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पंच बालयति तीर्थंकर
चौबीस तीर्थंकरों में
वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पारसनाथ तथा महावीर भगवान ये पंच बालयति रूप से विख्यात हैं, क्योंकि ये बालब्रह्मचारी रहे हैं; शेष उन्नीस तीर्थंकरों ने पहले गृहस्थाश्रम स्वीकार किया था, पश्चात् काललन्धि प्राप्त होने पर उन्होंने साधु पदवी अंगीकार की थी ।
महाराज नाभिराज का निवेदन
महाराज नाभिराज ने भगवान ऋषभदेव को विवाह योग्य देखकर कहा :--
हिरण्यगर्भस्त्वं धाता जगतां त्वं स्वभूरसि ।
निभमात्रं त्वदुत्पत्तौ पितृम्मन्या यतो वयम् ।।१५--५७।।
तीर्थंकर
हे देव ! आप कर्मभूमिरूपी जगत् की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा हैं । आप स्वभू हैं | आप स्वयमेव उत्पन्न हुए हैं । आपकी उत्पत्ति में हम लोग माता, पिता हैं, यह कथन निमित्त मात्र है ।
यथार्कस्य समुद्भूतौ निमित्तमुदयाचलः ।
स्वतस्तु भास्वानुद्याति तथैवास्मद्भवानपि ॥ ५८ ॥
जैसे सूर्य के उदय में उदयाचल निमित्तमात्र है । सूर्य तो स्वयं ही उदित होता है, इसी प्रकार आपकी उत्पत्ति में हम निमित्तमात्र हैं । आप स्वयं ही उत्पन्न हुए हैं ।
पाणिग्रहण
इसके पश्चात् पिता ने प्रभु के पाणिग्रहण संस्कार का विचार उपस्थित किया । उन्होंने पिता की बात स्वीकार की । पिता ने यशस्वती तथा सुनन्दा नामकी राजकन्याओं के साथ उनका विवाहोत्सव किया ।
भरत जन्म
योग्यकाल व्यतीत होने पर यशस्वती महादेवी ने चैत्रकृष्णा
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