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तीर्थंकर
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है । यह दिगम्बर मुद्रा निर्वाण का कारण है, इसलिए इसे निर्वाण मुद्रा भी कहते हैं । दक्षिण भारत में दिगम्बर दीक्षा लेने वाले मुनि राज को निर्वाण स्वामी कहने का जनता में प्रचार है । प्रजैन भी निर्वाण स्वामी को जानते हैं ।
सिद्धों का ध्यान परम कल्याणदायी है, इतना मात्र जानकर भोग तथा विषयों में निमग्न व्यक्ति कुछ क्षण बैठकर ध्यान करने का अभिनय करता है, किन्तु इससे मनोरथ सिद्ध नहीं होगा । ध्यान के योग्य सामग्री का मूलाराधना टीका में इस प्रकार उल्लेख किया गया है
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संग-त्यागः कषायाणां निग्रहो व्रतधारणम् ।
मनोक्षाणां जयश्चेति सामग्री ध्यानजन्मनः । पृ० ७४ ॥
वस्त्रादि परिग्रह का परित्याग, कषायों का निग्रह, व्रतों को धारण करना, मन तथा इंद्रियों का वश में करना रूप सामग्री ध्यान की उत्पत्ति के लिए आवश्यक है ।
द्रव्य परिग्रह - परित्याग का उपयोग बाह्यचेलादिग्रंथत्यागो
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अभ्यंतरपरिग्रहत्यागमूल: "बाह्य पदार्थ वस्त्रादि का परित्याग अंतरंग त्याग का मूल है; जैसे चांवल के ऊपर लगी हुई मलिनता दूर करने के पूर्व में तंदुल का छिलका दूर करना आवश्यक है, तत्पश्चात् चांवल के भीतर की मलिनता दूर की जा सकती है, इसी प्रकार बाह्य परिग्रह त्यागपूर्वक अंतरंग में निर्मलता प्राप्त करने की पात्रता प्राप्त होती है । जो बाह्य मलिनता को धारण करते हुए अंतरंग मलिनता को छोड़ ध्यान का आनन्द लेते हुए सिद्धों का ध्यान करना चाहिते हैं, कर्मों की निर्जरा तथा संवर करने की मनोकमना करते हैं, वे जल का मंथन करके घृत प्राप्ति का उद्योग सदृश कार्य करते हैं । इससे यह स्पष्ट हो जाता है, कि वस्त्रादि के भार से जो मुक्त नहीं हो सकते हैं, उनकी मुक्ति की ओर यथार्थ में प्रवृत्ति नहीं होती है । जो देशसंयम धारण करते हुए
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