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( २६ ) देख हमने स्वतंत्र रूप से करीब चार सौ पृष्ठ की रचना बनाई । वह रचना मुनि महाराज को देते समय यह विचार उत्पन्न हुआ कि त्रिकालवर्ती चक्रवर्ती, कामदेव, नारायण, नारद आदि महापुरुषों के चरित्रादि में से यदि तीर्थंकर के विषय की बातों को पृथक करके परिवर्धन किया जाय तो तीर्थकर रूप में स्वतंत्र रचना बन जायगी। इस विचार का ही यह परिणाम है, जो यह तीर्थंकर पुस्तक बन गई । इस रचना का अक्षरशः बहुभाग मुनि महाराज के नाम से छपी पुस्तक में निबद्ध हुआ है। इस विषय में भ्रम निवारणार्थ यह लिखना उचित अँचता है कि पूज्य मुनि महाराज ने हमारी इछानसार ही अपनी संग्रह रूप पुस्तक में हमारी लिखी सामग्री का उपयोग किया है ।
जब हम पंचकल्याणकों का वर्णन लिख रहे थे, तब हमारे पूज्य पिता सिंघई कुंवरसेनजी इसे बड़े प्रेम से सुना करते थे। इससे उनका हृदय बड़ा आनन्दित होता था। वे जिनेन्द्र पंचकल्याणक महोत्सव के महान प्रेमी थे । उन्होंने बड़े-बड़े पंचकल्याणक महोत्सवों में भाग लिया था तथा बड़े-बड़े विघ्नों का अपने बुद्धि-कौशल द्वारा निवारण किया था। उनकी इच्छा भी था कि शास्त्रोक्त पूर्ण विधिपूर्वक एक पंचकल्याणक प्रतिष्ठा स्वयं करावें । उनकी जिनेन्द्र भक्ति अपूर्व थी। लगभग बीस वर्ष से वे समाधिमरण के लिए अभ्यास कर रहे थे। एक विशाल परिवार के प्रमुख व्यक्ति होते हुए भी उन्होंने धर्म पुरुषार्थ की साधना को मुख्यता दी थी। शास्त्र श्रवण, तत्वचिंतन तथा जिनेन्द्र नाम-स्मरण उनके मुख्य कार्य थे। वे मुझसे कहा करते थे, "बेटा ! मेरा समाधिमरण करा देना।" मैने भी कहा था,समय आने पर आपकी कामना पूर्ण करूँगा।
इस तीर्थंकर पुस्तक के प्रकाशन कार्य में शीघ्रता निमित्त मैं जबलपुर १७ मार्च सन् १९६० को गया; वहाँ तारीख २४ मार्च को टेलीफोन द्वारा समाचार मिला, बापाजी की तबियत विशेष खराब है; दस मिनिट के अनंतर वज्रपात तुल्य दूसरा फोन आया कि परम धार्मिक बापाजी का स्वर्गवास हो गया। पहले उन्होंने "जिया, समकित बिना न तरो, बहु कोटि यतन करो, जिया समकित बिना न तरो” यह भजन मेरे छोटे भाई अभिनंदन कुमार दिवाकर एम. ए. एल-एल. बी. एडवोकेट से सुना था; पश्चात् भक्तामर का पाठ सुना। इसके अनंतर सहस्रनाम पाठ सुनाया गया । वे परम शान्त भाव से धर्मामृत का रस पान कर रहे थे। सहस्रनाम का पुनः पाठ प्रारम्भ किया गया, कि सवा नौ बजे दिन को बापाजी ने जराजीर्ण देह को छोड़ दिया और अपूर्व समाधिमरण के प्रसाद से उन्होंने दिव्य शरीर को प्राप्त किया।
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