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________________ आगम (४०) "आवश्यक’- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं H, मूलं [१] / [गाथा-], नियुक्ति: [९१७-९१८/९१७-९२०], भाष्यं [१५१...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 दीप नमस्कार पाहा दिट्ठा, रायपुरिसेहिं गहिया, जहावत्तं कहितं रनो से, गंदो आगतो, सो भणति-गहिता णवित्ति, तेहि भण्णति-कि अम्हवि त्रिन्द्रिये व्याख्यायां |गहेण गहिया , तेणं अतिलोलताए एतस्स लाभस्स फिट्टो दो पादाण दोसेणंति, एकाए कुसीए पादा भग्गा दोषि, सयणोपुष्पशाल: ॥५२९॥ | विलवति । इतो रायपुरिसेहिं सो सावओ गंदो य राउलं णीया, पुच्छिया, सावओ भणति-मज्झ इच्छाप्पमाणातिरितं, अविय कूड-4 माणति ते ण गहिया, सोणंदो शूले भिण्णो सकुलो उच्छाइओ, सावओ सिरिघरिओ कतो, एरिसो लोभो जेहि पामितो ते अरिहा णमोकारस्स। इदाणि इंदियाणि, इन्द्रस्पेदं इन्द्रियं, इन्द्रो जीवः, तेन इन्द्रो इयति अनेनेति इंद्रियं, इगती, इन्द्रियाणि दविहाणि-दयिदि-13 | याणि भादियाणि य, दबिदियं दुविहं-णिवत्तणाए उवकरणे य, णिवत्तणांए जहा लोहकारो भणितो एतेण लोहेण परसुंवासि थोभणयं सूई च णिवत्तेहित्ति, तेण तं गहात तेहिं पमाणेहिं खडियाणि जाव कम्मस्स समस्थाणि सा णिवत्तणा, कज्जसमत्थाणि जायाणि उवगरणाई, भादियं दुविह-लद्धीए उवयोगतो य, जाणि जेण जीवेण लाई इंदियाणि सा लद्धी, एगिदियार्ण एगा फासिंदियलद्धी, बेइंदियाण तेइंदियाणचउरॅदियाण पंचेंदियाण,पंचविहो उपयोगो, जाहे जेण इंदिएण उवजुज्जति, सब्बजीवा |य किर उवयोगं पहुच्च एगिदिया, ताणि य इंदियाणि पंच-सोईदियाईणि, श्रूयते अनेनेति श्रोत्रेन्द्रियं, तत्थ सोदिए उदाहरणं पुप्फसालो नाम गायणो, सो अतीव सुस्सरो विरूबो य, तेण वसंतपुरे णगरे जणो हतहिदतो कतो, तत्थ य णगरे एगो सत्य- ॥५२२॥ | वाहो दिसाज गतेल्लओ, भद्दा य से भारिया, तीए केणवि कारणेण दासीओ पयट्टियाओ, ताओ सुणेतीओ अच्छंति कालं ण | याणंति, चिरेण पडिगताओ, ताओ अंबाडिताओ भणति-मा य मट्टिणी रूसह, जं अज्ज अम्हाहि सुतं पसूणवि लोमणिज्जं, किमंग अनुक्रम *5555555 SCARRRRRRRRRA (535)
SR No.006203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages624
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size47 MB
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