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________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं १, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९४०-९४२/९४०-९४३], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 प्रत PESAR की बुदिः नमस्कार घरेति गवित्ति , सो भणति-मम पंडरओ कागो अहिड्डाण पविट्ठो, ताए सुहिज्जिताणं कहित जाव रण्णा सुर्य, पुच्छितो, कहियाओत्पानि | रण्णा से सुकं मुक्क, मैती य निउत्तो । ततिओ विट्ठविक्खरणे भागवतो खुट्टग पुच्छति, सुहगो भणति- एस चिंतेति- एस्था ॥५४८॥ विण्हू अस्थि णस्थिचि । उच्चारे, धिज्जातियस्स भज्जा तरुणी, गामंतरं णिज्जमाणी धुत्तेण समं लग्गा, गामे बबहारो, विभत्ताणि पुच्छिताणि, &ा आहारविरेयणं दिण्णं, तिल्लमोदगा, इयरो धाडिओ। गये, हत्थी महतिमहालओ जो तोलति तस्स सतसहस्सं देमि, णावाए तोलति, लछित्ता णावाए उत्चारितूण पाहाणाणं है ठा भरिया, जाव से लेहा, पाहाणा तोलिया, एत्तिय तुलति, जितो । पला घतणो भंडो सव्वरहस्सितो, राया देवीय गुणे कहेति-णिरामयं, सो भणति-ण भवति, किह ?, जया पुप्फाणि केसIN वाते ढोएति, तहत्ति विण्णासियं, गाए हसिय, णिबंधे कहियं, णिव्सिओ, सुणति, उवाहणाण भारेण उबवितो, उड्डाहभीताए रुद्धो। गोलओ णकं पविट्ठो जतुमतो,सलागाए तावेत्ता कड्डितो। खंभो तलागमज्झे, जो तडे संतओ बंधति तस्स सयसहस्सय दिज्जति, तमेव खोलग बंधितूण पडिबंधितूण बद्धो, जितो |५४॥ खुट्टए, पारिवाइया भणति- जो जे करेति तं मए कायब्वं कुसलकम्म, खुडओ गतो भिक्खस्स, पडहओ वारितो, गओ राउलं, दिट्ठा, सा भणति- कतो गिले १, तेण सागारियं दातिय, जिया, काइएण य पउम लिहिय, सा न तरति, जिता। RESED दीप अनुक्रम SECORRC (554)
SR No.006203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages624
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size47 MB
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