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आगम
(४०)
"आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [८४१-८४७/८४१-८४७], भाष्यं [१५०...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
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दीप
श्री & विचरीतोसि थेरा, सो भणति- मते अण्णो दिहो, ताहे विवादे सा भणति-अहं अप्पाणं सोहेमि, एवं करेहि, ताहे पहाता जक्सपर अनुकंपायां जाय गता, जो कारी सो लग्गति अंतरंटेण बोलेंतओ, अकारी मुच्चति, सा पहाविता, ताहे सो पिसायरू काऊणं साडएणं गेहति, मंठ:
चूर्णी & उपोद्घात
शताह सो तत्थ जक्खं भणति- जो मम मातापीतीहि दिण्णल्लओ तं च पिसाय मोतूर्ण जदि अण्णं जाणामि तो मे तुम जाणसितिला नियुक्ती
जक्खो विलक्खो पितेति-पेच्छह जारिसाणि मंतेति, अहयपि वंचितो णाए, नत्थि सतित्तणं खु धुत्तीए, जाव चिंतेति ताव सा
का सरिडित्ति निष्फिडिता, ताहे थेरो सम्बेण लोगेण हीलितो, तस्स ताए अद्धितीए निहा नट्ठा, ताहे रणो कणं गतं, ताहे रण्णा ॥४६॥ालाअंतेपुरपालो कतो, आभिसक्कं च हत्थिरयणं वासघरस्स हट्ठा बइ अच्छति, देवी हस्थिमेंठेण आसत्तिया, नवरि रति हस्थिणा हत्यो
गवक्खेण पसारिओ, सा उतारिता, पुणरवि पभाते पडिविलइया, एवं बच्चति, अण्णता चिरं जातंति हत्थिमेंठेण हस्थिसंकलाए आहता, सा भणति-सो एरिसओ तारिसओ थेरो न सुयति, मा रूसह, तं थेरो पेच्छति, सो चिंतेति-जदि एताओवि किन्नु ताओ अतिभहिकाओत्ति, एवं चिंततो सुत्तो, पभाते लोगो सव्वो उद्वितो, सो न उड्डेति, रण्णो सिट्ठ, राया भणति-सुवतु, सत्तमे दिवसे उहिता, रष्णा पुच्छितो, कहित, जहा एगा देवी ण जाणामि कतरापि, एवं संववहरति, ताहेरणा भिडमतो हत्थी कारिता, सम्याओ अंतेपुरियाओ मणिताओ- एतस्स अच्चणिय करेता ओलंडेह, सब्वाहिं ओलंडीओ, सा णेच्छति, भणति-अहं बीहे| मि, किं च-शकटं पञ्चहस्तेन, दशहस्तेन शृंगिणम् । इस्तिनं शतहस्तेन, देशत्यागेन दुर्जनम् ॥१॥ ताहे रपणा उप्पलनालेन आहता, मुच्छिता किल पडिता, वाहे से उवगतं जहा एसा कारित्ति, भणिता य-मत्तगयमारुभंतिया, मंडमयस्स गयस्स भायसी
x॥४६३॥ दह मुच्छिय उप्पलाहता, तस्थ न मुच्छति संकलाहता ॥१॥ पुट्ठी से जोइया, जाव संकलप्पहारो दिहो, ताहे रण्णा हत्थी मेंठो
ORRESTHA
अनुक्रम
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