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तीर्थकर लोक प्रमाण प्रात्मा के प्रदेशों से लोकपूरण समुद्घात द्वारा पूरित सभी लोकों के प्रदेश भी क्षेत्र मंगल हैं।
स्वयंभूस्तोत्र में लिखा है कि उर्जयन्त गिरि से अरिष्ट नेमि जिनेन्द्र के मुक्त होने के पश्चात् इंद्र ने पर्वत पर चिन्हों को अंकित किया था, जिससे भगवान के निर्वाण स्थान की पूजा की जा सके ।
ककुदं भुवः खचर-पोषिषित-शिखरैरलंकृतः । मेवपटल-परिवोततटस्तव लक्षणानि लिखितानि वज्रिणा ॥२१७॥
वह उर्जयन्त पर्वत पृथ्वी रूप बैल की ककुद के समान था । उसका शिखर 'वद्याधरों तथा विद्याधरियों से शोभायमान था तथा उसका तट मेघ' टल से घिरा रहता था। उस पर वज्री अर्थात् इन्द्र ने नेमिनाथ भगवान के चिन्हों को उत्कीर्ण किया था ।
इस कथन के आधार पर इंद्र ने अन्य निर्वाण प्रदेशों पर भी भगवान के चरण चिन्हों की स्थापना की होगी, यह मानना उचित है ।
काल-मङ्गल
जिस काल में भगवान ने मोक्ष प्राप्त किया, वह समय समस्त पाप रूपी मल के गलाने का कारण होने से काल मङ्गल माना गया है।
कर्मों के नाश का अर्थ
प्रश्न-सत् पदार्थ का सर्वथा क्षय नहीं होता है, तब भगवान ने समस्त कर्मों का क्षय किया, इस कथन का क्या अभिप्राय
समाधान यह बात यथार्थ है कि सत् का सर्वथा नाश नहीं होता है और न असत् का उत्पाद ही होता है । समंतभद्रस्वामी ने कहा है-"नैवाऽसतो जन्म, सतो न नाशो' अर्थात् असत् का जन्म नहीं होता, तथा सत् का नाश भी नहीं होता है। कर्मों के नाश
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