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अलबेली आम्रपाली २१
चौंका। सघन अंधकार के बीच भी वह मगधेश्वर के तेजस्वी अश्वों वाले स्वर्णरथ को पहचान चुका था ।
और।
यह रथ आया । एक घटिका के बीतते-बीतते सारे आश्रम में हलचल पैदा हो गई ।
आश्रम की दक्षिण दिशा में अनेक कुटीर थे । वहां एक छोटा-सा उपवन था । उस उपवन के मध्य में एक भव्य मंदिर जैसा कुछ था । उस मंदिर के निकट एक मशाल जल रही थी । उस मंदिर में प्रवेश करने के पश्चात् मनुष्य अदृश्य सा हो जाता था। क्योंकि वहां एक गुप्त द्वार था । और वह किसी को दिखता नहीं था । उस द्वार से भूगृह में जाया जा सकता था । और उस भूगृह में आचार्य अग्निपुत्र की महान् प्रयोगशाला थी ।
आचार्य अग्निपुत्र मात्र बयालीस वर्ष के थे । परन्तु उनका शरीर सूखकर लकड़ी जैसा हो गया था। देखने वाले को लगता कि यह कोई श्वेत चर्म मंडित अस्थिपंजर मात्र है । आचार्य अग्निपुत्र मगध के सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक आर्य गोरक्षनाथ की शिष्य परंपरा के एक तेजस्वी वैज्ञानिक थे । इन्होंने पारद और अन्य विष-उपनिषदों के विषय में अनेक नये-नये अनुसंधान किए थे। ये सारे अनुसंधान जनता के स्वास्थ्य के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुए थे 1
मगध के कुछ अन्यान्य वैज्ञानिक भी पारद की अपार शक्ति का अनुसंधान कर रहे थे और ये सभी वैज्ञानिक आचार्य अग्निपुत्र को रसेश्वराचार्य की उपाधि से उपमित करते थे । इतना ही नहीं, पूर्व भारत के वैज्ञानिकों में आचार्य अग्निपुत्र महान् माने जाते थे । इनके अनुसंधान रोग निवारण और आरोग्यवर्धन के लिए प्रसिद्ध थे । अग्निपुत्र तन्त्र-मन्त्र के विज्ञान में भी सिद्ध - हस्त थे ।
अभी-अभी इन्होंने एक अमर दीपक का आविष्कार किया था, जो बिना बाती और तेल के प्रकाश फैलाता था । किन्तु अभी इस दीपक की चर्चा लोगों के कानों तक नहीं पहुंच पायी थी । आचार्य अभी इस दीपक की अनेक खामियों को निकालने में लगे थे ।
भूगृह में स्थित प्रयोगशाला में अनेक प्रकार के छोटे-बड़े खण्ड थे । उसमें एक खण्ड आचार्य अग्निपुत्र के लिए विश्राम स्थल था । उस खण्ड में अमुक-अमुक व्यक्तियों के अतिरिक्त सबका प्रवेश निषिद्ध था । देश - देशान्तर से आने वाले अतिथियों से अग्निपुत्र बाहर के खण्ड में ही मिलते-जुलते थे ।
किन्तु आज मगधेश्वर प्रसेनजित स्वयं आए थे । और आचार्य अग्निपुत्र के पट्टधर आचार्य शिवकेशी ने उन्हें आदर-सत्कार सहित भूगृह के चिन्तन खण्ड में बिठाया था ।