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________________ आगम (४०) "आवश्यक"- मूलसूत्र अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति : [५२०-५२१/५२०-५२१], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 चूणों सत्राक बहवे अभिग्गहा, ण णज्जति अभिष्पाओ दव्वजुत्ते य खे० सत्त पिंडेसणाओ सत्त पाणेसणाओ, ताहे रमा सबस्थ संदिट्ठा, चन्दनआवश्यक चाला वृत्त वालोगेणवि परलोककंखिणा कता, सामी आगतो, ण य तेहिं पगारेहिं गिण्हति, एवं च ताव एवं। इओय सयाणिओ पं पधाविओ उपोद्घावट दहिवाहणं गेण्डामित्ति, णावाकडएण गतो एगाए रत्तीए, अचिंतिया चव णगरी ढिया, तत्थ दहिवाहणो पलातो, रमा जग्गनियुक्ती हो घोसितो, एवं जग्गहे दिन्ने दहिवाहणस्स रखो धारणी देवी, तीसे धूया वसुमती, सा सद्द धूयाए एगेण ओडिएण गहिता, राया नियत्तो, सो उट्टितो चितेति, भणइ य-एस मे भज्जा, इमं च दारियं विक्कसं, सा देवी तेण मणोमाणसिएण दुक्खिए-16 ॥३१॥ ण अप्पणो धूयाए य एस ण णज्जति किं मम पावहिति, एयं वा चीड, एवं सा अंतरा कालगता, पच्छा तस्स उवियस्स चिंता जाता-दुई मए भणितं महिला होहितिचि, एतं न भणामि, मा एसावि मरिहिति, तो मे मोल्लंपि ण होहिति, ताहे अणु-181 यत्ततेण आणीता, वीहीए ओडिया, धणबाहेण दिट्ठा अणलंकितलावा, अवस्सं रबो ईसरस्स वा एसा, मा आवई पावउत्ति जचियं सो भणति तचिएण मोल्लेण गहिता, तेण समं ममं सुहं तत्थ णगरे आगमण गमणं च होहितित, तेण नियगं घरं गीता, पुच्छिता-का सि तुमंति, ण साहति, पच्छा तेण धृतत्ति गहिता, एवं सा हाणिता, मृलिगावि भणिता-जहा एस तुज्झ धृयत्ति, एवं सा तत्थ जहा नियए घरे तह सुईसुहेण अच्छति, ताएबि सो सपरिजणो लोगो सीलेण य विणएण य सञ्चो अप्पणिज्जओ कओ, ताहे ताणि भगति सव्वाणि-अहो इमा सीलचंदणत्ति, ताहे से वितियंपिय णाम कयं चंदणत्ति, एव य कालो बच्चति । ताए य घरिणीए अवमाणो जायति मच्छरिज्जति य, को जाणति कयाइ एस एतं पडिबज्जेज्जा, ताहे अई घरस्सर IN||३१८॥ अस्सामिणी भविस्सामि, तीसे य वाला अतीय रमणिज्जानिकिण्हा य, अनया कयाई सो सेट्टी मज्झण्ड जणविरहिते आग REASERIES Re दीप अनुक्रम (324)
SR No.006203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages624
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size47 MB
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