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अलबेली आम्रपाली २३
"हुआ नहीं, किन्तु होने की परिस्थिति पैदा हो गई है। एक वर्ष पूर्व आपने मुझे उपाय बताया था । उसके अनुसार मैंने अपने पुत्रों की परीक्षा ली । और श्रेणिक सभी में प्रभावी सिद्ध हुआ ।"
“याद आया‘''आपने तो मुझे उस राजकुमार का नाम बिम्बिसार या कुछ ऐसा ही बताया था ।"
"हां, आचार्य ! श्रेणिक का ही अपर नाम है बिंबिसार । अन्तिम परीक्षा में उसने धन, रत्न, मुकुट, अलंकार, अश्व, हाथी आदि लेने से इनकार करते हुए केवल महाबिम्ब नाम की वीणा लेना ही पसन्द किया था । यह देखकर कुलगुरु ने उसका नाम बिंबिसार रखा था। अब वह इसी नाम से प्रसिद्ध है ।"
"युवराज ने क्या पसन्द किया था ?"
"नवयौवना नर्तकी ।"
"ओह !” कहकर आचार्य अग्निपुत्र आंखें बंदकर विचारमग्न हो गये ।
पूरे खण्ड में परम शान्ति व्याप्त थी । केवल अमरदीपक का तेजोमय प्रकाश मध्याह्न की भ्रान्ति करा रहा था ।
कुछ समय तक विचारमग्न रहने के बाद आचार्य ने कहा- "महाराज ! आप देवी त्रैलोक्यसुंदरी के विषय में कुछ कह रहे थे ?”
"हां, मैं अब इसी बात पर आता हूं । आपको ज्ञात ही है । पचास वर्ष की ढलती अवस्था में मैंने पर्वतमालाओं में घूमती हुई इस क्षत्रिय कन्या पर मुग्ध होकर विवाह कर लिया था । और इस विवाह के समय मैंने उसके पिता को वचन दिया था कि त्रैलोक्यसुंदरी से उत्पन्न पुत्र मगध का अधिपति होगा । दो वर्ष पश्चात् इसने एक पुत्र को जन्म दिया। देवी के मन में प्रबल आशा जाग उठी । मैं उसे आश्वासन देता रहा, किन्तु अब परिस्थिति बहुत ही विचित्र हो गई है। मेरे दो ज्येष्ठ पुत्र मृत्यु की गोद में समा गए । अब युवेन्द्र युवराज है । और फिर श्रेणिक युवराज बन सकेगा ।"
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"त्रलोक्य सुंदरी के पुत्र की बारी कब आएगी ?"
" उससे तो दस भाई बड़े हैं ।"
"ओह ! संभव है कि सभी दस बड़े भाइयों को अकारण मृत्यु का भोग होना पड़े । त्रैलोक्यसुंदरी बुद्धिमान और निपुण हैं । वह अपने पुत्र के मार्ग को निष्कंटक रखना चाहती हैं, क्योंकि वह समझ चुकी हैं कि आप अपने वचन का पालन नहीं कर सकेंगे । यह बड़ी विचित्र परिस्थिति है । आपकी क्या इच्छा है ?"
"मेरे सभी पुत्रों में बिम्बिसार तेजस्वी और योग्य है । वह किसी भी उपाय से सुरक्षित रहना चाहिए ।"
" और देवी की गुप्त चाल भी नष्ट हो जानी चाहिए ?"