________________
तीर्थकर
२८२ ]
उत्तर--"बिल्कुल ठीक बात है। जिनवाणी हमारी माता है और महावीर भगवान हमारे पिता हैं।" उन्होंने यह भी कहा था, कि "सिद्धभूमि में रहने से भावों में विशेष निर्मलता पाती है तथा वहाँ सुखपूर्वक बहुत उपवास बन जाते हैं ऐसा हमारा अनुभव है । यहाँ कुंथलगिरि में पाँच उपवास करते हुए भी हमें ऐसा लगता है कि हमने एक उपवास किया हो।" ये उद्गार महाराज शांतिसागर जी ने १९५३ में कुंथलगिरि चातुर्मास के समय व्यक्त किए थे।
निषाधिका
निर्वाणभूमि को निषीधिका कहा गया है। प्रतिक्रमण-ग्रंथत्रयी में गौतम गणधर ने लिखा है-“णमोत्थु दे णिसीधिए, णमोत्थु दे अरहंत, सिद्ध" (पृष्ठ २०)-निषीधिका को नमस्कार है । अरहंत को नमस्कार है । सिद्ध को नमस्कार है । संस्कृत टीका में प्राचार्य प्रभाचन्द्र ने निषीधिका के सत्रह अर्थ करते हुए उसका अर्थ सिद्धजीव निर्वाणक्षेत्र, उनके द्वारा पाश्रित आकाश के प्रदेश भी किया है । उन्होंने यह गाथा भी उद्धृत की है :
सिद्धा य सिद्धभूमी सिद्धारण-समाहियो हो-देसो। एयानो अण्णाम्रो मिसीहियानो सया बंवे ॥
मैं सिद्ध, सिद्धभूमि, सिद्धों के द्वारा आश्रित आकाश के प्रदेश आदि निषीधिकाओं की सदा वंदना करता हूँ।
इस आगम के प्रकाश में कैलाशगिरि आदि निर्वाणभूमियों का महत्व स्पष्ट होता है ।
मोक्ष का अभिप्राय
___दार्शनिक भाषा में मोक्ष का स्वरूप है, 'जीव और कर्मों का पूर्णरुपेण संबंधविच्छेद ।' बंध की अवस्था में कर्म ने जीव को
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org