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तीर्थकर कहते हैं । स्याद्वाद शासन बताता है कि एक ब्रह्म की कल्पना अपरमार्थ है । एक के स्थान में एक सदृश अथवा एक से कहना परमार्थ कथन हो जाता है । सिद्धालय में मुक्त जीवों का पूर्णतया साम्यवाद है । इस प्राध्यात्मिक साम्यवाद में स्वाधीनता है।
निगोदिया जीवों में साम्यवाद
सिद्ध भूमि में पापात्माओं का भी साम्यवाद है। वहाँ रहने वाले अनंतानंत निगोदिया जीव दुःख तथा प्रात्म गुणों के ह्रास की अवस्था में सभी समानता धारण करते हैं। पुण्यात्माओं का साम्यवाद सर्वार्थसिद्धि के देवों में है। प्रत्येक प्राणी को अपनी शक्तिभर आध्यात्मिक साम्यवादी सिद्धों सदृश बनने का यविशुद्ध यत्त करना चाहिए।
अद्वैत अवस्था
___जब जीव कर्मों का नाश करके शुद्धावस्था युक्त निकल, परमात्मा बन जाता है, तब उसकी अद्वैत अवस्था हो जाती है । प्रात्मा अपने एकत्व को प्राप्त करता है और कर्म रूपी माया-जाल से मुक्त हो जाता है । मुक्तात्मा की अपेक्षा यह अद्वैत अवस्था है । इस तत्व को जगत् भर में लगाकर सभी को अद्वैत के भीतर समाविष्ट मानना एकान्त मान्यता है । सिद्ध भगवान बंधन रूप द्वैत अवस्था से छटकर प्रात्मा की अपेक्षा अद्वैत पदवी को प्राप्त हो गए हैं। इस प्रकार का अद्वैत स्याद्वाद शासन स्वीकार करता है। यह अद्वैत अन्य द्वैत का विरोधक नहीं है। जो अद्वैत समस्त द्वैत के विनाश को केन्द्र बिन्द बनाता है, वह स्वयं शून्यता को प्राप्त होता है ।
अन तपना
अनंत गुण युक्त होने से सिद्ध भगवान को 'अनंत' भी कहते हैं । वे द्रव्य की अपेक्षा एक हैं। वे ही गुणों की दृष्टि से अनंत हैं।
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