत्थ समेतो रुवावबद्धे अत्थे ओहिणा जाणति पासति य, से ते मझगयं ओहिणा । एत्थ सीसो अनानुगाआवश्यक आहे--भगवं! अंतगयमझगयाण को पडिविसेसो ?, आयरिओ आह-अंतगयं तिविहं वणिय, तत्थ पुरतो अंतगएण पुरवो चेव मिकः चूर्णी संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणि वा जोयणाणि ओहिणा जाणति पासति, मग्गतोअंतगएणं मम्गतो चेव संखेज्जाणि असंखेज्जाणिक्षेत्राद्यवश्रुतज्ञाने वा जाणति पासति, पासतो अंतगए पासतो चेव संखेज्जाणि वा. मज्झगएण सत्यतो समंता संखेज्जाणि का असंखेज्जाणि या स्थान ॥ ५७॥ काजोयणाणि जाणति पासति, तम्हा एतेण कारणेणं अंतगयस्स व मज्झगयस्स व महतो चेव पडिविसेसोत्ति । लि अणुगामियओहिण्णाणपसंगण चेव अणाणुगामिओवि ओधी तप्पडियक्खोसिकाऊण भण्णति, तत्थ अणाणुगामिओ | णाम जो तमोहिण्णाणिं गच्छन्तं पाणुगच्छति, जत्थेव उप्पणं तमि चेव ठाणे जाणति पासति, ततो ठाणातो अण्णस्थ गतो ण जाणइ पासइ, एत्थ दिटुंतो पुरिसो, जहा-कोई पुरिसो अगणिमुज्जालेऊणं तस्सेव अगणिस्स परिपरंतेहिं परिघोलमाणो२२ उज्जोयठाणं पासति, अनत्थ गए ण पासइ, एमेव अणाणुगामियं ओहिण्णाणं जत्थेव समुष्पज्जा तस्थेव संखेज्जाणि २ जोवणाई ओहिराणाणी जाणति पासति, अण्णत्थ गए ण जाणाति पासति । से तं अणाणुगामियं ओहिष्णाण ॥ याणि जेसि जीवाणं ओधा आण-121 पूगामितो अणाणुगामितो वा तं इमाए गाहाए भण्णति, जहा-- अणुगामितो य ओही० ॥ ५६ ।। जो गेरहयदेवाण ओही सो णियमा आणुगामिओ, जो पुण मणुस्सतिरियाणं सो आणु-II ॥५७॥ बागामिओ वा होज्जा अणाणुगामिओ पा होज्जा मिस्सो वा होज्जा, मिस्सो णाम जं पुबदिट्ठ अत्थं अग्यात्थ गओ किंचि उबलभइ । हि किंचि णो उपलभइ सो मिस्सो भन्नति । अणुगामियंति चउत्थदारं सम्मत्तं ॥ इयाणि अवट्ठाणन्ति पंचमं दारमागतं, तं च दीप अनुक्रम (63) Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१६-१७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 SARG सत्राक अवट्ठाणं चउब्बिई, तंजहा-दवावट्ठाणं खचावट्ठाणं कालावट्ठाण भावावट्ठाणं, तं च अवट्ठाणं चउब्धिहपि दोहिं गाहाहिं भणिहामि, अवस्थान आवश्यकतस्थ पंधाणुलोम पहच्च एगाए गाहार पुबि खेत्तावट्ठाणं ततो दबावट्ठाणं पच्छा भावावडाणं च भाणहामि, कालायट्ठाणं ट्रा चउण्ह अवट्ठाणाणं जं जहा णेय अबढाण तं वितियार गाहाए भणिहामि, तत्थ जा सा पढमा गाहा सा इमाश्रुतबाने सं०-खेत्तस्स अबढाणं ॥५७॥ तत्थ खेतगहणेगं भवखेत्तस्स गहणं कतं, तं च भवं पडुच्च ओहिवाणं जहनेण एकं समर्य प र होज्जा, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाणि होज्जा, एत्थ एगो समओ तिरियस्स वा मणुयस्स वा भवति, कह?, जस्स कस्सह एकमि समए ओहिण्णाणं उप्पण्णं वितियसमए से आउयं पहोणं चेव, अतो तिरियमणुयाणं एगो समओ भवं पडुच्च ओडिनाणं संभवति, 1 देवस्स वा मिच्छद्दिहिस्स एग समय सम्म पडिवनस्स, नबरं वितियसमए आउयं पहीणं चेव तम्मित्तिकाऊण देवेवि एकं समओ ओहिणाणस्स भविज्जा, उक्कोसयं पुण तेत्तीससागरोचमियं भवखेत्तावट्ठाणं देवे पोरइए पडुच्च भविज्जा, दब्बवट्ठाणं जहण्णेणं एक | समयं उक्कोसेणं भिन्नमुहुत्तो, भिन्नमुहुत्तो णाम ऊणो मुहुचोति बुत्तं भवति तं च भिन्नमुहुत्त ओहिण्णाणी एगदब्बे णिरंतरोबउत्तो । अच्छेज्जा, ततो परेणं निरोहमसहमाणो ण सक्केति तमि दव्वंमि उतउत्तो अच्छिउं, एत्थ दिट्ठतो पुरिसो, जहा-कोइ पुरिसो अइत्र असण्डसूइए पासछिदे णिरतरोवउत्तो न सकेति दीह कालं अच्छितुं, एवं सो ओहिणाणी तमि दग्ने णिरंतरं उपउत्तो ण सकेति भिण्णमुहुत्ताउ परं अच्छिउंति, भावओऽवि अवठ्ठाणं जहणणं एक समयं, उक्कोसेणं सन? समया, किं कारणं ?, जम्हा तिब्बयरेण ॥५८॥ RCउवओगेण दबस्स पज्जबोवलंभो भवति, अआ तिवावओगेण य मुटुतरं निरोहमसहणो न सकेति तंमि पज्जए सत्तण्हं अट्ठहरा वा समयाणं उरि अच्छिउंति, एवमेस एकाए गाहाए अत्थो भणितो, इयाणि वितियाए गाहाए अत्थं मणिहामि, सा य इमा, तंजहा 2-629 दीप अनुक्रम (64) Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं 1, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५८-५९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 २%AR प्रत घले सत्राक दीप अाए अचहाणं० ॥५८ ।। अद्धा णाम कालो भण्णति, तस्स कालस्स अबढाणं जहण्योणं एक समयं उकोसेणं छाबहि आवश्यक सागरावमाणि सातिरेगाई, ताणि पुण छाबढेि सागरीवमाण साइरेगाई जो अणुत्तरेसु विमाणेसु उकोसहितितो दो पारा उववज्जाहाना चूर्णी । तस्स भवांत, सातिरेग से जं मणुस्सभवे आउयं देसूणा वा पुच्चकोडी अप्पतरगं या कालं एतं सातिरेग भवतिति, जो य एसा। श्रुतज्ञाने #एको समतो एयमि गाहापच्छद्धे जहण्णेण भणितो एसो चउण्हवि दयाइणं अबढाणाणं अप्पप्पणो सट्ठाणे भणितोत्तिकाऊन इई न भणितो । अबढाणेतिदार सम्म ॥ इदाणं चलेत्ति दारमागतं, तं च चल बुद्धि वा हाणि वा पडुच्च भवति, साय बुड्ढी या ॥५९ ॥ ICहाणी वा इमेण पकारेण भवति, तंजहा ___ वुड्डी वा हाणी बा० ॥ ५९॥ तत्थ खेत्तस्स कालस्स य चुड्डी चउविधा भवति, तंजहा संखेज्जतिभागवुड्डी वा होज्जा हा असंखेज्जातभागबुड्डी वा होज्जा संखेज्जगुणवृष्टी वा होज्जा असंखेज्जगुणवडी वा होज्जा,तत्य संखेज्जतिभागबुढीणाम जावतितो । सिं जीवाणं ओहिणाणस्स विसओ तस्स जो संखेज्जाइमो भागो तावइतो सुभज्झवसियस्स जाहे भागो पुन्युप्पण्णयाओ ओहिना राणाणाओ आहेओ समुप्पज्जति ताहे सा ओहिण्णाणस्स संखेज्जतिभागवड़ी भण्णति, असंखेज्जतिभागवुड्डी णाम जाबतिता जावा ५. जीवाणं ओहिण्णाणस्स विसओ तस्स जोऽसंखेज्जइमो भागो ताबडतो सुभदावसियस्स जाहे भागो पुन्दुप्पण्णयाओ ओहिण्णालणाओ अहिओ समुप्पज्जति ताहे ओहिणाणस्सऽसंखेज्जतिभागबुड्डी भण्णइ, जा य एसाऽसंखेज्जतिभागवुड्डी एसा संखज्जइभागकाडीमो थोवतरिया णायब्वाति, संखेज्जगुणबुड्ढी णाम जापतिओ जैसिं जीवाणं ओहिनाणस्स विसतो सो तप्पमाणेहि चेव खंडे। । ५९ ।। ट्री सुभज्झवसियस्स परिवड्डमाणो २ जाहे संखेज्जे वारे परिवडिओ भवति ताहे सा संखेज्जगुणा वुड्डी भवति, असंखेज्जगुणवृष्टी णामद अनुक्रम (65) Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री चले चूर्णी जावइतो जेसि जीवाणं ओहिण्णाणस्स विसओ सो तप्पमाणेहिं चेव खंडेहिं सुभज्यवसियस्स परिवड्डमाणो परिवड्डमाणो जाहेऽसंख-12 आवश्यक लज्जबारे परिवतितो भवति वाहे सा असंखेज्जगुणवुड्डी भण्णति, संखेज्जगुणचुड्डीओ य असंखेज्जगुणवुड्डी बहुतरिया भवातिति ।। खेत्तकालाणं च बड्डी चउबिहावि भणिता, इदाणिं एतेसिं चेव खेत्तकालार्ण हाणी भाणियब्वा, सावि य एवं चैव गिरवसेसा श्रुतज्ञाने हाणिअहिलावेणं चउबिहा भाणियब्वा, गवरं सा असुभज्यवसियस्स भवतित्ति । एवमेसा हाणी गया । बड्डीओ हाणीओ य खेत्तकालाणं गयाओ । इयाणि दव्वस्स बुद्धीओ य हाणीओ य दुविहाओ भण्णंति, तत्थ बढी इमा, तंजहा-अर्णतभागवुड्डी वा अणंतगुणवुड्डी वा । तत्थ अणंतभागवडी णाम जावतितो जेसि जीवाणं दब्वाणि पगुच्च ओहिणाणस्स विसओ भवति तेसि जो अणततिमो भागो तापइओ सुभझवसियस्स जाहे भागो पुन्बुपण्णयातो ओहिष्णाणाओ अहिओ समुपज्जति ताहे सा ओहिण्णा णस्स अणंतभागवड्डी भवति, अणंतगुणवुड्डी णाम जापतिओ जेसि जीवाणं दव्वाणि पडुच्च ओहिण्णाणस्स विसओ सो य तप्पमाकाहिं चेव खंडेहि मुमज्ज्ञवसियस्स परिवद्रमाणेहि २ जाहे अणंतवारे वडिओ भवति ताहे सा अणतगुणवुड्डी भण्णति, अर्थतमाग बड्डीओ य अर्णतगुणवड्डी बहुतरिका गायबनि । दब्बवुड्डी गता । इदाणिं तस्सव दब्बस्स हाणी भण्णइ, सावि एवं चेव मणिरवसेसा हाणिअभिलावेण भाणियव्या, णवरं सा हाणी असुभझवसितस्स भवतित्ति । एवमेसा दबस्स हाणी गता, दव्यं पडुच्च 31 वुड्डीओ हाणीओ य मताओ । इदाणि पज्जवे पडच छविहाओ बुड्डिहाणीओ भण्णंति, तत्थ पुनि ताव बुडी भणामि, तंजहा अणतभागवुड्ढी वा असंखेज्वहभागवड्डी वा संखेज्जतिभागवुड्डी वा अणंतगुणवडी वा असंखेज्जतिगुणवडी वा संखेज्ज- गुणवडी बा, तत्थ अणंतभागबुढी जहा दव्वस्स अणंतभागवड्डी भणिया तहेव माणिकच्चा, पचरं इह पज्जवामिलावो भाणियव्यत्ति, दीप RCORE अनुक्रम ॥६ ॥ (66) Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५९-६०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIG श्री असंखेज्जतिभागबुड्डी संखेज्जतिभागही य जहा खत्तकालाणं तहेव भाणियन्या णपरं पज्जवाभिलावो भाणियथ्यो, अणतगुणपुड्डी तीवमंदे आवश्यक| जहा दुच्चस्स भणिया तहा भाणियच्चा, गवरं इह पज्जयाभिलावो भाणियच्यो, असंखज्जगुणपड्डी संखेज्जगुणवडीय एयाओ दोऽवि2I चूणौं जहा खेचकालाणं भणियाओ तहा भाणियच्चाओ, णवरं इई पज्जवाभिलावो भाणियव्यो । एवमेसा छविहा पज्जवबुड्डी सम्मत्ता ।। श्रुतज्ज्ञाने । इदाणिं तेसिं चेव पज्जवाषं हापी भण्णति, सा एवं चेव गिरवसेसा हाणिअभिलावण माणियव्वा, णवरं सा हाणी असुभझव सितस्स भवतिचि । एवमेसा छबिहा पज्जवहाणी भणिया । वुड्डीओ हाणीओ य पज्जवे षडुच्च भणियाओ । एवमेव चलन्ति ॥६ ॥ दारं सम्म । इदाणिं तिब्बमंदेति दारमागतं, तंजहा____फड्डा य असंखेज्जा०६१॥ तिव्वमंददारपदरिसपत्थं इमो जालकडगदिद्वैतो कीरइ जहा जालकडगस्स अंतो दीवको पलीविओ, ततो तस्स पईवस्स लेसातो तेहिं जालंतरेहिं निग्गच्छति, णिग्गताओ य समाणीओ बाहिं अवडियाणि रूविद्दव्याई४ उज्जाति, एवं जीवस्सवि जेसु आगासपदेसेसु ओहिण्णाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओषसमो भवति तेसु ओहिण्णाणं समुप्पज्जति, जेसु पूण आगासपदेसेसु ओहिण्णाणावरणक्खओबसमो पत्थि तेसु ओहिण्णाणं ण उप्पज्जति, जेसि जीवाणं केमुवि आगासपदेसेसु ओही उप्पण्णो केसुविन उप्पनो, तत्य जेसु उप्पणो ते फडगा भण्णंति । अण्णे पुण एवं भणंति जहा-एवं जीवस्सवि जेसिं जीवप्पएसाणं ओहिष्णाणावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमो भवति तेसु ओहिष्णाणं समुप्पज्जइ, जेसिं पुण जीवस्स जीवप्पएसाणं ओहिण्णाणावरणिज्जाणं कम्माणं पत्थि खओवसमो तेसु ओहिष्णाणं ण उप्पज्जइ, तेसि च जीवाणं | द केसुवि जीवप्पएसेसु ओहिण्णाणं उप्पण्णं केसुवि जीवप्पएसेसु ण उप्पण्णं, तत्थ जेसु उप्पण्णं ते फडगा भणंति, एतच्च दीप अनुक्रम कर . अत्र नियुक्ति-क्रम ६० वर्तते, मुद्रण-दोषात् ६१ इति मुद्रितम् (67) Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६०-६२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत चूणा सत्राका चिंत्यं, ते य फहगा एगजीवस्स संखेज्जा वा होज्जा असंखेज्जा वा होज्जा, जया य सो ओहिष्णाणी एगंमिति प्रतिपातोफडए उपउचो भवति तदा नियमा सव्वेसु चेव फडएसु उवउत्तो भवति, एतेसि फगाणं अण्णोऽणं फट्टगं पङच्च केविला सादा फया विसुद्धा केइ पुण तओ विसुद्धतरगा केई पुण तओवि विसुद्धतमा भवंतित्तिकाऊण ते फड्या तिव्या भणंति, तहा तेसिं श्रुतज्ञानेद्राचेव फड़याण अST 1४/चेव फड़याणं अण्णोऽण्णं फड्गं पडुरुच केइ फडगा अविसुद्धा केइ पुण ततो अबिसुद्धतरगा केह पुण ततो अविसुद्धयमा भवंतित्ति-18 R ICT ॥६२॥ काऊणं ते फडगा मंदा भण्णंति । देवाण णारगाण य तित्वगरस्सय देवमविएग ओहिणा अपरिवडिएण व काऊण फडगा, ओहि यभावं पडुच्च तिब्बमंदा फडगा सथ्वहा चेव णस्थि, मणुयतिरियाण पुण ते तिब्बमंदा फागा छबिहभेदा इमे, तंजहा फड़ा य आणुगामी ॥ ६१ ॥ मणुयतिरियाणं फहगा केइ आणुगामिया केर अणाणुगामिया केइ मीसगा केइ पडिवादी केइ अपडिवादी केइ पडिवाईअप्पडिबाई य, तत्थ आणुगामिया णाम जे ताबोहिण्णाणी अण्णत्थवि गच्छमाणमणुगच्छंति ते आणुगामिया भण्णांति, जे पुण णाणुगच्छति ते अणाणुगामिया भष्णंति, जेसि प्रण फहगाणं किंचि अणुगच्छति किंचि णाणुगइच्छति ते मीसगा भणति, जेसिं पुण तिरियमणुयाणं फड़गाणं उप्पज्जेऊण पुणो सम्बहा चेव ण भवंति ते पडिबाई भण्णंति, जे पण पडति ते अपरिवाडी भणंति, जेसिं पुण फडगाणं किंचि पडिबडति किंचि पा पडिवडति ते पडिवातिअपडिवातिचण मीसगा हा भण्णंति | तिव्यमंदाति दारं गतं ।। इदाथि पडिवाउप्पातत्ति दारमागतं, तंजहा-- ॥६२॥ बाहिरलंभे भज्जा० ॥ ६२ ।। तत्थ बाहिर भग्गहणेणं अभितरलंभोऽवि सूयितो चेव, सो य बाहिरभो नाम जत्थ से ठियस्स ओहिष्णाणं समुप्पणं तमि ठाणे सो ओहिण्याणी ण किंचि पासति, तं पुण ठाणं जाहे अंतरियं होति, तंजबा-अंगुलेण वा दीप अनुक्रम SAECSCARO RX (68) Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६२-६४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत त्पादौ सत्राक अंगुलपुहुत्तेण वा, विहत्थीए वा, विहस्थिपुहुत्तेण वा, एवं जाव संखेज्जेहि वा असंखज्जेहिं वा जोयणेहिं ताहे पासति, एस बाहिर- प्रतिपातोआवश्यकलंभो भण्णति, सो य बाहिरलमलद्धीओ ओहिण्णाणी पडिवातं उप्पातं तदुभयं च पहुच्च भयणिज्जो, कह', तस्स त्पादा चूर्णी बाहिरलंभलद्धीमस्स ओहिण्णाणिस्स एकसमएणं दन्यखेत्तकालमावाणं कयाइ सव्वेसिं चेव उप्पातो भविज्जा कयावि सन्वेसि श्रुतज्ञाने चेव पडियातो भवेज्जा, कयादि सब्बेसि चेव उप्पातो पडिवातोऽवि एगसमएण भवेज्जत्ति, उप्पायपडिवाओ णाम जेसि ॥६३॥ दबखेत्तकालभावाणं काणिवि एगसमएण चेव पुबदिवाणि ण पासति, काणिइ पुण अदिट्ठपुवाणि पासति, एस उप्पायपडिबातो मण्णति ॥ याणि अभितरलंभं पडरुष जहा उप्पातो पडिवातो तदुभयं च भवति तहा इमाए माहाए भण्णति, जहा| अम्भितरलद्धीए० ॥ ६३ ॥ तत्थ अम्भितरलद्धी णाम जत्थ से ठियस्स ओहिण्णाणं समुप्पण्णं ततो ठाणातो आरम्भ सो 81 ओहिण्णाणी निरंतर संबद्धं संखेज वा असंखेज वा खत्तं ओहिणा जाणति पासति, एस अम्भितरलद्धी भण्णति, तीए य अभितरलद्धीए तदुभयं नत्थि एकसमएणं, तदुभयं णाम जो अण्णेसिं दब्बखेत्तकालभावाणं उप्पाओ अण्णसि च पडिवातो एवं तदुभयदा भण्णति, उपायपडिवायाणं च एगतरी एगसमएणं भवति, कई , अम्भितरओहिण्णाणलद्धीयस्स परिणामविसेस पहुच्च दबखे-II सकालभावाणं जंमि समए उप्पाओ भवति णो मि चेव समए पडिवातो भवति, अण्णमि समए उप्पातो भवति, अण्णमि समए पडिबातो भवति, एगपगडीए णाम दोण्ह एयासि उप्पायपडिवायपगडीणं एगसमएणं एगाए पगडीए उप्पाओ वा परिवातो वा भवतित्ति। ॥६३॥ दवाउ असंखेज्जा०॥३४॥जो ओहिण्णाणी एक दबं पासति सो तस्स दबस्स उकोसेणं एगगुणकालकादिको संखेज्जे दीप अनुक्रम (69) Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६४-६५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत विभंगाः चूणा HEIG दीप श्री वा असंखेज्जे या पज्जवे ओहिणा लमइ, अणते पज्जवे न लभति, लभति णाम पासतित्ति वुत्तं भवति, पज्जवग्गहणेण य तस्स शानदशेन ददचस्स वणगंधरसफासा गहिता भवति, सो य एगदख्वदंसी ओहिष्णाणी तस्स एक्कस्स दबस्स जहणेण दो पज्जवे दुगुणिते | INपासति, दुगुणियग्गहणेण य चउपहं महणं कर्त, कि कारणी, जेण दोष्णि चेच दुगुणिज्जमाणे चउरो भवंति, अतो दुगुणितगहणेण श्रुतज्ञाने 81 चउण्हं गहणं कयंति, ते य चउरो पज्जाया इमे-वणं गंधं रसं फास, तेसिं पुण वण्णगंधरसफासाणं जे एगगुणकालगाइणो: ॥६४ालापज्जाया ते सो एगदम्बदंसी ओहिण्याणी न पासतित्ति, एवमेतं पडिवातोप्पातत्ति दारं गतं । इयाणिं णाणदसणविभगं च एते | तिष्णिऽवि दाराई इमाए गाहाए यणति, तंजहा सागारमणागारा० ॥ ३५ ॥ तत्थ तिय्वमंदातीणि कारणाणि पडच्च तिरियमणुयाण ओहिण्णाणं ओहिदसणं विभंगणाणं 181 च विसओ अतुल्लो एतेसि भणितोचिकाऊण इह ण भणितो। एत्थ पुण परइया देवा व पडच्च जोसि ओहिण्णाणं ओहिदंसण विभंगणापं च तुलं भवति ते भणति, तत्थ सागारम्गहणेणं ओहिण्णाणस्स गहणं कतं, अणागारग्गहणेणं ओहिदसणस्स गहणं 7 लोकतं, विभंगगहणेषं विभंगणाणस्स महर्ण कर्य, तत्थ विभंगणाणं णाम तं चेव ओहिण्णाणं मिच्छादिहिस्स वितहभावगाहित्तण विभंगणाणं मण्णति, तत्व जहग्णयमहणेणं खत्तकालाणं गहणं कतं, ते य खत्तकाला परइएहिंतो आरम्भ तिरियमणुए मोत्तुं जाब ६४॥ | उवरिमगेविज्जगा देवा, एत्थ जे जे तुलद्वितीया तेसि ओहिण्णाणं ओहिदसणं विभगणाणं च पहच्च विसओ तुल्लो भवति । दि दब्वभावविसओ पुण तुल्लवितीणषि एतेसि सम्मदंसणं पडुच्च विसुद्धतवोकम्माईणि य कारणाणि य पडुच्च अतुल्लो भवति, Pउवरिमगेविज्जगाणं च परेण खचं कालं च पड्डुच्च ओहिणाणओहिदसणाणं विसओ असंखेज्जो भवति, दव्वपज्जवेसु पुण अनुक्रम (70) Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [६५-६७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 साता। शक्षेत्र LAI द्वार सो टिओहिण्णाणओहिदसणाषं विसओ अणंतो भवतीति ।। ओहिण्णाणओहिदसणाविभंगाणि य एते तिष्णिवि दारा गता। अण्णे पुण भणति-दयाणि नापदंसणविभगोचि दारं, तत्थ 'सागारमणागारा' गाहा, सागारंति णाणं, ते पुण ओहिण्णाणं| चूर्णी गहितं, अणागारग्गहणेण ओहिंदंसणं गहितं, ते सागारपज्जवा य अणागारपज्जवा य ओहिविभंगाणं जहण्णगा तुल्ला जाव गेवश्रुतवाने ज्जा, तेण परं उवरिमगेविज्जेसु परेण्यं खेचतो य कालतो य असंखज्जा, दयपज्जवसु अणंता ! इदाणि देसेत्ति दारमागतं ।। पा रइय देव तित्थंकरा य० ॥६६॥णेरड्या देवा तित्थंकरा य एते तिष्णिवि ओहिण्णाणस्स अबाहिरा भवति, अबाहिरा दणाम ओहिष्णाणवस्थियाचि बुरी भवति, ते य रइय देव तित्थंकरा य ओरिणाणस्स मज्झवस्थितत्तेण सवओ समता पासंति, जे पुण सेसया तिरियमणुया ते देसणवि पासंविचि ॥ देसिति दारं गतं । इदाणि खेतत्ति दारमागतं, तंजहा___संम्बेज्जमसंखेज्जा० ॥ ६७ ॥ संखिज्जाणि वा असंखज्जाणि वा जोयणाणि ओही पुरिसमबाधा य भवति, अवाहा णाम || पुरिसस्स य ओहीए य जं अंतरं सा अबाधा भष्यति, सो पुण ओही दुविहो भवति, तंजहा-संबद्धो य असंबद्धो य, जो य संबद्धो सो सरीरातो आरम्भ णिरंतर संखेज्जाणि वा असंखेज्जाणिवा जोयणाई जाणति पासइ, जोवि असंबद्धो सोऽपि संखेज्जाणि वा असेखज्जाणि वा जोयणाई सरीरातो अन्दरित्ता तचो परेण पासति, आरेण ण पासतित्ति । एत्थ संबद्धे असंबद्धे य ओहिण्णाणे चउभंगो भवति, तंजहा-पुरिसे संबद्धो लोगंते असंबद्धो १ लोगते संबद्धो पुरिसे असंबद्धो २ अण्णो लोगतेवि संबद्धो पुरिसेवि संबद्धो ३ अण्णो दोसुचि असंबद्धोध, जो पुण अलोगस्स अप्पमवि पासति सो पुरिसे णियमा संबद्धो ओही णायचोति ॥खेत्तत्ति दारं l गतं ॥ तं पुण ओहिण्णाणं इमेहिं गवहिं दारेहिं अणुगन्तव्यं, तंजहा दीप CARRC अनुक्रम (71) Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां श्रुतज्ञाने ।। ६६ ।। अध्ययनं [-] % % হ९% का “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) निर्युक्ति: [ ६७ ]. भाष्यं [-] [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मूलं [- / गाथा-1, आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र संतपरूवणा० ॥ १३ ॥ तत्थ संतपयपरूवणा नाम जहा कोइ सीसो कांच आयरियं पुच्छज्जा भगवं ! एवं ओहिकृष्णापं किं अस्थि पत्थिचि १, आयरिओ आह— नियमा अस्थि, सीसो आह-जदि अस्थि तो कहिं मग्गितच्वं १, आयरिओ आह- - हमीद ठाणेहिं मग्गित - ग इंद्रिय काए० ॥ १४ ॥ भागपरिक्ष० ।। १५ ।। सत्थ पढमं गतिति दारं ताए चउव्धिहावि गतीए ओहिणाणं पुन्वपडिवण्णओ य पडिवज्जमाणो य दोऽवि अस्थि । गतिचि दारं गतं, इयाणि इंदियत्ति दारमागतं - तत्थ एगिंदिया वि० ति० चतुण वा पुव्वपडिवण्णओ ण वा पडिवज्जमाणओ, पंचिदिएस पुण पुचपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओ यदोऽवि अस्थि, इंदिपत्ति दारं गतं । इदाणिं काययोगवेदकसायलेसासम्मन्तपज्जवसाणा एए छप्पि दारा जहाभिणिदोहियणाणे भणिया तहा भाणियच्या ओहि अभिलावेर्णति । इदाणिं णाणेचिदारं आगतं, तंजा - ओहिणाणं किं णाणी पडिवज्जति उदाहु अण्णाणी ?, एन्थ दो गया समोतरंति, तंजा—च्छइए य वबहारिए य, निच्छयनयस्स णाणी पडिवज्जत्ति, पुव्वपाडवष्णओवि णाणी चेव होज्जा, वबहारियणयस्स णाणी वा परिवज्जति अण्णाणी वा, जति पाणी पडिवज्जति कि आभिणिबोहियमाणी पडिवज्जति सुत० ओहि मणपज्जवणाणी पडिवज्जति ?, तत्थ आभिणिवोहियमाणसुयणाषिणो वट्टमाणसमयं पच्च ओहिण्णा पुव्वपडिवष्णगा वा होज्जा परिवज्जमाणगा वा सम्मतसमुप्पत्तिकालातो पुण ओहिष्णाणी पुष्पविष्णओ गत्थि, पडिवज्जमाणओ पुण आभिणित्रोहियणाणसुतओहिणाणाणि कोइ जुगवं चैव परिवज्जज्जा, ओहिण्णाणी ओहिष्णाणउपतिसमकालमेव परिवज्जमाणओ भवति, ततो उप्पत्तिकालतो पच्छा पुव्यपढिवण्णओं लम्मति, मणपज्जवणाणी जीवो ओहिण्णाणे (72) सत्पदा दीनि ॥ ६६ ॥ Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६८], भाष्यं ] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका श्री पुन्धपडियण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, केबलणाणांण वा पुचपडिवतोण वा परिवज्जमाणतो। णाणत्ति दारं गतं । सत्पदाआवश्यकश्याणि देसणेत्ति दारमागतं । तत्थ चक्खुदसणी अचक्खुदंसणी हिणाणं पुण्यपडिवो वाऽवि पडिवज्जमाणओ वाIDH दीनि चूणों होज्जा, ओहिदसणी उप्पत्तिसमकालमेव पडिवज्जमाणओ भवति, उप्पत्तिकालाओ पच्छा पुव्व पडिवचओ लम्मा, केवलदसणी श्रुतज्ञानेन वा पुब्बपडियनओ न पा पडिवज्जमाणओ । दसणत्तिदारं गतं । इयाणि संजमत्ति दारमागतं, तत्थ ओहिण्णाणं संजतो असंजतो संजतासंजतो य एवं तिमिचि पुचपडिवनगा पडिबजमाणगा पा होज्जा, संजमेत्ति दारं गतं ।। उवओगआहारभासगपरित्ता एते चउरोवि दारा जहा आभिनिबोधिते तहेव भाणियब्बा ओहिअभिलावणीत । इयाणि । पज्जचएराति दारमागतं, तत्थ पज्जत्तओ पुवपडिवनओ वा पटिवज्जमाणओवा ओहिण्णाणं दोसुवि भवेज्जा, अपज्जत्तो ण वा पुब्बपडिवण्णओ ण या पडियज्जमाणओ, पज्जत्तियासढारं गतं । इयाणि सुहुम सन्निभवसिद्धियचरिमा एते चउरोवि दारा जहा 15 आभिणिवाहियणापो भणिता तहा ओहिअहिलावेण निरवसेसा भाणियबा । संतपयपरूवणत्ति दारं गतं ।। इयाणि दध्यपमाणा दीणि भाणियबाणि, ताणि दवपमाणादीण अप्पाबहुकपज्जबसाणाणि अपि दाराणि जथा आमिीणबोहियणाणे भणिताणि तहेब निरवसेसाणि ओहिअहिलायेण भाषियवाणिनि । इयाणिं तमोहिन्माण समासतो चउविहं भवति, तंजहा-दव्बतो खत्तओ कालतो भावतो, दबओणं ओहिनाणी रूचिदबाण ४॥६७॥ जाणति पासति, खेतओ णं ओहिमाणी जहमेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिमार्ग उकोसणं अलोए लोयप्पमाणमेचाई असंखेज्जाई | द खंडाई ओहिया जाणति पासति, कालओ णं ओहिमाणी जहष्णेणं आवलियाए असंसेज्जतिभागं उकासेणं असंखेज्जाओ दीप अनुक्रम (73) Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६९-७०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सुना द्रव्यादिओसप्पिणियो तीतं च अषागतं च कालं ओहिणा आणति पाससि, भावतो गं० अणते पज्जवे जाणति पासति, सव्वपज्जवाणं/भिरवधिः आवश्यकता अणतभागं । एवमेत ओहिनाणं चोइसपगडिभेदं सम्मत् ।। ओहिबाणरिद्धिअवसरे चव आमासधिमादीयायोऽवि रिद्धीओ जीवाण आमशौंचूर्षों भवंतित्तिकाऊण इड्डिपचापुओगस्त अवसरो आगतो, सो य इडिपत्ताणुओगो इमाहिं दोहिं गाहाहि भन्नति, तंजहा ध्यादयः श्रुतबाने आमासधि विप्पोसधिः ॥ ६९ ॥ चारण आसीविस केवली य०॥ ७० ॥ ॥६८॥ तत्व आमोसपी नाम रोगाभिभूतं अचाणं परं वा जंचव तिगिच्छामित्ति सचिंतेऊण आमुसति तं तक्षणा चेव बवगयरोगातंक करोति, सा य आमोसधीलद्धी सरीरंगदसे वा सबसरीरे वा समुपज्जतित्ति, एवमेसा आमासहित्ति भन्नति । तत्थ विप्पोसधिगहणण विट्ठस्स गहणं कीरइ, तं चब चिट्ठ आसहिसामत्यजुत्तत्तेण विप्पोसही भन्नति, तं च जीविए (जं चेत्र ) विप्पोसधी य रोगाभिभूतं अप्पाणं वा परं वा छिवदितं तक्खणा चर ववगयरोगायकं करेति, से चिप्पोसधी, खलजल्ला पसिद्धा, तेऽवि एवं चेव ओसहिसामत्थजुत्ता कस्सति तबरिद्धिसंपन्नस्स भवंतित्ति । संभिबसायरिद्धी नाम जो एगतरेणवि सरीरदेसेण पंचवि हा इंदियविसए उपलभति सो संभिन्नसांयात्ति भनाते । उज्जुमतिलद्धिगहर्णण य विउलमतिलद्धीवि गहिता चेव, तत्थ उज्जुमती दा नाम मगोगतं भावं पडुच्च सामण्णमेत्तग्गाहणी मती जस्स सो उज्जुमती भन्नति, विउलमती नाम मणोगयं भावं पडुच्च सपज्जायग्गाहिणी मती जस्स सो विउलमती भन्नति, जाणि य दव्यखेचकालभावाणि उज्जुमती जाणति ताणि विउलमती ॥६८॥ विसुद्धतराणि वितिमिरतराणि जाणतित्ति । तत्थ सयोसधी नाम सब्बाओ ओसधीआ आमासधिमादीयाओ एगजीवस्स चेव जस्स समुप्पण्णाओ स सब्योसधी भन्नति, अहवा सन्चसरीरेण सम्बसरीरावयवहिं वा खेलोसधिमादीहिं जो ओसहिसामत्थजुत्तो सो दीप अनुक्रम (74) Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी श्रुतज्ञाने ॥ ६९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्तिः [६९-७०], भाष्यं [-] मूलं [- /गाथा -], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 सव्वोसधी भन्नति, अहवा सव्यवाहीणं जो निम्गहसमत्यो सो सव्वोसधी भन्नति । एगाते गाथाए एसस्थो भणितो । इागि वितिज्जियाए गाथाए अत्थो भन्नति, तंजहा एत्थ चारणलद्धी णाम दुविहा चारणा भवंति, तंजहा- जंघाचारणा य विज्जाचारणा य, तत्थ जंघाचारणलद्धिसंपन्नो अणगारो लूतापुडकतंतुमेतमवि णीसं काऊण गच्छति, विज्जाचारणलडीओ पुण विज्जातिसयसामत्थजुत्तयाए पुव्वविदेह अवरविदेहादीणि खेत्ताणि अप्पेण कालेण आगासेण गच्छतित्ति ।। तत्थ आसीबिसलद्धी णाम आसीविसोचिव कुवितो जो देहविणिवायसामत्थजुत्तो सो आसीबिसलद्धीओ भन्नतित्ति, केवलमणपज्जवणाणी पुव्वधरा अरिहंता चकवट्टी बलदेववासुदेवा य एतेऽवि केवलणाणादाहिं वासुदेवपज्जवसाणाहिं लद्धीहिं उववेया गायव्वा, केवलणाणादीयाओ य सिद्धाओचिकाऊण इहे ण भणिताओ । एत्थ सीसो आह- भगचं ! उज्जुमतिग्गहणेण चैव मणपज्जवणाणस्स ग्रहणं कयं तो किमत्थं पुणो गहणं कयंति?, आमरिओ आह- तत्थ पुव्वि उज्जुमतिविउलमतिणो भेदा पडुच्च मणपज्जवणाणली परुविता, इह पुण अविसेसियस्स मणपज्जवणाणस्स गहणं कर्मतिकाऊण णत्थित्थ दोसो । इयाणि जा अरहंतचक्कवडिवलदेववासुदेवाणं च सारीरवलसामत्थं पडुच्च रिद्धी तं मणीहामि, जा पुण तेसिं अणुवमरूवषण्णासोहग्गसचमातीयाओ रिद्धीओ ताओ पसिद्धाओत्तिकाऊण इहं ण मण्णंति, तत्थ पुवं वासुदेवस्स सारीरबलसामत्थरिद्धीं भणीहामि । तीए पुव्वि भणिताए बलदेवस्स सरीरबलसामत्थरिद्धी वासुदेवसारीरखलसामत्थरिद्धीतो अप्पमाणा सुहग्गहणतरिका भविस्सति, वासुदेवस्स य सारीरबलसामत्थरिद्धीए चक्कवट्टिस्स बलरिद्धी अहियतरियत्ति 'मन: पर्यव' ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (75) चारणादि लब्धयाः ।। ६९ ।। Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७१-७५], भाष्यंत प्रत सुत्राक श्री काऊण पच्छा भणीहामि । चक्कवट्टिवलरिद्धीओ य अरिहंताणं भगवंताणं बहुतरियत्तिकाऊग पच्छा मणिहामि । तस्थ जा सारा कशवादिवश्यक वासुदेवसारीखलसामथरिद्धी सा इमाहिं दोहिं माहाहि भन्नति । तेजहा &ा बलं चूणा II सोलस रायसहस्सा०॥७१ ॥ घेत्तण संकलं सो०॥७२॥ एताओ दोविगाहाओ करायो । जाविय सा चक्कब-लाप चुतवाना द्विणो सारीरबलसामत्थरिद्धी सावि इमाहिं दोहिं गाहाहि भण्णति, तं०-दो सोला बत्तीसा' ॥ ७३ ।। 'धेतूण संकलं ॥७॥ सो० ॥ ७४ ।। एताओ दोऽवि गाथाओ कंठातो, इयाणि जं केसवस्स सारीरबलसामत्थं ततो जावतितेण भावेण चक्कवट्टिको अहियतरागं सारीरबलसामत्थं भवति जंच अरिहंताणं भगवंताणं सारीरबलसामत्थं ते इमाए गाहाते भण्णति, तंजहा जं केसवस्स उ बलं ॥७५॥ एवमेसो इडिपत्ताणुतोगो ओहिन्नाणपसंगण आगतो भणितोत्ति । अन्ने एत्थ इमाओ बीस ४ इडीओ पनवेति, तंजहा- आमोसहि खेल०२ जलसधि ३ विप्पोसधि ४ सम्बोसहि ५ कोहबुद्धी ६ चीयबुद्धी ७ पयाणुसारी ८. सभिचसोता ९ उज्जुमती १० विपुलमती ११ वेउव्वीय १२ खीरासवा महुआसया १३ अक्खीणमहाणमा १४ चारणा १५ बिज्जाहरा १६ अरहता १७ चक्कवट्टि१८ बलदेव १९ वासुदेव २० ॥ एताओ भवसिद्धीयपुरिसाणं भवति । एतातो जाणएणं विभासियच्याओ । तत्थ बीयबुद्धी नाम बीजमात्रेण उवलभनि, जहा सित्थण दोणपाकं । एगेणं पदेणं सेसमवि जाणति जो सो ४पयाणुसारी । कोहबुद्धी नाम जहा कोट्टए धण एवं जं सिक्खति । संभिमसोतो णाम जति बारसजोयणचक्कवट्टिखंधावारे जमग-2 ल समग बोलेज्जा सव्वेसि पत्तेयं पचेयं जाणति, एगेण वा इंदिएणं पंचवि इंदियत्थे उवलमनि, आहवा सबेहि अंगोवंगेहिं, अहवाला चकवविखंधावारे सब्बतूराणं विसेस उवलमति, एस संभिन्नसोओ भन्नति । खीरासबो चोलेज्ज णज्जति खीरासवं मुयति, SECRECRCASSAX E दीप अनुक्रम ॥ ७ ॥ | वासुदेव आदेः लब्धि-वर्णनं (76) Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७५-७६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मनः पर्यव ज्ञानं सत्राक - ५ श्री खीरासवो नाम जहा चकवट्टिस्स लक्खो गावीणं, ताणं खीर ते अद्धद्धस्स दिज्जति, तं चातुरक, एवं खीरासवो भवति । एवं आवश्यक महुआसवावि बुद्धयाऽपेक्ष्य परवेयब्बा | अक्खीणमहाणासियस्स भिक्खंण अनेण पिढविज्जति, तमि जिमिते निट्टाति । उज्जुमती । चूर्णी विपुलमती । तहेव इच्छितं बिउच्चति उनी । चारणो दुविहो-जंघाचारणो आगासचारणो य, आगासचारणो आगासण जाइ, श्रुवज्ञाने जंघाचारणो जाव लूतातंतुएणपि जाति, विज्जाघरस्स विज्जा आगासगमणा, सेस तहेव । इयाणि मणपज्जवणाणं भणीहामि, तस्स य मणपज्जवणाणस्स य दोभि भेदा भवंति, जहा- उज्जुमतीय विउलमी य, सो य जदेव इडिपत्ताणुतोंग मणितो तह ॥ ७१॥ डाव एत्यपि भाणियब्बोति । तं च लक्खणती इम, तेजहा मणपज्जवणाणं ॥ ७६ ॥ एत्थ मणपज्जवणाणं णाम जण उप्पण्णण णाणेण मणुस्सखत्ते सनिजीवहिं ममपातोग्गाणि । दव्बाणि मणिज्जमाणाणि जाणति तं मणपज्जवणाणं भन्नति, एत्थ दिट्ठतो पिहुज्जणो, जहा सो पिहुजणो अमो अनस्स कस्सइ आगारे दळूण दुमणं सुमणं वा भाव जाणति, एवं मणपज्जवणाणीवि संनीण पंचेंदियाणं मणोगते भावे जाणति, जहा एरिसेहिं दव्वेहि मणिज्जमाणांह एरिस चितितं भवतित्ति । तं च मणपज्जवणाणं मणुस्साणं गम्भवक्कतियाण कम्मभूमगाणं संखेज्जवासाउयाण पज्जत्तगाणं सम्मदिट्ठीण इड्डिपत्तमपमत्तसंजयाणं भवतित्ति । तं च मणपज्जवणाणं समासओ चउम्बिह भवति, तंजहा- दबतो खेतओ कालतो भावतो, तरथ दश्वतो उज्जुमती अणंते अणंतपएसिते खंधे जाणति पासति, ते चेव विउलमती विमुद्धतराए वितिमिरतराए खंधे जाणति पासति, खेतओणं उज्जुमती जाब इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए उवरिमहेडिल्लेसु खुड्गपतरसु, उडे | जाव जोतिस्सस्स उपरि तलो, तिरियं जाव अट्ठाइज्जेसु दीयेसु दोसु य समुद्देसु सण्णीण पंचेंदियाण पज्जत्तगाणं मणोगते भावे % दीप - अनुक्रम ।। ७१॥ (77) Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७६-७७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री जा प्रत चूणी सत्रा दीप जाणति पासति, ते चेव विउलमती अड्डाइज्जेहिं अंगुलेहिं अम्भहिए खेत्ते विसुद्धतराए वितिमिरतराए जाणइ पासइ, कालओ णं 81 केवलज्ञानं आवश्यकता उज्जुमंती बहनेणं पलिओवमस्स असंखेज्जाविभाग उकोसेणवि पलितोवमस्स असंखेज्जतिभागं तीयं च अणागयं च कालंदा जाणति पासति, तं चेव विउलमती विसुद्धतरागं वितिमिरतरागं जाणति पासति, भावतो गं उज्जुमती अणते भावे जाणति श्रुतज्ञानापासति सब्वभावाणंतभागं, ते चेव विउलमती विसुद्धतराए वितिमिरदराए जाणति पासति । से तं मणपज्जवणाणं । इयाणि ।। ७२ ॥ केवलनाणं भन्नति, तंजहा अह सब्बदम्बपरिणाम ||७७।। तत्थ अहसदो आणतरिए वति, तत्थ आणतरियं णाम आणतरियति वा अणुपरिवाडित्ति दिवा अणुकमेति वा एगट्ठा, मणपज्जवणाणातो य अपतरं केवलनाणं भवति, अह तस्स केवलणाणस्स अवसरो संपत्तोत्ति, तत्थ | केवलसद्दो गिरवसेसिते अत्थे बद्दति, आभिणियोहियणाणाईणिवि णाणाणि चेव भवंति, ण पुण ताणि केवलाणि नाम संपुनाइंति | बुत्तं भवति, एत्थ दिद्रुतो कदमांदगं, जहा कद्दमोदकस्स कयकफलादिणा दध्वेण अच्छता भवति, सा य अच्छता काइ विसुद्धा, दि कावि ततोऽवि विसुद्धतरा, कावि पुण ततो विमुद्भूतमा भवति, एवं तदावरणिज्जाणं कम्माण खतोवसमेण आभिनिवोहियसुय-1G णाणाणि उप्पज्जति, ततो विसुज्झमाणस्स ओहिनाणं उप्पज्जति, ततो बिसुज्झमाणस्स मणपज्जवणाणं उप्पज्जति, ततो गाणा-IN वरणदंसणाघरणमोहणिज्जअंतरायाणं चउण्हवि कम्माण णिरवसेसक्खतेण अविगप्पं एगं चेव केवलनाणं समुप्पज्जति । जे य ॥७२॥ आभिनियोहियणाणादयो विगप्पा ते तस्स केवलणाणिणो ण हवंति, कस्सति पुण ओहिनाणावरणिज्जाणं कम्माण खओवसमेट अकतेऽवि मणपज्जवणाणं उम्पज्जति, पच्छा ओधिणाणावरणखतोवसमं काऊण ओहिबाण उप्पाडेति, ततो केवलणाणावरणक्खये अनुक्रम 'केवल ज्ञानस्य स्वरुपादि वर्णनं आरभ्यते (78) Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७७-७८], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक दीप काऊण केवलणाणमुप्पाडेतिचि । कोवि पुण ओहिमणपज्जवणाणाणि अपाविऊण चेव केवलणाणमुप्पाडेति । अतो केवलणाणं चेव केवलज्ञानं आवश्यक शनिच्छयणयस्स बत्तन्बयाए आवरणं पडच्च आभिाणिवोहियणाणादीण णामाणि लब्भति । तं चेव केवलगाणं सब्बदव्वाणं | ही परिणामस्स सब्बभावाणं च परिणामस्स विनातिकारणं भवति, एगगहणे गहणं तज्जातीयाणं सव्वेसितिकाऊण दबभावग्गणेणी श्रुतज्ञाने सव्वखेचपरिणामस्स सब्बकालपरिणामस्स य दोण्हवि विनत्तिकारणं भवति । जम्हा य सव्वदव्यखेत्तकालभावाणं चउण्हवि ॥७३॥ सवपरिणामाणं विनत्तिकारणं भवति अतो ते केवलणाणं अणंतं दट्ठव्यंति । तत्थ सब्ददव्वपरिणामो साम, दव्वं दुविहं भवति, दा तंजहा- जीवदव्वं अजीवदव्वं च, तस्स दुविहस्सावि दबस्स जो उप्पायट्टितिभगेहिं पज्जायभावो सो दव्यपरिणामो भन्नति, तत्थ खेत्तगहणेण आगासत्धिकायस्स गहणं कयं, तस्स खेत्तपरिणामो परपञ्चइओ पोग्गलत्थिकायादिणो दब्बे पडुच्च भवतित्ति, | तत्थ कालपरिणामो णाम समयावलियमुहुत्तादी अणेगमेदो भवति, भावपरिणामो णाम एगगुणकालादी अणेगभेदो ददुव्वोत्ति । एतसि चउण्हवि दवखेचकालभावाचं जो परिणामो तस्स सवपरिणामस्स विनचिकारणमणंतं केवलणाणं भवतित्ति । तत्थ विन्नतिकरण नाम विन्नचिकारणति वा जाणितव्वगसामत्थजुत्तंति वा विनचिहेउभूयंति वा एगट्ठा, जहा य केवलणाणं अणंतर पू भवति तहा सासतं अपडिवादी एगविहं च भवति । तत्थ एगविहं णाम आभिणियोहियनाणादीभेदविउचति वुत्तं भवति, एत्थ । सीसो आह-जमेतं दुवालसंग गणिपिडगं एवं केवलणाणोबलद्धति काऊण कहं केवलं चेव ण भवति ?, आयरितो आहकेवलणाणेणऽत्थे०॥ ७८ ॥ दुबिहा भावा भवंति, तंजहा-अभिलप्पा य अणभिलप्पा य, तत्थ जे ते अणभिलप्पा ते ण ॥७३॥ दाचेव अभिलविऊण सतित्तिकाऊण तेसु अधिकारी व गत्थि, जे ते पुण अभिलप्पा ते दुविहा भवंति, तंजहा- पण्णवणिज्जा अनुक्रम SAIXIAS 8-27 (79) Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७८-७९], भाष्यं - प्रत सत्राक 13 अपण्णवणिज्जा य, तत्थ जे ते अपनवणिज्जा तेसु ण घेव अहिगारो अथिति, जे पुण पण्णवाणिज्जा भाषा ते केवलणाणेण 31 | भवस्थआवश्यक पासिऊण तित्थकरो तित्थकरनामकम्मोदतेण सब्बसत्ताणं अणुग्गहनिमित्तं भासति, जंच सो भगवं भासति तं बतिजोगजुत्तत्व- कवलज्ञान चूर्णी Iोण सुयणाणं भवति, जंच प्रण सेस केवलणाणोबलद्धं ण चेव भासति केवलणाणं ददृच्चति ।। श्रुतज्ञाने तं च केवलणाणं सामिनं पहुच्च दुविहं भवति, तंजहा- भवत्थकेबलणाणं च सिद्धकेवलणाणं च, तत्थ भवत्थकेवलणाणं ॥७४॥ नाम मणुस्सभवे चेव अवस्थितस्स बउहि घातिकम्मेहिं खीणेहिं समुप्पज्जति, तंजाव चउरो केवलिकम्मा अक्खीणा ताव भवत्थकंवलणाणं भन्नति, जं पुण केवलिकम्मेहिं खीणेहि सिद्धस्स तं सिद्धकेवलणाणं भवति, सत्य जंतं भवत्थकेवलणाणं तं विहं, तंजहा- सजोगिभवत्थकेवलणाणं च अजोगिभवत्थकेवलणाणं च, तत्थ सजोगिग्गहणेण केवलणाणसमुप्पत्तीओ आरम्भ जाव पंचहस्सक्खरियं सेलेसि ण पडिबज्जति ताव सयोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, जाहे पुण पंचहस्सक्खरिय सेलीस पडियने है। भवति ताहे अजोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, तत्थ जं तं सजोगिभवत्थकेवलणाणं तमवि दुविहं भन्नति, तंजहा-पढमसमयसजोगि-18 | भवत्थकेवलणाणंच अपढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं च, तत्थ पढमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं णाम जमि चेव समये । केवलणाणमुप्प वंमि चैब तस्सं केवलणाणस्स पदमसमयसजोगिभवस्थकेवलणार्णति सभा भवति, ततो य केवलणाणुप्पत्तिही पढभसमयातो जो बीतो अणंतरसमतो ततो आरम्भ जाव पंचहस्सक्सरियं सेलेसि ण पडिबज्जति ताव अपढमसमयसजोगिभवत्थ-|| IM॥७४॥ केवलणाणं भन्नति, तहा एयस्स चव सजोगिभवत्थकेवलणाणस्स अन्ने इमे दुए भेदा भवंति, जहा- चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च अचरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं च, तत्थ चरमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं णाम जातो समयातो अणंतरं दीप अनुक्रम RECARRESPEC (80) Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्राक पंचहस्सक्खरियं सेलोस पडिवज्जात सो य सजोगिमवत्थकेवलणाणिस्स चरमसमयो भन्नति, तमि य समये वट्टमाणस्स केबलिस्स अनन्तरआवश्यक केवलणाणं तं चरिमसमयसजोगिभवत्थकेवलनाणं भवति, तातो य सजोगिचरिमसमयाओ आरम्भ जो से अतीतो कालो जाव सिद्ध चूणौँ केवलणाशुपचिपढमसमयो एस्थ अचरमसमयसजोगिभवत्थकेवलणाणं भन्नति, से तं सजोगिभवत्थकेवलनाणं । तत्थ जंतं अजोगि-18 कवलज्ञान श्रुतज्ञानेभवत्थकेवलणाणं, से तं भवत्थकेवलनाणं ॥ से किं तं सिकेवलणाणं?, सिद्धकेवलणाणं दुविहं भवति, तंजहा-अणंतरसिद्धकेवलणाणं च परंपरसिद्धकेबलनाणं च, तत्थ - ॥७५॥ अणंतरसिद्धकेवलणाणं णाम मि समते एगो केवलो सिद्धा ततो जो अणंतरो चितीओ समतो तमि अन्नो केवली सिद्धो तस्सद केवलिस्स जं पाणं तं अणंतरसिद्धकेवलनाणं भन्नति, ते च पभरसविहं, जहा-तित्थसिद्धकेवलणाणं अतिथीसद्ध तित्थगर18. सिद्ध० अतित्थकर० सयंबुद्ध पत्तेयबुद्ध युद्धबोहिय इथिलिंगसिद्ध पूरिस णपुंसकलिंग अनलिंग गिहिलिंग एगसिद्ध81 अणेगसिद्धकेवलणाणति । तत्थ तित्थसिद्धकेवलणाणं णाम जे वित्थगराणं तित्थे सिद्धा तास जं जाणं तं तित्थसिद्धकेवलणाणं भन्नति अतिस्थसिद्ध णाम जे तेसि तित्थगराणं तित्थातो तित्था ण मिलिता तस्थ तित्यंतरे च बदमाणे जे सिद्धा तेसिं जे केवलणाणं तं | अतित्थसिद्धकेक्लणाणं भन्नति, तित्थगरसिद्धकेबलणाणं जहा उसमादीण, अतित्थगरसिकेवलनाणं जहां भरहादीण, सयंबुद्ध केवलनाणं जे सय चेव संबुझिऊणं किंचि आयरियं उवसंपज्जति ततो पच्छा जे तस्स केवलणाणं तं सयंबुद्धकेवलणाणं भण्णति है। मापतेयबुद्धकेवलणाणं णाम जहा णमिस्स रायरिसिणो, ते य पचेयबुद्धा सयं व संयुज्झिाऊण सर्व चेव पब्बज्ज अन्सुवगच्छति ।।७५॥ तेर्सि जे केवलणाणं तं पचेयबुद्धकेवलणाणं भवति, अथवा सयं-अप्पणिज्जं जातिस्सरणादिकारणं पहुच्च बुद्धा सर्ययुद्धा, फुडतरं ट्र दीप अनुक्रम (81) Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणों सत्राक श्री वा अभिधीयते, बाह्यप्रत्ययमंतरेण ये प्रतिबुद्धास्ते सयंयुद्धाः, ते य दुविहा- तित्थगरा घइरित्ता य, इह पतिरिचेहिं अहिगारो, अनन्तरआवश्यकता किंच-सयंबुद्धस्स बारसविहोऽवि उवही भवति, पुब्वाधीतं से सुतं भवति वाण वा, जति से पत्थि तो लिंग नियमा गुरुसंनिहे सिद्ध पडिबज्जति गच्छे य विहरति, अहवा पुब्बाधीतसुयसंभवो अस्थि तो से लिंग देवता पयच्छति गुरुसंनिहे वा पडिवज्जति, जदि श्रुताना य एगविहारविहरणजोग्गो इच्छा य से तो एगो चेव विहरति, अन्नहा गच्छे विहरति, एयम्मि भावे ठिता सिद्धा, पती पती॥ ॥७६॥16 (पत्तेयत्ता) ओ वा भावतो सिद्धा पचेयबुद्ध, पत्तेयं बाधं वसभादिकारणमभिवीक्ष्य युद्धा पत्तेयबुद्धा, एतेसिं णियमा पत्तेयं विहारो। जम्हा तम्हा ते पत्तेयबुद्धा, जहा करकंडुमादयो, किंच-पत्तेयबुद्धाणं जहन्नेण दुपिहो उकोसेण णवविहो उवधी णियमा पाउरणवज्जो 21 भवति, किंच-पत्तेयबुद्धाणं नियमा पुब्बाधीत सुतं भवति, जहभेण एकारसंगी उकोसेण भिन्नदसपुथ्वी, लिंगं च देवया पयच्छति IR लिंगवज्जितो वा भवति । जतो भणितं 'रुप्पं पत्तेयबुद्धा' इति | बुद्धबोहियकेवलणाणं णाम संम सोऊण वेरग्गतवजुत्तस्स भवति तं बुद्धबोहियकेवलणाणं भन्नति, इथिलिंगण सिद्धाणं जे नाणं तं इथिलिंगसिद्धकेवलणाणं, एवं पुरिसणपुंसएमुवि भाणियब, ID तहा सलिंगसिद्धाण जं गाणं ते मलिंगसिद्धकेवलणाणं भन्नति, अनलिंगसिकेवलणाणं णाम जे अन्नलिंगण सम्म पडिवनस्स केवलणाप्यं समुप्पज्जति, समुप्पत्तिकालसमयमेव कालं करोति तं अनलिंगसिद्धकेवलणाणं भन्नति, सो य अनलिंगिकेवली जति आउयमप्पणो अपरिक्खीण पासति ततो साधुलिंग चेव पडिवज्जतिनि । गिहिलिंगसिद्धकेवलणाणं णाम जहा कस्सति गिहिणोBI लव सम्मत्वं पडिवचस्स केवलणाणं उप्पज्जेज्जा, समुप्पत्तिकालसमयमव कालं करेज्जा तस्स जे गाणं तं गिहिलिंगसिद्धकेवलणाणं CHI७६ ॥ भन्नति, एगसिद्धकेवलणाणं नाम जमि समये सो सिद्धो न तमि अन्नो कोइ सिद्धोत्तिकाऊण तस्स जं नाणं तं एगसिद्धकेवलनाणं दीप अनुक्रम (82) Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक भण्णति, अणेगसिद्धकेवलनाणं नाम मि समए सो सिद्धो तैमि समये अनेवि सिद्धा एतेसिं जे गाणं तं अणेगसिद्धकेवलणाणं आवश्यकभनति । एवमेतं अर्णतरसिद्धकेवलणाणं भवतिचि ॥ X केवल परंपरसि । तत्थ परंपरसिद्धकेवलणाणं अणेगविहं भवति, जहा-अपढमसमयसिद्धकेवलणाणं एवं दुसमय जाब दससमय संखेज्जसमय श्रुतज्ञाने असंखेज्जसमय अणंतसमयसिद्धकेवलणाणंति । तत्थ अपढमसमयसिद्धकेयलणाणं णाम अस्थि ते सिद्धा जे अबस्स सिद्धस्स | सिज्झणकालातो अपढमिल्ले समये सिद्धा तेसिं जे केवलनाणं तं अपढमसमयसिकेवलणाणं भन्नति, तहा अस्थि ते सिद्धा जे ॥७७॥ अअस्स सिद्धस्स सिझणकालातो वितिए समए सिद्धा तेसि जे केवलणाणं तं दुसमयसिद्धकेवलणाणं भवति, एवं जाव अस्थि ते सिद्धा जे अबस्स सिद्धस्स सिझणकालातो अणंततिम समये सिद्धा तेर्सि जे गाणं तं अणंतसमयसिद्धकेबलनाणं भन्नति । सेतं । परंपरसिद्धकेवलणाणं । से तं सिद्धकेवलनाणं ॥ तं च केवलणाणं समासती चउन्विहं भवति, तंजहा-दब्बतो खेत्ततो कालतो ४ भावतो, दव्बतो णं केवलणाथी सम्बदन्चाई जाणति पासति, खेत्तओणं केवलनाणी सब्यखेनं जाणति पासति, कालओ णं केवलनाणी सव्वकालं जाणति पासति, भावतो णं केवलणाणी सब्वभावे जाणति पासति । सेत्तं केवलणाण। एवमेतं पच्चक्खणाणं |तिविहमवि भणितं, बनिया य पंचविहावि आमिणिबोहियणाणाती केवलणाणपज्जवसाणा भावणंदित्ति ।। भावनंदी सम्मत्ता॥ एवमेताई आभिनिबोहियणाणादीणि पंच णाणाई भावमंगलणिमित्तं परूबिताई । एत्थ पुण सुयणाणेणं अधीगारो, कम्हा, जम्हा सुवणाणे उदेसो समुद्देसो अणुष्णा अणुतोगो य पबत्ततित्ति, अहवा जम्हा सुयणाणेण अबसेसाणि णाणाणि गज्जति X ॥७७॥ दापरूविज्जति वा तम्हा सुयणाणेण अधोगारो । अहवा चत्तारि णाणाणि ससमुत्थाणि इमं परसमुत्थं तेणं तस्स अधिकारी । दीप अनुक्रम (83) Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक श्रुतस्कंधेरा श्री जति सुयणाणेण अधिगारो तो उद्देसादीणि एयस्स पवत्तंति, तो कि अंगपविट्ठस्स अंगबाहिरस्स!, दोहवि, इमं पुण पट्ठवणं आवश्यकआवश्यक पहुच्च अंगवाहिरस्स, जति अंगबाहिरस्स तो किं आवस्सगस्स आवस्सगवतिरिचस्सी, दोपहषि, इमं पुण पट्ठवर्ण पहुच्च आवस्सगस्सदनिक्षपाः चूणा अ णुतोगी, आवस्सगनं किं अंग अंगाई सुअक्खंधो सुयखंधा अज्झयणं अज्झयणाई उद्देसो उद्देसा, आवस्सर्ग णं णो अंग 18णो अंगाई सुयक्खंघो णो सुयक्खंधा णो अज्झयणं अज्झयणा णो उद्देसो पो उद्देसा, तम्हा आवस्सगं णिक्खिविस्सामि सुर्य ॥ ७८॥टणिक्खिविस्सामि खंध णिक्खिविस्सामि। से किं तं आवस्सयं, आवस्सगं समासतो चउविहं-णाम ठवणा० दब्ब० भाव०, णामावस्सय जस्स पंजीवस्स वा हा अजीवस्स वा आवस्सएति णाम कीरति, से तं णामावस्सगं । से कि तं ठवणावस्सगं, २ जनं कहकम्मे वा पोत्थकम्मे वार है सम्भावओ असब्भावओ वा आवस्सएत्ति ठवणा ठप्पति सेत्तं ठवणावस्सगं । से कि तं दध्वावस्सगं?, दब्वावस्सगं दुविह, तंजहा आगमओ य णोआगमओ य, आगमओ जस्स णं आवस्सएत्तिपदं सिक्खितं ठित इच्चादि, सिक्खितं नाम जं अंतं पत्तं, ठितं दणाम जं से ठितं हियये, जितं नाम जं मूले घेत्तण अग्गं पावेति, मितं णाम जं अक्सरेहि पदेहि सिलोगेहि मित-एत्तियाई ताई, परिजितं नाम जं मूलाओ अग्ग पावेति अग्गाओ य मूलं पावेति, णामसमं णाम जहा अप्पणो णामं एवं तंपि अज्झयणं, घोससम | उदत्तअनुदत्तस्वरितकंपितद्रुतविलंबितविश्लिष्टापेक्षस्वरनियत, उच्चरुदात्तं जहा उप्पनेति वा भूएत्ति वा, अणुदत्त उप्पन्नेति वा भूएति वा, सयाहारे उप्पनभ्यपरिणया, हीणक्खरे उदाहरण-दब्बे अगारीए पुत्तस्स ओसहं ऊर्ण दिर्त, भाये बिज्जाहरो, ॥ ७८॥ 'रायगिहे' गाहा० अच्चक्खर उदाहरणं-दब्वे तदेव अगारी, अहिए भावे 'जो जह बढ़ती' गाहा, अहवा-'चंदगुत्त' गाहा। दीप अनुक्रम ...अत्र उपोद्घात् नियुक्ति: आरभ्यते, ...आवश्यकस्य नामादि निक्षेपा: वर्णयते (84) Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: श्री आवश्यक सत्राक चूर्णी श्रुतस्कंधे ॥७९॥ दीप है खलिते पत्थरमी नांगूल मिलिए धनरासी विच्चामलिते कोलियपायसो 'पडिपुओं' पडिपुत्रघोस कंठाढविष्पमुकं जहा& आवश्यक निक्षेपाः 'कप्पपेदिताए' तहा भणियच । सेतं आगमतो।। से किं तं णोआगमतो दवावस्सयं १, २ जाणगसरीर० भवियसरीर० तव्यतिरिनं ३ जहा णियोगदारे जा वतिरिते . पवरि लोउत्तरिए दवावस्सए इमं अत्य]क्खाणगं माणियव्वं--वसंतपुर णगरं, तत्थ गच्छो अगायत्थसंविग्गो विहरति, तत्थ य का एगो अगीयस्थो समणगुणमुक्कजोगी, सो दिवसदेवसियं उदउल्लससिणिद्धआहाकम्माणि पडिसेवित्ता महता संवेगेणालोएति, ते पुणो अगीयस्था पायच्छितं अयाणमाणा अहो इमो धम्मसडीओ साध, मह पडिसविडं दुक्खं आलोएड, एवं नाम एस आला-ICI एत्ति अगृहंतो, ते दणं ते अवसेसा पव्वझ्या चिंतेति-णवरि आलाएयब्बणस्थित्थ किंचि पडिसवितेणं । तत्थऽनदा कयाती गीयत्थो संविग्गो विहरमाणो आगतो, सो तं दिवसदेवसिय दटूर्ण तत्थ उदाहरणं दाएति--गिरिणगरे णगरे वाणियओ रनर-131 तणाणं घरं पूरइचा पलीबेइ, तत्थ सब्बलोगो पसंसति-अहो इमो भगवंत अग्गि तिप्पेइ, अन्नया कयावि तेण य पलिवितं, यायोला य पवला जातो, सण्यं णगरं रडं, अभाहपि णगरे एको एवं चैव करेइ, सो राणा सुआ जहा एवं करतात, सो य सब्यस्स हरण काऊणं विसज्जितो, अडवीए कीस ण पलीबेसि , जहा तेणं वाणियएणं अवसेसावि हड्डा, एवं तुन्भेऽपि एतं पसंसंता इमे साधुणी सच्चे परिचयह, एवं प एस महाणि धसो, जदि एयस्स निग्गहण करेह ताहे सच्चे विणस्सेहा, एवं दयापासतं | IRI X ॥७९॥ से कि तं भावावासगं,२ आगमतो य णोआगमतो य, आगमओ जाणी उपउतो, णोआगमती तिावह-लाइय लाउ-12 चरियं कुप्पावयाणयं, जहा अणुओगदारे ।। तस्स णं इमे एगट्ठिया णामधेज्जा पं० प्रायस्सगंति वा अवस्सकायव्यं अवस्सकर अनुक्रम (85) Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७८-७९], भाष्यं - सत्राका गति वा अवस्सकरणिज्जंति वा धुवकायव्यंति वा निग्गहोत्ति वा, एस्थ गाथा फासेयव्वा, 'समणेण सावगे एवं निरुत् आष- आवश्यकआवश्यकस्स गस्स, सेत्तं आवस्सगं । से किं तं सु?, सुयं जहा अणुओगद्दारे, खंघोवि तहेव, एत्थ सामादियादीण सुयविससाण छण्डंास्योपक्रमः चूर्णो खंधो सुयक्खंधो, आवस्सगं च तं सुयखंधो २ । एत्थ य छ अत्याधिगारा सामाइयादीणं जहाजोगमणुगंतव्वा, तं०-सावज्जजोगविश्रुतस्कवरती उक्किचण गुणवतो य पडिबत्ती । खलियस्स निंदणा वणतिगिच्छ गुणधारणा चेव ॥शा आवस्सयस्स एसो पिंडत्थो वनितो ॥८॥ समासेण । एतो एकेक पुण अज्झयणं बत्तइस्सामि ॥१॥ ___तस्थ पढम अज्झयणे सामाइयं, तस्स इमाणि चत्तारि अणुओगदाराणि भन्नति, तंजहा-उबकमो निक्खेयो अणुगमो गयो । |किं णिमित्रं चत्तारि दारा कता १, एगेणेच अणुममेणं कीस णाणुगम्मति , तत्थ दिट्ठतो-एगवारेण नगरेण समततो जोयणा-[A] यामेणं, जहा तत्थ एगेण दुवारण कद्रुतणयादिकज्जाणं संकिलेसो भवति सबलोगस्स, जहा तं नगरं दुभिक्खमणपवेसं भवति । एगेणं दुपारणं, एवं चेव सिस्सस्स दुम्मेहस्स दुक्खं एगेण दारेणं अत्थाधिगमो भवति, तेण चत्तारि दारा कया उवकमादिया। | से किं तं उवामे, उबकमो णासस्स अपचावत्यापावण, सो पुण छव्विहो-णामोवकमो ठवणोक्कमो दब्बो खत्तो कालो भावोचकमो, णामठवणाओ गयाओं, से किं तं दब्योपकमो?,२ दब्यस्स उवक्कमो दब्बोवकमो, दव्वाण वा उवक्कमोर दव्येण वा उवकमो ४ दबोचकमो दव्येहि वा उवकमा दव्यंमि वा दब्बेसु वा, दबस्स उबकमो जहा मोदगस्स, दवाणं उवकमो जहा णिप्फावाणं, दब्वेण 31 HRI||८०॥ | उबकमो जहा फलएणं समुदं तरति, दव्येहिं जहा बहुर्हि फलएहिं णाबा णिप्फज्जति ताए तरति, दबमि उवकमो जत्थ कासति सीस काऊण उबकामिज्जति | अहवा दब्बोयकमो तिविहो-सचित्तो अचित्तो मीसओ, सचित्तो तिविहो-दुपदचतुष्पदअपदाणं, SHERBARABAR दीप अनुक्रम अत्र 'उपक्रम'-आदि वर्तते (86) Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८-७९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: श्री आवश्यक चूणों श्रुतस्कंधे ॥८१॥ दीप है दुपदाणं दुविहो उवकमो-संवर्तने च परिकर्माणि च, संवर्तने जहा कोइ मणूसो मारिज्जति, परिकम्मणे जहा सो चेव बावत्तरी कलातो आवश्यकसिक्खाविज्जति, एवं चेव चउप्पयाणपि, अपयाणं परिकम्मणे जहा कक्कडियाओ जारिसियाओ इच्छिज्जति तारिसा खड्डा खणति स्योपक्रमः | पच्छा तारिसा भवंति, संवट्टणे सम्वेवि छिज्जंति । अचित्ते दबावकमो जहा सुवष्णं अंगुलीय कत्तेण परिकम्मिज्जति, संवट्टणे जहा | तं चेव विणासिज्जति । से किं तं मीसो दच्चोवकमो, २ सचामरधासलपरिमंडितो आसो धावणवग्गणधारणचियइवइ एवमादि सिक्खाविज्जति, सो चेव जहा संगामे आवडिते ववरोविज्जदि सो संवट्टणावकमो। से किं तं खेत्तोवर.मो, खचाव कमो जहा खेत्तं हलकुलियणगलादीहिं उवकामिज्जति । से किं तं कालोवामे,कालोवकमो जहा कालो नालिकाद हिं उबकामिज्जति । भावोवकमो दुविही-पसत्थो अपसत्थो य, अपसत्यं मरुइणिगणियाअमच्चदिवतहि, एगा मरुइणी, सा चिंतेति-किह धूतातो | सुहिगाओ होज्जत्तिा, ताए जेहिता धृता सिक्खाविता, जहा चडंतिया मत्थए पण्हीए आहणेज्जासि, ताए आहतो भत्ता, सो तुट्ठो | पाया महिउमारद्धो, ण हु दुक्खावियत्ति, ताए मातुं सिट्ठ, ताए भणित-जं करेहि तं करेहि, ण एस सकति तुज्य किंचिवि कातं. | बितिया सिक्खाविता, ताएवि आहओ, सो झंक्खित्ता उवसंतो, सा भणति-तुमंपि बीसत्था विहराहि, ततिओ रुट्ठो धेनुं पिट्टिता धाडिता य, तं अकुलपुत्तिया जा एवं तुमं करेसि, पच्छा किहवि गमितो, एस अम्ह कुलधम्मो, सा भणिता-जहा देवयस्स तहा | बडेज्जासि, मा छड्डितिया बहुं कालं अच्छिहिसिति ।। गणिकाबि चित्तसभाए भावं परिक्खित्ता तहा उपचरति ।। अमच्चे आसमुत्तणं 15॥८॥ | तलागआरामकरणं च, एस अपसत्थो भावोवक्कमो । अनुक्रम (87) Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७८-७९], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] “आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: श्री पसत्थो आयरियस्स भावो उबकमेयलो, जे चितइ त उवणेतव्वं पढमालिकादि णिरिक्खितेणं, खेलमल्लाइ वा ज भणति उपक्रमाआवश्यकतहा गेण्हियग्र, श्वेतः काकः १, आम श्वेतः, पीतो वा ?, आम पीतः, एवं वायाए, काएण-मिण गोणसंगुलीए०, मणेण सहमाणो, वतारः चूर्णी एवं सर्वार्थेषु । तत्र राजदिद्रुतो-अमयकोसे राया भणति-कतमो विणतो बलिओ, आयरिया भणति-लोगुत्तरिओ, पच्छा परिश्रुतस्कंधक्खितं रण्णा, णदीए बहतीए पेसित अमयकोसो, काइयमत्तओ पच्छम खुदओ ढोएति, तबिमिर पुच्छा, आयरिएणवि कतो मुहा 31 (वहातत्ति, एत्थ परिक्खितो विणतो। अहवा उवकमो छबिहो-आणुपुब्बि नाम पमाणे बत्तबया अत्याहिगारो समोतारो, एयाणि सव्वाणि परूवेऊणं इमं सामा-12 इयअज्झयणं उवकमे, आणुपुचिमादीएहिं दारेहिं जत्थ जत्थ समोयरइ तत्थ तत्थ समोतारियव्वं । आणुपुब्बीए उकित्तणाणुपु ए समोतरति, सा य तिविधा-पुन्वाणुपुच्ची पच्छाणुपुब्बी अणाणुपुब्बी, पुब्बाणुपुबीए पढम, पच्छाणुपुचीए छह, अणाणुपुवीए | एतेसि चेव एकादियाए एगुत्तरियाए छगच्छगताए सेढीए अनमबब्भासो दुरूवूणो तावतियाओ ताओ अणाणपृथ्वीओ, करणं | अणाणुपुब्बीण-एगो बेहिं गुणिज्जति जाता दोनि, दोभि तिहिं गुणिज्जंति, जाता छ, छ चउहिं गुणिज्जंति, जाता चउबीसं, चउच्चीसा पंचहि गुणिज्जति, जातं सयं वीस, तं छहि गुणेत्ता जावतिओ रासी सो दोहिं ऊणो कीरति, किनिमित, पुब्बाणुपुची य पच्छाSणुपुष्यी य दोषि अवणिज्जति, तो अणाणुपुचीतो होति । णामे छबिहणामे समोतरह, तत्थवि खओवसमिए नाम समोयरति, कम्हा , जम्हा सबसुयं खओवसमियमितिक१ । पमाणं चउम्बिई-दब खत्तकाल०भाव०, भावप्पमाणे समोतरति, तं तिविह- ८२॥ गुणव्णय संख० गुणप्पमाणे समोतरति, गुणप्पमाणं तिविहं गाणप्पमाणे दंसणप्पमाणं चरिचप्पमाण, गाणगुणप्पमाणे समोतरति,णो | RI दीप अनुक्रम SAREER (88) Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७८-७९], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: निलंपानुगमो : HEIG स सेसहि, णाणगुणप्पमाणं चउबिह, तंजहा-पच्चक्खे अणुमाणे ओवम्मे आगमे, आगमे समीतरति, आगमे तिविहे, तजहा-अत्तागमे आवश्यक अणंतरागमे परंपरागमे, इमस्स सामाइयज्झरणस्स तिस्थगरस्स अत्थस्स अत्तागमे, गणहराणं अत्यस्स अणंतरागमे, सुत्तस्स अत्तागमे, चूर्णी गणहरसीसाणं अत्थस्स परंपरागमे, सुत्नस्सा अणंतरागमे, तेण परं अस्थरसवि सुत्तस्सवि नो अत्तागमे नो अणतरागमे, परंपरागमे । थुतवाने से किंतं संखप्पमाणे?, संखा अट्ठविहा, तत्थ परिमाणसंखाए समोतरति, साप दुविहा परिमाणसंखा कालियमयपरिमाणसंखा |य दिहिवायसुयपरिमाणसंखा य, कालियसुयपरिमाणसंखाए समोतरति, पज्जवसंखाए अणता पज्जवा संखज्जासंघाया संखेज्जा अक्खरा संखेज्जा पदा गाथा सिलोगा वेढा, अज्झयणसंखाए एग अज्मयणं, णो उदसो संखाए। से किंतं वत्तम्बया, बत्तच्चया विविहा, संजहा-ससमयवत्तम्बया परसमयवत्तव्वया ससमयपरसमयवत्तव्यया, तत्थ सस+मयवत्तव्बयाए समोतरति, वत्तथ्यतचि गता । से किं तं अत्थाहिगारो?, सावज्जजोगचिरती अस्थाहिगारो, एवं जत्थ जत्थ |समोतरति तरथ तस्थ समोतारेयच्वं । सेनं उपयामेत्ति दारं गतं ।। ____से किं तं निक्खेवे?, निक्खेवे तिविहे पबत्ते, जहा-ओपनिष्फन्ने नामनिष्फने सुचालावगनिष्फले, ओहनिष्फन्ने अज्झय-2 त्ति वा अज्झीणिचि वा आएति वा झवणेति का, जहा अणुयोगहारे गामनिष्फमे समोयारियंति, ते चउबिह-नामसामाइयं ठव० दच० भाव०, नामट्ठवणाओ गताओ, पचयपोत्थयलिहितं जं वा निण्हगाणं असविग्गाणं एवं दब्बसामाइयं, भावसामाइयं | चिउविहं उरि भणिहामि, सुत्तालावगनिफनो निक्खेवो पत्तलक्षणोऽवि ण णिकखिपति, कम्हा , लाघवत्थं, जम्हा अस्थि दीप अनुक्रम निक्षेपस्य ओघ-आदि त्रि-भेदा: (89) Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [१/८०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि: CIENC प्रत HEICO दीप श्री अतो तइयमणुयोगद्दारं अणुगमोत्ति, तर्हि वा निक्खि इह निक्खित्तं, इह वा निक्खितं तहिं णिक्खिन भवति, तम्हा तहि चेव निक्षेपा. आवश्यक निक्खिप्पिहित्ति । नुगमी चूर्णी या से किं तं अणुगमे?, अणुगमे दुविहे पं०, तंजहा-सुचाणुगमे य णिज्जुत्तिअणुगमे य, सुत्ताणुगमे सुत्तं अणुगंतव्यं, निज्जु-१ तिअणुगमो तिविहो-निक्खेबनिज्जुत्तिअणुगमो उवग्यायनिज्जुत्तिअणुगमे मुत्तफासियनिज्जुत्तिअणुगमे, सामाइयनिक्खेव | निज्जुतिअणुगमे जं एत हेट्ठा बबितं । इयाणि उवुग्घातनिज्जुत्तिअणुगमा, तं उबघायनिज्जुत्तिअणुग बबेतुकामो आयरितो ॥८४॥ महत्था निज्जुत्तित्ति काऊण मंगलं करेति- उधोग्घातो णाम उद्देसनिग्गमादीणिरूवणं, 'मेघच्छन्नो यथा चंद्रो, न राजति नभस्तले । उपोद्घातं विना शास्त्र, न तथा भ्राजते विधौ ॥ १॥ ते पुण मंगलं चउबिह, चउब्विहपि जहा हेट्टा भावमंगले, इमं ४ गाथामुत्तं तित्थगरे भगवंत अणुत्तरपरकमे अमियनाणी। तिने सुगतिगतिगते सिद्धपहपदेसए वंदे ॥२॥१॥ 'तृ प्लवनतरणयोः' अयं तृधातुः प्लवने तरणे च, तं च तरणं चउद्धा- णामादि, णामट्ठवणाओ गताओ, दब्बतरणे तिमि सूइज्जति, त०- दव्यतरओ दवतरणं दवतरियश्चर्य, तत्थ दवतरओ पुरिसादी, दव्यतरणं उडुपादी, दव्वतरियन्वं णदिसमुद्दसगदि, एवं भावतरणेऽवि, णवरं भावतरओ जीवो भावतरणं णाणादि भावतरियव्ययं संसारो चउव्यिहो, एवं प्लवनमापि । तरंति | ||८४॥ अनेनेति तीर्थ, एवं ताव तित्थं निष्फलं, तं दुबिह- दव्यतित्थं भावतित्थं च, दव्यतित्थं मागहमादि, भावातित्थं जिणवयण, IP अहया दव्यतित्थं ४-सोवारं मुउत्तार १ सोतारं दुरुत्तारं २ दुरोतारं मुउत्तार ३ दुरोतारं दुरुत्तारं ४, एवं भावतित्थंपि मुओता-21 अनुक्रम E ...अनुगमस्य द्वि-भेदा: -सूत्र एवं नियुक्ति-अनुगम, ...अत्र नियुक्ति-मङ्गलं वर्तते .यहां से नियुक्ति-क्रममें [१/८०], [२८] ऐसे आगे सभी नियुक्तिमें जो लिखा है, उस का रहस्य ये है कि जो अंक (0 ओब्लिक के पहेले लिखा है, वो इस चूर्णिमें लिखा हआ क्रम है और (1) ओब्लिक के बादमे जो क्रम है वो वृत्ति के संपादनमे लिखा हुआ क्रम है | चूर्णिमे छपे अंकोमें बहोत संदिग्ध पद्धत्ति है, इसिलिए हमने वृत्तिमे संपादित नियुक्ति-क्रम दे कर सरल बनाने का प्रयास किया है। (90) Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [१/८०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप रादि ४, सरक्खमइयाणं सुओयार सूचार, तच्चनियाणं मुओतारं दुरुत्तार, बोडियाणं दुओतार सुओतारं, दुओतारं दुरुत्तारं इणमेव । आवश्यक निर्गथं पावयण, अवा 'दाहोवसमतबहाऍ ठेवणं मलपवाहणं चेव । तिहिं अत्यहिं निउत्तं तम्हातं भावओ तित्थं ॥१॥ निक्षेपाचूर्णी एवं भावतित्थेवि समोतारिज्जति । जेहिं एवं दसणणाणादिसंजुत्तं तित्वं कयं ते तित्थकरा भवंति, अहवा तिथं गणहरा, तं जेहिं नुगमो उपोद्घातकर्य तित्थकरा, अहवा तित्थं चाउब्वन्नो संघो, तं जेहिं कयं ते तित्थकरा, मगो जेसिं . अत्थि ते भगवंतो,-माहात्म्यस्य समग्रस्थ, रूपस्य यशसः श्रियः। धर्मस्याच प्रयत्नस्य, पण्णां भग इसींगना ॥१॥ अणुत्तरो परक्कमो जेसि ते अणुचरपरसाताकमा, न अन्नेर्सि उत्तरतरो परक्कमो अत्थि सव्वसत्ताणमपि, अमितणाणी--अर्णतणाणी, तिया चाउरंतसंसारकतार, तरिऊण सुगति गतिगता, सुमती सिद्धा सेसि गती सुगतिगती तं गतार, सिद्धिए पहो २, पहो दुविहा- दच्चपहो णगरादीण भावप्पहोणाणदसण-12 चरित्ताई, तेहिं सिद्धी गम्मइत्ति, पगरिसेण देसगा पदेसगा, ते वंदे, वदि अभिवादणथइसु. कायेणाभिवादयामि बाचा प्रस्तीमि, 11 तित्थगरविसेसणत्थं भगवद्वचनं, दब्बअनवादितित्थगरणिसेहणत्थं, एतेऽधि कहिंचि भगवंतो व्याख्यायंते, अणुत्तरपरक्कमवयण, API जतो ण तेर्सि एवं रागादिमहासत्तुअक्कमण, तहा अमितणाणी न ते णाणरहिता परिभितणाणी वा, किंतु अमियस्स-अपरिसेसस्स | यस्स गाणीति, तिचे य ण पूण संसारकतारस्था, तरिऊण ण पुणो तरिस्संति वा इति, तरिऊणं च सिद्धगति उट्टलोग तं गता, व पूण अणिमादिअढविहमिस्सरियं पाविऊण कतिणो, सबभावन्नू परमदुत्तरं तिबा, इहेब सन्बदा मोदन्ते इति, 'सिद्धपहपदेसए' इति अणेण लीवयतित्थगरासाहारणं परमोबगारित्तं दरिसेति, तत्किमुक्तं ?, जम्हा एतस्विसेसणविसिट्ठसरूवा परमोचगारी य15 X ॥८५॥ हा तम्हा बंदणारिहा, अतो तान् वंदे इति । एवं च लोइततित्थगराणं बंदणववच्छेदो कतो, तेसि च भगवंताणं अनिसयसरूवकहण-1 अनुक्रम । (91) Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [२।८१], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 5 मंगलं सत्राक श्री पुच्च बंदणं कयं भवतीति । अहवा तित्थगरवयणं प्रणयनादिप्रदर्शनार्थ, भगवद्वचनं इस्सरियादिसदसणत्थं, अणुत्तरपरक्कमवयणं आवश्यकता शक्तिपदरिसणथं, अमियणाणिवयणं णाणिड्डिथावणत्थं, तीण्णवचनं दुक्खच्छेदपरिसणत्थं, सुगतिगतिवयणं अवत्वापदरिसणत्यंत चूणा I सिद्धिपथादिवयणं सवहितोपदेसोबगारस्थमिति ॥ एवं ओहेण ताप णमोक्कारो कती, इयाणि जेणद तित्थमुपदि8 तस्स उपाधावा णमोक्कारो कीरति-'वंदामि' गाहा ।। २।२॥ महत्तं पाहले बहुचे य, पाहने मोक्यो पहाणो, महंतं भजतीति महाभागो, बहुत्वे नियुक्तो लतत्रैव सुखमतुलं, महायशः, अविसेसितो यशो विससिता कित्ती, विदितं मुणितमेकोऽर्थः, महंत जेण मुणितं स भवति महामुणी, किट ॥८६॥ तन्महंत:- णव पयत्था, महावीरो नाम गुणनिप्फन, महन्तं वारियं यस्य स भवति महावीरो, सव्वदेवावि अंगुट्ठएणं पंडुकंबलसि हुलाए अवहितं तित्थगरं उप्पलज्जा, ग सकेति उप्पेलेऊ, एवं सकला स्यणप्पमा सा पुढवी मेरेमि घेत्तूण सत्तवि पुढवीओ साहाणित्ता |अलोए खिविज्जा, एरिसं वीरियं, सा य अतीव लण्हा उच्चा य, ततो महाबीरियजुचो इति महावीरो णाम, अमराण णराण व रायाणो अमरणररायाणो तेहिं महितो, ससेहि कि अमहितो', उच्यते, सेसेसु कामं ता, मह पूजायां, महितो पूजितो, पूजितो नमंसितो एगट्ठा । इमस्स तित्थरस कला, इदं च पच्चक्खीभावे, अहया चरगादीण पढिसेहो । एवं सामिस्स अर्थवक्तुः मंगलत्थं बंदणमभिहितं, इयाणि मुत्तकर्तृप्रभृतीनामपि पूज्यत्वाईदणं कीरति एकारसवि० ॥२३॥ एकारस इति संखा, तित्थगरेहिं सयमणुचातं गणं धातित्ति गबाहरा, आविसद्दो समुच्चये, पगरिसेण आदीए वा वायगा पवायमा, पवयणस्स दुवालसंगस्स । एतेण तेसिपि भगवंताण परमोरगारिच देसेति । अतो तेऽवि वंदामिति । ॥८६ सब्वं गणहरवंसं' अज्जसुहम्मे थेरावलिया, जाव जेहिं अम्ह सामाइयमादयिं वादिते, पारगवंसो गाम जेहिं परंपरएणं SANSARKA5% दीप अनुक्रम (92) Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥ ८० ॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1 निर्मुक्तिः [४/८३-८७] भाष्यं [-] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 सामाइयादि अस्थो गंथो में वादितो, अमो गणहरवंसो अन्नो य वायगवंसो, तेण पत्तेयं क्रियते, पवयणं चाउब्वनो समणसंघो दुवालसंगं वा गणिपिडगं तं च वंदामित्ति । ते बंदिऊण० || २|४ | वे तित्थगरादयो वयणं च सिरसा- परमायरेण बंदिऊण अस्थार्ण पुडुनं बाहुलं जस्स तस्स तेहिं तित्थगरादीहिं कहियस्स कस्स ?- सुयणाणस्स भगवतो, किं ? - निज्जुति किसमिस्सामि परूवेस्सामि पद्मवेस्सामि एगट्ठा। कतमस्स सुवणाणस्स ? - आवस्सगस्स दसकालियस्स तह उत्तरज्झमायारे सुयगड दसाणं कप्पस्स ववहारस्स परमणिउणस्स सूरियपन्नत्तीए इसिमासियाणं, चसद्देण चूलाण य पेढीण य जाणि य भाणिताणि, एवं कालियसुयस्स, दिडिवायस्स अत्रेण पगारेण भणिहिति । तत्थ अवसेसाणि ताथ अच्छंतु, आवस्सगस्स ताव भणामि, तं आवस्सगं छन्विहं सामायिकादि, तत्थ पढमं सामाइयस्स, एतेणाभिसंबंघेण सामाइयाणजुत्ती, तत्थ परंपरओ दुषिहो, संजहा-दव्यपरंपरओ भावपरंपरओ य, दव्वपरंपरए इमं उदाहरणं तेणं कालेणं ते समतेणं साकेयं णगंर, तत्थ बहिता उत्तरपुरन्धिमे दिसीभागे सुरपिए जार्म जक्खाययणे होत्था, बनओ, संनिहितपा डिहेरो, सो य वरिसे २ चित्तिज्जति, महो य से कीरति सो य चिचितो समाणो तं चैव चित्तगरं मारेति, तेण भएण चित्तकरका सच्चे पलाइतुमारद्धा, पच्छा रना नायं जदि एते सब्बे पलायंति पच्छा एसो जस्तो अचिचिज्जतो अहं वधाय भविस्सति ते भए चिचकरकरना संकलिता बद्धा, पाहुएऽहिकता, तेसिं सव्वेसिं नाभाई पत्ता लिहिणं कुडे बूढाई, ततो वरिसे वरिसे जस्स णामं उट्ठेति तेण चित्तेयथ्यो। एवं च कालो बच्चति । अभमा कमाइ एगो चित्तकर वेडो सो भर्मतो साएयं गतो, तत्थेगस्स चित्तकारस्य घरं अलीणो तत्थ एगपुत्तिया धेरी, सोवि से बेडो मितं जातो, एवं तस्स तत्थ अच्छंतस्स अह तंमि वरिसे तस्स •••अथ सामायिक- निर्युक्तिः आरभ् (93) गणधरनमस्कारः नियुक्तिकंथन प्रतिज्ञा च ॥ ८७ ॥ Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA श्री 13थेरिसुवस्स वारओ जाओ, पच्छा सा थेरी बहुप्पगार रोयति, तं रूयमाथि थेरि दट्टणं भणति-किं आइए ! परूयास एवं , द्रव्यपरपरआवश्यकताए सिटुं, सो भणति थेरिकामत्तेणं, मा तुम्भे रुयह, अहं तं जसं चिचइस्सामि, ताहे सा भणति- तुम कि मे पुत्तो न भवसि, चूणी तोवि अहं चित्तेमि, अच्छह निरद्दबाओ, एवं तेण छट्ठभत्तं काऊण अहतवत्थजुगलपरिहितेणं चोक्खेण पयतेण सुतिभूतेणं णवएहिं । इष्टक परंपरका उपाघातकलसेहिं हाणिचा णवएहिं कुच्चएहिं नवएहिं मल्लयसंपुडेहिं असिलेसेहिं वन्नएहिं एवं तेण सो चितितो, चिचेऊणं पादपडितो नियुक्ती भणति-जं च भए एत्थ किंचि अवकतं तं खमह, तत्थ सो तुडो संनिहितपाडिहेरो भणति-वरे वरं पुत्ताः, सो भणति-एस चेव मम ॥८८ बरो-मा लोग मारेहि, तं भणति-एवं तापडितमेव, जे तुहं ण मारितो, एवं अपि ण मारेमि, अन्न भण, सो भणति-जस्स द्राण दुपयस्स वा चउप्पयस्स वा अपयस्स या एगमवि देस पासामि तस्स तदाणुरूवं रूवं निव्वत्तेमि, एवं होतुति तेण दिनो, एवं। है सो वरे लद्धे गओ कोसंबि णगरि । तत्थ य सयाणिो नाम राया, सो अनया कयाइ सुहासणवरगतो दूतं पुरछति-किं मम देवाणुप्पिया! णरिथ जं अन्नराइणं | अत्थि?, तेण भणितं-चित्तसहा णत्वि, मणसा देवाणं वचसा पत्थिवाण, दक्खणमेव आणत्ता चित्तगरगा, तेहि सभाओगासा विभत्ता, तत्थ तस्स वरदिनस्स जो सो अन्तेपुरकिडुपदसो सो लद्धो, एवं तेण तत्थ णिम्मितेसु तदाणुरुवेसु रुवेसु अनया कदाति मिगावतीए जालंतरेण अंगुली दिडा, सेण अंगुलिसारिक्षेण देवी सव्वा तदाऽणुरुवा णिम्मविता, तीसे पुण चमि उम्मिल्लिज्जतमि एगो मसिविंदुयओ उरुमन्तरे पडितो, तेण पुढो, पुणोऽवि जातो, एवं तिन्नि वारे, पच्छा नेण णार्य-एवं एतेण होयब्वमेव, एवं चित्तसभा |णिम्माता। अमदा कयाति राया चित्तसमें पुलएंतोतं देस पत्तो जत्व सा देवी, तं णिवत्रतेण सो बिंदुको दिडो, तं दणं आसुरत्तो, दीप अनुक्रम |...मृगावति कथा (94) Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूर्णी HEIGA परंपरकः तण दूतो पयट्टिओ दीप ॥ एतेण ममं पत्ती धरािसतत्ति वझा आणचो, सेणी उबविता भणति- सामी ! एस वरलद्धात्ति, राया भणति- जदि एवं तो दिव्यपरंपरआवश्यक IM खुज्जाए से मुहं दाइज्जतु, तेण तदाणुरूवं णिव्यत्तियं, तहावि तेण संडासा छिदाविओ चेव, निविसतो य आणचो । सो पुणो ' जक्खस्स उववासेण ठितो, जक्खेण भणिो- 'वामेण चिहिसित्ति, सो तस्स रबी पोस गतो, तेण चितित-पज्जोतो एयस्सी पीति पाएज्जात्त चिंतिऊण मिगावतीए चित्तफलए स्वं काऊणं जहा मल्ली तहा पज्जोनस्स उवट्ठवितं, पज्जोतेण तो पयट्टिओ, नियुक्ती तेण निद्धमणेण णिच्छ्ढो , तेण सिट्ठ, इमो दूतक्यणेण रुट्ठो सबलेण कोसवि एति, ते आगल्छतं सोऊण इमो अप्पत्रलो अति॥८ ॥ सारेण मतो, ताहे ताए चिंतितं- मा इमो बालो मम पुत्तो विणस्मिहिति, ताहे पज्जोओ आणत्तो-एस कुमारो अपडुप्पनो मा। अत्रेण सामंतराइणा पेल्लिज्जिहिति, महा णगरी उज्जेणियाए इट्टयाए दर्द कीरउ, एवं ते चौदस रायाणो सबला, परंपरएण तेहिं । सा आणिता इट्ठगा, णिम्माता णगरी जाहे ताहे ताए भन्नति- इयाणि भरेहि णगरं धनस्स, जाहे णगरी रोहगसज्जा जाता ताहे सा पुणो विसंवतिता, एवं अभिरुद्धाए ताए चिंतित-धाण ते गामागरणगरखेडकबडा जाव संनिवेसा जत्थ पं समणे भगव महावीरे विहरति, पव्वएज्जामि जदि सामी एज्ज, समोसरगं, तत्थ सन्याणि वेराणि पसमति । मिगावती पनिग्गया, धम्म | कहिज्जमाणे एगे पुरिसे धम्माणुरागरते इमे सव्वण्णू ण किंचि से अविदितं तम्हा इह पुच्छामि इमं पच्छन्नपुच्छ, मणसा पुच्छति, ताहे सामिणा सो भन्नति-बायाए पुच्छ देवाणं पिगा, बहवे सत्ता संझिस्संति, एवमपि भणिते तेण भन्नति__'भगवं! जा सा सा सा', तत्थ गोयममामिणा भणितं- किं भणितं एतेणं जा सा सा सा?, एत्थ तसे उहाणपारिया ४ ॥८९ णितं सर्व सामी परिकहति तेण कालेणं २ चंपा णगरी, तत्थ सुवण्णकारो एगो, सो पंच पंच मुवन्नसयाणि दाऊणं जहापहाणा अनुक्रम *ॐ (95) Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८३-८७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री आवश्यक चूर्णी नियुक्ती ९०॥ उपोद्घाता हेरणं SERREARSHRESENSE दारिया त गहति, एवं तेण पंच सया पिंडिता, एगेगाए तिलगचोद्दस भंडालंकारं देति, जदिवसं भोगे भुंजइ तदिवसं देइ, तीसे 8 परंपरकेअवसेस कालं न देइ, सो इस्सालुओ तं परं ण कयाति मुयति, ण वा अन्नस्समलिउं देति, सो अनया कदाति मिनेणं पगते यासासावाहितो जेमतुं, सो नहिं गतोत्ति णाऊण ताहि णात-किं अम्ह एतेण सुवमएणंति', अज्ज णे पतिरिक्क माणेमोत्ति पहातातो सामृगावपतिरिकं मज्जियच्चयावधिए तिलकचोइसेणं अलंकारेणं अप्पाणं अलंकिऊणं अदायं गहाय अप्पाणं देहमाणीओ चिट्ठति, सो य: टू त्याचोदाततो आगतो, तं दट्टणं आसुरत्तो, तण एगा गहाय ताव पिट्टिता जाब मयत्ति, ततो णं अन्नातो भणति-एवं अम्हए एक्केका एतेण हतब्बचि, तम्हा एतं एत्थ चव अदागपुंजं करेमो, तत्थ एगणेहिं पंचहि महिलासएहि पंचएगूणाई अदागसताई जमगसमगमेव पक्खित्ताई, तत्य सो अहागपुंजो कतो, पच्छा पुणो तासि पच्छाताबो जातो, का गती अम्हें पतिमारियाणं , लोए य उद्धंसणाओ सहियच्चाओ, तह व ताहि तं परं घणकवाडणिरंतरणिच्छिद्दाणि दाराणि काऊण अग्गी दिनो सव्यतो समंता, अन्ने भणतिओल्लंबिउं मयाओचि, तेण पच्छाणुतावेण साणुकोसयाए य ताए य अकामणिज्जराए मणुस्सेसु आउगं निबद्ध । सोवि कालगतो तिरिक्खेसु उववो, तत्थ जा सा पढमं मारिता सावि एगं भवं तिरिएसु, पच्छा एगमि बंभणघरे चेडो आयातो, सो य पंचवरिसो, सो य सुवनकारो तिरिक्खेसु उव्वट्टिऊणं तमि चेच कुले दारिका जाया, सो चेडो तीसे बालग्गाहो, ४ सा य निश्चमेव रुयति, तेणोदरपोप्पणं करतेणं कहवि सा जोणिद्वारे हत्येण तालिया, तहेब सा ठिता, तेण जातं लद्धो मए उबा-13 ओचि, एवं सो नियमेव तालेंतो मातापिताहि जातो, ताहे हंतूण विसज्जितो, सावि अपडप्पमा चेव विद्दाता, सो चेडो पलाय-1&ा।९।। मानो चिरणगरविणहृदुद्दसीलाचारचारिचो जाओ, गतो एग चोरपलि जत्थ ताणि पंच एगूणाई चोरसयाई परिवसंति, सावि | दीप अनुक्रम (96) Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्त ॥ ९१ ॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [४/८३-८७] भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-1 ..... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 पइरिकं हिडंती एगं गामं गता, सो गामो तेहिं पेछितो, सा य णेहिं गहिता, सा तत्थ पंच चोरसएहिं परित्ता, तेसिं चिंता समुप्पना अहो इमा वराकी एत्तियाणं सहति जार्द अण्णावि वितिज्जिया लभेज्जा तो से विस्सामो भवेज्जा, एवं तेहिं अमया कयाति तीसे चितिज्जिया आणीता, जं चैव सा आणीया तदिवस आरद्धा सा तीसे आयं च उवायं च केण उवारण एतं मारेज्जा, तत्थ अक्षया कयाति च्छिमकडयं गिरिं गता, तत्थ ताए भन्नति-पेच्छ इमं महादुमं कुसुमितं, ताए दिट्ठे, ताए गोलिया पडिता, ताहे पृच्छति, ताए मनति अप्पणो माहिलं कीस ण सारवेह ?, तेहिं णायं जहा एताए मारिता, तत्थ तस्स बंभणचेडस्स हियए ठितं, जहा एसा सा पावा, सुब्बति य भगवं, ताहे समोसरणे पुच्छति, ताहे सामी भगति सचैव सा तव भगिणी, एत्थ संवेगमाबो सो पव्वतो । एवं सोऊन सव्वा सा परिसा पतणुरागसंजुत्ता जाता, तत्थ सा मिगावई देवी जेणेव समणे भगवं महावीरे० वंदित्ता नम० णवरिं पज्जातं आपुच्छामि, अहासुखं, सा मिगावती देवी जेणेव पज्जोते राया तेणेव उवागच्छति, पज्जातं करतलपरिग्गहितं एवं व० इच्छामि णं देवार्णपिया ! तुम्मेहिं अ मणुष्णाया समणस्स भगवतो महावीरस्स०, तर णं से पज्जोते राया तीसे महती महालियाए सदेवमणुयासुराए परिसाए लज्जाए ण तरति जहा मा पव्ययाहिति एयम अणुजाणति । उदयणं च से कुमारं निक्खेवयनिक्खितं करेति एवं संवाहि, एवं पव्वता मिगावती, पज्जोयस्स य अट्ठ अंगारवतिसिवप्पमुहाओ पव्वइयाओ देवीओ, साणिवि पंचचोरसयाणि तेणाणितु संबोहिताई पव्यइताणि । एवं पसंगेण वभितं । एत्थ इगपरंपरएण अधिकारो एस दव्वपरंपरओ, एएणं भावपरंपरए साहिज्जति, जहा बद्धमाणसामिणा सुम्मस्स जबूनामस्स जाव अम्ह वायणारिया, आणुपुब्बीय कमपरिवाडीय आगतं सुत्तओ अत्थओ, करणतो य ॥ निज्जुतीए निरुतं भवति (97) परंपरके यासासासामृगाव 'त्याश्रोदाहरणं 1198 11 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चणौ उपोद्घात नियुक्ती ॥ ९२ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि :) निर्युक्ति: [४/८८-८९], भाष्यं [-] मूलं [- / गाथा-], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 निज्जुत्ता जे० ॥ २४ ॥ साधु अबत्थं वा जुत्ता निज्जुत्ता जे अस्था सुत्ने ते अत्था जम्हा वृद्धा तेण निज्जुती भवति, यदुक्तं 'सुत्तनिज्जुत्तअस्थनिज्जूहणं निज्कुती, आह-जदि सुत्ते निज्जचा अत्था तो किं पुणो एत्थ तेसि योजनं १, भन्नति- तहवि य इच्छावती विभासितुं सुत्तपरिवाडी, जदिवि सुत्ने निज्जुत्ता अस्था तहावि ते जाव ण विभासिता ताव ण णज्जंति, अतो सुतपरिवाडी - सुत्तपद्धती विविहं भासितुं इच्छावेतिति । एत्थ दितो मंखो, तत्थ सर्व मंखफलए लिहितं तहवि सो तेण दंडएण दाएति पढति विभासेति य एवेत्यवि, सीसो आह-किमिदं सुतं जस्स पद्धती विभासितुमिच्छावेति?, कुतो किमिति कहं वा पवित्ती एयस्स इति ?, उच्यते-सुतं नाम सुचंति या पवयति वा एगडा, तं पुण तित्थगरभासियाई गणहरगहिताई सामाइयादि अणुक्रमेण ववत्थावियाई, एयस्स पुण तित्थगरगणहरेहिंतो सासण हियड्डा जीयमिति काउं एवं पवित्ती इति, मन्नत तवनियम० ॥ रूपकमिदं, इत्थ तुंगं विउलसंधं । जहा कोती कप्परुक्खमारुढो सपरकमो भरेज्जा पुबि सुरभीण कुसुमाणं, तत्थ य हेड्डा पुरिसा पहवे उर्द्धमुहा पलोऐति, घेत्तण ततो कुसुमे मुक्ती अणुकंपणट्टाए । जहा कोती वणसंडो घणकडच्छाओ | तस्स बहुमज्झे महतिमहालयो महादुमो, तत्थ अतीव गधवन्नादिगुणसंपद्मा कुसुमा, तत्थ पुण दुक्खं विलग्गिज्जति, एगो य महापयतो सो तत्थ बिलग्गो तेसिं पेच्छंताणं, तत्थ मालेति, ते तं जायंति, अम्हवि देह, तेसिं सो अणुकंपट्टयाए भणति पडिच्छह पडे, तओ मुयइ तं कुसुमबुद्धिं तं पढिच्छणसत्चित्ता पयत्तेण पडिच्छति तदट्ठी सुंदरेहिं पडेहिं, अप्पणो य मार्लेति, अनेसि च देति तहाविहाणं, एस दितो । एवं तव नियमनागरुक्खं तदो बारसविहो, नियमो दुबिहा- इंदियनियमो नोइंदियनियमो य नाणं पुब्वभणियं एयाणि चैव रुक्खो तं तवनियमनाणरुवं आरुढो आश्रितः, को सो ? केवली, छउमत्थव्यवच्छेदत्थमेयं, (98) निर्युक्तेर्निरुक्तिः ॥ ९२ ॥ Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४/८८-८९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सूत्रीकरणं प्रत है अमियनाणिति अपरिसेसनाणी, सरूवक्खावणमिदं, तो किं ? तो मुयइ नाणबुट्टि, एत्थ महत्थवयणबुट्ठी चेव विनाणकारणत्ता आवश्यका नाणबुट्ठी भण्णइ त किमत्थं मुबह, भवियजणा जे वियोहणजग्गा तेसि विबोहणथं तं बुद्धिमएण पडेण० ॥२-५॥ तं नाणबुद्धि बुद्धिमएण पडेण गेण्हिउं गणहरा निरवसेस, अवि तेसि पुष्फाई पडेज्ज तेसु उपाघात नियुक्तौ पडेसु, ण पुण गणहरयुद्धिमयपडिग्गहिताणि भगवतो महत्थवयणाणि अणवधारियाणि य वडंतित्ति, अतो गिण्हित निरवसेस भवति, जहा ते गंथेति पच्छा मालेति अनसि वा देंति, एवं इमेवि गणहरा तित्थकरभामिताई गहेउं परिभाविऊण तहाविहाण सिस्साण ॥१३॥ | अशुष्पदेहिति तेण गथंति । तत्तो पवयणट्ठत्ति भन्नात, पवयणं संघो । को गुणो पवयणस्स गथितेहिं ?, भन्नति घेत्तूण सुहं०॥ २-६ ॥ जहा ताणि कुसुमाणि अगहियाणि ण सका घेत्तुं, गहिताणिवि पडंति, एवं इमाणिवि भासिताणि | अग्गहिताणि दुगेज्झाणि पवडंति य, गहिताणि पुण सुई घेप्पंति, तरतमजोगेण सुहं च परिवाडीए गुणिज्जंति, सुहं पदविनासेणं धारिज्जति, अमगत्थ वीसरितति सारिजति य, पोययच्च तं गेहंति, तस्स तारिसओ आलावओ दिज्जति । अहवा पुच्छति-| किमस्स सारो, सुत्तं अत्थो दोनिवि सुहं दिज्जति पदविनासेण, पुच्छाएवि ण जाणति, किं गतं हेट्ठा उवरित्ति, आदीए मजो अवसाणति सुहं पुच्छत्ति । एवमादीहि कारणेहिं जीतं सुत्तं तं कयं गणहरेहि, अहवा एतेहिं कारणेहिं पुखमणितेहिं गंथण कये | गणरेहिं । अविय-जीयमेयं पुव्वाइअमेयं इतिच गंथणं कयं गणहरेहिं ॥ किह पुण एवं पुन्वाइनी, भवति अत्थं॥२-७ ।। अत्थं भासति-पगासेति अरहा, सुत्तं गंथति-अज्झयणउद्देसगादिअणुक्कमेण रचयंति गणहरा, जतो निपुणा CSCANCE दीप अनुक्रम (99) Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [७/९२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत श्रुतस्यादिपयवसनसारा सत्राक निपुर्ण वा सूक्ष्म बचीसदोसपरिसुद्धं एवमादि, सासणस्स-संघस्स हियट्ठाए ततो सुत्र पवत्ततीति । सीसो आह-तं पुण सु IIकिमादि ? किंपज्जवसाणं ? किं परिमाण ? को वा एपस्स सारो इति, भन्नति सामाइयमादीयं०॥२-८ ।। सामाइयं आदीए, बिंदुसारं पज्जते, परिमाणं पुण सामादियादि जाब बिंदुसारं एवतियं, को नियुक्ती एयस्स सारो ?, एत्थ कस्सति युद्धी भवेज्जा-एतं चेव सामादियमादीयं बिंदुसारपज्जत सुयणाण सारं, को एपस्स अनो सारो मग्गिज्जतिति?, जतो अरहतेहिं भगवतेहिं तिलोगसारनिहाणभूतेहि भासितं गणहरेहिं सुवणिपुणेहिं परमकल्लाणालएहि सुत्तीकयं ॥९४॥ महत्थं परमसंवेगजणयं जीवादिपदत्थविभासगं सवकिरियाकलावपयत्तोवदेसमिति परमं मोक्खकारणति अतो एतं चेव सारो, अतो भवति-तस्सवि सारो चरणं, तस्सवि एवंगुणस्सवि सुयणाणस्स सारो-सव्वस्स चरणं चारितं, चरणस्स पुण सारो निव्वाणं ।। |किद पूण तस्सवि सारो चरणं भवति, न पुण तदेव ?, भन्नति सुयणाण० ॥ २९ ॥ जेण सुयणाणमि वट्टमाणो जीवो मोक्खं ण पाउणति । जो तवमतिए संजममइए य जोए ण चएइ दिबोढुं जो, को दृष्टांतः __जह छेद ॥२-१०॥तह णाणलद्धा२-११॥ पाढसमा, तम्हा एतं णाऊण संसारसागराओ० ॥२-१२॥ गाहद्धं दसहि ४ दिट्ठतेहि दुल्लहं माणुसत्तं लहिऊण, एवं खत्तजातिमादीणिवि, संसारसागरे बुड्डो संतो कहमवि उन्बुडो चरणजलोवरितलवर्तित्वेन मा पुणो निबुद्धिज्जा, जं किंचिदालंबणमासादेऊण, एतमि अणादरेण, एत्थ दिटुंतो, जहा नाम कोयि कच्छवा पउरतणपत्तसेबालात्मकनिच्छिद्दपडलाच्छादितोदगंधयारमहाहरयअंतग्गतो तदंतग्गताणेगजलचरक्खोभादिवसणव्यथितमाणसो परिम्भमतो| दीप 1- 0KERSARKAR अनुक्रम ॥९४॥ AKAALC अत्र ज्ञान-चरण-सिद्धिः दर्शयते (100) Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्ति: [११/९६], भाष्यं [-] अध्ययनं [H], मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 कहमवि पडलरंघमासादिऊण विणिगच्छिऊण तवो सारदससहर फरिससुहमणुभविय पुणाऽवि सर्वधुणेहादिसमा गिट्ठचिचो तेसिमपि वरायाणमदिट्ठकलाणाणम हमिदमचन्यं किंपि संपादयामीति संपहारेऊण तत्थेव निब्बुट्टो, अह समासादितासमासादितबंधुवग्गो वा तस्स रंघस्सोपर्लभनिमित्तं इतो ततो परिन्ममतो ओहयमणसंकप्पो कट्टुतरं वसणमणुभवति । एवं संसारसागराओ अणादिउपोद्घातकम्मसंताणपडलसमच्छादिताओ विविहसारीरमाणसाच्छिवेदणजरजुदेवियोगाणिसंपयोगादिदुक्खजलचरसंखोभादिवसण बहुलाओ नियुक्तो - कमवि कम्मक्खतावसमादिरंधमासादेऊण भणियणाएण चरणपडिवत्तीए उम्बुट्टो अप्पवेरो अप्पज्ज्झो एवमादिगुणजुतो जातो, तो मा पुणो निम्बुड्डेज्ज भणितणाएगेव । स्याद् बुद्धि:- जो अप्पविश्राणो सो णित्रुति, जो पुण बहुपि जाणति सो तप्पभावादेव नो निबुद्धिहिति इति, भन्मति ।। ९५ ।। श्री आवश्यक चूर्णां चरणगुणविप्पहीणो० ॥२- १२ ॥ चरणमणाढायमाणो निइति सुबहुपि जाणतो ।। किमिति-सुबहुपि ॥ २- १३॥ चरणगुणविहणिस्स सुबहुंपि सुयमहीतं किं काहिति जतो ण तस्स तारिसं सामत्थमत्थि जेण धारेहिति, जहा अधस्स समीवे दीवसयसहस्सकोडीवि पलीविता असमत्था तस्सऽवपातादिपवडणं धारेतुन्ति ।। आह-जेण पुण थोवमहीयं किं तु चरणजुत्तो तस्स किं भन्नति अपि॥ २-१४ ॥ कंठा, किं तु पगासगं कज्जसाहगं ॥ पुणो आह-तो जे हमे बहुस्सुया एते णाम निरत्थयं ?, एत्थ आयरितो भणति जहा खरो०२-१५।। वृत्तं, कंठं । एवं चरणे ख्यापिते मा भूच्छिष्यस्य एगंतेणेव गाणंमि, अणायरो भवस्वति । अतस्तनिरासार्थमिदं सूत्रं पठन्त्याचार्याः- (101) निश्र्डनवारणोपदेशः . ।। ९५ ।। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H. मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [१५/१०१], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE ECECAA दीप हतं णाणः ॥२-१५।। जहा कियाहीणं णाण हत एवं या अनाणयो किया । एत्थ दिट्टतो-एगमि महाणगरदाहे अंधलग- 1बान क्रिया आवश्यक पंगुलगा दो अणाहा, णगरजणे जलणसममुम्भंतलोयणे पलायमाणे पंगुलओ गमणकिरियाऽभावातो जाणतोऽवि पलायणमग्गं कमागतेण | योगः अग्गिणा दड्डो, अंघोवि गमणकिरियाजुत्तो पलायणमग्गमजाणतो तुरितं जलणतेण गंतु अगणिमरियाए खाणीए पडिऊण दडो । एवं णाणी किरियारहितो ण कम्मग्गिणो पलाइतुं समत्थो, इतरोऽपि णाणरहियत्तणओत्ति, तो खाई कहं फलसिद्धी, भन्नति ____संजोगसिद्धीए ॥२-१६।। वृत्तं, कंठं । णवरं दिढतो-एगंमि रमे रायभएण णगराओ उच्वसिय लोगो ठितो, पुणोचि | ॥९६ ॥ धाडिभएण पवहणाणि उज्झिय पलाओ, तत्थ दुवे अणाहप्पाया अंधो पंग य उज्झिता, लोगग्गिणा य वणदबो लग्गो, ते य भीता, ४ अंधो छुट्टकच्छो अरिंगतेण पलायति, पंगुणा भणित-अंधा! मा इतो नास, गणु इतोप्येव अग्गी, सो आह-कतो पुण गच्छामिः, पंगू भणति-अहं मग्गदेसणासमत्थो पंगू, ता में खंधे करेहि जेण अहिकंटकजलणादिअवाए परिहरावेतो सुहं णगरं पावेमि, तेण तहत्ति | पडिबज्जितं, अणुहितं पंगुवयणं, गता य खेमेण दोषि णगरंति, एवं गाणकिरियाहिं सिद्धिपुरं पाविज्जतित्ति । एत्थ सीसो आह-12 केण पुण पगारेण पाणकिरियाहिं मोक्खो साहिज्जतित्ति, अतो भवति| एवं-णाणं०॥ २-१७ ॥ दिढतो-एगेण वणिएणं घरं गहित कयवरेण भग्गविभग्गं, तेण चिंतितं-ण एत्थ भग्गविभग्गे सुधं बसिज्जति, सोहेमि , अंधकारे य ण सकति सोहेतु, ताहे पदीयं करेतिर कयवरं सोहेति, छिदविच्छिद्दााण पिहेति गुत्तकवाड च दाकरेति, पच्छा निरूविम्गं बिसयमुहाणि अणुभवति, एवं घरत्थाणीओ जीवो कम कज्जवरथाणीयं तवो वणियत्थाणीओ संजमा जहा छिद्दपिहाणं, सब्वाणि आसवच्छिद्दाणि पिहितव्वाणि, जहा सो वणितो. तमि घरे सुई बसति, एवं णाणेण सुभासुभाणि णातूण अनुक्रम A AACARE (102) Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H. मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [१७/१०३], भाष्यं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 **% पत सत्राका उपोद्घात दीप | सुभेसु पवत्वाति असुभेसु णिवनति, तवण पुन्वसंचितं सोहेति, संजमेण ण ण पंधति, तो अकम्मीभूतो मोक्खसुई अणुभवति । खानादेर्भाआवश्यक एत्थ तबसंजमग्गहणं किरिया तवसंजमनियचत्तिकाउं, सम्मदसणं पुण णाणग्गहणेण गहितंति न पृथम् उक्तं । एवं णाण-12 वेष्वतार: दसणचरणाण समाओगे सति मोक्खे व्यापिते सीसो आह-जदि एवं ता साह-भगवं ! कमि पुण भावे ताणि णाणादीणि नियुक्ती | भवति ?, कहं वा एतेसि अलाभो ? को वा लाभक्खमो ? कस्स वा किमावरणं ? कहं वा कस्स वा आवरणक्खतोबसमो ? कह वा उबसमो खयो बा ? इति, एत्थ आयरिया भणति॥२७॥ भावे ग्यमोवसमिते॥२-१८॥ खोबसमितो णाम तस्स तस्स कम्मस्य सब्बघातिफहगाणं उदयक्खयात् , तेषामेव सदुप |शमात् देशघातिफडगाणं उदयात् खतोचसमितो भावो भवति, तमि दुवालसंगपि होति सुयणाणं, दुवालसंगरगहणणं सब्बं सुयनाणं गहितं, अपिसद्देण मतिओहिमणपज्जवनाणाणिवि, केवलणाणं पुण खातिए भावे इति । आह- केवलियणाणलंभो णन्नत्थ खए कसायाणति सव्वकसायाणं जाव खतो ण संजातो णाणावरणदसणावरणअंतराइयाण य ण ताव कवलणाणलंभो भवतित्ति, एत्थ पुण कसायाण चेव गहणं, कसायक्खया अतोमुहुत्तण नियमा सेसघातिकम्मक्खय इति । एवं गाणं ताव किंपि खओवसमिते भावे किंपि खाइएत्ति भणितं, सम्मत्तचरित्नाणि पुण खतोवसमिते वा उपसमिते व खातिए या ?, तत्थ सम्मदसणं देसणमोहस्स खओवसमे वा उपसम वा खए वा भवति. दसणमाहस्स खतोबसमेण अणंताणुबंधिअणुदए मिच्छत्तस्स सब्बघातिफहगाण उदय-II खते तेषामेव सदुबसमे सम्मत्तमोहणीयस्स उदये इति । उपसमखया पुण उवरि भबिर्हिति । चरित्तपि चरित्तमोहस्स खतोवसमे दिवा उबसमे या खए, बा, चरिचमोहखतावसमे गाम बारसकसायोदयखये सवसमे य, संजलणचउकअनतरदेसघातिफहगोदए अनुक्रम ESSNESEKAry ९७॥ (103) Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १८/१०४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणोंकसायसंजलया सत्राका राणोकसायनवगस्स य यथासंभवोदये इति । चरित्ताचरितं पुण खओवसमिते घेव, कसायट्ठगोदयक्खए सदुवसमे य, पच्चक्खाण- कस्थितिआवश्यक | कसायसंजलणचक्कदेसघातिफहगोदये जोकसायणवगस्स जहासंभवोदये य इति । जैमि भावे गाणादीण भवंति एतं भाणितं, ही विचारः जहा एतेसिं लामो ण भवति त भन्नति शेषक्षये उपाघातारा अट्टहं० ॥२-२६ ।। किह पुण अगुहं पगडीणं उकोसहिती भवति', एत्थ ताव सव्वासिं पगडीणं उकोसद्विती माणि- गुणानामा नियुक्ती वश्यकता यन्वा, जया मोहणिज्जस्स कम्मरस उकोसिया ठिती भवति तदा आउगवज्जाणं छह कम्मपगडीणं उकोसिया ठिती भवति, ॥९॥ आउगस्स उकोसा वा अजहन्नुकोसा वा ठिती भवति, जदा आउयमोहबज्जाणं उकोसिया ठिती भवति तदा आउयमोहणि | ज्जाणं उकोसा वा अजहण्णमणुकोसा वा, जया आउकोसा तया सेसाण उकोसा वा अजहन्नुकोसा बा, एवं उकोसहितीए| अट्ठण्ड कम्मपगडीणं बट्टमाणो जीवो चउण्ह सामाइयाणं एगतरमवि ण लभति, कह पुण ताई चउरो ?, तंजहा- सम्मत्तसामाइयं सुयसामाइयं चरित्तसामाइयं चरित्ताचरितसामाइयं च । अपिशब्दात् मत्यादि च न लभतीति ॥ इयाणि जहा एतेसिं लाभो ४ भवति तं भन्नति सत्तण्डं पगडीणं अभितर ॥ २-२७ ।। आउयवज्जाणं सत्तह कम्मपगडोण उकोसद्वितीओ जदा खवियाओ भवति, अवसेसा एकेका कोडाकोडी भवति, तीसे य कोडाकोडाए पलिओवमस्स असंखेज्जइभागं पविट्ठो भवति, एत्थ किल गंठी पाउब्भवइ, गंठी णाम जहा इह रज्जूए दाभविसेसस्स वा पणो अतिगूढो रूढो दुम्मोओ दुन्भेदो य गंठी भवति, एवमेव आत्मनः कम्मविसेसपच्चतो अतिरागदोसपरिणामो गठीत्ति ववादिस्सति, तमि भिमे सम्मत्तादिलाभो भवति, तन्भेदो य मणीविषात दीप 4% अनुक्रम FACCORRECSI ॥९८॥ अत्र नियुक्ति [२-२७] मध्ये सम्यक्त्व-लाभ: निर्दिष्ट्यते (104) Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: २७/१०६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका दीप श्री परिस्समादिभिः अतीव दुल्लमो, आह-जा सा सेसा ठिती कम्माणं सा जति विणा सामायितेण खविता एवं सेसावि किन्न खविति आवश्यक तेण विहिणा', भन्नति-सो किर तत्थ बिसेसेण परिश्राम्यति, महासंगामसीसगतो विव जोहो महासमुहतारीब परिश्रांतारोहणवत् । चूर्णी चित्तविघातादिविघ्नबहुलवासी भवति, महाविद्यासाधकवत् , एत्थ अतीव परिस्सम मन्नति रोगबोसोदएणं, तमिदाणि कई उपोद्घाखवेति ? । जे तं कर्म उवसामेति ते जीवा दुविहा- भविया अभविया य, जे भविधा ते तं गंठी कीव समतिच्छंति, केवि ततो नियुक्ती चेव पंडिणियत्नति, जे अभविया ते नियमा ततो चेव पडिणिवतंति, जहा को दहतो? पिपीलियाओ बिला ओद्धाइयाओ समातणाओं एग खाणुयं विलग्गेति, तत्थ जासिं पक्खा अस्थि ता उटुंति, जासि नस्थि ता ततो चेव पडिणियत्तति, एवं तेसि भबियाण सा लद्धी, अभवियाण णस्थि, तेहिं पुण जीवेहि कह कम्मोचसमो कतो?, भगति__संसारत्थाणं जीवाणं तिविहं करणं भवति, तंजहा- अहापवत्तिकरण अपुवकरणं आणियट्टिकरणं, तिविहे च करणे इमो दिवतो, जहा तिनि पुरिसा विगालसमयसि गामातो गाम पत्थिता. तत्थ य अन्नेहि भणियं, जहा-एत्थं भयं, पच्छा ते भणतिसमत्था अम्हे तेणाणं पलाइतुति, एवं ते वञ्चिति ताए चेव अहापवत्तीए गतीए, जहा सरी अस्थमभिलसति तहा तहा अपुव्वं गति उप्पाडेंति, जाहे पुण तं देस पत्ता जत्थ तं भयं ताहे उभयतो पास पंथस्स दुवे पुरिसा असिइत्थगनार जमगसमग पाउन्भूया, तत्थ एगो पुरिसो ते आवतमाणे पासिता मीओ पडिनियचो, एगो जंघावलसमत्थो मा णं घेपिस्सामित्ति तहेव तेसि पलातो, ण य तेहिं तिनो ओलग्गितुं, एगो तत्थेव ठितो बद्धो, एवामिहाडवी संसारो पुरिसत्यावमा वियिहा संसा-MH रिलो पंथो कम्महिती बहुता भयत्थाणं गांठदे सो तक्करा रागदोसा, पसीवगामी गठिदेसमासादेठाण पुणो अणि परिणामो कम्म-II अनुक्रम (105) Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्ति: २७/१०६], भाष्यं [-] अध्ययनं H-1 मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 रपि बहुपचयः द्वितिसंवर्धकः, तक्करवरुद्धो पबलरागद्दोसोदयो गंटियसत्तो, इट्ठदेसाणुप्पयातो सम्मदंसणपुरप्रापी, एत्थ य पुरिसत्तयसभाव- ४ मिथ्यादृष्टेगमणोवमितमाद्यं मंठिदेसपावगं अहापवित्तिकरणं, सिग्घतरगामिभावेणोरमितम पुय्वकरणं, इट्ठपुरपावगगतिउबममणियद्विकरणंति, एत्थ य जाव गंठिट्ठाणं ताव अहापवतं, गंठिट्टणमतिक्कामतो अपुच्वकरणं, सम्मदंसणलाभाभिमुहस्स अणियट्टिकरणंति । निर्युक्त ५ आहउक्तं सव्वस्सेव संसारिणो सजोगतया पतिसमयं कम्मस्स उवचओ अवचयो य, असंजयस्स पुण बहुयतरस्स चओ अप्पतरस्स अवचओ, जओऽभिहितं- 'पछे महतिमहल्ले कुंभं पक्खिवति सोहए णालिं । अस्संजय अविरए बहु बंधड़, णिज्जरे थोवं ॥ १ ॥ पल्ले महातिमहल्ले कुंभं सोहयति पक्खिवति णालिं । जे संजते पमत्ते बहु निज्जरे, बंधए थोवं ॥ २ ॥ पल्ले महतिमहल्ले कुंभ सोहयति पक्खिवेण किंचि । जे संजते अप्पमत्ते बहु निज्जरे बंध ण किंचि ॥ ३ ॥ " एवं च कहमसंजतो मिच्छादिट्ठी एतियाए अवणेता भविस्सति १, जतो एयस्स गंटिदेसप्राप्तिरिति भन्नति - ॥१००॥ श्री आवश्यक चूणौ 8 ओवित्त एसा जमसंजयस्स बहुतरस्सोवचयो अप्यतरस्स वाऽवचयो, बंधणिज्जरणाओ पुण मिच्छदिट्टीगंपि विचित्ताओं, कस्सति कचिदिति, तम्हा जहा जो अतिमहति धनपल्ले अप्पतरं पक्खिवेज्जा बहुतरं च अवणेज्जा तस्स एवं कालंतरेण उपक्खीयते धान्यं, एवमणाभोगतां जीवो बहुं बहुतरं च खवयंतो गठिदेस पावति अहापवत्तिकरणेणेति ।। आह-कहं पुण अणाभो गतो तेण अहापचत्तकरणेण कम्मरासी खवितो ?, तत्थ दिहंतो-गिरिणइपत्थरेहिं, जहा तेर्सि गो एवं उप्पज्जति सन्ना तिव्वा जहा अम्द बट्टा वा तंसा वा होमो, तेसिं वा अन्नेसिं पत्थराणं णो एवं उप्पज्जति जहा एते पत्थरा बडा तंसा वा होन्तु, एवं 8 ते घोलणाविसोहीए तं कम्मरासिं खवेंति जहा वावतीणो पासाणो ।। आह-किं पुण सो सम्मदंसणादि उबदेसतो चैव लभति उत ९॥१००॥ (106) Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: २७/१०६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत दीप TT अणुबदेसातो बेति?, भन्नति-जहिह कोति पहपभट्ठा परिब्भमतो सयमेव पंथ लभति, कादि परोपदेसातो कोयि तु ण चव लभति, सम्यक्त्वआवश्यक RI लामे एवं अच्चंतपणहसप्पथी जीवो संसाराडविमनुपतन् कोपि गठिट्ठाणमतिकमिऊण तदावराणिज्जाणं कम्माण खतोबसमोवसमखएण चौँ चूणा INउपदेशासयं चैव सम्मदसणादि णिवाणपक्षणपंथं लभति, कोदी परोपदेसातो, कोती पुण ण लमति चेव, जहावा कोती जरो सयमेवापति,दिरशान्ताः उपोद्घात AAN कोती भेसज्जीवतोगाओ, कोनी पुण नैकापति, एवं मिच्छचादिमहज्जरोपि कोती सयमेवापति, कोया अरहदादिवयणभेसज्जो वोगाओ, कांती पुण नवापति, तदावरणिज्जाणं कम्माण खतोचसमे पुण कोदवदितो विभासियब्बो, उबसमे जलदिढतो, खए| ॥१०॥ यथदिट्ठत इति । लाभक्कमो पुण एवं जे अभविता सो तं गंटिं ण समत्था भिदितुं तेण गठियसचो, गंठीए वा सत्तो२, तत्थ पुण | अंतरे इड्डिबिसेस दलण तित्थगराणं अणगाराणं वा ताहे पब्वयति, तम्मूलागं देवलोग गच्छति । जो भविओ तस्स तमि काले | जति कोति संबोहेज्ज अहवा कोति सयं चैव संयुमति तस्स एत्थ सुयसामाइयस्स लंभो भवति, ताहे सखज्जाई सागरोवमाई है गंतूर्ण सम्मत्तसामाइयलंभो, ताहे अन्नाणिवि संखेज्जाणि सागरोवमाणि गतूर्ण चरित्चाचरित्तसामाइयलंभा, एवं संखेज्जेसु चरित्न उवसमगसेढी खवगसेढी इति. ___ सम्मत्तसामाइयस्स आवरणे इमे चत्तारि कसाया- अणंताणुबंधी कोहमाणमायालोभा, एते पढमिल्लुगतिवि भन्नति, संजीयगाकसायत्तिवि भन्नंति, सुत्तकमपाममा पढमिल्खगा भन्नति, जम्हा बहूर्हि नेरइयतिरिक्खजाणियमणूसदेवभवग्गहणेहि संजोएंति 181॥१०॥ सम्हा संजोयणाकसायत्तिवि भन्नति । अनुक्रम अत्र सम्यक्त्व-लाभे चारित्र-लाभस्य निर्देश: (107) Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: २९/१०८], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सूत्रांक पढमिल्लुगाण उदए जीवो संजोयणाकसायाणं ॥२-२९॥ जैवलं तेसि उदए भवति ताहे भवसिद्धियावि ण लभति, कषायोदयआवश्यकता किमंग पुण अभविया, तहा अविसदा तस्सहचरित णाणलंभमवि ण लभंति ।।। उपाघात वितियकसायाणुदए अप्पच्चक्रवाणणामधेज्जाणं । सम्मदसणलंभाविभासेज्जा।विरताविरर्तिण तुलभंति ॥२-३०॥ अप्पमवि एत्थ पच्चक्खाणं ण तु लभंति तेण अप्पच्चक्खाणकसाया ।। ॥१०२॥ ततियकसायाणुदए पच्चक्खाणावरणणामधेज्जाणं । देसकदेसविरतिं तिहेव।चरित्तलंभ ण तु लभंति ॥ २-३१ ॥ - मूलगुणपच्चक्खाणं सम्वेसि मूलं गुणाणं तं केवलं पडिपुत्रं आवरेतित्ति तेण पच्चक्खाणावरणा ।। आह-किं पुण पढमधीयततीयकसायाण उदए सम्मत्चदेसविरतीसव्यविरतीओ न तु लभंतित्ति, भन्नति-इह य सम्मत्तादयो मूलगुणा, एते य पढमिल्लुगादयो | कसाया मूलगुणघाविणो, ण य मूलगुणघातीणं कसायाणुदए मूलगुणाणं लभ, 'ण लभति मूलगुणघातिणो उदये चि, जदा पुण* | संजलणाणं उदयो भवति ताहे इतरचरित्तलंभ विभासेज्जा, अहक्खायं पुण ण लभंति, तदभाव उ तपि लभंतित्ति, सीसो आह-मा | भवतु मूलगुणाणं लंभो मूलगुणघातीण उदए, जदा पुण ते लदा तदा कह अतियरति पडिवतति वा इति ?, भन्ना ____ सब्वेवि य० ॥२-३३।। सम्बेचिय छदपज्जतपायच्छित्तसोज्झा अतियारान्ति वा अविसोहीआति वा एगट्ठा, संजलणंतीति ४ सैजलणा, जहा इंधणं लभित्ता अग्गी उज्जलति एवं तेऽवि अणेसणादीहिं उज्जलंति, तुसदा जो गुणो जहा अतियरति तं जहा-18 IP१०२॥ दो संभवं विभासियव्यं, जया पुण मंजलणवज्जाणं बारसहं कसायाणं उदयो भवति तदा मूलच्छेज्जं भवति, किं च मूलं, सम्म | पुणसद्दा अण्णेसिपि गुणाणं जेमिं उदए मूलछेज भवति तं विभासियध्वं, मूलच्छेज्जति वा मूलगुणपरिवाओत्ति वा एगट्ठा इति। दीप अनुक्रम (108) Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक उपोद्घातः निर्युक्तो ॥१०३॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः ३३ / ९९२), भाष्यं [-] ..... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 - - एत्य सीसो आह-जति णाम तेर्सि सिचि कसायाणं उदए चरितस्स लाभो चेव ण भवति, केसिंचि पुण लद्धमवि अतियरति 'पडिवयति 'चा, ता साह कास पुण कमायाणं कतिविहाणं कम्मि परिणामे वट्टमाणाणं चरिसलमो ? कहं वा सो परिणामो ? तेर्सि केवरिया य मेदा चरित्तरस के य ते इति ? भन्नति बारस० ||२-२४|| सामाइग्रत्थ० ।। २-३५ ।। तत्तो य० ।। २-३६ ॥ एत्थ सम्मत सामाइयस्सावरणे जे मणिता चचारि कसाया ते वज्जित जे सेसा चरितावरणा बारसविहा कसाया ते जदा खविता उवसामिता वा, वासदा खतोबसमतोऽवणीया ति 'तदा चरिचलंभो लम्भति, उम्भतित्ति वा दीसतिति वा पचायतिति वा एगड्डा, अने पुण खतावसमे संजलणवज्या बारस ममेति । आइ कई पुण सो खयादिपरिणामो तेो इति १, भन्नति-जोगेहिति जोगांति वा वरियंति वा सामत्यंति या परकमति वा उच्छाहोसि एगड्डा, अगभेदो जोगोति बहुवयणं, तस्स पुण चरितस्य सामश्रेणं विसेसा भेदा इमे पंच ते चैव दरिसिज्यंति सामाइयं इतिरियं आवकहियं च इतिरियं जो छेदोवडाणियाणं मेही तस्स इत्तिरियामाइयं, आवकहियं मज्झिमतिस्थगराणं, एत्थ चरिचगे पढमं छेदोवडावणियं णाम सामाइयमित्तिरियं छेत्तूण उचट्ठाविज्जतित्ति छंदोबद्वावणियं, बीयं लभातीत्तिः यीयं, परिहारविसुद्धीओ नाम जो पंचमहव्यतियं विशुद्धं परिहरति सो परिहारविसुद्धीओ, सुमो अस्य रागः मुहमसंपरागः । तत्तो- अनंतरं अहखायं णाम अकसाय, किह पुण अकसायं तु चरितं ? सव्येहिवि जिणबरेहिं पचतं। एते पंच विसेसा गता । इयाणि वारसाविहे कमाए खविए उवसामिए खतोत्रसमिते वा भणितं तत्थ खतोयसमो पुब्बदरिसितो। उवसमणं ताव भन्नति अप्पतरंति कार्ड, अहवा खरगस्स उबसामणा ण भवति, तेण पुच्वं उचसामणा पच्छा खत्रणा, अहवा पच्छानुपृथ्वीए, ते (109) पंच चारित्राणि ॥१०३॥ Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं H-1 मूलं [- / गाथा-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्ती ॥१०४॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) निर्युक्ति: ३६/११५], ****%* कह उवसामेति ?, भन्नति-पसत्येहि मनवचिकायजोगेहिं, जहा अम्भी विज्झायसरिसो हेट्ठा अच्छति सावसेसो एवं उवसामओ कम्मं उवसामेति, जहा वा जलं कयगफलादीहि णिसंतमलं पसंतं भवति तं च तहेब अच्छति, जहा खंभो अंजणामयो जदि वेढिउ मूले पलीवितो अग्गए ठाति एवं उवसामओऽवि । तत्थ इमा दारगाहा— भाष्यं [-] [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 अणदंस० ।। २-३७ ॥ उदसामगसेढिपट्टचओ नियमा संजओ, खवगमेढीए पुण संजतो वा असंजतो वा संजता संजतो वा, एवं सो पसस्थेसु अज्झवसाणट्ठाणेसु वट्टमाणो विसुज्झमाणो अनंता शुत्रं धिकोह माणमायालोभे जुगवं उवसामेति, ताहे सम्मदंसणं भिच्छादंसणं सम्मामिच्छादंसणं तिविहं जुगवं उवसामेति, ताहे णपुंसगवेदं उवसामेति, ताहे इत्थवेिदं उवसामेति, पच्छा हासरतिअरतिभयसोमदुगुच्छत्ति एते छकम्मंसे जुगवं उवसामेति, पच्छा पुरिसवेदं उवसामेति, एवं ता पुरिसे, इत्थीवि एवमेव, णवरं सव्वपच्छा इत्थिवेदं, एवं नपुंसओऽवि, पवरं पच्छा पुंसगवेदं, पच्छा दो दो एगंतरिते अप्पच्चक्खाणकसायं कोई पच्चक्खाणावरणं च कोई दोषि जुगवं उपसमिति, ताहे संजलणं कोहं उवसामेति, पच्छा अपच्चवखाणमाणपच्चक्खाणावरणमाणा दोवि जुगवं पच्छा संजलगमार्ण उवसामेति, पच्छा अपच्चक्खाणपंच्चक्खाणावरणमायाओ दोषि जुगवं उबसामेति, ताहे संजलणमायं उवसामेति, पच्छा अपच्चक्खाणं पच्चक्खाणावरणं च लोभ दोषि जुगवं उवसामेति, जो संजलणलोभो तं संखेज्जाई खंडाई करेति, पच्छा | उवसामेति, पढमिल्लुगं च भागं उवसमितो एत्थ बादरपरागो उवसामय लब्मति, जं तं संखज्जतिमं खंडं तं असंखज्जभागे करोति, पढमं च पवेदितो ताहे सुमपरागो उवसामओ लम्मति, समय सगए खंड एकैकं उवसामिति । तत्थिमा गाथा विभासियब्वा अत्र 'उपशम-श्रेणि एवं क्षपक श्रेणि वर्णयते (110) उपशमश्रेणिः ॥१०४॥ Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ३८/११७], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका % COASTERS MESSA % लोभाणू वेतेन्तो० ॥२-३८।। जदा तपि लोभस्स अणुं उबसामितं भवति तदा उवसामगणियंठो लम्भति, एत्थ जदिक्षपकाणः आवश्यक अंतरे कालं करति ताहे सो अणुचरोववातिएम देवेमु उववज्जति, एत्थंतरे कालं ण करेति ताहे से पुणो पडिपतति, किं कारणं ,12 ४ तस्स पच्चयावरुद्धा कोहादयो, जदा पुणो किचि नहाविह पच्चयं उबलभंति तदा उदयं गच्छंति, जहा वाही ओसहादीहि थीमतोल तहाविहं पच्चयं उबलभित्ता उदिज्जति, एवं जहा रुक्खो अंतो बहिं दवेणं दुमितो ताव ण उलुज्झति जाव पाणियाइयं पच्चयं ण लब्भति, लद्ध उल्लुज्झति, एवं इहावि तस्स तत्थ अंतोमुहुत्तावसाणे कम्मिवि लोभहेउंमि संजलणलोभो सुहमो उदिज्जति, पच्छा ॥१०५॥ |जेणव कमेण उवसामंतो गतो तेणेव पडिवतात जाव अणताणुबंधित्ति । एसा उवसामगसेढी सम्मत्ता। एतेण कमेण एकमवगहो। *दो उवसमसदीओ होज्जत्ति, जैमि भवे उबसामओ ण तमि खवतो होतिति । उवसमण मोहस्म तु एगम्मि भवे हवेज्ज दो वारे । इयाणिं खबगसेढी भन्नतिदि अणमिच्छा० ॥२-४२ ॥ खबगसेढाए पट्टबओ नियमा मणुयगतीए, णिवओ निरएस असंखेज्जतिभागं पलियस्स सेस खवेति, देवेसु वेमाणिएसु तिरियमणुएसु असंखेज्जवासाउएसु, एतं बद्धाउयस्स, अर्णताणुबंधिकोहमाणमायालोमा जुगवं| 4 खवंति, पच्छा ताणं अर्णतभाग मिच्छत्तवेयणिज्जे कम्मे छभति, ताहे तं खवेति, तस्स तिव्यो परिणामो तो सावसेसे चेव अनं |आरभति, जहा महाणगरदाहे अग्गी सावसेसे चेव इंधणे अश्रमि घरे लग्गति, एवं इमावि तंमि साबसेसेवि तिव्यज्माणाम्गिणा II असं आढवेति, तस्सवि जं सेस तं सम्मामिच्छत्ते छुमति, ताहे सम्मामिच्छत्तं सवेति, तस्स जं सेसं ते सम्म छुभति, ताहे १०५॥ सम्पच खबेति, तत्थ सो खाइयसम्मदिड्डी भवति । सो य पुण बद्धाउगो वा अबद्धाउगो वा, जति बद्धाउगो ताहे ठाति तमि दीप अनुक्रम (111) Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ४२/१२१], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत प्रणों सत्राका दीप चेव, अह अपद्धाउगो ताहे तहपवत्तो चेव अवसेसाई खवेति, तत्थ तहेव सैजलणवज्जे अकृषि कसाए एग चव खवेति. जाहे पकोण: बावश्यक तेसि अदुहं कसायाणं संखेज्जतिभागं खमाणो गतो भवति ताहे नामस्स कम्मस्स इमाओ तेरस पयडीओ खकेद, संजहा-14 निरवगहनामं एगिदियजातिनाम बेइंदिय० तेईदिय० चउरिदियजातिनाम निरयाणुपुब्बीनामं तिरिक्खजोणियाणपुथ्वीनामं अप्पसनियुक्ती भावात विहाओमतिनाम थावरनामं सुहुमनाम साहारणनाम अपज्जतं, तहा दरिसणावरणीयस्स इमाओ तिनिपगडीओ, तंजहा-निदा-| निदा पयलापयला थीणगिद्धी य । तासि अट्ठण्हं जं सेस पि । एत्थ गाथा गतिआणुपुब्बि दो दो, जातीनामं च जाव चरिंदी । अपसत्था विहगगती थावरणामं च सुहम च ॥४॥ साहारमपज्जसं निहानिई व पयलपयलं च । धीण स्वधेति ताहे अवसेस जं च अगुण्हं ॥२॥४४॥ ताहे णपुंसगवेदं ताहे इत्थिवेद ताहे छकं हासरतिअतिभयसोगदुगुंछाओ, ताहे पुमवेदं तिमि भागे करेति, दो जुगवं, एवं संजलणकोहे छुभति, ताहे संजलणकोहं तिनि भागे करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एग भाग संजलण माणे छुभइ, ताहे तंपि तिथि भागे करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एगं संजलणमायाए छुहर, ताहे तंपि तिनि खंडाई करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एगं संजलणे लोमे छुइति, ताहे तंपि तिमि भागे करेति, दो भागे जुगर्व खवेति, एगं भाग संखजाई खटाई करेति, एत्य बादरसंपराओ खवओ ताहे खवेति, (एगं संखिज्जइमं भाग मोत्तूण सव्वं खवेति) जं रखेजतिम खडं असंखज्जे ॥१०६॥ दिमागे करेति, तेऽपि कमेण खवेति, तत्थ खवओ सुहुमसंपराओ, जाड तपि सक्तिं भवति ताहे खवगणियण्ठो लम्भति, एत्यंतरा वीसमति अणामोगणिबतिएणं करणोवाएणं, जहा कोति महासमुह तरिऊण जाडे अणेष धाहो सद्धो भवति वाडे महल अछिऊण SHERPRISASTERरकन अनुक्रम (112) Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ४४/१२३], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक चूणों : दीप केवलज्ञान श्री दि सेसं तरति, एवं सो अणेगभवसथितं कम्म खविऊण ताहे मुहुत्तमंतरं आसत्थो, एत्थंतरा जाव अच्छति ताव नियंठो लन्मति जावा आवश्यक दोहिं समएहि सेसेहिकेवलणाणमुपज्जिस्सतिति, ताहे जो एगो समतो तत्थ निई पयलं च खवेति, जो चरिमसमतो तत्थ। पंचविहं णाणावरणिज्ज चउविहं दसणावरणिज्जं पंचविहं अंतराइयं एयाओ चोइस य कम्मपगडीओ जुगवं खवेत्ता अणतं केवल-ट्रा उपायात माणदंसणं उप्पाडेति । अन्ने भणंति-जस्थ निई पयलं च खवेति, तत्थ नामस्स इमाओ पगडीओ खबेति, तंजहा-देवगति देवाणुपुव्वी नियुक्तोकिउम्बिदगं पढमवज्जाईपंच संघयणाई अअतरवज्जाई पंच संठाणाई आहारगं तित्थगरनाम जदि आतित्थगरो, एत्थ गाहा ॥१०७nal का चीसमिऊण ॥२-४५॥ चारिमे णाणा०।। २.४६ ।। गतत्थाओ, एवं सो उप्पण्णणाणदसणधरी जाताासाभन्न पासता M२-४७॥ समस्तं भिन से एकीभावे वा सत्तामंगीकृत्यकजीवाजीवादिभावण भिन्न भिन्न, अहवा दन्यपज्जायभावेण भिवं संभिर्य, ४ सम्यग्भिनं वा बझम्भतरतो वा भिनं, अहवा भिन्नभिति जीवादिदब्बं गृहीत, लोगमलोग चति खेतं, सब्बतो इति भावाण गबर्ण, सवपगारेण सर्वतः, सब यात्किचिदित्यर्थः, भूतं भव्य भविस्सं चति कालस्स गहणं, न च द्रव्यादिभ्यो भूतादिकालविशेषेभ्यो अन्य शेयमस्ति यदुपलभ्यतेीत, ते नरिथ जं एवं पासतो न पासतित्ति॥ एवं निज्जुत्तिसमुत्थाणपसंगतो जदिर्द सुतं यतोऽयमिति, जहा वा एतस्स पविती यदादि यत्पर्यवसानं एवमादि तकनियमणाणरुक्खारोहणादारभ जाब भूतं भव्यं भविसं चेत्पनेन भणित । एवं पत्रयणउप्पत्ती विभासिता चव भवतित्ति । इयाणि पबयणएगट्ठियादि विभासियव्यं । जतो एत्थगा चिरतणदारगाहान जिणपवयणुप्पत्ती०॥२-४८।। तत्थ जिणपश्यणुप्पत्ती मणिता, तस्स पुण पवयणस्स इमाणि एगद्वियाणि तिथि, जहापवयणति या सुतंति या अस्थोत्ति या, तस्थ सामन्त्रेण य सुयनाणमंगीकाऊण पवयणमिति बबादिस्सति, मघा अविनतमत्थता पकलकप्पं 14 अनुक्रम (113) Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ४८/१२८], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका नियुक्ती श्री सुत्तमिति, तदेव हि विवेचितं समुत्फुल्लकमलकल्प अत्थ इति, स च सूत्राभिप्रायः, एतसि तिहँ एक्केक्कस्स गामा एगडिया पंच, प्रवचनायेआवश्यक रतस्थ पवयणस्स इमे-सुयधम्मोत्ति वा तित्थंति वा मग्गोत्ति वा पावयणीत वा पवयणंति वा एगट्टा, सुत्तस्स इमे-मुत्तति वाटिकाधिकानि चूणा संतति वा गंधात्ति चा पाढोत्ति पा सत्यति वा एगट्ठा, अत्थस्स इमे- अणुयोगोति वा नियोगोत्ति वा भासत्ति वा विमासित्ति वा[ अनुयागप्यात वत्तियंति वा एगट्ठा । पवयणएगडिता गता।। इयाणि विभागो, सो य सम्वत्थ विसयविभागादिणा पगारेण विभासिअन्यो, भेदाः एस्थ पूण एगडितविभाग किंीच दरिसेतित्ति ।। अणुओगस्स सत्तविहं निक्खेवं भणति॥१०८|| नाम ठवणा० ॥२४९।। णामठवणाओ गताभो. जाणगभवियसरीखतिरित्ता दब्बस्स वा दव्याण वा दवेण वा दच्चेहि वा| हादमि वा दब्बेसु वा अणुयोगो दबाणुयोगो, दल्बस्स जहा जीवदध्वस्स अजीबदब्बस्स बा, जीवदध्वस्स चउव्यिहो-दवतो खेत्ततो कालतो भावतो, दब्बतो एगं जीवदन्वं खेत्ततों असंखेज्जपएसोगाढं कालतो अणादीए अपज्जवसिते भावतो अणंता नाणपज्जबा दंसण० चरित्त० अगुरुलहुयपज्जवा य एवमादि । अजीबदब्बस्सवि, किं पुण अजीवदव्वं, परमाणू, तस्स चउचिहोम दबओ ४, दय्यतो एगदव्वं खेतओ एगपंदसोगाढं कालतो जहण एग समयं उक्कोसेण असंखेज काले भावतो एगवने | एगगंधे एगरसे दुफामे। दष्याण अणुतोगो जीवदवाण य अजीवदवाण य, जीवदब्याण जघा कतिविहा पं भंते ! जीवपज्जवा| पन्नता ?. कतिविहा णं भंते ! अजीवपज्जवा पण्णचा ?, दब्बेण अणुतोगो, जहा- कोति पलेवेण वा एगेण वा अक्खणं, दब्बेहि | जहा बहूहिं अक्षेहि, दध्वंमि जहा फलए वा एगमि वा बत्थे, दब्बेसु जहा बहुसु कप्पेसु वा फलएसु वा, तत्थ दब्बस्स अणुतोगो सय अणणुतोगो य, तन्य इमं निदरिसणं ॥१०॥ दीप RECR अनुक्रम अथ अनुयोगस्य नामादि सप्त-निक्षेपा: वर्णयते (114) Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५०/१३३], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 k सत्राक वच्छगगोणी॥२-५०॥गोदोहओ जो पाडलाए वच्छओ तं बहुलाए मुयति बाहुलगं वा पाडलाए,एवं वितहकरण अणणुओगो, श्री जया जे जाए तं ताए मुयइ तया तहाकरण भवति अणुओगो, तस्य चार्थस्य प्रसिद्धिर्भवति, एवमिहापि जइ जीवदव्वलक्षणेणं अजीवं आवश्यक परूवेति तो अणणुयोगो भवति, तेण विसंवदंतेणं अत्थो विसंवदति, अत्थेण विसंवयंतेणे चरणं, चरणविणासे मोक्खाभावो, मोक्खाउपोद्घात भावे दिक्खा निरत्थिया । वितिए पसत्थे समोतारो, एवं सब्बत्थ भाणियव्वं । खेत्तेवि छभेदा, खेत्तस्स जंबुद्दीवस्स खेत्ताण दीवनियुक्ती सागरपन्नती खेतेण जहा जंबुद्दीव पत्थर्य काऊण अलोके पकिखप्पति पुढवीजीवा, खेचेहि अड्डाइज्जहिं दीवसमुद्देहिं, बहहिं वा ॥१०९॥ | पत्थयं काऊण जीवादिवियालणा कीरति, खतमि भरहे अन्नस्थ वा जत्थ अणुतोगो कहिज्जति, खत्तेसु पंचम भरहेसु पंचसु एरवएसु | पंचसु महाविदेहेसु । तत्थ खेनी अणुतोगये दिटुंदो खुज्जाए-सातवाहणो राया, भरुयच्छे नहवाहणं रोहेति, एवं कालो जाति, ४ वरिसारते य सणगरं बच्चति, अन्नदा तेण रोहएण गतेल्लएणं अत्थाणीमंडवियाए णिच्छुढे, पडिग्गहधारी खुज्जा, सा चिंतति-18 |एस अपरिभोगो, नूणं राया जाइतुकामो, तीसे य जाणसालिओ राउलओ परिजितओ, तस्स सिट्ठ, सो पए जाणगाई पमज्जितो | पयहियाणि य, तं दतॄण सेसएणवि लोयेण पयट्टिताई, राया य रहस्सियगं पधाइतो जाव लोगो पर पुरतो गंतल्लओ दिट्ठो, राया | चिंतेइ--ण मए कस्सति कहितं, कओ नायं, परंपरएणं जाव खुज्जनि, खुज्जा पुच्छिता, ताए लहेव अक्खायं ।। अत्थ खुज्जाए। * अपरिभोग खर्च जाति पनवयंतीए अणुओगो । अन्नहा पुण अणणुतोगो, एवं समोयारो। | कालस्सवि छ भेदा, कालस्स जहा समयस्स पट्टसाडितादिट्टतेणं, कालाणं जहा ओसप्पिणीए छबिहो कालो परूविज्जति, ४।१०९ कालेण अशुओगो, जहा बाउकाइयाणं वेउच्चियसरीरा ए पलिओचमस्स संखेज्जतिभागमेतेणं कालेणं अवहीरति, कालेहिं इमीसे णं दीप अनुक्रम (115) Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥११०॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: ५० / १३३], भाष्यं [-] ..... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 - मं स्यणप्पमाएं पुढवीए नेरड्या केवड्काले अवहरति १, ते णं असंखेज्जा असंखेज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहि अमहीक्ति, कालंमि अणुजीगो बितियाएं पोरुसीए, कालेसु जहा ओसप्पिणीए तिसु कालेसु उस्सप्पिणीए दोमु । एत्थ उदाहरणे - एगो साहू पादोसियं परियतो रहसेणं कालं ण जाणति, सम्मदिट्टिगा य देवता तस्स हिडाए संबोहयति मिच्छादिट्ठिगाए मरणं, तक्कं विके महता सदेणं, पुणो पुणो तीसे कन्नारोडगं असहमाणो भणति अहो तकबेलति, जहा तुम्भं सज्झायवेला, उवउत्तो मिच्छामि दुकडंति, देवताए अणुसासितो-मा वितियं मा च्छलिहिसिति । तस्स अकाले सज्झायंतस्स अणणुओगो, देवताए कालवेलं साहतीए अणुओगो। वयणस्स छ भेदा-वयणस्स०, एगस्स वयणस्स जणवयादिस्स, वयणाणं सोलसण्डंपि, वयणेणं अद्धमागणं, वयणेहिं अट्ठारसहिं देसीभासाहिं, अहवा एयस्स कहेहिति बहूहिं भणितो, वयणंमि खतोवसमिते, वयणेसु पत्थि, सव्वदेसी भासासु वा पवचति अणुओगो, अहवा सच्चे य असच्चामोसे य एत्थ उदाहरणं बहिरउल्लावो गामिलओ य, बहिरो हलं बाहेति, पंथं पुच्छितो भणइ घरजाइगा मज्झ बला, भज्जाए से भक्तं आणीतं, तीसे कहेति जहा बद्दल्ला सिंगिता, सा. भणति लोणितं वा अलोणितं वा माताए ते रद्धयं सा सासूए कहेति सा भणति धूलं वा वरई वा थेरस्स पुर्ण होहिति, थेरं सदाति, थेरो भणति-पीतु जीएणं एगंपि तिलं ण खामि, एत्थ तेसिं तं वयणं अजहा कहंताणं अणणु० । मामेलए एगो भग्गकुलओ, सो मुतो, तस्स महिला नगरे दुल्लभं तणकटुपत्तन्तिकाऊ गामं गता, पुत्रो से डहरतो, सो बड्डितो मार्त पुच्छति कर्हि मम पिता ?, ताए सिई जहा मतेलओ, का पुण तस्स वित्ती ?, सेविताइतो, अर्हषि सेवामि, तुमं तं ण जाणसि, हि सेविज्जति १, विणतेहिं जागरं विषयं ण जाणसि, किह नगरे विणओ १, पीओ सब्बहिं होज्जाहि, अहं णीये बंदिस्लामि (116) अनुयोग बेदा. ॥११०॥ Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५०/१३३], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक नियुक्ती दीप श्री MIत्ति गतो सो, णगर पहाइतो, पेच्छति वाहे, भट्टि ज्जोत्ति भणइ, मिगा पलाता तस्स सदेण, तेहिं हतो, तेण सम्भावो कहितो मावानुआवश्यक II भणितो य-जदी एरिसे पेच्छसि तदा णिलुको एज्जासि, ततो तेण रजका दिट्ठा, तेसिं च पोचाणि हीरति, ओहपण अच्छक्ति, सो योगे चूणों व य णिलुक्कतो एह, चोरोति पिडितो, सम्भाव कहित भणितो-भणज्जा सिं सुद्ध नीरयं निम्मलं भवतु ऊस च पडतु, सो सलाबारउपोद्घातान एति, एगस्थ ओच्छुपीया जीणिज्जति, मणति-भडि! सुद्धं पीरयं उसो य पडतु, तत्थवि पिट्टितो, कहेति, मुक्को भणितो ब- पानि भण बहुसइय, मतए नीणिज्जते भणति-बहुसतिय होतु, एरिसं मा कदादि तेहि भणितो, विवाहे भणइ, ( तत्थ मणिधो भण) ॥११॥ एरिसो में संजोगो थिरो थावरो य भवतु, तं नियलबद्धए कुलपुत्तए पमणिय, तेहि भणितो-एवं मणिज्जासि-एतातो ते लई मोक्खो भवतु, अन्ने मित्तसंघाडि करेति, तस्थवि पिडितो, एगस्स कारणियरस अलीणो, तत्थ अंबेल्लि, घरपलीयणए, धूर्वेतस्स गोमत्तं छह, तस्स बयणविभागाणिपुणस्साणणु०, एस वयणे अणुयोगो अणणुयोगो य भणितो । भावे य छ भेदा, भावस्स उदययादिस्स, भावाणं छण्हवि, भावेण निज्जराभावेण कहेति, भावहिं संगहड्याईहिं पंचर्हि, भावमि खतीवसमिते, भावेस तेसु चैव आदतियादिसु अहवाऽध्यारसूयगडाईसु । तत्थ भावे अणुतोगे य अणणुओगे य इमे सच उदाहरणा सावगमज्जा ॥२॥५५॥ सड्डेण सङ्कीए वयंसिया विउचिता दिडा, अझोववभो, परिहाइ, निन्थे कहितं, ताए भाणियं-आणेमि, तेहिं वत्थामरणेहि अप्पा बस्थितो, अतिगता, दीवओ पदयापितो, अच्छिओ, पुणो अघिद पगली, चिररक्खियं मम्मति, ताए पत्तियाबितो साहिबाण, एत्य तस्स तीए य सम्मं सामिप्पायकाहणेण अणुशोगो, एवं अपत्यवि, ततो 51 यथाविधि १ । सत्तपतिए-पच्चंतिओ, साधूआगमण, गोट्टीए पडिणिययाए पर दरिसितं, तेणमस्सामूतियाए दियां, ग कहेयचंति, अनुक्रम (117) Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं H-1 मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक उपोद्घात नियुक्ती ॥ ११२ ॥ भाष्यं [-] “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: ५५/१३४], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 एतेणं पडियोगेणं दिलं, बत्ते वरिसारते आपुच्छंति, भणितो वणसंडउदाहरणेणं, जहा पुप्फफलसमिद्धं, ण तरति किंचिवि घेत्तृणं, मुलगुण उत्तरगुण मधुमज्जविरहं वा, पच्छा सत्तवगं वयं दिनं, चोरो गतो अवसउणोत्ति नियचो, घरं अप्पसारियं अतीति, भगिणी य से पाहुणया आगएछ्या, तीए पुरिसनेवत्थकरणं निदाए तहेब सुत्ता अवतासेऊणं, अतिगतो पेच्छइ, असी अंछितो, पयं सरितं नियत्तो, असीए खणति कयं, पडिबुद्धा, लज्जाए पिच्छिऊणं विसन्नो, समोतारो २ कोंकणगस्स महिला मया, अन्ना या लभइ सवतिपुत्तो अस्थिति, पच्छा अडवीए कंडाइ आणेति विद्धो भणति ताता, मारितुमिच्छितो, तस्स दारगस्स अभिप्पायं णाऊण भणं तस्स अणु० । एवं समोतारो ३ ॥ नउले-एगा चारभडिया गामे वसति सा अन्नया कमाइ गब्भिणी जाता, अभावि णउली गम्भिणीया तत्थ एति जाति य, ताओ समियाओ पख्याओ, ताए चिंतियं मम पुत्तस्स रमणओ भविस्सतित्ति तस्सवि पीहगं खीरं च देति, अनया तत्थ सप्पो पविट्ठो, तेण सो खद्धी दारओ मओ, इतरेणोतरंतो दिट्टो मंचुलियाओ, पच्छा खंडाखंडि कतो, ताहे सो रुहिरलिनेणं तुडेणं तीय मूलं गतो, चाडुगाणि काउमारद्धो, ताए भणियं एएण मम पुत्तो खतितो, खंडतीए मुसलेण आहतो, पच्छा धावंती घरं पविट्ठा तं पेच्छति सुप्पं, ताहे दुगुणं रोयति, पच्छा अणु० ४ ॥ कमलामेला, चलदेवपुत्तो निसढो, तस्स प्रभावती देवीए तो सागरचंदो कुमारो, इतो य धणदेवओ उग्गसेणस्स गनुओ, तस्स कमलामेला णाम रायदुहिता बरिया, णारदो य कलहदलियं विमग्गमाणो कमलामेलाए सगासमुवगतो, तीय पुच्छितो कि तुमे अभूतं दिति १, तेण भणितं दुवे अन्याणि इहेव बारवतीए, जं च उग्गसेणणत्तुओ रूवेण परमविरूवो बलदेवपुत्तो सागरचंदो उक्ट्ठिरूवो, तीए भणितं भगवं ! किह मम सो भत्ता होज्जत्ति ?, तेण भणिय अहं करेमि तेण ते सह संजोगीत, ततो तीसे रूवं पट्टियाए लिहिऊणं गतो सागर (118) भावानु योगे उदाहर णानि ॥ ११२ ॥ Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५५/१३४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्रा दीप श्री चंदसगासं, सागरचंदेण भणिओ-का एसा एवं उकिसरीरा दारियाति ,णारएण भणिय-इहेव बारवतीए रायदुहिया कमलामे भावानु योगे आवश्यक लत्ति, सो तमि अझोववचो न खाति न पिबति, ततो संवो उवागतो, तेणं सो चिंताकुलेण ण णातो एंतो, संघण सणिया उदाहरचूणा ५ उवाल्लिऊण हत्थेहिं अच्छीणि ठझ्याणि, सागरचंदेण भणियं-का एसा कमलामेलत्ति ?, संबो हसिऊण भणति-णाहं कमलामेला, णानि उपाकिमलामेलो अहं पुत्ता !, सो पाएमु पडिऊणं भणति-तात ! उत्तमपुरिसा सच्चपइन्ना, तो मम कमलामेलं मेलबेहिति, संवेण का अम्भुवगतं, ततो पज्जुनसगासं पाडिहारियं पनसिविज्ज मग्गति, तेण दिना, ततो कमलामेलाए विवाहदिवसे विज्जाए। ॥११॥ पडिरूवं विउविऊणं अवहरिता कमलामेला चेव, तए उज्जाणे सागरचंदस्स तीए सह विवाह काऊणं उवललंता अच्छंति, विज्जापडिरूवर्गपि विवाहे वट्टमाणे अड्डवहार्स काऊणं उप्पतितं, ततो जातो खोभो, ण णज्जति केण हारियत्ति, णारदो| पुच्छितो भणति-रेवतउज्जाणे दिवृत्ति, केणवि विज्जाहरेण अवहियति, ततो सबलवाहणो णिग्गतो कण्हो, संबो विज्जाहररूबंई काउणं संपलग्गो जुद्धं, सब्वे परातिता, कण्हेण सद्धिं लग्यो, ततो जाहेऽणेण णातो रुट्ठो तातोत्ति, ततो से चलणेम पडितो, कण्हेण अंबाडितो, संवेण भणित-एसा अम्हेहिं गवक्षेणं अप्पाणं मुयंती किहवि संभाविता, ततो कण्हेण उबगमितो उग्गसेणो, | पच्छा इमाणि भोगे झुंजमाणाणि विहरंति, अरिहनेमी समोसरितो, ततो सागरचंदो कमलामेला य सामिसगासे धम्मं सोऊण गहिताणुन्वयाणि सावगाणि संवुत्ताण, ततो सागरचंदो अहमिचउद्दसीसुं सुन्नघरे सुसाणेसु वा एगराइयं पढिम ठाति, धणदेवेणं है आयण्णिऊणं तंगियाओ सूती घडाविताओ, ततो सुनघरे पडिमं ठियस्स तस्स वसिमुवि अंगुलीणहेसु आहोडियातो, सम्मम-13।११।। | हियासेमाणो य वेयणाभिभूतो कालगतो, देवो जातो, ततो वितियदिबसे गवसंतेहिं दिष्टो, अकंदो जातो, दिवा सूतीतो, गवसंतरहिं है। अनुक्रम CASS (119) Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १५/१३४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत भावानुयोगे उदाहरणानि सूत्रांक 18 तंत्रकुट्टगसगासे उबलद्धं घणदेवएण कारितातोत्ति, रूसिता कुमारा, घणदेवगं मग्गति, जुद्धं दोहवि बलाणं संप्पलग्गं, आवश्यकता ततो सागरचंदो देवो अंतरे ठाऊणं उबसामेति रोहिणिपरंपरगणादेण, पच्छा कमलामेला भगवती सगासे पच्चइया । उपाधावाशएचियं पसंगेण भणितं । एत्य सागरचंदस्स संवकुमारे कमलामेलाभिष्पायं सातस्स अणुतोगो अणणुओगो ५॥ संवस्स साहसं-जंबवती भण्णति-किड पुत्तस्स कीलितं पेच्छज्जामि:, वासुदेवो भणति-किं तो अब्बारिडिहिं धरिसिज्जिहिसित्ति, ॥११॥ सा भणति-अवस्स पेच्छियवाणि, एवं होउचि, गोवी जाता, इतरो गोवो जातो, महियं पविकीया, इतरेण दिट्ठा गोची. भणिता-एहि तकं गेण्हामि, सा अणुगच्छति, गोवो मग्गेण, सो एग आविउत्थगं पविसति, सा भणति-णाहं पक्सिामि, किं तु मोल्लं द्र देहि, तो एत्थं चेव ठितओ तक्कं गेहाहि, सो भगति-णवि, अवस्स पविसियव्वं, हत्थे लग्गो, एगत्थ गोवो लग्गो, जाहे ण तरतिळू कडिङ ताहे तं मुतितुं हत्थाओ तेण समं लग्गो, णंबरं एगाए चेच हेल्लाए आविहितो, वासुदेवो जातो, इयरिंपि मायं पासति, ओगुद्धि काउं पलातो, बितिए दिवसे मड्डाए आणिज्जतो खीलगं घडेति, वासुदेवेण पुच्छितो-किं एवं घडेहि ?, सो भणति-जो पारियोसियं बोल्लं करेति तस्स मुद्दे कोट्टिज्जति, समोतारो ६।। चल्लणा सामि बंदित्ता बेयालियं माहमासे पविसति, पच्छा साहू दिडो पडिमापडिवनो, ताए रति सुत्तियाए किहवि हत्या लंबिओ, जया सीतेणं गहितो तदा चेतियं, पवेसितो, सव्वसरीरं सीतेणं गहीतं. ताए भाणियं-स तपस्वी किं करोति?, पच्छा रना चिंतितं एयस्स कोऽवि संगारदिनओ, रुट्ठो, कल्लं पाओ अभयं भणति-सिग्धं अंतेपुरं पलीवेहि, सोवि गतो सामिणो मूलं, इतरणवि मुनहत्थिसाला पलीविता, सो गतुं सामि भणति-चेल्लणा एगपत्ती अणेगपत्ती ?, सामिणा भणियं एगपत्ती, ताहे मा उझिहितित्ति दीप अनुक्रम ॥११॥ (120) Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १५/१३४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - भाषावाति सत्राका दीप तुरियं नियत्नो, अभयो य निफिट्टति, तेणं भणितं-पलीवितं ?, आम सार्भा , तुम किन्न पडितो?, सो भणति-मम किं ?, अहंभाषाविश्री सामिस्स मूले पब्वइस्सामित्ति, ताहे अभएण चिन्तियं-मा विणस्सिाहिति, पच्छा भणियं, ण उज्झचि ७।। आवश्यकता - एतेसु सव्वेसु अणुयोगा अणणुयोगो य विभासियव्यो । इदाणिं नियोगः, णि आधिक्ये 'जिच् योगे' अतीव योगो नियोगो, कस्वरूपं उपायातसो चेच अत्थो जदा मुत्तेण समं निउत्तो भवति तदा चरणकरणपसती भवति, जहा बच्छए गोणीए सम्म निउने खीरप्पस्ती नियुक्ती भवति ।। भासा विभासा वत्तियंपि, एताणिपि तिथिवि संजुत्ताणि चव बच्चंति । तत्थ सामनेण एकप्रकार अत्यं बुवाणो भासगो,131 ॥११५॥ मध्यं बुवाणो विभासगो, सम्वेण पगारेण चुवाणो बत्तीकरगो । तत्थ इमे उदाहरणा-.. कडे पोत्थे चित्ते॥२-५६।।जथा देवदत्तो खंदस्स वा रुदस्स वा पडिम काउकामो तदणुरूवपमाणं कहूँ पगरेति जारिसं तं कट्ठ पुरिम सुमंचा, तं चेव कट्ठ जदा परसुमादितच्छितं भवति तदा णज्जति जहा एत्थ इत्थी वा पुरिसोया कीरिहित्ति, एवं चेव कट्ठसमाणे सुत्ने जो जे सुत्तालावगनिष्फ धात्वर्थमावं तं चेव भासह सो भासओत्ति भन्नति । जदा तं चव कई बासिथोमणयमादीहि परिकम्मिता अंगपच्चंगसंठाणाणि बहुं निम्मवियाणि, एवं चेव तस्स मुत्तस्स जो दोहिं वा तिहिं वा चउहि वा पगारहिं अत्थपयाणि विभासति सो विभासतोत्ति भन्नति । सोय चोद्दसपुष्वी अत्थे विभासिउँ समत्थो । उक्कोसतो विभासतो वत्तियं, जदा तं चव अंगपच्चंगाणंद्र णिण्णुण्णयरोमकूवदिडिफलकमादीणि णिबनियाणि, एवं चेव जदा सब्बपज्जवेहि अत्थं भासति तदा वत्तीकरणे हवइ, सो य II उक्कोसओ वचीकरगो केवली, केति पुण जेण तिहिं परिवाडीहि अणुओगो सुतो गहितो य सत्तर्हि वा सो बत्तीकरगो इति X ॥११५॥ भणंति । एवं ता कढे । पोत्थे पढम दम्मादि मिलिता, ते चेव बद्धा पमाणागिती कता भासा, अंगाणि जहिच्छिताणि चेवड़ा अनुक्रम - % ES (121) Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १६/१३५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणी कस्वरूप सत्रा CCCALORE दीप अंगपच्चंगाणि णिम्मावियाणि तदा विभासा, जदा दिद्विमादि सव्वं कयं तदा बत्तियं । इयाणि चित्ते कुड़े पमाणागिती || भार आवश्यक | टिक्किता ताहे भासा, ताणि चेव अंगपच्चंगाणि निम्मवियाणि विभासा, जदा दिदिमाइ सव्वं कयं तदा वात्तियं । सिरिघरि-एगो भाषा | जाणति, जहा एत्थ रयणाणि संति, एवं सुत्तइत्तो जाणति जहा किर एत्य मह अत्थो अस्थि, अन्नो सिरिघरिओ जाणति-असुगं इमं| उपातिमा रयण, एवं चेव कोइ सुइत्तो जाणति जहा सुत्तस्स सामन्त्रेण इमो अत्थो, एवं मुत्तत्थबियाणगो भासगो, अयो तेसिं अणुभागं| नियुक्तौ । &ीमोल्लं च जाणति, एस विमासओ, अन्नो तेसिं सव्वं जाणति जहिं जहिं जदा जदा विलएतव्वं णिगृहितव्वं च, एवमादी याद ॥११६॥ जाणति, एवं पतिओ जो जहि अत्थो ससमए वा उस्सग्गेण वा अववाएण वा जत्थ जत्थ जदा जदा जहा जहा पउंजियब्बो | एवं सव्वं जाणइत्ति । पोण्डं जारिसं एरिस मुत्तं, ज़दा तं चेव इसिं विगारीतं भवति तदा भासओ, जदा तं चेव वियसियं पंकजं भवति तया विभासओ, जदा ते चेव सव्वपज्जाएहिं विगसित भवति तदा वत्तिय, पोंडोत्त गतं । इयार्णि देसिएति, जहा कोति पुरिसो पाडलिपुत्तस्स पंथं जाणति, एवं सुत्तइत्तो जाणति जहा एत्थ अत्थो, अमो जाणति | जहा ताव अमुगणगरं गम्मति, जं तस्स अंतरे तं न याणइ, एवं चेव भासओ जाणइ जहा इमो अत्थो, जहा ततिओ पुरिसो * समुप्पन तंपि पंथं जाणति उज्जुगंपि वक्कंपि परिमाणंपि जाणति, जहा एत्तियाणि गाउयाणि वा, एवं चेव विभासओवि बहुतर-12 | एहि पज्जवेहि जाणति, जो चउत्थो सो एतं चेव सव्वं जाणति, तत्थ सावयभयं वा तेणभयं वा जहा उव्यत्तिउं जाणति, पुणोवि तं 8॥११६॥ | मग ओगाहति, एवं सो सम्बेहि पज्जवेहिं जाणति, एवं चेव वत्तिओनि । 'पडिसहगस्स सरिसं जो अत्थ भासए तु सुत्तस्स ।। सय सो इग बालपंडितसाधुजतीमादि सा भासा ॥ १॥ एवं एगट्टितविभागाोत्त। अनुक्रम (122) Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५६/१३५], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका ॥११७॥ श्री इयाणि दारविधीपवित्ती, सा ताव न भन्नति, कम्हा ?, दारविहीए कए किल सत्थं समप्पिहिति, नयावि तदंतरंगता एव टिव्याख्यानआवश्यक इति पयविधीवि तत्थेव भनिहित्ति इति मा सीसस्स अविणयपडिबत्ती भविस्सति, ताहे आयरितो भणति- अच्छतु ताव विधी चूणा दारविधी य, बक्खाणविहिं भाणिस्सामि, पच्छा किं च वक्खाणविधीए? इति, चक्वाणविधी नाम जारिसाओ घेतब जारि- गवादीन्युउपोद्घाता विसस्स वा सीसस्स दायव्वं जहा य इति, तत्थ इमे आयरियसीसाणं उदाहरणा, एग आयरियस्स एगं सीसस्स, दोवि वा एगमि | दाहरणानि नियुक्ती चेच ओतरंति ॥ गोणी चंदण०॥२-५७जाएगस्स गावी भग्गा, सा पुण अतीव खीरदा, नाहे सो चितेइ-मा बहुं चुक्किहामि, कंचि बचेमि, तेण सा तणस्स उवेऊण गोसंघाए पए चेव उबट्ठविया, तत्थ कतिता आगओ, सो भणइ- विफाइ गावी?, तेण माणय- विक्काइ, किह लम्भति ?, पंचासतेण, लट्ठत्ति काउं गहिया. सोवि पलाओ, इयरो उहचेइ, सान तरेइ उटुंउं, तेण नायं, अहंपिस्थ कंचि वचेमि, अन्नो आगतो, विक्काति, आम, तिपण भणितं- विक्कमावमि दुद्धं च जोएमिता गिण्हामि, सो भणति-एताहे चेव उडेट्ठा, तहवि जोएमोत्ति भणति, उट्ठवेउमारदा ण उट्ठति, भणति एवं चैव ठितेल्लगं गण्हाहि, इतरो न इच्छति, सो भणति- मएवि एवं चेवट्ठिता गहिता, इतरो भणति- जदि तुम बोद्दो, अहं ण गेण्हामि, एवं परिसस्स पासे ण गहेयव्यं, जो अक्खितो समाणो भणति- एमेव मए सुयंति, जो अत्थं गाहेति सवपज्जवेहिं तस्स पासे सोयब्बं । एतं ता आयरियस्स उदाहरणं । इमं सीमस्सबारवती णगरी कण्हा वासुदेवो, तस्थ तिमि मेरीओ, तंजहा- संगामिया अभुतिया कोमुतिया, तिनिधि गोसीसचंदणमदीओ,151॥११॥ देवतापरिग्गहिताओ, तस्स चउत्था भेरी असियोवसमणी, तीसे उढाणपारियाणियं कहेयध्वं-तेणं कालेण तेणं समतंणं सक्को दं दीप अनुक्रम (123) Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १७/१३६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यकता सत्राका श्री 18वेंदो, सो तत्थ देवलोगे वासदेवस्स गुणकित्तणं करति-अहो उत्तमपुरिसा एते अवगुणं ण गेण्हंति, णीयं च कम ण करेति, तत्य | एगो देवो असदहतो आगतो, वासुदेवो यणीति, सो तत्थ कालसुणगरूवं विउम्बित्ता चावअदम्भिगंध पंथम्भास पडितो, तस्स लायाग मपुचूणी लोगो गंधण सब्बो पराभग्गो, बासुदेवो तेण पंथेण आगतो, तस्स सुणयस्स दंते दणं भणति- अहो इमस्स पंडराओ दाढाओति, दाहरणं उपोद्घातात ताहे सा देवो चितेति-ण सक्का एतेण उवाएणंति, ताहे सो वासुदेवस्स जे आसरयणं तं गहाय पधावितो, सो य बहुरायाणएणं नियुक्ती णातो जहा आसो हीरति, तेण सिहूं, तत्थ कुमारा रायाणो य णिग्गया, तेण ते हतमहितवीरघातिया काऊण विसज्जिता, ताहे ॥११॥ वासुदेवो णिग्गतो, सो भणति- कीस मम आस हरसि ?, मम आसो तुज्झ ण होति, देवो भणति- जुद्धं मम देहि, जो जयति तम्स आसो, इतरो भणति- बाद, किह जुज्झामो?, तुम भूमीय अहं च रहेण, रहो दिज्जतु, णस्थि मम रहेणं(कज्ज), आसो हत्थी पादेहिं बाहुजुदं, सम्वेहिचि ण कज्ज, दोवि जुझमो(हि)ट्ठाणजुद्धण, ताहे वासुदेवो भणति-पराजितोऽहं, णेहि आस, तत्थ देवो | तुट्ठो समाणो सखिखिणी भणति- बेहि वरं किं देमि, वासुदेवो भणति-मम असिवप्पसमणि भेरि देहि, तेण दिना, तीसे मेरीए एसुप्पत्ती । ताहे छण्हं मासाणं अणुतोगो, पुच्चुप्पन्ना रोगा वाहीओ वा उवसमंति, णवगा वाही छ मासे ण उदीरंति, सई जो तीए | सुणेति, तत्थनदा कयाती आगंतुओ वाणियओ, सो अतीव दाहज्जरेण अमिभूतो, तं भरिपालयं भणति-गेह तुम सयं से पलं वा देहि, तेण लोभेण दिन, तस्थ अन्नं चंदणखंड छद, एवं सा सव्वा चंदणकथा कया। अमदा कयायी असिंच वासुदेवेण तालाविता, तं चैव सभ ण पूरेति, तेण भाणतं- जोएह मा भेरी विणासिता होज्जा, जोइज्जती सब्बाणि, विणासिता नाऊणं से पुरिसं जीयदंड आणवति, अन्ना मग्गिता, अन्नो ठवितो, सो आदरेणं रक्खति । एवं इहापि सीसो आयरियपासाओ निग्गतो दीप अनुक्रम RECENEMitSECRSect R ॥११ (124) Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १७/१३६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका दीप समाणो तस्स किपि पम्हढू, सो तमि आलाबए णटुं अब लोइयं छुभति करेति वा भारहरामायणादीणं एवं तेण कंथाकयं सुतं आवश्यक अत्थो य, तारिसस्स ण दायव्वं मुत्तं अत्यो चा, जो तहेव रक्षति तस्स दायव्वं । एस ताव सीसस्स । आयरियस्स चूणी वसंतपुरे जुन्नसेडिधूता णवगस्स सेहिस्स ब धूता, तासि पीती, तहवि से अस्थि खारो जह अम्हे एतहिं उपट्टिताणि, ताओव्यु दानियुक्ती पायात अन्नदा कयादी मज्जितुं गताओ, तत्थ जा सा णबगस्स धृया सा तिलगचोद्दसएणं अलंकिता, सा तं तडे ठवेत्ता ओइना, जुन्न- हरणं सेट्टिधूया तं गहाय पहाविता, इमा जाणति- खेडं करेतित्ति, ताए मातापिऊणं सिट्ठ, ताणि भणंति-तुण्हिक्का अच्छाहि, गवग-18 ॥११९॥ दध्या व्हाइत्ता णियगं घरं गता पिउमातूणं कहितं, तेहिं मम्गितं, ण दंति, अम्हे उच्चट्टिताणित्ति परिभूताई, कि आभरणगाणिवि णस्थि , एवं कनाकनि पणढाणि, पच्छा राउले बबहारो, तत्थ णत्थि सक्खी, तत्थ राउलाणि भणति-चेडीतो वाहिज्जतु, जति तुम्हेच्चयं आमुचउ चेडी, ताह सा आमुचति, जे हत्थे पादे तं न याणति, तं च से असिलिटुं, ताहे तेहिं जातं, जहा एतीसे ण होति, ताहे इतरा भणिता, ताए तहच्चेव णिच्च आमुचतीए परिवाड़ीए अ मुक्कं, सिलिटुं च से, ताहे सो जुन्नमेट्ठी दंडप्पतो जातो, जहा सो एगभवितं मरण पत्तो, एवं आयरितोऽवि जे अन्नत्थ तं अनहिं संघाडेति, अन्नवत्तव्ययाओ अवस्थ परूवेति, उस्सग्गादीयाओ एवं, सोऽधि संसारडंडेणं डंडिज्जति, अणेगाई जातितनगमरियव्यगाई, तारिसस्स पासे ण अज्झाइतन्यं, जहा सा चेडी जसं पत्ता आविंधणसुहं वा, एवं व आयरिओ जो णवि संघाडेति अनमत्राणि तेण अरहंताणं आणा कया । भवति, तस्स पासे मुत्त्याणि गिण्डियब्वाणि १। सावगसमाणस्स सीसस्सण कहेयव्बं, जो सबकाल महिलं भोतुं तं चेव ४ ॥१९॥ | एगराई ण याणति अनणेवत्थणेवत्थितं, एवं सीसोऽवि सम्वकालं रडिऊण सुतं वा अत्थं वा ग माणति किं इमं सुतं ससमइये अनुक्रम (125) Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १७/१३६], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणीं उपोद्घात श्री परसमडयं उस्सग्गियं वा अववाइयं वा एगवयणं दुबयणं बहुचयणं एवमादि, एवं चेव अत्थेवि, तारिसगस्स ण दायव्यं । बहिरगोह-काटकणोदाआवश्यक समाणस्स आयरियस्स पासे ण सोयवं, जो अन्नं वागरेति, अन्नस्स वा सुत्तस्स अत्थं पुच्छितो तो अनं चेव वागरेति, अनेण| हरणं वा अभिप्पाएण पुच्छितो अबहा वागरेति । अभिप्पायं वा पुच्छगस्स णावगच्छति । शिष्यस्य इयाणि जहा आयरिएण दायच्वं सीसेण य घेचव्वं तत्थ इमं उदाहरण-उत्तरावह टंकणा णाम मेच्छा, ते सुवनदंतमादीहिं गुणदोषाः नियुक्ती 16 दक्षिणावहगाई भंडाई गण्हति. ते य अवरोप्परं भासं न जाणंति, पच्छा पुंजे करोति, हत्थेण उच्छादेंति, जाच इच्छा ण पूरेति ताव ॥१२॥ पण अवणेति, पुने अवणंति एवं, तेसि इच्छियपडिच्छितो बवहारो । एवं चेव आयरियस्स सिस्सेणं कितिकम्म कायव्यं, तेणवि विहिणा सुत्तत्थाणि दायव्याणि । एसो एगो आदेसो । बितितो इमो-आयरितेण ताप सिस्सस्स अत्थो भाणियब्बो जाव तस्स लोगहणं, सिस्सेणवि ताव पुच्छियव्वं जाव उवगयंति, एस टंकणओ बबहारो॥ PI स एवाधिकारो बद्दति-.॥२.५७॥ तेण कस्स ण होही येसो अणभुवगतो-अणुवसंपन्नो, अन्भुवगतोपि णिरुवगारी शण किंचि पडिलहणादि इहलोइयं परलोतियं वा उवगारं करेति, उबगारीवि कोति अप्पच्छदमती जसे रोयति तं करोति, कोति परच्छंदमतीवि पट्टितओ जा मे सुत्तत्थाणि लम्भंति अच्छामि अन्नहा बच्चामि । गंतुकामो जदि मे इच्छंत पूरेंति तोऽहं सुत्ते उद्दिवे समाणिए गमिस्सामि चेव, अन्ने पुण पत्थियतो नाम कोति साधू आगतो कहिं पकिचहिसि जीवपडिम (वंदिउं) अहंपि|81 बच्चामि गंतुमणो जो य भणति गवरि इमं सुयसंधं णिड्डेबमि ताहे बच्चामि, जम्हा एवंभूतो बहूर्ण एसो अणणुमतो भवति ||१२०॥ तम्हा एतद्विपरीतेन होऊण गुरुजणो आराहियन्यो । दीप अनुक्रम (126) Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५८/१३८], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यक ॥१२१|| तहा विणओणतेहिं।।२-५८॥विणतो सत्तविहो, तंजहा-णाणविणओ दसणविणओ चरित्तविणओ मणविणओ वयिविणओ शिष्यपरीकायविणओ उचयारियविणोत्त। पंचमुवि णाणेसु भत्तिबहुमाणो णाणविणो, सेसेसु विभासा, तेण विणएण ओणओर, ओणओ .वाया दुविहो-दब्बोणओ भावोणओ य, दच्चोणओ ओणयगाओ, भावोणओ अणुद्धतपरिणामो ' पंजलियडेहिं ' विकृतप्राञ्जलिभिः,तशलवनाछंदो-अभिप्यातो तमणुअचमाणेहिं जहा तुस्सति, एवं च आराहियब्बो गुरुजणो, एवं को गुणो?, भणितविहिणा आराहितो। दीन्युदा दाहरणानि गुरुजणो सुयं बहुविहं लहूं देति, बहुविहं-अंगाणंगपविट्ठादि बहुपज्जायं च 'लहुँ तिज सत्तहि तिहि वा परिवाडीहिं दिज्जति । | आवज्जितहिययो एगाए चेव परिवाडीए लाएति । पुणो इमा सीसस्स परिक्खा मई पहुच्च भन्नति। सेलघण०॥२-५९।। तत्थ इमं कप्पियमुदाहरणं । तंजहा-मुग्गसेलो पुक्खलसंवट्टओ य महामेही जंबुद्दीवप्पमाणो, तत्थ | | किल गारदत्थाणीओ कलहं आयोएति, मुग्गसेलं भणति-तुज्झ नामग्गहणे कए पुक्खलसंवट्टओ भणति-जहा पं एमाए धाराए बिरामि, माणेणं सीहावितो भणति-जति मे तिलतुसतिभागमेत्तमवि उल्लति तो णाहं वहामि मुग्गसेलं नाम, पच्छा मेहस्स मूले | भणति मुग्गसेलवयणाई, सो रुट्टो, सच्चादरेण वरिसितुमारद्धो जुगप्पमाणाहिं धाराहि, सत्तरते वुढे चिंतेति-इयाणिं गतो विरायोत्ति ठितो, इतरो मिसिमिसेतो उज्जलतरो जातो दिप्पिउमारद्धो, भणति-जो भट्टिात्ति, ताहे मेहो लज्जितुं गतो । | एवं चेव कोति सासो मुग्गसेलसमाणो एगमवि पदं ण लग्गति । अबो आयरितो गज्जति, आगतो, अहंण माहेमिति, | आह-आचार्यस्यैव तज्जाड्यं, यच्छिष्यो नावबुध्यते । गावो गोपालकेनैव, अतीर्थनावतारिताः ।। १॥ ताहे पढावितुमारो, 1 ॥१२॥ सको, ता लज्जितो गतो । एरिसमइस्स ण दायब, समोतारो । एयस्स पडिपक्खो कण्हालभूमी, जहा कण्हाले जं पाणियं पडति | दीप अनुक्रम SO4% 9c (127) Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ५९/१३९], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यकाल प्रत HEICO तंण कतीवि ओलुटति, सम्वभाषियति, एरिसस्स दायब्वं, चर्चा | इयाणि कुडा, कुडा दुबिहा–णवा य जुमा य, जुम्ना दुविहा-काश चूणौँ | माविता अभाविता य, भाविता दुविहा-पसत्थभाविता, अपसत्थभाबिता पसत्था भाविता अगुलुतुलुकमादीहिं, अपसस्था पलंडमादीहिं,8 कुटचालनीउपोद्घात्र पसत्था भाविता दुविहा-वम्मा अवम्मा य, एवं अप्पसत्यावि, जे अप्पसस्था अवम्मा जे अपसत्था बम्मा ते ण सुंदरा, इतरे सुंदरान्ती नियुक्तो अभाविता ण केणति भाविता णवगा आवागातो ओतारियमेत्तगा । एवं चेव सीसा, णवगा जे मिच्छदिट्टी तप्पढमताए गाहि-17 ज्जंति, जुनगा अभाविता ण एगेणवि मतण भाविता, अपसत्था असंविग्गेहिं पसत्था संविग्गेहि, जे अप्पसत्था बम्मा संविग्गा ॥१२२॥ य अवम्मा एते लगा, इतरे अचोक्खता । अहवा घडा चउबिहा, तंजहा--छिद्दकडे बोडकुडे खंडकडे सगलेत्ति, छिदो जो | मूलच्छिदो, बोडो जस्स उहा णस्थि, खंडो एग से ओट्टपुट णत्थि, सगलो अवंगो चेव, छिह ज छर्ट ते गलति, बोडे तावतियं 13 पण द्वाति, खंडो तेण पासेण छडिज्जइ, जदि इच्छा थोवेणवि रुंभइ खंडे, एस बिसेसो खंडवोडाण, संपुषो सच्चं घरेति । एवं व सीसा पत्तारि समोतारेयष्वा । सव्वत्थ विराहणा, चर्चा भणियब्वा। चालणीसामाणो, उदए चालणी भरितिगां अच्छति, उक्कास्थिता य णस्थि किंचिवि मह (माइ) ॥ अन्नया मुग्गसेलच्छिद्दकुडचालणिसमाणा मिलिता सलवंति-फेण वो भो किं गहित?, तत्थ चालणिसमाणो भणति-जाव आयरियसगासाओ ण उडेमि 131 8 वाहे सम्बंपि गेण्हामि, जाहे उडितो ताहे न किंचिपि सरामि, छिद्दो भणति-धनो तुम जस्स तंपि कालं अच्छति, मम पविसंता ॥१२२।। चेव णीति, सेलो भणति-तुब्भे हि दोवि धण्णा, ममं ण किंचि पविसति, एतसि असंतती य, आयरितो अत्थं गुणेतुकामो मा दीप अनुक्रम * (128) Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६०/?], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE दीप श्री हाणासिहितित्ति, ताहे ते णीसाए गुणेति ।। चालणीए पडिवक्खो ताबस कविणयं, परिपूर्णओ पयपुनगालणगं, किट्टिसं लएति, एवं हिंसमहिपआवश्यका सीसोषि दोसेस लग्गति. अणाभोगण अणाभोगपनवणाए वा अववादपयाणि वा । तस्स पडिपक्खो सो मषमशकज चूर्णी दा खीरमिष रायहंसो॥२-६०॥ तस्स किर जिम्भा अबिला तो दुद्धं फट्टा, ताहे सारं खाति, इतरं चयतित्ति, चर्चा। महिसोलासोकोचिउपोद्घाता भावीपुरतो जूहस्स गंता सम्बं पाणितं आदुयालेति, पच्छा पिवितुमारभति, ण य सक्को पातुं सो वा, एवं सीसो किंचि तं पसारोति करेति है। डाला वा जेण णवि तस्स णवि अण्णस्स । तस्स पडिपक्खो मेसो, अवि गोप्पतमिचि जाणूपादपडिता पाणियं पियति सयं अन्नाणि य । जाहकाः ॥१२३॥ मसगी दसति ण किंचिति रुहिरं लभति दुक्खावेति, दुक्खाविज्जति पमारिज्जह य, एवं सीसोवि तारिस भणति करेति वा जहा पण लभति णिज्जूहिज्जति वा, चर्चा । पडिबक्खो जलुगा, बहुतरगपि पियति, ण य दुक्खावेति । एवं सुसासोबि सकज्ज | ४णिप्फादेति अवियत्तति या विरालो पुवमंढोए दुद्धं तत्धेय ण पिवति, किं तु पादेण ढोलेति, पच्छा अन्नत्थ गयं लिहति, दरियत्तणेण, तं च तस्स अप्प आहारितं भवीत मइल च, एवं सीसोवि आयरियमलाओ चेव ण सुणेति, किंतु अणुभासंताणं असतो य तुरियत्नणेण गेहाति, एवं तस्स थोवं अवधारितं भवति अविसुद्ध ध पज्जबेहिति, चर्चा । पडिवक्खो जाइगो, मंडीए दुई तत्थेव थोत्रं पातुं पच्छा पासाणि संलिहति, तस्स ते दोसा ण भवंति, एवं सीसोऽवि आय-18| रियसगासाओ थोवा थोब गिहिऊण सुपरिजित करेति, एवं तस्स अणुबायं परियट्टितं च चहुं थिरं पज्जवसुद्धं च भवति, चर्चा गोणी दुविहा-पसस्था अपसस्था य, एगेण पाउण्ई धिज्जातियाण गोणी दिना, ते संपहारति परिवाडीते दुसंतु, तत्था एगो पढमे दिवसे चिंतेति-कालं अन्नस्स दुझिहिति किं मम एताए?, चारिमादिण देति, एवं इतरवि, सा अचिरेण विणड्डा, एतेसिंद्रा अनुक्रम (129) Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६०/?], भाज्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री नियुक्ती दीप जहाणी य अवनवादोय, एरिसत्ति अन्नाओऽविण लभंति, एवं आयरियंपि, सीसा पाडिच्छगा करेहिन्ति, पाडिच्छगा सीसहि, चर्चा || गवाभीरीआवश्यक उपोद्घाता वितिया पसत्था, बभणस्स दुमिहितित्ति, गावी य पुणो मज्झवित्ति, चर्चा । एवं आयरिए सीसा चिंतेति-किं एतेहिी, अहं 121 |एस भारो, णिज्जरा, आयरितोय साधूण दाही पुणो अम्हांपत्ति, चचा। एवं पाडिच्छगावि । भेरी सच्चेच वासुदेवस्स भणिया, जह सा जया सुविसुद्धगुणजुत्ता आसि तदा महग्घा आढिता, पच्छा विवरीया, एवं सीसेवि समोतारो । अहवा जहा वासुदेवेण ॥१४॥ [४ गुणेहिं देवावि अक्खित्ता भेरी यलद्धा एवं सीसो गुणवं गुरुं आराहेति सकजं णि'फादेतित्ति, चर्चा ।। आभीरी, आभीरो मंडीए उरि ठितो घयगडं पणामति, हेट्ठा मे महिला पडिच्छति. तीसे इतरस्स य अंतरागण्हंतमुयंताणं कहमवि पडितो भिन्नो, ताणि भंडंति-तुमे दुग्गहितं, तुमे दु? पणामितति. ताव सम्वं भूमि गर्य, परोप्परकोबो वेला फिट्टा अकाले | गच्छताणं सेसघयमुलं बहल्लाय चोरेहि गहिता हाणी अवना य, एवं चेव आलावए आयरिएण दिने अन्न या कुदितो भणितो-ण |एवं, भणइ-तुम चेव एवं दिन्नो, सो भणति-ण देमि. तुमं विणासेसिति, कलहो, एवं समोतारो । चितिओ दवत्ति ओइन्नो, दोहिवि दवदवस्स कप्पराणि भरिताणि, मणागं गहुँ, सो आभीरो भणति-मए ण सुट्ट पणामितं, सा भणति-मए न सुगहितंति, एवं आयरिएणवि आलावओ दिन्नो, पच्छा आयरितो भणति-मा एवं कुद्देहि, प्रागेव मए आणुवउत्तेण दिन्नो, सो भणति-मते ण दासु? गहितोत्ति, चर्चा। अहवा आभीरी जाणति-धारा एत्तिल्लिया घडए माहिति, एवं आयरितो जाणात एगं दर्ग आलावर्गा म.गहिहितित्ति एवं परिक्खिए सीसस्स देज्जा, दुसीसस्स विवेगो, चर्चा । अनुक्रम (130) Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६१/१४०], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणौँ । सूत्रांक दीप वक्खाणविधिविभागो गतो । इयाणि दारविधी । तत्थ इह तावेतं सामाइयं इमेहिं दारेहि अवगंतव्वं । तंजहा उपोद्घातं आवश्यक उद्देसे १ णिद्देसे २ य, णिग्गमे ३ खेत्त ४ काल ५ पुरिसे ६ य । कारण ७ पच्चय ८ लक्षण९णये १० द्वाराणि ल उद्देशनिउपोदयात समोतारणा ११ णुमए १२ ॥२-६१ ॥ किं १३ कतिविहं १४ कस्स १५ कहिं १६ केसु १७कहं१८ देशद्वारे नियुक्ती केच्चिरं हवति कालं १९ । कति २० संतर २१ मविरहित २२ भवा २३ ऽऽगरिस २४ फोसण २५ णिमत्ती २६ ॥२-६२॥ दारगाथाओ ॥१२५॥ तत्थ पढमं उद्देसित्ति दारं, तस्स अट्ठविहो णिक्खेवो । तेजहा--णाम गाथा--1॥२॥६॥ नामुद्देसो ठवणु० दव्यु. खेत्तु० काल समासुद्देसो उद्देसुद्देसो भावुदेसो, नामट्ठवणाओ गताओ, जाणगसरीर-I भवियसरीरवहरित्तो दन्यमितिउद्देसो दबुदेसो, अहवा दम्वेण दवा दव्वे वा उद्देसो एवमादि, एवं खेचादणिपि योज्यं, तत्र | द्रव्यमिदं द्रव्यपतिरयं द्रव्यवानयमित्यादि दबुद्देसो, एवं खेत्ते खेत्तवती खेत्ती इच्चादि खेत्तुद्देसी, एवं कालेवि, समासो-संखेवो, &| समासुद्देसो तिविहो, तंजहा-अंगसमासुद्देसो सुयक्खंधसमासुद्देसो अज्झयणसमासुद्देसो, अंगसमासुदेसो जो जे उद्देसगं उद्दिसति, णRI ताव भणति पढम वीर्य वा, भाबुद्देसो भावो भावी भावज्ञः इच्चादि भावुद्देसो । एस ताव उद्देसो अविसेसितो। 18 इयाणि एतेसु नेच पदेसु विससितो निद्देसो भवति, णामठवणाओ मताओ, वहरित्तो जो जं दव्यं निद्दिसति, जहा सचित्तं | ॥१२५।। दिवा अचित्तं वा मीसं वा, सचित्तं जहा मोणो तेणे वा, गोहिं. मोमिओ, अचित्तो जहा छत्तं, तेण वा छत्तेण छत्तिओ, मीसं जहा ACANCERCESS अनुक्रम अथ उपोद्घातस्य उद्देश-आदि २६ द्वाराणि कथयते (131) Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६३/१४२], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत सत्राक रहो तेन वा निर्दश्या रहेण रहिनो इच्चादि, एस दव्यनिदेसो । खेचनिदेसो जो जं खे निदिसति ते० 'मरहं वा एरचर्य वा जो निदेशः आवश्यक हवा जेण खतेण निदिसति, तं०-सोरठ्ठो माग्गहो इच्चादि, कालनिदेसो परूपियथ्यो। समासनिदेसो तिविही, तंजहा-अंगसमासनि निगमब देसो सुयक्बंध अझपण, अंगसमासणिद्देसो जो जं अंग निद्दिसत्ति, सं०-आयारं वा सुधगडं वा एवमादि, एवं सुयक्खंधषि नियुक्ती मावासोलसागि महज्झयणाणि बा, एवं अज्झयणं जहा दुमपुष्फियादीणि, उद्देसनिदेसो जो जं उद्देस निरिसति, ०-सस्थपरिमाए ॥१२६|| |पढमो उद्देसो वितिओ वा इत्यादि, भावमिहेसो जो जे भावं निदिसति, तं०--उदइयं वा, जो बा जेग वा भावेण निहिस्सति जहाडू कोही माणी मारी लोभी, इह किल समासउद्देससमासनिदेसेहिं अधिगारो, तत्थ अज्मायणं इति समासुद्देसो सामायिकमिति समा| सनिर्देशः। एते पुण उद्देसनिदसे को किह णयो इच्छति इति ?, 'दुविहषि' अम्ने पुण निदेसमेष को किह गयो इच्छतित्ति दुविहंपि णेगमणयो निबिष्ट संगहो य पहारो । निदेसगमुमुसुतो उभपसरित्थं च सहस्स ॥२॥६५॥ तत्य भेगमणयस्स य वत्तवयाए इत्थी इत्यिं निदिसति इस्थिनिदेसो, इत्थी पुरिसं निदिसति पुरिसनिदेसो इस्थिनिदेसो य, इत्थी पपुंसगं निहिसति इत्थीनिहसो य णपुंसगनिदेसो थ, एमेव पुरिसणपुंसगाणपि संजोगा। संगहववहारणयवत्तव्यता इत्थी इत्थिं मिविसति इत्थीनिदेसो, इत्थी पुरिसं निदिसति पुरिसनिदेसो, इत्थी णपुसगं निहिसति णपुतगनिदेखो, एवं पुरिसणपुंसगाणपि दिसंजोया, दब्बं प्रिंदिसति तं संगहयवहारा इच्छति थी इस्थि निसति इस्थिणिदेसो इत्थी पुरिसं निहिसति इस्थिनिसोहा॥१२६॥ इत्थी यापुंसग निहिसति इत्थिणिदेसो, एवं पुरिसणपुंसगाणवि, एवं उज्जुसुओ जो निदेसको तं इच्छा, सेस व इच्छइति, उभय RECRACKERAKASH दीप अनुक्रम (132) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६५/१४४], भाष्यं । मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत मवार सूत्रांक नियुक्ती दीप सरिक्सा च सहस्स, जदि थी इस्यि निदिसति इस्थिणिदेसो, अह इत्थी पुरिसणघुसए णिहिसाब सो अजिंदसौ, जदि परिसी पुरिसं णिदिसति पुरिसथिदेसो, पुरिसो इस्थिणपुंसए निहिसइ सो अनिसो, एवं जदि निर्दिसियव्यं च निदिसओ य सो चेवा आवश्यका | इच्छसि, सेस णचि इच्छति सदो । एवं सेसाणवि विमासा ।। याणि निग्गमेत्ति दारं । सो य छविहोउपोद्घात दि नाममाहा ॥२-६६॥ नामनिग्गमो ठवण दब्ब० खेत काल. भाव०, नामस्थापने पूर्ववत्, पतिरितो दम्वनिग्गमो, सो सचिचातो वा सवित्तस्स निम्ममो चउभंगो, सचित्ताओ सचित्तस्स निग्गमो जहा मूलाओ कंदो कंदाउ खंघो एवं, अहवा जहा इत्थीओ ॥१२७॥ गमो, सचिचाओ अचित्तस्स, जहा केसमंसुणहरोमादीणि, अचिचाओ सचित्तस्स जहा-कट्ठाओ पावगस्स, अहवा कट्ठाओ घुणस्स, | अचिचा अचिचस्स, जहा खीराओ दहि, दहितो णवणीतं, णवनीताओ धर्य, अहवा उच्छरसाउ गुलो । अहवा दवाओ दव्वस्स IWI निम्मो, दबाओ का दब्याण, पउमंगो, दवाओ दव्वस्स, जहा-रुवआ पयुत्ता रूपओ चेय पच्चाओ जातो, दबाओ दयार्ण जहा-एगेण रूपएण बहव रूवया लहा, दग्बेहिंतो एगस्स दब्बस्स, जहा-बहहि पउचेहि एगो रूवनो लदो, पर्हि पहुंचाहि बहवे 12 चेच लद्धा इति । खेचनिग्गमो-आमि खत्ते निम्ममो वमिज्जति, जो वा जाओ खेचाओ जिग्गओ एमादि, कालनिग्गमी-जर्षि काले नियमो वत्रिजति, जो वा जातो कालाओ निग्गतो, मायणिग्गमो-जो जातो भावाओ निग्गतो जेण का भावेण निग्गओ इच्चादि, जहवा इह एतास चेव दबलेत्तकालभावाणं भगवं पुरिमं नमणिज्जचिकटु तम्हा भगवती पेच निग्गमो परूबेतव्यों, तरंथमा जिग्गमे पडमनाया अनुक्रम १२०॥ (133) Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEISE दीप ठा पंथं किर देसेत्ता साधूणं अडविविप्पणवाणं । सम्मत्तपढमलभो योध्धब्बो बद्धमाणस्स ॥ २ ॥ ६७॥ . साविमलवाह नवक्तव्यता चूणौ 1 अवरविदेहे तत्थ एगमि गामंमि गामस्स चिंतओ, सोरायाएसबसेण सगडिसागडं गहाय एगं महं अडविं अणुपविट्ठो दारुग-18 उपविधाताहानिमित्त, अन्ने य साधुणो सस्थपरिभट्ठा दिसामूढा पंथं अयाणमाणा तेण अडवीपंथेण मज्झण्हदेसकाले तण्हाए छुहाए य परज्झहिता तर नियुक्ती देसं गता जत्थ सो सगडसंनिवेसो, सो य ते पासित्ता साधुणो महता संवेगमावनो-अहो इमो साधुणो अदेसिया तवस्सिणी अडवि || अणुपविट्ठा, तेसिं सो अणुकंपाए विपुलं अन पाणं दाऊण भणति-एह भगवं! जाहे पंथं समोतारेमि, पुरतो संपस्थितो, ताहे ते | 4॥१२८॥ "पल साधुणो तस्सेच सम्म समणुगच्छति । तत्थ य एगो धम्मकहियलद्धिसंपन्नो तस्स धम्म कहेउमारदो, धम्मकहावसाणे य से उवगत सम्मत, समोतारेचा ताहे नियत्तो. ते पत्ता सदेस। सो घ पुण संवेगसम्मद्दिवी कालमासे कालं किचा सोहम्मे कप्पे पलितोवमट्ठिपूसीएम देवेसु उववनो, ततो जुतो समाणो इक्खागकुले जाओ उसमसुतसुतो मिरीचित्ति, इक्खागकुले जातो इक्खामकुलस्सुप्पत्ती | भाणियचा, तहारेण कुलगरवंसा, तीते कालो, कुलगरुप्पत्ती, उसमतो भरहो. तस्स मुतो मिरीची तो उसमुप्पची । तत्थ कुलगरु प्पचीए इमा गाथा४ . पृब्वभवे पुव्वविदेहे दो वणिज्जा मित्ता बन्नेयव्वा, तस्थ एगो मायी एगो उज्जुओ,ते पुण एगतो चेव ववहरति,तत्थ जो सो दमाषी सो त उज्जुग अतिसंधेति-चेति, इतरो सव्वं अगृहेन्तो सम्म सम्मेणं बवहरति, जो सो उज्जुओ सो कालमासे काला किच्चा इमीसे ओसप्पिणीए मुसमदूसमाए समाए बहुचीतिकताए पलितोवमट्ठभागे सेसे इहेव भरहे वासे अड्डभरहमजिल्लतिभागे अनुक्रम .... वृत्ति मध्ये अत्र भाष्यगाथा निर्दिष्टाः, वीर-आदि भगवंतानां कथानकं आरभ्यते अत्र भाष्यम् आरब्धं, तद् अन्तर्गत भगवन-महावीरस्य प्रथमभवस्य वर्णनं (134) Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१२९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति: + चूर्णि :) मूलं [- /गाथा -1], निर्युक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 गंगासिंधूर्ण मज्झे एगस्स मणुयजुयलस्स मिगुणत्ताए पच्चायातो, तेण पुण किह माणुसचर्ण लद्धं ?, तेणं उज्जुगत्तेणं, इतरो तेणं बंकतेण दाणरुती य आसि, सो तंमि चैव पदेसे हत्थिरयणं जातं वत्रेण सेतो चउदंतो, जाहे ते पड़प्पन्ना वरणं ताहे तेसिं अनमनं दद्दूणं अतीव पीई समुप्पन्ना 'यं दृष्ट्वा०' अतिसंघणताए य अभितोगं विनिव्वत्तियं तं ताहे उदिनं, तेण हरिथणा मिहुणयं खंधे विलहतं, तं जुयलयं चिलइयं दणं सव्वो सो लोगो अम्महियमणूसो इमो इमं व से विमलं वाहणंति तेण से नार्म करेंति विमलवाहणोति, तसि च जातिस्सरणं जातं, ताहे कालदोसेण तेसि मणूसाणं तेसु रुक्खेसु ममत्तीभावो जातो, जो ममते समलितति तं न सातिज्जति, ताहे तं असहंता एस विमलवाहणो अम्हेहितो अहिगो जस्स एस दाहि ते रुक्खे तस्स भविहिंति, ते तं उवट्टिता, ताहे सो भगति मा मंडह, तुमं इमे रुक्खा, जो तुब्भं एत्थ अन्नरज्झति तं मम उवद्वावेज्जाह, एतं च मज्जातं तुब्भं परंपरएण सव्वत्थ ठवेह जत्थ सा ठविता ते आयरिया जाता, तेण परमणारिया, एवं तेण मेरा ठविता, अहं च से डंड वत्चेहामि, ताहे तेर्सि जो कोति अवरज्यति सो तस्स उबडविज्जति, ताहे सो तस्स उंडे बचेति, को पुण डंडो?, हक्कारो, हा तुमे दुट्टु कथं, सो तेण इक्कारेण जाणति सीसं पडितं, छायाघातो, बरिहं मओति, तस्स पुण चंदसिरी णाम भारिया, तीसे पुत्तो चक्कुमं जाम, एवं परंपरएण जसवं अभिचंदे पसेणई मरुदेवे णाभी, एतेसिं चेव महिलाओ चंदकंता सुरूवा पडिरूवा चक्कुमंता सिरिकंता मरुदेवा, तेर्सि पुण उच्चतं पदमस्त णव घणुसया अड सत्त अद्धसत्तमा छस्सया अद्धछड्डा सता पंच पणुवीसा सया णाभिस्स । ताओ य कुलगरभज्जाओ ईसि तेर्सितो ऊणातो, ते सव्वे वज्जोसभसंघयणा, समचउरंससंठाणसंठिता, ताओवि एत्तिए चैव, संघयणसंठाणाई परूत्रेयब्वाई, वज्जरिसभं नाम वज्जबंधो वज्जवेढो वज्जकीलिया य, बितिए वेढओ परिष, ततिए ण वेढओ णावि (135) कुलकरवक्तव्यता | ॥१२९॥ Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१३०॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा -], निर्युक्तिः ६७ / १४६-१७८ आर्य (१-३) ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 खीलिया, चउत्थं एमओ बद्धं पंचमं दुहओवि अबद्धं, छहं णवरं कोडीए मिलितं ॥ समचउरंसं संठाणं जतिओ उन्नेहो तचिओ विक्खंभोऽवि, जारिस वा एवं चक्खु तारिसं वीर्यपि, एवं सवंगा, नग्मोहं जस्स बाहाओ दीहाओ उच्चतं थोवं उवरि विसालो, सादी दिग्धो वाहडहरिका, वामणं रहस्सं, खुज्जं ईषदानतं, हुंडं असंठितमेव, एवं छव्विहं संठाणं छव्विहेचि संघयणे भणितं ॥ तेसिं पुण पढमं संघयणं संठाणं च तेसिं बच्चो भाणियन्वो 'चक्खुम जसमं च पसेणई य एते पियंगुवन्नाभा, अभिचंदो ससिगोरो, निम्मलकणगप्पभा सेसा ॥ तातो तेसिं भज्जातो सव्यातो पिरंगुवन्नाओ ।। इयाणि तेर्सि आउगंपलिओषमदस भागो पढमस्सायुं ततो असंखेज्जा । अवसेसाणं असंखज्जा पृव्या, ते य आणुपुब्बिहीणा नाभिस्स पुण संखज्जा पुव्वा इति । जं तेर्सि आउगं तं भज्जाणवि सव्वेसि चैव, तेसिं हरिथरयणाणि होत्या, तेर्सि न समाउया, तो जं जस्स आउगं तं तस्स समदसमागा काऊणं जो पढमो भागो सो कुमारभावो, जो पच्छिमो सो बुद्धभावो, मज्झिमा अड्ड भागा कुलगरभावो, एवं सव्वेसिं, ते पयणुपेज्जदोसा सच्वे देवेसु उबवन्ना || कस्स पुण कहिं उबवाओ ?, यथासंख्यं दो चेव सुवन्नसुं उदहिकुमारे ॥ जे य हत्थी मरुदेववज्जाओ य इरिथयाओ ताओ जागेसु उववन्ना, एगे पुण भांति जहा पढमो य इत्थी छच्च इत्थियातो गांगेमु, सेसेसु गत्थि अधिकारो, मरुदेवा सिद्धि गता । एतेसिं सत्तण्डानि इमाओ दंडणीतीओ-हक्कारो मक्कारो धिक्कारो चैव दंडणीतीतो । वोच्छं तासि विसेसं जहक्कमं आणुपुवए । पढमस्स वितियस्स पढमा दंडणीती, ततियस्स चउत्थस्स वितिया, अभिणवा णाम गवा इति भणितं (136) नीतीनां सद्भावः ॥१३०॥ Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIG दीप है होइ, जस्स अप्पोऽबराहो तस्स पढमा, जस्स गाडतरो तस्स णवा, पंचमच्छट्टसत्तमए (तइया णवा) तेसिं जस्स चंडतरो उ तस्स तइओ श्रीऋषभआवश्यक 21धिकारो दिज्जद, सो य अज्जवि अणुपरियङ्गति । सेसा चउन्बिहावि डंडणीती माणवगणिधीतो भरहस्स उप्पना, परिभासा मंडल- स्यधनसार्थ चूर्णी 1ो चारए छविच्छेदो, अबेसि परिभासा मंडलपंधा य उसमसामिणा उप्पातिता, चारगच्छविच्छेदा माणवगणिधीतो, आहारणीतीदाबाहादउपोद्घात है पुण गिहिवासे उसभस्स तु असक्कतो आसि आहारो जाव किल उसमसामिणो गिहावासकालो ठिओ ताब, सव्वेसिपि भवाः नियुक्तो 18| असक्कतो आहारो आसि, असक्कतो णाम असंस्कारिता, स्वभावस्थ एव फलादि, भगवतो पुण उसमसामिस्स जाप गिहवासो। ॥१३॥ दाआसि ताव देवकुरुउत्तरकुरुकाणि फलाणि खारादपाणये च सक्कवयणसंदेसेण देवा उवणेता, अच्छउ ताव आहारी, उसभसा-ला मिस्स ताव जाणामो का उप्पत्ती, तेणं कालेणं तेणं समएणं अवरविदेहे वासे धणो णाम सत्थवाहो होत्था, सो पुण धणस-1 ४ थाहो खितिपतिहियातो णगराओ वसंतपुरं पत्थितो वाणिज्जाते, जहा दावद्दवणाए, ताए चेव विहीए संपत्थितो, णवरं इह साहूणं तेण समं पत्थितो गच्छो, को य पुण कालो, चरिमणिदाहो, सो य सस्थो जाहे अडविमझ पत्तो ताहे वासारतो उवग्गो, तत्थ पाउसो जहा उक्खित्तनाए, उक्खिचनाए तारिसो जातो, ताहे सो सत्थवाही अतिचिक्खिलिाचया दुग्गमा पंथत्तिकाऊण तत्थेव सत्थनिवेसं काऊणं वासावासं ठितो, तंमि ठिते वासावासं सब्यो सत्यो ठितो, जाहे य तेसिं अनसत्थे-14 हैल्लयाणं निट्ठियं भोयर्ण ताहे कंदमूलाई समुद्दिसंति, साहुणो दुहिया जति किहवि आहापबत्ताई लन्मति ताहे गण्हति ॥ है| एवं काले वच्चंते बहुए काले समइच्छिए थोवावसेसे वासारने ताहे तस्स घणस्स चिंता जाया को एत्थ सत्थे दुक्खि ॥१३॥ | तोत्ति', ताहे तेण सरितं, जह-मए समं पवइया आगता, तेसिं च कंदमूलाणि ण कप्प॑ति, ते दुक्खिता तवस्सिणो, कल्लं देमि अनुक्रम SARKARSAARESIS 2018 अत्र भगवंत ऋषभस्य कथानक आरभ्यते (137) Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात् निर्युक्तौ ॥१३२॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा -1], निर्युक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 तेसिं, ते पभानाए निमंतता पभणति क्षं परं अम्ह कप्पियं भवेज्ज तं परं गेण्देज्जामो, किं पुण तुब्भं कप्पति ?, जं अकतमकारितमसंकप्पितं अधारद्वातो पाकातो भिक्वामेतं जं वा घयं वा गुलं वा एवमादि, एवं तेण साधूणं तं फासुगं विपुलं दानं दिनं, सो अहाउयं पाळचा तेण दाणफलेण उत्तरकुरुमणुतो जातो, ततो आउक्खएण उष्चट्टिऊणं सोहम्मे कप्पे तिपलिओ मठितीओ देवो जाओ, (महाबल ललितो वहरजंप मिथुनकं व सोधम्मसुर, एतद्भवपंचकमत्र त्यक्तं) ततो आउक्खएण उच्चट्टिऊणं महाविदेहे वासे वेज्जपुतो आयातो, तस्स पुण इमे सरिसगा सरितया सरिव्वया एगदिवसजाता अणुरचा अविरता वनओ जहा अंडगणाते । ते इमे चचारि वयंसा तं० रायपुत्तो सेट्ठिपुत्तो अमच्यपुतो सत्थाहपुत्तोत्ति, एवं ते अन्नया कयाइ तस्स वेज्जस्स घरे एगतओ सहिता सन्निसन्ना अच्छंति, तत्थ य साधू महप्पा सो किमिकुट्टेण गहितो अतिगतो भिक्खस्स, तेहिं सप्पणयं सहासं सो मन्नतितुम्मेहिं नामं सव्वलोगो खाइयच्वो ण तुम्भे तवस्सिस्सं वा अगाहस्स वा किरिया कायच्वा, सो भणति-करेज्जामि, काणिवि पुण ओसहाणि मम णत्थि ते भांति अम्हे मोल देमो, कि ओसहं जा किणिज्जतु १, सो भणति- कंबलरयणं गोसीसचंदणं च, ततियं वेल्लं तं मम अत्थि, ताहे मग्गिउं पचता, आगमितं च णेहिं जहा अमुगस्स वाणियगस्स अस्थि दोऽवि एताई, ते गता दोनि सयसहस्साइं गहाय तस्स पासं, देहि अम्हे कम्बलरयणं गोसीसचंदणं च सो जाणति ते कुमारे, तेण पृच्छितं किं कर्ज १, भणंति-साधुस्स किरिया कायव्वा, तेण मन्नति अलाहि मोल्लेण, एत्तिए चैव गेव्हह करेह, ममवि धंमोति, ण सक्का एक्कजिन्भाए (बो) वे अत्था, तस्स ताब वणियस्स संवेगो जातो, जदि ताव एतेसिं बाळाणं एरिसा सद्धा मम णाम मंदपुन्नस्स इहलोगपढिबद्धस्स ॥१३२॥ गत्थि, सो संवेगमावनो, ताहे चैव तहारूवाणं थेराणं अंतिए पव्वइओ जाव सिद्धो बुद्धो । इमेऽवि ताव घेत्तूण ताणि ओसहाणि श्री ऋषभस्य भवाः (138) Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं - मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ६७/१४६-१७८], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका |गता तस्स साधुणो पास जत्थ उज्जाणे ठितो, पासति तं पडिमावरगतं, ते तं दतॄणं पडिमं ठितं वंदिऊणं अणुनवोंत-अणुजाणहविचतिः श्री भगवं ! अम्हे तुम्भ धम्मविग्धं काउं उबविता, ताहे तेहिं तेण तेल्लेण सो साधू अभंगिओ, तं च तेल्लं रोमकूवेहिं सर्व अतिगतं, स्थानकानि आवश्यकट्टा तमि य अतिगते ते किमिया सव्वे संखुद्धा, तेहिं चलंतेहिं तस्स साधुणी उज्जला विउला वेयणा पाउन्भृता, ताहे ते निग्गत | उपायात दट्टणं कंबलरयणेण साह पाउतो, तं सीयलं, तं च तल्लं उण्हवीरियं, ते किमिया तत्थ लग्गा: ताहे तं पष्फोडितं, ततो सव्वे पडिता, नियुक्ती ताहे आलिंपितो, एवं एक्कसि दो तिथि वारे अभंगेऊणं साधू तेहिं नीरोगो काओ, ताहे खमावेऊणं जेणागता तेणेब पडिगता ॥१३३॥ ते अहाउयं पालेउं सामनं तंमूलागं देवलोगेसु उबवना पंचवि जणा ते, ततो देवलोगातो आउक्सतेण चइऊणं जंबूदीचे पुण्य-MI विदेहे पोक्खलावइंमि चक्कवडिविजए पुंडरिगिणीय नगरीए बइरसेणस्स रमो धारिणीय देवीए पढमे बहरणामे णाम पुत्ते जो ४ सो वेज्जपुचो, अवसेसा कमेण बाहुसुबाहुपीढमहापीढात्ति, एवं ते संवडिया पंचलक्खणे भोते भुंजंति । सो य बहरसेणो राया पब्वइतो, तित्थगरो भगवं जातो, इयरे य संवड्डिया महामंडलिया जाता, इमस्स वइरनाभस्स चक्कवट्टिनामगोयाई कम्माणि उइमाणि तेण साधुवेयावच्चेण, जद्दिवसं पितुस्स केवलं उप्पनं तद्दिवसं इमस्स चक्कं उप्पन्न, विजए चक्की जातो, एवं ते भोगे मुंजता विहरति । अन्नया पलिणिउम्मे उज्जाणे वइरसेणो समोसरितो, ते पंचवि पवइया, तत्थ बहरणाभेण चोइस पुव्वाणि है अहिज्जियाणि, अवसेसा एक्कारसंगवी चउरो, तत्थ बाहू सो तेसि सम्बेसि वेयावच्चं करेति, जो सो सुबाहू सो भगवतां कितिकम्मं करेति, एवं ते करते वइरनाभो भगवं अणुवूहति- अहो सुलक्षू जम्मजीवियफलं जं साधूर्ण वेयावच्चं कीरइत्ति, परिसंता सा॥१३३॥ वा साधुणो बीसामिजंति, एवं पसंसति, एवं पसंसिज्जतेसु तेसु तेसि दोहमग्गिल्लाणं अपत्तियं भवति, अम्हे सज्झायंता ण दीप अनुक्रम (139) Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: १०६/१७९], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणी सत्राक ४ पसंसिज्जामो, जो करेइ सो पसंसिज्जइ । तस्य पढमेण वारणामेण बीसाए कारणेहिं तित्थयरचं निबद्धं । काणि पुण ताणि जेहिं वीकृत्कर्म आवश्यकता तित्थकर लम्माति । भमति ___अरहंत ॥२-१०६॥ दंसणः ॥२-१०७ ।। अप्पुञ्ब० ॥२-१०८। पढमगार-१०९।।पढमाते अट्ठ बीयाए णव ततियाए उपायात तिन्नि, तंजहा-अरिहंत १ सिद्ध २ पचयण ३ गुरु ४ थेर ५ बहुस्सुत ६ तवस्सीसु ७, तत्थ पवयण-संघो, गुरू-धम्मोपदेसादिदातारो, नियुक्ती घम्मे थिरीकरेति जो सो थेरो, सेसा पसिद्धा । एतोसि वच्छल्लता-अतीव मनिवहुमाणो जं जुज्जति तं करेति, अभिक्खणाणोपयोगो ॥१३॥ अणुप्पेहादिसु णीसंकितादिकरणं वाद, दसण९ विणए१० आवस्सय ११सीले-अट्ठारससीलंगसहस्सेमु उत्तरगुणेसु १२वएमूलगुणसु १३,एतेसु निरतियारो, खणलव१४ तव१५ रिचयाए१६ वेयावच्चं१७,एतेसु समाहिते, तत्थ खणलवसमाही णाम खणलवमत्तमवि कालं णो असमाधिते भवति, तदुक्तं-'संजमरतियाहुले ति । एवं तवरतिबहुलेसि, चियागरतिबहुलोत, दुविहो-दवचिताओ. भावचिताओ, दवचिताओ आहारउबहिसेज्जादीणं अप्पातोग्गाणं चियागो पायोग्गाणं दाणं, भायचियायो कोहादीण, वेयावच्चरतिबहुले, यावच्चं दसविई, तंजहा-'आयरिय उवज्झाते थेर तवस्सी गिलाण सेहाणं । साहम्मिय कुल गण संघसंगयं तमिहं कायव्वं ॥१॥ ते एकेक तेरसविहं, तंजहा-भत्ते १ पाणे २ आसण ३ पडिलेहा ४ पाद ५ अच्छि ६ भेसज्जे ७ । अत्थाण ८ दुढ९ तेणे१० दंडग ११ गेलन्न १२ मन्नति १३॥शा पाएणं नियर्य करेति, समाहिं च उप्पाएति, उग्गहेमु जो वा जेण (विणा) विसीदति ।।।१३४॥ अपुष्बणाणग्गहणं १८ मुयभत्ती, तज्जातीयं परमाणपि १९ पबयणपभावणा य २० परयणे वर्ण अत्थं जणयति । एतेहि कारणेहिं तित्थगरतं लभति जीवो । किं समुदितेहिं उदाहु पत्तेयमवि, उभयथावि । यतो दीप अनुक्रम अत्र विंशति-स्थानकानि वर्णयते (140) Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [F], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१३५॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः १०९/१८२], भाष्यं [१-३] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 ......................... - पुरिमेण व पच्छिमेण च एते सव्वेऽवि फासिया ठाणा । मज्झिमएहिं जिणेहिं एवं दो तिनि सव्वे वा ॥२- १०९ ॥ तं च कहं वेतिज्जति?, अगलाए धम्मदेसणादीहिं । बज्झति तं तु भगवतो, ततियभव ओसकतित्ताणं ॥ २-११०॥ पट्टवतो नियमा मनुयगतीए इत्थी वा पुरियो वा इतरो नपुंसओ वा सुमलेसाए, अन्नतरेहिं कारणेहिं बहुलं बहुहा आसेवितेहिं । एवं तेण तित्थगरचं निवद्धं, बाहुणा वैयावच्चेण भोगा निव्वत्तिया, सुबाहुणा बाहुबलं, तेहिं दोहिवि इत्थानामगोतं कम्म निबद्धं, एवं वतिरणाभो भगवं चतुरासितं पुव्वलक्खाई सब्बाउं पालइत्था, तत्थ कुमारो तसं मंडलिओ सोलस चउब्बीसं महाराया, दंतचके चोहससामन्नपरियाओ, ततो सव्बडे उबवन्नो, तेवि तत्थेव उववातो सब्बट्टे सव्वेसिं, पढमं वइरणामो चुओ, इमीसे ओसप्पिणीए समाए सुसमसुसमाए वितिताए सुसमाए वितिताए सुसमदुस्समाए ततियाएवि बहुवितिकताए चउरासीए पुव्वसय सहस्सेहिं सेसएहिं एगुणणउइए य पखेहि सेसाई आसाढबहुलपक्खे चउत्थीए उत्तरासाढाजोगजुत्ते मियंके विणीयाए भूमिए नाभिस्स कुलगरस्स मरुदेवाए मारियाए कुच्छांसे गन्मत्ताए उपवन्नो । चोइस सुमिणा उसभगयसीहमादी पासिता पडिबुद्धा गाभिस्स कहेति, तेण भणियं तुज्झ पुत्तो बड्डो कुलगरो होहितिचि सकस्स आसणं चलितं, सिग्धं आगमणं, भणति देवाणुप्पिया ! तब पुत्तो सयलभ्रुवणमंगलालओ पढमधम्मवरचकवडी महई महाराया भविस्सर, केयी भांति बत्तीसंप इंदा आगंतूण वागरेति, ततो मरूदेवा हट्ठट्ठा गर्भ वहतित्ति, तरणं णवण्ड मासाणं अट्ठड्डमाणं च राईदियाणं बहुवितिकताणं अडरचकालसमयसि चेतबहुलमीए उत्तरासाढाणक्खत्तेणं जान अरोगा अरोगं पयाता, जायमाणेसु तित्थयरेसु सन्चलोष उज्जोओ भवति, तित्थयरमायरो य पच्छन्नगन्माओ भवंति, जररुहिरकलमलागि य नं भवेति (141) श्री ऋषभस्य • जन्म ॥१३५॥ Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप एत्थ-जम्मणं० ॥ २-११३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अहेलोगवत्थव्वाओ अट्ठदिसाकुमारिमहत्तरिगाओ सएहिर कूडेहि बाऋषभस्य सिएहिं २ भवणेहिं सरहिं २ पासादवडंसएहिं पत्तेयं पत्तेयं चउहि सामाणियसहस्सेहिं चउहि य महत्तरियाहिं सपरिवाराहिं सत्तहिं | उपोद्घाती अणिएहिं सत्चहिं अणियाहिवतीहिं सोलसहिं आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अन्नेहि य बहूर्हि वाणमंतरेहिं देवेहि य देवीहि य सर्दूि सं जन्म नियुक्ती । परिघुडा महताहयणट्टगी तवादित जाव भोगभोगाई मुंजमाणीओ विहरंति, तंजहा भोगंकरा भोगवती सुभोगा भोगमालिणी। तोय-18 ॥१३॥ धारा विचित्ता य, पुप्फमाला अणिदिया ॥१॥ तएणं तासि भगवंते तित्थगरे समुप्पन्ने य पत्तेयं २ आसणाई चलंति, ताणि पासेत्ता ओहिं पउंजंति, भगवं तित्थगरं ओहिणा भोएंति, भोएत्ता ताहे पणामं करेंति, जहा बद्धमाणसामिस्स सके जाव संकप्पे | समुप्पज्जित्था, उप्पन्ने खलु भो जंबुद्दीवे भगवं तित्थग़रे, तं जीतमेतं तीतपच्चुप्पन्नमणागयाणं अहोलोगवत्थब्याणं अट्टण्हं दिसा| कुमारिमहत्तरियाणं जम्मणमहिम करित्तएति, तं गच्छामोणं अम्हेऽवि भगवतो जम्मणमहिमं करेमोचिकटु एवं संपेहेंति संपेहेचा पत्तेयं २ अभितोगे देवे सद्दावेति, २ खिप्पामेव भो अणेगखंभसयसंनिविढे लीलहित एवं विमाणवन्नओ भाणियब्वो जाव जोय| णविच्छिन्ने जाणविमाणे विउव्वहः । तेऽवि तहेव करेंति, तएणं ताओ हट्टतुट्ठ पत्तेयं पत्तेयं चरहिं सामाणियसाहस्सीहिं जाव | अन्नेहि य बहहिं देवेहि य देवीहि य सद्धि संपरिघुडाओ ते दिवे जाणविमाणे दुरुहिति, दुरुहित्ता सव्विड्डीए सव्वजुत्तीए जाव-18 | घणमुदिंगपवादितरवेणं ताए उकिटाए जाव देवगतीए जेणेव भगवतो जम्मणत्थाणे तेणेव उवागच्छित्ता तं ठाणं तेहिं दिव्बेहिं जाणविमाणेहिं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति, करेता उत्तरपुरच्छिमे दिसीमागे ईसिं चउरंगुलमसंपत्ते धरणितले ते दिव्वे ॥१३६॥ विमाणे ठवेंति ठावेचा पत्तेयं पत्तेयं चउहि सामाणिय जाव पडियुडाओ विमाणाहितो पच्चोरुहिता सब्धिड्डीए जाव नादितरवेणं अनुक्रम अत्र भगवंत ऋषभस्य जन्म कल्याणक वर्णयते (142) Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्रा जेणेव भगवं तित्थगर तित्थगरमाता य नेणेव उवागच्छति, उवागच्छेत्ता भगवतं मातरं च तिक्मुत्तो पयाहिण करेला पत्तये | आवश्यक पत्तेयं करतलपरिग्गहित जाव अंजलि कटु एवं क्यासी-णमो त्थु ते रयणकुच्छिधारिए जगप्पतीवदाइए ! सव्वलोयणाहस्स ऋषमस्य | सब्बजगमंगलस्स सव्वजगजीववच्छलस्स हितकारगाउ मग्गदेसितया गढिवज्जुप्पभुस्स जिणस्स गाणिस्स णागयस्स बुद्धस्स चोह जन्ममहः उपाघातात गस्स चक्खुणो य मुत्तस्स निम्ममस्स, पबरकुलसमुब्भवस्स जातियखचियस्स जैसी लोउत्तमस्स जणणी धन्नासि पुण्णासि, तं कतत्थे, नियुका अम्हे णं देवाणुप्पिए ! अहेलोगवत्थवाओ जाव मयहरिगाओ भगवतो तित्थगरस्स जम्मणमहिम करेस्सामो, तण्णं तुम्भाहि ॥१३७॥ दण भातियव्यंतिकटु उत्तरपुरस्थिमं दिसीमागं अवकमंति, अवकमेत्ता बउब्धिय जाव समोद्धन्नति, समोद्धनेता संखेज्जाई जाव | संबट्टगवाए विउथ्वंति बिउब्बेत्ता तेणं सिवणं मउतेणं मारुतणं अणुद्धएणं भूमितलविमलकरणेणं मणहरेणं सव्वोउयसुरभिकुसुमगंधा४) णुवासिएणं पिंडिमणीहारिमेणं गंधुदुरणं तिरिय पवादिएणं तस्स जम्मणट्ठाणस्स सव्वतो समंता जोयणपरिमंडलं जं तत्य तणं &ा जाव अचाक्खं पूइतं दुम्भिगंध तं सव्वं आहुणिय २ एगन्ने एडंति, एडेता जेणेव भगवं माता य तेणेव उवागच्छति, भगवतो माताए य अदूरसामते आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति । तेणं कालेण तेणं समएणं उड्डलोगवत्थब्बाओ अह दिसाकुमारीमहतरिगाओ सहि सरहिं तहेव जाब विहरति । संजहा-II NI मेहंकरा मेहवती, सुमेहा मेहमालिणी। मुवत्था वत्थमित्ता य, वारिसेणा बलाहगा ॥१॥ जाव अब्भवादलएणं वासंति २ णिहयर-IA M णहरयं जाव पसंतरय करेंति, करेचा पुष्फवद्दलग विउब्बति, विडव्येचा पुष्फवासं कालागरुपवरजाव सुरवराभिगमणजोगा ॥१३॥ | करेंति । करेत्ता जेणेव भगवं तित्थगरे तित्थगरमाता य तेणेव उवागच्छति जाव आगायमाणीओ चिट्ठति । कर दीप अनुक्रम (143) Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री श्री प्रत सत्राक उपोद्घातु नियुक्ती तेर्ण कालेणं तेणं समएणं पुरच्छिमरुयगवत्थव्वाओ अट्ठ दिसाकुमारिमहतरियाओ सएहि सएहि कूडे तहेव जाव तंजहा-15 आवश्यक नंदुत्तरा य नंदा, आणंदा दिवद्धणा । विजया य वेजयंती, जयंती अपराजिता ॥१॥ सेसं तहेब, जाव तं तुन्भेहिं ण भाइय-द्र चूणों ऋषभस्व जन्ममइ. व्यंतिक१ भगवतो तित्थगरस्स तित्वगरमाउए य पुरथिमेणं आदंसहत्थगयाओ आगायमाणीओ चिट्ठति । तेणं कालेणं तेणं समएणं दाहिणरुयगवत्थब्बाओ अट्ठ दिसा तहेब जाव विहरन्ति, तंजहा-समाहारा सुप्पदिना य, सुप्पबुद्धा जसोधरा । लच्छिमती सेसवती, चित्तगुत्ता वसुंधरा ।। १॥ तहेब जाव ण भाइयव्यंतिकटु भगवतो तित्थगरस्स तित्थगरमाउए य दाहिणणं भिंगारह॥१३८|| स्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति। ___ तेणं कालेणं तेल समएणं पच्चस्थिमरुयगवत्यवाओ अट्ठ दिसाकुमारिमहतरियाओ सरहिं जाव तंजहा-इलादेवी मुरादेवी, लापूहवी पउमावती । एगणासा णवमिया, भद्दा सीया य अट्ठमा ॥१॥ तहेव जाय तं तुम्मेहि ण भाइयचंतिकट्टु जाब भगवतो तित्थगरस्स तित्थगरमाऊए य तालियंटहत्थगयाओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति ।। तेणं कालेण तेणं समएणं उत्तरितुरुवगवत्थव्वाओ जाव तंज़हा-अलंबुसा मिस्सकेसी य. पुंडरकिा य बारुणी । हासा सब्बप्पमा वेव, हिरी सिरी चव उत्तरओ ॥१॥ तहेब जाव बंदित्ता तहेव तित्वगरमाऊए य उत्तरेणं चामरहत्थगताओ आगायमाणीओ पगायमाणीओ य चिट्ठति ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं विदिसरुयगवत्थयाओ चत्तारि दिसाकुमारीओ तहेव जाव विहरंति, तंजहा-चित्ता य चित्तकणगा,18॥१३८॥ सतेरा सोयामणी ॥ तहेव आव न भाइयव्यंतिकटु भगवतो तित्थगरस्स तित्थयरमाऊए य चतुमु विदिसासुं दीवियाहत्थगताओ आगायमाणीओ परिगायमाणीओ य चिट्ठति ।। तेणं कालणं तेर्ण समएणं मज्झिमरुयगमज्झवत्थब्याओ चचारि दिसाकुमारिमहतरि-1 SAGAR दीप अनुक्रम TTAC (144) Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत ॥१३९॥ दीप यातो सतेहिं सतेहिं कूडेहिं तहेच जाब विहरति, तंजहां रुया रुयंसा सुरुया रुयगावती ॥ तहेब जाव तं तुम्भेहि ण भाइयव्यंतिकटुला आवश्यका चूर्णी भगवतो तित्थगरस्स चउरंगुलबज्ज नाभिं कप्पेंति कप्पेसा चियरगं खणति खणेत्ता वियरगे पाभि निहणंति निहाणचा रयणाण य ऋषभस्य उपोद्घात वइराण य पूरति, पूरेता हरियालियापेढं बंधति, पंधित्ता विदिसि तओ कयलीहरगे चिउर्वति, ततेणं तेसिं कयलीहरगाणं बहुमज्झे .जन्ममह नियुक्ती दी देसभागे ततो चाउस्सालए विउविति, तए णं तेसिं चाउस्सालगार्ण बहुमज्मदेसभागे ततो सीहासणे विउव्वति, तेसिं सहिासणाणं अयमेतारूबे यत्रावासे पभत्ते, सब्बो बनगो भाणियब्बो, तएणं रुयगमज्शवत्थवाओ चत्तारि दिसाकुमारीओ भगवं तित्थगरं करतलपुडेणं तित्थगरमात च याहाहिं गिण्हांत, जेणेव दाहिणिल्ले कयलीहरगे जेणेव चाउस्सालगे जगव सीहासणे तेणेव उवागच्छति, उवागरिछत्ता तित्थगरं तित्थगरमातरं च सीहासणे निसीयावात, सयपागसहस्सपागाह तेल्लेहि अम्भंगिति, अम्भंगित्ता सुरभिणा गंधट्टएण उब्बउँति, उव्यदत्ता भगवं तित्थगरं करयलपुडेहिं तित्थगरमायरं च बाहासु |गिण्हंति, गिमिहत्ता जेणेव पुरथिमिल्ले कयलीघरए जेणामेव चाउस्साले सीहासणे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता भगवं समायरं सीहासणे णिसीयाति, णिसीयावेता तिहि उदगेहि मजाति, जहा-गंधोदतेण पुप्फोदएणं सुद्धोदगेण, २ जाव सव्यालंकारविभूसिते करेंति, करेत्ता भगवं करतलपुडेहिं मातुं च बाहाहि गण्डंति, गेण्हेत्ता जेणेच उत्तरिल्ले कदलीघरके जाव सहिासणे निसीयावेत्ता आभितोगे देवे सद्दाति, सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेय भो चुल्लहिमवंताओ गोसीसचदणकट्ठे साहरह, तेऽवि का नहेब जाव साहरंति, तए ण ताओ सरगं करेंति, करेता अरामिं घडेति पट्टेचा सरएणं अरणिं महेंति, महेता अग्गिं पाडेंति पाडेत्ता X ॥१३॥ अग्गि संधुकेंति संधुकेचा गोसीसचंदणकढे पक्खिवंति पक्खिवेत्ता अग्गि उज्जालिंति उज्जालेचा अग्गिहामं करेंति करेचा भूति अनुक्रम । (145) Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ऋषभस्य सत्रा चूणी दीप श्री कम करेंति २ रक्खापोद्दलिय बंधति बांधत्ता णाणामणिरयणभत्तिचित्ते दुवे पहाणपट्टगे गहाय भगवतो सामिस्स कन्नमूलांस आवश्यक टिट्टियावेंति, भवतु भगवं पन्वयाउगे भवतु भगवं पब्बतायुगे, तएण भगवंतं करतलपुडेहिं जाच मातारं बाहाहि गेण्हेचा जेणेवा जन्ममहः भगवतो जम्मणट्ठाणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता मातरं सयणिज्जांस णिसीताति २ भगवंतं मातूए पासे ठति, ठवेत्ता उपोद्घात नियुक्ती जाव आगायमाणीओ परिगायमाणीओ चिट्ठति ।। | तेण कालेणं तेणं समएण सके देविंद देवरायां मघवं पागसासणे जाव अबुढाहिं अच्छराकोडीहिं सद्धिं जाव विहरति, तएणं ॥१४०॥ तस्स सकस्स आसणे चलति, से तं पासेत्ता ओहिं पउजति, पउंजित्ता भगवंत ओहिणा आभोएति, आभाएता हट्टतुट्ठ एवं जहा बद्धमाणसामिस्स अवहारबारे जाव सनिसने जीयकप्पं सरति, सरिता तं गच्छामि णं अहपि भगवतो तित्थगरस्स जम्मणमहिम करेमितिकट्टु एवं संपेहेति, संपेहेता हरिणेगमेसि पादत्ताणीयाधियति देवं सहाति, सहावेत्ता एवं क्यासी-खिप्पामेब IA | भो ! सभाए सुहम्माए मेघोघरसितं गभीरतरमधुरसई जोयणपरिमंडलं सुपास सुसरघंटे तिक्खुत्तो उल्लालेमाणे २ महता महता | सद्दणं उग्धोसेमाणे २ एवं वयाहि-आणवेति णं भो ! सके देविदे देवराया, गच्छेति णं भो सके जाबराया जंबुद्दीवं दीर्व भारह वासं | भगवतो तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करत्तए, तं तुम्भेऽवियण देवाणुप्पिया! सविड्ढाए सब्वबलेण सव्वसमुदएणं सव्वादरेणं सब्बठा विभूतीए सब्यविभूसाए सव्यसंभमेणं सव्वनाडएहि सव्वाबरोहेहिं सवपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सम्बदिब्बतुडितसहसन्नि-४॥१४॥ तणादेणं महता इट्टाए जाव वेणं णियगपरिवालसंपरिपुडा सताई जाणवाहणविमाणाई रूढा समाणा अकालपरिहीण चेव सकस्स & जाव अंतिय पाउन्भवह । तए णं से पादचाणीयाहिवती देवे तं विणएणं पडिसुणेत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सा घंटा तणव । अनुक्रम R (146) Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 %ASA प्रत सुत्राक नियुक्ती उवागच्छति उवागच्छित्ता जाब तिक्खुत्तो उल्लालेति, तए ण तीए उल्लालिताए समाणीए सोहम्मे कप्पे अन्नहिं एगूणेहिं बत्तीसाए । श्री बिमाणवाससयसहस्सेहिं अन्नाई एगूणाई बत्तीस घटासयसहस्साई जमगसमगं कणकणरवं काउं पयत्ताईपि होत्था । तए णं सोहम्मे ऋपमस्य आवश्यक[४ कप्पे पासादविमाणनिक्खुडावडितसहपंटापडेमुकासयसहस्ससंकुले जाते यावि होत्था, तते गं तेसि सोहम्मकप्पवासीणं बहणं जन्ममहः उपाघात वेमाणियाणं देवाण य देवीण य एगतरतिपसत्तनिच्चपमचविसयसुहमुच्छिताणं सुसरघंटारसितविपुलोलतुरितचवलपडिबोहणे कए समाणे घोसणकोऊहलदिनकबएगग्गचित्तउवउत्तमाणसाणं स पादत्ताणीयाहिवती देये तसिं घंटारबसि णिसतसपडिसंतसि समाणसि तत्व तत्थ तहिं तर्हि देसे देसे महता महता सद्देणं उग्धोसेमाणो उग्घासेमाणे एवं वयासी-हंदि सुणतु भवतो ! बहवे । सोहम्मकप्पवासी बेमाणिया देवा य देवीओ य सोहम्मकप्पवइणो इणमो वयणं हितसुहत्थ, आणवेति णं भो! सके तं चेव जाव | अंतिय पाउन्भवह । तए ण ते देवा य देवीओ य एवमहूँ सोच्चा हट्ठजाब हिदया अप्पेगतिया बंदणवत्तियं एवं पूयणवचियं सकार० सम्माण दसण कोउहल्ल अप्पे०सकवयणमणुवत्तमाणा अप्पे अनमन्त्रमणुयत्तमाणा अप्पे जीतमेतं एवमादित्तिकटु जाव पाउन्भवति । तए णं से सके पालय णामं अभितोगितं देवं आणवेति-खिप्पामेव भो! देवा. अणेगखंभसयसंनिविट्ठ लीलट्ठियसालिमंजिया-1 कलियं ईहामियउसमतुरगणरमगरविहगवालगकिमररुरुसरभचमरकुंजरवणलतपउमलयभत्तिचित्त खभुग्गनवरवेइतापरिगताभिरामं | विज्जाहरजमलजुगलजंतजुत्तं पिब अच्चिसहस्समालिणीय रुयगसहस्सकलितं भिसमणं मिाम्भसमाणं चक्खुल्लोयणल्लेस सुहफास * सस्सिरीयरूवं घंटावलिचलितमधुरमणहरसरसुरभिसुभकंसदरिसणिज्जं णिउणोवितं मिसिमिसेतमणिरयणघटियाजाकपरिक्षितं जो- ४ यणसयसहस्सविच्छिनं पंचजोयणसयमुबिई सिग्पतुरियजइणणेव्वाहि दिव्वं जाणविमाणं पिउव्याहि २ जाव पच्चप्पिणाहि, सेवि दीप अनुक्रम (147) Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूर्णी 18 सत्राक नियुक्ती श्री ४/ तहेब करेति, तस्सणं दिबस्स जाणविमाणस्स तिदिसि तओ तिसोमाणपडिरूवगा वनओ, तोसि गं पडिरूवगाणं पुरतो पत्तेयं 81 आवश्यक- तोरणे वाओ, जाव पडिरूबा, तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमाणिज्जे भूमिभागे से जहा णामए आलिंगपुक्खरेइ वादा ऋषभस्य जाव दीवियचम्मेति वा अणेगसककीलगसहस्सविततावपञ्चावट्टसढीपडिसेढोसोस्थियसोवस्थियवद्धमाणपूसमाणमच्छगसुमु-12जन्ममा उपोद्घात मारअंडगजरामंडाफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंगवसंतलतपउमलयभत्तिचित्रहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समीरिएहिं सउज्जोएहि | णाणाविहपंचवहिं मीडिं उनसोभिते, तेसिं मणीण व गंधे फासे य माणियब्वे, जहा रायप्पसेणइज्जे, तस्स र्ण भूमिभागस्स ॥१४२॥ मझदेसभाए पेच्छाघरमंडवे अणेगखंभसयसंनिविद्वे चनो जाव पडिरूवे, तस्स उल्लोये पउमलताभचिचिने जाप सम्बतवणि-| ज्जमए जाव पडिरूबे, तस्स ण मंडवस्स समरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमादेसमागंमि महेगा मणिपढिता अढ जोयणाई | आयामविक्खंभेणं चत्तारि जोयणाई चाहाल्लणं सबमणिमती बन्नओ, तीए उवरि महेगे सिंहासणे पत्रओ, तस्मुरि महंगे विजयदुसे सध्यरयतामए बनओ, तस्स मज्झमागे एगे बहरामए अंकुसे, एत्थ णं महंगे कुंभिगे मुत्तादामे से अहिं तदद्धच्चत्तप्पमोणमेहि चउहि अद्धकुंभिकेहि मृतादामेहि सवतो संपरिक्खित्ते, ते णं दामा तवणिज्जलंघूसगा सुवनपतरगमंडिता णाणामणि-II रयणविविहारहारउवसोभितसमुदया इसि अनमन्नमसंपत्ता पुग्वादीएहिं वातेहिं मंद मंदं एज्जमाणा जाब निबुइकरणं सहेणं ४ ते पएसे आपूरमाणा जाव अतीव उवसोभेमाणा चिट्ठति, तस्स णं सीहासणस्स अवरुत्तरेण उत्तरेणं उत्तरपुत्थिमेण एत्थ : सक्कस्स चउरासीए सामाणियसाहसीणं चउरासीई भद्दासणसाहस्सीओ, पुरस्थिमेणं अदुई अग्गमहिसीण, एवं दाहिणपुरथिमेण ॥१४२॥ 12अम्भितरपरिसाए दुवालसहं देवसाहस्सीणं, दाहणणं मज्झिमाए चोद्दसण्हं देवसाहस्सीणं, दाहिणपच्चस्थिमेणं बाहिरपरिमाए 121 दीप अनुक्रम CANCER * (148) Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत ASSASA श्री चूणी सत्रांक दीप श्री |सोलसहं देवसाहस्सीणं, पच्चरिथमणं सत्तण्ह अणियाधीवतीणं, तएणं तस्स सीहासणस्स चउद्दिसि चउण्डं चउरासीणं आतरक्खआवश्यक देवसाहणि, एवमादि विभासियव्यं सूरियाभगमणं जाव पच्चप्पिणइ । ऋषभस्य तते णं से सक्के जाच हवदेहए दिवं जिणिदाभिममणजोग्गं सन्चालंकारविभूसितं उत्तरविउचित रूवं विउव्वति, विउव्वेचा उपोद्घात जन्ममहा निपतो | अट्ठर्हि अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं नट्टाणीएणं गंधच्वाणीएण य साद तं विमाणं. अणुपयाहिणीकरेमाणे पुचिल्लेणं तिसोयाणे II || दुरुहति, दुहिता जाव सीहासणंसि पुरत्याभिमुहे निसने, तए णं एवं चेच सामाणियाबि उत्तरेणं तिसोमाणेण दुकाहत्ता पत्तेय ॥१४३||| पचेयं पुव्वणत्थेस भदासणेसु णिसीदंति, अवसेसा य देवा य देवीओ य दाहिणिल्लेण दूरुहिता तय निसीदति । तएणं सकस्सा सतंसि दूरुढस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरतो अहाणु०, तदणंतरं पुन्नकलसभिंगारं जाव गगणतलमालिहत पुरतो अहाणु०, तदणं.1% छत्तभिंयार, तदणं० महिंदज्झए, तदर्थ सरूवणेवत्थहत्थपरिवत्थितप्यवेसा सवालंकारविभूसिता पंच अणिया पंच अणिया-14 धिवतिणो, तदर्ण बहवे आमिओगिया देवा य देवीओ य सरहिं सएहि रूबेहिं जाव निओगेहिं सक्कं देविंदं पुरतो य मग्गतोटा य पासवो य अहा०, तदणं. बहबे सोहम्मवासी देवा य देवीओ य सब्बिड्डीए जाव दूरुढा समाणा मग्गतो य जाव संपढिता ॥ तए ण से सक्के तेणं पंचाणीयपरिक्खित्तेषं जाव महिंदझएणं पुरतो पकड्डिज्जमाणणं २ चउरासीतीए सामाणिय जावी तपरिखुडे सबिड्डीए जाव रवेणं सोहम्मस्स कप्पस्स मज्झमझणं तं दिव्वं देबिड्डि जाच उवदंसेमाणे उवदंसेमाणे जेणेव सोहम्मस्स है। 15.उत्तरिले णिज्जाणमग्गे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता जोयणसयसाहस्सिएहि बिग्गहेहिं ओवयमाणे य बीतीवयमाणे य ताएमा१४शा उकिवाए जाव देवगतीए बीतीवयमाणे २ तिरियमसंखेज्जाणं दीवसमुदाणं मझमझेणं जेणेव गंदीसरे दीवे जेणेव दाहिणपुरस्थि-IN अनुक्रम (149) Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H मूलं - गाथा-], नियुक्ति : ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत ऋषभस्य जन्ममहः मिल्ले रतिकरगपत्थते तेणेव उवागच्छति, उवागच्छेत्ता तं दिव्यं देविति जाव दिव्वं जाणविमाणं पडिसाहरमाणे पडिसाहरमाणे आवश्यक, जेणय जंबुद्दीवे जाव जेणेव भगवतो जम्मणभवणे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छेत्ता तं भवणं तेणं दिव्येणं विमाणेणं तिक्खुत्तो उपाघात आयाहिणपयाहिणं करेति, करेला तस्स उत्तरपुरस्थिमे जाव विमाणं ठवेति, ठवेत्ता अडहिं अग्गमहिसीहिं एवं जहा वीरस्स नियुक्तोला निक्खमणे जाव वेणं जेणेव भगवं तित्थकरे तित्थगरमातरं च तेणेव उवागच्छति, उपागच्छेचा आलोए चेव पण्णामं करेति, ॥१४४|| करता सामि समातरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति २ वंदति बंदित्ता नमसति नमंसित्ता एवं बयासी- नमोत्थु ते स्यण कुन्छिधारिए, एवं जहा दिसाकुमारीओ जाव बन्नओ सपुनासि तं कयस्थे', अहं ण देवाणुप्पिए सक्के नामं देविंदे भगवतो सामिस्स | जम्मणमाहिमं करेस्सामि, तं तुब्भे न भाइयच्वंतिकटु ओसोयणि दलयति, दलयित्ता तित्थयरपडिरूवगं विउव्वति, विउव्वेत्ता त भगवतो मातूए पासे ठावेति ठावेत्ता पंचसक्के विउब्वति, विउव्वेता एगे सक्के आयते चोक्खे परमयाइभृए सरससुरभिगोसीस-1 चंदणविलित्तकरजुगे कयप्पणामे अणुजाणंतु मं भगवं! तिकटु भगवं तित्थगरं करतलपुडेहिं गेहइ सहरिसं ससंभम, एगे सक्के पिट्ठतो चलं आतपत्तं गेहति, बन्नओ. उभयो पासि दुवे सक्का चामरुक्खेवं करेंति बनाओ, एगे सक्के पुरतो बज्जं पाणीए कट्टति, तए णं से सक्के चउरासीतीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव अन्नेहि य बहहिं देवेहि य देवीहि य ताए उक्किट्ठाए जाव 1वीतीवयमाणे जेणेव मंदर पब्बते जेणव पंडगवणे मंदरचूलियाए दाहिणणं अतिपंडुकंवलसिलाए अभिसयसीहासणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छेत्ता सीहासणवरगते पुरस्थाभिमुहे सबिसन्ने । तेणं कालेणं तेणे समतेणं ईसाणे देविंद देवराया सूलपाणी वस- भवाहणे सुरिंदे उत्तरडलोगाहिवती अट्ठावीसविमाणवामसयसहस्साहियती अस्वंचरवत्थधरे एवं जहा सक्के, इस णाणत्वं- महाघो-I 2016-06 दीप अनुक्रम ॥१४४॥ (150) Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोदघात हे निर्युक्तौ ॥१४५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 सा घंटा लहुपरक्कमो पादचाणियाधित्रती पुष्फओ विमाणकारी दक्खिणा णिज्जाणभूमी उत्तरपुरथिमिलो रतिकरपच्यतो मंदरे समोसरितो जाव पज्जुवासति । एवं अवसेसावि इंदा आणियव्वा जाव अच्चुओति । इमं णाणत्तं चउरासीतिमसीती बावन्तरि सत्तरी व सट्टी या । पन्ना बत्तालीसा, तीसा बीसा दससहस्सा ॥ १ ॥ एते सामाणियाणं ॥ बत्तीस अट्ठबीसा, पारस अद्वेव चतुरो सयसहस्सा । पन्ना पत्तालीसा छच्च सहस्सा सहस्सारे ॥ २ ॥ आणयपाणयकप्पे, चत्तारि सया अच्चुते उ तिनि सता । एते विमाणा ॥ इमे जाणविमाणकारी देवा, संजहा-पालय पुष्कय सोमणस, सिरिषच्छे य णंदियावत्ते । कामगते पीइगमे मणोरमे विमल सव्वतोभद ॥ सोहम्मगाणं सणकुमारगाणं बंभलोयगाणं महासुक्कगाणं पाणयगाणं इंदाणं सुधोसा घंटा हरिणेगमेसी पादत्ताणीयाहिवती उत्तरिल्ला णिज्जाणभूमी दाहिणपुरस्थिभिल्लो रतिकरगपव्वतो, ईसाणगाणं माहिंदलंतकसहस्सार अच्चुआण इंदाणं महाघोसा घंटा लहुपरक्कमे पादत्ताणीयाहिवती दक्खिणिल्लिए णिज्जानमग्गे उत्तरपुरथिमिल्ले रतिकरगपव्वते, परिसाओ णं जहा जीवाभिगमे ॥ आयरक्खा समाणियचउग्गुणा सव्वेसिं, जाव विमाणा सव्वेसि जोयणसयसहस्सविच्छिन्ना, उच्चत्तेणं सविमाणप्पमाणा, महिंदज्झया सब्बेसि जोयणसाहस्सिया, सक्कबज्जा मंदरे समोवरंति जाव पज्जुपासेंति । ते काले तेण समरणं चमरे असुरिंदे असुरराया चमरचंचाए रायहाणीए सभाए सुहम्माए चमरंसि सीहासांसि चउसडीए सामाणियसाहस्सीहिं तित्तीसाए तायत्चीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं पंचहि अम्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं तिहिं परिसाहि सतहिं अणीएहिं सतहिं अणियाहिवतीहिं चउहिं चउसड्डीहिं आयरक्खसाहस्सीहिं णं अबेहि य जहा सक्के णवरि इमं णाणत्तं (151) श्री ऋषभस्य जन्ममहः ॥ १४५ ॥ Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सूत्रांक दुमो पादत्ताणीयाहिवती ओघस्सरा घंटा बिमाणं पन्नासं सहस्साई महिंदज्झतो पंच जोयणसयाई विमाणकारी आभितोगिओ 121 आवश्यक देवो, अवसिट्ठ तं चेच, जाव मंदरे समोसरति पज्जुवासति ॥ तेणं कालेण तेणे समएणं बली असुरिंदे एमेव, णवरं सद्विं सामाणिय-47 जन्ममहः उपोद्घात Ixसाहस्सीओ चउगुणा आतरक्खा महादुमो पादत्ताणियाधिवती महाओषस्सरा घंटा, सेस तं चेय, परिसाओ जहा जीवाभिगमे। तेणं कालेण तेणं समएणं धरणे तहेच, णाणतं-छ सामाणियसाहस्सीओ छ अग्गमाहिसीओ चउगुणा आयरक्खा मेघस्सरा घंटा रुहसेणो पादत्ताणीयाधिवती विम.णं पणुवीसं जोयणसहस्साई महिंदज्झओ अडाइज्जाई जोयणसयाई, एवं असुरिंदवज्जियाणा ॥१४६॥ भवणवासीइंदाणं, णबरं- असुराणं ओघस्सरा घंटा णागाण मेघस्सरा सुवनाणं हंसस्सरा विज्जूणं कोंचस्सरा अग्गीणं मंजुस्सरा 18 दिसाणं मंजुघोसा उदहीणं सुसरा दीवाणं मधुरस्सरा बाऊण नंदिस्सरा थणियाणं नंदिघोसा 'चउसट्ठी सट्ठी खलु छच्च सहस्सा उ असुरवज्जाणं । सामाणिया उ एए चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥१॥ दाहिणिलाणं पादत्ताणाधिवती रुद्दसेणो उत्तरिल्लाणं दक्खोला वाणमंतरजोइसिया णेयव्वा एवं चेब, णवरं चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ चचारि अग्गमाहितीओ सोलस आयरक्खसहस्सा, 8 विमाणा सहस्सं महिंदज्झया पणुवीसं जोयणसयं, घंटा दाहणाणं मंजुस्सरा उत्तराणं मंजुषोसा, पादत्ताणीयाहिबई विमाणकारी दय आभियोगा देवा ।। जोइसियाणं सुस्सरा सुस्सरणिग्योसा घंटाओ, एवं पज्जुवासंति । ॥१४६॥ तए णं से अच्चुए देविंद देवराया महं देवाधिवे आभियोग्गे देवे सदावेति सद्दावेचा एवं बयासी- खिप्पामेव भो महत्थं । महग्धं महरिहं विपुलं तित्थगराभिसेयं उबडबेह, तएणं ते हट्ट जाव पडिसुणेचा उत्तरपुरस्थिमं दिसिमागं अवक्कमेचा वेउचि-13 दीप अनुक्रम CARCIRCLE (152) Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूर्णौ | दि यसमुग्घाएणं जाव समोहनित्ता अदुसहस्सं सोवष्णियकलसाणं एवं रूप्पमयाणं माणिमयाणं सुवन्नरूप्पमयाणं सुवन्नमणिमयाणं रूप्प-ला आवश्यक मणिमयाणं सुवन्नरूप्पमणिमयाणं अट्ठसहस्सं भोमेज्जाणं, अट्ठसहस्सं चंदणकलसाणं, एवं भिंगाराणं आदंसाण थालाणं पातीर्ण जाऋषभस्य जन्मासुपतिट्ठाणं रयणकरंडगाणं पुष्फचंगेरीणं, एवं जहा सूरियाभस्स सव्वचंगेरीओ सवपडलगाई विसेसियतराई भाणियब्वाई,81 उपोद्घात नियुक्ती | सीहासणछत्तचामरतेल्लसमुग्गा जाच सरिसवसमुग्गता, तालियंटा जाच अट्ठसहस्सं कच्छुयाणं विउवित्ता साभाविए य वेउब्धिए य। | कलसे य जाव कडुच्छुए य गेण्हेत्ता जेणेव खीरोदसमुद्दे तेरेव आगम्म खीरोदोदं गेहंति गेण्हेत्ता जाई तत्थ उप्पलाई पउभाई जाव | ॥१४॥ सहस्सपचाई ताई गेहंति, एवं षुक्खरोदाओ, जाव भारहेरवयाणं भागहाईणं तित्थाणं उदगं मट्टियं च गेहंति, एवं गंगादीणं है महाणदीणं जाब चुल्लहिमवंताओ सब्बतुयरे सव्वपुप्फे सव्वगंधे सब्बमल्ले जाव सव्वासहीओ सिद्धत्थए य गण्हंति, गेण्हेत्ता का पउमद्दहाश्री दहोदगं उप्पलादीणि य, एवं सबकुलपचएम वट्टवेयड्ढेसु सव्वमहदहेसु सब्बदासमु सब्बचकवाडिविजएसु बक्खार-का | पथ्यएम अंतरणदीसु विभासेज्जा जाब उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभद्दसालवणे सव्यतुयरे जाव सिद्धत्थए य गेइंति, एवं गंदण-13 |वणाओ सचतुयरे जाव सिद्धस्थए सरसं च गोसीस चंदणं दिव्वं च सुमणदामं गेण्हंति, एवं सोमणसपंडगवणाओ य सब्बतुयरे ४ जाव सुमणदाम, ददरमलयसुगंधिए य गंधे गेहंति, एगंतओ मिलति मिलिचा जेणेव सामी तेणेव उवागच्छति उवागच्छेत्ता : महत्थं जाब तित्थगराभिसेय उवट्ठावेति ॥ तए ण से अच्चुयदेविंदे सद्धिं सामाणियसाहस्सीहि तावतीसाए तायत्तीसएहिं चउहिं लोगपालेहिं तिहिं परिसाहि सत्तहिं अणि X ॥१४७॥ एहिं सचहि अणिवाहिवइंहिं चचालीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीहिं सद्धिं संपरिखुढे जाव तेहिं साभाविएहि य उचिएहि य वर दीप SAKASSORSEENESS KAHAKAA% अनुक्रम (153) Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : ११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत TEIC उपोदयात दीप कमलपतिट्ठाणेहिं सुरभिवरवारिपुत्रेहिं चंदणकयचच्चाएहिं आविद्धकंठेगुणेहि पउमुप्पलप्पिहाणेहिं करतलबमालपरिग्गहितेहिं अट्ठआवश्यक सहस्सहिं सोवनियाणं कलसाणं जाव अदुसहस्सिएणं भोमेज्जाणं जाव सब्बोदएहिं सव्वमाडियाहिं सब्बतुयरेहिं जाव सम्बोसहिचूर्णी सिद्धत्थएहिं सब्बिड्डीए जाव खेणं महता महता तित्थकराभिसेगणं अभिसिंचति । तए णं सामिस्स महता महता अभिसेगसि चेव जन्मा भिषेकः पिसाबढमाणसि सब्बे इंदा छत्तचामरकलसधूवकडच्छुयपुष्फगंधजाव हत्थगया हत्थतुह जाब पुरतो चिट्ठति बज्जमलपाणी, अनेवि 31 यण देवा य देवीओ य चंदणकलसहत्थगया एवं भिंगार जहा बद्धमाणसामिस्स निक्खमणे जाव पंजलिकडत्ति । एवं अप्पे॥१४८॥ गतिया देवा आसितसंमज्जियोवलितं करेंति जहा विजयस्स जाव गंधवट्टिभूयं करेंति, अप्पे० हिरनवासं वासेंति, एवं सुवन्नरयणव-17 X|इरआभरणपतपुष्फफलबीयमल्लगंधवाजाव चुन वासंति । अप्पे०हिरनविधि भाएंति, एवं जाव चुन्नविधि भाएंति, अप्पे० चउब्बिई || & वज्ज वाएंति ततं बिततं घणं झुसिरं । अप्पे० चउबिहं पगायंति, तंजहा-उक्खित्तं पयत्तं मंदं चोइंदर्ग, अप्पे०चउब्बिह गद्दे णचेंति, पतंजहा-अंचितं दुतं आरभडं भसोलंति, अप्पे०चउविहं अभिणयं अभिणति, तंजहा-दिट्ठतियं पाडियंतियं सामंतोवाइयं लोगमज्झव-19 सिय, अप्पे० बचीसइविहं दिव्वं नट्टविधि उबदसति, अप्पे उप्पयणिययपब्वयं संकुचितपसारितं । जाव भन्तं णाम दिव्वं गट्ट-टूविहिं उबदसेंति, अप्प० पीणेति एवं वक्खारैति तंडति लासेंति अप्फोडेति वग्गति सीहणादं गर्दति, अप्पे० सव्वाई करेंति, अप्पे० हयहेसिय, एवं हत्थिगुलगुलाइत रहघणघणाइतं, अप्पे विनिवि, अप्पे अच्छोलेंति अप्पे० पच्छोलेंति एवं तवंति अच्छि-131 इदंति पाददद्दरं करेंति भूमिचवेडं दलयंति, अप्पे० महता महता सद्दणं राति, एवं संजोगावि विभासियच्या, अप्पे० हकारेंति एवं ॥१४८॥ पुकारेंति बकारेंति ओवयंति उप्पयंति परिप्पवन्ति जलंति तवति गज्जति विज्जुयंति वासंति देवुकलियं करेंति एवं देवकुहुकु अनुक्रम (154) Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत सत्राक आवश्यक उपोद्घात नियुक्ती ॥१४९॥ हुगं देवहुहुहुगं करेंति अप्पे० विकितभूतादिरूवाई विउवित्ता पणञ्चन्ति, एवमादि विभासज्जा जहा विजयस्स जाव सब्बतो। समंता आहावेंति परिधाति । अपभस्य तए णं से अच्चुइंदे सपरिवारे सामि तेणं महता महता अभिसेगेणं अभिसिंचति, अभिसिंचित्ता करतलपरिग्गहित जाव | मत्थए अंजलि कटु जएणं विजएणं बद्धावेति, वद्धावेत्ता ताहिं इट्ठाहि जाच जयजयसई पउंजति, पउंजित्ता पम्हलममालाए सुरभाए गंधकासाईए गाताई लूहेति, एवं जहा बद्धमाणसामिस्स णिश्वमणे जाव गट्टविहिं उबदसेति, उवदंसेचा अच्छेहिं सहेहिं। रयतामएहिं अच्छरसादुलेहिं भगवतो सामिस्स पुरतो अट्ठमंगलगे आलिहति, तं० दप्पण भद्दासण बद्धमाण बरकलस मच्छ सिरिवच्छा । सोस्थिय पदावत्तं लिहिता अट्ठट्ठमंगलगा ।। १॥ काऊण करेति उवयारं, किं ते ?, पाडलमल्लियचंपगअसागपुभाग-11 ४ चूरमंजरिणवमालियबउलतिलयकणवीरकुंदकुज्जककोरंटदमणकवरसुरभिसुगंधिकस्स कयग्गहगहियकरतलपन्भडविप्पमुकस्स दस-| वास्स कुसुमसंचतस्स तत्थ चितं जणुस्सहप्पमाणमेत्तं ओहनिकर करेता चंदप्पभरयणवइरवेरुलियविमलदंड कंचणमणिरयणभाचचित्वं कालागरुपवरकुंदुरुकतुरुकधूवगंधुत्तमाणुविद्धं च धूमवदि विणिम्मुयंत वेरुलियमयं कडुच्छुयं पम्गहेतुं पयते ध्वं दाऊण जिणवरिंदस्स सत्तद्रुपयाई ओसरिता दसंगुलिं अंजलिं करिव मत्थगंमि पयतो अट्ठसयविसुद्धगंथजुत्तेहिं महावितेहिं अपुणरुत्तेहिं अत्यजुत्तेहिं संधुणति संथुणित्ता वाम जाणुं अंचेति अंचता जाव करतलपरिग्महितं मत्थए अंजलि कटु एवं वयासी णमो त्थु ते सिद्ध बुद्ध निरय समाहित समण संमत्तसमणजोगि सल्लगत्तण नीभय नीरागदोस निम्मम निस्सम नीसल्ल माण-18 ॥१४९॥ मूरण गुणरयण सीलसागर मणंत्रमप्पमेय भविय धम्मवरचाउरतचकवड्डी णमोऽत्थु वे अरहतोचिकटु वंदति नमंसति, नमसहचा दीप RAMESSA अनुक्रम (155) Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री शाणच्चासन्ने नाइदूरे सुस्सूसमाणे जाव पज्जुवासति, एवं जस्स जो परिवारो तमुच्चारेन्ति तमुच्चारेत्ता जहा अच्चुतो तहा पाणतादी-13 आवश्यक यावि देवेंदा परिवाडीए भाषियच्या जाव भवणबतिवाणमंतरजोइसिंदा पत्तेयं पचेयं अभिसिंचंति सूरपज्जवसाणे, सकवज्जा, णव-लापमस्य चूणा । दिध्यकलसा ते नव कलसे अणुपविट्ठा इति । तए णं से ईसाणे देविद पंच ईसाण विउज्याद, एग तहेव जाव तिस्थगर गहाय जन्मा टाभिषेक ४सीहासणंसि णिसन्ने जाव एगे पूरतो मूलपाणी चिट्ठति, तए णं से सके देविंदे० आभियोगे आणवेति, खिप्पामेव भो ! महत्थं ४ नियुक्ती तहेब जाव उवट्ठवेंति, तए में से सके तित्थगरस्स चउद्दिसिं चत्तारि धवलवसमे विउव्वति, सेते संखदलसनिकासे जाव दरिस-ट ॥१५॥ |णिज्जे, तए णं तेसि चउहं बसभाणं अट्ठसु सिंगग्गेम अट्ठ तोयधाराओ णिग्गच्छति, तए णं ताओ उई वेहास उप्पयंति, उप्प-। यित्ता एगवो मेलायति २ सामिस्स मुद्धाणसि निवातंति, तए ण से सके सपरिवारे सामि जहेव अच्चुते तहेब साभावितेहिं जाव ४ पज्जुवासति । णवरं ते चव अणुप्पविट्ठा इति । तए ण से सके सामि वंदति नमंसित्ता तहेब पंच सके बिउब्बति जाव यज्जपाणी पकडति । तए ण चउरासीतीए सामाणिय जाच वेण ताए उचिट्ठाए जेणेव सामिस्स माया तेणेव उवागच्छति, उवाग-1 |च्छिचा तित्थगरपडिरूवगं साहरति साहरेता सामि माऊए पासे ठावति, ओसावाण पाडसाहरति, एग मह खोमजुगलं | कुंडलजुयलं च सामिस्स उस्सीसगमूलसि ठवेति, ठवेत्ता एग मह सिरिदामगड तवणिज्जलंपसर्ग सुवनपतरगमंडित जाणाम| णिविविहरयणहारद्वहारसोभितसमुदयं सामिस्स उल्लायसि णिक्खिवति,जभ सामी देहमाणे मुह मुहेण अभिरममाणे २ चिट्ठति । तए णं से सके वेसमणं आणवेति, खिप्पामेव भो ! बत्तीस हिरनकोडिओ पचास सुवनकाडाओवचीस नंदाई बीसं भाई ॥१५०|| सुभग्गसाभग्गरूवजोब्बणगुणलावन्नं च भगवतो मामिस्स जम्मणभवणंसि साहराहि, सेवि भगदेवेहि साहरावेत्ता जाब पन्चप्पिणति। दीप अनुक्रम CRORSCOR: (156) Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं 1, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राक नियुक्तो . दीप श्री दातए णं से सके अभिओगिए सहावेत्ता एवं बयासी-खिप्पामेव भी महता महता सण उग्धासेमाणा उग्धोसमाणा एवं वयह-हंदि वंशस्थापन आवश्यक सुणतु भवंतो बहवे भवणपतिवाणमंतरजोतिसबेमाणिया देवा य दबाजाय जे णं देवाणुप्पिया! के भगवतो तिथगरस्स बार चूर्णी | तित्थगरमाऊए या असुभ मणं संपहारेति तस्स णं अज्जगमंजरिकाविव सतहा मुद्धाणं फुट्टउत्तिकदटु घोसणं पोसह पोसिला जाय। उपोद्यात लापञ्चप्पिणह । तेवि तहेव करिता जाव पच्चप्पिणंति । तते णं ते वहवे भवणवति जाय वेमाणिया दवो भगवं तित्थगरं तित्थगरजम्माभिसेगणं अभिसिंचित्ता जेणेच नंदीसरवरदीवे ॥१५१॥ तेणेव उवागच्छति, तए ण से सके देविदे पुरथिमिल्ले अंजणगपब्बते अट्ठाहिय महामहिम करेति, तए ण सकस्स चत्तारि लोगापाला चउसु दहिमुहगपव्वतेसु अढाहियाओ महामाडिमाओ करिति, एवं ईसाणे देविंदे उत्तरिल्ले अंजणगपवते, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपब्बतेसु, चमरो य दाहिणिल्ले अंजणगपबते, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपब्बतेसु, वली पच्चथिमिल्ले अंजणगपव्यए, तस्स लोगपाला चउसु दहिमुहपथ्यतेसु, तए ण ते बहवे भवण जाव महिमाओ करता जामेय दिसि पाउन्भूया तामेव पडिगयत्ति, लाएवं जहा जम्बूदीवपन्नत्तीए, अहवा'जम्मणमहो य सब्बो जह भणिओ माल्लिणायंमि।।' ऊरूसु उसभलंछणं उसमोर | सुमिणमि तेण कारणेण उसभोत्ति णामं कर्य । एवं सो उसमो उप्पो ॥ एयस्स गिहावासे असकतो आसि आहारो । किं च-सब्वे तित्थगरा बालभावे जदा तण्हातिया छुहातिया या भवति तदा ॥१५१॥ अप्पणो अंगुलियं वयणे पक्षिवंति, तत्थ देवा सब्वभक्खे परिणामयंति, एस बालभाचे आहारो सन्चेसि, ण ते थणं धापति, अनुक्रम ReceARC (157) Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११३/१८६-१९०], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ऋषभस्य सत्राक नियुक्तो दीप का पच्छा सिद्धमेव भुजति महतोभूता, उसमस्स पुण सम्बकालं देवावणीतयाई उत्तरकुरुफलाई जाव पब्वतितो । किंच-तिस्थगरमायरो BI आवश्यकता उपोद्घाता दिलीणगम्भावो भवंति, जायमाणेसु य जररुाहेरकलमलादीणि न भवंतित्ति । जाहे देसूर्ण वासं जायस्स तित्थगरस्स ताहे सकस्स इच्छा जाया-जीतमेत तीतपटुप्पण्णमणागयाणं सकार्ण देविदाणं पढम-1 विवाह तित्थगराणं बंसट्ठवणं करेत्तएत्तिकटु जाव आगतो, पच्छा किह रिकहत्यओ पविसामिति, इतो य णाभिकुलगरो उसभसामिणो ॥१५२॥ अंकवरगतेणं एवं च विहरति, सको य महप्पमाणाओ इक्षुलट्ठीओ गहाय उपगतो जयावेइ, भगवता लट्ठीसु दिट्ठी पाडिता, ताहे सकेण भणिय-किं भगवं! इक्खु अकु! अकु भक्खणे, ताहे सामिणा पसत्थो लक्खणधरो अलंकितविभूसितो दाहिणहत्थो पिसारितो, अतीव तंमि हरिसो जातो भगवंतस्स, तएणं सकस्स देविंदस्स अयमेयारूवे अज्झस्थिते-जम्हा णं तित्थगरो इक्यु अभि-४ लसति तम्हा इक्खागुवंसो भवतु, एवं सको बंसं ठवेऊण गतो, अनेवि तकालं सत्तिया इक्यु भुजंति तेण इक्खागवंसा जाता इति । उरिं आहारहारे निरुचमि 'आसीत इक्खुभोदी इक्खागा तेण वत्तिया होति'त्ति भन्निही, पुवमा य भगवतो इक्खुरसं | पिबिताइता तेण गोतं कासवंति, इक्षवश्च तदा पानीयवल्लीवद्रसं गलति, छिन्ना बद्धा वा ।। इतो य भगवं सुमंगलाए भगिणीए सद्धिं मुहंसुहेण विहरति संवद्दति य, तेण कालेणं तेणं समएणं एगस्स मिहुणस्स मिथुणगं जायमेतगं, ताणि तं मिथुणगं तलरुकखहट्ठा ठयेऊण अभिरमंति कयलीघरगाईसु, ततो य नलरुक्खाओ तलफलं पकं समाणं दवातेण आहतं तस्स दारगस्स उवरि पडितं, तेण सो अकाल चेव जीवितातो ववरोवितो, ताहे तं मिधुणगं तं एकालयं दारियं कंचि कालं संबड्ढेऊण पयणुपेम्मरागेण तं उज्झित्ता गताणि, सा य अतीच उकिदुसरीग देवकण्णाविव तेमु णं वर्णतरेसु जह वणदेवता अनुक्रम अथ भगवंत ऋषभस्य विवाह एवं अपत्य-वर्णनं कथयते (158) Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [११८/१९१-१९५], भाष्यं [१-३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप श्री नहा वियरति, तं च एकलिय दह्र केति पुरिसा नाभिस्स साहंति, ताहे नाभी तं दारियं गहाय भणति-उसमस्स भारिया अपत्याभि भविस्सतित्ति, सयमेव संगोवेगाणो विहरति, ताहे सामी नाहि दोहिं दारियाहि समं बड्डति । एवं ता जम्मणं नामंति गतं । काकादीनि चूणी इयाणि अभिवाडित्ति दारं । सो बढुति भगवं तो दियलोयवुत्तो अगोवमसिरीओ। देवीदेवपरिबुडो, सुहं सुहेण अभिवड्डति (नंदाइ समंगलासहिओ वृ.) ॥२॥११८।। सो य पुण भगवं पुब्बजातिस्सरो तिणाणोवगतो उम्मुक्कबालभावो 018 भिन्नजावणो जातो । विवाहेत्ति दारं॥१५॥ तए णं सकस्स अयमेयारूच अब्भत्थिते-जीतमेतं तीतपडप्पण्णमणागयाण सक्काण पढमतित्थगराणं विवाहमाहिमं करतएत्तिकटु एवं संपहेति, संपेहेत्ता आगतो सिग्यमेव महता रािईसक्कारसमुदएणं, ताहे सको उसमभगवतो सयमेव वरकम्मं करेति, तंजहा-पमक्खणगण्हाणगीतवातिय अविधवं एवं बरकम्मं करति, तासि पुण दारियाणं सकग्गमाहसीओ महता रिद्धिसकारसमुदएणं, विवाहं काऊण जामेव दिसं पाउम्भृता तामेव दिसं पडिगताणि । अवञ्चत्ति दारं छप्पुब्यसयसहस्सा ।।२।। १२३ ।। तए ण सुमंगलाए वाह य पीढोय अणुत्तरहितो चइऊणं मिहुणयं जातं, भरहो बंभी य, । सुर्णदाए सुबाहू य महापीढो य पच्चायाता, ते पुण बाहुबली य सुंदरी य, तते णं सा सुमंगलादेवी अनाणि एगूणपवं पुचजुयल| गाणि पसवति, तेऽवि ताव कुमारा एवं संबड्डति । __आभसंगोत्त दारं- ते य मणुया तं दंडणीति अतिक्कमंति, भगवं च पुष्यजातिस्सरं अब्भाहियं च पाऊणं विनाणेणं तं ॥१५॥ उवट्ठायनि, जा सा दंडणीती तं इमे पेल्लेंति, तं इयाणि किं कीरउ ?, ताहे भगवं पनवेति जहा राया भवति, ते पुच्छंति- केरिसो अनुक्रम SECity (159) Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति : [१२३/१९६-२०२], भाष्यं [४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूगों सत्राक IMराया ?, सामी साहति-जहा जो राया भवति तस्स कुमारामच्चा दंडा आरक्खिया य भवंति, ताहे तस्स उग्गा दंडणीती भवति, त अमेरुत्पा आवश्यकच ताहे लोगाण बोलेंति, तो सो किह भवति.१, सो रायाभिसंगणं आमिसिच्चति, ताहे तेहि भणितं- तुम्मे होह रायाणोत्ति,दि गुणा तेण भणियं-णाभि जायह, ते गंतुं णाभि जायंति, तेण भणित- अहं महल्लो, गच्छह तुम्भे उसमें रायाणं ठवेह, एवं होउत्ति गता| पापोमसरं, पोमिणीपनेहिं पाणियं गेहंति जाव आणन्ति य, सक्कस्स आसणचलणं, वाहे सबिडीए सको सलोगपालो आगतो, नियुक्ती हरायाभिसेगेणं अभिसिंचति, जतिओ य रायारिहो अलंकारो सो सम्बो उवणीतो, एवं भगवं रायाभिसेगेण अमिसित्तो, अथ ते य ॥१५॥ पुरिसा आगता पेच्छति भगवं रायाभिसेगण अभिसित्तं सम्बालंकारविभूसितं, ताहे परितोसबियसियमुहा जाणति- किह अम्हे अलंकितविभूसियस्स उवरि पाणिय छुभामो ?, तम्हा पाएमु छुभामोति, ताहे तेहिं पाएसु पाणिय छुट, ताहे सक्को देवराया चिंतति- अहो इमे विणीता मणुस्सा, तम्हा एत्थ विणीता चेव णगरी भवतुति, तते ण से सक्के देवराया बेसमणं महाराय आणवेति-खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया! वारसजायणदीई णवजोयणविच्छिन जहा वीतसोगा रायहाणी, रज्जसंग्गहेत्ति दारं ।। एवं तस्स अभिसित्तस्स चउव्यिहो रायसंगहो भवति, तंजहा-उग्गा भोगा राइना खत्तिया, उग्गा जे आरक्खियपुरिसा तेसिं उग्गा दंडणीती ते उग्गा, भोगा णाम जे पितित्थाणिया सामिस्स, राइमा नाम जे सामिस्स समव्यया, अबसेसा खत्तिता ।।दारं । इयाण विविहाए लोगद्वितीए णिवंधण दरिसिज्जति IDI||१५ आहारे जाव० ॥ २ ॥१३१।। आसि य कंदाहारा ॥२॥ १३५ ।। तेसिं पढम कंदादी आहारो आसि, पच्छा तेण ण दी जीरंतेण ते उसमें उबढायंति, जहा अम्ह ण जीरति, वाहे उसमसामी भणति- जहा तुम्मे हत्थेहिं मल्लेत्ता तयं अत्रणेत्ता ताहे FREERSc* दीप अनुक्रम (160) Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१३१/२०३-२०६], भाष्यं [४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक नियुक्ती दीप श्री आहारह, एवं ते पाणिधंसी आसी, तहवि ण जीरितुं परतं कढिणतणणं आसहीण, ताहे भणेति- पंसित्ता तिम्मत्ता खाह, तहवि शिल्पकर्मआवश्यकशन जीरति, ताहे सेत्ता तिम्मेचा पचालपुडेसु मुहूर्त धारेह, तहवि ण जीरति, ताहे घसचा तिम्मेत्ता पवालपुडेसु महत्तग धरता, लेखादीनि चूर्णी उपोद्घाता ४ तओ पुणो हत्थपुडंसि मुहुत्तग धरेचा खाह, जाहे तहवि ण जीरति, वाहे कक्खतरेसु उण्हवेचा पच्छा आहारति, कासकारणेणं अग्गि ण उप्पाएंति, सामी जाणति- जदा एगंतणिद्धा कालो भवति तदा अग्गीण उद्वेति, एतरुक्षेणचि, जदा वमादाणिदलुक्यो भवति तदा अग्गी उद्वेति, नेण मामी अग्गि ण उहावेति । अहवा इमं निरु इक्वागसस्सआसी य इक्खुभोती इक्खागा तेण बत्तिया होति । सणसत्तरसं धनं आमं ओम च भुजीया ॥२॥१३६ ॥४॥ जोम णाम थो । ताहे- आमी पाणीघंसी ॥ २ ॥१३८ ।। एवं च णाम ते कक्वंतरतु छोटूण आहारेंति । इचो या कालसभावेण रुक्षसंघसण अग्गी उद्याइतो, ताहे सो अग्गी भूमि पत्ता, जाणि तत्थ सुक्कपत्तकयवराणि ताणि दहितुमारद्धो, ते मणुसा ते दळूण अन्भुतयं ततोहुत्ता पधाइता ताहे गण्हामोत्ति इमाणि रयणाणि, गेण्हितुमारद्धा जाव डझंति ताहे ओसरति, ताहे भीता समाणा उसमसामिस्स साहंति, ताहे उसभो भणनि-पासेसु विलग्गिऊण मंडलिं परिपेरतेसु छिदह, ताहं हत्थीहि |य आसहि य ते सव्वं तर्ण मलितं, ताह सो उबसंतो अग्गी, ताहे सो अग्गी गण्हापिता, ताहे भणिया- पार्क करेह, ते ण जाणंति किह पाको कीरति ?, ते अग्गिमि छुभंति, सो अग्गी तं उहति, ते पुणो उवहिता, तमि जे छुम्भति तं जरगतो जहा खाति,15/॥१५५।। भगवं भणति मत्तियं आणेह, भगवं हथिखंधे चडितओ गीति, तेहि य चिक्खाल्लो उवणीतो, ताहे सामिणा हस्थिस्स कुंभए अनुक्रम (161) Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२३/२०६-२०९], भाष्यं [५-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सूत्रांक उपोद्घात हा दीप काऊण दरिसित पत्तय, भणिता एयारिसयाणि काऊण एत्थं चेच पयह, पच्छा कुसलेहि कालेण सुंदरतरगाणि कयाणि, पच्छा 18/लेखादीनि आवश्यक पाऊण अग्गिमि तहिं पागं करे करति । एवं ता पढम कुंभकारा उप्पन्ना, एवं ता आहारो गतो । चूर्णी | इयाणि सिप्पाणि उप्पाएयव्बाणि, तत्थ पच्छा वत्थरुक्खा परिहाणा, ताहेऽणंतिका उप्पाइया, पच्छा गेहागारा परिहीणा, नियुक्तोताहे बडती उप्पाइता, पच्छा रोमणखाणि बड्डेति ताहे कम्मकरा उप्पाइता हाविया य, एताई च पंच मूलसिप्पाणि-कुंभकारा दूचित्तगारा गंतिका कम्मगारा कासवगति । एककस्सवि वीस भेया, एवं सिप्पसय, एवं ता सिप्पाण उप्पत्ती । ॥१५६॥1 ___ इयाणि कम्माणि-तणहारगादीणि, आचार्यकं सिल्पमनाचार्यकं कर्म, ताहे जे रिद्विता मणुस्सा ते विणीयतासमीपत्थे मणुसे भणति-ओ' कुसलत्ति, तेण कोसला. कालदोसेण ममचिभावे जाते मामणा, मामणाणाम ममता, मम आसमो वर्ण काननानि, एस मामणा । विभूसणा णाम ज चव सामी विभूसिज्जतो दिवो तप्पभिति लोगो आढचो विभूसेउ । लेहत्तिदार-बंभीय दाहिणहत्थण लेहो दाइतो, सुंदरीय वामहत्थेण गाणतं, भरहस्स चित्तकम्मं उपदिङ, बाहुबलिस्स लक्षणं थीपुरिसमादाणं माण ओमाणं पडिमाणं, एवं तदा पवत्तं । पतिए णाम जै मणिपादओ पोइज्जति, पहणाणि वा तदा 181 उप्पनाणि । अबलवितुमारद्धेसु बबहारो तप्पमिति चव आढत्तो। णीतीओ उसभसामिम्मि चेव उप्पनाओ। निउद्घाणि इस्सत्थाणि य । ओवासणा णाम कम ज कायव्यं तं तदा आदत्ताणि वडिउ रोमाणि, पढम ण ववित्था, अहवा उवासणा जं सेवेति इस्सरं वा, चिगिच्छावि तदा आढता, पढमं रांगा ण होसु, अस्थसत्था कोडिल्लयमादी तदा उप्पना, बंधे घाते य मारणा, एतं अत्थातो अनुक्रम (162) Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२३/२०६-२२३], भाष्यं [५-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी HEIG ॥१५७॥ दीप व जातं, जहा बंध, जनगा णागजण्णकादी, उम्सवा इंदमहाइया, समवादो दोण्हं तिण्ड जगाणं, मंगलाण पुच्वं भट्टारगस्सा संबोधदेवेहि कयाणि, कोउयाणि भूइकम्माणि रक्खा य बद्धा, पृव्वं अलंकारो भट्टारगस्स देवेहि कतो, लोगोऽवि ताए चेव अणुवित्तीए नादि ४ आढचो, वस्थगंधमल्लअलंकाराणि तदप्पभिति, पग्भिोगोवभागाणि उयणयणा, पुब्बं सड्ढे कप्पटु साधणं उचणिज्जती, विवाहो या भगवतो पढमं तदप्पभिई दिन परिणति, दत्ती जदा सामी पब्बइतो तदा पबचा भिवाया, मडगपूयणाम देवाय पढम पढमसि-II त्तिकाऊण देवेहिं कया, झामणा सामिस्स पढनं सरीरं झामित देयेहि, धूमापि तदा चेव उप्पन्ना, मद्दो पढम भट्टारए कालगते देवेहि आणदअंसुपातो कतो, छेलावणयं छलणं णाम उकडीहसितादि, चडरूवाण य छलणा-पृच्छा, इंखिणियाओ घंटियाओ, कन्नेसु किणाकिणाति जक्खा साहति, पुच्छणा किंकीरतु ? मा या कीरतु', अहया पुच्छणा मुहसातयादीणि इच्चेवमादि-12 पाये । एवं ता जणपदपरूवणा गता। पढमं सामी संबोहितो, परिच्चाओ-पढम सामिस्स लेव संवच्छरियो दायो जं च परिच्चइऊणं पचतितो, एताणि सवाणि तदा उप्पबाणि, पत्तेयं णाम को नित्थयरी पत्तेयं पब्बइतो? को पा कीस परिवारो? ___एगो भगवं वीरो, पासो० ॥ ३-४॥ उग्गा भोगाणं ॥३-५॥ उवहिनि दारं-सब्वेवि एगदूसेण निम्गया। ३-७!! तित्थगरा तित्थगरलिंगेणं पब्वइया, जे साधूण लिंग तं तेसि अन्नलिंगं भवति, गिहिलिंग निहत्थाण, तंपि ण होइ, कुलिंग णाम कुत्सितं लिंग कुलिंग, ज तायसपरिवायगादीण, ताप ण भवति, गामधम्मा सविता ण ा सेविता, ५॥ गामणगरादी वा तदा चेव उप्पा, अहवा जे उसग्गा ते तदा उप्पन्ना, परीसहा कस्स आमी णासी वा?, सम्वेवि तित्थगरा अनुक्रम (163) Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोमात निर्युक्तौ ।। १५८।। "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) मूलं [- / गाथा-1 निर्युक्तिः [४/२२४-२६४] आयं [-३०] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - जीवादिणवपयत्थे उवलभिऊण पव्वद्दता, सुतलंभे उसमसामी पृथ्वभव चादसपुब्बी, अवसेसा एकारसंगी, पच्चक्खाणं पुरिमपच्छिमाणं पंचजामं, अवसेसाणं चाज्जामं, संजमो पुरिमचरिमाणं दुविहो - इत्तिरियं च सामाइयं छेदोवडावणियं च मज्झिमगाणं सामाइयं आवकहिये, सत्तरसंगो य सब्बेसि, अन्ने संजमो इति सच्चे तित्थगरा सामाइयसंजमे पब्चइता को वा केच्चिरं कालं छउमत्थो ? केण वा को तबो अणुचिश्रो ? कस्स वा काए बेलाए गाणं उप्पनं तेवीसाए तित्थगराणं गुरुम्गमण हुने एगराइयाते पडिमाए णाणं उप्प, वीरस्स पाईणिगामिणीए जहा दसाए वहा, असे भांति बावीसाए पुण्यहे मडिवीराणं अवरण्डे, कास केवतिओ सीससंगष्ट १, भग्रह — उसमस्त णं अरहओ कोसलियस्स उसभसेणपामोक्खाओ चउरासीति समणसाहस्सीओ उक्कोसिया समणसंपदा होत्था, भिसुंदरिपामोक्खाणं अज्जियाणं विभि सबसाहस्सीओ उकोसिया अज्जियासंपदा होत्था, सेज्जंसपामाक्खाणं समणोवासगाणं तिमि सयसाहस्सीओ पंचायसहस्सा उकोसिया समणोवासगसंपदा होत्था, सुभद्दापामोक्खाणं समणोवासियाणं पंच सयसाहस्सीओ चउप्पनं च सहस्सा उक्कोसिया समणोवासियासंपदा होत्था, चचारि सहस्सा सत सया पन्नासा चोदसव्वीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं उकोसिया चेोहसपुब्बि संपया होत्था, जब सहस्सा ओहिंस्राणीणं उकोसिया, बीससहस्सा केवलणाणीणं उक्कोसिया, वीससहस्सा छच्च सया वेडब्बियाणं उकोलिया, बारस सहस्सा च सया पन्नासा विपुलमतीणं अड्डाइज्जेसु दीवसमृद्देसु सन्नीणं पंचेदियाणं पज्जत्तगाणं मणोगत भावे जाणमाणाणं पासमाणाणं उक्कोसिया विपुलमतिसंपया होत्या. बारस सहस्सा छच्च सया वादीणं पचासा उकांसिया०, बावीस सहस्सा णव य सवा अणुत्तरोववातियाणं गतिकल्लाणाणं जाव आगमेसिभद्दाणं उकोसिया, उसमस्स णं वीसं समणसहस्सा सिद्धा, (164) जिनपरीवारः ॥ १५८॥ Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [४/२२४-२६४], भाष्यं [५-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 t पत - HET श्री चचालीसं अज्जियासहस्सा सिद्धा, सट्टि अंतेवासिंसहस्सा सिद्धा. एवं बहा पढमाणुओगे जाव अरहतो अरिडनेमिस्स बर- जिनपरी बारः आवश्यक दसपामोक्खाओ अट्ठारस समणसाहस्सीओ, जक्खिणिपामोक्खाओ चत्तालीसं अज्जासाहस्सीओ.गंदप्पामक्खिाणं समणोबासगाणं चूर्णी | एगा सयसाहस्सी अउणचरिं च सहस्सा उकासिया०, महामुन्बयपामोखाणं समणोवासियाणं तिमि सयसाहस्सीओ छत्तीस च उपाद्धात सहस्सा, पचारि सया चाहसपुवीणं, पनरस सता आदीनाणीण, पनरस समा केवलनाणीण, पारस सता बेउब्बियाण, दस नासता विपुलमतीण, अट्ठसया यादीणं, सोलस सया अणुत्तरोववादियाणं । पासस्सण अरहतो पुरिसादाीयस्स अज्जदिनपामो॥१५९॥ |क्खाओ सोलस समणसाहस्सीओ, पुष्कचूलापामोक्खाओ अट्ठचीस अज्जियासाहस्सीओ, सुर्णदापामोक्खाणं समणोबासगाणं एगादा सयसाहस्सी चउसदिच सहस्सा, गदिणिपामोक्खाण समणोवासियाण तिथि सयसाहस्सीओ सचायीसं च सहस्सा उकोसिया, | अद्भुट्ठसया चोइसपुष्षीणं, चोइस सया ओहिनाणीणं, दस सया केवलनाणीण, एकारस सया बेउबियाणं, अट्ठमा सता विपुल-४ मतीणं, छस्सया वादीण.बारस सया अणुत्तरोववाइयाणं । समणस्सणं भगवतो महावीरस्स इंदभूतिपामोक्खाओ चोइससमणसाहस्सीओ, अज्जचंदणापामाक्खाओ छत्तीस अज्जियासाहस्सीओ, संखसतगपामोक्खाणं समणीबासगाणं एगा सयसाहस्सा अउणहिच सहस्सा सुलसारेवतिषामोक्खाणं समणोबासियाणं तिनि सयसाहस्सीओ अट्ठारस य सहस्सा, तिमिसया चोइसपुब्बीणं अजिणाणं जिणसंकासाणं सबक्खरसभिवादाणं जिणोचिव अवितहं वागरमाणाणं उकोसिया चोहसव्विसंपया होस्था, तेरस सया ओहिनाणीणं का अतिससप्पचाणं उक्कासिया०, सच सया केवलनाणीण संमित्रवरणाणदसणधराण उक्कासिया, सत सया बेउयाण अदवाण ४ ॥१५९॥ ' देविडिपत्ताणं उक्कोसिया०, पंच सया विउलमताणं अट्ठाइजेमु दीपसमुदसु सबीण पज्जत्तयाण पंचिदिगाणं मणोगते भावे जाणंतिला 4 दीप अनुक्रम %%%AR. 3. (165) Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥ १६०॥ % ग “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) भाष्यं [५-३० ] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [१६५/२६५-३१६], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 पासंति उक्कोसिया०, चत्तारि तया वादीणं सदेवमणुयासुराए परिसाए वादे अपराजिताणं उक्कोसिया, अड सया अणुत्तरोववाइयाणं गतिकल्लाणाणं ठितीकलाणाणं आगमोसभदाणं उक्कांसिया अणुत्तरोववासियाणं संपवा होत्था ॥ "तिथं गणो० ॥ २ । १६५ ।। तित्थं चाउव्यत्रो संघी, गणा जस्स जत्तिया गणहरा य, धम्भोवातो पचयणं, परियाओं हित्थच्छउमरथकेवलिपरियाओ जस्स जत्तिओ, अंतकिरिया केण कहिं काए बेलाए कस्स व केण तवोकम्मेण अंतकडा केवति परिवाराए, एवं सव्वं गाहाहिं जहा परमाणुयोगे तब इहोप बन्भिज्जाते वित्थरता । एत्थ पढमतित्थगरस्स निक्खभणं वयवं तं गाहाहिं भणितं. सहवि विभासाह इच्छावेति से य उसमे कोसलिए पढमरावा पढमभिक्वायर पढमजिणे पढमतित्थयरे, दक्ले दक्खपने पडिवे अली मद्दए विणीते वीसं पुब्वसय सहस्साई कुमारवासमज्झे वसति, तबहिं पुब्बलय सहस्साई रज्जवास मज्झे बस ते०वसमाणो लेहादीयाओ गणित पहाणाओ, सउणरुपपज्जव सामाओ बावन्तरि कलाओ तेवट्टि च महिलागुणे सिप्पस च कम्माणं तिनिधि पयाहियद्वाए उपदिसति उबदिसित्ता पुत्तस रज्जसते अभिसिंचति, पुणरचि लोयंतियहि जीयकष्पितेहि देहि संयोति संयच्छरथं दाणं दाऊणं भरहे विणीताए, बालि बहलीए, अन् य कच्छमहाकच्छादयो वेत्ता, अने भणति एते साहस्थिपरिवारा अणुपव्वतिया तदा, सामी उहिं सहस्सेहिं सद्धि पव्यतितो, चेत्तबहुलमी दिवसस पच्छिमे भाए सुंदरणाए सीयाए सदेवमणुयागुराए परिसाए समणुगम्ममाणमरगे जाव विणीत रायहाणि मज्यांमज्ोणं निग्गच्छति, निम्मच्छित्ता जेणेव सिद्धत्थपणे उज्जाणे जेणेव असोगदरपायवे तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता असोगस्स हेडा जाव सतमेव चउमुडिओ, छडे भत्ते अपायएणं आसाढाहिं णक्ख तेहि उग्गाणं (166) श्री ऋषभचरित्रं ॥१६०॥ Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१६५/२६५-३१६], भाष्यं [५-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणौँ सुना दीप भोगाणं राइनाणं खत्तियाण चउहिं सहस्सेहिं सद्धि एग देवदूरामादाय जाव पच्चइते, उसमे णं अरहा कोसलिए संवच्छर साहियं श्रीऋषभआवश्यकचीवरधारी होत्था, तेसि पंचमुहिओ लोओ सयमेव, भगवता पुण सकवयणेण कणगावदाते सरीरे जडाओ अंजणे रेहाओ इव रहतीओ ५ उवलभातिऊणहिताओ तेण चउमुडिओ लोओ, सब्बतित्थगरावि यणं सामाइयं करेमाणा भणंति करेमि सामाइय,सव्यं सावज जोगी पच्चक्खामि जाव वासिरामि, मदंतित्ति ण भणंति, जीतमिति । एवं भगवं सामाइयादि अभिग्गहं घेत्तु वोसट्टचत्तदेहो विहरति, वोसट्ठोति निप्पीडक्कम्मसरीरतया, चत्तो उवसग्गादिसीहष्णुतया तथा च अञ्छिपि णो पमज्जिज्जा णोवि य कंहइयए मुणी गातं । एवं ॥१६॥ जाब विहरति, ताय दुवे नमिविणमिणो कच्छमहाकच्छाणं पुत्ता उवहिता, भगवं विनवेन्ति-भगवं! अम्हं तुन्भेहि संविभागो ण सेकेणवि वत्थुणा कतो. स पढे बद्धकवया ओलग्गति विनवेति य, तातो! तुम्भेहिं सब्बेसि भोगा दिना अम्हेऽवि देह, एवं तिसझं। ४ओलग्गति, एवं कालो बच्चति, अभया धरणो णागकुमारिंदो भगवं वंदओ आगओ, इमेहि य विनवितं, सो ते तह जातमाणे। भणति-भो मुणह भगवं चत्तसंगो गतरोसतासो ससरीरेऽवि णिम्ममत्तो अकिंचणो परमजोगी णिरुद्धासबो कमलपलासणिरुवलेवचित्ती, मा एवं जायह, अहं तु भगवतो भत्तीए मा तुम्भं सामिस्स संवा अफला भवतुत्तिकाउं पढितसिद्धाई गंधव्वपनगाणं ही अडयालीसं विज्जासहस्साई देमि, ताण इमाओ चचारि महाविज्जाओ, तंजहा-गोरी गंधारी रोहिणी पन्नती, तं गच्छह तुम्भे | | विज्जाहररिद्धीए सजणजणवयं उवलोभेऊण दाहिणिल्लाए य गगणवल्लभपामोक्खे रहणेउरचकवालया (पमुहे य) पन्नासं सढि साच विज्जाहरणगरे णिवेसिऊणं विहरह, तेवि तं सन्चमाणत्तियं पडिच्छिऊणं वेयड उत्तरसेढीए विणमी सढि गगराणि गगणवल्ल-1 दाभप्पमुहाणि णिवेसेति, णमी दाहिणसेढीए रहनेउरचकवालादीणि पन्नास णिवेसेति, जे य जतो जणचयातो गीता मणुया तेसि । अनुक्रम (167) Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१६५/२६५-३१६], भाष्यं [५-३०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 स पत सत्रा आवश्यक उपोद्घात नियुक्ती ॥१६२॥ तमामा जणबदा चैयदेवि विज्जाणं वसतिकाया जाता, तंजहा-गोराणं गोरिगा, मणणं मणपुग्यगा, गंधारीणं विज्जार्ण गंधारा, श्रीऋषभमाणवीणं माणवा, केसिकाणं केसिकपुब्बिका, भूगीतुंगीवजाहिवतयो भूमीतुंडका, मूलबीरियाणं मूलवीरिया, संतुकाण संतुका, चरित्रं पटूकीर्ण पटूका, कालीण कालिकेया, समकीणं समका, मातंगीण मातंगा, पवतीणं पटवतेया, बसालयाण बंसालया, पंसुमू-* लियाणं पसुमूलिया, रुक्खमूलियाण रुक्खमूलिया । एवं तेहिं विणमिणमीहि विभचा अड्डह णिकाया, ततो देवा इव विज्जावलणं सयणपरियणसहिता मणुयदेवभोगे भुजंति, पुरेसु य भगवं उसभमामी देवयसभासु थावितो विज्जाधिट्ठायी य देवता ता सकेटू सके णिकाए दोहिवि जणेहिं पविमत्ताणि पुराणि मुताणं खत्तियाण य संबंधीणं च । ___णमि विणमि० ॥ ३ ॥ ९८॥ भगवंपि पितामहो मंगलालयो निराहारो परमधितिसतसारो सयंभूसागरो इव घिमितो अणाइलो विहरति, चतुर्हि सहसहि परिवुडो, जदि भिक्खस्स अतीति तो सामितो णे आगतोत्ति वत्थेहि आसहि य हत्थीहिं आभरणेहि कत्राहि य निमन्ति। . गषि ताव जणोणाशा९७॥ जेण जणो भिक्खं ण जाणति दाउं तो जे ते चत्तारि सहस्सा ते भिक्खं अलभता तेण माणेण घरंपि ण वच्चंति भरहस्स य भएणं, पच्छा वणमतिगता ताबसा जाता, कंदमूलाणि खातिउमारद्धा, भगवं च वरिसं आणसितो जत्थ जस्थ समुदाणस्स अतीति तत्थ तत्थ एस परमसामी अम्हंति.ण जाणति दायव्यं किंति, ॥१६॥ भगवऽपदाण० ॥३॥ ९९॥ गयपुरसंग्जंसो खोयरसदाण॥३॥ १०३।। छउमत्था य परिसं पहलीअंडबहल्लाहला विहरिऊणं गजपुरं गतो, तत्थ भरहरस पुत्तो सेज्जंसो. अने भणति-बाहुबलिस्स सुतो सोमप्पभो सेयसो य, ते य दोऽपि जणा* ASEASEAN दीप अनुक्रम (168) Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIC दीप माणगरसेंद्रीय समिणे पासंति तं तर्णि, समागता य तिथिवि सोमस्स समीच कहेंति, सेयसी-सुणह अजं मया जं सुमिणे दि8-मेरू यांमादि किल चलितो इहागतो मिलायमाणप्पभो मया च अमयकलसेण अभिसित्तो साभावितो जातो पडिबुद्धो यऽम्हि, सोमो कहेतिउपोद्घात स्वप्न सुणह सेयंस! मया दिट्ठ-सूरो किर पतितरस्सी जाओ, तुमे य से उक्खिनाओ रस्सीओ ततो य भासमुदतो जातो। सेट्टीवक्तव्यता भणती-सुणह जै मया दिह-अज किल कोयि पुरिसो महप्पमाणो महता रिखुवलेण सह जुज्झतो दिट्ठो, तो सेज्जंस सामी व से ॥१६॥ सहायो जातो, ततो अणेण पराजितं परबलं, एवं दह्ण म्हि पडिबुद्धो । ततो तेसिं सुमिणाणं फलमविंदमाणा गहाणि गता, भगवपि अणाइलो संबच्छरखमणसि जाव अडमाणो सेयसभवणमतिगतो, ततो से पासायतलगते आगच्छमाणं पितामहं पस्सभाणी चिंतेइ कत्थ मन्ने मया एरिसीव आकिती दिदुपुब्बत्ति? मग्गणं करेमाणस्स सदावरणखतोवसमेण जातिस्सरणं जातं, सो य पुच्चभवे सामिस्स सारही आसि, तत्थषि अणुपवइतो, तेण य सुतं-जहा भरहे एस पढमतित्थगरो भविस्सतित्ति, तं एस भगवंति, संभंतो उाढतो, एयरस सव्वसंगविवअगस्स भत्तयाणं दायव्यंति, भवर्णगणे व तस्स खोयरसकलसे पुरिसो पणीते, ततो परमहरिसित अधयसुमहग्यदूसरयणसुसंवुते सरससुरभिगोसीसचंदणाणुलित्तगतो सुतिमालावनगविलेवणाविद्धमणिसुवष्णे काप्पितहारद्धहारतिसरयपालंयपलंबमाणे कठिसुत्चयकतसोभे पिणद्धगेवेजअंगुलेजगललियंगयललियकतामरणे वरकडगतुडियथंभितभुजे आहियस्वसस्सिरिए कुंडलउजोतिताणणे मउडदित्चसिरजे हारोत्थयसुकतरइतवच्छे मुद्दियापिंगलंगुलीए पालंबपलंवमाणसुकतपडउत्तरिजे नाणामणिकणगरयणविमलमहरिदणिउणोपवितमिसिामसंतविरइयसुसिलिट्ठआषिद्धवीरवलए, किं बहुणा?, कप्परुक्खए चेव अलंकितप्राविभूसिते गरिंदे निवारितछत्तवरचामरे जयजयसदकतालोके अणेकगणणायगदंडणायगरातीसरतलपरमाइंबियकोईषियमंतिमहामंति अनुक्रम (169) Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घातः ५ नियुक्त ॥१६४॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [ ३९ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि :- 1 गणगदोचारियअमच्चचेडपीढमद्दगणिगमसे डिसेणावतिसत्थवाहदूतसंधिपाळ संपरिवुडे खिप्पामेव अन्भुट्ठेति अब्भुट्टेत्ता पाउयाओ ओयति ओमुयेता एगसाडितं उत्तरासंगं करेति, करेता अंजलिमउलियहत्थे भगवंतं सत्तट्ठ पयाई अणुगच्छति अणुगच्छित्ता | तिक्खुतो आयाहिणं पयाहिणं करेति, करेता वंदति नर्मसति, नमसित्ता ताहे सयं चैव खोयरसघडगं गहाय दव्यसुद्वेणं दायगसुद्वेण षडिगाहगसुद्धेणं तिविहेणं तिकरणसुद्धेणं दाणेणं पडिला भेस्सामित्ति तुट्टे भगवतो उवगते, भगवं कप्पेतित्तिः, सामिणा पाणी पसारिए सोहि पाणीसु, अछिदपाणी भगवं, उवरि सिहा, ण य छदिअइ, भगवतो एसा लद्धी, सो भगवता पारितो, एवं से पडिलाभमाणेऽ विट्ठे पडिला भितेऽवि तुट्टे, ते णं तत्थ पंच दिखाणि पाउन्भूयाणि, तंजहा बसुहारा बुढा, द्सद्धवन्ने कुसुमवासे णिवतिते, चेलुक्खेवे कते, पहतातो देवदुंदुभिओ, अंतरावियणं आगासे अहो दाणेरत्ति घुडे, तं च देवपूजणादि सेजसस्स सोऊण रिसयो रायाणो सोमप्पभादयो लोगा य परेण को ऊहल्लेण पुच्छंति सेजंसकुमारं सुमुह! किमती, ताहे सो ते पनवेति- एरिसा भिक्खा दिजतित्ति, एरिसा भिक्खा एरिसगाणं दिज्जति, एतेसि दिने सोग्गई गम्मतित्ति, ते भणंतिकहं तुमं विचार्य जहा भगवतो परमगुरुस्स भिक्ख | दायव्वन्ति, कोहि णे परमत्थं, ताहे सो तेर्सि पकहितो, जहा- मम पितामहस्स दिविखयस्य रूपदंसणे चिंता समुप्पन्ना- कत्थ मन्ने एरिसरुवं दिडुपुच्वंतिः वियारेमाणस्स बहुभवितं जातीस्सरणं समुप्पन्नं, ततो मया णायं भगवतो भिक्खादाणं, ततो ते परमविम्हिता भांति साह के रिसोऽसि केसु भवेसु आसी ?, ताहे सो तेसिं अपणो सामिस्स य अट्ठभवरगहणाणि कहति, जहा वसुदेवहिंडीए, ताणि पुण संखेवतो इमाणि, तंजहा सेयंसो भणति इतो सत्तमे भवे मंदरगंधमावणणीलवंतमालवंत मज्झवत्तणीय सीतामहानती मज्झविभिन्नाय उत्तरकुराय अहं अत्र भगवंत ऋषभ एवं श्रेयांसस्य पूर्वभवानां संबंधानां वर्णनं क्रियते (170) भगवत् श्रेयांम भवाः ॥१६४॥ Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 डा.भवाः सत्राक दीप | मिथुणइत्थिया भगवं तु पुण मम पितामही मिथुणपुरिसो आसि, ततो वयं तमि देवलोगभृते दसबिहकप्पतरुप्पभवमोगे भगवत्आवश्यक समुदिताई कदाति उत्तरकुरुदहतीरदेसे असोगपादवच्छायाए बेरुलियमणिासलातले गवणीतसरिसफासे सुनिसचाई अच्छामो, श्रयांसदेवो य तंमि दहरे मज्जिउं उप्पतितो गगणदेस, ततो तेण नियगप्पभावेण दसदिसाओ पभासिताओ, ततो सो मिहुणपुरिसो तमुप्पिंजलकं पस्समाणो किंपि तेण चिंतऊग मोह उवगतो, कहमवि लद्धसबो भपति- हा सर्यप्पमे! कत्थसि!, देहि मे पडिवयणं ति, तं च तस्स वयणं सोऊणं इत्थियावि कत्थ मन्ने मया सयंप्पभाभिहाणं अणुभूतपुवंति चिंतेमाणी य तहेव मोहमुवगता, पच्चा॥१६॥ द्रा गतसण्णा भणति-अज्जऽहं संयंप्पभा, जीसे भे गहितं णामंति, ततो सो पुरिसो परं तुट्टिमुब्वहंतो भणति- अज्जे ! कहेहि मे कह तुम सबप्पमा, ततो सा भणति-कहेह में जं मया सुयाणुभूतं, अस्थि ईसाणा नाम कप्पी, तस्स मज्झदेसाओ उत्तरपुरस्थिमे * दिसीभाए सिरिप्पभं णाम विमाण, तत्थ य ललितंगयो पभू, तस्स सयंपभा अग्गमहिसी, सा य बहुमया आसि, तस्स य देवस्स है तीए सह चेव दिव्वविसयसुहसागररतस्स बहु कालो दिवसो इव गतो. कयाई च चिंतारो अप्पतेओ मल्लदामो अहोदिट्ठी ज्झाय माणो विनवितो मया सपरिसाए- देव : कीस विमणा दीसह ?, को मे माणसो संतायो ?, ततो भणति-मया पुन्वभवे थोवो कतो | तवो, ततो में तुम्मेहि विष्पजुज्जिहामित्ति परो संतावो, ततो अम्हेहिं पुणरवि पुच्छिओ- कहेह तुन्भेहिं कहं तवो कतो ट्र किह वा इमो देवभवो लद्धोति ?, ततो भणइ-जंबुद्दीवगअवरविदेहे गधिलावतिविजए गंधमायणवक्खारगिरिवरासना वेयड्वपव्यते गंधारा णाम जणवतो, तत्थ समिद्धजणसेवितं गंधसमिद्धं णगरं, राया राजीवविबुद्धणयणो जणवयहितो सतबलस्स रमो नत्तुतो | ॥१६॥ १५ अतिबलसुतो महाबलो नाम, सो अहं पितुपितामहपरंपरागयं रज्जासिरिमणुभवामि, मम य बालसहा खत्तियकुमारो सयंबुद्धो, अनुक्रम SAMAC% (171) Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भगवत् सत्राका उपोद्घाता ॥१६॥ श्री जिणवयणभावितमयी सभिन्नसोतो पुण मे मंती बहूसु कज्जेसु पडिपुच्छणिज्जो, समतिथिए काले बहुमि कदायि गीयपडिआवश्यक रचो णच्चमाणि पट्टियं पासामि, सयंबुद्धेण विनावियं-देव! गीयं विलवितं बियाणउ पुरिसस्स णट्ट विडवणा आभरणाणि भारो श्रेयांसचूणी कामो दहावहो, परलोगहिते चित्र निवेसियवं, अहितो बिसयपडिबंधो असासते जीवितेत्ति, ततो मया रातिणा भणितो-कई गीत। भवाः पापासवणामतं विलावो ? कई वा गर्छ णयणभुदयं विडंबणा कहं बा देहविभूसणाणि भूसणाणि भारं भाससि लोगसारभूते य कामे ट रतिकर दुक्खाबहेत्ति ?, ततो असंभंतण सयंबुद्धेण भणित- सुणह सामी ! पसन्नचित्ता जहा गीतं विलावो, जहा- काइ इस्थिया | परसितपतिका पतिणो सुमरमाणी तस्स समागमकखिता समतीय भत्तुणोऽतिगुणे विकप्पेमाणी य दोसु पच्चूसेसु दुहिता विलदिति, भिच्चो वा पभुस्स पसायणनिमित्तं जाणि बयणाणि मासिति पणतो दासभाये अप्पाणं ठवेऊण सो विलावो, तहेव इत्थी पुरिसो वा अनोऽन्नसमागमाभिलासी कुवितपसायणणिमित्त वा जाओ काई मणवाइयाओ किरियाओ पउजति, ततो कुसलजणचिंतिताओ विविहजोणिनिबद्धाओ गीतंति बुञ्चति, तं पुण चितेह सामी! कि विलावपक्खे वट्टतिसि । इयाणि गर्ल्ड मुणह। जह विलंबणा, इत्थी पुरिसो वा जो जक्खाइट्ठो परवत्वब्बा मज्जापीतो वा जातो कायविक्खेवाईओ किरियातो दंसेति, जाणि | वा वयणाणि भासति सा विलंबणा, जति एवं०, जोऽवि इत्थी पुरिसो वा पभुणो परितोसणिमित्चणितोयितो धणवइणो वा बिउ४ सजणणिवद्धविहिमणुसरंतो जे पाणिपादसिरणयणाधरादी संचालेति सा विडंबणापरमत्थओ आहरणाणिीव भारोत्ति महेयवाणि, जो सामिणो णियोगेण मउडादीणि आभरणाणि पलगिताणि बहेन्ज सो अवस्स पीलिजति भारेण, जो पुण परविम्हयनिमिर्च ॥१६६॥ वाणि चेव जोग्गेसु सरीरत्थाणेसु सनिवेसिताणि वहति सो रागेण ण गणेति भारं, अत्थि पुष सो, जोऽवि परितोसनिमित्त दीप अनुक्रम (172) Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं - मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भवाः HEIT नियुक्ती ॥१ ॥ है। रंगगतो नेवत्थितो सुमहंतपि भर वहेज्ज, ण मे परिस्समोत्ति भावमाणो कज्जगरुयभार ण मणिज्ज वा भार तस्सवि भारो। आवश्यक परमत्थतो कामा दुविहा-सदा रूबा य, तत्थ सहमच्छितो मिगो सई सुहंति मनमाणो मूढताए अपरिगणितविणिवातो वहबंध-18 चूर्णी Xमरणाणि य पावति, तहेब इत्थी पुरिसो वा सोइंदियवसगता सद्दाणुवाती सद्दे साहारण ममत्तबुद्धी तस्स हेतुसारक्खणपरो। उपोद्घाता परोप्परस्स कलुसहिययो पदुस्सति, ततो रागदोसपहपडितो रयमादियति, तंनिमित्तं च संसारे दुक्खभायणं भवति । तहा रूवे रत्तो रूबे मुग्छितो साहारणे विसए ममत्तबुद्धी रूबरक्खणपरो परस्स पहसति संकिलडचित्तो य पावं कम्म समज्जिणति, तप्पभवं ६७ाच संसरमाणो दुक्खभायणं भवति, एवं भोगेसुबि गंधरसेसु फासेसु य मज्जमाणो परपि य पहसेतो मूढताए कम्ममादीयति, ततो | जातिजरामरणबहुल संसार परीति, तेण दुक्खावहा कामभोगा परिचितियाब्बा सेयस्थिणा, एवं भणंतो सयंबुद्धो मया भणितो-मम हिते ४ वट्टमाणस्स अहितोऽसि दुछु य मति वहसि जो में संसइयपदपरलोयसुद्देण विलोमतो संपतसुहं निंदतो दुहे पाडेतुमिच्छसि, ततो संभिन्नसोएण भणितो-सामी' सयंबुद्धो अंधुक इव मच्छकखी मंसपेसि विहाय जहा निरासो जातो तहा दिवसुहं संदिद्धसुहासया परिच्चयंतो सोतिहिति, सर्ययुद्धण भणितो-तुम जे तुच्छयमुहमोहितो भणसि को तं सचेयणो पमाणं करेज्ज',जो कुसलजणसंसितं रयणं | मुहागयं कायमणीए रत्तो णेच्छति तं केरिसं मनसि, तं संभिन्नसोय! अणिच्चतादि जाणिऊण सरीरविभवादीणं वीरा भोगे पजहिय तसि संजमेय ब्याणसुरसुहसंपादए जतंति । समिनसोतो मणति-सयंजुद्ध सस्का मरण होहिइति सुसाणे थाइउं', जहा टिटिभी गगणपडणसंकिता धरेउकामा उद्धप्पाया सुयति तहा तुम मरणं किर होहिइति अतिपयत्तकारी संपदसुहपरिच्चायमकालियं पसंससि | ४ |पचे य मरणसमये परलोगहितमायरिस्सामो, सयंबुद्धेण भणिय-मुद्ध! ण जुझे संपलग्गे कुंजरतुरगदमणं कज्जसाहणकं, ण वा णगरे| PRESEARS दीप अनुक्रम ॥१३७॥ Sex (173) Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 श्री आवश्यक उबर जवसमसिंघणोपादाणं, ण य गेहे पलिते कूवक्खणणं कज्जकरं, जति पुण दमणभरणखणणाणि पुष्यकयाणि भवंति तदा परवलमहणचिरसहणजलणनिव्वावणाणि सुहेण भवति, सहेब जो अणागयमेव परलोगहिते ण उज्जमति सो उक्कमंतेसु पाणेसु छिज्जमाणेसु ममत्तत्थाणेसु विसंवदितदेहबंधो परमदुक्खाभिभूतो किह परलेोगहितमणुडेहिति ?, एत्थ सुणाहि वियक्खणकहितं उपोद्घात ४ उबदेसं-कोति किर हत्थी जरापरिणतो गिम्हकाले कीच गिरिणदिं समुत्तरंतो बिसमे तीरे पडितो, सो सरीरगरूयसाए दुब्बलत्तणेण नियुक्तौ चूण ॥१६८॥ य असतो उडेडं तत्थेव कालगतो, बगसियालेहिं अपाणदेसे परिक्खइतो, तेण मग्गेण वायसा अतिगता, मंसम्यगं च उबजीवंता हिता, उण्हेण य उज्झमाणकलेवरो सो पएसो संकुचितो वायसा सुट्टा, अहो निराबाहं जातं रसियन्वं, पाउसकाले य गिरिनइपूरवेगेण य विच्छुच्भमाणं महानतिसोते पडितं तं पसं समुदं, मच्छमयरेहि य छिन्नं, ततो ते जलपूरितकलेवरा तेऽवि वायसा णिग्गया, तीरं अपस्समाणा तत्थेव निघणमुवगता, जदि पुण अणागतमेव णिग्गता होता तो दीहकाल सच्छंदपयारं विविहाणि मंसोदगाणि आहारेता, एयस्स दिŚतस्स उवसंथारो जहा वायसा तहा संसारिणो जीया, जहा इत्थिकलेवरपवेसो तहा मणुस्सवादीलाभो, जहा गयन्तरं संसोदकं तहा विसयसंपत्ती, जहा मग्गसभिरोहो वहा तन्भवपडिबंधो, जहा उदगसोयविच्छोभो तहा मरणकालो, जहा विवसणिग्गमो तहा परभवसंकमो एवं जाण संभिनसोय! जो तुच्छपणस्सरे धोकालिए कामभोगे परिचड़ना तवसंजमुज्जोयं काहिति सो सुगतिगतो ण सोयिहिति, जो पुण विसएस गिद्धो मरणसमयमुदिक्खति सो सरीरभेदे अगहितवाहेयो चिरं दुही होहिति मा जंबुक इव तुच्छषकप्पणामेतसुहपडिबद्धो विउलदीहकालिय सहमवमन्त्र, संभिनसोओ भणति कति?, सयंबुद्वेण भणितो- सुणाहि, कोति किर वणयरो वणे संचरमाणो वयत्थं हरिंथ पस्समाणो बिसमे पदेसे ठिओ एककंडसुप्पहारपाडतं गजं (174) भगवत्श्रेयांस भवाः ॥१६८॥ Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [९९/३१८-३४५], अध्ययनं - भाष्यं [३१-] प्रत IA भगवन HEISE है जाणिऊण धणु सजीवमवकिरिय परसुं गहाय दंतमोतिहेतुं गयं संलियमाणो हत्थीपडणपेल्लितण महाकारण सप्पेण खतितोश्रीम आवश्यक तत्थेव पडितो, जंबुकेण परिभमतेण दिडो हत्थी, समणुस्से भीरुत्तणेण य अवसरितो, मसलोलुयताए पुणो पुणो अल्लियति निझा चरिख चूर्णो यति य, निस्संकितो तुट्ठो अवलोकेति चितेति य-हत्थी से जावज्जीवियं मतं, मणुस्सो सप्पो य कंचि कालं पहोहिति जीवाबंधे या उपोद्घातात तके ताव खायामित्ति तूरंतो मंदबुद्धी, धणुकोडी पच्छिन्नपडिबंधा य, तालुदेसे भिवो मओ, जदि पुण अप्पसारं तुच्छति हत्थी- श्रेयांसनियुक्ती मणुस्सोरगकलेवरेसु सज्जतो तो ताणि अाणि य चिरं खायतो, एवं जाण जो माणुसयसोक्खपडिबद्धो परलोगसाहणकज्ज- भवाः ॥१६९॥ दानिरवेक्खो सो जंबुको इव विणस्सिाहिति, जंपि य पह संदिदं परलोग तप्पभवं च सोक्ख, तं अस्थि, सामि ! तुम्मे कुमारकाले सह मया गंदणतोवणं देवुज्जाणमुबगता, तत्थ देवा ओवतिता, अम्हे ते दळूण अवसरिता, देवो य दिव्वाय गतीय खणण पत्तो अम्ह समावं, भणिता यऽणेण अम्हे सोमरूविणा- अहं सयबलो महबल ! तब पितामहो, रज्जसिरिमवउज्झिऊण चिन्नचओ लंतए। । कप्पे अहिवती जातो, तं तुम्भेवि मा पमादी होह, जिणवयणे भावह अप्पाणं, ततो सुगति गमिहिहत्ति, एवं बोत्तण गतो देवो. जति सामि! सुमरह ततो अस्थि परलोगोत्ति सदहह, मया भणितो- सयंबुद्ध सुमरामि पितामहदरिसणंति, लद्भावकासो भणति-I सुणह पुष्ववत्-तुम्भं पुष्वको कुरुवंदो नाम राया आसि, तस्स देवी कुरुमती, हरियंदो कुमारो, सो य राया णस्थियवादी, इंदिय-| समागममेतं, पुरिसस्स परिकप्पणा मज्जंगसमवादे मदसंभव इव, ण एतो वतिरित्तो, ण परमवसकमसीलो आत्थि, ण सुकयदुक्क-ल मायफलं देवणेरइएK कोति अणुभवातत्ति ववसितो बहूणं सत्ताणं वहाय समुट्टितो खुर इव एगंतधारो निस्सीलो णिवतो, ततो तस्स ॥१९॥ एतकम्मरस बहू कालो अतीतो, मरणकाले य अस्सातवेयणीयबहुलताए णरगपडिरूवकपोग्गलपरिणामो संवुत्तो, गीतं सुतिमधुरं || दीप अनुक्रम (175) Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री 18| अक्कोसंति मनति, मणोहराणि रूपाणि विकताणि पस्सति, खीरं खंडसक्करोवणीतं प्रतियंति मनति, पंदणाणुलेवणं मुम्पुरं वेदेति,18| आवश्यकता हंसतूलमउई सेज कंटकिसाहासंचयं पडिसंचतेति, तस्स य तहाविहं विबरीतभावं जाणिऊण कुरुमती देवी सह हरियंदेण पच्छन्नद्रा चरितं चूर्णी | पडियरति, सो य कुरुचंदो राया एवं परमक्खितो कालगतो, तस्स य नीहरणं काऊण हरियंदो सजणवयं गंधसमिळू जातेण उपोद्घात भगवत् श्रेयांस नियत पालेति, तो य से तहाभूतं पितुणो मरणमणुचितयंतस्स एवं मती समुप्पा -अस्थि सुकयदुक्कताण फलंति, ततो यणेण एगो ख भवाः दित्तियकुमारो वालवयंसो संदिट्ठो- भदमुह ! तुम पंडियजणोबदि8 धम्मसुई मे कहयसु, एसा ते सेवत्ति, ततो सो तेण णियोगेण जं ॥१७०112 | धम्मसंसितं वयणं सुणहतं तं राइणो निवेदेति, सोऽबि सद्दहतो सीलताए तहेच पडिवज्जति, कयाई च णगरा गाइदूरे तहारू वस्स साधुणो केवलणाणुप्पत्तीमहिमं काउं देवा उवागता, तं च उबलभिऊण सुबुद्धिणा खत्तियकुमारेण रनो निवेदित हरियंदस्स, सोऽवि देवागमपाविम्हितो जतिणतुरगारूढो गतो साधुसमीब, बंदिऊण विणएण णिसन्नो सुणति केवलिपिणिग्गय चयणामयं संसारकहं मोक्खकई सो, सोऊण अस्थि परभवजम्मोत्ति नीसंकितं जातं, ततो पुच्छति कुरुचंदो राया- मम पिता भगवं! के गई गतोत्ति, ततो से भगवता कहितं विवरीतविसयोपलंभणं सत्तमपुढपिनेरइयत्तं च, हरियंद! तव पिता अणिवारितपावासयो बहूर्ण सत्ताणं पीलाको पावकम्मगरुयताए णरगं गओ, तत्थ परमदुव्विसई निरुवमं निप्पडिकार निरंतरं सुणमाणस्सबि सचेपणस्स भयजणणं दुक्खमणुभवति, तं च तहाविहं केवलिणा कथितं पितुणो कम्मविवागं सोऊण संसारमरणभीरू हरियंदो राया कंदिऊण 8 ITU१७०॥ | परमारास सणगरमतिगतो, पुत्तस्स रायसिरि समप्पेऊण सुबुद्धिं संदिसति-तुम मम सुयस्स उवदेस करज्जासित्ति, तेण विनवितासामि ! जदि आई केवलिणो वयणं सोऊण सह तुम्भेहि ण करेमि तब तो मेण सुतं, जो पुण उवदेसो दायष्योति संदिसह तं मम दीप अनुक्रम (176) Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE दीप श्री | पुत्तो सामिणो काहितित्ति, राया पुनं संदिसति- तुमे मुवद्धिमतसंदेसा काययो धम्माहिमारेति, तुरितं निग्गतो सीहो इव श्री आवश्यक पलितागीरकंदराओ, पब्बइतो केवलिसमीवे सह मुबुद्धिणा, परमसंवेगो सज्झामपसत्थाचतणपरो परिक्खवितकिलसजालो समुप्प- चरितं चूर्णी | उपोद्घात ४ाणणाणातिसतो परिणिचुतोति । मुणिमो तस्स य हरियंदस्स रायरिसिणो वसे संखातीतसु णरवती धम्मपरायणेसु समतीतसुमगवत् तुम्मे संपर्य सामिणो, अहं पुण सुद्धिवंसे, तं एस अम्ह नियोगो बहुपुरिसपरंपरागओ धम्मदेसणाहिगारे, जं पुणेत्थ मया अकंडे श्रेयांस विभवितो तं कारणं सुणह-अज्ज गंदणवणं अहं गतो आसि, तत्थ य मया दिवा दुवे चारणसमणा--आदिच्चजसो अमियतेयो य,18 ॥१७१॥ ते मया बंदिऊण पुच्छिया- भगवं! महावलस्स रनो केवतियं आउं धरतिति ?. तेहिं णिदिई-मासो सेसो, ततो संभंतोमि आगतो, |एस परमत्थो, जं जाणह सेयति तं कीरतु अकालहीण, ताणि य उवदेसक्यणाणि सयंबुद्धकहियाणि सोऊण अहं धम्माहिमुहो आउपरिक्षयसुतीतो आमकमतियमायणमिव सलिलपूरिज्जमाणमवस्सं ण हिताय भीतो सहसा उहितो कयंजली संयंबुद्ध सरणमुव- । गतो, वयंस ! किमिदाणिं माससेसज्जीवितो करिस्सं परलोगहितंति ?, तेण चम्हि समासासितो-सामि ! दिवसोवि बहुओ परिचत्तसव्वसावज्जजोगस्स, किमंग पुणो मासो ?, ततो तस्स वयणेण पुत्तसंकामियपयापालणयावारो ठितो म्हि सिद्धायतणे, कय| भत्तपरिच्चातो संथारकसमणो सर्यचुद्धोवदिढजिणमहिमासंपायणसुमणसी अणिच्चयं संसारं दुगुंछ पातोवगमणकहं च बेरग्गजगणिं सुणमाणो कालगतो इहायातो । एवं थोबो मे तवो चिनोति । एवं च अञ्जललितंगएण देवेण कहितं मम सपरिवाराए, ईसाणदेवरायममीवातो य दढधम्मो नाम देवो आगतो भणति-लालयगय ! देवराया गंदीसरदीयं जिणमहिम 18॥१७१॥ FC काउं च अतिन्तिात्तिगच्छामि अहं, विदितं ते होउत्ति सो गतो, तओ अहं अञ्जदेवसाहता इंदाणत्तीय अवस्सगमणं होहिति अनुक्रम (177) Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEISE नियुक्ती - वाणि चेव बच्चामिति गतोमि मंदिस्सरं दीवं खणेण, महिमा कया जिणाययणेसु, तिरियलोगे य तित्थयरवंदणं : आवश्यक कुणमाणो सासयचेतियपूर्य च, चुतो ललियंगतो , परमसोगग्गिडज्झमाणाहियया चिंतासो० गता सपरिवारा सिरिप्पमंडू चरितं चूर्णी भगवत्उपोद्घाव | विमाण, परिमुचमाणसोमं च मम दट्टण आगतो सयंबुद्धो भणति-सर्यपभे! जिणमहिमं कुणसु चयनकाले,ततो ते बोहिलाभा श्रेयांस| भविस्सतित्ति, तस्स वयणं परिग्गहेऊण अंदीसरदीवे तिरियलोगे कयपूया य अहमबि लुता समाणी जम्बुद्दीवकविदेहे पुक्खला भवाः वितिविजये पोंडरिगिणीय णगरीय वइरसेणस्स चक्कवट्टिस्स गुणवतीय देवीय दुहिता सिरिमती णाम जाया, साई पितुभवणप- ॥१७२।। तुमसररायहंसी धातीजणपरिग्गहिता जमगपव्वयससिता इव लता सुहेण वडिया, गहिता य कलाओ अभिरमिताओ, कयाई च पदोसे सव्वतोभद्दकपासादमभिरूढा पस्सामि णगरवाहि-देवसंपातं, ततो चिंतापराय मे सुमरिया देवजाती, सुमरिऊण य दुक्खेणा-131 हता मुच्छिता परियारियाहिं जलकणकासत्ता,ततो य पचागता चितमि कत्थ मने पिओ मे ललितंगतो देवोत्ति,तण य मे विणा किं जणेण ट। आभट्ठणति मूगत्तण पगता, भणति परियणो-जंभकेहि से वाया अक्खिता, कतोय तिगिच्छिएहिं पयत्तो बलिहोममतरक्खाविहाणहि, । अहंपि मूललक्खंण मुयामि,लिहिऊण य आणति देमि परियारिकाणं,पमदवणगं तं च,मम अम्मघाती पंडितिया णाम विरहे भणति-धाती | मम हिययगतं अत्थं पसाहहित्ति, कहेमि से सम्भूयं, ततो मया भणिता-अम्मो! अस्थि कारणं जेणहं मूकत्तं करेमिाति,ततो सा तुहा | भणति-पुत्ते ! साहसु मे कारणं, सोऊण जह भणसि तह चेहिस्सं, ततो मया भणिता, सुणाहि-अस्थि धातकीखंडे दीवे पुष्वविदेहे | | मंगलालए मंगलावतिविजए णदिग्गामो णाम सनिवेसो, तत्थ अहं इतो तइयभवे दरिदकुले सुलक्खणसुमंगलवनिकास-12॥१७२।। मातातीर्ण छाई भतिणीण पच्छतो जाता, ण कतं च मे णाम अम्मापिऊहिं, निनामियत्तितषामि, सकम्मपडिबद्धा य तेर्सि अप-18 दीप अनुक्रम RECRUARREx (178) Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती श्रीऋषभ चरितं भगवत्श्रेयांसभवाः सत्रा ॥१७॥ विवसा अणुभवमाणा बहुकालं गमेति, तिरियावि सपक्सपरफ्क्खजणिताणि सीउण्हखुहाप्पिवासादियाणि य जाणि अणुभवति बहुणावि कालणं ण सका बोर्ड, तब पुण साहारणमुहदुखं, पुब्बसुकयसमीजयं अबेसि रिद्धिं पस्समाणा दुहितमप्पाणं तकेसि, जे तुमातो हीणा बंधणाकारेसु किलिस्संति, आहारपि तुच्छकमाणई भुजमाणा जीवितं पालति, तेवी ताव पस्ससुत्ति, मया पणताए जह भणह तहात्ति पडिस्सुतं, तत्थ य धम्म सोऊण केऽवि पब्बइया केषि गिहवासजोग्गाणि सीलब्बयाई पडिवना, मया बिनविता-जस्स नियमस्स पालणे सत्ता मि तं मे उपदिसह उत्ति, तओ मे तेहिं पंच अणुच्चयाई उवदिवाणि, वंदिऊण परितुट्ठा जणेण सह णदिग्गाममागता, पालेमी वताणि संतुहा, कुटुंबसंधिभागेण परिणताय संतीये चउत्थच्छट्ठड्डमेहि खमामि, एवं काले गते काम्मिबि कयभत्तपरिच्चाया रातो देवं पस्सामि परमर्दसणीयं सो भणति-निमामिकेपस्स मं, चितेहि व होमि एयस्स भारियात्ति, ततो मे देवी भविस्ससि, मया य सह दिव्वे भोए भुजिहिसित्ति वोत्तण असणं गतो, अहमवि परितो। सविसप्पितहिदया देवदंसणेण लभेज्ज देवतति चिंतऊण समाहीय कालगता ईसाणे कप्प सिरिप्पमे विमाणे ललितंगयस्स देवस्स अग्गमहिसी सयंप्पभा नाम जाता, ओहिणाणोपयोगविनातदेवभवकारणा य सह ललियंगएका जुगंधरे गुरुयो वदितुमवतिबा, तं समयं च तहेव अंबरतिलके मणोरमे उजाण समोसरितो सगणो, ततोऽहं परितोसविसप्पितमुही तिगुणपयाहिणपुर्व | णमिऊण शिवेतियणामा णट्टोपहारेण महेऊण गता सविमाण, दिब्वे कामभोगे देवसाहता णिरुम्सुगा बहुं कालं अणुभवामि, देवो य सो आउपरिक्खएण अम्मो! चुतो,ण याण कत्थ गोति?, अहमधि य तस्स विओगदुक्सिता चुता समाणी इह आयाता, |देबुज्जोयदसणसमुप्पनजातिस्सरणा य तं देवं मणसा परिवहंती मृयत्तणं करेमि, किं मे तेण विणा सैलावणं कतेणंति', एस दीप अनुक्रम १७४।। (179) Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका भवाः दीप | साणं जीवामि, ऊसवे य कदाति अडकडिंभाणि णाणाबिहभक्खहत्थकयाणि सगेहेहितो निग्गयाणि, ताणि य दळूण मया माया जाइता- श्रीऋषभ अम्मो ! देहि मे मोदकं अब वा भक्खं जाच डिभेहि समं रमामिात्ति, तीय रुट्ठाय हता णिच्छटा य गेहातो, कतो ते इह भक्खं', वासु चरितं चूर्णी | अंबरतिलकपव्वयं, फलाणि खादिसु मरसु वत्ति, तो रावती निम्गया निसरणं विपग्गमाणी, दिडो व मया जणो अंबरातिलकप-2 उपोद्घात भगवत्H INच्चयाभिमुहो पस्थितो, गता मि तेण सहिता, दिट्ठो मया पुहवितिलको विविहफलनमिरपादवसंकुलो कुलगरभूतो सकुणमिगाणं | श्रयांस |सिहरकरेंहिं गगणतलमिव मिाणतुं समुजतो अंबरतिलको गिरिवरो, तत्थ य गेण्हति जणो फलाणि, मयापि य रुक्खपडितानि ॥१७३॥6 सादाण फलाणि भक्खिताणि, रमणिज्जताए य गिरिवरस्स संचरमाणी सह जणेण सुणामि सई सुतिमनोहरं, तं च अनुसरंती |गता मि तं पदेसं सह जणेण, दिट्ठा य मया जुगंधरा णाम आयरिया विविहनियमधरा चोद्दसपुची चउन्नाणी, तत्थ य समा-1 |गता देवा मणुया य, तेसि जीवाणं बंधमोक्खविहाणं कहयंता संसए विसोहेंता, ततो अहं तेण जणेण सह पणिवतिऊण णिसबा18| दएगदेसे, सुणामि तेसिं वयणं परममधुर, कहतरे य मया पुच्छिता भगवं., अस्थि मन्ने ममातो कोति दुक्खितो जीवो जीवलोगेत्ति?, ततो ते भणति-निनामिए! तुहं सदा सुभासुभा सुतिपहमागच्छति रूवाणिवि सुंदरमंगुलाणि पाससि गंधे सुमासुभे अग्घायसि रसेवि मणुभामणुने आसादिसी फासेवि इट्टाणिढे पडिसंवेदोसि, अस्थि य ते पडिक्कारो सीउण्हतण्हाछुहाणं निदं मुहागत सेवास | निवायपच्छबसरणा, सायावि ते अस्थि, तमसि जोतिपकासेण कज्ज कुणसि, जे य दासभतगा परवत्तब्वा नाणाबिहेसु देहपीलाक ॥१७३॥ | रेसु निउत्ता किलिस्संति, निच्चमसुभा सहरूवरसगंधफासा णिप्पडिकाराणि य परमदारुणाणि सीउण्हाणि छुहपिवाहसाओ य, ण य खणंपि निदासुह दुक्खसयपीलियाणं, निचंधकारेसु णरकेमु चिट्ठमाणा णिरयपालकीलमाणकरणसयाणि अनुक्रम (180) Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं - मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री . चरितं HEIGA चूर्णी भगवतश्रेयांसभवाः नियुक्तों परमत्थो, तं च सोऊण अम्मघाती ममं भणति-पुने मुटु ते कहितं, एतं पुण पुण्यभवचरितं पडिलहिज्जतु, ततो णं अहं हिंडावेआवश्यकामा हामित्ति. सोय ललियंगतो जति माणुसचे आयातो होहिति तो सचरितं दण जाई समरिहिति. तेण य सह णिव्यया विसय-र सुहमणुभविहिसिचि, सतो तीय अणुमते सज्जितो पडो विविहवत्राहिं वाट्टकाहि दोहिवि जणीहि, तत्थ य पढर्म नंदिग्गामो उपोद्घात लिहितो, अंबरतिलगपचयसंसितकुसुमितासोगतलसविसमा गुरवो य, देवमिथुणं च बंदणागतं, ईसाणो कप्पो सिरिप्पर्भ बिमाणे | सदेवमिथुणे, महाबलो राया सयंयुद्धसीमनसोयसहितो, निनामिका य तवमोसितसरीरा, ललियंगतो सयंपमा य सणाामाणि, ॥१७५।। ततो णिप्फनलक्खे धाती पट्टकं गहेऊण धातइसंड दीवं वच्चामित्ति उप्पतिता जाया केसपासकुवलयपलाससामं णभतलं, खणेण य णिवत्ता, पुच्छिता मया-अम्मो ! कीस लहुं नियत्नासित्ति, मा भणनि-पुत्ते !, मुणसु कारणं--इह अम्ह सामिणो तब पितुणो वरसवङ्माणणिमित्तं विजयवासिणो रायाणो बहुका समागता, तंजति इहेव हाहिति ते हिंदयमीणो दइतो ततो कतमेव । कति चिंतऊण णियत्ता मि, जति ण होहिवि इह तो परिमग्गणे करिस्सं जति, सुठुत्तिय मया भणिता, अचरज्जुगे गता पट्टगं गहाय पञ्चावरण्ढे आगता पसनमुही भणति-पुत्ने ! णिचुता होहि, दिट्ठो ते मया ललियंगतो, मया पुच्छिया-अम्म! साहमु कहति ?, सा भवति-पुत्ते ! मया रायमग्गे पसारितो पट्टको, तं च पस्समाणा आलक्खकुसला आगमपमाणं करता पसंसति. ज अकुसला ते वन्नरूवादीणि पससति । दुमरिसणरायसुतो य दुईतो कुमारो सपरिवारो सो मुहुनमत्तं पस्सिऊण मुच्छितो पडितो, SH कखणेण आसत्थो पुच्छितो मणुस्सेहि- सामि ! कथं मुच्छिता?, सो भणति चरितं णियकं पगलिखितं दृट्टण मे मुमरिना जाती, अहं ललियंगओ देवो आसि, सयंपभा मे देवित्ति, मया य पुच्छितो-पुत्त ! साहस को एस संनिवसो, भणति-पुंडरि दीप अनुक्रम ॥१७॥ .* (181) Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HET नियुक्ती दीप श्री 15| गिणी णगरिति, पव्वतं मेरुं साहइ, अणगारो कोऽवि एस वीसरिय ता मे णाम, कप्पं सोहम्मं कहेति, राया मंतिसहितो कोऽवि श्रीऋषभआवश्यकता एसोति, कावि एसा तवस्सिणी ण याणं से णामति, ततो उच्चाबच्चेति जाणिऊण मया भणितो पुत्त! संवतति सव्यं ते जम्मतरे, दा चरितं चूणौं । बीसरितं तेण किं , सच्चं तुम स ललितंगओ, सा पुण ते सयंपभा दिग्गामे पंगुलिया कम्मदोसण जाता, आगमे सुकुसलाए भगवत्उपोद्घात श्रेयांम ४|तं वणाए चरितं लिहितं तव मग्गणहउं, मम य धायइसंडं गयाय दिनो पट्टको, मया य अणुकंपाय तीसे तव परिमग्गणं कर्य, भवाः एहि पुत्त जा ते णेमि धायइसडंति, अवहसितो मित्तेहि-गम्मतु पोसिज्जतु पंगुलिन्ति, ततो अवकतो, मुहुत्तमेने य आगतो | ॥१७६॥12 लोहग्गलओ घणो णाम कुमारो, सो वच्चंतो लंघणाचरणेसु असमाणोति बदरजंघो भण्णते, सो उवगतो पट्टगं दट्टण ममं भणति केणेतं विलिहितं चित्तति, मया भणितो-किं निमित्तं पुच्छसि ?, सो भणति-मम एवं चरितं, अहं ललितंगओ णाम आसि, सयपभा मे देवी, असंसर्य तीय लिहितं, तीय वा उदेसवसेणति तकेमि, ततो मया पुच्छितो-जदि ते चरितं साहसु को एस संनि वेसोत्ति, णंदिग्गामो, एस पव्वतो अंबरतिलओ जुगंधरा आयरिया, एसा खमणकिलिन्ना णिण्णामिया, महम्बलो राया सयं-| दबुद्धसीभन्नसोपीह सह लिहितो, एस ईसाणो कपो. सिरिप्पमं विभाणं, एवं सब्बं सपच्चयं कहितं तेण, ततो मया तुट्ठाए भणितो जा एसा सिरिमती कुमारी पितुच्छाए ते दुहिता सा सर्यप्पभा जाव रन्नो निवेदेमि ताव ते लम्भतित्ति, सुमणसो गतो, ततो मि| 181 कयकज्जा आगता, पुरतो रबी निवेदेमि, ततो पियसमागमो भविस्सतित्ति एवं वोशूण गता। P१७६॥ .. ततो अहं सहाविता रना, देविसमीवे य पकहितो, सुणह- जो बसुमतीय ललियंगतो देवो आसि, जह णं अर्दु जाणं ण तहा सिरिमती, अवरविदहे सलिलावतिविजए वीतिसोगा य णगरी, जियसत्तु नाम राया, तस्स मणोहरी केकयी य दुवे देवीओ, तार्सि अनुक्रम (182) Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं - मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री अयलो विभीसणो य पुत्ता, उबर पितुमि विजयद्धं भुजंति बलदेवयासुदेवा, मणोहरी य बलदेवमाया, कमिवि काले गते पुतं आपु- आवश्यक च्छति-अयल ! अणुभूता मे भत्तुणो सिरी पुत्तसिरी य, पव्वयामि परलोगहियं करिस्स, विसज्जेहि मंति, सो णहेण ण विसज्जेति, चरितं चूर्णी निबंधे कए भणति-अम्मो ! जति णिच्छओ ते कतो तो मं देवलोगयाओ बसणे पडिबोहेज्जासित्ति, तीय पडिवन्न, पव्वतिता भगवत्उपोद्घातय, परमद्धितिवलेण एकारसंगवी वासकोडीतवमणुचरिऊण अपडिवतितवेरग्गा समाहीय कालगता लंतए कप्पे इंदो आयातो, तं श्रेयांसनियुक्तताच जाणह मम, बलकेसबा य बहुं कालं समुदिता भोगे मुंजंति, कताईच णिग्गया आणुयचं आसेहिं वातजोगेण अवहिता अडविंग भवा: ॥१७॥ पवेसिता, गोरहसंचरेण य ण विनातो मग्गो जगेण, दूरं गंतूण आसा वियना, विभीसणो य कालगतो, अपलो हेण ण याणति, मुच्छितोत्ति, गण मि सीतलाणि वणगहणाणि सत्थो भबिस्सीतति, अहं च लेतगकप्पगतो पुत्तसिणहेण संगारं च सुमरिऊण | 18| खणेणागतो, विभीसणरूवं विकुरुम्यिऊण रहगतो भणिओ चलो-तात! अहं विज्जाहरहिं समं जुज्झिउं गतो, ते मे पसाहिता, तुम्मे पुण अंतरं जाणिऊण केणवि मम रूवेण मोहिता, वच्चिमो णगरं, एयं पुण अहंति तुम्भेहि बूढे कलेवर, सक्कारेसु णं तु डहि-18 ऊण रहेण सणगरमागता, पूतिन्ज णे णयरे, घरेय एक्कासणणिसन्ना ठिता, ततो मया मणोहरिरूवं दैसित, संभंतो अयलो- अम्मो! | तुम्मेत्य कतोत्तिी, पव्यज्जाकालो संगारो य कहितो, विभासणमरणं, अहं लंतगाओ इहागतो तब पडिवोहणाणिमित्वं, परलोगहित चिंतीहि अणिच्चयं मणुयरिद्धिं च जाणिऊणति गतोमि सगकप्पं । अयलोवि पुत्तसंकामितसिरी णिन्विन्त्रकामभोगो पब्बतितो, तवमणु-IN... ॥१७७॥ चरिऊण ललियंगतो देवो जातो, अहं पुण सदेवीयं लंतग कप्पं नेमि अभिक्खणं, जाहे सुमरामि, सो सत्तणवभागे सागरोवमस्सा ह भोत्तृण देवसुई चुतो, तत्थञ्चो उबवन्नो, तंपि ललियंग एस मे पुत्तो चेवत्ति मि, एतेण कमेणं गता य सत्तरस, सिरिमती या दीप अनुक्रम (183) Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥१७८॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५] भाष्यं [ ३९ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 जं जाणति एसावि मे णीतपुष्वा सिणेहेण लंतयं कप्पं बहुसो, जाणामि णं सहावेह य बहरजंघंति, आणतो कंचुती आगतोय दिट्ठो मया परितोस विकसियच्छीए अच्छेरयभूतो सक्कलरयाणि करसोम्मवयणचंदो तरुणरविरस्सिबोहितपुंडरियलोयणो मणिमंडियकुंडलघट्टितपीणगंडदेसो गरुलातयतुंगणासो सिलपवाल कोमल सुरतदसणसणी कुंदमउलमालासिरिकर सिद्धिदसणपती वयत्यवसभ अवगणितखंधो वयणतिभाग सितरयणावलिपरिणद्धगावो पुरफ लिहायामदीहवाहु नगरकवाडोवमाणमंसलविसालबच्छो करयलसंगेज्झमज्झदेसो विमउलकयसरिच्छणा भी मिगपत्थिवतुरगवतिकडी करिकरकर णिज्जउ रुजुयलो । पिगूढजाणुपदेससंगतहारणसमाणरम| णिज्जर्जयो सुपतिट्ठिय कणगकुम्मसरिससकललक खणसंबद्ध चलणज्यलो पणतोय राइणो, भणिता य-पुत्त ! यर ! प सिरिमर्तिति, अवलोकिता यणेण अहं कलहंसेणेव कमलिणी, विहिणा य पाणि गाहिता मम तातेणेव वइरजघत्ति उभवणेण दिनं च उपवणं परिवारिओ ये विसज्जिताणि य अम्हे गयाणि लोहग्गलं, भुंजामु णिरुब्बिग्गं भोग, बहरसेणोऽवि राया लोगंतियदेवपडिवो हितो संवन्धरं किमिच्छयं दाणं दाऊण णिग्गयसुतेहिं णरवतीहि य भरितयससमेतेहिं सह | पव्यतितो पोक्खलपालस्स रज्जं दाऊणं, उपपष्ण केवलणाणो य धम्मं देखेति । ममवि काoण पुतो जाओ, सो मुहेण वडितो, कदा च पोक्खलपालस्स कति सामंता' विसंगतिता, तेण अम्हं पेसितं, एतु वइरजंघो सिरिमती य, अम्हे विउलेग खधावारेण पत्थिताई पुतं गगरे ठबैऊणं, सरवणस्स य मज्झण पंथो, पडिसिद्धा य मे जाणकजणेण, दिट्ठीचिसो सरवणे सप्पो, ण जाति ततो गंतुंति, परिहरता कमेणं पत्ता पोडरिगिणीं सुतं च तहिं णरवईहि वरजंघागमणं, ततो ते संकिता पंडिता, अम्हेऽवि पोक्खल| पालण रत्ना पूएऊण विसज्जिता, पत्थिताणि सणगर, भगति व जणो सरवणुज्जाणमज्झेण गंतव्यं, सप्पो विधिसो जातो, (184) श्री ऋषभ चरितं भगवतश्रेयांस भवाः ॥१७८॥ Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [९९/३१८-३४५], अध्ययनं - भाष्यं [३१-] HEIGA केवलणाणं तत्थढियस्स साधुणा उप्पलं देवा य ओपतिता, देवुज्जोएण य पडिहतं दिहिगतं विसं सप्पाणंति, ततो अम्हे कमेण श्रीऋषभआवश्यक पत्ताई सरवणं, आयासिताई, सागरसेणमुणिसेणा य मम भातरो अणगारा सगणा तत्थेव ठिता, ततो अम्हहिं दिवा तपलच्छि-15 चरितं पिडिहत्था सरदसरजलपसंतहिदया सारदसगलससिसोमदंसणा, ते य सपरिवारा परेण भत्तिबहुमाणेण वंदिता, सपरिवारा य फासु- भगवत् एण असणपाणखाइमसाइमेण पडिलाभिता, ततो अम्ह तेसिं गुणे अणुगुणताई: अंहा महाणभावा सागरसेणमणिसेणा, अम्हे- श्रेयांसविमुक्करज्जधुरवावाराई कयाई भन्ने हिस्संगाई विहरिस्सामोत्ति विरागमग्गमाइलाई कमेण पचाई सणगरं, पुत्तेण यणे अम्हंका भवा: ॥१७॥ बिरहकाले भिच्चयवग्गो दाणमाणेहिं रंजितो वासघरे य चिसधूमो पयोजितो, विसज्जितपरियणाणि य विगाले पतोसे अतिग याणि वासगिहं साधुगुणरयाणि, धूमदृसितधातूणि कालगयाणि इहायाताण उत्तरकुराएत्ति जाणामि, तं अज्ज ! जा पिण्णा मिया जा य सयपभा जा य सिरिमती सा अर्हति जाणह, जो महब्बलो राया जो य ललिपंगतो जो य वइरजंघो ते तुब्भे, एवं C. जीसे णाम गहितं भेसा अहं सर्वपमा । ततो सामिणा भणित-अज्जे! जाति समरिऊण देवज्जोयदंसणेणं चितीम देवभवे बाट DIहित्ति, ततो में सर्यपभा आमट्ठा, तं सच्चमेयं कहितति, परितुदुमाणसाणि पुण्यभवसुमरणसंधुक्खितसिणेहाणि मुहागतावसय-18 सुहाणि तिमि पलितोषमाणि जीविऊण कालगताणि सोहम्मे कप्पे देवा जाता । तत्थवि णे परा पिती आसित्ति । पलिओदमिार्क ठिति पालेऊण चुता बच्छतापतिविजए पभंकराइ णगरीय, तत्थ सामी पितामहो सुविद्दिवेजस्स गुचो केसवो णाम जातो, अहं पुण सेट्ठिमुतो अभयघोसो, तत्थविणे सिणोहादी कता, तत्थेव नयरे रायपुत्तो पुरोहितो मंतिसुओ सस्थवाइसुओ। ॥१७९।। हाय, तेहिवि सह मेशी जाया कयाई च साधू महप्पा किमिकुटेण गहितो जहा पुच जाय नेणा पडिगता, गुतधम्मा य सम्वेपि पडि दीप अनुक्रम 38745 (185) Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूणी उपोद्घात नियुक्ती ॥१८०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [९९/३१८-३४५], भाष्यं [ ३९ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 6 * बन्ना सावगधम्मं, केसवो साधुवेयाच्चपरो विसेसेण, ततो सीलव्यततवाविहाणेहिं अप्पाणं भावेऊण समाहीय कालगता अच्चुए कप्पे इंदसामाणा देवा जाता, ततो दितीक्खए जुता कमेण केसवो वइरसेणसस्स रनो मंगलावतीए देवीय धारिणियीयणामाए पुतो जातो, वइरणाभो णाम, रायसुतादी व कणगणाभरुपपणाभपीढमहापीढा कमेण जाता, कणगणाभरुपपणाभाण बाहुसुबाहु वितियणाम, अहं तत्थेव नगरे रायसुतो जाता, बालो चैव बहरणामं समलीणो, सारही जातो सुजसो णाम, सेसं जहापुवं जाव उवाओ सब्बई, सम्बसि पढमो वरनाभो चुओत्ति, णवरं अहमवि पुव्यसिणेहाणुरागेण बहरणाभमणु पव्वतो, भगवता य बहरणाभो भरहे पढमतित्थगरो उसभी णाम भविस्सतिति णिदिट्ठो, कणगणामो चकवट्टी भरहो इति, रुप्पणाभादीण य मणुसस्सभवलाप (णाभि)ो अंतकरति, ततो अम्हे छाप्प जणा बहुकीतो वासकोडीओ तयमणुचारऊण समाहीय कालगता, कमेण सव्वडे देवा जाता, ततो जुया इहायाता ॥ मया वइरसेणतित्थगरी एरिसीए आगीइए तत्थ दिडांचि पितामहलिंगदरिसणेण पोराणाओ जातिओ सरिताओ, विनातं च अमपाणादि दायव्यं तवस्तीर्णति । एवं च कहं सोऊण सेयंसो पहलमाणसेहिं पूजितो णरवइमादीहिं, ताहे लोगो जाणिउमारो। इतो य सेज्जसो एत्थ मम गुरू सामी ठितो, तो मा अहं एवं पादेहिं अकमामि, तत्थ तेण रयणपेढिता कया, जाहे से देसकालो तहि अच्चणिय काऊण जेमेति, तं दण लोगोऽवि करेति सएहिं घरदारेहिं ज तं सेज्जंसेणं कर्य कालंतर संरपेढें जायं ॥ ततो भगवं विहरमाणो बहलीविसयं गतो, तत्थ बाहुबलियस्स रायहाणी तक्खसिला णामं त भगवं वेताले य पत्तो, बाहुबलिसस्स वियाले णिवेदितं जहा सामी आगता, कलं सनिडीए बंदिस्तामित्तिण णिग्गतो, पभाते सामी विहरतो गतो, बाहु (186) श्री ऋषभचरितं भगवत्श्रेयांस भवाः 1186011 Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [९९/३१८-३४५], भाष्यं [३१-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणीं। बलीचि सब्बिड्डीए णिग्गतो जहा दसनाविभासा जाब सामीण पेच्छति, पच्छा अद्धिति काऊण जत्थ भग, वुत्यो तत्थ धम्मचक्क श्रीऋषभआवश्यक | चिन्धकारेति, तं सन्नरयणामयं जायणपरिमंडलं, जायणं च ऊसितो दंडो, एवं केइ इच्छति, अने भणति-केवलणाणे उप्पने ताहि चरितं उपोद्घात । | गतो, ताहे सलोगेण धम्मचक्कविभूती अक्खाता, तेण कतति । भगवत् श्रेयांसनियुक्ती एवं विहरंतो सामी आगतो विणीयं, तत्थ पुरिगताल णगर उज्जाणं सगडमुह, तत्थ द्वितो, सूरुग्गमणवेलाए णग्गोहहंडा णि-IG भवाः ॥१८॥ विट्ठस्स जाव केवलणाणं उप्पन्नं । देवा आगता महिमं करेंति, सम्बनित्थगराण य केवलणाणे उप्पण्णे सको अवहितं कसमंसुरोम णहं करइ, उसमसामिस्स पुण जडाओ सोभयतित्ति ण छिन्नाओ, कणकगिरी अंजनरेखावत् , भरहस्स य चारपुरिसा णिच्चमेवदिवसदेवसिय वट्टमाणिं णिति, तेहिं तस्स णिवदितं, जहा-तित्थर्गरस्स णाणं उप्पनंति, आयुधारिएणवि णिवेदितं, जहा-चकरयणं उप्पन्न, ताहे सो चितउमारद्धो, दोहंपि महिमा कायव्या, कतरं पुब्बं करभित्ति, ताहे भणति-तातंमि पूतिए चकं पूयितमेव भवति, चकस्सपि सामी पूणिज्जो, ताहे सविडोए पत्थिता, भगवतो य माता भणति भरहस्स रज्जविभूति | दटूर्ण-मम पुत्तो एवं चेव णग्गओ हिंडति, ताहे भरहो भगवतो विभृति वन्नेति, सा ण पत्तियति, ताहे गच्छंतेण भणिता---एहि । जा त भगवता विभृति दरिसाम, जदि एरिसिया मम सहस्सभागेणवि अस्थिति, ताहे हत्थिखधेण पीति, भगवतो य छत्ता-1 18 दिच्छत्तं पेच्छतीए चेव केवलनाण उप्पन, तं समयं च णं आयु खुदं सिद्धा, देवेहि य से पूया कता, पढमसिद्धोति काऊणं 8॥१८॥ खीरोदे छटा । दीप अनुक्रम रक (187) Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूणीं उपोद्घात नियुक्ती ॥१८२॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1 निर्युक्तिः [ ९९/३१८-३४५ आयं [31-1 आगमसूत्र - [४०] मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि :- 1 - भगवंत ऋषभस्य केवलज्ञान एवं समवसरणं वर्णनं चक्रवर्ती भरतस्य दिग्विजय यात्रायाः वर्णनं तत्थ समासरणे भगवं सकादीणं धम्मं परिकहेति, तत्थ उसमसेणो णाम भरहस्स रम्रो पुतो सो धम्मं सोऊण पव्वतो, तेण तिहिं पृच्छाहिं चोदसपुण्याई गहिताई, उप्पन्ने विगते धुते, तत्थ बंभीवि पव्वइया, भरहो सावओ, सुंदरीए ण दि पव्य, मम इत्थिरपणे सति सा साविगा, एस चउब्बिहो समणसंधी ते य तावसा भगवतो णाणं उप्पश्नंति कच्छसुकच्छवज्जा सब्बे भगवतो सगासे पव्वता, एत्थ समोसरणे मिरीतिमादिया बहवे कुमारा पच्चता, किं कारणं मिरीयत्ति भन्नति ? सो जातमेतओ मिरीइओ मुयतीति तेण मिरीयी । 1 पंच य पुत्त सपाई० ।। ३ ।। १२६ ।। सो य गामचितओ देवलोगाओ चहता मरहस्य रम्रो वम्माए देवीए उपवन, भरहो तु सामिस्स अट्ठाहियमहिमं काऊणं अतिगतो, इयाणिं चकस्त पूर्ज काउकामो जात्र सीहासणवरगते पुरत्थाभिमु सनिसको कोईबियपुरिसे सहायता आणवेति खिप्पामेव भो ! विणीतं रायहाणि सभितरवाहिरिवं आसियसंमज्जितोवलितं जाच गंधवट्टि भूतं करेहितिक जेणामेव मज्जणघरे तेणामेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता मज्जणघरं अणुपविसति, अणुपविसित्ता मुत्ताजालाउलाभिरामे जाय ससिव्य पियदंसणे गरवती धृवपुष्पगंधमल्लहत्थगते पडिणिक्खमति २ जेणामेव आयुधवरसाला जेणेव से दिव्वे चकरयणे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, तए णं तस्स बहवे रातीसरतलवरमाविय जाव सत्थवाहप्पभितओ अप्पेगतिया उप्पलहूत्थगता जाब सयस हस्तपत्त हत्थगता भरहरायं पितो पिट्ठतो अणुगच्छेति । तए णं तस्स बहुओ खुज्जाओ चिलातीओ वडभीतो जाव णिउगकुसलाओ विणीताओ अप्पेगतिताओ कलसहत्थगताओं अप्पे भिंगार जाव धूवकडच्छुयहत्थगयाओ भरई राय पितो पितो अणुगच्छति, तते णं से भरहे राया सच्चिङ्गीए सब्बजुतीए जाव णिग्घोसणाइयरवेणं जेणेव आउहघरसाला जेणेव • - (188) श्रीऋषभचरितं भगवत्श्रेयांसभवाः ॥१८२॥ Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGA पूौँ । दीप श्री से दिन्बचकरयणे तणेच उवागच्छद, उवामच्छिना चकरयणस्स आलाए पणाम करेति करेचा लोमहत्वगं परामुसति २ च तं चकर श्रीऋषभआवश्यकलोमहत्थएणं पमज्जति पमज्जिता दिवाए दगधाराए अभुक्खंड अम्भुक्खता सरसेणं गोसीसचंदणेण पंचगुलितलेणं चच्चिक दलयति दलयिचा अग्गहि वरहि गंधहि य मल्लेहि य चुभेहि य बासेहि य अच्चेति अच्चत्ता पुष्फारुहणं मालारुहणं गंधारुहणं भगवतउपोधात चुनारुहणं वष्णारुणं आभरणारुहणं करेति करेत्ता अच्छहि सण्हेहि सेतेहि रखतामएहि अच्छरसातंदुलेहि चकरयणस्स पुरतो अट्ठमंगलए नियुक्ती श्रेयांसआलिहर, आलिहिता कयग्गाहरगहितकरतलपम्भदृषिप्पमुकेणं दमवणं कुसुमेण मुकपुष्फपुजावयारकलित फरेति, करता। भवाः ॥१८॥ चंदप्पभवहरवेरुलियविमल जान पूर्व दलयति २ तिक्खुसो आयाहिणपयाहिणं कति करता सत्तहपयाई पच्चासक्कति २ वामद जाणुं अंचेति अंचेता दाहिण जाणुं धरणितलंमि णिहटु तिक्षुतो मुद्धाणं धरणितलंसि णिवाडेति णिवाडेता ईसिं पच्चुनमति २/2 करतलपरिग्गहित जाव मत्थए अंजलि कटु चकरयणस्म पणाम करति करेना आयुधधरसालाओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जेणामेव पाहिरिया उबढाणसाला जणव सीहासणे तेव उवागच्छति उवागच्छित्ता सीहासणवरगते पुरस्थाभिमुहे णिसीदइट | णिसीइचा अवारस सेणिपसेणीओ सदापति सहावेचा खिप्पामेव भो! उस्मुकं उकर उकिर्ट अदेज्ज अमेज्जं अभडप्पवेसं अदंडकुडडिमं गणियावरणाडइजकलित अणेगतालायराणुचरितं अणुदुयमुतिंग अमिलायमल्लदामं पमुदितपकीलितसपुरजणुज्जाणवतंद्र | विजयवेजयचकरयणस्स अड्डाहित महामहिम करेना ममै एमाणचियं खिपामेव पच्चप्पिणह, तेऽपि तहेब करिति जावट मापच्चप्पिणिति । ॥१८॥ तए णं से ककरपणे अट्टाहियाए णिवत्ताए समाणीए आयुधपरसालाओ पडिणिक्खमति २ अंतलिक्खपडियनजक्खस अनुक्रम (189) Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका दीप श्री हस्ससंपरिबुडे दिव्यतुडियसहसन्निनाएण पूरते चव अंबरतलं गंगाए महानदीए दाहिणिल्लेणं कूलेणं पुरत्थाभिमुहे पयाए यावि- भरतस्यया होत्या, तए णं से भरहे राया हट्ठतुट्ठजाव कोडाचयपुरिसे सद्दावेत्ता एवं बयासि--खिप्पामेव भो! हयगयरहपवरजोहकलितं चाउ-ददिग्विजयः चूर्णी रंगिणिं सेण सम्बाहेह, आभिसगं च हत्थिरयणं पडिकप्पहत्तिकटु मज्जणघरं अणुपविसति, तहेव जाव ससिव्व पियर्दसणे णरवती उपोषात द नियुक्ती मज्जणघराओं पडिणिक्षमति २ हयगयरहपवरवाहणभडचडकरपहकरसंकुलाए सेणाए पहितकित्ती जेणेव बाहिरिया उबट्टाणसाला जेणेव आभिसेक हस्थिरयणे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता अंजणगिरिकूडसंनिभं गयवति णरवती दूरुडे, तए णं से भरहाहिवे ॥१८॥ णरिंदे हारोत्थसुकतरचितवच्छे कुंडलउज्जोइयाणणे मउउदिचसिरये परसीहे परवई परिंदे णरवसभे मरुयरायबंसप्पमूते कप्पे अब्भधियं रायतेयलच्छीए दिप्पमाणे पसत्थमंगलसतेहिं संयुबमाणे जयसहकतालोए हथिखंधवरगते सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेणं सेयचामराहिं उडुब्बमाणीहि २ जक्खसहस्ससपरिघुडे बसमणे चत्र धणवती अमरवतीसंनिभाए इड्डीए पहितकित्ती | गंगाए महाणदीए दक्खिणिलणं कृलेणं गामागरनगरखेडखम्बडमडंबदोणमुहपट्टणासमसंवाहसहस्समंडितं थिमितमेदिणीयं वसुई ट्र अभिजिणमाणे २ अग्गाई वराई रयणाई पडिच्छमाणे २ तं दिव्यं चकरयणं अणुगच्छमाणे २ जोयणंतरियाहिं वसहीहिं वसमाणे - २ जेणेव मागहतित्थ तेणेव उवागच्छति । तं च किल चक्करयणं जोयणं गतूण ठाति, तत्थ किल जोयणाण संखा जाता, नए ण से मागहतित्थस्स अदूरसामते दुवालसजोयणायाम णवजोयणविच्छिन्न चरणगरसरिच्छं विजयखंधावारणिवेसं करेति करेत्ता ॥१८४॥ वड्डतिरयणं सहावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो! देवाणुप्पिया मम आवासं पोसहसालं च करेहि, एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि, तए ण ते जाव पच्चप्पिणति । तएणं से राया आभिसगाओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहति २ जेणेव पोसहसाला तेणेव अनुक्रम AAL (190) Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नियुक्तों HEIGA श्री उवागच्छइ उबागसिछत्ता जाव पोसहसाल पमज्जह पमज्जित्ता दम्भसंथारयं संथरति, मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हति आवश्यक उपोद्घात में पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी ओमुक्कमणिमुबन्ने यवगतमालावनगविलवणे णिक्खित्तसत्थमुसले एगे अब्बीए दम्भसंथारोबगते दिग्विजयः पोसह पडिजग्गमाणे विहरति, तए णं से अट्ठमभचीस परिणममाणंसि पोसहसालाओ पडिणिक्खमित्ता हाए जाब सच्छत्तं जाव | चाउघंटं आसरहं दूरूढत्ति । तए णं से चाउरंगिणीए सेप्याए चक्करयणदेसितमग्रो अंणगरायसहस्साणुयायमग्गे महता उस्कुट्टि॥१८५॥ सीहणादबोलकलरवेणं पक्खुभियमहासमृद्दरवभूतं पिव करमाणे करेमाणे पुरत्थाभिमुहे मागहतित्थेणं लवणसमुदं ओगाहति, जाव रहस्स णाभी उल्ला, तए णं तुरगे णिगिण्हति णिगिण्हइचा रहं ठयति ठवेता धणुं परामुमति, तए णं तं अतिरुग्गयबालचंडईदधणुसणिकासं वरमहिसदरियदप्पियदढघणसमग्गरयितसारं उरगगवलयगवरपरहुतभमरकुसणीलीणिधंतधोयपट्ट णिगु-14 गोवियमिसिमिसेंतमाणरयणघंटियाजालपरिक्खिनं तडितरुणकिरणतवणिज्जबद्धचिन्धं दद्दरमलयगिरिसिहरकेसरचामरवालद्धयंद| बिंब कालहरितरत्नपीतमुक्किलबहुण्हारुणिसंपिणिद्धजीवं चलजीब जीविततकरण धणुं गहेऊण से णरवती उसु च वरवहरकोट्टिम (डिय) वइरसारतोण्ड कंचणमणिकणगरतणधोइट्ठसुकयपुखं अणेगमणिरयणविविहसुचिरइयणामधिं वइसाई ठाइऊण ठाणं आयतकनायतं च काऊण उमुमुदारं, इमाई बयणाई तत्थ भाणीव से णरवती-हंदि मुर्णतु भवतो बाहिरतो खलु सरस्स जे देवा । णागा सुरा सुबन्ना तेसि खु णमो परिवयामि ॥१॥ हंदि सुणतु भवंतो अम्भितरओ सरस्स जे देवा । णागा सुरा सुबन्ना सन्चे ते विसयवासी इमे ॥ २॥ इतिकटु उसु णिसिरति, परिगरणिगलितमझो वायुद्धयसोभमाणकोसेज्जो । चित्तेण सोभए धणुवरेण इंदो| व पच्चक्खं ॥ ३ ॥ तं चलायमीणं पंचमिचंदोवमं महाचावं । छज्जइ वामे हत्थे परवाइणो तमि विजयंमि ॥ ४ ॥ दीप अनुक्रम ॥१८५॥ (191) Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री P HEIC उपोड्यात नियुक्तो तएणं से सरे दुवालस जोयणाई गता मागहतित्थकुमारस्स भवणसि णिवदिते महता सदेणं, से तं दळूण आसुरुत्ते जावा भरतस्यआवश्यक तिवलितं मिउडि णिलाटे साहटु एवं वयासी- केस गं भो ! एस अपत्थियपत्थए. हिरिसिरिपरिवज्जिते हीणपुण्णचउद्दसे लादिग्विजयः चूर्णी I | दुरंतपतलक्षणे जे णं मर्म इमाए एताणुरूवाए दिव्याए देविड्डीए दिवाए देवजुत्तीए दिव्वेण देवाणुभावेणं लद्धे पने अभिसमन्ना| गते भवर्णसि सरं णिसिरतिचिकटु सीहासणाओ अद्वेत्ता तं सरं गेहति, गेमहत्ता णामगं अणुप्पवाएत्ति । तत्थ इमे एयारवे अम्भत्थिए० संकप्पे समुप्पजित्था- उप्पने खलु भो जंबुद्दीये दीवे भारहे वासे भरहे नामं राया चाउरंतचक्कबट्टी, तं जीतमेत तीत॥१८॥ पच्चुपण्णमणागताणं मागहतित्थकुमाराण चक्कबड्डोणं उबस्थाणियं करेतएत्तिकटु एवं संपेहेइ, संपत्तिा हार मउई कुंडलाई कडगाणि तुडियाणि य वत्थाणि महरिहाणि आभरणाणि य सरं च णामाहयक मागहतित्थोदगं च गेण्हति, गेहेत्ता जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छति, अंतलिक्खपडिवचे सखिखिणियाई पंचवबाई वत्थाई पवर परिहिते करतलजाब जएणं विजएणं बद्धावति, बद्धावेत्ता एवं चयासी-अभिजिए णं देवाणुप्पिएहिं कबलकप्पे भरहे वासे, पुरथिमेण मागहतित्थमेराए, तं अहणं देवाणुप्पियाण विसयवासी अहं देवाणुप्पियाण आणचीकिंकर अहं ण देवाणुप्पियाण पुरथिमिल्ले अंतपाले, तं पडिच्छतु ण देवा! मम इमं एतारूवं पीतिदाणंतिकटु हारं जाव तित्थोदगं च उवणेति, सेविय णं पडिच्छति २ तं देवं सस्कारेइ सम्माणेइ पडिविसज्जति । तएणं से भरहे राया रहं परावति, लवणसमुद्दातो मागहतित्थेणं पच्चुत्तरति २ जेणेव विजयखंधावारणिवेसमागतूण रहातो १८६॥ लापच्चोरुहिता मज्जणघरंसि उवगते मज्जणघरवत्तच्चता गेयचा जाब पडिणिक्खमति, भोयणमंडवंसि सुहासणवरगते अट्ठमभत्तं पारेति पारेता जेणेच बाहिरिया उबढाणसाला जाब पुरत्याभिमुहे णिसीदति णिसीदिचा अड्डारस सेणिप्पसेणीओ सहावेति सहा SAKASGANESH दीप अनुक्रम WAR (192) Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका आवश्यक चूर्णी उपोत्यात नियुक्ती ॥१८॥ दीप & वेचा एवं वयासी-खिप्पामेव भी देवाणुप्पिया! उस्सुक्कं जाय मागहतित्थकुमारस्स देवस्स अट्ठाहितमहामहिम करेह २ जाव पच्चप्पिणति । तए णं से दिव्ये चक्करयणे वइरामयतुवे लोहियक्खमयारए जंबूणयणेभीए णाणामणिखुरप्पचालिपरिगते मणि- दिग्विजयः मुत्ताजालभूसिते सणंदिघोसे सखिखिणीए दिव्बतरुणरविमंडलणिमे जाणामाणस्यणधीटयाजालपरिक्खिच सव्योउयसुरभिकुसुम-४ आसत्तमल्लदामे अंतलिक्खपीडवत्र जक्खसाहस्सपडितुडे दिव्यतुडियसद्दसभिणादेणं पूरते चव अंबरतलं णामेण य सुदंसणे णरब-18 इस्स पढमे चक्करयणे तस्स देवस्स ताए महिमाए णिवत्ताए समागीए आयुधघरसालातो पडिणिखमति पडिणिक्खमित्ता जाब | | दाहिणपच्चरिथमं दिसि वरदामतित्थाभिमुहे पयाए याचि होत्था, भरहवि य ण तहेव जाप हस्थिबंधवरगते सेतवरचामराहि | उधुव्वमाणीहि मागइयवरफलगपवरपरिगरखेडयवरवम्मकवयमाढीसहस्सकलित उक्कडवरमउडतिरीडपटागझयवेजयंतिचामरचलं-II तच्छधकारकलिते असिखेवणिखग्गचावणारायकणगकप्पणिमूललउडाभिडिमालवणुतोणसरपहरणेहि य कालणीलरुहिरपीत| सुक्किल्लअणेगचिंधसयसण्णिविट्ठ अप्फोडितसीहणायच्छेलितहयहेसितहथिगुलुगुलाइतअणेगरहसयसहस्सघणघणेतणिहम्ममाणसद्दसहितेण जमग समकं भंभाहोरमकिणितखरगुहिमुगदसखायपारीलबव्ययपीरख्यायणिवंसवेणुवीणारियचिमहतिकच्छभिरिगिसिगि-1 कलतालकंसतालकरधाणुत्थिदण संनिनादण सकलमवि जीवलोग पूरयंते बलवाहणसमुदएणं जक्खसहस्ससंपरिखुडे बेसमण चेव धणवती अमरवतीसंनिभाए इड्डीए पहितकित्ती गामागर तहेब जाव वरदामतित्थंतेण उवागच्छति जाव खंधावारनिवस करेति, करेत्ता बढतिरयणं सदावति २ एवं बयासी-खिप्पामेव भो! ममं आवसह पोसहसालं च करहि २ जाव पच्चप्पिणाहि, तए णं स 2 ॥१८७॥ आसमदोणमुहगामपट्टणपुरवरखंधावारगिहावणविभागकुसले एगासीतिपदेसु सब्बेसु चव वत्थूसु णेगगुणजाणगे पडिए विहिन्न अनुक्रम (193) Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उपोद्घात सत्राक नियुक्ती ॥१८८॥ दीप ठा पणतालीसाए देवयाणं वत्थुपरिच्छाए णेमिपाससु भत्तसालासु कोट्टणिसु य वासयघरेसु य विभागकुसले छज्जे वेझे य दाण- भातस्य कम्मे पहाणबुद्धी जलयाणं भूमियाण य भाजणं जलथलगुहासु जतमु परिहासु य कालनाणे तहेव सद्दे वत्थुपदंसे पहाणे गम्भिणि- दिग्विजयः कण्णरुक्खवाल्लिवेढितगुणदोसावयाणए गुणड्ड सोलसपासादकरणकुसले चउसट्ठिविकप्पवित्थयमती गंदावते य बड्डमाणे सोत्थिरुयगर | तह सबओभहसन्निवेसे य बहुविसेसे उदंडियदेवकोट्ठदारुगिरिखातवाहणविभागकुसले-इय तम्स बहुगुणझे थवतीरतणे णरिंदचंदस्स।। तवसंजमणिबिट्टे किंकरवाणी उयद्वाति ॥ १॥ सो देवकम्मविधिणो खंधावार परिंदवयणेण । आवसहभवणवलित करेति सच्वं मुहुत्तेणं ।। २॥ करेति य पवरपासह घरं जाव पच्चप्पिणति । स तं चेव जाव चाउग्घंटं आसरहतेणं उवागच्छति। तए ण त 21 धरणितलगमणलहुं ततो बहुलक्खणपसत्थं हिमवतकंदरंतरणिवायसंबढितचित्ततिणिसदीलयं जंबूणयमुकयकुप्परं कणयडंडियारं पुलगवइरइंदणीलसासगपवालवरफरिहरयणलेठ्ठमणिविड्मविभूसियं अडयालीसाररयिततवणिज्जपट्टसंगहितजुत्ततुंब वघासतप ॥१८॥ सितणिम्मितणवपट्टपुट्ठपरिणिहित विसिट्ठलढणवलोहबद्धकम्म हरिपहरणरयणसरिसचक्कं कक्केतणइंदणालसासगसुसमाहितबद्धजालककडं पसत्थविच्छिण्णासुमधुरं पुरवरं क गुतं सुकरणतवणिज्जजुचकलितं कंटकणिजुत्तकप्पणं पहरणाणुयात खडगकणगधणुमंडलग्गवरसत्तिकोंतोमरसरसयबत्तीसतोपपरिमंडियं कणयरयणचिचं जुत्तं हलीमुहबलागगयदन्तचंदमोत्तियतणसोतियकुंदकुडयवरसिंदुवारकंदलबरफेणणिगरहारकासप्पकासधवलहि अमरमणपवयणजइणचवलसिग्यगामीहिं चउहि चामराकणगभूसितंगेहि । तुरंगेहि सच्छत्तं सझय सघंटे सपडाग सुरुयसंधिकम्मं मुसमाहितसमरकणगगंभीरतुल्लयोसं वरकुप्परं सुचक्कं वरणमीमंडलं बर-13 धुरातोड वरवइरबद्धतुंचं वरकंचणभूसित वरायरियणिम्मितं बरतुरंगसंपउत्तं बरसारहिसुसंपणिहितं वरपुरिसे बरमहारहं दुरूढे आरूढे अनुक्रम (194) Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥ १८९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्तिः [१२६/३४६-३४९] भाष्यं [३२-३७] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 5 य वररयणपरिमंडितं कणगखिखिणीजालसोभितं अयोज्यं सोदामणिकणकत वितपंकजजा सुग्रण जलणजलित सुयतुंडरागं गुंजद्ध बंधुजीबगर हिंगुलुमणिगरसिंदूररुइलकुंकुमपारवयचलणणयणकोइलदसणावरण रहता तिरेगरत्ता सोगकण गकेसुय गजतालु सुरिंदगोवगसमप्पभपगासं चित्रफलसिलप्पबालउद्वैतसूरसरिसं सव्योउयसुरभिकुसुम आसत्तमलदामं ऊसितसेतज्ज्ञयं महामेहरसितगंभीरणिद्धघोसं सहिदयकंपणं पभाए सस्सिरीयं णामेणं पुहविविजयलंमेति वीसुतं लोगवीसुतजसे, अह तं चाउम्बर्ट आसरहं पोसहिए णरवती दुरूढे सेसं तहेव, गवरं दाहिणाभिमुद्दे, पीतदाणं मालं मउलि मुत्ताजालं हेमजालं कडगाणि य तुडियाणि य, सेस तं चैव जाव उत्तरपच्चत्थिमं दिसिं पभासतित्थाभिमुद्दे पयाते, जाब पच्चत्थिमदिसाभिमु पभासतित्थेणं लवणं ओगाहति, सेस तं चैव पीतिदाणं चूलामणी दिव्वं उरत्थं गेवेज्जं सोणीसुतं च कडगाणि य तुडियण य । तते णं से दिव्वे चक्के पभासतित्थकुमारस्स | देवस्स अट्ठाहियाए महिमाए विव्वत्ताए अंतलिक्खपडिवण्णे जाव अंबरतलं सिंधूए महानदीए दाहिणिल्लेणं कुलेण पुरत्थिमं दिसिं सिंधुदेविभवणाहिमुहे पयाते यावि होत्या, भरहेऽविय पं तहेव जाव तीए भवणस्स अदूरसामंत विजयखधावारनिवसणं तव अट्ठमभत्तग्गहणं तंमि परिणममाणंसि सिंधुदेविए आसणचलणं ओहिपउंजणं जीतकप्पसरणं जायकरेमित्तिकट्टु कुंभट्टसहस्सं रयचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगभदासणाई कडगाणि य तुडियाणि य वत्थाणि य आभरणाणि य गेव्हित्ता जाव उवागच्छति जहा मागहकुमारे जाव आभरणाणि य उपमेति, रायात्रि तं सकारेति जाय अट्ठाहियाए महिमाए णिब्बताए समाणीए से चकरपणे आयुधसालाओ णिक्खमित्ता उत्तरपुरच्छिमं दिसि वेयपव्वयाभिमु पयाते यावि होत्था, एयं सव्वं पुव्ववत्रियं जाव वेयपव्ययस्स दाहिणे णितं खंधावारं पिवेसेति एवं जहा चैत्र सिंधुदेवीए तहेव वेयङ्कगिरिकुमारस्सवि (195) भरतस्य दिग्विजयः ॥ १८९॥ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका 18 आसणं चलति जाव पीतिदाणं, आभिसेके मडडालंकारे य आणति च, अवसेस तं चेय जाव कडगाणि य तुडगाणि य जावा . भरतस्यआवश्यकततएणसे चकरयणे पचस्थिमदिसि तिमिसगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्या, जाव तीए गुहाते असामंते खंधावारकरणं, तहेवाट दिग्विजयः चूण) 13. अट्ठमभत्तसि परिणममाणंसि कयमालए देबे चलियासणे उवागते जाव पीतिदाणं थीरयणस्स तिलगचोदसं भंडालंकारं कडगाणि नियुक्ती वाला य जाव आभरणाणि य, एवं जाव अट्ठाहिया णिवत्ता । तए णं से भरहे सुसणं सेणावहरयणं सद्दावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी गच्छा हिणं भो सिंधूए महाणतीए पचत्धिमिल्लं णिक्खुढं ससिंधुसागरगिरिमेराग समविसमणिक्खुडाणि य ओयवेहि २ अग्गाई ॥१९॥ पराई रयणाई पडिच्छादि पडिच्छाहिता एयमाणत्तियं पच्चाप्पिणाहि, तएणं से सेणावई बलस्स जेता भरहे वासंमि वीसुतजसे महाबलपरकमे महप्पा ओयंसी तेजलक्खणजुत्ते मिलक्खुमासाविसारदे चित्तचारुभासी भरहे वासंमि निकखुटाणं णिचाण य| दुग्गमाण य दुक्खपवेसणाणं बियाणए अत्थसत्थकुसले रयणं सेणावई मुसेणो भरपुर्ण रना एवं आणने समाणे हद्वतुट्ठ जाव दसणहं मत्थए अंजलिं कटु एवं सामी तहत्ति आणाए विणएणं बयणं पडिसुणेति, पडिसुत्ता जाब सए आवासे उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे आणवेति-खिप्पामेव भो ! आभिसेगं हस्थिरयणं पडिकप्पह, हयगय जाव सेण साहेह, जाव पञ्चप्पिणहत्तिक? जेणेच मज्जणधरे तेणेव उवागच्छति जाव जहां भरहो जाव पहाए कयबलिकम्मे जाव पायच्छित्ते सनद्धववम्मियकबए उप्पीलियसरासणवट्टिए पिणद्धगेवेज्जपट्टे आविद्धविमलवरचिंधपट्ट गहियाउहपहरणे अणेगगणनायग जाव संपरिबुडे सकोरेटमल्लू I ||१९०॥ जाव जयसहकलालाए मज्जणघराओ पडिनिक्खमति पडिनिक्खमित्ता जाब हत्थिरयणं दूरुढे । ततेणं से हत्थिखंधवग्गते जाव चामराहि उक्खिप्पमाणाहि २ हयगय जाय इंदुहिनिग्घोसणाइतरवण जेणेव सिंधूमहानदी तेणेष उबागच्छति २ SAIRAA दीप अनुक्रम R (196) Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति : [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पता चूौँ । HEIC नियुक्ती १९१॥ दीप है दिवं चम्मरयणं परामुसति, तए गं तं सिरिवच्छसरिसरूवं मुत्तातारयदचंदचित्तं अपलभकंपं आभिज्जकवयं जंतं आवश्यक सलिलासु सागरेसु य उत्तरणं दिवं चम्मरयर्ण सणसत्तरइयं सम्बधमाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वाविताई, बासं णाऊणशभरतस्य चकवट्टीण परामढे दिव्वचम्मरयणे दुवालसजायणाई तिरिय पवित्थति तत्थ साहियाई, तएणं स चम्मरयणे खिप्पामवादिविजयः उपाघात णावाभूते जाते, तए ण से सेणावइ सखंधाबारबले चम्मरयणं दूरुहति २ सिंधुं महानई विमलजलतुंगवीइयं णावाभूतेणं चम्मरयणेणं | उत्तरति, ततो महाणदि उत्तरित सिंधु अपडिहयसासणे य सेणावति कहिचि गामागरणगरपब्वयाणि खेडकब्बडमडवाणि पडणाणि य सिंहलए १चरे य स च अंगलोकं विलायलोगं च परमरम्मं जवणदीव च पबरमणिकणगरयणकोसागार समिळू आरबकरोमके अलसंडविसयवासी य पिक्चुरे कालमुहे जोणए य उनरवेयड्डसंसिताओ य मेच्छजाती बहुप्पगारा दाहिणअवरेण जाब सिंधू ससागरंतोचिय सधपवरकच्छंच ओवेऊण पडिणियनो बहुसमरमाणिज्जे भूमिभागे य तस्स कच्छस्स मुहनिसो, ताहे ते जणवयाण गगराण पट्टणाण यजे य तहिं सामिया पभूतागरपती य मंडलपती य पट्टणपती य सब्वे घेत्तूण पाहुडाई आभरगाणि रयणाणि य वत्थाणि य महरिहाणि अन्नं च जं बरिट्ठ रायरिहं जं च इच्छियच्च एतं सेणावइस्स उवणेति, मत्थए कयंजलिपुटा पुणरवि काऊण अंजलि मत्थयंमि पणता तुम्भे अम्हज्य सामिया, देव! तं च सरणागता मो, तुभ विसयवासिणोत्ति विजयं जपमाणा सेणावइणा जहारिहं ठवितपूजिता विसज्जिता णियत्ता सगाणि गराणि पट्टणाणि य अणुपविट्ठा। ताह सेणावती सविणतो घेत्तूण पाहुडाई आमरणाणि रयणापि भूसणाणि य पुणरवि तं सिंधुणामाधज्ज उत्तिय अणहसास। ॥१९॥ रणवले तह रचो भरहाहिवस्स णिवेदइत्ता य अप्पिणित्ता य पाहुडाई सक्कारियसमाणितसहरिसे विसज्जिते सगं पडमंडव अनुक्रम (197) Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक HEIGA ॥१९॥ मतिगते । तए ण से सुसेणे सणावती पहाते जाव पायच्छित्ते जिमित भुत्तुत्तरागते समाणे जाव सरसगोसीसचंदणोकिनगसरीरो | भरतस्य दिग्विजयः Bउप्पि पासादवरगते कुट्टमाणेहिं मुइंगमस्थएहिं बचीसइबद्धपहिं नाडएहिं वरतरुणिसंपउत्तेहिं उवणचिज्जमाणे २ उवागज्जमाणे २ चूर्णी उवलालिज्जमाणे २ महताऽहयणगीयवाइयतीतलतालतुडियघणमुइंगपटुप्पवादितरवेण इडे सह जाव पंचविहे माणुसस्ए उपोद्घात कामभोगे पच्चणुभवमाणे विहरति । नियुक्ता तते णं से भरहे अन्नया कयाती सेणावई सद्दावेत्ता एवं वयासी-गच्छणं भो ! तिमिसगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विधाडेहि २ जाव पचप्पिणाहि, तए ण से सेणावती तहेव जहा भरहो जाव अट्ठमभत्तं गेण्दति, तंमि य परिणममाणसि पोसहसालाओ पडिनिक्खमित्ता पहाते जाव धृवपुप्फगंधमल्लहत्थगते मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ जेणेव तिमिसगुहाए से दारे तेणेव पहारेथ गमणाए: तए णं तस्स बहवे राईसर जाव पभितओ उप्पेगइया उप्पलहत्थगया जाच पितो अणुगच्छंति, तए थे। | तस्स बहुओ खुज्जाओ जाब विणी(चिला)ताओ अप्पेगइयाओ कलहसस्थगताओ जाव धूवकडुच्छयहत्थगताओ अणुगच्छति, तएणं से । सब्बिड्डीए जाव णादितरवेणं जेणेव ताण कवाडाणि तेणेव उवागच्छइ २ आलोए पणाम करेइ, एवं जहा भरहो चकरयणस्स | तहेब जाव मंगलए आलिहद, आलिहिता दंडरयणं परामुसह, तए तं भवे दंडरयणं पंचलइयं वइरसारमतिय विणासणं सबसत्तु४. सेनाणं खंधावोरेणरवइस्स गहृदरिविसमपन्भारगिरिपब्धताणं समीकरणं संतिकरणं सुभकरं रनो हिदइच्छितमणोरहपूरगं दिल,म-181 &ी पडिहतं दंडरयणतं गहाय सनट्टपदे पच्चोसक्कइ, ते कवाडे तेण महता महता सदेणं तिक्खुत्तो आउडेइ, तए णं ते दारा महता मह-| ता सद्देणं कुंचारयं करेमाणा सरसरस्स सकाई सकाई ठाणाई पच्चोसकित्था तते ण सेणावती जाव भरहस्स तं निवेदेइ ॥ दीप अनुक्रम ॥१०शा ARRORESARK (198) Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIG श्री भरहेपि यणं हाते जाव गयवर्ति गरवती दुरुढे, तए ण से भरहे मणिरयण परामुसइ, तो तं चउरंगुलप्पमाणमेतं च अणग्य आवश्यक 31 से छलंसं अणोवमजुति दिव्वं मणि रयणपतिसमं वेरुलिय सव्वभूतकंत जेण य मुद्धागतेणं दुक्खं न किंचि जाव हवति, अरोगे भरतस्यचूर्णौ IFय सव्वकालं, तेरिच्छियदिव्बमाणुसकता य उवसग्गा सच्चे ण करति तस्स दुक्खं, संगामेऽविय असत्थवज्झो होहिति णरो, दिग्विजयः उपोद्घात मणिवरं धरतो ठितजोवणकेसअवडितणहो, हवति य सब्बमयविप्पमुका, तं मणिरयणं गहाय से परवई हस्थिरयणस्स दाहिणिनियुक्ताल्लाए कुंभीए निक्खिवेइ । तए णं से भरहाहवे नरिंदे हारोत्थयसुकयरइयवच्छेजाव अमरवतीसंनिभाइडीए पहियकिनी मणि यणकउज्जोये चकरयणदेसियमग्गे अणेगरायवरसहस्साणुजातमम्ग महता उफिट्ठिसिंहनादबोलकलकलरपेण पक्खुभियसमुदरवभूयपिव करेमाणे करमाणे तिमिसिग्रह दाहिणिल्लेणं दुवारेण अतोति ससिय मेहंधकारणिवह ।। | तए ण से भरहे छत्तलं दुबालसंसिय अट्ठकणिक अहिकरणसंठित अदुसोवन्त्रिक कागणिरयणं परामुसति, तए ण तं चउर-18 गुलप्पमाणमेतं अट्ठसुवन च विसहरणं अतुलं चउरंससंठाणसंठिय समतलं माणुम्माणपमाणजोगजुत्तोलोगे चरति सव्वजणपन्न-18 | वणका णवि चंदे ण किर तत्थ मरे णवि अग्गी ण इव तत्थ मणिं णो तिमिरं नासेति अंधकारे जत्थ तेहिं तक दिबप्पभावजुत्तं, दुवालसजोयणाणि तस्स लेसाउ विवढुति तिमिरणिगरपडिसिहिकाओ, रतिं च सयकाल खंधाबारे करति आलोक दिवसभूत, जस्स पहावेण चकवट्टी तिमिसगुहमतीति सेन्त्रसहिते अभिजेतुं वितियमड्डमरई, रायपवरे कागिर्णि गहाय तिमिसगुहापुरथिमपञ्चस्थिमिल्लसु कडएसु जायणंतरियाई पंचधणुसयायामविक्खंभाई जोयणुज्जोयकराई चकनेमिसंठियाई चंदमंडलपडिणिकासाई एगूणपन्नमंडलाई आलिहमाणे २ अणुपविसइ, जाव धरति चकबट्टी ताव किर गाणि मंडलाणि धरंति, गुहा य किर तहा उग्धाडिया चेव ।। Sie% दीप अनुक्रम ACTRESSESCRec * X ॥१९३।। (199) Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक तए णं सा तिमिसगुहा तेहि मंडलेहि आलोयभूता उज्जोयभूता जाता यावि होत्था, तीसे गं गुहाए बहुमज्झदेसभाए एत्थ भरतस्यआवश्यक1 णं उमुग्गनिमुग्गाजलाओ नाम दुवे महानदीओ पण्णताओ, जाओ णं तिमिसगुहाए पुरथिमिल्लाओ भित्तिकडगाओ पढाओ दादाग्वजयः पच्चस्थिमेण सिंधुमहानई समप्पति, जन्नं उम्मग्गजलाए तणं वा क8 चा पत्तं वा सकरं वा आसे वा हत्थी या रहे वा जोहे चा | उपोद्घाताट नियुक्ती मणुस्से वा पक्खिप्पति त सा तिक्वत्तो आहुणिय आहुणिय एगते थलसि एडेइ, जन्नं निमुग्गजलाए त सा अंतोजलंसि णिमज्जावेति। ॥१९४॥ तए णं से बट्टतिरयणे मरहवयणसंदेसेणं तामु णदीसु अणेगखभसयसहससनिविट्ठ अचलमकप सालंबणवाहगं सब्बरयणामयं सुहसंकम करेइ, तए ण से भरहे जाव चक्करयणदेसितमग्गे जाव समुद्दरवभूतं पिव करेमाणे सिंधूए पुरथिमिणं कूलेणं ताओ णदीओ तर्हि संकमेण जाव सुहेण उत्तरति, तए णं तीसे गुहाए उत्तरिलस्स दुवारस्त कवाडा सतमेव महता महता कोंचारवं करेमाणे सरसरसरस्स सयाई ठाणाई पच्चोसकित्था ॥ तेण कालणं तेणं समएणं उत्तरदभरहे वासे बहवे आवाडा णाम चिलाता| | परिवसंति, अट्टा दित्ता वित्ता विच्छिमविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइबा बहुधणा बहुजातरूपरयया जाब बहुदासीदासगोमहिसगवेलगयप्पभूता बहुजणस्स अपरिभूता सूरा वीरा विकता विच्छिन्नविपुलबलवाहणा बहसु समरसपराएमुलद्धलक्खा यावि होस्था, तएणं तेसिं विसयमि वहई उप्पादितसताई पाउन्भवित्था, तए णं ते ताणि पासित्ता जावं ओहतमणसंकप्पा झियायति । तए १९ से भरहे राया चकरयण जाव रवभूतंपिव करेमाणे तीए गुहाए उतरिक्षण दुवारेणं पीति ससिब्ब मेहंधकारणिवहाओ। तए मंते हैं। चिलाता तं पासित्ता आसुरचा जाच अन्नम सद्दावेंति २त्ता एवं बयासी-एस र्ण देवाणुप्पिया! कई अप्पत्थियपत्थगे जाव अम्ह दीप अनुक्रम (200) Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सुत्रांक चूणों 4६ दीप है विसए बलविरिएणं हवमागच्छति तं तहाणं घनामो जहा णं णो आगच्छतित्तिकटु (त) अनमनस्स पडिसुणेत्ता सबद्धबद्ध जाव आवश्यक आउहप्पहरणा भरहस्स अग्गाणीएण सद्धिं संपलग्गा । तए णं तं अग्गाणीय हतमहित जाव दिसोदिसि पडिसहंति, तए णं से मुसेणे । भरतस्यसेणावती तं तहा पातित्ता आसुरुते कमलामलगं णाम आसरयणं दूरुहनि, तएणं तं असीतिगंगुलमासितं गवणउतिर्मगुलपरिणाई ट्रादिग्विजयः उपोधात नियुक्ती अट्ठसयमंगुलमायतं बचीसंगुलमूसितासरं चउरंगुलकन्नाकं बीसतिअंगुलवाहाकं चतुरंगुलजन्नुकं सोलसअंगुलजंघाकं चतुरंगुलमूसित-13 खुरं मुत्तोलीसंवत्तवलितमझ ईसी अंगुदुषणतपटुं सष्णतपहं संगयपटुं पसत्यपटुं सुजातपटुं विसिट्ठप8 एणीजानुण्णयवित्थयतत्थपटुं ॥१९५||G वेत्तलतकसंणिवातं अंकल्लणपहारपरिवजितंगं तवाणिज्जथासकामिल्लाणवरकणकसुफलथासकविचित्तरयणरज्जुपासं कंचणमणिकण गपतरकणाणाविहपटियाजालमुत्तियजालगहिं परिमंडितण पट्ठणं सोममणिण सोभमीणं कक्कतणइंदनीलमरगतमसारगल्लमुहमंडपरतितं आविद्धमाणिक्कमुत्तकविभूसित कणकामयपउमसुकयतिलकं दवमतिविकप्पित सुरवरिंदवाहणजोग्गं च तं सुरूवं दूइज्जमाणयं च चारुचामरामेलगं धरेतं अणट्टम्भवाहं अभेलणयणं कोकासियवहलपत्चलच्छ सतावरणणवकणगतविततवणिज्जतालुजीहासय सिरियाभिसेकषोणं पुक्खरपत्तमिव सलिलबिंदुजुयं अचंचलं चवलसरीरं चोक्खचरकपरिवाजको विव हिलीयमाणं २ खुरचलणचच्चपुडहिं धरणितलं अभिहणमाण २ दोविय चलण जमकसमकं मुहानी विणिग्गमतं व सिग्घताए मुणालतंतुउदगम-1 विणिस्साए पत्कर्मतं जातिकुलरूवपच्चयपसत्थवारसावत्तकविमुद्धलक्षणं सुकुलप्पसूतं महाबि भदकं विणीतं अणुकतणुकसुकुमालजालोमणिदछचि सुजातं अमरमणपवणगरुलजइणचवलसिग्धगामि इंसिमिब खसिखमए सुसीसमिव पबक्खतो विणीतं उदगहुतवहपासाणपंसुकदमससकरसवालइल्लतडकढगविसमपन्भारगिरिदरीमु लंघणपीलणणित्थारणासमत्थं, अचडपीडयं हंडयाई अणंसु अनुक्रम (201) Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - प्रत - सत्राक नियुक्ती - - याई अकालवा च कालहेसि जियानंद गवसगं जिनपरीसह जच्चजातीयल्लिहारोणसुकयनसुवनकोमल मणाभिरामं कमलामेल भरतस्यआवश्यक नामेण आसरयण सणावनी कमेण समभिरुढे कुवलयदलसामल च ग्यणिकरमंडलनिभं मत्तुजणविणासणं कणकरतणडंडं णवमा- दिग्विजयः चूर्णी लियपुष्फसुरभिगधि णाणामणिलतकभत्तिचितं च पधातमिमिमिमें निक्खधारं दिव्यं खग्गरयणं लोके अणोवमाणं, तं च पुणो उपायातरवसाकसिंगद्विदंतकालायसविपुललोहडंड कवरबहरभेदयं जाब मध्यस्थ अप्पडिहतं, किं पुण देहेसु जंगमाणं', पन्नासंगुलदीहो। नियु सोलस सो अंगुलाई विजियो । अटुंगुलसाणाका जट्ठपमाणो असी भणितो॥ १॥ असिरयणं णरबइम्म हत्थातो तं गहेऊणं॥१९॥ आवाधचिलाएहिं सद्धि संपलग्गे यायि होत्था । तए ण ते हतमहिते जाव पडिसेहेति, तए ण ते वरामा भीता तत्था वहिता उधिग्गा अत्थामा अपुरिसपरक्कमंता अधारणिजनिकटु अणेगाई जोयणाई अवक्कमति, एगंतओ मिलायति २ जेणामेव सिंधूमहाणदी तेणामेव उवागच्छन्ति उवागच्छद्दता ४. वालुयासंथारके संधरंति २ नत्थ दुरूहात २ अट्टमभत्ताई पगेण्हंति२ उताणगा अश्मणा कुलदेवते मेहमुहे णागकुमार देवे मणसीकर-18 दोमाणा करेमाणा चिट्ठति । तएणं तेसि अट्ठमभत्तामे परिणममाणमि तेसि दवाणं आसणाई चलेंति, ते ओहिणा आभाएंति. अन्न मन्नं सहावात, सहावेना तेमि अंतिय पाउन्भवति, अंतलिक्वपडियन्ना जाब एवं बयासी-भणह णं कि करामो केव भे मणसाइते?, तएणं ते चिलाता हट्ठा जाव विजएण बद्धावेत्ता एवं व०-एस णं केड अप्पत्थियपत्थर जाव तहण घत्तेह जहन्न नो आगच्छतित्ति, १९६।। तए ण ते देवा एवमासु-एमण देवाणुप्पिता! भरहे णाम राया चातुरतच कवट्टी महिड्डीए महाजुत्तीए जाब महासक्खे, णो है खलु एस सक्को केणइ देवेण वा दाणवेण वा किनकिंपुरिमगंधब्यमहोर गेग वा सस्थपतोगेण वा अग्गिपओगण वा विसप्पतो. - दीप -- अनुक्रम CRetrx (202) Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्रा नियुक्ती गण वा मंतप्पतांगण वा उद्दवेत्तए या पडिसेहेत्तए वा, तहाथिय णं तुम्भ पियद्वताए पयस्स उबसगंग करमोनिकटु तेसितियायो र आवश्यक अवक्कमति २ जाव वधावारनिवेसम्म उप्पि जुगमसलप्पमाणमेचाहिं धाराहि उपरोप्पि सचर पवासंति ॥.. दिग्विजयः .चूर्णी व तएणं से भरहे राया तं पासिता दिवं चम्मरयणं परामुसति, सेवि यणं खिप्यामेव दुवालस जोयणाई तिरिय पवित्थरति, उपाहात | तत्थ साहियाई. तए णं से भरहे सखधावारवले तसि दूरुहति २ दिव्यं उत्तरयणं परामुसति, तए ण ते णवणवतिसहस्सकंचणस लागपरिमंडित महरिहं अतोज्झं णिव्वणसुपसत्थविसिठ्ठलट्ठकंचणसुपुट्टडंड मिदुरायतवट्टलट्ठअरविंदकत्रियसमाणरूवं वत्थिपदेसे | ॥१९७॥ यपंजरविराजितं विविहभत्तिचित्र मणिमुत्नपवालतत्ततवणिज्जपंचवाणियधोतरयणरूवरइतं रयणमिरीइसमाप्पणाकप्पकारमणुरंजिए|ल्लिय रायलच्छीचिं, अज्जुणसुवण्णपंदुरपच्चत्धुपपडदेसभागं तहेव तपणिज्जपट्टकम्मतपरिगतं अधिकसस्सिरीयं सारदरयणिकरविम-1M | लपडिपुन्नचंदमंडलसमाणरूवं नरिंदवामप्पमाणपगतीपवित्थडं कुमुदसंडधवलं रनो संचारिमं विमाणं सूरातववातबुट्टिदोसाण खत-18 कर तवगुणेहि लई 'अहतं बहुगुणदाणं उट्ठणविवरीतमुहकयच्छायं । छत्तरयण पहाणं सुदुल्लभ अप्पपुन्नाणं ॥ १॥ पमाणरा| तीणं तवगुणार्ण फलेक्कदेसभाग विमाणवासेवि दुल्लभतरं वग्धारितमल्लदामकलावं सारदधवलम्भयंदणिगरप्पगास दिव्वं छत्त| रयणमहिवइस्स धरणितलपुनयंदो । तए णं से दिव्वे छत्तरपणे भरहणं रमा परामुढे खिप्पामेव दुवालस जोयणाई पवित्थरह | | साहियाई तिरिय, तं खंधावारस्स उरि ठवेति, ठवित्ता मणिरयणं परामुसइ परामुसित्ता छत्तरयणस्स बस्थिभागे ठवेति । तस्स य अणइवरं चारुरूवं सिलणिहिअत्थमतसेतू सालिजवगोधूममुग्गमासतिलकुलत्थसहिगणिफावचणकोदवकोत्धु-11" " | भरिकंगुवरालकअणेगधनावरत्तहारितगअलकमूलकहलिदिलाउकतउसतुंबकालिंगकविट्ठअंवबिलियसम्पणिफादए सुकुसले गाहा दीप अनुक्रम (203) Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नाणी HET हा वतिरयणेत्ति सव्वजणवीसुतगुणे । तए ण से गाहावतिरयणे भरहस्स रनो तद्दिवसपइणिकादितपूइताण सम्बधमाण अणेगाभरतस्यआवश्यकता कुंभसहस्साई उबढयेति । तते णं से राया चम्मरयणसमारूढे छत्तरयणसमोच्छन मणिरयणकतुज्जोवे समुग्गगभूतेणं मुहं सुहेण दिग्विजय: सत्तरत्तं परिवसति, णवि से खुहान तण्हाण विलीत णव विज्जए दुक्खं । भरहाहिबस्स रचा खंधावारस्सवि तहेव ॥१॥ किल उपोद्घात नियुक्ती यह्मांडपुराण, तत्थ किल साली वुप्पति पुब्बण्हे अवरण्हे जिम्मइ । तए णं तस्स सत्तरते परिणममाणीस एतारूवे अम्भत्थिए जाव 81 | समुपज्जित्था-केस णं भो अप्पत्थियपत्थिए जाव जे णं ममेतारूवाए इड्डीए लगाए पनाए जाव सत्तरतं वासति । तएणं एतं ॥१९८॥ जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सन्नज्झितुं पयत्ता यावि होत्था । तए णं ते देवा सन्नवद्भवम्मितकवया जाय गहियाउहप्पहरणा णागकुमारंतिक पाम्भवित्ता एवमाहसु-ह भी कि तुम्भे ण याणाह मरहे राय महङ्गीय जाब महाणुभाग, णो खलु सक्का कणांत देवेण जाब पडिसेहत्तए वा, तहावि णं एवं करेह, तं एवमवि गते कज्जे इतो खिप्पामेव अवक्कमह, अहव णं अज्ज पासह चित्तं 3जीवलोग, तएणं ते भीता जाव मेहाणीतं साहरंति, साहरचा आवाडचिलागसगास गंतूणं तं सब्ब साहेति, तं गच्छह णं तुन्भे दाण्हाता जाव उल्लपडसाडगा आचुलगीणयत्था अग्गाई वराई रयणाई गहाय पंजलिकडा पादपडिता भरहं रायाणं सरणं उबेह, पणि-४ वइयवच्छला चु उत्तमपुरिसा, पत्थि भे भरहस्स रबो अंतकायो भयमितिकटु जामेव दिस पाउम्भूता तामेव पडिगता । तेवि | तहव करता जाव रयणाई उवणेचा मत्थए अंजलि कटु एवं ब०-वसुधर गुणधर जयवर हिरिसिरिधितिकित्तिधारक नरिंद! लक्ख-SR१८॥ णसहस्सधारक नायामिणं णे चिरं धारे॥शा हयवतिगजबतिणरवतिणवनिहिवति भरहवासपढमवती । बत्तीसजणवयसहस्सरायसामी चिरं जीव ।। २॥ पढमणरीसर ईसर हियईसर महिलियासहस्साणं । देवसयसहस्सीसर चोद्दसरयणीसर जसंसी ॥ ३ ॥ सागरगि दीप अनुक्रम (204) Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री भरतस्य आवश्यक प्रत च HEIGE उपोद्घात 1-1 ॥१९९॥ रिपेरंत उत्तरपाईणमभिजितं तुमए । तं अम्हे देवाणुप्पियस्स विसए परिवसामो ॥ ४ ।। अहो ण देवाणुप्पियाणं इट्टी जुत्ती जसे है। व ले विरिए पुरिसकारपरक्कमे दिव्वा देवजुती दिव्ये देवाणुभागे लड़ पने अमिसमनागते तं दिट्टा ण देवाणं इड्डी एवं चेव जावी दिग्विजयः | अभिसमभागया, तं खामेमु ण देवा० खमंतु देवा खमंतु रहंतु ण देवा पाइभुज्जो भुज्जो एवं करणताएत्तिकटु पादपडिता सरणं उति । तएणं से राया तेसिं तं अग्धं पडिच्छति २ एवं वयासा-गच्छह ण भी तुम्भ मम बाहुच्छायापरिग्गहिता णिन्भया निरु|बिग्गा सुहं सुहेण परिवसह, णस्थि मे कुतोवि भयमस्थित्तिकटु सक्कारेता सम्माणेचा पडिविसज्जीत । तए णं सेणावती भरहादेसेणं पुश्वभणितविहाणणं दोपचंपि पच्चस्थिमिल्लं णिकखुडं ससिंधुसागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि य तहेव ओयवेत्ता | जाव पंचविहे भोगे पच्चणुभवमाण विहरति । तए णं से चक्करयणे अन्नया कयादी पडिणिक्खमति तहेव जाव उत्तरपुरस्थिमं दिसं चुल्लहिमवंतपन्वयाभिमुहं पयाते यावि होत्या, तए ण भरहेवि तहेब जाव चुल्लहिमवंतस्स दाहिणिल्ले णितय दुवालसजोयणायाम जाव चुल्लीहमवतीगरिकुमारस्स देवस्स अट्ठमभत्तं पगेण्हति, तहेव जहा मागहकुमारस्स, णवरं उत्तरदिसाभिमुहे जेणेव चुल्लीहमवते तेणेव उवात पव्वयं तिक्खुत्तो रहस्सीसेण फुसति फुसिना तुरए णिगिण्हतिर तहेब उ९ वेहासं सरं णिसिरति, सेऽबिय वावरिं जोयणाई गंता तस्स देवस्स मेराए णिवडिते, सेवि तहय आसुरत्ते, सेस तं चेव, णवर अहं देवाणुपियाणं उत्तरिल्ले अंतेपाले, पीतिदाणं सम्बोसहि च मालं च सरसं 18 ॥१०॥ च गोसीसचंदणं कडगाणि य जाव दहोदगं च उवणेति । दीप अनुक्रम (205) Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIG श्री तए पा से भरहे रहे परावत्तेत्ता जेणेव उसभकूडे पव्वत तेणेय उवागच्छति उवागच्छित्ता त पव्वयं तिक्खुत्तो रहसीसेणं फुसति भरतस्यआवश्यकता रिहं ठवेति, कागणिरयणं परामुसति २ उमभकूडस्स पुरस्थिमिहंसि कडगंसि णामगं आउडेति | 'ओसप्पिणीहमीसे ततियाएँ दिग्विजयः समाएँ पच्छिमे भाए । अहमि चक्कबट्टी भरहो इति णामधेज्जेणं ॥१॥ अहमंसि पढमराया इहाहि भरहाहिवो परवरिंदा ।। उपोद्घात नियुक्ती पाणस्थि महं पडिसत्तू जितं मए भारह वासं ॥ २ ॥ तिकटु रहं पराबत्तेति २ तेणेव विहिणा खंधाचारमागतूण चुल्ल कुमारस्स अट्ठाहियं संदिसीत । ॥२००|| तए णं से चक्करयणे जाव णिव्यत्ताए समाणीए दाहिणं दिसि बेयकाभिमुहे पयाए यावि होत्था, सेस त चव जाब उत्तर णियंवे खंधावारणिवेसं काऊण भरहराया पोसहिए णमिविणमी विज्जाहरराती मणसी करेमाणे करेमाणे चिट्ठति, तए णं तंसि | परिणममाणसि णमिविणमी दिव्याए मतीए चोदिंतमती अचमबस्स तयं पाउन्भवति २ एवं वयासी- उप्पन्ने खलु जाव चक्कवट्टी तं जीतमेत जाय विज्जाहरराइणं चक्कवट्टीणं उपहाणिय करेत्तए, तं गच्छामो णं अम्हेवि जाच करेमोचिकटु विणमी दाणाऊण चक्कबट्टी दिवाए मतीए चादितमती माणुम्माणप्पमाणजुत्तं तेयसी रूबलक्खणजुत्तं ठितजोव्वण केसव द्वितणहं सब्वामय-15 राणासणि बलकरि इच्छितसीउण्हफासजुतंति-तिसुम्भितणुकं तिसुतं तिवलीकं तिउन्नतं तिगभारं। तिसु काल तिमु सेत तिआयतं तिसु त विच्छिन्नं ॥१॥ समसरीरं भरहे वासंमि सबमहिलप्पहाणं सुंदरथणजहणययणकरचरणणयणं सिरसिरजदसणजणहिदयरमणमणहीर सिंगारागारचारु० जाव जुत्तोवयारकुसल अमरवहणं सुरूवं रूबेण अणुहरंति, सुभई भईमि जोच्यणे यदृमाणिं विणमी C ॥२०॥ इत्थिरयणं णमी य रयणाणि कडगाणि य तुडगाणि य गेहति २ ताए उक्किट्टाए जान विज्जाहरगतीए अंतलिक्खपडिवना दीप अनुक्रम (206) Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका दीप सखिखिणियाई जाब विजएणं बद्धाति बद्धावेत्ता एवं ययासी- अभिजिते ण देवा० जाव अम्हे देवाणु० आणत्तिकिंकरित्तिक । दिग्जयः आवश्यानतं समप्येति । तए ण भरहो ते सक्कारेति जाव पडिविसज्जेति, सेस तं चेव. अने भणंति-णमिविनमिणो रायाणो णायाणन्ति, नपानधयः | तेहि समं जुद्धं चारस बरिसा, पच्छा ते पराजिता समाणा विणमी इस्थिरयर्ण णमी रयणाणि व गहाय उवागतत्ति । तए णं से नियुक्ती चक्के णमिविणर्माणं अट्ठाहिताए णिव्बताए समाणीए तहेब जाव उत्तरपुरथिनं दिस गंगादेविभवणाभिमुहे पयाए यावि होत्था। | भरहे तहेब जहा सिंधुदेवीए, णवरं सा से कुंभट्ठसहम रयणचित्तं णाणामणिकणगरयणभत्तिचित्ताणि य दुवे कणगसीहासणाई ॥२०॥ | उवणति जाव से चक्करयणे गंगाए महामाहमाए णिवत्ताए समाए तहेब जाव दाहिणं दिसि खंडगप्पवाताभिमुहे पयाए यावि होत्था । तहेब कुटुंबियाणची य हस्थिरयणसेणापडिकप्पणा पोसहमाला गङ्गमालगणमीकरण, णवरं आलंकारियभंडदाणं सकारणयाए पडिविसज्जणया साहणाणत्ती आणुपुचि यब्या। तए णं से भरहे गट्टमालगस्स अवाहिताए णिवत्ताए समाणीए सेणावति आणवेति- गच्छ णं भो! गंगाए पुब्बिल्ल निक्खु-18 डं जाव ओतवेहि, एवं सिंधुणिक्खुडवत्तब्बया यचा, जाव उप्पि पासादगते विहरति । भरहो तु किल गंगादेवीए समं भागे मुंजति वाससहस्सति । तए णं से भरहे अन्नया कयादी मेणावति आणवेति- गच्छ णं भो! खंडगप्पवातगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवा| रस्स कवाडे बिहाडेहि, एवं भाणियब्वं जाब पियं निवेयणता कोडुबियाणती गुहापवेसो मंडलालिहणा संकमकरणं, गबरं ताओ। गदीओ पच्चस्थिमिल्लाओ कडगाओ पढाओ पुरस्थिमेणं गंगाणदि समप्पेंति जाव दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडाण सयमेव दिपच्चीसक्कणया, जाव तीसे गुहाए दाहिणिल्लणं दारेणं गीति ससिब महंधकारणिवहाओ। तए णं से राया गंगाए णदीए अनुक्रम (207) Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री नव निधया प्रत आवश्यक चूर्णी उपोद्घात HEIGA नियुक्ती ॥२०॥ पच्चथिमिल्लसि कूलसि खंधावाराणवेसं काऊणं जाव णिहिरयणाणं अट्ठमभत्तं पगेण्हति, णिधिरयणे मणसी करमाणे २ चिट्ठति, तस्स य अपरिमितरत्तरयणा धुवमक्खयमव्वया सदेवा लोकोपचयंकरा उवगता णव निहओ लोगवीसुतजसा । तंजहासप्पे १ पंडुयए २ पिंगलये ३ मव्वरयण ४ महापउमे५ । काले६ य महाकाले७माणवग८महाणिही संखे ॥११॥ सप्पमि णिवेसा गामागरणगरपट्टणाणं च । दोणमुहमडवाणं बंधावारावणगिहाणं ॥२॥ गणियस्स य उप्पत्ती माणुम्माणस्स जं पमाण च । धन्नस्स य बीयाण य णिष्फत्ती पंडुए भणिता ॥३॥ सव्वा आहरणविही पुरिसाणं जा य होति महिलाणं । आसाण य हत्थीण य पिंगलगणिहिमि सा भणिया । रयणाणि सब्बरतणे चउदसवि वराई चक्कवट्टिस्स । उप्पज्जती पंचदियाई एगिंदियाई च ॥५॥ वस्थाण य उप्पत्ती णिप्फत्ती चेच सधभत्तीणं । रंगाण य धोव्याण य सब्वा एसा महापउमे ॥६॥ काले कालनाणं भव्य पुराण व तिसुधि वंसेसु । सिप्पसयं कम्माणि य तिषिण पयाए हितकराणि ।। ७॥ लोहस्स य उप्पत्ती होइ महाकालि आगराणं च । रुप्पस्स सुवण्णस्त य मणिमुत्तिसिलापवालाण ॥८॥ जोहाण य उत्पत्ती आवरणांणं च पहरणाणं च । सब्बा य जुद्धणीती माणवगे डंडणीती प॥९॥ णविहि णाडगविही कव्वस्स य चउविहस्स उप्पत्ती । संखे महाणिहिम्मी तुहियंगाणं च सम्वेसि ॥१०॥ चक्कट्टपतिट्ठाणा अटुस्सेहा य णव य विवभो । बारम दीहा मंजूस संठिता जण्हवीय मुहे ॥११॥ वेगलियमणिकवाडा कगगमया विविहरयणपडिपुन्ना । समिसूरचक्कलकावण अणुसमवयणोववत्तीया ॥ १२ ॥ दीप अनुक्रम 2 ॥२०२॥ C+ C + e (208) Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२०३॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) आयं (३२-३७] मूलं [- गाथा-], निर्युक्तिः [ १२६/३४६-३४९ आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ------- - पलिओवमहितीया णिहिसरिणामा य तेसु खलु देवा । जेसिं ते आवासा अक्केज्जा आहिवच्चाय ॥ १३ ॥ एते व णिहिरयणा पभूतघणरयणसंचय समिद्धा । जे बसमणुगच्छंती भरहाविचक्कवहीणं ॥ १४ ॥ तए णं भरहे जाव विहिरयणाणं अड्डाहियं महिमं करेति ।। तणं ताए णिव्यत्ताए सेणावति आणवेति-गच्छ णं भो ! गंगाए पुरथिमिल्ले दोच्चं शिक्खडं ओयवेहि, सेऽवि तहेव जाव तमाणतियं पच्चपिणति, पडिविसज्जिते जाव भोगाई भुजमाणे विहरति । तए णं से चक्करयणे अन्नया कयाई अंतलिक्खपडिवले जाव दाहिणपञ्चरिथमं दिसिं विणीतं रायहाणि अभिमुह पयाए, तर णं से भरहे राया पासति, पासिता हट्ट कोईवियपुरिसे सहावेति सहायता एवं क्यासी खिप्यामेव भो ! अभिसेके जाव पञ्चपिणंति । तए णं से राया अज्जितरज्जो णिज्जितसत्त् उप्पन्नसंमत्तरयणचक्करयणप्पहाणं णवणिहिसमिद्धको से बत्तीसारायवरसहस्वाणुयातमग्गे सडीए वाससहस्सेहिं केवलकप्पं भरहवास ओयवेता मज्जणधरं पयाते, एवं सच्चा मज्जणघरवचव्वया यव्वा जाव ससिव्व पियदंसणे णरवती गज्जणघराओ पडिनिकखमति २ ता जेणामेव बाहिरिया उवद्वाणसाला जेणेव अभिसेके हत्थरयणे जाब अंजणगिरिकूटनिभं गजवति णरवती दुरुडे । तए णं भरहस्स रनो तं हरिंथ दूरूढस्स समाणस्स इमे अट्टमंगलका पुरओ अहाणुषुवीए संपत्थिया, तं० सोत्थिय जाब भिंगारा । तयणंतरं च णं बेरुलियाभिसत्तविमलदंडं जाय अहाणुपु० । तदनंतरं सत एगिंदियरयणा पुरतो अहाणु० सं०-चकरयणे एवं छत्त० चम्म० दंड० आसे मणि० कागणि०, तदणं० णव महाविहतो पुरतो अहाणु०, तं० सप्पे जाब महानिदी य संखे, तदणं सोलस देव सहस्सा पुरतो अहा०, तदणं० बत्तीसं रायवरसहस्सा पुत्र अहा०, तयणं० सेणावतिरयणे (209) भरतस्य विनीता*प्रवेशः ॥२०३॥ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE नियुक्ती श्री पुरतो अहाणु, एवं गाहावति०, वड्वति० पुरोहित तदणं इत्थिरयणे पुरतो अहा० । तदणं० बत्तीसं उड्डकल्लाणियासहस्सा भरतस्य आवश्यक पुरओ अहा०, एवं चत्तीस जणवयकल्लाणियासहस्सा बत्तसं बत्तीसतिबद्धा णाडगसहस्सा पुरतो अहा तदर्ण तिमि सडा सूयसयाविनीताणापुरतो. तदणं अट्ठारस सेणिप्पसेणिओ पुरतो०, तदण० चउरासीति आससयसहस्सा पुरतो, तदण० चतुरसीर्ति देतिसय-II प्रवेशः H| सहस्सा पुरतो, तदणं चतुरासीति रहसयसहस्सा पुरतो, तदणं० छन्नति मणुस्सकोडीओ पुरतो०, तदणं० बहवे रादीसर-181 जाव सत्थवाहपभितओ पुरतो, तयण बहवे असिलढिगाहा एवं कुंतचावचामरपीढपासगफलगपोत्थगवीणकूबदीबियसएहिं रूबेहि, ।।२०४॥ एवं वेसेहिं चिंधेहिं निओएहिं जाव पुरओ अहा० । तयण बहवे दंडिगो जहा उववाइए जाब संपट्टिता, तए णं निओएहिं जाव | पुरओ अहा० । नयण बहवे दंडिणो जहा उबवाइए जाच संपट्ठिता, तए णं तस्स भरहस्स रचा पुरओ महं आसा आसवारा जाव संगेली, तए णं से भरहाहिवे णरिंदो हारोत्थयसुकयरतितवच्छे जहा पुन्धि जाव अमरवतीसनिभाए इट्टीए पहितकित्ती चक्करयणदेसितमग्गे जाव समुहग्वभूतं पिब करमाणे करेमाणे सब्बिड्डीए जाब णादिएणं गामागरखेडकब्बडजाब जोयणंतरियाहि वसहीहिं वसमाणे बसमाणे विणीतं रायहाणितण उवागते, तीए अरे जाव खंधावारणिवेसो पोसहसालामतिगमणं विणीताए अट्ठमभत्तगहणं तंसि परिणममाण मि पोसहाओ पडिाणक्खमणं जाव गजबई दूरुढे अणुपविसमाणस्स तहेव सव्वं जहा हेवा, णवरं णव महाणिहओ चत्वारि य सेणाओण पविसंति, तए तस्स विणीयं पविसमाणस्स अप्पेगतिया देवा विणीत रायहाणि सम्भितर-। बाहिरियं आसितसंमज्जितावलितं जहा विजयस्स जाव आभरणवासं वासिमु० आहावंति । तते गं तस्स परिविसमाणस्स सिंघाडग ॥२०॥ जाय पहेमु बहवे अस्थस्थिता जहा सामिस्स जार एवं वयासी-जय जय गंदा ! जाच भई ते अजितं जिणाहि जाव धरणो विव 424 दीप अनुक्रम (210) Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGE दीप सणागाणं जाव बहुईतो पुब्बकोडाकोडीओ विणीताए चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहवासस्स गामागरणगर भरतस्पआवश्यक जाव संनिवेसस्स समं पयापालणोबज्जितलठ्ठजसे महता इस्सरियं कारेमाणे पालेमाणे सुहं सुहेणं विहराहित्तिकटु अभि- राज्याचूणी हादति य भभित्थुणंति य । तए णं से गयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे २ एवं जहा सामी जाय अपडिबुज्झमाणे २ जाव |41 भिषकः नियुक्ती समभवणवरवडेंसगपडिदुवारे उवागच्छित्ता हत्थिरयणं ठवेति तातो पच्चोरुहति, सोलसदेवसहस्से सकारेति २ एवं बचासं राय वरसहस्से सकारेति सेणावतिरयणे १ गाहावतिरयणे २ चट्टति०३ पुरोहिय तिन्त्रि सट्ठा सूयसयार अट्ठारस सेणिप्पसेर्णी यो अन्ने य ॥२०५॥ वहवे रातीसरप्पभितयो सकारेता जाब विसज्जेत्ता इत्थीरयणणं बत्तीसाए य उडुकल्लाणियासहस्सेहिं बत्तीसाए य जणवयकल्लाणिया | सहस्सेहिं बत्तीसाए य वचीसतिबद्धेहिं णाडगसहस्सेहिं सद्धिं संपरिबुडे भवणवरवडेंसगं अतीति जहा कुबेरोब्ब देवराया केलास.। | सिहरिसिंगभूतं । तए ण से राया मित्तणादिणियगसयणसंबंधिपरिवणं पञ्चुवेक्वति २ मज्जणगरं उबागच्छति तहेव जाब हाते मित्तणादिजाव भोयणमंडवंसि अट्ठमभत्तं पारेति पारेता उप्पि पासादवरगते फुट्टतेहिं मुइंगमस्थएहिं बच्चीसबद्धएहिं नाडएहिं उपललिज्जमाणे २ उवणच्चिज्जमाणे रउवगिज्जमाणे २महता जाव भुंजमाणे विहरति । विहरेत्ता तए णं तस्स अन्नया कयादी ते देवादीया महारायाभिसेयं विनयंति, सेवियणं तहेच अट्ठमभचं गेहति, तसि परिणममाणसि ते आभिओगिया देवा विणीताए उत्तरपुरच्छिमे दिसिभाए एग महं अभिसयमंडवं विउब्बिसु जहा विजयस्स जाव पेच्छाहरतिसोमाणगअभिसेगपेढसीहासणादि सव्वं माणियन्वं । तए णं से भरहे राया पोसहसालातो पडिणिक्खमति २ पहाते एवं जहा विणीतं पविसंतस्स गमो तहेव णिगच्छंतस्स जाव थीरयणेणं उदकल्ला जणवयकहा णाडगसहस्सेहि य परिवुडे अभिसेगमंड अणुपविसति जाव पेढमणुप्पयाहिणीकरमाणे । अनुक्रम 18॥२०५॥ | चक्रवर्ती भरतस्य राज्याभिषेकस्य वर्णनं क्रियते (211) Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम BH अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोदघात निर्युक्तौ ॥२०६॥ 60% “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्तिः [१२६/३४६-३४९] भाष्यं [३२-३७] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 पुरत्थिमिल्लेणं तिसोमाणेणं दुरुहति जाव सीहासणे पुरत्याभिमुहे सभिसण्णे, तरणं ते बत्तीसं रायसहस्सा उत्तरिणं तिसोमा- | गण जाव भरहस्स णच्चासने सुस्वस जाव पज्जुवासंति । तए णं सेणावतीरयणे गाहावती० बढति० पुरोहित० जाव सत्थवाहपमितयो तेऽवि तहेव णवरं दाहिणिण तिसोवाणेणं, तए णं आमिओग्गा देवा महत्थं महग्यं महरिहं महारायाभिसेगं उबदुवैति जहा बिजयस्स जाव पंडगवणे एगओ मेलायति एवमादि । तते णं मरहं रायाणं बत्तीसं रायसहस्सा सोहणंसि तिहिकरणणकखत्तमुहुत्तंसि उत्तरपोडवयाविजयंसि तहिं सामाविएहि य उत्तरवेउब्वियेहि य वरकमलपतिद्वाणेहिं जहा विजए जाब महता महता रायाभिसेगेणं अभिसिंचति २ पत्तेयं करतल जाव विहराहित्तिक अभिनंदति अ अभिथुणंति य । तए तं रायाणं सेणावई० गाहावती बढती पुरोहिते तिभि य सड्डा सूयसमा अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ अने य बहवे राईसर जाव सत्थवाहप्पभितयो एवं चैव अभिसिंचंति सोलस देवसहस्सा एवं चैव, गवरं पम्हलसमालाए जाव मउडं पिणिद्वेति । तदणं दद्दरमलयसुगंधगंधिएहिं गंधेहिं गाताई अकुंडेति, दिव्यं च सुमणदामं पिणद्धति, एवं जहा विजयस्स, किंबहुना, | गंथिमवेढिमजाव कप्परुक्खर्गपिच अलंकितविभूसित करेंति देवा । तए णं से राया कोईबिए एवं वयासी खिप्पामेव भो ! हरिथसंघवरगता विणीताए सिंघाडग जाव पहेसु महता महता सद्देणं उम्घोसेमाणा २ उस्तुकं उक्करं जाव जण जाणवदं दुवालससंवच्छरितं पमोयं घोसेह । तेऽवि तहेव करेंति जाव पच्चाप्पिति । (212) भरतस्य राज्यामिषेकः ॥ २०६ ॥ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री तए ण से राया सीहासणाओ अम्भुट्टित्ता इस्थिरयणेणं जाव णाडगसहस्सेहिं सद्धिं संपरिडे पुरस्थिमिल्छणं तिसोमाणणं | आवश्यक पच्चोकहिता जाव गजवतिं दुरुढे, रायमातीवि जेणं दूरूढा तेणं पच्चोरहंति २ रायाणं तहेब परिवारंति, तए णं अट्ठमंगलमादि चूर्णी | सव्वं भाणियवं तहेव जावसि गच्छंतएणं मज्जणघरअणुप्पवेसो, जाव अट्ठमभत्तं पारेति जाब उपि विहरति । तए ण से राया | उपोद्घात | दुवालससंवच्छरियसि पमायसि निन्यसि समाणसि पहाते जाव बाहिरियाए उपहाणसालाए सीहासणवरगते सोलस य देवनियक्ता सहस्से सक्कारेति समाणति सत्थवाहप्पभितयो, सकारेत्ता संमाणेता उप्पि पासादजाव विहरति । . ॥२०७| भरहस्स णं रची चक्करयणे छत्त० दंड. असि० एते ण चत्वारि एगिदियरयणा आयुधसालाए समुप्पन्ना, चम्मरयणे मणि कागणिक णव य महाणिहओ, एते णं सिरिघरंसि समुप्पण्णा. सेणावतिरयणे गाहावति० बङ्गति. पुरोहित० एते ण चत्तारि मणुयरयणा विणीताए रायहाणीए समुप्पा , आसरयणे हस्थि० एते णं दुवे पंचदियरयणा वेयगिरिपादमूले समुप्पण्णा, इत्थिस्यणे उत्तरिल्लाए विज्जाहरसेढीए समुप्पन्ने, तए णं से भरहे राया महता हिमवंतमलयमंदरजाबरज्ज पसाहेमाणे विहरति ।। बितियो गमो रायवनगस्स इमो तत्थ य संखेज्जकालवासाउए जसंसी उत्तमअभिजातसत्तवीरियपरक्कमगुणे पसत्यवनसरसारसंघतणतणुकबुद्धिधारणमेहास-1 ठाणसीलपगती पहाणगौरवच्छायागति अणेगवयणप्पहाणे तेजआउबलविरियजुत्ते अजमुसिरघणनिचितलोहसकलणारायणवइरउसद भसंघयणदेहधारी उज्जुगभिंगारवद्धमाणगभहासणसंखच्छत्तवीयणिपडागचक्कणंगलमुसलरहसोत्थियंकसचददिव्यअम्गिजूवसागर दीप ॐRMWARESCREX अनुक्रम (213) Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दूतप्रेषणं सूत्रांक दीप 13 ईदजायपुहविपउमकंजरसीहासणडंडकुम्मगिरिवरतुरंगवरमउडकुंडलणदावनधणुकोतगागरोंगभवणबिमाणअणेगलक्षणपसत्थसुवि-15 भ्रातृभ्यो २१दा भत्तचित्तवरकरचरणदेसभागे उद्धामुहलोमजातसुकुमालाणिद्धमउयआवत्तपसस्थलोमविरहतासविच्छच्छन्नविउलवच्छे देहखेतसुविभ-ICI पात्तदेहधारी तरुणरविरस्सियोहितवरकमलविबुद्धगम्भव हयणासणकोसिसभिभपसत्थपिट्ठन्तणिरुवलेबे पउमुप्पलकुंदजातिजूतचित-1 वरचंपगणागपुष्फसारंगतुल्लगंधी छत्तीसाएवि पसत्थपस्थिवगुणेहिं जुत्तो अवोच्छिन्ननवत्तपागडउभओजोणीविसुद्धनियगकुलपुत्तयं ६ HEदेवेंद इव सोमताए णयणमणणिचुइकरे अक्खोमे सागरोग्य थिमिते फणवतिब्ब भोगसमुदयसहब्बताए समरे अपराजिते परमविटी ॥२०८॥ कमगुणे अमरवतिसमाणसरिसरूवे मणुयवती भरहचक्कवट्टी चोद्दसह रयणाणं णवहं महाणिहीण सोलसहं देवसहस्साणं बत्तीसाए रायसहस्साणं बत्तीसाए उड़कल्लाणियासहस्साणं बचीसाए जणवयकल्लाणियासहस्साणं बनीसाए बत्तीसतिबद्धाण णाड-| गसहस्साणं तिण्हं तेसहाणं सूयसताणं अट्ठारसहं सेणिप्पसेणीण चउरासीए आससयसहस्साणं चउरासीए दंतिसयसहस्साण चउरासीए रहसयसहस्साणं छण्णवइमणुस्सकोडीण वाचत्तरीए पुरबरसहस्साणं वत्तीसाए जणवयसहस्साणं छनउहगामकोडीणं णवणउतीए दोणमुहसहस्साण अडयालीसाए पट्टणसहस्साणं चउच्चीसाए कब्बडसहस्साणं चउवीसाए मडंबसहस्साणं वीसाए आगरसहस्साण सोलसहं खेडगसयाणं चोइसण्ह संवाहसहस्साणं छप्पनाए अंतरोदगाणं एगणपन्नाए कुरज्जाणं विणीताए रायहाणीए | चुल्लहिमवंतगिरिसागरमेरागस्स य केवलकप्पस्स भरहवासस्स अन्नेसि च बहूणं रादीसर जाव सत्यवाहप्पभितीण आहेबच्च X ||२०८॥ मट्टित्त जाव पालेमाण ओहतविहतेसु कंटएमु उद्वितमलितेसु सव्वसत्तूसु णिज्जितेमु भरहाहिवे परिंदे वरचंदणचच्चियंगमंग | वरहाररयितवच्छे वरमउडविसिट्ठए वरवत्थचारुभूसणधेरे सब्बोउयसुरभिकुसुमबरमल्लसोभितसिरे वरणाडगणाडइज्जबरभोगसंप अनुक्रम RecACAREAKS (214) Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 बाहुबलि प्रत प्रातबोधः युद्ध HEICO में ललिते वरइत्थीगुम्म सद्धिं संपरिबुडे सम्वोसहिसव्वरयणसव्यसमितिसमग्गे संपूनमणोरहे हतामित्तसत्तुपक्खे पुब्यकततवप्पभावणि- |विट्ठसंचितफले भुंजति माणुस्सए सुभे भरहणामधेज्जो। जादू एवं जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए भरहोवयणे तहा सव्वं भाणियच्वं । एवं जाहे वारस परिसाणि महारायाभिसेगो वत्तो रायाणो TA विसज्जिता ताहे णियगवम्ग सारिउमारद्धो, ताहे दाइज्जति सब्वे णीयल्लगा, एवं पडिवाडीए सुंदरी दाइता, सा पंडुल्लुइतमुही, सा| जय जद्दिवसं रुद्धा चेव तद्दिवसमारद्धा चेव आयंबिलाणि करेति, तं पासित्ता रुट्ठो ते कोर्छविये भषति- किं मम गत्थि, जे एसा ॥२०९॥ परिसी स्वेणं जाता, वेज्जा वा नत्थि ?, तेहिं सिट्ठ- जहा आयंबिलेण पारेति, ताहे तस्स पयणुरागो जाओ, भणति- जदि तात * भजसि तो वच्चतु पच्चयतु, अह भोगट्ठी तो अच्छतु, ताहे पादेसु पडिता विसज्जिया पब्बइया । अनया भरहो तेसि भातुगाणं पत्थवेति, जहा- ममं रज्जं आयाणह, ते भणंति- अम्हवि रज्जं ताएहिं दिन तुज्झकि, एतु ता है तातो ताहे पुच्छिज्जिहित्ति, जं भणिहीति तं काहामो । तेण समएणं भगवं अट्ठावयमागतो विहरमाणो, एत्थ सब्बे कुमारा समोसरिता, ताहे ते भणति- तुम्मीहावि दिनाई रज्जाई। |णे हरति माया, ताहे भणति- अम्हे णं किं करेमो-किं जुज्झामो उदाहु आयाणामो ?, ताहे सामी भोगेसु नियत्ताबमाणो तेर्सि *धर्म कहेति-ण मुत्तिसारस सुहं अत्थि, ताहे इंगालदाहगदिद्रुतं कहेति, जहाका एगो इंगालदाहगा, सो एग भायणं पाणियस्स भरेऊण गतो, तं तेण उदगं णिढवितं, उपरि आदिच्चो पासे अम्गी पुणो | परिस्समो दारुगाणि कोडेतस्स घरं गतो, तत्थ पाणितं पीतो, एवं असम्भावपट्ठवणाए कूवतलागणदिदहसमुदा य सम्ये पीता, णय दीप अनुक्रम ॥२०॥ ॐ (215) Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१२६/३४६-३४९], भाष्यं [३२-३७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री SAR केवलं HEIGA नियुक्ती सहा छिज्जति, ताहे एगमि तुच्छकुहितविरसपाणिए जुमकूवभिरिंडे तणपूलितं गहाय पस्सिंचति, जे पडितसेसं तं जीहाए लिहति,बाहुबलिना आवश्यक दसे केस ण, एवं तुन्भहिवि अर्पतरं सबढे अणुत्तरा सब्वेऽवि सब्बलोए सद्दफरिसा अणुभृतपुवा तहवि तिति ण गता, तो गंदा चूणी इमे माणुस्सए असुइए तुच्छे अप्पकालिए विरसे कामभोग अभिलसह, एवं वेयालीयं णाम अज्झयणं भासति, 'संयुज्मह किन्न उपोद्घात १४ बुझह एवं जहाणउईए विचेहि अट्ठाणउई कुमारा पन्चइता, कोइ पढमिल्लुएण संयुद्ध फोति पितिएणं ततिएणं । जाहे ते सच्चे। पब्बइता ताहे भरहेण बाहुबलिस्स पत्थवितं, ताहे सो ते पव्यइते सोऊण आसुरत्तो भणति- ते बाला तुमे पब्याविता, अहं पुण ॥२१॥ I जुद्धसमत्थो, किं वा ममंमि अजिते तुमे जितंति, ता एहि अहं वा राया तुमं वा, वाहे ते सबबलेण दोषि देसते मिलिया, ताहे बाहुबलिणा भणितं- किं अणबराहिणा लोगेण मारिएण?, तुम अहं च दुयगा जुज्झामो, एवं होउत्ति, तेसि पढम दिडिजुद्धं जातं, तत्थ भरहो पराजितो, पच्छा वायाए, तहिपि भरहो पराजितो, एवं बाहुजुद्धेऽवि पराजितो, ताहे मुट्ठिजुद्धं जायं, तत्थवि पराजितो.| की ताहे सो एवं जिव्यमाणो विधुरो अह णरवती विचितेति-किं मन्ने एस चक्की जह दाणि दुब्बलो अहयं, तस्सेवं संकप्पे देवता आउहं देति डंडरयण, ताहे सो तेण गहितेण धावति, बाहुबलिणा दिडो गहितदिब्बरयणो, सगव्वं चिंतितं च अणेण-सममेतेणं डू *भजामि एतं, किं पुण तुच्छाण कामभोगाण कारणा?, भट्ठणिययपइन्नं मम अइवाइतुं ण जुत्तं, सोहणं मम भाउएहिमणुट्टियं, धिरत्थु भोगाणं, जदि भोगा एरिसा अलाहि मम भोगेहि, भावो, गहु जुझीह अहंमजुज्झे पवत्तमि, ताहे सो भणति- एतं ते दारज्जे, अई पच्चयामि, तेण तर्हि भरहेण बाहुबलिस्स पुत्तो रज्जे ठवितो, पच्छा बाहुबली चितेति-अई किं तायार्ण पास बचामिला इई चेव अच्छामि जाब केवलणाणं उप्पज्जति । एवं सो पडिम ठितो, पव्वरसिहरो सामी जाणति तहवि ण पत्थवेति, अमूढ-12 दीप अनुक्रम (216) Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१३७-१५०/३५०-३६३], भाष्यं [३७...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप लक्खा तित्थगरा, ताहे संवच्छर अच्छति काउस्सग्गण बल्लीविताणेण वेढितो पादा य चम्मिएण, पुणे संवत्सरे भगवं भी-II -आवश्यक चूर्णी सुंदरीओ पत्यवेति, पुचि ण पत्थिताओ जेण तदा सम्म ण पडिवज्जिहिति, ताहे सो मग्गंतीहिं वल्लीहि य तणेहि य वेढितेण या विकारः Ixमहल्लेणं कुच्चेणं तं दट्टणं बंदितो ताहि, इमं च मणितो- 'ण किर हथि विलग्गस्स केवलनाण उप्पज्जई'। एवं मणिऊणाला नियुक्ती #गताओ । ताहे सो पचिन्तितो 'कहिं एत्थ इत्थी', तातो य अलियं न भणति ।' एवं चितितेण जातं, जहा माणहत्थी अस्थिति, | को य मम माणो ?, तं वच्चामि भगवं वंदामि ते य साहुणोत्ति, पाओ उक्खित्तो, केवलनाणं च उप्पन, ताहे गंतूणं केवलिपरि॥२१॥ साए हितो । भरहोवि रज्ज झुंजति ताव मिरीयी सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिज्जितो। अह अन्नया कयाती० ॥३॥१३७ ।। मेरुगिरि०॥ ३ ॥१३८॥ एवं विचिंतयंतस्स०॥३॥ १३९ । सो माणेण PI 8ण तरति गिहत्थत्तणं काउं, इहेब तल्लसाए अच्छामिति इमं कुलिंग विचिंतेति समणा तिदंडविरया० ॥ ३ ॥ १४० ।। मणाई दंडो, अहं च एतेण पराजितो, तम्हा एते चेव बट्टामि वरं संभरंतो एते मम चिंध, लोइंदियमुंडा संजता अहगं स्वरेण ससिहाओ। थूलगपाणयहाओ बेरमणं मे सदा होउ॥३॥ १४१॥ इंदिएहिवि मज्झ इंदियाणि ण मुंडियाणि तो इंदिएहि अमुंडिएहिं किं मम दव्यमुंडेणं ? तम्हा मम छिहली मवतु, खुरेणी य करेमि, साधुणो य सब्बतो सध्वविरया, अहं च देसाओ करोमि । ॥२१॥ निकंचणा य समणा मा य किंचणं कनेसु । पवित्तयं भवतु किंचणियावि भवतु ॥ ३ ॥ १४२।) अनुक्रम A5% भगवंत महावीरस्य तृतीय-भव मरीचि:, तस्य अधिकारो अत्र वर्तते (217) Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [ ] दीप अनुक्रमम [H] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ | ॥२१२ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [१३७-१५०/३५०-३६३], भाष्यं [३७...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 साधू सीलसुगंधा, अहगं च सीलेण दुग्गंधो, अहं वासेमि वत्थाणि सरीरगं च । ववगतमोहा समणा० गाथा || ३ || १४३ || मोहो णाम अन्नाणं सुकंबरा य समणा • गाथा || ३ | १४४ ॥ सुकंवरा गिरंबरा य साधुणो, मम कासायाणि भवंतु सकसायस्स । वज्जेति वज्जभीरू० गाथा ।। ३ १४५ ॥ वज्जणं नाम कम्मं तस्स भीता वज्जमीरू, बहूहिं जीवेहिं समाउलं जलारंभ, होउ मम परिमितेणं जलेण पहाणं च पियणं च सव्वं मुसावायं सव्वं अदिन्नादाणं, सव्वं बंभचेरं परिग्गहाओ सब्बतो इय विरतो । एवं सो भइयमती० गाथा || ३ || १४६ ॥ तद्धितैर्हेतुभिर्युक्तं तस्स हिता तद्धिता सुट्ट जुत्तां श्लिष्टमित्यनर्थातरं, परिआजामिदं पारिव्राजं, पवनेति सो तेसि मज्झे उन्भो दीसति तेण तस्स पासे सब्बो अल्लियति, जया तं पुच्छति ताहे अणगारधम्मं पवेति, ताहे ते भांति किं तुमं ण करेसि १, सो भणति अहं ण तरामि मेरुगिरीसमभारे, जाहे तेण ते अक्खित्ता भवंति ताहे सामिस्स उबवेति । एवं सो तित्थगरेण समं विहरति । तेण कालेणं तेणं समएणं समोसरणं भगवतो, ताहे भरहो रज्जं ओयवेत्ता ते य भाउए पच्चइए णाऊणं अद्धितीय भणतिकिं मम इयाणि भोगेहि अद्धिति करेति किं ताए पीवराएवि सिरीए १ जा सज्जणा ण पेच्छति० (गाथा) जदि भातरो मे इच्छति तो भोगे देमि, भगवं च आगतो, ताहे भाउए भोगेहिं निमंतेति ते ण इच्छेति वंत असितुं, ताहें चितेति एतेसि देव इमाणिं परिचतसंगाणं आहारादिदाणेणावि ताव धम्माणुडाणं करेमीति पंच सयाणि सगडाण भरेऊणं असणं ४ ताहे निम्गतो, बंदिऊणं निमंतेति, ताहे सामी भणति इमं आहाकम्मं पुणो य आहढं ण कप्पति साधूणं, ताहे सो भणति ततो मम पुण्वपव (218) श्रावकवात्सल्यं ॥२१२॥ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१३७-१५०/३५०-३६३], भाष्यं [३७...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका दीप श्री है ताणि गेण्इंतु, तंपि प कप्पति रायपिंडोत्ति, ताहे सो महदुक्खेण अभिभूतो भणति-सब्वभावण अहं परिचत्तो तातेहिं, एवं सो माहनो आवश्यकचूणी में IP ओहयमणसंकप्पो अच्छति, एत्थ य अंतरा सक्को देविदो देवराया एयस्स अद्धिति अवणेमित्ति ओग्गहं पुच्छति, सामी कहेति, उपोद्घाता | पंचविहे उग्गहे-देविंदोग्गहे रायोग्गहे गिहवति सागारिए. साहम्मिउग्गहे, ते पुण उत्तरुत्तरिया, देविंदोग्गहे रायोग्गहण वाहिते | ताहे सक्को भणति 'जे इमे भंते ! अज्जत्ताए समणा णिग्गंथा विहरति एतेसिणं अई ओग्गहं अणुजाणामित्ति दित्ता सुस्सूसति, नियुक्ता ताहे भरहो भणति-अणुजाणामि जे भरहे वासे समणा णिग्गंथा०, ताहे सो त भत्तपाणं आणीतं भणति किं कायव्यं, ताहे सको | ॥२१३॥ भणति-जे तब गुणुत्तरा ते पूएहि, ताहे तस्स चिंता जाता, जातिकुलबलपरिभोगेहि णस्थि ममाहितो गुणुत्तरो, साहुणो गुणुत्त रा एए अम्हे निच्छंति, ताहे तस्स पुणोऽवि चिंता जाया, जहा-ममाहितो सावगा गुणुत्तरा, ताहे तं सावगाणं दिन । ताहे सो सकं भणति-तुम्भेहि केरिसेण रूवेण तत्थ अच्छही, ताहे सक्को भणति-ण सक्का तं माणुसेण दटुं,ताहे सो भणति-18 दो तस्स आकिति पेच्छामि, ताहे सक्को भणति-जेण तुम उत्तमपुरिसो तेण ते अहं दाएमि एगपदेस, ताहे एंगं अंगुलिं सब्बालंकारविभूसितं काऊण दाएति, सो तं दतॄण अतीव हरिस गतो, ताहे तस्स अट्ठाहियं महिमं करेति ताए अंगुलीए आकिर्ति काऊण, I एस इंदज्झयो, एवं वरिसे वरिसे इंदमहो पश्यत्तो पढमउस्सयो । भरहो भणति-'तुम सि देविंदो, अहं मणुस्सिदो, मित्तामो, एचं होउ । ताहे भरहो सावए सद्दावेचा भणति 'मा कम्मं पेसणादि वा करेह, अहं तुभ दित्ति कप्पेमि, तुमहिं पढतेहिं सुणंतेहिं जिण-| साधुसुस्सूसणं कुणंतेहिं अच्छियव्वं, ताहे ते दिवसदेवसियं भुजंति, ते य भणंति-जहा तुम्भ जिता अहो भवान् बर्द्धते भयं मा हणा- १३॥ हित्ति, एवं भणितो संतो आमुरुत्तो चिन्तति-केण हि जितो, ताहे से अप्पणो मती उप्पज्जति कोहादिरहि जितो मित्ति, एवंद अनुक्रम (219) Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२१४॥ *3436 "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [१३७-१५० / ३५०-३६३] आयं [३७]...]] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - भोगपमत्तं संभारेति, ताहे तस्स धम्मज्झाणं भवति किंचि कालं जाय सदाहिसु ण अक्खिप्पति, ताहे तं लोगेणं भुञ्जितुमार, ते महाणसिया जाणंति इमा अणवत्था, ताहे उवडिता भरतरायिणो, ताहे राया भणति पुच्छिज्जंतु को भवान् ?, श्रावकः १, ताहे जे सावगा महंता ते पुच्छज्जंति को भवान् ? श्रावकः, श्रावकाणां कति व्रतानि ?, अस्माकं व्रतानि न सन्ति, अस्माकं पंच अनुव्रतानि सप्त शिक्षापदानि, ताहे पंचसु अणुव्वएस सत्तसु सिक्खावएस जे णिक्खमणपवेसं जाणीत तं जुतका कता, पच्छा रनो उवणीता, ते सव्वे कागणिरयणेण लंछिता, पुणरवि वृत्ता-छण्ह छण्ड मासाणं अणुयोगो जहा भवति, एवं ते उप्पन्ना माहणा णाम, जे तेसि पुत्ता उप्पज्जेति ते साहूणं उवणिज्र्ज्जति, जति मित्थति तो लठ्ठे, अहं न नित्थरंति ताहे अभिगयाणि सङ्ग्राणि भवंति, अन्नोऽवि जो कोऽवि तत्थ उवडार तंपि ते उवणेति भरहस्स, ताहे सो काकणिरयणेण अंकिज्जति, जेऽवि ते चेडा निम्माया भवंति तेसिपि भरहो कागणिरयणेण चिंध करेति पुणरवि बुं (भु ) ता जहा छण्डं छण्डं मासाणं अणुओगो भवति । एवं ते उप्पन्ना माहणा, काम जदा आहच्चजसो जातो तदा सोबभियाणि जन्नवश्याणि । एवं तेर्सि अट्ठ पुरिसजुगाणि ताव सोवनिताणि । राया आइचचजसे, महाजसे अनियले य वलभहो । बलविरिय कत्तविरिते, जलाणावर दंडावरिए य || ३ || १५० ॥ एतेहिं अहिं राइहिं जो उसमसामिस्स महामउडो आसि सो चातितो वोढुं, सेसेहिं न चाइओ । एत्यंतरे वित्तंतरगंडिता विभासियच्वा जाव सगरो जातोति । आदिच्चजसादीहिं अट्ठहिं अट्टमरहं तं सेसेहिं भयणा ॥ . एवं अस्सावगपडिसेहे छडे छडे प मासि अणुओगो । कालेण य मिच्छतं [ जओ ] जिणंतरे साधुबौच्छेदो || ३ || १५२ ॥ दाणं च० चिरंतनगाथा ।। ३ ।। १५३ ।। भरहेण दिनं, लोगोऽवि दातुं पवतो भरहपूजितति (220) वेदोत्पातः जिनचक्रयादिः ।।२१४॥ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५१-१५५/३६४-३६८], भाष्यं [३७...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGA नियुक्ती IN काउं, आरिया पैदा कता भरहादीहिं तेसिं सज्झातो होउनि, तेसु वेदेसु तित्थगरथुतीओ जतिसावगधम्मो संतिकम्मादि य चकिवासुआवश्यक बनिअति, अणारिया पुण पच्छा सुलसायाश्यवल्क्यादिभिः कृता ।। इति पुच्छात दारं ॥ देवादिः चूर्णी पुणरविय समोसरणे ॥३॥ १५४॥ जिण चक्कि० ॥३॥१५५॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं भगवं अट्ठावयमागतो उपोद्घाता टविहरमाणो, समोसरणं, भरहो णिग्गो महिदिए, वंदित्ता जिणिदमहिमं पेच्छंतो, पुच्छति, जहा-ताता ! जारिसया लोगगुरू केवली तुम्भे सरिसया एत्थ किमन्नेवि भविस्संति ?, आम, भगवं! केवतिया, अह भणति जिणवरिंदो एरसिया तेवीसं अजि॥२१॥ ४ तादि, तेसि वनो पमाणं णामं गोचाई आयुबाई मातिपितरो परियायो गती य सव्वा वत्तव्यया विभासियच्या। ताहे पुच्छति जारिसोमि अहं एरिसा अने ताता!, अह भणति-एक्कारस सगरादि होहिंति, तेसि वन पमाणादि । ताधे | सामी इमाणि णव जुगलगाणि अपुट्ठो चेच वागरेति । णव बलदेवा णव वासुदेवा । वनादि धम्मायरिया, को बा कहि तित्थगरे अंतरे वा सब्बा बत्तवता विभासियव्वा ।। उसमे भरहो अजिते सगरो मघवं सणकुमारी य । धम्मस्स य संतिस्स य, जिणतरे चावहिवुगं ॥ ३-२१३ ।। संती कुंथू य अरो अरहता चेव चकवट्टी य । अरमाल्ल अंतरंमि य । हवति सुभूमो प कोरप्यो ।। ३-२१४ ।। मुणिसुब्वए णर्मिमि य हाँति दुवे पउमनाभ हरिसेणा । णमिणमिमु जयनामा अरिद्वपासंतरे बंभो ॥ ३-२१५ ॥४॥२१५।। पंच सत अद्भपंचम, पायाला चेय अधणुयं च । चत्ता दिवढ घणुपं च चउत्थे पंचमे चत्ता ।। Firs दीप अनुक्रम NCER (221) Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५१-२१५/३६४-४२०], भाष्यं [३८-४३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत T HEIG दीप 8. पणुतीसा तीसा पुण अठ्ठावीसा य वीस घणुगाणि । पन्नरस बारसेवय अपछिछमा सत्त य धणूणि ॥ चक्रिवासुआवश्यकदिएस ताव उस्सेहो चक्कीणं, इयाणि आउगं तेसि । देवादिः चूर्णी उपोद्घाता चउरासीति बावत्तरी य पुब्वाण सयसहस्साई। पंच य तिनि य एर्ग च सयसहस्सा उ वासाणं । नियुक्ती पंचणउतिसहस्सा चउरासीती य अट्ठमे सट्ठी। तीसा य स य तिन्नि य अपच्छिमे सत्त वाससया ।। ॥२१६॥ एवं ता आयुगं गतं, इयाणि गती-'अद्वेव गता मोक्वं' । टीपंचारिहंते वंदंति केसवा पंच आणबीए । सेज्जस तिविट्ठादी धम्म पुरिससीह पेरंता ॥ ३-२०६॥ अरमल्लिअंतरे दोन्नि केसवा पुरिसपोंडरिय दत्तो । मुणिसुब्बयणमि अंतरे णारायण कण्ह नेमिमि ॥ ३-२०७ ।। पढ़मो धणूणमसिती सत्तरि सट्ठीय पन्न पणयाला । अउणतीसं च धणू छब्बीसा सोलस दसेव ।। उच्चत्तं गतं-चउरासीति विसत्तरि सट्ठी तीसा य दस य लक्खाई। पन्नहि सहस्साई छप्पन्ना बारसेगं च॥ आउगं गतं -एगो य सत्त० (३-२००) ।। अणिदाणकडा०(३-२०१)। ।। अद्भुतकडा रामा० (३-२०२) ।।। चधिदुगं हरिपणगं पणगं चकीण केसवो चकी। केसव चकी केसव दुचकि केसी य चक्की य ॥३.२०८ । तिविठ्ठ २१६॥ (३-४० भा.) अयले (३-४१) आसग्गीवे (३-४२) ।। एते खलु पडिसतू० (३-४३ 'भा.) ।। इयाणि जो चकवट्टी है। वासुदेवो वा जमि जिणंतरे आसि त भण्णति एतेण संबंधेण जिणंतराणि कालतो णिदंसिज्जति । तं जहा अनुक्रम AARA वासुदेव और बलदेवानां वर्णनं (222) Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णं उपोद्घात नियुक्तौ ॥२१७॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [१५१-२१५/३६४-४२०], भाष्यं [ ३८-४३] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उसभी वरचसभगती वतियसमा पच्छिमंमि कालंमि । उप्पनो पढमजिणो भरहपिता भारहे वासे || १ || पन्नासा लक्खेहिं कोडीणं सागराण उसभाओ । उप्पन्नो अजियजिणे! ततिओ तीसाए लक्खेहि || २ || जिणवसभसंभवाओ दसहि लक्खेहिं अयरकोडी | अभिनंदणो य भगवं एवइकालेण उप्पनो ॥ ३ अभिनंदणाओ सुमती नवहिं लक्खीह अयरकोडीणं । उप्पनो सुहपनो सुप्पभनामस्स वोच्छामि ॥ ४ ॥ उईय सहस्सेहिं कोडीणं सागराण पुन्नाणं । सुमतिजिगाओ पउमो एवति कालेय उप्पन्नो ।। ५ ।। पउमप्पभनामाओ णवहिं सहस्सेहिं अयरकोडीणं । सुहपुत्रो संपुन सुपासनामो सम्मुप्पनो ॥ ६ ॥ कोडीसएहिं वहिं उ सुपासणामा जिणो सम्पन्नो । चंदप्पभा पभाए पभासयंतो उ तेलोक्कं ।। ७ ।। गउतीय तु कोडीहिं ससीष्ट सुविहिजियो समुप्पन । सुविद्दिजिणाओ नवहिं कोडीहिं सीतलो जातो ॥ ८ ॥ सीतलक्षिणाउ भगवं सेज्जसो सागराण कोडीए । सागरसयऊणाए वरिसेहिं तथा इमेहिं तु ।। ९ ।। छब्बीसाए सहस्सेहिं चेत्र छाडिसयसहस्सेहिं । एतेहि ऊणिया खलु कोडी मम्मिलिया होति ।। १० ।। चउपन्ना अयराणं सेज्जंसाओ जिणो उ वसुपुज्जो । वसुपुज्जाओ विमलो तीसहि अयरेहिं उप्पनो ॥ ११ ॥ विमलजिणा उप्पनो वहिं तु अयरेहि अणंतइजिणोवि । चउसागरणामेहि अनंतईओ जिणो धम्मो ॥ १२ ॥ धम्मजिणाओ संती तिहिं तिचउभागपलियऊहिं । अयरेहिं समुप्पन्नो पलियद्वेणं तु कुंथुजिणो ।। १३ ।। पलियच उन्भागेण कोडिसह स्वणएण वासाणं । कुंधूओ अरणामा कोडिसहस्सेण मलिनियो । १४ ।। मल्लिजिणाओ मुणिसुब्बओवि उपवासलक्खेहिं सुव्वयनामाता णमी लक्खेहिं छहिं तु उप्पनो ।। १५ ।। पंचहि लक्खेहिं ततो अरिनेमी जिणी समुप्पन्नो । तेसीतिसहस्सेहिं सतेहिं. अमेहिं दा || १६ || नेमीओ पासजिणो पासजिणाओ य होइ वीरजिणो । अढाइज्जसएहिं गतेहिं चरिमो समुत्पन्नो ॥ १७॥ ठवणा अत्र भगवंत ऋषभात् आरभ्य भगवंत वीर पर्यन्त जिनानाम् अन्तरं दर्शयते | (223) जिनान्तराणि ॥२१७॥ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [१५१-२१५/३६४-४२०], भाष्यं [३८-४३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भी पत आवश्यक चूर्णी उपोद्घातात नियुक्ती कोडि लक्ख ९ 18 जिनान्त राणि अभिनंदन कोडीओ णउति ९० चंदप्पभ सागर ३० ॥२१८॥ दीप CAXAT********* कोडि लक्ख ५० उसभ कोडीण जउतिसहस्सा ९० सुमति कोहिओ अब ९ पुष्पदंत सागर ९ विमल पलितद्धं १२ संति बास लकख ६ मुणिसु, कोडि लक्ख ३० कोडिलक्ख १० अजित संभव कोडीण णव सहस्सा ९ कोडीण जवसबाई९पनमपह सुपास कोडी ऊणाय १०० ६६२६००७ सागर५४वरि० सीतल सेजस सागर ४ सागर३ ऊणाई पलियचरभाग ३ अर्णत . धम्मस्स पलित चरभाओरउण वासकोडिश बास कोडि १ कुंथुस्स वरिसलक्ख ५ वास सहस्सा ८३७५० नमिस्म, जेमिस्त्र अनुक्रम अरस्स वास लक्ख ५४ मलिस्स वाससया २५० पार्श्व वर्धमान ॥२१८॥ (224) Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२०९-२२३/४२१-४२८], भाष्यं [४४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी एत्थ य असंमोहत्थं जिणचकिवासुदेवाणं जो जम्मि काले अंतरे वा जं वा पमाणं आयु वा एयस्स सुहपरित्राणत्थं इमोलचक्रचादियं आवश्यक उवाओ-बत्तीस घरयाई काउं तिरियाययाहि रेहाहि । उड्डायहाहिं काउं पंच घरयाई तो पढमे ॥१॥ पन्नरस जिण निरंतर सुन्न जत्रोत्पादः दुर्गति जिण मुन्नतियगं च । दो जिण सुब जिणिदो सुन्न जिणो सुन दोनि जिणा ॥२॥ वितियपंतिठवणा-दो चक्की सुन्न तेरस पण उपोद्घात चक्की सुन्न चकी दो सुन्ना । चक्की सुन्न दु चक्की सुन्नं चक्की दुसुमं च ॥३॥ ततियपंतिठवणा-दस सुन्न पंच केसव पण मुचं नियुक्तो केसी सुन्न केसी य । दो सुन्न केसवोऽविय सुन्नदुर्ग केसब तिमुलं ॥४॥ चउत्थपंतीए पमाणं पुब्वभणितं, पंचमपंतीए आउयं तहेच. ॥२१९॥ तत्थ इमा ठवणा (४४ भा.) अह भणति णरवरिंदो .. तत्थ मिरीई नामं० (३-२०९) तं दाएइ (३-२१०) आदिगरोदसाराणं० (३-२११) पोतणाणामं णगरी तस्स पहाणा, 12तहा महाविदेहे म्याए गगरीए पियमित्तो णाम चक्कवडी ।। तं वयर्ण सोडणं (३-२१२) अंचिताण तणूल्हाणि-रोमाणि सरीरे जस्स 'सो विणएणमुवबओ० (३-२२३) तिक्खुत्तोत्ति त्रिकरवः तिनी वारे इत्यर्थः । वग्गुत्ति या वायात वा बयणति वा एगढ्ढा ।।। लाभाहुते सु० (३-२१४) लाभा नाम लाहगा । दस चोदसमो णाम चउव्वीसतिमो । . आदिगरी दसाराणं (३-२११) णवि ते पारिव्वज्जं चंदामि अहं, इमं च ते जम्मं । जे होहिसि तित्थगरी ॥२१९॥ अपच्छिमो तेण वंदामि ॥ (३-२१५) दीप अनुक्रम RASA (225) Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूणीं उपोद्घात नियुक्तौ ॥२२०॥ お幸 ० ५०० ४५० ४०० ८४पूर्वलक्ष ७२ ६० संवि कुंथू अरो नाहो संतिपाहो ऋषभ अजित संभव अभिनंदन सुमति पद्म सुपार्श्व चंद्र सुविधि शीतल श्रेयांस वासुपूज्य विमल अनन्त धर्म भद्द सगरो ० ० ० O ० ० ० ० ० ० कुंभू अरो सब० "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) यं (v) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२०९-२२३/४२१-४२८], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 0 ० ३५० ५० ० 0 सह० बासस० ८४ ६५ - ० ० ० ० ० ० ३०० २५० २०० १५० १०० ४० ३० २० १० २ ० महि मुणिसुब्बय सुभूम ० O - ० पउम ० (226) ० ० ० ० ० मघवा सनत्कुमा. ० तिविठू दुविठू सयंभू पुरिसोत्तम पुरिस० ० ० ९० ८० ७० ६० ५० ४५ ४२ ४०॥ १ ८८लक्षवर्ष ७२ ६० ३० १० ५ नेमि ० णमि ० पास वीरो 0 पाराय ० ० ० ० दत्त कण्हा ० पुरिसपुंड धणु ४० धणु ३५ धणु ३० ह२९ २८ व २६ धणुह २५ धणुह २० णु. १६णु. १५ धणु. १२ धणु. १० धणु ७ हत्था ९ हत्थ-७ वरि बाससह बास वाससह रस स्स बासस० वासस०] वासस० वासस० वासस० वासस० बासस० वाससत वाससा वरिस ६० ५६ ५५ ३० १२ १० ९५ १ १ ७२ इरिस जयना ० ० 0 ० मदत्त ० ० 60 शलाकायंत्र ॥२२० ॥ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मदकरणं पूणों सत्राका श्री एवन्नं थोऊणं०(३-२२६)तं वयणं सोऊणं०(३-२२७)जादि वासुदेव०(३-२२८)अयं च दसाराणं पिया य मे चक्कर आवश्यक विषसस्स । अज्जो तिस्थगराणं पढमोत्ति बट्टति]अहो कुलं उत्तम मजन (३-२२९)एत्थं नीयागोयं कम्मं निबद्ध । पुष्यत्तिगतं इयाणि नेव्वाणति दारंउपोद्घाता , एवं च सामी विहरमाणो थोवूणगं पुन्वसयसहस्सं केवलिपरियायं पाउणित्ता पुणरवि अट्ठावए पव्यए समोसढो, तत्थ चोइसमेण नियुक्ती ४ा भत्तेण पाओवगतो, तत्थ माहबहुलतेरसीपक्खेणं दसहि अणागारसहस्सहिं सद्धि संपरिबुडे संपलियंकाणसम्रो पुन्चण्हकालसमयसि अभिइणा णक्खनणं सुसमदूसमाएएगूणणउतीहिं पक्खेहि सेसहि खीणे आउगे णामे गोते वेयणिज्जे कालगते जाव सब्बदुक्खव्य॥२२॥ | हीणे । चुलसीतीए जिणवरो समणसहस्सेहिं परिचडो भगवं । दसहि सहस्सहिं समं निब्बाणमणुत्तरं पत्तो ॥१॥ भरहो य तेलोकचंधुणा तारण भत्तं पच्चक्खातन्ति सोतुं परमसोयसतत्तहिदयों पादेहिं चेव पधावितो, सरुहिरकद्दमेहि य चालश्रो, सो तेण परिस्समो न चेव वेइओ, ताहे सामि बंदिता पज्जुवासति परमदुही, तं समयं च णं सक्कस्स आसणचलणं, ओहाए पउंजण, पणामादिकरणं जीतसरणं देवादिआहूयनं जहा जम्मणे जाब देवेहिं देवीहि य संपरिबुडे जाव जेणव भगवं तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्ता बिमणो णिराणंदे असुपुजनयणे तित्थगरं तिक्खुत्तो आदाहिणपयाहिणं करेति, करता नच्चासमे पाइदूरे। सुस्वसमाणे जाव पज्जुवासति । एवं सब्वे देविंदा सपरिवारा जाव अच्चुए आणयब्वा, एवं जाव भवणवासीणवि इंदा, वाणमंतराणे सोलस,जोइसियाणं दोनि, णियगपरिवारा नेयचा जाव य असुरावासा जाब य अट्ठावओ णगवारंदो । देवेहि य देवीहि यह अविरहियं संचरतेहि ॥१॥ एवं सव्वेहिं देवावासेहि, एवं तत्थ भगवंतो देविंदनरिंदेहिं परिवुडा णिब्युयति । इयाणि कूड़ा थूमजिणघरे, एत्य दो गाथा-- दीप अनुक्रम SEXHREECE AirA%A9 अत्र भगवंत ऋषभस्य निर्वाण-वर्णनं क्रियते (227) Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत निर्वाणम् HEIGE णेव्याण चितगा ( ) एवं निब्वाणं गते भगवंते तएणं से सक्के ते बहवे भवणवतिवाणमंतरजोतिसवेमाणिए देवे। एवं वगासी-खिप्पामेव भो गंदणवणाओ सरसाई गोसीसवरचंदणकट्ठाई साहरह २ ततो चितगाओ रएह, एगा बट्टा पुच्वेणं उपोदयात सामिस्स, एगा तंसा दक्षिणेणं इक्खागकुलुप्पमाण, एगा चउरंसा अवरेणं अवसेसाणं अणगाराणं, तेऽवि तहब करेंति । तए ण से नियत | सक्के आभिओगे देवे सदावेति सद्दावेत्ता एवं वयासी-'खिप्पामेव भो! खोरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह, तेऽवि तहेब ४ द साहरंति, तते णं से सक्के तित्थगरसरीरंग खीरोदएणं व्हाणेइ, हाणित्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेण अणुलिपति २ हंसलक्षणं ॥२२२॥ पडसाडगं नियंसेति नियंसेचा सव्वालंकारविभूसिय करेति, तए णं भवणबई जाव चेमाणिया गणहरसरीरगाई अणगारसरीरगाणि य खीरोदएण व्हावेंति सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिपति २ अहयाई दिव्बाई चेव देवदूसजुयलाई नियंसेंति २ सव्वालंकारविभूसियाई करेंति। तए ण से सक्के बहवे भवणबति जाव वैमाणितादि एवं बयासी-खिप्पामेव भो' ईहामिगउसमतुरग जाव वणलतभत्ति चिचाओ ततो सीयाओ विउबह, एग सामिस्स, एगं गणहराण, एर्ग अवसेसाणं, तेवि तहेव करेंति । तते णं से सके विमणे जाव असुबनयणे सामिस्स विणट्ठजम्मजरामरणस्स सरीरगं सीयं आरुभति जाव चितगाए ठवेति, तएणं ते बहवे भवणवति जाव वेमाणिया गणहराणं अणगाराण य विणह जाव सरीरगाई सीय आरुभेति जाव चितगाए ठाउँति । तएणं से सके अग्गिकुमारे देवे सहावेति सद्दावेत्ता 'खिप्पामेव भो ! तिमुवि चितगासु अगणिकायं विउबह, तएणं ते अग्गिकुमारा विमणा निराणंदा असुपुग्ननयणा जाव विउव्यतिचि, अग्गिकुमारा देवा मुखतो अग्गिं विधा-सृजः, ततःप्रतीतं अग्गिमुखा बै देवाः इति । ताहे तब बाउकुमारा वार्त विउव्वंति, जाव अगणिकार्य उज्जालेति । तए णं से सके ते बहधे भवणवति जाब एवं बयासी-खिप्पामेव भो तिसुवि चितगासु CERIESXXXXXXX** दीप अनुक्रम (228) Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२२३॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ २२६-२२९/४२९-४३५], यं] [४१] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - अगुरु तुरुकं घतं मधुं च मारम्भसो व कुंभग्गसो य साहरद्द, तेऽवि जाब साहरंति । ताहे मंसं सोणितं च शामितं, तरणं तहेव मेहकुमारा देवा तिमिवि चितगाओ खीरोदएणं निन्यावंति । ताहे सक्को सामिस्स उपरिल्लं दाहिणं सकहं गेण्डति, ईसाणो उत्तरिलं गेण्डति, चमरो हेडिलं दाहिणं बली हेडिल्लं बाम, अवसेसा भवण जाव वैमाणिया जहारिहं अवसेसाई अंगमंगाई गईति । तणं से सके बहवे भवणवति जाव वैमाशिया एवं बयासी खिप्पामेव भो तओ चेइअधूमे करेह, एगं सामिस्स एवं गणहराणं एवं अवसे साणं, तेऽवि तहेव करेंति । तए णं ते बहवे भवणवति जाव वैमाणिया देवा देवीतो य तित्थमरस्स भयवतो परिणिव्वाणमहिम करेंति, करेता जेणेव णंदीसरखरे दीवे तेणेच उबागच्छति उबागच्छित्ता अड्डाहियाओ महामहिमाओ करेंति । एवं जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाब महिमाओ करेला जेणेव साई साई विमाणाई जेणेव साईं साई भवणाई जेणेव साओ साओ सभाओ सुहम्माओ जेणेच माणवगा चेतितखंभा तेणेव उवागच्छंति उद्यागच्छिंता बहरामएस गोलबट्टसमुग्गएसु जिणस्स सकहाओ पक्खिति पक्वता विपुलाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहतिति । लोगो य पच्छा छारं संचिणति, तंमि छारेण डोंगरा कता, तप्पभिति छारेण डोंगरा लोगो करेइ, लोको सद्धाए तेण छारेण समालभति, कोह पोंडगाणिं करेति, तप्यभर्ति लोगो छारेण समालभतीति, ते च सट्टा अग्गिसकधादीणि जायंति, ताहे देवेहिं भणितं हमे केरिसा जायगा ?, ततो जायगसहो जातो, ताए अरिंग घेत्तुं ते सएस सएस गेहेसु उति एवं ते आहियग्गिणो य अग्गिजो जो सामिस्स तणओ सो दोऽवि संकमति, इक्खागाणं तणओ इतर संक्रमति, सेसअणगाराणं तणओ प संकमतित्ति । भरहो य तत्थ चेतियघरं करेति वद्धृतिरयणेण जोयणायामं तिगाउनुस्सेहं सीहनिसादि सिद्धायतणपलिभागं अणेग जाता (229) निर्वाणम् ॥२२३॥ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 अष्टापद NirRECASI प्रत सत्राका ॥२२॥ दीप श्री Bाखभसयसनिविट्ठ । एवं जहा बेयसिद्धाततणं जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव झता, तस्स ण चउहिसिं चत्तारि दारा सेता वरकणग-18 आवश्यक भितागा जाव पडिरूवा । तेसि ण दाराणं उभतो पासं दुहतो निसीहिताओ सोलस सोलस चंदणकलसा वमओ एवं नेपथ्यं जावा चूर्णी सोलस सोलस वणमालाओ अट्ठमंगलगा। तेसि गंदाराणं पुरतो पत्तेयं २ मुहमंडवे पन्नत्ते, अणेगखंभसय सभा वनओ, तेर्सि उपोद्घाता नियुक्ती गणं मुहमंडवाणं पत्तेयं पत्तेयं तिदिसिं तओ दारा पन्नत्ता, सेता बरकणगधूभितागा दारवचओ, जाव सोलस वणमालाओ। तेसि णं मुहमंडवाणं उल्लोओ पउमलताभत्तिचिचा जाव भूमिलताभचिचित्ता अंतो बहुसम, तसिणं मुहमंडवाणं उप्पि अट्ठट्ठ मंगलता पत्रता सोत्थिय जाब कत्थती य छत्ता, तेसिं ण मुहमंडवाणं पुरतो पत्नेयं पत्तेयं पेच्छाघरमंडव पबत्ते, मुहमंडवस्स पमाणवत्तव्यया सरिसा जाव बहुसमरमणिज्जाणं भूमिभागाणं बहुमज्मदेसभागे पत्तयं पत्तेयं अक्खाइए पबचे, ते णं अक्खाडगा सबबइरामया अच्छा जाव पडिरूवा । तेसिणं अक्खाडगाणं बहुमज्झदेसभागे पत्तेयं पत्तयं उप्पि सीहासणा । तासि उप्पि विभाये यूसा, बनतो। | तेसिगं पेच्छाघरमंडवाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं मणिपडिया पन्नत्ता सव्वमणिमया अच्छा जाव पडिरुवा । तासिणं मणिपेढियाणं उपि पने पत्तेयं चेइयथूभे पन्नत्ते. ते णं चेतियधृभा संखक जाव सब्बरयणामया अच्छा उप्पि अट्ठमंगलता । तेसिणं चेतियथूभाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं चउद्दिसि चचारि मणिपढियाओ मणिमया । तासि ण मणिपेढियाणं उपि पत्तेयं पत्तयं चत्तारि| जिणपडिमाओ जिणुस्सेहपमाणमे ताओ सम्परयणामतीतो संपलियंकणिसन्माओ धूभाभिमुहीओ चिट्ठति, तंजहा-रिसभा बद्ध| माणा, चंदप्पभा, यारिसेणा। तेसिणं चेतियथूभाणं पुरतो पत्तयं पत्तेयं मणिपढिता पत्रचा सधमणिमतीओ । तासिणं पचेर्य पत्ते चेतियरुक्खा बन्नओ जाव लताओ उपि अट्ट मंगलगा । तेसिणं चेइयरुक्खाणं पुरओ पचेय पत्तेयं मणिपढिया सब्वमणिमया | 2-10 अनुक्रम -*-11-1% | अत्र वैतादयपर्वत-स्थित शाश्वत-जिनालयस्य वर्णनं क्रियते (230) Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चस्य पत सत्राक * तासि उप्पि पत्तेयं पत्तेयं महिंदज्झए बहरामए जाव अहह मंगलगा, तेसिणं महिदायाणं पुरतो पत्तेयं पत्तेयं गंदापुक्खरणीतो अष्टापदे आवश्यक जाव तिसोणपडिरूवगा तोरणाई । तत्थण चेइयघरे अडयालीसं दसगा मणोगुलियाणं पुरस्थिमेणं सोलस दसगा, पञ्चत्थिमेणं चूणा सोलस दसगा दाहिणणं अट्ठ दसगा उत्तरेणं अट्ठदसगा। तासु ण मणोगुलियासु बहवे सुवन्नरुप्पमया फलगा । एवं जहा सभाए उपायान जाब दामा चिट्ठति । तत्थणं चेइए अडयालीसं दसगा गोमाणसिगाण पुरस्थिमेण सोलस जहा मणगुलिया, तासु बहवे सुवन्नरुप्प-1k नियुक्ती मता फलगा । फलएमु णागदता । णागदतएमु रजतामया सिक्कगा. सिक्कएमु धूवघडिताओ । तत्थण चतियउल्लोओ पउमलताभत्तिचित्तो जहा सूरियाभे । तस्स चेतियस्स अंतो बहुसमरमाणिज्जे भूमिभागे बनओ । तस्सणं यहुमजादेसभाए मणिपढिया सबमणिमया जाव पडिरूबा । तीसे ण उपि देवच्छदए सम्वरयणामए अच्छे जाव पडिरूवे । तत्थ णं देवच्छंदए चउबीसाए तित्थ| गराणं नियगप्पमाणवहिं पत्तेयं पत्तेयं पडिमाओ कारेति । तासि णं इमेतारूवे बन्नावासे पण्णते, तंजहा-अंकामयाई णक्खाई अंतो| लोहितक्खपडिसकाई तबणिज्जमया हत्थपायतला कणगमया पादा कणगामयीतो जंघाओ कणगमया जाणू कणगामया ऊरु कणगा| मयीओ गायलढाओ रिट्ठमईओ रोमरातीओ तवणिज्जमयीओ णाभीओ तवणिज्जमया बुबुया तवणिज्जमया सिरिवच्छा कणगामतीओ बाहाओ कणगामईओ गीचाओ रिट्ठामयाई मज्झाई पवालमया ओट्ठा फालितामया दंता तबणिज्जमतीओ जीहाओं तवणिज्जमया तालुया कणगमतीओ णासाओ अंतोलोहितक्खपडिसेगाओ रिट्ठामयाई अच्छिपत्ताई अंकमयाई अच्छीणि अंतोलोहि-8 यक्खपडिसेकाई रिट्ठामतीओ पुलकामतीओ दिट्ठीओ रिट्ठामयीओ भुमुकाओ कणगामया कवोला कणगामया सवणा कणगामया X॥२२५।। लाणिटालपट्टा, बारामतीओ सीसघडाओ तवणिज्जमयीओ केमंतभूमीओ रिट्ठमया उपरिमुया । एवं नियगवनवि भासा कायच्या । दीप अनुक्रम %AE % % (231) Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२२६-२२९/४२९-४३५], भाष्यं [४५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE का तासिणं जिणपडिमाण पिढी एगमेगा छत्तधरा पडिमा हिमरययकुंदेदुप्पगास सकोरंटमल्लदार्म मणिमुत्तसिलप्प-18/ अष्टापदे चूर्णी । वालजाल फलिहदंड धवलं आतपत्तत्वयं गहाय सलील धोरमाणीओ २ चिट्ठति । तासिण जिणपडिमाणं उभतो पास दो दो चर्त्य उपोद्घात चामरधारपडिमाओ चंदप्पभवइरवेरुलियणाणामणिरयणखचितचित्तदंडाओ सुहमरयतदीहवालाओ संखकुंददगरयअमयमधियफेनियुक्ती पुंजसंनिकासाओ चवलाओ चामराओ गहाय सलील बीयेमाणीओ २ चिट्ठति । तासिण जिणपडिमाणं पुरओ दो दोणागपडिदिमाओ दो दो जक्खपडिमाओ दो दो भूतपडिमाओ दो दो कुंडधारगपडिमाओ सब्बरयणामयीओ । तत्थ ण देवच्छंदए चउ॥२२६॥ोयीसं घंटाओ पउब्धीस चंदणकलसा, एवं एतेणं अभिलावण भिंगारा आदसा थाला पातीओ सुपइट्ठा मणगुलिया वातकरगा चित्ता रयणकरंडा हयकंठा गयकंठा णरकंठा जावा उसमकंठा । पुष्फचंगेरीओ एवं मल्लचुण्णगंधवत्थआभरणचउव्वीस पुष्फपडला, एवं जाव चउचीसं आमरणपडलगा, चउथ्वीसं लोमहत्थगपडलगा, चउरीसं सीहासणा, एवं छचा चामरा, चउब्बीस तेल्लसमुग्मा एवं जाव चउन्नीसं धूपकट्ठच्छुयत्ति । तस्स णं चितियस्स उप्पि अट्ठमंगलगा सेया जाव उप्पलहस्थगा य। एवं तं चायं अणदिगखंभसयसनिविट्ठ अन्भुग्गतसुकतवयरवेश्यागं तोरणवररइयसालिभंजियं मुसिलिडविसिट्ठलट्ठसठितपसत्थवेरुलियविमलखंभ णाणा-16 मणिकणगखतितउज्जलबहसममुविभत्तभूमिभाग ईहामियउसमतुरगणरमकरविहगवालफियररुरुसरभचमरकंजरवणलतपउमलत--- 18 भत्तिचिचं खंभुगतवद्दरवेझ्यापरिगताभिरामं विज्जाहरजमलजंतजुचमिव अच्चिसहस्समालिणीय रूबगसहस्सकलितं भिसमीण | भिन्भीसमीणं चक्खुल्लोयणलेस्सं सुहफार्स सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणधूभियाग णाणाबिहपंचवन्नघटापडागपरिमंडियग्गसिहरंट धवलं मिरीयिकवयं विणिम्मुर्यत लातुल्लोइयमहिय गोसीससरसरत्तचंदणदहरदिनपंचगुलितलं उपचियचंदणकलसं चंदणघडसुकत दीप अनुक्रम 54X4 (232) Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युको ॥२२७॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ २२६-२२९/४२९-४३५], यं] [४१] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - तोरबपडिदुबारदेसमार्ग आसतोस तीवउलबट्टबग्घारियमलदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्क पुष्फ पुंजीवया रकलितं कालागरुपत्ररकंदुरुक्कतुरुक्क यूबमघमषेंतगंधद्धतामिरामं सुगंधवरगंधगंधित गंधवट्टिभूतं अच्छरगणसंघर्सविकिनं दिव्यतुडितसदसंपणदितं सम्बरयणामयं अच्छे जान पडिरूवं कारयेत्ता भातुसयस्स य तत्थेव पडिमाओं कारवेति, अप्पणी य पडिम पज्जुवासंतिय, सयं च यूभाणं एगं तित्थगरस्स व सेसाणं एगूणगस्स भाउयसयस्स. मा तत्थ कोइ अतिगमस्सतित्ति लोहमणुया ठविया जंताउता, जेहिं तत्थ मजुया अइगंतुं ण सक्केंति । खंतूण य मंजूण य पासाई दंडरयणेण छिन्नकडगे काऊण अट्ठ पयाणि करोत, जोयणे जोयणे पदं, पच्छा सगरपुतेहि अप्पणी कित्तणनिमित्तं गंगा आणिीया उंडरवणणं भरहोचि कालंग अप्पसोगा जातो। ताहे पुणरबि भांगे जितुं पवचो एवं तस्स पंच पुव्वसयसहस्साई अइक्कंताई भोगे जमाणस्स । इयाणि भरहस्स दिक्खत्ति, कविलवत्तथ्वया पच्छा संबंधा भन्निहिती । तत्थ अत्र चक्रवर्ती भरतस्य केवलज्ञानस्य वर्णनं क्रियते - आसघरपवेसो० ॥ ३ । २४९ ।। अह अभया कयाति सव्वालंकारविभूषितो आयंसघरं अतीति तत्थ य सम्बंगिओ पुरिसो दीसति, तस्स एवं पेच्यमाणस्स अंगुलेज्जगं पडिये, तं च तेण ण णायं पडिये, एवं तस्स पलोएतस्स जाह तं अंगुलिं पलोएति जाव सा अंगुली न सोहति तेण अंगुलीज्जएण विणा, ताहे पेच्छति पडिये, ताहे कडपि अवणेति, एवं एक्केक्कं आभरणं अवतेण सव्वाणि अवणीताणि, ताहे अप्पाणं पेच्छति, उच्चियपमं व पउमसरं असोभमाणं पेच्छइ, पच्छा भणतिआगतुंएहि दन्देहि विभूसितं इमं सरीरगंति, एत्थं संवेगमायचो । इमं च एवं गतं सरीरं, एवं चितमाणस्स ईहावृहामग्गणगवेसणं करेमाणस्स अपुष्यकरणं झाणं अणुपविट्टो केवलणाणं उप्पाडेति । तत्थ सक्को देवराया आगतो भणति दव्यलिंग परिवज्जह, (233) अष्टापदे चैत्यं भरतस्य दीक्षाकेवले ॥२२७॥ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२४९/४३६], भाष्यं [४५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यक। सत्रा SC- 13ाजाहे णिक्खमणसक्कार करेमि, ताहे संनिहिताए चाणमंतरीए देवताए लिंगग्गहणं उबवित, साहे सस्केण देविदेण बंदितो, कपिलस्य अमेहि य, ताहे भगवं एग पुव्वसयसहस्सं केवलिपरियागं पाउणित्ता मासिएणं भत्रणं अपाणगेण समणेणं णखत्तेणं परिनियुएई चूर्णी | अहावए । भरहसामी दसहि रायसहसहस्सेहिं सद्धिं पब्धइओ । सेसा गव चक्किणों साहस्सपरिवारा पचहया । आइच्चजसो आजमोजकता उपायात सक्केण आभिसिचो । एवं अट्ठ पुरिसजुगाणि अभिसित्तत्ति । नियुक्ती __इयाणि कविलित्ति दारं, तत्थ 'पुच्छताण कहेती ॥ ३ ॥ २५० ।। सो य मिरिती सामिमि परिनिचुएवि साधूहि | ।।२२८॥ सर्व विहरति, तस्स य विहरमाणस्स जो उवट्ठाति तं पटवावेऊण साधूर्ण देति, जाव सो अन्नया कयाती गिलाणो जातो, ताहे साधुणो असंजयस्स वेयावडिया ण कज्जीतचि तेणं ते ण करेंति, ताहे सो संकिलिट्ठी चितेइ-अहो इमे साधुणो निरणुकंपा, | इयाणि जदि उडेमि जो य मे उहावेति तं अप्पणो चेव पवावेमि, एवं सो अमया रोगविमुक्को विहरति, तत्थ कविलो नाम | रायपुत्तो, सो तस्स पासे धम्म सुणति, इमो य से अणगारधम्मै पनवेति, ताहे सो मणति- तुम्मे अन्नहा ठिता, इमं च अन्नहा पनवेह, मिरिती भणति- एस साधणं धम्मो, अहं पावकम्मो ण सक्केमि काउं, सो भणति- एत्थ तुम्भं अस्थि किंचि !, ताहे सो भणइ- एतेसु अस्थि, इहवि मणागं, एत्थंतरा एएण दुम्भासिएणं संसारो अणेण वडितो कुधम्म बढतेण, जेण सागरोवमकोडाकोटि भमितो। तंमूलं संसारी॥३॥ २५२ ।। सोऽपि कविलो ण किंचि पडिवज्जति साहणं, ताहे मिराई चिंतति- एस साधणं गाहणं ॥२२८॥ |ण गेण्हति, मम य वितिज्जेण कज्जं तम्हा पञ्चावेमि, सोणेण पथ्यावितो । एवं सो तेण सम विहरति, एवं काले बच्चते अप्पणी -54--XECXY दीप अनुक्रम %ACK भगवंत वीरस्य कथानक मध्ये कपिलस्य शिष्यत्व-वर्णनं (234) Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२५२/४३९], भाष्यं [४५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आउक्खए चतुरासीति पुब्बसयसहस्से सव्वाउं पालइचा कालमासे कालं किच्चा अणालोयियपडिक्कतो बंभलोए कप्पे दससागरो- आवश्यक श्रीवीरस्य चूर्णी माहताए दवा जाता ४। II भवाःउपोद्घात सोऽवि कविलो मुक्खो ण किंचि जाणति सत्थं वा पोत्थं वा, जोवि उवट्ठाति ण तस्स कहे जाणति, णवीर आसुरिं पव्वानियतीति , तस्स आयारगोयर ववदिसति, एवं जाव सोऽवि कालगतो बंभलोए उवयचो, ओहि पउंजति २ आसरि पासति. तस्स INT चिंता जाता, जहा-मम सीसो ण जाणइ काच, उपदेस से देमिति सो आगासे पंचवयं मंडलं करेता तत्थ हितो, स च तत्र ॥२२९॥ दर्शयति अव्यक्तप्रभ व्यक्तं, चतुर्विंशतिप्रकारं ज्ञानं प्रकाशयति, ततः पस्यति अज्ञानावृत्तस्य तत्रैव प्रलीयते, पश्चात्त्पष्टितंत्र संवृत्तं, एवं कुतित्थं जातं । तं कविलो पढिज्जमिति । इवाणि जहा कोडाकोडि भमितो जह य तिविटूटू वासुदेवो चक्कवड्डी तित्थगरो जातो मिरिती एतं पगतं मिरितीवचन्वयं भणति इक्याएसु मिरिई चउरासीतिय यंभलोगंभि । कोसिओ कोल्हागंमी असीतिमायुं च संसारे ॥ ३ ॥२५३ ।। एवं सो मिरीयी तातो भलोगाओ चइऊण कोल्लाओ णाम संनिवसो तत्थ कोसितज्जो भणो जातो, तत्थ असीति पुष्वसयसहस्साई परमाउं पालतित्ता ५ संसारं अणुपरियट्टितो. एवं चिरं कालं अणुपरियद्वित्ता धूणाणामं सत्रिवेसो, तत्थ पूसमित्तो णाम माहणो आयातो, तत्थ से आउं वावत्तरि पुब्बसयसहस्साई, तत्थवि निबिनकामभोगो परिव्याओ पब्बतितो ६। कालमासे कालं किंचा सोधम्मे उबवत्रो अजहन्नुक्कोसहितीओ, ततो चुतो चेइए संनिवेसे अग्गिज्जोओ माहणो जातो, चोवहिा पुन्चसयसहस्साई सवाउं, तत्थ परिवाओ जाओ ८, ईसाणे उववन्नो अजहन्नुक्कोसडितीओ ९, ततो चुतो मंदिरे सनिवेसे अग्गि-1 Ck24 दीप अनुक्रम अथ भगवंत वीरस्य भवानाम् वर्णनं (235) Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [२५३/४४०-४४३], भाष्यं [४५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भवाः प्रत चूणों 13भूतिणाम माहणो छप्पन पुब्बसयसहस्सा सब्वायु, तत्थवि परिवाओ १०, सणकुमारे मज्झिमहिती उपवनो ११, ततो चुतोश्रीवीरस्य वश्यकता सेयवियाए भारदाए उ मादणो जातो, चोतालीसं पुब्बसयसहस्साई, तत्थवि परियाओ १२, माहिदे उववन्नो १३, ततो भुतो एत्थंतरे संसार अणुपरियट्टइ, उब्बट्टिता रायगिहे थायरो माहणो जातो, चौतीस पुब्बसयसहस्साई , तत्थवि परिवाओ १४, वंभलोए सुरो १५, एताओ छप्पारिवज्जाओ अणुबद्धं, ततो चुतो चिरं संसार भमिता । ततो भमित्ता रायगिहे णगरे विस्सणंदी, नियुक्ती तस्स भाता विसाहभूती,सो य जुवराया, तस्स जुवरण्णो धारिणीए देवीए विस्तभूतित्ति नामेण पुत्तो जाओ, रबो पुचो विसाहनादीति। ॥२३०| जातो।।। ३ ॥२५७।। रायगिहे विस्सनंदी, विसाहभूती य तस्स जुवराया, जुबरनो विस्तभृती, विसाहणंदी य इतरस्स, तस्स विस्सभूतिस्स वासकोडी आउं, तत्थ पुप्फरउगं णाम उज्जाणं, तत्थ सो विस्सभूती अंतेउरवरगतो सच्छंदमुदं पविहरति, जा सा विसाहणंदिस्स कुमारस्स माया तीसे दासचेडीओ पुष्फकरंडए उज्जाणे पुष्पाणि य पत्ताणि य आति, पेच्छति य विस्सभूतिं कित, तासि अमरिसो जातो, ताहे साहति जहा एवं कुमारो उवललति, किं अम्द रज्जणं वा बलेण वा जदि विसाहणंदी ण भुंजती भोगे, अम्ह पाम, किं पुण जुवरन्नो पुत्तस्स रज्जं जस्सेरिसं ललितं, सा देवी वासिं अंतियं एवं सोउं ईसाए कोवघर पबिट्ठा, जदि ता रायाए जीवंतेणं एस एरिसा अबत्था जाहे राया गतो भपिस्सति ताहे एत्थ अम्हे को गणेहितिः, राया गमेति, २३०॥ सा पसादं ण गेण्हति, किं मे रज्जेणं तुमे वत्ति?, ताए कहित-मम पुत्तो दासो जह अच्छति, सणाविज्जति तहषि ण ठाति, पच्छा तेण अमच्चस्स सिट्ठ, ताहे अमच्चो तं देवि गमेति, तहवि ण ठाति, वाहे सो अमच्यो राय भणति मा देवीए बयणातिकमो कीरतु , मा अप्पाणं मारेहिति, को पुण उवाता होज्जा?, ण य अम्ह बसे अचंमि आतिगते उज्जाणं अनो अतीति, तत्थ दीप RECORDC अनुक्रम (236) Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूणी उपो नियुक्तौ ॥२३१॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२५७/४४४-४५० आयं [४१...]] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 - - 1 वसंतमासं ठितो मासग्गेसु अच्छति, उवाओ कज्जतु, जो एत्थ य पचंतराया तस्स अत्थेण लेहो लिहिज्जतु, अने पुरिसा लेहारिया कीरंतु, ताहे ते लेहारा राउले उवणीता, एवं एतेण कयगेण कूडलेहा रनो उवडविया, ताहे राया जतं गेण्डति, कुमारेण सुतं, ताहे भणति – मए जीवमाणे तुम्भे कीस नागच्छह, ताहे सो गतो, ताहे त्र इमो अइगतो, सो य तं पच्चतं गतो, किंचि ण पेच्छति उडमारंतगं, ताहे आहिंडिचा जाहे णत्थि कोवि ताहे पुणरवि पुष्फकडगं उज्जाणं आगतो । तत्थ दारवाला डंडगहितहत्था भणति मा सामी अतीह, सो मणति- किं निमित्तं ? तेहिं भणितं एत्थ विसाणंदी कुमारो रमति एयमहं सोऊण ताहे कुमरो आसुरुतो, तेणं गातं कृतकंति, तत्थ कविट्ठलता अगफलभरसमोणता सा मुद्विप्पहारेण आहता, जहा तेहिं कविट्ठेहि भूमी अत्थता एवं तुम्भं अहं सीसाई पाडेंतो जाद अहं महल्लापउणो गोरखं ण करतो, अहं मे छत्रेण णीणिता, तम्हा अलाहि भोगेहिं ततो निग्गतो भोगा अवमाणमूलंति संभूताणं थेराणं अंतियं पञ्चइओ । तं पब्वइयं सोउं ताहे राया संतपुरपरिजण जुवराया यू णिग्गतो, ते तं खमावेति णो य सो तेसिं संपतिं गेहति, इतरोऽवि बहूहिं छट्टट्टमेहिं अप्पाणं भावेमाणो विहरह । एवं सो भगवं विहरमाणो मधुरं नगरं पत्तो, इमो य विसाहणंदी कुमारो तत्थ मधुराए पितुत्थाए रमो अम्गमहिसीए धृता लद्धेडिया तत्थ गतओ, तत्थ से रायमग्गे आबासो दिनों, सो य विस्तभूती अणगारो मासखमणपारणए हिंडतो तं देसं आगतो जत्थ ठाणे कुमारो विसाहनंदी कुमारो अच्छति तं देस पत्तो, तत्थ तेहिं परिसच्च एहि पुरिसेहिं भन्नति-सामी ! एवं पन्चइतगं तुब्भे जाणह १, सो भणति-ण जाणामि, तेहिं भणितं एस विस्सभूतिकुमारो, तं दण तस्स ताहे व कोवो जातो । तत्यंतरा सो सूर्तियाए गावए सोद्धितो पडिततो, ते तेहिं उकडिकलकलो कतो, इमं च हिं भाणयं तं बलं तुज्झ कवित्थ (237) श्रीवीरस्य भवाः ॥२३१॥ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [२५७/४४४-४५०], भाष्यं [४५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत भवाः सूत्रांक SANSA दीप ४ पाडणं च कहिं गतं?, ताहे तेण ततो पलोइत, दिवो य मेण सो पावो, ताहे अमरिसेणं तं गावि अग्गासंगेहिं गहाय उड्ड उव्विहति, श्रीवीरस्य आवश्यक सुदुम्बलस्सावि सीहस्स किसियालेहिं बलं लंधिज्जति ?, ताहे चेव नियनो, इमो दुरप्पा मम अज्जयि रोसं ण मुयति, ताहेत चूर्णी | सो णियाणं करोति, जदि इमस्स तबनियमबभचेरस्स अस्थि फलं तो आगमेस्साणं अपरिमियबलो भवामि १६, पाता ताहे सो तत्थ अणालोइवपडिक्कतो महासुक्के उपबन्नो १७, तत्थ उक्कोसाट्टिती । ततो चुतो पोयणपुरे| नियुक्ती पुचो पयावइस्स मियावतीकुच्छिसंभवो, भगवं! तस्स कद पयावतिचि णाम?, तस्स पढमं रिपडिसत्तू णाम होत्था, ॥२३॥ तस्स भद्दा देवी, तस्स पुत्तो भद्दाए अत्तए अचले णाम कुमारो होत्था, तत्थ अचलस्स भगिणी मियावती गामा | दारिया अतीव रूवेण जोब्बणेण य, सा उम्मुक्कबालभावा सब्बालंकारविभूपिता पितुपादबंदिया गता, तेण सा उच्छंगे निवेसाविता, सो तीसे स्वेण य जोवणेण य अंगफासंमि य मुच्छितो, तं विसज्जेचा पउरजणवयं वाहरति, वाहरेता ताहे भगति-जे पत्थ रत्तं वा स्यण वा उप्पज्जति ते कस्स', ताहे ते भणति-सुम्भ, एवं तिनि वारा साविते सा चेडी उबविया, ताहे ओहयमताणसंकप्पा ते निग्गता, ताहे तेसि सब्बेसि कूवमाणाण तेण गंधव्वेण विवाहेण सयमेव विवाहिता, उप्पाइता गणेणं, ताहे सा भद्दा पुत्तेणयलेण समं दक्षिणावहे माहेसरिपुरि निवसति, महंतीए इस्सरीएचि माहेस्सरी, अयलो तत्थ मातं ठावेत्ता पितुमूलं गतो, वाहे लोगण पजापतित्ति से णामं कत, वेदेऽप्युक्तं 'प्रजापतीः खां दुहितरमकामयत ।' ताहे महामुकातो चुतो तीसे मिगावतीए दि कुच्छिसि उबवन्नो, सत्त सुविणा दिट्ठा, मुविणपाढएहिं पढमबासुदेवो आदिहो, कालेण जातो, तिनि पिट्टकरंडगा तेण से तिवि त्ति णाम कतं, माताए उण्हतेल्लेण परिमक्खितो, सो जोव्यणगमणुप्पत्तो। इओ य महामंडलीयो आसग्गीतो राया, सो मिनी | PM अनुक्रम CREAK ॥२३२ (238) Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२३३॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) भाष्यं [४५...] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [२५७/४४४-४५०], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 अप्पणो मच्चु पुच्छति, कतो मम भयंति?, तेण भणियं जो एवं सीहं मारेहित्ति चंडमेहं दूतं आधरिसेहिति ततो भयं ते, तेण य सुतं-- जहा पयावतिस्स पुत्ता महाबलवगा, मित्तियादिगा य, ताहे तं दूतं पयावतिस्स मूलं पेसेति दूतो संपत्ती, तत्थ य अंते पुरपेच्छणयं वहति, तत्थ दूतो पविडो, राया उडतो, तं पेच्छणयं भग्गं, ते कुमारा पेच्छणगण अक्खित्तगा भणति को एसतिः, तेहिं भणितं जहा अहिरण्णो दूतोति तेहिं भणितं – जया बच्चेज्जा तदा कहेज्जाह, सो अनया तेण पडिपूजितो पाहुडेणं, ताहेणिग्गओ पहावितो अप्पणी विसयस्थ, कुमाराणं च मणुसेहिं कहितं, ताहे सो तेहि गंतुणं हतमहितपवरजाव सव्यं घेणं णियता, ते य से सच्चे मणूसा दिसोदिसि पलाया. रत्ना सुतं जहा आधिरिसितो दूतो, ताहे संभ्रमेण गंतूण निर्वाचितो ताहे रनो विगुणतिगुणं दाऊण भणितो- मा हु रनो साहिस्सास जं कुमारेहि कतं, तेण भणियं ण साहेमि, ताहे जे ते पुरतो गता तेहिं सिहं, जथाआधरिसिओ दूतो, ताहे सो राया कुचिओ, तेण दूतेण पातं जहा रनो पुव्वकहितेल्लयं, जहावत्तं सिद्धं तेण, रत्ना भणितं अमो दूतो गच्छतु तं पयावहं गंतूण भणाहि मम साली कसिज्जमाणे रक्खाहि, दूतो गतो, रमा कुमारा उबलद्धा किह अकाले मच्चू खबलियो ?, तेण अम्हं अवारए चैव जत्ता आणना, राया पहावितो, कुमारेहिं भणितं अम्हे बच्चामो, ते रुज्झ तं मड्डाए गता, ताहे ते खेलिए पुच्छीत कि ते रायाणो रक्खिताइया, ते भांति आसहत्थिरह पुरिसपागारं काऊणं, केचिरं ?, जाव करिसणं पविट्ठन्ति, तिबिट्टू भणति को एच्चिरं कालं अच्छति, ममं तं पदेसे दावेह, तेहिं कहितं - एयाए गुहाए, ताहे कुमारेण ततो हुत्तो रहो दिनो जाव गुहं पविडो, लोगेण दोहिवि पासेहि कलकलो कतो, ताहे सीहो वियंभंतो निग्गतो, कुमारो चितति-एस पयायेहिं अहं रहेण, विसरिसं जुद्ध, ताहे असिखेडगहत्थो रहातो उत्तिन्नो, ताहे पुणो चिंतितं-एस दाढकखाउघो अहं असिखेडएणं, एवमवि (239) श्रीवीरस्य ॥२३३॥ Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.... श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२३४॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२५७/४४४-४१० आयं [४१...]] ..... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 - विसमं, ताहे तंपि णेण असिखेडगं छड्डितं ततो सीहस्स अमरिसो जातो, एगं ता रहेण गुहं अतिगतो एमागी, वितियं भूमिं उत्तिनो, तृतियं आयुधाणि सुतित्ता ठितो, अज्ज णं विणिवामित्ति महया अवदालितण वयणेण उकखं दाऊन संपतो, ताहे ते कुमारेण एगेण इत्थेण उवरिल्लो ओट्टो एगेण हेडिल्लो ओट्टो गहितो, जुनपडगोविव विदालेऊन एगते एडितो, ताहे लोगेण उक्कडिकलयलो कतो, आभरणवत्थवासं च पाडित, ताहे सो सीहो तेण अमरिसेण फुरुफुरेंतो अच्छति, एवं नाम अहं कुमारएण होतएण जुद्धे मारिओति, तं च किर कालं गोयमसामी भगवतो सारही आसि, तेण भमति मा तुमममरिसं बहाहि, एत्थ को रोसो अद्धिती वा ?, एस णरसीहो, तुम मिगसीहो, जदि सीहो सीहेण मारितो तो एत्थ को अवमाणो !, सो ताणि वयणाणि मधुमित्र पिवति, सो मरिता नरए उपवओो । सो कुमारो तं चम्मं गहाय सणगरस्स पधावितो, ते गामेल्लए भणति गच्छद भो घोडगगीवस्स कहेह जहा अच्छसु वसित्थात, तेहिं रनो सिद्धं जहा पयावइपुत्रेण मारितोति, ताहे कुद्धेो दुयं पेसेति, जहा एते ते पुते तुमं ममं ओलरगए पत्थवेहि, तुमं महलो अच्छाहि, जाणे अहं पेच्छामि सक्कामि रज्जाणि से देमित्ति, तेण भणितअच्छंतु कुमारा, सयं चैव अहं ओलग्गामि, ताहे सो पुणो भणति - किं ता पेसेसि आओ जुद्धसज्जो णिग्गच्छसि 2, सो दूतो तेहिं घरिसेत्ता घाडितो, ताहे सो आसंग्गीवो सब्वबलेण उबट्टितो, इतरेवि देते ठिता, सुबडुकालं जुज्झिऊण हयगयरहणरादिखयं च पेच्छिऊण कुमारेण दूतो पेसितो, जहा अहं च तुमं च दोऽवि अहियपुरिसा, एतेऽन्ये पुरुषा भृत्याः अस्माकं किंवा बहुणा अकारिजणेण मारितेण १, अम्हे चैव लियामो, एवं होउाचि वितियदिवसे दोऽवि रहे संपलग्गा जुज्यंति, जाहे पुण आयुहाणि प्रीणाणि ताहे आसग्गीवो चक्कं सुयति तं तस्स तुम्बे णउरे पडियं, पच्छा तेणेत्र चक्केण आसग्गीवस्स सीसं छिनं, देवेहिं उघुई (240) श्रीवीरस्य भषाः ॥२३४॥ Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [२५७/४४४-४५०], भाष्यं [४५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HI पत श्री Jएस पढमो विवि नामेण वासुदेवोति, जहा वासुदेवजरासंघाणं जुई तहा वयर्थ । ते सम्बे रायाणो ओपतिता, ओपवितं बीवीरस्य आवश्यक अहूं भरहं, कोडियसिला पाहाए धारिता लीलाकहूँ व, एत रहावत्तपब्बतसमीवे जुद्धं आसी, एवं परिहायमाणे बले कण्हेण किरा भवा। गुणा किवि जन्नुगाणि पाविता । तिविट चुलसीति वाससयसहस्साई सब्बाउयं पालता १८ सनमाए पुढवीए अपइट्ठाणे नरए उपउप नियुक्ती व नो १९ ततो य उच्चट्टित्ता सीहत्ताए २० पुणो नरएम २१ । ताहे कतिवयाई तिरियमणूसभवग्गहणाई भमिऊण अबरविदेहे म्याए रायहाणीए धणंजयस्स पुनो धारणीए कुञ्छिसि पियमित्तो णाम चक्कवट्टी जातो, तत्थ चतुरासीतिं पुण्यसयसहस्साई ॥२३५॥ परमाउयं पालेता चक्कवट्टिभोग चइत्ता पोटिलाणं घेराणं अंतियं पब्बइतो, वासकोडिं परियागं पाउणित्ता २२ महासुक्के कप्पे सबढे विमाणे देवो जातो, सत्तरससागरोवमाद्वितीतो २३ । ...ततो चुत्तो छत्तग्गाए णगरीए जियसत्तुस्स रमो पुत्तो महाए अत्तो गंदणो णाम कुमारो जातो, अचिरेण रज्जे ठवितो, चउ-18 हावीसं वाससहस्साई अगारवासमझ वसिचा पोडिल्लाणं अतियं पन्चइतो, एक्कारस अंगाई अहिज्जिचा तत्थ मासमासणं खममाणाPएगं वाससयसहस्सं परियागं पाउणित्ता इमेहि वीसाए कारगीह आसेवितबहुलीकतहिं तित्थगरनामगोयं णिवत्तेति । तंजहा अरहंत सिद्ध०॥३॥ २६४ ॥ दंसण॥३॥ २६५॥ अप्पुब्ब० ॥३॥ २६६ ।। पढम.( ) तं च | कहं०( ) ॥३॥ २६७॥ नियमा०॥३॥ २६८।। जहा पइरनाभो, तत्थ मासियाए सैलहणाए सढेि मचाई आलांइयपांडकतो समाहीए कालगतो २४ पाणवे कप्पे पुरफुत्तरवडेंसते विमाणे देवताए उपवनो २५ तस्थ वीस सागरोवमाणि दिग्वाणि भोगाणि भुजिऊण दीप अनुक्रम (241) Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका दीप माहणकुंडग्गामे० ॥ ३ ॥ २७० ॥ सुमिणअवधारगाथाहिं भणितं जं च पज्जोसवणाकप्पे पढमाणुओगे यह गर्भसंक्रमः आवश्यकता सव्वं नायब, ठाणासुन्नत्थं पुण किंचि भन्नति । चूणा | तेणं कालेण तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जे से गिम्हाणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे आसाढसुद्धे तस्स णं आसाढसुद्धस्स उपोद्घात नियुक्ती वातार छट्ठीदिवसेणं महाविजयपुप्फुत्तरपवरपुंडरियातो महाविमाणाओ वीसंसागरोवमद्वितीयातो अणंतरं चयं चइत्ता इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे इमीसे ओसप्पिणीए सुसमसुसमाए समाए विइक्कताए एवं सुसमाए सुसमसमाए दुस्सममुसमाए बहुवितिक्क॥२३६॥ ताए पन्नत्तरीए वासेहिं अद्धनवमेहि य मासेहिं सेसएहिं एकवीसाए इक्खागकुलसमुप्पण्णेहिं० गोतमसगोत्तेहिं तेवीसाए तित्थगरेहि x विइक्कतेहिं चरिमतित्थगरे पुञ्चतित्थगरनिहिढे माहणकुंडग्गामे णगरे उसमदत्तस्स माहणस्स कोडालसगोत्तस्स भारियाए देवाणदाए माहणीए जालंधरसगोत्ताए पुब्बरतावरत्तकालसमयंसि इत्युत्तराणक्खत्तर्ण जोगमुवागतेणं आहारवक्कतीए भववक्कतीए सरीरबकतीए कुच्छिसि गम्भत्ताए वकते, से य तिण्णाणोवगत होत्था-धहस्सामित्ति जाणति चवमाणे ण जाणति चुतेमिति जाणति. रयणिचणं देवाणदाए कुञ्छिसि गम्भत्ताए पकते तं रयणिं च णं सा सयणिज्जसि मुत्तजागरा ओहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे ओराले। चोइस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा-गय उसभ सीह अभिसेय दाम ससि दिणयरं झयं कुंभं । पउमसर सागर विमाणभवण रयणुचय सिहं च ॥१॥ तए ण सा हट्टतुट्ठा उसमदत्तस्स माहणस्स कहति । ॥२३६।। से य एवं वयासी-ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए। सुमिणा दिट्ठा, तंजहा-अत्थलाभो देवाणुप्पिए, एवं भोग० पुत्त सोक्ष०, एवं है। खलु तुम देवाणुप्पिए ! णवण्हं मासाणं अट्ठमाण य राइंदियाण वितिक्कंताण सुकुमालपाणिपाय अहीणपडिपुण्णपंचिदियसरीरं अनुक्रम | भगवंत वीरस्य गर्भ-संक्रस्य वर्णनं (242) Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूाँद उपोद्घात नियुक्ती KAR ॥२३७॥ लक्षणवंजणगुणोववेतं माणुम्माणप्पमाणपडिपुष्णसुजातसव्वंगसुंदरंग ससिसोमागार कंत पियदसणं सुरूचं दारय पजाहिसि | स्वप्नोसेविय ण उम्मुक्कबालभावे जोवणगमणुप्पत्ते रिउब्वेदययुवेदसामवेदअथव्वणवेद इतिहासपंचमाणं णिघंटुछट्ठाण संगोवंगाणं पलंमःसरहस्साणं चउण्हं वेयाणं सारए पारए धारए सडंगवः सद्वितंतविसारदे संखाणे सिक्खाकप्पे वागरणे छंद निरुत्ते जोतिसामयणे अनेसु य बहसु बभन्मएस गएसु सुपरिणिहिते यावि भविस्सति, ओराला गं तुमे देवाणुप्पिए! जाब दिट्ठा। तए सा देवाणंदा एतमहं सोचा जाब एवं चयासी- 'एवमेतं देवाणुप्पिया! अवितहमेयं देवाणुप्पिया! जाव से जधेयं तुम्भे वयहत्तिकटु सम्म पडिच्छति २ जाव सद्धि ओरालाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरति ।। इयाणिं अवहारत्ति० तेणं कालेणं तेणं समएणं सके णाम देविंदे देवराया वज्जपाणी पुरंदरे सतकतू सहस्सक्खे मघवं पाक-11 सासणे दाहिणलोगाहिवती बत्तीसविमाणावाससयसहस्साहिवती एरावणवाहणे सुरिंदे अश्यवरवत्थधरे आलइयमालमउडे णव-18 | हेमचारुचितचंचळकुंडलविलिहिज्जमाणगंडे भासुरवोंदी पलंबवणमाले महिद्धीए महजुतीए महाबले महायसे महाणुभागे महासोस्खे सोहम्मे कप्पे सोहम्मरडेंसए चिमाणे सभाए मुहम्माए सक्कंसि सीहासणांस, से ण तत्थ बत्तीसाए विमाणावाससतसाह.12 स्सीणं चउरासीए सामाणियसाहणि तावत्तीसाए तावतीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं अट्ठण्डं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिहंदू परिसाणं सत्चहं अणियाहिबईण चउहं चउरासीणं आयरक्खदेवसाहस्साणं अबेसि च बहूर्ण सोहम्मकप्पवाणिं वेमाणियाणं देवाण है य देवीण य, अमे पढ़ेंति-अमेसि च बहणं देवाण य देवीण य अभियोग्गउववनगाणं, आहेवच्चं पोरेवच्चं सामित्वं भट्टितं मह-181 ॥२३७॥ तरतं आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाणे महताहतणगीतवादियततीतलतालतुडियषणमुइंगपडुपडहवाइयरवेणं दिव्वाई दीप अनुक्रम * * (243) Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत आवश्यक चूों उपादातर नियुक्तो HEIGE ॥२३८॥ मोगमोमाई अंजमाणे विहरति, इमं च केवलकप्पं जंबुद्दीवं दीवं विपुलणं ओहिणा आभाएमाणे, पासति यऽस्थ समर्ण भगवं महा-15 इन्द्रस्तुतिः वीरं जाव गम्भत्ताए बक्कत, पासित्ता हतुट्ठचित्ते आणदिते गदिते पीतिमणे परमसोमणासते हरिसबसविसप्पमाणहियए। धारायणीमसुरभिकुसुमचंचुमालहयऊसवितरामकूवे वियसितवरकमलागणवयणे पयलियवरकडगतुडितकेऊरमउडकुंडलहारविरा-1 यंतरयितवच्छे पालवपलंबमाणघोलतभूसणधरे ससंभम तुरियं चवलं सुरिंदे सीहासणाओ अब्भुट्ठति, अन् द्वेत्ता पादपीढाओ पच्चो-18 रुहति, पच्चोरुहिता वेरुलियवरिहरिद्वाजणणिउणोयवितमिसिमिसेंतमणिरयणमंडिताओ पाउयाओ मुपति मुयित्ता एगसाडितं & उत्चरासंगं करति करेत्ता अंजलिम उलियहत्थे तित्थगराभिमुह सनट्ठ पयाई अणुगच्छति अणुगच्छित्ता बामं जाणु अंचइ २ दाहिणं जाणु धरणियलसि बिहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं घरणित सि णिवाडति णिवाडित्ता पच्चुण्णमति२ सा कडगतुंडियभिताओ मुताओ साहरति साहरेचा करतलपरिग्महितं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं वयासी णमोऽत्थु णं अरिहंताणं भगवंताणं आदिगराणं है तित्थगृराणं सहसंबुद्धाणं पुरिसोत्तमाणं पुरिससीहाणं पुरिसबरपुंडरीयाणं पुरिसवरगंधहत्थीणं लोगुत्तमाणं लोगनाहाणं लोगहियाणं लोगपईवाणं लोगपज्जाअगराणं अभयदयाणं चक्खुद्रयाणं मग्गदयाणं सरणदयाणं जीवदयाणं धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं धम्मनायगाणं धम्मसारहीण धम्मवरचाउरतचक्कवट्ठीणं दीवो ताणं सरणं गती पइट्ठा अप्पडिहयवरनाणदसणधराण जिणाणं जावयाणं तिमाणं तारयणं बुद्धार्ण बोहयाणं मुत्ताणं मोयगाणं सिवमतुलमरुयमणंतमक्खयमब्बावाहमपुणरावतयं सिद्गितिनामधेनं ठाणं संपत्ताणं, २२८॥ णमाऽन्धुणं समयस्स भगवतो महावीरस्स आदिगरस्स जाब संपाविउकामस्स, यंदामि णं भगवतं तत्थगयं इहगते, पासतु मे भगवं तत्थ गते इहगतंतिकट्टु बंदति णमंसति २ सीहासणवरंसि पुरत्यामिमुहे सन्निसन्ने । तए पं तस्स सक्कस्स देविंदस्स देव दीप अनुक्रम See (244) Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों संकल्पः सुत्रांक Kk रिमओ अयमेयारूचे जाव संकप्पे समुप्पज्जित्था-उप्पो खलु समणे भगवं महावीरे जंबुद्दीवे जाव माहणीए इच्छिसि, तं णो एतं आवश्यक भूतं वा भव्वं वा भविस्सति वा जन्नं अरिहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा या अंतालेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छकुलेसुन उपोद्घात वा दरिद्दकुलेसु वा किवणकुलेसु वा भिक्खामकुलेसु वा आयाइंसु वा आईति या आयाइस्संति वा, एवं खलु अरहंता वा चक्कबड्डी नियुक्तों वा बलदेवा वा बासुदेवा वा उग्गकुलेसु बा भोगकुलेसु वा राइनकुलेसु वा इक्खागकुलेसु वा खत्तियकुलेसु वा हरिवंसकुलेसु वा | अक्तरेसु वा तहप्पगारेसु विसुद्धजातिउदितोदितकुलवंसप्पसूतेसु मुदितमुद्धाभिसित्सु महता रज्जसिरिं कारेमाणेसु पालेमा-| ॥२३॥ |णेसु गम्भं वक्कर्मिसु वा ३ पयाईसु वा ३, अस्थि पुण एस भावे लोगच्छेरयभूते अणताहि ओसप्पिणिउस्सप्पिाहि वीतिकंताहि। समुप्पज्जति नामगोयस्स कम्मस्स अक्खीणस्स अवेदितस्स अणिज्जिनस्स उदएणं जनं अरहंता वा चक्कवट्टी वा बलदेवा वा वासुदेवा वा अंतकुलेसु वा पंतकुलेसु वा तुच्छ० दरिद्द भिक्खाग० किविण आयाईसु वा ३, णो चेव जोणीजम्मणणिक्खमणणं णिक्खमिसु वा णिक्खमंति वा निक्खमिस्संति वा, तं जीतमेतं तीतपच्चुप्पण्णमणागताणं सक्काण देविंदाणं देवराईणं अरहते | तहप्पगारेहिंतो जाव कुलहितो तहप्पगारेसु उग्गकुलेसु जाव विसुद्धजातिकुलबसेसु वा साहरावत्तए, तं सब खलु ममाव समण भगवा | महावीरं चरमतित्थगरं पुवतित्थगरानिद्दिट्ठ माहणकुंडग्गामाओ णगराओ जाच कुच्छीओ खत्तियकुंडग्गामे णगरे गाताणं खत्ति-18 याण सिद्धत्थस्स खत्तियस्स कासवगोतस्स भारियाए तिसलाए खत्तियाणीए वासिदुस्स गोताए कुच्छिसि गम्भत्ताए साहरा-16 x | वैत्तए, जेविय णं से तिसलाए गम्भे तंपियणं देवाणदाए जाव कुच्छिसि गब्मचाए साहरावचएत्तिकटु एवं संपेहिति, संपहिचा | हरिणेगमेसि पादत्ताणीयाधिवति देवयं सहावेति सद्दावेचा एवं बयासी-उप्पचे खलु भो देवाणुप्पिता ! समणे भगवं एवं सब्वं दीप अनुक्रम OMehek ॐॐॐॐॐ ॥२३॥ (245) Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२४०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 मणति जाव साहरिता मम एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणाहि, तए णं से पादत्ताणीयाधिवति देवे एवं कुत्ते समाणे हड्डे जाव कट्टु एवं देवत्ति आणाए वयणं पडिसुणेतिर उत्तरपुर च्छिमं दिसिभागं अवक्कमति २ वेउव्वियसमुग्धाएण समोहनतिर संखेज्जाई (जोयणाई) डंडे णिसरति, तंजहारयणाणं वइराणं वेरुलियाण लोहियक्खाणं मसारगल्लाणं हंसगभाणं पुलयाणं सोगंधियाणं जोति| रसाणं अंजणाणं पुलयाणं रयणाणं जातरूवाणं सुभगाणं अंकाणं फलिहाणं, अधावादरे पोग्गले परिसाडेति परिसाडेचा अहासुहुभे पोग्गले परियादियति२ दोच्चंपि वेउन्बिय समुग्धाएणं समोहन्नति२ उत्तरवेउच्चियं रूपं विउव्वतिर ताए उकिड्डाए तुरियाए चलाए जाव जेणेव देवाणंदा तेणेव उवागच्छतिर आलोए समणस्स भगवतो महावीरस्स प्रणामं करोति२ देवाणंदाए सपरिजणाए ओसोवर्णि दलयतिर असुभे पोग्गले अवहरति सुभे पोग्गले पक्खियतिर अणुजाणतु मे भगवंतिकट्टु दिव्वेणं पभावेणं करतलपुडेहिं अव्वाबाह अव्वाबाहेणं गेण्डतिर ताए उक्किट्ठाए जात्र जेणेव खत्तियकुंडे गामे णाताणं जाब तिसला खत्तियाणी तेणेव उवागच्छति, तीए सपरिजणाए ओसोवण दलयावर असुभे पोग्गले अवहरति२ सुभे पोग्गले पक्खिवति २ भगवं अब्याबाहं अव्वाचाहेण ताए कुच्छिसि गन्मत्ताए साहरति, जेऽवियण से गन्भे तंपि देवाणंदाए, जामेव दिसिं पाउन्भूते तामेव पडिगते जाव सक्कस्स एयमाणत्तियं पच्चप्पियति । तेणं कालेणं तेण समएणं भगवं तिष्णाणोचगते यावि होत्या-साहरिज्जिस्सामति जाणति साहरिज्जमाणे जाणति साहरिएमित्ति जाणइ, तेणं कालेणं तेण समएणं भगवं जे से वासाणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे अस्सोयबहुले तेरसीय बासीतीराईदिएहिं वितिकतेहिं तेसीतिमस्स रातिदियस्स अंतरा वद्रुमाणे हिताणुकंपकेणं देवेणं माहणकुंडग्गामाओ जाव अडरत्तकालसमयंसि हत्थुतराहिं णक्खत्तेणं जाव माहरिते, जं स्यणिं च णं भगवं देवानंदाए कुच्छीओ तिसलाए कुच्छ साहिते तं स्यणि च सा देवा (246) गर्भान्तरे मोचने श्रेयस्ता ॥२४०॥ Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राक श्री गंदा ते सुमिणे तिसलाए हडे पासित्ताणं पडिबुद्धा. तिसलावि व पं तसि तारिसगांस सयणिज्जसि मुत्तजागरा ओहीरमाणी २ गर्भान्तरे आवश्यक इमे चोइस सुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धा, तंजहा संक्रमः चूर्णौ मा गय-- ( गाहा ) ।।। जाव सिद्धत्थस्स साहति, सेऽविय णं हड तुढे जाव चंचुमालइयरोमकूवे ते सुमिणे ओगिीहत्ता इहं स्वमास्तउपोद्घातापविसित्ता अप्पणो साभावितेणं मतिप्रध्येण बुद्धिविनाणेणं तसिं अत्थोग्गह करेचा तिसले इट्ठाहि जाव वग्गहि सलबमाणे संल-1 त्फलंच नियुक्तावमाणे एवं वयासी-ओराला णं तुमे देवाणुप्पिए ! सुमिणा दिडा, जाव अम्हं कुलंकेतु एवं दीवं पञ्चयं कप्पयडेंसय तिलक १॥२४॥ कित्तिकरं गंदिकर जसकर आधारं पादर्व कुलविबद्धणकर सुकुमालपाणिपाय जाव दारय पयाहिसि । सेऽवियणं जाव जोवणगमणुप्पत्ते खरे वारे विकत विच्छिन्नविपुलबलवाहणे रज्जवती राया भविस्सति, तं उराला पं जाव दोच्चपि अणुचूहति, सावियणं जाव सम्म पडिच्छिऊणं धम्मियाहिं कहाहिं सुमिणजागरिय पडिजायरमाणी २. विहरति । तएणं सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूसकालसमयंसि जाव मुमिणपाढए आपुच्छति, तेहिवि तहेब सिहूं, णवर चाउरंतचकवड्डी रज्जबई राया भविस्सति जिणे वा तेलोगणायए धम्मवरचकवडी, एवं सव्वं जाव सयं भवणं अणुप्पविट्ठा ।। इयाणिं अभिग्गहति--ताहे सा बहाया कयरलिकम्मा कयकोउयमंगलपायच्छिचा पयता सुइन्भूता ते गम्भ णातिउण्हेहिं णातिसीएहिं णातितित्तेहिं णातिकडुएहिं णातिकसाएहिं णातिअंबिलेहि णातिमधुरेहिं उदुभयमाणसुभेहिं भोयणच्छायणग-1 धमल्लेहिं जं तस्स गम्भस्स हितं मिते पत्थं गम्भपोसणं तं देसे य काले य आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएमु सयणासणेसु Xi॥२४॥ पविरिक्कमुहाए मणोणुकूलाए बिहारभूमिए पसत्थदोहला संपुषदोहला जाब विणीयदोहला ववमतरोगसोगमोहभयपरिचासा दीप अनुक्रम SPECK8 (247) Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक _18 सुहंसुदेणं बासदति सयति चिट्ठति णिसीयति तुयति सुहसुहेणं तं गम्भ परिवहति । जं स्याण च णं भगवं तिसलाए गम्भे वक्कते निचलता आवश्यकते रयाणि च ण वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सक्कबयणेणं विविहाई महाणिहाणाई सिद्धत्वरायभवणसि भुज्जो २ * अभिग्रहः चूर्णी IY उक्साहरंति, तं च णातकुलं हिरणेणं बढित्था, एवं सुवणणं धणेणं धन्नणं रज्जेणं रद्रुण बलेणं वाहणेणं कोट्ठागारे पुरेणं अंतपुरेणं, नियुक्ती Pाजणवदेणं पुत्तेहिं पहिं विपुलरयणमणिमात्तियंसखसिलपवालरत्तरयणमादिएणं संतसारसावतेएणं पीतिसकारेणं अतीच अतीब अभिववित्था, सिद्धत्थरायस्सवि य सामंतरायाणावि यसमागता। तएणं भगवतो अम्मापिऊणं अयमेतारूचे अज्झस्थिते पत्थिते ॥२४॥12 संकप्पे समुप्पज्जित्था जप्पभिर्ति चणं अम्हं एसदारए कुञ्छिसि वक्ते तपभिति चणे अम्हे हिरण्णण बड्वामो जाव सक्कारण, । तं जदा गं अम्ह एस दारते जाते मचिस्सीत तदा णं अम्हे एयस्स एताणुरूवं गोणं णामधेज करिस्सामो बद्धमाणो इति मणो. रहसहस्साई पकरेंति । तए णं भगवं सण्णिगम्भे माऊअणुकंपणट्ठाए णिच्चले णिकंपे गिफंदे णीरेए आलीणपलीणगुत्त याचि होत्था, तएणं सा तिसला एवं वयासी-हडे मे गब्भे, एवं चुए गलिए, एस मे गम्भ पुधि एयइ इयाणि णो एयइत्तिकटु ओहयमणसंकप्पा चिंतासोगसागरमणुप्पविट्ठा करतलपल्लत्थमुही अट्टमाणोवगया भूमिगयदिट्ठीया झियाइ, तंपिय सिद्धत्थरायवरभवणं उबरयमुइंगसंतीतलतालनाडाजं दीपविमणदुम्मणं चावि विहरइ, तए थे भगवं एतं वियाणित्ता एगदेसणं एजति, तएवं सा हद्वतडा जाप रोमकूवा एवं बयासी-णो खलु मे हढे गम्भे जाव णो गलिते, पुचि को एजति इवाणिं एजतिचिकदद्ध हतहा पहाया जाव गम्भ |SAR४२॥ IC परिवहति, तंपिय णं सिद्धस्थरायभवणं अणुवरयमुइंगतंतीतलतालणाडइज्जआइनजणमणुस्से सपमध्यपकालित विहरति । तए पं भगवे । मातुपितुअणुकपणडाए गम्भत्यो चेव अभिग्गडे गेण्हति णाई समणे हाक्खामि जाव एताणि एत्थ जीवतिनि। दीप अनुक्रम * (248) Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपधात नियुक्तौ ॥२४३॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२७०/४४४-४५८] [४६-७८] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पाणि जमणंति काले देणं समरणं भगवं चिनसुद्धतेरसीदिवसेणं वद्धं मासाणं अद्धट्टमाण य राईदियाणं | वितिकताणं उच्चद्वाणगतेसु गहेसु पढमे चंदजोंगे सोमासु दिसासु विमिरासु विसुद्वासु जइएसु सव्वसउणेस पयाहिणाणुलांस भूमि पिसि मारुयंसि पवायंसि णिष्फण्णसस्साए मेदिणीए पमुदितपक्कीलितेसु जणवएस अद्धरतकालसमयंसि इत्युत्तराहिं णक्खते अरोगा रोगं पयाया, तं रमणि च णं बहहिं देवेहि देवीहि य ओवयमाणेहिं उप्पयमा गेहिं एगालोए देवुज्जोए देयुक्कलिया देवसंनिवाए देवकुहुकुहुते देवदुदुहुते कुए याचि होत्था, यहवे य वेसमणकुंडधारिणो तिरियजंभगा देवा सिद्धत्थरायभवणांस हिरन्नवास वासिसु सुवण्णवासं वासिमु एवं रयणच हरवत्थआभरणपत्तपुष्कवी यमगंधवनचुन्नवसुहारवासं वासिंसु तं स्यणिं च णं बहवे भवणवइवाणमंतरजोतिसवेमाणिया देवा भगवतो अंतियं आगम्म खत्तियकुंडग्गामे नगरे जोयणपरिमंडलं जं तत्थ तणं वा पत्तं वा कई वा सक्करं वा असुई पुर्ति दुब्भिगंध अचेोकखं तं सव्वं आहुणिय २ एगंते एडेंति एडेचा णच्चोदगणातिमदितं पविरलपप्फुसियं दिव्वं सुरार्भ स्यरेणुविणासगं गंधोदगवासं वासंति वासेचा हियरयं णरयं पणदृरयं उवसंतरयं पसंतरयं करेंति करेत्ता भारग्गसो य कुंभग्गसो य पुष्कवासं च मलवासं च गंधवासं च चुनवासं च भुज्जो भुज्जो वासंति, तस्स य सिद्धत्थभत्रणवरपोंडरयिस्स परिपेरतेण आभरणरयणमादी जाव उपाकरित्था एवं सव्वं जायकम्मादि ॥ अभिसेगो य जहा उसभसामिस्स | तर से सिद्धत्थे राया भवणवविषाणमंतरजातसवेमाणिएहिं देवेहिं तित्थगरजायकम्म विहाणे णिव्यत्तिए समाणे पडियुज्झति पडिबुज्झित्ता जगरगुत्तिए सहावेति, सहावेता एवं बयासी - खिप्यामेव भो देवाणुप्पिया! कुंडपुरे नगरे चारगसोहणं करेह भगवंत वीरस्य जन्म कल्याणकस्य वर्णनं - (249) 1 श्री वीरस्य जन्म ॥२४३॥ Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नियुक्ती Ce दीप ४ाकरेचा माणुम्माणवणं करेह २ ना कुंडपुरं गगरं सम्भितरवाहिरियं आसितसमज्जितोचलिन सिंघाडगतियचउक्कचच्चरचउम्सुहम-18 सिद्धार्थहापहपहेसु सित्तसुयियसंमट्ठरत्यंतरावणवीहियं मंचादिमंचकलियं णाणाविहरागभूसितज्झयपडागातिपडागमंडित लाउल्लोइयपहि X कृतो चूर्णी । यं गोसीससरसरत्तचंदणददरदिन्नपंचगुलितलं उवचितचंदणकलसं चंदणघडसुकततोरणपडिदुवारदेसभागं आसत्तोसत्चविपुलबट्ट- 1 जन्ममहा भावावग्धारितमल्लदामकलावं पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फ गोरयारकलितं कालागरुपवरकुंदुरुकधूवमघमतगंधुदुताभिरामं सुगंधवर गंधगंधित गंधवडिभूतं गडणट्टगजल्लमल्लमुट्ठियवेलबगकहगपवकलासकआईखकमंसतूणइल्लतुंबवीणियअणेगतालाचराणुचरितं ॥२४४॥ करेह जाच कारवेह य, करेता य कारवेत्ता य जूबसहस्सं चकसहस्सं च ऊसवेत्ता एतमाणत्तिय पञ्चप्पिणह, तए ण ते पुरिसा जाय। | पञ्चप्पिणति । तए ण से सिद्धत्थे राया गहाए कयबलिकम्मे कतकोउवमंगलपायच्छिते सचिट्ठीए सम्बजुत्तीए सम्बबलेण सव्वसमुदएण| सवायरेणं सबविभूसाए सव्वसंभमेण सव्यपगतीहि संबणाडएहि सन्चतालायरेहिं सब्बोराहेणं महया वरतुरियजमगसमगपवातितेणं । संखप्पणवभेरिझल्लरिखरमुहिदुंदुभिणिग्घोसणातियरवेणं समुद्धयमुईगं अमिलायमल्लदाम पमुदितपक्कीलित उस्मुकं उक्करं अदेज्ज अमेज्जं अभडप्पस अहंडकुडंड अपरिमं गणितावरणाडइज्जकलियं अणेगतालायराणुचरियं सपुरजणुज्जाणजणवयं दस दिवसे || ठितिवडित कति, सतिए य साहास्सिए य सयसाहस्सिए य जाए य दाए य भाए य दलमागे य दवावमाणे य जाव लभ पडिच्छेमाणे यावि विहरति । तते ण तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमदिवसे ठितिपडितं करेंति, ततियदिवसे चंदसरदंसणियं करेंति, छठे दिवसे जागरिय करेंति, एगारसमे दिवसे अतिकते णिवते असुइजातकम्मकरण संपत्ते बारसाहे विउलं असणं ४ उवक्खडावेना ॥२४४॥ मित्तनाइनिययनयणसंबंधिपरिजणं नायए त खचिए आमंतेत्ता व्हाया जाच पायच्छित्ता भोयणवेलाए भोयणमंडबसि मुहासणव अनुक्रम SEARCOS (250) Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत उपोदवाती नियुक्ती दीप तिरगता तेहिं सद्धि विउलं असणं ४ अस्सादेनाणा विस्सादेमामा परि जमाणा परिभोएमाणा एवं वावि विहरत, जिमितभुसुत्तरा-1 श्रीवीरस्य आवश्यक गताविय ण आर्यता चोक्खा सुतिभृया विउलेण पुष्फबत्थगंधमल्लालंकारेणं सकारेंति संमाणेति २ तेर्सि पुरतो एवं बयासी-19 कुटुम्ब चूर्णी पुवंपिय ण देवाणुप्पिया! अम्हें एतारूचे अज्झथिए जप्पमिति जाव नाम करेस्सामो बद्धमाण इति, तं होतु णं अज्ज अम्ह मणोरहसंपत्ती कुमारी बद्धमाणे णामेणति णामधेज्ज करति । समणे भगवं महावीरे कासवगोचणं, तस्स णं ततो णामधेज्जा एवमाहिज्जति, तंजहा-अम्मापिउसतिए बद्धमाणे १ सहसं-18 २२पामुदिते समण २ अयले भयभरवाणं खता पडिमासतपारए अरतिरतिसहे दविए घितिविरियसंपन्ने परीसहोवसग्गसहोति देवेहिं से कर्त णाम समणे भगवं महावीरे ३ । भगवतो माया चेडगस्स भगिणी, भोयी 'चंडगस्स धृया, णाता णाम जे उसमसामिस्स समाणिही जगा ते णातसा, पित्तिज्जए सुपासे, जेडे भाता मंदिवद्वणे, भगिणी सुदंसणा, भारिया जसोया कोडिभागातर्ण, धूया | कासवीगांचेणं, तसे दो नामधज्जा, तं० अणाज्जगिति वा पियदसणावितिया, णत्तुई कोसीगोतेणं, तीसे दो नामधज्जा (जसवतीतिवा) सेसवतीति वा, एवं (य) नामाहिगारे दरिसितं। एवं भगवतो अम्मापियरी अणेगाई कोउयसयाई अणेगाई पर्चकम-से पाणादीणि उस्सवसयाणि अणगाई पकीलणसयाई पकरेंताणि विहरति । . इयाणि ववित्ति, तए ण-अह वकृति सो भयवं दियलोयचुओ अणोवमसिरीओ। दासीदासपरिवुडो परिकिन्नो x पीढमहिं ।। (६९ भा.)॥ पीढमदा णाम सरिव्वया पीतिबहुला, महारायिसुया पीढं मदिऊणं पच्चासचीए आसमा ॥२४५॥ | उवविसतित्ति । असितसिरजो नुनयणो विबोहो धवलदंतपंतीओ । वरपउमगभगोरो फुल्लुप्पलगंधीसासो अनुक्रम (251) Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चुणी HEIC दीप श्री ४॥ ३ ॥ २९६ ।। (मा. ७०) इयाणि सरणति-जातीसरो उ भगवं अप्परिवडिएहिं तिहि उ गाणेहिं । कंतीय य31 आवश्यक दबुद्धीय य अभहितो तेहि मणुएहिं ॥ ३ ॥ २९७ ।। (७१ भा.) उपोद्घातात इपाणिं भेसणंति-तए ण एवं वड्डमाण भगवं ऊणअट्ठवासे जाते, से य अल्लीणे भदए विणीए सूरे वारे विक्कते, तेण | परीक्षा नियुक्ती कालेण तेण समएणं सबके देविंदे जहा अपहारहारे जाव पुरत्याभिमुहे सभिसचे भगवतो संतगुणकित्तणयं करेति-अहो भगवं पाले अबालभावे बाले अबालपरक्कमे अबुड्डे चुहसील महावीरे ण सक्का देयेण या दाणवेण वा जाव इंदेहिं या मेसेउ परक्क-पट ।।२४६।। मेण वा पराजिणितुं छलेउं वा, तत्थ एगे देवे सक्कस्स एयमढे असद्दहते जेणेव भगवं तेणेव उवागते, भगवं च पमदवणे चेडरू-10 KI वेहि सम सुंकलिकडएण अभिरमति, तस्स तेसु रुक्षेसु जो पढम विलग्गति जो पढम ओलुभात सो चेडरूवाणि पाहेति, सो य| देवो आगंतूण हेह्रतो रुक्खस्स सामिमेसणहूँ एग महे उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाविसं अतिकायमहाकार्य मसिमूसाकालग यणं विसरोसपुभ अंजणपुजणिगरप्पगास रत्तच्छे जमलजुबलचंचलंतजीई धरणितलवेणिदंडभूत उक्कडफुडकडिलचडुलकक्खडदापिगडफढाडविकरणदच्छे लोहागरधम्ममाणधमधमेतघोस अणागलियचंडतिच्चरोस समुह तुरिय चवलं धमधर्मत, एवं जथा । उवासगदसासु कामदेवे जाव दिव्यं दिट्ठीबिससप्परूवं विउविता उप्पराहुत्तो अच्छति, ताहे सामिणा अमूढेणं वामहत्थेण सत्ततले उच्छ्ढो , ताहे देवो चिंतेति-एत्थ ताव ण छालओ. अह पुणरवि सामी तंदूसएण अभिरमति, सो य देवो चेडरूनं ४॥ & विउचिऊण सामिणा सम अभिरमवि, तत्थ सामिणा सो जितो, तस्स य उरि विलग्गो सामी. तएणं से देवे सामिभेसणहूँ एग मह तालपिसायरूवं विउवित्ता पवाटिउं पवचो, तंजहा-सीसं से गोकिलिंजसंठाणसठियं वियडकुष्परष्णिम सालिमसेल्लगस X ॥२४६ अनुक्रम (252) Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत देवता चूर्णी ल HEISE दीप श्री. रिसा से केसा कविला तेएण दिप्पमाणा महल्ले उदियकमल्लसरिसोवमे णिडाले मुगुसपुच्छ व तस्स भुमुगाओ कविलजडिलाओ II.वृद्धी आवश्यक वित्ततबीमच्छ दसणाओ सीसघडी चव उन्भडा, तस्स दोषि णयणा विणिग्गया विगतदंसणिज्जा कन्ना जह सुप्पकप्परं चैव विग- 1 वकृता तबीभच्छदसणिज्जा, उरम्भपुडसंठिता से पासा झुसिरा इव जमल भुल्लिसंठाणसंठिता दोवि णासिकपुडा महल्लकुब्वरगसीठता तस्स IMधैिर्यपरीक्षा | उपोषात IMI दो कवोला, घोडगपुंछंच कविलजाडलाओ उडलोमाओ दाढियाओ उट्ठा से घोडग़स्स जह दोवि लंबमाणा पासुफालसरिसा से | दंता बायपडागतुरियचयला य तस्स जिम्मा हिंगुलुगधातुकंदरबिलंब तस्स चयणं, हलकुंडगसंठिता तस्स होति हणुगा, ॥२४७॥ ला गल्लकडिल्लं व तस्स खडं फुझं कविलफरुस महल्लं, मुईगागारोवमा से खंघा, कोटियसंठाणसंठिता दोवि तस्स दाहा, सुक्ख-16 दइयसंठाणसंठिया से हत्था, णीसालोढगसरिसा य तस्स हत्थेसु अंगुलीओ, सप्पिणीपुडसंठिता से णहा, अडतालगसंठितोदरो | तस्स लोमगुबिलो, विगता पहाविगपस्सेव उच्चे उदरंमि तस्स लपति दोवि थणगा, कोत्थलसरिसोबमो से मज्झे पोई, अपकोट्ठ-18 | गोव्य पट्टा पाणी लंदसरिसोबमा से णाभि ओहियलंयंतबद्धपोट्टे भग्गकडी विगते य कपट्टा असरिससरिसा य तस्स दोवि | फिङ्गगा कित्तपुडगसंठिया से बसणा जंतसिवगठिाणसंठित से नेत्ते कोत्थलसरिसोधमा से ऊरू पिडगमूलसरिसाणि तस्स जाणूणि डिलकडिलाणि विगयवीभत्थदसणाणि, जंघा से कक्खडीओ लोमेहिं उवचियाओ णीसापासाणसरिगा तस्स दोऽवि पाया णीसालोडेण सरिसगा तस्स पाएसु अंगुलीओ सप्पिणीपुडसंठिता से गक्खा, कोसीमुहसरिसतिक्खणक्खे विसमे लंबोदरपलंबे विगते चीभच्छभग्गभूमए मसिमसामहिसकालए भरितमेहबन्ने लंबोढे णिग्गयग्गदंते निल्लालियजमलजुगलजीहे आऊसितवयण ॥२४७॥ दगंडदेसे तहवीणेविपिडफुग्गणासे विगते तहस्सुग्गभग्गभुमए खज्जोवगदित्तचक्खुरागे मिगुडी कुडिलंतलोयणे दित्तअट्टहासे उत्ता अनुक्रम (253) Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तो ॥२४८|| ~ 96-1 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [२७०-/४४४-४५८], भाष्यं [४६-७८ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 सगए विसालवच्छे दिवंगताहिं वाहाहिं विसालपोट्टे पलंचपोट्टे विसालकुच्छी पलंबकुच्छी तालदीहजंघे णाणाविहपंचवहिं लोमेहिं उवचिते हिंगुलुयधातुगिरिकंदरा इव मुहेण अवतासिएण पतिभरण सरडकतवणमालए उदरकतकन्नपूरए णउलकतकंचिपूरे मुंगुसकतसुंभलए विच्छुतकतवे कत्थे सप्पकतजन्नवइए अभिन्नमुहनयणकचचरणणक्खवग्धचित्तकत्तीणियंसणे सरसरुधिरमंसावलित्तगत्ते अवदालियनयणसिंघग हितग्गहत्थे जीभतपट्टहसितपर्यपियपर्यभिर्यमि तवातगंठी कंपंति य घरनिवहा पहसियपच्चलितपवाडितगत्ते पणच्चमाणे पप्फोडते अभिवम्गते अभिगज्जेते बहुसो बहुसो य अट्टट्टहासं विणिम्मुयंते एवं जहा उवासगदसासु कामदेवकहाणगे, एवं सामिणा दट्टुण अभतिगं तलप्पहारेण आहते जहा तत्थेव णिबुडे, ताहे भीते देवे चिंतेति एत्थवि ण चतितो छलेउति, पच्छा सामि वंदिता गट्ठी । इयाणि चवाचित लेहायरियोषणयनंति दारं अनया अधिवासजाते भगवं व्हाए कयबलिकम्मे कयकोउयमंगलपायच्छित्ते पवरसेयवत्थनियत्थो सियमल्लालंकारविभूसिते पवरधवलहस्थिधवरगते उवरि समुचाजालसितमलदामणं छत्तणं धरिज्जमाणेणं सेतवरचामराहिं ओधुव्वमाणाहि २ मिचणातिणिययस्यणसंबंधिपरियणं णातएहिं खचिएहिं समनुगम्ममाणमग्गे अम्मापिऊहिं लेहायरियस्स उवणीते । इमस्स य लेहायरियस्स महतिमहालयं आसणं रातयं, सक्करस य आसणचलणं, सिग्यं आगमणं, ताह सक्को तत्थ सामि निवेसात, सोऽवि | लेहायरियो तत्थेव अच्छति, ताहे सक्को करतलकतंजलिपुडो पुच्छति उपोद्घात पदपदार्थक्रमगुरुलाघवसमासविस्तरसंक्षेपविषयविभागपर्यायवचनाक्षेपपरिहारलक्षणया व्याख्यया व्याकरणार्थ ) अकारादीण व पज्जाए भंगे गमे य पुच्छति, ताहे सामी बागरेति अणे गप्पगारं, इमोsa आयरियो सुणति, तस्स तत्थ केति पयस्था लग्ना, तप्पामिति च णं ऐद्रं व्याकरणं संवृत्तं, ते (254) वृद्धी देवकृता धैर्यपरीक्षा ॥२४८|| Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४५८...], भाष्यं [७८-८३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आषश्यका सत्राक नियुक्ती ॥२४९॥ दीप विम्हिता, सक्केण से सिर्दु जहा भगवं सव्वं जाणति जातिसरो तिणाणोवगतोत्ति । ताहे ताणि परितुवापि, एवं नित्यसग्गं अपत्यद्वारं कृति । इयाणिं विवाहेत्ति दारं, जहा गाहार्हि तहा माणियब्वं । दानद्वारं च उम्मुक्कपालभाव (भा १८)।।। (भा०१४) तिहिरिकूखंमि० (भा० १९ ।। (भा०११) इयाणिं अवञ्चत्ति तत्थ पंचविहे माणुस्से (भा८०)।। (भा४०) इयाणि दाणत्ति-एवं भगवं अट्ठावीसतिबरिसो जातो, एत्यंतरे अम्मापियरा कालगता, पच्छा सामी पंदिवद्धणसुपासपमुह सयणं आपुच्छति, समत्ता पतिबत्ति, ताहे ताणि विगुणसोगाणि भणंतिमा भट्टारगा ! सव्वजगदपिता परमबंधू एक्कसराए चेव अणाहाणि होमुत्ति, इमेहि कालगतेहिं तुब्मेहिं विणिक्खमवन्ति खते खारं पक्खव, ता अच्छह कंचि कालं जाव अम्हे विसोगाणि जाताणि, सामी भणति-'केचिरं अच्छामि ?, ताहे भन्नति-अम्हं परं विहि संवत्सरेहिं रायदेविसोगो णस्सेज्जति, ताहे पडिस्सुतं तो णवरं अच्छामि जति अप्पच्छदेण भोयणादिकिरियं करेमि, ताहे सम-11 त्थितं, अतिसयरूवपि ताव से कांच कालं पासामो, एवं सयं निक्खमणकालं णच्चा अवि साहिए दुवे वासे सीतोदगमभोच्चा णिक्खते, अप्फासुगं आहारं राइभत्तं च अणाहारेंतो बंभयारी असंजमवावाररहितो ठिओ, ण य फासुगेणवि पहातो, हत्थपादसो यणं तु फासुगणं आयमणं च, पर णिक्खमणमहाभिसेगे अफासुगणं पहाणितो, ण य पंधयेहिवि अतिणेई कतवं, ताहे सेणियप-1 |ज्जोयादयो कुमारा पडिगता, ण एस चक्कित्ति । एत्यंतरे भगवं संवत्सरावसाणे णिक्खमिस्सामीति मणं पधारेति । X ॥२४॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्कस्स देविंदस्स आसणे चलिते, आभोइयं जहा जीतमेतं सक्काणं अरिहंताणं भगवंताणं अनुक्रम अत्र भगवंत वीरस्य दीक्षा निमित्त दत्त 'वर्षीदान'स्य वर्णनं आरभ्यते (255) Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.... श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ||२५०|| -৬***%**%*% *%* * ''आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२७०.../४१८... आयं [७८-८३] ....... आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - निक्खममाणाणं इमं एतारूवं अत्यसंपदाणं दलइसए, तंजहा- तिष्णि कोडिसया अट्ठासीति चेव कोडीओ असीति च सयसहस्सा, वए णं वेसमणं देवं भणति से य तहेब साहरिता जाव पच्चप्पियति । तणं भगवं कल्लाकालि जाव मागहओ पादरासोचि बहू सणाहाण य अणाहाण य पंथियाण य पहियाण य कारोडयाण य कप्पडियाण य जाव एवं हिरण्णकोर्डी अट्ठ य अणूणए सयसहस्से इमं एतारूवं अत्थसंपयाणं दलयति । तए णं से मंदिवद्धणे राया कुंडग्गामे नगरे तत्थ तस्थ तर्हि तर्हि देसे देसे बहवे महाणससालाओ करेति, तत्थ बहूहिं पुरिसेहि दिनभतिमत्तत्वेयणेहिं विपुलं असणं ४ उवक्खडाचेति, जे जहा आगच्छति सणा वा अणा वा जाव कप्पडिए वा पासत्ये 'वा गिहत्थे वा तस्स तहा आसत्यस्स वसित्थस्स सुहास जाव वरगयस्स तं असणं ४ जाब परिभाषमाणे परिवेसेमाणे विहरति । तर कुंडग्गामे नगरे सिंघाडग जाव मज्झयारेसु बहुजणो अन्नममस्स एचमाइक्खति एवं खलु देवाणु० कुंडग्गामे दिवगुणस्स रत्रो भवणंसि सव्वकामियं किमिच्छयं विपुलं असणं ४ जाब परिवेसिज्जति, बरबरिया घोसिज्जति, किमिच्छिगं दिज्ञ्जते बहुविधीयं । असुरसुरगरुल किन्नर नरिंदमहिताण निक्खमणे (भा. ८४) तए णं भगवं संवत्सरेण तिष्णि कोडिसया जाब दलयातीति । इयाणि संबोहेति तर णं भगवं निक्खमिस्सामिति मणं पधारंति, तेणं काले तेणं समएणं लोगतिया देवा वंभलोगे कप्पे रिट्ठे विमाणपत्थडे सहि सएहि विमाणेहिं सएहिं सरहिं पासा - दवडेंस एहि पत्तेयं पतेयं चउहिं सामाणियसाहस्सीहिं तिहिं परिसाहिं सत्तर्हि अणिएहिं सतहिं अणियाहिवतीहिं सोलसहि आयरक्खदेवसाहस्सीहिं अहि य यहूहिं बंभलोगकप्पवासीहिं लोयातिएहिं देवेहिं सद्धि संपरिवुडा महताहतणगीयवाइय जब चिहरंति, (256) दानवो घद्वार ॥२५०१ Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२५१॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [२७०... /४६०. आयं (८६-८७] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 तंजा - सारस्सय माइचा वण्ही वरुणा व गद्दतीया य। तुसिया अव्यावाहा, अग्गिच्या चेव रिट्ठा य ( भा. ८६ ) तणं तेसि पत्ते पत्तेयं आसणाई चलति, ताहे आहिं पजति आभोएंति सामी निक्खमस्सामीति मणं पधारेति तं जीतमेतं लायंतियाणं भगवंताणं निक्खममाणाणं संचोहणं करेत्तए, तं गच्छामो गं अम्देवि सामिं संचामोतिक एवं संपर्हेति संप हेचा उत्तरपुर जाव जेणेव सामी तेणेव उवागच्छति २ अंतलिक्खपडिया सखिखिणियाई पंचवाई वत्थाई पवरपरिहिता ताहि इद्वाहिं कंताहिं जाब हिययपल्हावणिज्जाहिं अट्ठसतियाहिं अपुणरुत्ताहिं वग्गूहिं अणवरयं अणवरयं अभिनंदमाणाय २ अभित्युणमाणा य २ एवं वयासी जय जय गंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय नंदं ते भदं ते, जय जय खतियवरवसभा !, बुज्झाहि भगवं! लोयणाहा पवतेहि धम्मतित्थं हितमुहणिस्सेसकरं जीवाणं भविस्ततित्तिकट्टु जयजयसदं पउंजंति २ सामि बंदंति नर्मसंति २ नमसित्ता जामेव दिसि पाउब्भूता तामेव पडिगता । इयाणिं णिक्खमणत्ति, एत्थ निज्जुत्तिगाहाओ हत्धुत्तरजोगेणं (४५१) सो देवपरिग्गहितो (४६०) तए णं सामी लोगंतिएहि संबोहिते समाणे जेणेव मंदिवणसुपासप्पमुहे सयणवग्गं तेणेव उवागच्छति २ जाव एवं वयासी इच्छामि णं तुम्मा अम्भणुष्णाय समाणे मुंडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पब्वइत्तए, ताहे साई अकामगाई चैव एवं व्यासी- 'अहासु भट्टारगा ! | तर से मंदिवद्धणे राया कोचियपुरिसे सहावेति सदावेत्ता एवं वयासी- खिप्पामेव भो देवाशुप्पिया ! अडसहस्सं सोबण्णियाणं कलसाणं जाव भोमेज्जाणं अन च महत्थं महरिहं जाय उबडबह, जह महब्बलो, तो उबडवेंति । तेणं कालणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया जाव संजमाणे विहरति । तए णं तस्स आसणे चलिए आभोएति एवं जहा उसनसामिअभिसंगे तहा अत्र भगवंत वीरस्य दीक्षा कल्याणक वर्णनं आरभ्यते (257) लोकान्तिकागमनं ॥२५१॥ Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE दीप श्री आगतो। णवरं तेणं दिव्वेणं जाणविमाणणं सामि तिक्खुनो आयाहिणपयाहिणं करति करेता भगवतो उत्तरपुरच्छिमे दिसिभागे | इन्द्रागमनं आवश्यकाइसिं चतुरंगुलमसंपत्तं धराणितलं तं दिव्यजाणविमाणं एवं जहा जंबुद्दीवपण्णत्तीए अभिसंगे जाव अढहिं अग्गमहिसीहि दोहि याद चूणा अणिएहिं गड्ढाणिएण गंधवाणिएण य सद्धि ताओ दिव्यातो जाणविमाणाओ पुरथिमेणं तिसोवाणपडिरूवएण पच्चोरुभति, उ त ए तस्स चउरासीति सामाणियसहस्सीओ ताओ जाणविमाणाओ उत्तरिल्लणं तिसोमाणपडिरूवएणं पच्चोरुभति, तएणं नियुक्ती तस्स सक्कस्स अबसेसा देवा य देवीओ य ताओ जाब दाहिणिल्लेणं तिसोमाणपडिस्वएणं पच्चोरुभंति, तए णं से सक्के देविंदे ॥२५२ देवराया चड देवराया चउरासीतीए सामाणियसाहस्सीहिं जाव सद्धिं संपरिबुडे सब्बिड्डीए जाब निग्घोसणातियरवेणं जेणेय भगवं तेणेव उवा. | गच्छति २ सामि विक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेति करेता बंदति णर्मसति २ णमंसित्ता जाव पज्जुबासति । एवं सब्वे इंदा| आणेयब्बा जहा जंबुद्दीवपन्नत्तीए जाव सूरे आगते पज्जुवासति । तेणं कालेण तेणं समएणं बहवे असुरकुमारा देवा सामिस्स प्रतियं पाउभवित्था । कालमहाणलसरिसणीलगुलियागवलप्पगासा विगसितपत्ततवणिज्जरत्ततलतालुजीहा अंजणघणमसिणरुयगदरमणिज्जणिकेसा वामेयकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता ईसीसिलिंघपुष्फप्पगासाई संकिलिट्ठाई सुहुमाई बत्थाई पवर परिहिता वयं च पढमं समइक्कता वितिय च असंपत्ता भद्दे जोवणे वट्टमाणा तलभंगयतुडियपवरभूसणनिम्मलमणिरयणमंडितभुता दसमुहामंडितग्गहत्था चूलामणीविविधचित्तचिंधगता सुरुवा महिद्धिया महाजुत्तीया महायसा महब्बला महाणुभागा महासोक्खा हारविराइनवच्छा कडगतुडियधभितभुया अंगयकुंडलमडगंडतलकन्नपीढचारी विचित्तवत्थाभरणा विचित्तमालामेलाओ कल्लाणयपवरवत्थपरिहिता कल्लाणयपवरमल्लाणुलेवणधरा भासरबोंदी पलंबवणमालधरा दिव्वेण बनणं दिवण गंधण दिवेणं फासेणं अनुक्रम ॥२५२॥ (258) Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं - मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०..., भाष्यं [८६-८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णी व KA सत्राका दिब्वेणं संघातेणं दिव्येण संठाणणं दिवाए इद्धीए दिवाए जुत्तीए दिब्वाए पभाए दिवाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्यंण आवश्यक तेएण दिब्बाए लेसाए दस दिसातो उज्जोएमाणा २ पभासेमाणा २ आगम्म २ समणं भगवं महावीरं बंदति गमसंति २ णमंसित्ता सुस्ससमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पज्जुवासेंति । एवं णागा सुवण्णा य विज्जू अग्गी य दीव उदही| दिसाकुमारा य पवण थणिया य भवणवासी णागफडागरुलबइरपुण्णकलसणितुप्फेससीहहयवरगयंकमगरंकमउडवरवद्धमाणनि ज्जुत्तचितचिंधगया सुरूवा महिद्धिया जाब पज्जुवासंति । तेणं कालेणं तेणं समएणं वहवे वाणमंतरा सामिस्स अति पाउन्भवित्था ॥२५३॥द पिसाय भूया य जक्ख रक्खस किन्नर किंपुरिसा भुयगपतिणो य महाकाया गंधवगणा य णिउणगंधवगीतरविणो, अणवत्रिय पणवत्रिय इसिवाइय भूतिवातिय कंद महाकंदिया य कुहंड पनका देवा चंचलचलचवलचित्तकीलणदवप्पिया गभिरहसि-1 18 तपियगीतणच्चणरती वणमालामेलमउडकुंडलसच्छंदविगुब्बिताभरणचारुभूसणधरा सब्बोउयसुरभिकुसुमसुरयितपलंचसोमंतकंत-12 विगसितचिनवणमालरइतवच्छा कामगमा कामरूबधारी णाणाविहवनरागवरवत्थचित्तचित्तयणियंसणा विविहदेसिणवत्थगहितवेसा पमुदितकंदप्पकलहकेलिकोलाहलप्पिया य हासबोलबहुला अणेगमणिरयणधिविहणिज्जुत्तचितचिंधगया सुरूवा महिड्डिया जाव पज्जुवासंति । तेणं कालेणं २ बहवे जोतिसिया देवा सामिस्स अंतिय पाउन्भवित्था वहस्सती चंदसूरसुक्कसणिच्चरा राहुधूमकेउबुहा अंगारया य तत्ततवणिज्जकणयवन्ना जे य गहा जोइसंमि चारं चरति केतू य गतीरतिया अट्ठावीसतिविहा य गक्खत्तदेवतगणा जाणासंठाणसंठिताओ य पंचवन्नाओ तारगाओ ठितिलेसाचारिणो अविस्साममंडलगती पत्तेयं नामयंकपागडितचिंध ४ मउडा महिटिया जाव पज्जुवासंति । तेणं कालेणं तेणं समगणं बहवे वेमाणिया देवा सामिस्स अंतियं पान्भवित्था, सोहम्मीसाणा दीप अनुक्रम ॥२५३॥ (259) Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सर्णकुमारमाहिंदबंभलंतयसुक्कसहस्साराणतपाणतारणच्नुतवती पट्ठा सामाणियतावचीससहिता सलोगपालग्गमहिसिप रिसा-18 श्रीवीरस्य आवश्यक णियातरक्खेहिं संपरिबुडा देवसहस्साणुयातमग्गेहि सुरवरगणीसरेहिं पयतेहिं समणुगम्मता सस्सिरीया सव्वादरभृतिसमूहणायगा दीक्षामह चूर्णी सोम्मचारुरूवा विमलविधुव्वतचामरा देवसंघजयसहकतालोया मिगमहिसवराहछगलददुरहयगयवतिभुपगखगउसभकविडिमपाउपायात गडीतचिंधमउडा पालयविमाणपुप्फसोमणससिरिवच्छणंदियावत्तकामपीतिमणीयमलवरसम्वतोभद्दणामधेज्जेहिं विमाणेहिं तरुणदि दिवाकरकरतिरेगप्पभेहिं मणिकणयरयणपटियाजालुजलहेमजालपरतपारंगतेहि समंतवरमुत्तदामलवंतभूसणेहि पयलियघंटावलिमधु॥२५॥ रसवंसतंतीतलतालगीतवाइतरवेण वरतुरितमीसएणं पूरेता अंबरं समंता तुरितं संपत्थिता देवेंदा हट्ठमणसा सेसाविय कप्पतर विमाणा देवा सुरवरा सविमाणविचित्तचिंधनामंकविगडपागडमउडाडोवसुहृदंसणिज्जा तेऽवि समष्णेति मुरवरिंदे। लोगतविमाणवासिणो चेव देवसंघा पत्तेयविरयितमणिरयणुक्कडभिसंतणिम्मलनिययंकितावचित्तपागडितचिंधमउडा दाएंता अप्पणो समुदयं पेच्छंतावि य परस्स रिद्धोओ उत्तमाओ,एवं कप्पालया सुरवरा जिणिदचंदनिमित्तभत्तीय चोदितमती हरिसितमणसो य जीतकप्प. मणुयत्तमाणा देवा जिणदंसणुस्सुया गमणजणितहासा विउलबलसमूहपिंडिता संभमेण गगणतलविमलविउलगमणचलचवलचलियमणपवणजइणवेगा णाणाविहजाणवाहणगता ऊसितविमलधवलातपत्ता विउब्धितजा णवाहणविमाणदेवरयणप्पभावेण य सचि डीय हुलियं पयाता पसिढिलवरमउडतिरीडधारी कुंडलउज्जोइताणणा मउडदित्तसिरया रत्नाभा परमपम्हा गोरा सेता सुहवनगं| धरसफासा उत्तमवेउविणो पवरवत्थगंधमल्लधारी महिड्डीया जाव पज्जुवासति । तेणं कालेणं तेण समएष बद्दधे अच्छरसंघा सामिस्स अंतियं पाउन्भवित्था, ताओ णं अच्छराओ धंतधायकणगरुयगविमल TOT दीप अनुक्रम ||२५५ (260) Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [८६-८७] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक दीप दणिरुवहतपिंजराओ समइक्कता य बालभावं मज्झिमजरढवयभावविरहिताओ अतिवरसोमचारुरुवा णिरुवहतसरसजोब्बणकक्कसतक- श्रीवीरस्य आवश्यक गवयभावमुवगताओ णिच्चमवद्वितस्समावसबंगसुंदरंगाओ इच्छितणेवत्थरइतरमणिज्जगहितबेसाओ कंतहारहारबत्तरयणकडल- दीक्षामहः चूर्णी । चासुनगहेमजालमणिजालकणयजालयसुत्नयउब्बितियकडयखड्डयएकाबलिकंठउत्तपगरयउरस्थमेवेज्जसोणिमुत्तयचूलामणिकणयतिउपायावर फुल्लयसिद्धथिकन्नवालिससिसरउसभचक्कयतालभंगयतुडियहत्थमालयहरिस्सयकेऊरवलयपालंबअंगुलेज्जयवलक्खदीणारमालिता नियुक्ती चंदसूरमालिया कंचीमेहलकलावपयतरवपरिहेरयपादजालघंटियखिखिणिरयणोरुजालतुहियवरणेउरचलणमालिता कगयणियलजाल॥२५५॥ यमगरमुहविरायमाणणेपुरपचलियसद्दालभूसणधारीओ दसवनरागरइतरत्तमणहरे महग्घे णासाणीसासवातबोज्ले चक्सुहरे बनफ रिसजुत्ते आगासफलियसमप्य अंसुए णियत्थाओ, आदरेणं तुसारगोखीरहारदगरयपंडुरदुगुलसुउमालसुकवरमणिजउत्तरिज्जाणि पाउताओ वरचंदणचञ्चिता वराभरणभूसिताओ सबोउयसुरभिकुसुमसुरयितविचित्तवरमल्लधारिणीओ सुगंधचुनंगरागवरवासपुष्फपूरयविराइता उत्तमवरधूमधूविता अधियसस्सिरीया दिव्बकुमुममल्लदामगभंजीलपुडाओ उच्चत्तेण य सुराण थोवूणमूसिताओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंदद्धसमणिडालाओ उक्का इव उज्जोवेमाणीओ विज्जुषण मिरीथिसूरदिपंततेयअधिकतरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुबेसाओ संमतगतहसितभणितचिट्टितविलाससललितसंलावणि उणजुत्तोययारकुसलाओ मुंदरथणजहणबयणकरचरणणयणलाबनरूवजोब्बणविलासफलिताओ मुरबहूओ सिरीसणवणीतमउयसुउमालतुल्लफासा ववगतकलिकलुसोत-181 अणद्धतरयमला साम्माओ कंताओ पियदंसणाओ सुसीलाओ जिणभतिदसणाणुरागणं हरिसिताओ उवतितावि जिणसगासं दिवेणं का दावणं जाव ठितियाओ चेव मुस्सूसमाणीओ णमंसमाणीओ अभिमुहाओ विणएणं पंजलिफडाओ पज्जुवासंति । अनुक्रम 594560 (261) Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययन - मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [८८-९१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत सत्राक दीप एवं एत्य (भा. ८८) मणपरिणामो (भा. ८४) भवणवइ (भा. ८०) जाव य कुंडग्गामो (भा.८१) श्रीवीरस्य आवश्यकताए णं से अच्चुए देविंदे देवराया आभियोगिये देवे सहावेति, सद्दावेत्ता एवं बयासी-खिपामेव मो देवाणुप्पिया! समणस्सदाक्षामहः चूणी 8 उपोद्घात ट भगवतो महावीरस्स महत्थं महरिहं विउलं णिक्खमणाभिसयं उबट्ठवेह, एवं जद्दा उसभसामिस्स जम्माभिसेगे जाय उबट्ठवेति, खादी एवं पाणतेवि, एवं परिवाडीए जाव सक्कस्स आभिओगा उवट्ठति । तए णं ते दिव्या कलसाय (ते) चेव कलसे अणुपविट्ठा । तए णं से पंदिवद्धणे राया सामि सीहासणांस पुरत्थाभिमुहं निवसेति निवसत्ता अट्ठसहस्सेणं सोपनियाणं कलसाणं जाब ॥२५६॥ भोमेज्जाणं कलसाणं सबोदएहि सबमट्टियाहि जाव खेणं महता २ णिक्खमणाभिसेगणं अभिसिंचति । तए णं सामिस्स महता २ णिक्खमणाभिसेगसि बढ्नमाणसि सव्येवि इंदा छत्तचामरकलसधूवकडच्छुतपुप्फगंध जाव हत्थगता हट्टतुट्ठचित्तमाणीदया जाब हियया पंजलियडा सामिस्स पुरतो चिट्ठति जाय वज्जसलपाणी, अन्नविय णं देवा य देवाओ य बंदणकलसहत्थगता एवं भिंगारआदंसथालपातीसुपतिट्ठावातकरगचित्तरयणकरंडा पुफगरी जाब लोमहत्थचंगेरी पुप्फपडल जाव सीहासणछत्तचामरतेल्लसमुम्गय | जाव धूवकडच्छुगत्ति जाव अप्पेगतिया देवा कुंडग्गाम णगरं आसितसंमज्जितोवलितं करेंति जाव आधाति, जहा विजयस्साद तए णं से णंदिवद्धणे राया दोच्चंपि उत्तरावक्कमणं सीहासणं यावेति, सामि सीतापीतेहिं कलसेहिं जाब अलंकारितसमाए. | सीहासणे पुरत्याभिमुहे सचिस,तएणं सामिस्स दा महरिहं सुबहुअलंकारियभंडं उवणेति तप्पढमताए पम्हलमुकुमालाए सुरभीए 15२५॥ गंधकासाईए गायाई लूहेंति, लहेत्ता सरसेणं गोसीसचंदणेण गाताई अणुलिपंति, अणुलिपेत्ता णासाणीसासयातयोझ चक्खुहरं वनफरिसजुतं हतलालापलबातिरेयं चालं कणगखतिततकम्मं आगासफालितसमप्प अहतं दिव्वं देवसजुयलं णियंसेंति णियंसेत्ता अनुक्रम CARRead (262) Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-1. मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२५७।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [२७०.../४६०...], भाष्यं [८८-९९ ] आगमसूत्र [४०] मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 कडिसुतगं पिशिद्धति, तए णं तं पवरजच्चमुतियं सुसज्जितं सुरभिगंध मल्लफरिसजुतं अवगतमलसकलणित्तलुज्जलजहिच्छितविभागरयितसमणिजणजुचिजोइयखयवद्विबिसेसजणिततणुयत्तमज्झपीवरसुजातरूवं णिम्मलतवणिज्जसुत्तकायितचउसडिसिलिङत लिडपमा लडुलक्खणगुणावेतं पविसरपरिरत्तपंचवन्नियविराइतं वातविहुतपरिज्जमाणं रमणिज्जपट्टियागोच्छपल्लवतं धवलमहापतइंदकायोगं (च) उरण भंगणड्डूगंदं णिसाकरकरातिरेगसीतलतरं उसिणपसरसतुरितावसारं ऊरलत्थीहत्यविच्छूरं कुंदकुसुमाणरुहपहतणिकरगोरं हारं आभरणपडीहारं पिणिद्धिति हनुमणसा, तयणंतरं च णं मणियणोवगूढं संखसोभंतमज्झा गरम्हणिग्गतसरं तवणिज्जमयं विचित्तमणिरयणभत्तिचित्तं पालवं अप्पणी पमाणेण सुप्पमाणं पिणिद्धति वयणकमलणालं, तदणं० च णं तवणिज्जमयाई चंचलचलंतचलियसोदामणिप्पभाई विमलमिसिभिसंतमणिरयणपरिमंडिताई गडपरिपुंछकाई कबोलनीयलगाई मुहलच्छीदविगाई आभरणोदारचारुथिक्किल चिल्लकाई कने कुंडलाई पिपिद्धति हट्टतुट्टमणसा, तहेव तं नगं च सुहफारससुसंयुतं विमलं सिरिविभूसेक्कमउडपडिसवत्ति अमंगलासंतिरोगदोसावहारकं अवरिसं पवरलक्खणगुणोवधेयं मंगलं उत्तमं पवित्तं अवणितमउ| डमिरिकूडभूतं गुणागर सिरिवरं महातेयकंतिजुत्तं रूवणाभातारकं पुढविरयणसव्वसारं देविंदणरिंदमुद्धकतणिलयणं अम्बं चूलामणिं पिणद्धिति हतुट्टमणसा, तयांतरं चणं अतिरुम्गयसिसिरसमय रवितरुणमंडलणिभं जंबूणयविमलविपुलविदलित सोलसपररवणकलितविणियुत्तदेसभागं मंगलभत्तिसहस्ससोभंत सस्सिरीयं मरगयमण यमगररयणवालरुय गकक्केतणकणगचित्तणिज्जुत्तचारुणिम्मलविच्चिरमुहसत विणिग्गओग्गिनपवरमुत्तियपतरपलंचंतदामकलितं तवणिज्ज विचित्तमुत्तियाजालरयणपचलितघंटियसद्दालमधुरमुहलं अतिसयमतिविभवणितुणविणइतमणोरहृष्पादकं अहियपंच्छणिज्जरूवं मणिरयणजलंतजालमालाकुलाभिरामं आभरणवडेंसयं (263) श्रीवीरस्य दीक्षामहः ||२५७॥ Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२५८॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) निर्युक्तिः [२७०... /४६०. आयं (८८-११] मूलं [- / गाथा-1, आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - पभासमुदओपहारं रयणुक्कडं मउर्ड पिद्धति हतुट्टमणसा, एवं हारं पिणिद्धति २ अद्धहारं पिद्धति २ एकावलि २ मुत्तावलि २ कणगावलिं २ रयणावलिं २ मुरविं कंठे २ मुरविं पलंबे २ पादावलंबाई पलंबाई २ कडगाई २ तुडियाई २ केऊराई २ अंगवाई २ दसमुद्दियातकं २ कडिसुत्तगंर कुंडलाई २ चूलामणि२ चित्तरयणसंकडं मउडर दिव्वं सुमणदामं २ दद्दरयम लयसुगंधगंधिए य गंधे पिणिद्धति २ ता जाव णाणामणिकणगरयणविमलमहरिहणिउणोत्र इतिमिसिमिसंत चिरत सुसिलिङ बिसिठ्ठलट्टतेलोक्कबीरवलए आविधति २ तए णं ते सानिं गंधिमवेढिमपूरिमसंघातिमेण चउत्रिहेणं मणं कप्परुपि अलंकितविभूसितं करेंति, ताहे सुगंधगंधाई पक्खिवंति एवं वासाई जाब चुनाई पक्षिवंति२ ताहे पत्ते पत्ते करतलपरिग्गहितं सिरसावतं मत्थए अंजलिं कट्टु ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुष्णाहिं मणामाहिं ओरालाहि कल्लाणाहिं सिवाहिं धनाहिं मंगलाहिं मितमधुरसस्सिरीयाहिं वग्गूहिं अभिणदमाणा य अभियुणमाणा य एवं वयासी- जय जय गंदा ! जय जय भद्दा ! जय जय गंदा ! भई ते, जय जय खतियवरवसभा ! अजियं जिणाहि इंदियसेनं जियं पालयाहि समणधम्मं जियमज्झे बसाहि बहई दिवसाई बहुई पक्खाई बहूई मासाई बहूई उई बहूई अयणाई बहूई संबच्छराई, अभीता परीसहोवसन्गाणं खंतिखमा भयभरवाणं धम्मे अविग्धं भवउत्तिकट्टु जयजयस पजेति, पउंजेता विहिं उपदंसेति जहा सूरिया भो । तए थे से मंदिवडणे राया कोईवियपुरिसे सदावेति सदावेता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाप्पिया ! अणेगखं भसयसंनिहिं एवं सीयावन्नओ जहा णातेसु मेहकुमारस्स जाव तुरियं चवलं बेगिकं पन्नासघणुयामं पणुवीणुविच्छिनं छत्तीसधणुमुच्विद्धं चंदष्पमं सीतं उपवेद तय पं ते जाब उबडवेंति । तए णं से अच्चुए आभियोगिए देवे सहावेति सदावेत्ता एवं बयासी खिप्यामेव भो जाव चंदप्यहं सीयं उबडवेह, नवरं जाणविमाणवचओ, (264) श्रीवीरस्य दीक्षामहः ॥२५८॥ Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९२-९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका दीप श्री तेऽधि जाब उवट्ठति । तए गं मा सीता त चव सीतं अणुपविट्ठा । आवश्यकता II चूर्णी दा श्रीवीरस्य पत्थ-चंदप्पभा य०॥भा. ९२ ॥ पंचासति०॥भा. ९३ ॥ सीयाय मझयारे । भा.१४॥तए ण सामी बेसालीएशिय ४ा केसालंकारेणं मल्ह्यालंकारणं आमरणालंकारणं वत्थालंकारेणं चउव्यिहेणं अलंकारेणं अलंकारिए पडिपुण्णालंकारे सीहासणाओ दीक्षामहः उपोद्घात नियतादाअभुढेति अद्वेता जेणेव चंदप्पभा सीता तणव उवागच्छति उपागच्छेत्ता चंदप्पभं सीयं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे २ चंदप्प | | सीयं दुरुदति २ सीहासणवरगते पुरत्याभिमुहे सभिसन्ने । ॥२५९॥ तए भगवतो कुलमहत्तरिता हाया जाब सरीरा हंसलक्खणं पडसाडयं गहाय जाब सौर्य दूरुहति २त्ता सामिस्स दाहिणे| पासे भद्दासणवरसि सभिसा, एवं सामिस्स अम्मधाती उवगरणं गहाय वामे पासे संनिसना, तए ण सामिस्स पिट्टतो एगा वरतरुणी सिंगारागारचारुवसा संगतगत जाव स्वजोषणविलासकलिता हिमरयजाव धवलं आयवत्वं गहाय सलील धरेमाणी २ चिट्ठति, तए गं सामिस्स उमओ पासिं दुवे परतरुणीणो जाव चवलाओ चामराओ गहाय जाव चिट्ठति, तए णं सामिस्स उत्तरपुरच्छिमेणं एगा बरतरुणी जाव सेयं रपयामयं विमलसलिलपुन मत्तगयमुहाकीतिसामाणं भिंगारं गहाय जाव चिट्ठति । एवंद दाहिणपुरस्थिमेणं एगा वरतरुणी चि कणगदंडं जाव सालवेंट गहाय चिट्ठति, केति पुण भणति- सर्व देवा य देवीओ य ।। ___तए ण सामिस्स पिट्ठतो सक्कादिया देविंदा हिमस्ययदेंदुपगासाई वेरुलियविमलदंडाई जंबूणयकत्रियागाई वारसंघीणि 30२५९॥ मुचाजालपरिगताणि अट्ठसहस्सवरचणसलागाणि दहरमलयसुगंधि सम्बोउपसुरभिसीयलच्छायाई मंगलभत्तिचिनाई चंदागारो अनुक्रम KARAN (265) Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययन - मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०..., भाष्यं [९२-९४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत सत्राका दीप हामाई जाव सकारेंटमल्लदामाई छत्ताई सलील धरेमाणा धरेमाणा चिट्ठति । तए णं सामिस्स उभतो पासिं चंदप्पभवेरुलियणाणा-15 ट्रमणिकणगरयणखचियचित्तदंडाओ मुहमरययदीहवालाओ संखकुंददगरयअमयमहियफेणपुंजसंनिकासाओ सव्वरयणामतीओ दीक्षामह चूर्णी उपोद्घात | अच्छाओ चामराओ जाव बीएमाणा २ चिट्ठति, एवं तएणं से णदिवदणे राया अट्ठारस सेणिप्पसेणीओ सद्दावेति सहावेत्ता एवं नियुक्ता | वयासी-तुब्भे णं देवाणुप्पिया! हाया जाब सवालंकारविभूसिया सीयं परिवहह, तए ण ते जाव सिवियं परिवहति, तए णं से इसक्के देविंद देवराया चंदप्पभाए सीयाए दाहिणिल्लं उवरिल्लं बाई गेण्हति, ईसाणे देविदे देवराया उत्तरिल्लं उवरिलं बाहर ॥२६०॥ गण्डति, चमरे असुरिंदे दाहिणिल्लं हेडिल्लं बाहं गेहति, बली [ धायरणिदे ] बहरोयाणंदे उत्तरिलं हेट्ठिलं पाहं गेण्हति, अवसेसा मा भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिता देवा जहारिहं चंदप्प सीयं गेहंति । एवं एत्थ आलतिय०॥ भा. ९५ ॥ छट्टण०। भा. ९६॥ सीहासणे०॥ भा. ९७॥ पुट्वि. भा.॥९८|| चलचबलकुंडलधरा, #सच्छंदविउब्बिताभरणधारी। असुरसुरवंदियाणं, वहंति सीयं जिणिदाणं भा ॥१९॥ कुसुमाणि॥भा. १००॥ रावणसंडो य०|| भा.१०१।। सिंद्धस्थवर्ण०॥ १०२ ।। अयसि०॥ भा. १०३ ।। वरपडह ॥ भा. १०४॥ तए णं सामिस्स सीयं दूरुढस्स समाणस्स तप्पढमयाए इमे अट्ठमंगलया पुरतो अहाणुपुबीए संपट्टिता, संजहा- सोस्थिय । सिरिवच्छ णदियावत्त बद्धमापाय भदासण कलस मच्छ दप्प सवरयणामया पासादीया जाय अभिरूवा पडिरूवा, तयणंतरं च णं ॥२६०॥ पुग्नकलसा भिंगारदिया य छत्तपडागा सचामरा दंसणरचितआलोकदरिमणिज्जा वातुद्धयविजयवेजयंती य समृसिया गगणतल अनुक्रम (266) Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२६१! “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [२७०.../४६०.... भाष्यं [ ९५-१०४] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 मणुलिहंती पुरतो अहाणुपुब्बीए संपट्टिता । तयणंतरं च णं बेरुलियाभिसंतबिमलदंडं पलंबकोरंटमल्लदामोव सोभितं चंदमंडलणिभं समृसितविमलमातवतं पवरं सीहासणं च मणिरयणपादपदं सपाउयायोगसमाजुचं बहुकिंकरामरपरिक्खितं सच्छत्तभिंगारं जाव संपट्टितं तयणंतरं च णं तरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलिमल्लियच्छाणं चंचुच्चियललितपुलियचलचवलचंचलगतीणं लंघणवग्गणाधावणाधारणतिवदिजइणसिक्खितगतीणं ललंतला सगललामवरभूसणाणं मुहमंडगओ चूलगथासगअमिलाणचामरगंडेगपरिमंडितकडीणं किंकरचरतरुणपरिग्गहिताणं असयं वरतुरगाणं पुरओ अहाणुपुब्बीय संपत्थियं, तयणंतरं च णं ईसीदंताणं ईसीमत्तार्ण | ईसीतुंगाणं ईसीउच्छंग विसालबिउलदंताणं ईसीकंचणकोसी पिणिद्धदंताणं कंचणमणिरयणभूसियाणं वरपुरिसारोहसुसंपउचाणं अट्ठसूयं कुंजरवराणं पुरतो अहाणुपुब्बीए संपत्थियं, तयणंतरं चणं सच्छत्ताणं सज्झयाणं सर्वदाणं सपडागाणं सतोरणवराणं समंदिघोसाणं हेमवंतचिततेणिसकणगणिजुत्तदारुयाणं कालायससुक्रतणेमीयंतकम्माणं सुसंविद्धचिक्कमंडलधुराणं आइण्णवरतुरगसंपउचाणं कुसलणरच्छेदसारहिसुसंपग्गहिताणं हेमजालगवक्खजालखिखिणिघंटा जालपरिक्खित्ताणं बत्तीसतोणपरिमंडिताणं सरांकडवर्डेसयाणं सचावसरपहरणावरणभरितजुद्धसज्जाणं असयं रहाणं पुरतो जाब संपत्थियं, तयणंतरं च णं समद्भवद्भवम्मियकवयाणं उप्पीलिपसरासणपट्टियाणं पिषिद्धमेवेज्जविमलवरबद्धचिंधपट्टणं गहियाउहपहरणाणं असयं वरपुरिसाणं पुरतो जाव संपत्थियं, तययंतरं च णं हयाणीयं गच्छति, तयणंतरं च णं गयाणीयं गच्छति, तयणंतरं च णं पायत्ताणियाणीयं गच्छछ, तयणंतरं च णं वरामयबद्दल संठित सिलिद्वपरिवहमसुपतिद्वियत्रिसिद्धे अगवरपंचवचकुडमीसहस्सपरिमंडिताभिरामे वातविजयवेजयंति (267) श्रीवीरस्य दीक्षामहः ॥२६२॥ Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 * * HEIGA * पापडागच्छत्तादिच्छच्चकालते तुंगे मगणतलममिकख(लघ)माणसिहरे जोयणसहस्समूसिते महतिमहालए महिंदज्झए पुरतो अहाणुपु-15 श्रीवारस्य आवश्यक ब्बीए संपत्थिए । तयणंतरं च णं बहवे दीक्षामहः चूर्णी ___असिलगु० (औप०) कुंत० (औप०) जाच संपत्थिया, तयणंतरं च णं बहवे इंडिणो बहवे मुंडिणो बहवे दंविणो जाव बहवे | उपविधाता नियुक्ती जडिणो हासकारका दबकारका खेडकारका चाटुकारका कंदप्पिया कुक्कृतिया गायतया बायंतया नच्चदया हसंतया रमंतया | | हसावेंतया रमावेतया जाव आलोयं च कोमाणा जयजयसई च पउंजेमाणा जाब संपत्थिया, तयणतरं च णं बहवे उग्मा भोगा| ॥२६॥ राइमा खत्तिया जाव सत्थवाहप्पमितयो ण्हाता जहा उपवातिए जाव अप्पेगतिया पायविहारेण महता पुरिसवग्गुरापरिक्खित्वा । सामिस्स पुरतो य मग्गतो य पासओ य अहाणुपुबीए, संपत्थिता । एवं बहवे देवा देवीओ य सरहिं २ स्वेहिं सर्हि २ वेसेहि। सरहिं २ चिंधेहि सरहिं २ निओएहि पुरओ य मग्गो य पासओ य अहाणुपुवीए संपत्थिया । तए णं से दिवद्धणो राया | व्हाते जहा कूणिते जाव हथिखंधवरगते सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेण धरिज्जमाणेण सेतवरचामराहि ओधुबमाणीहिं २ हतगयरहपवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरितुडे महता भडचड जाव परिक्खिचे सामि पिडतो २ अणुगच्छति । तते | | सामिस्स पुरतो महं आसा आसबारा उमतो पासिं नागा णागधरा पिढतो रहा रहसंगेल्ली। ॥२६॥ तए णं से समणे भगवं महावीरे बेसालीए दक्खे पडि पडिरूवे अल्लीणे मदए विणीए गाते गातपुते णातकुलविणिवाल विदेहे विदेहदिने विदेहजच्चे विदेहमालं सत्तुस्सेहो समचउरंससंठाणसंठिते बजरिसभणारायसंघयणे अणुलोमवायुवेगे कंकग्ग दीप अनुक्रम (268) Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यक उपाघात सत्राका नियुक्ती ॥२६३॥ दीप हणी कवोयपरिणामे सोणिपोसपिढ़तपरिणते पउमुप्पलगंधसरिसणीसाससुरभिवयणे छवीणिरानकउत्तमपसस्थअतिसेसणिरुवमतणाधीचीरस्य जल्लमलकलंकसेयरपदोसज्जियसरीरे णिरुवलेवे छायाउज्जोवितंगमंगे घणणिपितसुबद्धलक्खणुनपकूडागारणिभपिंडितमिरे साम- देहवणेनं लिबोंडपणणियितच्छोडितमितुविसयपसत्थसुहमलक्खणसुगंधसुंदरभुयमोयगभिंगणेलकज्जलपट्ठभमरगणणिद्धणिगुरुंबणिचितकुंचितपदाहिणावत्तमुद्धसिरए दालिमपुष्फप्पगासतवाणिज्जसरिसनिम्मलमणिद्धकेसंतकेसभूमी छत्तागारुतिमंगदेसे उडुवइपडिपुण्णसोमवयणे णिव्यणसमलमदचंदद्धसमणिडाले आणामितवरबेरुलियतणुकसिणसंठितसंगतआयतसुयायभुमए अल्लाणपमाणजुत्तसवणे सुमणे पीणमंसलकबोलदेसभाए कोकासियचवलपत्तलच्छे विष्फालियपोंडरीयणयणे गरुलायतउज्जुनुंगणासे ओयवियसिलप्पवाल चिंचफलसनिमाधरोढे पंदुरससिसगलविमलनिम्मलसंखगोक्खीरफेणदगरयमुणालियाधवलदेतसेढी अंकूडदंते अफुडितदंते अवि-1 रलदंते सुणिदंते सुजातदंते एगदंतसेढीविव अणेगदते हुताहणितधोततत्ततंवणिज्जरत्ततलतालुजीहे मंसलपसत्यसठितसल. विउलहणुए सारयणवधणितमधुरगंभीरकोचनिग्घीसदुंदुभिस्सरे अबद्वितसुविमत्तचित्तमंसू चतुरंगुलसुप्पमाणवरकंपुसरिसगीचे वरमहिसवराहसीहसदुलउसभणागवरपडिपुष्णविउलबट्टखंध पुक्खरवरफलिहवाहितभुए भुयीसरविउलभोगआदाणफलिहउच्छुढदाहवाहू जुयसंनिभपाणरइयपीबरपयोट्टसंठितमुसिलिट्ठपिसिट्टउवचितघणथिरसुबद्धसुणिगूढपव्यसंधी रत्ततलोवयितमउयमसलपसत्थलखणसुजातअच्छिदजालपाणी पीवरवाहितसुजातकोमलवरंगुली आयवतलिणसुइरुबिलणिद्धणक्खए चंदपाणिलेहे संखपाणिलेहे चक्कपाणिलेहे सोत्थियपाणिलेहे रविससिसखवरचक्कसोस्थियविभत्तसुविरयितपाणिलेहे अणेगवरलक्खणुग्गमषसत्थसुविरयित ४ ॥२६३॥ पाणिलेहे, उवपितपुरवरकवाढविच्छिमपिहुलवच्छे, कणगसिलातलुज्जलपमस्थसमतलउवचितसिरियच्छरपितपच्छे अकरंदुपकण अनुक्रम कर (269) Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दवणन पत चूर्णी ॐॐॐ सत्राक नियुक्ति दीप 11 गहलनिम्मलसुजातणिरुवहतदेहधारी अट्ठसहस्सपडिपुग्नवरपुरिसलक्खणधरे संनतपासे संगतपासे सुंदरपासे सुजातपासे मितमाइ | यपीणरइतपासे झसविहगसुजातपीणकुच्छीसमोदरे पउमविगडनाभी साहतसोणंदमुसलदप्पणणिगरियवरकणगवरुयसरिसवरवहरव लितमो गंगावत्यपयाहिणावचतरंगभंगरविकिरणतरुणदोहितअकोसायंतपउमगंभीरविरयणामे उज्जुयसमसहितसुजातजच्चतणु उपोद्घात | कसिणणिद्धआएज्जलडहसूमालमउयरमाणिज्जरोमरायी पमुदितवरतुरगसीहअतिरेगट्टितकडी पसत्यवरतुरगसुजातगुज्झदेसे आइन-18 हयव निरुवलेये गयससणसुजातसंनिभोरू वरवारणमत्ततुल्लविक्कमविलसितगती समुग्गणिमुग्गगूढजन्नू एणीकुरुविंदावत्तवट्टाणुपु॥२६॥ बजेधे सैठितसुसिलिडविसिट्ठगूढगोप्फे सुपतिद्वयकुम्मचारुचलणे अणुपुव्वसुसाइतपीवरंगुलीए उन्नततणुतंबनिद्धनखे रतुप्पलपत्त मउयसुकुमालमसलतले नगणगरमगरसागरचक्कंकवरंकमंगलंकितचलणे निविट्ठचलणे विसिट्ठरूचे हुतवहनिमजलिततडितडियततरुणरविकिरणसरिसतेए अब्भहियं रज्जतेयलच्छीय दिपमाणे सूरे बीरे विस्कंते पुरिसोतिमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवर गंधहत्थी तीसं वासाई विदेहसि कटु अम्मापितिहिं देवत्तिगएहिं गुरुमयहरएहि य अब्भणुनाते समचपइन्ने पुणरवि लोयतिएहिं 8 दाजीतकप्पेहि देवेहिं संबोहिते तेणं अणुत्तरेणं आभोहिएणं णाणदसणेण अप्पणो णिक्खमणकालं आभोगेऊण चिच्चा हिरण्णं चिच्चा सुवणं चेच्चा धणं चेच्चा रज्जचेच्चा रहूं एवं बलं वाहणं कोस कोट्ठागार चेच्चा पुरं चेच्चा जणवयं चेच्चा धणकणगरयणमणि| मोत्तियसंखसिलप्पवालरत्तरयणमादीयं संतसावतेज्जं विच्छइचा विगोवइत्ता दाणं दाइयाणं परिभाएत्ता जे से हेमंताणं पढमे मासे ४, ॥२६॥ दा पढमे पक्खे मग्गसिरबहुले तस्स ण मग्गसिरबहुलस्स दसमीपखेणं पातीणगामिणीए छायाए पोरुसीए अहिणिबहाए पमाणपत्ताए सुव्बएणं दिवसेणं विजएणं मुहुत्तेण चंदप्पभाए सीयाए सदेवमणुयासुराए परिसाए समणुगम्ममाणमम्गे संखियचक्कियणंगलिय-12 अनुक्रम (270) Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप तामहमंगलियपूसमाणबद्धमाणघंटियगणेहिं ताहिं इटाहिं जाव वग्गूहिं अभिणदिज्जमाण य अभियुबमाणे य अन्भुग्गभिंगारे पग्गहि- श्रीवीरस्प आवश्यक चूर्णौ | ततालएंटे ऊसवितसतछत्ते पवीयितसेतचामरावालवीयणीए सब्बिड्डीए सव्वजुनीए सव्वपलेणं सथ्वसमुदएणं सध्यविभूतीए सव्ववि-12 स्तुतिः 16आशीष पोशात भूसाए सव्यसंभमेण सव्वपगतीहिं सव्वणातगेहिं सच्चणाडगेहि सव्वतालातरेहिं सव्वपुष्फगंधमल्लालंकारेणं सब्बतुडिगसहसंनिनादेणं एवं महता इडीए जाच महता समुदएणं महता वन्तुडितजमगसमगपडप्पवातियसंखपणयभेरिझल्लरिखरमुहिदहहुपिकतमुख Pमुइंगदुंदुभिाणिग्योसणादितरवणं कुंडपुरं मझमझेणं जेणेव णातसंडवणे उज्जाणे जेणव असोगवरपायवे तेणेव पहारेत्य गमणाए । ॥२६५॥ " तए ण सामिस्स तहा णिग्गच्छमाणस्स अप्पेगतिया देवा कुंडपुरं णगरं सम्भितरवाहिरियं आसियसमज्जितं जथा अभिसेगे जाव आहावंति परिधावति । तए ण सामिस्स कुंडपुरं मज्झमझेणं निग्गच्छमाणस्स सिंघाडगतिगचउक्क जाच पहेसु पहवे अत्यस्थिया कामस्थिया लामस्थिया जाव करोडिया अन्ने य तहा बहवे नरनारी देवदेविसंधाता वाहि इवाहि जाव गाहियाहि चम्मूहि। अभिनंदभाणा य अमित्धुणंता य एवं बयासी-जय जय नन्दा! जय जय भद्दा जय जय गंदा! मते जय जय खत्तियवरख-| |समा ! बुज्मादि भगवं लोगणाहा ! पचचेहि धम्मतित्वं हियसुहनिस्सेयसकर सव्यजीवाणंति, जय जय गंदा धम्मेणं जय जयद ॥२६५॥ नणंदा तवेण जय जय गंदा मदं ते अमग्गेहिं णाणदंसणचरिचमुत्तमेहिं अजिताई जिणाहि ईदियाई जितं च पालेहि समणधम्म | जितविग्धोऽविय यसाहितं देव! सिद्धिमझे णिहणाहिय रागदोसमल्ले तवेण धितिधणितबद्धकच्छो महाहि य अट्ठकम्मसत्तू शाषण | उचमेण सुस्केण अप्पमचो हराहि आराहणापडाग व बीरतेलोक्करंगमजो पावयवितिमिरमणुत्तरं केवलं च गाणं गच्छय मोक्खं SEARESESASRAL अनुक्रम CAठक, (271) Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२६६॥ परं पदं जिणवरोबदिद्वेणं सिद्धिमग्गर्ण अङ्गुडिलेणं हंता परीसहप अभिमविया गामकंटओवसग्गाणं, धम्मे ते अविग्धमत्थुतिकटुमा दीक्षामह अभिणदति य अमिथुर्णति य ।। एवं समणे भगवं महावीरे विसाठीए पिंडीभूततेलोक्कलच्छिसमुदए वयणमालासहस्सेहिं अभिधुन्चमाणे २ गयणमालासहस्सेहिं पेच्छिज्जमाणे २ हिययमालासहस्सेहिं उबंदिज्जमाणे २ मणोरहमालासहस्सेहिं विच्छिप्पमाणे २ कतिरूवगुणेहिं पत्थिज्जमाणे २ अंगुलिमालासहस्सहिं दाइज्जमाणे २ दाहिणहत्येणं णरणारिदेचदेविसहस्साणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे २४ मवणपंतिसहस्साई आइच्छमाणे २ तंतीतलतालतुडितगीतवादितरवणं मधुरेण य मणहरेणं जयसरपोसमीसिएणं मंजुमंजुणा घोसेणं अपडिघुममाणे २ कंदरदरिविवरकुहरगिरिवरयासउदुट्ठाणभवणदेवकुलसिंघाडयतियचउकचच्चरारामुज्जाणकाणणसभपयपदेसियाए पडेंसुआयवसहस्ससंकुलं करते हयहेसियहत्थिगुलगुलाइयरहघणघणाइतसदमीसिएण य महता कलकलरवेणं जणस्स मधुरेणं | पूरयंते सुगंधवरचुचउम्बिद्धवासरेणूकविलं णभं करेंते कालागरूपयरकंदुरुकतुरुकधूवनिवहेण जीवलोगमिव वासंते समततो सुभितचकवाल पउरजणवालवुड्डासमुदितरितपघाइतविउलतोलबोलपहल गर्म करेंते कुंडग्गामं मझमझणं जेणेव णातसंडवरुज्जाणे जेणत असोगवरपायवे तेणेव उवागच्छति उवागच्छित्सा असोगवरपायवस्स अहे सीयं ठवेति ठवेत्ता सीयाओ पच्चोरुहति पच्चोरुहिता | सयमेव आभरणालंकार ओमयति । तते णं सा कुलमहतरिया हंसलक्णणेण पडसाडरणं आभरणमल्लालंकारं पडिच्छति २ हारवा-1& रिधारसिदवारच्छिमुत्ताबलिप्पगासाई अंमई विमुयमाणी २ कंदमाणी विलबमाणी जाव समण भगवं महावीर एवं वपासी-णाएसिणं | दीप अनुक्रम (272) Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [९५-१०४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्रा श्रीचीरस्य आवश्यकाट्रा तुम जाता कासवगोनेसिणं तुम जाता ! उदितोदितणातकुलणभतलमियकसिद्धत्थजच्चवत्तियसुते सि गं तुम जाता! पासिद्ध- चूर्णी गोचजच्चखलियाणिए तिसलाए अत्तए सिणे तुम जाया जच्चखत्तिए सिणं तुमं जाता ! पहपुरिसविदत्तनिम्मलजसकित्तिवन-कादीक्षामहर उपोद्घाता संजलणणातकुलवरवडेंसए सिणं तुम जाता! गम्भसुकुमाले सि णं तुम जाता! अभिनिव्वट्टजोधणे सि तुम जाया ! अमिनिबनियुक्तौदलायचे सि तुम जाया ! अप्पडिरूबरूयलावनजोवणगुणे सिणं तुम जाता. अहियसस्सिरीएणं तुम जाया ! अहियपेच्छणि॥२६७॥ ज्जे सिणं तुम जाता ! अहियपीहणिज्जे सिणं तुम जाता ! अहियपत्थणिज्जे सिणं तुर्म जाता ! अहियअभिनिविट्ठमतिविमाणे सिणं तुम जाता! देविंदरिंदपहितकित्ती सिणं तुम जाता, सुहोसिएसिणं तुम जाया! एस्थ य तिव्वं चकमियव्वं गत्यं आलम्बेयवं असिधार महब्वयं चरियध्वं, तं घडियव्वं जाया ! जतितब जाता ! परकमेयव्वं जाता, अस्सि च अढे णो पमाए| यव्वंतिकट्टु दिवद्धणप्पमुहे सयणवग्गे सामि वंदति णमंसति अभिणंदति अभित्थुणति, थुणेचा एनंते अवकमति, सेसाणाषि आणंदअंसुपातो । तए ण सामी एवमेतमिति वयासी २ चा सयमेव पंचमुट्ठिय लोयं करेति, तते ण से सके देविदे देवसपा सामिस्स केसे हंसलक्खणेण पडसाइएणं पडिच्छति, पडिच्छिता अणुजाणतु मे भगवंतिकटु खीरोदगसमुद्दे साहरति, ततेणं सामी णमोऽधुणं सिद्धाणंतिकटु सामाइयं चरिच पडिवज्जति, समयं च णं देवाण मणुस्साण य निग्योसे तुरिषगणगौतवादितनिग्मोसे प्राय सकवयणसंदेसेणं खिप्पामेव निलुके यावि होत्या, ताहे करेमि सामाइयं सव्वं सावज जोगं पच्चक्खामि जाव बोसिरामित्ति, समिति ॥२६७॥ भदंतत्ति ण भणति जीतमिति, समय चर्ष सामी सामाइये पडिवजाति समयं च णं सामिस्स मनुस्सधम्मातो उतारिए, मयप दीप अनुक्रम (273) Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [१०५-११०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGA दीप आवश्यकथा_ ज्जवणाणे णाम गाणे समुप्पचे । सामी छटेणं भत्तेणं अपाणएणं हत्धुत्तराहि णक्खनहि जोग वागतेणं एगदेवदूसमादाय णिगिणे द्रमविचाणं तं वामे खचे काउं, जीतमिति, आगाराओ अणगारियं पब्वइए । एत्थ गाहाओउपोषात सा एवं सदेवमणु. भा.१०५।। उज्जाणं संपत्तो ॥भा.१०।। जिणवर भा.१०७॥ दिव्या मणुस्सा ॥भा.१०८॥ नियुक्ती काऊण ॥ भा. १०९॥ तिहिं नाणेहिं । भा. ११० ॥ ॥२६॥ तए णं सामी अहासंनिहिए सब्वे नायए आपुच्छिचा णायसंडबहिया चउम्भागवसेसाए पोरुसीए कंमारग्गाम पहावितो, बा एत्थेतरा पितुवयंसो घिजातितो उपाड़ितो, असे भणति-जदा चरितं पडिवज्जति तदा उपद्वितो, सो य दाणे कहिंपि गते ओ. पच्छा आगतो मज्जाते अंबाडिए, सामिणा एवं परिचत तुम पुण वाइंगणिवणाणि हिंडसि, जाहि जदि एत्तरेऽवि लभेज्जासित्ति, सो भणति जहा- सामि ! मम न किंचि तुम्भेहिं दिलं, इयाणिपि देहिति, ताहे सामिणा तस्स देवद्सस्स अद्धं दिलं, अब परिचर्चति, तं तेण तुनागस्स उवणीयं, जहा एयरस दसिया बंधाहि, तेण पुच्छित-इमं कति ?, भणइ- भगवया दिमंति, तुषाओ मणइ-तंपि से अर्द्ध आणेहि, जया पडिहिति भगवओ अंसाओ तदा आणज्जासि, तो णं अहं तुम्नेहामि ताहे सयसहस्सं मोल्लं भविस्सइ, तो तुझवि अद्धं ममवि अद्धति, पडिवनो, ताहे सो भगवं पओलग्गिओ, सेसं उबरि भनिही । तत्थ य दो पंथा-एगो पाणिएणं एगो पालीए, सामी पालीए जा वच्चति ताव पोरुसी महत्तावसेसा जाता, संपत्तो य तं माम, तस्स बाहिं सामी पडिमा ठितो, स हि भगवान् दिन्वेहि मोसीसातीएहिं चंदणेहिं चुरेहिं तहा वासेहि य पुप्फेहि य वासियदेहो निक्खमणामिसेगेण य आभिसिचो SHESARKARRIAC अनुक्रम अथ उपसर्गस्य वर्णनं आरभ्यते (274) Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [२७०.../४६०...], भाष्यं [१०५-११०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्रीवीरस्यो पसगी HEISS II विससेणं ईदएहिं चंदणादिगंधेहि पासितो, अतो तस्स पव्वइयस्स विसेसओ चत्वारि साहिए मासे सो दियो गधो ण फिडितो, आवश्यक अतो से सुरभिगंधेणं भमरा मधुकरा य पाणजातीया बहवे दूराओवि पुष्फितेचि लोद्धकुंदादिवणसंडे चतिन्ति, दिव्वेहि महिं आग- उपांदराव | रिसिता तं तस्स देहमागम्म आरुज्य कार्य विहरंति विधति य, केइ मग्गतो गुगुममेंता समति, जदा पुण किंचिविण साएंति तदा नियती आरुसिया पहेहि य मुहेहि य खायंति, वसंतकालेवि किर किचि रोमकूवेसु सिणेहं भवति तदा बिलग्गितुं तं पिबित्ता आरुसि ताण तत्थ हिसिमु, मुइंगादावि पाणजातीतो आरक्ष कार्य विहरति जाब गाते बत्थे वा चंदणादिविलेवणाणं घुमाईण च केति ॥२६॥ अवयवा धरिता ताव ते खाईसु, तेहिं निट्ठिएहिं पच्छा ते ठितस्स वा चक्कमंतस्स वा आरुट्ठा समाणा कार्य चिहिंसिसु, जे वा | अजितिंदिया ते गंधे अग्यात तरुणहत्ता तग्गंधमुच्छिता भगवंतं भिक्खायरियाए हिंडतं गामाणुग्गामं दूइज्जतं अणुगच्छंता अणु लोम जायंति-देहि अम्हवि एतं गंधजुनि, तुसिणीए अच्छमाणे पडिलोमे उबसग्गे करेंति, देहि वाहिं वा पेच्छसि, एवं पडिम ते ठियपि उवसग्गेति, एवं इस्थियाओवि तस्स भगवतो गातं रयस्वेदमलेहि बिरहितं निस्साससुगंधं च मुहं अच्छीणि य निसग्गेण काचेव नीलुप्पलपलासोबमाणि वीयअंसुविरहियाणि दटुं भणंति सार्मि-कहिं तुम्भे वसहि उवेह , पुच्छति भणंति अनमत्राणि, एवं | | सव्वा चरिया जहा ओहाणसुए 'अहासुयं वइस्सामी' चातिणा तहा विभासियब्वा, एत्थ पुण जत्थ किंचि उवसम्गो वा बासारत्तो वा कारण वा किंचि तं भन्नति, तए णं भगवतो कम्मारग्गामे बाहिं पडिमं ठियस्स गोवनिमित्तं मक्कस्स आगमी वागरेति देविंदो । कोल्लागवले छट्ठस्स पारणे पयस बमुहारा ॥ ४६१ ॥ तत्थ एगो गोवो सो ला दिवस बहल्ले वाहेत्ता गामसमीर्य पत्तो, ताहे चिंतेति- एते गामसमीवे खेत्ते चरंतु, अहंपि ता गाइओ दोहेमि, सोवि ताव अंतो| दीप अनुक्रम (275) Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥२७०॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा -1 निर्युक्तिः [ २७०.../४६०. आयं [१०१-११०] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - परिकम्मं करेति, ते बल्ला चरंता अडविं पट्टा, सो गोवो निग्गतो, ताहे पुच्छति कर्हि ते बहला?, ताहे सामी तुहिक्को अच्छति, सो चिंतेइ एस ण जाणति, तो मग्गिनुमाढतो, ते य बरला जाहे धाता ताहे गामसमीवं आगता माणुसं दद्दूण रोमथेता अच्छति, ताहे सो आगतो पेच्छति तस्थेव निविट्टे, ताहे आसुरुत्तो, एतेण दामपण हणामि, एतेण मम चोरिता एते बहुला, पमाए घेत्तुं बच्चीहामि, ताहे सक्को देबिंदो देवराया चिंतेह किं अज्ज सामी पढमदिवसे करेति ?, जाव पेच्छति तं गोवं धावतं, ताहे सो तेण थंभितो, पच्छा आगतो तं तज्जेति दुरात्मा न जाणसि सिद्धत्थरायपुत्तो अज्ज पव्यतितो, ताहे तंमि अंतरे सिद्धस्थो सामिस्स मातुत्थितापुतो बालतवोकम्मेणं वाणमंतरो जावेल्लओ, सो आगतो, ताहे सक्को भणति भगवं ! तुन्भ उवसम्यबलं तो अहं बारस वासाणि वैयावच्चं करेमि, ताहे सामिणा भनति नो खलु सक्का ! एवं भूअं वा ३ जं णं अरिहंता देविदाण वा | असुरिंदाण वा नीसाए केवलणाणं उप्पार्डेति उप्पाडेंसुं वा ३ तवं वा करेंसु वा ३ सद्धिं वा वच्चिसु वा ३, गण्णस्थ सपूर्ण उड्डाणकम्मबलविरियपुरिसक्कारपरक्कमेणं, ताहे सक्केण सिद्धत्थ भणितो- एस तब णीयलओ पुणां य मम वयणं, सामिस्स जो परं मारणंतियं उवसग्गं करेति तं वारेहि, एवमस्तु देण पडिसुतं, सक्को पडिगतो, सिद्धत्थो ठितो, सामिस्स य अगारवा मोत्तूण संजयस्स सतो एवं चउत्थभत्तं, नत्थि अनं, अवसेसं कालं जहनगं छट्टभतं आसि। ततो बीयदिवसे छट्टपारणए कोडाए संनिवेस घतमघुसंजुतेणं परमश्रेण बलेण माहणेण पडिलाभितो पंच दिव्या जहा उसभस्स । इज्जतग पितुणो वयसं तिव्वा अभिग्गहा पंच आर्थियत्तोग्गह ण वसण णिच्च बोसट्ट मोणेणं ।। ४- १।४६२ । (276) प्रार्थना ॥२७०॥ Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री अभिग्रहपंचक सूत्रांक दीप पाणीपत्त गिहिवंदणं च तह पद्धमाण वेगवती । धणदेव सूलपाणी दसम वासहितग्गामो ॥४-२२४६३॥ "आवश्यकता चूणा रोधा य सत्त वेपणि धुति दस सुमिणुप्पलद्रमासे य। मोराण सकारं सको अच्छदए कुवितो ॥४-२४६४॥ उपोषात ताहे सामी विहरमाणो गतो मोराग संनिस, तत्थ दूइज्जतगा णाम पासंडत्था, तेसिं तत्थ आवासा, तेसिं च कुलवती | भगवतो पितुमित्तो, ताहे सो सामिस्स सागतेणं उवगतो, ताहे सामिणा पुबपतोगेण तस्स सागतं दिलं, सो भणति-अस्थि घरं ॥२७॥ एस्थ कुमारवर ! अच्छादि, तत्थ सामी एगतराई वसिऊण पच्छा गतो विहरति, तेण भणिय-विविचाओ बसहीओ. जदि वासा| रत्तो कीरति तो आगमेज्जाह, ताहे सामी अट्ठ उउचद्धिए मासे विहरिता वासावासे उबग्गे तं चेत्र दाजंतगगाम एति, तत्थेगमि | मढे वासावासं ठितो, पढमपाउसे य गोरूवाणि चारि अलमंताणि जुण्णाणि वयाणि खायंति, ताणि व घराणि उव्वेल्लेंति, पच्छा | ते वारेति, सामी ण यारेइ, पच्छा ते दूइज्जतगा तस्स कुलवइस्स साति, जहा एस एताणि ण वारेति, ताहे सो कुलवती तं अणुसासेति, भणति कुमारवरा ! सउणीवि ताव णेई रक्खति. तुमंपि वारेज्जासित्ति सप्पिवास भणति, ताहे सामी अचितचोरगहोत्ति, निम्गतो, इमे य तेण पंच अभिग्गहा महिता, तंजहा-अचियत्तोग्गहे ण वसितम्ब, निच्चं बोसट्टे काए मोणं च, पाणीसु भोत्तव्यं, ता केई इच्छति-सपत्तो धम्मो पत्रवेयचोति तेण पढमपारणगे परपचे भुत्तं, तणं परं पाणिपत्ते, गोसालेण किर तंतुवायसालाए भणियं-अहं तव भोयणं आणामि, गिहिपत्ते काउं, तंपि भगवया नेच्छियं, उप्पनणाणस्स उ लोहज्जो आणेति ।। धन्नो सो ४ लोहज्जो खंतिखमो पवरलोहसरिवभो । जस्स जिणो पत्ताओ इच्छइ पाणीहिं भोत्तुं जे ।। १ ।। किं तत्थ ताण अडितवां', अनुक्रम ॥२७१॥ (277) Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रामा चूर्णी श्री भणितं च-" देविंदचक्कवट्टी मंडलिया ईसरा तलवरा य । अभिगच्छंति जिणिदं गोयरवडियं ण सो अडति ॥ १॥ छउमत्थकाले |8/ आस्थआवश्यक अडितं, गिहत्थी न वंदियव्यो न अम्मुट्ठयब्बोधि । तत्थ अद्धमास अच्छित्ता ततो पच्छा अद्वियग्गामं वच्चति, तस्स पुण ) उपोद्घातला अट्ठियगामस्स पढमं बद्धमाणयं णाम होत्था, तो किह जातो अद्वितगामो, नियुक्ती म तत्थ धणदेवो नाम वाणियओ पंचहिं पुरस्सरेहिं गणिमधरिममेज्जस्स भरितेहि तेणतेण आगतो, तस्समीवे वेगवती णाम णदी, ॥२७२॥ IMI सगडाणि उत्तरंति, तस्स य एगो बतिल्लो सो मूलधुरे जुप्पति, ताहच्चएणं (बलेणं) ताओ भंडीओ उत्तिमाओ, पच्छा सो छिनो पडितो. सो वाणियतोतं अवहाय तणं पाणितं च पुरतो छठेऊणं गतो, सो य तत्थ वालियाए जेट्ठामूले मासे अतीव उण्हेण तण्हाए य परिता| विज्जतिबद्धमाणओ य लोगो तेणतेणं तणं च पाणियं वहति, ण य तस्स कोइ देति, ताहे सो गोणो तस्स लोगस्स पदोसमावो, सो ४ तत्थ अकामतण्हाए य अकामछुहाए य तत्थ चेव माम अग्गुज्जाणे सूलपाणी वाणमंतरो उबवण्यो, उवउत्तो पासइ तं बलद्दसरी-18 ल रंग, ताई आसुरुत्तो मारिं विउब्बति, सो गामो मरिउमारद्धो, एवं 'अद्दण्णो समाणी कोउगसयाणि करति, तहवि ण हाति, | ताहे भिन्नो गामा अनेसु संकतो, तत्थवि ण मुंचति, ताहे तेसिं चिंता जाता-अम्हहिं तत्थ ण णज्जति कोवि देवो वा दाणवो | ४ वा विराहितो, तम्हा तहिं चेव वच्चामो, आगता समाणा णगरदेवताए विउलं बलिउबहारं करेता समंततो उम्मुहा सरणति जं P२७२॥ अम्हेहिं सम्म ण चेट्टितं तस्स खमदा, ताहे अंतलिक्खपडिवो सो देवो ते भणति-तुम्भे दुरात्मा गिरणुकंपा तेणतेण जाव एह यण य तस्स गोणस्स तर्ण वा पाणियं वा दिन, तस्स में एतं फले, ते पहाता पुष्फवलिहत्थगता भणति-दिछो कोयो, पखादं *SHAIR दीप अनुक्रम (278) Page #279 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपो घात नियुक्ती ॥२७३॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) भाष्यं [१११] मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४६२-४६४/४६२-४६४], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 इच्छामो, वाहे भणति एताणि माणुस्सडियाणि पुंजं काऊणं उवरिं देवकुलं करेछ, बलिवदं च एगपासेत्ति, अने भणति तं बल्लरू करेह, तस्स य हेट्ठा ताणि बल्लडियाणि निक्खणह, तेहिं अचिरेणं कथं, तत्थ इंदसम्मो णाम तस्स पडियरओ, वाहे लोगो पंथियादी पेच्छति पंडरायं गामं देवकुलं च, ताहे पुच्छंति अनेकयराओ गामाओ आगता ?, भणेति जत्थ ताणि अट्ठियाणि, | एवं सो अट्ठितगामो जातो । तत्थ पुण वाणमंतरघरे जो रतिं परिवसति तत्थ सो मूलपाणी संनिहितो तं रचि वाहेत्ता पच्छा मारेति, ताहे तत्थ लोगो दिवस अच्छिऊणं पच्छा विगाले अन्नत्थ पञ्चति, इंदसम्मोऽवि धूर्व दीवगं दातुं दिवसतो चैव जाति । इतो य तत्थ सामी आगतो दुइज्जंतगाण पासातो, तत्थ य सव्वलोगो तद्दिवसं पिंडितो अच्छति, सामिणा देवकुलितो अशुभवितो, सो भणति-गामो जाणति, सामिणा गामो मिलितओ चैव अणुन्नवितो, सो गामो भणइ--ण सका एत्थ बसिउं पुंज्जे, सामी भणति गरि तुभे अणुजाणह, ताहे भणति डाह, तत्थेकेका बसहिं देति, सामी पेच्छति, भगर्व जाणति सो संबुज्झिहितित्ति, ताहे गंता एगकोण पाडमं ठितो, ताहे सो इंदसम्मो सूरे धरेंते चैव धृवपुष्पं दाऊण कप्पडियकरोडिया सव्ये पलोएचा तंपि देवज्जगं भणति तुम्भेवि णीह, मा मारिज्जिहिह, भगवं तुसिणीओ अच्छति, ताहे सो वंतरी चिंतेति देवकुलिएण गामेण य भन्नतोऽवि न जाति पेच्छ से अज्जै जं करोमि, ताहे सञ्झाए अट्टहास सूर्यतो बीहावे, भीमं अट्टट्टहासं मुंचतो ताहे मेसेउं पवतो, ताहे सब्बो लोगो तं सई सोऊण भीतो भणति एस सो देव्बज्जतो मारिज्जति, तत्थ य उप्पलो नाम पच्छाकडो परिव्वाओ पासावचिज्जो नेमित्तिओ भोमउप्पातसिमिणतलिक्खअंगसरलक्खणर्वजण अड़ंगमहानिमित्तजाणओ जणस्स सोऊण चिंतति-मा तित्थकरो होज्जा अद्धिति करेति, बीहेति य तत्थ रतिं गंतु, ताहे सो वाणमंतरो जाहे सद्देण ण श्रीहेति वाहे इत्थिरूवेण उवसग्गं (279) शूलपाणि चैत्यं ॥२७३॥ Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्ती ॥२७४॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) मूलं [- /गाथा -1, निर्युक्तिः [४६२-४६४/४६२-४६४] भाष्यं [१११] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - करेति पिसायरूयेण य, एतेहिवि जाहे ण तरति खोमेउं ताहे पभायसमए सचविहं वेषणं करेति, तंजहा सीसवेयणं १ कअवेयणं २ अच्छिवेयणं ३ दंतवेषणं ४ णहवेयणं ५ नकवेयण ६ पिट्टिवेयणं ७ एकेका वयणा समत्था पागतस्स जीतं संकामेतुं किं पुण सत्त तायो उज्जलाओ १, भगव अहियासेति, ताहे सो देवो जाहे न तरह चालें वा खोभ वा ताहे तो संतो परितंतो पायपडिओ खामेइ-खमेह भट्टारगति, ताहे सिद्धत्यो उद्धातितो-हं भो मूलपाणी ! अपत्थियपत्थया न जाणसि सिद्धत्थरायसुर्य भगवंतं तित्थगरं, जति सक्को देवराया जाणतो तो ते णं पायेंतो, ताहे सो भीतो दुगुर्ण खामेति, ताहे सिद्धत्यो धम्मं कहेत, तत्थ उवसंता सामिस्स महिम करेति, तत्थ लोगो चितति सो तं देवज्जत मारेचा इयाणि कीलेति । सामी य देसूणचचारि जामे अतीव परितावितो समाणो पभायकाले सुहुत्तमेतं निद्दापमादं गतो, तत्थिमे दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुद्धो, तंजातालपिसाओ हतो १ सेयसउणो चित्तकोइलो य दोवेवे पज्जुवासंता दिट्ठा २-३ दामदुगं च सुरभिकुसुममयं ४ गोग्गो य पज्जुवासंतो ५ पउमसरो विउद्धपंकओ ६ सागरो य मि णित्थिनोत्ति ७ सूरो य पइभरस्सिमंडलो उग्गमतो ७ अंतहि य मे माणुसुतरो वेडिओत्ति ९ मंदरं चारुढो मिति १०, लोगो पभाते आगतो, उप्पलो य इंदसम्मो य, ते अच्चणियं दिव्वं गंधचुनपुष्पवासे च पासंति भट्टारगं च अक्खयसव्वंगं, ताहे सो लोगो सब्बो सामिस्स उकिट्टिसीहणादं करेंतो पादे पडितो मणति, जहा देवज्जतेण देवो उवसामितो, महिमं पगतो, उप्पलोऽवि सामि ददुं पट्टो वंदति, ताहे भगति-सामी ! तुम्भेहि अंतिमरातीए दस सुमिणा दिट्ठा, | तेसि इमं फलति जो तालपिसायो हतो तमचिरेण मोहणिज्जं उम्मुलेहिसि १ जो व सेयसउणो तं सुकज्झाणं साहिसि २ जो विचित्तो कोइलो तं दुबालसंग पनवेहिसि ३ गोवग्गफलं च ते चउव्विहो समणसंधो भविस्सति, ५ पउमसरो चउन्हिदेवसंघातो (280) शिरआदिवेदनाः७ स्वभाव १० ॥ २७४॥ Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४६२-४६४/४६२-४६४], भाष्यं [१११] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री आवश्यक जाप उपोदयात नियुक्ती सत्रांक ॥२७५।। दीप भविस्सति ६ जे च सागरं तिनो तं संसारमुचरिहसि ७ जो य सूरो तमचिरा केवलनाणं ते उप्पन्जिहिति ८ च अंदेहि माणु शिवमफलामुत्तरो वेदितो तं ते निम्मलजसकित्तिपयावा सयले तिहुयणे भबिस्सति ९ च मंदरमारुढोसि ते सीहासणस्थो सदेवमणुयासुराए1212 पनि अच्छपरिसाए धम्म पनवेहिसिति १० दामदुर्ग पुण ण जाणामि, सामी भणति-हे उप्पला! नं तुम न याणसि तं नं अहं दुविहमगारा-81 मान्दकवृत्तं |णगारियं धम्म पनवेहामित्ति ४ ततो उप्पलो वंदिता गतो । तत्थ सामी चचारि मासे अद्धमास खममाणो एत पढम सभोसरण है। बुच्छो । एत्य इमाओ मूलभासागाहाओभीमहहास हत्थी पिसाय णागा य वियण सत्तेमा। सिर कन्न णास दंते णहच्छि पट्टीय सत्तमिया ४-४१४६५॥ ताल पिसायं दो कोइला पदामदुगमेव गोवग्गं । सर सागर सूरंते मंदर सुविणुप्पले चेव ॥ ४-५४॥६६॥ मोहे य झाण पवयण धम्मे संघ य देवलोगे य । संसारत्ताण जसे धम्म परिसाए मजसंमि ॥४-६१४६७।। पच्छा सरदे निग्गओ मोराय नाम सचिवसं गओ, तत्थ सामी बहिं उज्जाणे ठिओ, तत्थ य मोरागए सन्निवेसे अच्छंदगानाम पासडत्था, तत्थ एगो अच्छंदओ तस्थ गामे अच्छइ, सो पुण तत्थ गामे कॉटलवेंटलेण जीवति, सिद्धस्थगो पालो अच्छतओ अद्धिति करेति बहुसंमोइतो य, भगवतो य पूर्य अपेच्छेतो, ताहे सो बोलेंतं गोइं सदावेत्ता वागरेति, जहिं पधावितो ॥२७५॥ जं जिमितो जं पंथे दिह जे य सुविणगा दिडा, ताहे सो आउट्टो गामं गंतुं मित्तपरिजिताण परिकहेति, सबहिं गामे फुसितं एस देवज्जतो उज्जाणे अतीतवद्माणाणागतं जाणति, ताहे अनोऽवि लोओ आगतो,सव्वस्स वागरेति, लोगो तहेव आउट्टो सहिम अनुक्रम REKAR SE (281) Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥२७६॥ Ats “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) भाष्यं [११२ ११४] मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [ ४६५-४६७/४६४...], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 करेति, सो लोगेण अविरहितो अच्छति, ताहे सो लोगो भणइ एत्थ अच्छंदओ णाम जागतओ, सिद्धत्थो भणति से ण किंचि जागति, ताहे लोगो गंतुं भवति-तुर्म ण किंचि जाणसि, देवज्जतो जाणति, सो लोगमज्झे अप्पाणं ठाविउकामो भणति एह जामो, जदि मज्झ जाणति तो जाणति, ताहे लोगेण परिवारितो एति, भगवतो पुरतो द्वितो, तणं गहाय भणति किं एवं छिजिहिति?, जइ भणिहिह छिज्जिहिद्द तो ण च्छिदिस्सं, अह मणिहिति णवि तो छिंदिस्सामि, सिद्धत्थेण भणितं ण छिज्जिहिति, आढतो छिंदितुं सकेण य उवओगो दिनों, ताहे अच्छंदगस्स कुवितो । तणछेयंगुलि कम्मार वीरघोस माहिसेंदु दसपलिए । बिइइंदसम्म ऊरण बदरीए दाहिणुक्कुरुडे ।। ४-८।४६९ ।। ततियमवच्चे भज्जा कहए णाहं ततो पिउवयंसो । दक्खिणवाचाल सुवन्नवालुया कंटए वत्थं । ४-९ १४७० ।। ताहे तेण वज्जं पक्खित्तं, अच्छंदगस्स अंगुलीओ दसवि भूमीए पडिताओ, लोगेण खिंसिता गतो, ताहे सिद्धत्थो तस्स पदोसमावन तं लोगं भणति-एस चोरो, कस्सेवेण चोरिती, सिद्धत्यो भगति अत्थि एत्थ वीरघोसो नाम कम्मकारो १, सो पाएहिं पडितो, अहंति, तुझं सुए काले दलपलिय बट्टये णट्टपुब्वं १, आमं अस्थि, तं एतेण हरितं तं पुण कर्हि ? तं तस्स पुरोहडे महिसेंदुरुक्खस्स पुरत्थिमेणं हत्थमेतं गंतूर्ण तत्थ शिक्खतं, बच्चह, ते गता, दिई, ताहे आगता कलकलं करेमाणा, अपि सुणेह, किं अस्थि इदं इंदसम्मो णाम गाहावती ?, तेहिं भणितं अस्थि, ताहे सो सयमेव उवडिओ भणति -अहं, आणावेह, अस्थि तुज्दा ऊरणओ असुयं कालं णट्टेोई, अस्थि, सो एतेण मारेता खड़तो, अट्ठियाणि से बदरीए दाहिणे पासे उक्कुरुडियाए, गता जाव (282) अच्छेदकवचं ॥२७६॥ Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४६९-४७०/४६५-४६६], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका दीप आवश्यक | दिवाणि, पुणरवि कलकलं करेमाणा आगता, भणति-एतं ताव वितिय, ताहे भणति-अलाहि अण, ताहे ते निबंधं करेंति, पच्छा भणति-जहा तं अवच्चं, मज्जा से कहेहीति, सा पुण तस्स चेव छिदाणि मग्गमाणी अच्छति, ताहे ताए सुत, जहा सो उपोदयात परिसितो अंगुलीओ छिबाओ, सा य तेण तदिवस पिट्टितया, ताहे सा चिंतति-णवरि गामो एतु, ताहे ते आगता पुच्छति, सा नियुक्तौ भणति-मा से गामं गेण्हह, भगिणीए पतित्तणं करोति, स म णेच्छति, ताहे ते उक्कृद्धि करेमाणा तं पणेति, एस पावो, एवं तस्सा उहाहो जातो जहा तस्स कोऽवि भिक्खपि ण देति, ताहे सो अप्पसागारियं आगतो भणति-भगवं! तुम्भे अण्णत्थवि जुज्जह, ॥२७७॥ अहं कहिं जामि ?, ताहे अचियत्तोरगहोत्तिकाऊण सामी निग्गतो, ताहे ततो निम्गतो समाणो दो वाचालातो दाहिणवाचाला *य उत्तरवाचाला य, तासिं दोण्हं अंतरा दो णदीओ सुवनकला य रूप्पकूला य, ताहे सामी दक्षिणवाचालाओ उत्तरवाचाल बच्चात, तत्थ सुवण्णकूलाए बुलिणे तं वत्थं कटियाए लग्गे, ताहे तं थितं, सामी गतो, पुणो य अबलोइत, किं निमित्त ?, केती भणति-जहा ममत्तीए, अने भणति-मा अत्थंडिले पडित, अवलोइतं सुलभ वत्थं पत्तं सिस्साणं भविस्सति', तं च भगवता व तेरसमासे अहाभावेण धरियं, ततो बोसिरिय, पच्छा अचलते, तं एतण पितुवतसधिज्जातितण गहितं, तेण उवडितं तुम्नागस्स, का तेण तुनित, ताहे सयसहस्समोल्लं जात, इमस्सीव पनास सहस्साई इमस्सवि पन्नासं ॥ ॥२७७॥ उत्तरषाचालंतर वणसंडे चंडकोसिओ सप्पो । ण डहे चिंता सरणं जोइस कोषाहि जातोऽहं ॥ ४-१०।४७१ ॥18 ___ताहे सामी उत्तरवाचालं बच्चति, तत्थ अंतरा कणकखलं जाम समपदं, दो पंथा-उज्नुओ य को य, जो सो उन्जु अनुक्रम (283) Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात नियुक्तौ ॥२७८॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्ति: [४७१/४६७], भाष्यं [११४... ] मूलं [- / गाथा-], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 सो कणगखलमज्ज्ञेण वच्चति, बँको परिहरंतो, सामी उज्जुएण पधारतो । तत्थ सामी गोवालएहिं वारितो, जथा एत्थ दिट्टि विसो सप्पो, मा एतेण बच्चह, सामी जाणति जहा सो भव्वत्ति संबुज्झिहिति, ताहे गतो, गंता जक्खघरगमंडवियाए पडिमं ठितो, सो पुण सप्पो को पुव्यभवे आमि है, खमओ, पारणए खुट्टएण समं वासियस्स गतो, तेण भंडुकलिया विराहिता, सो खुट्टएण पडिचोदितो, ताहे सो अण्ण मतेष्ठित दावेति भणति इमावि मए मारिता १, जावो लोएण मारियाओ ताओ दावेति, ताहे खड्ड एण जातं वियाले आलोएहिति, सो वियाले आवस्सगआलोयणाए आलोइत्ता णिविट्टो, खुट्टओ चिंतेति णू से विस्सरितं तेण सारितो रुट्ठी खुड्डगस्स आहणामित्ति उद्धातितो, तत्थ खंभे आवडतो मतो विराहितसामन्त्री कालगतो जोइसिएहिं उबवत्रो, ततो चुतो कणगखले पंच तावससयाणं कुलवहस्स तावसीपोट्टे आयातो, दारओ जातो, तत्थ से कोसिओति नामं कतं, सो य तेण सभावेण अतीव चंडकोवो, तत्थ य अनेऽवि अत्थि कोसिया, ताहे से चंडकोसिओचि णामं कर्त, सो य कुलवती जातो, सो तत्थ वणसंडे मुच्छितो, तेसिं तावसाणं ताणि फलाणि ण देति, ते अलभता दिसादिसिं गता, जो व तत्थ गोवालगादि एति तंपि हंतुणं धाडेति, तस्स य अदूरे सेयविया णाम णगरी, ताओ रायपुत्तेहिं आगतेहिं विहरितपडिणिवेसेण भम्गो विणासिओ य, तस्स गोवालेहिं कहितं, सो कंटियाणं गतओ, ताओ छता परसुहत्थगतो रोसेणं धगधगतो कुमारेहिं एंतो दिट्ठो, ते तं दण पलायंति, सोऽवि कुहाडहत्थो पहावितो, आवडतो पडितो, सो कुहाडो से अद्दो द्वितो, तत्थ से सिरं दोमागे कर्म, तत्थ मतो तंमि चैव वणसंडे दिट्ठीविसो सप्पो आयातो, तेण रोसेण लोभेण य तं वणसंडं रक्खति, ते तावसा सब्बे दद्धा, जे अदट्टगा ते गट्टा, सो विसनं तं वणसंडं परियंतऊणं जं सउणगमवि पासति तं उहति, (284) चणुकीशिकवतं ॥२७८॥ Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोषात नियुक्ती ॥२७९ ॥ "आवश्यक"- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) निर्युक्ति: [ ४७१/४६७] मूलं [- / गाथा-1, आयं [१९४...]]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - वाहे सामी तेण दिशे, भगवं च संतॄण तत्थ पडिमं ठितो, आसुरुचो ममं ण जाणसित्ति बरिएणाशाइत्ता पच्छा सामि पलोति जाव सो ण उज्सति जहा अथे, एवं दो तिभि वारे, ताहे गंतूण उसति, डसित्ता सरचि अवक्कमति मा मे उबरिं पडिहिति, तहवि ण मरति, एवं तिमि बारे, ताहे पलोएंतो अच्छति अमरिसेणं, तस्स तं रूवं पलोपंतस्स ताणि विसभरिवाणि अच्छीणि विज्झाताणि, सामिणो कति सोम्मतं च दट्टणं, ताहे सामिणा भणियं -- उबसम भो चंडकोसिया ! उपसमिति, ताहे तस्स ईहापूहमग्गणगवेसणं करेंतस्स जातिस्सरणं समुप्यनं, ताहे तिक्खतो आयाहिणपयाहिणं करेचा वंदति णर्मसति, णर्मसेवा ताहे भयं पच्चक्खाति, मणसा तित्थगरो जाणाति, ताहे सो बिले तोंडं छोडूणं एवं ठिओ, माऽहं रुट्ठो समाणो लोगं मारह, सामी तत्थ अणुकंपणडाए अच्छति तं सामीं दट्ठूण गोवालगवच्छवालगा अडियंति, रुक्खेहिं आवरेता अप्पाणं पाहाणे खिवंति, ण चलतिति अलीणा, रुद्धेहिं घट्टितो तहवि ण फंदति, तेहिं लोगस्स सिहं, ताहे लोगो आगंतु सामिं वंदित्ता तंपि सप्पं वंदति महं च करेवि, अनाओ य घयविक्किणियातो तं सप्पं घतेण मक्खंति, फरुसोति सो पिपीलियाहि महितो, तं वेयणं सम्मे अहियासेति, अद्धमासस्स कालगतो सहस्सारे उबबओ ।। , उतरवावाला णाग सेण खीरेण भाषणं दिव्या । सेयवियाए पएसी पंच रहे णेज्जरायाणो ।। ४-११।४७२ ॥ पच्छा सामी उत्तरवाचालं गतो, तत्थ पक्खखमणपारणए अतिगतो, तत्थ ागसेणेय गाहावतिणा खीरभोषणेण पडिलामितो, तत्थ पंच दिव्वाणि । पच्छा सेयानयं गतो, तस्थ पएसी राया समणोवासए, सो महेति सकारेति, ततो सुरभिपुरं प्रयति, (285) चंडकौशि कःकंवलबलोच ।।२७९ ।। Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७२/४६८], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 कंबलश चूर्णी सत्राक तत्थ अंतराए णज्जगा रायाणो पंचहि रहेहि ऐति पएसिस्स रमो पास, तेहिं तत्थ गतेहिं सामी प्रतितो य बंदितोय । ततो सुर- कालाभिपुरं गतो, तत्थ गंगा उत्तरियब्बिया, तत्थ सिद्धजत्तो णाम णाविओ, खमिलो नेमित्तियो, तत्थ य गावाए लोगो बिलग्गति, | तत्थ य कोसिएण महासउणेण वासित, तत्थ सो नेमितिओ वागरेति-जारिस सउणण भणिय तारिस अम्हेहि मारणतिय पाविमाधानायव्वं, किं पुण, इमस्स महरिसिस्स पभावेण मुच्चीहामो, सा य णावा पहाविता, एत्थंतरा सुदाढेण णागकुमारेणाभोइतं, तेण MI दिट्ठो सामी, तं वेरै सरिता कोवो जातो, सो य किर सीहो वासुदेवत्तणे मारितेल्लओ, सो त संसारं चिरं ममित्ता सुदाढो णागो। ॥२८॥ 1जानो, सो संवगवातं विउन्वित्ता णावं उबोलेत इच्छति । इतो य कंबलसंबला दो णागकुमारा तं आभोएति, का पुण कंबल-1 संबलाणं उप्पची?M मथुरा णगरी, तत्थ जिणदासो सङ्को साधुदासी साविगा, दोऽवि अभिगताणि परिमाणकडाणि, तेहिं चउप्पतस्स पच्चक्खाणं गहित, दिवसदेवसिय गोरस गेण्हंति, तत्थ य एगा आभीरी गोरस गहाय आगता, तत्थ सा ताए साविया भभति-मा तुर्म अनत्थ भमाहि, णिच्चं तुम इह एज्जासि, जत्तियं तुम आणेसि तत्तिय अहं गेण्हामि, एवं तासि संगतं जातं, इमावि से गंधपुडि-| याई देति, इमावि कृतियाओ दुई दहि वा देति, एवं तासि दढं सोहियं जायं। अनया तासिं गोवाण विवाहो जाओ, ताहे आभीरी ताणि निमंतेइ, ताणि भणंति-अम्हे वाउलाणि न तरामो गंतं, जं तत्थ भोरणे उवउज्जति कहुंडाइ वत्थाणि वा आभरणाणि वा 5 बहुवरस्स तेसि दिमाई, तेहिं अईव सोभाविय, लोगेण य सलाहियाणि, तेहिं तुद्वेहिं दो तिवरिसा गोणपोतलगा हदुसरीरा उच- रणीता कंबलसंबलत्ति णामेणं, ताणि नेच्छति, इतराणि बला बंधिऊण गताणि, ताहे तेण सावरण चितिय-जा मुच्चीहिति ताहे दीप अनुक्रम २८०॥ (286) Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७२/४६८], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री लोगो वाहेहिति, एत्थ चेव अच्छतु, ताहे से फासुगा चारी किणिऊण दिज्जति, एवं पोसेति, सो य सावतो अदुनिचाउइसीसुपुष्यसामु आवश्यक उपवासं करेति, पोत्थय च वाएति, तेऽचि तं सोऊण भया जाता, उघसंता संता समिणो जद्दिवसं सावओ ण जेमेति दिवस तेविण चरंति, तस्स सावगस्स भावो जातो, जहा इमे भविया उवसंता, अन्भहितो हो जातो, ते रूवस्सियो, तस्स य साक्मस नियोमिचो, तत्थ भंडीरवडजन्ता, तारिसा गस्थि अन्नस्स बहल्ला, ताहे तेण ते भंडीए जोतेचा णीया अणापुच्छाए, तत्थ अमेणावि जाइज्जता तस्स दिना, ताहे ते च्छिन्ना आणेउ बद्धा, तत्थ ते णवि चरति णवि पाणितं पियंति, जाहे सब्बहा ण इच्छंति ताहे| ॥२८॥ सो सावतो तेसिं मत्तं पच्चक्खाति णमोकार च से देति, ते कालमासे कालं किच्चा णागकुमारेसु उववना, ओधि पउंजति जान पेच्छंति तिस्थगरस्स उवसग्ग, अलाहि ताण अनेणं, सामी मोएमोति आगता, एगेण पावा गहिता, एगो सुदाढेण समं जुज्नति, सो महिद्धीओ, तस्स पुण चयणकालो, इमे य अहुणोववनगा, सो तेहि पराजितो, ताहे ते नागकुमारा तित्थकरमहिम करेंति, सत्तं रूर्व च गायति, एवं लोगोऽपि । ततो सामीवि उत्तियो, तत्थ तेहिं देवेहिं सुरभिवास बुढे, तेऽपि पडिगता, एस्थ गाहाओ-1 सुरभिपुर सिद्धदत्तो गंगा कोसी विद य खेमिलओ। णाग सुदाढे सीहे कंपलसबला य जिणमहिमा ।४-१२।७३|| मधुराए जिणयासी आहीर विवाह गीण उपवासे । भंडीर मित्त पंधे भत्ते णागोहि आगमणं ॥४-१३।४७४|| परिवरस्स भगवतो णावारूढस्स कासि उवसग्गं । मिच्छादिहि परद्धं कंबलसबला समुत्तारे ॥ ४-१४।४७५॥ ततो भगवं उदगतीराए पडिकमित्तु पस्थिओ, गंगामट्टियाए य तेण मधुसित्थेण लक्षणा दीसंति, तत्थ पूसो णाम सामुद्दो MASSACROSOCI दीप अनुक्रम (287) Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७३/४७५/४६९-४७१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका चूर्णी उपायात ACANCE श्री सो ताणि सोचिते लकखणाणि पासति, ताहे-एस चकवट्टी एगागी गतो वच्चामिणं वागरेमि तो मम एत्तो भोगवत्ती भविस्सति,8/गोशालक सेवामिण कुमारते, सामीवि धुणागसंनिवसस्स पाहि पडिम ठितो, तत्थ सो त पडिम ठितं तित्थगर पेच्छति, ताहे तस्स चिला पत्त जात-अहो इमं मए पलाल अहिज्जितं, इमेहि लक्खणेहिं एतेण समणएण ण होयव्वं, अलाहि, जहा सामि एतं होतु एत्तिये ।। नियुक्ती इतो य सक्को देवराया पलोएति अज्ज कहिं सामी, ताहे पेच्छति तित्थंकर, तं च पूस, तत्थ आगतो, सामी वंदिचा भणति ४ सो पूसं-तुर्म लक्षण ण जाणसि, एसो अपरिमितलक्षणो, ताहे सक्को अम्भितरलक्षणं वति, गोक्खीरगौररुहिरं प्रशस्त०,सत्थं ॥२८॥ पण होति अलियं, एस धम्मवरचाउरंतचक्कबड्डी देवदेवेहिं पूइज्जिहिति । ततो सामी रायगिई गतो, तत्थ णालंदाए बाहिरियाए तंतुवालयसालाए एगदेससि अहापडिरूवं उग्गह अणुभवेत्ता पढमं मासक्खमणं विहरति, एत्थंतरा मंखली एति । तस्स उप्पत्ती तेणं कालणं तेणं समएणं भेखली णाम मखे, तस्स भहा मारिया गुब्विणी, सरवणे संनिवेसे गोपालस्स गोसालाए पस्ता दारगं, तस्स गोभ नाम कयं मोसालोति, संवद्धति मखसिप्पं अहिज्जति, अहिज्जिता चित्तफलगं कारेति, कारेता सो एगल्लतो टू विहरतो रायगिहतंतुवायसालाए द्वितो । जत्थ सामी ठिओ तत्थ एगदेसमि वासावास उवगतो, भगवं मासखमणपारणए अम्भितरियाए | विजयस्स घरे विपुलाए भोयणविहीए पडिलाभितो, तत्थ पंच दिव्वाणि, भणति य वंदिता-अहं तुम्भं सीसात्ति, सार्मा तुसिणीओ णिग्गतो, रितियं मासक्खमणं ठितो, वितियपारणए आणंदस्स घरे सज्जगविधीए, ततिए सुदंसणस्स घरे सब्बकामगुणिएणन्ति, P२८२॥ भगवं चउत्थं मासक्खमणं उपसंपज्जिचाणं विहरति । गोसालो य कत्तियपुण्णिमाए दिवसओ पुच्छति-'किमहं अज्ज मत्तं लभेज'ति, सिद्धत्येण भणित-कोद्दवबिलसित्थाणि कूडगरूवर्ग च दक्षिण, ताहे सो सम्बादरेण हिंडति, एवं तेण मंडीसुणएण जहा ण +UCLEASE दीप अनुक्रम 555 CSK (288) Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७३/४७५/४६९-४७१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 स्थापमान सत्राक श्री बावश्यक कहिंवि संभाइयं, ताहे अवरहे एगेण से कम्मारएण दिलं, ताहे जिमितो, रूवओ य से दक्षिण दिनो, तेण परिक्खावितो जाव मोशालक कूडओ, ताहे भणति-'जण जहा भवियव ण त भषा अबहा' लज्जिओ आगतो। चउत्थे मासक्खमणे भगवं मालदाओ निग्मतो कोल्लाग गतो। तत्थ बहुलो माहणो माहणे भोजावेति, भगवं च अणेण मधुषयसंजुत्तेण परमश्रेण पडिलामितो, पंच दिलाई, नियुक्तौलागोसालोऽपि ततुंवायसालाए सामि अपेच्छमाणो अम्भितरबाहिरं ग पेच्छति, ताहे जहेव पण्णत्तीए जाव दिहो, ताहे सामी तेण समं वासावगमाओ सुवणखलयं वच्चति, तत्थंतरा गोवालगा वहयाहिंतो खीरं गहाय महल्लीए थालीए णवएहिं चाउलेहि ॥२८॥ पायस उपक्सडेंति, ताहे गोसालो भणति-एह एत्य इंजामो, ताहे सिद्धत्यो भणति-एस निम्माणं व ग गच्छति, एस उरु-18 ली मज्जिहिति, ताहे सो असदहतो ते गोवए भणह-एस देवज्जतो तीताणागवजापातो भणति-एस थाली भज्जिहिति, तो पपत्रण है कासारवेह, ताहे पयतं करेंति, सविदलेहि य थाली बदा, तेहिं अतिबाहुया तंदुला छुढा, सा फुटा, पच्छा गोवा जे जेण कमाई ।। ट्रासाइत सो तत्थ चेव पजिमितो, तेण बलदं, वाहे सुट्टतरं नियती गदिता । एत्थ गाहाओ---- थूणाए बहिं पूसो लक्खण अम्भितरे प देविंदो । रापगिह तंतुसाला मासक्खमणं च गोसाले ॥४-१५/४७२ ॥ मंखलि मंख सुभदा सरवण गोषहुलमेव गोसालो । विजया मंद सुणवे भोयण खज्जे य कामगुणे ॥४-१६/४७३॥ k२८३॥ कोलाए बहुल पापस दिल्या गोसाल बहु बाहिंतु । सुवनखलए पस्सा थाली णिपतीय गमणं च ॥४-१७४४७४ वाहे सामी बंभणागामं पचो, तत्व णदो उवर्णदो य दोषि मातरो, गामस्स दो पाडगा, तत्थ एगस्स एगो इतरस्सवि एगो, दीप अनुक्रम (289) Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्रअध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७२/४७४/४७२-४७४], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक 13 तत्थ सामी गंदस्स पाडगं पविट्टो णदघरं च, तत्थ दवि दोसीणण य पडिलाभितो पदेण, गोसालो उवर्णदस्स, तेण उवर्णदेण संदिट्ठ सिंहस्कंददेह भिक्खचि, दस्थ अदेसकाले सीतकरो णिणितो, सो त ण इच्छति, पच्छा सा दासी उवर्णदेण भणिता, जहा-एयस्स चेव उवरि कृतो गोशुभह, छुढो, सो अप्पत्तिएण भणति-जदि मम धम्मायरियस्स अस्थि तयो वा तेओ वा तो एयस्स घरं डज्झतु, तत्थ अहासंनिहि-II शालवधः नियुक्तीका एहिं चाणमंतरेहिं मा भगवतो अलियं भवतुति तं घरं दड्डे, ततो सामी णिग्गतो चंपं गतो, तत्थ वासावासं ठाति । तत्थ | दुमासक्खमणेण ठाति, चत्वारिवि मासे विचित्तं तवोकम्मं ठाणादिए पडिम ठाइ, ठाणुक्कड्डए एचमादीणि करेति । तत्थ चचारि | ।।२८४ मासे बसिचा जं चरिमं दोमासियापारणयं तं बाहिं पारोत, एत्थ संभण गामे गंदोवणंद तेण उवणंद य पविढे । चंपा दुमासखमणे वासावासं मुणी खमति ॥४-१८४४७५॥ ताहे कालायं णाम संनिचेसं तत्थ वच्चति, गोसालेण समं भगवं सुन्नघरे पडिम ठितो, गोसालो तितस्स दारपहे ठित्तो, तस्थ सीहो णाम गामउडपुत्तो विज्जुमतियाए गोडिदासियाए समंत चेव सुन्नघरं पचिट्ठो, तत्थ तेण भन्नति-जइ एत्थ कोति समणो वा. PIमणो वा पट्टितो वा सो साहतु जा अश्वत्थ बच्चामो, सामी तुहिको अच्छति, इतरोऽवि तुहिक्को, ताहे ताणि तत्थ अच्छित्ता: ६ मिग्मताणि, णिताण मोसालेण सा महिला छिक्का, सा भणति-पत्थ एस कोति, तेण अतिगतूण पिडितो, एस वुत्तो-अहो अम्हे २८॥ अणायारं करेंताणि दिवाणि, ताहे सामि भणति-अहं एकल्लओ पिडिज्जामि, तुम्मे ण चारह, सिद्धत्यो भणति--कीस सील णाली रक्खसि, किं अम्हेवि पिट्टिज्जामो, कीस वा अणंतो ण अच्छसि ?, तो दारे ठितओ वाहि, ततो निग्गतो सामी पत्तकालयं । १२%ASI SAREER दीप अनुक्रम CCASHA (290) Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णे उपोष नियुक्ती ||२८५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [४७६/४७६], भाष्यं [११४... ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 नाम गामो तत्थ गतो, तत्थवि तहेव सुनघरे ठितो, गोसालो तेण भएण तद्दिवस कोमे ठितो, तत्थ खंदो णाम गामडो अप्पणिज्जियाए दासीए दंतिलियाए समं महिलाए लज्जतो तमेव सुमधरं गतो, तेहिवि तहेव पुच्छिये, तहेब तुष्हिका अच्छेति, जाहे ताणि णिग्गच्छति ताहे गोसालेण हसितं, ताहे सो पुणोऽवि पिट्टितो, ताहे सो सामि खिसति अम्हे हम्मामो तुम्मेण ण वारेह, किं अम्हे तुम्भे ओलग्गामो ?, ताहे सिद्धत्थो भगति-तुम अप्पदोसेण हॅमसि, कीस बुण तुंडं ण रक्खसि १ । एत्थ - सुनिचन्द्र केवलं कालाते सुनगारे सीहो बिज्जुमती गोहिदासी य । खंदो दित्तिडियाए पत्तालय सुन्नगारंमि ॥ ४ ॥ १९॥४७६ ततो कुमाराय संनिवेस गता, तस्स बाहिया चंपरमणिज्जं णाम उज्जाणं, तत्थ भगवं पडिमं ठितो, तत्थ कुमारार संनिवेसे कृवणओ णाम कुंभकारी, तस्स कुंमारावणे पासावच्चिज्जा सुणिचंदा णाम थेरा बहुसुता बहुपरिवारा, ते तत्थ परिवर्तति, ते य जिर्णकप्पपरिकम्मं करेति सीसं गच्छे ठवेत्ता, ते सत्तभावणाए अप्पाणं भावेति 'तवेण सत्तेण सुत्ते, एगत्तेण क्लेग य । तुलणा पंचहा बुता, जिणकप्पं पडिवज्जता ॥ १ ॥ एताओ भावणाओं, ते पुण ससभावनाए भावेंति 'पढमा उवसगंमि चित्तिया बाहि ततिया चतुकम्मी । सुनधरंमि चउत्थी तह पंचमिया मसाणांम ॥ १ ॥ सो य चितियाए भावेति । गोसालो य भगवं भणति'एह देसकाली हिंडामो' सिद्धत्वो भणति अज्ज अम्हे अंतरं, सो हिंडतो ते पासावश्चिज्जे घेरे पेच्छति, भणति के तुम्भे १ ते भणति समणा णिग्गंथा, सो भगति अहो निग्गंधा, इमो मे एरिओ गंधो, कहिं तुन्भे निग्गंथा?, सो अप्पणी आयरियं क्मेति, ४ ॥ २८५॥ एरिसो महप्पा तुम्मेत्थ के ?, ताहे तेहिं मन्नति-जारिसओ तुमं तारिसओ धम्मायरिओऽवि सर्वगिहीतलिंगो, ताहे सो रुट्ठो, मम (291) Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४७६/४७६], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूर्णा श्री धम्मायरियं सवधानि, वाहे भणति-जति मम धम्मायरियस्स तबो वा तेयो वा अस्थि तो तुम्भ पडिस्सतो डउचि, तेहिं भणित-18 निचंदआवश्यकालाण ता मणितण अम्ह उज्झामो, ताहे सो गतो सामिस्स साइति-अज्ज भए सारंभा सपरिग्गहा दिट्ठा, ते भणति-जारिसो०-TMI. केवल सर्व साहति, ताहे सिद्धत्थेण भणितो-ने पासावचिज्जा थेरा साधू , ण तेसिं पडिस्सतो डज्झति, ताहे रची जाता, ते मुणिचंदा दारिद्रस्थउपोद्घाताडू विरावासः आयरिया चाहिं पडिम ठिता, सोवि कूबणओ तदिवस सेणीभत्ते पत्तेणे वियाले एति मत्तल्लो जाव पासति ते मुणिचंदायरिते, नियुक्ती सो चिंतति-एसो चोरोत्ति, ते य तेण गलए गहिता, ते निरुस्सासा कता, णय झाणाओ कंपिता, केवलनाणं उप्पन, आउंच ॥२८६॥ निट्टिय, सिद्धो, तत्थ अहासमिहिएहिं वाणमंतरेहिं देबेहि महिमा कता, ताहे गोसालो बाहि ठितो पेच्छति देवे उप्पयंते व निव-: यन्ते य, सो जाणति-एस सो पडिस्सतो डमति, सामिस्स साइति-भगवं तेसि पडिणीयाण घर उज्झति, सिद्धत्थो भणति-न तेसि पडिस्सओ डनति, वेसि आयरियस्स केवलणाणं उप्पन, सो य सिद्धिं गतो, तस्स देवा महिम करेंति, ताई सो चिंतेति-जामि | पेच्छामि जाव सोते पर्दस गतो ताव देवा महिम काऊण गता. ताहे तस्स तं गंधोदकं पुष्फवासं च दरक्षण अम्मधियं हरिसो जातो, ते सीसे उबडवेति-अरे तुम्मेण किंचि जाणह, एरिसगा चेव बोहा हिंडह. उडेह, आयरियपि कालगतं ण जाणह, सब ४ | रत्रिं सुबह, ताहे ते जाणति-एस सच्चयं चव पिसाओ, रतिपि हिंडति, वाहे तस्स सद्देण पुणो उहिता गता व आयरियसगास, जावा | पेच्छंति कालगतं ताहे ते अद्धिति करेंति-अम्हेहि ण णाया आयरिया कालं करेंवा, सोऽपि चमढेचा गतो, ताहे सामी ततो चोरा-120 गतभिवर्स गता, तत्थ चारियचिकाऊण ओउबालगं अगडे पज्जिजति, पुणो य उचारिज्जति, तत्थ ताब पढम गोसालो, सामी मामी ॥२८६॥ राणवाय, वत्थ य सोमाजयंतीओ उप्पलस्स भगिणीओ पासावच्चिज्जाओ दो परिव्वाइयातो ण तरंति पन्चज्ज काऊण ताहे परि दीप अनुक्रम (292) Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४७७/४७७], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप बावश्यक लम्बाइयत्तं करेति, ताहे सुतं-केषि दो जणा आंबालए पज्जिजति, ताओ पुण जाणंति-जहा चरिमतित्थयरो पव्वतितो, तो वाओ नैमित्तिकचौँ सत्य गताओ जाव पेच्छति, ताहि मोइओ, ते य ओइंसिया-अहो विणस्सिउकामस्थ, तेहि भएण खमिता, महितो य, एत्थ कता दमभेषाकउपोषाला मुणिचंदो कुमाराए कुषणय परमणिज्ज उज्जाणे । घोराग चारि अगडे सोम जयंती उवसमंती ॥४-२०१४७७॥ दानावस्था नियुक्तो ततो भगवं पिढीचंपं गतो, तत्थ वासाचासं पज्जोसवेइ, चाउम्मासियखमणं च वयं विचित्रं पडिमादीहि, चाहिं पारेचा कर्तगलं गतो, तत्थ दरिदथरा णाम पासंडस्था सारंभा समहिला, ताण वाडगस्स मज्झ देउलं, तस्थ सामी पडिमं ठितो, तदिवसं च ससितं| कासीतं पडति, ताणं च तदिवस जागरओ, ते समहिला जागरओ गायति । तत्थ गोसालो मणति-एसोऽवि गाम पासंडो भवति सारंभो समाहिलो य, सवाणि य एगढणि गायति य, ताहे सो तेहि पाहि णिच्छूढो, सो तहिं माहमासे तेण सीतेण सतुसारण संकुचितो अच्छति, तत्थ तेहिं अशुकंपतेहिं पुणोवि अतिणीतिए अहि, एवं तिथि वारे निच्छ्ढो अतिणीतो य, पुणो भणति-जदि अम्हे फुर्ड भणामो तोचि णिच्छुम्मामो, तत्थ अमेहि मणित-एस देवज्जगस्स कोऽवि पेढियावाहो छत्तधारो वा असि, तुहिका अच्छह, सव्वाउज्जाणि खडखडावेह जह से सदोदि ण सुब्बति । एत्थपिट्टीचंपा वासंतस्थ सुणी चाउमास खमणेणं । कयगलदेउलवासं दरिमधेरा य गोसालो ।। ४-२११४७८।। ॥२८॥ पच्छा पभाए सामी सावरिय गतो, तस्थ सामी बाहिं पडिम ठितो, तत्थ सो पुच्छति-भगवं!, तुम अतीही, सिद्धत्यो मणवि-12 अन्ज अम्ह अंतर, सो भणति-अज्ज अहं किं आहार भीहामि , ताहे सिद्धत्यो भणति-अज्ज तुमए माणुसमांस खाइययंति, अनुक्रम (293) Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णौ उपोद्घात नियुक्ती ॥२८८॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [४७८/४७८], भाष्यं [११४... ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 सो भणति तं अज्ज जेमेमि जत्थ मंसभव गरिथ, किमंग पुण माणुसमं १, सो पहिंडितो, तस्थ सावत्थीर पितुदन्तो नाम गाहावती, तस्स सिरिभद्दा णाम भज्जा, सा य लिंबू, सा अन्नया कयाई सिवदतं नेमित्तियं पुच्छति किह मम पुत्रवो होज्जा १, सो भणति जो सुतवस्सी तस्स तं गर्भ ससेोणितं रंधिऊण पायसं करेत्ता ताहे देह, णिग्गंथस्स य देह, तस्स व परस्स अन्मतोमुहं दारं करेज्जासि, मा सो जाणिचा डहिहित्ति, एवं ते थिरा पया भविस्सति, ताएय तहा कतं, सो हिंडन्तो तं घरं पविट्ठो, सो य से पायसो घयमधुसंतो दिलो, तेण चिंतित एत्थ कओ मंसंति १, ताहे तुद्वेण भुतं, ताहे गंतूण भणति चिरं ते निमित्ततः करेंतस्स अज्ज सि णवरि फिडितो, सिद्धत्यो भणति ण विसंवदारी, जदि न पत्तियसि तो वमेहि, तेण वंतं, जाव दिट्ठा क्सा वाला य विकुच्चियए य अवयवा, ताहे सो रुट्ठो तं घरे गंतुं मग्गति, तेहिवि तं बारं ओहाडियगं, तेण ण जाणति, आघाडीओ करेति, जाहे ण लभति ताहे भगह-जदि मम धम्मायरियस्स तवो तेयो वा अत्थि तो उज्झतु, ताहे सव्वा बाहिरिया उड्डा हे सामी हलेदुता णाम गामो तं गतो, तत्थ महतिमहत्यमाणो हलेदुगरुक्खो, तत्थ सावत्थीओ गगरीओ अभो लोगो एंतो त्य वसति सत्थनिवेसी, तत्थ सामी पडिमं ठितो, तेहिं सत्थिएहिं रचि सीयकाले अग्गी जालिओ, ते पभाए संते उद्देचा गया, सो अग्गी तेहिं न विज्याविजो, सो उहंतो २ सामिस्स पास गतो, सो भगवं परितावेति, गोसालो भणति भगवं णासह नासव पक अग्गी एड. सामिस्स पादा डड्डा, गोसाली पट्टो । एत्थ साधी सिरिमा सिंह भोषण पिउदत तहय सिवदत्ते । (294) चटत्रासादि EURECH Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपो घात नियुक्ती ॥२८९॥ %%% * “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४७९/४७९], भाष्यं [११४... ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दारअगणी णखवाले हलिद्दु पडिमा अगणी बहिया ।। ४-२२।४७९ ।। aat गला नाम गामो, तत्थ गतो, सामी वासुदेवघरे पडिमं ठितो, सोऽवि ठितो, तत्थ चेडरूवाणि खेति, सो य कंदप्पिओ, ताणि अच्छिकमिवामिषाएहिं बीहावेति, ताहे ताणि धावताणि पडंति, जाणूणि य छोडिज्जिंति, अप्येगतियाण खुखपगा हिज्जंति, पच्छा तेर्सि अम्मापियरो एंति, तेहिं सो पिट्टिज्जति, अने भणति एयस्स देवज्जगस्स एस जूण दासो ण ठाति अप्पणी ठाणे, अने वारंति-अलाहि, देवज्जगस्स खमियब्वं, पच्छा सो मणति-अहं हंमामि तुम्मे ण वारेह, ताहे सिद्धत्वो भवतितुमं एकज्जो ण अच्छसि । ततो पच्छा आवचा नाम गामो, तत्थवि सामी पडिमं ठितो बलदेवस्स परे तत्थवि मुहं अवयातु बीहावेति, अविय पिइतिथि, तामि बेडरूमाथि रुवतापि मायापितृणं साहेति तेहिं पव्वितो सुक्को व देवज्जगस्स गुणेगं, तस्थ पुणोऽवि भणति तुम्भ ममं ण वारेह, सिद्धस्यो मणति-तुमं एकज्जो ण ठासि, अन्ने भणति-तेसिं चेडरूवाणं अम्मानितीहिं अतिभट्टारगो, एतस्स दोसो जो ण बारेति, तेहिं बाहाहिं गहितो, अच्छामोत, ताहे बलदेवरूपेण अहासाभिहिता देवता उड्डाहता, ततो पायवाटतथि सामि खामेति । एत्थ ततो पगलाए, डिंभ सुणी अच्छिकडणं चेव । आयत्ते मुहयासे, मुणिओत्ति य बाहि बलदेवो ।। ४-२३।४८०। ततो पच्छा चोरायनामं संनिवेसं गतो, तत्थ घडाभोज्यं तद्दिवसं रज्झति य पच्चति य, सामी य एवं पटिम ठिसो, सो भगति अज्ज एत्थ चरियन्वं, ताहे सिद्धत्थो भगति अज्ज अम्हे अच्छामो, सो तहिं उक्कुडनिउडियाहिं एलोएति केवलं देस (295) चेटत्रासादि ॥२८९॥ Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥२९०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः (४८०/४८०] आयं [१९४...]]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - कालो भविस्सहति ?, तत्थ चोरभयं ताहे ते जाणति एस पुणो पुणो पलाएति मन्ने एस चारितो होज्जा, ताहे सो तेहिं घेतून पिस हम्मति, सामी पच्छन्ने अच्छति, ताहे सो भणति--जति मम धम्मायरियस्स अत्थि तवो तेतो वा तो सब्बो एस मंडवो उज्झतु, ततो डड्डो । पच्छा ते लंबुगं गता, तत्थ दो पच्चंतिया भायरो मेहो य कालहत्थी य, सो कालहत्थी चोरेहिं समं उद्वाइओ, इमे व दुयगे पेच्छति, ते भति-के तुम्मे ?, सामी तुसिणीओ अच्छति, ते तत्थ हम्मेति ण य सार्हेतित्ति, तेण ते बंधिऊण महलस्स भातुगस्स पेसिया, तेण जं चैव भगवं दिट्ठो तं चैव उसा पूतितो खामितो य, तेण सामी कुंडग्गामे दिट्ठेलओ, ततो मुको समाणो भगवं चिंतेति बहुं कम्मं निज्जरेयब्वं लाढाविसयं वच्चामि ते अणारिया, तत्थ विज्जरेमि, तत्थ भगवं अत्थारियदितं हिदए करति, ततो भगवं निग्गतो लाढाविसय पचिट्ठो, कम्मनिज्जरातुरितो, तत्थ हीलणनिंदणाहिं बहु निज्जरेति जहा बंभचरेस, पच्छा ततो नीति, तत्थ पुनकलसा णाम अणारियगामो तत्थंतरा दो तेणा लाटाविसयं पविसितुकामा, ते अवसउणो एतस्सेव वहाए भवतुतिकट्टु असि कड्डिऊणं सीसं छिंदामीति पहाबिता, ताहे सिद्धत्थेण ते असी तेसिं चेत्र उपरि छूढो, तेर्सि सीसाणि छिन्नाणि, अन्ने भणति संकेण ओहिणां आमोहत्ता दोऽवि वज्जेण हता एवं विहरंता मद्दियं णगरीं गता, तत्थ वासारचे चाउम्मासखमणेण अच्छति, विचित्तं तवोकम्मं ठाणादीहिं । एत्थ गाथाओ चोरा मंडव भोज गोसाले वहण तेय झामणया। मेहो य काही कलंबुपाए य उवसग्गो ॥४-२४।४८० ॥ लाटेसु व उवसग्गा घोरा पुन्नकलसा प दो तेणा । वज्जहया सणं भद्दिय वासासु चउमासो ॥४-२५।४८१ ॥ (296) कालमेघहस्विनौ ॥२९०॥ Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४८०-४८१/४८१-४८२], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ब सुत्राक आवश्यक चूणौँ उपोद्घात नियुक्ती ॥२९॥ वादे बाहि पारेचा विदरंतो कदलीनाम गामो, तत्थ सरदकाले अच्छारियमचाणि दविरेण णिस? दिति, तत्थ गोसालो अच्छारिभणति-बच्चामो, ताहे सिद्धत्यो भणति--अम्हं अंतरं, सो तहिं गतो, भुजति लभति दधिकर, सो य वहिफोटो ण व धाति, तेहिं 2 मणित-च९ भायणं करचेह, करवित, पच्छा ण णित्थरति, ताहे से उरि छर्द, ताहे उकीलतो गच्छति । ततो भगवं जंबुसंडणाम नान्दपणा गामं गतो, तत्थवि संमेल्लो, तहेव अच्छारियभत्त, तत्थ पुण खीरं कूर, तहिपि तहेव धरिसिओ जिमिओ य । एत्थ-- कदलिसमागमभोयण मंखलि दचिकूर भगवतो पडिमा । जंबूसंडे गोडिय भोयण भगवतो पडिमा ॥४-२६१४८ ततो-तंबाए णदिसेणो पहिमा आरक्स्वित हण भये डहणं । कृषिय चारिय मोक्खो विजयपगन्भाय पत्तेय।।४-२७।४८३|| तेणेहि पहे गहितो गोसालो मातुलोत्ति वाहणता | भगवं वेसालीए कम्मारघणण देविंदो ॥ ४-२८०४८४॥ पच्छा तंचायं णाम गाम एति, तत्थ दिसेणा णाम थेरा बहुस्सुया बहुपरिवारा, ते तत्थ जिणकप्पस्स पडिकम्मं करेंति पासावञ्चिज्जा, इमेवि चाहिं पडिम ठिता, गोसालो अतिगतो, तहेब पेच्छति पब्बतिते, तस्थ पुणो खिसति, ते आयरिया तदिवस चउके पडिमं ठायति, पच्छा तहि आरक्खियपुत्तेग हिडतणं चोरोत्ति भल्लएण आहतो, केवलणाण, सेस जहेब मुणिचंदस्स जाब गोसालो बोहेत्ता आगतो । ततो पच्छा कूविया णाम संनिवेसो, तत्थ गता, तेहिं चारियत्तिकाऊण घेप्पति, तरथ याति पिहि-IN ॥२९॥ जंति य, तत्थ लोगसमुल्लावो अपडिरूवो देवज्जतो स्वेण य जोवणण य चारिओत्ति गहिओ, तत्थ विजया पगम्भा य दोषि पासंतेवासिणीओ परिग्याइया सोऊण लोगस्स तित्थगरो इतो वच्चामो ता पुलएमो, को जाणति होज्जा, ताहि मोतितो, दीप अनुक्रम (297) Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४८२-४८४/४८३-४८५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणौं | HEIGA । दुरप्पा ! ण जाणह चरिमतित्वकरं सिद्धत्थरायमुत, अज्ज भे सको उबालभातित्ति ताहे मुका खामिया य । ततो सुका समाणा पृथग्भाव: वश्यक दा निमाता, तस्थ बधताण दुवे पंथा, ताहे गोसालो भणति-तुम्मे मम हम्ममाण ण वारेह, अविय-तुब्मेहि समं बहवसर्ग, अब वेवाल्या अहं पेव पढम हम्मामि, तो बरं एमालो विहरिस्स, सिद्धस्थो भणति--तुम जाणसि, ताहे सामी सालीमुखो पधावितो, इमो HALYSIय भगवतो फिडितो एगल्लओ बच्चति, अंतरा य छिमट्ठाणं, तत्थ चोरो रुक्खबिलग्गो पलोएति, तेण दिडो, मणति- एगो गणा-13 समणओ एति, ते भणति--एसो ण बीभेति, णस्थि हरियवयंति, अज्ज से णस्थि फेडओ, जं अम्हे परिभवति, आगतो पंचहिवि ॥२९॥ चोरसएहिं वाहितो मातुलोनिकाउं, पच्छा चिंतेति- वर सामिणा समं, अविय-कोति सामि मोएति, तस्स निस्साए मावि मोपण | भवति, ताहे सामि मग्गितुमारद्धो, सोऽवि ताव मग्गति । सामीवि बेसालिं गतो, तत्थ कम्मारसालाए अणुभवेत्ता पडिमं ठितो, सा साहारणा, जे साधीणा ते अणुभविता, अन्नदा तत्थ एगो कम्मारो छम्मासा पडिभग्गतो, आढतो सोभणतिधिकरणे आयोज्जाणि गहाय आगतो, सामि च पडिम ठितं पासति. अमंगलंति सामि आहणामित्ति चम्मद्वेण पहावितो, सकेण ओही पउत्तो जाव पेच्छति, तहेव णिमिसंतरेण आगतो, सक्केण तस्स चेव उवरि घणो पावितो, तह चेव मतो । ताहे सको * वंदित्ता गतो। गामाग विहेलगजक्म्ब तापसी उवसमावसाणथुती । छद्रेण सालिमीसे विसुज्झमाणस्स लोगोधी ।।-४८५।२९ सामी गामा संनिवेस एति, तत्थ उज्जाणे विभेलओ णाम जक्खो, सो भगवतो पडिमं ठितस्स घूयं करेति, ततो सामी २९२॥ सालिसीसयं णाम गामो तहिं गतो, तत्थ उज्जाणे पडिम ठितो, माहमासो य बट्टति, तत्थ कडपूयणा वाणमंतरी सामी दीप अनुक्रम (298) Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं म, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [४८५/४८६], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आवश्यक चूणौँ म सत्राका नियुक्ती ॥२९३॥ दीप दणं तेयं असहमाणी पच्छा तावसरूवं विउविता यक्कलनियत्था जडाभारेण य सव्वं सरीरं पाणिएण ओनेता दहमि उरि |ठिता सामिस्स अंगाणि धुणति वार्य च विउच्वति, जदि पागतो सो फुडितो होन्तो, सा य किल तिविठुकाले अतपुरिया आसि कटपूत ण य तदा पडियरियत्ति पदोसं वहति, तं दिव्वं वेयर्ण अहियासंतस्स भगवतो ओही विगसिओ सव्वं लोग पासितुमारदो, सेसनोपसर्गः | कालं गब्भातो आढवेत्ता जाव सालिसीस ताव सुरलोगप्पमाणो ओही एकारस य अंगा सुरलोगगप्पमाणमेचा, जावतिय देवलोगसु | oil पेच्छिताइता । साचि बंतरी पराजिता संता ताव उवसंता पूर्य करेति। पुणरवि भदियणगरे तवं विचित्तं तु छट्ठवासमि । मगहाए निरुवसग्गं मुणि उबद्धंमि विहरिस्था॥ ४-४८६॥३० ततो भगवं भदिय नाम गगरि गओ, तत्थ छ8 वासावास उवगतं, तत्थ परिसारने गोसालेण सम समागमो, छठे मासे | भगवतो गोसालो मिलितो । तत्थ चतुमासखमणं, विचिचे य अभिग्गहे कुणति भगवं ठाणादीहिं, बाहिं पारेत्ता ततो पच्छा मगहविसए विहरति निरुवसग्गं अट्टमासे उदुबद्धिए। आलभियाए वासं कंडग तब (हिं) देउले पराहुत्तो | मद्दणदेउलसारिय मुहमूले दोसूचि मुणित्ति ||४-४८७॥३॥ ___ एवं बिहारऊणं आलाभतं एति, तत्थ सत्तम वासावासं उवगतो चाउम्भासखमणण, ततो चाहिं पारेचा कंडगं नाम संनिवेसं तत्थ एति, तत्थ बासुदेवघरे सामी कोणे ठितो पडिम, गोसालोवि बासुदेवपडिमाए अधिट्ठाणं मुद्दे काउं ठितो, सो बासपडियरओ ॥२९३॥ आगतो तं तहाठितं पेच्छति, ताहे चिंतति--मा लोगो भणिही धम्मिओ रागद्दोसिओत्ति, गाम गंतूण कहेति-एह पेच्छद्द, मा| भणिहिह राइतओति, ते आगता, ताहे दिडो पिट्टितो, पच्छा णिवासिज्जति य, अन्न भणति -एस पिसाओ, ताई मुको, ताहे निग्गया अनुक्रम **Ses୪es (299) Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४८७/४८८], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत प्रहरी HEIGA दीप समाणा महणाणाम गामो, तरथ बलदेवघरे सामी अंतो कोण पडिम ठितो, सो गोसालो तस्स मुहे सागारित पदाठिओ,18/चारकतया आवश्यकतावत्थवि तहेव कहितं, ततो व पिट्टिऊण मुणिउत्तिकाऊण मुक्को, मुणिो नाम पिसाओ । तत्थ सामीवि पिहिता, ताहे बलदेवप चूर्णी डिमा णंगलं गहाय उडिता. ते भीया खामियं च । उपोद्घात नियुक्ती 1BI बहुसालगसालवणे कडपूपण पहिम विग्घ सोवसमे । लोहग्गलमि चारिय जियसत्तू उप्पले मोक्यो ॥४-३२१४८९॥31 ती ततो निग्गता बहुसालगं णाम गामो तत्थ गता, तत्थ बहिं सालवणं णाम उज्जाण, तत्थ ठितो, तत्थ य सालज्जा णाम ॥२९॥ IN वाणमंतरी, सा भगवतो पूर्ण करेति, एवं अम्हं, अनीस आदेसो-जहा सा कडपूयणा वाणमंतरी भगवतो पडिमागयस्स उवसांग करेति, ताहे संता तंता पच्छा महिम करेति, ततो निग्गता गता लोहग्गल रायहाणि, तत्थ जियसत्तू राया, सो य अन्नण राइणा सम विरुद्धो, तस्स चारपुरिसेहि गहिता पुच्छिज्जता ण साहंति, तत्थ य चारियत्ति रमो अस्थाणीवरगतस्स उबट्ठाविता, तत्व उप्पलो अडियग्गामतो, सो य पुण्यामेव अतिगतो, सो य ते आणिज्जते दण उद्वितो तिक्सुत्तो वंदति, पच्छा सो भणति-ण एस चारितो, एस सिद्धस्थरायसुतो धम्मवरचकवडी, एस भगवं, लक्षणाणि से पेच्छह, तत्थ सकारेऊण मुक्को ।। तत्तो प पुरिमताले वग्गुरईसाण अचए महिम।। मल्लिजिणायणपडिमा [ ओषणाए दंतुरगा] वंसकडगंसि बहुगोही॥ ४.३३६४९०॥. ॥२९॥ ततो पुरिमतालं एति, तत्थ वग्गुरो णाम सेट्ठी, तस्स भदा भारिया चंझा अवियाउरी जाणुकोप्परमाता, गहूणि देवसतोबाइ-12 CAS अनुक्रम (300) Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९०/४९०], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणों परिमताले महिमा सत्राक दीप Mयाणि काउं परिसंता, अभया सगडमहे उज्जाणियाएं गताणि, तत्थ पासति जुम्भदेउल सडितपडितं, तस्थ मलिसामिणो पडिमा, बावश्यक तं गर्मसंति, तेहि मणितं-जदि अम्ह दारओ वा दारिया का पयाति ता एतं देउल करेमो, एतन्मचाणि य होमो, एवं बमंसित्ता उपोषात गयाणि, तस्थ य अहासनिहियाए वाणमंतरीदेवयाए पाडिहेरं कतं, आहतो गम्भो, जे चेव आहूतो तं चेव देवउलं काउमारद्धाणि, नियो अतीव पूर्ज तिसझ करेंति, पब्वइया य अल्लियंति, एवं सो सावओ जातो । इतो य सामी विहरमाणो सगडमुहस्स उज्जाणस्स माणगरस्स य अंतरा पडिम ठितो। तेण कालेणं तेणं समएणं ईसाणे देविदे देवराया जहा अभिसेगे जाव जाणविमाणेणं सव्विड्डीए ॥२९५॥ सामी तिम्खुत्तो आयाहिणपयाहिण काऊण वंदति गमसति, मंसित्ता जाव पंजलिकडे भगवतो चरितं आगातमाण सामिमि दिनदिट्ठीए पज्जुवासेमाणे चिट्ठति, वग्गुरो य ते कालं पहातो ओल्लपडसाडओ सपरिजणो महता इड्डीए विविहकुसुमहत्थगतो त आयतणमच्चतो जाति, तं च वितिवयमाणं ईसाणिंदो पासति, भणति य--भो वग्गुरा ! तुम्भ पच्चक्खतित्थगरस्स महिमं ण करेसि, तो पडिम अच्यतो जासि, जा एस महतिमहावीरवद्धमाणसामी जगनाहेति लोगपूज्जेति, सो आगतो मिच्छादुकट काउं खामेति महिमं करेति । ततो सामी उण्णाग बच्चति, तत्थ अंतरा वधुवरं सपडिहुतं एति, ताणि पुण दोवि विरूवाणि दंतिल्लगाणि य, तत्थ गोसालो भणति-अहो इमो सुसंजोगो, 'तसिल्लो पहरायो जाणति दूरेवि जो जहि वसति । जे जस्स होति सरिसं तं तस्स ४ & चितिज्जयं देति ॥१॥ जाहे ण ठाति ताहे ताहिं पिट्टिचा बद्धो, ताहे बंसीकुडंग छुढो । तस्थ पडितो उचाणओ अच्छति, वाहराति य सामि, तत्थ सिद्धस्थो भणति--सतं कर्ड, तो वाहे सामि अदूरं गतुं पडिच्छति, पच्छा ते भणति----णूणं एस एयस्स देवज्जगस्स पीढियाबाहो वा छत्तधरो वा आसि ओसहितो, तो णं मुएह, ततो मुको, अन्ने मणति--पहिएहि ओतारिओ अनुक्रम SARKARI ॐॐॐॐॐ ॥२९५॥ (301) Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्तौ ॥२९६॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [४९१/४९९], भाष्यं [११४... ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामिं अच्छे दणं । गोभूमि वज्जलादेत्ति गोवकोहे य वंसि जिणुदसमो । रायगिहऽहमवासं भवज्जभूमी बहुवसग्गा ॥४-३४।४९१ ॥ ततो विहरंतो सामी गोभूमी वच्चति, तत्थ अंतरा अडविघणं, सदा गावीओ चरंति तेण गोभूमी । तत्थ गोसालो गोवालए भणति - अरे वज्जलाढा ! एस पंथो कहिं वच्चति १, वज्जलाढा णाम मेकच्छा (मेच्छा ), ताहे ते गोवा भगति कीस अकोससि १, सो भणति असुगए सुबत्ता सुद्ध अकोसामि, तुम्भे एरिसगा मेच्छा, ताहे तेहिं मिलिता पिट्टिऊण बंधित्ता वंसी छूढो, तत्थ अमेहिं पुणो मोइतो अणुकंपाए, ततो विहरंता रायगिहं गता । तत्थ अट्टमं वासारतं, चाउम्मासखमणं, विचित्ते य अभिग्गहे, बाहि पारेचा सरदे समतीए दिडुंत करेति, सामी चितेति बहु कम्मं ण सक्का णिज्जरेउं, ताहे सतेमेव अत्थारियदितं पडिकप्पेति, जहा एगस्स कुइंचियस्स साली जाता, ताहे सो कप्पडियपंथिए, भणति-तुब्भं हिइच्छितं भत्तं देमि मम लुषह, पच्छा मे जहासु बच्चह, एवं सो ओवाण लुणावेति, एवं चैव ममवि बहुं कम्म अच्छति, एतं तञ्च्छारिएहिं णिज्जरावेयव्वंति य अणारियदेसेसु, ताहे लाढावज्जभूमि सुद्धभूमिं च वच्चति, ते णिरणुकंपा दिया य, तत्थ विहरितो, तत्थ सो अणारिओ जणो हीलति निंदति जद्द वंभचेरेसु 'छुच्छुकरेति आहंसु समणं कुक्कुरा दसेतु' चि ( ८-८३) एवमादि, तदा य फिर वासारतो, तंमि जणवए केणह दवनिओगेण लेहडी आसी बसहीविन लम्भति । तत्थ य छम्मासे अणिच्चजागारियं विहरति । एम नवमो वासारतो । अणियतवासं सिद्धत्पुरं तिलत्थंबपुच्छ फित्ती । उप्पादेति अणजो गोसालो बासबहुलाए ॥ ४-३५।४९२ ।। (302) अनायेंबिहारः ॥२९६ ॥ Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९२/४९२], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्रों नियुक्ती दीप ततो निग्गता पढमसरयदे, सिद्धत्थपुर गता, सिद्धत्थपुराओ य कुंमागाम संपत्थिया, तत्थ अंतरा एगो तिलचमओ, तं तिलस्तंबर आवश्यकट्टण गोसालो भणति -भगवं! एस तिलथंभो कि निष्फजिहिति नवनि, सामी भणइ-निष्फज्जिही, एते य सत्त पुष्पाजीवाश्यायपूणा ओहाइत्ता एतस्सेव तिलभस्स एगाए सिंवलियाए पञ्चायाहिंति, तेण असदहतेण अवकमिचा सलेछुओ उप्पाडितो एगते य नोत्पतिः एडिओ, अहासंनिहितहि य देवहि 'मा भगवं मिच्छावादी भवतु'चि बुट्ठ, आसत्थो बहुला य गाची आगता तेण य पएसे. | वाए खुरेण निक्खतो, तो पहितो पुष्फा य पच्चायाता, ताहे कुंमागाम संपता । तस्स चाहिं वेसियायणो बालतवस्सी आतावेति। ॥२९॥ तस्स पुण बेसियायणस्सका उप्पत्ती। मगहा गोब्बरगामे गोसंखी वेसियाणपाणामा । कुंमग्गामाआवण गोसाले कोहण पउहो ॥ ४-३६ । ४९३ ॥ तेणं कालेणं तेण समएणं चपाए णयरीए रायगिहस्स य अन्तरा गोबरगामो, तस्थ गोसंबी नाम कुटुंपिओ, जो वेसि आभीराम | अधिवती, तस्स पंधुमती भज्जा अवियाइणी, इतो व तस्स अदूरसामंते गामो चोरेहिं हतो, ते हंतूण बंदिग्गह च काउण फ्धाहता, |एगा य अचिरप्पसहता पईमि मारिते चंडण सम गहिता, सा तं चेड छहाविता, सो चेडो तेण गोसंखिणा गोरूलाण गण दिडो, | गहितो य, अप्पणिज्जिताए महिलिताए दियो, तत्थ यपमासितं, जहा मम महिलाए गूढो गम्भो आसी, तत्था छगलयं मारेता लोहियगंध करेचा पतियाणवण ठिता, सव्वं जे इतिकायनं तं कीरति, सोविताच एवं संवकृति सावि से माता पाए विक्कीपा वेसियाए थेरीए महिया, एस ममं धूवत्ति, ताए जोगणियाणं उपयारो तं सिक्खाविया, सा तत्थ णामनिग्गता गणियाजाता, सो य151 दागोसखियपुचो तरुणो जातो, पयसगडेहि चंप गतो, वयंसगा य से, सो तत्थ णागरं जणं पेच्छति जहिच्छियं अभिरमत, तस्सवि अनुक्रम (303) Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पतं HEIGE नियुक्तो श्री इच्छा जाता अहपि ताव रमामि, सो तत्थ गतो वेस, सरथ सच्चेव से माता अभिरुतिता, मोल्लं देति, वियाले कदुहंडेऊण अप्पाण 3 आवश्यक वच्चति, तत्थ तस्स बच्चंतस्स अंतरा पाओ अमेज्मेण लित्तो, सो जाणति इमो मम पादो ण णज्जति कहपि बुद्दो, तत्थंतरा चूणों | एतस्स कुलदेवता, सा चिंतेइ-मा अकिच्चमायरतु, बोहेमिति सत्थ गोट्ठए गार्वि सवच्छं विउब्वति, विगुरुम्बिऊण अच्छति, उपोद्घातात ताहे सो तं पातं तस्स वच्छयस्स उवरि फुसति, ताहे सो वच्छतो भणति-एस ममं अंभो मीढलेलयं पादं उचरिं फुसति, ताहे सा गावी माणुसियाए वायाए भणति-किं तुम पुत्ता ! अद्धिति करेसि , एसो य अज्ज मायाए सम वासं गच्छति, तं एस एरिसर्य बा२९८॥ अकिच्चं ववसति, अनं किच काहिति, ताहे ते सोऊणं तस्स चिंता जाता, मणति-गतो पुच्छीहामि, साहे पविहो पुच्छति-का तुम उप्पची १, ताहे भणति-किं तुज्या उप्पनीए , सा महिलामा दापति, ताहे सो भणति-अपि एचियं चेव मोल देमि साह सम्भावं, तीए सवहसाविताए सवं सिलु, ताहे सो निग्गतो, सग्गामं गतो, अम्मापितरो पुच्छति, ताणि ण साहति, ताहे सो ताव अणसितो ठितो जाव से कहितं, ताहे सो तं मात वेसाओ मोएत्ता पच्छा विरागं गतो, एतावत्था बिसयचि पाणामाए पव्वज्जाए पवइओ एसा उप्पत्ती ॥ सोय विहरतो तंकालं कुम्मम्गामे आतावेति, तस्स छप्पदीओ जडाहितो आइच्चताविता पडति, जीवहियाए पडियाओ सीसे छुमति, ते मोसालो दट्टण ओसरिता तत्थ गतो भणति-किं भवं मुणी मुणितो उयाहु ज्यासेज्जातरो, कोऽर्थः ?-'मन ज्ञाने ज्ञात्वा प्रबजितो नेति, अहया कि इत्थी पुरिसे , एकसिं दो तिमि वारे, ताहे वेसियाषणो रुडो तेयं निसिरीत, ताहे सामिणा तम्स अणुकंपट्टाए वेसियायणस्स उसिणतेयपडिसाहरणड्डाए एत्यंतरा सीतलिता लेस्सा णिसि|रिया, साबुद्दीवं बाहिरओ वेदेति उसिणा तेयलस्सा, भगवतो सीतलिता तेयल्लेसा अम्भतरो वेदेति, इतरा तं परिचयंति सा तत्व दीप अनुक्रम ॥२९८॥ (304) Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वैश्यायन प्रत HEIT श्री आवस्यक सीतलाए विज्झविता, ताहे सो भगवतो लद्धिं पासिता भणति-से गतमेतं भगवं ! गतमेतं भगवं, ण जाणामि जहा तुम्मं सीसो, चौखमह, ताहे गोसालो पुच्छति-सामी ! किं एस जयासेज्जातरो पलवति ?, सामिणो कहितं-जहा पमतीए, ताहे भीतो कुण्डतिउपविणात मग ! किह सखित्तविउलतेयलेस्सो भवति !, भगवं भणति-जे ण गोसाला! छटुंछडेणं अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं आयावेति, पारणए सणहाए कुम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासएणं जाति जाव छम्मासा, सेण संखिचविउलतेयलेस्से भवतित्ति । अभदा 8 सामी कुंमग्गामाओ सिद्धत्वपुरं संपत्थितो, पुणरवि तिलर्थभस्स असामंतण जाव वतिवयति ताहे पुच्छइ-भगवं! जहा न निष्फ-18 ॥२९९|| दाणो, मगवता कहित-जहा निष्फण्णो, तं एवं वणर्फण पउदृपरिहारो, पउटपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके VIउववज्जंतित, सो असरहंतो गतूर्ण तिलसंगलियं हत्थे पप्फोडता ते तिले गोमायो भणति एवं सब्जीवानि पयोपरिहारति, ४. णितितवादं धणितमवलंबिचात करोत जं भगवता उवदिहूँ, जहा संखितविपुलतेयलेस्सो भवति । ताहे सो सामिस्स मूलाओ ओफ्फिडो ४ है सावत्थीए कुंभगारसालाए ठितो, तेयनिसर्ग आआवेति, छहिं मासेहि सखित्तविपुलतेयलेस्सो जातो, कूपडे दासीए विभासितो, पच्छा छदिसाचरा आगता, वाहे निमित्तउल्लोओ से कहितो, एवं नो अजियो जिणपलावी विहरति । एसा से अवस्था । बमालाए पतिम हिंभमुणिोत्ति तत्थ गणराया। पूरति संखणामो चित्ती गावाग भगिणिसुती ४-३७१४९४ भगवंपि वेसालि गरि संपत्तो, तत्थ संखो णाम गणराया. सिद्धत्थरो मित्तो, सो तं पूजेति, पच्छा बाणियग्गामं पधावितो, | तत्थंतरा गडइता णदी, तं सामी गावाए उचिमओ, ते गाविया सामि भणति-देहि मोल्लं, एवं वाइति, तत्थ संखरनो भाइणेज्जो दाचिचो णाम दरकाए गएल्लो पावाकडएण एति, ताई तेण मोइतो महितो य । दीप अनुक्रम 23RSA ॥२९॥ (305) Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९५/४९५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यकता सत्राक नियुक्ती ॥३०॥ दीप वाणियगामायावण आणंदो ओहि परिसहसहत्ति सावत्थीए वासं चित्ततयो साणुलट्ठि यहिं ॥ ४-३८०४९५ ॥13/ भद्रायाः प्रातमा ___ ताहे वाणियग्गामं गतो, तस्स बाहिं पडिम ठितो, तत्थ आणंदो नाम समणोचासगो छ,छगुण आतावेति, तस्स य ओहि-18 |माण उप्पन, जाव तित्थगरं पेच्छति, तं बंदति णामसति, भणति य-अहो सामी परीसहा अधियासिज्जति, वागरेति य जहा एच्चिरेण कालेणं तुम केवलनाणं उपज्जिहिति पूजेति य । पच्छा सामी सावस्थि गतो, तत्थ दसमं वासार विचित्तं तवोकम्म ठाणादीहिं। पडिमा भद्दमहाभद्द सव्वतोभद्द पदामिया चउरो। अट्टय वीसाऽऽणंदे यहुलियतह उज्झिति य दिव्वा ॥४-३९।४९६।। ____ ततो साणुलद्वितं णाम गामं गतो. तत्थ भई पडिम ठाति, केरिसिया भद्दा, पृथ्वाहुत्तो दिवस अच्छति, पच्छा रचिं | दाहिणहुत्तो अवरेण दिवसं उत्रेण रनिं, एवं छद्रुण भत्त्रण णिहिता । नहवि ण चेव पारेति, अपारितो चेव महाभई ठाति, सा |पुण पुवाए दिसाए अहोरतं, एवं चउमुवि चत्तारि अहोरत्ता, एवं दसमेण णिहिता । ताहे अपारितो चेव सव्वतोभई पडिम ठाति, | सा पूण सव्वतोभद्दा इंदाए अहोरचं, पच्छा अग्गेयाए, एवं दसमुवि दिसासु सब्बासु, विमलाए जाई उडलोतियाणि दन्वाणि । | नाणि झाति, तमाए हिडिल्लाई, चउरो दो दिवसा दो रातिओ, अढ चनारि दिवसा चत्वारि रातीतो, वीसं दस दिवसा दस राईओ, एवं एसा दसहिं दिवसेहिं बावीसइमेण णिवाति । पच्छा तासु सम्मत्तासु आणंदस्स गाहावतिस्स घरे बहुलियाए दासीए महासिणीए भायणाणि खणीकरेंतीए दोसीर्ण छउकामाए सामी पविट्ठो, ताए भन्नति-कि भगवं ! एतेण अट्ठो, सामिणा पाणी अनुक्रम (306) Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९७/४९७], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सुत्रा दीप Mपसारितो, ताए परमाए सद्धाए दिलं, पंच दिव्वाणि, मत्थओ धोओ, अदासीकता । आवश्यकता दढभूमी बहुमेच्छा पेढालग्गाममागतो भगवं । पोलासचेइयंमी ठितेगराई महापडिम ॥ ४-४०।४९७ ॥ उपोद्घात ___ततो सामी दढभूमी गतो, तीसे बाहिं पेढालं नाम उज्जाणं, तत्थ पोलासं चेतिय, तत्थ अहमेणं भत्तण अप्पाणएण ईसिंप-18कोपसगो। नियुक्तौदभारगतेण, इसिपम्भारगती नाम ईसि ओणओ काओ, एगपोग्गलनिरुद्धदिद्वी अणिमिसणयणो तत्थवि जे अचित्तपोग्गला तेसु दिद्धि निवेसेति, सचिचेहि दिट्ठी अप्पाइज्जति, जहा दुबाए, जहासंभव सेसाणिवि भासियन्वाणि । अहापणिहितेहिं गत्तेहिं सबिदिएहिं| ॥३०१ 18|गुत्तेहिं दोवि पादे साहटु बग्घारियपाणी एगराइयं महापडिमं ठितो। . Marathi तासको य देवराया सभागतो भणति हरिसितो वयणं । तित्रिवि लोगऽसमत्था जिणवीरमणं चलेउं जे॥४-४११४९८॥ सोहम्मकप्पवासी देवो सफस्स सो अमरिसेण । सामाणियसंगमओ येति सुरिंदै पडिणिविट्ठो ॥४-४२२४९९।। | तेलोकं असमत्थंति वेहए तस्स चालण काउं । अज्जेव पासह इमं मम वसग भट्ठजोगतवं ।। ४-४३५०० ।। | अह आगतो तुरंतो देवो सकस्स सो अमरिसेण |कासी य य (ह) उवसग्गं मिच्छादिट्टी पडिनिविट्टो ।।४-४४०५०१॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं सक्के देविंदे देवराया जहा अवहारे जाव बहूहि देवेहि देवीहि य सद्धिं संपरिबुडे विहरति जाव ॥३०॥ | सामि च तहागतं ओहिणा आभाएति, आभोएत्ता हडतुडचित्ते आणदिए जाव सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कटु एवं क्यासी-गमो | धुणं अरहताणं जाब सिद्धिगतिणामधेयं ठाणं संपत्ताण, णमोप्रधुणं समणस्स भगवतो महतिमहावीरवद्धमाणसामिस्स णातकुलव अनुक्रम 66459 संगम-कृत् उपसर्गस्य वर्णनं (307) Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [४९८-५०१/४९८-५०१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्रीवीर प्रत चूणों सत्राका श्री | रवडेंसयस्स तित्थगरस्स सहसंबुद्धस्स, पुरिसोचमस्स पुरिससीहस्स पुरिसवरपुंडरियस्स पुरिसवरगंधहथिस्स, अभयदयस्स जाव आवश्यकता ठाणं संपावितुकामस्स, चंदामि गं भगवत तिलोगवीरं तत्थ गतं इहगते, पासतु मे भगवं तत्थ गए इहगतंतिकटु बदति नमंसति नर्मसित्ता जाव सीहासणवरंसि पुरत्थाभिमुहे संनिसमे । तए ण से सके देविंदे सामिगुणातिसयअक्षिप्पमाणहियए उपाक्षात नियुक्ती एवं उप्पनंदिजमाणहियए० हियए संभंते जाब हरिसवसविसप्पमाणहियए धाराहयणीमसुरभिकुसुमचंचुमालइयऊसवियरोमकूवे वियसियवरकमलाणणवयणे बहवे सामाणियतायत्तिसगादयो देवा य देवीओ य आमतता एवं वयासी-हं भो देवा ! समणे भगवं ॥३०२॥ | महाबीरे तिलोगमहावीरे निच्चं बोसङ्ककार चियत्तदेहे जे केति उबसग्गा समुप्पज्जति, तंजहा- दिव्या वा माणुस्सा वा तिरिक्ख जोणिया वा पडिलोमा वा अणुलोमा वा, तत्थ पडिलोमा बासेण वा जाव काए आउडेज्जा, अणुलोमा वंदज्ज आव पज्जुवासेज वा, ते सव्बे सम्म सहति जाव अहियासेति । तए णं से भगवं समणे इरियासमिते भासासमिते जाव पारिद्वावणियासमिते मणसमिए पतिसमिते कायसमिते मणगुत्ते वतिगुत्ते कायगुत्चे गुनिदिए गुत्तर्वभयारी अकोहे अमाणे अमाए अलोभ संते पसंते उवसंते पडिणिबुडे अणासवे अममे किंचणे छिन्नसोते निरुवलेवे कंसपाती इव मुक्कतोये संखे इस निरंगणे जच्चकणगंब जायसवे आदंसपलिभा इव पागडभावे जीवेविव अप्पडिहतगती गगणमिव निरालंबणे पायुरिख अप्पडिबद्ध सारयसलिलब सुद्धहियए पुक्खरपत्तं व निरुवलेवे कुम्मे इत्र गुत्तिदिए खग्गिविसाणं व एगजाए विहग इव विप्पमुक्के भारंडपक्खी चिव अप्पमते मंदरो| विक् अप्पकंपे सागरो विव गंभीरे चंदोविव सोमलेस्से सूरो विव दिचतेये कुंजरोविव सोंडीरे सीहोविव दुद्धरिसे वसभोविन जायस्थाम वसुंधराविय सचफासविसहे मुहुतहुतासणाविव तेयसा जलंत, णस्थिण तस्स भगवतो कत्थति पडिबंधे भवति, तजहा %2595%EX दीप अनुक्रम ॥३२॥ SAR (308) Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोदघात निर्युकौ ॥ ३०३ ॥ চ৩ এ%%यह %%% “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) भाष्यं [१९४...] मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [ ४९८-५०१ / ४९८-५०१], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दव्बतो जाय भावतो, दब्बतो इह खलु माता मे पिता मे जाव सच्चित्ताचितमीसएसु वा दब्बेसु, एवं तस्स ण भवति, खत्राओ गामे वा नगरे वारणे वा खसे वा खले वा घरे वा जाव अंगणे वा, एवं तस्स न भवति, कालतो- समए वा आवलियाए वा आणापाणूए वा थोत्रे वा खणे वा लये या मुहुचे वा दिवसे या अहोरले वा पक्खे वा मासे वा उड़ए वा अयणे वा संवछरे वा अन्नतेर वा दहिकालसंजोगे, एवं तस्स ण भवति । भावतो कोहे वा [एक] पेज्जे वा दोसे वा कलहे वा अन्भवखाणे वा पेसुने वा परपरिवाद वा अरतिरतीएवा मायामासे वा मिच्छादंसणस या, एवं तस्स ण भवति । से णं मगर्व वासावासवज्जं अड्ड गेम्हहेमंतियाई मासाई गामे एगरादीए नगरे पंचराइए वषगयहस्ससोगअरतिरतिभवपरिचासे णिरहंकारे लहुभूए अगंधे वासी चंदणसमाण कप्पे समतिणमणिलेट्ठकंचणे सममुहदुक्ख इहलोयपरलोयअप्पविद्धे जीवियमरणे निरावखी संसारपारगामी कंमसंगणिग्यातणड्डाए अन्भुट्ठिते, एवं च णं विहरति । तं अहो भगवं तिलोगवीरे तिळोगसारे तिलोगन्महितपरकमे तेलोकं अभिभृत हिते, ण सका केणइ देवेण दाणवेण वा जाव तेलोक्रेण वा झाणाओ मणागमवि चालेडंतिकट्टु वंदति णमंसति । तो संगमको सोधम्मकप्पवासी देवो सकसामाणिओ अभवसिद्धीओ, सो भणति--अहो देवराया रागेण उल्लावेति, को नाम माणुसमेतो देवेण न चालिज्जति १, अज्जेव णं अहं चालेमित्ति, ताहे सको न वारति, मा जाणिहिति परनिस्साए भगवं तवोकम्मं करेतिति । एवं सो आगतो । (309) here: श्रीवीरवर्णनं ॥ ३०३ ॥ Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५०२-५०४/५०२-५०४], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 संगमक कता उपसगो आवश्यक चूर्णी उपोद्घात प्रत HEISE नियुक्ती ॥३०॥ दीप धूली १ पिवीलियाओ २ उइंसा ३ व तहय उपहोला । पिच्चुय ५ नउला ६ सप्पा ७ य मूसगा ८ व अहमगा ॥४-४५||५०२॥ हत्थी ९हत्पिणियाओ १० पिसायए ११ घोररूवबग्घे य १२।। धेरो १३ धेरी १४ सूतो १५ आगच्छह पक्कणो य तथा १६ ॥४-४६||५०३ ॥ खरवात १७ कलंकलिया १८ कालचकं तहेव य १९। पाभाइयउपसग्गे २० बीसइमे तहय अणुलोमे ।। ४-४७ ।। ५०४ ।। ताहे सामिस्स उवार वज्जधूलीवरिसं च बरिसति जाव अच्छीणि कमा य सम्बसोचाणि परियाणि, निरुस्सासो जातो, | तेण सामी तिलतुसतिभागमेतपि शाणाओ ण चलितो । ताहे संतो तं साहरिता ताहे कीडियाओ विउब्वति, वज्जतुंडाओ समंततो विलग्गातो खायंति, अनाओ सोत्तेहिं अंतोसरीरगं अणुपविसिचा अण्णण सोषण अतिति अनेण णिति, चालणी जारिसो कओ, तहषि भगवं न चलिओ । ताहे उसे विउच्चति बज्जतुडे, जे लोहितं एगेण पहारेण णीणिति । जाहे तहषि ण सका ताहे उण्हेलाओ विउव्यति । उण्होला-तेल्लपातियाओ । तातो तिक्खेहिं तुडेहिं अतीव दसंति, जहा जहा उवसग्गं करेति तहा तहा सामी अतीव झाणेण अप्पाणं भावेति, जहा-'तुमए चेव कतमिण, ण सुद्धचारिस्स दिस्सए दंडों । जाहे ण सका ताहे विच्चुए विउब्बति, ते खायति । तहवि ण सका, ताहे णउले विउव्वति, ते तिक्खाहिं दाढाहिं दसति, खंडखंडाई च अवणेति, पच्छा सप्पे विसरोससंपुने अनुक्रम G ॥३०४॥ (310) Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५०२-५०४/५०२-५०५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत कूता HEIGE दीप श्री उग्गविसे डाहजरकारए जहा कामदेवस्स, तेहिवि ण सका । पच्छा मूसए विउब्बइ, ते तिक्खाहि दाढाहिं दसति, खंडाणि यI आवश्यक अवणेत्ता तस्थेव बोसिरति मुत्पुरिस, तो अतुला वेयणा । जाहे ण सका ताहे हत्थिरूवं विउव्यति, जहा कामदेवे, तेण हस्थिरूवेणी चूणा सोंडाए गहाय सत्तट्ठतले आगासे उब्बिहित्ता पच्छा दंतमुसलेहिं पडिच्छति, पुणोऽवि भूमीए ओविंधति, चलणतलेहिं मंदरगरुएहिं -उपसमाः पापी मलेति । जाहे ण सक्का ताहे हत्थिणियारूवं विउब्बति, ताहे हत्धिणिया सुंडएहिं दंतेहिं विंधति फालेति य, पच्छा कातितेण सिंचति, तमि य मुत्तचिखल्ले खारे पाडेता चलणेहिं मलेति । जाहे ण सक्का ताहे पिसायरूवं विउच्चात, जहा कामदेवस्स, तेण उपसग्ग ॥३०॥ करेति । जाहे ण सका ताहे वग्घरूवं विउव्यति, सो दाढाहि य नक्खेहि य फालेति, खारकाइएण य सिंचति । जाहे ण सका ताहे IN सिद्धत्थरायरूवं विउब्वति, सो कट्ठाणि कलुणाणि बिलवति-एहि पुत्तगा1, विमासा, मा उज्झाहि । ताहे तिसलाविभासा । जाहे मण सका ताहे सूतं, किह १, सो ततो खंधावार विउन्नति, सो परिपेरतेसु आवासितो, तत्थ सूतो पत्थरे अलभंतो दोण्हवि पादाण समझ बजग्गि जालचा पायाण उपरि उक्खलियं काउं पयइओ । जाहे एएणविण सका तओ पकणं विउन्वति, सो ताणि पंजरगाणि बाहासु गलए य क य ओलएति, ते सउणा गातं तुंडहिं खायति विधति य, सर्व काइयं च चोसिरति । पच्छा खरवायं विउव्वति, जेण सको मंदरोवि चालेउ, न पुण सामी चलइ, तेणुविहिता २ पाडेति । पच्छा कलंकलितावार्य विउव्वति, तेण जहा चकाइद्धओ तहा भमाडिज्जइ, गतिआवेत्तं वा । एवंपि ण सका ताहे कालचकं विउव्वति, तं विउब्धिऊण उड्डे गगणग-18॥२०५।। तलं गतो एनाहेणं मारेमित्ति मुयति बज्जासणिसंनिभ, जं मंदरंपि चुरेज्जा, तेण पहारेण भगवं ताव निन्युहो जाव अग्गणहा हत्थाणं । जाहे तेणविण सको ताहे चिंतेति-न सको एस मारेउंति अणुलोमे करेमि । ताहे सामाणियदेविष्टि देवो दाएति, सोला अनुक्रम (311) Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती विमाणगतो भणति य-वरेह महरिसि ! निष्पत्ती सम्गमोक्खाणं ताहे पभायं विडब्बति, लोगो सच्चो चकमितुं पयचो, भणतिदेवज्जगा ! अज्जवि अच्छसि ?, भगवंपि कालमाणेण जाणति जहा ण ताय पभायंति जाव सभावपहायंति, एस वीसतिमा । अने भांति जहा फिर दिव्वं देविडि दिव्वं देवजुत्तिं दिव्यं देवपभावं उवदंसेति, मणोहरे य सदरूवगंधरसफरिसे सुसभिते छप्पिय उडू मणुने मणाणुकूलं च दप्पणं विहणं सुहारि विचित्तवरपुप्फबद्दलं सुगंधिं रम्मं, तह मेद्दबद्दलं विचित्तं दंसेति य इत्थिया सुरूवा, पेसेइ य अच्छरा सुरम्मा सोम्मा सब्बंगसुंदरीओ पहाणमहिलागुणेहि जुत्ता अकंतविसप्पि मयुयम्मालकुंमसंठितविसिठ्ठचलणा ॥३०६॥ ॐ उज्जुमयुयपीवरसुसा हतंगुलीओ अन्भुन्नतरयिततलिणतंत्र सुनिभरयिरणिद्धणक्खा रोमरहितबद्दलडर्सठियअजहुनपसत्थलक्खण अकोप्पजंघजुयला सुणिमियसुणिगूढजाणु मंडलपसत्थसुबद्धसंधी कदलीखंभा तिरेगसंठिताणिव्वणसुकुमालमउयमंसल अविरलसमसहित “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [ ५०२-५०४ /५०२-५०५], भाष्यं [१९४...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 * सुजातवडपीवरनिरंतरोरू अड्डावयवीतिपठितपसत्यविच्छिन्नपिहुलसोणी वयणायाम रिणीओ वज्जविरइयप्रसत्थलक्खणनिरोदरी तिबलिगलिततणुण मितमज्झिताओ | जातमउयसुचिभन्त कंतसोभंतभरुइररमणिज्जरोमराती गंगावत्तपयाहिणा वत्ततरंगभंगर विकिरणतरुणवोहितआयोसायंत पउमगंभीरवियडणाभा अणुब्भडपसत्थसुजातपण कुच्छी संनतपासा संगतपासा सुजातपासा मितमाइयपीणरइयपासा अकरईयकणगभयगनिम्मल सुजातनिरु बहतगातलडीओ कंचणकलसप्पमाणसमसहितलद्वबुब्बुआ मेलगजमगजुयलवट्टिय अक्खुत्तयपीणरयितसंठितपीवरपओहराओ भुजगअणुपुब्व तणुगगोपुच्छवड्डू समसहितणमित आदेज्जललितवाहा तंत्रमहा मंसलग्गहत्था पीवरकोमलवरंगुली निद्धपाणिलेहा रविससिसंखवरचकसोत्थिय विभत्तसुविरतियपाणिलेहा पीणुमयकक्खवकत्थीपएसा पडिपुन्नगलकबोला चतुरंगुलसुपमाण अथ देवीकृत् उपसर्गस्य वर्णनं क्रियते (312) देवीकृता उपसगोः ॥३०६ ॥ Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥३०७ ! | “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [ ५०२-५०४ /५०२-५०५], भाष्यं [१९४...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 कंयुवरसरिसगी वा मंसलसेठितपसत्थद्दणुगा दाडिमपुष्पगासपीवरपलंचकुंचियवराहरा सुंदरुत्तरोट्ठा दहिदगरयकुंद चंदवासंतिमओलअच्छिद्दविमलदसणा रत्तुप्पलपत्तमउय सुमालतालुजीहा कणवीरमुकुलअकुडिलअन्युग्गतउज्जुतुंगणासा सारदणधकमलकुमुदक्कुवलयविमलदलनियरसरिस लक्खणपसत्थ अजिम्मकंतणयणा पत्तधवलायततंबलोयणा आणामियचावरुइल किण्हसराइसँग यसुजाततणुकसिणिभुमया अल्लीणपमाणजुतसवणा सुवणा पीणमहरमणिज्जगंडलेहा चउरंसपसत्थसमनिडाला कोमृतिरयणियरविमलपडि सोमवा 'छन उत्ति अविलद्धिसुगंधदीहसिरया छत्तधयजूवधूभदामिणिकमंडलूकलसर्घटवाविसोत्थियपडाग जवमच्छकुंभरहवरमगरज्झयसुकथालअकुसाअड्डा वग सुप्पतिद्रुगमयूरसिरिआ भिसेयतारण मेदिणिउद्धिवरपवर भवणघर गिरिधर आससलीलगजउसभसीहुचामर अमरवतिपहरण उत्तमपसत्यबत्ती सलक्ख हंससारित्थसुगतीओ कोइलमधुरगिरमराओ कंता सव्वस्स अणुमयाओ धवगतवलि पलिय बंगदुब्बन्नवाहिदो हग्गसोगमुका उच्चत्तण य णराण थोवूणमूसियाओ । इच्छितनेबत्थरइतरमणिज्जगहितवेसाओ कंतहारद्धहारपदत्तरयण कुंडलवासुचग हेमजालमणिजालकणय जालयसुत्तयविउब्वितियकडयखड्ग| ए गावलिकंठसुत्तमगरय उरत्थगेवेज्जसोणिसुत्तय चूलामणिकणयतिलयफुल्लयसिद्ध त्थियक अवालिससिम्ररउसभचक्कयतलभंगयतुडियहृत्थमालयहेरिसय केयूरवलयपालंच अंगुलेज्जयवलक्खदी णारमालिया चंदस्रर मालियाकंचिमहलकला वपतरयपरिहेरेयषाद्जालघंटियखिंत्रिणिरयणोरुजालछुद्दियवरने उर चलणमालिया कणयणियलजालय मगरमुह विरायमाणनउरपयलिय सद्दालभूसणधरीओ दसद्ध बनरागरहतरत्तमणहारमहग्घणासाणीसासबातबोज्झे चक्खुहरे बनफुरिसजुते आगासफालियसमप्यमे असुर नियत्थाओं आदरेण तुसारगोक्खीरहारदगर पंडरगुहासु ओमालसुकतरमणिज्जउत्तरिज्जाणि पाउयाओ वराभरणभूसिताओ सब्बोउयसुरभिकुसुमसुरइत (313) देवीकृता उपसगो ॥३०७॥ Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५०२-५०४/५०२-५०५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणौं । उपोद्घात श्री विचित्तमलधारिणीओ सुगंधचुणंगरागवरवासपुप्फुत्तरपपिराइआओ वरचंदणचच्चिताओ उत्तमवरधूवविताओ अघिअसस्सि-16 देवीकृता आवश्यकारीआओ दब्वकुसुममल्लदामगम्भंजलिपुडाओ चंदाणणाओ चंदविलासिणीओ चंडद्धसमणिडालाओ उक्का इव उज्जोवेमा- उपसगा Jणीओ विज्जुघणमिरी यिसूरदिपंततेयअधिकतरसंनिकासाओ सिंगारागारचारुवसाओ संगतगतहसितमणितचिद्वितविलाससललियनियुक्ती संलाबनिपुणजुत्तेवियारकुसलाओ सुंदरथणजहणवयणकरचरणणयणलायनवनवजोव्वणविलासकलियाओ सुरवरवधूओ सिरीसण वणीतमउलसुकुमालतुल्लफासाओ बवगत कलिकलुसवातनि«तरयमउलाओ सोमाओ कंताओ पियदसणाओ सुसीलाओ सिंगाररसु॥३०८॥ तुयाओवि पेच्छिऊणपि बहूणं मयणुम्मायजणणीओ, एगंतरतिपसन्ननिच्चं पमत्तविसयसुहमुच्छिताओ समतिकता य बालभावं ४ मज्झिमजरढवयविरहिताओ अतिवरसोमचारुरूवनिरुबहतसरसजोवणकक्कसतरुणवयभावमुवगताओ सभावसब्बंगसुंदरंगीओ। तएणं ताओ सामि अप्पडिरूबरूवलायनजोय्वणसोहग्गअपरिमितगुणसयसहस्सकलितं बहहिं मउगीह अणुलोमेहिं सिंगारएहि कोलुणिरहिं उबसग्गेहि उबसग्गेति । तप्पढमताए बहुसमरमाणज्ज भूमिभागं विउब्बति, तत्थ णं अणेगखभसयसंनिबद्धंजाव | सिरीए अतीव उपसोभेमाण पेच्छाहरमंडवं, तत्थ पं दिव्यणहगीतवादितविहि उवदति, जाव जुत्तोवचारकलिताओ होऊण सामिस्स पुरतो समामेव समोसरगं करेंति, समामेव पंतीओ बंधति, समामेव ओणमंति, समामेव उन्नमंति, एवं सहिता २ संगता २ ॥३०८॥ । थिमिता २ समामेव पसरंति २ समामेव आउज्जविहाणाई गण्हंति, गेण्हेत्ता समामेव पवाईसु पगाईसु परिचसु पमुदितपक्कीXलितगीतगंधब्बहरिसितमणा सिरण एगतारं उरेणं मंद कंठण तारं तिीवहं तिसमयरेयकर तिगुंजाबकं कुहरोवगूढं सुरतीअणअति वरचारुरूवं गज्ज पज्जं कत्थं गेयं पदबद्धं पायबद्धं उक्खिचपयत्तमंदरोईदयावसाणं सत्तसरसमण्णागयं अट्ठरससंपउ एक्कार RECERENESSAGAR दीप अनुक्रम (314) Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५०२-५०४/५०२-५०५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ललित ॐ चूणों उपोदधात सुत्राक . श्री सालंकारं छद्दोसविप्पमुक्कं अदुगुणोववेतं रत्तं तित्थाणकरणसुद्धं सक्कतिदीहरकुंजतवसततीतलताललवहगहसुसंपउत्तं मधुरं समं है। आवश्यक सललित मोहरं मउपरिभितपदसंचारं दिख सज्ज गेयं पगीता याचि होत्था। ____किं तं उद्धमताणं संखाणं सेंगाणं संखियाणं खरमुहीण पेयाण पिरिपिरियाण, आहम्मंताणं पणवाणं पडहाणं, अफालिज्ज-1 देवीकता EXIS| ताण भभाण होरंभाण, तालिज्जताण भरीण झल्लरीणं दंवीण, आलिप्पताणं मुरवाणं मुर्तिगाणं, उत्तालिज्जताण दीमत्र्तिगाणं. उपसगा। नियुक्ती आलिंगगाणं पुत्तुयाणं गोमुहीणं महलाणं, मुच्छिज्जंतीणं वीणाणं विवच्चीणं बलुक्कीणं, फैदिज्जतीण भामरीण छम्भामरीणं, परि-19 ॥३०९।४ वायाणीणं सारिज्जतीण पच्चीसगाणं सुघोसाण दिघोसाणं, कुट्टिज्जताणं महतीण कच्छमीणं चित्तवीणाणं, आमोडिज्जताणं आमो डगाणं झंकाणं णउलाणं, छिप्पंताणं तुमकाणं तुंबवीणाणं, अच्छिज्जंताणं मुकुदाणं हुडुक्कीर्ण विखाणं, बाइज्जंताणं करडाणं डिंडिमकाणं किणिकाणं कडवाणं, उचालिज्जताण दद्दरिकाणं कुदुव्वराणं कलासिकार्ण, आतालिज्जताण तालाणं तोलाणं कंसतालाणं, घडिज्जतीणं रिकिसिकाणं लत्तिकाणं मकरिकाण सुसुमारितार्ण, फूमिजताणं बंसाणं वालाणं वेलूणं परिलीणं पच्चगाणं, एवमादियाणं एगणपन्नाणं आउज्जविहाणाणं पबाइज्जताणं । तएणं से दिव्वे गीते दिवे वादिते दिब्वे णडे एवं अन्भुते सिंगारे ओराले मणुने मणहरे ओम्मिज्जालामालाभूते कहक्कहभते दिवे देवरमणे पवते यावि होत्था । तए णं ताओ देवीओ सामिस्स तप्पढमयाए सोत्थियसिविच्छणंदियावत्तवद्धमाणगभद्दासणकलसमच्छदप्पणमंगलपविभत्ति-का ट्राणाम दिव्यं णविधि उवदंसेति, एवं दिव्यं देविडि जाव बत्तीसतिविहं गविहं उपदसैति, सामीवि समदरिसी । जाहे ण सक्काx दीप अनुक्रम R ॥३०९॥ (315) Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता भी आवश्यकचूर्णी उपोदघात नियुक्तौ ॥३१०॥ 66 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [ ५०२-५०४/५०२-५०५], भाष्यं [१९४...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ताहे अवितित्ता कामाणं मेथुणसंपमिद्धा य मोहभरिया पहरिक्कं काऊण पत्तेयं २ मधुरेहि य सिंगारएहि य कलुषेहि य उवसमोहिं उवसग्गे पवता यावि होत्था । उवरिं सामिस्स सललितं णाणाविहचुण्णवासमयं दिव्यं घाणमणणिव्युतिकरिं सब्बोउयकुसुमबुद्धिं पहुंचमाणीओ णाणामणिकणगरयणघंटियणिधुरमेहलावेण य दिसाओ पूरयंती ओ वयणमिणं वैति सासकलुसा सामि होल वसुल गोल माह दतित पिय कंत रमण निग्षिण नित्थक्क च्छिन्न निक्किम अकवण्णुय सिढिलभाव लक्ख देव सव्वजीवरक्सग ण जुञ्जसि अम्हे अणाहा अवयक्खितं, तुज्झ चलणओवायकारिया गुणसंकर ! अम्हे तुम्हे विणा व समत्था जीवितुं खर्णपि किं वा तुज्या इमेण गुणसमुदयण, एवंविहस्स इमं च विगतघणविमलससिमंडलोचनं सारयणवकमलकुमुदविमकुलदलनिकर सरिसणयणवगणपिवासागता ण सद्धामो पेच्छिउं जे अवलोए ता इतो अम्हे णाह! जा ते पेच्छामो वयणकमलं णयणुस्सवसच्छदं जगस्स एवं सप्पणयमधुराई पुणो कलुणगाणि वयणाणि जंयमाणीओ सरभसउवगृहिताई विन्यायविलसिताणि य विहसितसकडक्खदिट्ठणिस्ससित भणितउवललितललितधियगमणपणयखिज्जियपसादिताणि य पकरमाणीओवि जादे न सक्का ताहे जामेव दिसं पाउन्भूया जाव पडिगता । एवं अणगाई अणुलोमा दंसेति । पच्छा भणति तुट्टोमि तुज्झ महरिसि । वरेहि, किं देभि १, सग्मं वा ससरीरं णेमि मोक्खं वा पावेमि, तिनिवि लोए तुझ पाएस पाडेमि ? तिन्ह वा लोगाण तुमं सामि करेमि १, एवं उदहतमतिविज्ञाणी ताहे वीरं यहुं पसाहेउं । ओहीए निज्झायति शायति छज्जीवहितमेव ।।४--४९/५०६ ।। (316) संगमककृता उपसर्गाः ॥३१०॥ Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री चू उपो घात नियुक्ती ॥३१९॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [५०७/५०७], भाष्यं [११४... ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 जाहेण तरति तादे सुतरं पडिनिवेस गतो कल्ले कार्हति । पुणोवि अणुकङ्कृति । वालुपंथे तेणा माउल पारणग तत्थ काणच्छी । तत्तो सुभोम अंजलि सुच्छेत्ताए य बिडरूवं ।।४-५०।२०७।। तापभाते सामी वाडयानामग्गामो तं पहावितो तत्थ अंतरा पंच चोरसता विगुब्बति, बालुगं च जत्थ खुप्पति, पच्छा तेहिं माउलोति वाहितो पण्ययगुरुतरगेर्दि, सागतं च वज्जसरीरा देति, जेहि पव्वतावि फुट्टिज्जा । ताहे बालुगं गतो, सामी भिक्खं हिंडति, तस्थावरेतुं भगवतो रूवं काणच्छ अविरतियाण देति, जाओ तत्थ तरुणीओ तत्थ हम्मति, ताहे निग्गतो भगवं सुभोमं वच्चति, तस्थवि अतिगतो भिक्खायरियाए तत्थवि आवरेना महिलाणं अंजलिकम्मं करेति, पच्छा तेहिवि पिट्टिज्जति, ताहे भगवं णीति, पच्छा सुच्छेचा णामं गामो, तर्हि वचति, जाहे अनिगतो सामी भिक्खाए ताहे इमो आवरेचा विरूवं विउब्वति, तत्थ हसति य अट्टट्टहासे व मुंचति गायति य काच्छिया व जहा विडो तहा करेति असिद्धाणि य भणति, तत्थवि हम्मति, वाहे ततोषि नीति | मलए पिसायरूवं सिवरूवं हत्थिसीसए चैव । ओहसणं पडिमाए समाण सक्को जवणपुच्छा ॥४-५११५०८ ।। ततो मलयं गामं गतो, तत्थ पिसायरूवं विउव्वति, उम्मतयं भगवतो रूवं करेता तत्थ अविरतियाओ अवतासेति गेण्डति य, तत्थ चेडरूहि छारक्कयारस्स भरिञ्जति, लेएहि य हम्मति, ताणि य बीहावेति, ताणि छोडियपडियाणि णासंति, तत्थवि कहिते इम्मति । ततो विनिग्गतो हरिथसीस णाम गामो वहिं गतो, तत्थवि भगवं भिक्खायरियाए अगतो, तत्थवि भगवतो सिव (317) संगमककृता उपसमों: ।।३११॥ Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [५०८/५०८], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उपोद्घात नियुक्तो श्री स्वं विउव्वति, सागारियं च से कसाइययं करेति, जाहे अविरइयं पेच्छति ताहे उद्वेति, पच्छा हम्मति, ताहे भगवं चिंतति-एस81 संगमक आवश्यक निराय नाहं करेति अणेसणं च, तम्हा गाम चेव ण पविसामि, बाहि अच्छामि, अधे भणति-जहा पंचालदेवो तहा विगुष्यति, कता चूणों IPतदा किर पंचालो उप्पयो, ततो गामस्स बाहिं निग्गतो, जतो माहिलाजूहं ततो सागारिएणं कसाइतेणं अच्छति, वाहे किरा उपतगार ढोंढसिवा पवचा, जम्हा सक्कण पूतितो भगवं तहा ठिओ, ताहे सामी चिंतति-एस निराप उडाई कति, तम्हा गामं चेव न अतिमि, |एगते अच्छामि, वाहे संगमओ ओइसति-ण सक्कासि तुमं ठाणाओ चालेउंति, पेच्छामि ता गाम अतिहि, ताहे सक्को आगतो, ॥३१२॥ | पुच्छति-भगवं ! जत्ता भे? जवाणिजं च मे ! अब्बावाहं फासुविहार , बंदित्ता पडिगतो । | ओसलि खडगरूवं संघिच्छेदो इमोत्ति वज्झो य । मोएइ इंदजालिय तत्थ महाभूतिलो नाम ॥ ४-५२/५०९ ।। | ताहे सामी वासलिं गतो, पाहि पडिम ठितो, ताहे सो देवो चितेति-एस ण पविसति, तो एत्थवि से ठियस्स करेमि, ताहेर साखागरूवं विउवित्ता संधि जिंदति, उबगरणेहिं गहिएहि, बत्तीए तत्थ गहितो, सो भणति-मा म हणह, अहं किं जाणामि?, आय-1* रितेण अई पेसितो, कहि सो', एस बाहिं असुगउज्जाणे, तत्थ हम्मति बज्झति य. मारिज्जतुचि बज्यो णीणिओ, तत्थ भूतिलो लानाम इंदजालितो. तेण सामी कुंडग्गामे दिद्वतो, ताहे सो मोएति, साइति य जहा-एस रायसिद्धस्थपुत्तो, मुको खामितो य, खाओ M मग्गिओ, ण दिट्ठो, णायं जहा देवो से उवसर्ग करेति । &॥३१शा IPामोसलि संधिसमागममागहओ रहितो पिनुवयंसो। तोसलि य सत्त रज्जू वावत: तोसली मोक्खो॥४-५२५१०॥ SHRESTABASIS दीप अनुक्रम (318) Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [५१०/५१०], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEICO ततो भगवं मोसलिं गतो, बाहिं पडिमं ठितो, इमी खुड़गस्वं विउवित्ता खत्तं खणति, तत्थवि तहेव घेप्पति, पंधिऊणं संगमकआवश्यक मारिज्जइति, तत्थ सुमागधो णाम रहिओ सामिस्स पितुवयसो, सोमोएति, कहितं च, खुडओ गहितो, तहेच गट्ठो । ततो भगवं11 कृता चौँ पटा तोसलिं गतो, तत्थवि बाहिं पडिम ठितो, तत्थवि देवो खुारूवं विउव्बित्ता संधिमग सोहेति, पडिलेहेति य, सामिस्स पास|XI.उपसर्गाः उपोद्घात सव्वाणि खत्तोवकरणाणि बिगुब्बति, ताहे सो खुडओ गहितो, तुर्म कीस एत्थ सोहेसि ?, सो साहति-मम धम्मायरियो रति मा नियुक्ती कंटए भज्जावहिति, सो रति खणओ णीहिति, सो कहि , कहितो, गता, दिट्ठो सामी, ताणि य परिपेरतेण पासति, गहितो, ॥३१॥ आणीतो, ताहे उकलंचितो, एकसिं रज्जू छिनो, एवं सत्त वारा छिमो, ताहे सिटुं तस्स तोसलियस्स खत्तियस्स, सो भणतिसायह एस अचारो, निदोसो, तं खुड्डयं मम्गह, जाच ण दीसति, ताहे णायं तं जहा देवोति । सिद्धत्वपुरे तेणात्ति कोसिओ आसवाणिओ मोक्यो । बयगामहिंडणेसण वितियदिणे येति उवसंतो॥४-५४।५११॥ ततो सिद्धत्थपुरं नाम गामो, तत्थ भगवं गतो, तत्थवि तेण देवेण तहा कयं जहा तेणोति गहितो, तत्थ कोसिओ नाम 3 | आसवाणियओ, तेण सामी कुंडगामे दिवेल्लओ, तेण मोयावितो, केती भणंति-तत्थ कोसितो नाम आसवाणिओ सार्मि दटुंद्र निग्गमए अमंगलंति असि कड्डिऊण आगतो, सकेण तस्सेव उवरि दिनो, समतो य, ततो सामी ययग्गामं गोउलं पत्तो, तत्थ य ॥३१ तदिवसं छणो, सव्वत्थ परमय उपक्वडिय, चिरं कालं तस्स देवस्स ठितगस्स उयसम्म काउं, सामी चिंतेति-गता छम्मासा, मा। दागतो होज्जत्ति अतिगतो जाव असणातो करेति, जाव सामी उवउत्तो पासति, ताहे अद्धीहडितो चेव नियचो, बाहिं पडिम ठितो, दीप अनुक्रम (319) Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५११/५११], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत कृता श्री आवश्यक चूर्णी उपोषात नियुक्ती ॥३१४॥ | सो य सामी ओहिणा आमोएड-किं भग्गपरिणामो नवति', ताहे सामी तहेब विसुद्धपरिणामो छज्जीवहितं झायति, ताहे दटुं 31 संगमक आउट्टो, ण तीरेति चालेउति, जो एच्चिरेणवि कालेणं छम्मासहिं ण चलिओ एस दीहेणावि कालेणं ण सको चालेर्ड, ताहे पादेसु | उपसगा: पडितो भणति-सच्च सच्चं जं सक्को भणति, सव्वं खामेमि । भगवं अहं भग्गपइनो तुज्झे समत्तपहना । भणति थ| वचह हिंडहण करेमि किंचि इच्छा ण किंचि बत्तब्बो । तत्थेव वत्धवाली थेरी परमन्न बसुहारा ॥ ४-५५५१२ ॥ ___जहा एताहे अतीह पारद, ण करेमि उवसगं भगवं?, सामी भणति-भो संगमया ! णाहं कस्सति य वत्तव्यो, इच्छाए अतीमि वाण वा, ता बीयदिवसे तत्थेव गामे भगवं हिंडमाणो बत्थवालथेरीए दोसीण पायसण पडिलाभितो, पंच दिब्बाणि, एगे भणतितदिवस ताए खीरं ण लद्धं, वितियदिवसे ओहारेऊण उबक्खीडतं, तेण पडिलाभितो, पंच दिया। छम्मासे अणुषद्धं देवो कासी य सो तु उवसंग्गं । दट्टण वयग्गामे बंदिय वीरं पडिनियत्तो ।।४-५६३५१३ ॥ देखो चु(ठि)तो महिड्डी सो मंदरचूलियाए सिहरंमि । परियरिओ सुरवहूहिं तस्स य अपरोवमं सेसं ॥४-५७१५१४॥ इतो य सोहम्मे सब्वे देवा तदिवसं उन्विग्गमणा अच्छति, संगमतो सोहम्मं गतो, तस्थ सक्को तं दण परमुंहो भणति देवेभो सुणह ! एस दुरप्पो, ण एतेण अम्हं चित्तरम्खा कता अन्नेसिं च देवाण, पुणो य तित्थगरपदिणीओ, ण एतेण अम्हं कज्ज,४ ॥३१॥ असंभासा निविसओ य कीरत. ताहे पाएण निच्छटो. सो मंदरचलियाए उबर जाणतणं विमाणेणं आगम्म ठितो. देवीहि विनवितो, ताओ विसज्जिताओ, सेसा देवा इंदण वारिया, तस्स सागरोवर्म एक सेता ठिती। दीप AKALAKAARC% अनुक्रम (320) Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोषात नियुक्तौ ।।३१५ ।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि :) निर्युक्ति: [५१५-५१६/५१५-५१६], भाष्यं [१९१४...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आलभिय हरि पियपुच्छ जितउवसग्गत्ति धोवमवसेसं । हरिसह सेयवि सावत्थि खंदपाडमा यसको उ ॥ (आलभिया हरि बिज्जु जिणस्स भत्तीए वन्दओ एइ । भगवं पिअपुच्छा जियउवसग्गत्ति धेवमवसेसं ||२१६५|| हरिसह सेयविपाए सावस्थी खंधपडिम सको य । ओयरिडं पडिमाए लोगो आउहिओ वंदे ॥ ५१६ ॥ ( इत्येवं गाधाद्वयं हारिभद्रीयवृत्तिगतं ) ततो आलभियं गतो, तत्थ हरिविज्जुकुमारिंदो एति, ताहे सो वंदित्ता भगवती महिमं काऊंग भणति भगवं ! पियं पुच्छामि, पिच्छिला उवसग्गा, बहुं गतं धोवयं अवसेस, अचिरेण ते काले केवलणाणं उप्पज्जिहिति । ततो सेयावयं गतो, तत्थ हरिस्सहो पियं पुच्छओ एति ततो सावस्थि गतो, वाहिं पाडमं ठितो, तत्थ य लोगो खेदपडिमाए महिमं करेति, सको ओर्टि पउंजति, जाव पेच्छद्द खंदपडिमाए पूर्व, सामि गाढायंतित्ति, ओतिन्नो, सा य अलंकिता रहं विलग्मिहितीचे, सक्को य आगतो, तं पडिम अणुपविट्ठो, ताहे पञ्चकमिता, लोगो तुट्टो देवो सयमेव रहं बिलग्गतिति, जाव सामी गंतूणं बंदति, वाहे लोगो आउट्टो, एस देवेदेवोति महिमं करेंति जाब अच्छितो । कोसंबी चंदसुरोतरणं बाणारसीय सक्को उ। रायगिहे ईसाणो महिला जणओ य धरणो य ।। ४-६०/५१७।। ता सामी कोसंगिं गतो, तत्थ चंदवरा सविमाणा महिमं करेंति, पिंयं च पुच्छंति, वाणारसीय सक्को पिर्य च पुच्छति, रायगिदे ईसाणो पिगं पुच्छति, महिलाए वासारतो एक्कारसमो, चाउम्मासखमगं करेति, तत्थ धरणो आगतो पियं पुच्छओ, (321) आलभिकादी बिहारः ॥३१५॥ Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तां ।।३१६।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [११८/५१८ आयं [१९४...]]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - जणओ य महिमं करेति । सालि भूयणंदो चमरुप्पाओय सुंसुमारपुरे । भोगपुर सिंदिकंडग माहिंदो व्यतिओ कुणति ।। ४-३०।५१८ ।। ततो निम्तो वैसालि एति, तत्थ भूताणंदो पिये पुच्छति, गाणं च वागरेति । पच्छा सुमुमारपुरं एति, तत्थ चमरो उप्पतति जहा पण्णत्तीए, पच्छा भोगपुरं एति, तन्थ माहिंदो णाम खतिओ सामिण सिंदिकंदरण आहणामिति पधाइतो, सिंदि खज्जूरी। वारण सणकुमारो मंदिग्गामे य पिउसहा वंदे । मंडियगामे गोवो वित्तासणयं च देविंदो ||४-६२ । ५१५९॥ एत्थंतरा सर्णकुमारो एति, तेण धाडितो तासितो य, पियं च पुच्छति, ततो दिग्गामं गतो, तन्थ गंदी नाम भगवतो पितुमित्तो, सो महेति । ततो मंडियं एति, तच्थ गोवो जहा कंमारगामे, तत्थेव सक्केण तासितो वालरज्जुणं आहतो कोसंबीए संयाणिउ अभिग्गही पोसबहुलपाडिए । चाउम्मास मिगावति विजय सुगुप्तो य णंदा य।।४-६३ । ५२० ।। तचावादी चंपा दधिवाहण वसुमती वितियणामा धण घवण मूलालोयण संपुल दाणे व पव्वज्जा ।।४-६४।५२१।। ततो कोविं गतो । तत्थ य सयाणिओ राया, तस्स मिगायती देवी, तच्चावादी णाम धम्मपादओ, सुगुत्तो अमच्चो, गंदा से महिला सा समणोवालिया मा मात्ति मिगावती वर्यमिया. तत्थेव नगरे घणावही मेट्टी, तम्म मूला भारिया, एवं ने कम्मसंपत्ता अच्छेति । सामी य इमं एतास्वं अभिग्ग अभिगण्डति चउबिहं दब्बतो ४, दब्बती- कुमासे सुप्प भगवंत महावीरस्य विशिष्ट अभिग्रह एवं चंदनबालायाः वृतान्त कथयते (322) वंशाल्यादौ विहारः ॥३१६ ।। Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५२०-५२१/५२०-५२१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGA उपोद्घात नियुक्ती श्री कोणेणं, खित्तओ एलुगं चिक्खंभइत्ता, कालो नियत्तेसु भिक्खायरेसु, भावतो जदि रायधूया दासत्तर्ण पत्ता णियलबद्धा मुंडि- कुलमाषाआवश्यक यसिरा रोयमाणी अन्भत्तट्ठिया, एवं कप्पति, सेसं ण कप्पति, कालो य पोसबहुलपाडिवओ । एवं अभिग्गह घत्तर्ण को-श यभिग्रहा संवीए अच्छति, दिवसे दिवसे य भिक्खायरियं फासेति, किं निमित्त, बावीसं परिसहा भिक्खायरियाए उदिज्जात, एवं चचारि मासे कोसंबीए हिंडति, ताहे गंदाए घरमणुपविट्ठो, ताते सामी जातो, ताए परेण आदरेण भिक्खा णीणिता, सा | मी विनिम्गतो, सा अधितिं पकता, ताहे दासीओ भणंति-एस देवज्जओ दिवे दिवे एत्थ एति, ताहे ताए णातं॥३१७॥ नूर्ण भगवतो कोति अभिग्गहो, ताहे निरायं चेव आद्धिती जाया। सुगुत्तो अमच्चो आगतो, ताहे सो पुच्छति, भणति | किं अद्धिति करेसि?, ताए से कहितं, भणति-कि अम्हं अमच्चत्तणेण, एच्चिरं कालं सामी भिक्खं ण लभति, किंच ते विनाणेण? जदि एतं अभिग्गहं ण जाणसि, तेण सा आसासिता, कल्ले समाणे दिवसे जहा लमति तहा करेमि । एताए कहाए बढमाणीए विजया णाम पडिहारी मिगावतीए सतिया, सा केणवि कारणेण आगता, सा तं उल्लावं सोऊणं मिगावतीए साहति, मिगावतीवितं सोउणं महता दुक्खेण अभिभृता, सा चेडगधूता, अतीय अद्धिति पकया, राया य आगतो पुच्छति, भणति किं तुम रज्जेण मए वा, एवं सामिस्स एवतियं काले हिंडंतस्स अभिग्गहो ण णज्जति, ण दवा जाणासि एत्थ विहरतं, तेण आसासिता, तहा करेमि जहा कल्ले लभति, ताहे सुगुचं अमच्चं सद्दावेति अंबाडेति य, ॥३१७॥ जहा तुम सामि आगतं ण जाणसि, अज्ज किर चउत्थो मासो हिंडंतस्स, ताहे तच्चावादी सदावितो, ताहे सो पुच्छति |सयाणिएणं-तुझ धम्मसत्थे सम्बपासंडाणं आयारा आमता, ते तुम साहह, इमोवि मणितो-तुम बुद्धिबलिओ साह, ते भणति दीप अनुक्रम ACCAEX 433 (323) Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५२०-५२१/५२०-५२१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों सत्राक बहवे अभिग्गहा, ण णज्जति अभिष्पाओ दव्वजुत्ते य खे० सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ, ताहे रमा सबस्थ संदिट्ठा, चन्दनआवश्यक चाला वृत्त वालोगेणवि परलोककंखिणा कता, सामी आगतो, ण य तेहिं पगारेहिं गिण्हति, एवं च ताव एवं। इओय सयाणिओ पं पधाविओ उपोद्घावट दहिवाहणं गेण्डामित्ति, णावाकडएण गतो एगाए रत्तीए, अचिंतिया चव णगरी ढिया, तत्थ दहिवाहणो पलातो, रमा जग्गनियुक्ती हो घोसितो, एवं जग्गहे दिन्ने दहिवाहणस्स रखो धारणी देवी, तीसे धूया वसुमती, सा सद्द धूयाए एगेण ओडिएण गहिता, राया नियत्तो, सो उट्टितो चितेति, भणइ य-एस मे भज्जा, इमं च दारियं विक्कसं, सा देवी तेण मणोमाणसिएण दुक्खिए-16 ॥३१॥ ण अप्पणो धूयाए य एस ण णज्जति किं मम पावहिति, एयं वा चीड, एवं सा अंतरा कालगता, पच्छा तस्स उवियस्स चिंता जाता-दुई मए भणितं महिला होहितिचि, एतं न भणामि, मा एसावि मरिहिति, तो मे मोल्लंपि ण होहिति, ताहे अणु-181 यत्ततेण आणीता, वीहीए ओडिया, धणबाहेण दिट्ठा अणलंकितलावा, अवस्सं रबो ईसरस्स वा एसा, मा आवई पावउत्ति जचियं सो भणति तचिएण मोल्लेण गहिता, तेण समं ममं सुहं तत्थ णगरे आगमण गमणं च होहितित, तेण नियगं घरं गीता, पुच्छिता-का सि तुमंति, ण साहति, पच्छा तेण धृतत्ति गहिता, एवं सा हाणिता, मृलिगावि भणिता-जहा एस तुज्झ धृयत्ति, एवं सा तत्थ जहा नियए घरे तह सुईसुहेण अच्छति, ताएबि सो सपरिजणो लोगो सीलेण य विणएण य सञ्चो अप्पणिज्जओ कओ, ताहे ताणि भगति सव्वाणि-अहो इमा सीलचंदणत्ति, ताहे से वितियंपिय णाम कयं चंदणत्ति, एव य कालो बच्चति । ताए य घरिणीए अवमाणो जायति मच्छरिज्जति य, को जाणति कयाइ एस एतं पडिबज्जेज्जा, ताहे अई घरस्सर IN||३१८॥ अस्सामिणी भविस्सामि, तीसे य वाला अतीय रमणिज्जानिकिण्हा य, अनया कयाई सो सेट्टी मज्झण्ड जणविरहिते आग REASERIES Re दीप अनुक्रम (324) Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५२०-५२१/५२०-५२१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चाँ सत्राका उपोषात दीप को जाव णत्थि कोयि जो पादे सोचेति, ताहे सा परिणतं गहात निग्गता, तेण वारिया, सा मह(ड्डा)ए पधोता, ताए धोबतीए ते आवश्यकता वाला वल्लगा फिट्टा, मा चिक्खल्ले पडिहितित्ति तस्स य हत्थे लीलाकट्टतं तेण ते धरिता बद्धा य, मूला य ओलोयणवरग-11 चन्दनहता पेच्छात, ताए णायं-विणासितं कज्ज, जदि किहइ परिणेति तो अहं का, सा सामिणी, वासो नगरेवि मे पत्थि, जाव तरु | ओ वाधी ताव णं तिगिच्छामित्ति सेट्ठिमि निग्गए ताहे य हावितं वाहरावेत्ता बोडाविता णियलेहि य बद्धा पिहिया य, परियनियुक्ती णो य अणाए वारितो-जो वाणियगस्स साहति सो मम णत्थि, ताए सो पिल्लितल्लओ, घरे छोण बाहिरि कुडंडिता, सोय ॥३१९॥ द कमेण आगतो पुच्छति-कहिं चंदणा,न कोविवि साहति भएण, सो जाणति नूर्ण सा रमति उवरि वा, एवं रतिपि पुच्छिता, जा णति सा सुत्ता पूर्ण, वितियदिबसेविण दिहा, ततिए दिवसे घणं पुच्छति, साहह, मा मे मारेह, ताहे थेरदासी एगा चिंतेति-किं मम जीवितेणं , स जीवतु वराई, ताए कंहित-असुगघरे, तेण उग्घाडिया, छुहाहतं पेच्छिता, कर पमग्गितो जाम(समा)वत्तीए णत्थि, 13 ताहे कुमासा दिवा, ते दाउं लोहारपरं गतो जा णियलाणि छिंदावमि, ताहे सा हत्थी जथा कूल संमरितुभारद्धा एलुगं विर्खभतित्ता, तेहि पुरतो करहिं हिदयभंतरतो रोवति, सामी य अतिगतो, ताए चिंतिय-एतं सामिस्स देमि मम एतं अधम्मफलं, मणति-भगवं कप्पतिी, सामिणा पाणी पसारितो, चउब्धिहोवि पुत्रो, पंच दिवाणि, ते से वाला तदवत्था, ताहे चेव ताणि नियलाणि फट्टाणि, सोभिताणि कडगाणि णीउराणि य जाताणि, देवेहि य सव्यालंकारा कता, सको य देवराया आगतो, पंच है। दिवाणि, अद्धतेरस हिरण्णकोडीओ पडियाओ। इतो य कोसंबीए सव्वतो उक्कुट्ठ-केणइ पुनमतेण अज्ज सामी पडिलाभितो, ४ ॥३१९॥ ताहे राया संतेपुरपरियणो आगतो। तत्थ संपुलो णाम दहिवाहणस्स कंचुइज्जो, सो बंधिता आणियओ, तेण सा नाया, सो पादेस। अनुक्रम (325) Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥३२०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्तिः [५२०-५२१/५२०-५२१], भाष्यं [१९४...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पडिता परुनो- अहो इमा वसुमती, राया पुच्छति, ताहे तेण कहियं देव रायाओ इमा, ताहे सब्वेण लोगेण नायं जहां दहिवाहणस्स धूयात्त, मिगावती भणति मम भगिणिधूयत्ति, अमच्चो य सपत्तीओ आगतो, सामि बंदति । पच्छा सामी निग्गओ । ताहे राया तं वसुहारं पगहिओ, सक्केण वारियं, जस्स एसा देइ तस्स आभव्वंति, सा पुच्छिया, भणति मम पिउणो, ताहे सेडिगा गहियं । ताहे सक्केण भणितं चरमसरीरा एसा एवं संगोवाहि जाय सामिस्स नाणं उप्पज्जति, एसा पढमा सिस्सिणी सामिस्स, ताहे कण्णतपुरं छूढा संबद्धति, छम्मासा तदा पंचहि दिवसेहिं ऊणगा जद्दिवसं सामिणा भिक्खा लद्धा, सावि मूला लोगेणं अंबाडिता हीलिया य । तत्तो सुमंगल सणकुमार सुच्छित्तएहिं माहिंदो । पालय वाइल बणिए अमंगलं अ घणो असिणा ||४-६६५/५२२॥ ततो सामी निग्गतो सुमंगला णाम गामो तहिं गतो, तत्थ सकुमारो एति वदति पियं च पुच्छति, तत्थ पढमं सिंदकिंडगनिमित्तं आगतो, ततो सामी पालयं नाम गामं गतो, तत्थ बाइलो नाम वाणिययो जत्ताए पहावितो सामी पेच्छति, सो अमंग| लंति काऊण असिं गहाय पचातिओ, एतस्सेव फलउाचि तस्स सिद्धत्थेण सहत्थेण सीसं छिन्नं । चंपा वासावासं जक्खिदो सातिदत्त पुच्छा य । वागरण दुह पएसण पच्चक्खाणे य दुविहे तु ।।४-६६।५२३।। ततो सामी चेषं नगरं गतो, तत्थ सातिदत्तमाहणस्स अग्निहोत्सवसहि उवगतो, तत्थ चाउम्मासं खमति, तत्थ पुष्णभद्दमाणिभदा दुबे जक्खा रविं पज्जुवासंति चत्तारिवि मासे रति रति पूर्व करेंति, ताहे सो माहणो चितेति किं एस जाणति तो णं देवा महेंति, ताहे विभासणानिमित्तं पुच्छति को ह्यात्मा, भगवानाह योऽहमित्यभिमन्यते स कीडक ?, सूक्ष्मोऽसौ किं तत्सूक्ष्मं ?, यन (326) सुमंगलादौ विहारः ॥३२० ॥ Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [५२३/-५२३], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका श्री गृहीमः, ननु शब्दगंधानिलाः किम्, न, ते इंद्रियग्राबाः, तेन ग्रहणमात्मा, ननु ग्राहयिता हिसः। कतिविहे गं भंते ! पएसणए', कह-पटी गोपकता आवश्यक विहे णं पच्चक्खाणे , भगवानाह-सातिदचा! दुविहे पदेसणये धम्मियं अधाम्मयं च, पएसणयं नाम उवदेसो । पच्चक्खाणे शलाकोचूणी विहे- मूलगुणपच्चक्खाणे व उत्तरगुणपच्चक्खाणे य । एतेहिं पदेहि सर्व तस्स उवागतं पसगे: जंभियगामे णाणस्स उप्पदा वागरेति देविंदो । मेढियगामे चमरो बंदण पियपुच्छणं कुणति ॥४-६७१५२४|| ___ततो भगवं निग्गतो, भियगामं गतो, तत्थ सक्को आगतो, यदित्ता पूर्य करेचा णविहिं उबदसेना णं वागरेति जहा 18 एत्तिपहिं दिवसेहि केवलणाणं उप्पज्जिहिति । ततो मेंढियग्गामं बच्चति, तत्थ चमरो बंदयो पियपुच्छओ य आगच्छति, वंदितुं । | पृच्छति, वंदितुं पुच्छितुं च पडिगतो । छम्माणि गोव कडसलपवेसणं मज्झिमाए पायाए । खरतो वेज्जो सिद्धत्थवाणिओ णहिरावेति ॥४-६८।५२५ ।। ततो सामी छमाणि णाम गामो तहिं गतो, तस्स चाहिं पडिमं ठितो, तत्थ सामिसमीचे गोवो गाणे छड्डेऊण गामं पविट्ठो, दोहणादीणि काउं निग्गतो, ते य गोणा अडविं अणुपविट्ठा चरियव्ययस्स कज्जे, नाहे सो आगतो पुच्छति- देषज्जगा! कहि बइल्ला ?, भगवं मोणेण अच्छति, साहे सो परिकृवितो भगवतो कम्नेसु काससलागाओ छुभति, एगा इमेण कोण एगा इमेण, IN||३२१॥ ताहे पत्थरेण आहणति जाच दोवि मिलिताओ, ताहे मूलभग्गाओ करेति मा कोति उक्वाणहित्ति, केति भणंति- एगा चेव जाव इतरेणं कोणं निग्गया, ताहे अ भग्गा, कमेसु तउं त गोवस्स कतं तिविट्टणा रत्ना । कनेसु वद्धमाणस तेण छूढा कड दीप अनुक्रम (327) Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [५२५/-५२५], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री SXENER प्रत HEIGA सलागा ॥१॥ भगवतो य तदारवेयणिज्ज कम्मं उदिबं । ततो मज्झिम पावं गतो, तत्थ सिद्धत्यो नाम वाणियतो, तस्स घरं श्रीवीरस्प आवश्यकशिभगवं अतिगतो, तस्स मिचो खरओ णाम वेज्जो, ते दोबि सिद्धत्थघरे अच्छंति, सामी य भिक्खस्स पविट्ठो, वाणियतोकबलात्भ्रूणा वंदति धुणति य, वेज्जो य विस्थगरं पासिऊण भणति- अहो भगवं सब्बलक्षणसंपुनो, किं पुण ससल्लो, ताहे सो वाणिओ पादः उपायात संभतो भणति- पलोएहि कहिं सल्लो ?, तेण पलाएंतेण दिट्ठो कन्चेसु, तत्थ तेण वणिएण भन्नति- नीणेहि एतं महातवसिस्स, नियुक्ती सव्वस्सपि चयेमो, पुष होहिति तववि मज्झवि, भणति- निप्पडिकंमो भगवं नेच्छिहिति, ताहे पडियराबितो जाच दिवो उज्जाणे ॥३२॥ पडिम ठितो, ते ओसहाणि गहाय गता, तत्थ भगवं तेल्लदोणीए निवज्जावितो माहितो य, पच्छा बहवेहि परिसहिं जंतितओ अक्कंतो य, पच्छा संडासरण गहाय कवितो, तत्थ सरुहिराओ सलागाओ अंछिताओ, तासु य अछिज्जंतीसु भगवता आरM सितं, ते य मणूसे उप्पाडेता उाढतो, तत्थ महाभेरवं उज्जाण जातं देवउलं च, पच्छा संरोहणं ओसहं दिन्नं जेण ताहे चेव पउणो,8 ताहे वंदित्ता खामेता य गता ।। सच्चेसु किर उवसग्गेमु दुविसहा कतरे ', कडपूयणासायं कालचक्कं एतं चेव सल्लं कड्डिज्जतं, अहवा जहन्नगाण उपरि कडपूषणासीतं, मज्झिमाण कालचक्कं, उक्कोसगाण उरि सल्लद्धरणं ॥ एवं गोवेण आरद्धाउवसग्गा I&ागोवेण चेव निद्विता । मोवो सचमि गतो, खरतो सिद्धत्थो य दियलोग तिवमपि उदीरताचि सुद्धभावा। C ॥३२२॥ माजभियवहि उजुयालियतीरवितावत्तसामसालअहे। छद्रेण उक्कत्यस्म उपनं केवलं नाणं ।। ४-६९१ ५२६ ॥ वाहे सामी जाभियगाम णाम णगर गतो, तस्स बाहिया वियावत्तस्स चौतयस्स असामंत, वियावचं णाम अव्यक्तमित्यर्थः, अप्पागडं संनिपडित, उज्जुयालियाए णदीए तीरेमि उचारीले कूले सामागस्त गाहावतिस्स कट्ठकरणंसि, कट्टकरण नाम छैन, दीप अनुक्रम (328) Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युकौ ॥३२३ ॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [५२६/-५२६], आयं [१९४...]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - सालपादवस्स अहो उक्कमणिसेज्जाए गोदोहियाए आतावणार आतावेमाचस्स छण भत्तेणं अपाणएणं अणुत्तरेणं णाणेणं अणुत्तरेणं दंसणेणं अणुत्तरेणं चरित्रेण अणुत्तरेण आलपण अणुत्तरेण विहारण एवं अज्जवेर्ण महवेणं लाघवेण खंतीए मोतीए गुत्तीए तुट्ठीए अणुत्तरेणं सच्चसंजमतव सुचरितसोवचइयफलपरिनिव्याणमग्गेणं अप्पाणं भावेमाणस्स दुवालसहिं संबन्छरेहिं वितिक्कंतेहिं तेरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स वइसाहसुद्धदसमीए पादीणगामिणीए छायाए अभिनिव्वट्टाए पोरुसीए पमाणपत्ताए सुब्बणं दिवसेणं विजय मुहुत्तेणं हत्थुत्तराहिं नक्खत्तणं जोगमुपागतेणं झाणंतरियाए बट्टमाणस्स एकत्तवितक्कं बोलीणस्स सुदुमकिरिय अणियट्टिमपत्तस्स अर्थते अणुत्तरे निव्वाघाए निरावरणे कसिण परिपुष्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पने । तए में से भगवं अरहा जिणे जाते केवली सव्नन्नू सब्वदारसी अरहस्सभागी. सनेरतियतिरियनरामरस्स लोगस्स पज्जवे जाणति पासति, तंजहा- आगतिं गई ठिति चयणं उवनायं तक्कं मणोमाणसितं भुतं कडं पडिसेवितं आवकम्मं रथोकम्मं तं तं कालं मणवयणकार्यिते जोए, एवमादी जीवाणवि सव्वभावे मोक्खमग्गस्स य विसुद्धतरागे भावे जाणमाणे पासमाणे, एस खलु मोक्खमग्गे मम य अन्नसिं च जीवाणं हितसुहनिस्सेसकरे सय्यदुक्खविमुखणे परमसुहसमाणणे भविस्सइति । एवं च केवलणाणं तवेण उप्पनंतिकाऊणं जो छउमत्थकालियाए भगवता तवो कतो सो सव्वो वयबो भगवंत वीर कृत् (बाह्य) तपसः वर्णनं क्रियते - जो य तवो० ॥५-११५२७।। णव किर चाउम्मासे० ।। ५-२ ।।५२८ || एवं किर छम्मासं० ॥५-३।। ५२९ ॥ भई च महाभ६० ।। ५-४ ॥ ५३० ।। गोयर० ।। ५-५ ।। ५३१ ।। दिवसे दिवसे भगवं भिक्लं हिंडेति एव छम्मासे । हिंडति पंचदिवभ्रूण वत्थाणगरीए अव्वहिओ भगव ॥ १ ॥ दस दो य० ।। ५-६ ।। ५३२ ।। दो चैव य छट्ट ।। ५-७ ।। ५३३-५३४।। (329) श्रीवीरस्य तपः संकलना ॥३२३॥ Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [५३५-५४२/५३५-५४२], भाष्यं [११५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री महासेने पत चूणौं | सत्राक दीप एस ताव खमणकालो । इमो पारणगकालोआवश्यकता तिन्नि सते दिवसाणं ।। ५-८॥ ५३५ ।। पव्वज्जाते॥५-९॥ ५३६ ।। पारस चेव य ।। ५-१०॥ ५३७॥ आगमन समवसरण उपोद्घात एवं तवोगुणरओ अणुपुब्वेणं मुणी विहरमाणो । घोरं परीसहच{ अहियासत्ता महावीरो ॥५-११।५३८।। द्वाराणि INउप्पन्नमि अणंते नट्ठमि य छाउमथिए णाणे । रातीए संपत्तो महसेणवणं तु उज्जाण ॥५-१२॥५३९।५४शा११५भा. ॥३२ किमिति । जाहे सामिस्स केवलनाणं उप्पन ताहे इंदादीया देवा सबिड्डीए हडतुडा णाणुप्पदामहिमं करेंति । तत्थ भगवं दाजागति-पत्थि एत्थ पब्बयंततो, जत्थ नत्थि पब्वयंततो तत्थ ण पवाचिज्जति, ततो य बारसेहिं जोयणेहि मज्झिमा नाम नगरी,द तत्थ सोमालज्जो नाम माहणो, सो जन्नं जयइ, तत्थ य एक्कारस अज्झावगा आगता भवियरासी य, ताहे सामी तत्थ मुहुत्तं अच्छति जाव देवा पूर्व करेंति, एस केवलकप्पो किर जं उप्पने नाणे मुडुत्तमेतं अच्छियव्वं, ताहे सामी रत्तीय तं बच्चति, तत्थ ४ द वच्चतो असंखज्जाहिं देवकोडीहिं परिवुडो देवुज्जोएण सव्वो पंथो उज्जोवितो जथा दिवसो, जत्थ भगवतो पादा तत्थ देवा मसत्त पउमाणि सहस्सपत्तााणि णवणीतफासाणि विउव्वंति, मग्गतो तिन्नि पुरओ तिन्नि एग पायाणक्कमे, एगे भणति- मग्गतो 13 सत्त पउमाणि दीसति, जत्थ पाओ कीरति ताहे अन्नं दीसति, मग्गओ सत्त दीसति, मग्गओ सत्त दो पादेसु एवं णव । एवं 8॥३२४॥ जाव मज्झिमाए णगरीए महसेणवणं उज्जाण संपत्तो । तत्थ देवा वितिय समोसरणं करेंति, माहमं च सूरुग्गमणे, एग जत्थाले। नाणं वितिय इमं चैव । अहवा एग छउमत्थकालियाए एग इमं चेव । एत्थं सामनेण समोसरणादिवत्तव्बया या गाहाहिं अनुक्रम (330) Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५४३/५४३], भाष्यं [११५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 समव प्रत चूणौँ मा HEIGE II समोसरणे केवतिया रूवपुच्छचागरण सोयपरिणामे । दाणं च देवमल्ले मल्लापणे उपरि तिस्थं ॥५-१८॥५४॥ | आवश्यक इह पुण इम णाण जाव सामीण पाषद ताव रतिंचेच देवेहिं तिनि पागारा कता, अंतो मज्स पाहिति, अम्वरं या-12 उपोद्घात काम हणिया सव्यरयणामयं णाणामणिपंचवन्नहिं कविसीसएहि, मज्झिमं जोइसिया सोवन रयणकविसीसग, वाहिरं भवणवासी ता रयतं ५ नियतीहेमजंबूणतकविसासगं, अवसेस जे वातविउव्वणं वरिसणं पुष्फोबगारो य धूवदाणं च तं वंतरा करेंति, असोगवरपायवं जिणउ-14 च्चत्ताओ चारसगुणं सक्को विउब्बति, ईसाणो उरि छत्ताइच्छत्तं चामरधरा य, बलिचमरा असोगहेट्टओ पेढं देवछंदर्ग सीहासणं ॥३२॥ दासपायपीढं फालियामय धम्मचकं च पउमपतिट्ठियं । ताहे सामी पयाहिणं करेमाणो पुख्बदारेण पविसित्ता 'नमो तित्थस्स' चि नमोक्कारं काऊण सीहासणे पुग्वाभिमुहो निसीयति । ताहे देवा अवसेसाहिं दिसाहिं सपरिकराणि मुहाणि विउब्वति, एवं सम्बो लोगो जाणति अम्द कहेतित्ति । तत्थ समोसरणेत्ति दारं । समोसरणं नाम एत्थं बायोदगपुप्फवासपागारत्तयादिमिः भगवतो 3 दीप विभूती । तच अनुक्रम CORRECE जत्थ०॥ ५-१९।। ५४४-५४८ ॥ जत्थ अपुर्व णगरे गामे वा जत्थ वा तहाविहो देवो महिड्डीओ वंदओ एति तस्थ 12 नियमेण भवति । ताहे जोयणपरिमंडल संबट्टयं वायं सुरभिगंधोदयं निहतरयं पुष्फबद्दलयं वा, एतं अभियोगा देवा करेंति ।। पागारा तिनि, ते को करेति', उच्यते___ अभंतर ॥ ५-२४ ।। ५४९ ।। अम्भितरिल्लं पागारं वेमाणिया देवा करेंति, मज्झिमं जोतिसिया, बाहिरिलं भवणासी करेंति । अम्भितरिल्लो स्यणमयो मज्झिल्लो कणयमओ बाहिरिल्लो रयतमयो। ॐ5555 अथ समवसरण वक्तव्यता प्रकाश्यते (331) Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५५०-५५२/५५०-५५२], भाष्यं [११५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 का प्रत चूणीं सत्रा दीप मणिरयण ॥५-२५ ।। ५५०-५५२ ॥ अम्भितरस्स मणिमया कविसीसया, मज्झिमस्स रयणमया, बाहिरिल्लस्स हेममया,131 समवआवश्यक हेम-सुवर्ण । सव्यरयणमया दारा । तेसि पागाराणं तिण्हयि सव्वरयणमया चेव तोरणा, पडागाहिं सएहि य विभूसिया। अम्भि सरणं तरपागारस्स य बहुमज्झे चेतियरुक्खो, तस्स हेट्ठा रयणमयं पेढं, तस्स पेढस्स उवरिं चेतियरुक्खस्स हेडा देवच्छंदओ भवति, उपायात तस्सम्मंतरे सीहासणं भवति, तस्सोवरि छत्तातिछत्तं, उभयो पासे य दो जक्खा चामरहत्था, चसद्दा पुरओ धम्मचक्कं च पउमनियुक्ती लिपइडितं । एताणि को करति ?, उच्यते॥३२६|| चेतियतुम० ॥ ५-२८ ॥६५३ ।। सिद्धा । चनंति बाउदयादि ।। आह-किं सम्वत्थ एवं', उच्यते साधारणओसरणे०॥५-२९ ॥ ५५४ ।। जत्थ बहवे तहाविहा देवा एंति ईदा वा तत्थ एवं करेंति, जत्थ पुण कोति तारिसओ महिड्डीओ देवो एति तत्थ सो चेव एगो एयाणि सव्वाणि करेति, 'भयणा उ सेसेसु इयरेसि' न्ति जइ इंदा ण एंति तो है भवणवासिमाइणो करेंति वा ण वा। सूरुदय०॥५-३० ।। ५५५:५५७ ॥ तत्थ भगवं पढमपोरुसीए ओगाहतीए आगंतूणं पुन्चउचि-पुरस्थिमेणं दारेणं पविसित्ता चेतियरुक्खं आदादिणं करेता सीहासणे पुरस्थाभिमुहो निसीयति । जत्थ य भगवं एंतो पादे ठवेति तत्थ सहस्सपत्ताणि दो पउ-II माणि भवति, पिट्टओ य सत्त पउमाणि दीसति, जतो य भगवओ मुहं न भवति ताहिं तीहिं दिसाहिं देवा पडिरूवताई विउव्वति, ॥३२६॥ हा सीहासणाई समत्सरीराई सचामराई सछत्ताई सधम्मचक्काई जहा सब्वो जणो जाणति मम सपडिहुचोचि । भगवतो य पादIPL मूलं जहण एगण गणहरेण अविरहियं अवस्स भवति, सो पुण जेट्ठो वा अन्नो वा, पाएण जेवो भवति । RASHTRA अनुक्रम (332) Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५५८-५५९/५५८-५५९], भाष्यं [११५...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत HEISZ तिस्थादिसेस०१५.३३३५५८॥ केवलिणो०५-३४।५५९। जो तित्थं सो पुब्बदारेण परिसित्ता तित्थगरं तिकबुत्तो बंदिता | आवश्यकासादाहिणपुरस्थिमे दिसिमाए निसीयति, सेसा गणहरा एवं चेव काउं तित्थस्स मग्गतो पासेसु निसीयति । जे केवलिणो से पुरस्थि-HIM पनिवेशः चूण 18मण दारेण पविसित्ता भगवं तिक्खुत्तो पयाहिणं काउं'नमो तित्थस्स'त्ति भणिता तित्थस्स गणहराण य पिट्ठतो निसीदति । जे चम उपोद्घातात | सेसा अतिसेसिता-मणपज्जवनाणी ओहिनाणी चोद्दसदसणवपब्विणो खेलोसहिपत्तादी य ते पुरथिमेण दारेण पविसित्ता भगवंतं नियुक्ती | पयाहिणीकरेत्ता वंदित्ता य 'नमो तित्थस्स नमो केवलीणं ति मणिचा केवलीणं पिट्टतो निसीदति । अवसेसा संजया निरतिसेसिया पुरस्थिमेणं चेव दारेण परिसित्ता भगवंतं पयाहिण काउं वंदित्ता णमो तित्थस्स (नमो केवलीणं ) नमो अतिससियाणति भणित्ता। ॥३२७॥ अतिसेसियाणं पिट्ठतो निसीदंति । बेमाणियाणं देवीओ पुरत्थिमेण चेव दारेण पविसित्ता भगवंतं पयाहिणीकरेत्ता बंदिचा 'णमो तित्थस्स नमो साधूण य' भणित्ता निरतिसेसियाणं पिट्ठतो ठायति, ण णिसीदति । समणीओ पुरथिमेण चेव दारेणं पविसित्ता तित्थगरं पयाहिणं करता बदित्ता य 'नमो तित्थस्स नमो अतिसेसियाण'ति भणिचा बेमाणियदेवीणं पिट्ठतो ठायति, न निसदिति ।। भवणवासिणीओ वंतरीओ जोतिसिणीओ एताओ दाहिणणं दारेणं पविसित्ता तित्थगरं पयाहिणीकरेत्ता वंदित्ता य दाहिणपच्च| स्थिमेण ठायंति, भवणवासिणीणं पिट्ठतो जोतिसिणीओ, तासि पिट्ठतो तरीओ। भवण॥५-३५।।५६०॥११६-११९ भा० । भवणवासी देवा जोतिसिया देवा वाणमंतरा देवा, एते अपरदारेण पविसित्ता | ॥३२७॥ तं चेव विधि काउं उत्तरपञ्चस्थिमेण ठायति यथासंख्य पिडओ, बेमाणिया देवा मणुस्सा माणुस्सीओ उत्तरेणं दारेण पविसित्ताल दीप अनुक्रम (333) Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तौ ॥३२८॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [५६०/५५८-५६०], मूलं [- /गाथा - ], भाष्यं [११६-११९] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उत्तरपुरत्थि मे ठायंति, जहासंखं पितो । 'जं च निस्साए' त्ति जो परिवारो जन्निस्साए आगतो सो तस्सेव पासे निवसति, ण अन्नत्थ । एगे ०/५-४० ।। ५६१।। तित्थं असेससंजया एवं वेमाणिया देवीओ समणीओ, एवं तिगं भगवतो दाहिणपुरच्छिमेणं संनिविहं भवणवासिणीओ अंतरीओ जोइसिपीओ एतं तिंग भगवतो दाहिणपच्चच्छिमेणं समिवि भवणवतिवाणमंतरजोतिसियपुरिसा एवं तिगं भगवतो उत्तरपच्चत्थिमेणं संनिविहं वैमाणियदेवा मणुस्सा मणुस्सीओ एवं तिगं भगवतो उत्तरपुरत्थिमेणं संनिविड, आदिले य तिगे चरिमे य तिगे पुरिसा इत्थीओ य, मझिल्लीह दोहिं तिएहिं इत्थीओ पुरिसा य अमिस्सा । तत्थ सब्वेसि देवराणं इमा मज्जाया एतं महिडियं ० ५-४१ ॥ ५६२ || जे अपिडिया भगवतो समोसरणे निसचा ते एवं महिड्डीय पणिवयंति, अह महिड्डीया पढमं निसन्ना पच्छा जे अप्पिडिया एंति ते पुब्वडित महिडीए पणिवयंता वयंति सङ्काणं, सेस कंठं । आह-पागाराणं अंतरेसु को ठायति ?, उच्यते पितियंमि० । ५-४२/५६३|| कंठा । सब्ववाहि पागाराणं तिरिया वा मणुया वा देवा वा होज्जा, एक्या मीसया बा, एवं. संनिविडे समोसरणे भगवं धर्म कहेति । जदि सव्यं ० ५-४३१५६४॥ कंठा । कहं पुण ण भविस्सति एस भावो जं न पडिवज्जिहिति चउन्हं सामाइयाणं अनवरं ?, उच्यते (334) समवसरणे पर्षभिवेशः | ॥३२८॥ Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [५६५/५६५], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत भूतरूप दीप मणुए०५-४४५६५।। मणुयाण जो पडिवज्जति सो चउण्डं अनतरं पडिवज्जेज्जा, तिरियाणि तिषि-सम्मत्तसुत्तचरिचाचरिआवश्यक --चूणीं चाई, दोषि, एग वा, एतेसि जदि गरिथ कोति पडिवज्जतओ तो देवेसु अवस्स केणति सम्मत्तं पडिवज्जियव्वं ।। ताहे मगर्व तीर्थनतिः उपोद्घात | तिस्थपणामं०५-४५/५६६।। 'नमो तित्थस्स' त्ति भणिता पणामं च करेता साहारणेण सद्देणं अद्धमागहाए भासाए, नियुक्तौदा साविय ण अद्धमागहा भासा भासिज्जमाणी सव्वीस तेसि आयरियमणायरियाणं अप्पप्पणो भासापरिणामेणं परिणमति । आह॥३२९॥ किं भगवं कतकिच्चे तित्थपणाम करोति?, उच्यते--- तप्पुब्विया०५-४६।५६७।। तत्थ मुयणाणेणं भगवतो तित्थकरत्तं जातं, तित्थगरो य सुतबतिरित्तो होंततो सुयणाणेणं वाय-13 | जोगीहोऊण धम्म कहेति, लोगो य पूतियपूयओ, तो जदि अहं एवं पूएमि तो लोगो जाणिहिति-जदि तित्थगरस्स एस गुरू कओ | को जाणति किंपिएरथ परिवसति', किं च-विणयमूलो धम्मो पत्रवेयब्बो, तो अहं चेव पढमं विणयं पउंजामि, पच्छा लोगो सुठ्ठ४|तरं सदहिस्सति, किं च-जहा कयकिच्चोपि होन्तओ तित्थगरो धम्म कहेति तहा तित्वमावि नमति । समोसरणत्ति दारं गतं । इयाणिं केवतिपत्ति दारं । केदूरातो आगंतव्वं समोसरणं ? केण वा आगंतव्वं ? कमि वा कज्जे आगंतवं अवस्स', उच्यतेजत्थ अपब्यो०५-४७॥५६८। कंठा । केवतियात्त गतं, इयार्णि रूवपुच्छत्ति दारं, केरिसय भगवतो रूबी, एस पुच्छा, उच्यते-19 सब्वसुरा०५-४८.५६९।। गणहरआहार० ।५-४९॥५७०॥ तित्थगरस्स रूपं ततो अणतगुणपरिहीणं गणहराण, जं| ॥२२९॥ गणहराण रूपं ततो अणतगुणपरिहीण आहारगसरीरस्स, ततो अणतगुणपरिहीणं अणुत्तरोववादियाण देवाणं, ततो अर्णतगुणपरिहीण अनुक्रम ॐASIKARI तीर्थ-स्थापना एवं गणधराणां वर्णनं (335) Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्तौ ॥१३०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [५७०/५७०], भाष्यं [११९...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 उवरिमगेयेज्जाणं, एवं जात्र सोहम्मगाणं ततो अनंतगुणपरिहीणं भवणवासीणं ततो जोतिसिवाणं, 'वर्ण' त्ति ततो वाणमंतराणं, वाणमंतराहिंतो अनंतगुणपरिहीणं चकवट्टीणं, ततो वासुदेवाणं, ततो बलदेवाणं ततो मंडलियाणं, सरायाणो पिहुजणो य छड्डाणगतो । संघयणं० | ५-५०।५७१ ॥ भगवतो अणुत्तरं संघयणं अणुत्तरं रूवं अणुत्तरं संठाणं, एवं बच्चो गती सतं, सारो दुविहो चाह्योऽभ्यन्तरथ, बाह्यो गुरुतं, अभंतरो णाणादी, अणुत्तरो उस्सासनिस्सासगंधो। आदिग्गहणेण गोर्खारिपंडरं मंससेोणितं ॥ आह एवमादीयाणि अणुत्तराई कस्स कम्मस्स उदरण ?, उच्यते, एवमादीणि अणुत्तराई भवंति नामोदया तस्स | आहअमेसि पगडीणं णामस्स जे पसत्था उदया जहा इंदियाणि सरीर अंगाणि इत्यादि अभेसिन खतिए भावे वरमाणस्स, खतोवसमिए वा छउमत्थकालोत भणितं होति, किन होंति अणुत्तरा उदया ?, उच्यते पगडी० | ५-५१ ॥ ५७२ || जे एताए पुरिल्लगाहाए णामस्स पकारा ण गहिता तस्सेव नामस्स जे अने प्रकारा तेसि अनेसिपि अणुत्तरा उदया सुभाणं, जओ जारियो तित्थगरस्स सो तारिसा ण अन्नस्स छउमत्थकालेऽवि एवं गंधो रसो फासो इत्यादि स्वयोवसमियं गुणसमुदयं, खाइके भावे व ंतस्स अधिकष्पं आहंसु खओवसमियं प्रतीत्य अनंतगुणाभ्यधिकमित्यर्थः, अथवा क्षायिकगुणसमुदाय अविकल्पं एगलक्षण सम्युत्तम 'आहंसु' तीर्थकरा उक्तवंतः । आह-जओ खतिए भावे वतस्स जहा अस्साता वेदणिज्जंति, आदिग्गहणणं जातो य णामस्स अप्पसस्थाओ ताओ तस्स ण किह बाहाकरीओ भवंति ?, उच्चते (336) रूपादिश्रेष्ठता ॥३३० ॥ Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥३३१॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ ५७३/५७३] आयं [११९...] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - अस्साय० । ५-५२||५७३|| कंठा || आह-जदि तित्थकरो रूपये तो सुंदर?, अह जदि विरूवो?, उच्यते, जदि रूपवं तो सुंदरं, कहें?, उच्चते धम्मो० | ५ – ५३ || २७४|| कंठा । इयाणि बागरणेत्ति दारं, तत्थ भगवं सव्वेसिं देवणरतिरियाणं एगवागरणेणं सव्वसंसए छिंदति । जदि पुण एक्केक्कस्स एक्केकं संसयं परिवाडीए छिंदेज्जा तो को दोसो होज्जा, उच्चतेएगवागरणे पुण एते ण भवंति गुणा य, के ते?, उच्चते कालेण० १० ।५-५४ ।।५७५॥ सव्वत्थ० | ५–५५।।५७६ ॥ कंठा || आह-तेसिं तं एगवागरणं कई सब्वे संसए छिंदति, सभासाए य परिणमंतिः, एतेणाभिसंबंधेण सोयपरिणामेति दारं पचं उच्चते- वासोदय । ५-५६ ।। ५७७ || जहा वरिसोदगस्स एगरसवन्नगंधफासस्सवि भायणविसेसे जत्थ पडति तत्थ पिहप्पिहा वनादिणो परिणमंति, एवं तेसिं सव्वेसि सोयाराणं अप्पणिच्चए २ सोतिदिएणप्पप्पणी सभासापरिणामेणं संसयवोच्छित्तिपरिणामियं परिणमति ॥ किं च साधारण० ।५-५७/५७८ ॥ सा भगवतो वाणी जम्हा साधारणा णरगादिदुक्खेहिंतो रक्खणाओ, जम्दा य असपनति अणन्नसरिसा, अतस्तस्यामर्थोपयोगो भवति श्रोणां, एतेहिं चैव गुणेहिं सा गिरा गाहगी भवति, जतो य एरिसगुणा सा अतो ण णिब्विज्जति सोता, दितो एगस्स वाणियगस्स एगा किढीदासी, किटी थेरी, सा गोसे कट्ठाणं गता, तण्हाछु (337) व्याकर णादीनि ॥३३१॥ Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [५७३/५७३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सूत्रांक हाकिलंता मज्झण्हे आगता, अतिथोवा कट्ठा आणियत्ति पिट्टित्ता अजिमितपीता पुणो पढविता, सा यबई कट्ठमार गहाय ओगा-131 श्रोतआवश्यकताहतीए पोरुसीए आगच्छति, को य कालो ?, जेडामूलमासो, अह ताए थेरीए कट्ठभाराओ एग कट्ठ पडित, ताहे ताए थेरीए द्रा परिणामः चूर्णी ITओणमित्ता तं क8 गहितं, तं समयं च भगवं तित्थगरो धम्म पकहितो जोयणणीहारिणा सरेणं, सा थेरी तं मुदं सुणेति तहेव || दानं च नियुक्तीन उपाघाताओणता सोउमाढना, उण्हं तहं छुहं परिस्सम च ण विदति जाव सूरत्थमणे तित्थगरो धम्म कहेतुं उद्वितो, एस दिद्वतो । एवं सव्वाउयपि सोता० ॥५-५८॥५७९॥ कंठा। सोयपरिणामोत्त गतं, इयाणि दाणं वत्ति तित्थगरो जत्थ समोसरति ॥३३॥ गामादिसु तत्थ जो निवेदेति रायादीणं किं तस्स विचिदाणं किं च पीतिदाणं', उच्यते वत्तीओ० ॥ गाधान्यं ॥ ५.५९ ॥ ५-६० ॥ चक्कवट्टी वित्ति देति निउत्तस्स अट्टतेरस सुवष्णकोडीओ, केसवा | एतप्पमाणमेव रुप्प देंति, मंडलिया अडतेरसरुप्पसहस्साणि वित्ति दिति, पीतिदाणं पुण अडतेरसरुप्पसहस्साई देंति ॥ भत्तिविभवाणु० ॥ ५-६१ ॥ ५८२ || कंठा। के पुण एवं दाणे गुणा ?, उच्यते देवाणु० ॥ ५-६२।। ५८३ ।। एवं तीर्थंकरभनयां क्रियमाणायां देवा अनुवर्तिता भवंति, कथं, जो तित्थगराण भर्ति करेति स देवाणं प्रियो भवति, भक्तिश्चैवं कृता भवति, तित्थगरपूया चेवं थिरीकया भवति, सत्ते अणुकंप्पत्ति निवेदंतस्स अणु81 कंपा कता भवति, सातोदयं च वेयणिज्ज कम्मं उबचितं भवति, एते दाणगुणा भवंति। तित्थं च एवं पभावितं भवति । दाणं: चित्ति दारं गतं । इयाणि 'दबमछ माहाणय ति दारं, तिस्थगरी पढमपारसीए धम्म ताव कहेति जाव पढमपोरुसीउग्घाडवला, ICI133॥ Pएस देवमाल्लो भन्नति । ताहे बली एति, मल्लंति चलीए. णाम, तं को करेति ? केरिमी वा सा, उच्यते-- दीप अनुक्रम RAN, (338) Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५८४-५८७/५८४-५८७], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूर्णी | HET ला राया व०॥५-६३ ॥ ५८४५८५ ।। ५८६.५८७ ।। गाधाद्वयं कंटें । तं आटकं तंदुलाण सिद्ध देवमा राया व रायमच्चोला चलिः + वा पउरं वा गामो वा जाणवतो गहाय महता तुरियरषेण देवपरिखुडो पुरस्थिमिल्लणं दारेण पविसति, एवं आगयणं, जाहे सा उपोद्घा पषिट्ठा अन्भतरपागारंतरं भवति ताहे तित्थयरो धम्म कहेंतो तुहिक्को भवति, ताहे सो रायादी चलिहत्थगतो देवपरिवुडो, नियक्तीला तित्थकर तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिण काउं तित्थगरस्स पादमूले तं बलि निसिराति, तस्सद्धं अपडितं देवा गेहंति, सेसस्स अद्धं अहिवती गेहति, सेस पागतजणो गेण्हति, ततो सित्थं जस्स मथए छुम्भति तस्स पुषुप्पन्नो वाही उवसमति, अणुप्पना य ॥३३॥ रोगातका छम्मासा ण उप्पज्जीत, ततो बलिए दिनाए तित्थगरो उहिचा पढमपागारस्स उत्तरेण बारेण निर्गतुं पुबाए दिसाए। देवच्छंदओ तत्थ जहा समाधीते अच्छति । देवमल्ले मल्लोणयणति दारं गतं । इयाणि 'उवरि तित्थंति दारं, उरि पोरुसीएल Pउट्टिते तित्थकरे गोयमसामी असो वा गणहरो वितियपोरुसीए धम्म कहेति, स्यान्मतिः- किं कारणं तित्थकर एवं द्वितीयायां पोरुभ्यां धर्म न कथयति', उच्यते-- खेदविणोदो ॥५-६७ ॥५८८ ॥ तित्वगरस्स खदविणोदो भवति, परिश्रमविश्राम इत्यर्थः, शिष्यगुणाश्च दीपिताःप्रभाविता भविष्यति । 'पच्चतो उभयतोविनि गिहत्थाण य पव्वइयाण य, जारिसं तित्थकरो कहेति तारिस सिस्सोवि ॥३३३॥ कहेति, अहवा 'पच्चओ उभयतोविति न शिष्याचार्ययोः परस्परविरुद्धं वचनं, 'सीसायरियकमोति आचार्यादुपाश्रुत्य IC योग्यशिष्येण तदर्थान्याख्यानं कर्तव्यमिति ।। स्यान्मतिः-कहिं उ बेट्टो कहेति ?, उच्यते-- दीप अनुक्रम (339) Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [५८९/५८९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIG रायोवणीय० ॥ ५-६८॥५८९ ॥रायोवणीतसीहासणवेट्ठो वा कहयति, तदभावे तित्धकरपादपीठोषवेटो कहयाति । स्पा- आवश्यकतान्मतिः-किं सो कयाति ? उपरि तीर्थ ." दादारंगणधर चूर्णी का माता संग्यातीते०॥ ५-६९ ॥५९०॥ उवरि तित्यति दारं गतं । ताव तित्थगरस्स नियमणं भणितं ।। इवाणि गणहराणं भणि-* निष्क्रमण नियुक्ती यव्वं, जहितं सामाइयं कहिज्जिाहिति, भगवता अत्थो भणितो, गणहरेहिं गंधो कओ वाइओ य इति । तत्थ भगवतो समोसरणे निष्फन्ने एत्यंतरे देवजयजयसहसमिस्सदेवदुंदुहिसहायण्णणुप्फुल्ठणयणगगणावलोयणावलद्धसग्गवधूसमेतसुरवरेंदाणं जनवाटसम॥३३॥ भागतजणाण परितोप्तो संजातो-अहो जभिए। सुजट्ट २, विग्गहवंतो किल देवा एत्थ आगता इति । तत्थ य वेदवो रुत्विज है। उन्नयविसालकुलवंसा एक्कारस जच्चमाहणा जनवाडमि समागता । जहा को पढमेस्थ इंदभूती० ॥ ३३ ॥ ५९१ ॥ ते य किह पवइया इंदभृतिषमोक्खा', तमि जन्मवाडे आगता, तत्थ इमाओ || है गाहाओ घोसेयव्वाओ एक्कारसवि गणहरा०॥ ६-३ ॥५९२॥ पढमेत्य इंदभूती० ॥ ६.३ ॥५९३।। मंडिय० ॥ ६-४ ॥ ५९४ ॥ एक्कारसनिकम्बमणं ॥ ६-५॥ ५९५ ॥ ५९६-५९७ ।। जह एक्कारस निक्खंता, आणुपुच्ची परिवाटी कमो एगट्ठा, जहा य तित्थं ॥३३॥ दिसुहम्माओ पसूतै, जहा य निरवच्चा अवसेसा परिनिम्वुता, एयं सच भणीहामि । तत्थ ताच पढम इंदमृतिस्स भणामि-इदं भूति नामो पंचखंडियसयपरिवारो सम्पपहाणो मगहाविसए, सो य जन्मदिक्खितो मक्खितो य मज्झिमाय अच्छति ॥ इओ य | SARKA दीप अनुक्रम . .... अत्र गणधर-वक्तव्यता आरभ्यते (340) Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सुत्राक चूर्णी दीप ला उज्जाणे देवुज्जोय पासित्ता हरिसियमणो चितिऊण भासति तेसिं पुरओ- अहो मया मंतेहिं सुरा आया जे जमे समुवद्विता, एवं मणधर | वोत्तूणं खंडिगेहिं सह निग्गतो, उज्जाणे अपासमाणो उत्तरपुरथिमे दिसिभाए देवसंनिवायं पासति, भासति य- किमतंति ?, दाक्षा | अनेहिं से कहितं, जहा-एस सिद्धत्थरायपुत्तो महावीरबद्धमाणो तवं का केवली जाओ किल सवन्नू सब्वभावदारसी, तं वयणं ४ नियुक्ती पद सोऊणं भासति अमरिसिओ को अन्नो ममाहितो अब्भहितो जत्थ देवा एंति ?, ता एह वचामो जा णं पराजिणामि, किं सो जाणति , एतेण पणिहाणेण पहावितो पंचखंडितसयपरिवारो । तत्थ इमा ॥३३५॥ ___दळूण । ६-४ । ५९८॥ दण कीरमागीं । पच्छा हत्चादीए य अतिसए भगवतो पासितुं चिंतेति-अहो सुप्पउत्तो डंभो,31 बाणति दूरे गंतु चिट्टितो, ताहे णायएण जगसबबंधुणा आभट्ठो० प । ६-४ ॥५९९।। ताहे अच्छर से जातं, णाममपि मम जाणति, ताहे पुणोषि अप्पाणं आसासेति-को वा मम सबसत्थविसारदस्स णाम वा गोतं वा ण मुणतिी, एवं तेण अप्पा समासासितो, तस्स य संसतो किं मन्ने जीयो अस्थि पत्थि', ण पुण अहंमाणेण कंचि पुच्छति, काणि य ते वेदपदाणि जेसि सो सम्म अत्थं न जाणति?, पतेहि य कारणेहिं संसया-उभयोपचारात् १ अनुपलब्धेः२ विप्रतिपत्तिभ्यश्च ३, तत्थ उभयोपचारो यथा शरीरे च आरमोपचारः, यथा कंचित्पिपीलिकादिसत्वं दृष्ट्वा | * ॥३३५॥ प्रवीति लोका-यथेदं जीवन हिंसि, शरीरव्यतिरिक्ते च यथा कंचित् मृतं दृष्ट्वा लोको ब्रवीति गतःसजीकः यस्येदं शरीरामिति १,31 तथाऽनुपलन्धिाधा सतामसतो च, तत्र सतां मूलोदकपिसाचादीनां, असता शशविषाणादीनां २, विप्रतिपत्तिषाचार्याणां, एके | अनुक्रम (341) Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 गणधर दीक्षा पत दीप आहुः एतावानेव पुरुषो, यावानिद्रियगोचरः। भद्रे! वृकपदं पस्य, यद्वदैत्यबहुश्रुताः ॥ १।। पिच खाद च साधु सोभने, यदतीतं आवश्यक वरगात्रि! तम ते । नहि भीरु गतं निवर्तते, समुदयमात्रमिदं कडेवरम् ॥ २॥ अन्ये त्याहु:-'वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, पुणा नवानि गृहाति नरोऽपराणि | तथा शरीरान्यपरापराणि, जहाति गृहावि च पार्थ जीवः ॥ १॥ एतानि संशयानिमिचानि तस्स, ततो सो चिंतेति-जदि मज्झ एतं संशयं जाणेज्ज छिंदेज्ज वा तो मे बिम्हओ होज्जा, एवं चिंतेतो पुणो सामिणा भणितो गोक्मा! किं जीवो अस्थि उदाहु णस्थिति एस तुद्द संसयो, संसपकारणाणि य भणिताणि, केसिंविय वेदपदाणं सम्म अत्यो न ॥३३॥ गज्जातत्ति अत्यो समहो', हंता अस्थि, एवं गोयमा ! अस्थि जीवो, जो अहमिति पडिवज्जीत, उवओगलक्षणो, कत्ता य करणसहितो-काया अनो, मुत्तो, निच्चो, कत्ता तहेव भोत्ता य । तणुमेचो गुणवन्तो, उद्धगती वनितो जीवो ॥१॥ सुद्धपद वाच्यत्वात्, भोक्तृयोगोपयोगसंसारमोक्खसद्भावात्, एते हेतवो वाच्या, वेदपदाण य अत्थो भगवता से कहितो । एत्य संभंतो, Pसंबुद्धो य भणइ पंचखंडितसते-एस सम्वन्नू. अहं पव्वयामि तुम्भे जहिच्छियं करेह, ते भणंति-जदि तुन्भे एरिसगा होंतगा पच्चयह तो अम्हं का अना गतिति, एवं सो पंचसयपीरवारो पब्बतितो । एवं ६००-६०१॥ तं पब्वइतं सोउं०६-१९||६०२॥ उब्बिग्यो, तहेव समाभट्ठो, संसयो वागरितो। किं मन्ने अस्थि कम्म०।-२५॥६०४॥ वेयपयाण य अत्थो कहितो जाव छिनमि संसर्पमि ।६-२६ । ६०५पंचसयपरिवारो पबतितो । ततिओवि तहेव आगतो, वरि चितेति-बंदामि , जदि| तेऽवि पत्तियाबिया, एवं जाव पंचसतपरिवारो पव्वतितो, गवरं संसओ तज्जीवतस्सरीरिठान । एवं वियत्तोऽवि, संसतो पंच अनुक्रम ॥३३६॥ (342) Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE दीप आवश्यक भूता अस्थि णत्थि?, एवं संसावि, इमाओ चिंताओ, इमो र परिवारो-जीये १ कम्मे २ तज्जीव ३ भूत ४ जारिसतो इहलोए गणधराणां तारिसतो परलोगवि ५ बंधमोक्खे संसयो ६ देवा अस्थि णत्थि ७ एवं नेरतिया ८ पुनपावं अत्थि णत्थि ९ परलोगो अस्थि ण- क्षेत्रादि ..... उपादपाता स्थिी १०व्वाणं अस्थि नत्थि? ११। आइल्लाणं पंच पंच सता, मंडिय मोरियपुत्तार्ण अडुडुसता, सेसाणं चउण्हं तिथि नियुक्ती तिमि मया । अपियअयलभातीणं एगो गणो, मेयज्जपभासाणं एगो गणो, एवं णव गणा होति । । जदा य गणहरा सब्वे पब्बजिता ताहे किर एगनिसज्जाए एगारस अंगाणि चोइसाहि चोइस पुब्बाणि, एवं ता भगवता ॥३३७॥ 18|अत्थो कहितो, ताहे भगवंतो एगपासे मुक्त करेति, तं अक्षरेहि पदेहि जणाहं समं, पच्छा सामी जस्स जतिओ गणो तस्स वित्तियं अणुजाणति, आतीए सुहम्मं करेति, तस्स महल्लं आउयं, एतो तित्थं होहितित्ति । तत्थ सक्कादओ देवा सव्वदेवसप्रमोसरणं, सबढगावि देवा पणाम तत्थगया कुवंति, सयं सामी चुनाणि छुहति, जाहे य ते थालं करेंति ताहे अज्जमुहम्मस्स ४ निसिरंति गणं । एवं ता पव्वइता । इयाणि तेसिं गणहराणं उड्डाणपरियाणित इमाए गाथाए अणुगंतव्य सर्वद्रा खेत्ते काले जम्मे०। ६-६५।।६४२।। तस्थ पढम खतं, मगहा जणवए गोयमणामो (गोबरनामो) णाम गामो, तत्थ तिनि गोयमा जाता, कोल्लाए संनिवेसे वियत्तो सुहम्मो य, तमि चेव मगहाजणवते मोरियसंनिवेसे मंडिया मोरिया दो भायरो, अय-12 लो य कोसलाए, कोसला नाम अयोज्झा, मिहिलाए अपितो जातो, तुंगियसंनिवेसे मेयज्जो वच्छभूमित जातो, पभासो राय |॥३३७॥ दागिहे जातो । खत्तदारं गतं ।। कालत्ति दारं, गोयिमसामिस्स जेहाणक्खत्वं । अनुक्रम (343) Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राक जेडा कत्तिय साती० ॥६-६९॥६४६।। कालेत्ति दारं गतं । जम्मम्मि दारे को कातो पितामाताए जातो?--वि वसुभूती गणधराचा आवश्यक ट्रपिता, धणमित्तो विपत्स्स, मिल्लो सुधम्मस्स, धणदेवो मंडियपिया, मोरियस्स मोरितो चेव, अकॅपियस्स देखो, अबलमायसवाल वसू, मेयज्जस्स दत्तो, पभासस्स बलो। इमातो मातरो-तिण्डं पुहवि माता, वियचस्स वारुणी, महिला मुहम्मस्स, बीदेवी मंडियमोरियपुत्ताण, जयंती अकंपितस्स, नंदा अपलभायस्स, वरुणदेवा मेयज्जस्स, अतिभद्दा पभायस्स । जमंति वारं गतं । इयाणिं गोचत्ति दार॥३३॥ तिमि य गोयमगोत्ता भारदा अग्गियेस वासिठ्ठा । कासव गोयम हारिय कोडिनदुर्ग व गोत्ताई ॥६-७२॥१४॥ गोत्तन्ति गतं । अगारपरियायो|पमा छत्तालीसा पायाला हॉति पनपना य । तेवन्न पंचसट्टी अख्यालीसा प णपत्ता ॥६-७३||६५०॥ छत्तीसा सोलसर्ग अगारवासो भवे गणहराण । एउमस्थपपरियागं अहकर्म कित्तइस्सामि ॥६-७४||६५१ इयाणि छउमत्थपरियायो. . तीसा वारस दसग वारसया चत्त चोद्दस दुगं च। णवर्ग वारस दस अट्टगं च छउमत्थपरियायो।-७५/यमासंबं ॥३३८।। छउमत्थप्परीयाग अगारवासं च वोसिरित्ताण । सब्वाउयस्स सेसं जिणपरिपागं विपाणाहि ॥६॥७॥५३॥ पारस सोलस अट्ठारसेव अट्ठारसेव अद्वेव । सोलस सोलस एगवीस चोद सोल सोले य॥६-७७॥६५४ दीप अनुक्रम (344) Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEISE दीप गणघर इयाणि सव्वाउयं मादि आवश्यक वाणउती चउसत्तरि सत्तरि तती भये असीती य । एगं च सयं तत्तो तेसीती पंचणउती य ।।६-७८।१५५|| कालद्वार अवतरि च पासा तत्तो यावत्तरं च वासाई । वावट्ठी चत्ता खलु सब्वगणहराउयं पयं ।।६-७९।।१५६|| उपादान नियता इयाणिं आगमेत्ति दारं, सो आगमो दुविहो-लोइतो लोउत्तरिओ य, लोइतो चोइस विज्जाठाणाणि, अंगानि चतुरो वेदा, मीमांसा न्यायविस्तरः । धर्मशासं पुराण च, विद्या बेताश्चतुर्दश ॥ १॥ तत्रांगानि पद् तद्यथा-सिक्षा कल्पो व्याकरणं ॥३३९॥18| छंदो निरुतं ज्योतिष चेति, लोउत्तरो दुवालस अंगा चोद्दस पुग्वाणि । ते य सव्वे य माहणा जच्चा०।६-८०॥६५७।। एस दुविहोवि आगमो तेर्सि । इयाणि परिनेब्वाणं सामिस्स जीवंते वणव कालगता, जो य कालं करेति सो सुधम्मसामिस्स गणं देति, इंदभूती सुधम्मो य सामिमि परिनिव्वुए परिनिवृता । को केण तवेण परिनिबुतो - मासं पातोषगता ।६-८२।।६५९|| सव्वातो आमोसहिमादियाओ लद्धीओ, संघपणं संठाणं च सव्वेसिं च पढम चसह-12 महतमिति । एवं सामिस्स भासगस्स गाहगाण गणाराणं निग्गमो भणितो । निग्गमेत्ति वारं गतं । इयाणि तं कतरंमि खेचे * ॥३३९॥ निग्गयंति खत्तदारं पत्तं, तं ताव अच्छतु, कालदारं भणामि बहुवत्तच्चतिकाउं, पच्छा खेचादीणि संपद्धाणि । अन्ने भणति-15 जेण काले बर्द्ध सम्वं, अथवा अमोनाणुगता दोऽवि भावा, अहवा कालो व पुष्वं, जेण कालाणुयोगो पुच्वं पच्छा दवाणुयोगो। SENARESSEXRESS अनुक्रम (345) Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५९२-६५९/५९२-६५९], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सूत्रांक ॥३४०|| * दीप श्री अग्ने भणंति-आगासत्थिकातो दब, कालो गुणः, योगच पूर्व, तेण काल एव भवे य पूर्व, अहवा-कत्थइ देसग्रहणं कत्थति I द्रव्य आवश्यक भन्नति निरवसेसाई । उक्कमकमजुत्ताई कारणवसतो निरुताई ॥ १॥ अने भति-खेत्ता कालो अंतरंग इति दरिसणथं काल- 16 कालादि पाहार ताव बनिजति, कालंतरंगदरिसणहेतुं विवज्जओनि ओवाणाओ अंतरंगतं, पुण कालो दध्वस्स चेव पज्जाओ, खर्च पुण उपोद्घात HAMARIS आहारमेत्तमिति । सो य कालो एकारसविहो, णामकालो ठवणकालो दोऽपि गता, सेसो दब्बे अद्भ०६-८३॥६६०॥ दब्बकालो अद्धाकालो आहाउयकालो उबकमकालो देसकालकालो कालकालो पमाणकालो बन्नकालो भावकालो, तन्थ दब्बकालो नाम जो जस्स जीवदयस्स अजीपदव्यस्स वा संचिट्ठणाकालो सो दचकाला, जहा'नेरतिए णं भंते ! नेरहए'चि, सचिट्ठणा, अजीवाणं धम्मन्थिकायादीणं सम्बद्धा, परमाणुमादीणं च जा जस्स सचिट्ठणा, एस दवकालो, जेमि वा काले दवं वर्ण्यते, अह नेरइए य ४, गतिरागतिं पञ्च सादिया सपज्जवसिया, सिद्धा संसारविगमं (पडच्च) सादिया अपज्जवसिता, भपिया संसार पट्टच्च अणादीया सपज्जवसिया, अभवसिद्धिया संसार पहच्च अणादीया अपज्जवसिया, अचेयणस्स अत्थस्स चउम्बिहा ठिती इमा-पोग्गलपरमाणुत्तमादि पडुच्च सादीया सपज्जयसिया १ अणागतद्धा सादीया अपज्ज1 वसिया २ अणागतद्धा णाम बट्टमाणसमयं पडुच्च जे एस्सा समया, तीतद्धा अणाइया सपज्जयसिआ ३, अतीतद्धा नाम बट्टमाण समयं पहुच जे अतीता समया, तिनि काया दबट्ठपदेसट्टयं पड़च्च अणादीया अपज्जवसिया ४. तिथि काया नाम धम्मस्थिकायो | अधम्मस्थिकायो आगासस्थिकायो. अहया दक्तिं तु ते चेव, उक्तंच- 'समयानि वा आवलियाति वा जीवाति या अजीवाति य का॥३४०॥ अनुक्रम 'काल'स्य एक्कारस-भेदानां वर्णनं (346) Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६६४/६६४], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्राका पच्चंति' अथवा 'कालवेत्येके (तचा०५-३८) एस दब्बकालो । अद्धाकाले अणेगविहे, से गं समययाए, आवलियद्धयाए जाच । आवश्यक चूणौँ " T ओसप्पिणिअद्धयाए, जुग पंचसंबच्छर जाप परिवट्टा भाणियच्चा ।। अहाउकालो नाम कारादि उपोद्घात | नेरहय०॥६-८७ ॥ ६६४ ॥ नेरतिय जाब देवाणं आहाउयं जं जेण निव्वत्तियमन्त्रभवे सेन पालेमाणे सो भवति अहाउ-18 नियुक्ती काले । उबक्कमकालो दुविहो- सामायारी उवक्कमकालो आउउवक्कमकालो य, उवक्कमकालो नाम अपत्तावत्थापावणपरथावो, तत्थ जो सो सामायारीउवक्कमकालो सो तिविहो, तंजहा- ओहसामायारी पदविभागसामायारी दसविहसामायारी । तत्व ओह॥३४१|| | सामायारी ओहनिज्जुत्ती पदविभागसामायारी कप्पववहारा, ओहसामायारी णवमस्स पुवस्स ततियाओ आयारवत्थूतो वीस-18 सातिम पाहुई, तत्थ ओहपयपाहुडं, ताओ निज्जूढा उबकामिता । कप्पव्यवहारा णवमाओं पुवाओ ततियाओ आयारवत्युओ वीसइमं पाहुढं तओ, दसविहसामायारी उत्तरज्झयणहितो नीणिता, तत्थ कप्पयवहारा सट्ठाणे भन्निहिति । ओहसामायारी पुण ६ भन्नति, तं चनेउकामो णिज्जूहगो णिज्जूहित पवत्तो मंगलत्थ अरहंतादीण णमोकार करति- ।। अरहते वंदित्ता॥ओघानयुक्तिः ॥ एत्थंतो ओहनिज्जुत्तिचुन्नी भाणियब्वा जाव सम्मना । एतं ओहनिज्जुत्तीए ठाणं, | एत्यंतरे वक्खाणिज्जतित्ति, एवं ओहसामायारी गता । इयाणि दसविहसामायारी, सा इमाए गाहाए अणुगतब्वा, तंजहाइच्छा मिच्छा तहकारो आवसिया य निसीहिया । आपुच्छणा य पडिपुच्छा छंदणा य निमंतणा ॥७॥१॥६६६115 | ॥३४॥ उवसंपया य काले सामायारी भवे दसविहाओ । एतेर्सि तु पयाण पत्तेय परूवणं वोच्छं ॥ ७ ॥२॥ ६६७ ।। दीप अनुक्रम 555 अत्र ईच्छाकार-आदि सामाचारी वर्णयते (347) Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोमात निर्युकी ||३४२ ॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं - /गाथा ), निर्युक्तिः [ ६६६-६९३/६६६ - ६९३] यं (११९...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - एत्थ कारसहो पयोगाभिघाती ददुव्वो, सो य सव्वदारेसु संचज्झति, इच्छाहणे य इच्छकारगहणं, सट्टाणे इच्छकारपयोगो, दसविश्व सामायारीए पढमभेोचे वृत्तं भवति, एवं मिच्छादुक्कडपयोगो, तहात पयोगो जाव उपसंपदाकारपदोगो विमासियन्वो । तत्थ इच्छाकारपतोगो गाम जं इच्छया करणं, न पुण बलाभियोगादिणा, इच्चेयस्स अत्थस्स संपचयत्थं इच्छाकारस पति । एसो य कंमि विसए केण काययोत्ति १, भन्नइ-जति अग्भत्थेज्ज्ञ परं कारणजाते, ता अग्भत्थंतपूर्ण इच्छवकारपयोगो कायव्वी, अहवा अणन्मत्थिओऽवि कोई कारणजाते करेज्ज तत्थवि तेण करेंतेण इच्छक्कारपओगो कायव्वो, तस्स अणम्भस्थितकरेंतगा पविरलाच कोइग्गहणं, आह- किमिति इच्छाकारपयोगो कीरति १, उच्यते बलाभियोगकरणं मा भूदिति, जतो ण कप्पति बलाभितोगो तु, तुसद्दा कत्यति कप्पतिवि, एतीए गाहाए अवयवत्थो भन्नति-जदित्ति अन्वगमे, जं अब्भत्थणाए अन्धुवगमं करेति आयरितो तं दरिसेति, जथा साधूर्ण अभत्थे ण वट्टति परो उ, किमिति ?, अणिगृहितबलविरिएण ताव होयच्वंति, बलं सामत्थं विरियं तु उच्छाहो । आह जदि साधणं परो अन्भत्थेउं ण वट्टति तो किं अवगमं करेति ? भन्नवि- जति अन्भत्थेज्ज परं कारणजाते, पण अन्ना, कारणजातं दंसेति-जदि तस्स सो अपलो - असमत्थो ण याणती वा जनं वा करेति, गिलाणादीहि वा वावडो होज्जा, ताहे तत्थ रातिणियं वज्जेता इच्छकारं करेति सेसाणं, ते य किह भणति ?, एतं ता मम कर्ज इच्छाकारेण करेहि, तुम कारेतुपि न वद्धति साधू, इच्छा मे जदि अस्थिति भणितं होति, 'करेज्ज वा से कोतिति तत्थ अहवा विधिणा से तं तं सर्व करेंत अनं वा अन्भत्येंतं पासिता अनो निज्जरट्ठी भणेज्ज- अहं तु एवं इच्छकारेण करेमि तत्थषि जस्स किज्जिहिति सो भणति करेद्दि इच्छाकारेण णणु किमिति सोवि इच्छक्कारं करेति ?, मनति- मज्जादामूलियं, साधूर्ण (348) इच्छाकारादि सामाचार्यः ॥ ३४२॥ Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत HEIGA नियुक्ती एस मज्जादामले, अहवा एवहिं कारणेहिं परं अम्भत्थेज्ज- सयं करेति कोवि किंचि लेवणादि, अचस्स वा करेंत दळण तथापि आवश्यक मणेज्ज-पच्छकारण ममवि एतं पकियओ करेहि लेवादि संसहकप्पण, तत्थवि तेण माणियब- करेमि इच्छाकारेण, अहं संणाडो चूौँ ट्रागिलाणादीण व कज्जे पावडो तो तं कारणं दीवेति, एतेण ण करेमि, इतरहा नियमा काय साधूण अण्णण, अणुग्गहोति, IX उपादपान एवं ता अर्थ आणवोति । जति अन्भरथज्ज परोसे साधं तहेव नेयवं। अप्पणा परेण बा| अहवाएतेण जदि अन्मत्येज्ज पर किंचि सामाचाये। करेमि वेयावच्चं कज्जहेतु वा गाणादाणं निज्जराहेर्ड वा, तत्थवि से कोइ अणुग्गहं करेज्जा, काति णवि समत्थो जाए स विभ॥३४॥ दवणा, तत्थवि तेसि दोहवि भवे इच्छकारपयोगे, जत्थवि राइणियं वा ओम वा सुत्तत्थाणि पुच्छति तत्थवि इच्छा कायव्वा, उव हिमादीण वा निमंतणे इति । सीसो आह- भगवं! किमिति सम्बत्थ इच्छक्कारपयोगो सतिणियादीणंपि, आयरितो मणति| वच्छ ! जेण आणावलामिपोगो निम्गंथाणं सेहेऽविण वद्दति, किमंग पुण राइणिए, तम्हा-इच्छा पउंजियच्चा सेहे राइणिए तहा । किं समरथ आणाचलाभियोगेण वति', उच्यते-जो पूण खग्गूडो तमि आणावि बलाभिओगोवि कीरति, संमिवि पढ़म इच्छा पउञ्जति जदि करेति सुंदर, अहण करति ताहे बलामोडीए कारिज्जति, तारिसा ण संवासेयब्बा, अह ते भाया भागणेज्जादी वाण तरंति परिच्चतितुं ताहे आणावलिभितोगावि कीरति ॥ जह जवाहलाणं०।७१शॉ६१०॥ जहा जदा किर जच्चबाहलो आसकिसोरो दमिज्जातीत ताहे बेयालियं अभिवा- | सिऊण पहाए अग्घेत्तुण वाहियालि नीतो, खलिणं से ढोइत, सयमेव तेण गहित, विणियत्ति राया सयमेवारूढो, सो हितइच्छित ति ॥३४॥ | बूढो, रथा आहारलपणादीहिं सम्म पडियरितो, पतिदिहं च विणीयतणओ एवं वहति, ण तस्स बलाभियोगो पवत्तति । अवरोx दीप ANSWER अनुक्रम (349) Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत स सत्राक दीप पुण मगहादिजणवदजातो आसो, सोवि तहेवाभिवासितो किर मातं पुच्छति-किं एतं कज्जति , सा भणति-तुम पुत्त ! अम- इच्छाआवश्यक |गलपडिघातो कीरति, कल्लं वाहिज्जिाहसि, तो तुज्झ कल्लं जवा य खलिणं य पणामिज्जिहिति, ता खलिणं लएज्जाहि, चिलग्गेला कारादि य तस्स मणीसित बहेज्जासि, पदे पदे पदसतं करेज्जासि, एवं होउत्ति पडिस्सुतं, वितियदिवसे कयकोउओ सतमेव खलिणं | सामाचारी जागेण्हति, राया सहरिसो सयमेव विलग्गो, जहा मणितं तहा वृढे, पच्छा राया सयमेव वीसामेतुमारद्धो, तो अणेगा परिसा णिव-18| तिता, तेहिं उब्वलितो हवितो य, सम्बप्पहाणो य से आहारो दिनो, पच्छा णाणालंकारविभूसितो मायाए मूलं गतो, तुडो ॥३४॥ पुणरवि चितियदिवसे णिसि मातं पुच्छति, सा भणति-अज्ज वामं वामेण बहसुचि, एवं करेमि, कल्लं तहेव कतो, ता सोणेच्छति खलिण वा किंचि कातुं, ताहे णिसट्ठापहते बला कचितं दाऊण वाहितो, पुणो जवसं णिरुद्धं, ताहे सो छहातितो मातं भणतिअज्ज ते मारावितो, सा भणति--दोऽवि ते मग्गा दिहा, जेण रुष्वति तेण बच्चसु, ततियदिवसे मणीसितं बूढो, पुणो है | सक्कारितो । एवमिहावि पुरिसज्जाए॥७-१४१६१९ ॥ विपत्नी अविणीयस्स, संपची विणयस्स उ । किं च एगस्स साधुस्स लद्धी अत्थि, ण करेति बालचुलाण, आयरिएहिं पडिचोदिता-कीस अज्जो ! ण करेसि ?, भणति-ण कोति ममं अब्भत्थेति, ताहे आयरितो भणति-तुम अम्भस्थणं मग्गंतो चुक्किहिसि लामग, जहा सो मरुतो णाणमएण मत्तो, कतियपुण्णिमाए लोगो दाणं देवि, राया य, ॥३४था अमेघेज्जाद्या गंत गंत आणेति एगो नेच्छति, भजात भणितो- जाहि, सो भणति-एग ताप श द्राणां प्रतिग्रहं गृहामि, द्वितीयं । तेषां गृहं गच्छामि ।, यस्यासप्तमस्य कुलस्य कार्य सो मम आनयित्वा प्रयच्छतु, एवं सो जावज्जीवाए दरिदो जातो, एवं अनुक्रम 6464645464 (350) Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोषात नियुक्ती ॥३४५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 तुमपि अन्मत्थणं मरतो चुकिहिसि, एतेसिं पुण बालगिलाणाणं असे अस्थि करेंतगा, तुज्झवि एसा लद्धी एवं चैव विराहिति जहा तस्स मरुयस्स । एवं भणितो पडिभणति एवं सुंदरं जाणता अप्पणा कीस ण करेह ?, आयरिया भणति अज्जो ! सरिसो तुमं तस्स वाणरगस्स, जहा एगो वाणरगो रुक्खे अच्छति सीतवातेण झडिज्जतो, ताहे सुहरीए सउणिवाए भणितो- चाणरगा ! वाणरगा! शिरत्थयं बहसि बाहुदंडाई। जो पायवस्स सिहरे ण करेसि कुर्डि पडालिं वा ॥ १॥ केती अनंपि भर्गति- वासेण शडिज्जतं १. रुक्खग्गे वाणरं थरथरंतं । सुघराणाम सउणिया, भणति तयाणि वसंती ॥ १ ॥ छेत्तृण मे तणाई आऊणं च रुक्खसिहरम्मि । बसही कया नियाता तत्थ वसामि निरुव्विग्गा || २ || एत्थ हसामि रमामि य वासारते य गविय ओल्लामि । अंदोलमाणि वाणर! वसंतमासं विलंबेमि || ३ || हत्था तब माणुसगस्स जारिसा हृिदयए य विन्नाणं । हत्था विभाणं जीवितं च मोहष्फलं तुझं ||४|| बिसहसि धारप्पहरे ण य इच्छसि वसहिमप्पणो काउं । वाणर ! तुमे असुहिते अम्हेवि धिति ण विंदामो ॥ ५ ॥ सो तीए एवं बुत्ते तुण्डिको अच्छति, ताहे दोच्चंपि भणति, सो रुट्ठो रुक्खं दुरुहितुमाढतो, सा णट्टा, तेण तीसे य तं घरं सुंबं २ विक्खिं । अने भणति जह पढमं तह चितियं तह ततियं तह चउत्थयं भणितं । पंचमियं रोसवितो संदट्ठो वाणरो पावो ॥ १ ॥ कुद्धो संदट्ठोट्टो लंकाडाहे व जहय हणुमंतो । रोसेण धमधमेंतो उम्फिडितो तं गतो सालं ॥ २ ॥ आकंपितमि तो पादवीम फिरिडिति णिग्गता सुधरा । अमि दुमंमि ठिता शडिज्जते सीतवातेणं ॥ ३ ॥ इतरोवि य तं नेई बेत्तृणं पादवस्स सिहराओ । कूलं एकेक्कं अंछिऊण तो उज्झती कुवितो || ४ || भूमिगतंमि तो नियमि अह भणति वाणरो पावो । सुघरे अणुहितहिदए ! सुण ताब जहा अविरियासि ॥ ५ ॥ विसि ममं मयिहरिया, णेवसि मम सेङ्किया व णिद्धा वा । सुधरे ! अच्छसु विषरा, जा वहास (351) इच्छाका रादिसामा चारी ॥३४५॥ Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥३४६।। 196+96656 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [ ११९...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 लोगतची ॥ ६ ॥ भणति य इदाणिं सुहं अच्छ, एवं तुमपि मम चैव उवरिएण जातो किंच-मम अमेपि णिज्जरादारं अस्थि, ू तेण मम वङ्गतरिया णिज्जरा, तं लाभं चुक्कीहामि, जधा सो वाणियतो, दो वाणियगा वनहरति, एगो पढमपाउसे मा मोह दायव्वं होहितित्ति सयमेव आसाढपुनिमाए घरं पत्थतितो, बीएण अमेर्सि अड् वा पाद या छातिं सतं ववहरति, तेण तदिवस बिगुणो तिगुणो लाभो लद्धो, इतरो फिटो, एवं चैव अज्जो ! जाद अध्पणा एतं वेयावच्चं करेभि तो सुत्तस्थादीणि गच्छे अदेतो चुक्कीहामि, तेहिं डेहिं मम गच्छसारक्खणाए बहुतरिया निज्जरा परिथ, एत्थ 'सुचत्थेसु अर्चितण०' गाडा वनेयच्या (आवश्यकहारिभद्रयवृत्तिः पत्र २६३) इच्छत्ति पदं गतं । इयाणि मिच्छा, मिच्छति मिच्छादुक्कडपयोगो, मिच्छादुक्कडपतोगो नाम जं कह वि पावकम् आसेविते अकरणीतमेर्यति अभिष्याएण अपुणकरणताए अच्छुट्टियं मिच्छादुक्कडंति पर्जति, मिच्छति वा वितर्हति वा असध्यति वा असडियंति वा अकरणीयंति वा एगट्टा, दुक्कति वा सावज्जमट्टितंति वा पावकम्ममासेविर्तति वा वितमाइति वा एगट्ठा, एसो य जत्थ जेण जहा कायब्बो तं भवति- "संजमजीए अणि०१७-२० ।। ६८२ ।। संजमजोगे जंकिंचि वितमायरिति एत्थ संजमजोगो नाम सावज्जजोगपरिभावावारो, संजमोन्ति वा सामाइयेति वा एगडा, वितहमायरियं नाम पडिसिद्धकरणादि आसेवितं, तत्थ अन्भुट्टितेगति- अपुणकरणादि अभ्रुववट्टितो अब्भुट्टितो, तेण 'मिच्छा एतंति नियाऊणंति मिच्छा अकरणिज्जं एवं जं किंचि संजमजोगे वितहमागरितं इति एवं विपाणिऊण- वितहं जाणिऊण, परिभाय इत्यर्थः एवं मिच्छत्ति कार्यव्वं, मिच्छति मिच्छादुकडपतोगो, अहवा सामश्रेण जहा मिच्छादुकटपयोगो कायन्वो तं भन्नति एताए गाहाए, तं०-संजमजोगे पृथ्वभणिते अम्भुवेच्च ठितेणं जं वितहमाय (352) इच्छाकारादिसामा चारी ॥३७६ ॥ Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री HET चूणों उपोद्यात दीप रियं मिच्छा पत विवाणिऊण इति-एवं मिच्छाति कायच्या इति । एत्थ सीसो आह-भगवं! जदि संजमजोगे जे वितहमाति . रादिसामाआवश्यक तत्थ मिच्छत्ति सामायारी पउंजति तो अम्हे पुणा पुणो वितहमायरिऊण मिच्छति करेमो तो पडिकंतं भविस्सति, मिच्छकारोIPI al.चारी ४ परिजितो, एवं च सोग्गती अदुलमा इति, आयरितो भणति-बच्छ! यदि य०।७-२१॥ ६८३ ॥ जदि णाम पावकम्ममासेविऊण अवस्स मिच्छादुकडपयोगण पडिकम्मियचं तो वर त चेय ण काय । स्यान्मतिः-एवं पुण मिच्छादुक्कडवत्तिया गुणा ण भवतित्ति, भन्नति -जदि तं चेवण करेति तो होति पए ॥३४॥ पडिकतो, परति पढम सुतरामित्यर्थः । यस्तु मिच्छाकारो परिजितो सो पत्तकालो इच्छिज्जइति, जो य ते अभिपातो जहा | ताकिर वितह आयरिऊण मिच्छचि सामारि करेमा तो मुच्चहामो, एत्थ भन्नति---- जं दुकडंति०७-२२॥ ६८४ ॥ कारणं पहुच्च दुक्कडंति मिच्छत्ति मिल्छदुकडं पउंजइ त कारणं भुज्जो अपरेंतो-- 8. असेवंतो विविहेण पटिक्कतो, पुष्यासेवितं पहुच जो एवं मिच्छत्ति करेति तस्स खलु दुकड मिच्छत्ति, सो मिच्छादुकडसामाया-13 रीए परतिति भणित होति । पुणो आह सीसा-मुठ्ठ एतं तं चेव ण कायन, ता होइ पए पडिक्कतो इन्चादि, किं तु अम्हे एवं न चएमो तो दोभव करेमो को दोसो ?, भन्नति13 जं दुकहंति०। ७-२३ । ६८५ ॥ जं पडच्च मिच्छदुकडं उप्पनं तं चेव निसेवती पुणो पावं तत्थ पच्चक्खमुसावादो ॥२॥ मायानियडीपसंगो य पुणो पुणो करंतस्स । इयाणिं तहत्तिपओगो-तहीच पोगो नाम जं एवमेतं अपितहमेतं जहे तुम्भे व- अनुक्रम (353) Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दशधा प्रत सत्राका दीप 181 दहश्चेतस्स अत्यस्स संपञ्चयत्वं सविसए तहचि सई पउंजति, सो य सविसयो इमोआवश्यक कप्पाकप्पे०७-२६ ॥ ६८८ ।। कप्पो-विहि अकप्पो-अविहि पाडसेहो वितहमापरणा इति, अहवा कप्पो जिणधेरादीयाणं सामा चारा अक्कप्पो विवरीतं, तमि जाणियब्वयं पडच्च निहुँ गतो परिनिहितो, पंच ठाणा महब्बयाणि पंच, संजमेण तवेण य अडओ संजमउपाघात नियुक्ती तबडएत्ति वा आउत्तेति या अविधिपरिहारित्ति वा एगट्ठा, तुसदा एसोवि जदि उबउत्तो अप्पणा य अवधारित तो तस्स अविकप्पेण तहकारी काययो, अबस्स पुण विभासाए ।। अह तस्स कत्थ कायव्यो', भवति--- ॥३४८॥ बायणपहिसुणणाए।७-२७१६८९ ॥ वायणा सुत्सप्पयाणं तीए पडिसुणणाए, जहा आयरितो सुत्र देंतो भणति एवं त पढिज्जति, तो तमि पडिसुते तहत्ति काऊण तहा पडिच्छति, एवं उबदेसे पडिमुणणाएवि, उबदेसो जहा 'जय चरे जयं चिद्वे'चादि, तहा 'सुत्तअत्थकहणाए ' मुत्तकहणा जहा अबहा मुत्तं कुतो भन्नति-एवं एत, ण एवं इच्चादि, अस्थकहणाए अस्थि कहिज्जतेअत्याहिगारस्समत्तीए पडिमुणिऊण तहकारो कायब्यो, किमितिी, अवितहमेतं जहेवं तुम्मे बदहनिकटटु तहक्कारी, तहा 'पडिसुगणाए ति पडिसुणणाए जहा जं सो कारवेति, जहा असुर्य करेहि, तं पडिमुणिऊण तहत्तिकाऊण तहेच कीरइत्ति । अमे पूण किल एस इच्छाति सामायारीए विसओ इति, वायणपडिसुणणाएनि अभिनं पदं, उवरिलं पडिसुणणाए पदं उबदेसे सुत्तअत्थक-15 ॥३४८॥ हणाए एतेहि सम संबंधेति, तहासदं तु एतंसदेण सह, तेय तहमेतति भवति, ततः कोऽर्थः --बायणपडिमुणगाए उबदेसे पडिसुणणाए मुत्तकहणे पडिसुणणाए एवं अत्थे, एतेसु अवितहमेत सर्व तहमेतं तुम्मे बदहतिकटु तहकारो कायम्वोति। अने भणति अनुक्रम (354) Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री - आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥ ३४९ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [ ११९...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पडिसुणणापत्ति प्रतिपृच्छो तरकालं आयरिए कथयति सति पडिसुगणाए, केती पुण विभासंति-तहक्कारो णाम वायणादिसु जं जहा तस्स भणणं तस्स तहा करणंति तहकारसामायारीति । एसा य दसविहचकवालसामायारी सङ्काणप्पजोनतो सुपरिजिता कातव्वा । जे य गुणा एते काकूए दरिसेति जस य इच्छाकारो० /७-२८ ।। ६९० ।। चसद्दा सेससामायारी गहणं, एत्थ सोग्गती णाणदंसणचरणाणं भन्नति, अहवा सोग्गती सुदेवचादिका, एत्थ सीसो आह-गणु उवरि मंनिही 'साधू खवेंति कम्मं अणेगभवसंचित' मिती, तो किं तेण सोग्गती ण भवति १, उच्यते, जाव सव्वकम्मक्खयो ण भवति ताव सुदेवत्तादिगं सुगतिं गंमतित्ति दरिसिज्जति, स्याद् बुद्धि:- किं पुण एवं सुगती कम्मक्खयो वा इति १, उच्यते-जेण इच्छत्तिसामायारीए अज्झायणापरिहरणादि मिच्छसि दुकडगरहणादि तहति | सुकतानुमोदणादि इति विभासियब्वं । पुणो आह-एतं वरं उवरि भणितं होतं, सव्वं दसविहसामायारिं वभिऊण इति, उच्यते, एवं वा भन्नति, एवं वा' इति अणियतो एस वबहारोति ज्ञापितं, अहवा सिद्धतसेलीए कहिंचि अन्नत्थवि भन्नति, तेण इहवि भणितं तत्थ दव्वंति । अत्रे पुण इमं गाथासुतं वीरं 'एवं सामायारिं जुजंगा' एतीए गाथाए पुब्वं भणेति, केती पुण चसरेण सेससामायारीगहणं ण मणति, तिन्हं चैव पुब्बिलीणं महत्यतरियातोत्तिकाउं इति ।। इयाणिं आवसिया निसीहिया च भजति, एत्थ ताव सीसो आह आवसिय च० । ७- २९||६९१ ।। एवं च मणिए आयरियो एतस्स चैवाभिध्यायमुपलक्खितुं अनूज्ज दंसेति, तब किलाय (355) दशधा सामाचारी ॥३४९ ॥ Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [६६६-६९३/६६६-६९३], भाष्यं [११९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री दशधा प्रत मर चूर्णी सत्राका नियुक्ती | मभिप्राया, जहा आवसियं च गाथा, अत्यो पुण होति सो वत्ति जो किर अत्थो निसीहियाए साध्यो सो आवस्सियाएपि आवश्यक सिमति, जो वा आवस्सियाए साध्यो सो निसीहियाएवि, तो किमुभयोग्रहणं , न पुण अवतरीए एगाए चेवेति, तथाहि-अति- उपोद्यात तेहिं निसीहिया कीरति जहा पावकम्मनिसहकिरिया मम इमा किरिया इति संपच्चयत्थं, एस तु आवस्सियाएवि सिज्मति, जतो पावकम्मनिसहकिरियावि आवस्सग, आवस्सिया नाम अवस्सकायव्वजोगकिरिया इति, पावकम्मनिसहकिरियत्ति वा अवस्सकम्म तिवा अवस्सकिरियत्ति या एगढ्ढा, एवं इतरत्थवि भाषेतव्वमिति, एत्थ आयरितो भणति-जदि एवं तो अनाओवि एत्य संपतन्ति, ॥३५०॥ तत्थ किमिति न भवति', अह तत्थवि, एवं च ववहारो ण हाति, तम्हा कहचिदभेदेवि किंचि विसेस पहुच्च भेदपरूवणा ण कज्ज तित्ति त्याज्यं, सीसो आह-जति एवं तो साहह को विसेसो ?, उच्यते-णितस्स तहा आवस्सियापयोगे अयमर्थः-अवस्सकायव्वकरणपबत्तस्स णिग्गमीकरिया इमा इतियावत् , अतितस्स तहा निसीहियापयोगे पुण पडिसिद्धनिसेवणनियत्तस्स अतिसमणकिरिया | इमा इतियावत् , अनयोश्च महान्विशेष इति । एस एव अत्थो विससिततरो विसयविभागनिरूवणेण निज्जुत्तीए निर्दसिज्जति || तत्थ सीसो आह-किं जहा तहा गच्छतो आवस्सियाकरणं सामायारी ण भवति', उच्यते-सोम्म ! जहा तहा गमणपि ताव ण वति, जतो अगच्छतो इमे गुणा ४ एगग्गस्स०७-३१।।६९॥ जहा जदा किर साधू पडिस्सए अच्छति तदा एगग्गो पसंतो, एवं च तस्स इरियादीया दोसा HTण भवति, दुविहा य विराहणा--आयविराहणा पढणादिणा संजमविराहणा विक्खेवादिणा, स्वाध्यायध्यानादयत्र गुणा भवन्ति, दीप अनुक्रम ॥३५०॥ (356) Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [६९४-७२३/६९४-७२३], भाष्यं [१२०-१२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दशधा सामाचारी सत्राक दीप जदि एवं मा चेव गम्मउ, मनति, गंतवमवस्सकारणमि, कातियउच्चारमनपाणगुरुनियोगादिविहाणमि, ताहे तत्थ आवस्सिया- आवश्यक | हिं वित्तिआत करेति, जदि पुण एतेमुवि पत्तेसु अवस्सगंतब्बएसु ण णीति तो ते गुणा न भवन्ति, हॉता दोसा भति, अ य बहुदोसा इति ॥ किंचउपोद्यान नियतीला आवस्सियाओ०७-३२॥६९४ा कारणेवि अवस्स गच्छतो जदि आवस्सतेहिं सब्बेहिं जुत्तजोगी अच्छति, आवस्सगाणि इरियादिभणिताणि, तेहिं जुत्तजोगी, तहा मणवयणकायइंदियगुत्तो, तो तस्स आवस्सियाओ-आवस्सियाकरणं आवस्सिया होतित्ति, ॥३५॥ ४ाइमा सामायारी भवतीत्यर्थः । कत्थ पुण अतितो निसीहित कुणति ?, 'सज्ज ठाणं च जहिं चेएति' सेज्जा-सयणीयं ठाणं-अच्छि यच्च, चसहा अबपि तहाविह, जत्थ चेतीत करेति, किमिति तत्थ निसीहिये करेइ, जम्हा तत्थ निषेधवानिषिद्धः नियत्तो तेणं | तु निसीहिया होति, निसीहियं करेति । पाठतरं वा सेज्जं ठाणं च जहा(पा) एति तदा निसिहिया होति । जम्हा तदा निसेहो निसहमतिया य सा जेणं ॥ ७ ॥ ३४ ॥ ६९५ ॥ इति । किंच- आवास्सियं च तो जं च अतितो निसीहियं कुणति । इत्थं इम पयोयणं- जन सो णितो संन निवेदेति, जहाऽहं का सेज्जानिसीहियाए अभिमुहोत्ति मम वडमाणि बढेज्जाह, गुरुनिवेदणं च विणयप्पयोगो य एवमादि, सेज्जानिसीहिया नाम वसहिनिसेहकिरिया, तीए अमिमुहोति, अवस्स गमणाभिमुहोऽहमिति ज भणित, तहा अतितोऽवि सम्मं निवेदेति, जहाई अनुक्रम SSC |॥३५॥ अथ दशधा सामाचारी वर्णयते (357) Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [६९४-७२३/६९४-७२३], भाष्यं [१२०-१२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत आवश्यक HEIC उपाघात XACHES RESSEX नियुक्ता ॥३५॥ दीप | निसीहियाए पावनियत्तीए तुम्भ अभिमुहो, तुम्मे मा सागारिकादिभया वित्तसेज्जा, हत्थपाद वा गाउंदरावेज्जा इच्चादि ।। भादशधा तहा तत्ववि--- लसामाचारी जो होति निसिद्धप्पा०1७-३५ ।। १२१ भाष्यं ॥ कंठा । एवं च परूवित मा सीसस्स अच्चतभेदबुद्धीए परिणमिस्सति | जहा किर आवस्सिगनिसीहियाणं सामिविसयसरूवअभिघाणपयोयणमादीणि मित्राणि तो एगाहिगरत्तमवि णस्थि, तहा जो | आवस्सगजुत्तजोगी सो अन्नो चेवत्ति, ण णज्जति य को णिसिद्धप्पा को वा आवस्सगजुराजोगीति, उभयकपदबभिचारा शंकाप्यत्र स्यादित्याह___आवस्सयमि जुत्तो ।। ७-३६ ।। १२२ भाष्यं ॥ जो आवस्सीम जुत्तो सो नियमा निसिद्धो इति नायव्यो, जो वा निसिद्धप्या सो नियमा आवस्सए जुत्तोत्ति । एवं च व्याख्या-जो आवस्सयंमि जुत्तो सो नियमा निसिद्धो, जो पुण निसिद्धप्पा सो आवस्सए जुत्तो वाण वा, जतो समितो नियमा गुत्तो, गुत्तो समियतणमि भयणिज्जोति । अहवावित्ति पक्षांतरेण परूवणाभेदेण नयमतेणेत्यर्थः । अपि समावने । एतदपि संभाव्यते, जहा-जो निसिद्धप्पा सो नियमा आवस्सए जुत्तो इति, आवस्सगं नाम PM३५॥ अवस्सकायव्वं करणं । जुनो परचो । निसिद्धो नाम पडिसिद्धनिसेवणनियत्तो इति । इयाणि आपुजाणाय योगो___ आपुच्छणा उ कज्जे ॥७-३७ ॥ १९ ॥ जया किंचि साधू काउमणो भवति तदा आपुच्छतिचि । इयाणि पडिपुच्छापयोगो। सो य पुव्वानसिद्धंमि होइ पडिपुच्छत्ति, पढम संदेसओ दिनो, त कहमविण ताव कीरति,तो काउमणो पच्छा पडिपुच्छति अनुक्रम (358) Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [६९४-७२३/६९४-७२३], भाष्यं [१२०-१२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सूत्रांक t+%AR | किं करेमि नवत्तिी, जहा रातीणं दो तिनि वारा पुच्छिज्जतिति । झ्याणि रणादार । तं कहं छंदणा, पुब्बमहिनेणं भचेण वा XI दशधा पाणण वा वत्थेण वा पत्तेण वा, छंदणा णाम इमं अस्थि गेण्हह । निमंतणा पवि ताव गेहति, भणति-अच्छ तुम, अहं ते का आवश्यक दाहामि, जावाणेमित्ति । इयाणि उवसंपदा | उवसंपदा तिविहा-णाणोवसंपदा (दसणोपसंपदा चरित्तोवसंपदा य, तत्थ) उपोद्घातणाणोवसंपदा तिविहा-सुचीनमित्र अत्यनिमित्तं तदुभयनिमित, सुत्ते तिविहा-बत्तमानिमित्त संधणानिमित्तं, गहणनिमित्तं, बत्तणानियुक्तौ नाम पुषगहियस्स अथिरस्स परियट्टणं करेति, संघणा नाम उज्जुयारणा, गहणं नाम जं अभिनवगहणं करेति, एवं चऽत्थेवि,3 एवं उभयेऽवि । दरिसणेवि दरिसणप्पभावगाणि सत्याणि जहा गोविंदजुत्तिमादीणि। एत्थ संदिट्ठो संदिगुस्स . चत्तारि भंगा, ॥३५शा एत्थ संदिट्ठो संदिदुस्स जदि तो सुद्धो, सेसेसु तिसु असामायारीए चट्टति । चरित्तनिमिच दुविहा उपसंपदा-यावच्चनिमित्तं वा खमणनिमित्त वा, वेयावच्चं दुविहं-इत्तिरियं आवकहितं च, वेयावच्चकरो पुण आयरियाण होज्जा वा ण वा, जति पत्थि ताहे घेप्पति, अह अस्थि सो दुविहो इतिरिओ आवकहितो य, आगंतुगो दुविहो-इत्तिरितो आवकहिओ य, जदि दोऽवि आवकहिता | ताहे जो सलद्वितो, दोऽवि सल्लद्धिया जो चिराणओ सो करोत, पाहुणओ वुच्चति-उपज्झायाणं करेहि, थेरस्स पवत्तिस्स गिलाण. |स्स सेहस्स एवमादि, जदि नेच्छति तो चिराणओ एताणि कारिज्जति, इमो आयरियस्स, जति नेच्छति तो विसज्जिज्जति । जइ इत्तिरिया दोऽवि तो एको पडिक्खाविज्जदि, अन्नस्स वा कारिज्जति, नेच्छते विवेगो । इयाणि संजोगो-आपकहितो विस्सा| मिज्जति, आगंतुओ इतिरिओ कारिज्जति, एवं विभासा, तस्स अबस्स नेच्छह विवेगी । एवं जहाविधीते विभासा । इयाणि ॥२१॥ खमणे, सो य दुविहो-इचिरिओ आवकहितो य, आवकहितो भत्तपच्चक्खाणओ, इचिरिओ दुविहो-वियदृखमओ अवियद्यो य, दीप अनुक्रम 454 (359) Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [६९४-७२३/६९४-७२३], भाष्यं [१२०-१२३] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री दशधा चूर्णी सत्राक आयुरु. पक्रमा 18 ताहे सो पुच्छिज्जति-तुम अज्जो ! विकिट्ठतवेण केरिसो होसि', सो भणति-गिलाणोवमो, सो पडिसिज्झति, भन्नति-ण तुज्य | बावश्यक एत कम्म, मुत्ते अत्थे य आदर करेहि. विगिटेवि तहेव पनविज्जति, अन्ने भणति-विगिडखमगो पारणगकाले गिलाणोवमोवि इच्छिज्जति, जो तु मासादिखमतो सो इच्छज्जति चेव, जो मासादिखमण करेति भन वा पच्चक्खाति, तत्थ आयरितो जदि अणापुउपाघात इच्छाए पडिबज्जति तो असमायारीए वति, ते णेच्छंतित्ति काउं, सो अप्पणा आढत्तो पडिलहणादि काउं, तेसि वा अनोवि नियुक्ती जखमओ अस्थि, ते तेण पाउला, ते भणंति-एतस्स समते करेहामो, वाहे पडिच्छाविज्जति, अह पुण दोण्हवि समत्था पडिवजति ॥३५४ा यताहे करति । एवं पडिच्छिते जे न करेंति तत्थ आयरितेण ते सारेयव्या, वामयं जाणति, एतेण खमतो सीदतित्ति, किं च त. | स्स काय उव्वत्तण परित्तण मत्तगतिएण वा । एस संजतोवसंपदा । इयाणि गिहिणोवसंपदा, जत्थ साधू पंथे पहे देवकुलादिसु वा अच्छिउकामो तत्थ अणुनवेत्ता ठातियव्वं, मा आदनादाणयेरमणादियारदोसा होज्जा, जदिवा साधू मिक्खायरियाए पविडो K केणति बाघातेण अच्छियव्वं भवति तत्थ अणुनवेयव्यं । इत्तिरियपि ण कप्पति अवियाणं खलु परोग्गहादीमु चिट्टितुं निसीतित्ता, ततियवयरक्षणहाए ताहे कारणं दीवेत्ता अच्छति । ण य ताण कुच्चविच्चाणि निझातियवाणि, जत्थ रुक्खे वी समति तत्थ जति अस्थि पंथिओ सो अणुअविज्जति, नस्थि ताहे अणुयाणतु देवता जस्सोग्गहो एसो, सेनं दसविहा सामायारी । ४ इयाणि पदविभागसामायारी कप्पववहारा पदविभागः, तदुपरिष्टावक्ष्यति । सवाणे तेसिं पुण इमो अधिकारो-कप्पमि कप्पिया खलु मूलगुणाचेच उत्तरगुणा या ववहारे ववहरिया पायच्छित्ताभर्वते य ॥१॥से सामायारिउवक्कमकालो। (आउकालो सत्चविहो अज्झवसाणनिमित्ते ॥८-११७२४।। अज्झवसाणमेव निमित्तं अज्झवसाणनिमितं, अहवा अन्य अज्ञवसाणं, अचं निमित्तं च, दीप अनुक्रम । ३५४|| अथ आयुष्य-काल वर्णयते (360) Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥ ३५५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [७२४/१७२४] आयं [१२३...]]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 अज्झवसरणं विवि-रागज्ज्ञ वसाणं भय. स्नेहज्झवसाणं च रागज्झरसाणं जहा एगस्स गावीओ हिताओ, ताहे कविताओ पच्छतो लग्गा, तेहिं नियतियाओ, तरथ एगो तरुणो कुप्पासं पविसिओ पट्टबद्धओ तिगंडकंडगसज्जो जहा बिज्जाहरो परमरूवदरिसणिज्जो, सो तिसावितो एगं गामं पविट्ठो, ताहे मग्गिए एगाए तरुणीए पाणियं णीणितं सोपवीता सा ओयचेति तस्स सरीरे ता सो धातो, जाहे ण हाति ताहे उट्ठेता पधावितो, सावि तहेब ओयलेति, जाहे सो अद्देसो जातो ताहे सा तहेव ओयल्ली। हज्ावसाणं मायापुत्तादिवत्, जहा एगस्स वाणियगस्स तरुणि महिला, ताणि य परोप्परं अतीव अणुरचाणि, ताहे सो वाणिज्जेण गतो, पडिणियतो वसहीए एगाहेण पावतित्ति, ताहे से वयंसगा भगति-पेच्छामो किं सच्चो अणुरागो जवा?, ताहे एगेण आगंतूण भज्जा से भणिता सेो मतो. सा भणति सच्चे मतो १, तं वर्क भणित्ता मता, ताहे इतरस्सवि अधाभावेण कहितं, सोवि मता । - भयज्झमाणेणं जहा गयवमालमारगस्स सोमिलस्स, तेणं कालेणं तेणं समएणं बारवती णामं णयरी होत्था, पातीयपडीणायता उदीर्णदाहिणविच्छिष्णा नवजोयणविच्छिन्ना बुबालसजोयणा यामा घणवतीमातीनम्माया चामीकरपवरपागारा णाणामणिपंच व कविसीसग सोहिया अलयापुरिसंकासा पमुदितपकीलिता पच्चक्खं देवलोमभूता, तीसेणं बहिता उत्तरपुरत्थि मे दिसीभागे रेवतेामं पञ्चतो होत्था, रंगे जाव निच्चच्छणए दसारखीरपुरिसरवरकचलवगाणं, तस्स णं पव्वयस्स अदूरसामंतेणं णंदणवणे णामे उज्जाणे होत्था, वन्नओ जहा दसन्ने, तस्सणं मज्झभागे सुरप्पिए णामं जक्खाययणे होत्था, वनओ, तत्थ णं णगरीए कण्हे णाम वासुदेवे या होत्था, महताहिमवंत एवं जहा दसन्नभद्दे जाव रज्जं पसाहेमाणे विहरति से णं तत्थ समुदविजयपामोक्खाणं दसहं दसाराणं बलदेवपामोक्खाणं पंचण्डं महावीराणं उग्गसेणपामोक्खाणं सोलसहं राईसहस्साणं पज्जुनपामोक्खाणं भव-अध्यवसाय निमित्त ( गजसुकुमाल - मारक) सोमिलस्य द्रष्टांत (361) भयाध्यवसाये सोमिलपूर्ण ॥३५५॥ Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप श्री 18 अधुट्ठाणं कुमारकोडीणं संवपामोक्खाणं सहीय दुईतसाहस्साणं वीरसेणपामोक्खाणं एगवीसाए वीरसहस्साणं महसेणपामुक्खा- भयाध्यवआवश्यकता छप्पन्नाए बलवगसाहसाणं रुपिणिपामोक्खाणं बत्तीसाए महिलासाहस्सीणं अणंगसेणपामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं .साने पूणा अनसिं च बहूणं ईसरतलवर जाव सत्थवाहप्पमितीणं वेयङगिरिसागरपेरंतस्स य दाहिणभरहस्स बारवतीए णगरीए आहेबच्चं शास जाव पालेमाणे विहरति । तेणं कालेणं तेणं समएणं अरहा अरिहणेमी, वनओ, बारवतीए जाब विहरति । तेण कालेणं तेणं समएणं | अरहतो अरिडणेमिस्स अंतेवासी छब्भातरो अणगारा जाव उग्गतवा ओराला चोइसपुब्बी चउबाणोवगता सरिसगा सरिचया ॥३५६।।12 सरिबता णीलुप्पलगगवलप्पगासा सिरिवच्छंकियवच्छा पसत्यवत्तीसलक्षणघरा कुसुकुलयमद्दलगा जलकुम्बरसामाणा ओयसी तेयसी वच्चसी, जसंसी ते य पन्चज्जादिवसादो आरम सामिणा अम्मणुनाता छटुंछट्टेणं अणिक्खिनेणं विहरति । तए णं ते अन्नया पारणगंसि पढमाए सज्झायति वितियाए झाणं ततियाए तिहिं सिंघाडएहिं बारवति अडंति । तत्थ ण एगे का संघाडए उच्चणीयमज्झिमाई कुलाई अडते वासुदेवस्स देवतीए देवीए गिहमणुपविटे, सा य तं पासित्ता हह जाव भद्दासणातो | अम्भुढेत्ता पाउयाओ ओमुयति, ओमुयित्ता अंजलिमउलियहत्था सत्तट्ट पदे गंवा तिक्तो आयाहिण जाव णमंसित्ता सिंघकेससरगमच्छंडिकामोदकथालेणं सतं चेव पडिलामेति, पडिलाभेत्ता चंदति, वंदित्ता पडिविसज्जेति, तया ण दोच्चे संघाडए, एवं ॥ तच्चेषि, णवरं तच्च पडिलाभेत्ता एवं वयासी-किंण भंते ! कण्हस्स वासुदेवस्स इमीसे चारवतीए जाव देवलोगम्भृताए णिग्गथा18॥३५६।। अडमाणा भत्तपाणं ण लभंति , तो ताई चव कुलाई भत्तपाणाए अज्जो भुज्जो अणुपविसति?, तत्थ ण देवजसे णाम अणगारे। एवं व०-णो खलु देवाणुप्पिए ! एवं एत, किंतु अम्हे छन्भायरो सरिसगा जाव संघाडएणं अडमाणा तुज्झ गेहं अणुप्पविठ्ठा, ते अनुक्रम (362) Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGA H ताणो चेव पं ते अम्हे, अन्ने ण अम्हेत्तिकटु जाव पडिगता । तए णं तीसे अन्मथिए समुप्पञ्जित्था, एवं खलु अहं पोलासपुरे गगरे I आवश्यक अतिमुचेण कुमारसमणेणं बालत्तणे वागरिता-तुमणं अट्ठ पुत्ते पयाइस्ससि सरिसए जाच णलकुबरसामाणे, णो चेव णं भरहे भयाध्यद तासाने चूर्णी वासे केवतिकालाओ अन्नाओ अम्मयाओ तारिसएत्ति. तन मिच्छा, इमन्नं पञ्चवमेव दीसति, अनाओवि पयाताओ, तं गच्छा-MER सोमिलवृत्तं उपाघातमिणं सामि पुच्छामितिकटु सामिअंतिय उवगता जाच पज्जुवासेति । सामिणा तीसे अज्झस्थिर्य कहिय जाव अत्थे समढे', हता नियुक्ती अत्थि, एवं खलु देवाणु० तेणं कालेणे तेण समएणं भदिलपुरे णागस्स गाहावतिस्स सुलसा भारिया नेमिचिएण निंद् ॥३७॥ वागरिता, तए णं सा बालप्पमिति चेव हरिणेगमेसि देवं भत्ता यावि होत्या, तं तीसे भतिषहमाणेण स देवे आराहिते यावि पाहोत्था, तए णं तुमंपि सावि समामेव दारए सवह, साणे विणिघातमावने पेयाति, से देवे तीए अणुकंपणट्ठा ते गेण्हेता तव अंतिय | साहरति, जेविय णं ते तव पुत्ता तेवि य तीए साहरति,तं तव चेव णे ते पुत्चा, गो सुलसाए, तए पं सा सामि वंदति, वैदिचा जेणेव ते छ अणगारा तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्वा ते वंदति, वंदित्ता आगतपण्हागा पपुतलोयणा कंनुकपरिक्खिलिया संव रितवलयबाहा ऊसवितरोमकूवा ते छप्पि अणगारे ताए इटाए दीहाए सोम्माए सप्पिवासाए निम्भराए अणिमिसाए दिडीए देहमाणी २ सुचिर निरिक्खइ २ बंदह बंदिचा पुणो सामि वंदित्ता जामेव दिसि तामेव पडिगता जाव सयणिज्जसि निसमा चिंतेति-एवं खलु अहं सरिसगे जाव सत्त पुत्ते पयाता, णो चेव णं मए एगस्सावि बालत्तणए समणुभूते, एसवि यणं कण्हे वासुदेवे पिच्चप्पमचे सयं पललिते कंदप्परती मोहणसीले छण्हं छह मासाणं ममं अंतियं पादवंदए आगच्छति, तं धमाओ ण ताओ ४॥३५७॥ अम्मगाओ जासिं माऊणं णियगकृच्छिसंभूतगाई धणदुद्धलुद्धयाई मधुरसमुल्लावगाई मम्भणपपियाई थणमूला कक्खदेसमार्ग दीप अनुक्रम (363) Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री चूणों सत्राक 18|अतिसरमाणाई मुद्धगाई पुणो य कोमलकमलोवमेहिं हत्थेहिं गिण्डिऊण उच्छंगनिवेसिताई देति समुल्लावगे सुमधुर, पुणो पुणो 3 भयाध्यवआवश्यक मंजुलप्पभाणिते, अहंणं अहण्णा ४ एत्तो एगतरमाविण पत्ता, ओहत जाव झियाइ, इमं च ण कण्हे जाब विभूसिते पादवेदएदा .सान आगच्छति, ते पासति, पादग्गहणं करेति, करेचा एवं वळ-अनया णं तुम्भे अम्माओ! ममं पासित्ता हट्ट जाव भवह, कि अज्ज सामिलच भाषाला जाब झियाह', तए ण सा ते सव्यं परिकहति, सेवि एवं व०-मा णं जाव झियाह, मह पंतहा पचिस्सामि जहा णं मम सहोदरे 81 जाव भविस्सतितिकट्टु ताहिं इवाहिं जाव वग्गूहि समासासति २ अट्ठमं पगण्हति, पगेण्हेत्ता जहा भरहे तहा हरिणेगमेसि आरा-16 ॥३५८॥ हेति, सेवि एवं व-होहिति तव देवलोगचुते सहोदरगे, तिनि बारे पडिमणिचा पडिगते, कण्हेवितं सब देवतीए पडि | कहेत्ता पडिगते, तए ण सा अनया कयाती गयं सुमिणे पासित्ता पडियुद्धा जाव परिबुडा वहति, तए ण सा णवण्हं मासाणं जाव । जासुमणावत्तबंधुजीबसमप्पमं सवणयणकतं सुकुमालं जाव सुरूवं गजतालुयसमाणं दारगं पयाता, जम्मणं जहा सामिस्स सिद्धत्यो । करेति जाव जम्हाणं अम्हें इमे दारगे गततालुयसमाणे तं होऊ णं एतस्स णामधिज्ज गयसुकुमाले २, सेस जहा मेहे जाच अलं भोगसमत्थे जाते यावि होत्था। तेणं कालेणं तेणं समएणं वारवतीए सोमिले णाम माहणे परिवसति, अड्डे जाव मुपरिणिहिते यावि होत्था । तस्स सोम- ॥३५८॥ 8 स्सिरी णाम माहणी होत्था, तेहिं सोमा णाम दारिया होत्या सूमाला जाप सुरूवा, रूवेण य जोब्यणेण य लायनेण य जाव उकिट्ठा उकिडसरीरा यावि होत्था । तएणं सा अभया कयादी हाता जाब विभूसिता बहहि खजाहि जाव परिक्वित्ता सयायो| गिहातो पटिनिक्खमति २रायमग्गंसि कणगतिंदूसगेण कीलमाणी २ चिट्ठति । दीप 254055523 अनुक्रम (364) Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्तौ ||३५९।। "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [७२४/१७२४] आयं [१२३...]]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - - वेणं कालेणं वेणं समएणं अरहा अरिवृणेमी समोसढे, परिसा निग्गया, कन्हेवि य णं इमसे कहाए लड्डे सभाए मुहम्माए कोमुदियं मेरिं तालावेता जहा सके घंटं जाव व्हावे विभूषिते गयसुकुमालेणं सद्धिं विजयखंधहत्थिसंधवरगते जहा दसन्न भद्दे जाव बारवती मज्मणं निग्गच्छति । तं च सोम्मं दारितं पासह २ चा तीसे रूने व ३ जाव विहिए पृच्छति-कस्सेसा किं वा णामे १, ते णं तरणं कोई नियपुरिसा साईति सब्वं तप णं कण्डे एवं ब०-गच्छद णं भो तुम्हे सोमिलं जातित्ता सोमं कण्णतेपुरंसि पक्खिवह, ते णं एसा गयसुकुमालस्स पढमपत्ती भविस्सह, तेवि जाव पक्खिवंति, कण्हेविय णं जाच सहसंववणे सामि पज्जुवासति, धम्मकहा, धम्मे, कण्हे, परिसा परिगता, तर णं से गयसुकुमाले सामिस्स धम्मं सोच्चा जा णवरं अम्मापितरो आपृच्छामि, अहामुहं०, तर गं से सामि वंदित्ता जाव पडिगते अम्मापिऊण पादवडणं करेति करेत्ता एवं व० एवं खलु अम्मतातो ! मए सामिस्स अंतिए धम्मो णिसंतो सेविय मे जाव अभिरुतित, तरणं अम्मापियरो एवं वयासी धनेऽसि णं तुम जाता ! जाब कयकलाणे सिणं तुमं जाता! जनं तुमे जाव अभिरुतिते, तर णं सो दुरुचंपि तच्चपि एवं भणति जहा जमाली जाव तं इच्छामि यणं पव्वत्तम्, तप णं सा देवती तं अभि जाव फरुसं गिरं सोच्चा माणसिएणं महया दुक्खेण अभिभूता समाणी से आगतरोमकुवा पगलतचिलिमगाता सोयभरुपवेतितंगभंगी नित्तेया दीणचिमणवयणा करतलमलितव्य कमलमाला तक्खणओलुग्गुदुम्बलसरीरा लागनसुन्नच्छायगतसिरीया पसिढिलभूसण पडतखुभितसंचुभितधवलवलयप भट्टउत्तरिज्जा मुच्छावसगठ्ठचेतगरुई सुकमाल विकिमसहत्था परमुणिकित्तव्य पंपयलता णिव्वतमहष्य इंदलट्टी विमुकसंधिबंधणा कोट्टिमतलंस घसति सयंगेहिं संनिवतिता, तए णं सा संभमोयसितंतरिता कंचणभिंगारमुहविणिग्गतसीतल जलविमलधारपरिसिध्चमाणनिव्ववितगायलट्ठी (365) भवाध्यव साने ॥३५९॥ Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राक दीप 10 उखेवगतालियंटवीयणगजणितवातेण सफुसितेण अंतपुरपरिजणेण आसासिता समाणी मुनावलिसनिगासपवढतअंसुधाराहिं भयाध्य. आवश्यक छ सिंचमाणी पयोहरे कलुणविमणदीणा रोयमाणी कंदमाणी तप्प सोत. विलव० गजम्माल एवं व०-तुमंसिणं जाता! अम्हं एगे सामिलवृत्च चूणीं पुत्ते इवे कंते पिए मणुन्ने मणामे थेज्जे वेसासिए संमए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रयणे रयणभूते जीवितुस्सविए हिदय- गजसुकु: वातादिजणणे उंबरपुर्फ व दुल्लहे सवणताए, किमंग पुण पासणताए, नो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो तुझ खणमवि विप्पतोग लामाल वृत्तं नियुक्ती । &| सहित्तए, तं अच्छाहि ताव जाता 1 जाहि ताव जाता ! विपुले माणुस्सए कामभोगे जाव ताव बर्य जियामो, ततो पच्छा है। ॥३६॥ अम्हीह कालगतेहिं परिणतवए बडितकुलवंसतंतुकज्जाम गिरवयखे जाव पव्वइहिसि, तए णं से एवं व०-तहेव ण त अम्मताता! जहेव णं तुम्भे मम एवं वयह-तुम णं जाता! अम्हे जाव पव्वइहिसि, किं पुण अम्मताता ! माणुस्सते भवे अणेगजाति एवं जहा MIपुंढरीए जाव पुज्यं वा पच्छा वा अवस्सविप्पजहणिज्जे, से केस ण जाणति अम्मतातो! के पुब्धि गमणाए के पच्छा गमणाए ? इच्छामि जाब पचहत्तए । तए णं अम्मापियरो एवं व०-इमं च ते जाता! सरीरगं पतिविसिव लक्खणवंजणगुणोववेयं उत्तम-1S ... बलविरियसचजुत्तं विचाणवियकखणं ससोहग्गगुणसमुइतं अभिजातमहकमं विविवाहिरोगरहितं निरुबहउदत्तलद्धपंचेंदियपह पढमजोब्बणअणेगउत्तमगुणेहिं जुत्तं तं अणुहोहि ताव जाया ! नियता सरीररूवसोहग्गजोवणगुणेहि ततो पच्छा जाव पच्चइहिसि, तए ण सो एवं बयासी तहेव गं तं जाव किं पुण अम्मतातो ! माणुस्सयं सरीरं दुक्खायतणं जहा पुंडरीए जाव अवस्सविप्पजहियवंति, सेस तं चेव । तए गं तं अम्मापितरो एवं व०- अम्हे गं तुज्ज्ञ जाता ! विउलकुलबालियाओ कलाकुसलसब्बकाललालितमुहोइताओ महवगुणजुत्तणिउणविणओवयारपंडितवियक्खणाओ मंजुलमितमधुरमणितविहसितषिपेक्खितगति अनुक्रम (366) Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ३६१॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 विलासचिट्टितविसारदाओ अधिकलकुल सीलसालिपीओ बिसुद्ध कुलर्वस संताणतंतुवद्वणपगन्भउब्भवपभाविणीओ सरिसताओ सरिव्वयाओ सरितयाओ सरिसलावनरूवजोब्यणगुणोववेताओ जाव सिंगारागारचास्वसा तो मणोऽणुकूलहिदइच्छिताओ अड्ड तुज् गुणवल्लभाओ उत्तमाओ निच्च भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ बरेमो, तं मुंजाहि ताव जा ताहिं सद्धिं विउले माणुस्सर कामभोगे, ततो | पच्छा त्तभोगी विसयविगतवोच्छिनकोतुहले अम्हेहि कालगतेहिं जाव पय्वइहिसि तए णं से एवं व० तहेव णं तं जाव किं पुण अम्मतातो ! माणुस्सगा कामभोगा तहेब जाव अवस्सं विप्पजहियव्यत्ति, सेसं तं चैव । तए णं तं अम्मापितरो एवं व० इमे ते जाता ! अज्जगपज्जगपितुपज्जतागते सुबहू हिरने य सुवने व कैसे य दूसे य विउले धणकणग जाव सन्तसारसावतेज्जे अलाभि जाव आसत्तमतो कुलवंसाओ पगामं दातुं पगामं मोतुं परियाभाषतुं तं अणुडाहि ताव जाता ! विपुले माणुस्सते हड्डिसकारसमुदए, ततो पच्छा अणुहूतकल्लाणे वडितकुलवंस जाव पव्यतिहिसि तए णं से एवं व० तहेव ण तं जाव किं पुण अम्मतातो ! हिरणे य तहेव जाव विप्पजहितव्वेति, सेस तं चैव । तए णं तं अम्मापितरो जाहे यो संचाएंति बहूहिं विसथाणुलोमा आघवणाहि य पत्रवणाहि य जहा पुंडरीए जाव पञ्चइहिसि, तए णं से एवं बयासी तहेव णं तं जाय किं पुण अम्मतातो ! निग्गंथे पावयणे कीवाणं एवं तहेव जाब पव्यतित्तएत्ति । तणं से कहे इमसे कहाए लद्धट्टे समाणे जेणेव गयसमाले तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छिता गयसुकुमालं आलिंगति २ उच्छंगे निवेसेति, निवेसेता एवं वयासी-तुमन्नं ममं जाता ! सहोदरे कणीयसे भाता, तं मा णं तुमं जाता! इयाणि जाव पव्वयाहि, अहं णं तुमे वारवतीए नगरीए महता २ रायाभिसेगेण अभिसिंचिम्सामि, तए णं से गयवमाले कण्हेणं एवं वृत्ते समाणे णो (367) ४ भयाध्य सोमिलवृत्ते जसुकुमालव | ॥३६२॥ Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्ण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥३६२॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [७२४/१७२४] आयं [१२३...]]] . आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - आढाति णो परिजाणति, तए णं से कण्हे दोच्चपि तच्चपि तहेव भणति, तए गं से गयम्माले कन्हं अम्मापियरो य दोपि एवं व० एवं खलु देवा! माणुस्सगा कामभोगा खेलासवा जाव विप्पजहियब्वा तं इच्छामि णं जाव पव्वतित्तएत्ति । तए णं तं भयसमालं वाणि जाहे णो संचातंति बहूहिं आघवणाहिं ४ आघविचए वा ४ ताहे अकामगाईं चैव एवं व० तं इच्छामो ते जाता ! एगदिवसमवि रज्जसिरिं पासितएत्ति, तए णं से गयस्माले कण्हें अम्मापियरं च अणुयत्तमाणे तुसिणीए संचिद्वति, तए णं से कण्डे कोईबियपुरिसे सहावेति, सहावेत्ता एवं व० खिप्पामेव भो गयवमालस्स महत्यं महरिहं जाव रायाभिसेयं उबट्टवेह एवं रायामिसेगो भरहाभिसेगाणुसारेण विभासियन्बो, निक्खमणे सामिऽणुसारेणं ईदादिवज्जं जाव कण्हे गयसमा पुरतो कड जेणेव अरहा अरिट्ठणेमी तेणेव उवा० जाव णर्मसिता एवं व० एवं खलु भेत ! गयमाले खत्तियकुमारे अम्हे एमे पुत्रे इट्ठे जाब किमंग पुणे पासणयाए ? से जहा णामए उप्पलेइ वा पउमेति वा जाव सहस्सपत्ते वा पंके जाते जलसंवढे गोपलिप्पति पंकरपूर्ण नोवलिप्पर जलरपूर्ण, एवामेव गयवमालेऽवि कामेसु जाते भोगेसु संवढे गोवलिप्पति कामरणं णोवलिप्पति भोगरणं गोवलिप्पति मित्तनातिनियगसयण संबंधिपरियणेणं, एस णं भंते! संसारभउब्बिग्गे भीते जम्मणमरणाणं इच्छति सामिण अतिए जाब पव्वतय, तं अम्हे णं एवं सामीण सीसभिकखं दलयामो, पडिच्छंतु णं सामी सीसभिक्ख, अहासुहं देवाशुप्पिया ! मा पडिबंधे, तरणं से गयवमाले सामिस्स उत्तरपुरत्थिमं दिसिं गंता सयमेव आभरणादिता मुगति, देवती पडिच्छति, अणुस दलपति जहा सामिस्स कुलमहतरिता, जाव पडिगता, तर णं से पंचमुट्टियं लोयं करेता सामि तिक्खुतो जाव णमंसिता एवं व०| आलिते गं भंते । लोए, पलिते णं भेत ! लोए जराए मरणेण य, से जहाणामए केती माहावती अयारंसि झियायमाणीस जे से (368) 3 भयाध्य सोमिलवृत्ते गजसुकुमालघुच ॥३६२॥ Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप द तत्थ भेडे भवति अप्पसारे मोल्लगुरुगे तं गहाय आताए एगतमवक्कमति, एस मे नित्यारिते समाणे पच्छा तूराए हिताए। आवश्यक चूर्णी सुहाए खमाए निस्सेसाए आणुगामियचाए भविस्सति, एवामेव ममवि आता एगे भंडे इ8 ते मणुले महग्ये जाव भंडकरंडग- सोमिलवृत्ते उपोद्घात समाणे मा गं सीतं मा थे उहं मा खुहा माणं पियामा मा णं चोरा मा णं वाला जाब मा ण परिस्सहोवसग्गा फुसंतुति- गजसुकुमानियुक्ती कटु एस मे णित्थारिते समाणे हिताए जाव संसारवोच्छेदणाए भविस्सति, तं इच्छामिण भतेहिं सयमेव पव्वाचितं, एवं मुंडा लवृतं वितं सेहावित सिक्खाचितं सयमेव आयारगोयरविणयवेणायचरणकरणजातामाताउानिय धम्ममाइक्षित, सामीवितहेव करोति | १२१२ जाव धम्ममाइक्खति, एवं देवाणुप्पिया ! गंतव्वं एवं चिट्ठियव्वं एवं निसातिय तुयद्वियव्वं भूजियव्वं भासियचे, एवं उद्ययाय उहाय पाणेहि भएहि जीयेहि सोहि संजयेणं संजमियब, अस्मि चण अणो पमादेयव्यं, एणं से तहारूर्व मिय उबदेसी 181 सम्म संपडिच्छति २ जाव तमाणाए तहा संजमति, एसे जाते इरियासमिए जाब निम्मथं पावयणं पुरओ काउं विहरति । तए 4 से 5 चेव दिवसं पव्वइते तस्सेव दिवसस्स पच्छावरणहकालसमसि जेणेव अरहा अरिदुणेमी तेणेव उवागच्छति २ तिम्खनो वंदति २एवं ब०-इच्छामि गं भंते! तुम्भेहिं अम्मणुनाए महाकालंसि सुसाणसि एगराइयं महापडिम उपसंपग्जिचाणं विहरिचए, अहासुह, तए णं से हटे जाव सामि वंदिचा मि मसाणे डिलं पडिलेहेचा ईसिं पम्भारगतेणं कातेणं जाव दोवि पादे साहटु एगरातियं महापाडिम उपसंपज्जित्ताणं विहरति । इमं च णं सोमिले माहणे सामिधेयस्स अट्ठाए पारवतीओ बहिया का पुवनिग्गए, तं गहऊण पडिनियत्तमाणे संझाकालसमयसि पचिरलमणसंसि गयसमालं तहा पासति, पासिचा तं वरं सरति २ आसु-121 ॥३६॥ दारुचे जाव एवं मनित्था-एस गं भी गयरमाले अपत्थिय जाव परिवज्जिते जेणं मम धूयं सोम्म दारियं बाल अपहष्पम अकयन अनुक्रम (369) Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत चूणौं । सुत्राक नियुक्ती ॥३६॥ दीप मणस्सं विप्पजहिता मुंडे जाव पव्वतिते, ते सेयं खलु ममं एयस्स वेरनिज्जातणं करेत्तए, एवं सैपेहेति २ दिसापडिलहण करेतिर भयाध्य | सरस मत्तिय गेण्हति २ तस्स मत्थए मतियापालिं बंधति बंधिचा जलंतीओ चिगताओं पप्फुल्लकेसुयसामाणे खदिरंगाले कमल्लणं सामिलवृत्त | गेण्हति २ तस्स मत्थए पक्खिबइ, भीते ६ ततो खिप्पामेव अवक्कमति अवक्कमित्ता जाव पडिगते । तएणं तस्स गयसूमा- गजसुकुमा लस्स सरीरगंसि चेयणा पाउन्भूता उज्जला जाव दुरहियासा, तं सो सोमिलस्स मणसाबि अप्पदुस्समाणे जाव सम्मं अधिया लवृत्तं | सेति, तए | तस्स सुभेणं परिणामणं पसत्थेणं अज्झवसाणेण लेसाहिं विसुज्झमाणीहिं तदावरणिज्जाणं खएण कम्मरयविकिरणकर अपुवकरणं अणुपविट्ठस्स अर्णते जाव केवलवरणाणदंसणे समुप्पने, ततो पच्छा सिद्धे जाव पहीणे। तत्थ आहासंनिहितहि | देवेहि सम्मं आराहितेत्तिकटु दिच्चे सुरभिगंधोदयवासे खुढे दसवये कुसुमे निवादिते चेलुक्खेवि कते दिवे य गीतगंधब्व*णिणादे कते यावि होत्था । तए ण से कण्हे कल्लं पाउ जाव बंदपरिक्खिचे बारवई मज्झमझेग सामितेण निग्गच्छति, तत्थ य जाएग पुरिसं पासइ- जुम्लं जाव जराकिलंत महइमहालयाओ इट्ठगरासीओ एगमेग इट्टगं गहाय पहिया रत्थापहातो अंतो गिहसि४ अणुप्पसमाण, तए ण कण्हे तस्स अणुकंपणडयाए हत्यिखंधवरगते चेव एग इट्टग गेण्हति मणिहत्ता जाव गिर्हसि अणुप्पवेसेति, तए ण अणेगेहिं पुरिससहस्सेहिं से इदृगरासी खिप्पामेव अणुप्पवेसिते, तते णं से कण्हे जार सामि वंदति वंदित्ता अवसेसे अणगारे वंदति बंदित्ता गयस्माल अपासमाणे सामितेण एवं वदासी- कहि ण मते ! से मम सहोदरए ? जेण बंदामि, तए णं सामी ॥३६॥ एवं वयासी- साहिते णं कण्हा ! गयसमालेणं अणगारेणं अप्पणो अड्डे, कहं पं भैते १०१, एवं खलु कण्हा ! गयसमाले कल्लं सव्वं कहेति जाब विहरति । तए ण ते एगे पुरिसे पासति, पासित्ता आसुरुत्ते दिसालोयं करेचा सरसं मचियं गेहति सेस ते चेव जाव अनुक्रम स *557 (370) Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७२४/७२४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक पहाणे । एवं खलु कण्हा ! जाव साहिते अपणो अड्डे । तए म कम्हे एवं वयासी केस पं भंते ! से पुरिसे अपत्थिय जाव परिव-1&ा भयाध्य चौँ जिते जेणं ममं सहोदरस्स अणगारस्स एवं करेति ?, सामी आह-मा णं कण्हा ! तुम तस्स पयोसमावज्जाहि,एवं खलु कण्हा! सोमिलवृत्ते उपोदपाता। तेणं तस्स साहेज्जे दिन, कहण भंते !, से गूणं कण्हा तुम मम वंदए आगच्छमाणे एग परिसंत चेव जाव पवेसिते, जहाणं /गजसुकुमा नियुक्ती तुमे तस्स साहेज्जे दिने एवामेव गयसूमालस्सवि अणेगभवसयसहस्ससंचित कम्मं उदीरमाणेण बहुकम्मनिज्जरत्थकारे दिखे, से लवृत्त प भते ! पुरिसे मए कहं जाणियव्वे ?. जेणं कण्हा तुम णगरं अणुपविसमाणं पासित्ता ठितए चेव हिंदयभेदेण कालं करिस्साइ ॥३६५॥ तं नं जाणज्जासि, एस भे, से णं अपतिद्वाणे नरए परइत्ताए उवधज्जिहि । तए णं से कण्हे सामि वंदित्ता जाव जेणेव सए गिहे तेणेव पहारेत्थ गमणाए, सोमिलेवि य पभाते चितति एवं खलु कण्हे अरहतो वंदति, निग्गते ण, णातमेतं अरहता, सिडमेत भविस्सइ कण्हस्स, तं ण णज्जति कण्हे मम केण कुमारेण वा मारेस्सतित्तिकटु भीते ५ सगाओ गिहाओ पडिणिक्खमति २० चारवतीए इतो ततो आघावमाणे कण्हस्स पुरतो सपडिदिसि हव्वमागते, तए णं से कण्हं सहसा पासति पासित्ता भीते ५ जाव काल करेति २ धरणि जाव संनिवतिते, कण्हेणं दिट्टे, गातो, तए णं कण्हे आसुरुत्ते जाव एवं बयासी-एस गं मो जाव परिवज्निते || जेण ममं सहोदरे अणगारे अकाले चेव जीविताओ ववरोविते, तं बारवतीए एतं घोसेचा पाणेहिं एतं अंछविछ कारेत्ता तं ठाणं पाणिएणं अन्मुक्खेचा जाव पच्चप्पिणह, तेऽवि तहेव करेंति । तए णं कण्हे तस्स सब्बस्सहरण करेति, करेत्ता पुत्तदारे य से कर वस्से ठवेति, ठवेत्ता समुदविजयादीणतेण गंता सव्वं परिकहेति, तए णं तं दसारकलं पवगवेगवित्तासित पिव णागभवणं बाउलीभूतं गतसूमालस्स मणोरहचरिमनिवर्द्धच, एवं कण्हसमासणं च गन्भं च जं बालभावं च जोवणं च पन्वर्ज च पडिमच जाव। दीप अनुक्रम A ॐॐॐ (371) Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७२५-७२६/७२५-७२६], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक श्री नेवाणचरिमनिबंधं च उकित्तमागं २ महता २ सदेणं कुहुकुहुकुहस्स परुलं जाव कालंतरेण अप्पसोग जातं यायि होत्था । एवं |निमित्तेआवश्यकालाअंतगडदसासु ॥ निमिर्च हैरायुर्भेदः चूर्णी दंडकससस्थरज्जू०८-२७२५।। मुत्तपुरिसनिरोहे०॥८-३।७२६॥ दंडेहि ताव पिट्टितो जाव मतो, एतं निमित्त, एवं उपोद्घात नियुक्ती सन्चस्थ विभासा । एतेहिं निमित्तेहिं वाघातो आउयस्स भवति, आहारे जो अतिवहुत्तेण मरति, तत्थ मरुएण दिढतो-सो अवारस | है वारा भुच पच्छा सूलेण मतो । अन्नो अणहारेण मतो । विसण वा संजुत्त जो आहारं भुजति । वेयणा अच्छियेयणादी सीतादी ॥३६६॥ वा। परघातो विज्जुए वा तडीए वा पेल्लियस्स। फासे जहा तयाबिसेण सप्पेणं छितेणं विसं चडति, जहा वा वंभदत्तस्स इत्थि | रयण तंमि मते पुतण भणित-मए सद्धिं भोगे झुंजाहि, तीए भणित-ण तरसि, ण पत्तियति, ताहे तीए घोडतो आणाविओ, पट्टीए आलिद्धो, कसओ कडिं णीतो जाव सम्बो गलितो, ताहे सुक्खएणं मतो, तहवि ण पचियत्ति, ताहे लोहपुरिसो आषीतो वाहे उबसन्तो जाब विलीणो। आणापाणुनिरोहेणं जहा छगलगादी । एस सत्तविहो आयुउवघातो । एवमादीहिं जे सोवकमा तेसिं| आयुवाघातो भवति, सेसाणं ण उवकामिज्जति । के पुण सोवकमा निरुवकमा वा, नेरइया देवा असंखेज्जवासाउगा तिरिया || मणुया य उत्तमपुरिसा चरिमसरीरति, सेसा भतिया, देवा णारया असंखज्जवासाउया य छम्माससेसाउया आउगाणि बंधंति, IR॥३६६॥ परभविआयुआणि, सेसा तिभागससाउया निरुवकमा, जे ते सोवकमा ते. सिया तिभागसेसाउआ परमविआयुअं पकरेंति सिय तिभागतिभागवसेसाउना सिजतिभाग ३ सेसाउा पकॉति, कोऽनयोः प्रतिविशेषः १, इमाणं सनिचयो तिब्बो इमाण सो सिढिलो, सोक्कमस्स उववसमेत्तस्स आरद्धं जत्थ रुब्बा (च) वि तत्थ ओयडिज्जति, निरुवकमेण अवस्सं तं ठाणं पापियच्वं । विभागो CASEARS दीप +5 अनुक्रम % * अथ आयु:भेदा: वर्णयते (372) Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७२५-७२६/७२५-७२६], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री II वीप्मार्थः, अणेगे तिभागा होति जावतीएहि आउयं विभागं देति । जो एगसि भाए यति तस्थ आलावतो, जे जीवे असंखेज्जत। आवश्यकामा पविढे सम्बनिरुद्धो साउते सबमहतीए आउयधगदाए, चरिमकालसमयसि वट्टमाणे जहभिय सो अपज्जगनिष्पति निषति, दशकाल - चूर्णी एसस्स भागस्स हेवा ण तरति आउयं यंघिउ, तेण य सबनीवाणं आउबंधो अणाभोगभिनिवित्तिओ, तेण सो अंतोमुहुत्तिओ, कालो उपायावाला आवलियाएवि अतो। आह-जति आउयधो उवकामिज्जति तेण कयविपणासो अकयम्भागमो य होइ, कह ?, जेण याससंय नियुक्तौट्रि हाआउयं पद्ध, सो तं सच आउ न भुजति जहा तेण कयविप्पणासो, तस्स य तत्थं मारिब्बए अं आरओ मरति तेणं अकयम्भागमो ॥३६७॥ भवति, एस यदि दोसो भवति तो पत्थि मोक्खो, मोक्षगयावि पडतु, उच्यते-नायमस्माकमुपालभः, एकोवि दोसो नई भवति, कई , जेण तं सब्बं वेदेति, कई !, पलालपट्टिदिद्रुतसाहणा, जहा पलालबट्टी हत्यसयदीहा अंते पलीविया चिरेण उम्झति, 21वेंटिया तक्खणा व उज्नति, एसो से उवणतो, अहवा अग्गिकन्याधिनिदर्शनात फलपाचननिदर्शनाच्चेति । इयाणि देशकालकालः । देशकालो नाम प्रस्तावः । सो दुबिहा--पसरथो अप्पसत्थो निम्मच्छियं महुं० ॥८--५७२९॥ पसत्थो जहा मिक्खस्स कालो, सज्झायस्स तबस्स णाणादोणं वा । एवमादि ।। तत्थ निघूमगं च गामं०11८-४७२८।। महिलातित्थं णाम निवाणतडं । एस पसस्थो देसकालो । इयाणि कालकालो, कालकालो नाम मरणकालो, अने भणति-कालकस्य सत्त्वस्य कालधर्मणा संयोगो यः स कालकालो भवति । तत्थ कालकालेकालेण कतो कालो ॥८-६७२९|| पमाणकालो दुविहो-दिवसप्पमाणकाले य रत्तिप्पमाणकाले य, चउपोरुसिये दिवसे ४॥३६७॥ चतुपोरुसिया राती भवति, उकोसिया अड्डपंचममुहूचा दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी भवति, जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वाटू दीप अनुक्रम अथ 'काल'द्वार वर्णनं आरभ्यते (373) Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ।।३६८ ।। “आवश्यक”- मूलसूत्र- १ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [७२९/७२९-७३३], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 रातीए वा पोरुसी भवति, जदा णं भंते! उक्कोसिया अपंचममुत्ता दिवसस्य वा रातीए वा पोरुसी भवति तदा णं कविभागमुहुत्तभागेणं परिहायमाणी य २ जहनिता तिमुदुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी भवति?, जया वा जहलिया तिमुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी हवति तदा णं कतिभागमुहुत्त जोगेणं परिवद्धमाणी य २ उक्कोसिया अडपंचममुदुता दिवसस वा रातीए वा पोरुसी भवति १, सुदंसणा ! जदा णं उकोसिया अपंचममुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी भवति तदा णं वाबीससय भागमुदुत्तभागेणं परिहायमाणी २ जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस्स वा रातीए या पोरुसी भवति, जया वा जहनिया तिमुहुत्ता दिवसस वा रातीए या पोरुसी भवति तथा णं बावीस सतभागमुहुत्त भागेणं परिवमाणी २ उकोसिया अपंचममुत्ता दिवसस्स राईए वा पोरुसी भवइ । कया णं भंते ! उकोसिया अद्धपंचममुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी भवति १, कया वा जहण्णा तिमुत्ता दिवसस्स वा रातीए वा पोरुसी भवति १, सुदंसणा ! जया णं उकोसए अट्टारसमुह दिवसे हवई जहलिया दुवालसमुत्ता राती हवइ तदा णं उकोसिया अपंचमहला दिवसस्य [ वा रातीए वा ] पोरुसी भवति, जहनिया तिमुहुत्ता रातीए पोरुसी भवति, जदा वा उकोसिया अट्ठारसमुहसा राती भवति जहणणे दुवालसमुहने दिवसे भवति तदा णं उकोसिता अड्डपंचममुत्ता रातीए पोरुसी भवति, जहलिया हिता दिवसस्स पोरुसी भवति ।। कया णं भंते ! उकोसए अट्टारसमुहने | दिवसे भवति ? जहानिया दुवालसमुद्दता राती भवति ? कदा वा उकोसिया अट्टारसमुहुत्ता राती भवति ? जहन्नए दुवालसमुद्दते दिवसे भवति ?, सुदंसणा ! आसाढ पुनिमा उकोसए अट्ठारसमुह ते दिवसे भवति, जहनिया दुवालसमुहसा रादी भवति पोसपुनिमाए णं उफोसिया अट्टारसमुत्ता राती भवति, जहन दुवालसमुहुते दिवसे भवति । अस्थि णं भंते! दिवसा व रातीतो य (374) कालद्वारं ॥३६८|| Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥३६९॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [७२९१/७२९-३ आयं [१२३...]] मूलं [- /गाथा -1, ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - समा चैव भवति, हंता अस्थि, कया णं भंते! दिवसा य रातीतो यसमा चैव भवंति ?, सुदंसणा ! चित्तासोपुनिमासु णं एत्थ णं दिवसा व राती यसमा चैव भवति, पन्नरसमुडुते दिवसे पद्मरसमुद्दा राती भवति, चतुभागमुहुत्तभागूणा उमुतादिवसस्स वा राती वा पोरुसी भवति । सेत पमाणकाळे । एवं जहा महावले सच्चे || कालो जो कालतो बनो, भावकालो छण्हें भावाणं जस्स जस्स जो कालो ठितिविसेसो पज्जवा सा, एसो वा एगगुणकालमादी, तत्थ ओदतितो अत्थेगतितो अणादीओ अपज्जवसितो, अत्थेगतितो अणादीतो सपज्जवसितो, अत्थेगतितो सादीओ सपज्जवसितोय, खवितो सादीओ अपज्जवसितो, णवरं दाणादिलद्विषणयं चरितं च सादीओ सपज्जयसिदो, खतोत्रसमिओ जहा उदयितो, पारिणामिओ दुविहो- सादीओ वा सपज्जवसिओ पुग्गलस्थिकावादी, अणादयो वा अपज्जवसितो आगासादी, एत्थ जा जस्स भावस्य संचिणाठिती अंतरं वा सो भावकालो, अहवा णाणदंसणचरिचाणं जो कालो सो भावकालो, तत्थ उदयियो भावो |अभवियाणं मिच्छादयो भावा अणादीया अपज्जवसिया, भवियाणं ते चैव मिच्छतादयो अणादीया सपज्जवसिया, बारगादी सादी सपज्जव०, उवसमिओ पुण उवसामगसेडिमादी पड़च्च सादी सपज्जबसितो, खइओ सम्मत्तणाणदंसणसिद्धताई पटुच्च सादी अपज्जवसितो, खओवसमिओ णाणाई केवलबज्जा सादी सपज्जवसिता, मतिअन्नाण- सुयअन्नाणा भव्याणं अणादी सपज्जवसिया, ताई चैव अभवाणं अणादी अपज्ज०, पारिणामिओ पोग्गलधम्मो सादी सपज्जय०, धम्माधम्मागासत्थिकाया पारिणामिएन भावेग अणादी अज्जर, एस भावकालो । (375) क्षेत्रद्वारे महासेन वने सूत्र रचना ।।३६९ ।। Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥३७०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र- १ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [७२९/७२९-७३३], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 एत्थ कतरेण अधिकारो १, एत्थ पमाणकालेण अधिकारी, तत्थवि दिवसपमाणकालेण, तत्थवि पदमपोरुसीए भासितं एस तुसद्दत्थो, भावकालेवि सति तेणं खतोवसमिएण य अधिकारी, सेसाणि विकोवणट्टाए भणिताणित्ति । इयाणि खेतं, क्षितो त्राणं क्षेत्र, तं चउन्विहं नामस्थापने पूर्ववत् । दव्वखेत्तं महसेणवणुज्जाणं, भावखेचं गणधरा वहसाहसुद्ध० ॥८- ११।।७३४॥ खइयम्मि० ॥८- १२।।७३५।। तं कहं गदितं गोयमसामिणा १, तिविहं (तीहिं) निसेज्जाहिं चोदस पुम्बाणि उष्पादिताणि । निसेज्जा णाम पणिवतिऊण जा पृच्छा । किं च वागरेति भगवं ? 'उप्पन्ने विगते धुवे', एताओ विनि निसेज्जाओ, उप्पनेत्ति जे उप्पनिमा भावा ते उपागच्छंति, विगतेत्ति जे विगतिस्वभावा ते विगच्छंति, धुवा जे अविणासम्मिणो, सेसाणं अणियता मिसेज्जा, ते य ताणि पुच्छिऊण एगतमं ते सुत्तं करेति जारिसं जहा भणितं । ततो भगवं अणु मणसी करेति, ताहे सको बहरनाभे थाले दिव्वगंध गंधिकाणि चुन्नाणि छोटूण सामिं उबगतो. ताहे सामी सीहासणाओ उद्वेत्ता पडिपुण्णमुद्धिं केसराणं गेण्डति, ताहे गोयमसामीप्यमुहा एकारसवि गणहरा तीसी ओणता परिवाडीए ठायंति, ताहे देवा आउज्जगीयसदं निरंमंति, पुथ्वं तित्थं गोयमसामिस्स दव्वेहिं पज्जबेहिं अणुजाणामित्ति चुन्नाणि सीसे छुमति, ततो देवताणिवि चुन्नवासं पुष्पवासं च वासंति, गणं च सुहम्मसामिस्स घुरे ठावेत्ता णं अणुजाणति । एवं सामातियं गोयमसामिस्स अणंतरणिग्गतं, सेसे परंपराए । एवं सामातियं निग्गत, खेत्तत्तिदार गतं । इयाणि पुरिसेत्ति द्वारं । पुरं नाम सरीरं, पुरे शयनात् पुरुषः, तस्स दसविहो निक्खेवो । णामदुवणाओ मताओ । (376) सूत्र रचनादि ॥ ३७० ॥ Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [७३६/७३६-७४१], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत अर्थ पुरुष आवश्यक FL दवाभिलाव०॥४- १७३६॥ दवपुरिसो दुविहो- आगमतो नोआगमतो य, आगमतो तहेव, णोआगमतो तिविधी-IINER मम्मम पर्णी"IPI जाणगसरीर ३, पतिरिचो तिविहो- एगभविओ बद्धाउओ अभिमुहनामगोत्तो, अहवा दवपुरिसो दुविहो-मूलगुणनिव्वत्तपुरिसो कथा उपोदयाय उत्तरगुणनिव्वत्तपुरिसोय, मले सरीरं उत्तरे चित्रक, अभिलावारिसो घडो पडो रधो, पिंप(चिंध)पुरिसो महिला प्ररिसनेवत्येण IX नियुक्ती e | नेवत्थिता, प्रजननसहितो वा नपुंसका, वेदपुरिसो पुरिसवेदं ना वेदेति, धम्मपुरिसो साधू, अत्थपुरिसो मम्मणपण्णिओ, कोऽर्थः सारक्खणपिंडणसमत्थो॥ ॥३७॥ तेणं कालेणं तेण समएणं रायगिहे सेणिओ चेल्लणा देवी, मम्मणो पंनिओ, अणेगा तस्स पनवाडा, अमदा महासरिसं पडति, राया य ओलोयणे देवीय समं अच्छति, ण कोति लोगो संचरति । ताहे रायाणि पेच्छति मणूस णदीओ बुडिताण किंपि गेण्हतं, ताहे भणति--"मासरष्टभिरहा च, पूर्वेण वयसाऽऽयुपा । तत् कर्तव्यं मनुष्येण, यस्यांते सुखमेधते ॥१॥" सो य अल्लग उकडति, मा पणएण उच्छाइज्जिहिातात्त । देवी रायाण भणति-जहा णदीओ तहा रायाणाऽवि, कई , जहा णदीतो समुई। पाणियभरितं पविसंति, एवं तुम्भेऽपि ईसराणं देह, ण दमगदुग्गयाण, सो भणति-कस्स देमि १, ताहे सा तं दरिसेति, ताहेदा मणुस्सेहिं आणावितो, रमा पुच्छितो, सो मणति--पालो मि नितिज्जो णत्थि, राया भणति--जाह गोमंडले, जो पहाणो पतिल्लो 18| तं से देह, तेहिं दरिसिता, सो भणति--ण एत्थ तस्स सरिसतो अत्थि, तो केरिसओ तुज्झ, मणूसा गता, जाव रनो घराणुरूवं घरं ॥२७॥ दमतिणीता, तेण जेमाविता, ताहे से तेण सिरिघरे सम्बरयणामो बहल्लो दरिसितो वितिओ य अद्धकतो य, तेहिं रमो निवेदितं, दीप अनुक्रम अथ 'मम्मण श्रेष्ठिन: कथानकं (377) Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७३६/७३६-७४१], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत कराया विम्हिओ भणति-अहपि ता तं पेच्छामि, पनिओ भणति--सत्तमे दिवसे, ताहे जहा सालिमहेण आयोतितं एवं तेणवि | 8 कारणद्वार आवश्षकाला ५ सकारेचा संतेपुरं रायाणं तोसिय घरं अतिणीओ मणिरयणपणासितंधकारं, एगं च निम्मायं, बीयस्स य सिंगाणि कुकह पट्टी य उपोद्घात अणिम्मविता, ताहे विम्हितो भणति-सच्चं मम णस्थि एरिसो, धन्नोऽहं जस्स मे एरिसा मणूसा, ताहे उस्सुको कतो, राया तेण* नियु |विपुलेहि मणिरयणेहिं पूजिओ | एस अत्थपुरिसो ॥ भोगपुरिसो चकवट्टी । भावपुरिसो जो जीवो अवगतबेदो पगतित्थो । एत्वं भावपुरिसेण बेयपुरिसेण य अहिकारो, सेसा विकोवणवाए । भावपुरिसो सामी वेदपुरिसो गोयमसामी । पुरिसेत्ति दारं गतं ॥ ॥३७२॥ इयाणि कारण, तं चउरिवह-णामट्ठवणाओ गताओ, दब्वकारणं दुविहं-तद्दब्वकारणं अन्नदञ्चकारणं च, तद्रव्यकारणं घटस्य मृत्पिडः, अन्यद्रव्यकारण चक्रदंडसूत्रोदकपुरुषप्रयत्नादयः, अथवा द्रव्यकारणं द्विविध-समवायिकारण असमवायिकारणं, च, समवातिकारण पटस्य तंतवः, तंतुम पडो समवेत इति, असमवायिकारणं वेमनलकाअंछनिकातुरिबिलेखनादीनि, अहबा | &ानिमित्तकारणं च नैमित्तिककारणं च, कडस्स वीरणा निमित्तं, नैमितिकानि पुरुषप्रयत्नरज्जुकीलकादीनि, एवं घटपटादीनामपि । अथवा इदं षट्विधं-द्रव्यकारण, कारणति वा कारगति वा साहति वा एगट्ठा, जहा-कर्ता करणं कर्म संप्रदानमपादान संनिधानमिति, तत्र निदर्शनं घटभावे कर्ता कुलाला, क्रियानिवर्तक इति, करणं दंडाद्युपकरण, क्रियानिवर्तनमिति, कर्मणि 15॥३७२॥ &ा निर्वयों घट एव, क्रियमाणक्रियया च्याप्यमान इति, संप्रदानं यदर्थ करणं, यनिमित्तमसी क्रियते, क्रियया व्याप्यते यनिमित्त-IN मिति, यत्प्रयोजनमंगीकृत्येत्यर्थः, अपादानं मृत्, पिण्डवधिरिति, सन्निधानमधिकरणमाधार इति, स च देशदेशकालादि, यथा दीप अनुक्रम (378) Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७३६/७३६-७४१], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIC नियुक्ती है। दीप प्रत्यय चक्रमस्तकादौ स्वप्रस्तावे च निष्पद्यते घट इति, एवं पटादावपि भाव्यं । भावकारणं दुविहं-पसत्थं अपसत्थं च । आवश्यक लक्षणद्वारे-- चूणौँ ___तत्थ ज अप्पसत्थं तं संसारस्स, तं एगविहं वा दुविहं वा तिविहं वा चउ०पंच० छब्विहं वा, एवमादि बहुप्पगारं वा, तत्पर . उपोद्घाता | असंजमो संसारस्स एगविहं कारण, पयत्तवतो पावकम्मेहितो नियत्ती संजमो, तविवरीतो असंजमो, दुबिहे-अाण अविरती य, | तिविहं अनाणं मिच्छतं अविरती य, एवं विभासा । पसत्थं मोक्खकारण, एगो संजमो, दोन्नि विज्जा चरणं च, त्रीणि शानद॥३७३॥ शेनचारित्राणि, एवं विवरीतं विमासा । अहवा जत्तियाणि असंजमट्ठाणाणि ताणि संसारस्स, संजमट्ठाणाणि मोक्खस्सचि, एत्थ द्र पसत्थभावकारणेण अहिगारो। कहं - तित्थगरो किं कारण भा०॥८-१९७४२॥ त किह वेदेयवं, अगिलाए धर्म कहेंतेणं पवावेतेण सिक्खातेण यद तं च कहिं बद्धं किह वा बर्द्ध , तित्थगरभवग्गहणाओ ततिय भवग्गहणं ओसकतित्ताण, नियमा मणुयगतीए, नियमा सम्मदिड्डी ४ तिण्डं अनतरो संजतो वा असंजतो वा मीसो वा, इत्थी वा पुरिसो वा पुरिसणपुसतो वा, सुकलेसो उत्तमसंघयणो अच्चंत विसु-४ झमाणपरिणामो, तत्थ बद्धं वेदेयव्यं, कह बद्धं वीसाए कारणांह बद्धं । नियमा० ॥८-२११७४४।। गोयममादा. सामादियं ।।८--२२७४५।। णाणनिमित्तं, णाणं किं निमिर्च ?, सुंदरमंगुलाणं भावाणं उबलद्विनिमित्रं, सुंदरमंगुलभावा किं निमित्तं उबलन्मते ?, तेहिं उवलद्धेहि पविची निवित्ती य भवति, सुभेसु पविती ॥३७३॥ | असुभेसु निविची, पवित्तिणिविचिओ य संजमतवनिमित्त, संजमतवा अणासबबोदाणनिमितं, अणासववोदाणा अकिरियानिमित्त अनुक्रम अथ लक्षण-द्वारं कथयते (379) Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्तौ ॥ ३७४ ॥ छ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) निर्युक्तिः [७४५/७४५-४४८ मूलं [- /गाथा ], आयं [१२३...]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - अकिरिया असरीरतानिमितं असरीरता सिद्धिनिमित्तं, सिद्धी अन्यावादकारणं इत्यर्थं सामाइयं सुगंति अहवा ताओ गाहाओ। कारणंति दारं गतं ॥ इयाणिं पच्चओ, सो चउव्विहो--- णामडवणाओ गताओ । दव्यपच्चओ जो कम्हिवि सकिज्जति सो तेसिं पच्चयं करेति, तेल्ले तत्तमासगं उक्कद्भुति, जति अकारी तो ण उज्झति, फलादिणा वा दव्वेण पच्चयं करेति, दव्वपच्चओ एवमादि, भावपच्चतो तिविहो- ओहि मण० केवलणाणं च अहवा को पच्चओ अरहतो जेण मते जहत्थमिदं भणितं, को वा गणहराणं जेण एस जहत्थं भणति तो अम्हे णिसामेमो, एवमेतं न अन्नदा इति ?, भन्नति केवलणाणित्ति अहं० ॥८- २७|| ७५० ।। एतेसिंपि पच्चयो, 'वीतरागो हि सव्वन्नू, मिच्छा व पभासति । जम्दा सम्हा वती तस्स, तच्चा भूतत्थदरिसणी ॥ १॥ ति । पच्चपत्ति दारं गतं । इयाणिं लक्खणेत्ति दारं, लक्खिज्जति जेण तं लक्खणं, तं च चोदसविहं, नामस्थापने पूर्ववत् दव्यलक्खणं जहा अग्गिस्स उण्हता खंडस्स मधुरता एवमादि, अहवा आपो द्रवाः स्थैर्यवती वा पृथिवी [वृत्तं] सारिस लक्खणं यथा- अस्मिन् देशे घटा ऊर्ध्वग्रीवा अधस्तात्परिमण्डला विकुक्षिणः तथाऽन्येष्वपि देशेषु, सामान्यलक्षणं अप्पितववहारिगं अणपितववहारिगं च, अपितववरिंग जहा पढमसमयसिद्धो पढमसमयसिद्धस्स सिद्धत्तणेण अप्पितववहारितो, अवंतरसामन्त्रेण समाण इत्यर्थः, अन्नो अगष्पितववहारिको, तेण सामनेग ण समाणो, अन्त्रेण समान इत्यर्थः एवं घटपटरथसर्पपत्या भावाः । अहवा इमो पगारो गमितं प्रदर्शित उपनीत अर्पितमित्यर्थः, अर्पितववद्दारिगं जहा सिज्झमाणो आदिको एगसमय सिद्धस्स सिद्धत्तणेण समाणो, अगष्पितयवहारिगं जहा एगो सरिसवो तहा बहवे जहा बहवे तहा एगो सरि " (380) लक्षणद्वारं ॥ ३७४॥ Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७५०/७५०-७५५], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत 4 दीप दसवो, एस चितिओ पगारो सामवलक्समस्स । आगारलक्खणं अणगविई गंतुमागारं देति भोत्तुमागारं देति सोत्तुमागारं देति, पर्वलक्षणद्वारं आवश्यक वक्तुं द्रष्टुमित्यादि, कहं गतुं ?-अवलोयणा दिसाण वियंभण साडगस्स संठवणा । आसणसिढिलीकरणं पट्टितलिंगाणि चचारिश चूणां ॥१॥ भो-निशाति मायणविधि बदणं पस्संदते य से बहुसो । दिट्ठी य भमति तत्थेव पडति छायस्स (खुक्षितस्य) लिंगाणि भाषावा ॥१॥ रसण वा विक्रियते ततोस वा पुलोएति । सोतुं जहा 'ओहीरते य णिहाति तस्सविय सइयकामयंतस्स । दुहियस्स ओमिलाइ मज्झत्थं वीयरागस्स ॥१॥ द्रष्टुं जहा- आगारेहिं सुणेमो गाणावन्नेहिं चक्खुरागेहिं । जणमणुरत्तविरतं पहचिचं च। ॥३७५॥ दुई च ॥१॥ आकाररिंगतै वैः, क्रियाभिर्भाषितेन च । नेत्रवक्त्रविकारैव, गृह्यतेऽन्तर्गतं मनः॥२॥ अच्छीणि चेव जाणवि. ६॥ ३ ॥ रुद्रुस्स खरा दिट्ठी उप्पलधवला पसन्नचित्तस्स | दुहियस्स ओमिलायात गंतुमणस्सुस्मुया होति ॥ ४॥ गंतुं पडिआग-| तलक्खणं चउबिह-पुरतो वाहतं पच्छतो वाहतं दुहतो वाहतं दुहतो अवाहतं, पुरतो वाहतं जहा-जीवे भंते ! नेरतिते ? नेरतिवे जीव, गोयमा! जीवे सिया नेरतिते सिय अनेरतिते नेरतिते पुण नियमा जीपच्छतो बाहयं जहा 'जीवति भंते! जीवे जीवे जीवति ?, गोयमा ! जीवति ता नियमा जीवे, जीये पुण सिय जीवति सिय नो जीवति , दुइओ वाहयं जहा 'भवसिद्धिए गं | मते ! नेरतिते ? नेरइए भवसिद्धिए ?, गोयमा ! भवसिद्धिए सिय नेरतिते सिय अनेरतिते, नेरतितेऽवि सिय भवासद्धिए सिम अश्या सिद्धिते, दुहतो अव्याहतं जहा-जीवे भंते ! जीवे?,जीवे जीवे ,गोयमा ! जीवे नियमा जीवे, किमुक्तं भवति?-जीव उपयोगा, उपयो- २५५ गोपि जीयः। णाणचीलक्षणं चउबिह, दब्वतो ४, दवणाणची दुबिहा- तहबणाणत्ती अन्नदव्यणाणची य, तद्दथ्वणाणची जहा अनुक्रम स्पष्ट (381) Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥३७६ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र- १ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [७५०/७५०-७५५], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स दव्वतो णाणा, अमदब्वणाणती परमाणुपोग्गले दुपदेसियादीण दव्वतो नाणा, एवं दुपदेसि याणवि भावेयव्वं, एवं खेचओ एगपदेसोगाढादीणा, कालओ एगसमयद्वितीगादीणा, भावओ एगगुणकालगादीणा तत्राणची अन्नदध्वजाणती य भावेयच्या असे भगति तद्दव्वणाणची जहा परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलस्स, (अष्ण) दव्वतो अ णाणची परमाणुपोग्गले परमाणुपोग्गलवतिरित्तस्स, दव्वतो माणची अणाणत्तिउभयादेसेणं अवत्तन्वं, एवं दुषएसियादि जाब दसपदेसितो तिधा भाणियच्ची, एवं तुल्लअसंखेज्जपदेसिओ, एवं तुलअणतपदेसिओ उ, खेततो एगपदेसोगांढ पोग्गले एगपदेसोगाढवतिरित्तस्स पोग्गलस्स खेत्तओ णाणती एवं जाव तुल्लअसंखेज्जपएसोगादेति, एवं कालतोवि भाणियव्वं, भावतो एगगुणकालगादी, जं से जाणतं सा से णाणसी जं से अणाणतं सा से अनाणत्तीति । लक्षणद्वारं निमित्तलक्खणं अडुंगमहानिमित्तं, तंजहा भोमुप्पातं सुविणंतलिक्खं अंगं सरं लक्खणं वंजणं, उप्पादलक्खणं अप्पितववहारितं अणप्पियत्रवहारियं, अप्पिययवहारिति वा विसेसादिति वा एगट्ठा, तब्बिवरीतमियरं तत्थ अप्पितं जहा पढमसमयसिद्धो सिद्धत्तणेण उप्पन्नो, अणप्पितो जो जेण भावेण उप्पन्नो । विगतिलक्खणं दुविहं- अप्पितवव० अणप्पि०, अप्पियं जहा चरिमसमयभवसिद्धिओ भवसिद्धियत्तणेणं विगतो अणप्पितं जो जेण भावेण विगतो। वीरियलक्खणं, वीरियति वा सामत्थंति वा ४ ॥ ३७६ ॥ सतीति वा एगट्ठा, जहा वायामलक्खणो जीवो, तेसुं तेसुं भावेसु यस्मादुत्पद्यते, विरियंति बलं जीवस्स लक्खणं, जं च जस्स सामत्थं दध्वस्त चित्तरूवं जहा विरियं महोसहादीति । भावलक्खणं छन्विहं उदतितो उदयलक्खणो, उबसामितो उचसमलक्खणो, (382) Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्ती ॥३७७॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्तिः [७५०/७५०-७५५], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 खतियो अणुष्पत्तिलक्खणों, खतोयसमितो मसिलक्खणो, परिणामितो परिणामलक्खणो, संनिवातितो संजोगलक्खणो, सामातिय पडुच भावलक्खणं मनति, अहवावि भावलक्खणं चतुब्विहं सहद्दणमादीति, तंजहा सद्दहणलक्खणं जाणणालक्खणं विरतिलक्खणं विरताविरतिलक्खणं, सदहानलक्खणं सम्मत्त सामाइयं जाणणालक्खणं सुतसामातियं विरतिलक्खणं चरितसा० विरताविरतिलक्खणं चरित्ताचरितसामाइयं, तित्थगरा एवं चउलक्खणसंजुतं सामाइयं परिकर्हेति । तेऽवि गोयमसामिप्यभितयो जम्हा चतुलक्खणसंजुत्तमेव तित्थकरो भासति तेण तदेव निसामेति । लक्खणं गतं ॥ इयाणिं नए समोतारणा, नयंतीति नया, वत्थुततं जहा अवबोहगोयरं पावयंतित्ति, अन्ने भणति नयंतीति नयाः कारगाः व्यंजगाः प्रकाशका इत्यर्थः, ते य सत्त-णेगमो संगहो यवहारो उज्जुसुतो सो समभिरूढो एवंभूतो य एतेसिं लक्खणं विभासितब्वं, तत्थ णेगेहिं माणेहिं मिणतित्ति गमो ण एगगमो णिरुत्तविहाणेण, माणंति वा परिच्छेदोति वा गहणपगारोचि वा एगट्ठा, मिणतित्ति वा परच्छिंदतित्ति वा गिण्हतित्ति वा एगडा, सामन्नमणे गप्पगारं विसेसं वा अगप्पगारं जेण गमेति एत्थ पत्थयवसहिपएसदितेहिं तेण गमो घटदिहंतेण वा, जहा घटो णामडुवणादव्यभावभेदभिन्नो वत्थुपरिणामो पृथुवुभोदराधाकारा सौवर्णः मार्तिकः पाटलिपुत्रीयः वासंतकः पीतः कृष्णश्रेत्येवमादि भाव्यं । संगहित पंडितत्थं० ॥ ८-३३ ।। ७५६ ।। समस्तो गृहीतः उपान्तः संगृहीतः कथं १. पिंडितः संमीलिता क्रोडीकृतः अभेदीकृतः सामान्यीकृत इत्यर्थः कोऽसौ १-अत इत्यर्थः, संगहितो पिंडितो अत्थो जमेतं संगहितपिंडितत्थं । किं तं ? -संग (383) लक्षणनयाव ॥३७७॥ Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [७५६/७५६-७५८], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGE हवयण-संगहभणण, एवं समासतो ब्रुवते तद्विदः, किमुक्तं भवति ?-सामान्यार्थावधारणं विशेषार्थावधारणं वा, यदुक्तं-तत्र | नयाआवश्यक सामान्यविशेषयोरपृथक्त्वात् सामान्यस्यैवावधारणे विशेषस्य तदंतर्भूतस्यावधारणमेवेति सामान्यमेव संगृह्णाति संग्रहवचनं, यथा धिकार चूणा II पूर्वाभिहितः अनेकप्रकारोऽपि घटः मानादिभेदेवि घटसामान्यान्तभृत इत्यभिन्न इति । उपोद्घात बच्चति विणिच्छियत्थं यवहारो सब्बदब्बसु । सामान्येन-घटत्वमात्रेण संव्यवहतुं न शक्यत इति विनिश्चयार्थ | नियुक्ती ब्रजति व्यवहारः, अधिकश्चयो निश्चयः-सामान्यं विगतो निश्चयः विनिश्चयः-निःसामान्यभावः तमिमितं व्रजति गच्छति सर्वद्र॥३७८॥ 1व्यविषये, विशेषमात्रावलंबी व्यवहार इत्यर्थः, यथा घटमानयेत्युक्ते न ज्ञायते कतमो घट इति निश्चयः क्रियते, सौवर्ण राजतं | | वा इत्यादि भाग्य । एवं व्यवहारेणाक्ते सत्याह ऋजुमत्रः-यूथा सामान्येन न शक्यते संव्यवहाँ तथाऽतीतेन भन अनागतेन | | वा अनुत्पन्नेन इति । पच्चुप्पन्नग्गाही उज्जुसुतोत्ति वर्तमानमेव गृह्णातीत्यर्थः । एवं ऋजुसत्रण स्वमते ख्यापिते आह शब्द:का यथाऽतीतानागताभ्यां न शक्यते संव्यवहाँ तथा नामस्थापनाद्रष्यलिंगवचनभित्रघटैन संव्यवहारः शक्यते कर्तुमिति, तत्र हलिंगभिन्नो यथा तटस्ती तटमिति, वचनाभियो यथा आपो जलमिति, अतः इच्छति विससिततरं पच्चुप्पण्णं णयो सद्दो-४ त्ति, किमुक्तं भवति ?-वर्तमानेनापि भावघटेनैव लिंगवचनाभित्रन संव्यवहारः प्रवर्तत इत्येवभूतो भावघटा प्रमाणं, स तु घटः | 13 कुंभो विति । एवं तेनाप्यभिहिते आह समभिरूढः यथा नामादिघटन शक्यते संव्यवहतुं तथा घट इत्युक्ते न फुटे संप्रत्ययः ३७८॥ ....... भिमप्रवृत्तिनिमित्तत्वात् , ततश्र यदा घटार्थे कुटादिशब्दः प्रयुज्यते तदा वस्तुनः कुटादस्तत्र संक्रांतिः कृता भवति, एवं च वत्थूओ संकमणं होति अवत्थू णये समभिरूढेत्ति, सर्वधर्माणां नियतस्वभावत्वादन्यत्र संक्रांत्योभयस्वभावापगमतो HASESHWAR दीप अनुक्रम SEXCAREERE | अत्र 'नय अधिकारः कथयते (384) Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [७५६/७५६-७५८], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत HEIGA दीप आवश्यक 1. अवस्तुतेत्यर्थः । एवमभिरुवेनाभिहिते आहैर्वभूतः यथा घट इत्युक्त कुट इत्यवस्तु, एवं पट इत्युक्ते यदा न चेष्टते तदा न घटो, II चूर्णी यदेवासी चेष्टते तदैव घटः, 'घट चेष्टाया' मितिकृत्या, एवं यदैव पुरं दारयति तदैव पुरंदर, नान्यदा, मा भूत्सर्वपुरंदरप्रसंग |PIN Mधिकार: उपोद्घात हा इति । बंजणमत्थ तदुभयं एवंभूतो विसेसेतित्ति, इदमुक्तं भवति-व्यंजनं विशेषयति, एवं अर्थ, तदुभयं च । तत्र व्यंजन | नियुक्ती | यथा-घटशब्दः तदैव व्यंजनं यदैव विशिष्टचेष्टावन्तमर्थ व्यनक्ति, अन्यदा स्वव्यंजनम् अवस्त्विति, अतिप्रसंगात , तथा अर्थ विशे पयति, यथा-यदैव विशिष्टचेष्टावानर्थस्तदैव घटः, अन्यदा त्वघटो, अवस्त्वित्यातिप्रसंगादेव, तथा तदुभयं शब्दमर्थेन विशेषय॥३७९॥ त्यर्थ च शब्देन, यथा यदैव योपिन्मस्तकव्यवस्थितो जलाइरणादिचेष्टावानर्थो घटशब्देन व्यज्यते तदैवासौ घटः, तब्यंजकश्च शब्दः, अन्यदा तु वस्त्वंतरस्येव चेष्टाऽयोगादघटत्वं, तध्वनेश्वाव्यंजकत्वमवस्तुत्वमिति नयसमासार्थः । एवमेते सप्त नयाः, किमर्थ मूलग्रहणं इति चेत् ? उच्यते-भेदोपप्रदर्शनार्थ, को मेदः १, भमति____एकेको य सयविहो ॥८-३६ ।। ७५९ ।। एकेको शतभेद' इति सप्त शतानीति, वितिओऽविय आदेसो पंच सया, नणु किमिति?, तित्रिवि सद्दनया एगो चेव, तेण पंच सया, णेगमसंगहववहारउज्जुसुयसदा । एत्थ उदाहरण-एत्थ एकेको उ सयभेद इति | पंच सया। अपिचसदादावि आदेसो, जहा छ मलनया, णेगमो दुविहो-संगहितोय असंगहितो य, संगहितो असंगहं पविट्ठो, असंगहितो ववहारं पविट्ठो, एकको य सयविहो, एवं छस्सया । अहवा चत्तारि मूलनया, नेगमा संगहितो संगहे पविट्ठो, असगहितो असंगहं, तेण संगह बवहार उज्जुसुय सद्दा चत्वारि णया। तेवि भज्जमाणा एकेको सयविहो, एवं चत्वारि नयसया । | अहवा दो मूलनया-दव्याडिओ य पज्जवद्वितो य, एकेको सयविहो, एवं दो णयसया। अहया दो नया बावहारिओ गच्छतितो अनुक्रम 144 ॥३७९॥ (385) Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति: [७५९/७५९], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणौँ 181 सूत्रांक SIRESEARS दीप श्री 18य, तो उदाहरण-चावहारियण यस्स कालतो भमरो, णेच्छतियणयस्स पंचवो जाव अडफासो । अहवा दो मूलणया-अप्पिय-15 नयाआवश्यकता ववहारितो य अणप्पियववहारितो य, उदाहरणं जीवो नारकत्वेनार्पितः जीवत्वेनानापितः, एवं तिर्यग्मनुष्यदेवत्वेनापि भाग्य । धिकारः अहवा दो नया तीयभावपन्नवतो य पडुप्पन्नभावपत्रवतो य, उदाहरणं-'नेरतियाण भैते ! किं एगिदियसरीराई ?' आलावओ, एवं नियुक्ती एते उल्लोयेण णया भणिता । एतेहिं किं पयोयणं', मनति MI एतेहिं दिहिवादे ॥ ८.३७ ।। ७६० ।। एतेहिं सत्तहिं णयसहि पंचहि वा दिडिवाते परूवणा-पन्नवणा उपप्पदरिसणा, ॥३८०॥ किं दिविवादे सवत्य एतेहिं परूवणा, उच्यते, कत्यह मुत्तढमत्तकहणा य । इहई कालियसुत्ने अणम्भुवगमो सवेडिं, मूलणयेहिं तु सतहि अधिकारो प्रायशः, ते पुण समासतो तिनि-एको दवहितो सुद्धो संगहो, पज्जवहितो सुद्धो एवंभूतो, मज्झिमा है दबडितपज्जवहिता, एतेहिं तिहिं किं कारण अहिगारो, जेण भणितं णस्थि णतेहिं विहणं० ॥८-३८ ॥ ७६१ ॥ को दृष्टान्तः-यथा वृक्ष इति प्रातिपादिके सर्वासां विभक्तीनां समवतारः, यथा वा सर्व वाङ्मयं धातुविभक्तिलिंगाप्समिति, यदि एवं तो ओसन्नग्गहणं किं ?, सबस्थ किमिति ण भण्णति ?, भण्णतिआसज्ज तु सोतारं गए णयविसारदो बूया, पुरिसज्जातं पडुच्च व जाणयो सब्वे गये पमोज्जा । जतो मृढणतियं सुतं कालिय० ॥८-३६क्षा७६२।। मूढा-अविभागत्था गुप्ता नया जैमि अस्थि तं मूढणतियं, तेण ण णया सव्वत्थ ॥३८०॥ समोतरंति । इह किं कदादी समवतरिज्जियाइया , भन्नति-अपुहुत्ते समोतारो णत्थि पुहुत्ते समोतारो । अने भणति-इहाल कालियाणुओगे अणुब्भवगम्मति सर्वे, किमर्थमिति चेत् व्यवहारविधिरिक्तत्वात् सूक्ष्म उपरिष्टत्वात् । जेण भन्नात-'तेसामेव विय अनुक्रम (386) Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं -/गाथा-], नियुक्ति : [७६१/७६१], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIGA उपोद्घातात प्पा साइप्पसाहा सुटुममेदा, उक्तं च-चवहारेणऽत्थपची अणप्पितणये अ तुच्छमासाए । मूढणयअगमिएण य कालेण य कालियं नयाआवश्यक नेयं ||१|| जत्थवि होज्ज तत्थवि तिहिं आदिल्लहिं नतेहि, किं कारण तिहिं अहिगारो, किं नयविरहितं णो अरिथ', उच्यते धिकार: चूणीं णस्थि णतेहि विहणं०॥ ८-३९ ।। ७६१ ॥ किन परूविज्जति, उच्यते मूढणइयं सुतं ।। ८-३९ ॥ ७६२ ।। जेण ताइयं दव्वं ण भवात, कह. ?, जेण णिच्चवादे अनियुक्तत्वप्रसंगः, अणिनियुक्ती चबादे वैफल्यं भवति, तेण ते भन्नति य न भन्नांत य, तेण मृढणतियं जेण य मुज्झति पन्नवतो श्तेहिं सम्वेहि समोतारे, ताण | सफतित्ति भणित होति, जदा पुरतं आसि तदा एगमि अणुतोगे चत्तारिवि परूविज्जाईतया, पुहुत्ते कते समाणे पत्तेयं २ भासि-II ॥३८॥ ज्जति ते अस्था, ततो तु बोच्छिन्ना, चरणे सेसा तिबिधि ण भासिज्जति, एवं सेसेमुवि । कदा पुण पुहुतं जातं ? केच्चिरं वा 18 कालं अपहु आसि ? जाब अज्जवहरा ताव अपुहु आसि, तेसिं आरतो पुहुत्तं जातं, जदा-इमं कालियं, इमो धम्मो, इमं| गणित, इमं दवियं, को पुण अज्जवइरो जीम अपुहुत्तमासि' जेण य कारणेण पुहुनै कतमिति इच्छामि तेसिं अज्जवतिराणं उट्ठाशाणपारियाणियं सोतुं, किह पुहुत्तं जातं । | तुंबवणसंनिवेसा ।। ८-४११७६४ ॥ पुब्बभवे सक्कस्स देवरबो वेसमगस्स सामाणिओ आसि, इतो य बद्धमाणसामी तेणं कालेणं तेणे समएणं पिडिपाणाम णगरी, तत्थ सालो राया, महासालो जुवराया, सेसि सालमहासालार्ण भगिणी जसवती, IMI 51 तीसे पीढरो भत्तारो, जसवतीए अत्तओ पिढरपुत्तो गागली णाम कुमारी, सामी समोसढो सुभूमिभागे, सालो निग्गतो, धर्म ॥२०॥ दासोच्चा जं नवरं महासालं रज्जे ठावेमि, सो अतिगतो, तेण आपुच्छितो महासालोवि भणति--अहपि संसारभतुम्विग्गो जहा 12 दीप अनुक्रम अथ वज़स्वामि कथानक आरभ्यते (387) Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७६४/७६४], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIG ॥३८२॥ श्री तुम्भे इह मेढी पमाणं तहा पव्वतियस्सवि, ताहे गागली कंपिल्लाओ सद्दावेऊण पट्टो बद्धो, अभिसिचो, राया जायो, तस्स माया वजस्वाम्यआवश्यक कंपिल्लपुरे णगरे दिमिया पिढरस्स, तेण ततो सद्दावितो, सो पुण तेसिं दो सिबियाओ कारेइ, जाव ते पब्बतिया, सा भगिणी धिकारः चूर्णी समणोबासिया जाता । तए णं ते समणा हॉतगा एकारस अंगा अहिज्जिता, ततेणं समणे भगवं महावीरे बहिता जणवयविहारं उपोद्घात नियुक्ती विहरति । तेणं कालेणं २ रायगिह णगरं, रायगिहे समोसढो, ताहे सामी पुणो निग्गओ चंप पधावितो, ताहे सालमहासाला है। सामि आपुन्छति-अम्हे पिट्ठीचंपं बच्चामो, जति णाम ताण कोऽपि बुझेज्जा, सम्म वा लभेज्जा ?, सामीवि जाणति जहा & ताणि संबुज्झीहिंति, ताहे सामिणा गोयमसामी से बितिज्जओ दिनो, सामी चंपं गतो, तत्थ समोसरणं, गागली पिढरो जसवती | य निग्गयाणि, भगवं धम्म कहेति, ताणि धम्म सोऊण संविग्गाणि, ताहे गागली भणति-जं णवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जेडपुत्तं च रज्जे ठवेमि, ताणि आपुच्छिताणि भणंति-जदि तुम संसारभयुब्बिग्गो अम्हेवि, ताहे से पुत्तं रज्जे ठावेत्ता अम्मापि तीहि सह पचतितो, गोयमसामी ताणि घेत्तूर्ण चं बच्चति, तेसि सालमहासालाणं पंथं वच्चताण हरिसो जाती-जाहे (जहा) दिसंसार उत्तारियाणि, एवं तेसिं सुभेणं अज्झवसाणेणं केवलणाणं उप्पन, इतसिपि चिन्ता जाता जहा अम्हे एतेहिं रज्जे ठविताणि संसारा मोइताणि, एवं चिंतेंताणं सुभेण अज्झवसाणेणं तिण्हवि केवलणाणं उप्पन्न, एवं ताणि उप्पननाणाणि चंप गयाणि, सामी पयाहिणं करेमाणाणि तित्थं णमिऊण केवलपरिसं पधाविताणि, गायमसामीवि भगवं वंदिऊण तिक्खुत्तो पादेसु पडितो उद्वितो ॥३८२॥ भणति-कहिं बच्चह ? एह तित्थकर वंदह, ताहे सामी भणति-मा गोयमा ! केवली आसाएहि, ताहे आउट्टो खामेति, संवेग च गतो, तत्थ गोयमसामिस्स संका जाता-माऽहं ण सिज्झिज्जामित्ति, एवं च गोयमसामी चिनति । इतो य देवाण संलाचो बट्टति SARKAR दीप अनुक्रम (388) Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEISE श्री आवश्यक जो अट्ठावयं विलग्गति चेतियाणि य वदति धरणिगोयरो सो तेणेव भवग्गहणेणं सिज्झति, ताहे सामी तस्स चित्तं जाणति ताव-|| " चू साण य संबोहणयं, एयस्सवि थिरता मविस्सतित्ति दोबि कताणि, एयस्सवि पच्चतो, तेवि संयुािरसतित्ति, सोऽवि सामि आ- वज्रस्वाम्य उपोद्घात ४ | पुच्छति अद्यावयं जामित्ति, तत्थ भगवता भाणतो-वच्च अट्ठावयं चेतियाणं बंदओ, तएणं भगवं हट्टतुट्ठो बंदित्ता गतो, तत्थ य धिकारः नियुक्ती अट्ठापदे जणवाद सोऊण तिनि ताबसा पंचपंचसयपरिवारा पत्तेयं ते अट्ठावयं विलग्गामोत्ति तत्थ किलिस्संति, कोडिन्नो दिमो सेवालो, जो कोडिनो सो चउत्थं २ काऊण पच्छा मूल कंदाणि आहारति सचिचाणि, सो पढम मेहले विलम्गो, दिनो छटुंछडेणं ॥३८॥ काऊण परिसडितपंड्डपत्ताणि आहारेति, सो वितिय मेहलं विलग्गो, सेवालो अट्ठमं काऊण जो सेवालो सर्यमतेल्लओ तं आहारोति, सो ततियं मेहलं विलग्गो, एवं तेवि ताच किलिस्सति । भगवं च गोयम ओरालसरीरं हुतवहतडिततडियतरुणरविकिरण सरिसतेयं एज्जत पेच्छंति, ते भणति--एस किर एत्थ थुल्लो समणो विलम्गिहिति', जं अम्हे महातबस्सी मुक्खा भुक्खा ण दातरामो विलग्गिर्नु, भगवं च गोयमे जंघाचारणलद्धीए संतुलूतापुडगंपि णीसाए उप्पयति, जाव ते पलोएति, एस आगतोति २ भएसो अईसणं गतोत्ति, ताहे ते विम्हिता जाता पसंसति, अच्छति य पलोएंता जदि ओतरति ता एयस्स वयं सीसा, एवं ते ४. पडिच्छता अच्छति, सामीवि चेतियाई वंदित्ता उत्तरपुच्छिमे दिसीमागे पुढविसिलापट्टए तुयट्टो, असोगवरपादवस अहे तं| रयणि वासाए उवगती। इतो य सकस्स लोयपालो वेसमणो, सोवि अट्ठापदं चेतियवंदओ एति, सो चेतियाणि वंदित्ता गोयम-18 सामी वंदति, ताहे सो धम्म कहेति, भगवं अणगारगुणे परिकहेतुं पवतो, अंताहारा पंताहारा एवं बति जहा दसन्मभदकहाणगे। ॥३८३॥ अणगारवन्नगे, वेसमणो चिंतेति-एस भगवं एरिसे साधुगुणे वन्नेति, अप्पणो य सा इमा सरीरसुकुमारता, एरिसा देवाणवि दीप अनुक्रम RAPESAR (389) Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्रों दीप श्री ४ीणस्थि, तत्थ भगवं तस्स आकृतं गाउं पोंडरीयं णाम अझयण पनवेति, जहा वनस्वाम्यआवश्यक पोक्खलावतीविजए पोंडरीगिणी णगरी णलिणिगुम्म उज्जाणं, तत्थ णं महापउमे णाम राया होत्था, पउमावती देवी, लधिकारः चूणा ताणं दो पुत्ताणं पुंडरीए कंडरीए य सुकुमाला जाव पडिरूवा, पुंडरीए जुचराया याबि होत्था । तेणं कालेणं तेणं समतेणं थेरा भगवंतो नियुक्ती भाधात जाव नलिणिवणे उज्जाणे समोसढा, महापउमे णिग्गते, धर्म सोच्चा जं णवरं देवाणु० पोंडरीयं कुमारं रज्जे ठवेमि, अहासु०, एवं जाव पोंडरीए राया जाते जाव विहरति । तएणं से कंडरीए कुमारे जुबराया जाते, तएणं से महापउमे राया पुंडरीय राय आपुच्छति, ॥३८॥ शतए णं से पुंडरीए एवं जहा ओदायणी, णवरं चोदस पुबाई अहिज्जति, बहहिं चतुत्थछट्ठ बहूई वासाई सामन्नं मासियाए सहि | भना जाब सिद्धे । अनया ते थेरा पुष्पाणुपुचि जाव पुंडरिगिणीए समोसढा, परिसा निग्गया, तए ण से पुंडरीए राया कंडरिएणं जुग-1 * रन्ना सद्धिं इमीसे कहाए लढे समाणे हढे जाव गते, धम्मकहा, जाव से पुंडरीए सावगधम्म पडिवण्णे जाव पडिगते, सावए जाते। | तए णं से कंडरीए जुबराया धेराण धम्म सोच्चा हढे जाव जहेदं तुन्भे बदह ज णवर देवाणु! पुंडरीय राय आपुच्छामि, तएणं | जाव पव्वयामि, अहासुह, तएणं से कंडरीए जाव थेरं णमंसति गमंसित्ता अंतियाओ पडिनिक्खमति २ तामेव चाउघंट आसरहद दुरूहति २ जहा जमाली तहेव जाव परचोरुहति, जेणेव पुंडरीए राया तेणेव उवागच्छति, करतल जाव पुंडरीयं एवं वयासी-1 13 एवं खलु मए देवाणु० थेराण जाव धम्मे णिसंते, सेवि य मे इच्छिते पडिच्छिते अभिरुतिते, तए णं अहं देवाणु संसारभउ-131 विग्गे भीते जम्मणमरणाणं, इच्छामिण तुज्झहिं अम्भणुण्णाते समाणे थेराणं जाव पव्वतित्तएचि, नएणं से पुंडरीए कंडरीय एवं वयासी- माणं तुम देवाणु० इयाणि थेराण जाव पव्वयाहि, अहं गं तुम महता महता रायाभिसेगेण अभिसिंचिस्सामि, तएणं से | अनुक्रम वजस्वामी-कथानक मध्ये पुंडरिक-कंडरिक कथानक वर्णयते (390) Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सुत्राक MIकंडरीए कुमार पुंडरीयस्स रनो एयमट्ठ यो आढाति णो परिजाणाति तुसिणीते संचिट्ठति, तए ण से कंडरीए पोंडरीय राय दोपचपिवजस्वाआवश्यक चौं तच्चपि एवं वयासी-इच्छामिण देवाणुप्पिया! जाव पवइत्तएत्ति, तएणं से पूंडरीए राया कंडरीय कुमार जाहे णो संचाएति विस-1M म्यधिक उपोद्घात पाणुलोमाहिं चाहिं आघवणाहि य सन्माणाहि य विनवणाहि य आघवेत्तए चा० ताहे विसयपडिकूलाहिं संजमभउब्वेगकारीदिकंडरीकनियुक्ती पन्नवणाहिं पनवेमाणे २ एवं बयासी एवं खलु जाता! निग्गथे पावयणे सच्च अणुत्तरे केवलिए एवं जहा पडिक्कमणे जाना ॥३८५॥ सम्बदुक्खाणं अंत करेन्ति, किंतु अही वा एगंतदिट्ठीए खुरो इव एगंतधाराए लोहमया व जबा चव्वेषब्बा वालुयाकबले इ निरस्साए गंगा वा महाणदी पडिस्सोतं गमणताए महासमुद्दे इव भुयाहि दुत्तरे तिक्खं कमियवं गरुयं लंबेयव्वं असिधारं ववंडू चरितव्यं, पो य खलु कप्पति जाता! समणाणं णिगंथाणं पाणातिबाए वा जाब मिच्छादसणसाल्ले वा नो० जाता! से अहाकम्मिएर ४ वा उद्देसिए वा मिस्सजाते इ वा उदरए पूतिते कीए पामिच्चे अच्छेज्जे अणिसटे अभिहडेति वा ठतिएइ वा रतितएति वा दातारभत्तेइ वा दुभिक्खभत्तेइ चा गिलाणमाई वा बदलियाभत्तेइ वा पाहुणगभने इवा सेज्जातरपिंडेति वा रायपिंडेति वा मूलमो-C यणेति या कंदमो० फलभो० बीयभो० हरियभोयणेति वा भोत्तए वा पातए वा, तुमं च णं जाता! सुहसमुचिते, णो चेव गं दुह-17 ४ समुचिते, णालं सीतं णालं उण्हं णालं खुहा णालं पिवासा णालं चोरा गालं वाला णालं दंसा णालं मसगा णालं वातियपेत्तिय सेभियसभिवाते वितिहे रोगातक उच्चावए वा गामकंटगे वा बावीस परोसहोवसग्गे उदिने समं अहियासेचएत्ति, ते णो खलु जाता ! अम्हे इच्छामो तुझ खणमवि विप्पओगं, तं अच्छाहि ता जाता अणुभवाहिरज्जसिरिं, पच्छा पब्बडाहसि, तए णं से कंडरीए ॥३८५॥ दिएवं वयासी- तहेवणं तं देवाणु० जहेतं तुम्भे वयह, किं पुण देवाणु निग्गंथे पावयणे कीवाणं कायराणं कापुरिसाणं इहलोग-| दीप अनुक्रम CAR CISCRes (391) Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णो उपोद्घात निर्मुक्तौ ॥३८६॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्ति: [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 | पडिबद्धाणं परलोग परंमुहाणं विसयतिसियाणं दुरणुचरे पागतजणस्स, वीरस्स निच्छियस्स ववसियस्स णो खलु एत्थं किंचि दुक्करं करणताए, तं इच्छामि णं देवाणु०! जाव पञ्चतित्तएत्ति, तए णं तं कंडराये पुंडरीए राया जाहे नो संचातति बहूहिं आघवणाहि य ४ आघवेत्तए वा ४, ताहे अकामय चेत्र निक्खमणं अणुमन्नित्था । तरणं से पुंडरीते कोईबिए सदावेति, एवं जहा जमालिस्स निक्खमण तहेब पुंडरीओ करेति पञ्चइतो जाब सामाइयमादीयाई एक्कारस अंगाई अधिज्जेति २ बहूहिं चउत्थ छट्ठमजाव विहरति । अनया तस्स कंडरीयस्स अन्तीह य पंतेहि य जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए यावि विहरति ॥ पुंडरीए तते तेथे भगवंतो अनया कयादी पुव्वाणुपुत्रि चरमाणा जाव पुंडरिगिजिए नलिणिवणे समोसढा, तए । से राया हमीसे जाब पज्जुवासति, धम्मकहा. तरणं से पाँडरीए राया धम्मं सोचा जेणेव कंडरीए अणगारे तेणेव उवागच्छति २ कंडरी बंदति णर्मसति २ कंडरीयस्स सरीरगं सव्वाबाहं सरु पासति २ जेणेव थेरा तेणेव उवागच्छति, थेरे बंदति वंदिता एवं वयासी- अहं णं ते! कंडरीयस्स अणगारस्स अहापयतेहि तेगिच्छिएहिं फासुएसणिज्जेहिं अदापवतेहिं ओसह मेसज्जभतपामेहिं तिगिच्छं आउंटामि, तुम्भे भंते! मम जाणसालासु समोसरह तपणं थेरा पुंडरीयस्स रनो एयम पडिसुर्णेति २ जान जा| णसालासु विहरति । तते णं से पुंडरीए कंडरीयस्स तेगिच्छं आउट्टेति, ततेणं तं मणुनं असणं ४ आहारितस्स समाणस्स से रोगार्तके खिप्पामेव उवसंते हट्टे जाते अरोगे बलियसरीरे जहा सेलओ तहा मुक्केवि समाणे तीस मणुस असणे ४ समुच्छिते जाव अज्झोववत्र, मज्जपाणगंसि य, णो संचारति रहिता अब्भुज्जतेणं जाव विहरितपत्ति। तए णं से पुंडरीते इमीसे कहाए लड्डे समाणे | | जेणेव कंडरीए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता कंडरी तिक्खुनो आयाहिणपयाहिणं करेति २ वंदति वंदित्ता एवं वयासी-घ (392) वज्रस्वा म्यधि० कंडरीक वृतं ॥३८६॥ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक उपोद्घातात नियुक्ती भसि ण तुर्म देवाणुप्पिया, एवं सपनेस ०कयत्थे कयलक्खणे०सुलद्धे णं तव देवाणुप्पिया! माणुस्सए जम्मजीवितफले ज बजस्वातुम रज्जच जाव अंतपुरं च विच्छतिचा जाव पचतिते, अहं ण अधबे अकतपुबे ने माणुस्सते भये अणेगजातिजरामरणरो-15 म्यधिक गसोगसारीरमाणसपकामदाखवेयणावसगसतोबद्दवाविभूते अधुये अणितिए असासए संझम्भरागसरिसे जलपम्यसमाणे कुसग्गज- केडरीकलबिंदुसनिमे सुमिणगर्दसणोचमे विज्जुलयाचंचले अणिच्चे सडणपडणीवद्धसणधम्मे को पुम्बि पच्छा वा अवस्सविप्पजहियव्बतेचि । तथा माणुस्सगं सरीरंगपि दुक्खायवर्ण विविधवाधिसतसंनिकेत अहितकडलाढयं छिराण्हारुजालोणसंपिणद्धं मडियमंडव दुब्बलं असुइसकिलिट्ठ अणिविर्य सम्पकालसंठप्पयं जराकुणिम जज्जरघरं व सडणपडणविद्धसणधम्मय पुम्बि पच्छा वा अवस्स॥२८७॥ विप्पजहियच भविस्सतित्ति, कामभोगावि य ण माणुस्सगा असुती असासया. वंतासवा एवं पित्ता खला सुक्का० सोणितासया उच्चारपासवणखेलसिंघाणगवतपित्तमुत्तपूयसुक्कसोणितसमुभवा अमणुनदुरुयमुत्तिपूतियपुरीसपुमा मतगंधुस्सासा असुभसिस्सा है सब्धियणगा वीभच्छा अप्पकालिया लहुसगा कलमला विवासदुक्खं बहुजणसाधारणा परिकिलेसकिच्छदुक्खसझा अपहजणनिसेवि | ता सदा साधुजणगरहणिज्जा अर्णतसंसारबद्धणा कटुफलविवागा चुडुलिब्य अमुंचमाणदुक्खाणुबंधिणो सिद्धिगमणविग्या पुचि ६ या पच्छा वा अवस्सविष्पजहियच्या भविस्सतित्ति, जेविय णं रज्जे हिरो सुवने य जाब सावतेज्जे सेविय णं अग्गिसाहिते चोरसा-19 हिते रायसाहिते मच्चुसाहिते दातियसाधित अधुवे अणितिते असासए पुदि पच्छा बा अवस्सविप्पजहियब्वे भविस्सतिति । एवंविहम्मिकि रज्जे य जाव अंतेपुरे य माणुस्सएमु य कामभोगसु मुच्छिते ४ नो संचाएमि जाव पब्बतित्तए, तं धन्ने सिणं तु-12 ॥३८७॥ हम जाव सुलदेणं न पश्यतिते । तते से कंडराए पुंडरीएर्ण एवं वृत्ते तुसिणीए सचिट्ठति,ततेणं से पोंडरीए दोच्चपि तच्चपि एवं वता दीप अनुक्रम (393) Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ३८८॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्तिः [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सी-धनेसि तुमं जाव अहं अधने, ततेणं से दोच्वंपि तच्चपि एवं वृत्ते समाणे अकामए अवसंवसे लज्जातिय गारवेण य पुंडरीयं राय आपुच्छति २ थेरेहिं सद्धिं चहिया जणवयविहारं विहरति । ततेणं सेकंडरीए थेरेहिं सद्धि कंचि कालं उगंउग्गेणं विहरेता ततो पच्छा समणत्तणपरितंते समणत्तणनिव्वित्रे समणनिमच्छिते समणगुणमुक्कजोगी थेराणं अंतियाउ सणितं २ पच्चीसक्कति २ जेणेव पुंडरिगिणी जेणेव पुंडरीयस्स रनो भवणे जेणेव असोगवणिया जेणेव असोगवरपायवे जेणेव पुढविसिलापट्टगे तेणेव उपागच्छति उपागच्छेचा जाब सिलापट्टयं ओहयमण जाव झियाति । ततेणं पुंडरियस्स अम्मघाती तत्थ आगच्छति जाव तं तहा पासति पासित्ता पुंडरियस्स साहति, सेवि तणं अंतपुरपरयाल परिबुडे तत्थ गच्छति, गच्छित्ता तिक्खत्तो ओयाहिणपयाहिणं जाव धर्म णं सव्वं जाव तुसिणीए । ततेणं पुंडरिए एवं वयासी- अड्डा भेत ! भोगेहि ?, हन्ता अट्ठो, तते णं कोडंनियपुरिसे सदावेत्ता कलिकलुसेणेवाभिसित्तो रायाभिसेगेण जाव रज्जं पसासेमागे विहरति । तते गं से पुंडरिए सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति, करेत्ता चाउजामं धम्मं पडिवज्जति पडिवज्जित्ता कंडरियस्स आयारभंडगं सव्वसुभसमुदयंपिक गेण्हति २ इमं अभिग्गहं गेण्डति २ कप्पति मम थेराणं अंतिर धम्मं पढिबज्जेत्ता पच्छा आहारितएत्तिक थेराभिमुहे निग्गतो । कंढरियस तु तं पणी पाणभोयणमाहारितस्स नो समं परिणतं वेतणा पाउन्भूया उज्जला बिउला जाव दुरहितासा, सते से रज्जे य जान अंतिपुरे य मुच्छिते जाव अज्झोववने अट्टदुहट्टवसट्टो अकामगे कालं किच्चा स समपुढविए तेत्तीससागरद्वितीय जाती । (394) वज्रस्वाम्यधि० कंडरीक वृतं ||३८८|| Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री आवश्यक सत्राक ची उपोद्घात नियुक्ती ॥३८९॥ दीप पुंडरिएविय णं थेरे पप्प तेसिमंत दोच्चीप चाउज्जाम धर्म पडिवज्जति पडिवज्जेत्ता छद्रुक्खमणपारणगंसि अडित्ता 8 वजस्वाजाव आहारिते, तेण य कालातिक्कतसीतललुक्ख अरसविरसेण अपरिणतेण वेयणा दुरहियासा जाता, तते णं से अघारणिज्जमि-IN म्यधिक तिकटु करतलपरिग्गहितं जाव अंजलि कटु नमोत्थुणं अरिहंताण जाव संपत्ताणं णमोत्थु ण थेराणं भगवंताणं मम धम्मातरिताण कंडरीकधम्मोवतेसगाणं पुबिपि त णं मते थेराणं अंतिए सच्चे पाणातिवाए पच्चक्खाते जावज्जीवाते जाव सव्वे य मिच्छादसणसाल्ले पच्चक्खाते, इयाणिपि यणं तेसिं चेव भगवंताणमंतिगे सब्बं पाणाइवातं जाव सब्बमकरणिज्ज जोगं पच्चक्खामि, जीप य मे इम सरीरगंजाव एतपि चरिमेहिं उस्सासनिस्सासेहिं वोसिरामित्ति, एवमालोतितपडिक्कते समाहिप्पने कालं किच्चा सबट्ठसिद्धे तेत्तीस-14 सागरोवमाऊ देये जाते । ततो चतित्ता महाविदेहे सिज्झिहिति ॥ तं मा तुर्म दुब्बलत्तं बलियत्तं वा गेण्हेहि । जहा सो कंडरीतो | तेणं दुबलेणं अवदुहवसट्टो सत्तमाए उववनी, पुंडरिओ पडिपुनगलकबोलो सबट्ठसिद्दे उवबनो । एवं देवाणुप्पिता! बलिओ दुबलो वा अकारणं, एत्थ झाणनिग्गहो कातथ्यो, झाणनिग्गहो परमं पमाणं । तत्थ वेसमणो अहो भगवता आफूर्त णातंति एत्थ अतीव संवेगमावनो वंदित्ता पडिगतो। तत्थ वेसमणस्स एगो सामाणितो देवो सेण तं पोंडरीयज्झयणं ओगाहितं पंच सतोण, संमत्तं च पडिवनो, केति 12 भणंति अ-जंभगो सो, ताहे भगवं कल्लं चेतिताणि बंदित्ता पच्चोरुहति, ते तावसा भणंति-सुब्भे अम्हं आयरिया अम्हे तुम्भ सीसा, सामी भणति तुज्हा य अम्ह य तिलोगगुरू आयरिया, ते मणंति-तुभवि अन्नो आयरियो', तारे सामी भगवतो गुणसंथर्व करेति. IN ते पन्नाविता, देवताए लिंगाणि उवणीताणि, ताहे ते भगवया सद्धिं वच्चंति, भिक्खा वेला य जाता, भगवं भणति-किं आणि-121 ॥३८९॥ ज्जतु, ते भणति पायसो, भगवं च सवलद्धिसंपन्नो पडिग्गहं घयमधुसंजुत्तस्स भरता आगतो, ताहे भणिता-परिवाडीए ठाहा अनुक्रम (395) Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥३९०॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः ७६४-०७२/७६४-७७२ - आयं [१२३...]] मूलं - /गाथा ), आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - - ते ठिता, भगवं च अक्खीणमहाणसिओ, ते धाता, ताहे सुठुतरं आउट्टा, ताहे सयं आहारेति । ताहे पुणरचि पट्टितो, तेसिं वज्रस्वाम्यधिकारः च सेवालभक्खाणं जेमिन्ताणं चैव नाणं उप्पन्नं, दिनस्स वग्गे छत्तादिच्छत्तं पच्छंताणं, कोडिम्नस्स वग्गे सामी दणं उप्पन्नं, गोयमसामी पुरतो कद्धेमाणो सामी पयाहिणीकरेति तेऽवि केवलिपरिसं पहाविता, गोयमसामी मणति एह सामी वंदह, सामी भणति गोयम ! मा केवली आसाएहि, गोयमसामी आउट्टो मिच्छादुक्कडं करेति । ततो गोयमसामिस्स सुट्टतरमधिती जाता, ताहे सामी गोतमं भणति किं देवाणं वयणं गेज्यं आउ जिणाणं ?, गोयमो भणति- जिणवराणं, तो कीस अद्धिति करेसि १, ताहे सामी चत्तारि कडे पनवेति तंजहा सुंचकडे विदल० चम्म० कंबलकडे, एवं सीसावि, गोयमसामी य कंचलकडसामाणो, किंचचिरसंससि गोयमा ! जाव अविसेसमणाणत्ता भविस्सामो, ताहे सामी दुमपत्तयं नाम अज्झयणं पनवेति । देवोऽवि वेसमणसामाणिओ तओ चइत्ताणं तुंबवणसण्णिवेसे धणगिरि णाम गाहावती, सोय सङ्को, सो य पव्वतुकामो, तस्स य मातापितरो घरैति, पच्छा सो जत्थ जत्थ वरेति तत्थ तत्थ विप्परिणामेति, जथा- अहं पव्वइउकामो तस्स य तदाणुरुवस्स गाधावतिस्स धूया सुणंदा णाम, सा भणति ममं देह, ताहे सा दिण्णा, तीसे व भाया अज्जसमिओ नामं पुवं पव्वइयओ, तीसे य सुणंदाए कुच्छिसि सो देवो उवषण्णो, ताहे भणति घणगिरि एस ते गन्मो बितिज्जओ होहिति, सो सीहगरिस्स पासे पव्वतो । इमोऽवि णवण्हें मासाणं दारओ जातो, तत्थ य महिलाहिं आगताहि मण्णति- जड़ से ण पिता पव्वतो होतो तो लङ्कं होतं, सो सण्णी जाणति जहा मम पिता पम्बहओ, तओ तस्सेवं अणुचिन्तेमाणस्स जातिस्सरणं उप्पण्णं ताहेरात दिवा परोएति, वरं सा णिविज्जंती तो सुहं पञ्चस्सन्ति । एवं छम्मासा वच्चति । अभया आयरिया समोसढा, ताहे समिओ (396) ॥३९०॥ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नियुक्ती श्री धणगिरी य आपुच्छति जहा सण्णायगाणि पेच्छामोत्ति संदिसावेति, सउणेण बाहरितं, आयरिएहि भणित- महंतो लाभो अज्ज, वजस्वाम्यआवश्यक सचित्तं वा आचित्त वा लभह से सर्व लएह, ते गता, उवसग्गिज्जितुमारद्धा, अण्णाहिं महिलाहि भण्णति- एतेसि दारगं उक्ढवेहिस धिकारः चूर्णों तो कहि नहिति !, पच्छा ताए भणित-मए एवतियं कालं संगोवितो एचाहे तुम संगोयेहि, ताहे तेण भाणत-मा पच्छाणुत-14 उपोद्घात पिहिसि, ताहे सक्खी काऊण गहितो छम्मासिओ, ताहे तेण चोलपट्टएण पत्ताबंधितो, न रोवति, जाणति सण्णी, ताहे तेसु अति-है तेसु आयरिएहिं भाणं मरियति हत्थो पसारितो, दिण्णो, हत्थो भूमि पत्तो, भणति- अज्जो ! णज्जति बहरंति, जाव मुक्कं पेच्छति ॥३९१॥ देवकुमारोवमं दारगं, भणति- सारक्खेद दारगं एत, पबयणस्स आहारो एसचि, तत्थ से बहरोच्चेव णामं कतं । ताहे संजतीणं ४ दिण्णो, तासि सेज्जातरकुले सेज्जातराणि जाहे अप्पणगाणं चेडरूवाणं पीहगं वा पहाणं वा मद्दणं वा करेन्ति ताहे पुव्वं तस्स देंति, जाहे उच्चाराती आयरति ताहे आगार करेति, रुयति वा, एवं संबङ्गति, फासुपपडोयारो तेसि इड्डो, साधूवि बाहिं विहरंति। 2 ताहे सा गंदा पमग्गिता, ताओ निक्खेयोति ण देन्ति, सा आगता २ थर्ण देति, एवं तिवरिसो जातो, अण्णदा साधू विहद्र रेन्ता आगता, तत्थ राउले ववहारी जातो, सो भणति-ममेताए दिण्याओ, णगरं नंदाए पक्खितं, ताहे बहाणि खेलणगाणि कताणि, एवं रणो पासे पयहारच्छेदो, तत्थ पुम्बाहुत्तो राया, दक्खिणओ संघो, सयणपरिजणो वामगपासे गरबतिस्स, तत्थ राया मणति- मम कतत्थे तुन्भे, जत्तो चेडो चयति तस्स भवतु, तेहि पडिस्मत, को पढम बाहिरउ, पुरिसातीयो धम्मत्ति पुरिमो ॥३९॥ | बाहरतु, णगरजणो आह- एतेसिं संचितओ, माता सदावेउ, अविय माता दुक्करकारिया, पुणो य पेलवसचा, तम्हा एसा चेव *SHARE दीप अनुक्रम (397) Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक दीप 181 पढम बाहरतु, ताहे सा आसहत्थिरहउसभएहि मणिकणगरतणचिचेहि बाललोभणएहि य भणइ-अवलोएह ता बहरसामी !, ताहे जस्वाम्यआवश्यक पलोएन्तो अच्छति, जाणति- जइ संधं अबमण्णामि तो दीहो संसारो, अव य-एसावि पव्यइस्सति, एवं तिणि वारे बाहरितो धिकारः J ण एति ताहे पिता भणति- जइ सि कतब्बवसाओ धम्मज्झयभृसियं इमं वइर। गेह लहुँ रयहरणं कम्मरयपमज्जणं धीर ! ॥१॥ नियती। ताहे तुरितं गतूणं गहितं, लोगो भणति- जयति धम्मो, उक्कुडिसीहणातो य कतो, ताहे माता चिंतेति- मम भत्ता पब्बइतो, भाता पुत्तो य, अहं किं अच्छामि ?, एवं सावि पब्वइता। ॥३९२॥1 . ताहे साधणीण चेय पासे अच्छति, तेण तासिं पासिं एकारस अंगाणि कण्हाहाडेण गहिताणि, पदाणुसारी सो भगवं, ताहे अट्ठवासओ संजतिपडिस्सताओ निकालिओ, ताहे उज्जेणिं गतो । तत्थ आयरियाणं पासे अच्छति, ताहे तत्थ य अहोधारं बास ४. पडति, ते य से जंभगा तेण अनेण बोलेन्ता पेच्छंति, ताहे परिक्खानिमित्तं ओतिण्णा, वाणियगरूवेण अल्लद्देत्ता उवक्खडंति, सिद्धे निमंतेन्ति, ताहे पद्वितो जाव कणगफुसितमत्थि ताहे पडिनियत्तेति, ताहे ठाति, पुणो सद्दावेंति,एवं तिनि वारे) करंति, ताहे भगवं उवउत्तो-दबओ ४, दबतो फसफलादी खत्ततो उज्जेणी कालतो पाउसो भावतो ओसकणातिसकणा हट्ठट्ठा य, ताहे णेच्छ-1 ति, देवा तुट्ठा भणेति-तुम दह्रमागता, पच्छा बेउब्वियं वेज्जं देति । पुणरवि अण्यादा जेह्रमासे घतपुण्णेहि सण्णाणिग्गतं IP॥३९२॥ दतत्थबि निमंति, तत्थवि उवओगो-दबतो, तेहिं गभगामिणी विज्जा दिण्णा, एवं सो विहरति । नाणिय पदाणुसारिणा गहियाणि अंगाणि इह संजताण भूले घिरतराणि जावाणि, तत्थवि जो अज्झाति उवरिल्लं पुन्यगतं तंषि सव्वं पुथ्वगतं गेहति, SECORLSMSACSANSARSA अनुक्रम (398) Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEISS एवं तेण यहुयं गहितं, जाहे बुच्चति पढाहि ताह एंतगंषि तं घोसएहिं को तो अच्छति अण्णं सुणतो, अण्णदा आयरिया आवश्यक साहुसु भिक्खं गतेसु मज्झण्हे सण्णाभूमि गता, वइरसामीवि पडिस्सयवालो अच्छति, सो तेसि साधण बेंटियाओ मैडलीए रएता अपृथक्त्वाचूर्णी मज्झे अप्पणा ठाउं वायणा पदिण्णो, ताहे परिवाडीए एक्कारसवि अंगाई वाएति पुवगत च, जाच य आयरिया आगता, ते नुयोगे वज्रस्वाम्युउपोद्यात चितंति- लहुं साहू आगता, सदं सुणेति मेघोघरसितगंभीर, बहिता सुणता अच्छति, णातं जहा वइरोत्ति, ताहे ओसरिता पुणो * दाहरणं नियुक्तौ सहवडिय कातूण अल्लीणा, महल्लं च निसीहिं करेंति, मा से संका भवेज्जा, ताहे तेण तुरियं वोटयाओ सहाणे ठवियाओ, ठवेत्ता द्रनिग्गंतूण दंडगं गेहति पादे य पमज्जति, ताहे आयरिया चिंतीत-मा एतं साधू परिभविस्संति तो जाणावेमि, ताहे रति आय | रिया साधू आपुच्छंति, जथा-अमुगगामं वच्चामि, तत्थ दो व तिष्णि व दिवस अच्छिस्सामि, तत्थ जोगपडिवण्णगा भणंति18| अम्ह को वायणायरिओ, आयरिएहिं भाणतं- वइरोत्ति, तेहिं विणीतेहिं तहत्ति पडिस्सुतं, पूर्ण आयरिया जाणगा, तेऽवि साहुणोन पडिलहिता कालनिवेदणादि बहरसामिस्स अप्पेंति, ताहे सबम्मि कते पच्छा णिसेज्जा रहता, सोवि भगवं निविट्ठो, एवं ते है आगता, जहा आयरियस्स तहा सव्वं विणयं पयुजंति, जैवि पुवतीता आलावगा तंपि ते विण्णासणनिमितं पुच्छति, जेविय मंदमहाबी तेवि ठवेतुमारद्धा, तत्थ भगवं बालो अबालभावो, ताहे करकरस्स कट्टति, एवं ते तुट्ठा भणंति जदि आयरिया अच्छेज्ज कइवय दिवसे तो अम्ह एस सुतखंधो समपेज्जा, एवं तेसि आयरियाणं पासे जं चिरस्स परिवाडीए मेहंति तं इमेण ||३९३॥ एक्काए पोरिसीए सारितं, एवं सो तेसिं बहुमओ जातो, आयरितावि णातूणं जाणाविता साधुत्ति ताहे तस्स अणुकपणट्ठा आगता, अबसेस अझाविज्जउत्ति, पुच्छति-किध सरति सज्झाओ ?, ताहे तुट्ठा साहनि जथा सरित, ताहे ते भणति- एसो चेव X+ SGA दीप अनुक्रम X (399) Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूर्णी उपायात नियुक्तो HEIGA ब ॥३९॥ अम्हं वायणायरिओ भवतु, आयरिया भणति- होहिति, मा तुम्मे एवं परिमविहिहत्ति तो तुम जाणणाणिमित्तं अहं गतो, णवि अपृथक्वा| य एस कप्पो, एतेण कण्णाहाडियग, एतस्सवि उस्सारकप्पो कीरति, एवं सो उस्सारिज्जति, बीयाए से पोरिसीए अस्थो कहि- नुपांग ज्जति, एस तदुभयकप्पजाग्गो, तस्थ जे अस्था आयरियस्स संकिता देवि तेण उग्घाडिया, जावतिय विहिवाय ते जाणति सचिनीला गहिओ, ते विहरता दसपुरं गता, उज्जेणीए भयगुत्ता णाम आयरिया थेरकप्पड्डिता, तेसिं दिविवाओ अस्थि, संघाडओ से दिण्णो, 18| दाहरणं ताहे गओ भद्दगुत्ताणं पासे, भागुत्ता य भेरा सुविणयं पासीत पाभातिय, ताहे पभाते साहणं साहति, जहा मम पडिग्गहो खीरभरितो सो आगंतूण सीहपोतएणं पीतो लेहितो य, तस्स किं फलं होज्जत्तिी, ते अण्णमण्णाणि बागरेंति अजाणता, गुरू भगंतिण जाणह तुम्भे, अज्ज मम पाडिच्छओ एहिति, सो सवं सुच अत्यं च घेच्छिहिति, भगवपि बाहिरियाए वुत्थो, ताहे अतिगतो ट्र पगते, दिडो, सुतपुथ्यो एस सो वहरो, तुडो उववृहियो य, ताहे सो सम्बो पढिओ, ताहे अणुण्णाणिमित्तं जहिं उदिडो तहि चेव बच्चति, दिविवाओ जेण व उदिडो ते चेव अणुजाणंति, ताहे दसपुर एति, ताहे तेहिं अणुण्णा समारडा, ताव गवरं देवेXि अणुण्णा उबट्ठविता, दिवाणि पुष्पाणि चुण्णा य___जस्स अणुण्णा ॥८-४४७६ अण्णदा सीहगिरी म पच्चक्खाति तस्स गर्ण दातुं, ताहे पंचहि अणगारसएहि संप| रितुडो विहरति, जत्थ जत्थ वच्चति तत्थ तत्थ ओराला कितिवण्णसहा परिमर्मति अहो भगवं । किंच ॥३९॥ जेणुद्धरिया विज्जा०॥८-४६ ।। ७६९ ॥ महापरिणाए विज्जा पम्हुड्डा आसी सा पदाणुसारिणा तेणुहरिताभणति य आहिंडेज्जा०॥८-४७ ॥ ११०॥ भणति य धारेतब्बा० । ८-१८ ॥ १११ ।। जई ए12 दीप 55ॐॐ अनुक्रम CA (400) Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्रों चुगौं पन्धिाता 16 नियुक्ती ॥३९५॥ पवयणउवग्गहनिम पारेमि, एवं विहरतो भगवं भवियजणविबोहण करेति । तेणं कालेणं तेणं समरण पाडलिपुत्ते नगरे पणो अपृचवाआवश्यक सेड्डी, तस्स धूता अतीव दरिसणिज्जा, तस्स य सालासु साहूणीओ ठियाओ, सभावेण य एस लोगो कामितकामओ, ताजो य नुयोगे संजतीओ आराहाइओ बहरसामिस्स गुणकित्तणं करेंति, सेपिता चिंतेति-जदि सो मम पती तो णवरि मोगा, इहरहा अलाहिजस्वाम्युवरगा एंति, पडिसेहिज्जंति, ताहे साहति, जहा सो पब्बईओ महात्मा नेच्छति, सा भणति-जदि च्छति सो पव्वहस्सामि । इतो य दाहरणं भगवं पाडलिपुत्ते आगतो, तत्थ राया सपुरजणजाणवतो णिग्गतो अम्मोगतियाए, ते य पन्यतिया फडगफडरहिं एन्ति, तस्था ति अस्थि बहवे ओरालसरीरा, राया पुच्छति-इमो भगवं, ताहे सीसति-जहा ण भवति, जत्थ अपच्छिम बंदं तत्थ पविरल-ल | पव्वइय सद्धि संपरिवुडो, एस आयरिओ, आयरिया ण तथा पडिरूवा, तस्थ पडिओ पादेसु, ताहे उज्जाणे ठिता, धम्मो कहितो, खीरासवलद्धी भगवं, राया इतहिदो कतो, अंतेउरे साहति गंतुं, ताओ भणति-अम्हेवि बच्चामो, सवं अंतेपुरं निग्गत, साय | सेट्टिधूता लोगस्स सुणेत्ता किह पेच्छेज्जामिीत्त अच्छति, वितियदिवसे ताए पिता विष्णवितो-तस्स मे देहि, ताहे सवालंकारविभूसिदा अणेगाहि धणकोडीहिं नीता, धम्मो कहितो, भगवं च खीरासवलद्धीओ, लोगो मणति-अहो मुस्सरो भगवं, सब्बगुण-| संपण्णो, णवरि रूवविहूणो, जदि से रूबं होन्तं तो सव्वगुणसंपदा होती, भगवं तेसि मनोगतं णाऊण तत्य पउमं विउव्वति, तस्स उबरि निविडो, रूवं बिउब्बति अतीचसोम्म जारिसं पर देवाणं, लोगो आउट्टो भणति-एवं एतस्स साभावितं रूवं, मा पत्थणिज्जो होहामित्ति तो विरूवेण अच्छति, सातिसउचि राया भणति-अहो भगवओ एतमवि अथि, ताहे अणगारगुणे वण्णेति, ४॥३९५॥ पडू असंखज्जे दीवसमुदे विउव्यिता आइण्णविप्पडण्णे करेत्तएत्ति, ताई तेण रूवेणं धर्म कहति, ताहे सेविणा णिमंतिओ भगवं दीप अनुक्रम । (401) Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [७६४-७७२/७६४-७७२], भाष्यं [१२३...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों उपोद्यात दाहरणं श्री 18| विसए निदेति, भणइ-जदि मम इच्छति तो पच्चयतु, ताहे पब्बइया । एवं विहरतो पुख्बदिसाउ उत्तरापहं गतो। अपृथक्त्वाआवश्यकता तत्थ दुम्भिक्खं जातं, पंथावि वोच्छिण्णा, ताहे संघो उद्वितो-भगवं । नित्थारेहित्ति, ताहे पडबिज्जाए संघो ठविओ, नया | तत्थ य सेज्जातरो चारीए गतो, एति य, उप्पत्तिए पासति, चिंतेति-कोइ विणासो तो संघो जाति, ताहे असियएण सिहलि छिदिता नियुक्ती | भणति-अहंपि भगवं! तुम्मं साहम्मिओ, ताहे सोवि विलइओ इम सुत्त सरंतेणं-साहम्मियवच्छल्लंमि उज्जता उज्जता या दसज्झाए। चरणकरणमि य तहा तित्थस्स पभावणाए य ।॥ १ ॥ एवं पच्छा उप्पतिओ भगवं, पचो पुरियं नगरि, तत्थ ॥३९६॥12 मुभिक्खं, तत्थ सावगा बहुगा, एवं तत्थ उल्लाहा, तत्थ य राया तच्चनियसला, तत्थ य अम्हच्चयाणं साणं तेसिं च वरुट्ठएण | मल्लारुभणाणि बढुति, सब्बत्थ तच्चनियसङ्का पराजीयंती, ताहे तेहिं राया पुप्फाणि वाराबिओ, पज्जोसवणाए सड्डा अद्दण्णा, | जतो पज्जोसवणाए पुष्पाणि णस्थित्ति, ताहे सबालबुड्डा बयरसामि उवहिता, तुम्भे जाणह जदि तुम्मेहि जाणएहि पवयण ओहामिज्जति, एवं बहुप्पगारं भणिए ताहे उप्पतितो माहेसरिं गतो, तत्थ य हुतासणगिह नाम वाणमंतरं, तत्थ कुंभो पुष्फाण उट्ठति, तत्थ भगवतो पितुमिचो तडितु, तत्थ गतो, सो संभन्तो भणति-किमागमणपयोयणं, भगवता भाणित- पुप्फेहिं पयोयणं, तेण अणुग्गहो, ता तुम्भे गहेह जाव एमि, पच्छा सिरिसगास गतो, सिरीए चेतियअच्चणियानिमित्तं पउमं छिन्ग, ताहे पंदित्ता सिरीए निमंतिओ, तं गहाय अग्गिहरं एति, तत्थ कुंभ पुफाण छोटूण अण्णाणि तु सारियाणि, एवं जंभगगणपीरखुडो दिब्वेण ॥३९६।। | गीतगंधव्वणिणादेन आगतो आगासेण, तस्स य पउमस्स बेटे बहरसामी, तत्थ तच्चणिया भणीत-अम्ह एंत पाडिहेरं, अग्ध | गहाय निग्गता, ते विहारं बोलेत्ता अरहतघरं गता, तत्थ देवेहिं महिमा कता, तत्थ लोगस्स अतीव बहुमाणो जातो, राया दीप SHARE KISAऊ. अनुक्रम (402) Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दश सत्राका श्री- आउट्टावितो समणोवासओ जाओ। एवं सो भगवं विहरतो ततो आभीरविसयं गतो । एसो सो णयविसारतो एतातो अपुरत्वं । पृथक्वे आवश्यकइदाणिं जेण पुहुत्तं कतं तस्स उप्पत्ति चूर्णी न देविंदवंदिरहिं । ८-५१ ॥ ७७४ । इदाणि तेसिं आउट्टाण पारियाणियं, तेणं कालेणं तेणं समएणं दसपुर नगरं, तत्थ रोत्पत्तिः उपाधानासोमदेवो बमणो, अडो०, रोदसोम्मा भारिया समणोवासिया, तेसिं पुत्ते रक्खिए णाम दारए, तस्स अणुमग्गजाते फग्गुरक्खिए। नियुक्ती दसपुर नगरंति, तं कह उप्पण्णं, । तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपानगरी, तत्थ कुमारनंदी सुवण्णकागे परिवसति, सेणं इत्थीलोलए आवि होत्था, सेण जत्थ सुणइ वा पासइ वा इत्थिं रूविणि तत्थ पंच सुवण्णसते दातूणं तं परिणति, एवं तेण पंच सता | पिंडिता, ताहे सो ईसालुओ एगखंभ पासादं करेत्ता ताहिं समग ललति, एवं सो ताहि समं विहरति । तस्स पियवयसए णाइले ४ नाम समणोवासए । अण्णदा गंदिस्सरवरे जत्ता आणचा, इतो य पंचसेलगवत्थव्याओ वाणमंतरीओ गंदिस्सरं बच्चंति, ताणं च देवो चुयओ, ताओ भणंति-कंचि एत्थ बुग्गाहेमो, एवं चिन्तेत्ता पट्टियाओ, ताओ विनिवयंतीओ चमझेण गच्छंति, तं पेच्छति पंचहिं महिलासतेहिं सद्धिं ललंत, तासिंच विज्जुमाली अहिवती, सोचतो ताहे भणंति-एस इत्थीलोलो, एस होहिति, ताहे ताओ तस्स उ-14 ज्जाणगतस्स दिवाणि रूवाणि पदसिदाओ, ताहे सो भणति-काओ तुम्भे, ताओ भणति-देवताओ अम्हे, सो तासु मुच्छितो, ॥३९७॥ आढतो घेतु, ताहे भणित-जदि तं अम्हेहिं कजं तो पंचसेल एज्जाहि, सो मुच्छितो राउले सुवणं दाऊण पडहर्ग। नीति, कुमारनंदि जो पंचसेलग णेति तस्स एत्तियो कोडीओ देति, एगेण थेरेण सुतं संजतिएण, पडहओ दीप अनुक्रम Like दशपुर-उत्पत्ति एवं आर्य रक्षितस्य कथानक कथयते (403) Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत आवश्यक पेण सत्राका उपोद्घात नियुक्ती ॥३९८॥ खोडितो, वहणं कारित, पत्थयणस्स भरितं, मुक्क, थेरेण त दवं पुत्ताण दवावियं, जाहे दूर समुहमतिगतो ताहे थेरेण 31 पृथक्त्वे भणित-किंचि पेच्छसि ?, सो भणति-किंचि कालग, एस बडो समुहकूले पच्यतपादे जातो, एतस्स हेडेण बहणं जाहिति, दशतो तुम अमूढो बडे लग्गज्जासि, ताहे पंचसेलयाओं पक्खी पहिति, तेसि पादेसु अप्पाणं बंधाहि, ते तहिं तं हिति, जदिपुरोस्पचिः किहइ ण लग्गसि तो वलयामुइमि चुड्डसि, एवं सो चिलग्गो नीतो य पक्खीहि, ताहे ताहि वंतरीहिं भमंतीहिं दिट्ठो, ताहि से रिद्धी दाइता, सो पगहितो, ताहे ताहि भणितो-ण एतेण सरीरकेण अम्हे भुज्जामो, ता किह !, ताहि भणित- किंचि जलणपवे. सादि करहि जहा पंचसेलग उववज्जामित्ति, किह एत्ताहे जामि ?, ताहि करतलपुडसंपूडएण णीतो, ताहे आणीउं सए उज्जाणे | ठवितो, ताहे लोगो पुच्छओ एति, भणति-'दिट्ट सुतमणुभूतं ज वत्तं पंचसेलए दीवे' । ताहे इंगिणिणिवो झाति, सट्टो य से मित्तो, तेण बारिओ-न सुंदरतरगा भोगा, पव्ययाहि, बहुहि पण्णवणाहिं न सक्किओ, सडस्स विणिवेओ जातो, जहा एस अज्ञानी मोगाण कज्जे किलिस्सतित्ति अम्हे जाणता कीस अच्छामोति पचहतो, कालं किच्चा अच्नुते उववण्णो, इतरोऽवि मरित्ता पंचसेलए जक्खो जातो, सो तं ओहिणा पेच्छति, अण्णदा पंदिस्सरजत्ताए पलायंतस्स पडहो गलए लग्गति, ताहेर चाएति, तत्थ सब्वे देवा मेलीणा, सङ्को आगतो तं पेच्छति, सो तं दठूर्ण तेयं असहतो नस्सति, सो तेयं साहरिता भणति- भो मम जाणसि , सो भणति-को सक्काइए ईदे ण जाणति ?, ताहे सो तं सावगरूवं दसति, ताहे जाणाविओ भणति- संदिसह ॥३९८॥ | एचाहे किं करेमिति, देवेण भणित- बद्धमाणसामिस्स पडिम करेहि, ततो ते संमत्तवीर्य होहिति, तदा य सामी जीवति, ताहे | गोसीसमई पडिमं महाहिमवंतातो करेता कट्ठसंपुडए छुभिचा आगतो भरहवास, समुद्दे पचहणं पासति उप्पातिएण छम्मासे मर्मत, दीप अनुक्रम (404) Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥ ३९९॥ SPRES “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) भाष्यं [ १२४ ] मूलं [- /गाथा ), निर्गुक्ति: [b७४/७७३-७४७] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - ताभितं सा प खोडी दिव्या, भणितो य-देवाहिदेवस्स पडिमं करेज्जह, वीतिभयए उत्तारियाउ, उहायणो राया तावसमतो, | तस्स पभावती देवी समणोवासिया, उद्दायणस्स वाणियहि कहितं देवाहिदेवस्स पडिमति, ताहे इंदादीणं कीरति, परम् ण वहति, प्रभावतीए सुतं सा भणति वद्धमाणसामी देवाधिदेवो तस्स कीरतु, जं चेव आहतं जाव पुब्वणिम्माया पडिमा अंतेपुरे चेतियघरं कारितं, प्रभावती पहाता तिससे अच्चेति, अण्णदा देवी नच्चति राया. वापति, सो सीस न पेच्छति देवीए अद्वीती से जाता, देवी लक्खेचा भणति- किं दुट्टु नच्चितं ?, निबंध सिहं, सा भणति मया सुचिरं सागत्तणं परिपालियं, अष्णदा पहाता चीड भणति-पोताई आणेहि, ताए से रत्तगाणि आणियाणि, रुड्डा अद्दाएण आहता चेतियघरं पविसंतीए रत्तगाणि देसित्ति, आहता चेडी मता, ताहे चिंतेति-मए खंडित सीलं, तो किं मे जीविएणंति रायाणं आपृच्छति, भत्तं यच्चक्खामिति, निब्बन्धे राया भगति जदि परं संबोहेसि, पडिस्सुतं मत्तपच्चक्खाणेण मता देवलोकं गता, जियपडिमं देवदत्ता दासचेडी खुज्जा सुस्मसति । देवो संबोहेति न संबुज्झति, सो य तावसभत्तो, देवो तावसरूवं करेति, अमृतफलाणि गहाय आगतो, रण्णा आसादियाणि, मुच्छिओ भणति कर्हि तेण भणितं नगरस्स अदूरे आसमो तर्हि तेण समं गतो, तेहिं पारद्धी, णासंतो वणसंडे साहबो पेच्छति, तेहिं धम्मो कहितो, संबुद्धो, देवो अत्ताणं दरिसेति, आपुच्छित्ता गतो, जाव अत्थाणीए चैव अताणं पेच्छति, एवं सड्डो जातो । इओ य गंधारओ सावओ, सो सब्बाओ जम्मभूमीओ वंदित्ता वेडे कणगपडिमाओ सुभेत्ता उपवासेण ठितो, जदि वा मओ दिडाओ वा, देवताए सिताओ, तेण वंदियाओ, देवयाए से तुट्ठाए सव्वकामियाओ गुलियाओ दिण्णाओ, ताण सतं परिमाणतो, ततो णिन्तो मुणेति वीतिभए जिणपडिमा गोसीसचंदणमती, बंदओ एति, आगतो वंदति, तत्थ पडिभग्गो, देवदत्ताए पडियरिओ (405) पृथ दश पुरोत्पत्तिः ॥३९९॥ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पृथक्त्वे दश पत आवश्यकता सत्राक सम्म, तुडेण गुलिताण सतं दिणं, सो पब्बइतो । चूणौँ अण्णदा ताए चिंतिय- मम कणगसरिसो वण्णो भवतुति जाव रूवं जातं जथा देवकण्णगा, एताहे चिता जाता-भोगेला. मुंजामि, इमो राया मम पिता, अण्णे य गोहा, ताहे पज्जोयं रोएति, तं मणसीकाऊण गुलिया खड्या, तस्सबि देवताए कहितं 13|पुरोत्पत्तिः एरिसी रूववतित्ति, तेण सुवण्णागुलियाए दूतो पट्टवितो, ताए मण्णति- पेच्छामि तुमे, आगतो नलगिरिणा, सा भणति-जदि नियुक्तो &ी पडिम णेहि तो जामि, ताहे पडिमा पत्थित्ति रत्तिं वुडो, पडिगतो, अन्नं जिनपडिमरूवं कातुं आगतो, तत्थ ठामे ठवेत्ता जीय॥४०॥ स्सामी सुवण्णगुलिया य आणीया, ताहे तत्थ नलगिरिणा मुत्तिय लेंडं च मुक्कं जाव तेण गंधण हत्थी उम्मना, तं च दिसं गंधो एति जाव पलोइज्जइ नलगिरिस्स पदं, कि निमित्तमागतोत्ति जाव चेडी न दीसति, राया भणति- चेडी नीता नाम, पडिमं| पलोएह, णवरि अच्छतिचि निवेदित, अच्चणवेलाए राया आगतो जाव पेच्छति पुष्पाणि सुकाणि, निव्वणति, ताहे नातं पडिस्वर्गति, ताहे भणति पडिमा हरिता, दूतो विसज्जितो, नवि मम चडीए कज्ज, विसज्जेहि पडिम, सो न देति, ताहे पहावितो जेडमासे दसहि रातीहि समं, मरु उत्तरताणं खंधावारो तिसाए पमओ, रणो निवेदित, रण्णा पभावती चितिता, आगता, तीए | विण्णि पुक्खरााणि कतानि, अग्गिमस्स मज्झिमस्स पच्छिमस्स, ताहे आसत्थो गतो उज्जेणिं, भणितो य पज्जोतो-किं लोगेण 8 मारिएणी, अस्सरथहत्थिवादेहि वा जेण रुरुचात तेण जुज्झामो, ताहे पज्जोतो भणति-रहेहिं जुज्झामो, ताहे णलगिरिणा पडिकप्पितेण आगतो, राया य रहेण, रण्णा भणितो-असच्चसंधाऽसिति, तथावि ते णस्थि मोक्खो, ताहे रण्णा रहो मंडलीए दिण्णो, हत्थी वेगेण पत्थितो, ओलग्गति, रहेण जीतो, ताहे जे जे पादं उक्खिवति तत्थ तत्थ राया सरे छुभति, जाव हत्थी पडितो, उत्तरंतो SRUC4136154 दीप अनुक्रम R ॥४०॥ (406) Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों सत्रा उपोद्घात नियुक्ती दीप है बद्धो, निडाले य से अंको कओ दासीयतिओत्ति उदायणस्स रमो, पच्छा णियगं नगरं पहावितो, पडिमा णेच्छतित्ति, अंतरा है दशआवश्यक चासेण ओबद्धो, ताहे उक्खंदभतण दसवि रायाणो ठिता धूलीपागारे करेता, जं च राया जेमेति तं च से दिज्जत्ति, जोसवणा पुरोत्पत्तिः | य जाता, ताहे सो पुच्छिज्जति-किं अज्ज जेमेसि, सो चिंतेति-मा मारेज्जेज्जामि, ताहे भणति- किं अज्ज पुच्छिज्जामि, म- आये| णितो-अज्ज रण्णो अभत्तट्ठो, पज्जोसवणत्ति कहितं, ताहे सो सोचितुमारद्धो-मम मातापिता संजताणि, आहे न जाणामि रक्षिताश्च जथा पज्जोसवणचि, अहंपि सावओ, न जेममित्ति, रणो कहितं, भणति-जाणामि जहा सो धुत्तो, किं पुण मम एतमि बद्धेल्लए| ॥४०॥ट्रपज्जोसवणा चेव न सुज्झति, ताहे मुफ्को खामिओ य, पट्टो य से बद्धो सोवण्णो, मा एताणि अक्खराणि दीसिहिन्ति, सोय से विसओ | दिण्णो, तप्पमिति पदबद्धगा रायाणो आढचा, पुध्वं बद्धमउडा आसी, यत्ते वासारते राया गतो, तत्थ जो वाणियवग्गो आग| तो सो तहिं चेव ठितो, ताहे तं दसपुर जातं । एवं दसपुरं उप्पणं । & तमि दसपुरे सोमदेयो माहणो, रुद्दसोमा भज्जा सङ्की, तीसे जेट्टपुत्तो रक्खितो नितियो फग्गुरक्खियो, तत्थ उप्पण्णाPगा अज्जरक्खिता, सो य तत्थ जे अस्थि पिउणो से अज्झाइओ, घरेण तीरति पढितुति ताहे गतो पाडलिपुत्र, तत्थ चत्वारि | वेदा संगोवंग अधीतो समत्तपारायणो साखापारओ जदा जातो, किं बहुणा?, चोद्दसवि विज्जाठाणाणि गहियाणि, ताहे आगतो दसपुरं, ते य रायकुले सेवगा, गज्जति रायकुले, तेण संविदित रणोकतं, जहा एमित्ति, ताहे उम्भितपडाग सयमेव राया निग्गतो, RI तं अणुगतियाए दिट्ठो सक्कारितो अग्गोयरो य दिण्णो, एवं सो पगरेण सव्येण अभिणदिज्जतो अप्पणो घरं पत्तो, तत्थवि चाहिरम्भतरिया परिसा आढाति, तंपि चंदणकलसादि सोयमि, सो तत्थ बाहिरियाए उवटाणसालाए ठिओ लोगस्स अग्ध पडिच्छ अनुक्रम ॥४०॥ ॐ (407) Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री वृणी ति, ताहे वयंसगा य भित्ता य सब्बे पेच्छगा आगता, दिदुपरिचियस्स य लोगस्स अग्घेण पज्जेण य जाव से घर भरि दुपद- आयेआवश्यक चतुष्पदहिरण्णसुवण्णाण, ताहे चितेति-अम्मं न पेच्छामि, ताहे घरं अतिगतो, मातं पासति, मातं अभिवादेति, ताए भण्णति सागततं पुत्तत्ति, पुणरवि मत्था चैव अच्छति, ताहे सो भणति-किं णं अम्मो तुभ न तुट्ठी (जेण मए एतेण णगरं विम्हियं 12 उपाघात चउद्दसह विज्जाठाणाणं आगमे कए, सा भणति-कह पुत्त! मम तुट्ठी भविस्सति?, जेण तुमं वहूर्ण सत्ताणं वह अहिज्जिङ आगओ नियुक्ती जेण संसारो बडिज्जइ तेण कहं तुस्सामिा, किं तुम दिठिवायं पठिउमागओ?, पच्छा सो चितेइ-कित्तओ वा सो होहिति जामि) ॥४०२॥ कहिं सो अम्मा', सा साहति-साधूर्ण दिहिवातो, ताहे सो नाम मंतेति, सोऽक्खरार्थं वीमसेतुमारद्धो, दृष्टीनां वादो दृष्टिवादो, | ताहे भणति-नाम चेव सुंदर, जदि ताव सत्थं नज्जति तो अज्झायितचं, किं पुण जेण अम्मापि तुस्सति?, बच्चामि, कहिं ते दिहि-18| वाउजाणंतगा?, इहेब अम्हं उच्छुघरे उज्जाणे तोसलिपुत्ता नाम आयरिया, कल्लं अज्झामि, मा तुझे उस्सुगाओ भवह, ताहे है 8 सो रत्ति चिंतितो न चेव सुत्चा, वियदिवसे य पभाते चव पद्वितो, तस्स य ओवणगरगामे पितिमित्तो वसति, तेण सो न दिट्ठ13 द्राओ, अज्ज पेच्छामि पति उच्छुलडीओ गहाय एति नव पडिपुण्णाउ एगं च खर्ड, इतरो य नीति, इमो य पत्ता, को तमं?, अज्ज-14 रक्खितोत्ति, ताहे सो तुट्ठो अणुवृहति, सागतं?, अहं तुभे दटुं आगतो, ताहे सो भणति-अतीहि, अहं सरीरचिंताए निज्जामि, एताओ य उच्छुलडीओ अम्माए हत्थे देज्जाहि, भणेज्जमु य-दिहो मए अज्जरक्खिओ, अहमेव पढम दिहो, ताहे सा तुहा, मम || ||४.२॥ - पुत्तेण सुदरं मंगलं दिएं, नत्र पुन्या घेतल्या खंडं च, इतरोपित चेव चितइ-मए णव अंगाणि अज्झयणाणि वा घेत्तवाणि, दसम | न सब, ताहे गतो उच्छुपरं, तत्थ चितेति-किह एमेव अइमि जहा गोहो अजाणतो?, जो एतेसिं सावगो भविस्सति तेण दीप अनुक्रम (408) Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री I आर्य दीप । उपचारेण अतीहामि, एगपासे अच्छति पल्लीणो, तत्थ उड्डरसावओ, सो सरीरचितं काऊणं साधूण पडिस्सयं वच्चति, ताहे तेण आवश्यक ठितेण निष्णि निसीहियाओ कताओ, एवं सो इरियादी ढङ्करेण सरेण करेति, सो पुण मेहावी त उवधारेति, सोवि तेणेव का चणी कमेणं उवागतो सम्बेसि साधूर्ण वंदणर्य कत, सा सावओ तण न बदिओ, ताए आयरिएहि नाते-नवगसढो, पच्छा पुच्छतिउपोद्घातादा कतो धम्मागमो?, तेण भणित-एतस्स मूलाओ सहस्स, साहूहिं कहितं-जहा सड्डीए भूणओ जो कल्लं हस्थिखंधएण अतिणीओ, किहत्ति ', ताहे सग्य साहति-अहं दिडिवातं अज्झाइतुं तुझ पासं आगतो, आयरिएहिं भणितं-अम्हं 3 दिक्ख अभुवगाह अज्झाइज्जति, सोऽवि अन्भुषगता, एवं भवतु, परिवाढीए अजमामि, ताहे सो भणति-ममं एस्थ न जाइला ॥४०३॥ पवइंउ, अण्णस्थ बच्चामो, एस राया अणुरत्तो अण्णोऽपि लोगो न ताव पेच्छति, बलावि एते ममं णज्जा, तम्हा अन्नहिं वच्चामो,12 ४ ताहे गता ते पचइता त घेतूण, एसा पढमा सेहनिप्फेडिया, एवं तेण अचिरेण कालेण आयाराती जाव एक्कारस अंगाई अहि-५ ज्जिताई, जो य दिडिवाओ तोसलिपुत्ताणं आयरियाणं सोऽणेण गहितो, तत्थ य अज्जवइरा सुब्बंति जुगप्पहाणा, तेसि दिडिवा- ओ बहुओ अस्थि, ताहे सो वच्चति, उज्जेणिमझेणं, तत्थ य भगुत्ता थेरा, तेसि अंतियं अतिगतो, तेहिं अणुवृहितो-धण्णोसि कयत्थो य, अण्णं च-सलाहियसरीरो मम य निज्जावओ नस्थि तुम निज्जावओ होहि, तेण पडिसुतं तहत्ति, ठितो, ताहे अच्छति, तेहिं कालं करतेहि भष्णति-मा बहरसामिणा समं अच्छेज्जासि, वीमुं पडिस्सए ठिओ पढिज्जासि, जो तेहिं समं एगम-1 वि दिवस संपसति सो ते अणुमरइ, पडिसुणति, कालगतेहिं वइरसामिस्स पासं गतो, बाहि ठिओ, तेवि सुविणगं पेच्छंति, तेसिं पुण ॥४०३५ थे सिट्ठ जातं, तेहिवि तहेच परिणामितं, पभाते अतिगतो, तेहिं पुच्छितो कतो एसिी, तेण भणितं-तोसलिपुत्ताण पासातो, ते भण अनुक्रम काल (409) Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEISE ॐॐॐॐॐ ति-तुन्भे अज्जरक्खिया, (आम) साधु सागयं, तो कहिं ठितो सि', बाहि, ताहे आयरिया भणंति-बाहिठियाण किं अज्झाइ-181 आवश्यक उंजाइ?, तुमं किं न जाणसि, ताहे सो भणइ-खमासमणेहि अहं भद्दगुत्तेहिं थेरोहिं भणितो बाहिं ठाएज्जासि, ते उवउत्ता जा- रक्षिता __ चूर्णौ | गंति-सुंदरं, न निक्कारणे आयरिया भणंति, अच्छह, ताहे अज्झाइउं पवत्तो, अचिरेण नव पुयाणि अधिताणि, दसममाडतो उपोद्घात नियुक्तो |घेत्तुं, ताथे अज्जवइरा भणंति-जवियाई करोहि, एवं परिकम्ममेयस्स, ताणि य सुहुमाणि, गाढं गणिते तं सुहुमं, चउवीस जवि &ाया, सोवि ताव ते अज्झाइ। ॥४०४|| इतो य मायापियरं सोगेण गहियं, उज्जोयं करिस्सामित्ति अंधकारतरं कयं, ताहे वाणि अप्पाहिति, फग्गुरक्खिओ य पट्ट विओ, डहरओ भाया, जइ बच्चह तो सब्वाणि पव्वयंति, ताहे भणइ-जइ ताणि पव्वयंति तो तुमं चेव पव्वयाहि, सो पन्वइओ, अज्झातितो य, सो य जबितेसु अतीव घोलितो, ताथे पुच्छइ-दसमस्स पुवस्स किं गयी कि सेस, तत्थ बिंदुसमुहसरिसवमंदरेहि दिहतं करेंति, बिंदुमेनं गतं समुद्दो अच्छति, ताहे सो विसायमावन्नो-कतो मम (सची) एतस्स पार गंतु, ताहे सो आपुच्छतिअहं वच्चामि, एस मम भाता आगतो, ताहे भणति-अज्झाहि ताब, एवं सो निच्चमेव आपुच्छति, तत्थ अजवइरा उवउत्ता-कि ममातो चेव एवं वोच्छिज्जं गतं, ताहे नातं-विसज्जितो पुणो ण एस्सति एसो, आउं च थोवमप्पणो णाऊण विसज्जितो । सोवि | ताव दसपुरं गतो, पव्वावेति सिक्खावेति य सनायगा सब्बे माया पिता य, सोवि ताव विहरति । . इतो य बहरसामी दक्षिणावहे विहरति, दुनिभक्खं च जायं वारसबरिसगं, सब्बतो समंता छिना पंथा, निराधारं जातं, ताहे। Pइरसामी विज्जाए आहडं पिंडं तदिवस आणेति, पच्छा तं सब्वेसि पवइगाणं दाएति, एतं बारसवरिसे भोचव्यं, अन्नं भिक्ख दीप अनुक्रम ॥४०॥ (410) Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आर्य प्रत चूर्णी सत्राका स दीप पिस्थि, जदि जाणह उस्सरंति संजमगुणा तो भुज्जतु, अह जाणह नवि तो मत्तं पञ्चक्खामो, ताहे ते भणति-किं एरिसण विज्जा-16I आवश्यक | पिंडेण प्रत्तेण', एवं निच्छितववसाया, आयरिएहि य पुज्यामेव जाऊण एगो पन्चइयतो य पत्थबियो पेसवर्ण पहरसेणो णामण | क्षिताः सो भणिततो-जाहे तुमं सतसहस्सनिष्फण्णं भिक्खं लभिहिसि वाहे जाणेज्जाहिसि जहा नई दुभिक्खंति, इमे य निच्छियवव-| उपोद्घात साया, तत्थ य एगो खुहओ तं भणति-तुमं नियत्त, सोणेच्छति, ताहे सो गामे विभोलिज्जति ताव पव्वइयगा तं गिरि विलग्गा, आयरिया जाणंति-जहा खुइओ आराहओ, चित्तरक्खणट्ठा लोगस्स, सो य सव्वं जाणति, ताहे सो ताणं गतमग्गेण आगंतूण मा दा तेसिं असमाही होहितित्ति तस्सेव हेतु सिला तत्थ सुडओ पाओवगओ, सो तेण उण्हेण गवणीओ जहा विराओ, अचिरकालेण वि कालगतो, देवेहि य महिमा कता, ताहे आयरिया भणति-खुट्टएण अट्ठी साहितो, तत्थ ते साधुणो दुगुणाणियसद्धासंवेगा ४ जाता, जदि ताव बालेण होन्तएणं एवं कतं ता अम्हे कीस ण सुंदरं करेमो', तत्थ य देवता पडिणीया, सा ते साधुणो साबिगादिवेण भत्तपाणेण निमंतेति-अज्ज मे पारणयं करेह, ताहे आयरिएहिं नातं जहा अचितत्तोरगहोत्ति, तत्थ यम्भासे अण्णो गिरी, सतं गता, तत्थ ताहे देवताए काउस्सग्गो कतो, सावि अब्भुद्विता, अणुग्गहोत्ति अणुण्णातं, ताहे समाहीए विहिए कालगता, ताहे| हा इंदण रहेण बंदिता पदाहिणीकरतेणं, तत्थ रहावत्तो च्चेव सो य पव्वतो जातो, तामि य भगवंते अद्धणारायं दस य पुन्वा वोच्छि ग्णा, बीओ आदेसो वइरसामीणं सिंभो जातो, पच्छा ताहे भणितं-जहा ममं सुठिं आणेह, आणीता, तेहिं कण्णे ठविता, जेमेचा खाइस्संति, तं च पम्हुई, ताहे वियाले आवस्सयं करेंतस्स मुहपोतियाए चालितं, पडितं, ता से उबयोगो जातो, अहो पमत्तो ||४०५) |जातो, पमत्तस्स य पत्थि संजमो, ते सेयं खलु मम भतं पच्चक्खाइचए, एवं संपेहेत्ता पच्चक्खातं, कालगता । अनुक्रम क (411) Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 आयेरक्षिताः सत्राक नियुक्ती 1 सोय साधू पेसणेणं पेसियल्लओ मर्मतो पत्तो सोपारगं, तत्थ य साविया आगता, सा ईसरी, साय चितेति-किह जीवीहामो,31 आवश्यक पडिक्कओ णत्थि, ताए तदिवसं सतसहस्सेणं भत्तं निष्पादित णस्थि पडिक्कउत्तिकाऊण, मा य अम्हे सर्व कालं उज्जलं जीविचूर्णी AM मचा एताहे एत्थ चेव देहबालिगाहिं वित्ति कप्पेमोत्ति, एत्य सतसहस्सणिफण्णे विसं छोणं जेमामो तो सणमोक्काराणि कालं करे13 हामो, ताए सज्जित ता, णवि ता विसेण संजाइज्जइ, एवं च सा संपेहेचा अच्छति,सोय साधू हिंडतो तत्थ संपत्तो, ताहे सा हद्वतुष्ठा लातं पडिलामेति, एवं च सव्वं परमत्थं साहति, ताहे सो साधू भणति-मा भत्तं पच्चक्खाह, महं बहरस्सामिणा सिट्ठ-जया तुम सत॥४०६॥ सहस्सणिफण्णाओ भोयणाओ भिक्खं लमिहिसि ततो पाए चेव सुभिक्खं भविस्सतित्ति, ताहे पब्वइस्सह, ताहे सा वारिता || ४इओ य वहणेण तदिवस चेव तंदुला आणीया, ताहे. पडिक्कओ जातो, एवं सोवि ताव जीविओ, ताणि य तस्स साधुस्स अंति |यं पब्बयियाणि । ततो बइरसामिस्स पउप्पयं जातं बंसो य बडितो ।। इतो य अज्जरक्खिएहिं आगतूर्ण सम्बो सयणवग्गो पन्चाविकाओ, माता पिता भाता भगिणी, जो सो तस्स खतओ सोऽपि तेसि अणुरागेणं तेहिं चेव समं अच्छति, न पुण लिंगं गण्हति लज्जाए, किह समणओ पवइस्सं?, एत्य मम धृताओ सुहाओ पण्यावियाओ, तासि पुरओ न तरति नग्गो अच्छितु, एवं सो तत्थ अच्छ ति, बहुसो आयरिया भणंति, ताहे सो भणति-जदि ममं जुवलएणं कुंडियाए छत्तएर्ण उवाहणाहिं जष्णोवइएण य समं तो पकाब्वयामि, पव्वइतो, सो पुण चरणकरणसज्झाय अणुयत्तेहिं गेहावितब्बो, ताहे ते भणंति-अच्छह तुम्भ कडिपट्टएणं, सोवि थे | रो भणंति-छत्तएण विणा पतरामि, वाहे भणति अच्छउ छत्चयंपि, करगेण विणा दुक्खं उच्चारपासवणं बोसिरितुं, बंभसुत्तर्गPIपि अच्छउत्ति अवसेसे सर्व परिहरति । अण्णदा चेतियबंदणयाए गता, आयरिया चेडरूवाणि गाहेति, भणह--सम्बे चंदामो एतं दीप अनुक्रम ACC (412) Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्र दीप छचइल्लं मोक्तुं, एवं भणिओ, ताहे सो जाणति-इमे मम पुत्ता णत्तुया य बंदिजंति, अहं कीस ण बंदिज्जामिी, ताहे भणति पृथक्वानुआवश्यक काकिं नाहं पब्वइउत्ति, ताणि भणति-कओ पम्बहतगाण छत्तगाणि भवंति', साहे सो जाणति-एताणिषि मम पडिचोएंति, दे छहेमि, TRAI. चूर्णीताहे पुत्ता भणति-अलाहि पुत्ता! छत्तगेणं, ताहे ते भणति-अलाहि, जाहे उण्हं होहिति ताहे कप्पा उवरि कीरिहिति, एवं ताणि योगे आर्य रक्षिताः सापान मात्तुं करइल्लं, तत्थ से पुत्तो भणति-मत्तएण चेव सण्णाभूमि वा गंमति, एवं जष्णोबतियपि मुपति, ताहे आयरिया भणति को वा अम्हे ण जाणति जहा बंभणा', एवं तेण ताणि मुक्काणि, पच्छा ताणि पुणो भणति-सव्वे वंदामो मोनूण कडिपट्टदलं, ॥४०॥ ताहे सो रुट्ठो भणति-सह अज्जयपज्जयएहि मा वंदह, अण्णे वंदेहिति मम, एतं कडिपट्टयं न छड्रेमि, तत्थ य साधू भत्तपच्च भक्खायओ, ताहे तस्स निमित्त कडिपट्टयनोसिरणडताए आयरिया वष्णेति-पतं महाफलं भवति जो साहुं वहति, तत्थ य पढम |पव्यझ्या मणिएल्ल्या-उम्भे भणेज्जह अम्हे एतं वहामो एवं ते उड्डेति, तत्थ य आयरिया भणति--अम्हं सयणवग्मो मा णिज्जरं पावतु, वो तुम्मे चव सव्ये भणह अम्हे चेव बहामो, ताहे सो थेरो भणति किं पुत्ता ! एत्थ बहुतरिया निज्जरा', आयरिया | भणति-बादं, कि एस्थ भाणितव्यं, ताहे सो भणति-तो खाइ अर्हपि वहामि, आयरिया भणति-एत्थ उपसग्गा उप्पज्जति चेडरू-| वाणि णग्गेन्ति, जदि तरसि अहियासितुं तो बहाहि, अह गाहियासेसि ताहे अहं न सुंदरं भवति, एवं सो थिरो कतो, जाहे सो ४ | उक्खित्तो साधू मग्गतो पण्यइयाउ ठिताओ ताहे खुङगा भणिता-एताहे कडिपट्टयं मुएह, ताहे सो मोतुं आरद्धो, ताहे अण्णेहि भणितो-मा मुंचत्ति, तत्थ से अण्णेण कडिपडओ पुरतो कातूण दोरेण बरो, ताहे सो लज्जिओ तं वहति, मग्गओ मम पेच्छति ॥४०७|| सुहाओ नत्तुईओ य, एवं तेणचि उवसग्गो उडिओचिकातूण चूदं, पच्छा आगतो तहेब, ताहे आयरिया भणति-कि अज्ज खंत! SEEKERS %TRA अनुक्रम (413) Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत रक्षिताः HEISE दीप 8 इमं ?, ताहे सो भणति-साहसियज्जे ( अहियासियव्वे ) पुत्त ! उवसग्गो उडितो, आणेह साडयं, ताहे भणति-किं साडएणं ! पृथक्वानुआवश्यकाल दट्टब्बं तं दह, चोलपट्टो चेव मे भवतु, एवं ता सो चोलपट्टयं गेहाविओ। योगे आर्यपच्छा भिक्खं न हिंडति, ताहे आयरिया चितेंति--जदि एस मिक्खं न हिंडति तो को जाणति कदाति किंचि भवति', भाई पच्छा एकल्लो किं काहिति?, अविय-एसो निज्जरं पावेतब्बो, तम्हा (तहा) कीरतु जहा एसो हिंडति, एवं च आयवेयावच्चं से, पच्छा नियुक्तो परवेतावच्चपि काहिति, एवं चिंतेत्ता आयरिया ते सब्वे अप्पसारिय आमणितूण गता, जहा सव्ये आगता एकल्लया समुद्दिसह, ॥४०८॥ पुरतो य खन्तस्स भणति-खन्तस्स बढेज्जाह, अहं वच्चामि गाम, एवं गता आयरिया, तेऽपि आगता समाणा सव्वे एकल्लया। समुद्दिसति, सो चिंतेति-मम एस दाहिति, एसो दाहिति, एकोवि तस्स न देति, अण्णो दाहिति, एस चराओ किं लभति ? | अण्णो दाहिति, एवं तस्स न केणति किंचिधि दिण्णं, ताहे आसुरुत्तो न किंचि आलवति, चिंतेति-कल्लं ता एतु मे पुत्तो तो | पावेमि जं केणति (ण) पाविता, ताहे बितियदिबसे आगता आयरिया, ताहे ते भणति-खता! किह वट्टियं मे, ताहे सो भणति-21 जदि तुम पुत्चा! न होतो तो है एकपि दिवस न. जीवंतो, एते य जे अण्णे मम पुत्ता नत्तुगा य एतेवि न किंचि देति, ताहे| आयरिएण समक्खं खिसिता, तेवि य अगुवगता, आयरिया भणंति-आणेह, अहं अप्पणावि जामि, खतस्स पारणय आणेमिः। ४ ताहे सो खंतो भणति-किह मम पुत्तो हिंडिहिती, प्रकृष्टो न कदाति हिंडियपुब्बो, अहं चेच हिंडामि, ताहे सो खतो अप्पणा ॥४०८|| णिग्गतो, सो य पुण लद्धिसंपण्णो चिरावि गिहत्थत्तणे, सो य अहिंडतो न जानति कत्तो दारं ववदारं वा, ताहे सो एग घर अवद्दारेण अतिगतो, तत्थ य अण्णदिवसं पगतं वत्तेल्लयं, तत्थ घरसामिणा भणिता-कतो पव्वइतओ अतिगतो, घरस्स किं अनुक्रम SAGAROO (414) Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणौं । सत्राका आर्यरक्षितMकार नथि, कीस अवदारेण अतीसि , ताहे तेण तत्थुप्पण्णं चत्र भणित--सिरीअ एंतीए किं दारं अवदार वा, जतो अतीति RT आवश्यक तो सुंदरा, ताहे. तेहिं भणितं- देह से मिक्खं, तत्थ लड्डुगा बत्तीस लद्धा, सो ते घेतूण आगतो, आलोयिय जेण, पच्छा गोठामा आपरिया मणति-तुझं बत्तीस सीसा होहिंति परंपरएण आवलिया ठावया, ताहे आयरिया भणति जा तुम्मे पुवं राउला लगर किंचित्रातिसेसं ताहे कस्स देह, तेण भणित-चमणाणं, एवं चेव अम्हं साधुणो पूयणिज्जा, एतेसि एस पढमलाभों दिज्ज त एवं होतुति तं सच्वं साहुण दिण्णं, ताहे पुणो अप्पणो अट्ठाए उचिण्णो, पच्छाणेणं परमणं घतमहुसंजुत्तं आणित; पच्छा सर्य ॥४०॥ समुदिडो, एवं सो अप्पणा चेव पद्वितो लद्धिसंपण्णो बहूर्ण बालदुब्बलाणं आधारो जातो । एवं तस्सण्णायगपबब्जा। तत्थ य गच्छे तिणि पूसमित्ता-एगो दुब्बलियपूसमित्तो एगो घयपूसमिचो एगो पोत्तपूसमित्तो, जो दुबलिओ सो झरो, एगो घतं उप्पायेति एगो पोचाणि, तस्स पतपूसमित्तस्स इमा लद्धी-दव्यतो घतं उप्पाएतब्ब, खत्तओ जहा उज्जेणीए, कालतो जेवासाढकाले, भावतो धिज्जातिणी तीसे मत्तुणा दिवसे २ छहि मासेहिं पसविहिनि पिंडिओ वारतु घतस्स वितायाए उवयुब्जिअतिति, सा य कल्ले वा परे वा वियाहितित्तिकाऊणं, तेण य जातितं, अपणं णत्थि, तहवि पिंडितं सा हट्ठमाणसा देजा, परिमाणं तु जत्तियं गच्छस्स उपयुज्जति, सो यनितो चेव पुच्छति-कस्स कत्तिएण घएण कज्ज!, पोत्तपूसमिचस्स एमेव सत्चा, द| व्यादि, दबओ वत्थं खेत्तओ बइबदेसे महुराए वा, कालओ वासासु सीतकाले वा, भावतो जहा काइ रंडा तीस केणति उवाएण&ine बहुर्हि दुक्खेहि छुडाए य मरतीए कत्तिऊर्ण एगा पोती वुणावेत्ता कल्लं नियंसेदामिति, एत्यंतरा पोतिपूसमित्तण जातितं, सा ट्रा हतुवा देज्जा, परिमाणओ सबस्स गच्छस्स उप्पाएज्जा। दीप अनुक्रम (415) Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत आवश्यक सत्राक उपोद्घात नियुका ___एस दोपई जो दुब्बलियपूसमितो तेण गव पुव्वाणि गहितेल्लगाणि, सो ताणि रति च दिवस झरति, एवं सो झरणाए आर्यरक्षित दुबलो जातो, आदि सो न झरेज्जा ताहे तस्स सर्व चेव पम्हुसेज्जा, तस्स पुण दसपुरे चेव नीयल्लगाणि, ताणि पुण रचवडोवासगाणि आयरियाणं पासे अस्लियंति, तत्थ ताणि भणति-अम्हे भिक्खुणो झाणपरा, तुझं झाणं णत्थि, आयरिया मणति-1 गाष्ठामा अम्हं चेव झाण, तेसि कुतो झाणी, एस तुभं जो नियल्लओ दुबलियपूसमिनो एस झाणेण चेव दुबलो, ताणि भणांति-एस गिहत्थत्तणे निद्धाहारेहिं बलिओ, इदाणिं णत्थि, तेण दुबलो, आयरिया भणति-एस नेहेण विणा न कदाति जेमेति, ताणि भणति-कतो तम्भ हो', पतपुस्समितो आणति, ताणि न पत्तियंति, ताहे भणिताणि-एस तुम परे किं आहारताइओ, वाणि भणति-निद्धपेसला आहारताइओ, तेसिं संबोधि णातुं ताण परं विसज्जिओ, एत्ताहे देह तं, ताणि तहेव दातुं पवत्ताणि, | सोवि झरति, तपि णज्जति छारे छुम्भति, ताणि गाढतरं देंति, एवं निविण्णा, नाहे आवादियाणि, किही, सो भणितो-मा गिद्ध। | आहारेहि, मा य चितेहि, ताहे सो पुणोऽवि पोराणसरीरो जातो,ताहे ताण उवगतं, ताहे तेसि धम्मो कहितो, सावगाणि जावाणि। तस्थ य गच्छे हमे चचारि जणा-सो चेव दुबलो१चिन्झोरफग्गुरक्खितोक्योहामाहिल्लोत्ति४। जो सो विंशो सो अतीव मेहावी X सुत्तत्थतदुभयाणं गहणधारणसमत्थो, सो पुण ताव महल्लाए मंडलीए विमरति, ताहे सो आयरिए भणति-अहं बिखरामि, न सका मंडली वोलेत्ता, तो मम संदिसह, आयरिया भणंति आम अज्जो',ताहे तस्स दुबलिओ दिण्णो वायणायरिओ, कतिवि दिणे उवहितो ४१०॥ मम नासति, जं च समायतघरे णाणुपेहितं तं च संकितं जातं, तोमम अलाहि, जदि अहं एतस्स वायण दाहामि तो मम नवमं पुवं । | पम्हुसिहिति, ताहे आयरिया चिंतेंति-जति ताव एतस्स परममेहाविस्स एवं झरंतस्स णासति अन्नस्स नढल्लयं चेव, एवं ते उवओगे || SASAR ॥४१०॥ दीप अनुक्रम (416) Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूण उपोषात निर्युक्तौ ॥ ४११ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ), निर्गुक्ति: [b७४/७७३-७४७] ..आगमसूत्र भाष्यं [ १२४ ] [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 मता, ताहे तेहिं गहणधारणादुम्बलत्तणं णातूणं चत्तारि अणुयोगद्दारा कता सुहगहणधारणा भविस्संति, काणि पुण ताणि १ कालियसुतं ॥ ८-५६ ।। १२६ मू. भा. ॥ जं च महाकप्प० ।। ८-५५ ॥१११ मा. एकारस अंगा सबाहिरगा जंच महाकप्पसुतादि एवं चरणकरणे उवितं इसिभासिता उत्तरज्झयणा य धम्माणुयोगो जातो, चंदसूरपण्णत्तीओ एस कालानुयोगो, दिट्टिवाओ दविताणुओगो, अपुडुचे एगम्मि सुते चत्तारिवि अणुयोगा आसि, अपुहुने अत्थो वोच्छिष्णो एगेण एगो ठितो, एवं जुगमासज्ज अणुयोगो कतो चउथा, एतनिमित्तं विंशस्त गहणं कर्त। जंनिमित्तं चंत्तारि अणुयोगद्दारा कता जेण कयो सो मणितो । अण्णोऽविय आयरियाणं माता बहुस्सुतो फग्गुरक्खितो अष्णोऽविय आयरियाणं मामओ मोडामाहिलो, एते उवरिं भणिहिंति । देविंदबंदिहिं० ॥ ८-५१ ।। ११६ ।। किह देवेहिं वंदिता १, ते य नाम विहरता महुरानगरिं गता, तत्थ भूतगुहाए ठिता वाणमंतरघरे, इतो य सको देवराया महाविदेहे सीमंधरसामिं पुच्छति नियोदे तत्थ से बागरिता, ताहे भगति अस्थि पुण मरहे कोइ णिओते नागरेंतो १, भगवता भणितं अस्थि पुण, को १, अज्जरक्खिओ, तत्थ आगतो सको माहणरूपेण, तं धेररूवं कातूणं पव्वश्यमा य निग्गता भिक्खरस, सो य अतिगतो, ताहे वंदित्ता पृच्छति मगवं ! मज्झ सरीरे इमो महलब्वाही इमं च मत्तं पच्चक्खाएज्जामि, तो जाणह-मम केचियं आउं होज्जा, जनिएहि य किर भगिता आयुसेढी, तत्थ उवउत्ता आय रिया जाब आयुं पेच्छति वरिससतं दो तिष्णि, ताहे चिति- - एस भारइओ तु मणूसो ण भवति, वाणमंतरो विज्जाहरो वा जाव दो सागरोवमोती ताहे भूयाउ साहरिता भणति-सको भविज्जा, वाढंति भणितं पादेसु निवडतो, ताहे सव्वं साहति, जहा महाविदेहे सीमंधरसामी पुच्छिता, तेहिं कहितो, इदं वामि आगतो, तं इच्छामि णं सोतुं निओवे, वाहे कहिता, भणति सपाई आर्यरक्षितवृ गोष्ठांमाहिलः (417) ॥४११॥ •••यत् अत्र 'चूर्णि' संपादने "जं च महाकप्प" गाथा, भाष्य-गाथा रूपेण निर्दिष्टा, सा गाथाः वृत्तिकारेण निर्युक्ति-गाथा ७७७ रूपेणा निर्दिष्टाः •••निनव (गोष्ठा माहिल) वृतांत आरभ्यते Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत गोष्ठामा HEISE 18 भरहन्ति, इदाणं वच्चामि, भणति आयरिया--अच्छह ताव मुहुत्तगं जाव संजता एन्ति, सो भणति-वपचामि, आयरिया भणंति- 1जायेक्षितआवश्यकता एनाहे दुकहा संजाता, जा चिरा भवंतु जे चला जहा एत्ताहेवि देविदा एन्ति, ताहे सो भणति-जदि ते मम पेच्छति तेणI . चूणा चेवऽप्पसत्तत्तण निदाणं वा काहिति, तेण बच्चामि, किंच चिंधं कातूणं बच्च, ताहे दिव्या गंधादी पकिण्णा, पडिस्सय च। KI हिला उपाधावा अण्णओमुई कातूण गतो, ताहे आगता संजता, ते पुच्छति कहिं एतस्स दारं, आयरिएहि वाहिता-इतो एहत्ति, सिटुं च जहा। है सको आमतो, ते भणंति-अहो अम्हेहिं न दिहो, कीस मुडुत्तं न धारिओ, चेव साहति जहा अप्पिडिया मणुषा माटी ॥११॥ णियाणं काहिति, पाडिहरं कातूण गतोत्ति । एवं ते देविंदर्वदिया भण्णांति । ते अण्णदा विहरता दसपुरं गता, मथुराए य अकिरियवादी उडिओ, जथा-नत्थि माता नस्थि पिता एवमादिणाहीयवादी, है तत्थ संघसमवाओ कओ, तत्थ पुण वादी णत्थि, ताहे इमेसि पयट्टियं इमे य जुगप्पधाणा, ताहे आगता, तेसिं साहति, ते य महल, आहे तेहिं गोडामाहिल्लो पयट्टितो, तस्स य वादलद्धी अस्थि, सो गतो, तेण सो वादे पराजिओ, सोवि ताव तत्थ सड्ढ़ेहिं रुखोक परिसारचे ठिओ अच्छति। इतो य आपरिया समिक्खंति-को गणहरो भवेज्जा, ताहे दुबलियपुस्समित्तो समिक्खितो, जो पुण तेसि सयणवग्गो सो 18 पशुओ, (तस्स गोडामाहिलो फारक्खितो वा अणुमतो, गोडामाहिलो आयरियाण मातुलओ, तस्थ आयरिया सवे सदावेचा दिल-mar किरात, जहा-तिथि कुडा-निष्फावकुडे तेल्ल० घतकुडो, ते पूण सव्वे हेवाहुत्ता कता निष्फाचा सम्वे णिति, तेल्लमविणीति, तत्काल अवयवा लग्गति, पतकडेहिं बहु चेव लग्गति, एवमेव अहं अज्जो ! दुबलियपूसमिचं प्राति सुत्तत्थतदुभयेसु निष्फाक्थुडसमाणों दीप अनुक्रम (418) Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत & माहिला HEIGE जाओ, फग्गुरक्खितं प्रति तेल्लकुडसमाणो, गोट्ठामाहिलं प्रति घयकुडसमाणो, एवं एस सुतेण य अत्येण य उववेतो, एस तुम्भ गोष्ठाIPायरिओ भवतु, तेहिं सव्वं पडिच्छितं, इतरोऽपि भणितो-जहाऽहं वढिओ फग्गुरक्खितस्स गोडामाहिल्लस्स य तथा तुमे पट्टि-II चणातव्वं, ताणिवि भणिताणि-जहा तुम्भ मम वट्टिताई तहा एतस्सवि बट्टेज्जाह, अविय-अहं कते वा अकए वा ण रूसामि, एस उपोद्घात न खमिहिति, एवं दोवि वग्ग अप्पाहेचा भत्तं पञ्चक्खातं, कालगता, दियलोगं गता । इतरेणवि सुतं जहा आयरिया कालगता, ताहे आगतो पुच्छति गोट्ठामाहिल्लो-को गणहरो ठवितो, कुडगदिद्रुतो य सुतो, ताहे वीसु पडिस्सए ठाइतूण पच्छा आगतो, ॥४१३॥ 18| ताहे तेहिं सब्वेहिं अद्वितो, इह चैव ठायह, ताहे णेच्छति, सोऽवि वाहि ठितो अण्णाणि वुग्गाहेति, ताणि ण सति । | इतो य आयरिया अत्थपोरिसि करेंति, सो ण सुणति, भणति- तुब्भत्थ निष्क्षावकुडा कहेह, तहेच तेसु उद्वितेसु विंझो अणुभासति, अट्ठमे कम्मप्पवादपुचे कर्म वणिजति, किड कम्मं अच्छति', जीवस्स कम्मरस य कहं बंधो , तत्थ ते भणति४ बर्दू पुढे निकातिय, बर्दू जहा सूतिकलावओ. पुढे जहा घणनिरंतराओ कताओ, निकाइत जथा तावेतूण पिडिताओ, एवं कम्म लारागद्दोसेहिं जीवो पढम बंधति, पच्छा तं परिणाम अमुंचतो पुढे करेति, तेणेव सकिलिटुं परिणाम अमुचंतो किंचि निकाएति, निकाइतं निरुवक्कम उदए, णवरि अण्णहात नवि चेतिज्जति, ताहे सो गोट्ठामाहिलो बारेति, एचिए ण भवंति, अण्णदावि 18 अम्हेहिं सुतं, जदि एत्तिए कर्म यद्धपुट्ठनिकातितं एवं भे मोक्खो न भविस्सति, कह खाति बज्झति !, भणति-सुणह- . ४॥४१३॥ पुढो जथा अबद्धो कंचु० ॥ ९-९ ॥ १४३ मू. भा। जथा सो कंचुओ त कंचुइण पुरिसं फुसति, ण पुण सो दीप अनुक्रम (419) Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७७४/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA कंचुओ सरीरेण समं बद्धो, एवं चेव कम्मपि पुई, ण पुण बर्द्ध जीवपदेसहि सम, जस्स य बद्धं तस्स कम्मस्स संसारयोच्छिती | गोष्ठाआवश्पकालीन भविस्सति, ताहे सो भणति-अम्हं आयरिएहि एत्तियं भणितं, एसोन याणति, वाहे सो संकितो समाणो प्रच्छितं गतो, मा मएGमाहिलप अण्णथा गहितं भवेजा, ताहे पुच्छिया आयरिवा, ते भणंति-अम्ह न होति एयंति, जस्स पुण अबद्धं कम्म तस्स इमे दोसातो-संसारो नरिथ, वेदणा वा, जहा आमासगता पल्लवा ते ण बाहिजति एवं तस्स कम्मंपि, जदि देवलोकं बच्चति ताहे| नियुक्ती छडेतुं वच्चति, उडुंगामी जीवा अहोगामी पोग्गला इति तस्स संसारो चेव न होहिति, एवं जीवसरीराणवि अबाहेण भवितव्यं, ॥४१४॥ जथा कंचुए छिर्जते तस्स बाधा नस्थि, एवमाझ्या दोषाः, जे पुण अम्ह पक्खे मोक्खाभावेचि भणितं तं न भवति, जतो असंखज्ज कालाओ उप्पि कम्मस्स ठिती चेव णस्थि, तो ठिते हक्खयातो मोक्खोऽवि भवति, जथा-परमाणुपोग्गलाणं जथा नहासंधत्तपरिताणं ठितिणेहक्खयातो वियोगो भवतित्ति, तेण गंतूण सिट्ठ, एत्तिए भणितं आयरिएहिं, एवं पुणरवि सो संलीणो अच्छति, समप्पतु ता तो खोमेहामि । अण्णया नवमे पुच्चे पच्चक्खाणे साधूर्ण जावज्जीवाए तिविहं तिविहेण पाणातिवाय एवं पञ्चक्खाणं वणिज्जति, वाहे सो भणति-अवसिद्धंतो,न होति एवं, कई पुण कातन्वी, सव्वं पच्चक्खामि पाणातिवात अपरिमाणाए तिविहं तिविहेण एवं सव्वं, आवकहितं किंनिमित्तं परिमाणं ण कीरति, जो सो आसंसादोसो निकचिओ भवति, जावज्जीवाए पुण भणतेणं परेण अन्भुवगत | भवति, जहा स्थामि पाणेचि, एतनिाम अपरिमाणाए कातब्ब, ताहे विशो भणति-ण होति एत्तिए, जंच तस्स अवसेसं नव-IMI४१४॥ मस्स पुवस्स तं सम्मत्तं । ताहे सो भणति-अण्णहा आयरिएहिं भणितं, तुम अण्णहा पण्णवेसित्ति, ताहे सो भणति एतिए माणित दीप ॐ अनुक्रम 2 (420) Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७७४/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGA श्री आयरिएहि, संसा पुष एवं भवति,जतो न मता आसेविस्सामोति परिमाणं करेंति, किंतु मा जत्थ का तत्थ वा वयपरिच्चामबावश्यकपरिणामो भविस्सति, मताणं च देवभावादो अवस्संभावी पच्चक्खाणाभावो, अपरिमाणे व्यकरणे तस्थासेषणे किनु भवतुति ! गोष्ठा चूर्णी जावज्जीवाए भणवित्ति । ते य सब्बे भति-जहा एत्तिएष मणित आयरिपहिंति, जेवि अण्णे थेरा बहुस्सुता अण्णगच्छल्लया तेऽविला उपविधान पुच्छिया एत्तिए चेव मणंति, ताहे भणति-तुम्मे किं जागह, तित्थकरहिं एत्तिए भणित, तेहि भणितं-तुम न जापासि, जाहे न नियुक्त ठाठति, ताहे संघ समाओ कओ, देववाए य काउस्सग्मो कतो, जा भद्दिया सा आगता भणेति-सदिसहचि, ताहे भणिता-बच्च, ISI ॥४१५॥ तिस्थयरं पुच्छ-किंजं गोड्डामाहिल्लो भणति सच्ची जं दुबलियप्पमुहो संघो भणति तं सच्ची, ताहे सा भणति-अणुवलं देह, काउस्सग्गो दिष्णो, ताहे सा गता, तित्थगरो पुच्छितो, केहिं वागरितं, जहा-संघो सम्मावादी, इतरो मिच्छावादी, निण्हओ एस 2 सचमा, ताहे आगताए भणितं, उस्सारेद, संघो सम्मावादी, एस मिच्छावादी, निण्हओ य सत्तमो, ताहे सो भणइ-एस अप्पिडिया वराई, का एताए सत्ती गंतूण, तीसेवि न सदहति, ताहे पूसमिता गमेन्ति, जथा-अज्जो ! पडियज्ज, मा उग्धाडिज्जिहिसि, णेच्छति, ताहे सो संघण बज्यो कतो वारसविहेणं संभोएण, तंजहा-उपहि १ सुत २ भत्तपाणे ३, अंजलीपग्गहे इय ४ । दायणा ५५ य निकाए ६ य, अन्भुट्ठाणेति आयरे ७॥१ कितिकसमस्स य करणे ८ वेयायच करणे इय ९ । समोसरण १० सण्णिसेज्जा है|११, कहाए, य निमंतणे १२ ॥२॥ एस. वारसविहो सउचरभेदो जहा पंचकप्पे, सत्तमो निण्हउत्ति, एवं अणालोझ्यपरिकतो कालगतो, एस सचमो निण्हओ । एतेण भणितेण अबसेसा सहता ते पहमेल्लुगे, ण जाणामो ते, तेण सुणिउमिच्छामो, तत्थ | X ॥४१५॥ & इमे निण्हगा RESEARHABAR RECASACANCERT दीप अनुक्रम (421) Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEICO बहुरयपदेसअव्वत्त० । ८५६ ॥ ७१८ ॥ बहुरताणं किह उप्पत्ति १, तेणं कालेण कुंडपुरं नगरं, तस्स सामिस्स जमालिवृत्त आवश्यकताजेहा भगिणी सुदंसणा नाम, तीए पुत्तो जमाली, सो सामिस्स मूले पव्वइतो पंचहि सतेहि सम, तस्स य भज्जा सामिणो धूताटू चूर्णी अणोज्जंगी नाम, बीयं नाम से पियदसणा, सावि तमणुपव्वतिया ससहस्सपरिवारा, जहा पण्णत्तीए तहा भाणितव्यं, एकारस उपोद्घात नियुक्ती अंगा अधीता, सामिणा अणणुण्णातो सावत्थि गतो पंचसतपरिवारो, तत्थ तेंदुगुज्जाणे कोट्ठगे चतिते समोसढो, तत्थ से अन्तपन्तेहिं रोगो उप्पण्णो, न तरीत तिद्वेतुं अच्छितु, ताहे सो समणे भणति-मम सेज्जासंथारगं करेह, ते कातुमारद्धा, पुणो ॥४१६॥ अधरो भणति-कतो? कज्जति ?, ते भणंति-न कतो, अज्जावि कजति, ताहे तस्स चिंता जाता-जण्णं समणे भगवं. आइक्खति | 'चलमाणे चलिते उदिरिजमाणे उदीरिए जाब निजरिजमाणे निज्जिण्णे' तण्णं मिच्छा, इमं णं पञ्चक्खमेव दीसति सेजासंथारए कजमाणे अकडे संथारेजमाणे असंधारिए, तम्हा णं चलमाणेऽवि अचलिए जाव निज्जरिञ्जमाणेऽवि अणिज्जिण्णे, एवं संपेहेति२ | निग्गंधे सद्दाविति सद्दावेत्ता एवं वयासी-जण्या समणे महावीरे एबमाइक्खति चलमाणे चलिते जाव तण्णं मिच्छा, इमं णं पञ्चक्ख| मेव दीसति जाव तम्हाणं अणिज्जिण्णे, ततेणं जमालिस्स एवं आइक्खमाणस्स जाव परूबेमाणस्स अत्थेगतिया णिग्गंथा एत-| | मत्थं सरहंति, अत्थेगतिया णो सदहति, जे ते सद्दहति ते णं जमालि चेव अणगारं उपसंपज्जिचाणं विहरंति, जे ते णो सदर्हति ॥४१६॥ 11ते एवमासु, जणं सामी आइक्खति तण्णं तह चेव, जण तुमं वयसि तं गं मिच्छा, कह', 'चलमाणे चलिते' इत्यत्र चलितमिति स्थितिक्षयाद् यदुदितं तवलितमित्युच्यते, उदितं नु विपाकाभिमुखीभूतं, तवं चलत्कर्म उदयावलिकाले चलति । तस्य कालस्य असंख्येयसमयत्वात् , आदिमध्यान्तबच्च, कर्मपुद्गलानामपि अनन्ताः स्कन्धा: अनंताः प्रदेशाः क्रमेण पइसमयमेव दीप अनुक्रम MORESAKAAS अत्र 'जमाली' प्रथम-निह्नवस्य कथानकं आरभ्यते (422) Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री चलन्ति, तत्र योऽसावाद्यश्चलनसमयस्तस्मिस्तञ्चलदेव चलितं, कथं पुनस्तद्वर्तमानं सदतीतं भवति ?, तत्र दृष्टांत:-यथा पटः जमा श्रावश्यक उत्पत्तिकाले प्रथमतंतुप्रवेशे उत्पद्यमान एवोत्पन्नो भवति, उत्पद्यमानत्वं तु यतस्तस्मात्कालात्प्रभृतिः,तस्यायं व्यपदेशो दृष्टा-उत्पथ चूणा पट इति, तत्रोपपत्ति-उत्पचिक्रियादिकाल एव प्रथमतंतुप्रवेशे तदुत्पन्न, यदि हि तदा नोत्पत्र स्यात् अतस्तस्याः क्रियाया। उपाघात वैययं स्यानिष्फलत्वात, उत्पायोत्पादनार्था हि यतः क्रिया भवति, यथा च तस्मिन् क्षणे तनोत्पन्न तथोत्तरेप्वपि क्षणेषु नैव* तस्योत्पत्तिः स्यात्, को हि तासामुत्रासां च क्रियाणामात्मनि रूपविशेषः येन प्रथमया नोल्पनं ताभिरुत्पयते , अतः सर्वदेवा॥४१७॥ नुत्पत्तिप्रसंगः, इष्टा चोत्पत्तिः,अंत्यतंतुप्रवेशे पटस्य दर्शनात्, अतः प्रथमविहरण एवांगुल्यादेः किंचिदुत्पन्न तदुत्तरक्रियया नो(चेद)त्प |घते, ततस्तदेकदेशोत्पादन एवं क्रियाणां कालानां च क्षयः स्यात् यदि तु नद्देशोत्पादननिरपेक्षान्या क्रिया भवति तदा उत्तरांशानामनुक्रमण युज्यते, अनेन न्यायेन यथा पर उत्पद्यमान एवोत्पन्नः तथा तेनैव न्यायेन असंख्यातसमयपरिमाणस्वादुदयावलिकाया आदिसमयात प्रतिसमयं चलदेव तत्कर्म चलितं,कधी,यतो यदि हि तत्कर्म चलनाभिमुखीभूतं उदयावलिकाया आदिसमय एवं न चलितं स्यात् , ततस्तस्याबसमयचलनस्य चैययं स्यात, तत्राचलितत्वात् , यथा च तस्मिन्समये न चलितं तथा द्वितीयादिसमयेअप्पपि न चलेत, को हि तेपामात्मनि रूपविशेषः येन प्रथमसमये न चलित उत्तरेषु चलतीति ?, अतः सर्वदेवाचलनप्रसंगा, अस्ति &चान्त्यसमये चलन, स्थितेः परिमितत्वात, कर्माभावदर्शनात्, अतः आवलिकाकालादिसमय एव किंचिञ्चलितं, यश्च तस्मिवलितं तमोत्तरेषु समयेषु चलति, यदि तु तेष्वपि तदेवाचं चलनं भवेत ततस्तस्मिन्नेव चलने सर्वेषामुदयावलिकाचलनसमयाना क्षयः ॥४१७॥ स्यात्, यदि तु तत्समयचलननिरपेक्षानि अन्यसमयचलनानि स्वचलनरूपाणि भवन्ति तत उत्तरचलनानुक्रमणं युज्यते, अत एव दीप अनुक्रम (423) Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका 18 वर्तमानमेव तचलनमतीतं भवति, एवं उदीरिज्जमाणादिसुवी भावेयवमिति, तम्हा कज्जमाणे कडे संथरिज्जमाणे संथरिवति ।।जमालिवृत्तं चूर्णी जाहे न ठाति बाहे निग्गथा जमालिस्स अंतिताओ जथा पण्णत्तीए जाव सामि उवसंपज्जिताणं विहरति । साविय णं पियदसणा, ढंकस्स कुंभकारस्स घरे ठिता, सा आगता चेतियर्वदिता, ताहे तंपि पण्णवेति, सावि विप्पडिवण्णा तस्स हाणुरागण, पच्छा माणगता अज्जाणं परिकहेति, तं च क भणति, सो जाणति जथा-विप्पडिवण्णा नाहच्चएण, ताहे सो भणति-अहं न याणामि एवं 18 & विसेसतरं, एवं तीसे अण्णदा कदापी सहायपोरिसिं करतए तेण भायणाणि उद्यबत्ततेणं तचोहुचो इंगालो छुढो जथा तीसे है ॥४१॥ संघाडी एगदेसंमि दडा, सा मणति-इमा अज्ज! संघाडी दट्टा, ताहे सो भणति-तुम्भे चेव पण्णवेह जथा-उज्झमाण अदा कण ४ा तुम्भ संघाडी दड्डा १, एत्थ सा संयुद्धा, तहत्ति पडिसुणेति, इच्छामो अज्ज ! सम्म पडिचोदणा, ताहे सा गंतूण अमालि पण्ण-1 MIवेति, सो जाहे न गेण्हति ताहे गता सहस्सपरिवारा सामि उवसंपज्जित्ताणं विहरति । का इमो चिंतंतो लहुं चेर गतो चपं नगरं, सामिस्स अदरसामंते ठिच्चा सामि भणति-जथा ण देवाणुप्पियार्ण बहवो अतेवासी समणा निग्गंथा छउमत्था भाविता छउमस्थावकमणेण अवकता. नो खल अहं तथा उमत्थो मविचा छउमत्थावकमर्णण अबMIकते,अहण उप्पण्णणाणदसणधरे अरहा जिणे केवली भविता केवलिअवकमणेणं अवकते. ततेणं भगवं गोतमे जमालि एवं वदासी-13 ना खलु जमाली केवलिस्स गाणे वा दंसणे वा खलसि वा मांस वा जाव कहंचि वाऽऽवरिज्जति वा, जदि तुम जमाली उपXण्णणाणदंसणधरे तो इमाई दो बागरणाई बागरहि-सासते लोक? असासते १.सासते जीवे असासए, तए ण से जमाली भग वता गातमेणं एवं उत्ते समाणे संकिते लज्जिए जाच णो संचाएति भगवतो गौतमस्स किंचिनि पमोक्खमक्खातितपात तासणाए दीप AAMSANSAR अनुक्रम ४१८ (424) Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री सूत्रांक चूर्णी नियुक्ती । सचिवति, जमालीति समणे मगर्व महापारे जमालिं एवं पयासी-अस्थि में जमालि! ममं चहचे अंतेवासी छउमस्था जे पह एतं जमाति स्तिष्य वागरण एवं वागरेचए जथाणे मह, नो चेव णं एतप्पगारं भासं भासित्तए जथा णं तुम, सासए लोए जमाली, जंण कयायिका गुप्तच पासीन कदापि न भवतिन कदायिन भविस्सति, भुषि च भवति य भविस्सति य, धुषे जाव निणे, असासए लोए जमाली, आवश्यक जणं उस्सप्पिण्णी भक्त्तिा ओसप्पिण्णी भवति, सासते जीचे जमाली, पण कदायि णासी जाव णिच्चे, असासते जीचे, जण्णं मेरइए मविचा तिरिक्खजोणिए भवति तिरिक्खजाणिए भवित्ता मणुस्से भवहर भविचा देवे भवति, तते णं से जमाली उपोद्घात सामिस्स एवं आइक्खमाणस्स एतम९ नो सद्दहति, असद्दहते सामिस्स अंतियाओ अवक्कमति २ बहूहि असम्भावुब्भावणााह | मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं च परं च तदुमयं च बुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे पहुई बासाई सामण्णपरियाय पाउणति, बहूहिं ॥४१९॥ छदृढमादीहिं अप्पाणं भावेति, भावेचा अद्धमासियाए सलेहणाए अप्पाणं झूसेति २ तीस भत्ताई अणसणताए छेदेति, छेदेत्ता तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिक्कते कालमासे कालं किच्चा लंतए कप्पे तेरससागरोवमट्ठितिकेसु देवेसु देवत्ताए उबवण्णे , एवं जथा पण्णत्तीए जाव अंत काहितिति । एताए दिडीए बहुए जीवा रता तेण बहुरतत्ति भणति, अहवा पहुसु समएसु कञ्जसिद्धिं पहुच्च रता-सक्ता बहुरता इति । चोद्दस वासाणि तदा सामिणा उप्पडितस्स गाणस्स ताहे सो पढमओ निण्हओ उप्पण्णोत्ति ॥ ५ ॥४१॥ ... चितिओ सामिणा सोलसवासाई उपाडितस्स गाणस्स तो उप्पण्णो । तेण कालेणं तेण समएणं रायगिहे गुणसिलए दाचेतिए बस, नाम भगवंतो पायरिया चोरसपुष्वी समोसढा, तस्स सीसो तीसगुत्तो नाम, सो आतप्पवादपुर इम आलावग अज्झाति दीप अनुक्रम 'तिष्यगुप्त' द्वितिय-निह्नवस्य कथानकं आरभ्यते (425) Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 11 चार्य HEIG "एगे भंते ! जीवप्पदेसे जीवेत्ति बत्तव्वं सिया ?, णो तिणत्थे, एवं दो जीवप्पदेसा तिणि संखेज्जा असंखज्जा जाव एगप्पदेसू-131 तिष्यगुप्त आवश्यक लावि यण जीवे णो जीवेत्ति बत्तय सिया,जम्हा कसिण पडिपुण्णे लोगागासप्पदेसउल्लपदेसे तु जीवेति पत्तण्य" मित्यादि, एस्थGT चूणा सो विप्पडिवण्णो, जदि सब्वेवि जीवप्पदेसा एगप्पदेसहीणा जीवनवएसं न लभंति तो णं एसे चेव एगे जीवप्पदेसे जीवेत्ति, टिशिष्याश्च नियुक्तो पायात तब्भावभावित्वात् जीवव्ववदेसस्सत्ति, ताहे सो भणति-नो खलु एगप्पदेसमेत्तनिबंधणे जीवव्ववदसे, किंतु कसिणपडिपुण्ण-18 लोगागासप्पदेसतुल्लपदेसानिबंधणेत्ति, तं नो खलु एगे जीवप्पदेसे जीवेचि, जाहे न ठाति ताहे से काउस्सग्गो कओ एएहिं, ॥४२०॥ सो बहृहि असम्भायुम्भावणाहिं मिच्छचानिवेसेहि य अप्पाणं च पर च बुग्गाहेमाणो गतो आमलकप्पि नगरि,तत्थ अंबसालवणे ठितो, तत्थ मित्तसिरी नाम सवणोवासओ तप्पमुहा य अण्णे, ते निग्गता आगता साहुणत्ति, सोऽवि जाणति जहा एते निण्हगति, पच्छा सो पण्णवेति, सोऽवि जाणति तहाइ माइहाणण गतो धम्म सुणेति, सो ते ण विरोहेति, पण्णवहामि णं, एवं सो| कम पडिच्छंतो जाव तस्स संखडी विपुलविच्छिण्णा जाता, ताहे ते णिमंतिया-तुम्भे मम घरे पादाद्याकमण करेह, एवं ते आगता, ताहे तस्स निविदुस्स तं विपुलं खज्जयं नीणितं, ताहे सो ताओ एक्केकाओ खंडं देति कूरस्स कुसणस्स वत्थस्स, ते जाणं ति-एस पच्छा पुणो दाहिति अम्हं, पच्छा पादेसु पडिओ सयणं च भणति-चंदह, साधू पडिलाभिता, अहोऽहं धष्णो सपु-II धाणो जे तुम्भे ममं चेव घरे आगता, ताहे भणंति-किं धरिसिया अम्हे?, ताहे सो भणति-तुम्भ मतेणं सिद्धतेण पडिलाभिता, जMदि नवीर बद्धमाणसामिस्स तणएण सिद्धतणं पडिलाभेमि, एत्थ संयुद्धा, इच्छामो अज्जो ! सम्म पडिचोयणा, ताहे पच्छा साव- ४२०॥ Pएणं पडिलाभिता मिच्छादुक्कडं च णं कत, एवं ते सव्वे संबोहिता, आलोइयपडिक्कता विहरति । वितिओ निहओ गतो।। दीप अनुक्रम (426) Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चार्य इयाणिं ततियओ, तेणं कालेण० समणस्स भगवतो दो वाससताणि चोदसुत्तराणि सिद्धिं गतस्स तो उप्पण्णो । सेयविया | THIDनयरी, पोलासं उज्जाण, तत्थ अज्जासाढा नाम आयरिया वायणाइरिया, तेसिं च बहवे सीसा आगाढजोगपडिवण्णगा, अज्झा-11 यति ते, तेसिं च रचिं विसइया जाता, निरुद्धबातेण न चेव कोइ उट्ठविता जाव कालगता सोहम्मे नलिगिगुम्म विमाणे उववष्णा, शिष्याः उपोदवाती ओहि पयुजति जाव पेच्छति तं सरीरंग ते य साधुणो आगाढजोगपडिवण्णगा, एते न जाणति, ताहेत पेव सरीरगं अणुप्पचिड्डा, कोडिन्यश्च नियुक्ती पच्छा उति- वेरत्तिय पकरेह, एवं तण वेसि दिब्बप्पभावेण लहुं चेव समाणितं, पच्छा निष्फणेसु तेस भणति- खमह मंते 11 |ने मए असंजतेण वंदाविता,अह अमुगदिवस कालगतेल्लओ, एवं सोखामेत्ता गतो,तेवितं सरीरगं छईतूण इमे एयारूवे अजयस्थि-ला ॥४२१। |ए सब्बो गच्छो विप्पडिवण्णो-एच्चिरकालं असंजतो बंदिउत्ति, ताहे ते अव्वत्तभावं भावेति जथा- सव्वं अन्वत भणेज्जह, संजतोवि वा देवोवि वा,मा मुसागदो भवेज्जा असंजतवंदणं च,जहा तुम ममं न पत्तियसि जहा संजतो न वा?,तुमपि एवं माणितव्यो। एवं संजतेचि सावगेवि ता एवं विभासा, एवं ते असम्भावेणं अप्पाण३, तत्थ अणुसासिता ण ठिता, अणिच्छंता बारसविहेणं | संभोएणं उग्धाडिता । ताहे विहरंता रायगिह नगरं गता, तत्थ मुरियवंसप्पभूतो बलभद्दो नाम राया, सो य समणोवासओ,12 | तेण आगमिता जहा इहमागतत्ति, ताहे तेण गोहा आणचा-बच्चह गुणसिलए पव्वइयगा ते इह आणेह, ताहे तेहिं आणीता, | | ह (भ) णिया य-लहु कडगमद्देण मद्दह, ताहे हत्थीहिं कडगएहि य आणीएहि भणति-अम्हे जाणामो जहा तुमं साक्जो, सो माल | पति-कहिं थ सावओ?, तुम्भे केवि चारा णु चोरिया णु अभिमरा णु, ते भणति-अम्हे समणा णिग्गथा, सो भणइ-किह 21 तुम्भे समणा', तुम्मे अन्वचा, तुम्भे समणा वा चारिगा बा,अहंपि समणोवासओ वा ण वा,ते संबुद्धा लज्जिता पडिवण्णा नीसं दीप अनुक्रम 434 आषाढाचार्य-शिष्या: तृतीय-निनवस्य कथानकं (427) Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEISS श्री किया समण। निग्गथावो (मो)त्ति, ताहे अंबाडिता, खरेहिं मउएहि य मए तुम्मे संबोहणट्ठाए कतं, मुक्का खामिया य । एवं सामुच्छेआवश्यकततिओ गतो॥ नादिका चूर्णी सामिस्स दो बाससताणि वीसुत्तराणि सिद्धिं गतस्स तो चउत्थो उप्पण्यो । महिला नगरी, लच्छीघरं चेतिय, महागिरी य उपाद्घाताआयरिया, तत्थ तेसि सीसी कोडिण्णो, तस्सपि आसमित्तो सीसो, पुण अणुप्पवादे पुग्वे नेउणियावत्थु, तत्थ छिण्णच्छेदणयनियुक्ती | वत्तव्ययाए आलायओ, जथा- सव्वे पडिपुण्णसमयनेरयिया वोच्छिज्जिस्संति, एवं जाव वेमाणियत्ति, एवं तस्स तम्मि बिगिच्छा ॥४२२॥ | जाता, जथा- सव्वे संजता वोच्छिज्जिस्संति, एवं सब्वेसि समुच्छदो भविस्सति, ताहे तस्स थिरं चित्तं जातं, सो आयरिएहिं | भण्णति- एवं एगसमयवत्तम्बयं, मा एवं गेण्हाहि, सो णेच्छति, एवं सो णातूण निण्हउत्ति उम्पाडिओ, सो समुच्छेदणय वागरेंतो | हिंडति, जथा उ मुण्णो लोगो भविस्सति, एवं असम्भाबुब्भावणाए भावेंतो कंपेल्लपुर गतो। तत्थ खंडरक्खा णाम समणोबासगा, ते य सुंकपाला, तेहिं ते आगमितल्लता, तेहिं मारेउमारद्धा, ताहे ते भीता भणति- अम्हे सुतं जहा तुम्भे सडा, तहावि एत्तिए | संजते मारेह, ते भणंति-जे पन्चायगा ते वोच्छिण्णा, इमे अण्णे चोरा वा०, तुब्भे कि अच्छह , तुम्भ चेव सिद्धंतो, सामिस्स | पुण सिद्धतेण ण योच्छिज्जंति, जेण जथा वट्टमाणसमयनेरहया वोच्छिज्जंति एवं तत्थ अण्ण उववज्जिस्सति, तो कह संताणाBI विच्छेदे सति चोच्छेदं पण्णवेह, अण्णे भणात-तत्थ इमो आलावो जहा सब्वे पढमसमयनेरइया बोभिज्जतित्ति, एवं पंचगति-13 यापि, एत्थ सो वितिगिच्छितो खणिगतवत्तणता अहेतुगविमासबादं पणवेति, जथा-खणिमा पदस्था, पढमसमयिगा ॥२२॥ अच्चंतभेदो, एवं वितिसमयगादीणपि, मोग्गरादिकारणनिरवेक्खो य विणासा, जतो भूती व विणास हेतुत्ति, ताहे तदेव जाब दीप 545433 अनुक्रम सामुच्छेदिक: चतुर्थ-निह्नवस्य कथानकं (428) Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HET श्री खंडरस्खेहि सावगेहिं मारिउमारद्धा, भणंति- अम्हे ते संजता जे पुवं तुमए अमुगथ दिडा, तुम्हेवि किल पुवदिडगा ते चेव *घुपयोगआवश्यक सङ्कगा, तथावि एचिए संजते विणासह, ते भणति-जे ते पब्वइयगा ते तदा चेव सत एव विणडा, तुम्भे अण्णे चेव चोरा वा 12 वादी चूणों ट्राचारिया वा जाव सत एव विणस्सह, को तुभ विणासेति , तुम्म चव सिद्धंतो, जदि परं सामिस्स सिद्धतेण ते चेष तुमे तेहिंदू उपाघाताचेव अम्हेहिं विणासिज्जह, जतो तं चैव वस्तु कालादिसामगि पप्प पढमसमयकत्तेण वोच्छिज्जति, दुसमयकत्तेण उप्पज्जति, एवमादि,एत्य ते संयुद्धा भणंति-इच्छामो अज्जो सम्म पडिचोदणा,एवमेतं तहति,एवं तेहिं संबोहिता मुक्का खामिता पडिवण्णा य।। ॥४२॥ इदाणि पंचमो-सामिस्स अड्डाबीसाई दो वाससताई सिद्धिं गतस्स तो उप्पष्णो । उल्लुगानाम नदी,तीसे तीरे उल्लुगतीर नगर, बीए तीरे खेडगथाम, तत्थ महागिरीणं आयरियाणं सीसो धणगुत्तो नाम, तस्सबि सीसो गंगयो नाम आयरिओ, सो पुबिमे तडे उल्लुगवीरे नगरे, आयरिया से अपरिमे तडे, ताहे सो सरदकाले आयरियं वंदओ उच्चलिओ, सो य खल्लीडो, तस्स उल्लुगं| & नदी उत्तरंतस्स सा खल्ली उण्हेण डज्झति, हेट्ठा य सीतलेण, पाणीएण सीत, ताहे सो चिंतति जथा-सुचे भणितं एगा किरिया वेदिज्जति-सीता उसिणा चा, अहं च दो किरियाओ वेदेमि, अतो दोवि किरियाओ एगसमएण वेदिति, ताहे आयरियाण साहति, तेहि भणित-मा अज्जो ! एवं पण्णवहि, नथि एगसमएण दोऽवि किरियाओ वेदिज्जतित्ति, जतो सीतफासस्स व | उसिणफासस्स य जुगवं संफासा भवंति, न पुण जुगवं संवेदण, जीवतदुपयोगस्वाभाव्यात् , जथा-दीहसक्कलीभक्षणकाले पंचण्हं अस्थाण पंचण्डं च इंदियाणं वाचारो भवेज्जा, ण व जुगवं संवेदणमिति, जे पुण तहावि संवेदणकालभदो परिचढो नोवलक्खिज्जति | ४ ॥४२३॥ तं अतिमुहुमो कालोचि, जथा-उप्पलपत्तसतवेहे, समयो सहुमोति न लक्खिज्जति । एवं सो असदहतो असम्भावणाए अप्पाणं ३ दीप अनुक्रम गांगेयाचार्य पंचम-निह्नवस्य कथानकं (429) Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA 18 बुग्गाहेति, साहुणो पण्णवेति, परंपरेण सुतं, वारितो, जाहे ण ठाति ताहे उग्याडितो, सो हिंडतो रायगिह गतो महातपोतीरप्पमे 3 राशिआवश्यक पासवणे, तत्थ मणिनागो नाम नागो, तस्स चेतिते वेणति, सो तत्थ परिसामझे कहेति, जहा-एवं खलु जीवेण एगसमएण दोला चूणा किरियाओ वेदिज्जति, ताहे तेण नागेण तीसे चेव परिसाए मझे भणितो-मा एतं पण्णवर्ण पण्णवेहि, एसा पण्णवणा दुठ्ठ सहा उपोद्घातात | अहं एच्चिरं कालं बद्धमाणसामिस्स मूले मुणेमि जथा-एगा किरिया ( एगममएण वेइज्जति ) तुम सि लट्ठतराए उ जातो, छड्डेहि एत वादं, मा ते दोसेण नासेहामि, एतं ते ण मुंदरं भगवता एत्थ ठितेण समोसरितेण वागरित, एवं सो पण्णवितो अब्भुवगतो उव-18| ॥४२॥ द्वितो भणति- मिच्छामि दुक्कडंति । एस पंचमो निण्हओ ५॥ इदाणि छदुओ, पंच सता चौताला सिद्धिं गतस्स वीरस्स तो तेरासियदिट्ठी उप्पण्णा । अंतरंजिया नाम नगरी, तत्थ भूत-14 Mगुह नाम चेतिय, तत्थ सिरिगुत्ता नाम आयरिया ठिता, तत्थ बलसिरी नाम राया, तेसिं पुण सिरिगुत्ताणं थेराणं सडियरो 18| रोहगुत्तो नाम, सो पुण अण्णगामे ठितेलजो, पच्छा तत्तो एति, तत्थ य एगो परिवायगो पोट्ट लोहपद्रेण बंधिऊण जयं साल च13 महाय हिंडति, पुच्छितो भणति-नाणेणं पोट्ट फुट्टति, तो लोहपट्टेण बर्दू, जंबूसाला य जहा जंबुदीचे नत्यि मम पडिवादी, ताहे| तेण पडहओ णीणावितो जहा सुण्णा परप्पवाता, तस्स य लोगेण पोट्टसालो नार्म कतं, पच्छा तेण रोहगुत्तेण वागरित-मा तालेहि ४२४॥ | पडहगं, अहं से चाद देमि, एवं सो पडिसेहेत्ता गतो आयरियसगासं आलोएति-एवं मए पडहगो खोडितो, आयरिया भणंतिदुख कतं, सो विज्जाबलितो वादे पराजितोऽवि विज्जाहिं उबट्टाति, सो भणति-कि सका एत्ताहे निलकित, ताहे तस्स आयरिया इमाओ विज्जाओ सिद्धेल्लियाओ देंति तस्स परिवक्खा दीप अनुक्रम OCALCe | त्रैराशिक षष्ठम- निनवस्य कथानकं (430) Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्ती ॥४२५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१९४८] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ॐ मोरी तुल० ।। ८-७५ | १३८ भा० ॥ रयहरणं च से अभिमंतेतूण दिष्णं, जदि अण्णंपि उद्वेति तो रखहरणं भ्रमाडेज्जाहू, अजेज्जो जहा होसि, इंदेणावि ण सको जेतुं, ताहे ताओ विज्जाओ महाय गतो समं भणितं चरमेण एस किं जायति १, एतस्सेव पुव्वपक्खो होतु, परिवायओ चिंतेति एते निउणा तो एताण चैव सिद्धतं गेण्हामि, जथा मम दो रासी- जीवरासी अजीवरासी य, ताहे इतरेण तिष्णि रासी कता, सो जाणति, जथा- एतेण अहं सिद्धंतो गहितो तेण तस्स बुद्धिं परिभूत तिष्णि रासी ठविता - जीवा अजीवा गोजीवा, जीवा संसारत्था अजीवा घडादी नोजीवा (घरकोइलाई ) छिन्नपुच्छा, दितो जथा-दंडस्स आदी मज्मो अग्गं च, एवं सव्वभावावि तिविहा, एवं सो तेण निष्पट्टपसिणवागरणो कतो, ताहे सो परिव्वायगो रुट्ठो विछुए सुपति, ताहे सो तेसिं पडिक्ले मोरे मुयति, तेहिं विंचुएहि हतेहिं पच्छा सप्पे मुयति, ताहे तेसिं पडिघाते णउले मुयति, ताहे उंदरे, तेसिं मज्जारे, मिगे तेसिं बग्घे, ताहे सुयरे तेर्सि सीडे, ताहे कार्मि तेसिं उलुगे, ताहे पोतागिं, पोतागी सकुलिया, तीसे संपाती, संपाती ओलावी, एवं जाहे न तरति ताहे गदभी मुका, तेण सा रयहरणेण आहता, ताहे सा तस्सेव परिव्वायगस्सेव उवरिं छेरेता गता, ताहे सो परिवायओ हीलिज्जतो निच्छूढो । एवं सो तेणं परिव्वाओ पराजितो, ताहे आगतो आयरियसमासे आलोएति, ताहे आयस्थिहिं भणितं कीस ते उडिएण ण भणितं णत्थि तिष्णि रासी, एतस्स बुद्धिं परिभूत मए पष्णवितातो, इदाणिं पडिमंतुं भणाहि, सो नेच्छति, मा उन्भावणा होहितित्ति न पडिसुणेति, पुणो पुणो भणितो भणाति को व एत्थ दोसो, किं च जातं जदि तिष्णि रासी मणिता ?, अस्थि चैव तिणि रासी, अज्जो ! असम्भावो तित्थमराणासायणा य, तथापि न पडिवज्जति, एवं सो आयरिहिं समं संपलग्गो, ताहे आयरिया राउलं गता भणति तेण मम सीसेण अवसिद्धतो भणितो, अम्हं दुवे चेव रासी, इदाणिं सो विप्पडिवण्णो, (431) त्रैराशि काय ||४२५॥ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा], नियुक्ति: [७१८/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री सत्राक तो तम्मे अम्हं वाद सुणेह, पडिसुणति, तत्थ रायसभाए मा रष्णो पुरतो आवडित, एवं जहेगदिवसं एवं उट्टाए छम्मासा 13 राशिकाः आवश्यकता , ताहे राया भणति--मम रज्जं सीदति, ताहे आयरिएहि भणित-इच्छाए मए एचिरं कालं धरिओ, एचो एताहेण पासह कल्ल चूणा दिवसे आगते समाणे निगिण्हामि, ताहे पभाए भणति-कुत्तियाबणे परिक्खिज्जतु, तत्थ सब्बदब्वाणि अत्थि, आणहजीवे अज्जीवे धावानोजीवे य, ताहे ताए देवताए जीवा अजीवा य दिण्णा, नोजावे नस्थित्ति भणति, अजीवं वा पुणो देति, एवमादिकाणां चोवाल दसतेण पुच्छाण निग्गहितो, नगरे य घोसित-जयति महतिमहावीरवद्धमाणसामीति, सो य निब्बिसओ कतो, पच्छा निण्हतुत्तिकातूर्ण ॥४२६॥ उग्घाडितो । छह तु एसो । तेण पतिसेसितसुता कता छ, उलुगो य गोनेणं, तेण छउलुउचि जातो । चोतालसर्त पुण इम, तेण छम्मूलपदस्था गहिता, तंजथा-दव्वं गुणा कम्म सामण्णं विशेषाः समवायः, तत्थ दच नवधा, तंजहा-पुढवी आउ देउवाउ आकास कालो दिसा जीवो मणा । गुणा सत्तरस, तंजहा-रूर्व रसा गंधो फासो संखा परिमाणं पुडुत्तं संयोगो विभागो पर अपरत्तं बुद्धी सुहं दुक्खं इच्छा दोसो पयतो य । कम्मं पंचधा-उक्खेवणं अवक्खेवणं आउंचणं पसारणं गमणं च । सामण्णं तिविह-महासामण्णं | सत्तासामण्णं सामण्णविसेससामण्णं, अने भणति-सत्तासामण्णं सामण्णसामष्णं विसेससामण्णं, अंतबिसेसे एगविहो, एवं समवादोऽवि, अण्णे पुण पभणति, सामण्णं दुविह-परमपरं च, विसेसो दुविहो-अन्तबिसेसो अणतविसेसो य । एते छत्तीसं । एकेकमि चत्तारि २ विकप्पा-पुढवि अपुढवि णोपुढवि णोअपुढवि, एवमवादिष्वपि, तत्थ पुढविं देहित्ति मट्टिया देति, अपुढचं देहिचि महियबतिरित्ते देति, गोपुढवि देहित्ति णो किंचि देति, पुढविवतिरिच वा पुण देवि, बोअपुढदि देहित्ति न किंचि देति, मत्तिष का पुणो देति, एवं जथासंभवं विभासा ॥ ६ सत्तमो पुण पंचसता चुलसीता सिद्धि. गतस्स सामिस्स अबद्धिगदिट्ठी उप्पण्णा । दीप अनुक्रम ESEASISCUSS ॥४२६।। ॐ (432) Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [७८८-७९०/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ला दिगम्बरो पत चुणों सत्राक ॥४२७॥ दसपुर नगरुच्च० ॥ ९८८-१४२॥ भा०। पुट्ठो० ।। ९८९-१४३ ॥ भा०। पच्चक्खाण सेयं ॥ ९९०-१४४ ॥ एतं आवश्यक पूर्व चेव भणितं । एते निहगा अभिसंबंधे सत्त भणिता । एते य एगदेसविसंवादिणो, इमे अण्णे पभूतंतरविसंवादिणो बोडिया भण्णतिउपोद्घात छब्वास सयाई णबुत्तराई सिद्धिं गतस्स धीरस्स । तो बोडियाण विट्ठी रहवीरपुरे समुप्पण्णा ॥१४५॥ भा. नियुक्ती का तेणं कालेणं० रहवीरपुरं नाम कम्बर्ड, तत्थ दीवर्ग उज्जाण, तत्थ अज्जकण्हा आयरिया समोसढा, तत्थ एगो सिवभूती नाम साहस्सिमल्हो, सो रायाण उवगतो, तुम ओलग्गामित्ति, जा परिक्खामित्ति, रायाए अण्णदा भणितो- वच्च मातिघर सुसाणे कण्हचउद्दसीए बलि देहि, सुरा पसुओ य दिण्णो, अण्णे य पुरिसा भणिता-एवं बीभावज्जाह, सो गंतूण मातीणं बलिं दातुं छुहितोमित्ति तरधेव सुसाणे तं पसु पउलेचा खाति, ते य गोहा सिवावासितेहि समता भेवं करेंति, तस्स रामुम्मेदोषि ण कज्जति, ताहे उपद्वितो गतो, तेहिं सिह, वित्ती दिष्णा | अण्णदा सो राया दंडे आणवेति- वच्चह मधुरं गेहह, ते सबबलेणं निद्धातिया, ततो अदूरसामते मंतूर्ण भणंति-अम्हेहिं न पुग्छित-कतरं महुरं वच्चामो , राया य अविष्णवणिज्जो, ते मोगताए त अच्छति, सिवभूती य आगंतो भणति-किं भो अच्छह , तेहिं सिटुं, सो भणति-दोऽपि गेष्हामो समं चेय, ते भणंति-न सका दोविभागिहै एहि, एकेकाय बहू कालो होतित्ति, सो भणति-जं दुज्जयं तं मम देइ, मणितो जा ज्जाहि, मणति- सूरे त्यागिनि विदुषि च वसति जनः स च जनाद् गुणीभवति । गुणवति धन धनाच्छ्रीः श्रीमत्याज्ञा ततो राज्यम् ॥शा एवं भणिचा पहावितो पंदुमहुर्र, तेण ट्रातत्थ पच्चन्ता तावयितुमारडा, दुग्गे ठितो, एवं ताव जान नगरे सेसं जातं, पच्छा नगरमपि गहितं, उबविता ततो निवेदितं | दीप अनुक्रम KEE* X॥४२७॥ 'बोटिक:' सप्तम-निह्नवस्य कथानकं (433) Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं H, मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७८८-७९०/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत दीप 18 अण्ण रण्णो, तुद्वेण भणित-भण किं देमि, १, सो चिंतेतुं भणति-जं मए गहितं ते सुगहित, जहिच्छितो भविस्सामि, एवं होतुति, दिगम्बरीआवश्यकाल सो य बाहि व हिंडतो अद्धरने आगच्छति वा न वा, तस्स य मज्जा ताव ण जेमेति सुवति वा जाव न आगतो भवति, साद | निविण्णा, अण्णदा मातरं से बड्डीत तुज्झ पुत्तो दिवसे दिवसे अद्धरचे एति, अहं जग्गामि छुहातिया य अच्छामि, ताहे ताए। 8 भण्णति-मा दार देज्जाहि, अहं अज्ज जग्गामि, सो आगतो चारं मग्गति, इतरीए अम्बाडिओ, भणिओ य-जत्थ इमाए वेलाए उग्घाडिताणि दाराणि तत्थ वरच, तस्स भवितव्वयाते ण मगगतेण उग्याडिओ साधुपडिस्सओ दिट्ठो, तत्थ गतो वंदति, भणति-13 ॥४२८॥ पञ्चावह मम, ते णेच्छति, तेण सयं लोओ कतो, ताहे से लिंग दिण्णं, अण्णदा चीवरजायणिताए तेण कंबलरयणं लद्ध, तं तस्स पूअणापुच्छाए गुरूहि फालेत्ता साधण णिसेज्जाओ कताओ, अण्णे भणंति- ते तस्स रण्णा दिण्णं, ताहे सो कसादितो चीवराणि | है छत्ता गतो, अण्णे भणति-जिणकप्पे वणिज्जते भणति- कि एस एवं न कीरति , तेहिं भणितं वोच्छिण्णो, मम न वोच्छिज्ज तित्ति सो चेव परलोगस्थिणा कातव्यो, कि उवहिपरिग्गहेण ', परिग्गहसम्भावे कसायमुच्छाभयादयो बहू दोसा, अपरिग्रहत्त्वं | ट्रच सुते भणितं, अचेला य जिणिंदा जिणकप्पियादयो य, तो अचेलता सुंदरति, एवं सव्वं जथाय निग्गतो । तत्थुत्तरा भगिणी उज्जाणे ठितस्स वंदिया गता, तं दट्टण ताएऽवि छहित, ताहे भिक्ख पविट्ठा, गणिताए दिडा, मा विरज्जिहितित्ति उरे से पोती बदा, सा णेच्छति, सो भणति-अच्छतु एतं तव देवताए दिण्णंति, अण्णे भणंति-सेज्जातरीए दिण्णं बद्धं च, तेण य दो सीसा ४२८ः दिपचाविता-कोडिण्णो कोट्टिवीरोय, ततो सीसपसीसाणं परंपरं कासो जातो । ताणं दोसणं मिच्छत्तं वद्वित। एवं बोडितज्जणा जाता। एवं एते भणिता०। ६-९५ ॥ १८६ ॥ मोत्तण अतो एक० । ८-९६ ॥ १८५ ॥ गोडामाहिलं एक मोचूर्ण ससाणं | अनुक्रम निह्नव-अधिकारस्य उपसंहार क्रियते (434) Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम BH अध्ययनं H मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता भी आवश्यक चूर्णां उपोद्घात निर्युक्तौ ॥४२९॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [७८८-७९०/७७८-७८६], भाष्यं [१२५-१४८] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 जावज्जीवितं पञ्चक्खाणं, दो दो दोसा, बहुरता जीवप्पदेसिए भणति तुन्भं दोहिं कारणेहिं मिच्छादिट्टी, जेण भणह-एगो जीवप्प देसो जीवोति १ जं च मे चलमाणं चलितंर, इमेऽवि पडिभर्णति-तुम्भेऽवि जं भणह-चलमाणे अचलिते १ जं च जीवष्पदेसे जीवेत्ति न मण्णेह २, एवं सेसावि परोप्परं दो दोसे छुभंति, गोडामाहिलस्स विभि, मोनूणं गोडामाहिलं सेसाणं संजयाणं पञ्चक्खाणं जावज्जवाए, एस एको बितिओ पुढं जथा अबद्धं कंचु०, जं च अम्हेच्चयं न सदहेसि, एस ततियओ, अण्णे मणंति - एकेकस्स दो दोसा, एगं अप्पण्णा विप्पडिवण्णा, वितियं परं युग्गार्हेतिति ॥ आह-सव्वत्थ संपडिवण्णा जदि कहमवि एगत्थ चिप्पडिवण्णा तो किं जातं १, भण्यति सत्तेया दिट्ठीओ० । ८-९६ । १८७ ।। जदिवि एत्थ विप्पडिवत्ती तथावि एताओ सतवि दिडीओ जातिजरामरणगम्भवसहिस्सा संसारस्य मूलं भणति । णणु किं ते समणसरूवा ण ?, भण्णति-निग्गंथा इव पडिभासते, जतो इमं चैव लिंगं, ण पुण निम्गंथा चैव, किं तु निम्गंथरूवा इति । एत्थ सीसो आह-जदि तो एवं तो जं ते पटुच्च आहाकम्मादि जातं तं कई परिहरणापति ?, आयरिया भणति - पवयणनिज्जूदाणं० । ८-९८ ।। ७८७ ॥ एतेसिं पवयणनिज्जूठाणं कारितं आहाकम्ममादि सेज्जा वा पणुवीसाए दोसाणं एकतरं, कई पण्णवीसा १, सोलस उग्गमदोसा णव एसणा दोसा, संकित मोतॄण, सो आतसमुत्थोति तं भजितं परिहरणाए, किं निमित्तं १, जदि सो जाणति जहा एते निण्हगति तेसिं मए भलं कर्त ताहे घेण्यंति, अह विसेसं चैव ण जाणति ताहेण पेप्पति, (435) निहवाधिकारोप--- संहारः ||४२९॥ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ॥४३०॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) निर्युक्तिः [acblace-b८८ मूलं [- /गाथा -1, आयं [१४८...]] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मूलगुणे वा अविसोहिकोडीए उत्तरगुणे वा विसोहिकोडीउत्ति । जं पुण बांडियनिमित्तं तं तं कप्पति, जेण ते विसरिसा मिच्छादिहिगाव । एवं जयसमोतारणावसरेण भणिता जहा उप्पण्णा णिण्हगा, भणिता य णयविसारदा अज्जवतिरा अज्जरक्खिगाय ॥ इदाणिं अणुमतेत्ति दारं - तवसंजमो० ॥ ८-१०० ॥ ७८९ ॥ तत्रो दुविहो, संजमो सम्म पावोवरमो, सोय सत्तरसविहो, एतेण चरितसामाइयं विपि महितं निग्गंथं पव्वणं वा अणेण सुतसामाइयं सम्मत सामाइयं च ववहारगहणेज य णेगमसंगमववहारा वहारिगति गहिता, विभत्तिविपरिणामो य एत्थ दथ्यो । ततः कोऽर्थः १, नेगमसंगहववहाराणं चचारिवि सामाइया अणुमया, जेण एतेहिं मोक्खो साहिज्जति, उज्जुसुतादीणं पुण चउण्डं सुद्धनयाणं संजमसामाइयं चैव अणुमतं, जेण तेण णेव्वाणं सेज्झितित्ति । इदाणिं 'किं कतिविहं कस्स' एसा माथा घोसेतव्या तत्थ किन्तिदारं- किं सामाइयगं दबे गुण उभयं वा १, दव्वंपि किं जीवदव्वं अजीवदध्वं मी वाई, गुणोऽवि किं जीवगुणो अजीवगुणों वा हवेज्जा ?, एमादि आसंकासंभवे सति आह किं सामाइयकी, स्वरूपतोऽर्थतो नयतः सिद्धांततो बेति भण्णति आया खलु ॥ ८-१०१ ॥ ७९० ।। आता जीवो, खलु विसेसणे, सामाइगं 'सामं समं च सम्मे' इच्चादिना सुतका से भणिहिति, पच्चक्रवातको पच्चक्खाणं करें तो, पच्चक्खाणं नाम पञ्चवखे बसावज्जजोगपरिण्णा, वट्टमाणनिद्देसेण परिणामिचं दंसेति, ततः कोऽर्थः १, सावज्जजोगपरिणापरिणामपरिणतो जीवो सामाइकं भवति स्वरूपतः, इतरस्तु विमाषेति विशेषणार्थः । अथ केनार्थेनैवमुच्यत इति, भण्णति 'सामायिक' व्याख्या एवं स्वरुपं व्यक्तिक्रियते (436) अनुमतद्वारं ॥४३०|| Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७९०/७९०], भाष्यं [१४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA आया, आवारिति आयो-लाभस्तमाथित्य, किमुक्त, लब्भा जे सामादयों तेसिं लाभ पड्डच्च, सामस्स परपीडापरिणाए मासके श्री भावश्यक आयो तंमि जीवे अस्थि सो सामाइक भण्ण तिचि १ समस्स वा रागदोसमाध्यस्थ्यस्य रागदोसपरिणाए आयो संमि अस्थितिद्रव्यपर्याय पीसो सामाइक भण्णतिर सम्मस्स वा जाणादितिगस्स आया तम्मि अस्थिति सा सामाइक भण्णति३, यावत् ते पूण सावज्जजोग- विचार उपोवपातपरिण्णालक्षणं पञ्चक्खाण 'आवाए सम्बदव्याणं' आवाता-विसयो प्राप्तिः गोचरा एगट्ठा, कथं, जेण संमतं सम्बदव्वेसुवि, नियक्तीला जदि एगमविण सदहति तो मिच्छ,मुतचरित्ताई सचदम्बेसु,नो सव्यपज्जवेस सुत, जदि सब्बपज्जबेसु तो सव्वष्णू होज्जा, परिपेका पुण एवं सम्बदब्वेसु, न सव्वपज्जवसु, जेण॥४३१॥ पढममि सयजीवा०॥८-१०३ ।। ७९१ ॥ पढमे महब्बते सबजीवा पच्चक्खाणविसतो, जतो भणित-दग्बतो ण पाणा-12 | तिपाते छसु जीवनिकाएम, बीए मुसाबावेरमणे चरमे य परिग्गहवेरमणे सम्बदन्चाई, भणितं च दबतो णं मुसावादे सम्बदन्वेसु. 31 परिग्गह-सचित्ताचित्चमीसम सव्वदब्बेसु, जेण अविरती परिग्गहोति, सेसा महवता-अदिण्णादाणवेरमणं महुणवेरमण, चखल| सदा वयमवि रातीभोयणवेरमण च,एते वेसिं चेव सबदमाण एगदेसण, जेण दब्बतो णं अदिण्णादाणे गहणधारणिज्जेसु दम्बेस, 12 | दबतो थे मेहुणे स्वेसु वा रूवसहगतेसु वा दध्येसु, दब्बतो ण रातीभोयणे असणे वा ४, जया एताणि पंचवि रातीभोयणवेरमहैणछट्ठाणि हवंति तदा पडिपुण्णं भवति चारितं, सज्वपज्जवेसु पुण न भवति चरित्न, जतो सव्वतो पाणातिपाताओ सव्वहा वेरमणं है। नत्थि, किंतु सावज्जजोगप्पगारेण वा, एवं मुसाबादवरमणादिसुचि भावेतब्ब, उक्तं च-वितियचरिमब्बताई(सम्बदबाई)इति चारितमिह का सव्वदध्वेसु, ण तु सध्वपज्जवसुं, सब्वाणुवयोगमावतो चारित्ताचारितसामायियं नो सव्वदब्वेसु, नो सब्बपज्जवेसु, एवं तं खलु दीप SACSCRIKA अनुक्रम (437) Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७९१/७९१], भाष्यं [१४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सुना निर्वती दीप 18पच्चपखाणं आवाए सध्वदम्बदष्याणति, एतस्स पुण विसयनिरूवणस्स उवरि केसुत्ति दार सत्थाणं, जेण तत्थ भणिहिति- 'सब-18 नयैः आवश्यक दीगतं सम्म सुते चरिते ण पज्जवा सब्वे । देसविरतिं पडुच्चा दोण्हवि पडिसहणं कुज्जा ॥१॥ इह पुण पच्चस्खाणप्पसंगेणा- सामायिक चूर्णी गतंति तातो चेव दारातो एतं विसयनिरूवर्ण कतति ।। इदाणि विशेषणविशष्यभाव पडुच्च आता जथा सामाइयं भवति तथा उपोद्घात 18 नयतो विभासिज्जति सावज्जजोगविरतो०।६-१०२॥ १४९ भा०। एत्थ पच्छाणुपुब्बी-संगहस्स यां तां गतिं गत्वा आता सामायिक. अतो ॥४३२॥ | साभाइकस्स अट्टविशेषणानां विशेष्ये संग्रहात्, न त्वनात्या इति, ताहे ववहारो भणति-णो एवं ववहरितुं सक्का, जेण जदि आ-11 ता चेव सामाइयं तो यो यो आता सो सो सामाइकामिति पत्त, तं मा भणह- आता सामाइकं, भण-जतमाणो आता सामाइक,18 |जतमाणो नाम प्रयत्नपर इति, ताहे उज्जुसुतो भणति-जदि एवं तो तामलिमादिणावि जतमाणा, तेवि सामायिक पत्ता, का मा एवं भण, भण-उवउत्ते जतमाणो आता सामायिक, उवउत्तो नाम क्षेयप्रत्याख्येयपरिज्ञापर इत्यर्थः, ताहे सदो भणति-जदि ट्रा एवं तो अविरतसम्मदिविदेसविरतादयोऽवि एवंग्रायास्तेवि सामाइकं पत्ता, तं मा एवं भण, भण-छसु संजतो उवउत्तो जयमाणो आया सामाइयं, छसु संजतो नाम छसु जीवनिकाएसु संघहणपरितावणादिविरओ इति, ताहे समभिरूढो भणति-जदि एवं तो || पमतसंजतादयोऽवि एवंपाया तेऽवि सामाइयं पत्ता,तं मा एवं भणभणसु-तिगुत्तो छसु संजतो इच्चादि, तिगुत्तो नाम मणवयण-D॥३२॥ कारहिं गुत्तो, अकुसलमणादिनिरोधि कुसलमणादिउदीरगो इत्यर्थः, तज्जातीयग्रहणात्पंचसमिओ य इति, ताहे एवंभूतो भण-I&I | ति–जदि एवं तो अप्पमत्तसंजतादावि सामाइगं पत्ता, तं मा एवं भण, भण- सावज्जजोगविरतो इच्चादि, तत्थ सावज्जजो-12 अनुक्रम (438) Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं ], मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [७९१/७९१], भाष्यं [१४९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA विरतो नाम परिष्णातसावज्जवावारो, परिष्यातो दुबिहाए परिष्णाए- ज्ञपरिणाए पच्चक्खाणपरिणाए य सावज्जो वावारो , नयैः सामाआवश्यकण सो परिणायसावज्जवावारो, सावज्जो नाम कम्मबंधो-अवज्ज सह तेण जो सो सावज्जो, जोगोत्ति वा वावारोति वा वीरि चूर्णी यति वा सामत्यति वा एगट्ठा इति, तदेवंभूतस्यायमभिप्रायो-यदुत यदेवैतत्सर्वविशेषणविशिष्ट आत्मा तदैव सामाइकं भवति, उपाघात नान्यदेति, नेगमस्स पुण सुद्धासुद्धभेदत्ता समस्तैतद्विशेषणविशिष्ट अण्णतरएगावीसिसणावसिट्ठो वा दुगतिगचतुष्कपंचगसं जोगविगप्पविसेसण विसिट्ठो वा आता सामाइयं भवतित्ति । अण्णे पुण भणंति-संगहस्स तहेव आता सामाइयं करतो, आता सा॥४३३|| लामाइयस्स अद्वेत्ति, बवहारो तहेव भणति- सावज्जजोगविरतो आता सामायियंति, उज्जुसुतो पुण संजमं चेव सामाइयं पुच्छति, एवं सम्मत्तसुत्ताईपि सामाइयं पावंति, तो भणति-परिष्णातसावज्जजोगोऽपि जदा पंचसमितो तिगुत्तो तदा सामाइयंति, सहो । पुण देसविरातिसामाइयं णेच्छति, एवं च देसविरतोऽवि सामायियं पावति, जनो सोऽवि सामाइयं करेंतो सावज्जजोगविरतो ति-18 &ीगुत्तो य भवति, तो एवमपि जदा छम संजमो तदा सामाइयंति, समभिरूढो पुण पमत्तसंजतो जाव मुहमसरागो ताव सामाइयंदा नेच्छति, एवं च एतेऽवि सामायियं पावेंति, तो एवमवि जदा उवउत्तो तदा सामायियंति, एवंभूतश्च उपशांतरागादय एव वई५ तो अतस्त एव सामायिकमिति, एवंभूतो पुण अकेवलीसामायिकयं नेच्छति, केवलीवि सन्यो सामाइयंति णेच्छति, ते एवमवि ज-18 *दा जतमाणो तदा सामाइयंति भणति, नान्यदा । एतद्विशेषणविशिष्टश्च समुद्घातादिमतः केवली अजोगीकेवली वा तावतो, ॥४३३॥ का अतः स एव सामायिकमित्येवंभूताभिप्राय इति ॥ नेगमस्स पुण तहेव सव्वविगप्पेहि आता सामाइयं, अन्यतरविशेषणसकावे-12 लावि विशेषणार्थाव्यभिचारात् इति भावनीयं एत्थ । दीप अनुक्रम (439) Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति: [७९२/७९२], भाष्यं [१४९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत HEIGA 1-1 ॥४३॥ इदाणिं दवगुणनिरूवणं पडुच्च सामाइयं नयतचित्यते-णणु पुर्व पुच्छितं-किं सामाइयं दवं गुणो उभयमिच्चादि, तत्थ य||सामायिकआवश्यक दि उत्सरं माणितं- आता खलु सामाइयमिच्चादि, तरिक पुनरेवं चिंत्यते, भण्णति, तत्र स्वरूपतः सावज्जजोगप्रत्याख्यानपरिणामप- स्य |रिणत आत्मा सामाषिकमित्याभिहित, एवं च द्रव्यगुणसमुदयः सामाइकमित्युक्तं भवति, अत्र तु नयतविन्स्यते, यतो केह नया |जयस्वादिउपाघात विचार नियुक्ती ४ीदव्वं सामापियंति पडिवना, केइ पुण गुणोत्ति, जदि एवं तो साह---को नयो दवं गुणं वा सामाइयं इच्छतित्ति', भण्णति-2 जीवो गुणपडिषण्णो०।८-१०४ ।। ७९२ ॥ तत्थ दोहिं नयेहिं मग्गिज्जति-दव्वाढतेण पज्जवद्वितेण य, जतो ते सत्त । एतेसु चैव समोतरंति, आदितिग णयाणं दव्यढितो, उवरिल्ला चचारि पज्जवट्टितो, तत्थ दवाहितस्स जीवो गुणपडिवण्णो सा-10 माइयं, को गुणो', णाणादितिगस्स आयो, तं पडिवष्णो तेण पटियण्णो, जीवस्तु द्रव्यमतो द्रव्यमेव सामायिक, यत्तु गुणप्रतिपक्ष इत्युक्त तद्विशेषणभावेन गुणीभूतमिति, जीव एव सामायिक, वायकलावकपावकवदिति । पज्जवनयाढितस्स पुण अयमभिप्रायोयदुत जं चेव गुणं पडिवण्णो आता सामाइयति भणितो सो चेव गुणो सामायियं, समाय एवं सामायिकमिीतकृत्वा, जे पुण 'आता खलु सामायियं' ति मणितं तं जीवस्स एस गुणोत्ति, अयमस्याभिप्राय:-यो एस गाणादितिगस्स आयो गुणो एस जीव-18 सति उवयारतो आता सामायियं भण्णति, यथा शुक्तः पटः पीता हरिद्रा कृष्णो भ्रमरः, तत्चतस्तु स एव गुणः सामायिकमिति ...1४ा पज्जवजिडित एवाह, इतबैतदंगीकर्तव्य, यतः उपपज्जति वियंति य परिणमैति य गुणा न दबाईति ७९३ | अयमभि- प्रायो- यदुत सामायिक उप्पज्जति विगच्छति परिणमति य, परिणमति नाम सखातीताई तारतम्माई अणुभवति, एसो य सभावाला ॥२४॥ गुणाण, जतो उम्पति वियति य परिणमति य गुणा, ण दयाई, जेण दलं निचमवठितस्समावं, उक्तं च-"जीवे दवद्वताए दीप अनुक्रम (440) Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [-] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात नियुक्तौ ||४३५॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि ) निर्युक्तिः ७९३-९४/७९३-७९५ आयं [१४९...]] मूलं - /गाथा ), आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - सासए, पज्जवताए असासए" अतो गुण एव सामायियमिति । एवं पज्जवट्टितेण भणिते दव्यट्टित आह-इत्थं चैतदङ्गीकर्तव्यं, यदुत द्रव्यमेव सामायिक, जती बप्पभवा य गुणा, ण गुणप्पभवाई दव्बाई ।। ८-१०२।७९३ ।। इति, अयममिप्रायो-यदुत यो भवतो गुणो सामायियत्तणेणाभिमतो सो जीवप्पभवो, न तु तप्पभवो जीवः यतो दव्वप्यभवा गुणा, ण गुणप्पभवाई दव्वाई, दम्बे भयो जेसिं ते दव्वप्यभवा, जतो य जीवे चैव उप्पायविगमपरिणामप्पगारेहिं तस्सप्पभवो अतो तग्गुणपडिवण्णो जीव एव उप्पज्जति विगच्छति परिणमति य, सामाइयं च भण्णति, जेथा तंतुप्पभवो आताणश्वताणादिभावो, न तु तप्पभवा तंतवः, आताणविताणादिं भावं पडिवण्णा य तंतंव एवं उप्पज्जेति वयंति य परिणमंति य, पडो य भण्णति, जथा वा पोग्गलदव्येसु चैव उप्पादविगमपरिणामप्पगारेहिं पुढची भावस्स पभवो अतो तब्भावपडिवण्णा पोग्गला चैत्र उप्पज्जेति विगच्छति परिणमंति य, पुढवदव्वं भण्णति । अतो दव्यमेव सामाइयामिति स्थितं । एवं भणितं नयतो सामाइयं ।। एवं च नयविगप्पजायपरूवणं सोतॄण बाउलितो सीसो आह-भगवं ! किमेत्थ ततं १, अतः सिद्धान्ततो भण्णति- जं जं जे जे भाषा० । ८ - १०६ । ७६४ ॥ तत्थ गुरू भणति सोम्मम्म्ह ! जं जिणो जाणति तं तत्तं किं पुण जिणो जाणति १, भण्यति—जं जं किंचि वत्युं जे जे केह भावे, तं तं चत्युं ते ते सच्चे भावे व परिणमति, सव्वं वत्युं सव्वभावपरिणामिति जं भणितं तथाहि"एको भावः सर्वभावस्वभावः सर्वे भावाः सर्वभावस्वभावाः । एको भावस्तश्वतो येन दृष्टः सर्वे भाषास्तत्त्वतस्तेन दृष्टाः ॥ १ ॥ पयोगवीससत्ति के भावे पओगतो परिणमति केइ वीससा, तं परिणामि वत्युं सहा सव्वभावपरिणामिप्यगारेण जाणाति, जं पुण अपज्जवतं तत्थ जाणणा गरिथत्ति, तत्किमुक्तं भवति - सामाइयं सव्वनयाभिप्पाएहिं परिणमति, अतो जेण जेण णयः (441) सामायिकस्य द्रव्यत्वादिविचारः ॥४३५॥ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं म, मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [७९५/७९६], भाष्यं [१५०] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूर्णी HEIGE श्री भिप्पाएण परूविज्जति तेण तेण स्यात् , सबणयसमूहमतं जिणमयंति । किन्ति दारं गतं ।। इवाणिं कतिविहंति दारं- सामायिकआवश्यक ___सामाइयं च तिविहं०1८-१०७॥ ७९५ ॥ तंजथा- सम्मत्तसामाइयपि तिविहं-खइयं उवसामियं खओवसमियं, अहवा भेदाः | तिविह-सम्मत्तसामाइयं चरित्तसामाइयं सुतसामाइयं, चसद्दा सस्थाणे भेदं इच्छति, चरित्तसामाइयं दुविहं, तंजहा- अगारसाउपोद्घाता माइयं अणगारसामाइयं च, सुतसामाइयं तिविहं- सुतं अत्थो तदुभयं च, सम्मत्तसामाइयं- कारगं रोचगं दीवगं, कारगं जथा नियुक्ती | साधणं, रोचर्ग सेणियादीणं, दीवगं अभवसिद्धियस्स, मिच्छदिहिस्स वा भवसिद्धियस्स, अभवसिद्धियस्स कह?, सो एक्कारस ॥४३॥ |अगाई पढति न य सद्दहति, धम्मं च कहेति, एयं दीवर्ग, अहवा निसग्गसम्मदंसणं च अधिगमसम्मदसणं च, निसर्गः स्वभावः परिणाम इत्यनर्थान्तरं, जं उबदेसमंतरेणवि गेण्हति तं. निसग्गसम्मदसणं, अधिगमसम्मदंसणं च जीवादिनवपयत्थे उवलभितूण गेण्हतित्ति । सामाझ्यस्स भेदनिरूवणं कतं, इदाणि अज्झयणस्स भेदनिरूवर्ण कज्जति अज्झयणपिय तिविहं ०८.१०८७९६।। सेसेसुवि अज्झयणेसु होति एसेव निज्जुत्ती, अण्योमुचि अज्झयणेसु, | भेदनिरूवणा एसा चेच भेदकहनिज्जुत्ती, सव्वत्थ अज्झयणभेदचिन्तायां सुचअस्थतदुभयभेदेण तिविहं अज्झयणंति भाणियवं| जं भणितं, अण्णे भणति-मुतसामाइयस्स भेदो दरिसितो पुव्वद्धेण, उत्तरद्धेण पुण सामण्णा उपघातनिज्जुत्ती सम्बअज्झयणेसुत्ति | अतिदेसो कतो, सेसेसुवि अज्झयणेसु होति एसेव निज्जुत्ती, जथा सामाइवं उद्देसादीहिंदारहिं मम्गितं एवं चतुचीसस्थयादीणिवि ४२ उद्देसादीहिं मग्गितव्वाणि, मज्जे पुण अतिदेसो तुलादंडणातेण मझग्गहणे आघतयोग्रहणमिति । अण्णे पुण इमा गाधा उवरि IDIचेच निरुत्तदारअवसाणे वक्खाणंति ॥ इदाणिं कस्सत्ति मामाइयं दारं, तत्थ गाथा RAMAN दीप अनुक्रम सामायिक्स्य भेदानां वर्णनं क्रियते (442) Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं म, मूलं -गाथा-], नियुक्ति : [७९७/७९७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री प्रत सत्राका जस्स सामाणिओ अप्पा ०८-१०९।७९७। संजमो सत्तरसविधो, नियमो इंदियनियमो नाइदियनियमो, तवो सम्मित ४सामायिकआवश्यक वाहिरो, एत्थ सामाणिओ, ण पत्थो, संनिहित इत्यर्थः, तस्स सामाइयं इति केवलिभासित, इतिशब्द समाप्तथै, एतेसु तिसुहास स्वामी चूणों | संपुण्णं सामाइयं भवतित्ति ॥ अधवा-जो समो ०८-११०१७९८ देससामाइयं पुण सावगस्स भवतित्ति, सामि पडुच्च जस्स/ उपोद्घात सामाइयं एतं निरूवितं । इदाणिं अत्थसंबधं पहुच्च निरूविज्जति, कस्स अत्थस्स साहगं सामाइयति', भण्णति-- नियुक्तो ___ सावज्जजोगप्परिवज्जण ॥ ८-११२ । ७९९ ॥ सावज्जजोगपरिवज्जणनिमित्तं सामाइय, कि अविसेसेण सामाइयं ॥४३७॥ सावज्जजोगपरिवज्जणनिमित्तं ?, उच्यते, केवलियं पसत्थं, केवलिय नाम संपुण्ण, सव्वसामाइयमित्यर्थः, तं पसत्ययं सावज्ज जोगपरिवज्जणे अधिगमुवगारित्ति जं भणित, कस्स सगासाओ पसत्थं ?, गिहत्थधम्मा, देससामायिकादित्यर्थः, एवं परमं पच्चा कुज्जा बुहो आतहितं परस्थं, परो- मोक्खो तदत्थं, एत्य सीसो आह-जदि केवलियं सामाइयं एवंभूतं तो वरं एवं चेव कीरतु, किं देससामाझ्यस्स बहुसो करणेण!, भण्णति- को वा किमाह १, एवं ताव लद्धं चेव, किंतु जदा एतं कातुमसत्तो तदा देससामाइयंपि ताव बहुसो कुज्जा, यस्मादाहसामामि तु कते ॥८-११३ १८०१॥ किंच-जीवो पमादबहलो० ॥८-११४१८०२॥ बहुसो-अणेगसो, बहु-II IX४३७।विहेसु अत्थेसु रागहोसादीहि अण्णमण्णं भावं णिज्जति तेण पमतो, सामाइयं करेन्तो अप्पमचो भवतित्ति । अहवा सामण्णेणार है कस्स सामाइयं भवतित्ति', भण्णति- मज्झत्थस्स, जतिभागमता मत्ता मज्झत्थस्स ततिभागगता सामाइयस्स, को य मज्झत्यो: दीप अनुक्रम (443) Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [८०३/८०३], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री पत चूणों HET नियुक्ती दीप जो नवि यद्दति रागे० ॥ ८-११५। ८.३ ॥ कस्सत्ति दारं गतं । इदाणि कहिन्ति दारं, कहिं तं पुण सामाइयं सामायिकआवश्यकता होज्जा ?, तत्थ इमे दारा टि प्राप्ती क्षेत्रखत्तदिस०॥८-११६१८०४-५-६ ॥ याव चक्कमंते य, किं कहिती- एतेसु पदेसु कहि पडिवज्नमाणओ पुव्वपरिवण्णओदिकालादि पावावा ?, तत्थ ताप खत्तं तिविहं- उड्डुलोगो अहोलोगो तिरियलोगो, अहोलोगे संमत्तसुयाणं पडिबत्ती होज्जा, पुब्बपडिवण्णओवि, दादो सामाइयाणि सेसाणि नत्थि, एवं उड्डलोगेावि, मेरु तिरियलोगोत्तिकाउं, तिरियलोए चउण्हचि पुल्बपडिवण्णओ पडिवज्जमा॥४३८॥ णओबि अस्थि । दिसत्ति दारं, सा सत्तविधा,नामढ़वणाओ गताओ, दवदिसा जहण्णेण तेरसपदेसियं दव्वं तं जहण्णयं दस-12 | दिसाग, तेरसपदेसियंपि जहण्णय दव्वं भवति, दसपदेसियंपि, तत्थ पुण तेरसपदेसिए परिमंडलं संठाण भवति, दसपदेसिए 81 दिसाओ भवति, रुयओ य सो भण्णति, उक्कोसेणं अणंतपदेसियं असंखेज्जपदेसोगाढं, एस दव्यादिसा । खेत्तदिसा इदग्गेयी जहा भगवतीए जाव तमा, तावखेतदिसा जतो सूरो उदेति सा पुब्बा, पदाहिणओ सेसियाओ, सव्येसि च भरहेरवतपुष्पविदेहअवरविदेहगाणं मणूसाणं मंदरो उत्तरओ, लवणो दाहिणओ, एसा तावखेत्तदिसा । पण्णवगदिसा जतोहंतो पण्णवओ निव्वेडो पण्ण-X | वेति सा तस्स पुव्वा, सेसिया पदाहिणओ। वासस्सवि सच्चेव । भावदिसा(अट्ठारसहा तंजहा-पुढविकाइया आउल्तेउवाउ अग्गवीया । मूलबीया पोरबीया संधयीया बेइंदिया तेइंदिया चउरिदिया पंचदिया-तिरिक्खा नेरइया देवा समुच्छिममणुया कम्मभूमगा अक- ४३८: म्मभूमगा अंतरदीवगा, एसा अट्ठारसविधा भावदिसा, जतो संसारी एताहि दिस्सातिति । एत्थ पुण चउहिं दिसाहिं अहिगारोखेत्तदिसताचखेत्तपण्ण रगभावदिसासु, नामादी तिणि परूवणनिमित्त, न एत्थ कोइ पडिवज्जति, खेतदिसामु पुनादियासु अनुक्रम (444) Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत श्री आवश्यकामा HEISE दीप I/महादिसासु पडियज्जमाणएवि पुव्वपडिवण्णएवि चचारिचि सामाइया, अण्णदिसासु चउण्हवि णावि पुष्वपडिवण्णाओ नापिसामायिक पिडिवज्जमाणओ, जतो तासु सुद्धासु जीवो नवगाहति, फुसणा पुण ताण भवेज्जा, तारखेतपण्णवगदिसामु पुण अद्वसुवि पुष्व- प्राप्ती क्षेत्रचूणा | पडिवण्णएवि पतिवज्जमाणएवि चउण्डवि सामाइयाण होज्जा, उअहदिसिदुग संमत्तसुताण एवं चेव, देसविरतिसव्वविरतीणदिकालादि |पुण पुन्चपडिवण्णाओ सिया, नो पडिवज्जमाणओ, भावदिसाए एगेदिएसु चउण्हषि सामाइयाण न पडिवज्जमाणओ, ण वा पुच-16 पडिषण्णओ, विगलिदिएसु दोण्ह पुनपडिवण्णओ होज्जा, नेतरः, पंचिंदियतिरिएसु सव्यविरतिवज्जा तिणि सामाइया, पुष्व-11 ॥४३९॥ पडिवण्णओ नियमा, सिय पडिवज्जमाणओपि, भयणिज्जा,सिय नारगदेवअर्कमभूमजअंतरदीवनरेसु संमत्तसुताणं पुथ्वपडिवण्णओ अत्थि, पडिवज्जमाणओ सिय, कम्मभूमजेसु चत्तारिवि सामाझ्या पुथ्वपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओवि भणेज्जा, समुच्छिमनहारेसु नत्थि एकंपि ॥ कालेत्ति दारं-कालो तिविधो- ओसप्पिणिकालो उस्सप्पिणीकालो णोओसीप्पणीउस्सप्पिणीकालो य, तत्थ भरहेरवएसु | ओसप्पिणीकालो उस्सपिणीकालोय एत्तियं छबिहो,तंजथा-ओसप्पिणीए सुसमसुसमा समा चउहि सागरोवमकोडाकोडीहि पवाही गच्छति पढमाश्मीया सुसमा तीहि गच्छतिरततिया सुसमादुस्समा दोहिं गच्छति३चउत्था दुस्समसुसमा सागरोषमकोडाकोडीए | पातालीसवाससहस्त्रणाए गच्छति४पंचमा दसमा एकवीसाए वाससहस्सेटिंगच्छति ५ समसमावि एगवीसाए चेच वाससहस्सेहि | ॥४३९॥ गच्छति ६, एवं चेव पच्छाणपुल्याए उस्सप्पिणीएति । एवं वीसाए सागरोवमकोडाकोडीहिं दोषि गच्छति, नासिप्पिणीउस्सप्पिणीकालो पुण चउब्यिहो, जथा-सुसमसुसमाआदिपलिभागो सुसमादिपलिभागो सुसमदूसमाआदिपलिभागो दूसमसु-18 अनुक्रम CARE (445) Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIG नियुक्ती 18 समाआदिपलिभागो, तत्थ पढमो देवकुरुउत्तरकुरासु, चीओ हरिवासरम्मगसु, ततिओ हेमवतएरण्णवएसु, चउत्थो विदेहेसुत्ति । सामायिकआवश्यका तत्थ ओसप्पिणिउस्सप्पिणि छच्चेमु अरासु नोओसप्पिणिउस्सप्पिणीए य चउविधाएवि एतेसु संमत्तसुताई पडिवज्जेज्जा, दिप्राप्तो क्षत्रचूणों पुब्बपडिवण्णएवि अस्थि, ते पुण सुसमसुसमादिसु पुवकोडिदेसूणायुसेसा पडियजंति, साहरणं पुण पडुच्च अण्णतरंपि होज्जा दिकालादि उपोद्घात की चरितं चरित्ताचरितं च ओसप्पिणि पडच्च ततियचउत्थपंचमासु समासु पडिवज्जमाणोवि पुन्चपडिवण्णओवि, उस्सप्पिणि दा पहुच्च ततियचउत्थासु समासु दोवि भणज्जा, नोओसप्पिणिउस्सप्पिणि पडुच्च चउत्थे पलिभागे पुष्वपडिवण्णओ पडिवज्ज॥४४०1110माणओवि दोण्हवि भणेज्जा, अण्णे पुण भणंति-णोओसप्पिणिउस्सप्पिणिकालो एगविहो चेव चउत्थसमापीलभागो होज्जा, नो| सेसासु, तमि काले चउबिहपि सामाइयपि पुवपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओनि भणेज्जा, जं चरित्ताचरित्तसामाइयं सुतसामाइयं 8 सम्मत्तसामाइयं च एवं तितयंपि बाहिरएसुवि दीवसमुद्देसु जत्थवि नस्थि सुसमाइओ कालो तत्थवि भणेज्जा ॥ गतित्ति दारं-सा चतुविधा, नेरहयदेवेसु संमत्तमुताण पडिवज्जमाणोवि पुन्वपडिवण्णओवि, तिरिएमु तिण्ड दोष्णिवि, मणुएसु चउण्हं दोण्णिचि, भवसिद्धिओ चउण्डं पडिबज्जमाणो वा पुन्वपडिवण्णाओ वा होज्जा, अभविए एगमवि नत्थि। सण्णी चत्तारिवि दोहिवि पगारहिं, असण्णी दोहं पुवपडिवण्णओ होज्जा संमसुताण, नोसणिणोअसण्णिा चरित्ताचरित्तसुतबज्जिताणं दोण्हं पुश्वपडिवण्णओ अस्थि, पडिवज्जमाणओ नत्थि । ऊसासओ चउण्हवि पुवपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओ वा भणज्जा एवं नीसासओवि, नोऊसासगनीसासगो आणापाणुपज्जनिअपज्जत्तगो सम्मत्तमुताणं पुश्वपडिवण्णओ होज्जा, सेस नस्थि सम्वं, k ॥४४॥ सेलेसिं गतो पुण संमत्तचरित्ताण पुखपडिवण्णओ होज्जा,सेस नस्थि । दिट्ठी तिविहा-सम्मदिवी मिच्छद्दिट्ठी सम्ममिच्छदिही,एत्व दो RECHAR दीप अनुक्रम 45562 (446) Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्रा लादि हीनया- ववहारो निच्छओ य, ववहारस्स मिच्छदिट्ठी होतओ पडिवज्जति, नेच्छइयस्स सम्मदिद्विरेव, जेण "नेरइए भंते ! नेरइएसुसामायिकआवश्यक IPI उववज्जति अनेहए.'आलावओ,सम्मत्तसुता एवं पुन्चपडिवण्णओ, एतेसि संमदिड्डी नो मिच्छादिट्टी, दोवि सामाझ्या, केती पुण|RI प्राप्ती चूर्णी प्रसुतसामाइतं मिच्छादिट्ठीवि पुन्बपडिवण्णओ भणंति दो पुण सामाइया-चरितं चरित्ताचरितं च पुवपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाण- क्षेत्रदिकाउपोद्घाताला ओवा सम्मदिडी,नो मिच्छादिड्डी,सम्मत्तसुतेसुवि णत्थि,अण्णे पुण भणंति-चरित्तं चरित्ताचरितं पुलपडिवण्णओ होज्जा,नो पडिवनियुक्ती जमाणओ। आहारओ चउहिवि पुव्वपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओ वा भणेज्जा, अणाहारओ चरित्ताचरिचवज्जेसु पुब्बपडिव. ण्णओ होज्जा । पज्जत्तओ जथा आहारओ, अपज्जचओ दोण्णि पुव्वपडिवण्णओ होज्जा। किं सुत्तो पडिवज्जति ? जागरो पडि-ला ॥४४॥ वज्जति , सुत्तो दुविहो निदासुतो य भावसुत्तो य, भावसुत्तो अण्णाणी, जागरो दुविहो- निदाजागरी सम्मदिट्टी, निद्दासुत्तो चउहिवि पुवपडिवण्णओ अस्थि, पडिवज्जमाणओ नत्थि एगमवि, भावसुत्तो पडिवज्जमाणओ पुब्बपडिवण्याओ वा नत्थि एग| मषि, नयमतेण वा सिय दोण्हं पडिवज्जमाणओ, निद्दाजागरो चउण्हघि पुन्चपडिवण्णओ पडिवज्जमाणओ होज्जा, भावजागरो पुचपडिवण्णओ सुतसंमेसु अत्थि, पडिवज्जमाणओ नत्थि, नयमतेण वा सिया, चरितं चरित्ताचरित्तं च पुच्चपडिवण्णओ पडिवब्जमाणगोवि भणेज्जा । जम्मं तिविह-अंडजं पोतजं जरायुज, अंडजा चरिचवज्जाई तिण्णि पुन्चपडिवण्णया पडिवज्जमाणगा य भणेज्जा, एवं पोतजावि, जरायुजा चउसुवि पुज्वपडिवण्णगा पडिवज्जमाणगा वा भणेज्जा, उववाइयं सम्मसुताण पुथ्व० पडिव-। ज्जमाणगा य भणेज्जा । ठितिदारं उक्कोस गठिओ जस्स उकोसा ठिती कम्मपगडीणं आउयवज्जाणं, उकोसद्विती पुवपडिवण्णओ | ॥४४१५ वा पडिवज्जमाणओ वा चचारि नत्थि, आउयस्स देवेहिं परं संमत्सुताणि पुवपडियण्णओ होज्जा,पडिबज्जमाणओ नस्थि, अज दीप अनुक्रम क ECERESAX (447) Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों सत्राक कण्णुकोसद्वितीओ चउहिंवि पडिवज्जमाणओ पुग्यपडिवण्णो वा होज्जा, जहण्णकम्माडितिमा पुव्यपडिवण्णगा चरित्चाचरित्तव-सामायिकआवश्यक ज्जेसु तिसु होज्जा, पडिबज्जमाणगा चतुसुचि न होज्जा । पुरिसवदेगा चतुर्हिषि पुष्वपडिवज्जमाणगा वा होज्जा, एवं इत्थिन- | प्रापकाः उपोद्घातदा लासा अवेदगा चरित्ताचरित्तवज्जेसुबि होत्था पुण्यपडिवण्णगा,जेण गिहत्थी उवसमगादी नस्थि, पडिवज्जमाणगा चउदिवि णस्थि। नियती संणत्ति दारं- चउसुबि सण्णासु उवउचो घउण्हपि एगतरांप न पडिवज्जति, पुवपडिवण्णमा चउण्डंपि होज्जा, णोसण्णोवउत्ता एपडिवज्जमाणगावि होत्था चत्तारिवि,पुष्वपडिवण्णगावि, अण्णे भणंति-नोसण्णोवउत्ता चरित्चाचरित्तवज्जेसु तिमुवि पुष्वपडिवण्णगा ॥४४॥ होज्जा, नो पडिबज्जमाणगा, अण्णे पूण भणति-णोसमोवउत्ता संमचरित्ताणं पुब्बपडिवण्णगा अस्थि, सेसं नास्थि । कसायत्ति 31 दारं- सकसायी चउण्हवि पुब्ब०, पडिबज्जमाणओषि होज्जा, अकसायी चरिनाचरित्तबज्जाणं तिण्डं पुज्वपडिवचओ होज्जा,13 दापडिपज्जमाणओ नस्थि, अवसेसो पुण जहा हेडा 'पंढमेल्लयाणं उदय (१०८) गाथाहिं भणितो । आहवा कोहकसायी । पडियज्जति पुब्बपडिवण्णओवि पहिवि, एवं माणी । आउत्ति दारं-संखेज्जवासाऊ किंपि दुविहोषि भणज्जा, असंखज्जया- | | साउ दोमु समसुतेसु विहोवि भणज्जा । णाणित्ति दारं- किंणाणी पडिवज्जति अण्णाणी', एत्थ दो गया जथा दिट्टी, एवं ता| | आहणं । इदाणि विभागेण-पंचण्हं णाणाणं भाणितब्बं आभिणिवोहियसुतणाणी एते पटिवज्जमाणया संमत्तसामाइयं सुत्तसामा-1* | इय च जुग पडिवज्जति, पृथ्वपडिवण्णओ नत्थि, अण्णे भणंति-पुब्यपडिवण्णओवि अस्थि, चरितं चरिचाचारत च पुचपाड-12 वण्णआ पडिवज्जमाणओबि भणेज्जा,ओहिण्णाणी संमत्तसुत्तसामाइए पडिबजमाणओ नस्थि, पुन्यपडिवण्णआ हाज्जा, चरिता| चारत्त पांडवज्जमाणओ ओहिण्णाणी नस्थि,पुब्बपडिवण्णो होज्जा. चरित्र पुब्बपडिवणओवा पडिवज्जमाणी वा होज्जा, अण्णे | दीप अनुक्रम AASALARSA 1४१२ (448) Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्रांक भणंति-चरिचाचरित्तवज्जाणं तिहं पुव्वपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा होज्जा, चरित्नाचरितं पडिवज्जमाणओ ओहिनाणी सामायिकआवश्यक नत्थि, पुच्चपडिवण्णओ होज्जा । मणपज्जवणाणी संमं सुतं चरित्वं च तिणि पुच्चपाडवण्णओ होज्जा, पडिवज्जमाणओ ( चिप्रापकार चूर्णी चरित्तसामाइयं मणपज्जवणाणं च समयं चेव होज्जा, जथा-सामिणो, सम्मत्चसुते णत्थि पडिवज्जमाणओ, चरिचाचरित उपोद्घाता | पुवपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा पत्थि । केवलनाणी चरित्वे पुल्वपडिबण्णओ होज्जा, सम्मत्ते य पडिवज्जमाणओ नत्थि,सेससु दोसुवि नस्थि दुविधोधि । सजोगी चतुहिवि दुविहोवि होज्जा, अजोगी जथा केवलणाणी, मणवइकाया ४४ जथासंभवं विभासेज्जा । सागारोउत्तो चतुर्हिवि दुविहोवि होज्जा, अणागारोवउत्तो चतुर्हिबि पुवपडिवण्णओ होज्जा, | पडिवज्जमाणओ नत्थि, जेण सव्वाओ लद्धीओ सागारोवयोगोवउत्तस्स भवंति, नो अणागारोवउत्तस्स | ओरालियसरीरी चउहिंवि 8 दुविहोवि होज्जा, बेउविओ य सरीरी सम्मत्तसुते पडिवज्जमाणओ होज्जा, सेसाण पत्थि, पुन्बपडिवण्णओ पुण चउसुवि होज्जा, आहारगसरीरी सम्मत्तसुतचरिते पुचपडिवण्णओ होज्जा, नो पडिवज्जमाणओ, चरित्ताचरित्तं दोसुवि गस्थि, तेयग-| कंमगाणि तदंतग्मताणि चेय कृत्वा नोच्यन्ते, अथोच्यन्ते ततः सम्मत्तसुताणं पुब्बपडिवणओ होज्जा, सेस नस्थि । संठाणे ४. छबिहे संघयण य छबिहे पुब्बपडिवण्णोवि पडिवज्जमाणओवि चत्तारिवि सामाइया मज्जा । माणत्तिदारं, माणं नाम सरीरोगाहणा, कि जहण्णोगाहणओ० पडिवज्जति उक्कोसोगाहणओ० अजहष्णुक्कोसोगाहणओ पडिबज्जति ?, नेरइयदेवा जहण्णो ॥४४३॥ गाहणा ण किंचि पडिवज्जति, पुन्बपडिवण्णया संमत्तसुतेसु होज्जा, सेसा णत्थि, उक्कोसोगाहणा पुज्वपडिपण्णमा पडिवज्जमाणगावि संमत्तसुतेसु होज्जा, एवं अजहण्णुक्कोसोगाहणावि, विरिक्खजोणिया जहण्णोगाहणगा ण किंचि पडिवज्जति, पुष्वप-14 WRITERS दीप अनुक्रम (449) Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णो उपोद्घात नियुक्ती ॥४४४|| “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 डिवण्णगाव णत्थि, एगिंदिए पडुच्च, अह बंदियादी तो अस्थि, उक्कोसोगाहणमो अजहण्णुक्कोसोगाहणगोवि तिसु सामाइएस पडिवज्जमाणओ वा पुब्वपडिवण्णओ वा होज्जा, मणूसो जहण्णोगाहणओ पुव्यपडिवण्णओ वा पडिवज्जमाणओ वा चउन्हवि सामाइयाण एक्कंपि णत्थि, संमुच्छिमे पडुच्च, उक्कोसोगाहणओ दोसु दुविहोबि भणेज्जा संमत्तमुते, अजहण्णुक्को सोगाहणओ चउवि दुविहोवि भणेज्जा । लेसत्ति दारं, दव्वलेसे पटुच्च छसु लेसासु चचारिवि सामाइया दुविहावि होज्जा, भावलेसं पटुच्च छहिं लेसाहिं चउहिं सामाइएहिं पुव्व पडिवण्णओ होज्जा, पडिवज्ज़माणयं पड़च्च चत्तारिवि सुक्कलेसाए होज्जा, अहवा पुल्वपडिवण्णगं पडुच्च सव्वासुवि लेसासु होज्जा चतुरोवि, पडिवज्जमाणयं पच्च संमत्तसुताई सव्वासु तेउपम्हसुक्कासु चरितं चरित्ताचरितं च पडिवज्जति, किं वट्टमाणओ पडिवज्जतिः पुच्छा, चत्तारिवि सामाइया वद्रुमाणओ पडिवज्जति, नो हीयमाणओ, | पुव्वपडिवण्णओ दोहिवि परिणामेहिं होज्जा, अवडियपरिणामओ न किंचि पडिवज्जति, पुञ्चपडिवण्णओ होज्जा । किं सातावेदओ पडिवज्जति पुच्छा, दोण्णिवि पडिवज्जंति चत्तारिवि सामाइया, पुष्यपडिवण्णगावि चचारिवि सामाइए। किं समोहतो असंमोहतो पुच्छा, दोणिवि एते चत्तारिवि सामाइया पुव्वपडिवण्णा पडिवज्जमाणगा वा होज्जा ।। समुद्घात एव कर्म समुद्घातकर्म, किं निवेदितो परिवज्जति संवेदन्तो पडिवज्जतिः निब्बेदेन्तो पडिवज्जति, णो संबेडेन्तो, सा पुण निव्वेढणा चतुब्विधादच्चनिब्बेदाणा खेत्तनि० कालनि० भावनिव्वेढणा, दव्वनिव्वेढणा नाम जे सम्मत्तसुतचरिताचरणपोग्गला ठिता ते निव्वेढेमाणी पडिवज्जति खत्तनिव्वेढणा नाम जेसु खित्तपदेसेसु पुणो पुणो आजायन्तओ, जथा 'अयं णं भंते! जीवे एतंसि महालयंसि लोयंसि अगवाडगदितणं इमीसे रतणप्पभाए पुढचीए वीसाए निरयावा ससतसहस्सेसु०' एवमादितं निव्वेढेमाणो पडिवज्जति, (450) सामायिकप्रापकाः ॥४४४॥ Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८०४-८०६/८०४-८२९], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 C E पत चूणों । HEIGE ॥४४५LIMIT कालनिव्वेढणा अणंतो कालो जं चेव समतं पडिवनं भवति ताहे निव्वेढितो भवति, भावनिवेढणा जं कोहादीणि निव्वेढेऊण सामायिक प्रापकाः आवश्यक पडिवज्जति,एवं चउन्विहंपि सामाइयं निष्वढित्ता पडिवज्जति,नो अनिव्वेदिता, अहवा भावनिवेढणा उदइयादी, पुव्यपडिपणओ चचारिवि सामाइए निब्बेढंतओ वा होज्जा संवेढन्तओ वा|उब्बट्टेत्ति दारं, नेरइएस अणुब्बडो जीवो पुब्बपडिवण्णओ वा पडिब-18 उपोद्घाताज्जमाणओ वा सम्मत्चसुतेसु दोसु होज्जा, उब्वट्टस्स दुर्ग तिगंवा चउक्कं वा होज्जा, तिरिएसु अणुव्वमाणस्स तिण्णिविk नियुक्तोदोहिवि पगारेहि होज्जा, उबट्टस्स दुविहं तिविहं चउविहं वा होज्जा दोसुवि पगारेसु, मणुएसे अणुव्वद्स्स चउहिवि पुन्बप-10 डिवण्णओ पडियज्जमाणओ वा होज्जा.उन्बस्स दुर्ग तिग वा होज्जा, देवेसु अचुतस्स दुर्ग,चुतस्स दुर्ग तिग चउक्क वा दोहिवि. IN पगारेहिं होज्जा, सब्वत्थ उबद्यमाणओ न किंचि पढिवज्जति, पुष्वपडिवपणओ दुगो वा होज्जा । किं आसवओ पडिवज्जति 15/नीसवओ पडिवज्जति आसवनीसवओ पडिवज्जति !, सामाइयं पडिवज्जति तस्स तदावरणिज्जाणं णिस्सवओ पडिबज्जति, जे दत तदावरणिज्जा पोग्गला बटुंति ते निस्सबमाणो, अण्णे पुण आसवन्ति चेव ते निस्सवमाणो पडिवज्जति, नो आसवओ पडिसावज्जति,अण्णे ण पुण भणंति आसपओ वा निस्सवओ वा आसवनीसवओ वा पडिवज्जति, पुष्वपडिवण्णेऽओ आसवओ वा०तिण्णिवि होज्जा, अण्णे पुण भणति--आसवओ न पडिवज्जति तदावरणाणं, अण्णेसि आसवओवि पडिवज्जति,एवं णीसवमाणेऽवि भजितो, नीसव० तदावरणाणं णिस्सवणे, अण्णेसिं आसवणे, चतुसु दोसु तदावरणमीसएवि पुब्वपडिवण्णओ । किं अलंकारं आविद्धन्तो ४४५३ पडिवज्जति अलंकितोपडिमुंचतो पडि उम्मुक्को पडि०, चतुसुवि चत्तारि सामाइए पडिवज्जेज्जा, पुवपडिवण्णयापि चत्तारिवि चउसुवि होज्जा । किं आसणत्यो पडि०, सयणत्यो पडि०, दोवि चत्वारिवि सामाइए पडिवज्जति, पुज्वपडिवण्णगावि चउसुवि दीप अनुक्रम (451) Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [८३०/८३०], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणों सत्राक 1-1 होज्जा । किं ठाणत्यो पडिवज्जति चक्कंमतो पडिवज्जति, एमेव होति । कहिन्ति वारं गतं । इदाणि केसुत्तिदारं, केस या आवश्यक 18 दब्बेसु पज्जवेसु वा सामाइयं ? दुलेभता दृष्टान्तार उपोद्घात ___ सव्वगयं संमत्तं०। ८-१४६ । ८३० ॥ पढमंमि सव्वजीवा (७९१) एताओ कितिदारे मणिताओ । केसुत्ति दारं गतं । इदार्णि कहन्ति दारं, चउव्विहस्स सामाइकस्स कहं लभो भवति', जदा इमाणि ठाणाणि कदाणि भवति तदा ॥४४६॥ 11चरित्तसामाइयं लब्भति, काणि पुण ताणि ठाणाणि ? माणुस्सखेत्त०। ८-१४७।८३१ ॥ तत्थ ताव माणुस्स इमेहिं दसहि दिद्रुतहि जहा दुल्लभं तहा परूवेति चोल्लगपासग०। ८-१४८ । ८३२ ॥ चोल्लगत्ति, जहा बंमदत्तस्स एगो कप्पटिओ ओलग्गओ, बहुसु आवतीसु अव-| कास्थासु य सव्वत्थ ससहाओ आसी, तेण पवनं रज्ज, तस्स बारससंवच्छरिओ अमिसेओ, सो कप्पडिओ तत्थ अल्लियावपि न लभति, ततोऽणेण उवाओ चिंतितो-बाहणा बंधिळणं धयो कतो, ततो धयवाहएहि समं पहावितो, रण्णा दिण्णो(डो) ओतिण्णणं उवमम्महितो, अण्णे उण भणंति-ताहे तेणं दारवाले सेवमाणेण बारसमे संवत्सरे राया दिडो, ताहे सो राया तं दट्टणं संभंतो, इमो सो नवराओ जो मम दुक्खसहाओ, एत्ताहे से करेमि वित्ति, रण्णा भणितो-भण किं देमि विति?, सो भणति-देहि ममं चोल्लए घरे, जाव | ॥४४६ः सव्यमि भरहे जाहे निट्ठियं होज्जा ताहे पुणोचि तुम्भं घरे, राया भणति- किं ते एतेण!, देस देमि, सुहं छत्तच्छायाए मायंगेहि य(अच्छ),वाहे सो चिंतेति-कि मम एदहेण अहट्टेण', एवं तेण भणिते ताहे तत्थेव पढमै जिमितो, रण्णा से जुगलगं दाणारो य दीप छ अनुक्रम मनुष्य-भव प्राप्ते: दुर्लभत्वं "दश-द्रष्टांता:" (452) Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [८३२/८३२], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका | दिण्णो, एवं सो परिवाढीए सञ्बेसु राउलेसु बचीसाए रायवरसहस्सेसु तेसिपि जे भोइया तत्थ नगरे अणेगाओ कुलकोडीओ, सो I मनुष्य आवश्यक चूर्णी नगरस्स चेव कया अंतं काहिति, ताहे पुणो गामे, ताहे पुणो भरहस्स, अवि सो वच्चेज्जा ण य माणुसचणाओ महो। दृष्टान्ताः उपोदयातका पासपत्ति, चाणकरस सुवण नरिथ, ताहे केण उवादेण विढवेज्ज सुवष्णं, ताहे तपासगा कता, केई भणति-वरदिण्णगा, नियुक्तौल एगो दक्खो पुरिसो सिक्खाविओ, दीणाराणं थालं भरियं, सो भणति-जइ ममं कोई जिणति तो थालं गेहतु, अहं जति जिणामि तो एग दीणारं जिणामि, तत्थ इच्छाए जंत पाडति, एवं न तीरति जेतुं, जहा सो जिप्पति एवं माणुसलंभो अवि णाम विभासा ।। का धणेत्ति जेतियाणि भरहे धण्णाणि ताणि सव्वाणि पिंडियाणि, तत्थ पत्थो सरिसवाणं छढो, वाणि सव्वाणि अद्यालियाणि, तत्थ एगा जुण्णभेरी सुप्प गहाय ते वियणेज्जा, पुणोवि पत्थं पूरेज्जा, अवि सा देवप्पभावेण पूरेज्जा न य माणसाओ० । अहवा|ट्र है भणिता सम्बधण्णाणि विभत्ताणि करहि । जूए, जथा-एगोराया तस्स रण्णो सभा खमसतसंनिविद्या जत्थ अत्थाणियं देति, एकको य खमो असतं २ अंसियाणं, तस्स द्रय पुत्तो रज्जकंखी, सो य राया थेरो, ताहे पितेति कुमारो-अहं एतं मारे रज गेण्हामि, तं च अमच्चेण नातं, ताहे सो राया | विदितस्थो से पूर्व भणति-अम्हं जो कम न सहति सो जूतं खेल्लति, जदि जिणति रज्ज से दिज्जति, किह पुण जिणियच ?, तुझं भाएगो आयो अवसेसा अम्ह, जदि तुम एतं एकिक्कं अंसितं अट्ठसतं वारा जिणासि तो तुम्भ रज्ज, अवि सो देवतप्पभावा विमासा ।। रयणे । जथा एगो वाणियओ, तस्स पुत्ता, सोय महल्लो, रतणाणि से अत्थि, तत्थ महे अण्णे वाणियगा कोडिपडागाओ : दीप अनुक्रम ॥४४॥ (453) Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८३२/८३२], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक श्री | उवट्ठवेंति, सो न उट्ठवेति, ताहे तस्स पुत्ता थेरे पउत्थे सव्वाणि विकिणति-पडागाओ काहामोत्ति, ते य वाणियगा समंततो गता मनुष्य यका पारसदीवादीणि, सो य थेरो आगतो, सुतं जथा विकियाणि, ते अम्बाडेति-लहुं आणेह, ताहे ते सधतो हिंडितुमारद्धा, किं तेरा चूणों दृष्टान्ताः है। सव्वरतणाणि पिणेज्जा !, अवि य देवप्पभावणं विभासा । नियुक्ती सुविणएत्ति, जथा-दोणि कप्पडिया, एगेण कप्पडिएण सुविणए चंदो पीतो, तेण कप्पडियाणं कहितं, तेहि भणितं चंदप्प-12 18माण पूयलियं लभिहिसि, लद्धा य धरच्छायणियाए, अण्णेणवि दिट्ठो, सो हातो, ताहे फलं वा किंचि वा गहाय सुविणपाढकस्स ॥४४८॥ कहेति, तेण भणितं-राया भविस्सति, इतो य सत्तमे दिवसे तत्थ राया अपुत्तो मतो, सो य निवण्यो अच्छति जाव आसो अहियासितो आगतो, तेण पट्टे विलइओ, एवं सो य राया जातो, तोहे कप्पडिओ तं सुणेति, जहा वेणवि दिडो एरिसओ सुविणओ, सो आदेस-12 फलेण किर राया जातो, सो चिंतेति-बच्चामि जत्थ गोरसो, तं जेमेता सुयामि, अस्थि पुण सो पेच्छेज्जा, अविय सो०नय५ माणुसातो। चक्केत्ति दारं-इंदपुरं नयर, इंददचो राया, तस्स इट्ठाण वराण देवीणं बावीस पुत्वा, अण्णे भणंति एकाए देवीए, ते सव्वे रज्जेसु रण्णो पाणसमा, अण्णा एगा अमरुचस्स धूता, सा जं.परं परिणेतेण दिद्वेल्लिया, सा अण्णदा हाता समाणी अच्छति, ताहे सा रण्या दिडा, का एसत्ति, तेहि भणितो-तुन्भं देवी, ताहे सो ताए समं एक रति उत्थो, साय रितुण्हाया, तीसे गन्भो लग्गो, ४४८॥ सा य अमच्चेण भणितेल्लिया-जया तुभ गम्भो लग्गति तदा ममं साहेज्जा, ताहे सो ताए सो दिवसो सिट्ठो वेला मुहुत्तो य, दीप ARRESEARSSES अनुक्रम (454) Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [- /गाथा-], नियुक्ति: [८३२/८३२], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सुना SONG दीप जंच रायाए उल्लावियं सातियकारो, तेण तं पत्तए लिहियं, सो सारवेति जार नवाई मासाणं दारो जाओ, तस्स य दासचेडाणि मनुष्यआवश्यक सातदिवसजातगाण, त०-अग्गियओ पव्ययओ बदुलिया सागरओ, ताणि सहजायगाणि, तेण सो कलायरियस्स उवणीओ, तेण लेहा- 12ी दर्लभता चूर्णी 18 दिया गणियप्पहाणाओ कलाओ गहियाओ, जाहे तं चेडं गाहिंति आयरिया ताहे ताणि पद्दति य बीउल्लंति य पुब्बपरिसएणदृष्टान्ताः उपाघात ताणेति राडेति, तेण ताणि न चव गणियाणि, गहियाओ कलाओ, तेवि अण्णे गाहिज्जति बावीस कुमारा, जस्स ते आयरियस्स नियुक्ती अप्पिज्जति तं मत्थएहिं पितृति, अह ते कोइ पिट्टेति ताहे साहिति अम्मामिस्सियाणं, ताहे ताओ भणंति-किं सुलभाणि पुत्तजमा॥४४॥ णि ?, ताहे ण सिक्खिता । इतो य मथुराए राया जितसत्तू, तस्स सुता सिद्धिका, अण्णे भणति-णेब्बुती, सा रणो अलंकिता उवणीता, ताहे राया भणति-जो तुह भत्ता रोयति सो ते, ताहे ताए णातं जो सूरो वीरो विकतो होज्जा सो मर्म, सो पुण रज्ज देज्जा, ताहे सा तं चलवाहणं गहाय गता इंदपुरं नगरं, तस्थ इंददत्तरष्णो बहवे पुत्ता, अहवा दूतो पयट्टिओ, ताहे सथ्वे द्विारायाणा आवाहिया, ताहे तेण रण्णा सुतं, जहा-सा एति, ताहे हद्वतुट्ठो उस्सितपडाग०, रंगो य कतो, तत्थेगमि अक्खे अट्ठ चका असमाणं संभमंति, तेसिं परतो घीतिगा ठविता, सा पुण अच्छिमि विधेतब्वा, राया संनद्धो सह पुनेहिं निग्गतो, ताहे सा कण्णा | सव्वालंकारविभूसिया एगमि पासे अच्छति, सो रंगो रायाणो य ते घरडंडभडभोइया जारिसो दोवतीए, एत्य रण्णो जेट्टपुत्तो ८ सिरिसाली नाम कुमारो, सो भणितो-पुत्ता! एसा दारिया रज्जं च घेत्तच्वं एतं राधं विधेतूणं, ताहे सो तुट्ठो, अहं पूर्ण अण्णेहितो रायीहितो लडओ, ताहे सो भणितो-विधत्ति, ताहे सो अकतकरणो तस्स समूहस्स मज्झे धणूतं घेत्तुं चेव ण चएति, कहवि णेण ॥४४९॥ गहितं, तेण जचो बच्चतु ततोकडं वच्चतुत्ति मुकं, तं भग्ग, एवं कासई एग पोलीणं कासइ दोष्णि कासइ तिणि अण्णेसि अनुक्रम (455) Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तौ ॥४५०॥ এ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ ८३२/८३२] आयं [१५०...]] . आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र - [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि:-1 बाहिरेण चैव नीति, वेणचि अमच्चेण सेो णत्तुओ पसाहिओ तदिवस आणिओ तत्थ अच्छति, ताहे सो राया ओहतमणसंकप्पो करतल० अहो अहं घरिसिओचि, ताहे अमच्चो पुच्छति किं तुझे देवा ! ओहतमणा १, ताहे सो भगति एतेहिं अहं निप्पाणी कतो, ताहे अमच्चो भणति अस्थि तुम्भं अण्णोऽवि पुतो सो कतकरणो सुरिंददतो नाम कुमारो, तं सोऽवि तावविष्णासउ, ताहे राया पुच्छति कतो मम पुत्तो ?, ताहे ताणि से कारणाणि सिडाणि, ताहे सो राया तुट्टो, ताथे भणितो- सेयं तब एते अड्ड चक्के चूर्ण तव रज्जसुदं निवृतिदारियं च संपावित्तए, ताहे सो कुमारो ठाणं ठाति घणुं गेण्डति लक्खभिनु सरं सज्जेति, ताणि य दासरुवाणि चत्तारिव सव्वतो रोति, अण्ण य दोणि पुरिसा असिष्यग्रहस्तास्तिष्ठति, ते बावीसंपि कुमारा एस विधिस्सतित्ति ते बिसेसउल्लुंठणाणि विग्वाणि करेंति, ताहे सो पणामं उवज्झायस्स रण्णो रंगस्स य करेति, सोवि से उबज्झाओ भयं दाएति एते दोष्ण पुरिमा जदि फिड्डसि ततो सीसं पाडेंति, सो ते पुरिसे कुमारे य तेवि चत्तारिवि दासरूवे अगणतो ताणं अडुण्डं रहचकाणं छिदाणि जाणितूणं एक छिदं लक्खेति तं अम्फिडियाए दिट्ठीए तेण अण्णांम मर्ति अकुषमाणेण सा घीया अच्छिमि विद्धा, तत्थ उक्कुट्टसीहणादसाधुकारो दिण्णो, सा य लद्वा, जथा तं दुक्खं भेतुं एवं माणुसत्तणं । मे, जहा- एगो दहो जोयणसतसहस्सविच्छिण्णो चंमोनद्धो, एगं से छिदं कच्छभ मेतं तंबहुमज्झदेसभाए तत्थ कच्छभेण कहवि गीवा उबुडायिता, तेण जोतिस दिई कोमुईए पुप्फफलाणि य, सो गतो सयणिज्जगाणं दापमित्ति, आणेति, आत्ता सव्यतो घुलति, न पेच्छति, अविय सो०, न य माणुसातो ॥ जुगे-पुत्रवंते होज्ज० ।। ८-१५७ ॥ ८३३ ।। एवं दुल्लभं । इदाणिं परमाणू जथा- एगो खंभो महष्यमाणो से देवेणं " (456) मनुष्यदुर्लभता दृष्टान्ताः ॥४५०॥ Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्त ॥४५१॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [८३३/८३३-८४०] भाष्यं [१५०...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चुण्णेतुं अविभाइमाणि कातूणं नालियाए पक्खितो, पच्छा मंदरचूलिया ठिएण फूमितो, ताणि नद्वाणि, अत्थि पुण कोइ जो तेहिं चैव पोग्गलेहिं तमेव खर्भ निम्बत्तेज्जा १, नो तिण्डे, एस अभावे, एवं नट्ठी माणुसाओ न पुणेो० अहवा सभा अणेगखंभसतसंनिचिट्ठा, सा कालंतरेण शामिता पंडिता, अस्थि तं पुण कोइ जो तेहिं चेत्र पोग्गलेहिं पुणो करेज्जा १, नो तिनट्टे, एवं माणुसंषि दुखभं । एतेहिं दसहिं पदेहिं जहा माणुस्तं दुलर्भ एवं एतेहिं चैव दितेहिं खतं आयरियं२ जाति३ कुलं४ आरोगांप रूवं६ आयु७ बुद्धी८सवणं धम्मस्स ९ गहणं १० तमि य सद्धा ११ संजमो १२ तंमि य असढकरण १३ लोगे दुखभाणि । एवं दुल्लभाणि एताणि दस पदेहिं, एतेहिवि पदेहिं लद्धेहिं इमेहिं कारणेहिं दुलर्भ सामाइयं, जथा आलस्समोहवण्णा० । ८-१५८ । ८४१ । आलस्सिण साहूणं पास नलियति १ अहवा निष्वप्यमत्तो मोहाभिभृतो इमं से कातव्यं नेच्छ सुतुं २ अहवा अवज्ञा किं एते जाणते ? नग्गा हिंडंति ३ अथवा संभणं, किंचि जाणेज्जा, अहवा अडविहस्स य | तस्स अण्णतरेण थंभेणं ४ अहवा दट्टणं चैव पव्वश्यए कोहो उप्पज्जति ५ पमाएणं पंचविहस्स अण्णतरेणं ६ अहवा किविणतामा एतेसिं किंचि दायव्वं होहिति तेण गल्लियति ७ भतेण एते णरगतिरियभयाई दाएंति, अलाई एतेहिं सुतेहिं ८ सोगेण धणसयणादिवियोगेण अभिभूतो ण अल्लियह ९ अण्णाणण वा पहेहिं मोहितो इममि से ण चैव धम्मसण्णा उप्पज्जति १० अहवा वक्खेवेणं अप्पणो निच्चमेव वाउलो ११ कोउहल्ले वा कुहेउगादिसिक्खणादिमु १२ अहवा रमणसीलो वट्टखेलियादिएहिं १३ (457) मानुषत्वदोलभ्ये 'दृष्टान्तः ॥४५१॥ Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत बिनाः चूणों सत्राका दीप एतेहिं कारणेहिं लजूण सु०१८-१५९१८४२॥ अहवा कम्मरिवुजयेण सामाइयं लब्भति, सो य जयो सामग्गीय विणा न आलस्याद्या आवश्यक द्र भवति, संजोगेण भवति, जथा -जोधस्स रिखुभयो, सा य सामग्गी इमा यानावरउपोद्घाताद जाणावरण०८-१६०/८४३॥ जाणं रहो आसो हत्थी वा जदि नस्थि तो किं करेतु पाइको?, लद्धेमुवि आवरण जदि | णायुपमा नियुक्ती कवयादि नस्थि तो एगप्पहारो कीरति, सति आवरणे पहरणेण विणा किं सक्का हत्येण जुज्झितुं , सति बहरणे कुसलत्तं नत्थि, व्रतादीनां ॥४५२॥ न जाणति किह जोहेतब्बं ?, सति कोसल्ले नीतीय विणा किं करेतु, समूहे मारिज्जति अबक्कमणं उक्कमणं अयाणतो, जहा अगलुदत्तो दक्षतणेण फेडेति डेवेति वा जाव मुई विडंबितं ताव सराण पूरियं । एतेसु सब्वेसुवि लाइएमु जदि ववसाओ नत्थि न चेव जुज्झति अणेच्छतो, सति ववसाये सरीरेण असमत्था किं करेतु, एतेण संपण्णो रिउ जिणति । एवमिहावि जाणं महव्ययाणि, आवरणं खेती, झाणं पहरणं, कुसलत्तणं कतजोगित, नीती साहूणवि जहा इमं एतेण उवाएणं कातन्वं एतेण नवि, | दक्खत्तं पडिलेहणयावच्चादीसु, बबसाओ सवसंजमकरणे उबसग्गसहणे वा दुग्गावतीए वा सरीरस्स जदि आरोग्गं, एतेहिं 12 सामग्गीकारणेहि सबेहि कम्मरिघु जिणति, ताहे सामाइयं लब्भति । अहवा इमेहिं कारणेहिं सामाइयं लब्भतिदिढे सुतमणु० ॥ ८-१६१ ॥ ८४४ ॥ दटुं चोधी, जहा सेज्जंसो उसभसामि, सयंभुरमणमच्छो वा जहा पडिमासं-18 R४५२॥ ठिते मच्छे पउमे य दणं तित्थगर०,मच्छपउमाणं सब्यसंठाणाणि अत्थि, मोत्तुं बलयसंठाणं, सोत्तूर्ण जहा आणंदकामदेवाण तस्थ- तेणं कालेणं तेणं समएणं चाणियगामियं नाम नगरे होत्था, दृतिषलासए चेतिए, जितससू राया, तत्थ णं आणंदे नाम अनुक्रम A (458) Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका श्रीगाहावती परिवसति, अ दिने वित्त विच्छिण्णविपुलभवणसयणासणजाणवाहणाफिष्णो बहुधणपहुधष्णजातरूबरयए आयोगपयोआवश्यक कागसंपच विच्छतिफडरबमाणे पादासीदासगामदिसगोलगप्पभूते बहुजणस्स अपरिभवे यावि होत्या, तस्स पं सिवणंदा नामसामायिक चूर्णी भारिया, वण्णओ, सेण आणंदे तत्व बहूर्ण राईसर जात्र सत्यवाहप्पमितीणं अड्डारसह सेणिप्पसेणोणं सगस्स कुडूंबस्स कज्जेसुलामहेतवः पायात कोईवेसु य जाव पडिपुच्छणिज्जे सबकज्जचट्टायए यावि होत्या जाव चक्सुभूतेति,तस्स पंणगरस्स बहिया अदरसामते उत्तर पुरथिमे दिसिभाए कोल्लाए नाम सचिवेसे होत्या, तस्स णं आणंदस्त के मित्तवाति जाव परिजण वसति अड्डे जाव अपरि भूते । ॥४५३॥ तर्ण कालणं तणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव संपावितुकाम वाणियगामस्स दृतिपलासए चेतिए समासढे जाव विहरति । टा परिसा निग्गता, जितसत्तू निग्गतो जाब पज्जुवासति । तते थे मे आपंदे बहुजण जाव एतम? निसम्म पहाति जाय पादचारीवहारेणं जाव पज्जुशसति । ततेणं सामी आणंदस्स तीसे य परिसाए धम्म परिकहति, परिसा पडिगया, तते णं से आणंदे धम्म सोच्चा हटे जाव उद्देति उट्टेचा सामि यंदति नमसति नसचा एवं बयासी-सहहामिण भैते! निग्गं पावयण, पत्तियामि । भंते ! निग्गंध पावयणं किं तु जथा पी देवाणुप्पियाण अतिय राईसरादयो चइचा हिरणं जाव पव्वयंति नो खलु अहं तहा संचाएमि, अहंण दुवालसविहं सावगधम्म पडिवीजस्सामित्ति, अहासुहं देवाणुप्पिया! मा पडिबंध, तते णं तस्स सामी सावगधMम्मविहिं उबदसेति, सेपि यणं पडिवज्जति, एवं जथा उवासगदसासु, इच्छापरिमाणं पुण करमाणे पण्णत्थ चउहिं हिरण्णकोडीहिं निहाणपउत्ताहि एवं बडिपउत्ताहिं परिमलपवित्थरोबउत्ताहिं, अबसेस हिरण्णविधि पच्चक्खाति जावज्जीबाए, एवं ॥४५३॥ नष्णस्थ चउहि हलसहि नियत्तणसतिएणं हलणं, णण्णस्थ चउहिं दाससतेहि, चउहि दासीसतेहि, चउहि वएहि वयपवरहिं दस दीप अनुक्रम पर (459) Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - U सत्राका श्री गोसाहस्सिएणं यएणं, चउहि भंडीसएहिं दिसाजत्तिएहि, चउहि भंडीसएहिं संवहणिएहि, चउहि पहणसतेहिं दिसाजत्तिएहि न आवश्यक सतसाहस्सिएणं वहणेणं, चउहि वहणसतेहिं संवहणिएहिं, एवमादि पंचअतियारपेयालविसुद्धं करेति जाब एवं अप्पाणं भावेमाण-1 काम ले कामदेववृत्तं चूणों स्स चोइस वासाई विइक्ताई, पच्छा एकारस उवासगपडिमाफासणं एक्कारसपडिमं ठितस्स ओहिण्णाणुष्पत्ती- तिदिसि लवणउपाघातासमु पंचजोयणसतियखेत्तपासणं उत्तरेणं चुल्लुहिमवत जाव उर्दु जाव सोहम्मो कप्पो अहे जाव लोलयपत्थडंतरं चुलसीतिवासनियुक्ती सहस्सट्ठितिगं जाणति पासति, एवं से आणंदे समणोवासए उत्तमेहिं सीलब्बएहिं जाब अप्पाणं भावेत्ता वीस पासाई समणी-लं. ॥४५ठावासयपरियागं पाउणित्ता एकारसोबासगपडिमाओ संमं कारण फासेत्ता मासियाए संलेहणाए 'आलोइयपडिकते समाधिपत्ते कालं दकिच्चा सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडेंसगस्स महाविमाणस्त उत्तरपुरच्छिमेणं अरुणे विमाणे देवत्ताए उबवण्णे चउपलियट्ठितिके, ततो चुए महाविदेहे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति ।। एवं कामदेवस्सवि, चंपा नगरी पुण्याभदे चेइए जितसत्तू राया कामदेवे गाहावती भद्दा भारिया सामिआगमणं । जहा | आणंदे तेणेव कमेण सावगधम्म पडियज्जति, नवरं छ हिरण्णकोडोओ जाव छवहणसतचि तहेव जाब एक्कारसमं पडिमं पडिवण्णस्स एगे देवे पिसायहत्यिपण्णगरूवेण उवसग्गेति, से य न खुभति जथा उबसगदसासु जाव सामी समणे आमंतेत्ता एवं बयासी-जदि ताव अज्जो ! कामदेवेणं समणोवासगेणं उवसग्गा संम सहिता किमंग पुण अज्जो! सवणेण वा समणीय वा 1॥४५४|| दुवालसंग गणिपिडर्ग अहिज्जमाणेणं, ततेणं ते समणा णिग्गंथा तं उबदेस संमं विणएण पडिस्मुणेति, एवं जाव कामदेवे सामिणा उचहिते-धण्ण सिणं तुमं कामदेवा ! जाव जस्स णं णिम्गंथे पाययणे तव इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता जाव अभि दीप क अनुक्रम (460) Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत समण्णागता, ततेणं से कामदेवे हटे जाब बंदित्ता पडिगते, एवं जथा आणंदे तहेव जाव सिज्झिहिति, नवरं अरुणाभे विमाणे, ----आवश्यकसं तं चेव । 10वल्कलचूणों अणुभूते जथा-चकलचीरिस्स । को य बक्कलचीरी ?, तेण कालणं तेणं समएणं चंपानगरीए मुधम्मगणहरो समोसढो, चीरिवृनंउपोद्घातकोणिओ राया बंदितुं निग्गते कतप्पणामो य जंबुनामरूबदसणविम्हितो गणहरं पुच्छति-भगवं! इमीसे महइए परिसाए एम . नियुक्तों साहू घतासत्तोब वही दित्तो मणोहरसरोरा य, किं मण्णे एतेण सील सेवित ! यो वा चिण्णो दाणं वा दि जतो से एरिसी है ॥४५॥ बातेयसंपची?, ततो भगवता भणितो सुणाहि राय जहा तब पितुणा सेशिएण रण्णा पुच्छितेण सामिणा कहितं-तेणं कालेणं तेण । समएणं गुणसिलए चेतिए सामी समोसरितो. सेणिओ राया तित्थगरदसणसमुस्मुओ बंदओ णिज्जाइ, तस्स य अग्गाणीए दुवे पुरिसा कुटुंबसंवई कह करेमाणा पस्सति एगं साधु एगचलगपरिट्ठित समूसवियवाहुजुयलं आतावेत, तत्धेकेण भणित-अहो एस महप्पा रिसी सराभिमुहो तप्पति, एतस्स सग्गो मोक्खो वा हत्थगतोति, वितिएण पच्चभिण्णाओ, ततो भणति-किण याणसिल एस राया पसण्णचंदो?, कतो एयरस धम्मो ?, पुत्तोऽणेण बालो ठवितो, सो य मंतीहि रज्जाओ मोइज्जति, सोऽणेण बंसो विणासिओ, अंतेउरजणेषि ण णज्जति किं पाविहितित्ति, तं च से वयणं झाणवाघात करेमाणं सुतिपहमुवगतं, ततो सो चिन्तेतुं ४ पयचो-अहो ते अणज्जा अमच्चा मया समाणिया निच्चं पुत्तस्स मे विपडिवण्णा, जदि हं होंतो एवं च चेट्ठता तो णे सुसासिते ती ॥४५५॥ | करेंतोमि, एवं च से संकप्पयंतस्स तं कारणं चट्टमाणमिव जातं,तेहि य सम जुद्धजोणि मणसा चेव काउमारदो, पचो य सेणिओ राया तं पदेस, वंदितोऽणेण विणएण, पेच्छति णं झाणनिच्चलत्थं, अहो अच्छरितं एरिसं तवस्तिसामत्थं रायरिसिणो पसन्नचंद दीप HITENA%२६%A4%AA% अनुक्रम 45 (461) Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 N ARI श्री सचि चिन्तयन्तो पत्तो तित्थगरसमीव, वंदितूण विणएण पुच्छति-भगवं ! पसण्णचंदो अणगारो जीम समए मता चंदिओ वल्कलआवश्यक बीजदि तमि समए काले करेज का से गती भवेज्जा ?, भगवता भणित- सलमपुषिगमणजोग्गो, ततो चितेति-साहुणो कहरचारिवृत्ते चूर्णी नरकगमणति !, पुणो पुच्छति--भगव! पसनचंदो जइ इदाणि कालं करेज्ज के गति बच्चेज्जचि?, भगवता भणित--सबसिद्धिउपाधातागमणजोरगो इदाणिति, ततो भणति-कह इस दुविहं वागरणंति, नरगामरेसु तवस्सिणोत्ति, भगवता भणित-माणविससेण, नियुतामि य इममि समए एरिसी तस्स असातसातकम्मादाणता, सो भणति-कहं १, भगवता भणित- तव अम्माणितपुरिसमुहनिग्गत ५६॥ पुत्तपरिभवत्रयणं सोतूण उज्झितपसत्यहाणे तुमे बंदिज्जमाणो मणसा जुज्झति तिव्वं पराणीएण समं, तओ सो तमि समए अहरगतिजोग्गो आसि, तुमंमि य उपगते जातकरणसत्ती सीसावरणेण पहरामि परति लोइते सीसे हत्थं निक्खिवंतो पडियुद्धो, अहो अकज्ज, कज्ज पाहतूण परत्थे जदिजणविरुद्ध मग्गमयतिण्णोत्ति चिंतेतूण निंदणगरहणं करेंतो म पणमितूण तत्थ गतो चेव आलोइयपटिकतो पसत्थशाणी संपतं तं चऽण कम्म खवितं सुमं अज्जितं, तेण पुण कालविभागेण दुविहगतिनिदेसो । । ततो कोणिओ पुच्छति- कहं वा.भगवं! बाल कुमार ठवेतूण पसण्णचंदो राया पब्वाइतो, सोतुमिच्छ, ततो भणति-पोतणपुरे माणगरे सोमचंदो राया, तस्स धारिणी देची, सा कदाइ तस्स रण्णो ओलोयणगतस्स केस रएति, पलित दण भणति- सामि। या दूतो आगतोत्ति, रण्णा दिट्ठी वितारिया, ण य पस्सति अपुब्बं जगं, ततो भणति-देवि! दिव्वं ते चक्खु, तीय पलिय दंसित, H ||४५६॥ लाघम्मदूतो एसोति, तं च दण दुम्मणस्सितो राया, तं नातूण देवी भणति-लज्जह भायण, निवासिज्जही जणा, ततो भणति-दविन एवं, कुमरो चालो असमस्थो पयापालणे होज्जत्ति मे मण्णुं जातं, पुष्पपुरिसाणांचण्णण मग्गण ण गताऽहति, न दीप अनुक्रम Hamaa . (462) Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE दीप से विचारो, तुम पसन्नचंद सारक्खमाणी अच्छसुचि, सा णिच्छिता गमणे, ततो पुत्तस्स रज्ज दातूण धातिदेविसहितो दिसापो- वल्कलचीआवश्यक | क्खियतावसत्ताए पदिक्खितो चिरसुण्णे आसमपदे ठितो,देवीय पुबाहूतो गब्भो परिवद्धति,पसण्णचंदस्स य चारपुरिसेहिं निवेदितो रिवृत्तं चूर्णी ISI पुण्णसमए पसता, कुमारो बक्कलेसु ठवितोचि बक्कलचारित्ति, देवी विसइयारोगेण मता, वणमहिसीदुद्रेण य कुमारो बढ़ा-11 उपोद्घाता। विज्जति, धातीवि थोचेण कालेण कालगता, किडिणेण वहति रिसी वक्कलचीरिं, परिवाड्डितो य.लिहितूण दंसिओ चित्तकारहिं है। नियुक्ती | पसण्णचंदस्स, तेण सिणेहेण गणिकादारियाओ स्वस्सिणीओ खंडमयावविहफलेहिं णं लभेहित्ति पत्थविताओ, ताओ णं फलेहिं । मधुरेहि य वयणेहिं सुकुमालपीणुण्णतथणसंपीलणेहि य लोभीन्त, सो कतसमवातो गमणे जाव अतिगतो तावसभंडग घेत्तु वाव रुक्खारूढेहिं चारपुरिसेहिं तासि सण्णा दिण्णा रिसी आगतोत्ति, ताओ दुतमवक्ताओ, सो तासि वीधिमणुसज्जमाणो ताओ | 18 अप्पस्समाणो अण्णतो गतो, सो अडवीय परिम्भमंतो रहगतं पुरिसं दट्टण तातं अभिवादयामिति भणतो रहिणा पुच्छितो-181 है कुमार! कत्थ गंतव्वं ?, सो भणति-पोतणं नाम आसमपदं, तस्स य पुरिसस्स तत्थेव गंतव्यं, तेण समयं वच्चमाणो रथिणो भारितं तातचि आलावति, तीय भणितो-को इमो उबयारो', रविणा भणित- सुंदरि ! इत्थिविरहिते पूर्ण एस आसमपदे वलितो, वाण याणति विसेसं, न से कुप्पितवं, तुरये भणति-कि इमे मिगा वाहिज्जति तात ?, रथिणा भणितो-कुमार ! एते एतमि चेव |8| है कज्जे उवकज्जति, न एत्थ दोसो, तेणवि से मोदगा दिग्णा, सो भणति-पोयणासमवासीहिं मे कुमारेहिं एतारिसाणि चेव फलाणि ॥४५७|| दत्तपुब्वाणित्ति, बच्चताण य से एक्कचोरेण सह जुद्धं जातं, रथिणा गाढप्पहारो कतो, सिक्खागुणपरितोसिओ भणति-अस्थि विउल धणं तं गेण्डसु सूरचि, तेहिं तीहिवि जणेहिं रहि भरितो, कमेण पत्ता पोतणं, मोल्लं गहाय विसज्जितो, उडयं मग्गामुत्तिर अनुक्रम (463) Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGE श्री 18सो भमन्तो गतो गणियाघरे-तात! अभिवादये,देह इमेण मुल्लेण उडयंति,गणियाए भणिओ-दिज्जति नि(नि)सत्ति,तीय कासवओवल्कलचीचूर्णी | द सद्दाविओ, ततो अणिच्छतस्स क णहपरिकम, अवणीयवक्कलो य वत्थाभरणविभूसितो गणियादारियाय पाणिं गाहितो, हवितो रिवृत्रं य, मा मे रिसिवेस अवणेहित्ति जपमाणो ताहि भण्णति-जे उडगत्था इहमागच्छंति सि एरिसो उवयारो कीरात, ताओ व गणिनियुक्ती याओ उवगायमाणीओ वधूवरं चिट्ठति, जो य कुमारविलोभणनिमित्तं रिसिवेसो जणो पेसितो सो आगतो कहेति रणो- कुमारो | अडविं अतिगतो, अम्हेहिं रिसिस्स भएण न तिष्णो सद्दाविउं, ततो राया विसण्णमानसो भणति-अहो अकजं, न य पितुसमीवेल ॥४५॥ जातो न य इहं, न णज्जति किं पत्तो होहिति', चिंतापरो अच्छति, सुणतिय मुर्तिगसई, तं च से सुतिए वढमाण, भणति-मते | दुक्खिते को मण्णे सुहितो गंधण्येण रमतित्ति , गणियाए अहितेण जणेण कहितं, सा आगता पादपडिता, रायं पसनचंद चिन्नवेति-देव ! नेमिनिसंदेसो मे-जो तावसरूवो तरुणो गिहमागच्छेज्जा तस्समेव दारियं देज्जासि, सो उत्तमपुरिसो, ते संसित्ता हा विउलसोक्खभागिणी होहितिति, सो य जहा भणि मित्तिणा अज्ज मे गिहमागतो,तं च संदेसं पमाणं करेंतीए दत्ता से मया दारिया, तन्निमित्त उस्सबो, न याणं कुमारं पणहूँ, एत्थ मे अवराह मरिसहत्ति, रण्णा संदिट्ठा मणुस्सा जेहिं आसमे दिद्वपुवो ही कुमारो, तेहिं गतेहि पच्चभियाणिओ, निवेदितं च पियं रण्यो, परमपीतिमुन्वहंतेण य वधूसहितो सगिहमुवीओ, सरिसकुलरूवजोव्वणगुणाण य रायकण्णयाण य पाणिं गाहितो, कतरज्जसविभागो य जहासुहमभिरमइ, रहिओ व चोरदत्तं दब्बं विक्किगतो ॥४५८॥ रायपुरिसेहिं चोरोति गहितो, चीरिणा मोइतो पसण्णचंदविदित, सामचंदोवि आसमे कुमार अपस्समाणो सोगसागरविगाढोल सन्नचंदसंपसितेहिं पुरिसेहिं नगरगतबक्कलचीरिनिवेदतेहिं कहंचि संठवितो, पुत्तमणुसंभरंतो अंधो जातो, रिसीहिं साणुकपेहि CALCRECORRESCREE दीप अनुक्रम (464) Page #465 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत श्री HEIGA दीप दिकबफलसंविभागो तस्थेव आसमे निवसति, गतेसु य वारसमु पासेसु कुमारो अगुरते पडिविबुद्धो पितरं चिंतेतुमारद्धो-किह मण्णे वल्कलची-- आवश्यक तातो मता णिग्घिणण विरहितो अच्छातीत पिउदंसणसमुस्सुगो पसष्णचंदसमीवं गतूर्ण विष्णवेति-देव ! विसज्जेह मं उक्कंठितोह खत चूर्णी तातस्स, तेणं भणितो-समयं वच्चामो, गता य आसमपदं, निवेदितं च रिसिणो- पसण्णचंदो पणमतित्ति, चलणोवगतो य णेण उपोद्घातपाणिणा परामुट्ठो, पुत्त! निरामयोसित्ति, वक्कलचीरी पुणो अवदासिओ, चिरकालधरियं च से बाई मुयंतस्स ओभिल्लाणि णयणाणि, नियुक्ती | पस्सति ते दोबि जणा, परमतुडो पुग्छति य सव्यं गतं कालं, क्क्कलचारीवि कुमागे अतिगतो उडयं, पस्सामि ताव तातस्स ताव सभडयं अणुवेक्खिज्जमाणं केरिसं जातात, तं च उत्तरीयतण पडिलहउमारद्धा जतिविष पर्न पायकेसरियाए, कत्थ मण्णं मया ॥४५९|| एरिस करणं कतपुवंति विधिमणुसरंतस्स तदावरणक्वएण पुण्यजातिस्सरणं जातं, सुमरती य देवमाणुस्सभवे य, सामण्णं पुरा कतं संभरितूण पेरग्गमग्गं समोतिष्णो, धम्मज्झाणविसतातीतोदि बिसुज्झमाणपरिणामा य वितियमुक्कझाणभूमिमतीक्कतो, नट्ठमोहावरणविग्यो केवली जातो य, परिकहिति धम्मो जिणप्पणीतो पितुणो पसन्नचंदस्स य रणो, ते दोऽवि लद्धसम्मत्ता पणता सिरेहि केबलिणो मुटु मे दंसितो मग्गोत, बक्कलचारी पत्तेयबुद्धो गतो पितरं गहतूण महावीरवद्धमाणसामास्स पास पसमचंदो नियकपुरं, जिणो य भगवं सगणो विहरमाणो पोतणपुरे मणोरमे उज्जाणे समोसरिओ, पसमचंदो वक्कलचीरिवयणजणितवेरग्गो परममणहरतित्थगरमासितामतवाहितच्छाहो बाल पुत्र रज्जे ठविऊण पबहतो, अधिगतसुत्तत्थो तवसंजममावि-INT४५९।। तमती मगहपुरमागतो, तत्थ य सेणिएण सादरं वंदितो आतावेंतो, एवं निक्खंतो जाव भगवं नरगामरगर्तासु उकोसहितिजोरगतं का झाणपच्चयं पसण्णचंदस्स वण्णेति ताव य देवा तमि पदेस उवतिता, पुच्छितो य अरहा सेणिएण रण्णा- किण्णिमित्तो एस देव अनुक्रम 456 (465) Page #466 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥४६०॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 संपादोति १, सामिणा भणितं पसण्णचंदस्स अणगारस्स णाणुष्पत्तीहरिसिता देवा उवागतति । तत्तो पुच्छति एवं महाणुभावं केवलनाणं कत्थ मण्णे वोच्छिज्जिहिति १, तं समयं वैभिदसमाणो विज्जुमाली देवो चउहिं देवीहिं सहितो वंदितुमुवगतो उज्जोवेन्तो दस दिसाओ, सो दंसिओ भगवता, एवमादि जहा वसुदेवहिंडीए, एत्थ पुण वकलचीरिणो अहिगारो । एवं अणुभूते लंभो भवति । कम्माणं खए जथा चंडकोसितस्स, उवसमे जहा अंगरिसिस्स, मणवइकायजोगहि पसत्थेहिं देवता वा अणुकपति चतुसु ठाणेसु, एतेसि निगमण माणुस्स० ॥ ८३१ ॥ आलस्स० ॥ ८४१ ॥ जाण० || ८४३ ॥ दिट्ठे सुत० ॥ ८४४ ॥ एते चत्तारि ठाणा, अहवा | इमेहिं कारणेहिं बोही सुदुल्लहावि लम्भति- अणुकंपऽकाम० ।। ८-१६२ ।। ८४५ ।। तत्थ अणुकंपाए ताव जथा- सो वाणरजूभवती० ।। ८-१६४ ।। ८४७ ।। चारवती नगरी कण्हो वासुदेवो, तस्स दो वेज्जा-धन्नतरी य वेतरणी य, घनंतरी अभविओ बेतरणी भविओ, वैतरणी साधूण | गिलाणाण पिएण साहति, जं जस्स कातव्वं तं तस्स सव्वं साहति, जहा साधूर्ण फासुतं तथा साहति, फागुतेण पडोयारेण साहति, ज सो अप्पणी ओसहाणि अस्थि तो देति। सो पुण धवन्तरी जाणि सावज्जाणि ताणि साहति असाहुप्पायोग्गाणि जाहे भण्णति अहं कतो? ताहे भणति न मए समणाणं अड्डाए बेज्जयसत्थं अज्झाइयं, ते दोषि महारंभा महापरिग्गहा य सव्वाए बारवतीए तिगिच्छ करेंति । अण्णदा कण्हो वासुदेवो तित्थगरं पुच्छति एते बहूणं ढंकाण य जाव वहकरणं कातूण कहिं गच्छिहिति ?, ताहे सामी साहति-एस (466) वल्कलचीवितं अनुकंपाद्याः हेतवः ॥४६०॥ Page #467 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGE दीप धनंतरी अपतिडाण गरए उववज्जिहिति, एस पुण बेतरणी कालंजरवत्तणीए गंगाए महानदीए विझयस्स अंतरा वाणरत्ताए पच्चाया- अनुकम्पा आवश्यक साहिति, ताहे सो उम्मुक्कबालभावो सयमेव जूहपतित्तणं काहिति, तत्थण्णदा साहुणो सत्येण समं वीतिवयंति, तत्थ एगस्सायां वानर घूर्णी 15 साहुस्स सल्लो पादेसु भग्गो, ताहे ते भणंति-अम्हे पहिच्छामो. सो मणति- मा सचे मरामो, बच्चह तुन्भे, अहं मतं पच्च-15 उपोद्घात खामि, ताहे निबंध णातूणं सोवि सल्लो न तीरति नीणेतुं पच्छा थंडिल्लं पावितो छाहि च, तेवि गता । ताहे सो बानरगनियुक्ता जूहवती तं पदेस एति जत्थ सो साधू जाव पुरिल्लेहिं दटुं किलिकिलाइयं, ताहे सो किलकिलेते दइटण रुटो जा दिडो सो ॥४६॥ तेण साधू, तस्स तं साधु दणं हेहावूहा, कहिं मए एरिसो दिहो ?, ताहे तस्स सुभेणं परिणामेणं जातिस्सरण समुप्पण, सव्वं | बारवति समरति, ताहे तं साई बंदति, तं च से सल्लं पेच्छति, ताहे सो तिगिच्छ सव्वं संभरति, ताहे गिरि विलग्गो सल्लुद्धरसणाणि ओसहाणि संरोहणि य उचारेति, ताहे सल्लुद्धरण (काउं)पाए अल्लियाति, ताहे सो सल्लो एगन्ते पाडितो, संरोहणीय पउणा61वितो, ताहे तस्स साहुस्स पुरतो अक्खराणि लिहति जहाऽहं वेतरणी नाम वेज्जो होसुं पुव्वभवे बाखतीए, एतेहिदि सो सुयओ, ताहे सो साधू से धर्म कहेति, ताहे सो भत्तं पच्चक्खाति, तिण्यिा रातिदियाणि जाव सहस्सारं गतो, ताहे ओहि पउंजति जाव 8| पेच्छति तं सरीरगं तं च साहू, ताहे आगतो तं देविडि दाएति, भणति-तुम्भं पभावण, भणह किं करेमि, ताहे साहरिओ || लजहिं ते अण्णे साहवो, ते पुच्छंति- किदसि आगतो, ताहे सव्वं साहति, एतं तस्म सम्मत्तसामाझ्यसुतअभिगमो जातो, अणुक-ल॥४६॥ पाए मोइओ अप्पा, अंतराणि रायपायोग्गाणि, ततो चुतस्स चरित्तसामाइयं भविरसति सिद्धी य ।। अकामनिज्जराए वसंतपुरं नगरं, तत्थेगा इब्भवधूगा नदीए हाति, अन्यो य तरुणो संदण भणति-सुपहातं ते पुच्छति अनुक्रम SEASES (467) Page #468 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री 51 मेंठ सुत्राक एस नदी मत्तवारणकरोरु । एते य नदीरुक्का बयं च पाएमु ते पणता ॥१॥ ताहे सावि तं भणति-सुभगा होतु नदीओ चिर अकामानिआवश्यकताच जीवंतु जे नदीरुक्खा। सुण्हायपुच्छगाणं पत्तीहामो पियं कातुं ।।२।। ताहे सो तीए णं घरं वा वार वा नजाणतिचि । अन्नपान-ला जरायो चूणी शहरेद्वाला, यौवनस्थां विभूषया । वेश्यास्त्रीमुपचारेण, वृद्धा ककेशसेवया ॥१॥ तीसे य पीतिज्जगाणि चेडरूवाणि रुक्खे पलोउपोद्घाताइएताणि अच्छति, तेण तेसि पुष्फाणि फलाणि य दिण्णाणि, पुच्छिताणि य-का एसा? कस्स बा', तेहिं भणितं-अमुगस्स सुण्हा, नियुक्ती है ता सो तीसे अतियार णो लभेति, चितति, चरिगा भिक्खस्स एति, सा च- कुसुभसदृशप्रभ तनुसुखं पटप्रावृता, नवा-& ४३२॥ गरुविलेपनेन शरदिदुलेखा इव । यथा हसति भिक्खुणी सललितं विटेवेदिता, ध्रुवं मुरतगोचरे चरति गोचरान्वेपिणी ॥ १ ॥ तं ओलग्गति, सा तुट्ठा भणति-किं करोमि ', अमुगस्स भणाहि, सा गता, भणिता य-जहा अमुओ ते एवंगुणजाती पुच्छति,81 तीए रुवाए पत्तुल्लगाणि धोवंतीए मसिलित्तेण हत्थेण पट्ठीए आहता पंचगुलियं, पच्छादारेण य निन्छढा, सा गता साहति-नाम-10 पिन सहति, तेण णातं जहा कालपंचमीए, ताहे पंचमदिवसे पुणरवि पत्थविता पवेसजाणणाणिमित्तं, ताए सलज्जाए आह णितूणं असोगवणिताए छिडियाए निच्छ्ढा, सा गता साहति जथा नामपि न सहति आहणित्ता य अबरदारेण धाडितामि, तेण मणाओ पवेसो, तेण सो अबदारण अतिगतो असोगवणिताए, सुत्ताणि जाब ससुरेण दिवाणि, तेण णात, जहा- न होति मम पु- ४६२॥ तोत्ति, ताहे से पादाओ उर गहित, चेतियं च ताए भणितो य सो- नास लई, सहायकिच्चं करेज्जासि, पच्छा इतरी गंतूण 5 लाभत्तारं भणति-धम्मो एत्थ असोगवणितं जामो, गताण य सुत्ताणि य, जाहे सो सुत्तो ताहे उहवेति, उट्ठवेचा भणति-तुम्भ एतं कुलाणुरूवं जे ममं सुत्तियाए ससुरो पादातो नेउरं गेहति?, सो भणति-मुसाहि, पमाए लभिहिसि, थेरेण सिट्ठ, सो रुट्टो भणति-- दीप अनुक्रम % ॐॐॐ (468) Page #469 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 HEIGA दीप श्री & विचरीतोसि थेरा, सो भणति- मते अण्णो दिहो, ताहे विवादे सा भणति-अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे पहाता जक्सपर अनुकंपायां जाय गता, जो कारी सो लग्गति अंतरंटेण बोलेंतओ, अकारी मुच्चति, सा पहाविता, ताहे सो पिसायरू काऊणं साडएणं गेहति, मंठ: चूर्णी & उपोद्घात शताह सो तत्थ जक्खं भणति- जो मम मातापीतीहि दिण्णल्लओ तं च पिसाय मोतूर्ण जदि अण्णं जाणामि तो मे तुम जाणसितिला नियुक्ती जक्खो विलक्खो पितेति-पेच्छह जारिसाणि मंतेति, अहयपि वंचितो णाए, नत्थि सतित्तणं खु धुत्तीए, जाव चिंतेति ताव सा का सरिडित्ति निष्फिडिता, ताहे थेरो सम्बेण लोगेण हीलितो, तस्स ताए अद्धितीए निहा नट्ठा, ताहे रणो कणं गतं, ताहे रण्णा ॥४६॥ालाअंतेपुरपालो कतो, आभिसक्कं च हत्थिरयणं वासघरस्स हट्ठा बइ अच्छति, देवी हस्थिमेंठेण आसत्तिया, नवरि रति हस्थिणा हत्यो गवक्खेण पसारिओ, सा उतारिता, पुणरवि पभाते पडिविलइया, एवं बच्चति, अण्णता चिरं जातंति हत्थिमेंठेण हस्थिसंकलाए आहता, सा भणति-सो एरिसओ तारिसओ थेरो न सुयति, मा रूसह, तं थेरो पेच्छति, सो चिंतेति-जदि एताओवि किन्नु ताओ अतिभहिकाओत्ति, एवं चिंततो सुत्तो, पभाते लोगो सव्वो उद्वितो, सो न उड्डेति, रण्णो सिट्ठ, राया भणति-सुवतु, सत्तमे दिवसे उहिता, रष्णा पुच्छितो, कहित, जहा एगा देवी ण जाणामि कतरापि, एवं संववहरति, ताहेरणा भिडमतो हत्थी कारिता, सम्याओ अंतेपुरियाओ मणिताओ- एतस्स अच्चणिय करेता ओलंडेह, सब्वाहिं ओलंडीओ, सा णेच्छति, भणति-अहं बीहे| मि, किं च-शकटं पञ्चहस्तेन, दशहस्तेन शृंगिणम् । इस्तिनं शतहस्तेन, देशत्यागेन दुर्जनम् ॥१॥ ताहे रपणा उप्पलनालेन आहता, मुच्छिता किल पडिता, वाहे से उवगतं जहा एसा कारित्ति, भणिता य-मत्तगयमारुभंतिया, मंडमयस्स गयस्स भायसी x॥४६३॥ दह मुच्छिय उप्पलाहता, तस्थ न मुच्छति संकलाहता ॥१॥ पुट्ठी से जोइया, जाव संकलप्पहारो दिहो, ताहे रण्णा हत्थी मेंठो ORRESTHA अनुक्रम (469) Page #470 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत उपायातला दीप 13सा य तिण्णिवि छिण्णकडए विलइताणि, मेंठो भणितो-पाडेहि हस्धि, दोहिं पासेहिं वेलुयग्गाहा ठिता, जाव एगो पादो आगासे अनुकंपायां |कतो. जणी भणति-कि एस तिरिओ आणति ?, एताणि मारेतब्वाणि, तहावि राया रोसं न मुयति, ततो दो पादा आगासे, 11 मठः ततियवाराए तिणि आगासे. एगेण ठितो. ताहे लोगेण अक्कंदो कतो. भणितो- किएतं स्तर्ण विणासेह, ताहेरपणो चित्रं | ओगलितं, भणितो तरसि हथि नियत्तउं ?, भणति-जदि अभय देसि, दिणं, तेण अंकुसेण नियत्तिओ, जहा भमिचा थले नियुक्ती ठितो, ताणि उत्तारित्ता णिब्बिसताणि कताणि | एगत्थ पच्चन्तगामे सुण्णघरे ठिताणि, तत्थ य रतिं गामेल्लयपरद्धो चोरो तंट. ॥४६४॥ मुण्णवर अतिगतो, तेहि भणित पढेउं अच्छामो, मा कोइ पविसतु, गोसे पेच्छामो, सोवि चोरो लोडेतो किहवितीस हुक्का, तीए फासो वेदिओ, सो टुक्को पुच्छितो- को सि तुमं ?, चोरोऽहं, तीए भणितो- तुम मम पती होहि, एतं साहामो जहा चोरोनि, | तेहिं पभाते मिठो गहितो, एताए उपइट्ठोति । विचढंतो गले भिष्णो। तेण सम सा बच्चति जाव अंतरा नदी, ताहे सा तेण भणिता-पत्थ सरस्थंने अच्छ जाय अहं एताणि वत्थाणि आभरणाणि दाय उत्तारेमि, सो गतो, उत्तिष्णो पधाषिता, सा भणति-पुण्णा नदी दीसति कायपेज्जा, सय्यं पियाभडग तुज्झ हत्थ । जहा तुम पारमतीतुकामो, धुर्व तुम भंडग हतुकामो॥१॥ सो भणति-चिरसंथुओ वालियसथुतेर्ण, मेल्लेवि ताव ध्रुव अभुवेणं । जाणेप्पि तुझं प्रकृतिस्वभावं, पण्णो नरो को तुह विस्ससेज्जा? ॥१॥ सा भणति-कहि जासि ?, सो भणति- जहा सो मरावितो एवं ममंपि ॥४६॥ कहिंवि मारावेहिसि । इतरो तत्थ विदो उदगं मग्गति, तत्थ एगो सङ्गो भणति-जदि नमोक्कार करेसि ता ते देमि, सो उदगस्स !! अड्डा गतो, जाव तमि एते चेव नमोक्कार करेन्तो कालगतो, वाणमन्तरो जातो, सो य सडो आरक्खियपुरिसेहिं गहितो, सो NCREACKS अनुक्रम (470) Page #471 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ||४६५॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा ], निर्युक्ति: [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ओहिं पउंजति जाव पेच्छति तं सरीरंगं तं सङ्कं वज्यं, ताहे सिलं विउच्चित्ता मोएति । तं च सरत्थंत्रमज्झे पेच्छति, ताहे से विणा उप्पण्णा, सियालरूवं विउब्वित्ता मंसपेसीहत्थगता उद्गतीरेण वोलेति जाव मच्छयं पेच्छति, तं मंसपेसि मोतुं तस्स मच्छस्स पथावितो, तंपि सेणेण हरितं, मच्छीवि जलं अतिगतो, ताहे सियालो झायति, तीए भणितं मंसपेसि परिचज्ज, मच्छं पत्थेसि जंबुका । चुक्को मच्छे च मंसं च, कतुणं शायसि कोल्हुका ? ॥। १ तेण भण्णति- पत्तपुडिपरिच्छण्णे, सरत्थंबे अपाउए । चुक्का पति च जारं च, कलुणं झायसि बंधुकी ॥ १ ॥ एवं भणिता विलिता जाता, ताहे सो संयं रूवं दंसेति, पण्णाविता भणिता-पञ्चताहित्ति, तेण सो राया तज्जिओ, तेण पडिवना, सक्कारेण निक्खता, दियलोगं गता । एवं अकामनिज्जराए मेंठस्स ॥ बालतवेणं जिष्णपुरं नगरं, सेट्ठिषरं मारिए उच्छादितं, तत्थ इंदनागो दारओ, सो छुहिओ गिलाणो पाणियं मग्गति जाव सव्वाणि मताणि पेच्छति, पारंपि लोगेण कंटियाहिं घट्टितं, ताहे पुण छिदिण निग्गतो, ताहे नगरे कप्परेण भिक्खं हिंडर, एवं लोगो देति सुतपृथ्वोत्ति, संवद्धति, लोगों से अनुकंपाए देति । अण्णदा रायगिहाओ वाणियओ एति, सो य वाणियओ रायगिहं जातितुकामो नगरे घोसावेति, तेण तं घोसणतं सुतं, ताहे तेण सत्थेण समं पत्थितो, तत्थ तेण सत्थे कूरो लद्धो, सो जिमितो, बितिते दिवसे न जीरति, ताहे अच्छति, तं तं सेट्टी पेच्छति, उपवास करेतित्ति जाणिएलओ, सो य अब्वत्तलिंगी, वितियदिवसे हिंडेवस्स सेडिया बहुं निद्धं च दिनं, सो तेण दुवे दिवसा अजिष्णरण अच्छति, सेड्डी जाणति-एस छट्टण्णकालिओ, तस्स अस्था जाता, ततियदिवसे हिंडतो सत्थवाहेण सदावितो कीस मे कल नागतो ?, तुष्णिको अच्छति, जाणति छ कतेल्लयं, ताहे से पहाणं निद्धं च दिष्णं, तेणवि अण्णे दो दिवसे अच्छावितो, पच्छा लोगोऽवि पणतो, अण्णस्स निर्मतन्तस्सवि ण गेण्हति, अण्णे (471) बालतपसि इन्द्रनागः ||४६५॥ Page #472 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका भणति-एगपिंडओ सो, वेण य ते अड्डापर्य लढेलयं, वाणियएण भण्णति-मा अण्णस्स खणं गण्हेज्जासि जाव नगरं गमति, नगरं दानेन आवश्यका गता, तेण से नियघरे मढ़ो कतो, ताहे सीस मुंडेति कासायाणि य करेति, ताहे सो विस्खातो जातो, ताहे तस्सवि णेच्छति, ताहे सम्यक्त्वे गुणाजद्दिवसं पारणय तदिवस लोगो नीति, सो पडिच्छति, ताहे अतिगतंपिन जाणंति, ताहे लोगेण जाणणानिमित्तं मेरी कता, जो देति | कृतपुण्यः नियुक्ती | सो तालेति, ताहे लोगेऽतिपबिसति, एवंकालो वच्चति । सामी य समोसढो, ताहे साहू संदिसावेन्ता भणिता-मुहुतं अच्छद्द, अणेसणा, हातमि जिमिते मणिता-उत्तरह, गोतमो य भणितो-ममं वयणेण भणिज्जासि-भो अणेगपिंडिता! एगपिडिओ तं दटुमिच्छति, ॥४६६॥ 1 ताई गोतमेण भणितो, रुडो भणति-तुब्मे अणेगपिंडसताणि मुंजह, अहं च एगत्थ भुंजामि, तो अह चेव एगपिडिओ, मुहुर्ततरे ६ उपसंतो चिंतेति-न एते मुसं वदंति, किह होज्जा ?, जाव लद्धा सुती, होमि अणेगपिंडिओ, जदिवस मम पारणगं तदिवसं अणे गाणि पिंडसताणि कीरति, एते पुण अकारितं एग भुजंति, तं सच भणंतित्ति चिन्तन्तेण जाती सरिया, पत्तेयबुद्धो जातो, अज्झजायणं भासह ! 'इंदनागेण अरहता वुइतं,' सिद्धो य, एवं तेण बालतवण सामाइर्ष ल ।। . दाणेण लद्धं, जथा एगाए वच्छवालियाए पुत्तो, लोगण उस्सवे पायसो उक्खडितो, तस्थ आसण्णपुरे दारगरूवाणि, पायस | जेमिन्ताणि दारगरूवाणि पासतिं, ताहे मातरं ववति-ममवि पायसं देहि, ताहे नस्थिति सा अद्धितीए परुण्णा, ताओ सयज्जि| याओ पुच्छंति, निबंधे कहितं, ताहे अणुकंपाय अण्णाएवि २ आणितं दुर्दू सालि तंदुला य, ताहे थेरीए पायसो रद्धो, सो या ॥४६६॥ | पहावितो धालं च से घतमहुसंजुत्तस्स भरितं, सो ताव उबद्वितो, साहू य मासक्खमणी आगतो, जाव थेरी अंतो बाउला ताव तेणवि धम्मावि मे होतुत्ति ताहे तिभागो दिण्णो, पुणोऽवि चिन्तितं-अवि थोवं, वितितु तिभागो दिण्णो, पुणोचि चिंतेति एत्थं अण्णंपि| SECONDERSciece दीप SARKARAware अनुक्रम (472) Page #473 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत चूणों सत्राक &ान जाति अम्बक्खलगमादि, ताहेततिओ तिभागो दिण्णा, ताहे तेण दव्वसुद्धेण आलावओ, ताहे माता से जाणति-जिमितो, पुण दानेन आवश्यक रवि भणितं, ताहे तेण अतीव रंकत्तणेण पो भरित, ताहे रर्ति विसतियाए मओ, देवलोग गतो, चुतो रायगिहे पहाणस्स धणाव-12 सम्यक्त्वे हनामस्स पुत्तो भद्दाए जातो, लोगो य गम्भगए मण्णाति-कतपुण्णो जीवो जो एत्थ उबवणो, जातो कतनामतो चेव कतपुण्णउत्ति लाकृतपुण्यः उपायात नाम, संवद्धिओ, कलाओ गहिताओ, परिणीतं, माताए वयंसिएहि य गणियाघर नीतो, बारसहिं वरिसहि निर्ण कुलं कतं, सोवि नियुक्ती न निग्गच्छति, ताणि मताणि, मज्जा से आमरणगाणि सहस्सं च चरिमदिवसे पेसेति, गणियामाताए णात-णिस्सारो जातोत्ति, ॥४६॥ ताहे ताणि य अण्णं च सहस्सं विसज्जितं, गणियामाताए भण्णति-एस निच्छुन्मतु, सा निच्छति, ताहे तीसे चोरियाए नीणिओ, भणितो-जह घरं सज्जिजति ओसर, सो ओतिण्णो चाहिं अच्छति, ताहे दासीए भण्णति-निच्छुडोवि अच्छसि', ताहे नियगघरं गतो, भज्जा से ससंभमेण उद्विता, ताहे सव्यं कहितं, ताहे सोगेणं अप्फुण्णो भण्णह-अस्थि किंचि जा अण्णहि जातिता ववसामि, ताहे जाणि आभरणाणि गणियामानुए यजं सहस्सं कप्पासमुल्लं दिण्णेल्लयं तं से दरिसितं, सत्थो य तदिवस उच्चलितासतो, सो तेण सत्येण समं ताणि गहाय पस्थितो, बाहिं देउलियाए खड्स पाडेतूण वुत्थो । अण्णस्स बाणियस्स माताए सुतं, जहा तव पुत्तो वहणे मिण्णे मओ, तं एतस्स दबं दिणं, भणितो-मा कासति कहेज्जासित्ति, ताए चिंतिय-मा अस्थो अपुताए राउलं पविसिहिति, ताहे रात्र्ति एवं एति-जा कंचि अणाहं पवेसेमि, ताहे तं पासति, पडियोहेत्ता पवेसितो, ताहे घर नेतूण रोवति-चिरनट्ठगोत्ति * ॥४६७॥ पुत्ता, सुण्हाणं च चतुण्डं ताणं कथेति-एस देवरओ मे चिरनहाओ, ताओ तस्स लाइताओ, तत्थवि य चारस बरिसाणि, तत्थ | एकेकाए चत्तारि पंच चेडरूवाणि जाताणि, थेरीए भणितं-एचाहे निच्छुम्मतु, ताओ न तरंति उब्वरितुं, ताहिं संपलं मोदगा कता, दीप अनुक्रम (473) Page #474 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूर्णी HEISE श्री अंतो अणग्घेताण रतणाण भरिता, बर से एतं होतं, ताहे वियर्ड पातेत्ता ताए चेव देउलिताए ओसीसए संबल ठवेत्ता पडिगता,131 दाने आवश्यक सो सीतलएण वाएणं संबुद्धो, पभातं च, सोऽपि य सत्थो तदिवस आगतो, एयाएवि गवेसओ पत्थविओ, ताहे उट्ठवेत्ता घरं आणितो, | कृतपुण्या मज्जा से संभमेण उडिता, संबल गहितं, पविट्ठा अभंगादीण कीरति पुत्तो य से तदा गुब्बिणीए जातओ, सो एकारसवरिसो विनये उपोद्घात लेहसालाए आगतो रोवति-देहि कूरं माऽहं हमीहामि, ताए से तत्तो मोदओ दिण्णो, सो तं खातंतो निग्गतो, तं रयण पेच्छति, पुण्यशाला दिलेहिच्चएहि दिट्ठ, तेहिं पूवितस्स दिण्ण दिवसं २ पूयलियाओ देहित्ति, इमोऽवि जिमितो, मोदए भिंदति, तेण दिवाणि, भणति॥४६८॥1 सुंकभएण छूढाणि, तेहिं रतणेहिं तहेव पवित्थरिओ ।। सेयणतो य गंधहत्थी णदीए तंतुएण गहिओ, राया अद्दण्णो, अभओ भणति- 12 ४ जदि जलकतो अत्थि तो नवरि मुच्चति, सो राउले अतिबहुगत्तेण रतणाणं चिरेण लम्भतित्ति, ताहे पडहओ निष्फेडिओ-जो | जलकतं देति तस्स राया अद्धं रज्जस्स धूतं च देति, ताहे पूविएण णीणिओ, उदगं पणासितं, तंतुओ जाणेति जहा अहं थल नीतो, ताहे मुक्को, सो राया चिन्तेति-कतो पूवितस्स ?, ताहे पूविओ पुच्छितो-कतो एस तुझं?, निबंध सिट्ठ-कतपुण्णगपुत्तेण दिण्णोत्ति, राया तुट्ठो भणति-कसो अण्णस्स होहितिनि, ताहे रण्णा से सद्दावेचा धूता दिण्णा, दिण्णो विसओ य, ताहे भोगे भुजति IN पच्छा गणियावि आगता, सा उवाहिता भणति-अहं एच्चिर कालं तुज्झच्चएण अच्छिता, एस वेणी मेवि बद्धेल्लिया, मए य सबPSI वेतालीओ तुझच्चएण गवेसाविताओ, नवरि एत्थ सि दिट्ठो, ताहे अभयं भणति-एत्थ मम नगरे चत्तारि महिलाओ. तं च अहं13 दान जाणामि, ताहे चितियं घर कतं, लेप्पगजक्खो य कतपुण्णगसरिसो कतो, तस्स अच्चणिता घोसाविता, दो य दाराणि कताणि-IM111४६८|| एगेण पवेसो एगेण निफेडो, ताहे अभओ कतपुण्णओ य एगस्थ दारब्भासे आसणवरगता अच्छंति, ताहे कोमुती आणत्ता, पडि दीप अनुक्रम (474) Page #475 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री दाने कृतपूर्ण पत सत्राक पुण्यशाला दीप IS मापसा अच्चणितं करेह, नगरे घोसित सम्बमहिलाहिं सडिक्करूवाहिं एतन्वं, ताहे लोगो एति, ताओवि आगताओ, ताहे ताणि आवश्यक पामाचेडरूवाणि तस्स चप्पोत्ति उच्छंगे निविसंति, एवं नाताओ, ताहे अभएण थेरी अबाडिता, ताओवि आणीताओ, पच्छा जहासुई भोगे मुंजति । एवं सो विपुलभोगसमण्णागतो, बदमाणसामी तत्थ आगतो, समोसरणं, ताहे कतपुण्णओ भट्टारगं पुच्छति-मम | नियुक्ती 18 संपत्ती विपत्ती किं कारण ?, भगवता कहित-पायसदाणं, संवेगेण पब्वइतो । एवं दाणेणवि बोही होज्जा। विणएण जहा मगहाए गोबरगामो, तत्थ पुष्फसालो गाहावती, मद्दा भारिया, पुनो जातो, नाम च से पुष्फसालसुतोत्ति, ॥४६॥ सो मातापितरं पुच्छति को धम्मो, तेहिं मणि-मातापितरं सुस्मृसितब्ब-दोच्चेव देवताणि माता य पिताय जीवलोगमि । तत्थवि पिता विसिट्टो जस्स वसे बढ़ती माता ॥१॥ ताहे सो ताण पदे मुहधोवणादि विभासा, देवताणि जहा सुस्मसति । अण्णदा है तत्थ गामभोइओ आगतो, ताणि संभंताणि तस्स पाहुण्णं करेंति, ताहे सो चिंतेति-एताणवि एस देवतं, एतं पूजेमि तो धम्मो होहिति, तस्स सुस्सूसं पकतो, अण्णदा तस्स भोइतो, तस्सवि अण्णो जाव सेणियरायाणं ओलग्गिउमारद्धो, तत्थ सामी समोसढो, | सेणिओ इड्डीए निग्गओ, सामि वंदति, इतरो सामि भणति-अहं तुझं ओलग्गामि, सामिणा भणितो-अहं खुरतहरणपडिग्गहमाताए ओलग्गिज्जामि, ताण सुणणाए संबुद्धो। एवं विणएणं ।। विभंगण ॥ विभंगेण जहा तेणं कालेण तेणे समएणं हत्थिणापुरं नाम नगरं, तत्थ ण सिवे नाम राया महता. वण्णओ, 1 M तस्स धारिणी नाम देवी, सिबभद्दे नाम पुत्ते होत्था, तते गं तस्स सिवस्स रण्णो अण्णदा कदाइ पुश्वरचावरत्तकालसमयसि रज्जधुरं अनुक्रम ॥४६ ॥ (475) Page #476 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 शिव प्रत उपोद्घातटा HEIGE श्री चितमाणस्स अयमेतारूवे जाव समुप्पज्जित्था-अस्थि ता में पुरापोराणाणं सुचिण्णाण सुप्परफताण सुभाण कल्लाणाणं कडाणं 81 विभंगे आवश्यक कम्माण कल्लाणे फलविसेसे जण्णं हिरण्णण वड्डामि सुवण्णणं बढामि जाब संतसारसावतेज्जेणं अतीव अतीव अभिवट्टामि, तं किष्णदा चूर्णी । अहं पुरापोराणाण सुचिण्णाण जाव कडाणं कम्माणं एगतसोक्खत उबेहमाणे विहरामि , तं जाच ताव अहं हिरण्मेण वड्डामि तं राजर्षिः नियुक्ती चेव जाव अभिवडामि जावं च मे सामन्तरायागोवि वसे बहंति ताव ता मे सयं कल्लं पादु जाव जलंते सुबहुलोहकडाहिकडच्छु यं तपि य तावसभंडय घडावेत्ता सिवभई कुमारं रज्जे ठबेचा तं तावसभंडगं गहाय जे इमे गंगाकूला याणपत्था तावसा भवंति, ॥४७०॥ ते-होत्तिया गोतिया जथा उववाइए जाच कट्ठसोल्लियंपिव अप्पाणं करेमाणा बिहरंति, तत्थ णजे ते दिसापोक्खिया तावसा तेसिं अंतिय मुंडे भवित्ता दिसापोक्खियतावसत्ताए पब्बइत्तए, पव्वतिएवि यण समाणे अयमेतारूवे अभिग्गहं अभिगिहिस्सामिकप्पति मे जावज्जीवाए छटुंछद्रेणं अनिक्विनण दिसाचक्कवालएणं तपोकम्मेणं उड़ बाहाओ पगिझिय २ सूराभिमुहस्स जाब विहरित्तएत्तिकटु एवं संपेहेति संपहेचा कालं जाव घडावेचा सोभणांस तिहिकरणदिवसनक्खत्तमुहुर्तीस विपुलं असणं ४ उवक्खडावति २ मित्तणाइ जाव खचिए य आमंतेति २ कतवलिकम्मे जाव सक्कारेति संमाणात जाव आपूच्छित्ता भंड गहाय दिसापोक्खियतावसत्ताए पब्बइए जावतं चेव अभिग्गहं गेण्हति २ पढमं छडक्खमणउपसंपज्जित्ताणं विहरति, तते थे पारणगंसि आतावणभूमिओ पच्चोरुभाति २ ता वाकलवत्थनियत्थे जेणेव सए उडए तेणेव उवागच्छति, किढिणरांकाइयं गेहति, ॥४७॥ गेहेत्ता पूरस्थिम दिसि पोक्खेति, पोक्खेत्ता पुरस्थिमाए दिसाए सोमो महाराया पत्थाणपत्थितं अभिरक्यत सिवं रायसिस अभि०२, जाणि य सत्थ कंदाणि य मूलाणि य तयाणि य पत्ताणि यनाव हरिताणि य अणुजाणतुचिकटुपुरस्थिम दिस दीप अनुक्रम CANCatest (476) Page #477 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्तौ ॥४७१॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [८४१-८४७/८४९-८४७) आयं [१५०...]] मूलं - /गाथा ), आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - पसरति २ कंदादीणि मेण्छति २ किढिणसंकाइयं करेति, करेता दव् य कु य समिहाओ व पत्तामोयं च गेण्हति सयं उडययं उवागच्छति, उवागच्छेता बलि उद्वेति, उवलेवणसम्मज्जणं करेंति, करेचा दम्भकलसहत्थगते गंगाए उवागच्छति, जलमज्जणं करेति, आर्यते चोक्स्खे सुतिभूते देवतापतिकतकज्जे सदन्भकलसहत्थगते उडयं उवागच्छति, दब्भेहि य कुसेहि वालुयाए य वेदिं रति, सरएवं अरणिं मथेति अरिंग पाडेति समिहाकट्ठाई पक्खिवति अरिंग उज्जालेति अग्गिस्स दाहिणे पासे सगाई समादधे, तं० सकई वक्कलं ठाणं सञ्झामंडं कमंडलुं दंडदारुं तवप्पाणं, अंह ताई समितो समादधे मधूण य घतेण य तंदुलेहि य अग्गि हुणति चरुं साहेति बलिं विस्सदेव करेति अतिहिपूयं करेति ततो पच्छा अप्पणा आहारेति । ततो दोच्चं छट्ठक्खमणं, एवं जथा पढमं, नवरं दाहिणं दिसि पोषखेति जमे राया, सेस तं चैव । एवं तच्चे, दिसा पच्छिमाराया वरुणो चउत्थं उतरा दिसा बेसमणो महाराया । ततेणं तस्स सिवस्स रायरिसिस्स छछडेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालएणं सबोकंमेणं जाव आयावेमाणस्स पगतिभद्दत्ताए जाव विणीतताए अण्णया कदायी तदावरणिज्जाणं कम्माणं खओवसमेणं ईहावृहमग्गणगवसणं करेमाणस्स विभंगे नाम अण्णाणे समुप्पण्णे, से णं तेर्ण पासति अस्सि लोए सत्त दीवे सच समुद्दे, तेण परं न जाणति, तते णं से रायरिसी इत्थिणापुरे नगरे सिंघाडगतिय जाब पहेसु अण्णमण्णस्स एवं आइक्खइ एवं खलु देवाणुपिया ! अस्सि लोए सच दीवा सन्त समुद्दा, तेण परं दीवा य सागरा य वोच्छिष्णा, तते णं बहुजणो अण्णमण्णस्स एवं अतिक्खति एवं खलु तं चैव जायते परं बोच्छिण्णा, से कहमेतं मण्ो एवं १ । ते काले ते समपर्ण सामी सगोसढो, जाव परिसा पडिगता, तेणं कालेणं तेणं समयणं गोतमो जाय अडमाणो बहुजणस्स (477) विभंगे शिव राजर्षिः 1180211 Page #478 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात ४ निर्युक्तौ ॥४७२ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 सर्द निसामेति, तं चैव तते णं गोतमे जातसङ्के भगवंतमाह से कहमेतं मंते १, भगवानाह एवं खलु गोतमा ! तस्स सिवस्स स भाणित जावतं मिच्छा, अहं पुण गोतमा ! एवमाइक्खामि जंबुद्दीवादीया दीवा लवणादया समुद्दा, संठाणतो एगविधे, | वित्थारतो अणेगविधविहाणो दुगुणा दुगुणं पड़प्पाएमाणे २ एवं जहा जीवाभिगमे जाव सर्ववरमणपज्जवसाणा अस्सि तिरियलोके असंखेज्जा दीवसमुद्दा समणाउसो !, तते णं से परिसा एयम सोच्चा हड्डा भगवं वंदति जाब पडिगता । तते णं बहुजणो अण्णमण्णस्स एवं आइक्खति-जण्णं सव्वं भाणितव्वं जाव समणाउसो !, ततेणं से सिवे एतम निसामित्ता संकिते जाव कलुसमा वष्णे यावि होत्था, ततेणं विभंगे विप्पामेव परिवडिते, ततेणं तस्स अम्मत्थिए समुप्यज्जित्था एवं खलु समणे भगवं जाव इह | सहसंचवणे उज्जाणे विहरति तं गच्छामि णं सामि वंदामि पज्जुवासामि, एतं णे इहभवे परभवे य जाव भविस्सतित्तिकट्टु जाव | सब्वं भंडोवगरणं गाय जेणेव भगवं तेणेव उवागच्छति, तिक्खुत्तो बंदति, वंदित्ता नच्चासपणे जाव पंजलिकडे पज्जुवासति, ततेणं भगवता धम्मे कहिते, ततेणं सिवे धम्मं सोच्चा जहा खंदओ उत्तरपुरत्थिमं जाव तं सव्वं एडेति, सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेति, एवं जहा उसभदत्तो तहेव पव्वतिओ, तहेव एक्कारस अंगाई अधिज्जति, तहेब जाव सव्वदुक्खप्पहीणे। एवं विभंगण सब्बस्स लाभो । संजोगेणं वियोगेण लंभो होज्जा । जथा दो महुराओ, तत्थ उत्तराओ वाणियओ दक्खिणं गओ, तत्थवि तत्प्रतिमो वाणियओ, तेण से पाहणयं कतं, ताहे ते निरंतरमित्ता जाता, अम्हं थिरतरा पीती होहिति जदि अम्हे पुतो धृता य जाति तो संजोगं करेस्सामो, ताहे दक्खिणेणं उत्तरस्स धृता वरिता, तेण दिष्णा, बालाणि, एत्थंतरे दक्खिणमहरओ वाणियओ मता, पुत्तो से तंमि ठाणे ठितो, अण्णदा सो हाति, चउद्दिसिं सोवण्णिता कलसा, ताण चाहिं रुप्पमता ताण चाहिं तंविता ताण (478) विभंगे शिव राजर्षिः ||४७२|| Page #479 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत चूणा सत्र बाहिं मटियामया, अण्णदा पहाणविही रयिता, तस्स पुब्बाए दिसाए सोवष्णिओ कलसो आगासेण नट्ठो, एवं चउदिसिपि, एवं संयोगआवश्यक श्यक सव्वे गट्ठाओ, उद्वितस्स हाणपीढमवि गहुँ, तस्स अद्धिती जाता, नाडइज्जाओ वारिताओ जाव घरं पविट्ठो, ताहे उवट्ठवितो मोय-नावियागया | णविधी, ताहे सोवणियरुप्पमताणि रइयाणि, एकेक भायणं नासितुमारद्धं, ताहे सो ते णासंतए पेच्छति, जावि स मूलपाती। 3 माधुरी उपोदयात साबि से णासितुमारद्धा, ताहे तेण गहिता, तं हत्थेण गहित तत्तिय लग्ग, सेसं नई, ताहे सिरिघरं गतो जोएति जाव सोवि रीनियुक्ती कओ, जीप निधाणपउत्तं तंपि नई, जंपि आभरणं तंपि नत्थि, जंपि वडिपउत्तं तेवि भणंति- तुम न जाणामो, जोवि सो दासी. दासवग्गो सोवि से णट्ठो, ताहे चितइ- पब्वइयामि, धम्मघोसाणं अंते पब्बइतो, सामाइयमादीणि एकारस अंगाणि अधीयाणि, ॥४७३|| तेण खंडेण इत्थगएणं कोतुहलेणं जदि पेच्छिज्जामि विहरंतो उत्तरमहुरं गओ, ताणिवि तस्स रयणाणि ससुरकुलं गयाणि, ते य | कलसा, ताहे सो माधुरो उवगिज्जतो मज्जति जाव ते आगता कलसा, ताहे सो तेहिं घेव पमज्जितो, ताहे भोयणवेलाए तं ल भोयणभंडगं उचढवितं, जहापरिवाडीय ठितं. सोवि साधू तं घरं पविट्ठो, तस्स सत्थाहस्स धूता पढमजोवण बट्टमाणी वीयणगं | गहाय अच्छति, ताहे सो साधूवी भोयणभंडग पेच्छति, सत्थवाहेण से भिक्खं नीणावितं, गहितेवि अच्छति, ताहे सत्थाहो भणति- कि भगवं एतं चीड पलोएह ?, ताहे सो भणति-नत्थि मम चेडीय पयोयणं, भंडगं पलोएमि, ताहे पुच्छति-कतो एतस्स तुझ आगमो ?, सो भणति- अज्जगपज्जगागतं, तेण भणित- सम्भावं साहह, तेण भणितं- मर्म पहातंतस्स एवं चेव पहातविधी K४७३॥ का उवाढता, एवं सवाणिवि, जेमणबेलाए भोयणविधी जाब सिरिघरााण भरिताणि, निक्खेवाणिवि दिट्ठाणि, अदिट्टपुष्वा य धारणया आणेत्ता देंति, ताहे सो भणति-एतं सव्वं मम आसी, कित्थ, ताहे कहेति सो पहाणादी, जदि न पत्तियसि तो इमं पादीखंड CACCE दीप अनुक्रम (479) Page #480 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत SALASS व्यसने गगदत्तः पेच्छ जाब ढोइतं, चडत्ति लग्गं, पितुणो य नाम साहति, ताहे नातं-एस सो जामातुओ, ताहे सो उद्देत्ता अवतासंतूर्ण परुणो, आवश्यक पच्छा भणति एवं सब्वं तदवत्थं अच्छति, अच्छह, एसा तब पुव्वादिण्णा चेडी, सो भणति-पुरिसो वा पुच्च काममोगे विप्पज- चूर्णा हति, कामभोगा वा पुर्व पुरिस विप्पजहति, ताहे सोऽपि संवेगमावण्णो, ममंपि एमेव विप्पजहिस्सति ?, ताहे सो विप्पजहितो, उपापाता एवं ते संजोगविप्पयोगण । नियुक्ती वसणेणवि होज्जा, दो भाउगा सगडेण बच्चति, एगा य यमलुंडी सगडवज्जए लोलति, महल्लेण भणित-उव्वत्तेहि भंडी, ॥४७॥ इतरेण वाहिया भंडी, सा सण्णी मुणति, ताहे चक्केण छिण्णा मता इत्धी जाता हत्थिणापुरे नगरे, सो महत्तरओ पुन्विं मरिचा तीसे पोडे आयादो, पुगे जातो, इट्ठो, इतरोवि मतो, तीए चेव पोट्टे आताओ, जं चेव उववष्णो तं चेव सा चिंतेति-सिलं व हाविज्जामि, गम्भपाडणेऽवि ण पडति, एवं सो जातो, ताहे ताते दासीहत्थे दिण्णो, जहा छडेह, उच्छाइओ, पवितो, एसो सेट्ठिणा माणीणिज्जतो दिहो, ताए से सिट्टे, तत्थ तेण अण्णाए दासीए दिण्णो, सो तत्थ संवङ्गति, तत्थ महल्लस्स नामं रायललितोति, इतरस्स गंगदत्तो, सो महल्लो जे किंचि लभति तत्तो तस्सवि देति, तासे पुण अणिट्ठो, जहिणं पेच्छति तहि कडेण वा पत्थरेण वा आणति, पच्छा अण्णदा इंदमहो जातो ताहे पिता से भणति--आणेहतं अप्पसारित झुंजिहिति, ताहे सो आणिओ, तेणं आसंदगस्स हेडा कतो, ओहाडियओ जेमाविज्जति, ताहे किहवि दिहो, ताहे गहाय कटिऊणं बाहिं चंदणियाए पषिट्ठो, ताहे सो त ण्हाणे रोवयति य । एत्थंतरा साधू समुदाणस्स अतिगतो, ताहे सो पुच्छति--भगवं! अस्थि पुत्तो मातुयाए अणिडो भवति', हन्ता भवति, किह पुण, वाहे भणति-यं दृष्ट्वा वर्धते क्रोधः, स्नहब परिहीयते । स विज्ञेयो मनुष्येण, एष मे पूर्ववैरिकः॥१॥ दीप अनुक्रम .IYE HI७४॥ किन IN (480) Page #481 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत EXC लामे HEIG श्री यं रष्ट्या वर्धते स्नेहः, क्रोधश्च परिहीयते । स विज्ञेयो मनुष्येण, एप में पूर्वबांधवः ।। २ ॥ ताहे सो भणति-भगवं! एतं पञ्चा- व्यसनेन आवश्यकवेष?, बाढति विसज्जितो, ताहे सो पब्बावितो, तेसिं आयरियाण य पासे भायावि से णेहेण पव्वइतो, ते साधू ईरियासमिता सामायिकचूणा ट्राणिस्सितं तवं करेंति, ताहे सो तत्थ निदाण करेति-जदि अत्थि इमस्स फल तो आगमेस्साणं जणनयणाणदणो भवामि, निदाणी करेति, घोरं च तवं करेति, ताहे कालगता देवलोकं गतो, चुतो वसुदेवपुत्तो वासुदेवो जातो, इतरोधि पलदेवो, एवं तेण वसणेणं || गंगदत्तः उत्सवेनासामाइयं लद्धं ॥ भीराः ॥४७५॥ 11 उस्सवे जहा पञ्चांतियाणि आमीराणि, ताणि साहूण पासे धम्म सुणेति, ताहे देवलोगे वण्णेति, एवं तेसि अस्थि तमि धमेIX &ा बुद्धिः, अण्णदा कदाई इंदमहे वा अण्णम्मि वा उस्सवे ताणि णगरि गताणि, जारिसा चारवती, तस्थ लोग पेच्छति मंडियपसाहिया सुगंधविचित्तणेवस्थ, ताणि तं दद्दण भणति-एवं एस देवलोगो जो सो तदा साहहिं वण्णितो, एचाहे जदि बच्चामो तो सुंदरतरं | करेमो जा अम्हेवि देवलोगे उववज्जामो, ताहे ताणि गताणि साहति तेसिं साधूर्ण-जो तुम्भेहिं अहं कहितो देवलोको अम्हेहिं पच्चक्ख दिडो, ताहे ते मणति-न तारिसो देवलोगो, अण्णारिसो, ततो अणतगुणो, ताहे ताणि अन्भहियजतिहरिसाणि पश्चइ- ताणि, एवं उस्सवेण सामाइयलंभो ॥ ॥४७५॥ इड्डित्ति, तेण कालेणं तेण समएणं दसण्णपुरं नाम नगर होत्था रिद्धस्थिभियसमिदं मुदितजणुज्जाणजाणवदं आइण्णजणमणूस ट्रा हलसतसहस्ससकविकठ्ठलदुषण्णत्तसेवसीम कुक्कुडसंडेययगामगोउलइक्खुजवसालिमालिणीय गोमहिसगवेलकप्पभूतं आयारवन्त दीप अनुक्रम सर HASEEN (481) Page #482 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राका दीप चेतियजुवतीसंनिविद्वबगुलं उकोडितपावर्गठिभेदयभडतकरखंडरक्खरहितं खम निरुवदुतं सुभिक्खं वसित्थसुहावासं अणेगकोडी-16 ऋया आवश्यकता कुटुंबियाइण्णं निबुतसुह पदणषणसण्णिभप्पकासं उम्बिद्धविरलगंभारखाइयफलिहं चक्कगयामुसलमुसुढिओरोहसतग्घिजमलक वाडघणदुप्पवेसं धणुकुडिलवंकपागारपरिक्खिनं कविसीसयवट्टरइतसंठितचिरायमाणअट्टालयचरियदारगोपुरतोरणउण्णतसुविमचराकायमगं छेयायरियरयितदढफलिहइंदकीलं विवणिवणिछेयसिप्पियाइण्णनिव्वुतमुहं सिंघाडयतियचउकचच्चरपणियावणविविहवे-४ सपरिमंडियं सुरम्म नरबतिपविइण्णमहापहं अणेकनरतुरयमत्तकुंजररहपहकरसीयसंदमाणियाइण्याजाणजुग्गं विमउलनवनलोण॥४७६|| सोभितजलं पंडरवरभवणसंणिवहितं उत्ताणयनयणवेच्छणिज्जं पासादीयं दरिसणज्ज अभिरूचे पडिरूवै ॥ तस्स णं दसण्ण पुरस्स नगरस्स पहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीमागे दसण्णकूडे नाम पब्बते होत्था, तुग गगणतलमणुलिहंतसिहरे नाणाविहरुक्ख गुच्छगुम्मलतावल्लियपरिगते हसभिगमयूरकोंचसारसचक्कागमयणसालकोइलकुलोवगीते अणेकतडकडगविसमउज्झरपवातपब्भार-IN है सिहरपउर अच्छरगणदेवसंघविज्जाहरामेहुणसंविभिण्णे निच्चुण्णए दसण्णवरवीरपुरिसतेलोकवलवगस्सासमे सुभगे पियदंसणे सुरुवे पासादीये ।। तस्स ण पब्वतस्स अदूरसामंते गंदणवणे णाम वणसंडे होत्था, से णं किण्हे किण्होभासे एवं नीले हरिते सीते निद्ध जाब तिब्वे तिव्वोभासे किण्हे किण्हच्छाते घणकडितकंकडच्छाए रम्मे महामेहणिउरुंचभृते सव्वोउयपुष्फफलसमिद्धे रम्मे अंदणप्पगासे पासादीए । तत्थ णं पादवा मूलयंतो एवं कंद. खंद० तया० सालप्पवालपत्तपुप्फफलबीयवतो-मूले कंदे खंधे तया य साले तथा पवाले य । पत्चे पुप्फे य फले बीये दसमे तु नातब्बे ॥ १॥ अणुपुब्बसुजातरुइलबट्टभावपरिणता एकखंधी ॥४७६॥ अणेगसाला अणेगसाहप्पसाहविडिमा अणेगनरवाममुप्पसारितभुजागेज्झघणविउलबट्टखंधी पादीणपडिणायतसाला उदीणदाहिण-121 अनुक्रम (482) Page #483 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 N दीप श्री. विच्छिण्णा ओणतणतपणतविषधाइतओलंक्माणसाहप्पसाहविडिमा अवायीणपचा अणुदीणपत्ता अच्छिद्दषत्ता अचिरलपचा लिया *नितजरढपंड्डपत्ता नवहरितभिसंतपचा, भारंधकारसस्सिरिया उत्रीणग्गततरुणिपत्नपल्लवकोमलकिसलतचलंतउज्जलसुकमाल पवालसोभितवरंकुरग्गसिहरा निच्चं कुसुमिता निच्चं मोरिया निर्च लवइता निच्च थवइता निच्च गोच्छिता निचं बमलिता निच्च जुबलिया निच्च विणमिया निच्चं पणमिता निच्च कुसुमितमाइतलवइयथवइयतगुलुइतगोच्छितजमलितजुवलितविणामि-| तपणमितमुविभत्तपिंडमंजरिवडंसयधरा सुकवरहिणमदणसालकोइलमणोहरा रहतमत्तछप्पयकोरंटयभिंगारगकोणालजीवंजीक्कनंदि-| ॥४७७|| मुहकविलपिंगलक्खयकारंडकचक्कवायकलहंससारसअणेगसउणगणमिहुणवितरितसदुष्णइतमधुरसरनादिता सुरंमा सपिडितद रितभमरमधुकरिपहयरिपरिलेन्तमचछप्पदकुसुमासवलोलमधुकरिगणगुमुगुमेन्तगुंजतदेसभागा अभतरपुष्फफला बाहिरपत्तोच्छ प्णा निरोदया सादुफला अकंटया णाणाविहगुच्छगुममंडवयरमसोभितविचित्तमहसेतुकेतुबहुला बावीपोखरिणीदीहियासु य सुणिवे-13 दासितरमजालघरया पिंडिमणीहारिमं सुगंधि सुहसुरभिमणहरं च महता गंधद्धणि मुयंता अणेगसगडरहजाणजुग्गगेलिवेल्लियसीय-1 का संदमाणियहरिसोदणा सुरंमा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा ।। तस्स णं वणसंडस्स बहुमज्मदेसमाए एत्य गं मई 8एगे असोगवरपादपे होत्था, दूरोगतमूलकंदवट्टलद्रुसंठितसिलिट्ठपणमसिणनिद्धनिव्वणसुजातनिरुवहओविद्धपवरखंधी अणेकनरपवर &ा भुयगज्झे कुसुमभरसमोनमंतपत्चलविसालसाले महकरिभमरगणगुमगुमाइतनिलेतउडेतसस्सिरीए णाणासउणगणमिटुणसुमधुरकरणा-I&I सुहपलेंतसहपउरे कुसविकुसविशुद्धरुक्खमूले पासादीये दरिसणिज्जे अभिरुवे पडिरूवे। से असोगवरपादवे अण्णेहिं बहूहिं तिलएहि लउसेहिं छत्तोदएहिं सिरीसेहिं सत्तिवण्णेहिं दहिवण्णेहि लोध्धेहिं धएहि चंदणेहिं अज्जुणेहि निव्वेहिं कुलएहि कलंबेहि भच्चेहि | अनुक्रम न 1. (483) Page #484 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIG श्री ४ पणसेहिं दालिमेहि सालेहिं तालेहिं तमालेहि पियएहिं पियंगूहि पारेवएहिं रायरुक्खेहिं पंदिरुक्खेहिं सब्बतो समंता संपरिक्खिने,कया आवश्यक ते णं तिलता जाव पंदिरुक्खा कुसविकुसविसुद्धक्खमूला मूलवंतो जाव बीयवंतो अणुपुव्वसुजातायलबद्भावपरिणता सोभित-दिशाणमद्रः चूर्णी वरंकुरग्गहिरा निच्च कुसुमिता जाव बढेसयग्गधरा सुतंबरहिणमदणसालकोइल एवमादि जथा वणसंडपादया जाव अभिरूवा । ते 12 उपाघात टूण तिलया जाच नंदिरुक्खा अण्णाहिं बहहिं पउमलत्महिं नागलताहि असोगलताहिं चंपयलताहि चूतलयाहि वणलताहिं वासं-18 नियुक्ती तियलताहिं अतिमुत्तयलताहिं कुंदलताहि सोमलताहि सम्बतो समंता संपरिक्खिचा, ताओ णे पउमलताओ जाव सम० लताओ ही ४७८॥ निच्चे कुसुमिताओ जाव वडिसयधरीओ संपिडितदरितभमरमधुकरीपहकरपरिलेंतमत्तछप्पदासुमासवलोलमहुकरिगणगुमगुमेन्तगु जतदेसभागाओ संपिडियनिहारिमं जाव मुर्यतीओ पासातीयाओ जाव पडिरूवाओ।तस्स णं असोगवरपादवस्स उवरि अट्ठट्ठमंगलगा पण्यात्ता, तंजथा- सोत्थिय सिरिवच्छ नंदियावत्त बद्धमाणय भद्दासण कलस मच्छ दप्पण सब्बरतणामया पासादीया जाब पटिरूवा। तस्स ण असागवरपादवस्स उरि पहले किण्हचामरज्झया, एवं नीललोहितहालिदसुकिल्लचामरज्झया अच्छा सण्हा रुप्पवढवाहरामयदंडा जलयामलगंधिया सुरूवा। तस्स पी असोगवरपादयस्स उवरि बहवे छत्तादिछचा पढागातिपढागाओ घंटाजुयला || चामरजुयला उप्पलहत्थया पउमहत्थया एवं कुमुयणलिणसुभगसोगंधियपुंडरीयहत्थया सतपत्तसहस्सपत्तहत्थया सम्बरयणामया | अच्छा जाब सउज्जोया पासादीया । तस्स णं असोगवरपादवस्स हेड्डा एत्थ णं महेगे पुढविसिलापट्टए पण्णत्ते, ईसीखंघसमल्लीणे | विखंभुस्सेहसुप्पमाणे कण्हे अंजणयघणकुक्लपहलधरकोसेज्जसरिसआकासकेसकज्जलकक्कतणइंदनीलरिट्ठगअसिकुसुमप्पगासे मिग-181॥४७८|| 12 जणभंगभेदरिद्वयनीलगुलियगवलातिरेगभमरनिकुरंबभूते चुप्फलअसणकसणधणनीलुप्पलपत्तनिगरमरगतसासगगणहितरासिवण्णे | दीप अनुक्रम (484) Page #485 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत आवश्यक क HEIG निद्धोप्पण्णे अझुसिरे रूवयपडिरूबदरिसणिज्जे आयसतलोवमे सुरम्मे सीहासणसंठिते सुरूवे मुनाजालखइयंतकणे आयीणकरुयश्री बूरणवणीततूलतुल्लफासे सवरतणामए अच्छे सण्हे लण्हे घडे मटे नीलइए निम्मले निपके निकंकडच्छाए सप्पभे समरिईए सउ-15 क्रिया चूर्णी ज्जोवे जाव पढिरूवे । तत्थ णं दसण्णपुरे नगरे दसण्णभद्दे नामं राया होत्था, महताहिमवंतमहन्तमलयमंदरमहिंदसारे अच्चतवि- दशार्णभद्रः उपोद्घातारा पातसुद्धरायकुलवंससमध्पसूते निरंतरं रायलक्खणबिराइतंगमंगे बहुजणबहुमाणपूजिते सव्वगुणसमिद्धे खत्तिए मुदिते मुद्धामिसित्ते माउ-12 नियुक्ती पितुसुजाते दयामते सीमंकरे सीमंधरे मणुस्सिदे जणवदपिता जणवदपुरोहिते सेउकरे केउकरे णरवरे पुरिसवरे पुरिससीहे पुरिसवग्घे पुरि सासीविसे पुरिसवरपुंडरीए पुरिसवरगंधहस्थी अड्डे दित्ते विचे विच्छिण्णविउलभवणसयणासणजाणवाहणाइण्णे बहुधणबहुजातरूवरयते । ॥४७९॥ आयोगपयोगसंपउत्ते विच्छडितपउरभत्तपाणे बहुदासीदासगोमहिसगवेलयप्पभूते पडिपुण्णजंतकोसकोट्ठागारायुधधरे बलवदुबल-13 पञ्चामित्ते ओहयकंटय निहतकंटयं मलियकंटयं उद्भियकंटयं अप्पडिकंटयं अकंटय ओहयसत्तुं उद्धितसत्तुं निज्जितसत्तुं पराजितसत्तुं ववगतदुभिक्खचोरमारिभयविप्पमुक्कं खमं सिर्व सुभिक्ख पसंतडिंबडबरं फीतं पुरो जाणवदं रज्जं पसासेमाण विहरति। तस्स . दसण्णभद्दस्स रण्णा मंगलावती नामं देवी होत्था सुकुमालपाणिपादा अधीणपडिपृण्णपंचेंदियसरीरा लक्षणवंजणगुणोचवेता | माणुम्माणप्पमाणपडितुज्झा(पुण्णा)मुजातसव्वंगसुंदरंगी ससिसोम्माकारकंतपियदसणा सुरूवा करतलपरिमितपसत्थतिवलीयवलि-14 तमज्झा कुंडलुल्लिहियपीणगडलहा कोमुदिरयणिगरविमलपडिपुण्णसोम्मवदणा सिंगाराकारचारुबेसा संगतगतहसितमणिताचट्ठित-14 बिलाससललितसंल्लावणिपुणजुत्तोबयारकुसला सुंदरथणजहणवदणकरचरणणयणलायण्णरूयजोव्वणविलासकलिता दसण्णभद्देण रण्णा सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता इहे सहप्फरिसरसरूवगंध पंचविहे माणुस्सए कामभोगे पच्चणुभवमाणा विहरति । तस्स दसष्ण दीप अनुक्रम SC R ॥४७॥ (485) Page #486 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 अद्वय चूर्णी 1 भद्दस्स रण्णो एगे पुरिसे विउलकयविची भगवतो पउचिवाउए तद्देवसिय पउत्ति निवेदेति, तस्सण पुरिसस्स बहवे अण्णे पुरिसा आवश्यक | दिण्णभतिभत्तवेतणा भगवतो पउत्तिवाउया भगवतो तद्देवासयं पउचिं निवेदिति । तेणं कालेणं तेणं समएणं दसण्णभद्दो राया बाहिरियाए उवहाणसालाए अणेगगणणायगदरणायगराईसरतलबरमाडंपियकोडंबियमंतिमहामंतिगणकदोवारियअमच्चचेढपीनियुक्तो 18/ ढमदनगरनियमसेडिसेणावतिसत्थवाहदुतसंधिपाल सद्धिं संपरिपुडे विहरति । तेणं कालेण तेण समएणं समणे भगवं महावीरे आदिकर तित्थकरे सहसंयुद्ध, पुरिसुत्तमे पुरिससीहे पुरिसवरपुंडरीए पुरिस॥४८० वरगंधहत्थी, लोगुत्तमे लोगणाहे लोगप्पदीवे लोगप्पज्जोतकरे, अभयदए चक्खुदए मग्गदए जीवदए सरणदए(चोहिदए), धम्मदए । | धम्मदेसए धम्मनायगे धम्मसारही धम्मवरचाउरंतचक्कवट्टी, दीवो ताणं सरणं गती पइट्टा अप्पडिहतवरनाणदसणधरे वियदृछदुमे अरहा जिणे केवली सचण्णू सन्नदरिसी सत्तुस्सेहे एवं जथा निक्खमणे जाव तरुणरविकिरणसरिसतिये अणासवे अममे अकिंचणे छिण्णगथे निरुवलेवे वबगतपेम्मरागदोसमोहे निम्गंथस्स पवयणस्स देसए णायए पतिट्ठावए समणगणपती समणगणवंदपरिवट्टए चोत्तीसयुद्धातीसेसपत्ते पणतीससच्चवयणातिसेसपचे आगासगएणं छत्तेणं आगासफलियामएणं सपादपीठेण सीहासणेणं सेतवरचामराहि उधुव्वमाणीहि२ पुरतो धम्मज्झएणं पकढिज्जमाणेणं अणेगाहिं समणअज्जियासाहस्सीहि सद्धिं संपरिखुडे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगार्म दूइज्जमाणे मुहंसुहेण विहरमाणे दसण्णपुरस्स नगरस्स चहिता उवणगरग्गामं उवगते नगरं समोसरिन तुकामे । तते णं से पउनि साहि कमममिरिसंसिताहि उप्पतिततुरियचवलमणपवणजइणसिग्धवेगाहिं विणीताहि सबहुगाहिं चेव कलितो णाणामणिकणगरतणमहरिहतवाणिज्जुज्जलविचित्चदंडाहिं वत्तीयाहिं नरपतिसरिससमुदयप्पमासणगरीहिं महग्धवरपट्टणुग्ग दीप अनुक्रम Ti४८० (486) Page #487 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मया पत आवश्यकचामा ENBE सूत्रांक नियुक्ती ॥४८॥ दीप ताहिं समिद्धरायकुलसेविताहिं कालागुरुपवरकुंदुरुकतुरुकवडसंतसुरभिमघमघेतगंधुद्धताहिरामाहिं सललिताहि उमओ पासिपि | चामराहि उक्खिप्पमाणाहिं सुहसीतलवातवीजितंगे मंगलजयसद्दकतालोए अणेगगणणायगजाबसपरिवुडे धवलमहामेहनिग्गते विवश चूर्णी | गहगणदिपंतरिक्खतारागणाण मज्झे ससिव्व पियदसणे गरवती मज्जणघराओ पडिणिक्खमति, २ जेणेव पाहिरिया उवट्ठाणसाला | उपोद्घात जेणेव आभिसेके हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छति, अंजणगिरिकूडसण्णिभं गयवर्ति नरवति दुरुढे । तते णं तमि तस्स दूरूढस्स समा णस्स तप्पढमताए इमे अट्ठ मंगलगा पुरतो अधाणु०, एवं महिंदज्झयदेवादिवज्जं जथा सामिस्स निक्खमणे जाव पुरिसवग्गुरा-1 परिक्खिचा दसण्णभहस्स रण्णो पुरतो य मग्गतो य पासतो व अहाणुपुबीए संपडिता, तते ण तस्स पुरतो महं आसा आसवारा जाव रहसंगल्ली अथा०, ततेणं दसण्णभद्दे राया हारोत्थयसुकतरइतवच्छे कुंउलउज्जोतिताणणे मउडदित्तसिरए परसीहे णरवती | गरिंदे णरवसभे मरुयरायवसभरायकप्पे अम्भहित रायतेयलच्छीए दीप्पमाणे हरिथखंधवरगते जाव से कोरंटमल्लदामेणं उत्तेणं | धरिज्जमाणेणं सेतवरचामराहिं उदुबमाणीहिं सबिड्डीए जाव सब्बारोहेणं सच्चपुष्फ जाय णिग्घोसणाइतरवेणं दसण्णपुर नगरं मज्झमझेणं जाव दसण्णकूडे पव्यते जणेव सामी तेणेय पहारेत्थ गमणाए। ततेणं तस्स तथा निग्गच्छमाणस्स सिंघाडगजाव |पहेसु बहवे अत्थस्थिता कामस्थिता जाव घंटियगणा ताहिं इटाहि कंताहिं पियाहिं मणुण्णाहिं मणामाहि मणाभिरामाहि ओरा लाहिं कलाणाहिं सिवाहि घण्णाहिं मंगल्लाहिं सस्सिरीयाहिं हिययगमणिज्जाहिं हिययपल्हादणिज्जाहिं अट्ठसतियाहिं अपुणरुत्ताह है। | मितमहुरगंभीराहि गाहियाहिं वग्गूहि अभिणदता य अभित्थुर्णता य एवं चयासी- जय जय गंदा! जय जय भद्दा! आजितं द जिणाहि जितं पालयाहि जितमझमि त वसाहित देवः सयणमझे, इंदो विव देवाणं चंदो विव ताराणं चमरो विव असुराणं धरणो| अनुक्रम (487) Page #488 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक विव नागाणं भरहो विव मणुयाणं अणहसमग्गो हट्टतुट्ठो परमाउ पालयाहि इट्ठजणसपरिवुडो बहूई चासाई बहूइ वाससयाई पहुई/मद्धया दशार्णभद्रः आवश्यकालवाससहस्साई दसण्णपुरस्स णगरस्स अण्णसिं च हूण गामागर जाव सण्णिवेसाणं राइसरसत्ववाहपभितीणं च आहेवच्च जाव र आणाईसरसेणावच्चं कारेमाणे पालेमाण रिहराहिचिकट्टु जयजयस पयुंजीत । तते ण से दसण्णभद्दे राया बयणमालासहस्सेहिं। नियुक्ती मान्धाताअभिथुज्वमाणे २ जाब दसण्णपुर नगर मझमझेणं जेणेव दसण्णकूडे पबत जाब तेणेच उवागच्छति, उबागच्छित्ता छत्तादीए | &ातित्धगरातिसए पासति, पासित्ता हस्थिरतणं विट्ठभेति २ ततो पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्चा अवहटु पंच रायककुधाई, त॥४८२॥1 खग्ग जाव वीयणीय, एगसाडिय उत्तरासंगं करेति, करेता आयते चोक्खे परमसुइभते अंजलिमउलियहत्थे सामि पंचविहण । अभिगमणं अभिगच्छति, तं- हस्थिविक्ख० जाब एगतीभावकरणणं, जेणेव सामी तेणेव उवागच्छति, सामि तिक्खुत्तो आटारिणा जाय करेति जाव तिवहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासह। तते ण ताओ मंगलावतिपामोक्खाओ देवीओ अंतपुरवरगताओ सतपागसहस्सपागेहि तेल्लाह अब्भंगिताओ समाणीओ सुकुमालपाणिपादाहिं हत्थियाहि चउबिहाए मुहपरिकम्मणाए संवाहणाए संवाधिया समाणा बाहुगसुभगसोवत्थियवद्धमाणगपूसमाणगजयविजयमंगलसतेहिं अभिथुम्बमाणी २ चउहि उदएहि मज्जाविया समाणा अंगपरालहितांगीओ महरिहभदासणे निविट्ठाओ कप्पितच्छेदायरियरइतगत्ताओ महरिहगोसीससरसरत्चचंदणाउपरिवण्णगातसरीराओ महरिहपडसाइपरिहिताओ कुंडलउज्जो- ४८२॥ लाविताणणाओ हारोत्थयसुकतरइयवच्छाओ मुद्दियापियलंगुलीओ आविद्धमणिसुवष्णमुत्ताओ पालंबपर्कबमाणसुकतपढउत्तरिज्जाओ कप्पितच्छेदायरियरपिअम्मातमल्लदामाओ गाणाविहकुसुमसुरभिमघमपितीओ महता गंधद्धणि मयंतीओ भोगलच्छिउवगूढसब दीप अनुक्रम . . (488) Page #489 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नियुक्ती दीप देहाओ बहूहि खुज्जाहिं चिलायाहि वडामताहिं वामणियाहि पप्परीहिं बउसियाहि जोणियाहिं पण्डवियाहि ईसिणियाहिं घर-1 कथा विम्याणियाहिंलासियाहिं देविलीहिं सिंहलीहि आरबीहिं पुलिंदीहिं पक्कणीयाहि पहलीहि मुरुंडी सबरीहिं पारसीहिं णाणादे-बादशाणभद्रः चूर्णी | सिवेसपरिमांडताहिं इच्छितचिंतितपत्थियवियाणियाहि सदेसणेवत्थगहितसाहिं विणीताहि चडियाचक्कबालवरिसघरकंचुइज्जमउपाधाताहयरगबंदगपकिनाओ अंतेउराओ निग्गछति २ जेणेव ताई जाणाई तेणेव उवागच्छति उवागच्छिचा जाव पाडिएक्कं २ जुग्गाई जाणाई दुरुहति २ नियतपरियाल साई संपरिखुडाओ नगरं मनमोण जाव सामेंतेणेव उवागच्छंति, छत्तादीए जाव पासिता ॥४८३॥ जाणादीणि चिट्ठभंति, तेहिं पच्चोरुभिचा पुष्फर्तयोलमादीयं पाहाणाउ पविसज्जेंति २ आयंता जाव पंचविहेणं अभिगच्छंति, तं०सच्चित्ताणं दवाणं विउसरणतार एवं जहा पुलिंब जाव एगत्तीभावेणं जेणेव से भगवं तेणेव उपागच्छति उवागच्छित्ता समणं भ०म० तिक्खुत्तो आदाहिणं पदाहिणं करेंति करेत्ता बंदति णमसति २ दसष्णभद्दराय पुरतो कार्ड ठिताओ चेव सपरिवाराओ | मुस्यूसमाणीओ भर्मसमाणीओ अभिमुहाओ य विणएण पंजलियडाओ तिबिहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासंति ।। तेण कालणं तेण समएणं सके देविंदे जाच विहरति ततेण दसण्णस्स रण्णो इमं एयावं अणुद्वितं जाणित्ता एरावणं हस्थिरायं सद्दावेतिरएवं वयासि-गच्छाहि णं भो तुम देवाणुप्पिया! चोवढि दंतिसहस्साणि विउबाहि,एगएमाए बोंदीए चोवहिं अह दन्ताणि अटु सिराणि विउमाहि,एगमेगे दंते अट्ठ पुस्खरिणीओ,एगमेगाए पुक्खरिणीए अटुट पउमाणि सलसहस्सपत्ताणि, एगमेगे पउमपत्ते IN ॥४८॥ दिवं देविति दिवं देवज्जुत्ती दिर्व देवाणुभागं दिवं बत्तीसतिविहं नविहि उबदसेहि, पुक्खरकणियाए व पासादबसगं, तत्था सक्के अढदि अग्ममहिसीहि सद्धिं जाय उग्गिज्जमाणे उपनच्चिज्जमाणे जाव पच्चप्पिणाहि, सेवि जाव तहेव करेति । तते ण से अनुक्रम (489) Page #490 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णां उपोद्घात नियुक्ती ॥४८४ ॥ 32333 *** 96% स “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्ति: [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सक्के हरिणेगमेसि सहावेति, सहावेत्ता एवं व० खिप्पामेव मे समाए सुहम्माए जोयणपरिमंडलं जथा उसभसामिस्स अभि- १ ऋदया सेगे जाव सामितेण उवागतो । ताहे एरावणविलग्गे चैव तिक्खुत्तो आदाहिणपदाहिणं करेति, ताहे सो हत्थी अग्गपादेहिं भूमीए ठितो, ताहे तस्स हरिथस्स दसष्णकूडे पव्वते पदाणि देवतप्पभावेण उडिताणि, ताहे से णामं जातं गयत्थपतउचि । दशाणभद्रः तसे दसणभद्दे राया पुण्वं निम्गते पासति सकस देविंदस्स दिव्वं देविडिं जाव एगमेगेसु णङ्कविधिं, सक्कं च देविंदं एरावणहत्थवरगतं सिरीए अतीव अतीव उवसोभमाणं पासति २ विहिते समाणे अणिमिसाए दिट्ठीए देहमाणे चिट्ठति, ततेणं तस्स रण्णो राइड्डी सकस्स देवरण्णो दिव्वेणं पभावेणं इतप्यभा जाव लुप्पप्पभा जाता यावि होत्था, तते णं सके देविंदे दसणभद्दरायं एवं बयासी हूं भो दसण्णभहराया ! किण्णं तुम न याणसि जथा - देविंद असुरिंदनागिंदवंदिता अरहंता भगवंतो, तथावि णं तव इमे अज्झथिए- गच्छामि णं भंते भगवं महावीरं वंदए जथा ण अण्णेण केणइ, गच्छतित्ति, ततेण से राया लज्जिते विलिए वेडे तुसिणीए संचिति, चिंतेति य—कतो एरिसी अम्हारिसाण हड्डित्ति ?, अहो कएलओ पेण धम्मो, अहमचि करोमि, भणति ( पइण्णा) पालणं च कतं होहितित्ति सव्वं पयहिऊण पव्वतो । एवं सामाइयं इडीए लम्भतित्ति । सकारण, एको धिज्जाओ तथारूवाणं थेराणं अंतिके सोच्चा पव्वहओ समहिलो उग्गं उग्गं पव्वज्जं करेति, नवरमवरोप्परं पीतिते ओसरति, महिला मणागं धिज्जाइणित्ति गव्यमुव्वहति, मरिऊण देवलोगं गताणि, जहाउग भुतं, इतो य इलावद्धनगर, तत्थ इला देवता, तं एगा सत्थवाही पुत्तमलभमाणी उवाणति, सो चइऊण पुत्तो से जातो, इलापुतो नाम कतं, कलाओ अधिज्जितो, इतरावि लंखगकुले जाता, दोषि जोनणं पत्ताणि, अण्णदा सो तीए रूवे अज्झोववण्णे, सां मग्गिज्जतीविण लम्भति, ता (490) ॥४८४॥ Page #491 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्कारण तामा लाल सत्राक भिमंति–जतियं तुलति तत्तियं देयो, ताणि भणति--एसा अम्हं अक्खयणिधी, जा नादि पर सिप्प अम्हेहि य समं हिंडति तो आवश्यक देमो, सो तेहिं समं हिंडात सिखिकतो य, ताहे विवाहानिमित्तं रण्णो पेच्छणयं करेहित्ति भणितो वेण्णातडं गताणि, तत्थ राया पेच्छति संतेपुरो, सो दरिसेति, रायादिट्ठी दारियाए उरि, राया ण देति, साधुक्काररावं बदृति, भणितो- लख! पडणं करेहि, उपोद्घाताते च किर वससिहरे अड्डे कहूं, तत्थ य दो खीलगा, सो पाउआओ आविधति, तत्थ य मूले विगिङगाओ, ततो असिखेडगहत्थगनियुक्ती तो आगासं उप्पतित्ता खीलगा पओगणालियाए पएसेतन्या सत्त अग्गिमोम्बिद्धे काऊणं, जदि फिट्टइ तो पडितोस तथा खंडिज्जति, दातेण तं कतं, रायावि दारियं पलोएति, लोएण कलकलो कतो ण य देति राया न देतिचि, राया चिंतेति-जदि एस मरति तो गं ॥४८५॥ | अहं लएहामि, भणति-न दिट्ठ, पुणो करहि, पुणोऽवि कर्त, तत्थवि न दिङ, ततियपि कतं, चउत्थियाए भणित, रंगो विरत्तो, | ताहे सो इलापुत्तो सग्गलए ठितो चिंतेति-धिरत्यु भोगाणं, एस राया एत्तियाहिं महिलाहिं न तित्तो, एताए रंगोवजीवियाए | लम्गित मग्गति, एताए कारणा ममं मारेतुमिच्छति, सो य उवडिओ, एगस्थ सेट्ठिघरे साहुणो पडिलाभिज्जमाणे पासति | सब्बालंकारविभूसिताहिं, साधू य पसन्तचित्तेण पलोएमाणे पासति, ताहे भणति--अहो धण्णा निःस्पृहा विसएसु, अहं सिद्विसुतो सयणं परिचइत्ता आगतो, एत्थवि एसा अवत्था, तत्थेव विराग गतस्स केवलणाणं उप्पण्णं, ताएवि चेडीए विरागो विमासा, अग्गमहिसीएवि, रणोवि पुणरावत्ती, चत्तारिवि केवली जाया सिद्धा य । एवं सकारेण । अहवा तित्थगरादीण देवासुरेहिं सकारं ठा दट्टणं जथा मरिहस्स । अहवा इमेहिं कारणेहि लभो अन्मुट्ठाणे विणए०१८-१६५।।८४८॥ अम्भुट्ठाणं आसणपरिच्चाओ, आसणत्थं वदित्ता विणएण पुच्छति, ताहे विणीउत्ति दीप अनुक्रम ARRAS ॥४८५|| (491) Page #492 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं . मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [८४८/८४८], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीनि सत्राक नियुक्ती 18 साधू कहेति, विणओ नाम अजलिप्रग्रहप्रणिपातादिः, परकमो परा (मा) क्रमतीति पराक्रमः, के च परे ?, कपायादयः, अथपा विनयाआवश्यक | साधुसमीब चंक्रमणेन, गमनेनेत्यर्थः, साहुसेवणा जत्थ ठिता तत्थ खणविखणं सेवति, एवं लभो सम्मदसणस्स परिएि मीसगस्स चूणौँ . माय । सीसो चोदेति एवं पाठोऽस्तु 'सम्मत्तस्स तु लंभो मुतचरणे देसविरतीए' अत्रोच्यते, मुतसामाइयं मिथ्यादृष्टेः सम्पग्स्टेव कारणान | भवति, चरित्राचरित्राणि तु नियमात् सम्यग्दृष्टः, अतः श्रुतसामायिकढषिध्याय तद्ग्रहणं म कृतं, अथवा (य) ग्रहणात्प्रत्येतन्य, SH स्थितिव &। अथवा सम्यगदर्शन यत्र तत्र नियमात् श्रुतसामायिक, कथं ?, उच्यते, जत्थामिणिपोहियणाणं तत्थ सुतनाण, अथवा आमिाण॥४८६॥ | बोहियनाणग्रहणे नियमा सुतग्गहणं कर्य, एवं जिणपण्णते सदहमाणस भावतो भावे । पुरिसस्साभिणियोहे सणसदो हवति 1 जुतौ ॥ १॥ कहंति गतं । इदाथि केचिरंति दार, तस्सेवं लद्धस्स केरिचर अपहाणी - सम्मत्तस्स सुतस्स २०१८-१६६१८४९। सम्मत्तस्स य सुतस्स य जहण्णेण अंतोष उफ्कोसण छावढिसामरोषमा | अहिता, जेण अणुत्तरेसु उक्कोसट्ठितिगो दो बारे होज्जा, इह य मणुस्साउगेण अधियाई, तं च तिष्णिा पुष्यकोडीओ वासपुहुत्ताणि |वा, चरित्तसामाइयस्स जहष्णेणं समओ, उक्कोसेणं पुवकोडी देखणा, विरताविरतीओ जहण्णण अंतोमुहुर्त, उक्कोसेणं देखुणा पुच्चकोडी, जेण एताणि एगभवग्गहणे, पढमपितिया णाणाभवग्गहणाणि, जेण 'इहभबिए भंते ! गाणे' आलावओ, इदार्णि कामाणाजीवाण भण्णति, तत्थ चत्तारिबि सब्बद्धं । इदाणि कतित्ति दारं--- कतिति संखा, एत्थ तिण्णि बिसेसा पुष्वपडिषण्णमा पडिवज्जमाणगा पडिपडितित्ति वा, पडिवत्तिओ य पुवपडिवण्णया पडिपडिता य हॉति तेण पडिवत्ती ताव भण्णति-संमत्तस्स देसविरतीए पढिबज्जमाणगा सिप अस्थि सिय गस्थि, जदि अस्थि PLASSES दीप अनुक्रम (492) Page #493 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [८४९/८४९-८५८], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत दीप श्री जहणेग एगो वा दो वा तिष्णि वा, उक्कोसेण खेलपलिओवमस्स असंखेज्जतिभागे जापतिया आगासपदेसा एवतिया एणसमएणं पिडिबज्जेज्जा, परिचाचरिचा सम्मदिट्ठी असंखेषजगुणा, सुतस्स सिय अस्थि सिव मस्थि, जदि अस्थि जहण्याणं एगो वा दो काव्या चूर्णी ही अतिण्णि वा उक्कोसेण लोगसेढीए असंखेज्जतिमागे जावतिया आगासपदेसा एषतिया एगसमएणं पडिपज्जेज्जा, कि कारणं', उच्यते, नासुबहुतरा सुख मिच्छादिहिस्स, चरिते सिय अस्थि सिय नत्थि, जदि अत्थि एगो वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं सहस्सपहुच है। परिवज्जेज्जा । इदाणि प्रव्यपडिवण्णगा संमचे चरिचाचरिते य, ते पूर्ण पष्टियनमाणएहितो निवमा असंखेज्जगुणा तेण असंखेन्जा ॥४८७॥ भण्णं ति, ते अहण्णपदेवि असंखेज्मा उक्कोसपदेवि असंखज्जा, जहण्णपदाओ उनकोसपदे बिसेसाधिया, ते पूण जाबविया एगसमएका पडिवज्जति ततो असेखेज्जगुणा, सुए जहण्णपदेवि उक्कोसपदेवि जावतिया पगस्स लोगागासपतरस्स असंखेज्जतिभागे लोगागास-II पदेसा एवतिया होज्जा, अहष्णपदाती उक्फोसपदे विसेसाधिका, ते पुण पडिवज्जमाणएहितो नियमा संखेज्जगुणा, पडिपडिता 31 हासंमत्तचरित्तस्स मीसगरस पजे पडिता से नियमा अनंतगुणा, जे संसारी ते सव्ये सुतपडिपडिता, कह, ने मिच्छदिड्डी अभवि गावा तेवि एक्कारसंगाणि पढ़ति, उतचंगमादि वा, जे पुण जहण्णपदाप्तो उकोसपदे अधिया ते चउत्यि सम्म पहुच, तदा बहवे ५. मणुया अजितसामियकाले । कतिसि दारं गतं ।। &ा दाणिं अंतरं, सम्मत्तम चरित्तस्स मीसगस्स एग जीवं पदच्च जहणणं अंतोगह उकोसेगं अपई परिपई देसूर्ण, सतस्सवि४ि८७॥ IPसम्मतपरिगहितस्स एचिरं, मिच्छसपरिणहितस्स जहण्णण अतोमुहर्न उकोसणं बणस्सतिकालो, णाणाजीवाणं णस्थि अतरं महावि-। देहं पाटुच्च । हवाणिं अविरहितंति दारं, फेच्चिर विरहितो पडिवचिकालो अविरहितकालो य, तत्थ अविरहितकालो पडिव अनुक्रम (493) Page #494 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात निर्युक्तौ ||४८८ ।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-], निर्युक्ति: [८४९/८४९-८५८] भाष्यं [१५०...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ज्जिन्ताणं सुतसामाइयस्स जहणणं दो समया उक्कोसेण असंखज्जसमए निरंतरं पडिवज्जेति तं पुण णाणाजीचे प्रति भण्णति, ते पुण समया आवलियसमयाणं असंखेज्जतिभागे, एवं चैव संमत्तदेसविरताचि, अविरहितकाले चरिते जहणेणं दोण्णि समया, उकोसेण अट्ठ समया निरंतरं पडिवत्ती । इदाणिं विरहितकाला संमत्तसुताणं - जहणणं एवं समयं उक्कासेणं सत्त अहोरता, एतंीम समए न लब्भति अवरो विधी, जंमि समए एगो वा अणेगा वा पडिवण्णा संमत्तसुत तातो जहण्णेणं ततिए समए एगस्स वा अणेगस्स वा अणगाण वा पडिवची, अजहरणेण चत्थे वा पंचमे वा उक्कोसेणं जाब सत्तमस्स अहोरत्तस्स चरिमो समओ, अतो परं नियमा अण्णेण पडिवज्जितव्यं, विरताविरतीए जहणेण ततिए समए, उक्कोसेणं बारसहं अहोरत्ताणं, चारचे जहणेणं ततिए समए उक्कोसेणं पण्णरस अहोरते, एवं विरहितकालो । _इदाणि कस कर भवाणि लंभो भवेज्जा ?, सम्मत्तस्स जहणणं एवं भवं, उक्कोसेण खेतपलितोवमस्स असंखज्जतिभागे जावतिया आगासपदेसा एवतियाणि भवाणि लंभो भवेज्जा, एवं देसविरतीरवि जहष्णुक्कोसा लंभो, चरिते जहण्णेण एक्कं भवं उक्कोण अड्ड भवरगहणाणि अविराधेन्तो, सुते जहणेणं उक्कोसेणं अनंताई, एक्कं जथा मरुदेवाए, सेसाणि जहा चित्ततरगंडियाए । इदाणिं आगरिसा, आकर्षणमाकर्षः, ग्रहणमोचनमित्यर्थः, ते दुविहा- एगभवग्गहणिया नाणाभवग्गृहणिया य, सुतसामाइयं एगभवे जहण्णेणं एक्कसिं आगरिसेति, उक्कोसेण सहस्स हुत्तवाराए, एवं सम्मचस्सवि, देसविरतीय विरईए य जहणेणं एक्कसिं उक्कोसेण सतपुहुत्तं वारा, णाणाभवग्गहणिता सुतस्स जहणणं दोणि उक्कासेणं तं चैव सहस्त्रपहृतं असंखेज्जएण गुणिजति, (494) २ सामायिक स्यान्तरं ||४८८॥ Page #495 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - गाथा-], नियुक्ति : [८४९/८४९-८५८], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 श्री आवश्यक चूणों उपोद्घात सत्राका ॥४८९॥ जम्हा पलितस्स असंखज्जतिभागमेत भया सम्मत्तपरिग्गहितस्स सामायिकस्स भोचिकाउं, जीप सम्मदिद्विस्स सुतसामायिक सामायिक तस्सवि एसेव कालो, ते पुण कह', एत्थ आलावओ-अस्थि णं भंते ! समणा निग्गंथा कंखामोहणिज्ज कम्मं वेदेति', हंता अस्थि, स्याकपा कहं णं भंते !०, गोयमा! तेसु तेसु पाणंतरेसु चरितंतरेसु लिंगतरेसु पवयणतरेसु पावयणतरेसु कप्पतरेसु मग्गंतरेसु मंगतरेसु णयन्तरेसु वादतरेसु पमाणंतरेसु संकिता कंखिता जाव कलुसमावण्णा वेदेति' एवं पुनकोडायू मणूसा पुणो २ पडिवज्जति । जोचि असंखज्जवासाउओ सोवि पुवकोडिसेसाउओ पडिवज्जति, तस्स नत्थि आगरिसा जो खइएण उववज्जति, एवं चरिशाचरित्तेवि, | चरिते णाणाभव० जहण्णेणं दोणि उक्कोसेणं सहस्सपुहुत्तं वारा, सुते णाणाभवम्गहणिता अणंता आगरिसा एवं। इवाणिं फासणा-11८-१७६ ॥ ८५९ ॥ स्पर्शना प्राप्तिरवगाहो लभ इत्यर्थः, संमत्तसामाइयपडिवण्णो उ जीवो लोगस्स कतिभागं फसेज्जा ?, कि संखेज्जतिभाग० असंखज्जतिभागं फुसति संखिज्जे भागे० असंखिज्जे भागे सव्वं लोग०१, एग जीवं 8 | पहुच्च णो संखेज्जहभाग फुसति, असंखेज्जहभागं फुसति, णो संखेज्जभागे फुसति, सबओ लोग वा फुसति, णाणाजीवेवि एमेव भयणाए सब्बलोगं फुसति, तं पुण केवलिसमुग्घातं प्रति, एवं चरित्तसामाइयस्सवि, छाउमत्थियसमुग्घायं प्रति एगजीवो वा सव्वजीवा वा नियमा असंखेज्जतिभाए लोगस्स फुसेज्जा, सेसेसु चउसुवि नत्थि, सुतं चरित्ताचरित्तसामाइयं च नियमा लोगस्स असंखज्जतिभागे भोज्जा, अण्णे पुण भणति-एगं जीवं पडुल्च संखेज्जतिभागं चा फुसति असंखज्जतिभागं वा संखेजे ॥४८९ वा भागे असंखज्जे वा० सबलोग वा, णाणाजीवे सब्बस्स लोगं फुसति, तं पुण केवालसमुग्घातं पढमविइयततियचउत्था मामा, ट्र वेयणादिमारणंतियसमुग्धायं प्रति पंचमभागो, केवलिसमुग्घायं प्रति अण्णतरो, एगो जीवो समोहण्णति वा ण वा, नाणाजीवाणं दीप अनुक्रम (495) Page #496 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.. श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात नियुक्ती ॥४९० ॥ "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि:) मूलं [- / गाथा-1, निर्युक्तिः [ ८५९/८५९] आयं [१५०...]] ..आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 - - पुण अवस्ससमोहतका अत्थित्तिकाउं, एवं चैव देसविरतिएवि णवरं सव्वलोगो णत्थि एवं सुतेऽचि सव्वलोके नात्थे, चरितं जथा सम्मतं, केवलिस्स दो सामाइयगाणि संमतचरिताणि, तेण लोको सच्चो मंगति, अहवा इमा अण्णा फासणविधी-लोको सचचोदसभागे कीरति हेड्डा, उबरिं च सत्त चैव, कहं १, रतणप्पभा जाब से उदासंतरं, एवं सव्वं पढमो भागो एवं सेसासुवि एते सच भागा, उवरिं इमा बिही-रतणप्पभाए उपरिमतलाओ आरम्भ जाव सोहम्मो एस पढमो भागो, सोहम्मगाणं विमाणार्ण उवरिं जब सुकुमारमाहिंदा बितिओ, एवं तितीओ बंभलोगलंतओ, चउत्थो महासुकसहस्सारो, पंचमो आणतादी, चउरो कप्पा छट्टो, गेवेज्जा सेसो जाब लोगतो सत्तमो एसा विधी, अहवा रतणप्पभादीपुढची सत्त पतराणि कता उबरुवरिं ठविता जथा चकतिरिविडी, सत्तमा किर लोगंत फुसति, एवं हट्ठावि, अहवा रज्जुविहाणेण सत्त भागा कीरंति, सर्वभूरमणसमुदयीविक्षमाणा रज्जुए सच अहोलोगो अधियाओ, उडलोगो ऊणओ होति रगणातो, तत्थ संमचरित पडिवण्णओ चोदसवि फुसति केवलिसमुग्धातं पच्च, देसविरतो पंच उपरि, समतचरितसहियसुतपडिवण्णओ सत्तवि फुसति, उवरिमो छउमत्थो जो सुतपडिवण्णओ इह समोहतो इलिकादिहतेण सम्बद्धसिद्धे उबवज्जति सो सत्त, सतमाए वा, ऊणा सत्त केवलसुतपडिवण्णओ, उवरिमगेविज्जे वा सम्मतसुतपडिवण्णओ उवर्र हेट्ठा य पंच, देसविरओ हेट्ठा ण उववज्जति तेणं पंच उवरिं अच्चुतं जा इति, एवं खेत्तजा फुसणा भणिता । इदाणिं एतेसिं चउन्हं सामाइयाणं कर्तारं सामाइयं केवइएहिं जीवेहिं पुढं १, पत्तपुष्वंति भणितं होतिचि, भष्णतिसव्वजीवेहिं० ॥ ८-१७७ ।। ८६ ।। सुतं मिच्छादिट्ठीवि लम्भति तेण सब्बजीयेहिं सुतं फासितं संमतं चरितं च सम्य (496) सामायिकबता स्पर्शना ॥४९० ॥ Page #497 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८६०/८६०], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 स्पर्शना पत श्री सत्राक चूणों ति सिद्धेहि फासिताई, जेण तेहि विरहितस्सणेवाणं णत्थि, जे पुण सिद्धा देसविरतिं फासेता सिद्धगतिं गता ते किनिया १, सबआवश्यक सिद्धा बुद्धिच्छेदेणं असंखज्जा भागा कता, ताण असंखज्जाणि ठाणाणि, तत्थ असंखेज्जेहि चेव ठाणेहि देसविरवि काउं ठाते-1 18|लया होज्जा, तेवि य पच्छा चरिच पडिबज्जिचा गता, जे पुण सुद्धाई चेव संमत्तचरिचाई फासेतूण गता ते देसविरतिसिद्धाणं उपोद्घातात असंखेजतिमागो । फोसणा गता। नियुक्ती इदार्णि निरुत्ती-निविता उक्तिः निरुक्ति, निरुत्ताणि किंनिमित्तं ?, उच्यते, असंमोहत्थं, यथा चन्द्रः शशी निशाकरः ॥४९१॥ उहपतिः रजनिकर इत्येवमादि।, आदित्यस्य सविता भास्करः दिनकर इत्येवमादीनि, एवं सर्वत्र योज्यते । यो हि शशिपर्याया भिन्नो भवति तस्य एकस्मिन् शशिपर्याये आकारिते सर्वेष्वेव प्रत्ययो भवति, न मुघति, एवं चतुण्णां सामायिकानां पर्यायाभिन्नः एकस्मिन् पर्याये आकारिते न मुद्धति, यथा सत्यपि प्रकाशकत्वे आदित्य इत्युक्ते नोक्तं भवति चन्द्रमा, चन्द्रमा इति वा नादित्य | | इत्युक्तं भवति, एवं श्रुतसामायिकमित्युक्ते नोक्तं भवति चरित्रसामायिक, चरित्रे वा श्रुतं सत्यपि सामाइकसामान्ये, एवमसंमोहार्थ निरुक्तावतारः । तत्र सम्यक्त्वसामायिकपर्याया: सम्मविट्ठी अमोह० ॥८-१७८॥८६१ ॥ सुतसा ॥ ८-१७९ ।। ८६२ ।। अवरसपणी ॥८-१८०।८६३ ॥ चरित्वे सामाइक समइयं०॥८-१८१ ॥ ८६४ ।। आदिल्लाणं तिण्हवि जथाविधाए विभासा कातवा, ततो चरिते तत्थ ताव | सामाइके उदाहरणं, जथा केण समभावो कतो? दीप अनुक्रम SCHITHKSCARASA 52218 ॥४९॥ का ...सामायिक शब्दस्य पर्याया: कथानकं सहितेन कथयते ...चूर्णि-संकलित नियुक्ति-क्रमांक (यहां चूर्णिमे जो नियुक्ति-क्रम दिये है वे वृत्तिमे दिये नियुक्ति क्रमांकन से आगे-पीछे है | (497) Page #498 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत दाहरणं सुना दीप तेणं कालेणं तेण समएणं हत्थीसीसयं नगरं, दमदन्ता राया विकतो, हत्थिणपुरे पांडवा, तेसिं च तत्थ य बेरं, तेहिं दमद-15 समभावे आवश्यक लन्तस्स रायगिहं गतस्स जरासंघमूलं सो विसओ दडो लूडिओ य, अण्णदा दमदन्तो आगतो, तेण हत्थिणपुर रोहितं, ते भएण दमदन्तोचूणा शण णिन्ति, भणति-सियाला! मम सुण्णयं विसयं लूडेह, इदाणिं णीह, ते ण णिन्ति, ताहे सविसयं गतो । अण्णदा निविण्ण-12 उपान्धाता कामभोगो पन्वइतो, अण्णदा एगल्लविहारं पडिवण्णो, विहरतो हत्थिणपुरमागतो, बाहिं च पडिमं ठितो, जुधिट्टिलेणं अणुजत्तानि ग्गतेण वंदितो, पच्छा सेसएहि चाह वंदितो पंडवेहि, जाहे दुज्जोहणो आगतो तस्स मणुस्सेहिं कहितं, जथा-एस दम॥४९२॥कदन्ता, तेण मातुलिंगेण आहतो, पच्छा खंधावारेण एतेण पत्थरं पत्थरं खिवतेणं पत्थररासीकतो, जुधिढिलो नियत्ता पुच्छेति एत्थ साधू दिट्ठो आसि, कहितं से जहा एसो सो पत्थररासीकतो दुज्जोहणेणं, ताहे अंबाडिओ सो, ते य अवणीया पत्थरा, *तेल्लेणं अम्भंगितो खामितो य । तस्स दिट्ठो किर भगवतो दमदन्तस्स दुज्जोहणे पंडवेसु वा समो भावो आसि, एवं कातव्वं। ____समइए-साकेते नगरे चंदवटेंसओ राया, तस्स धारिणी महादेवी, से दुवे पुचा-गुणचंदो मुणिचंदो य, गुणचंदो जुवराया, ला मुणिचंदस्स उज्जेणी दिण्णा कुमारमोत्तीए, अण्णे य दो पुत्ता अण्णाए देवीए, सो राया माइमासे पडिम ठितो सागारं करेति जाव दीवओ जलति, दासी चिंतेति-सामी पडिमं ठिओ, अंधकारे मा अभिमरो पविसेज्जा, पुणरवि तेल्लं दिणं, रितियं जाम जलति, ततिएवि दिण्णं, चउत्थे य दिणं, राया मुकुमारो निरामीभूतो मतो यं । पच्छा गुणचंदो राया जातो महताहिमवन्त, |सो ताणं डहरगाणं मातं भणति-रज्जं गेहह अहं पचतामि, सा णेच्छति एतेण रज्जं आतत्तन्ति, सो राया अतिजाणनिज्जाणेसुहै। X४९२॥ भरायलच्छीए अतीव दिप्पति, सा तं रायसिरिं पासित्ता चिंतेति मते पुत्ताणं रज्जं दिज्जतं न इच्छितं, तेवि एवं सोभन्ता, इदाणिपि अनुक्रम (498) Page #499 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूण उपोद्घात निर्युक्तौ ॥४९३ ।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्ति:+चूर्णि:) मूलं [- /गाथा - ], निर्युक्तिः [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [ १५९ ] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 मारेमि, छिदाणि मग्गति, सो य राया छुहाल, तेण सूतस्स संदेसओ दिण्णो-एतो मचैव पुव्यण्डितं पत्थवेज्जासि, जह विरावेमि, तेण अपितं चेडीय हत्थे, ताहे सा तं निज्जत पेच्छति, तं चेडि भणति दे पेच्छामि कैरिसो १, तीए उवणीतो, अहो सुरभी मोयगो विसलित्तेहिं हत्थेहिं मनखेचि, बेडी य णिप्फडति, राया अतीति, साणियत्ता रायाए समं चेतियघरं जाति, सा बारे अच्छति, निष्फिडंतस्स निवेदितं एत्तोत्ति, ते य दो कुमारा छायाव पासे ओलग्गंति, चिंतेति अष्ण अहं खाइस्स, एआणं यच्छामि, पच्छा तेसिं कुमाराणं भागे कातूण देति, ते हत्थिखंधवरगता खाइउमारद्धा बालत्तणेणं जाव विसवेगा आरद्धा, संभंतेणं वेज्जा सद्दाविता, सुवर्ण पाइता, सज्जा, पच्छा य दासी सद्दाविता, पुच्छिता भणति न कोति पेच्छति, नवरं एताणं माताएं परामुडो, सा सदाविता, जाता जहा एसा कारिच, ताहे अंबाडिता, भणिता य, जथा-पावे! तदा नेच्छसि मा णामकतसंबलो संसारे छूढो' होन्तो, तेसिं रज्जं दातूणं पव्वइतो सागरचंदाण समीवे। अण्णदा संघाडओ साधूर्ण उज्जेणीओ आगतो, सो पुच्छितो तत्थ निरुवसग्गं १, भणति णवरं रायपुरोहियपुत्तो य बाहेति पासडत्थे साहुणो य, सो गतो, अमरिसेण विस्सामितो, ते य संभोइया साधू, भिक्खवेलाए भणितो आणिज्जर, भणति अत्तलाभितो मि, णवरं ठवणपडिकुडाणि दावेह, कोह चेल्लओ दिष्णोः सो तं पुरोहितघरं दंसेत्ता आगतो, इमोऽवि तत्थ पविडो बढेणं सद्देणं धम्मलाभोति, अंतेपुरियाओ निग्गताओ हाहाकारं करेंतीओ, सो बडवणं सणं भणति किं एवं साविपत्ति, निग्गता बारं बाहिं बंधंति- इमोवि अभ्यंतरे, ते भयंति--नच्चसु, परिग्गाहगं ठवेत्ता पणच्चितो, ते ण जाणंति वाएउं, भणति जुज्झामो, दोषि एकसराए आगता, मम्मेहिं आहता, जहा जंताणि तथा खलाविया, निसडुं हणि तूर्ण दाराणि उग्वाडेचा गतो, उज्जाणे अच्छति, रामाए कहितं तेण मग्गावितो, साधू भणंति- पाहुणओ, न याणामो, तेहिं गवे (499) समतायां मेतार्यो - दाहरणं ॥४९३॥ Page #500 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 समताया पत मेतार्यों दाहरणं श्री संतेहि उज्जाणे ठितो (दिट्ठो), राया गतो, खामितो य, नेच्छति मोत्तुं, जदि पव्वयंति ततो मुयामि, ताहे पुच्छति, पडिस्सुयं, आवश्यक चूर्णी | एगत्थ गहाय चालिया जहा सट्ठाणे पडियाणि, लोओ कओ, पब्बइया, रायपुत्तो सम्मं करोति-ममं पितियएति, पुरोहितसुतो दुउंछात-अम्हे एतण कवडेण पब्वाविता, दोवि मता, गता देवलोग, संमारं करेंति-जो चयति पढमं सो संबोधितव्यो, पुरााहतसुता उपोद्घात हा नियुक्ती तीए दुगुंछाए रायगिहे मेतीपोई आगतो, तीस एगा सेट्टिणी वयंसिया, किह जाता ?, सा मसं विकिणति, ताए भण्णति-मा अण्णत्थ हिंडाहि, अहं सव्यं किणामि, दिवे दिवे आणति, एवं तासि पीती घणा जाता, तेसिं चेव घरस्स समोसितााण ठिताणि, ॥४९४|| सा य संहिणी शिंद, वाहे मतीए रहस्सिय पवावती, से पुत्तो दिण्णो, इतरीएवि धृता मतिया दिग्णा, पच्छा साहणाए पादसु पाडिओ तवप्पभावेण जीवउ, तेण से नाम कतं 'मेतिज्जोति, संवड़ितो, कलाओ गाहितो, देवेण संघोहितो, न संयुज्झति, ताहे अट्ठण्डं इन्भकण्णगाणं पाणि गेण्हाविओ, सिवियाए नगरे हिंडति, देवो मेतं अणुप्पविठ्ठो, जदि ममवि धूता जीवंती तीसवि अज्ज विवाहा को होन्तो, मत्तं च नातगाणं दिणं होतं, ताहे ताए मेताए सिह, ताह रुट्ठा दवाणुभावण गतुं सिविताए पाडितो, भणितो तुमं असरिसीओ परिणेसित्ति खट्टाए छडो, ताहे देवो भणति-किह , सो भणति-अवण्णोति, तत्थ संबुद्धो भणति-एचो में मोरहि, किंचि य कालं अच्छामि, बारस परिसाण, तो भण-किं करोमि ?, भणति-रण्णी धूतं दयाचेहि, तो सव्या अकिरिया ओहाडिया भविस्सतित्ति, ताहे छगलओ दिण्णो, सो रतणाणि वोसिरति, तेण रतणाण थालं भरितुं पितु कहिओ-रण्णो धूतं वरेति, सो रतणाण थालं गहाय गतो, भणितो कि मग्गसि ?, तेष मणित-धूतं, ताहे निच्छुडो, एवं दिक्से लं गेहति, ण य देति, अभएण भणितं -कतो तुज्य रतणाणि ?, तेण भणितं छगलओ हगति, भणति-अम्हवि दिज्जतु, दिष्णो दीप अनुक्रम % 2 ॥३९४॥ (500) Page #501 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत सत्राक दीप जाव मडगगंधाणि बोसिरति, अभयो भणति-देवाणुभावो, किं पुण!, परिक्खिज्जउ, किह?, ताहे भणितो-राया दुक्खं वेहारं सामी-18 समतायां आवश्यक चूणौं ल GIVIदओ जाति, रहमग करेहि सो कतो, अज्जवि दीसति, भणति-पागारं सोचणं करेहि, कतो. पुणोवि भणितो. देमो जदि समुह आणेसि, तत्थ पहातो सुद्धो होहिसि तो देहामो, आणीतो, वेलाए हाताणं विवाहो, सिषिगाए हिंडताणं ताओवि अण्णाओ | न आणियाओं, एवं भोगे भुंजति बारसबरिसाणि, पच्छा बोहितो महिलाहिं बारसवरिसा मग्गिता य, चउम्धीसाए वासेहिं सवाणि | पव्ययाणि, नवाधिओ जाव एगल्लविहारं पडिवण्णो, नत्थेव रायगिहे हिंडति, एगं सुबष्णगारगिह मिक्खस्स अतिगतो, सो य ॥४९५॥ सणियस्स अडसतं सोवणियाण जवाण करेति चतियअच्चणितानिमित्तं, ते परिवाडीए सेणी करेति तिसझं, तस्स गिह साधू ★ अतिगतो, ताणि तस्स एगाए वायाए भिक्खं ण णीति, सो अतिगतो, ते य जबा कोंचएण खइता, ण य पेच्छति, रण्णो य बेला दुकति, भणति-अज्ज अहं अद्वखंडाणि कीरामि, सो साहुं संकति, पुच्छति, साधूचि तुहिको अच्छति, ताहे तेण रुद्रुण तस्स दासीसावेढो बद्धो, साह केण महिता, तहवि तुहिको अच्छति, ताहे तेण तथा आढवितो जथा अच्छोणि भूमिए पडिताणि, कोंचओ भय दारुगं खोडेंताणं सलिकाए गलगे आहतो, तेण वंता, लोगो भणति-पात्रा! एते ते जवा, सोवि भगवं तं वेदणं अधियासेतो ४/ कालगतो, सिद्धो य, लोगो आगतो, दिडो मेतज्जो, रण्णो कहितं, वझाणि आणत्ताणि, घरं ठएत्ता पव्वइताणि, ताहे भणतिलाधम्मलाभो सावगा, मुकाणि, भणिताणि य-जदि उपब्बयह तो भे कवहीए कड्लेमि । एवं सामाश्य अप्पए य कत परे य क । |॥४९५॥ सम्यग्बादो संमावादो-तुरुविणी नगरी, जितसनू राया, तस्स मज्जा विजातिगिणी, पुत्तो सो य दत्तो मामओ, अज्ज& कालओ माउलओ तस्स दचस्स, सो य पवइओ, सो य दत्तो जूयपसंगी ओलग्गिउमारद्धो, पधाणदंडो जातो, कुलपुत्तए अनुक्रम * (501) Page #502 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सत्रांक श्री या पर्भिदिचा राया धाडितो, सो राया जातो, जण्णा गेण बदू जट्ठा । अण्णदा त मामयं पेच्छतितुं रुहो भणति-धम्म सुणेमित्ति, 18[सम्यग्वादे आवश्यक जण्णाण किं फलं ?, सो भणति- किं धम्म पुच्छसि ?, धम्म कहेति, पुणोवि पुच्छति, नरगाण पंथं पुच्छसि., अधम्मफलं सा-16 कालका गुणा हति, पुणोवि पुच्छति, भणति- असुभाणं कम्माणं उदयं पुच्छसिी, तं परिकहेति, पुणोषि पुच्छति, ताहे रुठो भणति-निरया चाया भावाला फलं जण्णस्स, सो रुट्ठो भणति-को पच्चतो, जथा तुम सचमे दिवसे मुणगकुंभीपाके परिचहिसि, को पच्चतो, जथा तुम्भ सत्तमे दिवसे सणा मुहंमि आतिगच्छिहिति, ताहे रुहो भणति- तुझं का मच्चू!, सो भणति-अहं मुचिरं काल पञ्चज्जं कातुं ॥४९६॥1 दियलोगं गच्छामि, वाहे रुहो भणति- रुंभह, ते दंडा तस्स निविण्णा, तेहिं सोच्चेव राया आवाहितो- एहि जा ते एतं पंधि त्ता अप्पेमो, सो य पच्छण्णे अच्छति, तस्स दिवसा विस्सरिता, सो सत्तमदिवसे ते रायपहे सोधाविय मणुस्सेहि य स्कूखावेति, IMI एगो य देउलिओ पुप्फकरडगहत्थगतो पच्चूसे पविसति, सो सण्याइओ वोसिरिता पुप्फेहि ओहाडेति, रायावि सत्तमे दिवसे पएR आसचडगरेण जाति तं समणगं मारेमि, वोल्लितो जाति जाव अण्णण आसकिसोरेण सह पुष्फेहि उक्खिविता खुरेणं पादो3 लाभूमीए आहतो, सण्णा तस्स मुहं अतिगता, तेण णातं जथा सच्चं मारिज्जामित्ति, ताहे दंडाणं अणापुच्छाए णियतिउमारद्धो, ते दंडा जाणंति- पूर्ण रहस्सं भिन्न जाब घरं न जाति ताव गं गेण्हामो, तेहिं गहितो, इतरो राया जातो, ताए कुंभीए सुणए छुभित्ता वारं बद्ध, हेट्ठा अग्गी जालितो, ते ताविज्जंता खंडखंडेहिं छिदति, एस समाचादो कालगज्जस्स ॥ __ समासो-एगो धिज्जाइओ पंडितमाणी सासणं खिसति, सो वादे पतिण्णाए उग्गाहेतूण पराइणिचा पब्वावितो, पच्छा देवता | ॥४९६॥ देतस्स उवगतं, दुगुंछ न सुचति, सण्णायगा से उपसंता, अगारी से णेहं ण छड्डेति, कमणं दिण्णं, किह मे बसे होज्जा ?, मतो, दीप अनुक्रम रद्धं, हेडा, (502) Page #503 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 तनयः दिदेवलोगे उबवण्णो, सावि तंनिब्वेदं पव्वइता, अणालोइया चेव कालं कातूण देवलोग उववण्णा, ततो रायगिहे धणो सत्यवाहो, पंच से पुत्ता, सुसमा त, चिलातिया दासी, तीसे पुत्तो चिलायगो मुसमाए बालगाहो, सो अगाडियाओ करेति, ताहे बिल्दो, चिलातियह सीहगुहं चोरपल्लि गतो, तत्थ अग्गप्पहारी य नेसंसो य जातो, सो य चोरसेणावती मतो, सो सेणापती जातो। अण्णदा चारे | उपोदयात भणति-रायगिहे धणसत्थवाहस्स परं हणामो, तुम धणं मम सुसमा, एवं ते ओसोवणि दातुं अतिगता, नाम सावेत्ता शंसह पुत्तेहिं। नियुक्ती ओससित्ता तेवि घरं पविसिता चेडिं च गहाय पधाविता, धणेण णगरउचिया सहाविता, मम धृतं नियत्तेह, तुम्भं धणं, तेईि चिोरा भग्या, लोगो धर्ण गहाय नियत्तो, इतरोवि पुत्तेहि समं चिलाइतगं नातं सुसुमं गहाय पिट्ठओ लग्गति, एत्य इहंवि॥४९७|| | (दूरपि)जाहे चिलाओ न तरति सुसम बहितुं इमेवि आसण्णा ताहे सुसमाए छिदित्वा तं सीसं गहाय पट्टितो, इतरवि धाता निय ता, छुहाए य परिताविज्जति, ताहे धणो पुत्चे भणति ममं मारेत्ता खाह वाहे णगरं वच्चह, ते णेच्छंति, जेट्ठो भणति-ममं स्वाहा ला एवं जाव डहरओ, ताहे पिता से मपति- मा अण्णमण्णं मारेमो, एवं चिलायएणं ववरोवितं सुसुमं खामो, एवं ते आहारिता पुची मंस एवं साधूस्सवि आहारो पुत्तमंसोवमो कारणिओ, तेणं आहारण गता नगर, पुणरवि भोगाणं आभागी जाता, एवं सावि 121 | नेव्याणमुहस्स सोनि चिलातओ तेण सीसेण इत्थकतेणं दिसीमूढो जातो जाव एग साधु आतावेंतं पेच्छति, तं भवति-मर्म संख-18 वेणं धर्म कहेहि, मा एवं सीसं पाडिस्सामि, साधुणा भणितो- उबसमो विवेगो संवरो, सो एताणि पदाणि गहाय एमंतं गतो, ४९७।। तत्थ चिंतेतुमारद्धो-उवसमो कातब्बो कोधादीण, अहं च कुद्धओ, विवेगो धणसयणस्स, ताहे तं सीसं असि च एडेति, सबसे इंदिओ नोईदिओ य, एवं झायति जाव तं लोहितगंधण कीडियाओ खाइतुमारद्धाओ, सो ताहि जथा चालणी तथा कतो पादसिराहि दीप अनुक्रम (503) Page #504 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं , मूलं गाथा-], नियुक्ति: [८६१-८६४/८६१-८७६], भाष्यं [१५१] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 संक्षेपान पत वयोः तपस्वि सूत्रांक 18 जाव सीसकरोडी ताव गताओ अढाइज्जेहिं राइदिएहि काल किच्चा सहस्सारे उववष्णो । आवश्यकता संखेबो-चत्तारि पालतवस्सी सतसहस्से गथे काउं जियसत्तस्स उदिता, अम्ह सत्याणि सुणेहि, तुम पंचमो लोगपालो, तेणाटा चूर्णी | मणितं केत्तिय, ते भणंति-चचारि संधिताओ सतसहस्साओ, सो भणति-एच्चिरेणं ममं रज्जं सीदति, एवं अद्धं उसरंतं जाव धर्मरुचय: नियुक्ती वाद एकेको उ सिलोगो, तंपि णत्थि, ताहे चतुष्हंवि एगो सिलोगो-जिषणे भायणमत्तेओ, कविलो पाणिणं दया । विहस्सतीरविस्सासो, |पंचालो स्थीसु महवं ॥१॥ एवं चेव इमं सामाइयं चोदसई पुष्वाणं संखेयो। ॥४९८॥ अणवज्जे-बसंतपुर नगरं, जितसत्तू राया, धारिणी देवी, तेसिं पुत्तो धम्मरुयी, सो राया थेरो जातो, अण्णदा ताव सोग | पब्बाइनुकामो धम्मरुहस्स रज्जं दातुमिच्छति, सो मातरं पुच्छति-कीस रज्ज पजहति, सा भणति एतं संसारचंधणं, सो भणति ।। ममवि न कज्ज, ताहे सह वेण पिता तायसो जातो, तत्थ अवमासाए गडओ उग्पोसेति समे-कालं अमावसातो पुष्फफलाणं 8 संगई करेह, कालं छिदितुं न वद्दति, सो चिंतेति जदि सब्बकालं न छिदेज्जा तो सुंदरं होज्जा, अण्णदा साधू अमावासाए तावसा समस्स अदूरेण वोलेंति, ते धम्मरुती पेच्छति, · ताहे भणति-भगवं! तुम्भ अणाउड्डी णस्थि तो अडवि जाही, तेहि भणितं-अम्हं सजावज्जीवमणाउली, सो संभंतो चिंतउमारद्धो, साधुवि गता, जाति संभरिता, पत्तेगबुद्धो जाती। सोऊण अणाउट्टी०। ८-१९६ ।। ८७७ ।। अणंत कम्मं तस्स भीतो अणवज्ज-अगरहितं धंममुवगतो धम्मरुई । परिण्याए । द इलापुत्तो, सो जथा हेडा, परिजाणितूण जीवे०1८-१९७।। ८७८॥ जाणणापरिणाए णाता पच्चक्खाणपरिणाए पच्चक्खाता सावज्जजोगकरणं परिजाणति से इलापुत्तो । दीप Con अनुक्रम ॥४२ (504) Page #505 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम H अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता श्री आवश्यक चूर्णी उपोद्घात ॥४९९॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र- १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्तिः [८७७-८७८/८७७-८७९], भाष्यं [१५१...] मूलं [- /गाथा ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 इदाणिं पचवण्याने तेतलिपूरं नगरं कणगरहो राया, परमावती देवी, राया भोगलाभो पुते जाते २ वियंमेति तेवलि अमच्यो, कलारो मूसियारे सेट्ठी, तस्स धूता पोडिला, आगासतलए दिट्ठा, मग्गिता लद्धा य, अमचं पउमावती य भणति - एगं कुमारं किवि सारक्ख, तो तब मम भिक्खाभायणं भविस्सति, मम उदरे पुत्तो, एवं रहिस्सगं सारवेमो, संपत्तीय पोडिला य देवी य समं चेव पचता, पोडिलाए दारिया देवीए दिण्णा, कुमारो पोट्टिलाए, संवति, कलाओ य गेण्हति । अण्णदा पोडिला तेतलिस्स ४ अा जाता, नामवि ण गण्डति, अण्णदा पव्वश्याओ पुच्छति -अस्थ किंचि जाणह जेण अहं पिता होज्जा, ताओ भांति अम् एतारिंसं न वहति, ताहे से धम्मो कहितो, सा य संवेगमावण्णा, आपुच्छति - पय्वयामित्ति, सो भणति संगोहेज्जासि ताए अभिसितो, स्मृतं सा सामण्णं कातृणं दियलोगं गता । सो राया मतो, ताहे तं कुमारं पउरस्स दंसेति रहस्तं च दि ताहे कुमारमाता भणति - तेवलिस्स सुद्ध बट्टेज्जा, एतस्स प्रभावेण संसि जातो, तस्स णामं कणगज्झओ, ताहे सो सध्यगतो जातो, देवो तँ संबोहेति, न संयुज्झति, ताहे रायाणगं विष्परिणामेति, सो तं णो आढाति, बीधीरवि न कोई आढाति, बाहिरियावि परिसा दास पेसादिगा जाव अभंतरिगावि पुत्तसुण्डादिगा, एवं चैव विपि न लभति, ताहे विसण्णो वालपुडगं विसं खाति, न मरह, कंको असि खंधे नस्सति, सोषि न छिंदति, बेहास करेंतस्स रज्जु छिष्णो, पच्छा पाहाणं गलए बंधिता अत्थाहं पाणियं पविडो, तत्थवि थाही जातो, ताहे तणकूडे अरिंग दातुं पविट्ठो, तत्थवि न उज्झति, ताहे अडविं पविसति, तत्थ पुरतो छिष्णगिरिसिहरकंदरप्पवाते पितो कंपेमाणेव्व मेदिणितलं आकतव्य पादवगणे विफोडेमाणेव्य अंबरतलं सव्वतमोरासिव्य पिंडिते पच्चक्खमिव सर्व कर्तते भीमे भीमारखं करेंते महाचारणे समुट्ठिते, दोसु चयखनिवातेसु पयंडधणुजुत्तविष्यको पुंखमेचबसेसा धरणितलपवेसाणि (505) प्रत्याख्याने तेलीपुत्रः ॥४९९४ Page #506 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८७७-८७८/८७७-८७९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों श्री 15 सराणि पतति, हुतवहजालासहस्ससंकुल समततो पलित्व धगधगेति सव्वारणं, अहरुम्गतबालसूरगुंजद्धपुंजनिगरप्पगासं झियाति प्रत्याआवश्यकता इंगालभूतं गिह, ताहे चिंतति-पोटिला जदि मे नित्थारेज्जचि, एवं वयासी-आउसो पोट्ठिला! आहता आयणाहि, ततेणं सा पोट्टिलाख्यान पंचवण्णाई सखिखिणीयाई जाव एवं वयासी-आउसो तेतलिपुत्ता ! एहि ता आदाणाहि, पुरतो छिण्णगिरिसिहरकंदरप्पवाते तं ततलापुत्रः उपोद्घातला नियुक्ती चेव जाव इंगालभूतं गिह तं आउसो तेतलिपुत्ता ! कहिं वयामो, ततेणं से तेतली एवं वयासी-सद्धेत खलु भो समणा वयंति, सद्धेयं दाखलु भो माहणा वयंति, अहमेगो असद्धेयं वदिस्सामि, एवं खलु अहं सह पुत्तेहिं अपुत्तो को मे तं सद्दहिस्सति,एवं सह मित्तेहिं० ॥५००॥ सह दारेहिं० सह वित्तेण०, सह परिग्गहेण सह दासेहिं जावदाणमाणसकारोवयारसंगहिते तेतलिपुत्तस्स सयणपरियणेवि तर्ग गते को मे ते स०१, एवं खलु तेतलिपुत्ते कणगझतेणं अवज्झातके को मे तं स० कालकमणीतिसत्यविसारदे तेतलिपुत्ते विसाद गतेति को मे तं स०१, ततेणे तेतलिपुत्तेणं तालपुडे विसे खइते सेवि य पडिहतेत्ति को मे तं स०१, एवं असी बेहासे जले अग्गी जाव रण्णेवि पुरतो पवाते एमादि को मे तं सद्दहि०१, जातिकुलरूवविणओवयारसालिणी पोट्टिला मुसिकारधूता मिच्छं विप्प|डिवण्णा को मे तं सद्दहिस्सति ?, ताहे पोटिला भणति-एहि ता आदाणाहि, मीतस्स खलु भो पच्चज्जा ताणं, आतुरस्स भेसज्ज किच्चं अभिउत्तस्स पच्चयकरणं संतस्स वाहणीकच्चं महाजले वाहणकिच्चं माइस्स रहस्सकिच्चं उठितस्स देसगमणकिलचं छुहितस्स भोयणकिच्चं पिवासितस्स पाणकिच्च सोहातुरस्स जुवतिकिच्च परं अभियुजितुकामस्स सहायकिच्चं खंतस्स देतस्स गुत्तस्स जितेंदियस्स एतो एगमवि न भवति । सु? सुट्ट तण्णं तुम तेतलिपुत्ता! एवमहूँ आदाणाहिचिकटु दोच्चपि तच्चपि एवं ५००॥ वयति, वयेत्ता जामेव तामेव पडिगता । ततेणं तस्स अण्णं चितमाणस्स सुहेण परिणामेणं जाव जातिस्सरणे समुप्पण्णे-एवं खलु अहं दीप अनुक्रम (506) Page #507 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८७७-८७८/८७७-८७९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप जंबुद्दीवे दीवे महाविदेहे पुक्खलावतिमि पुडरीगिणीए महापउमे णाम राया होत्था, थेराणं अतिके पव्वतिते सामाइयमादीयाईतिलिसुतोआवश्यक चोदस पुब्बाई अहिज्जिता बहई वासाई सामण्णपरियागं पाउाणिचा मासियाए सलेहणार आलोइयसमाहिपत्त कालं किच्चा महा-II दाहरणं सुक्के कप्पे देवताए उववण्णे, ततेणं ताओ चइत्ता इहेब जंबुद्दीवे भरहे तेतलिपुरे तेतलिस्स अमचस्स दारके जाते, त सेतं खल सूत्रस्पर्शि पुचि दिवाई सतमेव उवसंप्पज्जित्ताणं विहरिचएचिकटु तहेब करेति करेचा जेणेष पमदवणे तेणेव उ०२ असोगपादवस्स अहे, काद्याः IPIसुहनिसने, तत्थ अणुचिन्तेमाणस्स पुन्याधीताई चोद्दस पुवाई सतमेव अभिसमण्णागताई, ततेण से सुहेणं जाव केवली जाते, ॥५०॥ अथासाणिहितहिं देवेहि महिमा कता, इमीसे कहाए लढे कणगज्झए माताए समं निग्गते सब्बिड्डीए, खामेति, धम्मे कहिते ४ M सावगे जाते जाव पडितागते, भगवंपि तेतली अज्झयणं भासति जथा-कों के ठावेति', गण्णत्थ सगाई कम्माई, एवमादि जहा है रिसिभासितेसु, पच्छा सिद्ध, एवं तेण पच्चक्खाणेण समता कता सावज्जजोगा परिण्णाता। निरुत्तिदारं गतं । एवं च दारविही मतो । गता य उवग्घातनिज्जुत्ती॥ | इयाणिं सुत्तफासियनिज्जुची इच्छावेति, जा सुतं फुसति निज्जुची सा सुत्तफासियनिज्जुत्ती भन्नति, असति य सुचे सा किंI 18 फुसतु, तेणं सुख उच्चारेयव्यं पच्छा फसिस्सति तेण सुत्त०, तं चेव भवति । तत्थ य मुत्ताणुगमस्स अवतारो, एत्थ य सुत्ताणुगमो ला सुत्तालावगनिष्फलो निक्खवो सुत्तफासितनिज्जुत्ती य समयं गच्छति, कह, जदा संथिता सब्बा उच्चारिता भवति तत्थ सो&|५०१॥ सुत्ताणगमो, जो पदे छिदिऊण अत्थो भन्नति, जो पदं पदेण णामादीहिं निक्खिप्पति सो सुत्तालाबगनिष्फण्णो निक्लेवो, सो चेव जदा निज्जुत्तीए वित्थारिज्जति तदा सुत्तफासियनिज्जुत्ती, सुत्ते य अणुगते सुत्तालावगनिफनो निक्लेवो सुत्तफासिय-४ अनुक्रम अत्र उपोद्घात-निर्युक्ति: समाप्ता:, अथ सूत्रफ़ास-नियुक्ति: आरभ्यते (507) Page #508 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ||५०२|| “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 निज्जुती य भवति, तम्हा सुतं अणुगंतव्यं । तं च पंचनमोक्कारपुच्वं भणति पुव्वगा इति सो व ताव भइ, सो य इमेहिं एकारसदारेहिं अणुगंतव्यो, तंजा उपपत्ती निव० १९-११८८७ तत्थ पढमं दारं उप्पची, उत्पाद उप्पत्ती, उत्पादनमुद्धृतिरित्यर्थः, तत्थ नमोकारो किं उप्पन्नोऽणुप्पनोचि, एत्थ नयेहिं मग्गणा, केइ उप्पन्नं इच्छेति केह अणुप्पन, नया य पुण्बभणिता सच गमादी मूलणया, तस्थ गमो अणेगविहो, तत्थ आदिणेगमस्स अणुष्पन्नो नो उप्पन्नो कहे ?, जहा पंचत्थिकायाणि वा, एवं नमोकारोवि न कयाइनासी ३ ण एस ताब के उप्पाइएत्तिकट्टु, जदाबि भरहेरवएहिं बोच्छिज्जति तदावि महाविदेहे अवोच्छिती, तम्हा अणुप्पन्नो, च पुण ?, कम्म भूमीसु रिसादिभाव उप्पन्नो कहं उप्पन्नोत्ति १, तिविहेण सामिण समुत्थाणसामिचेण वायणासामित्तेण लासामिचेण एत्थ को गयो के उप्पत्ति इच्छति ?, तत्थ जो पढमवज्जा णेगमा संगहो वबहारो य ते तिबिहंपि उप्पत्ति इच्छति, समुद्वाणं नाम समं आयरियादीण उपस्थापनमित्यर्थः तेन, वायणाए वायणायरियणीसाए, जहा भगवता गोयमणसामी वायितो, लद्धी जहा भविकस्स, अभविकस्स गत्थि, उपदेसमंतरेणावि भविकस्स किंचि निमित्तं लडूण णमोकारावरणिज्जाणं कम्माणं खयोवसमेणं नमोकारलद्धी समुप्पज्जति, जहा सयंवरमणसमुद्दे पडिमासीठया साहुसंठिया य मच्छा, पउमपत्तावि, सवाणिवि किर संठाणाणि अत्थि, मोचूण वलयं संठाणं, एरिसं णत्थि जीवस्सेति, ताणि सेठाणाणि दद्दण कस्सति णमोकारलद्धी भवति, उज्जुगुतो पढमं समुत्थाणं गच्छति, किं कारणं १, जतो से समुद्राणेवि सति वायणालद्धिमंतरेण ण उप्पज्जति, तेण दुविहं वायणा नमस्कारे उत्पन्नद्वारं (508) ॥५०२॥ मू. (१) नमो अरिहंताणं, नमो सिद्धाणं, नमो आयरियाणं, नमो उवज्झायाणं, नमो लोए सव्वसाहूणं एसो पंच नमक्कारो, सव्व पावप्पणासणो, मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं •••मूलसूत्र -(१) "नमस्कार सूत्र” हमने पूज्यपाद आचार्य सागरानंदसूरीश्वरजी संपादित "आगममंजुषा" पृष्ठ १२०५ के आधार से यहां लिखा है | ••• अत्र नमस्कार-निर्युक्ति आरब्धः Page #509 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक द्रमका र सामि लद्धिसामिनं च, तिषिण सद्दणया लद्धिमिच्छति, जेण समुट्ठाण वायणाए य विज्जमाणे अभविगस्स ण उप्पज्जति, लद्धि-AT उत्पन्नद्वारे निक्षेपाः व्याख्यायामा अभावात् । एवं उप्पण्णस्स वा अणुप्पण्णरस वा दार । णिक्वेबो स्थापना न्यास इत्यनर्थान्तरं सोणिक्खेवो चतुविधो-णाम-ना ब्यणमोकारो, णामट्ठयणा गताओ, दवणमोकारो जाणगसरीर भबिय० वतिरित्तो, दब्बणमुकारो दब्बणिमित्तं दब्बभूतो वा अणु- नमस्कारे ॥५०३| बउत्तो वा जे करति, अहवा णिहगादीणं, उग्घट्टओ वा दव्वणमोकारो, णिण्हगआदिग्गहणेणं बोडिगा आजीविगा य मूयिता। का तत्थ दवणमोकारे इमं उदाहरण वसंतपुर नगर, जियससू राया, धारिणी देवी, तस्सहितो ओलोयण, दमगपासणं, अणुकंपा णदिसरिसत्चि रायाणी भणति देवी, रण्णा आणावितो, कतालंकारे दिण्णवत्थतेहिं उवणीतो, सो य कच्छप गहितेल्लओ तेल्लं लग्गाविज्जति, कालंतरेण रायाए से रज्जं दिण्णं, पेच्छति दंडभडभोइए देवयायतणपूयाओ करेमाणे, सो चिंतेति- अहं कस्स करेमि १, रण्णो करेमि, आयतणं करेति,8 तस्स देवीए पडिमा कता, पडिमापसे आणिताणि, पुच्छति, साहति य, तुट्ठो सकारेति, विसंझं अच्चेति, पडियरणं, तुद्वेण सब्ब-18 द्वाणगाणि दिण्णाणि । अण्णदा राया दंडजतं गतो, सव्वंतेपुरहाणेसु ठकेऊणं, तत्थ य अंतेउरियाओ णिरोहं असहमाणीओ तं चेव । |उवचरति, सोणेच्छति, भत्तं गुत्ताओ ण गण्डंति, पच्छा सणयं पबिट्टो, विदाओ य, राया आगतो, सिट्टे विणासितो । रायत्थाणीओ तित्थकरो, अंतेपुरत्याणीता छ काया अधया संकादयो पदा, मा सेणियादीणवि दयणमोकारो भविस्सति, दमगत्थाणीया ॥५०३॥ साधू, कच्छ्रुत्थाणीय मिच्छच, भासुरथाणीयं सम्मन, विणिवाओ दंडो संसारो,एतस्स दव्वणमोकारो। भावणमोकारो जं उवजुत्तो XI सम्मदिट्टी करेति, तत्थ दिढतो तं चेव पसत्थं, तस्स सम्मदिहिस्स उवजुत्तस्स भावणमोक्कारो ।। एत्थ गयेहि मग्गणा-णेगमोह दीप अनुक्रम द्रव्य-नमस्कारस्य व्याख्यान (द्रष्टांत सहित) (509) Page #510 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्याया ॥५०४॥ 1996 “आवश्यक”- मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि :) निर्युक्तिः [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मूलं [१] / [गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दब्वादि चउब्विपि इच्छति णिक्खेवं, संगहववहारा ठवणावज्जं इच्छंति, उज्जुसुप्तो ठवणदव्ववज्जं इच्छति, तिष्णि सद्दणया भावणिक्खेवं इच्छंति, सेसे तिष्णि णिक्खेवे च्छंति, तत्थ इमा जयगाथा- चउरोऽवि णेगमनया बबहारो संग हो ठवणवज्जं । | उज्जसत पढमचरिमे इच्छति भावं च सद्दणया ||९||५|| (न हारि०वृत्ती) पदमिंदाणिं, पज्जवत इति पदं पाति वा तमर्थ पदं, तं पंचविधं पदं णामिकादि, जथा अणुयोगद्दारे, एत्थ कतरं पदं, णामिकमाख्यातिकमौपसगिकं नैपातिकं मिश्रं चेति णमोक्कारो, णिवाइयपदं नम इति, अड़वा अरहंताइस पंचसु णम इति, सो पुण णमोक्कारो कति पदाणि, छ वा दस वा, तत्थ छप्पदाणि णमो अरहंताणं सिद्धाणं आयरियाणं उवज्झायाणं सव्बसाधूणं, एते छप्पदा, इमाणि दूस पदाणि णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं एवं दस । दारं । इदार्णि पदार्थः, गम इति कोऽर्थः १, नमः पूजायां नम प्रहृत्वे, योऽस्य नमस्कारस्य प्रभुः कर्ता तस्य नमस्करणमित्युक्तं भवति, तस्य पुनः द्रव्यभावसंकोचने, एत्थ चतुभंगो-दव्वं णाम एगे संकोचेति णो भावं, पढमे भंगे पालओ, बीए मंगे अणुत्तरा, ततिए संबो, चउत्थो सुण्णो, अहवा केवलं गम इति भासति । दारं । इदाणिं परूवणा-साधु प्रकृष्टा प्रधाना प्रगता प्ररूपणा वर्णानां प्ररूपणा, सा य णमोकारस्स छहि य णवहि य पदेहिं कातव्या, तत्थ छहिं दारेहिं परूवणा इमा- किं णमोकारो ? कस्स णमोकारो १ केण वा णमोकारो ? कहिं वा णमोकारो ? केवचिरं णमोकारो १ कतिविहो णमोकारो १, तत्थ किंशब्दः क्षेपप्रश्ननपुंसकव्यापारणेषु तत्रेह प्रश्ने, किं णमोकारो, जीवो तप्परिणओ, जथा सामाइयं वहा सणयं सोदाहरणं विभासेज्जा, अण्णे भांति किं णमोकारो ? कि दव्वं णमोकारो खंधो गामो १, दव्वं णमोकारो, गोखघो जोगामो, दव्यं जीवो, खंधो पंच अस्थिकाया णमोकारेण भवंति, ण य तेसिं संघाणं अत्यंतरभूतो तेण णोखधोति दे पडिसेहयति, (510) निक्षेपेनयाः ॥ ५०४ ॥ Page #511 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार चोइसविहो भूतग्गामो, ण य णमोकारो चोद्दसमुवि, ण य तेसिं अत्यंतरभूतो तेण गोगामी णमोकारो | एत्थ णयमग्गणा तेहि नमस्कार. व्याख्याचे सत्त व सत्तहि, तत्थ णेगमो संगहितो असंगहितो य, संगहिओ संगहं पचिट्ठी, असंगहितो ववहारे, तेण छहिं णएहि मम्गिज्जति, प्ररूपणायां ५०५४ संगहस्स एगस्स एगो णमोकारो, बहूर्णपि एगो णमोक्कारो, जेण संगहितपिडियत्थं संगहवयणं, जथा-एगोवि साली साली |नयाः कस्य है बहुगावि साली साली चेक, एवमादि, ववहारस्स एगस्स एगो णमोक्कारो बहुगाणं बहुगा णमोकारा, उज्जुसुत्तस्स पत्तेयं जीवाणं | केनतिद्वारे काणमोकारो, जथा-चौदस पुग्वाणि एगस्सवि बहुगाणंपि, तिण्डं सद्दणयाणं णमोकारंपरिणतो जीपी णमोकारो, सेसाण अणुवयु-12 तोवि होज्ज आगमतो । दारं । कस्स णमोकारो, कस्सेति पष्ठी विभक्तिः, सा च तत्त्वे उभयत्वेऽन्यत्वे, यथा- तैलस्य धारा शिलापुत्रकस्य सशरीरिणमित्येवमादि, अन्यत्वे यथा भिक्षोः पात्रं भिक्षोः वस्त्रमित्येवमादि, उभयतो यथा- देवदत्तस्य सकुंडलं शिरः एवमादि, एवं नमस्कारः किमेकत्वे उभयत्वेऽन्यत्वे , एत्थ णया, तत्थ. णेगमस्स बाहिरवत्थुमधिकिच्च अट्ठसु मंगसु-1 | स्याज्जीवस्य १ स्यादजीवस्य र स्याज्जीवानां ३ स्यादजीवानां ४ स्याज्जीवस्य चाजीवस्य च ५ स्याज्जीवस्य चाजीवानां च ६ स्यादजी वस्य च जीवानां ७ स्याज्जीवानां स्यादजीवानां च ८, जीवस्य यथा-एकस्य साधोः, अजीवस्य यथा एकस्याः प्रतिमायाः, जीवाणं ४ वहूर्ण साधूर्ण, अजीवाणं बहूर्ण पडिमाण, जीवस्य अजीवस्य सपडिमस्स साधूस्स, जीवस्य च अजीवानां एकस्य तीर्थकरस्य है चक्रध्वजादीनां, जीवानां चाजीवस्य साधूर्ण पडिमाय, जीवाणं अजीवाणं च परणं सपडिमाणं साधूणं, संगहस्य तहेव संगहववर्ण, | ।।५०५॥ Pा बवहारस्स एगस्स एगो बहूर्ण बहुगा, उज्जुसुत्तस्स पत्तेयं पत्तेयं, तिहं सद्दणयाणं आत्मभावो, पडिवज्जमाणगं पडुच्च जीवस्स च जीवाण वा, पुब्बपडिवण्णगं पहच्च णियमा जीवाणं । दारं ।। केन नमस्कार इति तृतीया विभक्तिः यथा गिरिकण काणामेघेण *. (511) Page #512 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 केन नमस्कार 18 उग्याडितं नमः, केण णमोकारो लन्मतिः, णाणावरणिज्जस्स देसणमोहणिज्जस्स य खयोवसमेणं लब्भति, तेसिं दुविहाणि फहव्याख्यायो तगाणि-देसघातीणि य देस घातयति सम्बधातीणि सव्वं घातयति, तेहिं उदिण्णेहिं पच्छा अण्णाणि होति मिच्छादिट्ठी य, कदा| कस्मिन् ॥५०६॥ पुण लम्भति १. सव्वषातीहिं निरवसेसहि उग्याडितेहि देसघातीहि अणंतेहिं भागेहिं उग्घाडितेहिं समये २ अर्णतगुणविसोधीए कियच्चिर 18 विमुज्झमाणस्स २ पढम णकारलंभो भवति, एवं णमोक्कारस्सवि. एवं सेसाणचि अक्खराणं । दारं ।। कस्मिन्नमस्कार इति सप्तमी मितिहै विभक्तिर्भवति, सा च एकत्वे अन्यत्वे उभयत्व, एकत्वे जीवे ज्ञानं जीवे दर्शनं, अन्यत्वे कुंडे बदराणि, उभयत्वे गृहे स्थूणा आत्म-1 द्वाराणि भावे प, एवं नमस्कारः किमेकत्व अन्यत्वे उभयत्वे ?, अत्र णया-णेगमो बाहिरवत्थुमाभकिच्चा अदुवि भंग इच्छति स्याज्जीवे स्यादजीवे एवं सण्णिहाणेण अट्ठवि, संगहस्स जीवे णमोकारो जीवेसुवि णमोकारो, तहेव संगहवयणं सालिदिईता, बबहारस्सवि तहेव-एगजीचे एगो णमोकारो बहुसु जीवेसु बहये, 'उज्जुसुतस्स सब्बेगुवि णमोकारेसु पत्तेगं णमोकारो, सिहं सदणयाणं पुष | 18 एगो णमोकारो, बहवेमु जीवेसु पडिबज्जमाणगे पडुच्च जीवे वा जीवेसु वा उबउत्तेसु, सेसाण अणुवउत्तेवि होज्जादारी। इवाणि दा केचिरं कालं णमोकारोत्ति, एगरस जीवस्स उवओगं पडुच्च जहण्णुकोसहि अंतोमुहु, उकोसेणं छापहिसागरोयमाहिया,विजयादिसु दोबारा उबवज्जतित्ति, णाणाजीवाणे उपओगं पडच्च जहण्णुक्कोसं अंतोमुहुतं, लद्धिं पडुच्च सब्बद्धा, एत्थ णया-अपितश्चानर्पितव, मनुष्ये नमस्कार इति अर्पितः, अनित्यः, अनर्पितो नित्यः, यथा सुवर्ण अंगुलेयकत्वेन अपितमनित्यं सुवर्णत्वेनानर्पिते | नित्यमेवमादि । इदाणिं कतिविहो णमुकारो ?, अरहतादि पंचविधो, छप्पदा परूवणा गता । इदाणि णवपदा ५०६।। परूवणा-संतपयपरूवणा दब्बप्पमाणं खेत्तं फुसणा कालो अंतरं भाग भावे अप्पबहुगंति, सदिति सद्भूतं, संतस्स पदस्स परू-IP (512) Page #513 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वणा संतपदपरूबणा, संतपदपरूवणाए किं णमोकारो अस्थि पत्थि, कुतः संदेह , इह द्विविधमाभिधानं भवति-सतो, यथा- नवषटपंचव्याख्यायां जीवादीनां. असतो. यथा-शविषाणादीनां अतो नः संशयः, भण्णात्ति-णियमा अस्थि, जदि अस्थि तो कई होज्जा, तत्थ सोचितपदा ॥५०७॥४॥ इमसु ठाणेसु मग्गिज्जति, गतिमादीसु प्ररूपणा गति इदिए य काए॥९-१०॥ १४ ॥ जाव चरिमोत्ति, जहा णदीए आभिणिचोधितणाणे तथा इहपिश दवप्पमाणमिदाणि- णमोकारपडिवण्णया जीवा केचिया होज्जा, जावतिया सुहुमस्स खेत्तपलिओवमस्स असंखेज्जतिभागे आकासपदेसा एवतिया णमोक्कारपडिवष्णया जीवा, २ दारं । खेत्तओ हेट्टा लोगस्स सत्तभागो, उवारीप सत्तभागा, जेसु ओगाढा ३। जथा खेत्तं IN तथा फुसणावि, णाणत्वं चरिमतेसुवि जे पदेसा तेवि पुट्ठा, जथा एगो धम्मपदेसो आगासपदेसेहिं णियमा सत्तहिं । कालतो जथा 18 छप्पदपरूवणताए ५। अंतरं एग जीवं पडुच्च जहणेणं अंतोमुहुचं उक्कोसेण देखणं अद्धपोग्गलपरियई, णाणाजीवे पडुच्च पत्थि अंतरं, दारं ६। कस्मिन् भावे नमस्कारो, खयोवसमिए भावे णमोकारो, जम्हा सबसुतं खयोवसमियति, अण्ण पुण भणतिउपसमिए वा खइए वा खयोवसमिए पा, खइए जथा- सेणियादणिं, उपसमिए जथा अणागाराण, खयोवसमिए जथा अस्मदादीनामिति दारं ७ णमोक्कारपडिवण्णगा जीवा सेसगजीवाणं कतिभागे होज्जा ?, अणंतभागे, दारं का अप्पावई, एतसि पडिवण्णगाणं जीवाणं अपडिवण्णगाण य कतरे०, सव्वत्थोवा णमोक्कारपटिवष्णगा अपडिवण्णमा अर्णतगुणा, एसा णवपदा सम्मत्ता । ५०७॥ ID अहवा चसदबाइया पंचविधा परूवणा, तंजथा- आरोवणा भयणा पुच्छणा दावणा णिज्जवणा य, तरथ आरावणा- किं जीबो णमोक्कारो? णमोक्कारो जीयो', आरोवणा गता, भयणा- जीवः स्यान्नमस्कारो स्यादनमस्कारो, नमस्कारो नियमा KAISE | नमस्कारस्य विविध प्ररुपणा (513) Page #514 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) =ཡྻཱཡྻ अनुक्रम अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ||५०८|| “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्ति: [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 जीवो, खतिरवनस्पतिवत् । पुच्छणा दावणा णिज्जत्रणा य एगट्ठा बच्चेति, पुच्छणा कतरे खाइ मि जीवे णमोक्कारे १, एस ४ नमस्कारे पुच्छा, दावणा णमोक्कारपरिणते जीवे णमोक्कारे, एस दावणा, णिज्जावणा एस खाई से णमोकारपरिणते जीवे णमोकारे । पंचवस्तूनि अहवा चउब्विधा मग्गणा, तीए इमो दितो ताब भण्णति, चउव्विहं पुण मग्गणं भण्णिहिति, तत्थ दितो घडो णोघडो अघडो णोअघडो, संपुष्णो घडो, तस्सेव देसो णोघडो, घडवतिरित्तं दब्बं अघडो, णोअघडो घडदेसो, तद्व्यतिरिक्तं च अण्णं दबं एवं णमोकारस्सवि चतुव्विधा मग्गणा णमोकारो गोणमोकारे अणमोकारे गोअणमोकारो, णमोकारोति णमोकारपरिणतो जीवो घेप्पति, गोणमोकारोति तस्स देसपदेसा, अणमोकारेति णमोकारपरिणतजीववतिरित्त अण्णदन्यं णोअणमोकारोचि णमोकार - परिणतस्स देसपदेसा तव्यतिरितं च अण्णं दव्वं दव्वाणि व । एत्थ एहिं मग्गणा- गमो तहेब, संगहस्स एते चत्तारिवि मंगा संगहवयणेणं, बबहारस्स णमोकारपरिणतो जीवो णमोकारो, जीवो वा णमोकारो, बीतीभंग एगस्स देसपदेसा बहुगाणं च देसपदिसा गोणमोकारो,[णोअणमोकारो], ततिए अणमोकारो अणमोकारपरिणतो जीवो अणमोकारपरिणता वा जीवा तथ्यतिरित्तं वा दव्वाणि विभासेज्जा, चउत्थे णमोकारपरिणतस्स जीवस्स देसपदेसा णोअणमोकारो जीवाणं वा देसपदेसा गोअणमोकारी तव्यतिरितं दव्वं च दव्याणि य घेप्पति, उज्जुसुत्तस्स णमोकारोति णमोकारपरिणताणं जीवाणं पत्तेयं एगेगं णमोकारं इच्छिज्जति, गोणमोकारोति तेर्सि देसपदेसा, अणमोकारेति अण्णे जीवा दव्वा य, णोअणमोकारेति णमोकारप० जविस्स जे देसपदेसा अण्णं च दच्यं दव्वाणि वा तिन्दं सहणयाणं सम्मदिट्ठी जीवो भावतो णमोकारे उपउचे, तेहिं चैव चउहिं मंगेहिं णमोकारो गोणमोकारो अणमोकारो णोअणमोकारो, अवा एते दोवि णत्रपदा भवंति । परूवणत्ति गतं । (514) ||५०८॥ Page #515 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत HEIGA नमस्कार एवं परूवितस्स णमोक्कारस्स बत्थू , तत्थ वत्थू आरिहो भायणं जोग्गो गत्चति वा एगहुँ उच्यते, बत्थू अरहतादी, कह ते व्याख्या अढव्यां वत्थू', जेणं तेसु कारणमायन, हेतुर्निमित्तं कारणमेकोऽर्थः, किं च तेसु कारण?, मग्मोपदेसका अरहता, सिद्धा एतमग्न अवि-1 देशकत्वं. ॥५०९॥ ग्घेण संपत्ता, ज णस्थि अण्णेसि तेण गुणेण अधिगत्ति अरिहा, आयारं उवदिसति पंचविह,उवझाया विणयंति, पंचविहो आया-18 रो, साधुणो संजमावतस्स सहायकिच्चं करेंति, इहलोकिकण परलोकिकेण य, एतेण कारणेण अरिहा, एते सामासिया गुणा ||KI 8 दाणि पसेयं पत्तेयं वित्थारेण गुणा उवदेसिज्जति । अरहंताण ता वित्थरेण गुणकित्तर्ण कीरति. तत्थ दारगाथादअडवीए देसियत्तं तहेव णिज्जामकं समुदंमि । छक्कायरक्खणट्टा महगोवा तेण बुच्चंति ॥ ९॥ २३ ॥ ९०४ ॥ तस्थ कई अडवीए देसियत्तं कर्त, तत्थ अडवी दुविहा- दब्याडवी भावअडवी य, तत्थ दबओ अडवीए उदाहरण-ब४ संतपुरे घण्णो सत्थवाहो, णेन्बुतिनगर गंतुकामो घोसग जथा पंदिफलणांते, सो तेसि मिलियाण पंथगुणे कहेति- एगो पंथो उज्जुओ एगो पंथो को, जो सो को तेण पुण सुहसुहेण गंमति खंतेहि य पियंतेही य, तत्थवि कति रुक्खा अण्णाणि य काशरणाणि परिहरितम्बाई, चिरण पुण पाविज्जति, अवसाणे य सो चेव ओतरितव्यो, जो पुण उज्जुओ तेण लहुँ गम्मति, दुक्खं । च सहितव्यं, जतो तत्थ बहवे णदिफला णाम रुक्खा किण्हा किण्होमासा जाब णिकुरुम्बभूता पत्तिया पुफिया फलिता हरिता 81 जाब सिरीए अतीव २ उवसोभेमाणा २ चिट्ठति, तं जे गं देवाणुप्पिया तेसिं रुक्खाणं मूलाणि चा कंदाणि वा जाव चीयाणि ५०९॥ 5 आहारेति तासु पा विसमति तस्स णं आवाते भद्दए भवति, ततो पच्छा परिणममाणे परिणममाणे अहासढे अकाले चेव जीवि-15 दूताओ ववरोविज्जति, अण्णे य रुक्खे जो तेसि वातणवि छित्तो सोवि मरति, अण्णे परिसडित पण्णता, तेसिं छाहीए अच्छितव्वं, दीप अनुक्रम (515) Page #516 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIG नमस्कार फलाणि य विवण्णाणि आवातविरसाणि विवायसुहावयाणि पाणियाणि य महिता कुहिता विणट्ठा गिद्धखारकड्डयअंबराणि, भूमी-18 अढव्या Fओ य णिण्णुण्णतविसमाओ तासु सुवितव्वं, सत्थिया खणंपि ण मोत्तव्वा, कालतो दिवस गम्मति, रत्तीएवि ततिए यामे णिद्दा देशकत्वं ॥५१०॥ मोक्खं कासूण पुणोवि बहितव्वं, जतो छिण्णावाता दूरवाणा बहुपच्चवाया य अडवी, भावतो सीयाणि य उसिणाणि य छुहा मारा 81 सावयभयाणि य अबरोप्परो य संणिरोहो सहितव्यो, जो सो वंको तेणवि वच्चंताणं केति रुक्खा परिहरितव्या अण्णाणि य जाणि पब्वाणि चिरण पाविज्जति, अवसाणे सो चेव ओतरितब्बो, मणोहररूवधारिणो मधुरवयणा य एत्थ मग्गतडहिता बहवे. पुरिसा हक्कारेंति तेसिंण सोतन्च, दुरंतो य पावो दवग्गी अप्पमतेहि उल्हबेयचो, अणोल्हविज्जतो य णियमेण डहति, पुणो य | 2 द्र दुग्गुच्चपघओ उवउत्तेहि चेव लंघेतव्यो, अलंघणे णियमा मरिज्जति, पुणो महतिअतिगुबिलगम्बरा वंसकुडंगी सिग्छ लंघेतव्वा, तीम ठिताणं बहुदोसा, ततो य बहुगो खड्डा, तस्समी मणोरहो णाम बंभणो णिच्चं सण्णिहितो अच्छति, सो भणति-मणागं | पूरेह एतन्ति, तस्स ण सोतव्यं, सो ण पूरेतब्बो, सो हु पूरिज्जमाणो महल्लतरो भवति, पंधातो य भज्जिज्जति, फलाणि य एत्थ दिव्याणि पंचपगाराणि णेत्तादिमुहकारगाणि भणागंपि नो पेक्खितब्वाणि ण भोत्तवाणि, बावीसं च एत्थ घोरा महाकराला पिसाया खणं खणमभिवति तेचि णं ण गणेतव्या, भत्तपाणं च णत्थि, विभागतो विरसं दुल्लभंति, अपदाणगं च ण कातव्वं, अणवरतं च गंतव्न, (रचीएचि दोण्णि जामा सुवियब, सेसदुगं च गंतब्वमेष) एवं च गच्छंतेहिं देवाणुप्पिया! खिप्पामेव अडवी ५१०॥ हालंपिज्जति, लंपित्ता य तमेगतदोगच्चवज्जितं तं पसत्थं सिवपुर पाविज्जति, तत्थ य पुणो ण होति कोति किलसत्ति, ततो तत्थ | केइ तेणं समं पयट्टा जे उज्जुग पधाविता, अण्णे पुण इतरेण, ततो सो पसस्थि दिवसे उच्चलितो, पुरतो वच्चंतो मम्गं आहणत्रि, दीप अनुक्रम (516) Page #517 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [८८७/८८०-९०८], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार । सिलामुरुक्षेस य अक्खरानि लिहति, पंथस्स दोसगुणे, एत्तियं गतं एत्तियं सेसीत विभासा, एवं जे तस्स णिदेसे बट्टिता ते तेण महानिर्याव्याख्यायामा समं अचिरण तं पुरं गता, जेवि लिहिताणुसारेण सम्म गच्छंति तेवि पाति, जे ण वट्टिया ण वा वहति छायादिपडिसेविणो तेण मकत्वं ५१शा पत्ता ण वा पावेति । गतो य एस दचमग्गोवदेसगी, एस दिट्ठतो, एवं भावमग्गोवदेसगा, सत्थवाहत्थाणीया अरहता उग्घोसण स्थाणीया धम्मकहा पिडियत्थाणिया जीवा अडवित्थाणिओ संसारो उज्जुग्गो साधुमग्गो को सावगमग्गो पप्पपुरत्थाणीओ मोक्खो मणोहररुक्खच्छायात्थाणीओ थीगाइसंसात्वसहीओ पडिसडियादिथाणीयाओ अणवज्जवसहीओ अण्णरुक्खच्छायाथाणीयाओ|वि अंगणाओ विषण्णभरसविरसफलथाणीया फासुएसणिज्जा आहारा कुहियथाणीयाणि फागुएसणिज्जाणि पाणियाणि णिन्नुष्णयादिभूमियाथाणीयाओ बसहिभूमीओ सत्थियस्थाणीया साधु वहियग्वथाणीय दिवसं सव्वं पढितबं भिक्खाणीहारपटिलेहबज्जंततिए जामे णिदामोक्खो सीतोसिणादिसणधाणीयो पव्यज्जाकिलेसो मग्गतडत्थहक्कारणपुरिसत्याणीया पासत्थकुतित्थियादी अकल्लाणमिचा दवग्गादित्थाणीया कोहादयो कसाया फलथाणीया विसया पिसायथाणीया बाबीसं परिसहा भत्तपाणिएसणिज्जा अपयाणगत्थाणीओ णिच्चुज्जमो पताणं मोक्खसुइति । तत्थ य तं पुरं गंतुकामो जणो उवदेसदाणादिणा परमोवगारी सत्यवाहेत्ति परमविणएणं तस्स पिसे वकृति बहु मण्णति य, एवमादिविभासा। एवं मोक्षस्थीहिं भगवं विभासा । एस्थ गाथाओ संसाराडवीए० ।। ९-२३ ॥ ९०९॥ सम्मईसण ।। ९-२४॥ ९१०॥ सम्मचण दिठ्ठो णाणण णाओ, अस्वरत्थाणी-18॥५१॥ याणि चोदस पुन्याणि, चरणकरणं पहतो महापहो जातो सो व्बाणपथो । चरणकरणाणि पुण- वयसमणधम्मसंजमवेयावच्च च बंभगुत्तीओ । णाणादितियं तयकोहणिग्गहादी चरणमेतं ॥१॥ पिंडविसोधी समिती भावण पडिमा य ईदियगिरोहो । पडिले (517) Page #518 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९०९-९१०/९०९-९१२], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार जाहण गुतीओ अभिग्गहा चेव करणं तु ॥ २॥ तेण कारणेण तित्थकरा महासत्थवाहा जेण पहवे जीवा संसाराडवीए खज्जमाणे या महागापत्वं व्याख्यायां " लुप्पमाणे य सुहंसुहेण व्याणपट्टणं पावति । ॥५१२॥ इदाणिं निज्जामगा, ते य दुविहा-दव्वणिज्जामगा भावणिज्जाममा य, तत्थ दबणिज्जामए उदाहरणं तहेव घोसणयं विमासा, तहेव भावणिज्जामएणं उपसंहारोवि। . मिच्छत्तकालियाचात०९-७।९१३॥ एत्थ वाता अट्ट वण्णेतब्वा, तंजहा-पादीणवाते दाहिणवाते पदीणवाते उचरवाते. है। जो उत्तरपुरच्छिमेण सो सत्तासुतो, दाहिणपुष्वेणं तुंगारो, दाहिणअवरेणं चीतावो, अबरुत्तरेण गज्जही, एवं एते अट्ठ पाता । अण्णे वि-हैं। दिसासु अट्ठव, तत्थ उत्तरपुल्वेण दोष्णि, तंजथा उत्तरसत्तासुओ पुरस्थिमसत्तासुओ य, इयरीएवि दोण्णि-पुरस्थिमतुंगारो दाहिणद्र तुंगारो य, अवरदाहिणे दाहिणवितायो अवरवीतावो य, अवरुत्तरे अबरगज्जभो उत्तरगज्जभो य, एते सोलस बाता।। तत्थ जहा 8 जलहिमि कालियावातरहिते, कालियो नाम गणुकूलो, गज्जभाणुकूलवाते णिउणणिज्जामगसहितो णिच्छिद्दपोतो जदिच्छितं पट्टणं & कापावेति, एवं मिच्छत्तकालियावातविरहिते सम्मत्तगज्जभपाते णिज्जामगरयणअमूढमणमतिकण्णधारासहितो जीवो पोतो एगसमएण | 21 सिद्धिवसहिपट्टणं पावतित्ति । एत्थ-णिज्जामगरयणाण०९-२८-९१४। तेण कारणेण अरहता महाणिज्जाममा तहेव विभासा। है। दार्णि महागोवत्ति बुच्चंति, तत्थ दव्यगोवा गावीण जाणति, जहिं गुणा इवंति तहिं गति, एवं भावगोवा जाणति, छज्जीव-18॥५१२॥ णिकाया जथ रक्षिजति तथा उवदिसंति, जेण सारक्खति संगोवेति व्याणवाडगं च पावेति तेण महागोवा । एत्थ गाथा-12 न (518) Page #519 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१५-९१६/९१५-९१६], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नमस्कार पालेंति जथा०॥९-२९ ॥ ९१५ ॥ जीवणिकाया ।। ९-३० ॥ ९१६ ॥ अहबा जया उवासगदसामु सद्दालपुत्त- महागापत्व व्याख्यायोमा गोसालाण, तंजथा-भगवं महामाहणे जणं उप्पण्णणाणदंसणधरे जणं तीतपच्चुप्पण्णमणागतभावजाणगे जण सदेवमणुका॥५१॥[ सुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे जण्णं तच्चकम्मसंपयासंपउने तं गं एवं चुच्चति--भगवं महामाहणे, सहा सामी महागोचो, जणं | MI संसाराडबीए मिच्छचनाणमोहितपहाए वहवे जीवे णस्समाणे विणस्समाणे खेज्जमाणे लुप्पमाणे धम्मितं डंड गहाय सारक्खमाणे - संगोवेमाणे अणुपालेमाणे अणुकपमाणे णेव्वाणमहावार्ड पावेति तंण महागोचेति । तथा भगवं धम्मकही, जण्ण महतिमहालयसि MI संसारंसि बहवे जीया गस्समाणे खेज्जमाणे पिज्जमाणे उम्मग्गपडिवणे सप्पहविण8 मिच्छत्तमलाभिभूते अट्ठविहकम्मतमपडलपडो-10 च्छण्णे बहूहि अद्वेहिं वा हेतूहि य कारणेहि य वागरणेहि य चतुरंतातो संसारकंतारातो साहत्थु णित्थाति तं णं भगवं महाधम्म-2 ४ कही। तहा भगवं महासत्थवाहे, जण भगवं महतिमहालयंसि संसारकतारंसि बहवे जीवे जस्समाणे जाच लुप्पमाणे जाब बिल-10 &ापमाणे धम्ममएणं वाहणेणं घम्मियं पत्थाणं देच्चा सारक्खमाणे संगोवेमाणे णिब्याणमहापट्टणं साहत्थि पावेति तणं महासत्थः । वाहे । तहा भगवं महासंजतिए, जणं महतिमहालयंसि संसारसागरंसि बहवे जीवे णस्समाणे जाव विलुप्पमाणे णिवज्जमाणे उप्पियमाणे परिप्पवमाणे उम्मग्गपडिवण्णे धम्ममइयाए णावाए सारक्खमाणे सुहसुहेणं णेबाणमहातीरं साहत्थि पावेति तं महासं|जत्तए इच्चादि H५१३॥ ता उबगारित्तणतो।॥२-३१॥ ९१७ ॥ णिगमणं । अहवा इमाणि कारणाणि जेहिं तेहिं अरिहा णमोक्कारस्सरागद्दोसकसाए ॥९-३२ ॥ ९१८ ॥ तत्थ रागो ताव 'रंज रागे' रज्जते तेन तस्मिन् वेति रागः, स य दुविहो- दव्य दीप अनुक्रम RAISE (519) Page #520 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राका नमस्कार रामो य भावरागो य, दव्वरागो दुविहो- कम्मदव्यरागो य णोकम्मदब्बरागो य, कम्मदव्वरागो रागवेदणीय कर्म वध ण ताव 31 व्याख्यायादी उदिज्जति, णोकम्मदवरागो दुनिहो- पयोगरागो वीससारागो य, तंजहा- दत्थ प्रयोग उपाय इत्यनर्थान्तरं, सो य कुसुभरागोद ॥५१४॥ लक्खारागो हालिद्दरागो एवमादि विभासा, चिससारागो संझाअब्भरुक्खादि विभासा, भावरागो रागवेदणीय कर्म उदिणं जाए वेलाए वेदेति, सो तिविहो-दिद्विरागो विसयरागो सिणेहरागो, दिद्विरागो-असियसयं किरियाणं अकिरियवादीणमाहु चुल-13 है सीती । अण्णाणिय सत्तट्ठी वेणइयाण च बत्तीस ॥ १॥ स्वकीयायां दृष्टौ रक्ता घेते, यतो-जिणवयणबाहिरमतिमूढा णियदरिस-16 मागुरागेण । सवण्णुकहितमेते मोक्खपहं ण प्पवजंति ॥ १॥ विसयरागो णाम यो यस्मिन् शब्दाचे विषये रक्तः २ सिणह-12 रागो नाम यो यस्मिन् भावे मूञ्छितो, तत्थ सिणेहरागे उदाहरण खितिपतिद्वयं णगरं, तत्थ दो भाउगा- अरहण्णओ अरहमित्तो य, महन्तस्स भारिया खुलए रत्ता, अम्मत्थेति, सा बहुसो 13/उवसग्गेति, भणति- किं ण पेच्छसि भाउत में?, ताहे विसेण मारेत्ता भणति इत्थं- संपर्य इच्छ, सो तेण णिव्वेदेणं पच्चइतो, साधू द जातो, सा अवसट्टा मरिचा सुणगी जाता, साधुणो य तं गामं गता, सुणियाए दिहो, ताहे तस्स मग्गामग्गि सा उवसग्गेति, रर्ति गट्टो, तत्थ मया मक्कडी जाता अडवीए, तेवि कम्मधम्मसंजोगणं तीए अडवीए मझेण बच्चति, तीए दिट्ठो, ताहे कंठे 18 लग्गा, तत्थवि किलेसेण पलातो, तत्य मता जखिणी जाता, तं ओधिणा पेच्छति सा, तत्थ छिद्दाणि मग्गति. सो अप्पमत्तो. ॥५४॥ लासा छिदंण लभति, सा सब्बादरेण तस्स छिदं मग्गति, एवं च जाति कालो, तस्स यजे सरिसच्यया समणा ते हसितूण तरुणाला भणति- घण्णोसि अरहमित्ता! जैसि पिओ सुणयमक्कडाणं च । सोभग्गरस पडागो तुमे हितो जीवलोगस्स ।। १ ।। अण्णदा सो दीप अनुक्रम (520) Page #521 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार साधू विवरयं उच्चरति, तस्थ य पादविखंभ पाणिय, तेण पादो पसारितो गतिभेदेणं, तरथ य देवयाए छिदं लभिऊणं उरू छिण्णो, गो व्याख्याया। सो भणति-मिच्छादक्कडं मा आउक्काए पडितो भोज्जत्ति, अण्णाए सम्मदिडियाए दिहा, सा धाडिता, तहव सपदसा लाइता, अरहनक॥५१५॥ | रूढो य देवतापभावेणं, अण्णे भणंति-भिक्खाए गतस्स अण्णं गामं गतस्स ताए वंतरीए तस्स रूबं छाएत्ता तस्स रूवेणं पंथे दृष्टान्तः तलाए हाति, अण्णेहिं दिट्ठो, तेहिं गुरूणं सिहूं, आवस्सए आलोएहि अज्जोत्ति भणितो, सो उवउत्तो मुहर्णतगादि, भणतिन संभरति समासमणों, वेहिं पडिभणिओ भणति-णस्थित्ति, आयरिया अणुवद्वितस्स पायाच्छित् ण देति, सो चिंतेति-किं किं हवेत्ति, । सा उपसंता, साहति य-मए कतंति, साविगा जाता, आदितो आरब्भ परिकहेति ।।एस तिविहोवि अप्पसत्थो, तस्स अप्पसत्थस्सल इमा णिरुत्ती-रज्जति असुतिकलिमलकुणिमाणिढेसु पाणिणो जेणं । रागोत्ति तेण भण्णति जे रज्जति तत्थ रागत्थो ॥१॥ पसत्थो रागो-अरईतेसु आयरिएसु सुस्सुतबहुस्सुते या पवयणे एवमादि, अह रागो किं वद्दति ?, आयरिया आह-कहिवि बद्दति, उक्तं च& | पुणस्सासवहेतू अणुकंपासुद्धए बहिययोगो । विवरीतो पावस्सति आसबहेतू वियाणाहि ॥ १॥ दिटुंतो अगडखणएणं, जदिवि अजुत्तं किंचि पसस्थरागणिमित्तं पुण्णं बंधति संपि अगडखणणदिईतेणं सर्व विसोहेति, जथा लित्तेचितं) तत्वेव घावेति, अर| इंतेसु य रागो रागो साधूसु बंभयारीसु । एस पसत्थो रागो अज्ज सरागाण साहूर्ण ॥१॥ जेहिं एवंविहो संसारपकडओ रागो लणामितो ते अरिहा । इदाणि द्वेषः, 'दुप वैकृत्ये 'द्विष अग्रीती वा सो दुबिधो-दब्बदोसो भावदोसो य, दबदोसो दुविधो, कम्म-& ॥५१५॥ दबदोसो पोकम्मदग्वदोसो य, कम्मदव्वदोसो दोसवेदणिज्ज कम्मं बई ण ताव उदयं देति सो कम्मदब्बदोसो, णोकम्मदव्वदोसो | दुहुँ बिलं दुहा रुगा दुट्टा छुधा एवमादि, भावदोसो दोसवेदणिज्जं उदिण्गगं, तस्स इमाणि णिरुत्वाणि-हितकज्जसुगइमग दुसओ SA RRC (521) Page #522 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 अहवा संसारसुहस्सल धमेरुचि HEISS दीप अनुक्रम नमस्कार 18णाणाइआअधम्मस्स । दोसो सो णादग्यो सब्बासुभमूलकम्मं तो ॥१॥ जो सो असंतिकरणो अणुवसमो घातओ असंपत्ती ।। षनिक्षेपाः व्याख्यायांट | दोसो सो गायब्बो, कोधो माणो य से भेदा ॥ २ ॥ दूसेती दुसयती जम्हि य दुसज्जितित्ति पुण दोसो। अहवा संसारसुहस्स दूसओ भण्णती दोसो ॥ ३ ॥ एसो अपसत्थो दोसो, पसन्थो दोसो अण्णाण अविरती मिच्छत्तं च दूसेति, संसारं विसए यज ॥५१६॥ द्विषति । तत्थ अपसत्थदोसे उदाहरणंदि दो गाविओ, गंगाए लोग उतारेति, तत्थ य धम्मरुयी णाम अणगारो एति, सोवि णावाए उत्तिण्णो, जणो मोल्लं दातूण, गतो, साधू रूद्धो, फिडिया भिक्खावेला, तथावि ण विसज्जेति, सो बालुयाए उण्हे छुहाइओ तिसाइओ य रुट्ठो, तेण रुडण जोइओ, सोवि दिट्ठीविसलद्धिओ, रुद्रुण जोइओ मतो एगाए - सभाए घरकोइलो जातो, सोवि किर एवं केणवि कहिंचि रोसियओ, सो | साधू विहरंतो तं गामं गतो, भिक्खं समुद्दाणेता तं स गतो, भोत्तुमारद्धो, तेण दिडो, सो त पेच्छंतो चव आसुरुत्तो, साधू भोत्तुमारद्धो, सो तस्स उरि कयार पाडेति, साधू अण्णपासं गतो, तत्थवि एवं चेव करेति, सो साधू कहिचिपि ओबास ण, |लभति, सो त रुट्टो पलोएति- को रे एस णाविगणंदमंगुलोत्ति दड्डो, जत्थ समुद्दे गंगा पविसति तत्थ बच्छरे २ अण्णेण मग्गेणx बहति, चिराणगा जा सा सा मतगंगा भण्णति, तत्थ हंसो जातो, सोवि माहमासे सत्थेण समं पाभातियं जाति, तेण दिट्ठो, पाणियस्स पक्ख भरितूण सिंचति, तत्थवि उद्दविओ, पच्छा सीहो अंजणपब्बते जातो, सोवि सत्येण समं तं पदेस वितीवयति, ठासीहो तं साधु दळूण उद्वितो, सत्थो भिज्जति, सोवि साधु ण मुंचति, तत्थचि दद्धा सतो वणारसीए बडओ जातो, तत्थवि तं I साधु भिक्खं हिंडंतं अण्णेहिं चेडरूवेहि सम भणति, धूलिं च छुभति, रुद्वेण दड्ढो, तत्थेव राया जातो, जाति सरति, सब्बाओ FACECRECARE (522) Page #523 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक OX नमस्कार तिरियजातीओ असुभाओ संभरति, ताहे चिंतेति-जदि संपदं मारेहिति तो बहुगं फिट्टो भवामित्ति, ताहे तस्स जाणणाणिमिन धर्माचव्याख्यायां समस्स लंबेति, जो एतं पूरेति तस्स रज्जस्स अर्द्ध देमि, तत्थ इमो अस्थो- 'गंगाए णाविओ गंदो, सभाए घरकोइलो । हंसोश मतंगतीराए, सीहो अंजणपव्यते ॥ १॥ वाणारसीय बडुओ राया वस्थेव आहतो एवं गोधा पति, अण्णदा सो साधू विहरतो ॥५१७॥ आगतो, उज्जाणे ठितो, आराधिओ य, पढति, साधुणा पुच्छितो-सो साहति, साधुणा भाणतं-अहं पूरेमि, 'एतेसि मारओ जो सो, भवओ देसमागतो' सो आरामितो तं पाढं घेर्नु रण्णो पासे आगतो पढति, राया तं सुणेचा मुच्छितो, सो हम्मति, सो भणति हम्ममाणो कव्वं कातुं अहं ण याणामि। लोगस्स कलिकरंडो एसो समणेण मे दिण्णो ॥१॥ राया आसत्थो वारेति, पुच्छिओPाकेणं कओति, साहति- समणेणति, राया तत्थेव मणूसे विसज्जति, जदि अणुजाणह तो बंदतो एमि, अह भणति-जथासुह, सो आगतो, सड्डो जातो, साधूवि आलोइयपडिकतो सिद्धो । एवं संसारबद्धणो दोसो जेहिं णामितो ते अरिहा ।। एत्थ रागदोसा णयेहि & मम्गितब्बा, गमो संगहे ववहारे य पविट्ठो, संगहस्स कोषो माणो य दोसो, माया लोभो य रागो, बवहारस्स तिष्णिवि आदि-1& | मा दोसो, लोभो रागो, उज्जुसुतस्स कोधो दोसो, माणो माया लोभो य णवि रागो प य दोसो, भयितव्या, तिहं सद्दणयाणं ४ कोधो य दोसो माणो दोसो माया दोसो, लोभो सिय रागो सिय दोसो।। ला. कसाया इदाणिं, कसंवित्ति कसाया, 'कष गती' या अप्रशस्ता गतिः तां नयंतीति तेन कषायाः, अथवा शुद्धमात्मानं कलुपीक-IM॥१७॥ रोतीति कपाया, तेसिं अट्ठविधो गिक्खेवो-णामकसायाठवणहब्वसमुपतिपच्चयादेसे । रसभावकसाए या णयोहि छहिं मग्गणा तेसि ॥१॥ हवति उदिण्णुवसंतए यज्म उदिरिज्जमाणए भावे । पाणियरातीमादी कालो य गती चतुण्डंपि ॥२॥ एत्थ गयेहिं दीप अनुक्रम 52515 5555 (523) Page #524 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIG नमस्कार 13 मग्गणा-णेगमो सम्बेवि इच्छति, संगहयवहारा आदेस उप्पत्तिं च णेच्छति, उज्जुसुतो आदेसं समुपति च ठवणं च णेच्छति कषायव्याख्यायो |ति॒िहं सदणयाण णामकसायो भावकसायो एते बत्थू , सेसा अवस्थू । णामढवणाओ गताओ, दव्यकसायो दुपिहो-कम्मदव्यकसाओ निक्षेपा: ॥५१८॥ | णोकम्मदव्यकसायो य, कम्मदग्बकसायो कसायवेदणिज्जं बद्धअणुदिण्णं, णोकम्मदब्बकसायो सज्जकसायो लिंबकसायो य एव| मादी, समुप्पची जण्णिमित्तं कसाओ उप्पज्जात, जथा-कडे अफिडितो कट्ठो कसायो, एवं जत्थ जत्थ, किं एत्तो कट्टतरं जम्मूढो खाणुयंमि आवडितो। खाणुस्स तस्स रूसति ण अप्पणो दुप्पमादस्स ॥ शा पच्चयकसायो णाम जदि पुच्चबद्धो पच्चया ण होज्जा ता ते णोदज्जा, यथा-इह इंधने असति अग्नेः प्रज्वलनाभावः, आदेसकसाया णाम जथा केतवेण सदहाडभिउडी क. | सायमंतरेणावि तथा आदिश्यते एवंविध इति, रसकसायो कविट्ठादी, भावकसाया चचारिवि उदिण्णा कोधादी, तस्स कोधस्स णिक्खेवो चउबिधो, दोणिवि गता, णोकम्मदवकोधो चम्मारकोधादी, कम्मदब्बकोधो चउन्विहो- अणुदिण्णो उपसंतो वनमाणो उदीरिज्जमाणो, अणुदिण्णो जो ण वेदिज्जति, उपसंतो जो य उबसामिओ, बज्झमाणो तप्पढमताए, उदीरिज्जमाणो 2 उदीरणावलियापविट्ठो ण ताव बेदिज्जति, भावकोहो उदिण्णो, तस्स चत्वारि विभागा-उदगरातिसमाणो बालुय० पुढचिरातिस-1 माणो पध्वयरायसमाणो, उदगे कविता अनंतरं, वालुयाए दिवसेहि केहिवि, पुढयी केहि छहिं मासेहि, पव्वतो जावज्जीवाए, जो | ताए बेलाए उवसमति सो उदगरातिसमाणो, पक्खिए बालुया, चाउम्मासियाए पुढवी, संवत्सरिए वोलीणे जो ण उवसमति सोBI ५१८॥ | पथ्यतराति, देवगतिमणुयतिरियनरपसु गच्छति यथासंख्य कोचोदएणं, कोवेति तस्थ उदाहरणं वसंतपुरे उच्छिण्णवंसो एगो दारओ देसतरं संकममाणो सत्थेणं उज्झितो तावसपल्लि गतो, तस्स णामं अग्गियोति, ताव 4k दीप अनुक्रम स845 (524) Page #525 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सेणं संवड़ितो, जमो णाम ताबसो, जमस्स पुत्तोशि जम्मदग्गितो, सो घोरागारं तवच्चरणं करेति, विक्खातो जातो। इतो य व्याख्याय देवा बेसाणरो सट्टो धन्वंतरी तावसमचो, ते दोवि अबरोप्परं पण्णवति, सो तावसभत्तो भणति-परिक्खामो, सडो भणति-10 दादग्न्यादिः ॥५१॥ जो अम्हं सव्वंतिमो जो य तुम्भ सव्वप्पधाणोनि परिक्खामो। इतो य मिहिलाए णगरीए तरुणधम्मो पउमरहो राया, सो य पव हैच्चति वासुपुज्जसामिस्स मूले पव्ययामित्ति, तेहिं सो परिखिज्जति भत्तण पाणेण य, पंथे य विसमे,सुकुमालओ दुक्खाविज्जति, अणुलोमे य ते उबसग्गे करेंति, सो धणिततराग थिरो जातो, सो तेहिं ण खोभितो, अण्णे भणंति-सावओ भत्तपच्चक्खाइओति द्र सिद्धपुत्तरूपेण गता अतिसए साहति, भणति जथा-चिरं जीवियवति, सो भणति- बहुओ धम्मो होहिति, ण सक्कितो । गतो जमदग्गिस्स मूल, सउणरूवाणि कताणि, कुच्चे से घरओ कओ, सउणो भणति-भद्रे! अहं हिमवंतं जामि, तुम अच्छ, सा ण देति, मा ण एहिसित्ति, सो सवहा करेति गोघातकादि जथा एमिति, सा भणति-ण एतेहिं पत्तियामि, जदि एतस्स रिसिस्स दुक्कयं दापियसि ता विसज्जेमि, सो रुट्ठो, तेहिं दोहिवि हत्थेहिं गहिताणि, पुच्छिताणि भणति- महारिसि! अणवच्चोसित्ति, सो भणति| सच्चय,खोभिओ,देवो सावओ जातो। इमोवि ताओ आतावणाओ उत्तिण्णो मिगकोटुगंणगरं गतो,तत्थ जियसत्तू राया, तस्स सगासं गतो, राया उद्वितो किं देमित्तिः, तेण मणितं- धूतं वि(मे)देहित्ति, तस्स धूतासतं, रण्णा भणितो-जा तुम्मे इच्छति सा तुम्भंति, सो है कष्णतेपुरं गतो, ताहिं दुट्टण णिच्छूद्धं, किंण लज्जिसित्ति य भणितो, तेण रुद्वेण ताओ कुज्जिताओ कताओ, तत्थेगा रेणूएल ५१९॥ रमति तस्स धूता, तीसेऽणेण फलं पणामितं, इच्छसित्ति य भणिता, ताए हत्थो पसारितो,सो भणति-एसा मम इच्छतित्ति गहिता, खुज्जाओ उवहिताओ सल्लीरुवओ दायव्वोत्ति, सो भणति-ममं णस्थि, ताहिवि मणिओ-विखुज्जीकरेहि, विखुज्जीकताओ, इतरी CREC ORCE (525) Page #526 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIG 5 दीप अनुक्रम नमस्कार वि आसमं नीया, रण्णा सेसगो परिजणो दिण्णो, संवड्डिता, जाहे सा जोव्वणपत्ता जाता ताहे विवाहो कतो, अण्णदा उदुमि क्रोधे जमव्याख्यायला जमदग्गिणा भणिता-अहं ते चकै साहेमि जेण ते प्रत्तो भणो पधाणो होति, तीए भणित-एवं कज्जतुति,मझ य भगिनी हत्थि-वादग्न्यादिः णापुरे णगरे अर्णतवीरियस्स भज्जा, तीसेवि साहेहि खत्तियचरुति, तेण साहितो, सा चिंतेति- अहं ताव अडवीमिगी जाता, मा ॥५२०॥ मे पुत्तोवि एवं णासतुत्ति तीए खत्तियचरुओ जिमितो, इतरीएवि बंभणचरू पेसितो, दोण्हवि पुत्ता जाता, ताए रेणुगाए रामो| इतरीए कत्तवीरिओ, सो य रामो संवडति, अण्णदा दो विज्जाहरा तत्थ समोसढा, तत्थ एगो पडिभग्यो तंमि आसमे, सोरामे|ण पडिचरितो, तेण से तुडेण परसुविज्जा दिण्णा, सरवणे छूढो अच्छति, तत्थ सरवणे साधिता, अण्णे भणंति-जमदग्गिस्स परंपरागता परसुविज्जा, सो रामो तेण पाढितोति, सा रेणुका भगिणीघरं गता, तेण रण्णा सद्धिं संपलग्गा, समता जमदग्गिणा आणिता, रुट्ठो, सा रामेण सपुत्तिया मारिता, सो य किर तत्थेव ईसत्थं सिक्खति, वीए भगिणीए सुत, रणो कहित, सो आग|तो, आसमं विणासेत्ता गावीओ घेतूण पधाविओ, रामस्स कहितं, तेण धावितूण परसुणा मारितो, अणतबीरियपुत्तो कचविरि तो राया जातो, तस्स देवी तारा, अण्णदा से पितुमरणं कहिय, तेण आगतुं जमदग्गी मारिओ, रामस्स कहितं, तेणागतेणं | जलतेणं परसुणा कत्तविरितो मारितो, सयं चेव रज्ज पडिवण्णो। इतोबि सा तारादेवी तेण संभमेण पलायंती तावसासमं गता, |पडितो य से मुहेण गम्भो, तेहिं से णाम कतं सुभोमोचि, अण्णे भणंति-भूमिघरे संवडितो जातो यात्ति सुभूमो जातो, रामस्स 31 | य परसू जहि जहिं खत्तियं पेच्छति तस्य तत्थ जलति,अण्णदा तावसासमस्स पासेणं वीतिवयति जाव परसू उज्जलितो,सो ताबसासमं गतो, ताबसा भणति- अम्हे च्चिय खत्तिया, तेण रामेण सत्तवारा णिकूखत्तिया पुढवी कता, दाढाण च थालं भरित, एवं C समस्य ५२०॥ (526) Page #527 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५२१॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 किर रामेणं कोवेण खत्तिया वहिता, एरिसो कोधो दुरंतओ जहिं णामितो ते अरिहा । माणो चउच्विधो- कम्मदव्य० तहेव णोकम्मे जाणि दुष्णामाण्णि दव्वाणि, भावओ उदिष्णो, तत्थ माणस्स चत्तारि विभागातिणिसलत | समाणो दारुथंभसामाणो अर्थिमसामाणो सेलथंभसामाणो, तहेव उववातोचि, तत्थ उदाहरणं सुभोमो तत्थ संबकृति, इतरोधि, विज्जाहरसेटीए मेहरहो नाम विज्जाहरो, तस्स धूता पउमसिरी, ताए धृताए कष्णाकालो, संभिणसोतं णाम मि त्तियं पुच्छति को पउमसिरीए वरो भविस्सति ?, सो भणति सुभोमणामचकिस्स भज्जा भविस्सात, सो कहिं १, तावसासमे भूमिघरे संबद्धति, एवं सुणेत्ता विज्जाहरो आगतो, तदप्पभिति मेहरहो सुभौमं अलग्गति सव्वत्थ रक्खति अण्णपाणादीणि य से देति । एवं सो विज्जाहरपरिग्गहितो संबद्धति, अण्णदा विसादादीहिं परिखिज्जति । इतो य रामो णमित्तियं पुच्छति-कतो मम विणासो होहितित्ति, तेण भणितो- जो एत्थ सीहासणे णिवेसिहिति एयाओ य दाढाओ पावसीभूताओ जो खाहिति ततो ते भयं णिच्छयं कतं, तत्थ सीहासणं धुरे ठवितं, दाढाओ य से अग्गओ ठविताओ, एवं कालो बच्चति । इतो य सुभोमो मातं पुच्छति किं एचिलओ व लोगो ? अण्णोवि अत्थित्तिः, ताए सव्वं कहितं, ता मा णसरिहिसि, मा मारिज्जहिसि, सो अष्णदा रममाणो इत्थिणपुरं गतो तं सभं तत्थ सीहासणे उवविडो, देवता रडिऊण गड्डा, ताओ दांढाओ परमनं जातं, तो तेवि माहणा कट्ठादीहिं पहता, तेहिं विज्जाहरेहिं ताणि कहाणि तेसिं चेव उवरिं पाडिज्जंति, सो वीसत्थो भुंजति, रामस्स कहितं, रामो सष्णद्धो आगतो, परसुं मुमति, विज्झाइओ, इमो तं चैव थालं गहाय उडतो, चक्करपणं जातं, (527) माने सुभूमः ॥५२१॥ Page #528 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 शुका नमस्कार | तेण रामस्स सीस छिण्णं, पच्छा तेण सुभामेण माणेणं एकवीस वारा णिभणा पुहषी कता, गभा य फालिया, एरिसो| व्याख्यायांली दुरंतो माणो जहिं णामितो ते अरिहा णमोक्कारस्स। . माया चउबिधा- कम्म० तहेव णोकम्मे जाणि णिधाणपउत्ताणिं दव्वाणि, भावमाताए इमे विभागा- अवलेहणिया गोमु॥५२२॥ चिया मेंढविसाणं वंसीमूल, गतीओ तहेव, मायाए उदाहरणं पंडरज्जा, जथा तीए भत्तपच्चक्खाइताए पूयानिमित्तं लोगो आवा-18 हितो, आयरिएहि य णाए आलोयाविया, ततियं च वारं णालोयितं, भगति य-एस पुबब्भासेण आगच्छति, सा य मायासल्ल-3 दोसेण किब्बिसिणी जाता, एरिसी दुरंता मायति। अहवा सुयगो-एगस्स खतस्स पुत्तो खुट्टओ,सो सुहलालियए जाव अविरति। यत्ति खंतेण धाडिओ, सो लोगस्स पेसणं करेंतो हिंडितूण अवसट्टो मतो रुक्खकोटरे सुतओ जातो, सो य अक्खाणगाणि धम्मकहाओ य जाणति जाइसरतणणं, पढ़ति, वणयरएण गहिओ, तेण पादो कुंठिओ अच्छिं च काणं कतं, वीधीए उडवितो, ण कोह इच्छति, सो तं सावगस्स आवणे ठविचा मुलस्स गतो, तेण तस्स अतिए अप्पओ जाणाविओ, तेण कीतो, पंजरए छूढो, सयणो से मिच्छदिडिओ, तो तेसि धम्म कहे ति, ताणि उबसंताणि, अण्णदा तस्स सङ्कस्स पुत्तो माहेसरधूतं दळूण उम्मत्तो जातो, तेण सव्ये तादिवसं धम्म ण सुणेति,णेव पच्चक्खायंति तेण पुच्छियं, तेहिं सिंह,सो भणति-सुत्थाणि अच्छह,तेण सो दारओ सिक्ख वितो- सररक्खाणं टुक्काहि ठिकिरियं च अच्चेहि , ममं च पच्छतो इट्टं उक्खणितूण णिहणाहि, तेण सहा कर्त, लासो य सरक्खसडो पायपडियओ विष्णवेति, जथा-धीयाए मे वरं देहि, मुअतो भणति- जिणदासमाहेसरस्स देहेति, तेण दिण्णा, सा गवं वहति, जथाऽहं देवदिण्णा, अण्णदा तेण हसितं, णिबंधे कहितं, सा तस्स अमरिसं वहति, संखडीए बक्सित्ताणि, हरति, RAMES (528) Page #529 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत HEIG नमस्कार भणति- तुमंसि पंडियओपि पिच्छं उपाडित, पुणवि आढतो, सो चितेति-कालं हरामि, भगति-णाहं पंडितओ, सा पहाविती मायायो शुकवृत्तं व्याख्यायां पंडितिया। एगा पहाविती, कर छेणेति, चारहि गहिता, सा भणतिः अहंपि एरिसे मग्मामि, रति एह तो रूबते लएचा जाई-11 हामा, ते यागया, ताए वातकाणएण णक्काणि छिण्णाणि, अण्णे भणंति- खत्तमुहे खुरेण छिण्णाणि, वितियदिबसे पुणो गहिया। ॥५२३।। शासा , सीसं कोईती भणति-केण तुम्मेत्ति, तेहि समं पधाइया, एगंमि गामे भत्तं आणमिति कल्लालकुले विकीया सा, ते रूबए घेत्तूण | पलाता, रा िरुक्खं विलम्गा, तेवि पलाता ओलग्गति, ते गावीओ हरितूण तस्थेवं आवासिता रुक्खहेढे वीसमंति मंसं च खायीत, ४ाएको मंस पेत्तृण विलग्गो रुक्ख, दिसाओ पलोएति, तेण दिट्ठा, सा से रूवए दाएति, सो दुको, तीए जिम्भाए दंतेहिं गहितो, तेण पडतेण एसत्ति भणिए इतरे आसत्ति काऊण गट्ठा, इतरा मोस घेतूं घरं गता, सा हायिती पंडितिता, णाई पंडितओ। ताए पुणोऽवि लोम उक्खित्तं पंडियओसिति, भणति-णाई पंडियओ ण्हाविती पंडिता, पुणरवि वितिया पहाविता भणिता । तहा लोम-18 M णणेण तुम पंडितो, सो भणति-गाह पंडितो सा वाणियदारिया पंडितिया, कई ?, बसंतपुरे एगो बाणियओ, तेण अण्णवामणिएण समं पणिययं छिणं-माघमासे जो रतिं पाणिए अच्छति तस्स सहस्सं देमि, सो दरिद्दवाणियओ अच्छितो, इतरो चिंतेति किह एरिसे एसो सीते अच्छितो?ण य मतोति, सो तं पुच्छति, भणइ-एत्थ णगरे एगथ दीवजो जलति तं अहं णिहालितो 8 अच्छितो, देहि तं सहस्संति, इतरो ण ठितोत्ति भणति ण देमि, किं कारणंति, तुम दीवकप्पभावेण अच्छितो, इतरो न लद्धति ॥५२॥ का अद्धितिं पचो घरं गतो, तस्स य धीया कुमारी, ताए भण्णति-तात ! किं आद्धिति करेह , सो भणति-णिरत्ययं अहं पाणिमझे अच्छितोत्ति, सा भणति-मा अद्धिति करेह, उण्हकालए आगते भत्तं कीरतु णिमंतिज्जतु य अण्णेहिं वाणियएहि समंति, जैताण दीप अनुक्रम P le (529) Page #530 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 Ch मस्कारय चक्खुपहे पाणिय ठविज्जतु, जदा तिसिओ पाणियं मग्गति ताहे भणिज्जह-एतं पाणितंति, तेण कतं भत्तं, णिमंतिया य मायायो व्याख्यायांत जिमिता, ताहे तेण पाणियं मग्गितं, सो भणति-एतं पाणियं पेच्छिज्जतो ते तिसा णस्सतु, सो भणति-किह पेच्छ-14 ॥५२४|| तस्स तिसा णस्सति', इतरो भणति जदि तुज्झ पाणियं पेच्छंतस्स तिसा ण णस्सति तो मम दीवगं पासंतस्स किह सीतं णस्थिति भणति, जितो दवावितो य दीणारसहस्सं । सो चिंतेति-एसो णिविनाणो केण एतस्स बुद्धी दिण्णा, कहियं से जथा-धीयाएत्ति, सो तीसे पदोसमावन्नो, सो त रोसेण दारियं वरेति, पिता से ण देति मा मस्सातियाए दुक्खियंटू कातित्ति, इतरीए पिता भणितो-देहि मम एतस्स, किं मारेज्जत्ति?, दिण्णे इतरे घरे कूर्व खणावेंति, दारियाए भणिय-गवेसह किं| |मा घरे बट्टति , गविट्ठ सिटुं जहा कूर्व खणंति, ताहे ताएवि सगिहाओ आढत्ता सुरंगा ताय खणाविता जाब से कबो, ताव से | परिणीया, तेण परिणेत्ता कूवे छूढा, कप्पासस्स सयभारो दिण्णो, भणति य-तुम किर पंडितिया किह ते सांप्रती, पच्छा भणति अहं दिसाजताए जामि, तो तेण कप्पासेणं कत्तिएणं तिहि य पुत्तेहिं ममं जातपहिं जह एमि तह करेज्जासि, घरे यणेण संदिट्ठ-12 | जहा एताए कोदवसेतियाए कूरं कंजितं दिवसे २ देज्जहत्ति गतो, सावि सुरंगाए पितुघरं गता भणति- एतं मुत्तं करेह भत्तगसेतियं च पडिच्छह, अहमा गच्छामिति गणियावेसेणं गता पुरतो एगत्थ णगरे, तत्थ भाडएणं घरं गहियं, सोवि तीए उवचितो, |णियघरं गीतो, सो तं पुच्छति- तुम का कण्णगा?, सा भणति- अहं पुरिसद्वेषिणी, तुम मम भावितो, सो तीए आराहितो, IP॥२४॥ बहाण य परिसाणि ताए समं अच्छति, पुत्ता य तिनि जाता, दवं चणाए सव्वं आकड्डितं, अण्णदा वाणियओ पडिएति, सावि II | तेणेव सत्येण पडियागया, अग्गतराग पितिघरं गता, सुत्तं गहाय पुत्ते य सुरंगाए तमेव कूवं गता ठिता, वाणियओवि सगिर्ह (530) Page #531 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत नमस्कारगतो, सा यऽणेण संभरिया, किरा य से जाता, ताहे पुच्छति-तं भत्तग कोवि एत्थ पडिच्छति ?, तेहिं कहितं-जहा पडिच्छति, ताहेमायायां व्याख्याया। रज्जए आसंदतो उत्तारिओ, पढम सुत्त उत्तारिय, पच्छा पुत्तो, पुणो वितियो, ततियएण सहप्पणा ओतिण्णा. ताहे सो तुट्ठो, 12 शुकवृत्त |गिहसामिणी कता । एवं सा पंडिया, णाह, लोर्म तहेब जाव कोलमिणि पंडितिता, किह - एगा कोलिगिणी कुमारी, तीसे माता-IXI ॥५२८॥2 पितरो गामं गताणि, सा एकलिया अच्छति, चोरो य गिहं पविट्ठो, सा अप्पणो परिपदणय करेति-अहं मातुलपुत्तस्स दिज्जि-IRI हामि, तो मम पुत्तो जाहिति, तस्स चंदओत्ति णाम कज्जिहिति, तो गं अहं सद्दास्सामि-एह चंद्रा!, तं सुणेता सएज्ागचंदो| सई करेंता आगतो, चोरी गट्ठो, सा पंडिया माहं । पुणो भणति-सा कुलपुत्तगदारिया पंडिता, कहं , वसंतपुरं णगरं जियसत्तू राया, तस्स कुलपुत्तओ, तस्स कूलधूता, राया भणति, जथा- जो ममं असंतेण पत्तियावेति तस्स भोग देमि, सो कुलपुत्तओ ४. अण्णदा ओसूरे घरं गतो, धूता पुच्छति- किं ओसूरे आगतत्ति, तेण सिढुं, राया भणति-जो असंतेण पत्तियावेति तस्स भोग दादेमि, तेण ओमरो जातोति, सा भणति- अहं पत्तियावेमि, तेण रनो मुलं नीता, सा रखो अक्खंति- अहं बड़कुमारी, अण्णदा मागुलपुत्तस्स दिण्णा, मम य माता पिता पवसिता, सो पाहुणओ आगतो, हिदएण ममंति किण्ण करेमि', ताहे पाहुणं कर्त, सो| दय रति सप्पेण खइतो, मतो, णीतो मए सुसाणं, तत्थ सिवादीणि भीमाणि उडिताणि, राया भणति- कई ण भीता, सा8 भणति- जति सच्चं होतं, जितो राया, वाणियदारिया णेपुरइचिया सा पंडितिया विलक्खाइया य, एवमादीणि पंचअक्खाणगस- ॥५२॥ | ताणि अक्खाति, रची विगता णिप्पिच्छितो मुक्को, सेणेण महितो, दोहं सेणाण भंडताण असोगवणियाए पडितो पेसिल्लियपुत्तेण दिट्ठो, तेण भणितो- संगोवाहि अहं ते कर्ज काहामि, तेण संगोवितो, अण्णस्स रज्जे दिज्जमाणे भिंडमए मयूरे विलग्गऊणं रति दीप अनुक्रम WWERA ॐॐAREERSIC (531) Page #532 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पत ॥५२६118 दीप अनुक्रम नमस्कार 3 राया मणितो-पेसिल्लियपुत्तस्स रज्ज देहित्ति, रण्णा दिण्णं, सूतएण सत्त दिवसाणि मग्गिय रज्जं, ते दोवि कुलाणि पव्वाविताणि-31 मायायां दि सङ्ककुल माहेसरकुलं च, तेण सूयएण भत्त पच्चक्खाय, सहस्सारे उबवष्णो। सांगअहवा सव्वंगसुंदरित्ति, वसंतपुर णगरं, जियसत्तू राया, जियवत्ति धणावहा भातरो सेट्ठी, धणसिरी य तेसि भगिणी, सुंदरी 18 सा य बालरंडा परलोगरता य, पच्छा कप्पागयधम्मघोसायरियसगासे पडिबुद्धा, भातरोवि सिणेहेण सह पन्चतितुमिच्छंति, लाते संसारणेहेण ण देंति, साय धम्मवयं खद्धं खद्धं करोति, भातुजाताओ य कुरकुरायंति, तीए चिंतिय- पेच्छामि ताव भातुगाणी चित्त, कि मे एताहिंतिी, पच्छा णियडीए आलोइउण सोवणगपवेसकाले वीसत्थं खहुं धम्मगर्य जपितूण ततो णतुंडेण जहा से भाहाता सुणेति तहगा भाओज्जातिया भणिता- किं पहुणा ' साडियं रक्खज्जासि, तेण चितिय- Yणमेसा दृच्चारणत्ति, वारियं च | भगवता असतीपोसणंति, ततो ण परिहवेमिति पल्लंके उबविसंती निवारिया, सा चितेति- हा किमेतंति , पच्छा तेण भणियंघरातो मे णीहि, सा चिंतेति-किंमए दुक्कड कति ? प किंचि पासति, ततो तत्थेव भूमीगयाए किच्छेण पीता रतणी पभाते ओलुग्गंगी णिग्गता, धणसिरिए भणिया-कीस ओलग्गंगिति, सा रुपती भणति-ण याणामो अवराहं गेहाओ य धाडिया, तीए भण्णति-वीसत्था अच्छाहि, अहं ते भलिस्सामि, भाता भणितो किमेयमेवंति ?, तेण भणिय- अलं मे दुसीलाए, तीए भणितं-कहं जाणासि ?, तेण भणियं-तुम्भ चेव सगासाओ, सुता मे देसणा णिवारणं च, तीए भणियं- अहो ते पंडिय-131 त्तिर्ण बियारक्खमयं धम्मयापरिणामी, मए सामण्ण बहदोसमेतं भगक्या माणत तास उवादहूंपारिया य, किमेतावतेवर दुच्चारिणी होति, ततो सो लज्जितो भिच्छादुक्कट से दवाविओ, चिंतियं च णाए-एस ताव मे कसिणधवलपडिवज्जगो। वितिओ (532) Page #533 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सुंदरी दीप अनुक्रम पि एवं चैवं चेव विष्णासितो, गवरं सा भणिता- किं बहुणा ?, हथं रक्खेज्जसित्ति, सेसविभासा तहेब जाव एसोवि मे कसिण- मायायां व्याख्यायाम धवलपडिबज्जगोति । एत्थ पुण इमाए णियडिअब्भक्खाणदोसतो तिचं कम्ममुवणिबद्ध, पच्छा एतस्स अपडिकमितभावतो IPI सर्वांग॥५२७॥ पवइया, भातरोवि से सह जाताहि पव्वइया, अहायुगं पालित्ता सुरलोगं गयाणि । तत्थरि ता अहातुर्ग पालिचा मातरो से पढ में चुता साकेते गरे असोगदत्तस्स इम्भस्स समुहदत्तसागरदत्ताभिधाणा पुत्ता जाता, इतरीवि चहण गयपुरे णगरे संखस्स इभसाबगस्स धूता आयाता, अतीव सुंदरित्ति सवंगसुंदरित्ति से णामं कत, इतरीओवि भातुज्जायाओ चविऊग कोसलाउरे णंदहोणाभिधाणस्स इन्भस्स सिरिमतिकांतिमतिधूताओ आआताओ, जोय्वर्ण पत्ताणि, सवंगसुंदरी कहंचि साकेयाओ गतपुरमागतेणं असोगदत्तसेट्टिणा दिडा, कस्सेसा कण्णगति?, संखस्सत्ति सिढे सबहुमाणं समुद्ददत्तस्स मग्गिता, लद्धा विवाहो य कतो, कालंतपारेण सो विसज्जायगो आयओ, उपयारो से कतो, वासहरं सज्जिय, एत्थंतरम्मि य सवंगसुंदरीए उदिनं तं णियडिवचणं पढम| कम्म, तयो भत्तारेण से वासगिहहिएण बोलेंती देवगी पुरिसच्छाया दिडा, ततो गेण चिंतितं-दुइसीला मे महिला, कोवि अवलो| एतूण गतोति, पच्छा सा आगता, ण तेण बोल्लाविया, ततो अट्टदुहहियाए धरणीए चेव रतणी गमिता, पमाते से मचारो ४. अणापुष्ट्रिय सयणवम्गं एगस्स धिज्जातियस्स कहेता गतो साकेय गगरं, परिणीता यऽणेण कोसलाउरे दस्स धूता सिरिमहै तित्ति, भातुणा य भगिणी कंतिमती, सुतं च हि, ततो गाढतममद्धिती जाता, विसेसतो तीसे, पच्छा ताणं गमागमसंववहारो ||५२७|| वोच्छिण्णो, सा धम्मपरा जाता, पच्छा पब्बइया । कालेण विहरती पवित्तिणीए समं साकेत गया, पुष्क्भाउज्जाओ से स्वसंताओ, भचारा य तासि ण सुट्ट, एस्वंतरम्मि य तीसे उदितं णियडिणिबंधणं वितियकम्म, पारणगे मिक्ख९ पविट्ठा, सिरिम-2 (533) Page #534 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार [81तीय वासघरं गता हार पोयति, तीए अम्भुद्विता, सा हारं मोत्तूण मिक्खमाडिया, एत्थंतरम्मि चित्तकम्मोहणणं मयरेणं सो हारो। लाभ व्याख्यायांदा ओइलिओ, तीए चिंतिय-अच्छरीतामियं, पच्छा साडगद्धेण ठइय, भिक्खा पडिग्गहिता, णिग्गया य, इतरीए जोइयं जाव णस्थिता ॥५२८॥ हारोत्ति, तीए विचितियं-किमेयं वदखेडं , परियणो पुच्छितो, सो भणति ण कोति एत्थ अज्ज मोतूणागओ, तीए अम्बाडिओ, x पच्छा फुर्ट्स, इतरीएविपत्तिणीए सिहूं, तीए भणियं-विचिचो कम्मपरिणामो, पच्छा उग्गतरतवरता जाता, तेसिं चाणत्थभीयाण तं ४ नेई न उग्गाहेति, सिरिमतिकंतिमईओ भत्तारेहिं हसिज्जंति, ण य विपरिणमंति, तीए उग्गतरतवरयाए कम्मसेसं कर्य, एत्थतरंमि सिरिमती भत्तारसहाया वासहरे चिट्ठति जाव मोरेणं चित्ता ओयरिऊण णिगिलिओ हारो, ताणि संवेगमावण्णाणि, अहो से भगवतीए महत्थता जंण सिट्ठमिदंति खामितुं पयट्टाणि, एत्थंतरंमि से केवलमुप्पणति देवेहि महिमा कता, तेहिं पुच्छिय, ४ तीएवि साहितो परभववुचतो, ताणि पब्बइयाणि । एरिसा दुहावहा मायत्ति । कम्मदल्ने तहेव, णोकम्मे आकरलोह, एवमादी, अण्णे भणति-णोकम्मे अकरमोती एवमादि, अकरमोत्ति चिकणिका, 15 भावे उदिनो, तस्स चत्तारि विभागा-हलिहारागो खजण कदम किामरागो, गतीओ तहेव, तत्थ उदाहरणं लुद्धणदो-पाडलिपुत्ते दो वाणियओ, जिणदासो सावओं, राया जियसत्तू, तलागं खणेति, फाला दिट्ठा, सुरामोल्लंति दो गहाय गता वीथीए, सावग87 स्स उवणीया, तेण णेच्छिता, ताहे गंदस्स उपणीया, तेण गहिता, णाता य, ते य भणिता-जदि अण्णेवि अस्थि तो आणेज्जाह, अहं चेव गेण्हामि, एवं से दिवसे २ ते फाला गेण्हति, अण्णदा अब्भरहिते सयाणज्जामंतणए बलामोडीय णीतो, पुत्ता भणिया- ५२८॥ फलं गेहदत्ति, सो आगतो, तेहिं फाला ण गहिया, आकुट्ठा य गता पूवियसालं, तेहिं ऊणगं मोल्लंति एगते एडिता, किट्ट पडिय, FACHERS (534) Page #535 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार पाहा दिट्ठा, रायपुरिसेहिं गहिया, जहावत्तं कहितं रनो से, गंदो आगतो, सो भणति-गहिता णवित्ति, तेहि भण्णति-कि अम्हवि त्रिन्द्रिये व्याख्यायां |गहेण गहिया , तेणं अतिलोलताए एतस्स लाभस्स फिट्टो दो पादाण दोसेणंति, एकाए कुसीए पादा भग्गा दोषि, सयणोपुष्पशाल: ॥५२९॥ | विलवति । इतो रायपुरिसेहिं सो सावओ गंदो य राउलं णीया, पुच्छिया, सावओ भणति-मज्झ इच्छाप्पमाणातिरितं, अविय कूड-4 माणति ते ण गहिया, सोणंदो शूले भिण्णो सकुलो उच्छाइओ, सावओ सिरिघरिओ कतो, एरिसो लोभो जेहि पामितो ते अरिहा णमोकारस्स। इदाणि इंदियाणि, इन्द्रस्पेदं इन्द्रियं, इन्द्रो जीवः, तेन इन्द्रो इयति अनेनेति इंद्रियं, इगती, इन्द्रियाणि दविहाणि-दयिदि-13 | याणि भादियाणि य, दबिदियं दुविहं-णिवत्तणाए उवकरणे य, णिवत्तणांए जहा लोहकारो भणितो एतेण लोहेण परसुंवासि थोभणयं सूई च णिवत्तेहित्ति, तेण तं गहात तेहिं पमाणेहिं खडियाणि जाव कम्मस्स समस्थाणि सा णिवत्तणा, कज्जसमत्थाणि जायाणि उवगरणाई, भादियं दुविह-लद्धीए उवयोगतो य, जाणि जेण जीवेण लाई इंदियाणि सा लद्धी, एगिदियार्ण एगा फासिंदियलद्धी, बेइंदियाण तेइंदियाणचउरॅदियाण पंचेंदियाण,पंचविहो उपयोगो, जाहे जेण इंदिएण उवजुज्जति, सब्बजीवा |य किर उवयोगं पहुच्च एगिदिया, ताणि य इंदियाणि पंच-सोईदियाईणि, श्रूयते अनेनेति श्रोत्रेन्द्रियं, तत्थ सोदिए उदाहरणं पुप्फसालो नाम गायणो, सो अतीव सुस्सरो विरूबो य, तेण वसंतपुरे णगरे जणो हतहिदतो कतो, तत्थ य णगरे एगो सत्य- ॥५२२॥ | वाहो दिसाज गतेल्लओ, भद्दा य से भारिया, तीए केणवि कारणेण दासीओ पयट्टियाओ, ताओ सुणेतीओ अच्छंति कालं ण | याणंति, चिरेण पडिगताओ, ताओ अंबाडिताओ भणति-मा य मट्टिणी रूसह, जं अज्ज अम्हाहि सुतं पसूणवि लोमणिज्जं, किमंग अनुक्रम *5555555 SCARRRRRRRRRA (535) Page #536 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार पुण सकण्णाविण्णाणाणं, कहति ?, ताहिं से कहियं, सा हिदएण चिंतेति-किह पेच्छेज्जाामीत्त । अण्णदा य तत्थ जचा कस्सति चक्षुरिन्द्रिये व्याख्यायांला जाया, सव्वं णगरं गतं, सावि गता, लोको य पणिवतिऊणं वच्चति, पभायदेसकालो य बद्दति, सोवि गाइऊण परिसंतो परिसरेद ॥५३०॥ मुत्तो, सा य सत्यवाही दासीहि सम आगया पणिवतित्ता पदाहिणं करोति, चेडीहिं दाइओ एस सोति, सा संभंता, ततो गया पेच्छति विरूपं दंतुरं, तं पेच्छिऊण भणति-दिढं से सरूवेण चेव गेयति तीए निच्छुई, तं च तेण चेतियं, कुसीलएहि य से कहियं, ला तस्स अमरिसो जातो, तीसे घरस्स मूले पच्चूसकालसमए गातुमारद्धो पउत्थपतियाणिबद्धं जहा आपुच्छति जहा तत्थ चिंतति । जहा लेहं विसज्जति जहा आगतो घरं पविसति, सा चितति-सच्चयं वकृतित्ति ताहे अब्भुट्ठमित्ति आगासतलगाओ अप्पा मुक्को, Bा सा मया, एवं सोतिदियं दुदम, तीसे पतिणा सुत जहा एतेण मारियत्ति, तेण सो सहावितो, विसिट्ठ जेमणं जेमावितो जाव | &ी कंठोक्ति, तेण भणितो-गायंतो उवार चढाहित्ति, सो रचो गायति विलग्गति, उड्डेणं सासेणं सिर फुडिय मतो। Pाचक्ष्यतेऽनेनेति चक्षुरिन्द्रियं, चक्खिदिए उदाहरणं- मथुरा णगरी, भीडरवडेंसिय चेतिय, जणो जत्ताए जाति, तस्थ य एगमि। वाहणे एगाए इत्थियाए सणेपूरो सालत्तओ पादो निग्गतो, तत्थ य एगो वाणियपुत्तो तं पेच्छति, सो चिंतति-जीसे एस अवयवो द सा सच्चं देवीणवि अतिरेगरूवा होज्जत्ति तेण गविट्ठा, णाता य, तत्थ समासियग आवणं गण्हति, तीसे दासचेडीणं दुगुणं देति, ताओ तेण हतहितताओ कताओ, तीसेवि साहंति-एरिसरूबो वाणियओ, अण्णदा सो भणति-को एताओ पुडियाओ उग्घाडेति',131 ॥५३०॥ राताहिं भणिय- अम्ह सामीणिचि, तेण एक्काए पुडियाते लेहो भुज्जपत्ते लिहितूण छूढो इमेण अर्थेण-काले प्रसुप्तस्य जनार्दनस्य, | मेघांधकारासु च शरीषु । मिथ्या न माषामि विशालनेत्रे !, ते प्रत्यया ये-प्रथमाक्षरेषु ॥ १॥ पादे पादे च पादे च, पादे च | HERERSITERS दीप अनुक्रम (536) Page #537 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [3] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५३१।। "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [९१७-९१८/९१७- १२० ], आयं [१११...]]] मूलं [१] / [गाथा-1, आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - प्रथमाक्षरे। तव विज्ञापयिष्यन्ति यन्मे मनसि वर्तते ॥ १ ॥ कालोऽयमानन्दकरः शिखीनां मेघांधकारथ द्विशि प्रवृतः । मिथ्या न वक्ष्यामि विशालनेत्रे !, ते प्रत्यया ये प्रथमाक्षरेषु ॥ ३॥ ताहे से पडिलहितो- न शक्यं त्वरमाणेण प्राप्तुमर्थान् सुदुर्लभान् । भार्या च रूपसंपन्न, शत्रूणां च पराजयम् ॥ १ ॥ नेहलोके सुखं किंचिच्छादितस्यांहसा भृशम्। मृतं च जीवितं नृणां तेन धर्मे मति कुरु ||२|| चडीहिं पुडिआओ अप्पिताओ, इतरस्स चितं सा गेच्छतित्ति विसष्णो, पोचाणि फालतूणं णिग्गतो, अण्णं रज्जं गतो । सिद्धपुत्ताणं वक्खाणे ढुक्को, तत्थ गीतीए एस 'सिलोगो न शक्यं त्वरमा०' वणिज्जति, जहा वसंतपूरे नगरे जिणदत्तो णाम सत्थवाहपुत्तो, सो य समणसङ्को, इतो चंपाए परममाहेसरो घणो णाम सत्थवाहो तस्स य दुबे अच्छेरगाणि चउसमुहसारभूता मुत्तावली धूता य कण्णा हारष्पभति, जिणदत्तेण सुताणि, बहुष्पगारं मग्गितो ण देति, ततो गेण बंठवेसो कतो, एमागी सयं चैव चप गतो, अंचितं च बद्धति, तत्थेको उवज्झायगो तस्स उबट्टितो पढामित्ति, सो भणति भत्तं मे णत्थि, जदि वरं कर्हिपि लभिसित्ति, धणो य सरक्खाणं देति, तस्स उबट्ठितो भत्तं मे देहि ता विज्जं गेण्हामि, जं किं ( १२०००) चि देमित्ति पडिसुतं धृता संदिडा, तेण चिंतियं सोभणं संवृत्तं, वल्लूरेण दामितो बिरालोत्ति, सो तं फलादिगेहिं उवचरति सा ण गिण्हति उबगारं, सो य अतुरितो णीयडिग्गाही थक्के धक्के उवचरति, सरक्खा य णं खरंटेंति, तेण सा कालेण आवज्जिया, अज्झोववण्णा भणतिपलायम्ह, तेण भणितं अजुत्तमेयं, अतो बीसत्था होहिं न शक्यं त्वरमाणेन० श्लोकः, किं तु तुमं उम्मत्तिया होहि बिज्जेहिं मा पउणिज्जिहिसि, तहा कयं, वेज्जेहिं पडिसिद्धा, पिता से अद्वितिं गतो, चट्टेण भणितं मम परंपरागता विज्जा अस्थि, दुक्करो य से उबयारो, तेण भणिय- अहं करेमि, सो मणति पयुंजामो, किं तु बंभयारीहिं कज्जं, तेण भणियं जदि कवि अर्थ (537) चक्षुरिन्द्रिये उदाहरणं ॥ ५३१ ॥ Page #538 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 ॥५३२॥ दीप अनुक्रम नमस्कार का भचारिणो भवंति दो कजण सिज्झति, ते य परियाविज्जंति, जे सुंदरा ते आणमि, कतिहिं कज्ज ?, चतुहि, आणिता, सह-पापारान्द्रत | येहिणो य दिसावाला, मंडलं कयं, दिसापाला भणिया- जत्तो सिवासद्दो तं मणागं विधेज्जह, सरक्खा य भणिया- हुं फडात द्र। |कते सिवारुतं करेज्जह, डिक्करिका भणिया- तुम तह चेव अच्छेज्ज, तहा कत, विद्धा सरक्खा, ण पउणा चेडी, विपरिणओ |धणो, चद्रेण वृत्त-भणिय मए जदि कहवि अभचारिणो भवति तो कज्जन सिज्झति इत्यादि, धणेण भणियं-को उवाओ?, चट्टेण 151 भणिय-एरिसा बंभचारिणो भवंति, गुत्तीओ कहेति, दगसोयरातिसु गबेसिया, णत्थि, साहूण दुक्को, तेहि सिट्ठाओ-चसहिकहणि-ल है सजिदिय कुटुंतरपुन्यकीलितपणीते । अतिमाताहारविभूसणाई णव बंभगुत्तीओ ॥१॥ एतासु बढमाणो सुद्धमणो जो य बंभयारी । सो । जम्हा तु बंभचेरं मणोणिरोहो जिणाभिहितं ॥ २॥ उवगते भणिता-बंभचारीहिं मे कज्ज, साहू भणति-ण कप्पइ णिग्ग-18 | थाणमेतं, चट्टस्स कहितं-लद्धा बंभचारी, ण पुण इच्छंति, तेण भाणयं- एरिसा चेव परिचचलोगवावारा मुणयो भवंति, किंतुल | पूइतेहिपि तेहिं सकज्जसिद्धी होति, तण्णामाणि लिखंति, ण ताई खुद्दवंतरी अक्कमति, पूयिया, मंडलं कतं, साहूणामाणि लिहि-2 | ताणि, सा बाला ठविया, ण कुचितं सिवाए, पउषा चेडी, धणो साहूणमल्लियंतो सड्ढो जातो, धम्मोवगारी इमोति चडी मुत्ता-13 | बली य दिण्णा, एवं अतुरंतेणं सा तेणं बोधितत्ति सिलोगत्थो । किं च- अडवीए मूतो कप्पडिएण आराहितो, एसो मोररूपेण च्चितुं सोवण्णं पिच्छं पाडेति दिने २, तस्स चित्वं जातं-केच्चिरं अच्छिहामित्ति सव्वाणि पिच्छाणि गेण्हामिति पडिजम्गितो,5॥५३२|| तेण कलावो गहितो, काको जातो, ण किंचि देतित्ति, अतः-अत्वरा सर्वकार्येषु, त्वरा कार्यविनाशिनी । त्वरमाणेन मूर्खेण, | मयूरो वायसीकृतः ॥१॥ इति । सो एस सुणितूण परिणामति, अहपि सदेस गंतुमतुरंतो तत्थेव किंचि उवायं चिन्तिस्सा (538) Page #539 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं - मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५३३॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 मिति गतो सदेसं, तत्थ विज्जासिद्धा पाणा दंडरक्खा, तेण ते ओलग्गिया, भांति किं ते अम्हेहिं कज्जं १, सिहं, अम्हं तं घडेह, तेहिं मारी विउब्विया, लोगो मरितुमारद्धो, रत्ना पाणा समादिट्ठा, तेण भणियं जाणामो ताव किं आदेशा वत्थव्वात्त उदावणिया, तेणं साहिस्सामो, तेहिं (पढम) रतिं एसा सा बाहिरियं पविट्ठा, बितियाए रतियाए नगरं पविडा एसा सा, ततीयाए रत्ती घरं एसा सा, चउत्थीए रत्तीय माणुसहत्थसीसपादा य सवणिज्जे दीसंति, ते हत्थपादादीण साहरणं करेंति, रण्णो कथितं भणति सविधीए विवाडेह, तो खाई मंडले मज्झरत्तम्मि अप्पसागारिके चावाएंज्जा, तहत्ति पडिस्तुतं, णीता सगिह, रत्तिं मंडलं, सो य तत्थ पुष्पालोचितकतकवडो गतो, सा खलियारेउमारद्धा, तेण भणिय- किं एताए कयंति ?, तेहि भणितं मारि एसत्ति मारिज्जति, सो भगति - किमेताए आगितीए मारी हवइति ?, केणचि अवसदो वा से दिष्णो, ता मा मारेह, मुयह एतं, ते नेच्छति, गाढतरं लग्गो, अहं मे कोडिमुलं अलंकारं देमि, सुप्पह मे तं बलामोडीए अलंकारो उबणीतो, तीएवि तस्स निक्कारणवच्छलोत्ति पडिबंधो जातो, पाणेहिं भणियं जदि ते पिब्बंधो तो ण मारेमो, किंतु णिब्बिसयाए गंतव्वं, पडिसुर्य, झुका, सो तं गहाय पलातो, पाणप्पदो बच्छगोत्ति दढतरं पडिबद्धा, आलावादीहिं घडिया, देसतरंभि भोगे झुंजते अच्छंति, अण्णदा सो पेच्छणगे पयट्टो, सा पेहेण गंतु ण देति, तेण इसियं, तीए पुच्छ्रियं किमतं १, णिबंधणे सिहं, निव्विना, तारुवाणं अजाण अन्ति धम्मं सोच्चा पव्वइया, इतरोऽवि अट्टदुहट्टो मरिऊण तहोसा चैव गरंगे उवउत्तो । एवं दुक्खाय चक्खिदियन्ति । घाणिदिए उदाहरणं कुमारो गंधप्पितो, सो अणवरयं णावाकडरण खेल्छति, मातिसम्बत्तीए य मंजूसाए विसं छोडूण नदीए पाहियं, तेण एगंतेण दिडा, उत्तारिया, उग्घाडिऊण पलोएतुं पवत्तो पडिमंजूसादि एगगंठिओ समुग्गको दिट्ठो, सो णेण (539) चक्षुरिन्द्रिये उदाहरणं ॥५३३ ॥ Page #540 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 । W नमस्कार 31 उग्धाडितूण जिंघितो, मतो य, एवं दुक्खाय घाणेदियं । घ्राणेन्द्रिव्याख्यायां & जिभिदिए उदाहरणं-सोदासो राया मंसपितो, अमाघातो, सुयस्स मंस बिरालेण गहितं, साकरिएसु मग्गिय, ण लद्ध, पच्छायादिषु ॥५३४॥ डिभरूब मारिय सुसंमित, जिमितो, पुच्छति-कहिते पुरिसा दिण्णा मारेहिचि, णगरेण णातो भिच्चेहि य, रक्खसोचि मधु पाएता ४ अडवीए पविट्ठो, चच्चरे ठितो गर्य गहाय दिणे २ माणुस मारेति, केइ भणंति-विविहजणं मारेति, तेणतण सत्यो जाति, तेण णानि & सुत्तेण न चेइओ, साधू य आवस्सयं करेंता फिडिया, ते दटुं ओलग्गति, तवतेएण ण सकति अल्लिइतुं, चिंतेति, धम्मकहणं, पव्व ज्जा, अने भणंति-सो भणति बच्चते-ठाह, साहू भणति-अम्हे ठिया, तुम ठाहि, चिंतीत, संयुद्धो, सातिशया आयरिया ते ओहिणाणी, केचियाणमेवं होतित्ति । एवं दुक्खाय जिभिदियति । - फासिंदिए उदाहरण-वसंतपुरे णगरे जियसत्तू राया, सुमालिया से भज्जा, अतीव सुकुमालो फासो, राया रज्जं ण चिंतेति, | सो ताण णिच्चमेव परिभुजमाणो संवाहिज्जमाणो य तीसे फासे मुच्छितो अच्छति, रायकज्जाण ण चितेति, एवं कालो लवच्चति, भिच्चेहिं स मंतेतूण तीए सह निच्छुढो, पुत्तो से रज्जे ठवितो, ते अडवीए यच्चति, सा तिसाइया, जलं मग्गियं, अच्छीणि से बद्धवाणि, मा विभेहित्ति, सिरारुधिरं पज्जिया, रुधिरे मूलिया छुढा जेण ण थिज्जति, छुधाइयाए ऊरुमंस दिण्ण, अरुगं संरोहणीए रोहिये, जणवयं पत्ताणि, आभरणगाणि सारवियाणि, एगस्थ वाणितच करेति, पंगू य से बीधीसोधगो घडितो, लासा भणति ण सक्कुणोमि एगागिणी गिहे चिट्ठितुं, वितिज्जयं लभाहे, चिंतियं चणेण-णिरवातो पंगू सोभणो, ततो ण णडपालो | गणिउत्ती, तेण गीतच्छलितकथादीहिं आवज्जिया, पच्छा तस्सेव लग्गा, भत्तारस्स व्हिाणि मग्गति, जाहे ण लभति ताहे उज्जा 5 (540) Page #541 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पहोप नमस्कार णियाए गतो सुविसत्थो बहुमज्ज पाएत्ता गंगाए पक्खित्तो, सावि यदव्यं खातितूणं वहति गायति य घरे २, पुग्छिता भणति- स्पर्शनेव्याख्यायां अम्मापितीहिं एरिसो दिण्णो, किं करेमि, सोवि राया एगस्थ णगरे उच्छलिओ, रुक्खच्छायाए सुत्ता, ण परावत्तति छाता, राया| इन्द्रिय परि॥५३५॥ ४ तत्थ मयओ अपुत्तो, आसो अहिवासितो तत्थ गतो, जयजयसद्देण पडिबोहिओ, राया जातो, ताणि तत्थ गताणि, रनो कहियं, * आणाविताणि, पुच्छिया साहति-अम्मापितीहिं दिनो, राया भणति-बाहुभ्यां शोणितं पीतं, ऊरुमांस च भक्षितम् । गंगा वाहितो सगोत्र भर्ता, साधु साधु पतिव्रते ! ॥१॥ णिव्यिसियाणि आणताणि, एवं दोण्हवि से सओ सुकुमालियाए दुक्खाय फासेंदियं, जेहिं एते दुज्जता दुरंता संसारबद्धणा इंदिया जिता णामिता ते अरिहा नमोक्कारस्स। इदाणि परिसहा, परिस्समंता 'सह मर्षणे' मार्गाच्यवननिर्जरार्थ च परिषोढव्याः परीसहाः, मार्गाच्यवनाथ दर्शनपरीसहः। |पण्णापरीसहो य, 'त्थि पूर्ण परलोगे' सेसा निर्जरार्थ, एते बावीस प० तेजथा-दिगिंछापरीसहे १ पिवासापरीसहे २ सीत. ३ उण्ह ४ दसमसग० ५अचेल० ६अरति० इत्थी० ८चरिया० ९णिसीहिया० १० सेज्जा०११ अक्कोस० १२ वह १३ जायण. |१४ लाभ०१५ रोग०१६ तृणस्पर्श० १७ मल०१८ सक्कारपुरस्कार १९प्रज्ञा० २०अण्णाण. २१दसणपरीसहे२२ । दब्बपरी सहा इहलोगनिमित्तं जो सहति परब्यसो वा वहबंधणादीणि, तत्थ उदाहरणं, जहा-चक्के सामाइए इंददत्तपुत्चा, भावपरीसहा जो है संसारवोच्छदीनमित्तं अणाइलो सहइत्ति, तेण चेव उवणतो पसत्थो, जहा वा उत्तरायणे सुत्योसणयं सोदाहरणं विभासिज्जा। इदाणि उवसग्गा, उप सामीप्पे 'सृज बिसर्गे' उपसरतीति उवसग्गा, उवसृति का अनेन उवसर्गाः, तेवि परीसहेहि चेन समोतर्रति अक्कोसादी, गवरं किंचि विसेसा उपसग्गत्ति भणति, ते चतुर्विधा- दिव्या माणुसा तिरिया आत्मसंवेदनीया, दिव्या *52-%94%ा दीप अनुक्रम SACREATORREKHECAEXXX (541) Page #542 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५३६ ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चउब्विधा हासा पओसा वीमंसा पुढोवेमाता । हासा खुदगा अण्णं गामं भिक्खाचरियाए बच्चीत, वाणमंतर ओवायंति-जदि फव्वामो तो चिन्भडउंडेरग कण्हण्हरण य अच्चणिय देहामो, लद्धं, सा मग्गति, ते ण देति, अण्णमण्णस्स कहणं, मग्गितूण दिण्णं, एवं ते संति, ताहे सयं चैव तं पक्खाइया, कंदप्पिया देवया तेसिं रूवं आवरेता रमति, वियालो जातो, तेहिं मग्गिया ण दिट्ठा, देवताए आयरियाण कहिये । पढोसे संगमओ बीसा, एगत्थ देउलियाए साहू वासावासं वसित्ता गता, तेसिं च एगो | पुव्यपेसितो ततो देव वरिसारतं आगतो, ताए देवताए आवासितो, सा देवता चिंतेति किं दढधम्मो णवति सङ्घीरूवेण उवसग्गेति, सो पेच्छति, तुट्टा वंदति । पुढोवेमाता हासेण कातुं पदोसेण करेज्जा, एवं संयोगो ॥ माणुसा चउब्विहा- हासा पदोसा वीमंसा कुशीलपडिसेवणा, हासे-गणियाधुता खुट्टगं भिक्खस्स गयं उवसग्गेति तेण हया, रम्रो कहियं, खुट्टओ सदावितो, सो सिरिघरादितं कहेति । पदोसे गयसुकुमाला सोमभूमिणा बबरोविओ अहवा एगो धिज्जातीओ एगाए अविरतियाए सद्धि अकिच्च सेबमाणो साधुणा दिट्ठा, पदोसमावनो साधु मारेमित्ति पधावितो, साधु पुच्छति किं तुमे अज्ज दिडंति ?, साधू भणति 'बहुं सुणेति कलेहि०' सो भणति किं निमित्तं एवं एस अम्ह उवदेसो तित्थकराणं, उवसंतभदओ जाओ । वीमंसाए चंदउसो राया चाणकेण भणितो- पारतियं करेज्जसि, मुसीसो य किर आसि, अंतपुर धम्मकहणं, उवसग्गिज्जंति, अष्णतित्थिया विषट्टा णिच्छूढा य, साधू सहाविया भगंति- जदि राया अच्छति तो कहेमो, अतिगयो, राया उस्सरितो, अंतेपुरियाओ उवसम्मेति, हयातो, सिरिघरदित कहेति । कुसीलपडिसवणाए ईसालुगभज्जाओ चत्तारि, रायसण्णातं तेण घोसाबितं सत्पतिपरिक्खित्तं घरं ण लभति कोई पवेसं, अयागंतो साहू वियाले क्सहिनिमित्तं अतिगतो, सो य पविसिग्रलओ, तत्थ पढसे (542) उपसर्गाव ॥५३६॥ Page #543 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उपसर्गाव दीप नमस्कार व्याख्यायां जामे पढया आगया भणति- पडिच्छ, साधू कच्छं बंधेतूणं आसणं कुंमबंध कातूणं अहोमुहो ठितो चीरवेढेण, ण सक्कियं, कीसित्ता गता, पुच्छति-केरिसो ?, सा भणइ- अण्णो मणसो नत्थि, एवं चत्तारि जामे कीसितूणं गयाओ, पच्छा एगतो मिलियाओ साईति, ॥५३७॥ उपसंताओ सडीओ जाताओ॥ तेरिच्छा चउबिहा- भएण सुणगादी दसेज्जा, पदोसा चंडकोसिओ मक्कडादि वा, आहारहे| | सीहादी, अवच्चलणसारक्खणहउँ काकिमादी ।। आत्मना क्रियन्त इति आत्मसंवेदनीया, जहा उद्देसिए चेतिए पाहुडियाए य, ते चउबिहा घडणया पवडणया थभणया लेसणया, घट्टणया अच्छिमि रओ पविट्ठो, चमढियं, दुखितुमारद्धं, अहवा सय घेव अच्छिम्मि गलए वा किंचि सालुगादि उद्वितं घट्टति, पवडणया ण पयत्तेण चकमति, तत्थ दुक्खाविज्जति, थंभणया णाम ताव बइट्ठो अच्छितो जाव मुक्खिचिट्ठो जातो, अहवा हणुगार्जतमादी, लेसणया पाद आउंटावेत्ता अच्छिते जाव तत्थ वायेण लइओ, | अहवा गट्ठ सिक्खामित्ति अवणामितं किंचि अंग तत्थेव लग्ग ॥ अहवा आयसंवेतनीया बातियपित्तियसिभियसंनिवातिया, एते | दी दबोबसग्गा, भावतो उवजुत्तस्स एते चेव । अहबा इंदियाणि कसाया य ते जेहिं०, अहवा अणेण कारणेणं अरिहा नमस्कारस्यका इदियविसया कसाया परीसहा वेदणा ३ सरीरगादि अहवा सीता ३ उवसग्गा ते चेच, एवमादी अरयः ते हेता इतिकाटू तूर्ण अरिहा णमोकारस्य, अर्हन्तीति वा अर्हन्ताः, ते दुविधा-दवारिधा भावारिहा य, दबारिहा दुविहा- पसत्था अपसस्था य, | दव्वारिहा पसत्था हिरण्णअस्समादीणि, अपसत्था वधबंधतालणाइय, भावेवि अप्पसत्था अकोसादीण, पसस्था बंदणणमसणादीणं । तत्थ गाहा अरिहंति वंदणणमसणाणि ॥ ९-३५ ।। ९२१ ॥ बंदणं सिरसा, पर्मसणं वयसा, पूया वत्थादीहिं, सकारो अब्भुट्ठा अनुक्रम | ।।५३७॥ SAREEX (543) Page #544 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२१/९२१-९२२], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत अहा दीहि, केहिं कीरंतस्स बंदणादिस्स ते अरिहा ?, उच्यते, देवासुरमणुयाण, अरिहंति पूर्य, जहा सुरुत्तमा, मणुयाण रायाणो उत्तमा, ताणं || दि देवा, देवाणं रिसतो, रिसीणं परमरिसी, ते अरिहंता चेव, अरी च पूर्वोक्ता हता, रज हन्ता, रजः कर्म, रतस्स हंता तेणबि अरि-8 मस्कार फल ॥५३८॥ "हंता, अरिहंतिवि इमे य शारीरा अतिशया, तथा ते य उप्पण्णा जहा-चारुसुजायमाण सिरिवच्छंकितविसालवच्छाणं । तेलो कसकयाणं णमोरथु देवाहिदेवाणं ॥१॥ तस्स णमोकारस्स किं फलं , जं तस्स फलं ते उवरिं सट्ठाणे भणिहिति सउदाहरण, दापंचण्हविय सामण्णं पयोयणफलं णमोकारो, इमं पत्तेयफलं वणिज्जति अरिहंतनमोकारो जीर्च मोएड० ॥ ९-३७॥ ९२३ ।। भवाणं सहस्सा भवसहस्सा, सोय संसारो, अणतेसु किं भवसहस्सगहणं कतं?, उच्यते, पसत्थाणि एवं, इतरााण अणताणि, किं सब्वेवि मोयति', ऐति, भावेण जो कीरति सो फलदो जीवं मोतति, द्र अह णवि मोएति तो इमं अचं फलं होति, पुणरवि बोधिलामाए, बोधी णाम संमत्ताहिगमो ।। किं चान्यत् ___ अरिहंतनमोकारो धण्णाण ॥९-३८ ॥ ९२४ ॥ धणेण धणो, णाणदसणचरिचाणि घण एतेण धणेण धण्णो, भवखपर्ण करेंताणं, भवक्खयो संसारक्खयो, जदा हिदयं ण सुंचति तदा किं करेति , विसोत्तियं णिरुंमति, दयविसोचिया णिकाकट्ठ, तेण संकरेण पाणिय रूद्ध अण्णतो बच्चति, ते रोचगा सुकति, एवं भावविसोचिवाचि संसयादी कट्टत्थाणीया पच्छा अपसत्थपाव-1 ॥५३८।। रुक्खा सुक्खंति, एवं विसोचिये वारेति अरहंतणमोकारो इति । एवमादीहिं गुणेहि महत्थोत्ति वण्णितो, अहवा इमेणीव कारणेणंद | जहा संमामेमाणो पुरिसो आतुरे कज्जे जाते अजेज अपडिहतं आयुहं तेण कजं करेति, एवं इमेणीव चोदस पुथ्वाणि गहियाणि, ARREARS दीप अनुक्रम A%ESO 4%97% BE (544) Page #545 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत कर्मसिदः दीप अनुक्रम नमस्कार ण व मरणकाले तेहिं कर्ज कीरति, उक्तं पण य तम्मि देसकाले सको बाहरविहो सुतक्वंधो । सको अशुचितेत धन्तपि समत्थ सिद्धव्याख्यायाचित्रेण ॥१॥जेण णमोकारो तम्मि देसकाले कीरति तेण सो महत्थो, एवं सो अरहंतणमोकारो सध्वपावाणि पणासेति, जाणि || नमस्कारे ॥५३९॥ दव्यभावमंगलाणि लोगे लोउत्तरे य एतेसिं पढम मंगलं अरहंतनमोक्कारो। इदाणि सिद्धाण णमोकारो, 'राध साध संसिद्धौ' सिद्धः प्राप्तणिष्ठ इत्यनर्थान्तरेण, जो जस्स पारंगतो सो सिद्धो भवति, II तस्स सिद्धस्स इमो णिस्खेबो चोइसघा-णामसिद्धो ठवण दव्य कम्म० सिप्प विज्जा मंत• जोग० आगम० अर्थ० जना० 3 अभिष्पाए तवे कम्मखयेति य । णामढवणाओं गताओ, दवसिद्धो उस्सेइमं संसेइमं उवक्खडं वत्यसिद्धोत्ति, तत्थ उस्सेइमं जथा दामिरोलगादि, संसइम जहा तिलादी, उवक्खई जहा पदाणादी, वत्थसिद्ध जं रुक्खे चेव पच्चति, एताणि दवाणि गिट्ठ पत्ताणि । कम्मसिद्धो जो कम्मस्स पिट्ठ गतो, अनाचार्यकं कर्म, तत्थ उदाहरणं--- कोंकणा एगम्मि दुमो समस्स मंड संमति विलयति य, ताणं च किर यदि रायावि एति तेण पंथो दातव्यो, तत्थ एगो | ट्रासेंधवओ पुराणो, सो परिमजतो चितेति-तहिं जामि जहिं कम्मेण एस जीवो भज्जति, सुहग विंदति, सो तेसिं मिलितो, सोx भणति-गंतुकामो कुंदुरुक्खपडिबोहिल्लओ, सिद्धओ भणति-सिद्धियं देहि मम, जे सिद्धयं सिद्धया गता सज्झय, सोय तेसिं भास्व| हाणं महत्चरओ सञ्चबई भार बहति, तेण अण्णदा साधूण मग्गो दिनो, ते रुठ्ठा, राउले कहंति, ते भणंति-अम्हं रायावि मग्गी द्रादेति भारेण दुःखाविज्जन्ताणं, तुम पुण समणगस्स रिकविरिकस्स मग्गं देसि, रण्णा भणिय-दुठ्ठ मे कतं, तेण भणिनं-देव! तुमे AREKASAROKAR ॥५३९॥ (545) Page #546 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार गुरुभारवाहित्ति काऊपमेतमाणतो, रण्णा आमंति पडिसुतं, तेण भणियं-जदि एवं ता ते गुरुतरभारवाही, कह ?, जं सो अवी-18 शिल्पव्याख्या समन्तो अट्ठारससीलंगसहस्साणि भार वहति जो मएवि बोढुं ण पारितोत्ति, धम्मकहा, भो महाराय !-चुझंति नाम भारा ते पुण सिद्धा १५४०॥ | वुझंति बीसमंतेहिं । सीलभरो चोदव्यो जावज्जीवं अविस्सामो ॥ १॥ राया पडिबुद्धो, सो य संवेगं गतो अब्भुद्वितोचि । एमो कम्मसिद्धोत्ति ॥ शिल्पमाचार्यकं तस्य निष्ठां प्राप्तः २, शिल्पसिद्धं प्रति उदाहरणं, कोकासो सोप्पारए रहकारो, तस्स दासीए| हाभणाण जातो दासचेडो, सो पगूढभावेण अच्छति, सो ण जीहामित्ति सो अप्पणो पुत्ते सिक्खावेति, ते मंदबुद्धी ण लएंति,& दासेण सव्वं गहितं, सो रहकारो मतो, रायाए दासस्स तं घरं सव्वं दिण्णं, सो सामी जातो । इतो य पाडलिपुत्ते राया जियसतृत्ति, इतो य उज्जेणीए राया सावगो, तस्स चत्तारि सावगा-एगो महाणसिओ, सो रंधेति, जदि रुब्बति जिमितमत्तं जीरति, जामेण २-३-४ वा, जदि रुच्चति ण चेव जीरति १ त्रितियओ अब्भंगेति, सो तेल्लस्स कुलब छुमति, तं चेव पुणो णीणेति २, साततियओ सेज्ज रयेति, जहा पढमे वा २-३-४ जामे बुज्झति, अहह्वा सुवती चेव ३, चउत्थो य सिरिघरो कतो, जो तं अतिगतो दि| किंचि ण पेच्छति, एते गुणा तेसिं, सो पाइलिपुत्चओ तस्स णगरं रोहति, सावओ चितति-कि मम जणक्खएणं कतेणेति भत्र्स |पच्चक्खायं देवलोग गतो, णागरेहि से णगरं दिणं, ते सावगा सदाविता, पुञ्छति-कि कम्मं , सूतेण अक्खायं, भंडारिएण पवेसिओ, किंचिवि ण णेच्छति, अण्णेण दारेण दंसितं, सेज्जापालेण कहियं, अभंगतेण एकातो पदातो तेल्लं णीणियं, एकातो ण ॥५४०॥ णीणित, जो मम सरिसो सो णीउत्ति, चत्वारिवि पब्वतिया । सो तेण तेल्लेण डझंतो कालगो जाओ, काकवण्णो से णाम जाय, पढमं से जियसत्तुति णाम आसि पश्चात्काकवर्ण इति । (546) Page #547 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५४१॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 तो सोपा दुक्खं जातं, कोकासो उज्जेगिं गतो, किह रायं जाणावेमित्ति कवोतेहिं गंधसालि अवहरेति, कोट्ठाकारिएणें कहिय, मग्गतेण दिट्ठो, आणितो, रण्णा जातो, वित्ती दिण्णा, गरुडो कतो, सो राया तेण कोक्कासेण देवीए व समं हिंडति, जो से ण णमति तं भणति अहं आगासेण आगतो मारेमि, सब्वे वसमाणिया, तं देविं सेसिगाओ पुच्छंति जतो हिंडति, एगाए बच्चतस्स एसा णियत्तणखीलिया गहिया, गतो, णियत्तणवेलाए जातं, कलिंगे इसि तला पक्खो भग्गो तत्थ पडितो, जगरं गतो, तस्स रहङ्कारो रहे णिम्मेति, एगं चकं णिम्मवियं, एगस्स सन्धं घडिएल्लियं, किंचि किंचि गवि, ततो सो उबगरणाणि मग्गति, तेणं भणियं जाव घरातो आणेमि इमाणि राउलाओ ण लम्भति निकालिऊणं, सो गतो, इमेण तावेवं संघातियं उद्ध कतं जाति, अल्फिडियं पडिणियत्तति, पच्छामुहयपि ण पडति, इतरस्स सब्वयं जाति अफिडियं पडति, सो आगतो जाव तं णिस्मार्त पेच्छति, अवक्खेवेणं गतो, रण्णो कहियं जहा कोकासो आगतो, तस्स बलेणं सव्वरायाणगा तेणं बसमाणीया, सो गहितो, तेण हम्मंतण अक्खायें, ताहे सह देवीय राया महितो, रोधीयं णागरेहिं अयसभीतेहिं कागपिंडिया पवत्तिया, कोकासो भणिओ-मम पुत्तस्स सत्तभूमिंग पासादं करेहि, मम य मज्झे, तो सव्वरायाणए आणावेस्सामि, तेण णिम्मवितो, कागवण्णपुत्तस्स उणगर्जतं कातूण लेहो विसज्जितो, एहि जाव अहं एते मारेमि, तो इमं पिये च ममं च मोएहिसित्ति दिवसो दिलो, पासा सपुतओ राया विलहतो, खीलिया आहता, संपुढो जातो, सपुत्ततो मतो, कागवण्णपुचेणवि तं नगरं गहितं, पिता य कोकासो पमोइया, अण्णे भगति कोकासेण णिब्विण्णणं अप्पा तत्थेव मारितो । एस सिप्पसिद्धो । विज्जासिद्धो अज्जखउडो, तेसिं पासादेण दिज्जा कण्णाहाडिया, विज्जासिद्धस्स णमोकारेणवि किर विज्जा उपकृ॑ति, सो (547) शिल्पसिद्धः ॥५४१॥ Page #548 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:- 1 "को। तरो जातो, तेण तत्थ सच्चे साहुणो परद्वा तं सुणेता अज्जखउडा] तहिं गता, तेण जातितुं तस्स कने उवाहणाओ ओलतियाओ, देवकुलिओ आगतो पेच्छति, गता लोगे घेण आगतो, ते जतो जतो उम्पार्डेति तओ २ अधिट्टाणं, णगरे कहितं, तेहिवि तहेव दिई, कलडीह पहता, ते य रायकुले संकर्मेति, मुका, पविडो वट्टकरओ, अण्णाणि य वाणमंतराणि पच्छतो सपडिमाणि गच्छति, लोगो पायवडितो विष्णवेति-माहिति सोय अण्णतो विष्परिणामेति सो चिंतात आयरिओ ण सकति मोयावेतुति, तस्स देवकुले महाविस्संदा दो दोणीओ महतिमहालियाओ पाहाणमतीओ, "सो य वाणमंतराणि खडखडावेंताणि, पच्छओ सपडिमाणि हिति, जणेण विष्णवितो, ताणि मुंकाणि, दोणीवि आरतो आणत्ता छडिया, मम सरसो हितचि आहारगिवी मरुअच्छे तच्चणिओ जातो, अयःपात्राणि आगासेणं उदासगाणं घरे भरियाणि ऐति, लोगो तंमुह बहुगो जातो, संघेणं अज्जखडाणं पेसितं, आगतो, अक्खायं एरिसी अकिरियति उट्ठिता, तेसिं कप्पराणं अग्गतो मत्तओ सेतेण वत्थेणं अच्छाइओ जाति, टोप्परिया गता सव्वपधाणिया, आसणे ठिया, अण्णत्थ कया कयाइ पुणो पुणो पंति मरिया जगता, आयरिएहिं अंतरा पाहाणो ठवितो सच्चाणि भिण्णाणि, सोचि चेल्लओ भीतो णट्टो, आयरिया तत्थ गता, तच्चणिया भणति एहि बुद्धस्स पादेहि पडाहित्ति, आयरिएहिं भणितं - एहि पुता ! सुद्धोदणसुता बंद मर्म, बुद्धो णिग्गतो, पादेसु पडितो, तत्थ धूभो बारे, सोवि भणतितो- एहि पाएहिं पडाहिति, सोषि पडितो, उट्ठेहिति भणितो अडोओ ठितो, एवं अच्छहति भणितो ठितो, पासहिगो ठितो, सो नियंठणामितो णामेण संजातो ।। मंतसिद्धो एगंमि नगरे रायाणएण तो नमस्कार ४ विज्जातित्थयरो, सो त भाइणेज्जं ठबेचा पडिव्वायओ वादे पराजितो, (सा परि०) अद्धीइए कालगतो, गुडसत्थे नगरे बडकरओ वाणमंव्याख्यायां ॥५४२॥ (548) विद्यासिद्धः ॥५४२॥ Page #549 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९२४/९२४-९३९], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नमस्कार संजती गहिया, संघसमवाए कए एगेण मंतसिद्धेण रायंगणि थंभा अच्छंति ते अभिमंतिता खडखडेंति, पासखंभावि य चलिया, योगागमाव्याख्यायां तेण भीएण मुक्का, संघो य खामितो ॥ .. थोभिप्रा प्रसिद्धाः ॥५४३॥ 3 जोगसिद्धो आभीरविसए कण्हाए वेण्णाए य अंतरदीवए तावसा, एगो पायलेवेणं पाणिए चंकमति एति जाति य, दालोगो आउट्टो, सङ्का हीलिज्जति, अज्जसमिता वइरसामिस्स मातुलगा विहरंता आगता, सड्ढा उबडिता अकिरियत्ति, आय रिया णेच्छंति, भणति- किं अज्जो ! ण ठाह , एस जोगण केणवि मक्खेति, तेहिं अदुपद लद्धं, आणितो अम्हे दाणं देमोत्ति, अह सो सावओ भणति- भगवं! पादा धोवंतु, अम्हे अणुग्गहिया होमो, तस्स अणिच्छंतस्स पादा पाउयाओ य सोइयाओ, गतो, पाणिते बुडो, उकडिकलकलो कतो, एवं डंभएहि लोगो खज्जतित्ति, आयरिया णिग्गता, णदी भणिता- अहं पुत्ता! पुरिम & कूल जामि, दोवि तडा मिलिता, गता आयरिया, ते तावसा पब्बइता, अंमदीवगवस्थष्यत्ती मदीपगा जाता ।। आगमो चोदस पुण्या णिहूँ पत्ता जाव सयंभुरमणेविज मच्छओ करेति तैपि जाणति । अत्थसिद्धो मंमणवणिओ, जचाए जो चारसवारे समुई जाति, अहबा जहा तुंडिएणं जले गहुँ जले मग्गिज्जतिचि | सतसाहस्सीओ वाराओ भिष्णाओ, परिहीणो, सयणिज्जेहिं दिज्जमाणेवि णेच्छति, पेडएणं लोग उचारेति, देवता उवसंता, सव्वं । दिणं, भणितो- अण्णपि देमि, सो भणति- जो मम णामेण मुयति सो अविग्घेणं एतु । इदाणि अभिप्पायसिद्धो, अमिप्पाओ णाम बुद्धीए पज्जाओ, अभिप्यायोचि वा बुद्धित्ति वा एगहुँ, स च अभिप्रायश्चतुर्विधः दीप अनुक्रम SHERBS SECORREARRACTREAS ECRET (549) Page #550 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्याया ॥५४४॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 उप्पत्तिया वैनयिकी कर्मजा पारिणामिकी, एसा चतुव्विधा बुद्धी, पंचमा नास्ति । योऽर्थो येन भावेन उत्पत्तुकामः तमर्थं तदेवअनुगच्छति, अवबुध्यतीत्यर्थः सोऽर्थोऽपूर्व अदृष्टः अश्रुतः अविदितः अविचालितः तस्मिन्नेव समये तमर्थ गृह्णाति तस्य फलं अव्याहतं ण यण्णधा भवति, एवंविधा उप्पत्तिया, सा जहा उप्पज्जति तथा इमाणि उदाहरणाणि भयंति- भरहसिलपण० ।। ९-५४ ।। ९४० ।। उज्जेणी नगरी जणवए अवंतीए तत्थ गडाणं गामो, तत्थ एगस्स गडस्स भज्जा मता, तस्स य पुसो डहरओ, ते अन्ना आणिता, सा तस्स दारगस्स ण वट्टति, तेण दारएण भणियं ममं लड्डुं न वट्टसि, तहा ते करेमि जहा मम पादे पडिसित्ति, तेण रतिं पिता सहसा भणितो- एस गोहोति, तेण णायं महिला विणट्ठत्ति सिढिलो रागो जातो, सा भणति मा पुत्त ! एवं करेहि, तेण भणितं ग लठ्ठे बसि, भणति बट्टेहामि अपि लट्ठे करीहामि, सा वट्टितुमारद्धा, अष्णदा छाहा चैव एस गोहेति २ भाणत्ता कहेति, पुड्डो छाहिं दरिसेति, ततो पिया से लज्जितो सोवि एवंविधोत्ति, तीसे घण रागो जातो, सोचि अविसंभितो पिताए समं जेमेति । अण्णदा पिताए समं उज्जेणि गतो, दिट्ठा णगरि, णिग्गता पिता पुत्तो, पिता पुणोवि अतिगतो किंपि ठावितगं विस्सरियंति, सो सिप्पाए नदीए पुलिणे नगरं सव्यं आलिहति, तेण णगरी सचच्चरा लिहिया, ततो राया एति, तेण राया वारितो, भणितो-भा राउलमज्झेणं एहिति, रण्णा कोतुहल्लेणं पुच्छितो, सचच्चरा सव्वा कहिया, रण्णा भणितो कहिं वससित्ति ?, तेण भणितं अमुगगामे, पिया से आगतो, ते गता, रायाए य एगुणगाणि पंच मंतिसताणि, एगं मग्गति, जो य सव्यप्पहाणो होज्जत्ति, चिंतियं-एस होज्जत्ति, तस्स परिक्खणणिमितं इमाणि सति सिलमिंदकुक्कुडतिलवालुयहत्थि अगडवणसंडे । परमन्नपत्तलैंडगखाइला पंच पिपरी य ९४१ ॥ (550) औत्पाचि की बुद्धिः ॥५४४॥ Page #551 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप अनुक्रम नमस्कार लेह विसज्जेति, जथा- तुझ गामस्स बहिं माहिल्ली मिला, नीए मंडद करेह, ते आदष्णा, मो दारतो रोहनो छुहातितो, त्पाति व्याख्यायो का पिता से गामेण सम अच्छति, उस्सूरे आगतो, सो रोविति--अम्हे छुहाइया अच्छामो, सो मणति-तुम मुहितोसि, किह , तेण 51 की ॥५४५॥ J8स कहिय, भणति-चीसत्था अच्छह, हेट्ठा खणह खंभे ठवेना थोयथोक्तेण भूमी कया, उबलवणकतावनार रण्णो निवेदितं, केणRI बुद्धिः कतं , रोहएणं भरहगदारएण १। ततो मेंढतो पेसितो, एस पक्खेण एतिओ चेव पच्चप्पिणेतब्बो, तेहिं भरही पुच्छितो, तेणवि विरूवेण सम बंधावितो, जवसं दिण, तं चरंतस्स ण हायति बलं, विरूवं च पेच्छंतस्स भएण ण वडतित्ति २। एवं कुक्कुडो अदाएण समं जुज्झावितो ३ । तिकसम तेल्लं दातव्यंति तिल्लमदाएण पणामियं ४ । बालुयाए बरहए पडिहत्थं देह ५ । हथिम्मि जुष्णहत्थी गाम छूढो, हत्थी अप्पाउओ मरिहितित्ति अप्पितो, मतोत्ति ण णिवेदितव्वं, हत्थी मतो, तहिं णिवेइयं जथा ण चरति ण णीहारेति था ऊससति ण णीससति, रण्णा भणित-मतो?, तेहिं भणित-तुब्भे भणहत्ति ६ । अगडे आरण्णओ ण तीरति एकल्लतो णागरं अगडं देह । वणसंडे पुवावासे गतो गामो ८ । परमणं कारिसउम्हाए पलालुम्हाए यत्ति ५। एवं परिक्खिऊणं समादिहूं-रोहगेण आगंतव्यं, तं पुण ण सुकपक्खे ण कण्डपक्खे पोराति ण दिवा ण छायाए ण उण्हेणं ण छत्तण ण आगासणं ण पादेहि ण जाणेणं ण पंथेण ण उपहेणं ण ण्हाएणं ण मलिणणं, पच्छा अंघोलिं कातूण चकमज्झभूमीए पडिकमेणं एगे पादं कातूण चालणीणिम्मितुत्तिमंगो, अन्ने भणति--समदुलट्टणीपदेसबद्धओ छाइयपडगेणं संझासमयंसि अमावासाए आगतो, रण्णा पूजितो, आसण्ण य से ठितो, यामविउद्धेण रण्णा सद्दाविओ-सुत्तो? जग्गसि ?, भणति--जग्गामि, सो सुत्तो विबुद्धो उहितो, रण्णा भणितो-जग्गसित्ति ?, जह आणवेह--कि तुहिको अच्छसि ?, तेण भणिय-चितीम, किं चिंतेसि ?, भणइ-असोत्थपत्ताण किं विंटो ARRY (551) Page #552 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 A नमस्कार.13 महल्लो उदाहु छिहा १, किह ते चिंतियं, भणइ-दोवि समाणि, पीए जामे छालियालिडियाओ, बातेण, ततीए खाइला 8 ऑत्पिाति व्याख्यायात जत्तीया पंडरगा तत्तिया कालगा, जत्तियं पुच्छं तत्तीय सरीरपि आयामेण, चउत्थजामे सद्दाविओ वायं ण देति, तेण कंटियाएदा पच्छिन्नो उडितो, भणति- किं जग्गसि सुयसि ?, भणति-जग्माभि, किं करेसि', चिंतेमि, किं चिन्तेसि', कतिहिं सि जातो, बुद्धि तो कतिहि , तेण भणिय-पंचहि, केण केण १, रण्णा वेसमणेण चंडालेणं रयएणं विछिएणं, तेण माया पुच्छिता, णिबंधे हैं।कहितं, सो पुच्छति -किह ते णायति', सो भणति-येन यथान्यायेन राज्ज पालयसि तेण गज्जसि रायपुत्तोत्ति, बेसमणो दाणेणं, भरोसेण चंडाले णं, सबस्स हरणेणं रययो पुण, जेण ममं उच्छुपसे तेण विछितोत्ति, तुडो राया, सव्वेसि उवरि ठवितो भोगा दय से दिण्णा ॥ पणितए दोहि पणिय बद्धं, एगो भणति-जो एताए लोमसियाए खाति तस्स तुम किं देसित्ति, इयरो भणति- जो 1| जिव्वति तेण जो णगरदारे मोदओ ण णीति सो दातब्बो, एगो जीतो, इतरो मग्गति, सो से रूवर्ग देति, इतरो णेच्छति, ताहे दिदोण्णि, जाहे ण तेहिं तूसति ताहे तेण जूयकारा ओलग्गिता, बुद्धी दिण्णा, ताहे पूवियावणाओ एग मोदगं गहाय इंदखीले ठवेति, मणितो-णीहि मोदगा, ण णीति, जीतो ॥ रुक्खे फलाणि, मक्कडा ण देंति, पाहाणेहिं हया, तेहिं फला खित्ता। ॥५४६॥ 181. खड्डए पसेणती राया, पुत्तो से सेणिओ, रायलक्खणसंपण्णो, तस्स किीच ण देति-मा मारिज्जिहित्ति, सो अहिए णिग्गतो, वेण्णातई आगतो, वणियसालयाए ठितो, तस्स लाभो तप्पभावेण, सो मच देति, धृताए संपक्को, दिण्णा, रायाए लेहो विसज्जितो, सो आपुच्छति, सा भणति- तुमहिं कहि , सो भणति- अम्हे पंडरकुंडगा रायगिहे गोचाळा पसिद्धा, गतो य, आवण्ण-12 NSARKARE (552) Page #553 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम सत्ताए दोहलो देवलोगचुयस्स अभय सुणेज्जामि, वाणितो दवं गहाय उवहितो रण्णो, रण्णा गहिय, उग्पासावियं, प्रत्तो जातो, It की व्याख्यायां अभयोति णाम कत, पुच्छति- मम पिता कहिंति !, ताए कहित, भणति- बच्चामोत्ति, सत्येण समं बच्चति, रायगिहस्स बहिया | ठिता, णगरगवेसतो गतो, राया मंती भग्गति, सुक्ककूवे खुडग पाडिय, जो गेहति हत्थेण तडे ठितो तस्स राया विचि देति, ॥५४७॥ अभएण दिएं, आहतं छाणेणं, सुक्के पाणिय मुक्क, तडे संतएण गहियं, रणो समीब णीतो, पुच्छति- तुम को ?, भणति-तुम्हपुत्तोत्ति, किह वा किंवा ?, सव्वं पडिकहिय, तुट्ठा उच्छंगे कतो, माता पवेसिज्जती मंडीत, तेण धारिया, अमच्चो जातो। म पडे, दो जणा हायंति, एगस्स दढो पडो, एगस्स जुण्णो, जुण्णइतो दढं गहाय पट्ठिओ, इतरो मग्गति, सो ण देति, ववदाहारो, महिलाओवि कंताविताओ, दिण्णो जस्स जो,अण्णे भणंति- सीसाणि ऑलिहिताणि, एगस्स उण्णपडओ पीयस्स सोतिओ। | सरडो, सणं योसिरंतस्स सरडा भंडती, एगो तस्स अधिट्ठाणस्स हेट्ठा बिल पविट्ठो, पुच्छिण छिक्को, घरं गतो, अद्धितीए 3] दुब्बलो जातो, बेज्जो पुच्छितो भणति- जदि सतं देह, दिण्णं, तेण घडए सरडो छुढो लक्खाए विलेपित्ता, विरेयणं दिण्णं, बोसिरियं, सरडो कप्परे दिट्ठो, लट्ठीहूतो ॥ वितिओ सरडो, भिक्खुणा सुट्टओ पुच्छितो (भणति) एस सरडो किं सीसं चालेही, तेण भणित- तुम जोपीत- किं भिक्खु भिक्खुणित्ति ॥ ★५४७॥ कागे, तफचण्णिएण सुडओ पुच्छितो- अरहताः सर्वज्ञाः?, बाढं, तो कित्तिया इह कागा,सट्टि कागसहस्साई इहयं विष्णातडे | द्र परिवसति । जदि ऊणमा पवसिता अम्माधिता तत्थ पाहुणगा ॥१॥ बितिओ णिहिम्मि दिढे महिके परिक्खति- रहस्सं SMADACANCaex (553) Page #554 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत PESAR की बुदिः नमस्कार घरेति गवित्ति , सो भणति-मम पंडरओ कागो अहिड्डाण पविट्ठो, ताए सुहिज्जिताणं कहित जाव रण्णा सुर्य, पुच्छितो, कहियाओत्पानि | रण्णा से सुकं मुक्क, मैती य निउत्तो । ततिओ विट्ठविक्खरणे भागवतो खुट्टग पुच्छति, सुहगो भणति- एस चिंतेति- एस्था ॥५४८॥ विण्हू अस्थि णस्थिचि । उच्चारे, धिज्जातियस्स भज्जा तरुणी, गामंतरं णिज्जमाणी धुत्तेण समं लग्गा, गामे बबहारो, विभत्ताणि पुच्छिताणि, &ा आहारविरेयणं दिण्णं, तिल्लमोदगा, इयरो धाडिओ। गये, हत्थी महतिमहालओ जो तोलति तस्स सतसहस्सं देमि, णावाए तोलति, लछित्ता णावाए उत्चारितूण पाहाणाणं है ठा भरिया, जाव से लेहा, पाहाणा तोलिया, एत्तिय तुलति, जितो । पला घतणो भंडो सव्वरहस्सितो, राया देवीय गुणे कहेति-णिरामयं, सो भणति-ण भवति, किह ?, जया पुप्फाणि केसIN वाते ढोएति, तहत्ति विण्णासियं, गाए हसिय, णिबंधे कहियं, णिव्सिओ, सुणति, उवाहणाण भारेण उबवितो, उड्डाहभीताए रुद्धो। गोलओ णकं पविट्ठो जतुमतो,सलागाए तावेत्ता कड्डितो। खंभो तलागमज्झे, जो तडे संतओ बंधति तस्स सयसहस्सय दिज्जति, तमेव खोलग बंधितूण पडिबंधितूण बद्धो, जितो |५४॥ खुट्टए, पारिवाइया भणति- जो जे करेति तं मए कायब्वं कुसलकम्म, खुडओ गतो भिक्खस्स, पडहओ वारितो, गओ राउलं, दिट्ठा, सा भणति- कतो गिले १, तेण सागारियं दातिय, जिया, काइएण य पउम लिहिय, सा न तरति, जिता। RESED दीप अनुक्रम SECORRC (554) Page #555 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 5548 दीप नमस्कार व्याख्यायांना मग्गेत्ति एगो भज्ज गहाय पवहणेण गामंतरं वच्चति, सा सरीरचिंताए ओतिण्णा, तीए रूवेण वाणमंतरी विलग्गा, इतरीओत्पाति रडति, ववहारो, दूर हत्थो पसारितो, णातं । बुद्धिः ॥५४९॥ इस्थिति मलदेवो अप्पवितिज्जितो बच्चति, इतो य एगो पुरिसो समहिलो आगच्छति, दिट्ठो, तीए रूबे मुच्छितो, एगते उब्वतिऊण अच्छति, तेण बितियएण भण्णति महिला-इत्तो मम महिला वितातुकामा एयं विसज्जिहित्ति, तेण विसज्जिया, सा तेण समं अच्छति, इतरीवि मूलदेवेण समं रमितूण आगता, णिग्गंतूण य तत्तो पडय घेतूण कंडरियस्स धुत्ती भणति हसंती-1 8 पियं खुणे दारओ जातो। | पतित्ति, दोण्हं भातुगाणं एगा भज्जा, लोगे फुडं- दोहवि समा, रण्णा सुतं, परं विस्सयं गतो, अमच्चो भणति-कतो एवं होहिचिा, अवस्सं विसेसो, तेणं लेहो दिण्णो जहा गामं गंतवं, एगो पुब्बेणं एगो अवरेण, भज्जाए अल्लाविओ, तीए जो पिओ ४ सो अवरेणं पेसिओ, जो चेसो सो पुष्वं पेसितो, वेसस्स गच्छंतस्स आगच्छंतस्सवि निडाले यूरो, असद्दहतेसु पुणोवि पट्ठचितूण | दिसमगं पुरिसा पेसिता, ते भणंति-ते दहें अपहुगा, एसो मंदसंघयणोति भाणतुं तं चेव पवण्णा, एवं णायं । पुत्ते जाए एगो वाणियओ भज्जाहिं सम अण्णं रज्जं गतो, तत्थ मतो,ताओ दोवि भणति-मम पुत्तोत्ति,पुत्सणिमित्त ववहारो, ॥५४९॥ ठाणेच्छति, अमच्चो भणति--दवं विरिचित्तु दारगं दो भागे करेह करकचएणं, एगा भणति-एवं होत, माता भणति-एतस्स पुती, मा मारिज्जतु, तीसे विदियो । SACREASACANCIEN अनुक्रम (555) Page #556 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप नमस्कार का मधुसित्थो काई कोलिगिणी उभामहला य, तेणेव विहाणेण दरिसित, नाता उन्भामइलति । व्याख्यायां मुदियाए पुरोहिते णिक्खेवए घेचूर्ण अण्णेसि ण देति, अण्णदा दमएण ठविय, पडियागतस्स ण देति, सो पिसायो जातो, II अमच्चो बीधीए जाति, भणति दायह पुरोहिता ममयं सहस्सं, तस्स किया जाता, रणो कहितं, रण्णा भणित--देहि, ण IN गेहामिति, मग्गेति, अण्णदा रायाए सम जुतं रमति, णाममुद्दागहण, रायाए अलक्खगं गहाय मणूसस्स हत्थे दिण्णा, अमुग & कालं साहसो पउलओ दमएण ठवितो तं देहि, इमं अभिण्णाण, दिण्णो, आणितो, अण्णाण णउलाण मज्झे कतो, सो सहावितो, पञ्चभिण्णातो, पुरोहितस्स जिम्मा छिना । अंको तहेव एगेण णिक्खित्तं लंछेतूणं, इतरेण हेट्ठा गहिया, ओसिबित्ता कूडरूवगाणं भरितो, पच्छा तहेव सीवितं, आगतस्स अल्लिवितो, सा मुद्दा उग्घाडिया जाव कूडगरूवगा, वबहारो, पुच्छितो केत्तिया रूवगारी, सहस्स, गणिऊण भरिए ऊणगं जातं, तथा तडितेउं ण तीरति सब्वे तु, एवं जातं । ना णाणए तहेच णिक्खेवओ, पणा छुढा, आगतस्स दिण्णो,अण्णो णउलतो, पणे पुच्छा, राउले ववहारो,कालो को आसिर,अमुगो, अहुणतणगा पणा, से चिराणओ कालो, दंडिओ। ॥५५०॥ भिक्खू तहेव णिक्खेवन न देति, जूतकरा ओलग्गिया, तेहिं पुच्छिएणं सब्भावो कहितो, ते रचपडगवेसेणं गता सुवष्णस्सी खोट्टियाओ गहाय, अम्हे बच्चामो, चेइयं वंदामो, इम अच्छउ, मो य पुब्बभणितो,एतमि अंतरे आगतेण मग्गितं तए, लेभे REERSAREE अनुक्रम (556) Page #557 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रता लताए दिणं, अज्णेवि भिक्खू एतगा तो एगाए मंजूसाए चेव कज्जिहिति णिग्गता। औत्पाति व्याख्याया। चेहगणिधाणे, दो मित्ताणि, तेहि णिधाणगं दिई, कल्ले सुनक्षत्ते लेहामोत्ति, एगण रसिं उक्खणिऊण इंगाला छूढा, विति-IPI ॥५५१॥ यदिवसे गता, इंगालं पेच्छति, सो धुत्तो भणति- अहो अम्हं मंदपुण्णया, इंगाला जाता, तेग णात, हिययं न दरिसेति, तस्सी बुद्धिः पडिमं करेति, दो मक्कडए गेहति, तस्स उपरि भन देति, ते छुहाइया तं पडिमं चदंति,, अण्णदा भोयणग सज्जितं, दार गा तस्सच्चया आणिता, संगोविता, ण देति, भणति-- मक्कडगा जाता, आगतो, तत्थ लेप्पगढाणे आवेसावितो, मक्कडगा 2 मुक्का, किलकिलंता तस्स उवरि विलग्गा, णात, दिण्णो भागो।। ___ सिक्खा,अस्थि धणुब्बेओ एगो राजपुत्तो, जथा सेणिओ तथा हिंडंतो एगस्थ उ ईसरपुत्तए सिक्खवेति,दबं विढतं, तेसि पिती, मिसगा चिंतति-बहुतं दव्वं एतस्स दिण्णं, जदया जाहिति ततिया मारिज्जिहिति, तेण णातं, संचारितं णातगाणं-जहाह राति छाणपिंडए गदीए छुभीहामि ते लएज्जह, तेण लोलगा वालिता, एसा अम्द विधित्ति तिहिपव्वणीसु दारएहि सम णदीहै य छुभति, एवं णिचाहेतूण गट्ठो। ___ अत्धसत्थे एगेण पुत्तेण दो सवित्तीओ, ववहारो ण छिज्जइ, इतो य देवी गुब्बिणी उज्जाणियं गता, ताओ उवाहिताओ, 3सा भणति- मम पुत्तो जो होहिति सो अत्थसत्थं सिक्खिहिति, एतस्स असोगस्स हेट्ठा णिविट्ठो क्वहारं छिदिहिति ताव दोवि | अविसेसेणं खाह पिवहाति, जीसे ण पुचो सा चिंतेति- एचितो ताव कालो लद्धोति पडिसुतं, णाता, ण एसी । । दीप अनुक्रम (557) Page #558 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५५२॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) भाष्यं [१५१...] मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [९४०-९४२/९४०-९४३], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 इच्छाए, एगाए भचारो मओ, वडिपडत्तं तं ण उग्गमति, पतिमित्तो भणितो- उग्गमेहि, तेण भणितं मज्झतिभागं देहि, ताए भणितं जं तुमं इच्छसि तं ममं देज्जासि, तेण उम्मग्गितं, सतं दिष्णं, सा णेच्छति, वबहारो, आणावितं, दो पुँजा कता, कतरं तुमं इच्छसि', भणति बहुं, ताए भणितो- एतं चैव ममं देहित्ति, दवावितो । सतसहस्पति, एगो परिभट्ठतो, तस्स सतसाहस्सं खोरं, सो भणति जो मम अपुच्वं सुणावेति तस्स एतं देमि, अण्णदा एगं णगरं गतो, तत्थ उग्घोसेति, सिद्धत्थपुत्त्रेण सुतं, भणति मज्झ पितुं तुज्झ पिता धारेति अणूणगं सतसहस्सं । जाद सुतपुब्बं दिज्जतु अह ण सुतं खोरयं देहि ॥ १ ॥ जिओ । उत्पत्तिया गता । इदानीं वैनयिकी, विनयात् निष्पन्ना वैनयिकी को विनयः ?, गुरुशुश्रूपाविनयादिः, पच्छा सो गुरू तस्य बुद्धिं तस्मिन् शास्त्रे विनयति गमयति प्रापयतीत्यर्थः सा विनयिकी, सा य केवंविहा भवति ?, उच्यते-भरस्य निस्तरणसमर्था, भरो णाम अतिगुरुकं कज्जं, तस्या धारणी, त्रिवर्गो नाम धर्मार्थकामा, अहया लोगो वेदो समयो, सूनं अर्थः तदुभयं एतेसिं पेयालना, पेयालनं परिज्ञानं अभिगमनमित्यर्थः, उभयोलोगफलवती इमो परो वा, कोई इहलोइओ तीसे फलवतीओ, कोई परे, तत्थिहलोगो सक्कारा दव्तं देति परलोगे स्वर्गमोक्षी च, कही, निमित्तं जाणति, अनुगत्थ विहरितव्वंति एवमादि परलोइयं, विनयात्समुत्थानं यस्याः सा भवति विनयसमुत्था, बुध अवगमे, सा य बुद्धी, कहं फलवती भवति ?, तत्थ उदाहरणाणि, न शक्यं दृष्टान्तिकोऽर्थो दृष्टान्तमन्तरेणोपपादयितुं तेन तीसे इमाणि उदाहरणाणि - (558) वैनयिकी बुद्धिः ॥५५२॥ Page #559 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४४/९४४-९४७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक" नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत बुद्धिः दीप अनुक्रम नमस्कार __णिमित्ते अत्य० ॥९-५८ ॥ ९४४ ॥ णिमित्ते, एगस्स सिद्धपुत्तस्स दो सीसगा णिमित्तं सिक्खंति,अण्णदा तणकट्ठस्स & वनयिकी व्याख्यायां वच्चंति, तेहिं हस्थियपदा दिवा, एगो भणति- हरिथणियाए पादा, कहं १, कायएण, सा हस्थिणी काणी, कह , एगपासेण 21 | तणाई खइताई, तेण काइएण णात जथा- इत्थी पुरिसो य चिलग्गाणि, सोवि णातो, सो य जुब्बाणत्ति जातो, हत्थाणिं रुभित्ता उद्विता, दारओ से भविस्सति जेण दक्षिणपादो गुरु, पोतरत्ता दसि रुक्खे लग्गा। णदीतीरे एगए थेरीए पुत्तो पवसितओ, | तस्स आगमणं पुच्छिया, तस्थ घडओ भिण्णो, तत्थ य एगो भणति- तज्जातेण य तज्जातं, तण्णिभेण य तण्णिम । तारूवेण य 51 हतारूवं, सरिस सरिसेण णिदिसे ॥१॥ मतओति परिणामेति, बितिओ भणति जाहि बुझे ! सो घर आगतेल्लओ, सा गता, दिट्ठा, तुट्ठा, तओ सा जुवलग रूवए य गहाय आगता, सक्कारिओ, वितिओ भणति-मम सम्भावं ण कथेति, तेणं पुच्छियं, saf जथाभूतं कहितं, एगो भणति-भूमिजो भूमि चव मिलितो, एवं सोवि दारतो, भणितं च-तज्जाएण य तज्जातं०' सिलोगो। हा अत्थसत्ये कप्पओ दधिकुंडगउच्छुकलाबग एवमादि । लेहे जथा अट्ठारसलिविजाणओ । एवं गणिएवि । अण्ण भणंति । बट्टेहिं रमतेण अक्खराणि सिक्खाषियाणि गणियाइ य । कूवे खायजाणएणं पमाणं भाणतं, जथा एदूरे पाणियंति, तेहिवि खतं, तो 8 वोलीणं, तस्स कहिय, पासे आणहद्दत्ति भाणता,धव्यसगसद्देण जलमुट्ठाहियं । आसे, आसवाणियगा बारवतिं गया, सब्वे कुमारा। थुल्ला बडे य गण्डंति, वासुदेवेण जो दुब्बलङ्गो लक्खणजुत्तो सो गहितो । गहभे राया तरुणप्पितो, अण्णत्थ उद्धाइता सिणपल्लिते ||५५३॥ 13जारिसे, तिसाए पीडिया, थेरं पुच्छति, घोसावित, एगेण पियपुत्तेण आणितओ, तेण कहियं, थेरो भणति-मुयह गहभे, जत्थ गद्द-15 SIभा उस्सिति जहिं लुठिति य तत्थ पाणितं, खयं,पीता य । अण्णे भणंति-उस्सिंघणाए चेव जलासतं गता। लक्षणे पारसविसएट्री (559) Page #560 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४४/९४४-९४७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत बुद्धि दीप अनुक्रम नमस्कार आसरक्सओ, धीताए तस्स सम संपत्ति, ताए भणितो-वीसत्थाणं घोलचम्म पाहाणाण भरेतूर्ण रुक्खाओ मुयाहि, तत्थ जो ण व्याख्यायो उत्तसति तं लएहि, पडहं च तालेहि, युझावह य खक्खरएणं जो ण उत्नसति तं लएहि, सो वेतणगकाले भणति-मम दो देहि, अमुग २ वा, तेण भणित- सच्चे गिहाहि, किं ते एतेहिं १, णेच्छति, भज्जाए कहणं, धीता से दिज्जतु, सा णेच्छति, सो तीसे 18 वङ्गति, दारक कहेति, लक्खणजुत्तेणं कुटुंबं परिवड्डतित्ति ।। एगस्स मातुलएणं धूया दिण्णा, कम्म ण करीत, भज्जाए चोइतो दिवे दिवे अडवीओ रित्तओ एति, छठे मासे लद्धं कुलबो, सतसहस्सेण सेट्टिणा लइओ, अक्खयणिहिति।। गंधम्मि, पाडलिपुत्ते णगरे। पालित्तगा आयरिया अच्छंति,इतो य जोणिएहिं इमाणि विसज्जियाणि पाडलिपुत्तं-मुत्तं मोहितग लट्ठी समा मुदिओ समुग्गओति, लाकेणइ ण णाता, पालियआयरिया सदाविता-तुन्भेहि जाणह भगवंति?, बाढ़ जाणामि, सुतं उण्होदए छडं,मयणं विराय, दिट्ठाणि | अग्गिमाणि, दंडओ पाणिए छूटो, मूलं गरुयं, समुग्मतो जतुणा घोलितो उण्होदए, कढिंतो उग्धाडितो य । तेणविय लाउयं सराइल्लेऊण रयणाणि छूढाणि, तेण य सिविणीए सिबेऊण विसज्जित, अभिदंता फेडह, ण सक्कितं ॥ अगदे, परबलं णगरंग रोहेतुं एतित्ति रायाए पाणियाणि विणासितव्वाणि, विसकरो पाडितो, पुजा कता, बेज्जो जयमेन गहाय आगतो, राया रुडो, वज्जा भणति-सतसहस्सवेधी, कहं, खीणाऊ हस्थी आणितो, पुच्छवालो उपाडिआ, तेणं व बालग्गेण तत्थ विसं दिण्ण, | ४ विवण करतं दीसति, एस सव्यो विस, जोवि खाएति सोपि विसं, एवं सतसहस्सवेधी, अस्थि णिवारणविधी १, बाद तत्थेव अगदो दिण्णो पसमतो जाति ॥ रहिय गणिया एक चेब, पाइलिपुत्ते दो गणियाओ-कोसा उपकोसा य, कोसाए समं थूलभहसामी अच्छितो आसि, पच्छा पब्बइतो, ताहे परिसारचो तत्थ गतो, साक्किा जाया, अबमस्स पञ्चक्खाइ, षण्णत्थ रायामि ॥५५४।। (560) Page #561 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [3] अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ।।५५५।। "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा-1 निर्युक्तिः [ ९४४/२४४-१४७] आयं [१११...]] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - योगेण, रधिष्ण राया आराहितो, दिण्णा, सा धूलमदसामिस्स अभिक्खणं २ गुणे गेण्हति तं ण तथा उवचरति, सो ताए अप्पणी विष्णाण सेतुकामो असेोगवणियभूभीगतेण अपिडि च्छोडिता, कण्डपुक्त्रं अष्णोष्णं लाएंगे इत्यन्मासं आणेचा अडचंदेण छिण्णे गहिया, तं तथावि ण तूसति, भणति किं सिक्खियस्स दुक्करं १, सा भणति पेन्छ ममंति, सिद्धत्थगरासिंमि गच्चिता, सूचीण अग्गयंमि य, कणियारपुप्फपोइयासु, सो आउट्टो, सा भणति ण दुक्करं तोडिय अवपिंडी, ण दुक्करं णचितु सिक्खियाए। तं दुक्करं तं च महाणुभार्ग, जं सो मुणी पमयवणं निविडो || १ || सीया साडी दीहं च तणं अवसव्वगं च कौंचरस एक्कं चैव, रायपुचा आयरिएणं सिक्खाबिया, दव्वलोभी य सो राया, तं मारेतुं इच्छति, ते दारगा चिंतीत एते अम्हं विज्जा दिण्णा, उपारण णित्थारेमो, जाहे से जेमओ एति ताहे ण्हाणसाडियं मग्गति, ते सुक्खयं भणति अहो सीया साडी, बारमुहं तणं देति, भणति अहो दीहं तणं, पुव्वं कोंचतेणं पदाहिणीकरेंति, तद्दिवसं अपदाहिणी कतो, परिगतं जधा विरताणि, पंथो दीहो सीताणं तं मम कातुं मग्गतित्ति, णट्टो ॥ णिब्बोदर, वणियभज्जा चिरपउत्थे पतिम्मि दासीए सम्भावं कति पाहुणगं आणेहिति भणिता, ताए पाहुणओ आणियओ, आयसंच से कारियं, रतिं पबेसितो, तिसाइओ णिव्योदगं दिण्णं, मओ, देउलियाए उज्झितो, अहुणा कयकम्मोति महाविया पुच्छिता केण आउसे कारियं तेण भणितं दासीए, सा पहता, ताए कहियं, वाणिगिणी पुच्छिया, साहति सम्भावं, तयाविसो गोणसोत्ति, दिट्ठो य ॥ गोणे घोडगरुक्खपडणं च एवं चेव, एगो अकतपुण्णो जं कम्म करेति तं विवज्जति मित्तस्स जाइएहिं बतिलेहिं हलं बाहेति विगाले आणिया, बाडे छूढा, सो य मित्तो से जेमिति, सो लज्जाए ण टुको, तेचि दिट्ठा, णिफिडिता वाडाओ, हरिया, गहितो देहित्ति, राउलं णिज्जति, पडिपणं घोडएणं पुरिसो एति, सो तेण (561) वैनयिकी बुद्धिः ॥५५५॥ Page #562 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [3] अध्ययनं [-1, मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५५६॥ "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा-1 निर्युक्तिः [ ९४४/२४४-१४७] आयं [१११...]] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - पाडितो आसेण, सो पलाओ, तेण भणितो- आहणारी, तेण मम्मे आहतो, मतो, तेवि लतितो, विगालोत्ति नगरस्स बाहिरियाए वृत्था, तत्थ लोमंधिया सुत्ता, इमेवि तर्हि चैत्र, सो चितेति- जावज्जीवं बंधणे करिस्सामि वरं मे अप्पा उच्चद्धो, तेसु सुत्तेसु डण्डिखंडेण तम्मि वडरुक्खे अप्पार्ण उक्कलंवेति तं दुब्बलं, तुतेण पडतेण लोमथितमहचरओ मारितो, तेहिवि गहितो, पभाते करणं णीतो, तेहिवि कहितं जथावतं, सो पुच्छितो भणति आमंति, कुमारामच्चो भणेति तुमं बलिद देहि, एतस्स अच्छीणि उक्कमंतु वितिओ भणितो- एतस्स आसं देतु, तुझ जीहा उक्कमतु, इतरे मणिया-एस हेड्डा होतु तुम्भं एगो उबंध, पिडिभोगोत्ति मंतणा का मुक्को। वेणतिया गता । कम्मया णामं कर्माज्जाता कर्मजा, सा 'उवयोगदिसारा' उपयुज्जत इत्युपयोगी, उपयोगन यासां सारः सा भवति उपयोगष्टसारा, सारो नाम सद्भावः, निष्ठेत्यर्थः कर्मप्रसंगो नाम अभिक्खयोगः, परिघोलणा णामं सहायपरिमग्गणं, ते पण विसाला फलवती हवति बुद्धी, ताए फलं साहुक्कारो, साधु सोभणं कर्तति । एगेणं चोरेणं खत्तं पउमागारेण छिष्णं, सो जणचातं णिसामेति, करिसओ भणति किं सिक्सितस्स दुक्करं ?, चोरेण सुतं, पुच्छितो, गंतून छुरियं अंछितूण भणति मारेमि, | तेण पडयं पत्थरेसा वीहियाणं मुडी भरितो, भगति किं परंमुहावरंतु ? आरंमुहा ?, पासिल्लया, तहेव कर्त, तुझे । कोलितो मुट्टीणा महाय तंतू जाणति एत्तियाएहिं कण्डएहिं बुणिहितित्ति । डोए वढति जाणति एत्तियं माहिति । मोतियं आणितो आगासे ओक्खवत्ता तथा णिक्विति जथा कालवाले पडति । घते सगडे संतओ जदि रुच्चति कुण्डिताए णालए छुमति धारं । पवओ आगासे ताणि करणाणि करेति । तुणाओ पुब्वं श्रुल्लाणि पच्छा जहा ण णज्जति सूर्याए, तत्तियं गण्हति जत्तिएण समप्पत्ति, जथा (562) कर्मजा - बुद्धिः 1144511 Page #563 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४४/९४४-९४७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार साभिस्स तं दुसं धीयारेणं कारितं । वई अमवेतूण देवकुलरथाण पमाणं जाणति । घडगारो पमाणेण मट्टितं गेण्दति भाणस्सवि . परिणामिव्याख्यायां माणं अमविचा करेति । चित्तकारी पच्छा अमवेतूणं पमाणजुत्र करेति, तत्तियं वा वणयं करेति जत्तिएणं समप्पति ।। कम्मया | समत्ता॥ 11५५७॥ बुद्धि इदाणिं परिणामिता, परिणामनिष्पना पारिणामिता, मनसो परिणामात् वयसश्च, सा य एवंविधा___ अणुमाणहेतु।९-६२ ।। ९४८ ॥ अणुमाणहेतुदिटुंतेहिं साध्यमर्थ साधितीति अणुमाणहेतुदिद्रुतसाधिगा, तत्थ अणुमाणं | अविणाभावणिच्छियातो लिंगातो लिंगिणाणं, हेतू कारणं उयाओ, दिद्रुतो साधम्मेण वैधम्मेणं य, एतेहिं जो जेण साध्यो अत्थोतं | तेण साधेति या सा तथा, वयविपाकेण य परिणामो जीए सा तथा, जथा जथा वयो विपच्चति तथा तथा विपरिणमितित्ति जं भणि४/ तं, फलं णिदंसेति 'उभयोलोगफलवती' पुव्वं वण्णितं, अहवा हियणिस्सेयसफलवती, कायहिता भवति, ण सुखा आवाते | |जहा कटुकरोहिणी चेवमायोज्जमिति ॥ तीसे इमाणि णिदरिसणाई अभए॥९-६३ ।। ९४९।। खमए ।। ९-६४ ॥ ९५० ॥ चलणाहण ॥ ९-६५॥ ९५१ ।। अभयस्स कहं पारि|णामिया बुद्धी, जदा पज्जोतो गतो, रायगिह रोहित, तदा अभएणं खंधावारणिवेसजाणएणं पुव्वं णिक्खंता कूडरूवगा | | धूमिया, कहियं च से जथा भेदिता खंधारा, दावितेसु नट्ठो, एस वा, अहवा जाहे गणियाहि कपडेण णीयो बद्धो ताव तोसिओ ||५५७॥ |चत्तारि वरा, चिंतियं चाणेणं- मोयायेमि अप्पाणं, बरो मग्गिओ- अग्गी अतीमित्ति मुक्को, ताहे भणति- अहं तुम छलेण आ|णिती, अहं पुण दिवसतो पज्जोतो हरतित्ति कंदतं नगरमजोण नेमि, गतो. रायगिह, दासो उम्मत्तओ कतो, गणियाओ दारि अनुक्रम संस्कCRACSCA (563) Page #564 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत व्याख्यायाटा नमस्कार/3याओ गहियाओ, वाणियओ गओ, रडतओ हितो, एवमादिगाओ बहुगाओ अभयम्मि पारिणामियाओ युद्धीओ। सेट्टित्ति कट्ठो 81 परिणामि णाम सट्टी एगत्थ णगरे वसति, तस्स गं बज्जा णाम भज्जा. तस्स ब्वइल्लो देवसम्मो बभणो, सेट्टी दिसाजचाए गतो, मज्जा ॥५५८॥ स तण सम संपलग्गा, तस्स य घरे तिष्णि य पक्खी-सूयओ मयणसालिया कुक्कुडओ, सो ताणि अप्पाहेत्ता गतो, सो धिज्जा-1 18 तिओ रति अतीति, मयणसालिया भणति-को ताया ण बीहेति, सूपओ वारेति- जो अत्तियार दयितो अम्हंपि पियल्लओ होति, सा मयणसलाइया अणथितासिता धिज्जातित परिस्सवति, तीए मारिया, सूयओ ण मारिओ, तीसे पुत्तो लेहसालाए पढति, अण्णदा तस्स (घर) साधणो भिखस्स अतिगता. कक्कडगं पेच्छितण एगो भणति-जो एपस्स सीस खाइ सो राया होतिचि, तं तेण धिज्जातिएणं किहवि अंतरिएणं सुत, अबिरतियं मणति-मारेहि जाव खामि, सा भणति- अण्णं आणिज्जतु मा पुत्तभंडं व संवडित, णिबंधे मारिओ जाब ण्हाउं गतो, ताव सो दारओ लेहसालाओ आगतो, तं च मंस सिज्झति, सो रोवति, तस्स सीसं दिण्णं, इतरो आगतो, भाणए छुढं, सीसं मग्गति, भणति- चेडस दिण्णं, सो रुट्ठो भणति- भए एतस्स कज्जे मारावितो, पच्छा भणति- जति पर एतस्स दारगस्स सोसे खातेज्जा तो कतै होज्ज, णिबंधे ववसिता, दासीए सुतं, सा तं दारगं ततो चेव घेत्तूण पलाया, अण्णं पगरं गताणि, तत्थ राया मरति, आसेण परिक्खितो, सो तत्थ राया जातो। इयरोवि सेट्ठी आगतो जाव सडितपडितं पासति, सा पुच्छिता-ण कहेति, सुरण पंजरमुक्केण कहितो बंभणाइसंबंधो, सो तहेव चितीत, अहं ॥५५८॥ एतीसे कतेण, एसा पुण एवंति पयतितो, इतराणिवि तं चेव णगरं आगताणि सव्वं गहाय, अण्णदा विहरंतो सो साधू तत्थ गतो, तीए पच्चीभण्णातो, भिक्खेण समं मासगा दिण्णा, पच्छा कूक्ति, गहितो, रायाए मूलं नीतो, धातीए णातो, इतराणि 446 SAKSEHORRORRENA दीप अनुक्रम CCC (564) Page #565 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ।। ५५९।। “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 णिव्विसताणि आणताणि, पिया भोगोह निमंतितो, गच्छति, राया सङ्को कतो, बरिसारते पुण्णे वच्चतस्स अकिरियाणिमित्तं धिज्जातिएहि उवक्खरियाए परिभडियारूवकतगुब्विणी य तथा अणुव्रजति, तीए गहितो, सो पवयणस्स उड्डाहो होहित्ति भगतजदि मए तओ जोणीए गीतु, अह ण होति मर्म तो पोट्टं मिदित्ता जीउ, एवं भणितो पोट्टं भिन्नं, मया, वण्णो य जातो । कुमारो खुट्टगकुमारो जहा जोगसंग हेहिं । देवी, पुष्कभद्दे नगरे पुप्फसेणो राया, अग्गमहिसी य पुण्फवती देवी, तोसे दो बेडरूवाणिपुप्फचूलो पुष्फला य, ताणि अणुरताणि भोगे जति, देवी पब्वइया देवलोगे उबवण्णा, देवो जातो, सो देवो एवं चिंति | जदि एताण एवं मरांति तो नरगतिरिएसु उववज्जिहंति, सुविणए सो देवो गरए देवलोए य उबदंसेति, सा मीता जाता, पुच्छति पाडिते, ण जागति, अग्णियपुत्ता तत्थ आयरिया, ते सहाविता, तहेव सुतं कङ्कृति, सा भणति-किं तुन्भेहिवि सिविणओ। दिडो । सो मणति- अम्हं एरिसं सुत्ति दिई, पव्वइया । देवस्स पारिणामिता । पुरिमतालं नगरं, उदितोदितो राया, सिरिकता देवी दोण्णिवि सावगाणि, परिष्वाइगा जिता, दासीहि य मुहमक्कडिताहि बेलंबिता, णिच्छूढा, पदोसमावण्णा, वाराणसीते धम्मरुई राया, तत्थ गया, फलयपट्टियाए रूवं सिरिकंताए लिहितॄण दापति धम्मरुइस्स रण्णो, सो अज्झोववण्णो दुतं विसज्जेति, पsिहतो निच्छूढो, ताहे सव्चवलेण आगतो, गगरं गहेति, सो साबओ चिंतेति उदिओदिओ राया- किं एवट्टेणं जणक्खणं?, उनवासं ठिओ, बेसमणेणं देवेणं सणगरं साधिओ, उदितोदयस्य पारिणामिया ॥ साधू मंदिसेणेत्ति, सेणियपुत्तो मंदिसेणो, सीसो | य तस्स ओधाणुप्पेधी तस्स चिंता- भगवं जदि (रायगिहं) एज्जा तो देवीओ अण्णाणि य अतिसए पेच्छितूण जदि थिरो होज्जत्ति, भट्टारओ आगतो, सेणीओ सअंतेपुरो नीति, अण्णे य कुमारा संतपुरा, गंदिसेणस्स अंतपुरं सेतं वरवसणं, पउमिणिमज्ये हंसीओ (565) परिणामिकी बुद्धिः ।।५५९॥ Page #566 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५६० ॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वा ओमुक्कआभरणाओ सव्वासिं छायं हरंति से ताओ दणं चिंतेति-जदि महारएणं ममायरिएण एरिसियाओ मुक्काओ किमंग पुण मज्झ मंदभरगस्स असंताणं परिच्चइयव्ययाणंति णिब्वेगमावण्णो, आलोइय पडिक्कतो थिरो जातो । धणदत्तो सुसुमाए परिणामेति जदि एतं ण खामो तो अंतरा मरामोति ।। सावओ सावयवयंसियाए मुच्छितो, तीसे परिणामो जातोमा अट्टवसट्टो मरिहिति, तो गरएसु वा उबवज्जिहिति, संसारं हिंडिहिवि, तसे आभरणेहिं विणीतो, संवेगो, कहणं च ॥ अमच्चोत्ति वरघणुगपिया जतुघरे कते चिंतति- एस कुमारो मारितो होहिति, कर्हिपि रक्खिज्जतित्ति सुरंगाए पीणिओ, पलातो, अष्ण भणंति- एगो राया देवी से अतिपिया कालगता, सो य मुद्धो, सो तीए वियोगदुखितो न सरीर द्विति करेति, |मंतीहिं भणितो-देव ! एरिसी संसारद्वितित्ति, किं कीरतु ? सो भणति नाहं देवीए ठिति अकरतीए करेमि, मंतीहिं | परिचिंतियं ण अण्णो उवाओति, पच्छा भणितं देव! सग्गं गता, वं तत्थ ठिताए चेव से सव्वं पेसिज्जतु, लद्धकयदेवीद्वितिए पच्छा करेज्जसुति, रण्णा पडिसुतं, मातिट्ठाणेण एगो पेसितो, रण्णो आगंतूण साहेति कता सरीरद्विती देवीए, | पच्छा राया करेति, एवं पतिदिण करताण कालो वच्चति, देवीपेसणववदेसेण वत्थं कडिसुत्तगादि खज्जति, एगेण चिंतियं-अपि खति करेमि, पच्छा राया दिडो, तेण भणितं कुतो तुमंति?, सो भणति देव ! सग्गातो, रण्णा भणितं देवी दिट्ठति ?, सो भणति तीए चैव पेसितो कडित्तयादिनिमिचंति, दावितं से जहिच्छितं किंपि न संपडति, रण्णा भणितं कदा गमिस्सति १, तेण भणित- कल्ले, रण्णा भणिय- कलं ते संपाडिस्सं, मंती आदिट्ठो सिग्धं संपाडेह, तेहिं चितियं- विडं कज्जे, को एत्थ उवाओऽस्थि ?, विसण्णा, एगेण भणिय- धीरा होह, अहं भलिस्सामि, तेण तं संपाडेतूण राया भणितो (566) परिणामिकी बुद्धिः ॥५६०॥ Page #567 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत AMOD बुद्धिः S दीप अनुक्रम नमस्कार है। देव ! एस कह जाहिति ?, रण्णा भणित- अण्णे कह जंतगा?, तेग भणित- अम्हे जं पट्ठवेता तं जलणप्पवेसेणं, ण अण्णहा व्याख्यायांसग गम्मतिति, रणा भणियं-तहेव परमेह, तहेव आढतो, सो विसण्यो, अण्णो य धुत्तो वायालो, रणो समक्खं बहु ॥५६॥ उवहसति, जथा देवि! भणिज्जासि सिणेहवतो ते राया, पुणोविजं कजं तं संदिसेज्जासि, अण्णं च इमं च बहुविहं भणेज्जासि, तेण भणित- देव ! णाहमेतिगमविगलं भणितु जाणामि, एसो चेव लट्ठो पेसिज्जतु, रण्णा पडिसुतं, सो तहेव णिज्जितुं आढतो, इतरो मुक्को, इतरस्त माणुसाणि विसण्णाणि विलयति- हा देव ! अम्हे किं करेज्जामो, तेण भाणत -नियतुंडं रक्खेज्जह, पच्छा मंतीहि खरंटिय मुक्को, मडग दई, मंतिस्त परिणामिया || खनर खमओ चे एणं समं भिक्खं हिंडति, तेग मंडुक्कलिया मारिया, आलोयणवेलाए णो आलोएति, खुडएण भणितो- आलोएहित्ति, सो रुट्ठो आहणामेति पधावितो, (थंभे अभिडिओ) एगत्थ विराहितसामण्णाणं सप्पाणं कुलं, तत्थ उपवण्णो, दिट्ठीविसो सप्पो जातो, अपरोपरेण जाणंति, रति चरति मा जी मारेहामोचि, फासुगमाहारेन्ति । अण्णदा रणो पुत्तो अहिगा खाइतो, मतो य, राया सपाणं पोसमावण्णो भगति- जो सप्पं मारेति तस्स दीणारं देमि, अण्णदा आहितुंडिएणं ताणं रेहाओ दिवाओ, ते बिले ओसीहिं धम्मति, सीसाणि जिग्गछताण छिंदति, सो अभिमुहो ण णीति- मा कंचि मारहामचि जातिस्सरत्तणेण, तं णिग्गय छिंदति, पच्छा तेण रण्णो उवणीताणि, से | राया णागदेवताए बोधिज्जति, मा मारेहि, णागदियो ते कुमारो होहित्ति, सो खमगसप्पो मतो समाणो तत्थ रायाणियाए पुत्तो। काजातो, उम्मुक्कबालभावो साधु दह्र जाति संभरिता पच्छा पब्बइओ य, सो छुधालुओ अभिग्गई गेण्हतिःण मए रुसितव्यंति, दोसीणस्स पहिंडति, तत्थ आयरियस्त गच्छे चनारि खमगा- मासिओ २३४ त्ति, रतिं देवता आगता, ते अण्णे खमए अति - T ॥५६॥ CANCated (567) Page #568 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार |४| कमेना तं वंदति, खमएण णिग्गच्छंती हत्थे गहिया, भणिया य- कडपूयणे ! एवं तिकालभोई वंदसि, इमे महातवस्सी ण बंदसि?,13/पा व्याख्यायादि सा भणति- अहं भावखमय बंदामि, ण दमखमएत्ति, गता, पभाते दोसीणस्स गतो, णिमतेति, एगेण पार्य गहाय खेलो छूढो, सो ५६शभणति मिच्छामि दुक्कट, जमए खेलमल्लयं तुभ णोवणीय, एवं सेसहिवि, सो जिमेतमारखो. तेहिं वारितो, णिवेगमावण्णो ।। 18 बुद्धिः पंचवि सिद्धा । विभासा ॥ अमच्चपुत्तो वरधाओ, तस्स तेसुरे प्रयोजनेषु पारिणामिया, जथा माता मोताविता, सो पलाविआ, एयमादी सव्यं विभासिया । अण्ण भणति- एगो मंतिपुत्तो कप्पडियरायकुमारेणं समं हिंडति, अण्णदा मित्तिो घडितो, रति देसकुडिठियाणं सिवा रडति, कुमारण मित्तिओ पुच्छितो कि सा भगतित्ति, तेग भणितं- इम भणति-इमंमि णदितित्थमि | पूराणीय कलबरं चिट्ठतिति, एयरस कडीए सयं पार्यकाणं, कुमार! तुम गेहाहि तुझ पायका मम य कलारति. मदियं पुणण* सकुणोमित्ति, कुमारस्स कॉईजातं, ते य बेचिय एगागी गतो, तडेव जातं, पार्यके पेण पञ्चागतो, पुगो रडति, पूणोवि पुच्छितो, सो भणति- चष्फिलगाइयं कहति, एस भणति- कुमार ! तुज्झवि पायंका संजाता मज्झवि कलेवरति, कुमारो तुसिगाओ ताजाओ, अमच्चपचण चितिय-पेच्छाम से सनं, कि किविणतणेग गतो आउ सांडीरताए, जदि किविणचणेण कतं ण तस्सा रज्जति णियत्तामि, पच्चूसे भगति- बच्चह तुम्भ, मम पुग मूल रुजति, ण सक्कुणोमि गंतु, कुमारेण माणियं-ण जुत्तं तुम ५६२|| 181 मोत्तूण गंतु, किंतु मा एगस्थ कोई जाणिहित्ति तेण बच्चामो, पच्छा कुलपुनघर णीतो, समपिओ, तं च सर्व पेज्जामुल्छ । दिणं, मंतिपुत्तस्स अवगतं जथा सोंडीरताति, भणित चणेण- अस्थि मे विसेसो अतो गच्छामि, पच्छा गतो, कुमारेण रज्ज पर्स, भोगावि से दिण्णा । एतस्स पारिणामिगी। ALSICALS (568) Page #569 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार चाणके गोल्लविसए चणिपग्गामो, तत्थ चणिओ माहगो, सो य सापओ, तस्स घरे साधू ठिता, पुत्तो से जातो सह दाढाहिर परिणामिव्याख्या हातेण साधूण पाएसु पाडिओ, तेहि भणित--राया होहितित्ति, तेण चिंतिय-मा दोग्गतिं जाइस्सइत्ति दंता घड्डा, पुणोचि आयरियाणी दिकहितं, तेहि भणितं-किं कज्जतु, एताहेवि विबंतरितो भविस्सतित्ति, उम्मुकबालभावेण चौदस विज्जाठाणाणि आगमियाणि,x.at ।।५६३॥ है। सोवि सावओ संतुठो, एगाओ भद्दमाहणाओ आणिया भज्जा से, अण्णदा कही कोतुए भज्जा से मातिघरं गता, केति भगति भातिविवाहे गता, तीस य भइणी अणेसि खद्धादागियाणं दिल्लिगाओ, ता अलंकितभूसितायो आगताओ, सम्बो परिजगो ताहिं समं लपति, सा एगते अच्छति, तीसे अद्धिती जाता, घरं आगता, अद्धितिलद्धा अच्छति, णिबंधे सिड, तेण चिंतिय-णंदो पाइलिपुत्ते देति तत्थ बच्चामि, गतो, कचियपुणिमाए पुग्धजत्थे आसणे पढमे णिविट्ठो, तं च तस्स साल्लियातस्स राउलस्स | सता ठविज्जति, सिद्धपुत्तो य गंदेण सम तत्व आगतो भगति-एस बंभगों णंदवंसस्स छायं अकमिऊग ठितो, दासीए भणितोद भगवं ! बितिए आसणे णिवसाहित्ति, अस्विति वितिए आसणे कुंडियं ठोति, एवं ततिए दंडग, चउत्थे गणेत्तिय पंचमे जण्यो| वइयं, घिटोत्ति निच्छूढो, पादो पढमा उक्वित्तो, भणति य-कोशन भृत्यैव निबद्धमूलं, पुत्रश्च मित्रैश्च विवृद्धशाखम् । उत्पाव्य | नंदं परिवर्तयामि, हठाद् दुमं वायुरियोग्रवेगः ॥ १॥ णिग्गतो, पुरिसं मग्गति, सुतं च णेर्ण विचंतरितो राया होहामिति, नंदस्स है मोरपोसगा, तेसि गामं गतो परियायलिगणं, तेसि महतरस्स धीताए चंदपीयने डोहलो जातो, सो समुदाणेतो गतो, ताणि तं ५६३॥ पुच्छति, जदि ममं दारगं देह तो णं पाएमि चंद, पडिसुणेति, पडमंडवो कतो, तदिवस पुणिमा, मज्झे छिद, मज्झई गते हा चंदे सब्बरसालूहिं दव्वेहिं संजोएचा आसणे थालं भरित कतं, सद्दाविता, पेक्षति पिपति य, उपरि पुरिसो उच्छाडेति, अब EXECUSSAXY (569) Page #570 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कारणीते पुतो जातो, संबड्डति, इमोवि धातुविलाागे मग्गति, सो य दाररहि सम रमति, रायगीती विभासा, चाणको य पडिएइ, परिणामिव्याख्याता पेच्छति, तेग विमग्गितो, आहवि दिज्जा, भगति-गाओ लहेहि, मा मारेज्ज कोति, भगति-वीरभोज्जा पुहबी, णात जथा | ॥५६४॥ विण्णाणं से अस्थि, तो कस्सति दारएहिं कहिां -परिवायगपु तो एस, अई परिमाओ, जामु जा ते रायाण कमि, चलिपा, लोगो मिलता, पाडलिने रोहित, गदंग भगो परिमायगो, आसहि पुहित लगो, चंदउतो य पउमसरे णिपुडो, इमो उपस्पृशति, सण्णाए भगति-पोलियनि, उत्तिण्णा णासंति, अग्गे भगति--चंदउ पउमिगीसंडे छुभिता खओ जातो, परछा एगेग जच्चकिसोरगगतेण आसबारेग पुच्छितो भगति-एस पउमसरे पविट्ठो, ततो तेण दिट्ठो, ततो घोडगो चाणकस्स अल्लिविओ, तत्थेत्र खरंग मुकं, जले पवेस गढपाए कंनु मुपति ताव खम्मेण दुहा कता, चंदगुत्तो वाहिता चडावितो, पलापा, पुच्छितो-तोलं किं तुमे चिंतितंति ?, भणति-- एतं चेव सोभग, अज्जो चे जागत्तित्ति, णातो जोगोण एस विपरिगमतित्ति, पच्छा छुहाइओचागको |तं ठवेत्ता अतिगतो, बीभति-मा एत्थं गज्जेज्जामोत्ति, माहगस बीं निगम पोर्ट फालिम, दधिकरवं गहाय गतो, जिमितो, अण्णस्थ गामे रतिं समुदागंति, थेरिय पुत्तभंडागं विलेवितं देति उई, एकेग मज्झ हत्यो छूडो, दड्डो रोवति, ताए य भणतिचाणकमंगलोसि, पुच्छि, भगति-पासाणि पढने घेति, गा हिमांततई, पबाइओ राया, तेग समं मितया जाता, भगति-समें | समेण विभयामो रज्ज, ओतोन्तागं एगस्थ णगर ण पद्धति, पविष्ट तिदंडी, वत्थूणि जोएति, इंदकुमारियाओ, तासि तगएगण ॥५६४॥ पडति, माताए णीणाषिताओ, पडित णगर, पाडलिपुतं रोहित, दो धम्मवार मम्मति, एगेण रहेग जं तरसि तं गीणेहि, दो | मज्जाता एगा कण्णा दवं चणीति, कामाचंदउन पलोएति, भणिता जाहिति, ताए विलीनीए चंदगुतस्स रणर अरगा O INECRECISHES दीप अनुक्रम R (570) Page #571 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप अनुक्रम नमस्कार भग्गा, तिदंडी भणति--मा वारेहि णव पुरिसजुगाणि तुझं बसो होहितित्ति, अतिगता, दो भागा कता । एगा कन्नगा विसभाषिया, परिणामिव्याख्यायां तत्थ पब्वतगस्स इच्छा, सा तस्स दिण्णा, अग्गिपरियंचणे विसपरिगतो मरितुमारद्धो, भणति-वयंसग ! मरिज्जति, चंदगुत्तो 6-12 विभामित्ति ववसितो, चाणकेण भिगुडी कता, णियत्तो, दो रज्जाणि तस्स जाताणि । णंदमणूसा य चोरिगाए जीवंति, सो चोरग्गाहर ॥५६५॥ मग्गति, तिदंडी बाहिरियाए णलदाम मुइंगमारगंदटुं आगतो, रण्णा सहावितो, दिण्णं आरक्ख, चीसत्था कता, भत्तदाणे सकुटुंबा |मारिया । आणाए-वंसिहि अम्बमा परिक्खित्ता, विपरीते कते रहो, पलीवितो सब्बगामो, तेहि य गामेल्लतेहिं तस्स कप्पडियत्तणे | भत्तं ण दिण्णति कार्ड। कोसनिमित्तं परिणामिता बुद्धी, जूतं रमति कूडपासएहि, सोवणं थाले दीणारभरितं, जो जिणति तस्स, अहं जिणामि एको| | दायब्बा, अतिचिरंति अण्ण उवायं चिंतेति, नागराणं भत्त्रं देति, मज्जपाणं च दिणं, मत्तेसु पणचितो भगति गायतो-दो मज्झ है धातुरत्ताओ कंचणकुंडिया तिदंडं च, राया मे वसवत्ती, एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥१।। अण्णो असहमाणो भणति-गयपोयगस्स PI(महस्स मन्थरगइए उ) जोयणसहस्सं । पदे पदे सतसहस्सा एत्थपिता मे होल पाएहि ॥१॥ अण्णो असहमाणो भणति-तिलआढगस्स | टू बुत्तस्स णिफण्णस्स बहुसइतस्स | तिले तिले सतसहस्सं एत्थवि ता मे होले बाएहि ॥१॥ अण्णो भण्णति-णवपाउसंमि पुण्णाए। है| गिरिनइयाए य सिग्धवेगाए । एगाहमाहितमेचेणं णवणीतेण पालिं बंधामि ॥१॥ जच्चाण बरकिसोराणं तदिवसं तु जायमेवाणं ।। का केसेहि णभं छाएमि एत्थवि ता मे होल बाएहि ॥१॥ दो मज्झ अस्थि रतणाणि सालिपमई य गद्दभिया य । छिण्णा छिण्णावि दारूहंति एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥१॥ सेतसुकिलो णिच्चसुगंधो, मज्ज अणुब्बय पत्थि पवासो। णिरिणो य दुपंचसतो य, (571) Page #572 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 B नमस्कार एत्थवि ता मे होलं वाएहि ॥शा एवं जाऊणं रयणाई मग्गिऊणं गोट्ठागाराणि सालीणं मरियाणि रयणाई गद्दमियादीण पुच्छितो व्याख्यायां |छिण्णाणि २ जायंति, आसा एगदिवसजाता मग्गिता, एगदिवसियं णवणीतं मग्गितं । एस परिणामिता चाणकस्स बुद्धी ।। थूलभास्स सामिस्स परिणामिता, पितुमि मरिते कुमारो भण्णति-अमच्चो होहिति, सो असोगवणियाए चितेति-केरिसा । ।।५६६॥ बुद्धिः का भोगा बाउलाणंति', ताहे पव्वइतो, राया भणति-पेच्छह, मा कवडेणं गणियाघरं जाएज्जा, जिंतस्स सुणगमडगो चावण्णो, णास | न विकूणेति, पडिलेहेचा रण्णा भणित-विरत्तभोगोत्ति, सिरिओ ठाविओ। __णासिकणगर, गंदो वाणियओ, सुंदरी से भज्जा, सुंदरीणदो से नामं जातं, तस्स भाता पुज्वपब्वइतो, सो सुणेति-जथा डातीए अझोववनो, पाहुणओ आगतो, पडिलामितो; भाण तेण गाहित, एहि एत्थ विसज्जेहितित्ति उज्जाणे णीतो, सो भोगगिद्धो । Sणगरं जाहितित्ति अधिगतरेण उबप्पलोभेमि, सो य उब्बियलद्धी, मकडिं दरिसेत्ता पुच्छति-का सुंदरिचि?, सुंदरी, पच्छा पिज्जा-18 धरीए, तुल्ला, पच्छा देवीए, देवी अतिसुंदरत्ति, पुच्छितो मणति-कहं एसा लम्भतित्ति', धम्मेणचि पब्वइतो । साधुस्स पारिणामिका। का बहरसामिस्स परिणामिया, माता णाणुबचिया, मा संघो अवमाणिहितित्ति, पुणो देवेहिं उज्जेणीए वेनियलद्धी दिना, 12 पाडलिपुत्ते मा परिभविहित्ति बेउव्वियं कयं, पुरियाए पवयणओभावणा मा होहितित्ति सथ्वं कहियन्वं ।। हा॥५६६॥ IM चलणाहणणे, राया तरुणेहिं घुग्गाहिज्जति, जथा थेरा कुमारा य अवणिज्जंतुति, सो तेर्सि मतिपरिक्खणणिमित्तं भणति जो राय सीसे पाएण आहणति तस्स को दंडो?, तरुणा भणीत-तिलतिल छिदियवओ, थेरा पुच्छिया, चिंतेमोत्ति ओसरिया, SRESSESSIBEES ARAKA (572) Page #573 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार चिंतति-णूणं देवीए को अण्णयरो आहणतित्ति, आगता भणति-सक्कारेयवओ, रण्णो तेसिं च पारिणामिया बुद्धी ।। आमलगंपरिणामिव्याख्यायां मा कित्तिम, एगेण णात, अकालो, वियो होहित्ति॥ मणिम्मि सप्पो पक्षीणं अंडगाणि खाति रुक्खं विलग्गिता, तत्थ गिद्धण आलयंका बिलग्यो, मारिओ, तत्थ मणी पडितो, हेड्डा कूबो, तं पाणितं रत्तीभूतं, कूवातो णीणितं साभावित, दारएणं घेरस्स कहितं, तेण 11५६७|| |विलग्गिऊण गहितं ।। सप्पो चंडकोसिओ चितेति-एरिसो महप्पा | खग्गो सावगपुत्तो जोव्यणबलुम्मत्तो धर्म गच्छति, मतो खग्गीसु उववो, पट्ठस्स दोहिनि पासेहिं जथा पक्खरा तथा चम्माणि लंबंति, अंडबीते चउमुहप्पहे जणं मारेति, साहुणो य तेणेच पहेण अइक्कमंति, बेगेण आगतो, तेएण ण तरति अल्लचितुं, चिंतेति, जाती संभरिया, पच्चक्खाणं देवलोगगमणं ॥ धूभे वेसालीए णगरीए णगरणाभीए मुणिसुव्वयसामिस्स धूमो, तस्स गुणेण कूणियस्स ण पडति, देवता आगता आगासे, कृणिय भणति-समणे जइ कूलवारए, मागहिया गणिय रमेहिती। राया त असोगचंदए, वेसालि नगरि गहेस्सती ॥१॥ सो मग्गिज्जति, का ढ़ा तस्स उप्पत्ती ?-एगस्स आयरियस्स चेल्लो अविर्णाओ, आयरिओ अंबाडेति, वेरै बहति, अण्णदा आयरिया सिद्धसिल तेण समं बंदगा विलग्गा, ओयरंताणं पवाए सिला मुका, दिट्ठा, आयरिएणं पादा ओसारिया, इहरा मारितो होतो, साबो दिण्णो-दुरात्मा इत्थीहितो प्रविणस्सिहिसित्ति, मिच्छावादी भवतुतिकातुं तापसासमे अच्छति, णदीए कूलए आतावेति, पंथन्भासे जो सत्थो एति ततो आहारो होति, णदीकूलए आयावेमाणस्स णदी अण्णतो पवृढा, तेण कूलवालओ जातो, तत्थ अच्छतओ आगमितो, गणियाओ N५६७॥ सदाबियाओ, एगा भणति-अहं आणमि, कवडसाविगा जाया, सत्येण गता, वंदति, उद्दाणे भोतिगमि चेहयाई बंदामि, तुम्भे य सुता, आगया मि, पारणए मोदगा संजोइया, अतिसारो जातो, पयोगेण ठवियो, उन्वतणादीहिं संभिण्णं चित्तं, आणितो, (573) Page #574 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५६८|| “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मूलं [१] / [गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 भणितो- रण्णो वयणं करेहि, किं ?, जथा बेसाली घेप्पतु, धूमो णीणावितो, गहिता । इंदमातुगाओ चाणकेण पुथ्वभणियाओ । ४ तपः सिद्धः एसा पारिणामिया । अभिप्रायसिद्धाः परिसमाप्ताः ॥ कर्मक्षयसिद्धव इदाणिं तवसिद्धो, जो य तवेण ण किलम्मति सो तवासद्धो, जहा एगो दढप्पहारी चोरसेणावती सेणाए समं गामं हेतु गतो, तत्थ एगो दरिहो, तेण पुतभंडाणं पायसं मग्गंताणं दुद्धं जाएता पायसो सिद्धो, सो य रहातुं गतो, चोरा य तत्थ पडिया, एगेण तत्थ सो पायसो दिट्ठो, छुधितति तं गहाय पधावितो, ताणि चेडरूवाणि रोवंताणि णिग्गताणि पायसो हितोत्ति चोरेण, मारेमित्ति पहाविओ, महिला अवतालेतुं अच्छति तथावि जाति, सो चोरसेणावई गाममज्झे अच्छति, तेण मंतृण महासंगामो कओ, सेणावणा चिंतियं एतेण मम पुरतो चोरा परिभविज्जतित्ति सह महिलाए असिणा छिण्णो, गम्भोवि दो भागे कतो फुरुफुरेति, तस्स किया जाता, मते अधम्मो कतोचि, ताहे पव्वतो, तत्थेव विहरति, हीलिज्जति हम्मति घोराकारं च तवकलेसे केरति, सिद्धो ॥ कम्मकखयसिद्धो जो अटुण्डं कम्मपगडीणं खएणं सिद्धो, तत्थ गाथा दीहकालरयं जं तु० ॥ ९ ६७ ॥ ९५३ ॥ एत्थ दीहकालं अतीतकालितं, रजं वट्टमाणकालियं, कम्मं आत्मना आलिंगितं सब्वायपदेसेहिं पुति भणित, न केवलं सेसितं तथा अहवा सितं 'सित वर्णबंधनयो:' अट्टहा बर्द्ध-अट्टहा परिणामितं मियदुक्खं तुशब्दाभिधत्तनिकाचितादिवि घेप्पंति, तं तथाभूतं कम्मं धंता, धंता णाम झाणाणलेण दहित्ता, अम्मीकातूणेत्यर्थः, इंति एवं सिद्धस्स सतो योग्यताभंगीकृत्य सिद्धत्तमुवजायती निष्पनार्थत्वं संपज्जते ॥ कहं पुण अट्टविहं कंमं खवेति, (574) ||५६८|| Page #575 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) अध्ययनं [-] भाष्यं [१५१...] मूलं [१] / [ गाथा-], निर्युक्तिः [९५३/९५३], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता.........आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:- 1 नमस्कार व्याख्यायां ॥५६९॥ भण्णति- जदा केवलं गाणं उप्पार्डेति तदा चचारि घाविकमे खवेति, तं च जथा स्ववगसेडीए तत एवं पोढाप्रक्लृप्तद्रव्यगणं यथास्वं द्वितयपर्यायकलाप विभूतिवशीकृतं प्रतिस्वं शेषविधिना लोकालोकं प्रकाश्य भगवंतोऽचिन्त्यभूतिविशेषाः जघन्येनान्तमुहूर्तमुत्कर्षेण देशोनां पूर्व कोटी केवलिपर्यायमनुभूय समवाप्नुवंति सिद्धिमजागरामिति । अथ सिध्यतों को विधिरिति प्रश्ने सिव्यद्विधिप्रक्रियादर्शनार्थ पश्चिमस्कंधनिरूपणा क्रियते, अथ किमिदं पश्चिमस्कंध इति प्रश्ने व्याख्यायते औदारिवैक्रियाहारकतैजसकार्मणानि शरीराणि स्कन्ध इत्याचक्ष्महे, पश्चिमशरीरं पश्चिमभव इति यावदुक्तं स्यात् तावदिदं पश्चिमस्कन्ध इति कथम् १, इह यस्मादयमनादौ संसारे परिभ्रमन् स्कंधान्तराणि भूयांसि गृह्णाति मुंचति च तस्माद्यमवाप्य स्कन्धमाविर्भूतासाधारणज्ञानदर्शनचारित्रवलः भूयः स्कन्धान्तरमन्यदात्मा नोपादत्ते स पश्चिमस्कन्ध इति शब्धते, स्वोपात्तमनुष्यायुषो ऽन्तः प्रक्षयवशाद् भुक्तस्यान्तर्मुहूर्तशेषे सिध्यत्पर्यायाभिमुखा अवश्यकरणं कुवैतीति । कथमिदमुवश्यकरणामिति प्रश्ने प्रदर्श्यते, अन्वर्थत्वादवश्यकरणसंज्ञायाः, भास्करवत्, अवश्य करणीयत्वादवश्यकरणं, कथमियमन्यर्थेति दर्श्यते, अर्थमनुगता या संज्ञा साऽन्वर्था, अर्थमंगीकृत्य एवर्तत इत्यर्थः कथम् ?, इह यथा भास्करसंज्ञा अन्वर्था, कथमन्वर्था १, भासं करोतीति भास्कर इति यो भासनार्थः तमंगीकृत्य प्रवर्तत इत्यन्वर्था, तथाऽवश्यकरणमिति इयं संज्ञा अन्वर्था, कथमिति चेत्, ब्रूमहे, अवश्यं क्रियत इत्यवश्यकरणं इति योऽवश्यकरणार्थोऽवश्यकर्तव्यता तमंगीकृत्य प्रवर्तते यस्मात् तस्मात्सर्वकेवलिभिः सिध्यद्भिरवश्यं क्रियमाणत्वादवश्यकरणमित्यन्वर्थसंज्ञासिद्धिः, अथवा अवश्यंभाव आवश्यकं 'द्वंद्वमनोज्ञादिभ्यश्चे 'ति मनोज्ञादेरधिकृतत्वात् बुजि सत्यावश्यक सिद्धिः, आवश्यकं करणं आवश्यककरणं, कुतः, लोके दृष्टत्वात् मल्लस्य कक्षाबन्धकरणवत् यथा मल्लो युयुत्सुर्नावदूध्वा साटकं युध्यते, स (575) कर्मक्षयसिद्धः ॥५६९॥ Page #576 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां 1140011 % জ6 “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा - ], निर्युक्तिः [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 हि प्रथममेव साटकेन कक्षो वध्वा अतः परं कृतावश्यक कक्षाबन्धकरणः योद्धुमारभते, तथाऽन्तर्मुहूर्तायुः शेषेण केवलिना सिध्यता | प्रथममेवेदं करणं अवश्यं कर्तव्यमित्यावश्यककरणमिति । केचिदावर्जितकरणमिति वर्णयंति, तेषामप्यावर्जितशब्दस्याभिमुखपर्यायवाचित्वात् आवर्जितकरणसिद्धिः, कथम्?, आवर्जितमनुष्यवत् यथा लोके दृष्टमेतद् आवर्जितः मनुष्यः, अभिमुखः कृत इति, तथा च सिध्यतः सिध्यत्वपर्याय परिणामा भिमुखीकरणं यत्तदावर्जित करणं, येन कारणेन परिणत आत्मा नियमात् सिध्यत्पर्यायपरिणामाभिमुखो भवतीत्यर्थः सर्वे च भगवंतः सिध्यन्तः केवलिनस्तीर्थकराश्च नियमादावश्यककरणं कुर्वन्ति, समृद्धातं तु केचित्कुर्वन्ति केचिन्नेति ॥ तत आवश्यककरण कृते ये केवलिनः समुद्घातं कुर्वन्ति तत्प्रक्रियाऽऽविष्करणार्थमिदं प्रयते येऽन्तर्मुहूर्तमादिकृत्वोत्कर्षेण आ मासेभ्यः पन्तर आविर्भूत केवलज्ञानपर्यायाः ते नियमात्समुद्वातं कुर्वन्ति, ये तु षण्मासेभ्य उपरिष्टादाविपद्भ्यः आयुषोऽवशिष्टेभ्यः अभ्यन्तर भूतकेवलज्ञानाः क्षेपास्ते समुद्घातकाद् बाह्याः, ते समुद्वातं न कुर्वन्तीत्यर्थः, शेषाः समुद्यातं प्रति भाज्याः कस्माद्, यस्मात् पाण्मासिकावशिष्टे आयुषि आविर्भूत केवलज्ञानपर्यायेभ्यः सकाशात् षड्भ्यो मासेभ्यः ये उपरि समयोत्तरवृद्ध्याऽवशिष्टे आयुष शेष आविभूतज्ञानाः केवलिनः ते शेषाः समुद्यातं प्रति भाज्याः केचित्समुद्घातं कुर्वन्ति केचिन्नति, अतः केचित्समुद्धातं कृत्वा केचिदकृत्यैव समवाप्नुवन्ति सिद्धिं, अथवा येषां बहु संवेद्यमस्ति आयुश्चाल्पमवतिष्ठते ते नियमात्समुद्धातं कुर्वति, नेतर इति ।। अथर्वषां को विधिरिति प्रवने तदाविष्करणार्थमाचक्ष्महे ते दंडकादिक्रमेण कुर्वन्ति, तत्र प्रथमसमये औदारिककाययोगस्थाः दंडकं कुर्वन्ति, अथ दंडक इति कोऽर्थः ?, दंडक व दंडकः, क उपमार्थः हैं, यथा मूलमध्याये ऊर्ध्वाधः समप्रदेशः परिवृत्तपर्यायः स दंडकः, तथा समुद्घातकरणवशान्निर्गतानामात्मप्रदेशानां दंडकसंस्थानेनावस्थानाईडकत्व (576) कर्मक्षयसिद्धः ॥५७० ॥ Page #577 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [] नमस्कार व्याख्यायां ॥५७१॥ 1969 अध्ययनं [-] "आवश्यक" मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [गाथा-] निर्युक्तिः [९५३/९५३], - आयं (१११...] सिद्धिः अथ दंडककरणे को विधिरिति प्रश्ने घूमहे वह व्यावहारिकनयवशात् ये असंख्येया जीवप्रदेशाः ते सर्वेऽपि बुध्या असंख्येया भागा निर्गच्छन्ति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, ततस्तैरेव असंख्य जीवप्रदेशभागैः स्वशरीराभिर्गतैर्हि दंडकमभिनिर्वर्तयतः अष्टौ जीवमध्यप्रदेशान् सतितिकपरस्परावियोगिनो रुचकसंस्थितान् चक्रीवपटलयोरुभयो रत्नाद्यवस्थायिषु रुचकसंस्थितलोक मध्यप्रविष्टाष्टाकाशप्रदेशेषु संस्थाप्य चतुर्दशरज्ज्वायतं दंडकं कुर्वतीति । ततो द्वितीयसमये कपाटं कुर्वन्ति तत्समय एव चौदारिकमिश्रकाययोगो भवति, कृपाटकमिति कोऽर्थः १, कपाटभित्र कपाटकं, कउपमार्थः १ यथोभयोः प्राक्प्रत्यगृदिशोस्तिर्यग्विस्तीर्य अपागुदग्दिशयोईस्वमूर्ध्वाचोदिशयोरुच्छ्रितं कपाटमिति शच्यते, तथा समुद्घातकरणवशान्निर्गतानामात्मप्रदेशानां पूर्वापरदक्षिणोत्तरासु दिक्षु कपाटसंस्थानेनावस्थानात्कपाट कत्वसिद्धिः अथ कपाटकरणे को विधिरिति प्रश्ने ब्रूमहे, अतः प्रथमसमय निर्गतात्मप्रदेशसकाशात् योऽसंख्येयभागेोऽवशिष्टोऽवतिष्ठत इत्युक्तं स बुद्धया पुनरपि असंख्येयान् भागान् गतः, ततो द्वितीयसमये कपाटकारकाणां असंख्येया भागा निष्क्रामति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, नैकरसंख्येयेर्भागैर्निर्गतरेतैः कपाटकं कुर्वन्ति, तत्र ये निर्गतास्ते प्रथमसमयनिर्गतात्मप्रदेशसकाशात् असंख्येयगुणहीनाः, असंख्येयभाग इत्यर्थः अथ तृतीयसमये प्रतरं कुर्यान्त तत्सामयिकश्च कार्मणकाययोगो भवति, अथ प्रतरमिति कोऽर्थः १, प्रतरमित्र प्रतरं क उपमानार्थः, यथा घननिचितनिरन्तरप्रचितावयवसंस्थितापरिवृत्तं स्थालकं स्फलकं वा लोके प्रतरमित्युच्यते तथाऽऽकारमपरमपि परस्परप्रदेशसंसर्गविच्छेदपरिवृत्तपर्यायेणावस्थितं प्रतरमिति प्रसिद्धं, अथ तृतीयसमये प्रतरपूरकाणां को विधिरिति प्रश्ने प्रतिश्रमहे, ततो द्वितीयसमये निर्गतारमप्रदेशसकाशात् योऽसंख्य भागोऽवशिष्टोऽवतिष्ठते इत्युक्तं असावपि बुद्ध्या पुनरसंख्येयभागाः कृताः, ततस्तृतीयसमये प्रतरकारकाणाम (577) समुद्घातः ।।५७१ ॥ Page #578 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [-] दीप अनुक्रम [8] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५७२॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) मूलं [१] / [ गाथा-], निर्युक्तिः [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि रचिता चूर्णि :- 1 संख्येयभागा निष्क्रामति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, तैरसंख्येयेर्भागैर्निर्गतरेतैः प्रतरं पूरयंति, तत्र ये निष्क्रान्तास्ते द्वितीयस | मयनिष्क्रान्तात्मप्रदेश सकाशादसंख्येयगुणहीनाः, ततचतुर्थसमये कार्मण काययोगस्थान एवं आकाशप्रदेशान् निष्कुटसंस्थानसंस्थितान् लोकव्यपदेश भाजोऽपूरितान् परयंतीति लोकपूरकाः, तथा तेषां को विधिरिति प्रश्नेऽभिदध्महे - ततस्तृतीयसमयनिर्गतात्मप्रदेशसकाशात् योऽसंख्येयभागोऽवतिष्ठत इत्युक्तं, असावपि बुद्धच्या पुनरप्यसंख्येया भागाः क्रियन्ते ततश्चतुर्थसमये लोकपूरकानामसंख्येयमागा निष्क्रामन्ति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, ततस्तैरसंख्येयभागनिष्क्रान्तरेते लोकनिष्कुटान् पूरयंति, तत्र ये निष्क्रान्तास्ते तृतीय| समय निष्क्रान्तात्मप्रदेश सकाशादसंख्येय गुणहीनाः, यश्वाधुना असंख्येय भागोऽवतिष्ठतेऽसौ स्वशरीरावगाद्यावकाशप्रमाण इति । तस्येदानीं मनुष्यावस्थायां या पल्योपमासंख्येयभागमात्रा कर्मत्रय सत्कर्मस्थितिरवतिष्ठते सा बुद्धचा असंख्येयभागाः क्रियन्ते, ततः प्रथयसमये दंडककारकसत्कर्मस्थितेरसंख्येयान् भागान् हन्ति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, यश्चानुष्यामवस्थायां कर्मत्रयानुभवः स बुद्धा अनन्तभागाः क्रियन्ते ततोऽस्यासद्वेधन्यग्रोध सातिकुञ्जवामनहुडसंस्थानवज्रनाराचार्धनाराचकीलिका संप्राप्त पाटिकासंहननाप्रशस्तवर्णगंधरसस्पर्शोपघाताप्रशस्त विहायोगत्यपर्याप्त का स्थिरासुमदुर्भगदुः स्वरानन्देयायशः कीर्तिनीचैर्गोत्रसंज्ञिकानां (?) पंचविंशतेरप्रशस्तानां प्रक्रीडनसमये दंडककारकानुभवस्यानन्तान् भागान् हन्ति, अनन्तभागोऽवतिष्ठते, तत्समयिकमेव सद्वेद्यमनुष्यदेवगतिपंचेन्द्रियजात्यादारिकवैक्रियाहारकतैजस कार्मणशरीरसमचतुरस्रसंस्थानादारिकवैक्रिय का हार कशरीर रांगोपांग वर्षभसंहननप्रशस्तवर्णगन्धरसस्पर्शमनुष्यदेवगतिप्राय । ग्यानुपूर्व्यगुरुलघुपराघातात पायांतोच्छ्वासप्रशस्तविहायोगतित्र्सबादपर्याप्त प्रत्येकशरीर स्थिरशुभसुभगसुस्वरादेययशः कीर्तिनिर्माणतीर्थकरोच गोत्रसंज्ञिकानामेकचत्वारिंशतः (?) प्रशस्तानामपि प्रकृतीनां योऽनुभवः तस्याप्रशस्तप्रकृत्यनुभ (578) समुद्घातः ॥५७२॥ Page #579 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार व्याख्यायां ।।५७३॥ दीप अनुक्रम CCCCCCREA5% बघातनानुप्रयेशनव घातनं ज्ञेयं । अथ द्वितीयसमये कपाटकारकस्य स्थित्यनुभावघातने को विधिरिति प्रश्नेऽभिदध्महे-प्रथमसमयपातितसत्कर्मस्थितेः सकाशात योऽसंख्ययभागोऽवतिष्ठते इत्युक्तं असावपि बुद्धया पुनरसंख्येयभागाः क्रियन्ते, तस्य कपाटकारकोऽप्य-121 संख्येयान् भागान् हन्ति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, ततोऽनुभवस्यापि प्रथमसमयघातनानुभवसकाशात् योऽवशिष्टोऽनंतोऽनुभवो-14 | ऽवतिष्ठत इत्युक्तं असावपि बुद्धया पुनरनन्तभामाः क्रियन्ते, तस्य कपाटककारानंतान् भागान् हन्ति, अनन्तभागोऽवतिष्ठते, अयमपि चाप्रशस्तप्रकृत्यनुभवपातनानुप्रवेशनेनैव प्रशस्तप्रकृत्यनुभवघातनं करोतीति ज्ञेयं, अथ तृतीयसमये प्रतरपूरकस्य स्थित्यनु| भवघातने को विधिरिति प्रश्नभिसंवादीयते, ततो द्वितीयसमयघातितसत्कर्मस्थितेः सकाशात् योऽसंख्येयभागोऽवशिष्टोऽवतिष्ठत इत्युक्तं असावपि पुदया पुनरसंख्ययभागाः क्रियते, तस्य प्रतरपूरकोऽसंख्येयान् भागान् हन्ति, असंख्येयभागोऽवतिष्ठते, ततोऽ-18 नुभवस्यापि तृतीयसमयघातितानुभवसकाशात् योऽवशिष्टोऽनन्तोऽनुभवोऽवतिष्ठते इत्युक्तं असावपि बुद्धया पुनरनन्तभागाः क्रियते, ४ तस्य लोकपूरकोऽनन्तान् भागान् हन्ति, अनन्तभागोऽवतिष्ठते, अयमपि च अप्रशस्तप्रकृत्यनुभवघातनानुप्रवेशनेनैव प्रशस्तप्रकत्यनुभवधातनं करोतीति ज्ञेय, एवं पूर्णलोकस्य कर्मत्रयसत्कर्म आयुषः सकाशात् संख्येयमुणं जातं, अनुभवोऽनन्तः। एवं चत्वारः समया भवन्ति, अतः परं प्रतिनिवृत्तः पंचमे समये प्रतरे तिष्ठति कार्मणकाययोगस्थः, अथास्यामवस्थायां स्थित्यनुभवघातने को विधिरिति प्रश्ने निगद्यते- अतश्चतुर्थसमयघातितस्थितिसत्कर्मणः सकाशाद या असंख्येयभागप्रमाणावशिष्टा स्थितिरवतिष्ठत ॥५७३|| इत्युक्तं सा बुद्धथा संख्येया भागाः क्रियन्ते, पंचमसमये प्रतरस्थः संख्येयान् भागान् हन्ति, संख्येयभागोऽवतिष्ठते, यश्चतुर्थसमयघातितानुभवसकाशात् अनन्तोऽवशिष्टोऽनुभवोऽवतिष्ठते इत्युक्तं असावपि बुद्धया अनन्ता भागाः क्रियन्ते, तस्य पंचमसमये ॐिॐ55 (579) Page #580 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम नमस्कार प्रतरस्थोऽनन्तान मागान् हन्ति, अनन्तभागोऽवतिष्ठते, एषु दंडकादिषु पंचसु समयेषु सामयिक कण्डकमुत्तीर्णमितिकृत्वा समये समुद्घातः व्याख्यायात समये स्थित्यनुभवकंडकघातको ज्ञेयः । अथ किमिदं कण्डकमिति प्रश्ने महे-कण्डकमिव कण्डकं, क उपमार्थः, यथा लोके तरोःट्र खण्डभागः अंशः कंडकमित्याभिधीयते तथा कर्मतरोरपि खण्डं कण्डकमिति सिद्ध, अतः परं षष्ठसमयादारभ्य स्थितिकण्डकमनुभा॥५७४॥ वकण्डकं वा आन्तमुहर्तिकमुत्किरति, कण्डकं यतः किरति खिपति विनाशयतीत्यर्थः, एवं षष्ठे कपाटसमये औदारिकमिश्रकाययोगस्थः सप्तमे औदारिकमिश्रकाययोगस्थः अष्टमे च स्वशरीरप्रवेशसमये स्थितिकण्डकमनुभावकण्डकं च नाशार्थ स्पृष्टं सत् अनन्तरसमय एच नंष्टुमारब्धं न तावत्कात्स्येन नश्यति, किंतु षष्ठादिषु समयषु कर्मतरुकण्डकस्य स्पृष्टस्य सकलसमयेष्विति, एवं| तावत्समये दलमुपैति यावदन्तमुहूर्तः पूर्ण इति । तदनेन विधिनान्तर्मुहूर्तपूरणचरमसमयानन्तरमेव कृत्स्नं कण्डकं उत्कीर्णमित्यवसेयं, उत्कीर्ण नष्टमित्यर्थः । एवं प्रतिसमयमन्तर्मुहूर्तिकः स्थित्यनुभवकण्डकघातको ज्ञेयः तावद्यावत्सयोगिनोऽन्त्यसमय इति । एवमेतानि सर्वाण्यपि संख्येयानि स्थित्यनुभवकण्डकानि ज्ञेयानि, ततः स्वशरीरं प्रविष्टोऽन्तर्मुहूर्तमास्ते, तत उपर्यनन्तरसमय एव | बादरवाग्योगान् रोद्धमारब्धः, ततोऽन्तर्मुहूर्तपूरणसमय एव बादरकाययोगबलाघानाद्वादरवाग्योगो निरुध्यमानो निरुद्धः, ततो बादरवाग्योगं निरुध्यान्तर्मुहूर्तमास्त, न बादरयोगनिरोधः प्रवर्तत इत्यर्थः, तत उपर्यनन्तरं बादरमनोयोग निरोद्धमारब्धः, ततोऽ ॥५७४|| न्तर्मुहूर्तस्यान्त्ये समय बादरकाययोगोपष्टभात बादरमनोयोगो निरुध्यमानो निरुद्धः, ततोऽन्तर्मुहूत स्थित्वोपर्यनन्तरसमय एवं उच्छ्वासनिश्वासी निरोधुमारब्धः, ततोऽन्तर्मुहर्तस्यान्त्य समये बादरकाययोगोपष्टंभात् उच्छवासनिश्वासी निरुध्यमानी निरुध्धी,ततोऽन्तर्मुहूर्त स्थित्वोपर्यनन्तरसमय एव चादरकाययोग निरोदुमारब्धः ततोऽन्तर्मुहर्तस्यान्त्ये समय बादरकाययोगी निरुध्यमानो निरुद्धः। ISEASIEXASIRESEAS548 (580) Page #581 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सम समुद्धात CHAR दीप अनुक्रम नमस्कार तत्स्थः तमेव क्षपयतीति अयुक्तमिति चेतन, दृष्टत्वात् , तद्यथा-कारपत्रिका क्रकचेन स्तंभे छिदिक्रिया प्रारभमाणः तत्स्थस्तमेव व्याख्यायाम छिनत्ति, तथा काययोगोपष्टंभात्काये गतिरोधोऽप्यवसेयः । अत्र काययोगं निरुधन् पूर्वस्पर्धकानामधस्तादपूर्वस्पर्धकानि करोति, ॥५७५४ अथ किमिदं स्पर्द्धकमिति प्रश्ने व्याचक्ष्महे- स्पर्धकमिव स्पर्द्धक, क उपमार्थः १, यथा लोके शालिफलककाणशाना समुदायात् मुष्टिर्भवति या सर्द्धकमिति शब्द्यत, कथमिति तद्विवृण्महे 'स्पर्द्ध-सहर्षे' इति शब्दाद् भवति स्पर्द्धक, सहर्षः समुदायः पिण्ड इत्यनर्थान्तर, अथ केषां संघर्षः इति प्रश्ने व्याचक्ष्महे, इह यथा बहूनां समुदायःक्षणे कंडक) संभवति, बहूनां च काण्डकस्थककाणशानां समु. दायात् मुष्टिरिति भवति, तथा शालिफलकणतुल्याणामसंख्येयानां लोकानां ये प्रदेशास्तत्प्रमाणप्रमितानामविभागपरिच्छेदानां भावपरमाणुसज्जिताना समुदायात् काणसतुल्या वर्गणा भवति,एवमसंख्यया वर्गणा श्रेण्या असंख्येयमागप्रमाणा एकजीवे भवंति, तासां च बहुकाण्डस्थकणकाणशसमुदायोत्पत्रमुष्टितुल्याना असंख्येयानां वर्गणानां श्रेण्या असंख्येयूभागमात्राणां समुदायादेक स्पर्द्धकं भवति, एवमसंख्येयानि स्पर्द्धकानि श्रेण्या असंख्येयभागमात्राण्येकजीवे सन्ति अथ किमिदं पूर्वपूर्वक स्पर्द्धकानि अपूर्वस्पर्द्धकानीति च प्रश्ने ब्याचक्ष्महे-यानि पर्याप्तिपर्यायेण परिणमितात्मना पूर्वमेव योगनिर्वर्तनार्थमुपात्तानि यानि चानादौ संसारे पुनः पुनर्योगनिर्वृत्त्यर्थ पूर्वमुपात्तान्यारमना तानि पूर्वस्पर्द्धकानि इत्यभिधीयते, तानि च स्थूलानि, यान्यधुना क्रियन्ते तानि यक्ष्माणि, न च तथालक्षणानि अनादौ संसारे परिभ्रमता आत्मना कदाचिदप्युपात्तानि इत्यतोऽपूर्वस्पर्धकानि व्याख्यायन्ते, अथापूर्वस्पर्द्धककरणे को विधिरिति प्रश्न- ऽभिदध्महे-अधस्तात्पूर्वस्पर्द्धकानामादिवगेणा यास्तासां अविभागपरिच्छेदा ये तेपामयं योगजधमोनुग्रहादसंख्येयान् भागानाकर्षति, असंख्येयभाग स्थापयति, जीवप्रदेशानामपि च असंख्येयभागमाकर्षयति, असंख्येयान् भागान् स्थापयति, एवं प्रथमसमये, द्विती ५७५।। (581) Page #582 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार ! यसमये प्रथमसमयाकृष्ट विभागपरिच्छेदानां असंख्येयेभ्यो भागेभ्यः सकाशादसंख्येयगुणहीन भागमाकर्षयति, असंख्येयभागमाकर्षय- समुद्घात व्याख्यायादातीत्यर्थः, जीवप्रदेशानामपि च प्रथमसमयाकष्टजीवप्रदेशासंख्येयभागसकाशादसंख्येयगुणभागमाकर्षयति, असंख्येयभागानाकर्षयती-18 ॥५७६|| त्यर्थः, एतेन विधिनाऽऽकृष्य योगजधर्मानुग्रहादपूर्वस्पर्घकानि करोति, एवं समये समये मागं करोति यावत्पूर्णोऽन्तर्मुहूर्त इति, कियन्ति पुनः स्पर्धकानि करोतीति प्रश्ने महे-श्रेण्या असंख्येयभागमात्राणि, श्रेणिवर्गमूलस्याप्यसंख्येयभागमात्राणि, पूर्वस्पर्धकानामप्यसंख्येय भागमात्राणि, एवमपूर्वस्पीककरणे समाप्ते अत ऊर्ध्वमुपर्यनन्तरसमयमेव कृष्टीः कर्तुमारब्धोऽन्तर्मुहूर्तेन सर्वाः करोति । अथ किमिदं कृष्टि रिति प्रश्नेऽभिधीयते-कर्मणः कर्शनं कृष्टिः, अल्पीकरणमित्यर्थः, अथ कृष्टेः करणे को विधिरिति प्रश्न व्याचक्ष्महे, पूर्वस्पर्द्धकानामपूर्वस्पपकानां चाधस्तात् या आदिवर्गणाः तासामविभागपरिच्छेदा ये तेषामयं योगजधर्मानुग्रहात असंख्येयान् भागान् कर्षति, असं ख्येयभाग स्थापयति, जीवप्रदेशानामप्यसंख्येयान् भागान् कपति, असंख्येय भाग स्थापयति, एवमादिकृष्ट्या प्रथमसमये कृष्टीः। १४ करोति, अथ द्वितीयसमये प्रथमसमयाकृष्टानामविभागपरिच्छेदानामसंख्येयेभ्यो भागेभ्यः सकाशात्संख्येयगुणहीन भागमाकर्ष यति, असंख्येयभागमाकर्षयतीत्यर्थः, जीवप्रदेशानामपि प्रथमसमयाकृष्टजीवप्रदेशासंख्येयभागसकाशादसंख्येयगुणं भागमाकर्षयति, असंख्येयान् भागानाकर्षयतीत्यर्थः, एवमनेन विधिनाऽऽकृप्याकृष्य कृष्टीः करोति, एवं समये २ कृष्टयः क्रियमाणाः। क्रियन्ते तावद्यावच्चरमसमयकृष्टिरिति, तत्र प्रथमसमयाः कृष्टयः कृता असंख्य यगुणास्ततो द्वितीयसमये असंख्येयगुणहीना, I ET एवं समय समये असंख्येयगुणहीनया श्रेण्या कृतास्तावद्यावदन्तमुहते इति तत्र या कष्टयः प्रथमसमयकृतास्ता असख्ययगुणा कृताः द्वितीयसमयकृताभ्यः सकाशाद् , अथ याः द्वितीयसमयकृतास्ताः प्रथमसमयकृतकृष्टिप्रमाणाः कथं भवतीति प्रश्नेऽभिधीयते अनुक्रम (582) Page #583 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 | अयोगि दीप अनुक्रम नमस्कार - पल्योपमस्य संख्येयभागेन गुणिताः, प्रथमसमयकृताः कृष्टयः श्रेण्या असंख्येयभागप्रमाणाः, एवं द्वितीयादिष्वपि समयेषु श्रेण्या || व्याख्या असंख्येयभागप्रमाणाः तावद्यावत्कृष्टिकरणस्यांतश्वाशेषो युगपत्रष्टः ।। अधुनाऽऽयुषा समाणि कर्माणि जातानि, अधुना सूक्ष्मक्रिया- गुणस्थानं ॥५७७ | प्रतिपातिध्यानादिसप्तप्रकारार्थोच्छित्यनन्तरसमय एवं योगिनः अयोगिनः, अयोगिगुणस्थानपर्यायमास्कन्दन्तः अयोगिपयोयेण: ट विनाशस्तेनैव चोत्पादः केवलिपर्यायेणावस्थानं, अयोगिपर्यायेत्यनन्तरमेव सैलेस्यपर्यायमवामोति व्युपरतक्रियानिवृत्तिं च ध्यानं | ध्यायति, चिन्ताच्यापाराभावात् ध्यानाभाव इति चेत् न, कर्मक्षपणसामान्याद् ध्यानमिव ध्यानमिति तत्सिद्धेः, कथम् , इह यथा द्र पृथक्वैकत्ववितर्कपूर्व शुक्लध्यानद्वयपरिणत आत्मार्थान् चिन्तयन् सांपरायिकं दहति यथा वा धर्मस्य ध्याने परिणतः कर्मपर्वतं ४ क्षपयति तथा सूक्ष्मक्रियाप्रतिपातिव्युपरतक्रियानिवृत्तिध्यानद्वयपरिणतोऽप्यांत्मा असत्यामपि चिन्तायां कर्म क्षपयतीत्यतः कर्मसाक्षपणसामान्यात् ध्यानमिव ध्यानमिति सिद्ध, अथवा दृष्टत्वादुपयोगवत् ध्यानमिव ध्यान, इहासर्वज्ञस्य उपलिप्सोराभोगकरणमु-1 पयोग न च ज्ञानावरणातीतत्वाद्भगवानुपलिप्सुः,की,सर्वार्थप्रत्यक्षत्वाद्, अथ च पदार्थावगमसामान्यमनुभवति,उपयोग इवोपयोगः, | क उपमार्थः १, इह यथा क्षायोपशमिकोपयोगपरिणत आत्मार्थानेकदेशेन संगच्छमान उपयुक्त इति शब्द्यते तथा केवलज्ञानपरि31 णतोऽप्यारमार्थान् साकल्येन संगच्छमानोऽसत्यामप्युपलिप्सायां अर्थावगमसामान्यादुपयुक्त इति शब्द्यते, न चोपलिप्सापूर्वक ८ उपयोगो भगवति नास्तीत्यत उपयोगाभावः प्रतिज्ञायते, साकाराष्टतयोपयोगप्रतिज्ञानात , न चोपयोगं कृत्वा थायोपशमिकोप-18||५७७॥ योगतुल्यताऽस्य प्रतिज्ञायते, न वा क्षायोपशमिकातुल्यतया अस्योपयोगाप्रच्युतियथा भवति तथा चिन्ताच्यापारनिरुत्सुकस्यापि | | भगवतो ध्यानमिति युक्तं, कर्मदहनसामान्यात्, कथम् , इह यथा पूर्वशुक्लध्यानद्वयपर्यायपरिणत आरमा कर्म दहति RANSASARAN (583) Page #584 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नमस्कार तथोत्तराभ्यां कर्म दहतीत्यतः कर्मदहनसामान्याद् ध्यानमिव ध्यानं, न च कर्मदहनसामान्याद् ध्यान एते इतिकृत्वा 31 व्याख्यायां पूर्वध्यानींच्चताकृतो व्यापारोऽप्यनयोरावश्यकः प्रतिज्ञायते, न च चिन्ताच्यापाररहिते एते इतिकृत्वा पूर्वयोरपि चिन्ता-14 Iક૭૮ व्यापाररहितताभ्यनुज्ञायते, न च पूर्वयोश्चिन्ताकृतो व्यापार इतिकृत्वा तयोरपि चिन्तातो व्यापारो भवितुमर्हतीत्यतो६ वशीयते, तदेवमेतेन न्यायेन चिन्ताच्यापाराभावेऽपि कर्मदहनसामान्यामिव युक्तं ध्यान, अथवा पूर्वप्रयोगात् ध्यानमिव ध्यानमिति सिद्धं , कथं ?, कुलालचक्रान्तिवत् , यथा वाह्याभ्यन्तरभ्रमणकारणपरिणामसानिध्ये स्वयमपि तथापरिणामात् बाबपीरुपप्रयत्नद्रव्यदंडादिभ्रमणकारणसंबंधापादितभ्रान्तिपर्यायं कुलालचक्रं विनिवृत्तेऽपि द्वितये भ्रमणकारणे भ्राम्यते च, तथैवात्र चिन्तानिरोधो यो ध्यानविशेषापादकस्तदभावेऽपि पूर्वप्रयोगात् ध्यानमिव ध्यानमिति सिद्धं । एवमयं असांपरायिकसद्भवस्थकेवली अलेश्यं पर्यायमवामोति, अथ किमिदमलेश्यपर्याय इति, नास्मिन् लेश्याऽस्ति भवस्थकेवल्ययोगिपर्याय इति सोऽलेश्यः, तमवाप्यान्तर्मुहूर्तमवतिष्ठते, तस्य सद्धेयेन सिध्यतश्वरमसमये सद्वेद्य नश्यति, द्विचरमसमये असद्वेद्यं, तथा यद्यसद्वेयेन सिध्यति | ततोऽस्यासद्वयं चरमसमये द्विचरमसमये सद्वेचं,असद्धेयस्य वेदयितत्वाद् दुःखजमिति चेत् न तत्कृत दुःख,तेनास्य सम्बन्धपि दुःखा ॥५७८॥ भावात् , कथं , क्षीरपूर्णे घटे यवमात्रनिम्बदलंप्रक्षेपेऽपि सति कटुकत्वाभावात् , तथा च सर्वप्राणिभ्योऽप्यनन्तगुणं सूक्ष्मसंपरायप्रविष्टक्षपकचरमसमयार्पितसदेचं वेदयतोऽस्य योऽसद्वद्योदयः असद्वेद्यसत्कर्मसानिध्यादापतति ततोऽन्यस्य दुःखं प्रपद्यत इति |सिद्धं, तदेवमस्यायोगिनः असद्वेधदेवगत्यौदारिकवैक्रियकाहारकतैजसकार्मणशरीरसमचतुरस्रन्यग्रोधसातिकुब्जबामनहुंडसंस्थानौदारिकवैक्रियाहारकशरीरांगोपांगनिर्माणदेवगतिप्रायोग्यानुपूव्या वर्षभनाराचअर्द्धनाराचकीलिकासंप्राप्तस्पाटिकासंहननवर्णगन्धर DASHRA दीप अनुक्रम (584) Page #585 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५३/९५३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार व्याख्याय कर ॥५७९11 सस्पीगुरुलथपघातपरापातोच्छ्वासप्रशस्तविहायोगत्यपर्याप्तप्रत्येकशरीरस्थिरास्थिरशुभाशुभदुर्भगसुस्वरानादेयायश-कीर्तिनीचैर्गोत्र योग| संज्ञाः चत्वारिंशत् प्रकृतयो विचरमसमये व्युपरतक्रियानिवर्तिध्यानं ध्यायतोऽशेषतः संक्षीणाः, अथ सद्धेवमनुष्यायुर्मनुष्यग-1 निरोधः |तिपश्चेन्द्रियजातिमनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीत्रसबादरपर्याप्तसुभगादेययश-कीर्तितीर्थकरोच्चैर्गोत्रसंज्ञास्त्रयोदश प्रकृतयः चरमसमये संक्षीणाः, परिमितत्वादतर्मुहूर्तस्य भेदाभाव इति चेत् न, एकस्यान्तमहर्तस्योसंख्येयभेदप्रतिज्ञानात् , अतः केवलिन्यन्तमहायुष्यपि यथोक्तभूयसामन्तर्मुहुर्तानां प्रसिद्धिरिति । ततो भावलेश्यापर्यायाबायां संक्षीणायां सर्वकर्मविप्रमुक्तः जलधरधनपटलनिरोधविनिर्मुक्त इव चंद्रमा नीरुजो निरुपम एकसमयेन भवसमुद्रमुचीर्य सिध्यतीति । एत्थ गाथा णातूण वेदाणिज्जं.॥९-६८ ॥ ९५४ ॥ दंडकवाडे॥-६९।। ९५५॥ जह उल्ला०॥९-७० ॥ ९५६॥ लाउय० ॥९-७१ ॥९५७ ॥ अण्णे पुण एत्थ पत्थाचे एतं सामण्णेणं भणंति-जहाणेवाणं गंतुकामो जीवो कोपि समुपातं करेति कोति णवि, समुत्पातेति को अत्यो , समो आयुषो कर्मणां उत्पातः समुद्घातः, सब्बे जीवपदेसे विसारेति, एवं सिग्छ | कम खविज्जति तो समुग्धाओ, तं च कम्हि काले करेति?, मुहुत्ताचसेसाउओ, अण्णे भणंति- जहणणं अन्तोमुहुरी उक्कोसेण छम्मासावसेसाउओ, एयं सुत्ते ण होति दिवेल्लयं ।। आउज्जति-उवयोग गच्छति पढभमेव अंतोमुहुत्तियमुदीरणावलिकायां कम्मपक्खेवाइरूवं परिस्पन्दनं गच्छतीत्यर्थः समुद्घातकरणकातुकामो । तत्थ गाथा ॥५७९॥ णातूण बेदाणज्जं विसमं च समं करेति बंधणठितीहि य विसमं वेदणीज्ज अन्भाहियं समं करोति आउगेणं, केण', बंधणेहिं ठितीहि य, ठितीयाउपबंधाडितिकम्मस्स जावतियं आउत सेसं ज, तमि समये तत्तीयाओ आवलियाओ करेति जाबतियं २ (585) Page #586 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५४-९५७/९५४-९५७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत व्याख्यायांततं करेति, जम्हा अग 5 SC दीप अनुक्रम नमस्कार समएणं कम खवेति,सेसं समुग्याते छुमति, एतानिमित्तं समुग्घायफरणं ॥ कोति समुग्घातं कातूण सिज्झति, कोऽपि ण चेव समुग्धा- योग|तं करेति, जम्हा अगंतूण ॥ समुग्घातो अट्ठसमयितो, तत्थ दारगाथा-दंड कवाडे मंचंतरे या पढमसमये सरीरपमाणं हेट्ठा द निरोधः ॥५८०॥ हुतं उवरिहत्तं च जाव लोगतो ताव दंडं करोति, वितिए कवाडं एगओ वा, एगओ वा दिस, पुष्वावर चा उत्तरदाहिणं च, ततिए 31 मथं, चउत्थे य ओवासंतराणि पूरेति, एवं तं वेदणिज्ज वेदिज्जति, जे आउगनामगोहितो अब्भतितं तं सडति, जथ-उल्ला साडी या०॥ एत्थ सब्बो समुग्धातो विभासितब्बो, तत्थ समुग्घातस्स मणवइजोगे णस्थि, ततियचउत्थपंचमेसु अणाहारो भवति, | तत्थ समुग्घातगतेणं जे अतिरितं कम तं सव्वं खवित, सेसगपिहऽसारं कतं, जथा अग्गिस्स परिपेरंतेहिं जे तणा, एवं तेणं तं च कम्म | सेसं जत्तिया आउस्स समया एतियाओ सेसकम्माणं आवलियाओ करेति, ततो समये समये एक्केके वेदेति, ततो पडियागतो तिहै बिहपि जोगं जुजति, वइजोगस्स सच्चाइ जोगं झुंजति, चउत्थं आमंतणमादी, मणेवि एते चेव जोगे दोष्णि, ते पुण किह होज्ज', | मणसा पुच्छेज्ज कोइ,तेसि मणसा वागरेति,अणुत्तरो अण्णो वा देवमणुयो, कायजीगं गच्छेज्ज वा चिट्ठणड्डाणणिसीयणतुपट्टणाणि, । | गच्छणे उक्खेवणसंखेवणउल्लंघणपल्लंघणतिरियणिक्खेवणादीणि, पाडिहारियं वा पीठकादि पच्चप्पिणेज्जा,सो य सजोगीण सिज्झति ततो भगवं अचिन्त्येण ऐश्वर्येण योगनिरोधं करोति,सो पुचि संणिस्स पढमसमयपज्जत्तगस्स हेट्ठा जाणि मणपायोग्गाणि दवाणी & | यं वा मण्णेति तेसिं ता संखेज्जाणि ठाणाणि पुचि अविसुदाणि धूलाणि य पच्छा विसुज्झमाणस्स सहतरगाणि विसुद्धतरगाणि ४॥५८०॥ य, ततो सेढी आवलिगाओ ओसरंति, जहा विसपरिगयस्स पदेसपदेसेण विस ओसरइ एवं सोवि रुंभमाणाणि २ ताव ओसरति जाव एगाए आवलियाए ठितो,जथा तलाए पढम बिंदु ठितं, बड्डमाणे भरियं,एवं सो ओसरणाओ ताव आणेति जाव जो से पढम A5% CA 8 RECENT (586) Page #587 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५४-९५७/९५४-९५७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार | सभए पज्जत्तगस्स मणो आसी, ततोवि ओसरति पच्छा अमणो भवति, एवं बेदियस्सवि पज्जत्तगस्स बइजोगट्ठाणेसु णिभित्ता जा वइ-II व्याख्यायां यजोगी भवति, पच्छा सुहमस्स पणगजीवस्स पढमसमयोववण्ण गस्स जावतिया सरीरोगाहणा तावतियाए अप्पणगं कायजोग | हासेंते २ निरंभंति, अण्णे पुण भणति-तस्स पढमसमये चा पगगस्स हेवा असंखेज्जगुणं कायजोगं णिरुभतो णिरुभए, तस्स किला ॥५८१२॥ |वीरियावरणोदएणं मंदो जोगपरिष्कंदो तेण अप्पो कायजोगो भवइ, केवलिस पुग अंतराइयपरिक्खरणं अणुत्तरं निराबरणं जोगवीरियं, 5 तेण अचिंतेण जोगसामत्थेणं जा सा केवलिस्स वीरियसदब्बयाए अणुवरतं पदेसपरिफुरणा तं एगिदियजोगपष्फंदा ओसरेऊण गिरदतरं णिरुंभति, जाइंच से सरीरे कम्मणिव्वत्तियाई मुहसवणसिरोदरादिछिदाई ताणि वियोएमाणो २ तिभागूण पदेसोगाहणं करोति, ताहे आणपाणुणिरोह काउं अजोगी भवति । एवं सो योगत्रयनिरोहा सुक्कझाणस्स ततियभेयं सुहुमकिरियं अणियहि अणुप18 विट्ठो करेति, पच्छा समुच्छिन्नकिरियं झाणं अणुप्पविट्ठो जावतिएणं कालेगं अतुरियं अविलंबितं ईसा पंचरहस्सक्खरा क ख ग घ त एते उच्चारिजंति एवतिकालं सेलेसि पडिवज्जति, शैलेशी नाम 'शील समाधौ' 'ईस ऐश्वर्ये' शीले ईशस्तद्भावः शैलेशी, तस्सि काले परं शीलं भवति, अथवा शैलेश इब तस्मिन् काले निष्प्रकम्पः, नान्यत्र, परप्रयोगात्, सेब अलेसी सेलेसी, लेश्या णाम परिप्रणामो २ परि समंता नामो, परिणाम लेस्सा, सा दुविहा-दव्बतो भावतो य, तत्थ वण्णादिगुणपरिणामो लेस्सा, ते वण्णादिणो है द्रव्ये संश्लेष परिणता तेणं सा दबलेसा, ते चेव द्रव्या जीवनात्मसंश्लेषभावपरिणामतः शुभाशुभेण शुभाशुभा य लेश्या भवति, द्रव्यात्मगुणसंश्लेपपरिणामो भावलेश्या, ण तु दब्बपरिणामविरहिया भावलेस्सा भवति, सो य जहा पुन्बनिब्बत्तिएणं हत्थेण पदी ४ ॥२८॥ गहाय अंधारए णयणविसयं फुडीकरेति, एवं सजोगी जीवो पुच्चणिवत्तिएण दव्यसंगेण अण्णसिं दब्वाणं गहणं कातुं भावलेस्सा अनुक्रम (587) Page #588 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५४-९५७/९५४-९५७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 निरोधः नमस्कार.8/परिणामो, एत्थ पुण जं एजति उट्ठति णहति एस जोगस्स बिसओ भाणितव्यो, लेसासंजुत्तस्स पुण यो परिणामो एस अणादीओ|3योगव्याख्याय | वा अपज्जवसितो लेसापरिणामो, भणितं च-जोगेण पदेसग्गं कम्मस्स कसायओ य परिणामं । जाणाहि बज्झमाणं ॥५८२॥ लेसं च ठितीविसेसं वा ।। १ ।। केवलिस्स पुण बाहिरदयग्रहणं भवणाए परपच्चणिमित्तं वा होज्जा, सो णिच्च सुद्ध मुक्कलेसो अविदितअहक्खायचरणो होति, अजोगि पुण जोगनिरोहाणंतरं जो सो पंचक्षरुच्चारणकालो तं कालं बाहिरदव्यगहण-४ टै विरहितं पुव्वोपचितं दबिधणसावसेसजीवप्पदेसपरिणामगतं परमसलेस्सपरिणतो अजोगी सलेस्से भवति, ततो पच्छा करणवीरि-3 यणिरोहलद्धीवीरियसहितो अल्लेसी अंतोमुहत्तं दबसंश्लेषविरहितजीबप्पदेसणिरुद्धं समुच्छिण्णकिरियं परमसुकं मुक्कस्स चउत्थं अंतिमं झाणभेदं झाति, तवज्झाणकम्मवक्खरणपुव्बप्पयोगेण कुलालचक्रवेगवद्भवति नांग्रेरणवत्, तमि काले पुव्वरयित आवलियगु*णसेढियं च णे कम तीसे सैलेसिमखाए असंखेज्जकमसे खवयते वेदणिज्जाउयणामगोत्ताई चत्तारि कम्मसे एगसमएणं जुगवं| खवेति, असो पच्छिमो भाओ एगेगस्स कम्मणो, ओरालितेयगकम्मगाणि सव्याहिं विष्पजहणाहि विप्पजहति, जो च्चेव कम्मजहुणासमयो स एव सरीराण, सव्वविप्पजहणा णाम अंगोबंगबंधणसंघातसंठाणवण्णगंधरसफासा गहिया, पुवं मोत्तूण पुणोवि गेहति, संपइ अपुणागमा पमुक्काणि, णवणीतोदाहरणवद्, द्रव्यं सुवण्णधातू वा, जथा उज्जुसेढिपत्तो जत्तिए जीबो अवगाहेर ॥५८२॥ 18 तावतियाए अवगाहणाए उड्ढे उज्जुगं गच्छति, ण वंक, अफुसमाणगती वितिय समय ण फुसति, अहवा जेसु अवगाढो जे या फुसति उडमचि गच्छमाणो ततिए चेव आगासपदेसे फुसेमाणो गच्छति, शरीरेऽपि ण ततोऽधिके परिपेरंतेण बहि, एगसमएणं अशरीरेणं अकुडिलेण वा उड्डूं गता, न तिर्यग् अधो वा, भ्रमति बा, सागारोबउत्ते सिज्झति । तत्थ सिद्धे भवति सादीए, सव्वे (588) Page #589 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५४-९५७/९५४-९५७], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम आलावगा माणितन्वा । वितियदिढतो य । आह-कई अकमस्स गती पण्णायति', तत्थ गाथा सिद्धानामव्याख्याय लाउयएरंडफले०।९-७१ ।। ९५७ ।। जहा पण्णत्तीए तहा विभासितव्वं, पूर्वप्रयोगा कुलालबद् वते, असंगत्वा-1 बमाइ ॥५८॥3/दलाबुकवत् , बन्धच्छेदात् बजिवत्, तथागतिपरिणामात् , नाधः गुरुत्वाभावात् , न ऊध्वं, यावद्धर्मास्तिकायः गतिसद्भावात् , न पर-18 सुखं च |तस्तदभावात् । आह कहिं पडिहता सिद्धा १०॥९-७२ ॥९५८ ॥ उच्यते अलोए पडिहया० ॥९-७३ ।। ९५९ ।। ईसी पम्भारा 8| विभासितना जथा पण्णवणाए। ईसीपम्भाराए ॥२-७४॥ ९६० ॥ णिम्मलदलरय० । ९-७५ ।। ९६१ ॥ &ाएगा जोयण०।९-७६ ॥ ९६२ ॥ पहुमझदेस०॥ ९-७७ ॥९६३ ॥ गंतूण०। ९-७६ ॥ ९६४ ॥ ईसीपभा राए०॥९-७९ ॥ ९६५॥ उत्ताणओ व०।९-८१ ॥ ९६७॥ दीहं वा हस्सं वा०1९-८४ ।। ९७० ॥ जे किर णिण्णा अम्भितरपविट्ठायपदेसा पदेसा पविशति, तेणे अंगस्स वा उबंगस्स वा जे संठाणविसेसा आसी ते सव्वे विभागरहिता होंति, समणिचयपदेसओ णिगुणणं । तिणि सता तेत्तीसा ॥ ९-८५ ।। ९७१ ।। मरुदेविमादीण । चतारि य रयणीओ०॥ ९-८६ ॥ ९७२ ॥ सत्तरत- १८३॥ |णियाण । एगा यहोति रयणीए०॥९-८७ ।। ९७३ ।। वामणकुम्मगसुयमादीयाण | ओगाहणाए सिद्धा भयत्तिभागेण. ॥९.८६ ।। ९७४ ।। जत्थ य एगो सिद्धो तत्थ प णता उ०॥९.८९ ॥ ९७५ ॥ अवरोप्परं जह- धम्माधम्मागासा ।। CANCERT 545REPEC (589) Page #590 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H. मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९५८-९८१/९५८-९८४], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सत्राक दीप अनुक्रम नमस्कार || फुसति अणन्ते ॥ ९.१०॥९७६ ।। सरिसाए ओगाहणाए सरिसोगाहणओ अणते,जे तेण देसपदेसेण पुट्ठा ते असंखेज्जगुणा सिद्धानामव्याख्यायांट एगस्स सिद्धस्स एगणं विपदसेणं अणता पुट्ठा, सो य सिद्धो असंखेज्जपदेसो तेण तावइया असंखज्जा रासी तेणं आदिल्लएणं वगाहा सव्वपदेसपुढे एतेण मिज्जमाणा ।। मुखं च ॥५८४॥ असरीरा०॥ ९.९१ ॥ ९७७ ॥ केवलंमि लक्षण भाणितं. सागारा अणगारं । इदाणि सुई भण्णति-- णवि अस्थि माणु०॥ ९-९२ ।। ९८० ।। सुरगण ॥ ९-९५ ॥ ९८१।। तीयवट्टमाणाणायगाणं देवाणं विसयसुहं हैं असम्भावपट्ठवणाए घेत्तूण रासी कतो, सो अणंतगुणिते सिद्धस्स य एगस्स असरीरं सुहं गहिय, तं अणंताणतभागीकयं, तस्स एगभागे णवि तुई चव मुहरासीसुहमिति, वितिय वा माण- सुरगणमुई समस्तं सम्बद्धापिंडितं एगम्मि आगासपदेसे छुढं || तेणप्पमाणेणं सिद्धस्स मुहं मिज्जमाणं लोगालोगागासेवि ण माति एगस्स, णणु यदि णाम तं केवली विंदति तो किष्ण ओव| म्मेणं दरिसंति ?, भण्पति, णत्थि तस्स उवमाण, किह पत्थि ?, जहा एगो महारण्णवासी मेच्छो रणे चिट्ठति, इओ य एगो यक राया आसण अवहरितो ते अडवि पवेसितो. तेण दिट्ठो, सक्कारऊण बंदिओ, रण्णावेसो णगर(णीओ),पच्छा उबगारित्ति गाढमुव- | चरितो, जहा राया तह चिट्ठति धवलपरादिभोगणं, विभासा, कालेणं रणं सरितुमारद्धा, रणा विसज्जितो, ततो रण्णिगा| 18| पुच्छन्ति-केरिसं गगरंति ?, सो बियाणतोय तत्थोवमाभावात् ण सबकति गगरगुणे परिकहेतु, एस दिढतो, अयमेथोषणओ, | एवं सिद्धाणवि सोक्खस्स विसयमुहे ण उवमा, नत्थि सरीरावयवदाहरणं, सो य मेच्छो जहा किचिमत्तेण ढुंगरादीणि दावेचा पत्तियावति, एवं इहइंपि किंचिमत्तेण उदाहरणं क्रियते CCCCC (590) Page #591 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार ॥५८५॥ RDCORE दीप अनुक्रम जह सचकामगुणियः॥ ९-९९ ॥ ९८५॥ सबकामगुणितं णाम सब्वामिलासणिवत्तर्ग, भोयणं णाम भुज्जत इति आचाये| भोयण- विसयं संसारोति, ताहाछुहाविमुक्को णाम णिभिलासो णिरुओ य, जहा सो परमाणदितो अमयतित्तोव्य । नमस्कारः इय सब्बकालतित्ता ॥२-१०० ।। ९८६ ॥ सिद्धति ॥९-१०१ ।। ९८७ ।। फलमिदाणिं, जहा अरहतेस पुवं ।। आयरियाण संखेवण भाणितं,जहा ते णमोक्कारारिहा,इदाणिं वित्थरेण भण्णति,आङ् मर्यादाभिविध्योः 'चरिर्गत्यर्थः मर्यादया चर | न्तीति आचार्याः, आचारेण वा चरंतीति आचार्याः, ते चतुम्विहा, णामढवणाओ गताओ, द्रव्यभूतो वा द्रव्यनिमित्तं वा द्रव्यमेव वा दव्वं, आयारवंत भन्नति अनायारवंतं च. नामनं प्रात तिणिसलया य एरंडो य, धावणं प्रति हारिदारागो किमिरागो य, |वासणं प्रति कवेल्लुगा बरं च, सिक्खावणं प्रति मदणसलागा बायसादी य; करणं प्रति सुवर्ण घंटालाई च, अविरोधं प्रति खीरं | सक्करा य, विरोध प्रति वेल्लं दधि य, एवमादि, एत्थ गाथा-णामणधावणवासणसिक्खावणसुकरणाविरोधीणि । दव्वाणि जाणि लोए दबायारं वियाणहि ॥ १॥ अहवा दबायरिओ तिविहो- एगभविओ बद्धाउओ अभिमुहणामगोत्तो, एगभविओ जो एगेणं भवेणं उववज्जिहि, णिबद्धाउओ उ जेण आउयं बद्धं, अभिमुहणामगोचो जेण पदेसा उच्छूटा, अहवा मूलगुणणिव्यत्तितो उत्तरगुणनिव्वत्तिओ य, सरीरं मूलगुणो चित्तकम्मादि उत्तरगुणो, अहवा जाणओ भविओ बतिरितो, मंगुवायगाण समुहवायगाणं नागहत्यिवायगाणं जथासंखं आदेसो, भावायरिओ दुविहो- आगमतो गोआगमतो य, आगमतो तहेव, णोआगमतो दुविहो| लोइओ लोउत्तरो य, लोइतो सिप्पाणि चित्तकम्मादिसत्थाणि वइसेसियादि जो उपदिशति, उत्तरिओ जो पंचविधं णाणादिया | आयारं आयरति पभासति य अण्णेसि, आयरियाण आचरितन्यानि दर्शयति-एवं गंतव्य एवमादि, तेण ते भावायरिया, तेसि फलं तहेव ॥४ (591) Page #592 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-, नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कार इदाणि उवज्झाओ जथा अरिहो तहा, वित्थरेणं भण्णति-तमुपेत्य शिष्टा अधीयन्त इत्युपाध्यायः, सो चउब्बिहो, नामट्ठ-13 पदवणाओ गताओ, दब्बउवज्झाओ दव्वभूतो जहा लोइया अण्णतित्थिया य उवज्झाया, णिहगादी वा, भावे वा वारसंगोद साधु नम स्कार पटIVI|९-११५ ।।।। १००१ ॥ बारसंगो- आयारादि जिणक्खातो-तिस्थकरभासितो सज्झातो. सुतं कहितो बुधैः, बुधा-गणघरादी, तं उवदिशति समीवत्थं, ते उबज्झायत्ति जम्हा तेण उवज्झाया वुच्चति । उत्ति उवओगकरणे० ॥९-११६ ॥१००२॥ है उवत्ति उपयोगकरणे झायत्ति झाणस्स णिसे, उवउत्तो झायतित्ति, एतेण कारणेण उवज्झातो उ एसो अण्णोऽवि पज्जाओ। अहवा एतं निरु उत्ति उपयोगकरणे बत्तिय पावपरिवज्जणे होति । झत्ति य झाणस्स कते ओत्ति य ओसक्कणा| कम्मा ॥ १ ॥१००३ ॥ उबओगपुनगं पाबपरिवज्जणतो झाणाराहणेणं कर्म ओसरेतित्ति उवज्झाओ, एवमादिपर्यायाः | उपाध्यायस्य, सेस तहेव ।। इदाणिं वित्थरेण साहुणमोकारो भण्णति- 'राध साध संसिद्धा' साधयतीति साधुः, सो चतुविहो,णामट्ठवणाओ गताओ, दादब्बसाहू घटद्रव्यं साधयतीति एवं पटरहमादीमण, अहवा जो दव्वभूतो बोडिगणिण्हगादी वा दबसाह, भावो- मोक्खो ते* साधयतीति भावसाहू। तत्थ निरुत्तीगाहा-णिब्वाणसाहए ॥ ९-१२४ ॥१०१० ॥ आह-अरहंता सिद्धा आयरिया उवज्झाया पाय गुणाधिया ततो णमोक्कारकरणे अरिहा, समाणे गुणतवे संजमे अधिगयरे वा, किं साधूण पणमसि', उच्यते-तहावि |॥५८६॥ है|ते बंदनारिहा, जतो अतिशयगुणजुत्ता, तथा च-विसय० ॥ ९.१२६ ॥ १०१२ ।। असहाये ॥९-१२१ ॥१०१३॥ फलं तहेव णमोक्कार ।। साहुणिरुत्तगाहाओ-सामायारिबिहिष्णू संतिमाचारिया बरायारा । आयारमायरता आयरिया तेण वुच्चंति (592) Page #593 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक H दीप अनुक्रम [3] अध्ययनं [-] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता नमस्कार व्याख्यायां ॥५८७|| *6*6 "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [ ९८५-१०२४/९८५-१०१५], आयं [१११...]]] मूलं [१] / [गाथा-] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - ॥१॥ णायोववण्णवक्खाण पहाणगुण सीससंग्रहकराणं आयारदेसगाणं आयरियाणं णमो तेसिं ॥ २ ॥ णायोवदेसगाणं दुबिहमत्रज्झायविप्पमुक्काणं । सततमुवज्झायाणं नमामि अज्झेण (झप्प) मुद्राणं ॥ २॥ कार्य वार्य च मणं इंदियाई च पंच दमयंति । धारंति पंचभारं संजमपत्ती कसाए य ॥ ४ ॥ एवमादि ॥ एवं एयेण णमोकार वत्थुतो मणिया । इदानी आक्षेपः, 'थिप प्रेरणे' मर्यादोपदिष्टमर्थं आक्षिपति न सम्यमेतदिति, किमाक्षिपति ?, आह- द्विविधमेव सूत्रं यद्वा संक्षेपकं यद्वा विस्तारकं, संक्षेपकं सामाइक, विस्तारकं चतुर्दश पूर्वाणि, एवमेष नमस्कारः नापि संक्षेपेनोपदिष्टः नापि विस्तरतः, एतावतोवार कल्पना तृतीया नास्ति, नमो सिद्धाणंति णिब्बुया गहिया, णमो साहूणंति संसारत्या गहिया, एवं संखेषो, एत्थेगतरेणं कायव्वो, जेण ण कीरति तेण दुइति आक्खेवो || दारं ॥ इदाणिं पसिद्धी, संखेवेण मए णमोक्कारो कतो, गुणावलोयणेणं, ण तुमं जाणूस, कहं है, अरहंता ताब नियमा साहू, साहू पुण सियरहंता सिय यो अरहंता, णमो साधूणंति णमोक्कारं करतेण जे साहूहिंतो अन्महियगुणा अरहंता ण तेण ते पूइया होंति, विरुसकरेंतेणं अरहंता पूइया भवंति, साहविय सहाणे, एवं आयरिए विभासा, उवज्झाए विभासा, एवमादि, एतेणं कारणेण पंचविहो णमोकारो कीरह जुत्ता, किं च पुचं जे हेतू भणिया मग्गे अविष्पणासो आयार विषयता सहायचन्ति, अरहंतेहिंतो मग्गो सिद्धेहिंतो अविपणासो आयरिहिंतो आयारो उवज्झाएहिंतो विषयो साहहिंतो सहायत्तं एतेणवि कारणेण पंचविहो णमोक्कारो जुचो, किं च जं भणसि न संखेयो न बित्थरोति तं ण सोमणंति, उक्तंच संक्षेपोक्तं मति हंति, विस्तरोक्तं न गृह्यते । संक्षेपविस्तरी हिरवा, वक्तव्यं यद्विवक्षितम् ।। १ ।। (593) नमस्कारे आक्षेपादि ||५८७ ॥ Page #594 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-, नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०२३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत नमस्कार व्याख्यायां ॥५८८॥ दीप अनुक्रम इदाणिं कमो, आह- एस णमोक्कारो णेच पुवाणुपुब्बी, णेव पच्छाणुषुब्बी, दुविहं च विहाणं, जंवा पुब्वाणुपुब्बी जंवा पच्छा-18/ नमस्कारे |णुपुथ्वी, जहा- 'उसभमजिय' एवमादि पुव्वाणुपुब्बी, पच्छाणुपुब्बी चीरो पासो एवमादि । एवं णमोक्कारो पुव्वाणपबीए- णमोटियाजनादि सिद्धाणं णमो अरहंताणं आयरिय उवज्झाय साहूर्णति,जेणेव तित्थंकरो चरित्तं पडिवज्जतो सिद्धाण पणमति, एवं पुन्याणुपुवीए भवति, पच्छाणुपुबीए नमो सम्बसाहूर्ण उवज्झायाणं आयरियाण अरहताणं सिद्धाणति, एवं करेंताण पसत्थो भवति, इयरहा विपरीतः', उच्यते, अणुपुष्यी एसा, ण य तुम जाणसि, कह ?, जेण अरहंताणं उवदेसेण सिद्धा गज्जति तेण उबदेसगत्ति पुब्बि कता, ततो सिद्धा गुरू, कमेण च सेसगावि , अविय- णवि लोए परिसं पुव्वं पणमिऊण परिसणायओ पणमिजति, पुथ्वं णायओ पच्छा परिसा, एवं जहा लोए तहा सत्थेवि । एवं पसाघिय पसिद्धिदारं ॥ आह- किं पयोयण णमोकार कीरति , पयोयणं णाम प्रयोज्यते येन तत्प्रयोजन, अनन्तरकायमित्यर्थः, उच्यते- णाणावरणादिकम्मक्खयनिमित्तं, एकैकाक्षरोच्चारणे अनंतपुद्गलरसफडकघातसद्भावात् , मंगलं च होहिति महारिसीणं पणामेणंति, एस एव अम्ह सव्वसत्थाणं पुब्बि उच्चारिज्जति,जहा मरुयाण उंकारो जहा लोगे तहा लोउत्तरेवित्ति। दारं ॥ इदाणि फलेत्ति दारं, 'फल निष्पत्ती', किं निष्पादयति एपा नमस्कारस्मृतिः १, उच्यते, इहलोइयं परलोइयं च फलं, इहलोइयं ताव अत्यावहो कामावहो ॥५८८॥ आरोग्यावहो होति , अथ कामारोग्या: किं निष्पादयंति ?, उच्यत- अभिरतिः, परलोइओ सिद्धिगमणं वा देवलोगगमणं वा, सोभणे वा कुले आयाति, पुण बोहिलाभो वा एवमादि, इहलोगमि तिरंडी०॥९.१३८ ॥ १०२४ ।। णमोक्कारो अस्थावहो कहति ?, उदाहरणं जथा KARऊ (594) Page #595 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 13 नमस्कार एगस्स सावगस्स पुत्तो धम्म न लएति, सो य सावओ कालगओ, सो विवाहितो, एवं चेव विहरति, अण्णदा तेसिं दार-18 व्याख्यायांसमीपे परिजन | समीपे परिवाओ आवासितो, सो तेण दारएण समं मित्तिगं करेति, अण्णदा सो परिवाओ तं दारगं भणति-जा णिरुवहताफले नमस्कार॥५८९॥ अणाधमतर्ग आणेह जा ते इस्सरं करेमि, तेण गविठ्ठ, लद्ध, उवबद्धओ मणुस्सो, आणितो, मसाणं णीओ, जं च तत्थ पाउग्ग, सोचित्रिदंब्यादि दारओ पिताए सिक्खावितो णमोक्कारं, जाहे बीभसि ताहे णमोक्कार करेन्जासित्ति, सो तस्स मतगस्स पुरतो ठवितो, मतगस्स य हत्थे असी दिण्णो, परिचाओ विज्ज परिवति, चेतालो उद्वैतुमारद्धो, सो दारओ भीओ णमोक्कार परियड्डेति, सो बेतालो पडिओ, पुणो जवेति, पुणोषि उद्विओ, सुठुतरागं परियडेति. तिदंडी पुच्छति- किंचि जाणसि , सो भणति-ण जाणामि, एवं Mसुचिरं वदृति , वाणमंतरेण रुद्वेण सो तिदंडी दोखंडो कतो, सुवण्णा खोडी जाता, अंगोवंगाणि से जुत्तगाणि, सब्बरति वृद, | ईसरो जाओ णमोक्कारफलेण, जदि णमोक्कारो ण होतो तो बेतालेण मारिजंतो, सोवण्णं जातं । एत्तो कामणिप्फत्तीए सादेष्वं, है कह , एगा साबिया, तीसे भत्थारो मिच्छादिडिओ अण्ण भज्ज आणेतु मग्गति, तीसेच्चएणं ण लभति ससवत्तगं, चिंतेति किह मारिज्जामित्ति , अण्णदा तेण कण्हसप्पो घडए छुभित्ता आणितो, संगोवितो, जिमिवो भणति-आणेह पुष्पाणि अमुगघडए ६ ठवियाणि, सा पविट्ठा, अंधकारंति णमोक्कारं करेति, जदि किंचिबि खाएज्जा तोवि मरंतीए णमोक्कारो ण णस्सिहिति, हत्थो ढो, सप्पो देवताए अवहितो, पुष्फमाला साहिया, ताए गहिया, दिण्णा य, सो संभंतो चिंतेति-अण्णाणि, कहियं, गतो पेच्छति ॥५८९॥ घडगं पुष्फगंध, णवि एत्थ कोई सप्पो, ताहे आउदो पादपडितो सव्यं कति खामेति य, पच्छा सा चेव घरसामिणी आता, द एवं कामावहो । *CRECAKAARAK (595) Page #596 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-, नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कारा आरोग्गाभिरतीए एग णगरं णदितडे, खरमितेणं सरीरचिंतानिग्गतेण नदीए बुझते मातुलिग दिई, रायाए उवणीत, नमस्कार फले आरोव्याख्यायालयस्स हत्थे दिण्णं, पमाणेण य अतिरित्त, वण्णेण य गंधण य अतिरित, तस्स मणुस्सस्स तुडो, भोगा दिण्णा, राया भणति A ग्यादि ॥५९०॥ अण्णं णदीए मग्गह जाव न ल , पत्थयणे गहाय पुरिसा गया, दिडो वणसंडो, जो गिण्हति फलाणि सो मरति, आगता, रण्णो 8 कहिये भणति- अवस्सं मम आणेतच, अक्खपडिया वच्चउ, एवं गता आणेति, एगो पविट्ठो बाहिं उच्छुभति, अण्णे आणेति, सो मरति, एवं कालो वच्चति, सावगस्स परिवाडी जाया, गओ तत्थ, चिंतेति-मा विराहितसामण्णो कोई होज्जति णिसीहियं णमोक्कार करेंतो दुक्कति, पाणमंतरस्स चिंता, संबुद्धो, बंदति, भणति- अहं तव तस्थेव साहरामि, गतो, रण्णो कहितो सम्भावो, तस्स ऊसीसए दिणे दिणे, एवं तेण जीतं अभिरती भोगा य लद्धा, जीविता णाम किं अण्णं आरोग्ग, रायावि तुट्ठो।। परलोए णमोक्कारस्स केण फलं पतं? - वसंतपुरे राया, गणिया साविया, चंडपिंगलेण चोरेण समं वसति, एवं कालो वच्चति, अण्णदा तेण रणो घरं हतं, हारो णीणितो, भीतेहि संगोविज्जति, अण्णदा ऊजाणीयाए गमणं, सब्बाओ गणियाओ विभूसियाओ पच्चंति, तीए सव्वाओ अतिसतामित्ति हारो आषिद्धो, जीसे देवीए सो हारो तीसे दासीए णाओ, रणो कहिओ य, केण सम वसती, कहेति, चंडपिंग|लो गहितो, सले भिण्णो, तीए चितिय- मम दोसण मारिओति सा से णमोक्कार देति, भणति य-णिदाणं करेहि जथा एत-13॥५९०॥ लास्सेव रण्णो पुचो पच्चायामि, कतं, अग्गमहिसीत उदरे पच्चायातो, दारओ जातो, सा से साविया कीलावणधाती जाता। अण्णदा चिंतेति-कालो समो गमस्स य मरणस्स य, होज्ज कदाइनि रमावेति भणति-मा रोव चंडपिंगल! चंडपिंगलचि, संबुद्धो, १९२६345528352625 SAR (596) Page #597 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसू अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 फले आरो SAGARit नमस्कार हैराया मतो, सो राया जातो, सुचिरेण दोवि पब्बतियाणि । एवं सुकुलपच्चायाती तंमूलागं च सिद्धिगमणं ।। अहवा वितिय व्याख्यायां उदाहरणं- महुरा णगरी, तत्थ सावओ सश्वजीवस्सरण्यो, तत्थ हुंडि चोरो णगरं मुसति, अण्णदा गहितो, सूले भिण्णो, पडियरह ॥५९॥ बितिगावि से णज्जिहिंति, पच्छण्णा माणुसा पडितरंति, सो सावओ तस्स अदूरबत्ती बयति, सो भणति- सावगा! तुमंसि अ |शुकंपो, अहं तिसाइओमि, देहि मम पाणितं जा मरामी, सावओ भणति-इमं णमोक्कारं पढ़ जतो पाणितं आणेमि, जदि विस्सारेसि आणितंपि न देमि, सो ताए लोभयाए भणति, सावओ पाणितं गहाय आगतो, तं वेलं पाहामित्ति णमोक्कारं पढंतस्स विणिग्गतो जीवो, जक्खभवणे जक्खो जाओ, सो य सावओ तेहिं मणुस्सेहिं गहितो चोरभत्तदायगोति, रण्णो णिवेदियं। भणति- एयंपि बले भिदथ, आघातर्ण णिज्जति, जक्खो ओधि पउंजति, जाव सावगो य अप्पणो य सरीरं पेच्छति, ताहे पवयं उप्पाडेऊण गगरस्स ओप्पि ठितो, ता तुम्भे मम एवं भट्टारकं ण जाणंह , खमावेह, मा से सब्बे चूरेहामी, ताहे खाति। देवणिसीयस्स पुग्वेण य से आयतणं कतं । एवं फलं भवति णमोकारेण परलोएवि । ॥इति नमोकारनिज्जुत्ती सम्मत्ता॥ पदाणि सुत् भणति नंदिमणुयोगदारं विहिवदुषघातियं च णातूण । कातूण पंचमंगलमारंभो होति सुत्तस्स ॥१०॥१॥ १०२५ ॥ कतपंचनमोकारो करेति सामाइयंति सोभिहितो । सामाइयंगमेव य ज सो सेसं तओ तुच्छ ॥१०॥२॥१२०६।। & ॥५९१॥ R ***अत्र नमस्कार-नियुक्ति समाप्ता: *** अत्र अध्ययनं -१- 'सामायिक' आरभ्यते *** (597) Page #598 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक प्रागुपदिष्टं च एत्थ य सुचाणुगमो सुत्तालावगनिष्फण्णो निक्षेवो सुत्तफासियनिज्जुत्ती समकं गमिष्यतीति, तथात्र 31 संहिताबाल्यावाद सामायिकसूत्रमुच्चारयितव्यं अक्खलितयं अमिलितं एते आलावगा जथा पेढियाए दब्बावस्सगे तहा बिभासितव्वा जाब सामा-दि पदादि ॥५९२॥ इयपयं णोसामाइयपयं वा, तं च इमं करोमि भंते ! सामाइय' मिच्चादि, ततो तमि उच्चारिते केसिंचि भगवंताणं केई अत्था-| ४ धिगारा अधिगता भवंति, केई पुण अणधिगता, ततो तेसि अधिगमत्थं अणुयोगो, एवं च 'जिणपवयणउच्पत्ती' एसावि गाथा । एत्थ गता भबिस्सतित्ति, सो य अणुयोगो एवं-संहिता य पयं चेव, पयत्थो पदविग्गहो। चालना य पसिद्धी य, छब्विहाल दिद्धि लक्खणं ॥१॥ तत्थ पुव्वं संहिता, संहितेति कोऽर्थः१, पूर्वोत्तरपदयोः वर्णयोः परः संनिकर्षः संहिता, अक्खलियपयो६च्चारणमित्यर्थः, तत्थ संहिता-'करेमि भंते ! सामाइयं, सव्वं सावज जोग पञ्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहणं मणसा| | वयसा कायसा न करेमि न कारवेमि करेंतमवि अण्णं ण समणुजाणामि, तस्स भंते ! पडिकमामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसि रामि' ति, एसा संहिता ॥ | इदाणिं पदच्छेदो, करेमित्ति पदं भदंत इति पदं सामाइयंति पदं सर्वति पदं सावजंति पदं जोगमिति पदं परुचक्खामिति पदं जावज्जीवाएराति पदं विविहति पदं तिविहेणति पदं मणसत्ति पदं वयसति पद कायसति पदं ण करेमिति पदं न कारवे81 मित्ति पदं करेंतमण ण समणुजाणामित्ति पदं तस्सत्ति पदं भदंत इति पदं पडिकमामित्ति पदं निंदामिति पदं गरिहामित्ति पदंश॥५९।। ८ अप्पाणंति पदं वोसिरामित्ति पदं । इदाणि पयत्थो, पद्यतेऽनेनार्थ इति पदं, गम्यते परिच्छिज्जते इतियावत्, एत्थ य आय-6 रिया पदत्यमेवं वणयंति--यथा किर सव्वा अत्थसिद्धी सविसए जहासत्तीए पविचिनिवित्तीहिं दिट्ठा, अतो एत्यपि मोक्खत्थम MOSAMROSAROSCkles दीप अनुक्रम ACNEE ॐॐॐ |... सामायिक अध्ययने प्रथम सूत्रम् “करेमि भन्ते" निर्दिश्यते (598) Page #599 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सामायिक व्याख्यायो पदच्छेद: पदार्थश्च ॥५९३॥ दीप अनुक्रम ज्जुतो एवमन्भुवगम दरिसेति, जथा-करेमि भंते ! सामाइयमित्यादि, तत्थ 'डुकृञ् करणे तस्य गुणादी कृते करोमीति भवति, करोमि अभ्युपगच्छामीत्यर्थः, भंतेत्ति भदंत मयान्त भवान्त इति पूज्यस्यामन्त्रणं, हे भदंत इत्यादि, सामायिकमिति | णाणदसणचरणाणि भावसम तस्स आयः समाय इत्येतस्य इकण्प्रत्ययांतस्य नरुक्तविधानेन सामायिकमिति भवति, तत्किमुक्त:हे पूज्य ! ज्ञानदर्शनचारित्रलाभं अभ्युपगच्छामि, अनेन मोक्षसाधनज्ञानदर्शनचारित्रलामविषयं प्रवृत्त्यभ्युपगमं दर्शयति, सर्वशब्दोत्रापरिशेषवाची, सावज्जमिति अवयं-गर्हित मिच्छर अण्णाणं अविरती सह अवयेन सावधस्तं, कोऽसौ ?-योग:व्यापार इत्यर्थस्तं, किमिति -पच्चक्वामित्ति पच्चक्खाणं करेमि, प्रतीपमाख्यानं प्रत्याख्यानं, परिज्ञया परिज्ञानं प्रत्याख्यानपरिज्ञया परिहरणमित्यर्थः, तत्किमुक्त ?-अपरिशेपं मिथ्यात्वाज्ञानअबिरतिसहचरितं व्यापार ज्ञात्वा निवर्तयामीति, अनेन तु संसारकारणमिथ्यात्वान्नानाविरतिसहगतच्यापारविषयं निवृत्त्यभ्युपगमं दर्शयात, नणु सावज्जजोगो तिकालविसओ संखातीतभेदो यतो कहं तस्स निरवसेसस्स पच्चक्खाणं , अशक्यमित्यभिप्रायः, किं च-तथाविधेण करणेण कता कज्ज साहेति, न तं विणा, | तदपि संख्यातीतभेदं, कस्यचित्कार्यस्य किंचित्साधकतम, तदत्र नियतभेदं किं तथाविध करणमित्याह-जावज्जीवाए इत्यादि, अत्र जावज्जीवाएचि न करेमि न कारवेमि करेंतपि अनं न समणुजाणामि इत्यत्र योज्यते, यावत् परिमाणमर्यादावधारणेषु, जीव प्राणधारणे, जीवनं जीवो यावन्मम जीवनं जीवनपरिमाण-जीवनमर्यादा, जीवनमात्रमित्यर्थः, किं, संख्यातीतभेदमपि जाइभेयवि- | | वक्षया त्रिविधं-त्रिप्रकारं करणकारणानुमतिलक्षणं सावचं योग, करणस्याप्यनेकविधत्त्वेऽपि तथैव विविधेन त्रिप्रकारेण, करणेनेत्यर्थः, तेनाप्यस्य कार्यस्य प्रसाधकतमेनैव मणसा वयसा कायेण एते विभासितव्वा, एतेषामेकैकेनैव, अत एव मणसा वयसा -ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ ||५९३॥ (599) Page #600 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) =མྦྷོཡྻ अनुक्रम अध्ययनं [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) निर्युक्तिः [ ९८५-१०२४/९८५-१०१५] आयं [१११..]]] मूलं [१] / [गाथा-], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 - ॥५९४॥ सामायिक कायेणेत्यत्र भित्रविभक्तिको निर्देशः, न करोमि आत्मना न कारवीम परैः करेंतंपि अवणं न समणुजाणामि, अपिशब्दाव्याख्यायां |स्कारर्खेतमवि समणुजाणतमवि अण्णं ण समणजाणामि, अन्यग्रहणात् एव अन्यपरंपरयापीति, तत्किमुक्तं ? वर्तमानसमयादारभ्य यावन्मरणकाल एतावतं कालं यावत्सावद्यं योगं करणकारणअनुमतिभेदात् त्रिप्रकारं त्रिविधेन करणेनानेनैवास्य प्रसाधकेन मनोवचनकायरूपेण एकैकेन न करेमि न कारयामि करेंतंपि अण् ण समणुजाणामीति यश्चातीतकालविषयः तस्स पढिकमामि निंदामि गरिहामि, पडिक्रमामिति प्रतीपं क्रमामि प्रतिनिर्वृत्ते वोसरामीतियावत् 'निंदा आत्मसंतापे' 'गह प्रकाशने ' आत्मसाक्षिकी निंदा, परसाक्षिकी गर्हा, तत्कोऽर्थः १- योऽतीतकालविषयः त्रिविधः सावद्ययोगस्तस्मात् त्रिविधेन करणेन पडिनियसामि, तमेव चात्मसाक्षिकं निंदामि परसाक्षिकं गर्हामीति, अपराधपदविशुद्धयर्थं चात्मानं बोसिरामिति, अयमभिप्रायः- एवमपि यदा आत्मानं अपराधपदेहिं अविसुद्ध संभावयामि तदा अधारिहं पायच्छित्तं पडिवज्जामि, न तुण आतपडिवंघेण तं न पडिव - ज्जामि, अतो आतपडिबंधपरिहारेण पायच्छित्तपडिवतीए आलाबो सिद्धो चैव भवतित्ति अप्पाणं वोसिरामीत्याह, अनेन च यथा शक्तिर्दर्शिता भवतीति पदार्थः । अण्णे पुण एत्थ केयी अवयवा अण्णधा संपवयंति वण्णयंति य, जथा किर करेमि भंते! सामाइयं तिविहं नाणदंसणचरणभेदेणं, सच्वं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि तिविहं, मिच्छत्तअन्नाणअविरतिसहगतत्वात्सोऽपि त्रिविधः, मणवयका यवावारभेदेण वा तिविधो, तिविषेण मणसा करणकारणाणुमतिपत्र सेण, एवं वयसा कायेवि, सामाइयं करेमि सावज्जं जोगं पच्चक्खामि । सेसे पूर्ववत् ।। अण्णे पुण-करेमि भंते ! सामाइये जावज्जीवाए, सब्बं सावज्जं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए, कहं ?, तिविहं तिविहेणं, मणेणं दायाए कार्येणं, वमाणसमयादारभ्य जावज्जीवाए न करेमि जाव न समणुजाणामि, पुब्बकतस्स (600) पदार्थ ॥५९४॥ Page #601 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम सामायिक पुण पडिक्कमामि जाव गरिहामि एवं संबंधयति, शेष पूर्ववत् । एवमाबन्यथापि दृश्यते । एष पदार्थः, पदविग्रहो यत्र संभवति व्याख्यायां । तत्र वक्तव्यः । इदानीं सुत्तफासियनिज्जुत्ती जा एतं सुतं अणुफुसतित्ति भणित्ता ततो पच्छा चालणा भणिहिति, एत्थ इमामा निरूपणं मुत्तफासिए गाथा॥५९५का NI करणे भए य अंत सामाइय सब्बए य वज्जे य । जोए पच्चक्वाणे जावज्जीवाए तिविहेण ॥१०॥४॥१०२८॥ एसा गाथा विभासितव्या, तत्थ करणं छविहं, नामकरण ठवणा० दव्य खेत्त० काल. भावकरणं, तत्थ नामढवणाओ IGIगताओ,जाणगसरीरभवियसरीरवतिरितं दबकरण दुविह-सण्णाकरणं च पोसण्णाकरण च, सण्णाकरण अणेगविह-जमि जीम दवे करणसंज्ञा भवति तं सण्णाकरणं, जथा- कडकरणं अट्ठकरणं पेलुकरणं एवमादि, पोसण्णाकरणं दुविह-चीससाकरणं पयोगकरणं | | च, विगत ससना विससा, विगतप्रयोगकरणमित्यर्थः, तं दुबिई- अणादीयं सादीयं च, अणादीयं जथा धम्माधम्मागासादीणं, तेसु का करणविही', उच्यते-परप्रत्ययादुपचारतः करणं, अहवा धम्माधम्मामासाण य अण्णमण्णगमणं तं अणादीयं वीससाकरणं, अहवा धमादीण य भवणं, एवं अणादीयं वीससाकरणं, सादीयं दुपिई- चक्खुफासियं अचक्खुफासिय च, पक्खुफासिय ६ अब्भा अब्भरुक्खा एवमादि, चक्षुषा बन्न स्पृश्यते तदचक्षुःस्पर्शिक, जथा परमाणुपोग्गलाणं दुपदेशियाण तिपदेशियाण एवमा-18 है दीर्ण, एतेसि ज संघातेणं भेदेण संघातमेदेण या करणं उप्पज्जति तन दीसति छउमत्थेणं तेण अचक्लुफासिय, बादरपरिण-18॥५९५॥ तस्स पुण अणंतपदेसियस्स चक्खुफासियं भवति । पयोगकरणं दुविह- जीवपयोगकरणं अजीवपयोगकरणं च, जीवपयोगकरण ट्र दुविह- मूलपयोगकरण च उत्तरपयोगकरणं च, मूल नाम मूलमादिरित्यनर्थान्तरं, मूले पंच सरीराणि ओरालियादीणि, उत्तरपयो RECARSARKAR सर (601) Page #602 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सामायिक व्याख्याय ।।५९६॥ दीप अनुक्रम SSSSOCIES-5- | गकरणं नाम जं निफण्णातो उत्तर निष्पज्जति, ते एतसिं चेव ओरालियबेउब्वियआहारगाणं तिण्हाण उत्तरकरणं, सेसाणं णात्थ, करण: एतं अट्ठविहं करणं । अहवा मूलकरणं अटुंगाणि, अंगोवंगाणि उवंगाणि य उत्तरकरणं, ताणि जथा-सीस १ मुरो २ दर ३ नरूपण पट्टी ४ बाहाओ दोणि ६ ऊरुया दोषिण ८ । एते अटुंगा खलु अंगोवंगाणि सेसाणि ॥१॥ १६० मा । होति उबंगा अंगुलि कण्णा नासा य पजणणं चेव । णहदंतकेसमंसू अंगोवंगेवमादाणि ॥ २ ॥ अहबा इम उत्तरकरण- दंतरागो कण्णवडणं नहकेसरागो, एतं ओरालियवेउम्बियाणं, आहारए णस्थि एताणि, आहारगस्स पुण गमणादीणि, एस पुण बिसेसो- ओरालियस्स & चैव उत्तरकरणं विसेणं ओसहेण वा पंचण्डं इंदियाणं विणट्ठाण वा पुणो करणं निरुवहताण चा विणासणं, एवमादि । तत्थ पुण | ओरालियवेउब्बियआहारगाणं तिहं तिविहं करणं-संघातकरणं परिसाडणकरणं संघातपरिसाडकरणं, उवरिल्लाणं दोहं सरीराणं ४ संघातणा पत्थि, उवरिल्लाणि दो अस्थि, एताणि तिषिणवि करणाणि कालतो मग्गिज्जति-ओरालियसंघातकरणं एगसमय, जं पढमसमयोववण्णस्स, जथा तेल्ले ओगाहिमओ छूढो तप्पढमताए आययति, एवं जीवोऽवि उववज्जतो पढमे समये गेण्हति ओरा-1 लियपाओग्गाणि व्वाणि, न पुण मुंचति किचिवि, पडिसाडणा जहणेणं समयो उक्कोसेणवि समयो, मरणकालसमए एगंतसो मुयति, न गेहति, मज्झिमे काले किंचि गेण्हति किंचि मुयति, जहण्णेणं खुड्डग भवग्गहणं तिसमय॒णं, तिसमयूणं कह', दो विग्गहमि समया समयो संघातणाए तेहणं । बुड्डागभवग्गहणं सव्वजहण्णो ठितीकालो ।। ४ । उक्कोसेणं तिण्णि पलितोवमाई ५९६॥ समयूणाणि, कहं , उक्कोसो समयूणो जो सो संधातणासमयहीणो । किह न दुसमयविहीणो साडणसमएऽवणीतमि ॥५॥ भणति- भवचरिमंमि बिसमये संघातणपरिसाडणं चेव । परभवसमते साडणमतो तो न कालोत्ति ॥ ६ ॥ जदि परपढमे साडो ॐॐ (602) Page #603 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [8] दीप अनुक्रम [२] अध्ययनं [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता सामायिक व्याख्यायां ॥५९७॥ “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मूलं [१] / [ गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 निव्विगहतोय तंमि संघातो । गणु सव्वसाडसंघातणा उ समये विरुद्धाओ ||७|| आ० जम्हा विगच्छमाणं विगर्त उप्पज्जमाणसुप्पण्णं । तो परभवादिसमये मोक्खादाणाणमविरोहो ॥ ८ ॥ चुतिसमये हभवो देहविमोक्खतो जथातीते । जदि परहवोवि न तर्हि तो सो को होतु संसारी १ ॥ ९ ॥ णणु जह विग्गहकाले देहाभावेवि परभवग्गहणं । तह देहाभावंमी होज्जेहभवोवि को दोसो १ ॥ १० ॥ आ० - जंपिय विग्गहकाले देहाभावेवि तो परभवो सो । चुतिसमएवि ण देहो ण विग्गहो जदि स को होतु ? ॥ ११ ॥ अंतरं- ओरालियसंघातकरणस्स जहण्णेणं खुड्डागभवरगहणं तिसमयूर्ण, उक्कोसेण तेत्तीस सागरोवमाणि पुष्चकोडिसमयाधियाणि सव्वसाडस्स जहणेणं खुल्लागं भवग्गहणं, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई पुव्वकोडिअहिताई। कह ?, संघात तरकालो जहणतो खुट्टयं तिसमयणं । दो विग्गहंमि समया ततिओ संघातणासमयो ।। १२ ।। तेहूणं खुट्टभवं धरितु परमवमविग्गहेणेव । गंतूण पढमसमये संघातयतो स विष्णेयो ।। १३ ।। उक्कोसेणं तेतीस समयाधिय पुव्यकोडि अधिया । दो सागरीमाई अविग्गणेह संघातं || १४ || कातूण पुव्वकोडिं धरिडं सुरजेद्रुमातुयं ततो भोतृण इहं ततिए समए संघातयंतस्स ||१५|| सव्वसाहस्स कहं- खुड्डागभवग्गणं जहण्णमुक्कोसयं च तेत्तीस तं सागरोवमाइ संपुष्णा पुञ्चकोडी य ।। १६ ।। इहाणंतरातीतभवचरिमसमये ओरालिय सरीरसव्वसार्ड काढूण खुड्डागभवग्गहणिएस उबवण्णो, तस्स पज्जेते सव्वसार्ड करेति, ततो मुल्लागभवगणमेव भवति, उक्कोसेणं पुण कोइ ओरालिसव्वसाडं कातूण तेत्तीस सागरोवमहितीएस वेडब्बिएस उबवण्णो, पच्छा तुओ पुव्यकोडाउएस ओरालियरीरिसु उबवण्णो, पुव्वकोडिअंते ओरालियसब्यसार्ड करेतिति । इदाणिं उभयस्स अंतरं-जहण्णेण एक्कं समयं उक्कोसेण तेत्तीसं सागरोवमाणि समयाधियाणि, कहं ?- उभयंतरं जहण्णं समयो निब्बिग्गहेण संघाते । परमं सति (603) करणनिरूपणं ॥५९७॥ Page #604 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत *निरुपण सत्र दीप अनुक्रम सामायिक समयाई तेत्तीस उदधिनामाई ॥ १७ ॥ अणुभवितुं देवादिसु तेचीसमिहागतस्स ततिमि । समए संघातयतो णेयाई समयकुस-18 करणव्याख्यायांत लेहि ॥१८॥ न्ति । वेउब्वियसंघातो जहण्णेण समओ उक्कोसेण दोण्णि समया, विउच्वमाणस्स अणगारस्स पढमे समए मरणं ही जातं देवेसु उववष्णो, तत्थवि पढमे समए संघातेति एस वितितोत्ति, परिसाडणा जहेब ओरालिए, संघातपरिसाडणा जहणेणं । ॥५९८॥ दस वाससहस्साई तिसमयऊणाई, एवं- ताव देवनारगेसु तिरियमणुएसु पत्थडं पडूच एग समयं, उक्कोसेण तेत्तीस सागरोबमाई | समउणाई, कई, उभयं जहण्ण समओ सो पुण दुसमय विउध्वियमयस्स । परमयराई संघातसमयहीणाई तेत्तीस ॥१९॥ अंतर सम्बबंधंतरं जहणणं एक्कं समयं उक्कोसेणं अणंत कालं अर्णताओ जाव आवलियाए असंखेज्जतिभागे, कई संघातंतरसमओ || समयविउव्वियमयस्स ततियामि । सो दिवि संघातयतो ततिए च मयस्स ततियंमि ॥ २०॥ अविग्गहेण संघातयतो वितिओ || संघातपीरसाडसमओ चेव अंतर, उक्कोसं पुण वणसइकालो। एवं देसबंधतरपि, साडस पुण जहण्णेणं अंतोमुहुतं उक्कोसेणं | एवं चेब, कहं ?- उभयस्स चिरविउव्वियमयस्स देवे सविग्गहवतस्स । साडस्संतमुहत्तं सिहवि तरुकालमुक्कोसति ॥ २१ ॥ 5 आहारगतस्स संघातो समओ, परिसाडणा जथा ओरालिए, संघातपरिसाडणा जहण्णेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं, अंतरं सब्वबंधंतर जहण्णेण अंतोमुहवं, उक्कोसेणं अणतं कालं अणताओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ,खत्तओ अबड पोग्गल परियट्टू देसूण, एवं देसबंधन्तरंपि साडबंधन्तरंपीति । तेयगकम्मगाणं परिसाडणाय संघातपरिसाढणाए-तेयगसरीरं, जे कम्मत्ताए ॥५९८॥ पोग्गले गेण्हति तेयगसरीरेण उण्हवेति ततो संघातं गच्छति, अवस्पिण्डवत् , एयं तेयगसरीरंग, अहबा जा सरीरुम्हा तेयगलद्धी वा, कम्मगसरीरं णाम अट्ठविहं कम्म, कालो अणातीओ वा अपज्जवसितो अमवियाण, अणातीओ वा सपज्जयसितो भवियाण, GEOGRACCESCRECCAS254 % A5% (604) Page #605 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) ""आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सामायिक दीप अनुक्रम परिसाडणा तहेव समयो भवति, दोहवि अंतर नस्थि, एतेसिं दोण्हवि अंगोवंगा णस्थि, आवा तदंतर्गता एव तेजसकार्मका व्याख्यायां जीवप्पयोगकरणं, जतो जीवेण पयोगसा आत्मसात् नीयते, आए वेइति । अहवा इमं जीवप्पयोगेणं निव्वत्तिय चउब्विहं करण- निरूपण ॥५९९॥ IXI संघातणाकरण परिसाडणाकरण संघातपरिसाडणाकरण व संघातो व परिसाडो गोसंघातपरिसाढणाकरणं, जथा पडो संखो . हैसगडं धूणत्ति यथासंख्य, पडो संघातितो, संखो परिसाडेतूण घट्टितो, सगडं संघातपरिसाडणेण निबत्तिय, धूणा उभयनिसेहेण है उद्धीकता, एवं वितिरिच्छीकता , एवमादि विभासा । अजीवपयोगकरणं अजीवे पयोगेण किरति जथा वणकरणाति जं वणं : कुसुभचित्तकारकादीण, एवं गंधरसफासावि विभासितव्वा । एतं दबकरणं । खेत्तकरणं खत्तं आगासं तस्स किर करणं णत्थि, तहवि वंजणपरियावणं, जम्हा ण विणा खेचेण करणं कीरति, अहवा खेत्तस्सेव करणं खेत्तकरण, बंजणपरियावण्णं नाम जं खत्तंति अभिलप्पति, जहा-उच्छुखेत्तकरणमादी य, सालिखेत्तकरण तिल-13 खसकरणं एवमादि, अहवा जमि खत्ते करणं करेति वंणिज्जति वा । कालकरणं कालोऽपि अकित्तिमो, तथापि तस्स बंजणपरियाकवणं जं जावतिएण कालेण कीरति जीम वा वंणिज्जति एवं ओहेण, णामओ पुण इमे एकारस करणा, तत्थ य गाथाओ-कालो टू जो जावतितो जे कीरति जैमि जमि कालंमि । ओहेण णामओ पुण इमे उ एकारसकरणा ॥ १॥ बवं च बालवं चव, कोलवं थी-18 है विलोयणं । गरादि वणियं चेव, विट्ठी हबति सत्तमा ॥२॥ सउणि चउप्पयनाग, किच्छुग्धं करणं तथा। चत्तारि धुवा एते, सेसा |५९९॥ का करणा चरा सत्त ॥ २॥ किण्हचउदसिरति सङणि पडिवज्जती सया करणं । एत्तो अहफम खलु चउप्पयं नाग किम्छुग्धं ॥३॥ सुचराष्टदिवैकरपूर्णदिवा, कृत्रासदिवादरभूतदिवा। यदि चन्द्रगतिश्र तिथिश्व समा, इति विष्टिगुणं प्रवदन्ति बुधाः ॥शा पक्खतिहओ || 4-८ (605) Page #606 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [8] दीप अनुक्रम [२] अध्ययनं [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता सामायिक व्याख्यायां ||६००|| “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) निर्युक्तिः [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मूलं [१] / [ गाथा - ], आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दुगुणिया दुरूवरहिता य सुकपक्खमि । सतहिते देवसियं तं चिय रूवाहितं रतिं ।। ५ ।। किन्हे दुरूवहीणा न कातवा, जे गता पक्षतियो वट्टमाणतिहिणा सह सत्तण्हं चलाण करणाण दव्वता स सतहिं भागे हिते जं सेसं तं करणं, गो जं लद्धं तं कालकरणं । भावकरणं दुविहं- जीवभावकरणं च अजीवभावकरणं च अजीवभावकरणं वण्णादी णेतव्यं, जीवभावकरणं दुबिहसुतकरणं च नोसुतकरणं च सुतकरणं दुविहं लोइयं च लोउत्तरियं च एकेक्कं दुविहं चर्द्ध अबद्धं च बद्धं णाम | जन्थ सत्थेसु उवणिबंधो अत्थि । अबद्धं जं एवं चैव विपरीतमिति, नस्थि उपणिबंधो। तत्थ वद्धसुतस्स करणं दुविहं- सद्दकरणं निसीह करणं च सद्दकरणं नाम जं सदेहिं पगडत्थं कीरति, न पुण गोवितं, संकेतितं, जथा उप्पाएति वा भूतेति वा विगतेति वा परिणतेति वा उदात्ता अनुदात्ताः प्लुताच, निसीह जं पच्छष्णं गोवितं संकेतितं, तत्थ सुत्ते अत्थे तदुभए य, जथा निसीहणामं अज्झयण भवति, अहवा जथा अग्गेणीते विरिते अस्थिणत्थिष्प वायपुच्वे य पाढा जत्थ एगो दीवायणो भुजति तत्थ दीवायणसयं भुजति जत्थ | सयं दीवायणा जति तत्थ एगो दीवायणो भुंजति, एवं हंमइत्ति जाव तत्थ एगो दीवायणो हम्मति । सेचं बद्धकरणं, लोतियअबद्धकरणं बत्तीसं अड्डिताओ बत्तीस पञ्चड्डियाओ सोलस करणाणि, लोगप्पवाए वा एत्थ छट्टाणाणि, तंजहा- बिसाहं समपदं मंडलं आलीढं पच्चालीढं, दाहिणं पादं अग्गतोहुतं कातुं वामपादं पच्छओ हुत्ता ओसारेति, अंतरं दोण्हवि पादाणं पंच पदा, एवं आलीढं, एतं चैव विपरीत पञ्चालीढं, वहसाहं पण्डीओ अभिन्तराहुन्तीओ समसेढीओ करेति, अग्गिमतला बाहिरहुचा, मंडलं दोवि पादे दाहिणवामहले ओसारेता ऊरुणावि आउष्टावेति जथा मंडलं भवति, अंतरं चत्तारि पादा, समपदं दोवि पादे समं णिरंतरं ठवेति एताणि पंच (606) करण निरूपणं ||६००॥ Page #607 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक”- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०२८/१०१६-१०२६], भाष्यं [१५२-१७४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सामायिक ठाणाणि, लोगप्पवादे सयणकरणं छद्रं ठाणं । अरिहप्पवयणे पंच आदेससताणि, तत्थ एगं मरुदेवा, णवि अंगे णवि उवंगे पाठोकताकृताव्याख्यायां 12 अस्थि एवं- मरुदेवा अणादिवणस्सइकाइया अणतरं उव्वट्टित्ता सिद्धत्ति, तहा सयंभूरमणमच्छाण पउमपचाण य सब्यसंठाणााण ॥६०१॥४॥णलयसठाणं वलयसंठाणं मोतुं, करडकुरडा य कुणालाए, एते जथा भणामि-करडुक्करडाण निदमणमूली वसही, देवयाणकपणं, रुढेसु पनरसदिवसवरिसणं, कुणालाणगरिविणासो, ततो ततियवरिसे साएए नगरे दोण्हवि कालकरणं, अहे सत्तमपुढविकालनकारगगमणं, कुणालानगरिविणासकालाओ तेरसमे वरिसे महावीरस्स केवलनाणुप्पत्ती, एतं अबद्ध, एतं सुतकरणं ॥ जोसुतकरण । दि दुविह-गुणकरणं च जुजणाकरणं च, गुणकरणं दुविह-तवकरणं च संजमकरणं च, दोषि विभासितव्वा जहा ओहनिज्जत्तीए ।। IMI जुजणाकरण तिविह-मणझुंजणाकरणं वयजुंजणाकरणं काय जणाकरणं, -मणो सच्चादी ४, एवं वयीवि ४, कायो सत्तविधो Bा ओरालियादि । एत्थ कतरेणं करणेण अहिगारो !, भावकरणेणं, तत्थवि सुतकरणेणं, तत्थवि सद्दकरणेण, नोसुनेवि गुणकरणेणं, झुंजणाएपि जहासंभव विभासज्जा । तं इमाए पाहुडियाए अणुगंतव्वं । जथा-कताकतं. १ केण कतं २ केसु व दब्वेसु कीरती ३ वावि । काहे व कारओ ४ णयतो ५ करणं कतिविहं ६ व कहं ७॥१०३९।। ति, या इति सत्तपदा, तत्थ सामाइयं कतं कज्जति, & एत्थ नएहिं मग्गणा, जथा नमोकारे उप्पण्णाणुप्पण्णो, जदि उप्पण्णो कतस्स करणं नस्थि, अणुप्पण्णेवि ससविसाणादीणं जह नमोक्कारे, दारं । केण कत सामाइयं ?, अर्थ समाश्रित्य जिनवरैः, सुत्तं गुपहरेहिं । केसु दण्वेसु कीरति सामाइयं ?, तत्थ णेगमस्स | | उहाण चलेणं वीरिएणं पुरिसक्कारपरक्कमेणं मणुण्णेसु य दब्बेसु, जथा-मण्णुण्णं भोयणं भोच्चा, मण्णं सयणासणं । मणु-| 34645646 दीप अनुक्रम (607) Page #608 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक णसि अगारंसि, मणुष्णं शायते मुणी ॥१।। एवं णेगमो इच्छति, संगहादीया सेसा सव्वदम्बेसु, नो सम्बपज्जवेस, जेण दवाण काकताकृताव्याख्यायां &ाकर पज्जवा मुभा केसि असुभा, सामाइयं च सुभपज्जवेसु कीरति, णो असुमपज्जवसु, दयाणि पुण परिणामवसेण सुभा असुभावि लं दिनिरूपणं ॥६०२॥ & IP भवंति, सम्बदव्याणिवि अमुभपरिणामिहोतूण सुभपरिणामानि भवंति, दुगंधावि पुग्गला सुगंधत्ता परिणमंतीत्यादिवचनात् । दारं काहे व कारओ भवति , एत्थ णयमग्गणा णेगमस्स उद्दिढे सामाइए पढउ वा मा वा पढतु करेतु मा वा करेतु कारओ चेव, संगहववहाराणं बंदणगं दातूर्ण निबिट्ठो गुरुपादमूले पढतु वा मा वा पढतु करेतु वा मा वा करेउ , कारतु चेव, उज्जुसुतस्स #अपुब्बे सामाइयपज्जवे समए समए अकममाणस्स उपउत्तस्स वा सामाइयं भवति, अण्णे भणंति-तदाणो सामाइयं भवति, का सम्मत्ते सामाइय, तिण्हं सद्दणयाणं अपुग्वे सामाइयं, पज्जवे समए समए अकममाणस्स नियमा समद्दिहिस्स उवउत्तस्स नो द्रा सामाइय, समते कारओ सामाइयस्स । एते चेव नया, अहवा इमं अट्ठविई नेयाइयं लक्षण , तंजथाआलोयणा य विणए खत्त दिसाभिग्गहे य काले य। रिक्खगुणसंपदावि य अभिवाहारे व अहमए ॥ १०॥४३॥ न्यायेन चरतीति नैयायिका,एवंगुणसंपन्नाय एभिः प्रकारैः,एवं आलोइयपडिक्कतस्स जो सामाइयं देति सो नायकारी नायवादी | भवति, सा आलोयणा दुविहा- गिहन्थालोयणा संजतालोयणा य, गिहत्थे का आलोयणा', परिखिज्जति अरिहो सामाइय-18६०२॥ & स्स अणरिहोति, तत्थ गाथा- अट्ठारस पुरिसेसुं वीस इत्थीसु दस नपुंसेसु । पच्चावणाइ अणरिहा०, कातुं अरिहातु वा ?, विवरीत संजतस्स का ?, उपसंपदा, सामाइयस्स अस्थनिमित्तं उवसंपज्जति सो आलोयाविज्जति , अहवा अणागतकालबत्थं सूएति, अरु COLORG (608) Page #609 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [3] दीप अनुक्रम [२] "आवश्यक" - मूलसूत्र - १ (निर्युक्तिः+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], निर्युक्तिः [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलित............आगमसूत्र सामायिक व्याख्यायां ||६०३॥ - भाष्यं [ १७५-१८५] [४०], मूलसूत्र - [०१] "आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि- रचिता चूर्णि:-1 जथा होर्हिति ते मणूसा जेसिं सामाइयस्स सुत्तनिमित्तं उवसंपदा होहिति से य अपढितेचि संजता चैव जुगमासज्ज तेर्सि सोधीकर भविस्सति, जो जन्तियं जाणति सो तावतिएणं पडिक्कमति जाव न समाणेति, जथा पुवं सामाइयं चोरसहिं पुण्येहिं विभासिज्जति, संपत्ति थोत्रेणं, तथावि उवसंपज्जिज्जति, एवं एस्सेऽवि काले होहिति, साय सामाइयस्स तिन्हं निमित्तं उबसं पज्जिज्जति सुत्तस्स अत्थस्स उभयस्स इति, सो चउब्विहं सोधिं करेति दव्वातियारस्स खेत० कालः भावतियारस्सति, पायच्छित्तं दिज्जति दव्वं चेतणमचेतणं या खेचतो जणवतं वा अद्धाणं वा, कालो सुभिक्खं दुब्भिक्खं वा, भावतो हद्वेण वा गिलागेण वा एवं आलोइए विणीतस्स दिज्जती, जो अविणीतस्स, सो जथा अणुरत्तो भत्तिगतो अमुई अणुयतओ विसेसंणू । उज्जुत्तमपरितंतो इच्छितमत्थं लभति साधू ॥ १ ॥ एतब्बिवरीतस्स न दातव्यं दारं । केरिसके खेत्ते तप्पढमताए सामा इयं कातव्वं तं दुविहं पण्णत्तं-पसत्थं अपसत्थं च तत्थ अपसत्थं भग्गघरं तणरासी० एवमादि अमणुण्णा । पसत्थं चेतितघरं चेतियरुक्खं वा, गाथा उच्छ्रवणे सालिवणे पउमसरे पुष्कफलितवणसंडे | गंभीरसाणुणादे पदाहिणाबत्तउद्गादी ।। १ ।। दारं । दिसाभिग्गहो- तिष्णि दिसाउ अभिगिज्झ उद्दिसितव्यं पुत्रं वा उत्तरं वा चरिन्तियं वा, चरेंतिया जाए दिसाए तित्थगरो मण० ओहि ० चोदस० दस० गव० जाब एगपुब्बी, जो वा जुगप्पहाणो आयरिओ जाए दिसाए । दारं ॥ कालो पडिकुलयदिवसे वज्जेज्जा, अट्ठमिं व नवमिं च छट्टि च चउथि बारसिंपि दोपि पक्खाणं, पसत्थेसु मुहुत्तादिसु तव्विवरीते ण वति, रिक्खेसु केसु - मिगसिर अदा सो तिष्णि य पुब्वाई मूलमस्सेसा । हत्थो चित्ता य तथा दस विद्धिकराई नाणस्स ।। १ ।। जस्स वा जत्थ अणुकूलं, विवरीतमप्पसत्थं, अहवा संज्ञागतं रविगतं विरं सग्गहं विलंबिं च । राहु 1 (609) कृताकृता दिनिरूपणं ||६०३ ॥ Page #610 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक हतं गहभिण्णं च वज्जते सत्त नक्खत्ते ॥ १॥ दारं । गुणसंपदा णाम पुच्वं विणयो, जदि विणीतो इमे य से गुणा भवंति आचार्यादि व्याख्यायोदितो उद्दिसति, तंजथा-पियधम्मो दढधम्मो संविग्गो बज्जभीरु असहो य । खतो दंतो दविमादि धिरब्बत जिति-14 करणं दिओ उज्जू ।। १॥ असढस्स तुलसमस्स य साधुसंगहरतस्स (अममस्स)। एसो गुणसंपण्णो तब्विवरीओ असं लाभहेतु। ॥६०४ाट भदन्तपण्णो ।। ४ ॥ दारं ॥ अभिन्याहरो नाम पसत्थेसु सउणेसु अभिनिव्वाहारन्तेसु, अहवा उदिसतो अभिलवति कालियसुते-सुत्तेणं व्याख्या |अत्थेणं तदुभएणं उदिसामि, दिहिवादे दव्वेहिं गुणेहिं पज्जवेहिं । दारं ।। इदाणिं करणं कतिविहंति दारं, आयरियस्स चउव्विह, तंजथा- उद्देसणाकरणं समुद्देसणाकरणं वायणाकरण अणुण्णाकरणं, सीसेचि चउविहं, तंजथा- उदिसिज्जमाणकरण समुद्दिस्समाणिज्जकरणं बाइज्जमाणकरणं अणुण्णविज्जमाणकरण । दारं ॥कहंति ६ सामाइयस्स करणं कहं संभवति, सामाइयस्स आवरणे णाणाचरणं दसणावरणं च, तेसिं दुविहाणि फगाणि-देसघातीण य सयघातीणि य, सम्बघातिफडएहिं उदिण्णेहि सव्वेहिं उग्घातिएहिं देसघाइफडएहिं अर्णतेहिं उग्घाइएहिं अणतगणपरिवद्धीए समए । समए विसुज्झमाणो २ पढमअक्खंरलाभ ककारलाभं भवति, ततो पच्छा अणतगुणविसाहीए विसुज्यमाणो रेकार लभति, एवं| सेसक्खरेऽपि । एवं करणं सम्मत् ॥ ॥६०४॥ 'करेमि भंते ! सामाइक'मिति सीसो सामाइयं करेतुकामो गुरुं आमंतति, मतेत्ति 'भदि कल्याणे सौख्ये च' अहो कल्याण-1& Pवंत इत्यामंत्रणं करोति, पाइतसेलीए वा भयस्यांतो गतो इति भयांतो भवतिचि, 'भी भये' तस्स छव्विहो निक्खेवो नामादि, R (610) Page #611 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक दवमयं भयमोहणीय कम्म बर्द्धन ताव उहिज्जति, अण्ण भणति-जो जस्स दव्यस्स वीमेति सचित्तादिस्स, खेत्तभयं जंमि खेत्ते, व्याख्यायां जो वा जस्स खत्तस्स वीमेति, जमि वा खेत्ते भयं वणिज्जते, एवं कालेवि भाणितव्य, जस्चिर वा काल बीभेति, भावभयं- भय-12 मदन्त क्याख्या मोहणिज्जेणं कम्मेण उद्दिण्णेण सत्तविहं, तंजहा- इहलोगादी, इहलोगभयं जं पुरिसो पुरिसस्स बीहेति १ परलोगभय- सीहबग्घदे।।६०५॥ वादीणं जंबीभेति २ आदाणभयं जो आदेयस्स चोरादीणं बीभेति ३ एवं चेव अगुत्तिभयं, नगरपाकारो आदाणभएण कीरात ४ अकस्मा भयं जथा विज्जुमाइओ तथा मरणमिति महम्मयं 'नराणां०' वृत्त, दोबि एनकं ५ वेदणभयं सीतादीण बीभेति असिलोगभय-जदि एवं काहामि ता मे अयसो होहितित्ति बीमति ७ एतस्स सत्तविहस्स अंतं गतो भदंतो। अहवा भवान्तो, सो य भवो चउब्बिहो-नामादि, I दब्बभवो एगभवियादी, भावभयो- चउम्बिहो संसारो, जो चउगइस्स भवस्स अंतं गतो सो भवतो, भवानामते बर्तते, कथम-13 सावंते वर्तते ?, अंत इव अंतो । सो अंतो छब्बिहो, नामवणाओ गताओ, दन्वस्स अंतो घडस्स पडस्स एवमादि, खिचतो जथा-18 |तिरियलोगतो उड०, खेतं वा विणहूँ चिराणगं तथावि सो अंतो, कालंतो वासंतो जाव मुहुत्तस्स अन्ती एवमादि, भावंतो जो जस्स उदतियादिस्स भावस्स सव्वंतिमे कंडए बढति । अहवा मंतो सक्कएण भ्रान्तो, सो छब्बिहो, दव्यभंतो जो जातो दवाओ| भ्रांतः, न याणइ किं ते अण्णंति ?, अहवा जो जातो दबाओ भ्रष्टः, खेचाओ गामाओ नगराओ एवमादि दिसामोहेण वा, कालाओ हेमंताओ साहरिओ वा अण्णमि काले, मूढो वा कालं न याणाति, भावभ्रान्तो दुविहो- ठाणभंतो गुणभंतो य, ठाणभंतो | का ईसरतलवरादिट्ठाणाओ, गुणभंतो दुविहो- अप्पसत्थो गुणमंतो णाणादिभंतो, पसत्थो अण्णाणादिभंतो ।। सत्तभयविष्पमुक्केण अधिगारो, भयंतेणवि भवंतेणवि, अप्पसत्वगुणभंतेणं भदंतेण य । एरिसयं को भणति करोम मंते सामाइयो, गोतमसासी भट्ठारगं AASABSE CARRI (611) Page #612 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वन्यान यत्व सामायिक भणति, सेसगा अप्पणो आयरिए, आह शिष्यः--यदा परोक्षो गुरुस्तदा कमामंत्रयताति, उच्यते-दुविहा सेवा-पच्चक्ला य परोक्खा सामादिव्याख्यायादा गादाय, पाचक्खा रायादीणं, परोक्खा अण्णरथ गतस्सवि तस्स आणं अणुपालति, अहवा जथा विज्जा परिजविज्जइ, एवं लोगुत्तरेषि निकारका ॥६०६॥ पच्चक्खे परोक्षिवि तंमि भावं निवेशयति, यथा विद्यां साधयन् पूर्वाचार्यान् मनसीकरोति, एवं अम्हं, अण्णेसिं पुण अण्णहाविय, ते आहु:--अप्पाणं चेव भणति- करेमि मते सामाइयंति, जस्सवि जातिस्सरणं सोषि पुवायरियं आमंतेति ॥ भदंतो गतो। इदाणिं सामाइयं, तस्य प्रकृतिप्रत्ययविभाग दर्शयति- तत्थ पगती सामं समं च संमं, पच्चओ इकमिति, तस्थ प्रकृति-13 | प्रत्ययद्वितयं सामातियस्स एगहुँ, नामप्रकृतिप्रत्ययाभ्यां एकोऽर्थः साध्यते, अहवा सामं समं च संमं एते शब्दा इकमित्यनेन सह गता सामाइयस्स एगट्ठा भवति, सामाइका) प्रतिपादयंतीत्यर्थः, तत्थ मूलबत्थू चत्तारि विभासितव्वा । साम चउव्यिह, णामट्ठ-४ वणाओ गताओ, दब्वसामं जाणि मधुरपरिणामीनि दब्बाणि, भावसामं आओबम्मेण सध्वसत्ताण दुक्खस्स अकरणं, अकरणं नाम परिहरणं, सामेण ताव गिण्हाहि, मधुरेणेत्यर्थः, अतः सव्वसत्तेसु मदुरभावतणं भावसामं । समंपि चउबिह, दो गताणि, दब्बसमं तुला कोकासचक्रं का, भाषसंमं जो भावो इतो ततो न पलोइति, रागाइहिचि आयभावाओ ण चालिज्जइ, एवं रागदोसमाध्यस्थ्यं भावसामाइयं त । इक चउब्बिई, दो गताणि, दब्बइकं जथा दोरे हारस्स पोयणं मणियाण बा,भावइकं भावसामादीण| जो आयो तस्स पचेसण, तत्परिणमनमित्यर्थः। ॥६०६॥ इदाणि सामाइयस्स एकार्थाभिधायकाः शम्दा उभ्यते, जथा- चंदो ससी सोमो उहपती एवमादी, अमिहाणकतो अत्यविFसेसोवि भवति, तंजथा-समता समत्त पसत्थ संति सिव हित सुहं अनिईचा अदुगुंछितमगरहित अणवज्ज चेव एकट्टा RSSCREENA (612) Page #613 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०३९-१०४६/१०२७-१०३४], भाष्यं [१७५-१८५] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक. ॥१०॥५६॥ १०४३ ॥ एत्थ अखेवाभिप्यायेण पुच्छति-को कारओ ?, उच्यते, करतो, कार्य कुर्वबित्यर्थः, किं कज्ज', भण्णति, कारकाधव्याख्यायामा " तु कीरति तेण, यत् का निवर्त्यते, तुशब्दात्किं करणं येन कर्ता कार्य निर्वतयति, यद्येवं ततः किं कारयो य करणं च होति , न्यान्यत्वे ॥६०७॥ तजथा- अण्णमण्णण ते, चशब्दात्कमे च, अयमभिप्राय:-जदि कारओ य कर्म च करणं च अणणं तो करणं ण भवति, जेणा । अणण्णं ते एते विभागा कह भविस्संति , अतः सामाइयं जीवस्स किं एगते बद्दति ?, अण्णत्ते वह, जइ एगले तो करणं नस्थि,IK न हु लोणं लोणिज्जति न हु तुप्पिज्जइ घतं व तेल्लं वा । जदि अण्णं ते तेण आया सामाइयं न भवति, जथा घडकारओ| घडो न भवति । अत्रोच्यत आया हु कारओ०॥१०.५९ ॥१०४७ ॥ एत्थ सामाइयकरणप्रस्तावे आत्मैव कारकः, सामाइयं कर्म, करणं च आत्मैव, पणु कहं एगो आया कारओ करणं कर्म च भविस्सति', उच्यते, परिणामे सति आत्मा सामाइकमेष, तुशब्दास्करणमेव, अयमभिप्रायः-एको उप्यात्मा कर्तृपरिणामे सामाइकपरिणामे करणपरिणामे च सति कर्तृकर्मकरणव्यपदेसावह इति, नणु किं एकस्यापि परिणामे सति एते व्यपदेशा दृष्टाः १, उच्यते, एगत्ते दृष्टाः, जह मुहि करेति, यथा देवदत्तः हस्तेन मुष्टिं करोति , न च देवदतहस्तमुष्टयो भिन्नाः, किं तु परिणामस्तथा, एवं भिगुडिं करेति रोसं करोति अप्पाणं पतं करेति, जथा- अप्पाणमेघ दमए, अप्या हु खलु दुदमो । अप्पा दंतो सुही होइ, अस्सि लोए परत्थ य ॥१॥ एवं ता अण्णचेवि करणं दि8 | पर आह-तो कि कारकली ॥६०७॥ कारणकमाणं अणण्णत्तमिच्छामो', उच्यते, कत्थवि अण्णपि, जथा अस्थतरे घटकरण, घडादिकरणं अत्यंतरेपि दिहूँ यथा कुलालश्चकचीचरादिना पढ़ करोति, एतेषां मिण्णता । गणु जदि एवं तो सामारककरणे किमिति पिहत्तता नेष्यते , उच्यते-दव्य (613) Page #614 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक स्तराभावे गुणस्स कि केण संबद्धं ', अयमभिप्राय:-एतद्धि करणं गुणो, अपि च यदि द्रव्याद्भिण्णो गुणो नेष्यते ततः कस्य केन / सर्वपदव्याख्यायोटासंबंधः स्यादिति, सामाइयंति गतं । व्याख्या ॥६०८ . इदाणि सवं, सत्तविहं तं०-नामसव्वगं ठवणस० दव्वस० देसस० निरवसेस सबधत्तास मावसबगमिति, नामस्थापने :२५ 181 पूर्ववत् , दब्बसब्बे चत्तारि विकप्पा, तंजथा-सकलं दध्वं देससव्वं १ असकलं दवं दबसव्वं तु २, सकलदव्यदेसो दबदेस-15 8 सव्वं ३ असकलदबदेसो दब्वदेससब ४ ॥ अत्र दृष्टान्त:-प्रकारका विवक्षायां समस्तप्रकारं सकलं पृथिव्यादिद्रव्यं द्रव्यसर्व PI च्याकारस्न्येविवक्षायां तु असमस्तप्रकारमपि पृथिवीत्वाद्यन्यतरप्रकारापनप्रकारापेक्षया असकलमपि पृथिव्यधन्यतरत द्रव्यं द्रव्या-1 पेक्षया द्रव्यसर्च, एवं सकलदबदेसो असकलदबदेसो य विभासितव्यो । अम्णे पुण भणंति-दविते चतुरो भंगा 'सब्वमसब्वे य% दब्बदेसे य' ति, एत्थ इमा भावणा-इह जं विवक्खितं दध्वं अंगुल्यादि तं परिपुण्णमणूणं सएहिं अवयवेहिं सर्वमुच्यते, सकल मित्यर्थः, एवं तस्स चेव दबस्स कोइ देसो स्वावयवपूर्णतया यदा सकलो विवक्ष्यते तदा देसोवि सर्व एव, उभयस्मिन् द्रव्ये एतद्देसे च सर्वत्वं, तयोरेव यथास्वमपरिपूर्णतायामभिसंवन्धः, ततो चतुर्मगी-दव्यं सर्व, दव्वमसवं, देसो सम्बो, देसो असब्बो, एत्थ यथाक्रममुदाहरण-संपुण्ण अंगुलीदव्यं सर्व तदेव देशोन दब्बमसब्वं, तथा देसी सव्वं तं संपुर्ण देससम्ब, असंपुष्ण अदेससव्वं । आदेससब्बंग जथा सम्बो गामो आगतो, सब्यो कूरो जिमितो, सब्बभवासिद्धिया सिज्झिहिंति, आदेसो नाम उबयारो बबहारो,81॥६०८।। द सो य बहुतरेसु पहाणेसु वा आदिस्सति देसेवि । निरवसेससब्बग दुबिह-सवापरिसेससव्वगं च तदेसापरिसेससव्वगं च,सच्चापरिसेPससब्वर्ग जथा सम्बदेवाऽणिमिसणयणा,तदेसापरिसेसव्वगं सब्जे असुरकुमारा काला चिोडा,तेषामेव देवानां देसो विभागस्तद्देश ACCRCH (614) Page #615 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक - सव्वधत्तासव्वगं नो सम्वधत्वासति पडोयारो आहितत्ति वदेज्जा,ता सव्वधना दुपडोयारो आहितचि वदेज्जा, तंजथा-जीवा य अजीवा अवद्ययोगव्याख्यायामा य, जम्हा जं किंचि धरति तं सव्वं जीवा अजीवा य सव्वं धरेतीति सव्वधत्ता। दवसचगस्स सव्वधचासव्वगस्स य को पद ॥६०९॥ | बिसेसो, सवधतेहिं सव्वं संगहितं, दव्यसबगेण घडपडादीया सव्वदचा चेव, भावसब्बगसब्बो उदइभावो सुभो असुभो या व्याख्या उदयलक्खणो, उपसमिओ सव्वो सुभो, उवसमलक्षणो उपसमिओ, सल्वो सुभो उवसमलक्खणो, खाइओ सब्यो सुभो अणुप्ष तिलक्षणो, खाइओवसमिओ सब्बो सुभो असुभो य देसविसुद्धिलक्षणो, पारिणामिओ सब्बो सुभो असुभो य परिणामलक्षणो॥ लाएत्य निरवसेससञ्चगेण अहिगारो, अण्णेहिवि जहसंभवं विभासितव्यो । इदाणिं अवज्जति, तत्थ गाधा कम्ममवज्जं जं गरहितं च लोहादिणो व चत्तारि ।। इति, एत्थं कम्मबंधो सव्वं वा पगीतहितिअणुभागपदेसकंमं तं अवज्जं, उक्तं च-"पावे वजे वयरे पंके पणये खुहे दुहमसाते। संगे धुण्णे यरए कंमे कलुसे य एगट्ठा ॥१॥" अहवा जे गरलहितं वत्धु, गरहितंति वा अकथ्यंति वा अविविनंति वा परिहरणीयंति वा एगट्ठा, अहवा कोहादिणो चत्तारि कसाया, एतेहिं सह यो योगः बच्छमाणलक्षणः 'पच्चक्रवाणं हवति तस्स' ति अयमभिप्रायो- यो हि कम्मसहगतो योमो तस्सवि निरवसेसस्स शपच्चक्खाणं भवति अयोगि पडुच्च, यतो योऽविय कसायसहगतो तस्सवि पञ्चक्खाणं भवति, अक्खायचरितं पडल्च यो पुण गरहितसहगतो योगो तस्स निरयससस्स पच्चक्खाणं भवति, सामाइयसंजताओ जाव अहक्खायचरित्ता इति ॥ इदार्णि जोगेत्ति , युज्यत इति योगः, दबजोगो तिण्डं चउण्डं वा जोगाण जोगो । अहवा मणबहकायपायोग्गाणि दवाणि । Mभावयोगो "योगो विरियं थामो उच्छाह परकमो तहा चेट्टा । सत्ती सामत्थंति य योगस्स हवंति पज्जाया ॥१॥" 35% (615) Page #616 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक सो य संमत्तादिअणुगतो पसत्थो , मिच्छत्तअण्णाणअविरति अपसत्थो । गप्रत्याख्या व्याख्यायां इदाणिं पच्चक्खाणं , तं छब्बिह, दो गताणि, दब्बपच्चक्खाणं रयहरणेणं अणुवउत्तो बा, जो वा सचित्तादिदम्ब पच्च नजीवितक्खाति निण्हगादीणं वा, एवमादि दवपच्चक्खाण । खत्तपच्चक्खाणं खेचे पच्चक्खाणं निबिसयादिगमणं एवमादि । अदि-12 पद. ॥६१०॥ 8/छपच्चक्खाणं अतित्थ भणाण पडिसेहो न देमित्ति । भावपच्चक्खाण दुबिह-सुतपच्चक्खाणं च णोमुत्तपच्चक्खाणं च, सुतप-1 व्याख्या टाकचक्खाण विई-पुथ्वसुतपच्चक्खाणं णोपुव्यसतपच्चक्खाणं च. पब्बसतपच्चक्खाणं पुच्च, गोपुच्चसुतपच्चक्खाण अणेगविह VIआतुरपच्चक्खाणादीयं, नोमुतपक्चक्खाणं दुविह-मूलगुणपच्चक्खाणं उत्तरगुणपच्चक्खाणं, मूलगुणा साधूण सावगाण य भाणितब्बा, X| उत्तरगुणा विभासितव्या । दयभावपच्चक्खाण उदाहरण रायता, परिसं मंस न खाइया, पारणगे अणेगाण जीवाणं पाता कता, ४. साहूहि बोहिता पव्वइया, पुव्वं दव्वपच्चक्खाणं पच्छा तीसे भावपच्चक्खाणं, भावपच्चक्खाणस्स अत्यो पडिनियचामि-अकरणताए अ भुट्टैमित्ति एवमादि, अतो उवसंतो पच्चक्खाणं भवतित्ति । पच्चक्खाणंति गतं । इदार्णि जावज्जीवाएत्ति, जावदवधारणमी जीवणमवि पाणधारण भपितं । अप्पाण धारणाओ पावनिब्बत्ती इह अस्था ॥ १०५४ ॥ तं जीवित दसविहं, तंजथा-नामजीवितं एवं ठवणा० दब. ओह भव० तम्भव० भोग. संजम० असंजमजीवितं जसकित्तीजीवितं, दो गताणि, दन्बजीवितं तिविह-जेण जस्स सचित्वादिणा जीतमाय, सचित्तं जथा-मम पुत्तेण जीतमायचं, आचिदातेण हिरण्णादिणा जीतमात, मीसेण सचामरआसादिणा । अहवा इमं तिविह-दुपदस्स चतुष्पदस्स वा अपदस्स वा जं जीवितं, लिसा अहवा जीवपायोग्गा दय्या दग्बजीवित | ओघजीवितं नाम सब्बे संसारत्था जीचा आउसद्दव्यजीवियाए जीवंति । भवजीवितं चतु (616) Page #617 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामावालाविहं नेरइयादीणं । तम्भवजीवियं जो तत्थेव मतो आयाति तत्थ जै जीवितं तब्भवजीवितं, तिरियणराणं जस्स जति भवग्गहणा-01 प्रत्याव्याख्यायां का णि । भोगजीवितं चक्कीण बलदेववासुदेवाणं । संजमजीवितं संजताणं तद्धम्मजीवियं । असंजमजीवियं असंजताणं अर्धमेण । जसो ख्यान मंगा: ॥६१ कीत्ति, जहा अज्जवि महावीरवद्धमाणसामिस्स भगवतो तेल्लोकेऽवि जसो जरति, तथा अण्णसिंपि-भई सरस्सतीए सत्तस्सर-19 वासरयणवसहीए । जीए गुणेहिं कइवरा मताबि माणेहिं जीवंति ।। १ ॥ संजमजीविएणं मणूसभवजीवितेण य अधिगारो। क. इदाणि तिविहेणंति वैणिज्जति, एतेण तिविहं तिविधेण इच्चादिसुत्तं फुसितं, एत्थ य सीयाल भंगसतं भवति जोग तियकरणतियकालतिएहिं, तंजथा-तिविई जोगं तिमिहेणं करणेण मणेणं वायाए कारणं ण करेमिण कारवेमि करतीप अण्ण हैण समणुजाणामि इत्यादि । अतीतकाले बट्टमाणे एस्से य काले जथासंभवमायोज्ज-सीयालं भंगसतं पच्चक्वाणमि जस्स ॐउवलद्धं । सो किल एत्थ उकुसलो सेसा सव्वे अकुसला उ||१|| सीयालं भंगसतं पञ्चक्खाणस्स भेद परिमाणं । तं च | विधिणा इमेण भावेतब्वं पपत्तेणं ॥२॥ तिणि तिया तिणि दुया तिषिणकेका य हॉति जोएसु। तिबुएगं तिबुराग तिवु- एकं चेव करणाई॥शा एते खलु जोगा ३३३२२२१११ करणा ३२१३२१३२१ फलं १३३ ३९९३९९ एत्थ भावणा-न करेति न कार8| येति करेंतंपि अण्णं ण समणुजाणाति मणेणं बायाए कारणं, एस पढमो भंगो साधूर्ण, अहवा कमि विसए केसिपि सावगाणवि, चो 13 &ान करेहच्चादितिगं गहिणो कह होति देसविरतस्स ? | आ०-भण्णति विसयस्स बर्हि पडिसेहो अणुमतीएविला DI॥ १॥ केई भणंति गिहिणो तिवितिविहेण णत्थि संवरण । तं ण जतो निदिई पपणत्तीए विसेसेउं ॥ २॥13॥ तो किह निज्जुत्तीएऽणुमतिनिसेहो ? विसेसविसयंमी । सामण्णेणं नथि हु तिविहं तिविहेण को दोसो? ॥३॥ (617) Page #618 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) प्रत सूत्रांक [3] दीप अनुक्रम [२] “आवश्यक”- मूलसूत्र -१ (निर्युक्तिः + चूर्णि :) मूलं [१] / [ गाथा-], निर्युक्तिः [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], अध्ययनं [१], मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता सामायिक व्याख्याया ।।६१२|| भाष्यं [१८६-१८९] आगमसूत्र [४०], मूलसूत्र [०१] “आवश्यक" निर्युक्तिः एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 पुत्ताइसंतइणिमित्त मेत्तमेगादसिं पवण्णस्स । जंपति केइ गिहिणो दिक्खाभिमुहस्स तिविहेणं || ४ || आह कह पुण माणसा करणं कारावर्ण अणुमती य। जह वतितणुजोगेहिं करणादी वह भवे मणसा ॥ ५ ॥ तयहीणता इतणुकरणाईणं तु अहव मणकरणं सावज्जजोगमणणं पण्णत्तं वीतरागेहिं ॥ ६ ॥ कारवणं पुण मणसा चिंतेति करेतु एस सावज्जं । चिंतेती य कते पुण सुट्टु कतं अणुमती एसा ||७|| इदाणिं वितिय भेदो-न करेति न कारयेति करें पि अण्णं ण समणुजाणति मणेण वायाए एस एको १ तथा मणेर्ण कारणं एस वितिओ २ तथा वायाए कारणं एस ततिओर, चितिओ मूलभेदो गतो । इदाणिं ततिओ-न करेटि न कारवेति करेंतीय अण्णं ण समणुजाणति मणेणं १ वायाए वितिओ २ कारण ततिओ ३ तितएव मूलभेदो गतो । इदाणिं उत्थो न करेति न कारवेति मणेणं वायाए कारणं एफो, न करेति करेंतं ण समपुजाणति बितिओ २ न कारवेति करेंतं नाणुजाणति ततिओ ३, एस चउत्थो मूलभेदो । इदाणिं पंचमोन करेति न कारवेति मणेण बायाए एस एको, न करेति करेंते नाणुजाणति एस वितिओ, न कारवेति करेंतं णाणुजाणए एस ततिओ, एवं एते तिष्णि भंगा मणेणं वायाए लद्धा, अण्णेवि तिष्णि मणेणं कारण एमेव लब्भति, तथाऽवरेवि वायाए कारण य लब्भंति तिष्णि, एवमेव गते सब्बे णव एवं पंचमोप्युक्तो मूलभेद इति । इदाणिं छट्टो, न करेति न कारवेति मणेण एस एको, तहय न करेति करेंतं णाणुजाणति मणेणं एस चितिओ, न कारवेति करेंतं णाणुजाणति मनसैव तृतीयः एवं वायाए, कारणवि तिष्णवि भंगा लम्भंति, उक्तः षष्ठो मूलभेदः । अधुना सप्तमोऽभिधीयत इति न करेति मणेर्ण वायाए कारण य एको, एवं न कारवेति मणादीहिं एस बितिओ, करंतं णाणुजाणतित्ति ततिओ सप्तमोऽप्युक्तो मूलभेद इति । इदानीमष्टमः न करेति मणेण वायाए (618) प्रत्या ख्यान भगाः ॥६१२|| Page #619 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक - मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०४७-१०५७/१०३५-१०४७], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत सामायिक सय एको, तथा मणेण कारण य एस चितिओ, तथा वायाए कारण य एस ततिओ, एवं न कारवेतिवि एत्थवि तिण्णि भंगा है प्रत्याव्याख्यायामा ख्यान Pएवमेव लभंति, करेंत णाणुजाणति तत्थवि तिणि , एप उक्तोऽष्टमः इदाणिं नवमा न करेति मणेण एको, न कारवति || मंगा ॥६१३॥ वितिओ, करेंत णाणुजाणति एस ततिओ, एवं वायाएवि तियं, काएणवि होति ततियमेव, नवमोऽप्युक्तः । इदाणिमागतगुणना & क्रियते- लफलमाणमेतं भंगा उ भवंति अउणपण्णासं। तीताणागतसंपतिगुणितं कालेण होति इमं ॥१॥ सीतालं भंगसतं, कहं कालतिएण होति गुणणाओ। तीतस्स पडिक्कमणं पच्चुप्पण्णस्स संवरणं ॥२॥ पञ्चक्खाणं चतहा होइ य एस्सस्स एव गुणणाओ। कालतिएण भाणतं जिणगणहरवायएहिति।।३।।एत्थ मणो नाम दन्चमणो भावमणो | य, दव्वमणो मणपाउग्गाणि दवाणि, भावमणो मण्णिज्जमाणाणि, वईवि दुविहा, दब्वे यद्दपाउग्गाणि दब्वाणि मिच्छद्दिहिस्स। वा, भावबई ताए निसिरिज्जमाणाणि, दबकायो कायग्गहणपायोग्गाणि, निकाइज्जमाणाणि भावकायो, एवमादि विभासिज्जा। | एत्थ य 'करेमि भंते ! सामाइय'ति पंच समितीओ गहिताओ, सव्वं सावज्जं इचादिणा तिमि गुत्तीओ गहिताओ। समितीओ पवत्तणे निम्गहे गुत्तीओ, समिओ नियमा गुत्तो गुत्तो समियत्तणमि भइयब्वो। कुसलवइमुदीरंतो जं वइगुत्तोवि* ४ समितोवि॥१॥ एताओ अट्ठ पवयणमाताओ, जहिं सामाइयं चोइस य पुव्वाणि माताणि, माउगाओ वत्ति मूकंति भणितं होति ।। सुत्तफासियनिज्जुत्तिगाथा गता एवं ॥ एत्थ चोदगो सुत्तपदं अक्खिपति-- ॥६१३॥ का तिविघेणंति न जुत्तं ॥ १०-७६ ॥१०५८|| आह-तिविधणंति पदं न युज्यत इतिकातु, जतो मणेणं वायाए कारण एवं प्रतिपदविधिना त्रैविध्यं गतमेव भवति, गतार्थत्वात् त्रिविधेनेति ग्रहणं न कर्तव्यं, उच्यते-अत्थविकप्पणताए गुणभावणयत्ति को दीप अनुक्रम B REA (619) Page #620 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्रअध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [१०५८-१०६४/१०४८-१०५३], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत दीप अनुक्रम सामायिक दोसो?, अयमर्थ:-अत्थस्स मणवयणकायलक्खणस्स विकप्पणस्थं-भेदकहणत्थं, जथा किर तिवधेण मणेण तिविधेण वयसा तिवि-13 शंकाव्याख्यायालाधण कारण करणकारणअणुमतिपबत्तेण, अण्णहा अण्णथा संभावणा स्यात् , यथा मणेणं वायाए कारण यथासंख्यं न करेमि नाला समाधान ॥६१४॥ कारयामि करेंतंपि अण्णं न समणुजाणामित्ति, अहवा मणेण बायाए कारणंति एतेसिं अत्यविकप्पणसंमहत्थं, संगहभेदेहि मुत्तम-12 गणंतिकातुं, किं च-गुणभावना पुनः पुनरभिधानाद्भवतीति न दोष इत्यादि भाव्यं ।। अपर आह-जावज्जीचाएत्ति पदं न करेमीत्यस्य पूर्वसंबद्धमेव किमिति न कृतं येन व्यवहितसंबंधमिति, अन्यपदेरपि संबन्धेऽस्येष्यत इति, किंच- ववहितमपि अर्थसंबंधन संघधयित्वा व्याख्येयमिति ज्ञापनार्थ, यतो अनन्तगमपज्जयं सुतं गमनिका अपि व्याख्यानांगमिति च संदर्शितं भवतीत्यादि भाव्य । तस्स पडिकमामि तस्स अतीतस्स सावज्जजोगस्स अण्णाणताए असवणताए एवमादिणा कतस्स प्रतीपं कमणं निवर्तनमित्यर्थः, | तं चतुर्विध दध्वपरिकमणं यो यस्य दन्वस्स पडिकमति अपत्थस्स य नियत्तति दब्वभूतो वा यं वा निहगादी पडिकमेतूण वा पुणो पुणो तं चेय करेति, एयं तं दवपडिकमणं , उक्तं च-"जं दुकडंति मिच्छा तं चेव निसेवते पुणो पार्य । पचक्खमुसोबातो | | मायानियडीपसंगो य ।। ७॥ २३ (६८५॥)" एत्थ दब्बपडिकमणे कुंभकारमिच्छादुकई उदाहरण एगस्स भकारस्स कुडीए | साधुणो ठिता, तत्थेगो चेल्लगो तस्स कुंभकारस्स कोलालााणि अंगुलधणुभएण पाहाणएहि बिंधति, कुंभकारेण पडियग्गितुं दिट्ठो, भणितो य-कीस मे कोलालाणि काणेसि , खुडओ भणति-मिच्छादुकडंति, सो पुणो पुणो विधेतूण मिच्छादुकर्ड देति, पच्छा INभकारेण तस्स खड़गस्स कण्णाउडओ दिण्णी, सो भणति-दुक्खावितोऽह, कुभकारा भणति-मिच्छादुकडं, एवं सो पुणा पुणो कण्णामोडयं दातूण मिच्छादुकडं करेति,पच्छा चेल्लओ भणति-केरिसं ते मिच्छादुकडं?, कुंभकारो भणति-तुज्झवि एरिस चेव मिच्छा। ॥६१४॥ (620) Page #621 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०५८-१०६४/१०४८-१०५३], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक दुकडंति, पच्छा ठितो विधितब्बस्स । भावपटिकमणं समद्दिडी तचिनो तम्मणो समाहितप्पा जो पडिकमति, उक्तं च-"जतिय पडिकमि- द्रव्यमावव्याख्यायाम तिव्य अवस्स कातूण पावयं कंमं । तं वन कातब्ब तो होइ पए पडिक्कतो ॥१॥" तत्थ मिगावती उदाहरणं, तं च इम-भगवंकानन्दादि ट्रावद्धमाणसामी कोसंबीए समोसरितो, तत्थ चंदसूरा भगवंतं वंदगा सविमाणा उत्तिष्णा, तरथ मिगावती अज्जा उदयणमाता II दिवसोत्तिकातुं चिरं ठिता, सेसाओ साधुणीओ तित्थगरं वंदितूण सनिलयं गताओ, चंदखुरावि तित्थगरं वंदितूण पडिगता, सिग्धमेव बियालीभूतं, संभंता गता अज्जचंदणासकास, ताओ य ताव पडिकंताओ, मिगावती आलोइउंपवत्ता, अज्जचंदणाए भण्णतिकीस अज्ज चिरं ठितासिन जुनं नाम उत्तमकुलप्पसूताए एगागिणीए चिरं अच्छितुति, सा सम्भावेण मिच्छादुकडति भणमाणी अज्जचंदणाए पाएसु पडिता, अज्जचंदणा य ताए वेलाए संथारं गता, ताए निदा आगता, पसुना, मिगावतीएवि तिव्वसंवेगमावण्णाए पादे पडिताए चेव केवलनाणं समुप्पण्णं । सप्पो य तेणतेणमुवागतो, अज्जचंदणाए य संथारगाओ हत्थो लंवति, मिगावतीए मा खज्जिहितित्ति सो हत्थो संथारगं चढावितो, सा विबुद्धा भणति-किमेतति , अज्जवि तुम अच्छसित्ति मिच्छादु-& क्कडं, निद्दापमाएणं न उढवितासि, मिगावती भणति- एस सप्पो मा ते खाहितिचि हत्थो चडावितो, सा भणति- कहिं सो ?, सा दाएति, अज्जचंदणा अपेच्छमाणी भणति- अज्जे ! किं ते अतिसतो ?, सा भणति- आमंति, कि छउमस्थिओ केवलितोत्ति ?,IX भणति-केवलितो, पच्छा चंदणा पापसु पडिता भणति- मिच्छादुक्कई केवली आसाइतोत्ति, तीए केवलनाणं, एतं भावपडि-R॥६१५।। झाक्कमणं ॥ इदाणि जिंदा आत्मसंतापे, निंदा चतुब्बिहा, नामनिंदा, दयनिंदा जो दब्बनिमित्तं निंदति, न पुण धम्मनिमित्त, निंदित्ता वा भुज्जो भुज्जो आसेपति, दयनिदाए चित्तगरदारिया उदाहरणं, जथा-पडिकमणे 'पडिकमणा पडियरण' (१२४५) एतीएर SHRESS (621) Page #622 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) “आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०५८-१०६४/१०४८-१०५३], भाष्यं [१८६-१८९] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक गाथाए नियत्तिदारे, भावनिंदा 'हा दुटु कतं हा दुटु कारितं दुटु अणुमतं वत्ति । अंतो अंतो डझति पच्छाता-द्रव्यभावप ण निदंती ॥१॥ गरहा प्रकाश्ये, परपागडीकरणं, सा चउबिहा, दब्वभूता परपच्चया वा आलोएति गरदति, जथा-आणंदपुरे। व्युत्सर्गो नयाश्च ॥६१ मरुआ पहुसाए समं संवास कातूण उवज्झायस्स कहेति, जथा-सुविणए ण्हुसाए समं संवासं गतौमित्ति, भावगरिहा-गंतूण गुरुस-1 | मीचं कातूण य अंजलिं विणयमूलं । जह अप्पणा तह परे जाणवणा एस गरहा उ॥शा भावगरहाए साधू उदाहारणं । 'अत सातत्यगमने' अततीति आत्मा, तं वोसिरामित्ति, दयविउस्सग्गो गणउवधिसरीरभत्तपाणाण विउस्सग्गो, जो वा धम्माशहाणपरत्तो काउस्सग्गादिडितो अवसट्टो तस्सवि दवविउस्सग्गो, अणुवउत्तो वा, तत्थेव उदाहरणं पसण्णचंदो, भावविउ| स्सग्गो मिच्छत्तअन्नाणअविरतीणं, अहवा कसायसंसारकमाण वा विउस्सग्गो, तत्थ पडियागतो पसण्णचंदो उदाहरणं भवति-जथा अणुभूतो बकलचीरिकहाणगे ॥ आह-किमिति सामाइककरणाम्पुपगमं पूर्व दर्शयति पच्छा सावज्जजोगबेरमणं , भण्णति-यतः सामायिकात्मैव सन् | ४ सावज्जजोगविरतो तिविहं तिविहेण पोसिरिय निपावो भवति, न पुण सामाइयरहितो । एवं एसो अणुगमो परिसमत्तोनिया ल इच्छितब्वा, तत्थ नेगमादीया नया सत्त, तेसि विभासा कातव्या जहा हेट्ठा, इमं सामण्णलक्खणं-सामाण्यं प्रविभागः प्रत्युत्पन्न I यथा वचः शब्दः । शब्दार्थ च वचः (खलु) प्रत्येकं संग्रहादीनाम् ॥१॥ एवं सब्वे नया परूबेऊण तो सामाइयस्स एगमेक-13 ॥६१६॥ - पदं नएहि सत्तहि मग्गितव्यं, न केवल सामाइयस्स, सथ्यज्झयणाण सुतक्खंधाणं च । एत्थ दारे णयमग्गणा कातव्या । अहवाला IMIते सब्वेवि दोमु समोयरंति, विज्जानये चरणणए य, तत्थ णाणणयो (622) Page #623 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं [१], मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति : [१०६५-१०६६/१०५४-१०५५], भाष्यं [१८९...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 सामायिक व्याख्यायां णायम्मि गिण्हितब्वे अगेण्डियमि व अत्धमि। जतियब्वमेव इति जो उवएसोसो नयो नाम।।१०-८०॥१०६५॥ करणनयो-सबेसिपि नयाणं बहुविहवत्तव्ययं निसामंत्ता। सबनयबिसुद्धं जं चरणगुणद्वितो साधू ॥१०॥८शा१०६६।। एवं जथा सामाइयं विभागेण ग ओघेण मग्गितं एवं सम्बज्झयणा सट्ठाण पजेयं पत्तेयं ।। इति सामाइयनिज्जत्ती सम्मत्ता ।। द्रव्यमावव्युन्सगा नयाश्च १६१७॥ इति श्रीजिनदासगणिमहत्तरकृतायामावश्यकचूर्णो सामायिकचर्णिः समाप्ता ॥ समाप्तश्च पूर्वभागः ॥ AUTARIYAR Ram मुनिश्री दीपरत्नसागरेण पुन: संपादित: (आगमसूत्र ४०) __ “आवश्यक-चूर्णि: [भाग-१]” परिसमाप्ता: (623) Page #624 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नमो नमो निम्मलदंसणस्स पूज्य आनंद-क्षमा-ललित-सुशील-सुधर्मसागर गुरुभ्यो नमः 40 पूज्य आगमोध्धारक आचार्य श्री सागरानंदसूरीश्वरेण संशोधित: संपादितश्च / “आवश्यक मूलसूत्र” [नियुक्ति एवं जिनदासगणि-रचिता चूर्णि: (भाग-१)] | (किंचित् वैशिष्ठ्यं समर्पितेन सह) मुनि दीपरत्नसागरेण पन: संकलिता "आवश्यक” नियुक्ति एवं चूर्णि: नामेण परिसमाप्ता: Remember it's a Net Publications of 'jain_e_library's' (624)