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________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं [१] / [गाथा-, नियुक्ति: [९८५-१०२४/९८५-१०१५], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 नमस्कारा आरोग्गाभिरतीए एग णगरं णदितडे, खरमितेणं सरीरचिंतानिग्गतेण नदीए बुझते मातुलिग दिई, रायाए उवणीत, नमस्कार फले आरोव्याख्यायालयस्स हत्थे दिण्णं, पमाणेण य अतिरित्त, वण्णेण य गंधण य अतिरित, तस्स मणुस्सस्स तुडो, भोगा दिण्णा, राया भणति A ग्यादि ॥५९०॥ अण्णं णदीए मग्गह जाव न ल , पत्थयणे गहाय पुरिसा गया, दिडो वणसंडो, जो गिण्हति फलाणि सो मरति, आगता, रण्णो 8 कहिये भणति- अवस्सं मम आणेतच, अक्खपडिया वच्चउ, एवं गता आणेति, एगो पविट्ठो बाहिं उच्छुभति, अण्णे आणेति, सो मरति, एवं कालो वच्चति, सावगस्स परिवाडी जाया, गओ तत्थ, चिंतेति-मा विराहितसामण्णो कोई होज्जति णिसीहियं णमोक्कार करेंतो दुक्कति, पाणमंतरस्स चिंता, संबुद्धो, बंदति, भणति- अहं तव तस्थेव साहरामि, गतो, रण्णो कहितो सम्भावो, तस्स ऊसीसए दिणे दिणे, एवं तेण जीतं अभिरती भोगा य लद्धा, जीविता णाम किं अण्णं आरोग्ग, रायावि तुट्ठो।। परलोए णमोक्कारस्स केण फलं पतं? - वसंतपुरे राया, गणिया साविया, चंडपिंगलेण चोरेण समं वसति, एवं कालो वच्चति, अण्णदा तेण रणो घरं हतं, हारो णीणितो, भीतेहि संगोविज्जति, अण्णदा ऊजाणीयाए गमणं, सब्बाओ गणियाओ विभूसियाओ पच्चंति, तीए सव्वाओ अतिसतामित्ति हारो आषिद्धो, जीसे देवीए सो हारो तीसे दासीए णाओ, रणो कहिओ य, केण सम वसती, कहेति, चंडपिंग|लो गहितो, सले भिण्णो, तीए चितिय- मम दोसण मारिओति सा से णमोक्कार देति, भणति य-णिदाणं करेहि जथा एत-13॥५९०॥ लास्सेव रण्णो पुचो पच्चायामि, कतं, अग्गमहिसीत उदरे पच्चायातो, दारओ जातो, सा से साविया कीलावणधाती जाता। अण्णदा चिंतेति-कालो समो गमस्स य मरणस्स य, होज्ज कदाइनि रमावेति भणति-मा रोव चंडपिंगल! चंडपिंगलचि, संबुद्धो, १९२६345528352625 SAR (596)
SR No.006203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages624
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size47 MB
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