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आगम
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"आवश्यक'- मूलसू अध्ययनं , मूलं -गाथा-], नियुक्ति: [७७४/७७३-७७७], भाष्यं [१२४] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1
आर्य
प्रत
चूर्णी
सत्राका
स
दीप
पिस्थि, जदि जाणह उस्सरंति संजमगुणा तो भुज्जतु, अह जाणह नवि तो मत्तं पञ्चक्खामो, ताहे ते भणति-किं एरिसण विज्जा-16I आवश्यक | पिंडेण प्रत्तेण', एवं निच्छितववसाया, आयरिएहि य पुज्यामेव जाऊण एगो पन्चइयतो य पत्थबियो पेसवर्ण पहरसेणो णामण | क्षिताः
सो भणिततो-जाहे तुमं सतसहस्सनिष्फण्णं भिक्खं लभिहिसि वाहे जाणेज्जाहिसि जहा नई दुभिक्खंति, इमे य निच्छियवव-| उपोद्घात साया, तत्थ य एगो खुहओ तं भणति-तुमं नियत्त, सोणेच्छति, ताहे सो गामे विभोलिज्जति ताव पव्वइयगा तं गिरि विलग्गा,
आयरिया जाणंति-जहा खुइओ आराहओ, चित्तरक्खणट्ठा लोगस्स, सो य सव्वं जाणति, ताहे सो ताणं गतमग्गेण आगंतूण मा दा तेसिं असमाही होहितित्ति तस्सेव हेतु सिला तत्थ सुडओ पाओवगओ, सो तेण उण्हेण गवणीओ जहा विराओ, अचिरकालेण
वि कालगतो, देवेहि य महिमा कता, ताहे आयरिया भणति-खुट्टएण अट्ठी साहितो, तत्थ ते साधुणो दुगुणाणियसद्धासंवेगा ४ जाता, जदि ताव बालेण होन्तएणं एवं कतं ता अम्हे कीस ण सुंदरं करेमो', तत्थ य देवता पडिणीया, सा ते साधुणो साबिगादिवेण भत्तपाणेण निमंतेति-अज्ज मे पारणयं करेह, ताहे आयरिएहिं नातं जहा अचितत्तोरगहोत्ति, तत्थ यम्भासे अण्णो गिरी, सतं गता, तत्थ ताहे देवताए काउस्सग्गो कतो, सावि अब्भुद्विता, अणुग्गहोत्ति अणुण्णातं, ताहे समाहीए विहिए कालगता, ताहे| हा इंदण रहेण बंदिता पदाहिणीकरतेणं, तत्थ रहावत्तो च्चेव सो य पव्वतो जातो, तामि य भगवंते अद्धणारायं दस य पुन्वा वोच्छि
ग्णा, बीओ आदेसो वइरसामीणं सिंभो जातो, पच्छा ताहे भणितं-जहा ममं सुठिं आणेह, आणीता, तेहिं कण्णे ठविता, जेमेचा खाइस्संति, तं च पम्हुई, ताहे वियाले आवस्सयं करेंतस्स मुहपोतियाए चालितं, पडितं, ता से उबयोगो जातो, अहो पमत्तो
||४०५) |जातो, पमत्तस्स य पत्थि संजमो, ते सेयं खलु मम भतं पच्चक्खाइचए, एवं संपेहेत्ता पच्चक्खातं, कालगता ।
अनुक्रम
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