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- तीर्थंकर केवलज्ञान का समय
हरिवंशपुराण में लिखा है :
वृषभस्य श्रेयसो मल्लेः पूर्वाण्हे नेमिपाश्र्वयोः । केवलोत्पत्तिरन्येषामपराह्न जिनेशिनां ॥६०-२५६॥
वृषभनाथ, श्रेयांसनाथ, मल्लिनाथ, नेमिनाथ तथा पार्श्वनाथ इन पांच तीर्थंकरों ने पूर्वाह में केवलज्ञान प्राप्त किया था। शेष जिनेन्द्रों ने अपराण्हकाल में केवलज्ञान प्राप्त किया था ।
महापुराण में लिखा है :फाल्गुने मासि तामिस्त्रपक्षस्यैकादशी तिथौ । उत्तराषाढनक्षत्रे कैवल्यमुद्भद्विभोः॥२०-२६८॥
फाल्गुन कृष्णा एकादशी के दिन उत्तराषाढ़ नक्षत्रमें भगवान् ऋषभदेव को केवलज्ञान उत्पन्न हुअा था। केवलज्ञान ज्योति के कारण वे भगवान यथार्थ में महान देव, महादेव या देवाधिदेव बन गए।
अकलंक स्वामी की यह वाणी अर्थपूर्ण है :त्रैलोक्यं सकलं त्रिकालविषयं सालोकमालोकितम् । साक्षाद्येन यथा स्वयं करतले रेखात्रयं सांगुलि ॥ राग-द्वेष-भयामयान्तक-जरा-लोलत्व-लोभादयो। नालं यत्पदलंघनाय स महादेवो मया वंद्यते ॥
जिन्होंने करतल की अंगुलियों सहित तीन रेखाओं के समान त्रिकालवर्ती लोक तथा अलोक का प्रत्यक्ष ज्ञान प्राप्त किया है, जिनके पद का उल्लंघन करने में राग, द्वेष, भय, रोग, मृत्यु, बुढ़ापा, चंचलता, लोभादिक समर्थ नहीं हैं, मैं उन महादेव को प्रणाम करता हूं।
पहिले संयम ने केवलज्ञान की प्राप्ति का सच्चा वचन देकर भगवान को मनः पर्ययज्ञान रूप ब्याना दिया था। अब केवलज्ञान की उपलब्धि द्वारा संयम की वह प्रतिज्ञा भी पूर्ण हो गई।
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