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द्वादशांग वर्णन
द्वादशांग रूप जिनवाणी में आचारांग को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है । इस अंग में मुनियों के प्रचार का अठारह हजार पदों द्वारा प्रतिपादन किया गया है । सूत्रकृताँग में छत्तीस हजार पदों के द्वारा ज्ञान, विनय, प्रज्ञापना, कल्प्य तथा प्रकल्प्य, छेदोपस्थापना और व्यवहार धर्म क्रिया का कथन है । उसमें स्वमत तथा पर सिद्धांत का भी निरूपण है । स्थानसँग नाम के तीसरे अंङ्ग में ब्यालीस हजार पदों के द्वारा एक को आदि लेकर उत्तरोत्तर एक-एक अधिक स्थानों का प्रतिपादन है । उदाहरणार्थ एक जीव है । ज्ञान दर्शन के भेद से दो प्रकार है । ज्ञान, कर्म, कर्मफलचेतना के रूप से तीन भेदयुक्त है । चारगति की अपेक्षा चतुर्भेद युक्त है इत्यादि । चौथा समवायाँग एक लाख चौसठ हजार पदों के द्वारा पदार्थों के समवाय का वर्णन करता है । वह सादृश्य सामान्य से द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा जीवादि पदार्थों का ज्ञान कराता है । व्याख्या प्रज्ञप्ति नाम के पंचम अङ्ग में दो लाख अट्ठाइस हजार पदों द्वारा क्या जीव है ? या जीव नहीं है ? इत्यादि रूप से साठ हजार प्रश्नों का व्याख्यान है । नाथधर्मकथा नामका छठवाँ ग्रङ्ग पाँच लाख छप्पन हजार पदों द्वारा सूत्रपौरुषी अर्थात् सिद्धान्तोक्त विधि से स्वाध्याय की प्रस्थापना हो इसलिए तीर्थंकर की धर्मदेशना का एवं अनेक प्रकार की कथाओं तथा उपकथाओं का वर्णन करता है । सातवें उपासकाध्ययन अङ्ग में ग्यारह लाख सत्तर हजार पदों के द्वारा श्रावक के प्राचार का कथन है । अंतकृद्दशाँग नाम थे आठवें ग्रङ्ग में तेइस लाख अट्ठाईस हजार पदों के द्वारा एक-एक तीर्थंकर के तीर्थ में नाना प्रकार के भीषण उपसर्गों को सहनकर निर्वाण प्राप्त करनेवाले दस-दस अंतकृत् केव - लियों का वर्णन किया गया है । नवमें अनुत्तर - प्रपपादिक दशाङ्ग में बान्नवे लाख, चवालीस हजार पदों द्वारा एक एक तीर्थंकर के तीर्थ में उपसर्गों को सहनकर पाँच अनुत्तर विमानों में उत्पन्न होने वाले दशदश महापुरुषों का वर्णन किया गया है । वर्धमान भगवान के तीर्थ में
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तीर्थंकर
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