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तीर्थकर
[ २५३ जाते हैं । समुद्घात क्रिया में विस्तार में चार समय तथा संकोच में चार समय अर्थात् समस्त आठ समय लगते हैं । लोकपूरण समुद्घात के समय आत्मा से प्रदेश सिद्धालय का स्पर्श करते हैं; नरक की भूमि का भी स्पर्श करते हैं तथा उन आकाश के प्रदेशों का भी स्पर्श करते हैं जिन का पंचपरावर्तन रूप संसार में परिभ्रमण करते समय इस जीव ने चौरासी लक्ष योनियों को धारण कर अपने शरीर की निवास भूमि बनाया था। अनंतानंत जीवों के भीतर भी यह योगी समा जाता है। इस कार्य के द्वारा सयोगी-जिन कर्मों की स्थिति में विषमता दूर करके उनकी आयु कर्म के बराबर शीघ्र बनाते हैं । जिस प्रकार गीले वस्त्र को ऊँचा नीचा, पाड़ा तिरछा करके हिलाने से वह शीघ्र सूखता है, इसी प्रकार की क्रिया द्वारा योगी कर्मों की स्थिति तथा अशुभ कर्मों की अनुभाग शक्ति का खंडन करता है।
प्रिय उत्प्रेक्षा
लोकपूरण समुद्घात क्रिया क विषय म यह कल्पना करना प्रिय लगता है, कि समता भाव के स्वामी जिनेन्द्र सदा के लिए अपने घर सिद्धालय में जा रहे हैं, इससे वे बैर विरोध छोड़कर बिना संकोच छोटे बड़े सब से भेंट करते हुए, मिलते हुए मोक्ष जाने को तैयार हो रहे हैं।
महापुराण में लिखा है :तत्राघातिस्थितेर्भागान् असंख्येयानिहन्त्यसौ।
अनुभागस्य चानंतान् भागानशुभकर्मणाम् ॥२६--१९३॥ । उस समय वे भगवान अघातिया कर्मों की स्थिति के असंख्यात भागों को विनष्ट करते हैं। इसी प्रकार अशुभ कर्मों के अनुभाग के अनंत भागों को नष्ट करते हैं ।
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