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तीर्थकर
प्रश्न ?
इस प्रसङ्ग में एक शंका उत्पन्न होती है कि भगवान का जन्म तो अयोध्या में हरा और उनके जन्म की सचना देने वाली वाद्य-ध्वनि स्वर्गलोक में होने लगी। इन्द्रों के मुकुट झुक गए। इस कथन का क्या कोई वैज्ञानिक समाधान है ?
समाधान
जिनागम में जगद् व्यापी एक पुद्गल का महास्कन्ध माना है, वह सूक्ष्म है । आज के भौतिक शास्त्रज्ञों ने 'ईथर' नाम का एक तत्व माना है, जिसके माध्यम से हजारों मील का शब्द रेडियो यन्त्र द्वारा सुनाई पड़ता है। इस विषय में आगम का यह आधार ध्यान देने योग्य है । तत्वार्थ सूत्र में पद्गल के शब्द, बंध अादि भेदों का उल्लेख करते हुए उसका भेद सूक्ष्मता के साथ स्थूलता भी बताया है । तत्वार्थराजवार्तिक में लिखा है “द्विविधं स्थौल्यमवगंतव्यं । तत्रात्यं जगद्व्यापिनि महास्कंधे” (अध्याय ५, सूत्र २४, पृष्ठ २३३)--दो प्रकार की स्थूलता कही गई है । पुद्गल की अन्तिम स्थूलता जगत् भर में व्याप्त महास्कंध में है । इस महास्कंध के माध्यम से जिनेन्द्रजन्म की सूचना तत्काल सम्पूर्ण जगत् को अनायास प्राप्त हो जाती है। इस महास्कंध तत्व का स्वरूप किसी भी अन्य सिद्धान्त में नहीं बताया गया है, कारण वे एकान्तवाद असर्वज्ञों के कथन पर आश्रित हैं और जैन-धर्म सर्वज्ञ के परिपूर्ण ज्ञान तथा तदनुसार निर्दोष वाणी पर अवस्थित है।
देव सेना
सिद्धान्तसार दीपक में लिखा है कि इन्द्र महाराज की सवारी के आगे-आगे सात प्रकार की सेना मधुर गीत गाती हुई चलती थी। आभियोग्य जाति के देवों ने गज, तुरङ्ग आदि का रूप धारण किया था । देवगति नाम कर्म का उदय होते हुए भी अल्प
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