________________
तीर्थकर
[ १४१ ऐसी स्थिति में सद्धर्म में श्रद्धा रखकर सत्पात्रदानादि में अपनी सम्पत्ति आदि का उपयोग करने वाले व्यक्ति बिरले हैं। उनका भविष्य उज्ज्वल है और पाप प्रवृत्तियों में लगे लोगों का जीवन भावी पतन का निश्चायक है। प्राय: देखा जाता है कि असदाचार के मार्ग में लगने वाले जीव की इसी जन्म में दुर्गति हुआ करती है । अतः सज्जन पुरुषों को सत्कार्य में सदा तत्पर रहना चाहिये ।
अधर्म से पतन
आगामी जीवन के विषय में सर्वज्ञ प्रणीत पागम कहता है; धर्म के द्वारा आत्मा उर्ध्वगमन करता है तथा अधर्म द्वारा उसका नरकादि गतियों में पतन होता है :
धर्मेणात्मा बजत्यूर्ध्वम्, अधर्मेण पतत्ययः ॥१०-११॥
नरक गति में जाकर दुःख भोगने वाले कौन जीव हैं इस प्रश्न का उत्तर देते हुए महापुराणकार ने लिखा है कि साधु वर्ग के प्रति दोष लगाने वाले, उनसे द्वेष करने वाले आदि जीवों का नरक में पतन होता है।
सत्पुरुषों की निंदा से घोर पाप
अाजकल त्यागी तथा मुनि निन्दा के कार्य में अल्पज्ञ ही नहीं, पतित जीवनवाले बड़े-बड़े शास्त्रज्ञ भी गर्व के साथ प्रवृत्त होकर जनसाधारण के मन को मलिन बनाते हैं। हमें समाज में गौरव प्राप्त ज्ञानमद, तथा प्रभुता के मदवाले ऐसे अनेक व्यक्ति मिले, जो किसी साधु का परिचय बिना प्राप्त किए ही अपनी मुखरूपी बाँबी से दुष्ट वचन रूपी विषधर को निकाला करते हैं। वे यह नहीं सोचते कि इसका आगे क्या फल होगा ?
उग्रतपस्वी १०८ चारित्र चक्रवर्ती प्राचार्य शांतिसागर महाराज ने एक बार कहा था, कि लोग साधु निंदा का क्या दुष्परिणाम होता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org