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तीर्थकर
[ २३१ ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कार्तिकेय, आनंद, नंदन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलातपुत्र ये दश महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने विजय, वैजयंत, जयंत, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि में जन्मधारण किया है । प्रश्नव्याकरण नाम के दशमें अङ्ग में तेरानवे लाख, सोलह हजार पदों के द्वारा आक्षेपिणी, विक्षेपिणी, संवेदिनी तथा निर्वेदिनी इन चार कथाओं का कथन किया गया है । तत्वों का निरुपण करनेवाली आक्षेपिणी कथा है, एकान्त दृष्टि का शोधन करनेवाली तथा स्वसमय की स्थापना करनेवाली विक्षेपिणी कथा है। विस्तार से धर्म के फल का कथन करनेवाली संवेगिनी कथा है । वैराग्य उत्पन्न करनेवाली निर्वेगिनी कथा है । विषाकसूत्र नामका एकादशम अङ्ग एक करोड़ चौरासी लाख पदों के द्वारा पुण्य और पाप रूप कर्मों के फलों का प्रतिपादन करता है । बारहवाँ अङ्ग दृष्टिवाद है; उसमें तीन सौ त्रेसठ मतों का वर्णन तथा निराकरण किया गया है।
दृष्टिवाद के भेद
दृष्टिवाद के पाँच भेद हैं :--परिकर्म, सूत्र, प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका । चन्द्रप्रज्ञप्ति, सूर्यप्रज्ञप्ति, जंबूदीपप्रज्ञप्ति, द्वीप-सागरप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति ये परिकर्म के पाँच भेद हैं। दृष्टिवाद के द्वितीय भेद सूत्र में अट्ठाइस लाख पदों के द्वारा क्रियावादी, प्रक्रियावादी, अज्ञानवादी और विनयवादियों के मतों का वर्णन है । इसमें त्रैराशिकवाद, नियतिवाद, विज्ञानवाद, शब्दवाद, प्रधानवाद, द्रव्यवाद और पुरुषवाद का भी वर्णन है।
१ “गोशालप्रवर्तिता आजीवकाः पाखण्डिनस्त्रेराशिका उच्यन्ते । ते सर्व वस्तु त्र्यात्मकमिच्छंति तद्यथा, जीवोऽजीवो जीवाजीवाश्च, लोका अलोका लोकमलोकाश्च, सदसत्सदसत् । नयचिंतायामपि त्रिविधं नयमिच्छति । तद्यथा द्रव्यास्तिकं, पर्यायास्तिकं, उभयास्तिकं चं" (नंदिसूत्र पृष्ठ २३६)।
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