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तीर्थकर प्रथमानुयोग
दृष्टिवाद का तृतीयभेद प्रथमानुयोग है। उसमें पाँचहजार पदों के द्वारा बारह प्रकार के पुराणों का उपदेश दिया गया है । उन पुराणों में जिनवंश और राजवंशों का वर्णन किया गया है। तीर्थकर, चक्रवर्ती, विद्याधर, नारायण, प्रतिनारायण, चारणमुनि, प्रज्ञा-श्रमण, कुरुवंश, हरिवंश, इक्ष्वाकुवंश, काश्यपवंशवादियों का वंश तथा नाथवंशों का उन पुराणों में वर्णन है ।
दृष्टिवाद का पूर्वगत नामका चतुर्थभेद पंचानवे करोड़ पचास लाख और पाँच पदों द्वारा उत्पाद, व्यय और ध्रौव्यादि का वर्णन करता है--"उप्पाद-वय-धुवत्तादीणं वण्णणं कुणइ", (धवलाटीका भाग १, पृ० ११३) ।
चूलिका में अपूर्व कथन
चूलिका दृष्टिवाद का पंचमभेद है । वह जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता तथा प्राकाशगता रूप से पंच प्रकार कही गई है। जलगता चूलिका जल-गमन और जल-स्तंभन के कारणरूप मंत्र, तंत्र और तपश्चर्यारूप अतिशय आदि का वर्णन करती है, (जलगमणजलत्थंभण-कारण-मंत-तंत-तवच्छरणाणि वण्णेदि)। स्थलगताचूलिका पृथ्वी के भीतर गमन करने के कारणरूप मंत्र, तंत्र और तपश्चरण तथा वास्तुविद्या और भूमि सम्बन्धी दूसरे शुभ-अशुभ कारणों का वर्णन करती है । (भूमि-गमण-कारण-मंत-तंत-तवच्छरणाणि, वत्थुविज्ज, भूमिसंबंधमण्णं पि सुहासुहकारणं वण्णेदि ) । मायागता चूलिका में इन्द्रजाल आदि के कारणभूत मंत्र, तंत्र और तपश्चरण का वर्णन है। (इंद्रजालं वण्णेदि) । रूपगता
२ जत्तु जदा जेण जहा जस्स य णियमेण होदि तत्तु तदा ।
तेण तहा तस्स हवे इदिवादो णियदिवादो दु ।गो० कर्मकांड ८८२।। ३ अालसढ्ढो णिरुच्छाहो फंल किंचि ण भुंजदे । थणक्खीरादियाण वा पउसेण विणा ण हि गो० कर्मकांड २६०॥
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