________________
जन्म-कल्याणाक
प्राची के गर्भ में स्थित सूर्य सदश जननी के गर्भ में वे धर्मसूर्य जिनेन्द्र भव्यों को अधिक हर्ष प्रदान कर रहे थे, किन्तु जिस समय उन प्रभु का जन्म हुआ, उस समय के अानन्द और शान्ति का कौन वर्णन कर सकता है ? अन्तःकरणों में सभी जीवों ने जिनेन्द्र-जन्मजनित आनन्द का अनुभव किया । त्रिभुवन के सभी जीवों को सुख प्राप्त हुआ । जन्म के समय जननी को कोई कष्ट नहीं हुआ । देवियाँ सेवा में तैयार थीं।
पुण्य वातावरण
उस समय का . नैसर्गिक वातावरण रमणीय और सुन्दर हो गया । नभोमण्डल अत्यन्त स्वच्छ था । मन्द, सुगन्धित पवन का संचार हो रहा था। आकाश से सुगन्धित पुष्पों की वर्षा हो रही थी। प्राकृतिक मुद्रा को धारण करके आत्मा की वैभाविक परणति का त्याग कर अपनी प्राकृतिक स्थिति को ये जिनेन्द्र शीघ्र ही प्राप्त करेंगे, इसलिए सचेतन एवं अचेतन प्रकृति के मध्य एक अपूर्व उल्लास और आनन्द की रेखा दिखाई पड़ती थी। महापुराण में जन्म के समय हुई मधुर बातों का इस प्रकार वर्णन किया गया है
दिशः प्रसत्तिमासेदुः प्रासीनिर्मलमम्बरम् । गुणानामस्य वैमल्यं अनुकर्तुमिव प्रभोः ॥१३-५॥
उस समय समस्त दिशाएँ स्वच्छता को प्राप्त हुई थीं। आकाश भी निर्मल हो गया था। उससे ऐसा प्रतीत होता था मानो भगवान के गुणों की निर्मलता का वे अनुकरण कर रहे हों।
प्रजानां ववृधे हर्षः सुरा विस्मयमाश्रयन् । अम्लानि कुसुमान्युच्चैः मुमचुः सुरभूतहाः॥६॥
( ३५ )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org