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तीर्थकर
[ २६३ सिद्धों की अवगाहना
सिद्धों की अवगाहना अर्थात् शरीर की ऊँचाई उत्कृष्ट पाँच सौ पच्चीस धनुष और जघन्य साढ़े तीन हाथ प्रमाण कही गई है ।
तिलोयपण्णत्ति में यह भी कहा है :---- दोहत्तं बाहल्लं चरिमभवे जस्स जारिसं ठाणं ।
तत्तो तिभागहीणं प्रोगाहण सव्वसिद्धाणं ॥६--१०॥
अंतिम भव में जिसका जैसा आकार, दीर्घता तथा बाहुल्य हो, उससे तृतीय भाग हे कम सब सिद्धों की अवगाहना होती है ।
उक्त ग्रंथ में ग्रंथान्तर का यह कथन दिया गया है :--
लोय-विणिच्छयगंथे लोयविभागरिम सवसिद्धाणं।
प्रोगाहणपरिमाणं भणिदं किंचूण चरिमदेहसमो॥६-६॥
लोक-विनिश्चय ग्रंथ में लोकविभाग में सब सिद्धों की अवगाहना का प्रमाण कुछ कम चरम शरीर के समान कहा है।
आदिपुराण में भगवान के निर्वाण का वर्णन करते हुए किंचित् ऊनो देहात् (४७--३४२) चरम शरीर से किचित् ऊन अाकार कहा है।
द्रव्यसंग्रह में भी भगवान सिद्ध परमेष्ठी को चरम शरीर से किंचित् ऊन कहा है, यथा :--
णिक्कम्मा अट्ठगुणा किंचूणा चरम देहदो सिद्धा। ___ लोयग्ग-ठिदा णिच्चा उप्पाद-वहिं संजुत्ता ॥१४॥
सिद्ध भगवान कर्मों से रहित हैं, अष्टगुण समन्वित हैं। चरम शरीर से किंचित् न्यून प्रमाण हैं, लोक के अग्रभाग में स्थित तथा उत्पाद, व्यय एवं ध्रौव्यपने से युक्त हैं ।
__इस प्रकार भगवान का शरीर चरम शरीर से किंचित् न्यून प्रमाण सर्वत्र कहा गया है, क्योंकि शरीर की अवगाहना को हीनाधिक करने वाले कर्म का क्षय हो चुका है। ऐसी स्थिति में
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