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________________ तीर्थकर [ ७९ नवमी के दिन जब मीन लग्न, ब्रह्मयोग, धन राशि का चन्द्रमा तथा उत्तराषाढ़ नक्षत्र था, उस समय ज्येष्ठ पुत्र भरत को उत्पन्न किया । तन्नाम्ना भारतं वर्ष मितिहासोज्जनास्पदम् । हिमाद्रेरासमृद्राच्च क्षेत्रं चक्रभृतामिदम् ॥१५- १५६॥ इतिहास वेत्ताओं का कथन है कि हिमवान पर्वत से लेकर समुद्र पर्यन्त चक्रवर्तियों का क्षेत्र भरत के कारण भारतवर्षं नाम से विख्यात हुआ । भगवान द्वारा संस्कार कार्य भगवान ने अपनी संतति को योग्य बनाने में पूर्ण सावधानी रखी थी । भरत के यज्ञोपवीत आदि संस्कार स्वयं भगवान ने किए थे । जिनसेन स्वामी लिखते हैं : श्रनप्राशन- चौलोपनयनादीननुक्रमात् । क्रियाविधीन् विधानज्ञः स्रष्टैवास्य निसृष्टवान् ॥ १६४ ॥ क्रियाकांड के ज्ञाता ( विधानज्ञ) भगवान ने भरत के अन्नप्राशन प्रर्थात् पहली बार अन्नाहार कराना, चौल (मुंडन), उपनयन ( यज्ञोपवीत) आदि संस्कार - क्रिया रूप विधि स्वयं की थी । भ्रम-शोधन इस परमागम के कथन को ध्यान में रखकर उन लोगों को अपनी भ्रांत धारणा सुधारना चाहिए, जो यह एकान्त मत बना चुके हैं, कि यज्ञोपवीत प्रादि का जैन संस्कृति में कोई स्थान नहीं है । महापुराण कल्पित उपन्यास नहीं है, जिसमें लेखक ने अपने स्वतन्त्र विचारों के पोषणार्थं यथेच्छ मिश्रण कर दिया हो । प्रथमानुयोग क्या है ? आज के स्वतन्त्र लेखक अपने विचारों को निर्भय हो आर्ष ग्रन्थों में मिला दिया करते हैं क्योंकि उन्हें जिनेन्द्र वाणी में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001932
Book TitleTirthankar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherTin Chaubisi Kalpavruksh Shodh Samiti Jaipur
Publication Year1996
Total Pages998
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & philosophy
File Size17 MB
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