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तीर्थंकर
इस प्रकरण में यह बात भी ज्ञातव्य है कि वीर भगवान ने कायोत्सर्ग ग्रासन से मोक्ष प्राप्त किया है । तिलोयपण्णत्ति में लिखा
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उसहोय वासुपुज्जो णेमी एल्लंकबद्धया सिद्धा । काउस्सगेण जिणा सेसा मुति समावण्णा ।।४--१२१०।।
ऋषभनाथ भगवान, वासुपूज्यस्वामी तथा नेमिनाथ भगवान ने पल्यंकबद्ध ग्रासन से तथा शेष तीर्थंकरों ने कायोत्सर्ग ग्रासन से मोक्ष प्राप्त किया है ।
शांतिनाथपुराण में लिखा है कि समवशरण में शांतिनाथ भगवान का पल्यंकासन था । कहा भी है : --
श्रेष्ठ षष्ठोपवासेन धवले दशमीदिने । पौषमास दिनस्यान्ते पल्यंकासनमास्थित ॥६२॥
निर्ग्रन्थो नीरजो वीतविघ्नो विश्वैकबांधवः । केवलज्ञान - साम्राज्यश्रिया शांतिमशिश्रियत् ॥ ६३ ॥
धर्मशर्माभ्युदय में लिखा है कि धर्मनाथ तीर्थंकर समवशरण में बैठे हुए थे । कहा भी है :--
रत्नज्योतिर्भासुरे तत्र पीठे तिष्ठन् शुभ्रभामंडलस्थः ।
क्षीरांभोधेः सिच्यमानः पयोभिर्भूयो रेजे कांचनाद्राविवोच्चैः ।।२० --६।। तिलोयपण्णत्ति के उपरोक्त कथन के प्रकाश में यह बात स्पष्ट हो जाती है कि धर्मनाथ, शांतिनाथ तथा महावीर भगवान का मोक्ष कायोत्सर्ग आसन से हुआ है, किन्तु समवशरण में वे पद्मासन से विराजमान थे । अतएव केवलज्ञान होने पर समवशरण में तीर्थकर भगवान को पद्मासन मुद्रा में विराजमान मानना उचित है । सिंहासन रूप प्रातिहार्य रहंत भगवान के पाया जाता है; उस पर कायोत्सर्ग आसन से रहने की कल्पना उचित नहीं दिखती है । एक बात यह भी विचारणीय है; कि द्वादश सभाओं में समस्त जीव बैठे रहें और भगवान खड़े रहें, ऐसा मानने पर भक्त जीवों पर प्रविनय का दोष
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