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तीर्थकर तथा भवनवासियों की अपेक्षा कल्पवासी सुखी हैं। कल्पवासियों की अपेक्षा ग्रैवेयकवासी तथा ग्रैवेयकवासियों की अपेक्षा विजय, वैजयन्त, जयंत, अपराजित तथा सर्वार्थसिद्धि रूप पंच अनुत्तरवासी सुखी हैं । उनसे भी अनंतानंतगुणे सुखयुक्त सिद्धि पद को प्राप्त सिद्ध भगवान हैं। सिद्धों के सुख की अपेक्षा दूसरा और उत्कृष्ट आनंद नहीं है ।
सिद्ध परमेष्ठी की महत्ता को योगी लोग भली प्रकार जानते हैं। इससे महापुराणकार उनको ‘योगिनां गम्यः'–योगियों के ज्ञान गोचर कहते हैं । जिनसेन स्वामी का यह कथन प्रत्येक मुमुक्षु के लिए ध्यान देने योग्य है :--
वोतरागोप्यसौ ध्येयो भव्यानां भवविच्छिदे। विच्छिन्नबंधनस्यास्य तादृग्नैसर्गिको गुणः ॥२१--११६॥
भव्यात्माओं को संसार का विच्छेद करने के लिए वीतराग होते हुए भी इन सिद्धों का ध्यान करना चाहिए । कर्म बंधनका विच्छेद करने वाले सिद्ध भगवान का यह नैसर्गिकगुण कहा गया है ।
आचार्य का अभिप्राय यह है कि सिद्ध भगवान वीतराग हैं । बे स्वयं किसी को कुछ नहीं देते हैं, किन्तु उनका ध्यान करने से तथा उनके निर्मल गुणों का चितवन करने से आत्मा की मलिनता दूर होती है
और वह मुक्ति मार्ग में प्रगति करती है। निरंजन निर्विकार तथा निराकार सिद्धों के ध्यान की 'रूपातीत' नाम के धर्म ध्यान में परिगणना की गई है।
रूपातीत-भ्यान
रूपातीत ध्यान में सिद्ध परमात्मा का किस प्रकार योगी चिन्तवन करते हैं, यह ज्ञानार्णव में इस प्रकार कहा है :
व्योमाकारमानाकारं निष्पन्नं शांतमच्युतम् । चरमांगात्कियन्न्यूनं स्वप्रदेधनैः स्थितम् ॥२२॥ लोकाप-शिखरासीनं शिवीमूतमनामयम् । पुरुषाकारमापन्नमप्यमूतं च चिन्तयेत् ॥४०-२३॥
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