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तीर्थकर
[ १३१ के हेतु प्रस्थान करने के अनंतर देवताओं ने दान-तीर्थंकर महाराज श्रेयांस की अभिषेक पूर्वक पूजा की। तीर्थंकरों की पारणा का काल
आगम में लिखा है :वर्षेणपारणाद्यस्य जिनेन्द्रस्य प्रकीर्तिता। तृतीयदिवसेऽन्येषां पारणा प्रथमा मता ॥६०--२३७ हरिवंशपुराण।।
आदि तीर्थकर की प्रथम पारणा एक वर्ष के उपरान्त हुई थी। शेष तीर्थंकरों ने तीसरे दिन पारणा की थी।
__ अक्षय तृतीया के पूर्व राजकुमार श्रेयांस की जो लौकिक स्थिति थी, उसमें आहार दान के उपरान्त लोकोत्तर परिवर्तन हो गया । अब वे दानशिरोमणि, पुण्यवान नररत्न कहलाने लगे। वे विश्वपूज्य बन गए । महान् अात्मानों का संपर्क अवर्णनीय कल्याणदायी बन जाता है । इस दान की अनुमोदना द्वारा बहुत लोगों ने पुष्य का भण्डार पूर्ण किया ।
निमित्त कारण का महत्व
बाह्य समर्थ उज्ज्वल निमित्त कारण का भी बड़ा महत्व है । महापुराणकार का कथन है :--
__ दानानुमोदनात्पुण्यं परोपि बहवोऽभजन् ।
यथासाद्य परं रत्नं स्फटिकस्तद्रुचि भजेत् ।।२०--१०७॥
उस तीर्थंकर के दान की अनुमोदना द्वारा बहुत से लोगों ने परम पुण्य को प्राप्त किया था जैसे स्फटिकमणि अन्य उत्कृष्ट रत्न के संपर्क को प्राप्तकर उस रत्न की दीप्ति को धारण करता है।
जिनकी यह समझ है कि निमित्तकारण कुछ नहीं करता है, उनके संदेह निवारणार्थ पागम में कहा है :
कारणं परिणामः स्याद् बंधने पुण्यपापयोः। बाह्यं तु कारणं प्राहुः प्राप्ताः कारण-कारणम् ॥२०--१०८॥
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