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आगम
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"आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं न, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४९-९५१/९४९-९५१], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
नमस्कारणीते पुतो जातो, संबड्डति, इमोवि धातुविलाागे मग्गति, सो य दाररहि सम रमति, रायगीती विभासा, चाणको य पडिएइ, परिणामिव्याख्याता पेच्छति, तेग विमग्गितो, आहवि दिज्जा, भगति-गाओ लहेहि, मा मारेज्ज कोति, भगति-वीरभोज्जा पुहबी, णात जथा | ॥५६४॥
विण्णाणं से अस्थि, तो कस्सति दारएहिं कहिां -परिवायगपु तो एस, अई परिमाओ, जामु जा ते रायाण कमि, चलिपा, लोगो मिलता, पाडलिने रोहित, गदंग भगो परिमायगो, आसहि पुहित लगो, चंदउतो य पउमसरे णिपुडो, इमो उपस्पृशति, सण्णाए भगति-पोलियनि, उत्तिण्णा णासंति, अग्गे भगति--चंदउ पउमिगीसंडे छुभिता खओ जातो, परछा एगेग जच्चकिसोरगगतेण आसबारेग पुच्छितो भगति-एस पउमसरे पविट्ठो, ततो तेण दिट्ठो, ततो घोडगो चाणकस्स अल्लिविओ, तत्थेत्र खरंग मुकं, जले पवेस गढपाए कंनु मुपति ताव खम्मेण दुहा कता, चंदगुत्तो वाहिता चडावितो, पलापा, पुच्छितो-तोलं किं तुमे चिंतितंति ?, भणति-- एतं चेव सोभग, अज्जो चे जागत्तित्ति, णातो जोगोण एस विपरिगमतित्ति, पच्छा छुहाइओचागको |तं ठवेत्ता अतिगतो, बीभति-मा एत्थं गज्जेज्जामोत्ति, माहगस बीं निगम पोर्ट फालिम, दधिकरवं गहाय गतो, जिमितो, अण्णस्थ गामे रतिं समुदागंति, थेरिय पुत्तभंडागं विलेवितं देति उई, एकेग मज्झ हत्यो छूडो, दड्डो रोवति, ताए य भणतिचाणकमंगलोसि, पुच्छि, भगति-पासाणि पढने घेति, गा हिमांततई, पबाइओ राया, तेग समं मितया जाता, भगति-समें | समेण विभयामो रज्ज, ओतोन्तागं एगस्थ णगर ण पद्धति, पविष्ट तिदंडी, वत्थूणि जोएति, इंदकुमारियाओ, तासि तगएगण ॥५६४॥ पडति, माताए णीणाषिताओ, पडित णगर, पाडलिपुतं रोहित, दो धम्मवार मम्मति, एगेण रहेग जं तरसि तं गीणेहि, दो | मज्जाता एगा कण्णा दवं चणीति, कामाचंदउन पलोएति, भणिता जाहिति, ताए विलीनीए चंदगुतस्स रणर अरगा
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दीप
अनुक्रम
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