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________________ आगम (४०) "आवश्यक'- मूलसूत्र-१ (नियुक्ति:+चूर्णि:) अध्ययनं , मूलं - /गाथा-], नियुक्ति: [४९३/४९३], भाष्यं [११४...] मुनि दीपरत्नसागरेण संकलिता...........आगमसूत्र - [४०], मूलसूत्र - [१] "आवश्यक नियुक्ति: एवं जिनभद्रगणि-रचिता चूर्णि:-1 वैश्यायन प्रत HEIT श्री आवस्यक सीतलाए विज्झविता, ताहे सो भगवतो लद्धिं पासिता भणति-से गतमेतं भगवं ! गतमेतं भगवं, ण जाणामि जहा तुम्मं सीसो, चौखमह, ताहे गोसालो पुच्छति-सामी ! किं एस जयासेज्जातरो पलवति ?, सामिणो कहितं-जहा पमतीए, ताहे भीतो कुण्डतिउपविणात मग ! किह सखित्तविउलतेयलेस्सो भवति !, भगवं भणति-जे ण गोसाला! छटुंछडेणं अणिक्खित्तेण तवोकम्मेणं आयावेति, पारणए सणहाए कुम्मासपिंडियाए एगेण य वियडासएणं जाति जाव छम्मासा, सेण संखिचविउलतेयलेस्से भवतित्ति । अभदा 8 सामी कुंमग्गामाओ सिद्धत्वपुरं संपत्थितो, पुणरवि तिलर्थभस्स असामंतण जाव वतिवयति ताहे पुच्छइ-भगवं! जहा न निष्फ-18 ॥२९९|| दाणो, मगवता कहित-जहा निष्फण्णो, तं एवं वणर्फण पउदृपरिहारो, पउटपरिहारो नाम परावर्त्य परावर्त्य तस्मिन्नेव सरीरके VIउववज्जंतित, सो असरहंतो गतूर्ण तिलसंगलियं हत्थे पप्फोडता ते तिले गोमायो भणति एवं सब्जीवानि पयोपरिहारति, ४. णितितवादं धणितमवलंबिचात करोत जं भगवता उवदिहूँ, जहा संखितविपुलतेयलेस्सो भवति । ताहे सो सामिस्स मूलाओ ओफ्फिडो ४ है सावत्थीए कुंभगारसालाए ठितो, तेयनिसर्ग आआवेति, छहिं मासेहि सखित्तविपुलतेयलेस्सो जातो, कूपडे दासीए विभासितो, पच्छा छदिसाचरा आगता, वाहे निमित्तउल्लोओ से कहितो, एवं नो अजियो जिणपलावी विहरति । एसा से अवस्था । बमालाए पतिम हिंभमुणिोत्ति तत्थ गणराया। पूरति संखणामो चित्ती गावाग भगिणिसुती ४-३७१४९४ भगवंपि वेसालि गरि संपत्तो, तत्थ संखो णाम गणराया. सिद्धत्थरो मित्तो, सो तं पूजेति, पच्छा बाणियग्गामं पधावितो, | तत्थंतरा गडइता णदी, तं सामी गावाए उचिमओ, ते गाविया सामि भणति-देहि मोल्लं, एवं वाइति, तत्थ संखरनो भाइणेज्जो दाचिचो णाम दरकाए गएल्लो पावाकडएण एति, ताई तेण मोइतो महितो य । दीप अनुक्रम 23RSA ॥२९॥ (305)
SR No.006203
Book TitleAagam 40 Aavashyak Choorni 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipratnasagar, Deepratnasagar
PublisherDeepratnasagar
Publication Year2017
Total Pages624
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_aavashyak
File Size47 MB
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