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तीर्थकर
३१० ] सूची उपस्थित करने में समर्थ नहीं है, जिन्होंने उस धर्म की आराधना द्वारा ईश्वरत्व प्राप्त किया है ।
इस संबंध में चौबीस तीर्थंकरों की पूजा में आग पाठ के परिशीलन से पर्याप्त प्रकाश प्राप्त होता है तथा शांति मिलती है । यहां वर्तमानकालीन तीर्थंकरों के जन्मस्थान, यक्ष-यक्षी, माता-पितादि का कथन करते हुए निर्वाण भूमि का वर्णनपूर्वक नमस्कार अर्पण किया गया है।
"साकेतपुरे नाभिराजमरुदेव्योर्जाताय कनकवर्णाय पंचशतधनुरुत्सेधाय वृषभलांछनाय, गोमुख-चक्रेश्वरी-यक्षयक्षीसमेताय चतुरशीतिलक्षपूर्वायुष्काय कैलासपर्वते कर्मक्षयं गताय वृषभतीर्थंकराय नमस्कारं कुर्वे ।
साकेतपत्तने जितारिनृप-विजयादेव्योर्जाताय सुवर्णवर्णाय गजलांछनाय पंचाशदधिकशतचतुष्टधनुरुत्सेधाय महायक्ष-रोहिणीयक्षयक्षीसमेताय द्वासप्ततिलक्षपूर्वायुष्काय सम्मेदे सिद्धिवरकूटे कर्मक्षयं-गताय श्रीमदजिततीर्थंकराय नमस्कारं कुर्वे ।।
सावंतीपत्तने दृढरथभूपति-सुषेणादेव्योर्जाताय सुवर्णवर्णाय चतुःशतधनुरुत्सेधाय श्रीमुख-प्रज्ञप्ती-यक्षयक्षीसमेताय अश्वलांछनाय षष्ठिलक्षपूर्वायुष्काय संमेदगिरौ दत्तधवलकूटे परिनिर्वृताय श्रीशंभवतीर्थंकराय नमस्कारं कुर्वे ।
श्रीकौशलदेशे अयोध्यापत्तने संवरनृप-सिद्धार्थामहादेव्यो र्जाताय सुवर्णवर्णायः पंचाशदधिकत्रिशतधनुरुत्सेधाय पंचाशल्लक्षपूर्वायुष्काय कपिलांछनाय यक्षेश्वरवज्रश्रृंखलायक्षयक्षीसमेताय सम्मेदगिरौ आनंदकूटे कर्मक्षयंगताय श्रीमदभिनंदनतीर्थेश्वराय नमस्कारं कुर्वे ।
अयोध्यापुरे मेघरथनृप-सुमंगलादेव्योर्जाताय सुवर्णवर्णाय त्रिंशतधनुरुत्सेधाय चक्रवाकलांछनाय चत्वारिंशल्लक्षपूर्वायुष्काय तुंबर
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