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________________ ७८ ] पंच बालयति तीर्थंकर चौबीस तीर्थंकरों में वासुपूज्य, मल्लिनाथ, नेमिनाथ, पारसनाथ तथा महावीर भगवान ये पंच बालयति रूप से विख्यात हैं, क्योंकि ये बालब्रह्मचारी रहे हैं; शेष उन्नीस तीर्थंकरों ने पहले गृहस्थाश्रम स्वीकार किया था, पश्चात् काललन्धि प्राप्त होने पर उन्होंने साधु पदवी अंगीकार की थी । महाराज नाभिराज का निवेदन महाराज नाभिराज ने भगवान ऋषभदेव को विवाह योग्य देखकर कहा :-- हिरण्यगर्भस्त्वं धाता जगतां त्वं स्वभूरसि । निभमात्रं त्वदुत्पत्तौ पितृम्मन्या यतो वयम् ।।१५--५७।। तीर्थंकर हे देव ! आप कर्मभूमिरूपी जगत् की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा हैं । आप स्वभू हैं | आप स्वयमेव उत्पन्न हुए हैं । आपकी उत्पत्ति में हम लोग माता, पिता हैं, यह कथन निमित्त मात्र है । यथार्कस्य समुद्भूतौ निमित्तमुदयाचलः । स्वतस्तु भास्वानुद्याति तथैवास्मद्भवानपि ॥ ५८ ॥ जैसे सूर्य के उदय में उदयाचल निमित्तमात्र है । सूर्य तो स्वयं ही उदित होता है, इसी प्रकार आपकी उत्पत्ति में हम निमित्तमात्र हैं । आप स्वयं ही उत्पन्न हुए हैं । पाणिग्रहण इसके पश्चात् पिता ने प्रभु के पाणिग्रहण संस्कार का विचार उपस्थित किया । उन्होंने पिता की बात स्वीकार की । पिता ने यशस्वती तथा सुनन्दा नामकी राजकन्याओं के साथ उनका विवाहोत्सव किया । भरत जन्म योग्यकाल व्यतीत होने पर यशस्वती महादेवी ने चैत्रकृष्णा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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